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Erotica रंग -प्रसंग,कोमल के संग

komaalrani

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भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी

Phagun ke din chaar update posted

please read, like, enjoy and comment






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तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी
 

Black horse

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Rango ki duniya ki alag hi kahani he. Rang rasiya sabad hamare lie bahot uchit sabad he. Vese rang rasiya geet konse rag me gaya. Ye to muje pata nahi par shashtriya sangit ka gajab sangit he. Har rang ki apni alag pahechan alag hi kahani he. Har rang jyotish shashtro me alag hi mukam rakhta he.
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Lal (red) ; ye rang zunun se bhara he. Kahete he. Naksho par or patro me ye jung ko darsata he. Ye graho me surya ko jatata he. Behat garam or joshila. Ye kundli me gussa or josh ko darsata he. Ye rango ka raja he
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Keshariya (orange); koi ise bhagva bhi kaheta he. Pavitra rang ye graho me mangal ko darsata he. Graho or rango dono me ye shenapati ki bumika adah karra he. Ye pavitrata or nabhi pe cantrol ko darsata he. Behat adbhut or imandar.
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Pila (yellow) ; ye rang graho me guru ka he. Vidhya gyan kudli me bhi iska karya yahi he.

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Safed (White) ; shanti. Yudh samapti. Is ka karya yahi he. Hathiyar dalse se jyada safed zanda laherana jyada uchit he. Ye ek ahinsha vadi vichar he. Moti dahi jese tatva. Ye graho me chandrama ko arpit he. Isi lie kundli se sache prem ko darsata he.
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Hara (green) ; vese to ye rang budh ka he. Budh matlab vanijya vyopar. Is ka karya yahi he. Budhi ka sahi prayog. Rajniti or chanakya niti bhi iske hi adhin he.
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Kala (black) ; ye rang graho me shani ka he. Kuchh log ise nakar atmak mante he. Par ye ek saja dene vala bhi rang he. Ye darsata he ki apne farz se muh mod lene valo ke lie chunoti. Tantva loha. Desh sar jamin se gardari karne vale or mata pita ko dukh dene valo ke lie kal. Par ye rang he bahot khubshurat. Sabse alag hi.
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Nila (blue) ; ye rang graho me shukra ka he. Ye inshan ki vasna ko darsata he. Sath nan ke andar ki nakar atmak bhavna bhi. Sayad name se purling he. Par darsal ye striling he. Iska tantva virya he. Ankho me iska sthan no 6 he. Behat mahatvapurn
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In sath rango se hi samast bhramhand ki rachna he.
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Har rang har graho se or anko se juda huaa he. Agar koi ankh se rango ko khoje ya rango se ankho ko khoje to bhi safalta mil jaegi.
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Bina rango ke jvan ek bimari he. Jese color blaind. Rango ke bina ye duniya adhuri he.
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Socho jivan me rang na ho to ye duniya kesi lagegi. Ek viran. Mahesus to yahi hoga.
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Duniya ka har rang ki alag kahani. Rango se hi bhavnao ka pata chalta he. Gussa khushi dunkh sukh.
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Kisi ko kisi rang se bahot lagav hota he to kisi ko bahot jyada nafarat. Meri najar me to rango ki yahi kahani he.


Bura na mano holi he.
रंगो की सारी दुनिया काग़ज़ पर उतार दी, होली के दिन

इस ज्ञान के लिए धन्यवाद
 

Black horse

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होली देवर भाभी की


कम्मो

( मोहे रंग दे -होली प्रसंग )


"कम्मो बहुत नाराज थी आप से , आप उसे भौजी नहीं मानते वो कह रही थी। उसे भी पता चल गया की आपका मन तो बहुत करता है उसकी चोली में हाथ डालने का , जोबन जबरदंग हैं ही उसके , लेकिन होली में भी ,... वो कह रही थी , की उसकी बेइज्जती तो वो बर्दास्त कर लेती जबरदंग जोबन की बेइज्जती आज तक किसी ने नहीं की , ... कहीं वो काम वाली है इसलिए तो नहीं , ... ये बात उसने नहीं कही थी मैं कह रही हूँ ,

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भूल गए ससुराल में नाउन क बहू कैसी रगड़ाई की थी और नाउन के बेटी भी , ... उन दोनों का तो छोडो सलहज , साली का रिश्ता लगता है , नाउन खुदे बोल रही थी , अपनी सलहज से पूछ लेना , आने दो पाहुन को सास का रिश्ता लगने से क्या होता है , होली ने नई उम्र की बहुओं का कान काटूंगी ,...

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और चमरौटी , भरौटी वाली , पानी भरने वाली कहाईन , गुलबिया ,...सब ,... और ये सब ,...



" नहीं ये नहीं है , ऐसा कुछ नहीं हमने तो उनको हरदम भौजी माना है , माना का है , हैं ही लेकिन ,... "

जवाब उन्होंने दे दिया लेकिन ऐन मौके पर रुक गए।



" लेकिन क्या बताओ न साफ़ साफ़ , ... " मैंने पूछ लिया।



" मन तो मेरा बहुत कर रहा था उसकी चोली में हाथ डालने को , लेकिन मन कर रहा था की कहीं भौजी गुस्सा न हो जाये , फिर ,... फिर तुम भी बैठी थी सामने , ... "



ये भी न एक तो बहुत सीधे है , फिर लजाते भी कितना है , पता नहीं ये लड़का कैसे सुधरेगा , ... मैंने उनके कान का पान बनाया और प्यार से समझाया ,



" यार तेरी गलती नहीं है , जो बुद्धू होते हैं न बुद्धू ही रहते हैं ,... अरे बुद्धूराम , ... वो तो इन्तजार कर रही थीं , खुद मुझसे बोलीं , होली में देवर भाभी की चोली न खोले तो ये भाभी की बेइज्जती है , ