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Erotica रंग -प्रसंग,कोमल के संग

komaalrani

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भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी

Phagun ke din chaar update posted

please read, like, enjoy and comment






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तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी
 
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komaalrani

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गाँव की होली

( जोरू का गुलाम से )

पिछले पन्ने पर, पढ़ें मजे लें , लाइक करें और कमेंट जरूर दें
 

komaalrani

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सलहज नन्दोई की होली

( मजा पहली होली का ससुराल से )


नंदोई दो सलहज एक

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तब तक मेरी छोटी ननद भी आ गई थी|

वो और जेठानी जी उसे लेके अंदर चली गईं और मैं, बड़ी ननद और नंदोई जी बचे|

कसरती देह, लंबा तगड़ा शरीर और सबसे बढ़ के लंबा और खूब मोटा लंड, जो अभी भी हल्का हल्का तन्नाया था|





तब तक एक और आदमी आया...ननद ने बताया कि ये उनके जीजा लगते हैं इसलिए वो भी मेरे नंदोई लगेंगे| हँस के मैंने चिढ़ाया,


“अरे ननद एक और नंदोई दो...बड़ी नाइंसाफी है|”

“अरे भाभी, आप हैं ना मुकाबला करने के लिए मेरी ओर से...” वो बोली|


“आज तो होली हमलोग अपनी सलहज से खेलने आए हैं|” दोनों एक साथ बोले|

मैंने रंग से जवाब दिया, पास रखी रंग की बाल्टी उठा के सीधे दोनों पर एक साथ और दोनों नंदोई रंग से सराबोर हो गये|
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दूसरी बाल्टी का निशाना मैंने सीधे उनके खूंटे पे...पर तब तक वो दोनों भी संभल गए थे| एक ने मुझे पीछे से पकड़ा और दूसरे ने पहले गालों पे, फिर मेरी लपेटी, देह से चिपकी साड़ी के ऊपर से हीं मेरे जोबन पे रंग लगाना शुरू कर दिया|

“अरे एक साथ दोनों डालियेगा क्या?” मैंने हँस के पूछा|

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“मन मन भावे...अरे भाभी मन की बात जुबान पे आ गई| साफ साफ क्यों नहीं कहती कि एक साथ आगे पीछे दोनों ओर का मजा लेना चाहती हैं|”

ननद ने हँस के चिढ़ाया|


“हम दोनों तैयार हैं|” दोनों साथ साथ बोले|

“आगे वाली तेरी, पीछे वाली मेरी..” नंदोई ने टुकड़ा लगाया|

तब तक गिरे हुए रंग पे फिसल के मेरे छोटे (जो बाद में आये थे और जिसे ननद ने जीजा कहा था) नंदोई गिरे और उन्हें पकड़े पकड़े उनके ऊपर मैं गिरी| रंग से सराबोर|

नंदोई ने मेरी साड़ी खींच के मुझे वस्त्रहीन कर दिया| लेकिन अबकी ननद ने मेरा साथ दिया| मेरे नीचे दबे छोटे नंदोई का पजामा खींच के उनको भी मेरी हालत में ला दिया| (कुरता बनियान तो दोनों का हमलोग पहले हीं फाड़ के टॉपलेस कर चुके थे और नंदोई ने मेरी ननद को भी... तो अब हम चारो एक हालत में थे|)

क्या लंड था, खूब मोटा, एक बालिश्त सा लंबा और एकदम खड़ा|


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ननद ने अपने हाथों में लगा रंग सीधे उनके लंड पे कस-कस के पोत दिया|

मैं क्यों पीछे रहती, मेरे मुँह के पास नंदोई जी का मोटा लंड था|

मैंने दोनों हाथों से कस-कस के लाल पक्का रंग पोत दिया| खड़ा तो वो पहले से हीं था, मेरा हाथ लग के वो लोहे का रॉड हो गया, लाल रंग का| मेरे नीचे दबे नंदोई मेरी चूत और चूचि दोनों पे रंग लगा रहे थे|

“अरे चूत के बाहर तो बहुत लगा चुके, जरा अंदर भी तो लगा दो मेरी प्यारी भाभी जान को|” ननद ने ललकारा|


“अरे चूत क्या, मैं तो सीधे बच्चेदानी तक रंग दूंगा, याद रहेगी ये पहली होली गाँव की|” वो बोले|


जब तक मैं संभलूं संभलूं, उन्होंने मेरी पतली कमर को पकड़ के उठा लिया और मेरी चूत सीधे उनके सुपाड़े से रगड़ खा रही थी|

ननद ने झुक के पुत्तियों को फैलाया और नंदोई ने ऊपर से कन्धों को पकड़ के कस के धक्का दिया और एक बार में हीं गचाक से आधे से ज्यादा लंड अंदर|
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मैंने भी कमर का जोर से लगाया और जब मेरी कसी गुलाबी चूत में वो मोटा हलब्बी लंड घुसा तो होली का असली मजा आ गया|


मेरे हाथ का रंग तो खत्म हो गया था...जमीन पे गिरे लाल रंग को मैंने हाथ में लिया और कस-कस के पक्के लाल रंग को नंदोई के लंड पे पोत के बोलने लगी,

“अरे नंदोई राजा, ये रंग इतना पक्का है जब अपने मायके जाके मेरी इस छिनाल ननद की दर छिनाल हरामजादी, गदहा चोदी ननदों से, अपनी रंडी बहनों से चुसवाओगे ना हफ्ते भर तब भी ये लाल का लाल रहेगा| चाहे अपनी बहनों के बुर में डालना या अम्मा के भोंसड़े में|”






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komaalrani

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डलवाई लो भौजी होली में



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“अरे नंदोई राजा, ये रंग इतना पक्का है जब अपने मायके जाके मेरी इस छिनाल ननद की दर छिनाल हरामजादी, गदहा चोदी ननदों से, अपनी रंडी बहनों से चुसवाओगे ना हफ्ते भर तब भी ये लाल का लाल रहेगा| चाहे अपनी बहनों के बुर में डालना या अम्मा के भोंसड़े में|”



तब तक जमीन पे लेटे मुझे चोद रहे नंदोई ने कस के मुझे अपनी बाँहों में भींच लिया और अब एकदम उनकी छाती पे लेटी मैं कस के चिपकी हुई थी| मेरी टाँगे उनकी कमर के दोनों ओर फैली, चूतड़ भी कस के फैले हुए|

अचानक पीछे से नंदोई ने मेरी गांड़ के छेद पे सुपाड़ा लगा दिया|


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नीचे से नंदोई ने कस के बाँहों में जकड़ रखा था और ननद भी कस के अपनी उँगलियों से मेरी गांड़ का छेद फैला के उनका सुपाड़ा सेंटर कर दिया|

नंदोई ने कस के जो मेरे चूतड़ पकड़ के पेला तो झटाक से मेरी कसी गांड़ फाड़ता, फैलाता सुपाड़ा अंदर| मैं तिलमिलाती रही, छटपटाती रही लेकिन,

“अरे भाभी आप कह रही थीं ना दोनों ओर से मजा लेने का, तो ले लो ना एक साथ दो दो लंड|”



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ननद ने मुझे छेड़ा|

“अरे तेरी सास ने गदहे से चुदवाया था या घोड़े से जो तुझे ऐसे लंड वाला मर्द मिला| ओह लगता है, अरे एक मिनट रुक न नंदोई राजा, अरे तेरी सलहज की कसी गांड़ है, तेरी अम्मा की ४ बच्चों जनी भोंसड़ा नहीं जो इस तरह पेल रहे हो...रुक रुक फट गई, ओह|”


मैं दर्द में गालियाँ दे रही थी|

पर रुकने वाला कौन था?

एक चूचि मेरी गांड़ मारते नंदोई ने पकड़ी और दूसरी चूत चोदते छोटे नंदोई ने, इतने कस-कस के मींजना शुरू किया कि मैं गांड़ का दर्द भूल गई|

थोड़ी हीं देर में जब लंड गांड़ में पूरी तरह घुस चुका था तो उसे अंदर का नेचुरल लुब्रिकेंट भी मिल गया, फिर तो गपागप गपागप...मेरी चूत और गांड़ दोनों हीं लंड लील रही थी|

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कभी एक निकालता दूसरा डालता और दूसरा निकालता तो पहला डालता, और कभी दोनों एक साथ निकाल के एक साथ सुपाड़े से पूरे जड़ तक एक धक्के में पेल देते|
एक बार में जड़ तक लंड गांड़ में उतर जाता, गांड़ भी लंड को कस के दबोच रही थी|

खूब घर्षण भी हो रहा था, कोई चिकनाई भी नहीं थी सिवाय गांड़ के अंदर के मसाले के| मैं सिसक रही थी, तड़प रही थी, मजे ले रही थी| साथ में मेरी साल्ली छिनाल ननद भी मौके का फायदा उठा के मेरी खड़ी मस्त क्लिट को फड़का रही थी, नोच रही थी|



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खूब हचक के गांड़ मारने के बाद नंदोई एक पल के लिए रुके मूसल अभी भी आधे से ज्यादा अंदर हीं था|

उन्होंने लंड के बेस को पकड़ के कस-कस के उसे मथानी की तरह घुमाना शुरू कर दिया|
थोड़ी हीं देर में मेरे पेट में हलचल सी शुरू हो गई| (रात में खूब कस के सास ननद ने खिलाया था और सुबह से 'फ्रेश' भी नहीं हुई थी|) उमड़ घुमड़...और लंड भी अब फचाक फचाक की आवाज के साथ गांड़ के अंदर बाहर...तीन तरफा हमले से मैं दो तीन बार झड़ गई, उसके बाद मेरे नीचे लेटे नंदोई मेरी बुर में झड़े|

उनका लंड निकलते हीं मेरी ननद की उंगलियाँ मेरी चूत में...

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और उनके सफेद मक्खन को ले के सीधे मेरे मुँह में, चेहरे पे अच्छी तरह फेसियल कर दिया| लेकिन नंदोई अभी भी कस-कस के गांड़ मार रहे थे...बल्कि साथ साथ मथ रहे थे| (एक बार पहले भी वो अभी हीं मेरे भाई की गांड़ में झड़ चुके थे|)

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और जब उन्होंने झड़ना शुरू किया तो पलट के मुझे पीठ के बल लिटा के लंड, गांड़ से निकाल के 'सीधे' मेरे मुँह पे|
मैंने जबरन मुँह भींच लिया लेकिन दोनों नंदोइयों ने एक साथ कस के मेरा गाल जो दबाया तो मुँह खुल गया|

फिर तो उन्होंने सीधे मुँह में लंड ठेल दिया|

मुझे बड़ा ऐसा...ऐसा लग रहा था लेकिन उन्होंने कस के मेरा सिर पकड़ रखा था और दूसरे नंदोई ने मुँह भींच रखा था| धीरे धीरे कर के पूरा लंड घुसेड़ दिया मेरे मुँह में...उनके लंड में...लिथड़ा...लिथड़ा..

वो बोले,
“अरे सलहज रानी गांड़ में तो गपाक गपाक ले रही थी तो मुँह में लेने में क्यों झिझक रही हो?”

“भाभी एक नंदोई ने तो जो बुर में सफेद मक्खन डाला वो तो आपने मजे ले के गटक लिया तो इस मक्खन में क्या खराबी है? अरे एक बार स्वाद लग गया न तो फिर ढूंढती फिरियेगा, फिर आपके हीं तो गांड़ का माल है| जरा चख के तो देखिए|”

ननद ने छेड़ा और फिर नंदोइयों को ललकारा,

“अरे आज होली के दिन सलहज को नया स्वाद लगा देना, छोड़ना मत चाहे जितना ये चूतड़ पटके...”

मैं आँख बंद कर के चाट चूट रही थी|


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कोई रास्ता भी नहीं था| लेकिन अब धीरे धीरे मेरे मुँह को भी और एक...| नए ढंग की वासना मेरे ऊपर सवार हो रही थी| लेकिन मेरी ननद को मेरी बंद आँख भी नहीं कबूल थी|

उसने कस के मेरे निप्पल पिंच किये और साथ में नंदोई ने बाल खींचे,

“अरे बोल रही थी ना कि मेरे लंड को लाल रंग का कर दिया कि मेरी बहनें चूसेंगी तब भी इसका रंग लाल हीं रहेगा ना, तो देख छिनाल, तेरी गांड़ से निकल के किस रंग का हो गया है?”

वास्तव में लाल रंग तो कहीं दिख हीं नहीं रहा था| वो पूरी तरह मेरी गांड़ के रस से लिपटा...

“चल जब तक चाट चूट के इसे साफ नहीं कर देती, फिर से लाल रंग का ये तेरे मुँह से नहीं निकलेगा| चल चाट चूस कस-कस के..ले ले गांड़ का मजा|”



वो कस के ठेलते बोले|
 

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नए मजे होली के



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“चल जब तक चाट चूट के इसे साफ नहीं कर देती, फिर से लाल रंग का ये तेरे मुँह से नहीं निकलेगा| चल चाट चूस कस-कस के..ले ले गांड़ का मजा|”

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वो कस के ठेलते बोले|

तब तक छोटे नंदोई का लंड भी फिर से खड़ा हो गया था| मेरी ननद ने कुछ बोलना चाहा तो उन्होंने उसे पकड़ के निहुरा दिया और बोले,

“चल अब तू भी गांड़ मरा, बहुत बोल रही है ना..” और मुझसे कहा कि मैं उसकी गांड़ फैलाने में मदद करूँ|



मुझे तो मौका मिल गया| पूरी ताकत से जो मैंने उसकी चियारी तो...क्या होल था? गांड़ का छेद पूरा खुला खुला| तब तक नंदोई ने मेरे मुँह से लंड निकाल लिया था|

उनका इशारा पाके मैंने मुँह में थूक का गोला बना के ननद की खुली गांड़ में कस के थूक के बोला,

“क्यों मुझे बहुत बोल रही थी ना छिनाल, ले अब अपनी गांड़ में लंड घोंट| नंदोई जी एक बार में हीं पूरा पेल देना इसकी गांड़ में|”

उन्होंने वही किया|

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हचाक हचाक...और थोड़ी देर में उसकी गांड़ से भी गांड़ का...




अब मुझे कोई...घिन नहीं लग रही थी| बल्कि मैं मजे से देख रही थी| लेकिन एक बात मुझे समझ में नहीं आ रही थी कि ननद बजाय चीखने के अभी भी क्यों मुस्कुरा रही थीं|

वो मुझे थोड़ी देर में हीं समझ में आ गया, जब उन्होंने उनकी गांड़ से अपना...लिथड़ा लंड निकाल के सीधे...जब तक मैं समझूं संभलूं मेरे मुँह में घुसेड़ दिया|

मैं मुँह भले बना रही थी...लेकिन अब थोड़ा बहुत मुझे भी...और मैं ये समझ भी गई थी कि बिना चाटे चूटे छुटकारा भी नहीं मिलने वाला| ओं ओं मैं करती रही लेकिन उन्होंने पूरे जड़ तक लंड पेल दिया|


“अरे भाभी अपनी गांड़ के मसाले का बहुत मजा ले लिया, अब जरा मेरी गांड़ के...का भी तो मजा चखो, बोलो कौन ज्यादा मसालेदार है? जरा प्यार से चख के बताना|”



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ननद ने छेड़ा|

तब तक नंदोई ने बोला, “अरे ज्यादा मत बोल, अभी तेरी गांड़ को मैं मजा चखाता हूँ| सलहज जी जरा फैलाना तो कस के अपनी ननद की गांड़|”

मैं ये मौका क्यों चूकती|


वैसे मेरी ननद के चूतड़ थे भी बड़े मस्त, गोल गोल गुदाज और बड़े बड़े|

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मैंने दोनों हाथों से पूरे ताकत से उसे फैलाया| पूरा छेद और उसके का माल...सब दिख रहा था|

नंदोई ने दो उंगली एक साथ घुसेड़ी कि ननद की चीख निकल गई| लेकिन वो इतनी आसानी से थोड़ी हीं रुकने वाले थे|

उसके बाद तीन उंगली, सिर्फ अंगूठा और छोटी उंगली बाहर थी और तीनों उंगली सटासट सटासट...

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अंदर बाहर,

मैंने चूत की फिस्टिंग की बात सुनी थी लेकिन इस तरह गांड़ में तीन उंगली एक साथ...

मैं सोच भी नहीं सकती थी| एक पल के लिए तो गांड़ से निकले मेरे मुँह में जड़ तक घुसे लंड को भी भूल कर मैं देखती रही| वो कराह रही थी, उनके आँखों से दर्द साफ साफ झलक रहा था|

पल भर के लिए जब मेरे मुँह से लंड बाहर निकला तो मुझसे रहा नहीं गया,


“अरे चूत मरानो, मेरे बहन चोद सैंया की रखैल, पंच भतारी, बहुत बोल रही थी ना मेरी गांड़ के बारे में...क्या हाल है तेरी गांड़ का? अगर अभी मजा ना आ रहा हो तो तेरे भैया को बुला लूं| जरा कुहनी तक हाथ डाल के इसकी गांड़ का मजा दो इसे| इस कुत्ता चोद को इससे कम में मजा हीं नहीं आता|”

मैं बोले जा रही थी और उंगलियाँ क्या लगभग पूरा हाथ उनकी गांड़ में...तब तक वो लसलसा हाथ गांड़ से निकाल के...उन्होंने एक झटके में पूरा मेरे मुँह में डाल दिया और बोले,

“अरे बहुत बोलती है, ले चूस गांड़ का रस...अरे कुहनी तक तो तुम दोनों की गांड़ और भोंसड़े में डालूँगा तब आयेगा ना होली का मजा| लेकिन इसके पहले मजा दूं जरा चूस चाट के मेरा हाथ साफ तो कर सटासट|”

मैं गों गों करती रही लेकिन पूरा हाथ अंदर डाल के उन्होंने चटवा के हीं दम लिया|

“अरे चटनी चटाने से मेरी प्यारी भाभी की भूख थोड़े हीं मिटेगी| ले भाभी सीधे गांड़ से हीं|”

वो मेरे ऊपर आ गयी और बड़ी अदा से मुझे अपनी गांड़ का छेद फैला के दिखाते हुए बोलीं|
“अरे तू क्या चटाएगी...? सुबह तेरी छोटी बहन को मैं सीधे अपनी बुर से होली का...गरमा गरम खारा शरबत पिला चुकी हूँ| सारी की सारी सुनहली धार एक एक बूंद घोंट गई तेरी बहना|”

खीज के मैंने भी सुना दिया|

“अरे तो जो भाभी रानी आपको सुबह से हमलोग शरबत पिला रहे थे उसमें आप क्या समझती हैं...क्या था? आपकी सास से लेके...ननद तक, लेकिन मैंने तय कर लिया था कि मैं तो अपनी प्यारी भाभी को होली के मौके पे, सीधे बुर और गांड़ से हीं...तो लीजिए ना|”


और वो मेरे मुँह के ठीक उपर अपनी गांड़ का छेद कर के बैठ गईं|

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लेकिन मैंने तय कर लिया था कि लाख कुछ हो जाय अबकी मैं मुँह नहीं खोलूंगी| पहले तो उसने मेरे होंठों पे अपनी गांड़ का छेद रगड़ा, फिर कहती रही कि सिर्फ जरा सा, बस होली के नाम के लिए, लेकिन मैं टस से मस ना हुई|

फिर तो उस छिनाल ने कस के मेरी नाक दबा दी| मेरे दोनों हाथ दोनों नंदोइयों के कब्जे में थे और मैं हिल डुल नहीं पा रही थी| यहाँ तक की मेरी नथ भी चुभने लगी|

थोड़ी देर में मेरी साँस फूलने लगी, चेहरा लाल होने लगा, आँखें बाहर की ओर|

“क्यों आ रहा है मजा, मत खोल मुँह...”

वो चिढ़ा के बोली और सच में इतना कस के उसने अपनी गांड़ से मेरे होंठों को दबा रखा था कि मैं चाह के भी मुँह नहीं खोल पा रही थी|

“ले भाभी देती हूँ तुझे एक मौका, तू भी क्या याद करेगी...किसी ननद से पाला पड़ा था|”

और उसने चूतड़ ऊपर उठा के अपनी गांड़ का छेद दोनों हाथों से पूरा फैला दिया|

“ऊईई उईईईई...|”

मैं कस के चीखी| नंदोई ने दोनों निप्पल्स को कस के पिंच करते हुए मोड़ दिया था| मेरे खुले होंठों पे अपनी फैली गांड़ का छेद रख के फिर वो कस के बैठ गई और एक बार फिर से मेरी नाक उसकी उँगलियों के बीच| अब गांड़ का छेद सीधे मेरे मुँह में| वो हँस के बोली,

“भाभी बस अब अगर तुम्हारी जीभ रुकी तो...अरे खुल के इस नए स्वाद का मजा लो| अरे पहले आपकी चूत को जब तक लंड का मजा नहीं मिला था, चुदाई के नाम से बिदकती थीं, लेकिन जब सुहागरात को मेरे भैया ने हचक हचक के चोद चोद के चूत फाड़ दी तो एक मिनट इस साली चूत को लंड के बिना नहीं रहा जाता|पहले गांड़ मरवाने के नाम से भाभी तेरी गांड़ फटती थी, अब तेरी गांड़ में हरदम चींटी काटती रहती है, अब गांड़ को ऐसा लंड का स्वाद लगा कि...तो जैसे वो स्वाद भैया ने लगाए तो ये स्वाद आज उनकी बहना लगा रही है| सच भाभी ससुराल की ये पहली होली और ये स्वाद आप कभी नहीं भूलेंगी|”







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तब तक मेरी दोनों चूचियाँ, मेरे नंदोइयों के कब्जे में थी|

वो रंग लगा रहे थे, चूचि की रगड़ाई मसलाई भी कर रहे थे| दोनों चूचियों के बाद दोनों छेद पे भी...नंदोई ने तो गांड़ का मजा पहले हीं ले लिया था तो वो अब बुर में और छोटे नंदोई गांड़ में...मैं फिर सैंडविच बन गई थी|

लेकिन सबसे ज्यादा तो मेरी ननद मेरे मुँह में...झड़ने के साथ दोनों ने फिर मेरा फेसियल किया मेरी चूचियों पे...


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और ननद ने पता नहीं क्या लगाया था कि अब 'जो भी' मेरी देह से लगता था...वो बस चिपक जाता था| घंटे भर मेरी दुरगत कर के हीं उन तीनों ने छोड़ा|

बाहर खूब होली की गालियाँ, जोगीड़ा, कबीर...| जमीन पे पड़ी साड़ी चोली किसी तरह मैंने लपेटी और अंदर गई कि जरा देखूं मेरा भाई कहाँ है|
 

komaalrani

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होली का मजा साली संग

( मजा पहली होली का ससुराल में का अंश )



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वो दोनों चाह रही थी की मैं भी होली के खेल में उनके साथ शामिल हो जाऊं। मैंने साफ बरज दिया। बोला।

" तुम दोनों , किस्मत वाली हो तेरे जीजा जी हैं , मेरे तो कोई जीजा थे नहीं। तो मैं क्यों खेलूं , हाँ चल अम्पायर का काम कर देती हूँ। "

और फिर उनको नियम बताये ,



" हे ये मेरी प्यारी बहने , तुमसे छोटी है , इसलिए पहले ये रंग डालेंगी और तुम चुपचाप बिना ना नुकुर किये डलवा लेना। "

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" और जब मैं डालूंगा , और इन दोनों ने न डलवाया तो , "

उन्होंने सवाल उठाया।

" वाह जीजू आप इत्ते भोले हैं ना , हमारे मना करना पे बिना डाले छोड़ देंगे "

आँख नचाकर , पूरी बाल्टी गाढ़ा लाल रंग उन पे डालते हुए मंझली बोली।


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छुटकी तो पहले ही अपनी छोटी सी हथेली पे पक्के लाल काही रंगो का कॉकटेल लगा के तैयार खड़ी थी।

उसके जीजू के गाल अगले पल उसके हाथों में थे।





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यही तो हर जीजा का सपना होता है , कुँवारी रस से पगी , सालियों की हथेलियां उसके गालों पे और उसके हाथ साली के शरमाते , कपोलों पे।

छुटकी अपने हाथों का इस्तेमाल कर रही थी तो मंझली , कभी रंग भरी पिचकारी का तो कभी सीधे बाल्टी का और साथ में उसके आँखों की , जोबन कि पिचकारियाँ जो चल रही थी सो अलग।


लेकिन कुछ ही देर में उनका नंबर आ गया , तो सबसे पहले पकड़ी गयी मंझली।

उन्होंने अपने हाथों में छुटकी गाढ़े रंग लगा लिए थे। शुरुआत साली के मालपुआ मीठे और नरम गालों से हुयी।

गलती गालों की थी , वो इतने चिाकने जो थे।


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हाथ सरक के टॉप पे , और टॉप का एक बटन पहले ही टूटा था , इसलिए आसानी से एक लाल रंगा लगा हाथ अंदर , जोबन मर्दन में।

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ऊईईईईईईइ जीजू , मंझली ने सिसकी भरी , जब जोबन रस लेने के साथ , उन्होंने उसके निपल पिंच कर लिए।

पहले उन्होंने हलके से सहलाया , दबाया , और फिर जब देखा साली , बहुत नहीं उचक रही है , तो जोर जोर से रगड़ने मसलने लगे। नतीजा ये हुआ की टॉप के दो और बटन टूट गए और दूसरा हाथ भी अंदर।


" नहीं , जीजू यहाँ नहीं , प्लीज हाथ बाहर निकालो न , " मंझली मजे से सिसकी लेते बोली।

साली , वो भी एक हाईस्कूल में पढ़ने वाली किशोरी के उठते उभारों से , होली में किसी जीजा ने हाथ हटाया है कि वही हटाते।
उन्होंने उसकी चूंची और जोर से दबाई और चिढ़ाया ,

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""अरे साल्ली जी , ई का मेरे साले के लिए बचा के रखी हो "\\

और अब दोनों हाथ चूंची मर्दन में लग गए और लगे हाथ बीच बीच में निपल भी पिंच कर रहे थे। "

मंझली जोर जोर से सिसकारी भर रही थी ,उचक रही थी।


और कुछ जीजू का हाथ स्कर्ट के अंदर , गोरी किशोर जांघो को रगड़ने मलने में लग गया।

और जब तक मंझली की चड्ढी के ऊपर से , उन्होंने उसकी चुन्मुनिया दबा दी और रस लेंने लगे।

मझली का तन और मन दोनों गिनगिना रहा था.

और उसके जीजू , उसको आज छोड़ने वाले भी नहीं थे।

उंगली तो सिर्फ ट्रेलर था। अभी तो प्यारी साली जी की कुँवारी , किशोर चुन्मुनिया में बहुत कुछ जाना था।

उनकी ऊँगली की टिप अब गुलाबी परी के अंदर घुस गयी थी और गोल गोल घूम रही थी


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और ऊपर दूसरा हाथ उभरते जोबन की घुंडियों को गोल गोल घुमा रहा था।


क्या मस्त चूंचिया हैं साली की , वो सोच रहे थे। साथ में अपना मोटा खड़ा खूंटा , उसके उठी स्कर्ट के अंदर , बार बार रगड़ रहे थे।

मंझली ने अब सारे रेस्जिस्टेन्स छोड़ दिए थे , बहाने के तौर पे भी। इतने दिनों से यही तो ये सोच रही थी , जब से उसने जीजू को देखा था , कोहबर में घुसते समय जब जीजू उसे रगड़ते हुए घुसे थे, और उस के कान में बोला था ,


होली में बचोगी नहीं और उस ने भी मुस्करा के जवाब दिया ,


"बचना कौन साल्ली चाहती है।"

जीजू बड़े रसीले थे , एकदम कलाकार। ऊँगली अंदर बाहर हो रही थी , साथ में उनकी हथेलियां भी उसकी रामपियारी को रगड़ रही थीं , मसल रही थीं।

छुटकी पीछे से जीजा की शर्ट उठा के उनके पीठ में रंग पोत रही थी , तो कभी बाल्टी से रंग उठा के सीधे उन्हें नहला देती।

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मंझली झड़ने के कगार पे थी , और बस एक मिनट का बहाना बना के , वो चंगुल से छूटी और सीधे स्टोर में , रंगो की सप्लाई लेने,

बस आँगन में छुटकी बची , और उसके जीजू।

छुटकी छोटी थी लेकिन अब बच्ची नहीं थी , और वो देख रही थी की जीजू के हाथ मझली के साथ कहाँ सैर सपाटा कर रहे थे।

और अगले ही पल उसके किशोर गाल जीजू के हाथ में थे।

छुटकी कुछ रंग से लाल हो रही थी , कुछ लाज से।

लेकिन लालची हाथ जो एक साली का जोबन रस ले चुके , दूसरी को क्यों छोड़ते।और उन्होंने छोड़ा भी नहीं।

लेकिन गलती छुटकी की थी , बल्कि उसकी पुरानी घिसी हुयी टाइट फ्राक की , जैसे उनका हाथ घुसा ,…


चररररर चरररररर,.... फ्राक का ऊपरी हिस्सा फट गया।


और छुटकी के टिकोरे , … एक टिकोरा आलमोस्ट बाहर ,



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छुटकी के टिकोरे



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,



इसी के लिए तो वो तड़प रहे थे ,और सिर्फ वही क्यों , मेरे नंदोई भी.

भोर की लालिमा की तरह , ललछौहाँ , बस एक गुलाबी सी आभा।
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लेकिन उभार आ चुके थे , अच्छे खासे , वही चूंचिया उठान के दिलकश उभार जिसके लिए लोग कुछ भी करने को तैयार रहते है।

और उठती चूंचियो की घुन्डियाँ भी,



एक पल तो उन्हें लगा की कही छुटकी नाराज न हो जाय , लेकिन फिर सामने एक किशोरी की जवानी के दस्तक दे रहे जोबन दिख जायं तो फिर तो सब डर निकल जाता है।

और वहीँ आंगन में , उन्होंने उन मस्त टिकोरों का रस लेना शुरु कर दिया।

पहले झिझक के हलके हलके सहलाया , दबाया फिर जोर जोर से मसलने रगड़ने लगे।


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छुटकी कुछ सिसकी , कुछ चीखी , कुछ हाथ पैर चलाये ,


लेकिन उनके पकड़ के आगे मैं नहीं बची , मेरा भाई नहीं बचा , मझली नहीं बची , तो उस कि क्या बिसात थी।

उनकी शैतान उँगलियों ने अब उसके छोटे छोटे निपल्स से खेलना शुरू कर दिया और दूसरा हाथ फ्राक उठा के सीधे , उस कच्ची कली के भरते हुए नितम्बो पे मसलने , मजे लेने लगा.

और आगे से जैसे ही हाथ दोनों जांघो के बीच में पहुंचा , छुटकी कि सिसकियाँ तेज हो गयीं।



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और मंझली भी दोनों हाथों में पेंट पोते, अपनी स्कर्ट में रंगो के पाउच लटकाये , फिर से रंग स्थल पे पहुँच गयी थी।

लेकिन जीजू तो छुटकी के साथ ,


उसने मुड़ के मेरी ओर देखा ,
मैं चौखट पे बैठ के अपने 'उन की ' सालियों के साथ होली का नजारा ले रही थी।

मैंने मंझली को उसके जीजू के कमर के नीचे की ओर इशारा किया , उसने हामी में सर हिलाया , मुस्करायी और चालु हो गयी।

" इनके 'दोनों हाथ तो फंसे थे ही , एक छुटकी के टिकोरों पे और दूसरा उसकी रेशमी जाँघों के बीच।


बस मंझली को मौका मिल गया। उसके दोनों हाथ जीजू के पिछवाड़े , पैंट में घुस गए। आखिर थी तो मेरी ही बहन।


उसे कौन सिखाने की जरूरत थी।

थोड़ी देर तक तो उसने नितम्बो पे हाथ रगड़ा ,लगाया और फिर एक ऊँगली , पिछवाड़े के सेंटर में।

अब दोनों सालियाँ आगे पीछे और वो सैंडविच बने , छुटकी को भी मौका मिला गया और उसने अपने छोटे छोटे हाथो से उनके हाथों को अपने उरोजों और जांघो के बीच दबोच लिया। बस। अब वो मंझली के हाथ हटा भी नहीं सकते थे।
मंझली के दोनों हाथ उनके पैंट के अंदर थे। आ

थोड़ी ही देर पहले तो उसकी जीजू पैंटी के अंदर हाथ डाल के उसकी चुनमुनिया रगड़ रहे थे , कच्ची चूत में ऊँगली कर रहे थे , वो भला क्यों मौका छोड़ देती।
बस उसका एक हाथ जीजा के गोल मटोल नितम्बो की हाल ले रहा था तो दूसरे ने आगे खूंटे को रंगना रगड़ना शुरू किया।

खूंटा तो पहले ही तना था , छुटकी के छोटे छोटे चूतड़ो पे रगड़ते हुए ,और अब जब साली का हाथ पड़ा तो एकदम फुंफकारने लगा।

पूरे बित्ते भर का हो गया। मंझली ने एक और शरारत की , आखिर शरारत पे सिर्फ उसके जीजू कि ही मोनोपोली तो थी नही।

उसने एक झटके से चमड़ा पकड़ के खीच दिया और , सुपाड़ा बाहर।

पता नहीं जिपर उन्होंने खोला , छुटकी से खुलवाया या मंझली ने मस्ती की।

रंग पेंट में लीपा पुता चरम दंड बाहर था और मंझली अब खुल के उसके बेस पे पकड़ के रंग लगा रही थी , कभी मुठिया रही थी।

उन्होंने छुटकी का हाथ पकड़ के उसपे लगाया , थोड़ी देर तक वो झिझकती रही , न न करती रही , फिर उसने भी अपने जीजू के लंड को ,
आब आगे से छुटकी हलके सुपाड़े को दबा रही थी अपनी नाजुक उँगलियों से और पीछे से मंझली।

किसी भी जीजा के औजार को होली के दिन उसकी दो किशोर सालियाँ मिल के एक साथ रंग लगाएं तो कैसा लगेगा ?

उनकी तो होली हो गयी , लेकिन टिकोरे का मजा लेना उन्होंने अभी भी नहीं छोड़ा।

पर रंग में भंग पड़ा ,



या कहूं मंझली ने नाटक का दूसरा अंक शुरू कर दिया देह की होली का।
 
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देह की होली


जीजा साली की होली


तन रंग लो जी आज मन रँग लो


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मंझली ने नाटक का दूसरा अंक शुरू कर दिया देह की होली का।



बाहर से भाभियों के गाने की होली के हुड़दंग की जोर जोर से आवाज आ रही थी।


बस लग रहा था वो हम लोगो के घर की और आ रही हैं।

उसने जल्दी से जीजू के पैंट से हाथ निकाला , और बोला ,


"अरे जीजू भाभियाँ कालोनी वाली "

और , दुछत्ती की ओर भागी।

उसके जीजू उसके पीछे पीछे , लेकिन वो उनके पहले छत पे पहुँच गयी।

इस बीच अब ये लग रहा था , वो बजाय हमारे यहाँ आने के सामने वाले घर में पहुंचगयी है और अब १०-१५ मिनट में हम लोगों के यहाँ आ धमकेगी।

और वो भाभियाँ थी तो पहला हमला उनके नए नंदोई होते , लेकिन हम ननदे भी कहाँ बचती।


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और मैं तो ससुराल से आयी ही इसलिए थी वहाँ ननदो को रगड़ा यहाँ भाभियों को।



मैंने और छुटकी ने जल्दी जल्दी बाल्टियों में रंग भरा , अबीर गुलाल , रंग पेंट रखा


और भांग वाली गुझिया और दहीबड़े निकाले।

छुटकी ने अपनी फटी फ्राक की ओर इशारा किया।

मैंने पहली बार इतनी नजदीक से देखा , वास्तव में एकदम चुन्चिया उठान। इनकी निगाह एकदम सही थी।

" दीदी , क्या करूँ। "


वो निगाह उठा के बोली।

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" अरे यार जीजा साली की होली में होता है , रुक "


और मैंने एक सेफ्टी पिन लगा दी।

मैं मन ही मन सोच रही थी , मेरी बहन अभी तो तेरी बहुत कुछ फटनी बाकी है।


ऊपर जीजा साली की होली चालु हो गयी थी।

देह की होली।


दुछत्ती ऐसी जगह पे थी , जहाँ से आंगन दिखता था , लेकिन वो आँगन क्या कही से भी नहीं दिखता था।

मंझली के पीछे पीछे जो वो पहुंचे तो पहला काम उन्होंने ये किया कि सीढ़ी का दरवाजा बंद कर दिया।

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सट गया , फंस गया , धंस गया ,.... होली में


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ऊपर जीजा साली की होली चालु हो गयी थी।

देह की होली।


दुछत्ती ऐसी जगह पे थी , जहाँ से आंगन दिखता था , लेकिन वो आँगन क्या कही से भी नहीं दिखता था।

मंझली के पीछे पीछे जो वो पहुंचे तो पहला काम उन्होंने ये किया कि सीढ़ी का दरवाजा बंद कर दिया।


रंगो में डूबी , भीगी , गीली मंझली छत पे दुबक के बैठी थी , लेकिन साली होली के दिन जीजू से बच जाए ,

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वो अगले ही पल उनकी बांहो में थी , उनके नीचे दबी और उसका टॉप कंधे तक उठा ,


ब्रा के हुक तो उन्होंने नीचे ही खोल दिए थे।

हाँ साली की ये जिद उन्होंने मान ली थी की टॉप और स्कर्ट न उतारे , उन्होंने नहीं उतारा , लेकिन टॉप कंधे तक और स्कर्ट कमर पे चिपकी मुड़ी।

थोडा मान , नखड़ा तो करना ही था तो वो कर रही थी ,


" जीजू छोड़ो न , प्लीज "

" अरे साली , छोड़ तो रहा ही हूँ , तेरे ये साले हाईस्कूल के इम्तहान न होते न तो तुझे अपने साथ ले जाता "


वो बोले और कस कस के उसकी खुली छोटी छोटी चूंचिया दबाने लगे।


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उसने भी जीजू को बांहो में भर लिया और हामी भरी


" सच में जीजू ये इम्तहान भी न , ये इम्तहान न होते तो मैं आपको एक दिन में जाने न देती "

वो बोली।

' चल लेकिन ये प्रामिस कर अपनी गर्मी की पूरी छूट्टी तू मेरे साथ बिताना , गाँव में असली मजा आता है , हमारी खूब बड़ी आम कि बाग़ है "
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वो बोले।


" एकदम जीजू , जिस दिन इक्जाम ख़तम होंगे न बस उस के दिन दीदी के गाँव , आप के पास , लेकिन आप वहाँ भी इसी तरह तंग तो नहीं करेंगे "

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खिलखिलाते हुए मंझली बोली।

" नहीं ,एकदम नहीं , इतना तंग नहीं करेंगे , इससे बहुत ज्यादा तंग करेंगे '
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उसकी परी में एक साथ ऊँगली ठूंसते वो बोले।

मंझली उन्हें नखड़े में छाती पे मुक्के मार रही थी ,


लेकिन उसका दूसरा हाथ अपने जीजू के चर्मदण्ड को आगे पीछे कर रहा था।

भले ही वो पहली बार पकड़ रही थी लेकिन सहेलियों और उससे बढ़कर भाभियों ने तो उसे सब बता ही रखा था।

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उनसे भी नहीं रहा जा रहा था ,


उन्होंने साली की लम्बी गोरी टाँगे , अपने कंधे पे रखीं लंड को चूत पे सेट किया और दोनों निचले होंठो को फैलाया।


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" जीजू , दर्द ,.... "


उससे आगे वो बोल नहीं पायी।

उन्होंने अपने होंठो के बीच ,मंझली के कुंवारे होंठो को जोर से दबा दिया और साली के खुले मुंह में अपनी जुबान डाल के सील कर दी।

और फिर जोर से करारा धक्का मारा।


बिचारी मंझली दर्द से सिहर रही थी ,

लेकिन बिना रुके उन्होंने एक हाथ चुन्ची और दूसरा चूतड़ पे , पकड़ के और जोर से धक्का मारा।

अब सुपाड़ा घुस गया था।


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वो लाख चूतड़ पटके अब बिना चुदे नहीं बच सकती थी।
 
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komaalrani

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टूट गयी साल्ली की ,सील


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अब सुपाड़ा घुस गया था। वो लाख चूतड़ पटके अब बिना चुदे नहीं बच सकती थी।

अंगूठे से थोड़ी देर तक उन्होंने चूत के दाने को सहलाया , थोडा दम लिया , टांग फिर सेट की


और और अबतक का सबसे जोर दार धक्का ,
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मंझली , पानी के बाहर मछली की तरह तड़प रही थी , दर्द से मचल रही थी। उसकी आँखों में दर्द से आंसू भर आये थे।

चूत फट गयी थी।

खून की कुछ बूंदे बाहर भी निकल आयी थी।





उन्होंने अभी भी उसके होंठो को आजाद नहीं किया

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और चुदाई की रफ्तार बढ़ा दी।

थोड़ी देर में लंड दरेरता , घिसटता साली की चूत में जा रहा था , और कुछ देर में उसे भी लंड की आदत पड़ गयी।

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दर्द ख़तम तो नहीं हुआ लेकिन कम हो गया।


और उन्होंने उसके होंठो को आजाद कर दिया ,

उसी समय नीचे कालोनी की भाभियाँ घुसीं


और उन के हंगामें में तो मंझली जोर जोर से भी चिल्लाती तो सुनायी नहीं देता।

उन्होंने उसे होंठ पे ऊँगली रख के चुप रहने का इशारा किया


और अब उनके होंठ , साली की रसीली चूचियों का मजा लेने लगे , निपल चूसने लगे।

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लंड आधे से ज्यादा घुसा हुआ था।

थोड़ी देर में मस्ती से चूर मंझली भी नीचे से अपने चूतड़ हिलाने लगी ,

फिरक्या था उन्होंने धका पेल चुदाई शूरु कर दी।


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दो बार वो झड़ने के कगार पे पहुंची तो वो रुक गए।

अब लंड वो एकदम सुपाड़े तक बाहर निकाल कर ,
एक झटके में पूरा पेल देते।

चूंची और क्लिट दोनोकी रगड़ाई साथ साथ करते।

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मंझली ने जब झड़ना शुरू किया तो उसके साथ ही वो भी ,…


उन्होंने उसको दुहरा कर रखा था और सारी मलायी अंदर।

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कुछ देर तक वो दोनों ऐसे ही पड़े रहे ,

और ऊपर से आंगन में चल रही होली का नजारा देखते रहे।




उन्हें नहीं पता चला , लेकिन मंझली ने सुन लिया ,

" जीजू उन्हें शायद शक हो गया है , आप यहाँ है , हम दोनों ,...."


जल्दी से दोनों ने कपडे पहने और पहले वो नीचे आये

और जब तक भाभियों का झुण्ड उन्हें घेरे था , चुपके से मंझली भी छत से उतर आयी।


बिना किसी के देखे.

….
और दरवाजा खुलते ही भाभियों का हुजूम अंदर ,



कम से कम दर्जन भर , और सबसे आगे रीतू भाभी , उम्र में सबसे कम लेकिन बदमाशी में अव्वल। मुझसे सिर्फ दो साल बड़ी , अभी २१ वां लगा ह



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komaalrani

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देवर भाभी की होली ( पेज १० )

ननद भाभी की होली ( पेज १० )

गाँव की होली ( पेज १२ )

सलहज नन्दोई की होली ( पेज १३ )

जीजा साली की होली ( पेज १३ )

रंग प्रसंग -कोमल के संग

प्लीज रिश्तों का आनंद इन रंग प्रसंगों से होली का लें और
अपनी लाइक जरूर दर्ज कराएं और प्रतिक्रिया भी
 

komaalrani

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कौन रंग फागुन रंगे, रंगता कौन वसंत?
प्रेम रंग फागुन रंगे, प्रीत कुसुंभ वसंत।

चूड़ी भरी कलाइयाँ, खनके बाजू-बंद,
फागुन लिखे कपोल पर, रस से भीगे छंद।

फीके सारे पड़ गए, पिचकारी के रंग,
अंग-अंग फागुन रचा, साँसें हुई मृदंग।

धूप हँसी बदली हँसी, हँसी पलाशी शाम,
पहन मूँगिया कंठियाँ, टेसू हँसा ललाम।

कभी इत्र रूमाल दे, कभी फूल दे हाथ,
फागुन बरज़ोरी करे, करे चिरौरी साथ।

नखरीली सरसों हँसी, सुन अलसी की बात,
बूढ़ा पीपल खाँसता, आधी-आधी रात।





बरसाने की गूज़री, नंद-गाँव के ग्वाल,
दोनों के मन बो गया, फागुन कई सवाल।

इधर कशमकश प्रेम की, उधर प्रीत मगरूर,
जो भीगे वह जानता, फागुन के दस्तूर।

पृथ्वी, मौसम, वनस्पति, भौरे, तितली, धूप,
सब पर जादू कर गई, ये फागुन की धूल।

 

komaalrani

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होली -घर आंगन की

( फागुन के दिन चार से )



मेरे गालों पर खूब मसल रगड़ कर रंग लगाया उसने। लता की तरह मुझसे चिपटी, लिपटी गुड्डी। और फिर मेरी बारी। मैंने अपने गालों से ही उसके गोरे गुलाबी कपोलों पे रगड़-रगड़कर रंग लगाया।
गुड्डी मुश्कुराकर बोली- “अब शुरू हो गई अपनी होली…”

और मैं बोला- “सात जन्मों वाली होली है…”
बाहर हुरियारों का झुण्ड गा रहा था-



आज अवध में होरी रे रसिया। होरी रे रसिया बरजोरी रे रसिया।

अपने अपने घर से निकरी कोई साँवर कोई गोरी रे रसिया।

कोई युवती कोई जोबन की थोरी रे रसिया।



होरी के हुरियारे गा रहे थे। और मैं और गुड्डी छज्जे के किनारे आ गए। हम लोगों का घर एकदम सड़क से सटा हुआ था। और जो भी होली के हुड़दंग वाले निकलते, लड़के लड़की बनकर जोगीरा में निकलते। छत से सब दिखता था और सड़क से छत पर जो खड़ा हो वो भी।

गुड्डी छज्जे से सटकर खड़ी थी, और मैं गुड्डी के ठीक पीछे। गुड्डी से सटकर बल्की चिपक के और हम दोनों की होली जारी थी। पहली बाजी गुड्डी के हाथ जरूर थी लेकिन अब मेरे दोनों हाथों में लड्डू थे। हाँ गुड्डी के टाप में घुसकर मेरे दोनों हाथों में अब तक लाल पैंट भी लग चुका था और मैं जमकर उसके गदराये जोबन रगड़ मसल रहा था। यही नहीं मैं उसकी छोटी सी स्कर्ट उठाकर उसके कमर पे खोंस चुका था। और अब मेरा पैंट फाड़ता लिंग। थोड़ी देर की ड्राई हम्पिंग के बाद मुझसे नहीं रहा गया और गुड्डी तो मुझसे भी मेरी मन की बात जानती है तो उसी ने हाथ पीछे कर के मेरा जिपर खोल दिया और अब लण्ड सीधे गुड्डी के मस्त भरे-भरे चूतड़ की दरार के बीच, रगड़ता, दरेरता।

बजाय नार्मल चड्ढी पहनने के गुड्डी ने एक बहुत छोटी सी थांग पहन रखी थी वो भी लेसी। गुड्डी बाहर सड़क पर गुजर रहे होली वालों को देख रही थी। तब तक होली के इक बज्जर हुड़दंगियों का दल आता दिखाई दिया। बीस तीस लड़के रहे होंगे कम से कम। साथ में एक ठेला जिस पे रंग का ड्रम, साथ में एक लड़का लड़की बना हुआ नाचता और उसी ठेले पे एक लाउडस्पीकर जिसपर कभी तो भोजपुरी के होली के एकदम खुल्लम खुल्ल़ा छाप गाने बजाते तो कभी जोर सा शुद्ध गाली वाला नारा गूंजता या कोई कबीर सुना देता। अगल-बगल के घरों की छतों पे जो थोड़ी बहुत लड़कियां औरतें थी वो सब हट गईं।

“हे हट जायं क्या?” गुड्डी ने सिर मेरी ओर मोड़कर पूछा।

“अरे मजा लेते हैं ना…” मैंने उसके रंग लगे गाल चूम के बोला, और एक हाथ से उसकी थांग थोड़ी सी सरका दी। बस मेरे लण्ड राज अब सीधे कभी गाण्ड के मुहाने पे कभी ठोकर मारते तो कभी अपने सहेली चूत रानी से गले मिलते।

तब तक नीचे से जोर से हंगामा हुआ।

और उन सबसे ऊपर मिश्रायिन भौजी की हुंकार गूंजी। कालोनी की कई लड़किया, औरतें अब आ चुकी थी और नीचे होली का घमासान शुरू ही होने वाला था। लगता है नीचे किसी लड़की ने ठंडाई पीने में नखड़ा किया तो मिश्रायिन भौजी की आवाज गूंजी-

“अरे साल्ली की शलवार खोलकर, पिछवाड़े से पिला दो ना…”

और मेरी भाभी की आवाज- “और क्या जाएगा तो दोनों और से पेट में ही…”

उस लड़की की आवाज भाभियों की खिलखिलाहट में गूंज गई। वो बिचारी बोली- “नहीं नहीं मैं कोल्ड-ड्रिंक। ये लिम्का या स्प्राईट ले लेती हूँ…”

मैं और गुड्डी दोनों साथ-साथ मुश्कुराए। उसमें इतनी वोदका और जिन मिली थी की एक ग्लास में ही ठंडाई का दूना नशा हो जाना था। प्लान ये था की होली की जो पार्टी आती। पहले वो खा पी लेती। उसके बाद होली शुरू होती क्योंकि होली में एक बार हाथ में इतना रंग लग जाता की खाना पीना मुश्किल हो जाता।

और दूसरा ज्यादा इम्पोर्टेंट रीजन ये था की भाभियां ननदों को खास तौर से कुँवारी और कच्ची कलियों को टुन्न कर देना चाहती थी जिनसे उनके साथ वो खुल कर और 'खोल कर’ होली की मस्ती कर सकें और उसी खाने 'पीने' के साथ छेड़ खानी मस्ती शुरू हो जाती।

मिश्रायिन भाभी ने शादी के बाद लौटकर आई अपनी किसी ननद को छेड़ते हुए बोला- “क्यों नंदोई जी तो अभी नहीं है। काम कैसे चलता है?”

वो जवाब देती उसके पहले मेरी भाभी बोल पड़ी- “अरे इन्हें क्या दिक्कत? इनका मायका है सब बचपन के यार हैं। एक बुलाएं चार आते हैं, चार लाइन लगाकर इन्तजार करते हैं…”

तब तक कोई और मोहल्ले की भाभी बोल पड़ी- “बिन्नो। कोई बात नहीं तब तक हमारे वाले से चाहो तो काम चला लो। ननदोई से कम नहीं होंगे गारंटी…”

तब तक मेरी भाभी ने फिर चिढ़ाया- “अरे लल्ली। चलो अच्छा अदला-बदली कर लेते हैं। रंग पंचमी में तो नंदोई जी आयेंगे ना। मेरे सैयां तेरे साथ और तेरे सैयां मेरे साथ। नीचे वाले मुँह का भी तो स्वाद बदलना चाहिए…”

वो विवाहित ननद बोली हँसकर बोली- (आवाज मेरी पहचानी लग रही थी लेकिन मैं प्लेस नहीं कर पा रहा था) “अच्छा भाभी मेरे भैया का मेरे साथ, ये आपके यहाँ होता होगा। चलिए मेरे भैया भी आपको मुबारक और सैयां भी। एक आगे से एक पीछे से…”

तब तक मिश्रायिन भाभी की आवाज आई- “अरे तू बता अभी पिछवाड़े का नम्बर लगा की नहीं। वरना आज होली का मौका भी है। होली में तुझे नंगा तो नचाएंगे ही यहीं आँगन में पटक के गाण्ड भी मारेंगे और मक्खन मलाई भी चटाएंगे…”

मुझे कल शाम की बात याद आ गई जब मंजू और शीला भाभी ने रंजी को नंगा तो किया ही था मेरे खड़े लण्ड पे भी बैठाया था। और आज तो होली का दिन है और ऊपर से मिश्रायिन भौजी तो मशहूर हैं इन चीजों के लिए। लेकिन तब तक नीचे से आ रही आवाजें दब गई। पास आ गये होली के हुड़दंगियों के शोर में। लाउडस्पीकर पे होली के 'टिपिकल’ गाने बज रहे थे।

अरे होली में। होली में। महंगा अब सरसों का तेल होई।

महंगा अब सरसों का तेल होई,

अरे जबरन जो डरीबा तो।

गुड्डी मेरी और देखकर मुश्कुरायी और मैं समझ गया (रात में मेरे पिछवाड़े छेड़ते वो बोली थी, तेरी कोरी है तो चलो कोई बात नहीं बनारस में, बल्की कोहबर में नथ उतार ली जायेगी तेरी भी। हाँ जरा मेरी मम्मी की चमचा गिरी करना मक्खन लगाना तो। तेरी कुप्पी में दो-चार बूंद सरसों का तेल डाल, देंगी नथ उतारने के पहले)

जवाब में मैंने जोर का धक्का मारा, गुड्डी की लेसी थांग तो सरकी ही थी, सुपाड़ा गाण्ड को दरेरता, रगड़ता सीधे चूत के मुहाने पे जा लगा और चूत की पुत्तियां अपने आप थोड़ी खुल गईं और उन होली के हुरियारों में किसी ने गुड्डी को देख लिया।



फिर तो वो हंगामा हुआ। आकाश से पाताल तक। मैं गुड्डी से इस तरह पीछे चिपक के खड़ा हुआ था की मुझे देखना मुश्किल था। और अब मैंने दोनों हाथ भी गुड्डी की पतली कमर से बाँध लिए थे। गुड्डी एक पल के लिए तो कुनमुनाई, सकपकाई, लेकिन मैं पीछे से उसे इस तरह दबोचे था की उसका छज्जा छोड़कर जाना क्या? हिलना भी मुश्किल था। और अपनी दोनों टांगें उसकी टांगों में डालकर मैंने उसकी टांगें भी फैला रखी थी। साथ में लण्ड तो उसकी गाण्ड और बुर को दरेर रहा ही था।



किसी ने लाउडस्पीकर पे गुड्डी को देखकर सुना के कबीर गाना शुरू कर दिया-



हो कबीरा सारा रा रा।

किस यार ने चूची पकड़ी और किस यार ने चोदा। हो कबीरा सारा रा रा।

अरे इस छैला ने चूची पकड़ी और उस छैल ने चोदा। कबीरा सारा रा रा।

अरे होली की आई बहार चुदवाई लो।

अरे चोदिहैं, छैला तोहार। चोदिहें गुन्डा हजार चुदवाई लो।



जोगीडे का लौड़ा (लड़की बना लड़का) उस गाने की ताल पे नाच रहा था। बाकी लड़के गुड्डी को दिखा दिखाकर, अंगूठे और तरजनी का छेद बनाकर चुदाई का इंटरनेशनल सिगनल दिखा रहे थे। तभी उन्हीं में से किसी ने एक रंग भरा गुब्बारा गुड्डी के ऊपर मारा। लेकिन गुड्डी भी बनारसी चतुर सुजान थी, ऐन मौके पे सरक के बच गई। लेकिन होली में तो डलवाने की होती है बचने की थोड़ी और मेरी भावनाएं भी उन हुरियारों के साथ थी। इसलिए जब अगला गुब्बारा आया तो मैंने पीछे से कसकर गुड्डी को दबोच लिया और वो सीधे उसके मस्त उरोज पे। और फिर तो चार-पांच एक साथ।

गुड्डी की टाप की बटन टूट गईं और अब उसकी रसीली चूची खुलकर दिख रही थी। उन गोरे कबूतरों के पंख लाल हो गए थे, लेकिन गुड्डी तो गुड्डी थी, पूरी बनारसी। और उसने भी जबर्दस्त जवाब दिया, पहले मुझे फिर नीचे हुरियारों को।



अगला गुब्बारा उसने कैच करके सीधे मेरे कमर के नीचे। और जंगबहादुर लाल गुलाल हो गए। यही नहीं जो रंग गिरा उसके कोमल कोमल हाथों ने जमकर सिर्फ मेरे चर्म दंड पर ही नहीं बल्की, नीचे बाल्स पर और पिछवाड़े भी मसला रगड़ा। और नीचे से गुब्बारे, फेंक रहे रंग और गालियों की बौछार कर रहे हुरियारों को भी उसने नहीं बख्शा। कुछ तो उन्हीं के गुब्बारे उनको लौटाए और कुछ, उसने एक बाल्टी में रखे रंग भरे गुब्बारे उठा उठाकर। गालियों के नारों का एक नया जोश नीचे से शुरू हुआ और अब वो एकदम हम लोगों के छत के नीचे थे तो लाउडस्पीकर की भी जरूरत नहीं थी।



ये भी बुर में जाएंगे, लौंडे का धक्का खायेंगे।



सब लौंडे नीचे से बोल रहे थे। लेकिन गुड्डी बिना हिले उसी तरह से जवाब दे रही थी। और मैं भी उनकी बातें सुनकर अब पूरी ताकत और जोश से। उसके गुब्बारे का निशाना सीधे जोगीड़ा वाले लौंड़े पे पड़ा और अगला जो उनका लीडर था।



गुड्डी की थांग तो पहले ही सरक गई थी। और गुड्डी छज्जे पे निहुरी भी थी। तो बस कमर पकड़कर मैं हचक-हचक के। उसकी गाण्ड और चूत की दरार में लण्ड का धक्का जोर-जोर से मार रहा था। साथ ही उनपर जो रंग गुड्डी ने लगाया था वो सीधे अब सूद ब्याज सहित उसके चूतड़ और चूत पे।



कुछ देर में हुरियारे चले गए, पर अपना असर छोड़ गए।



 
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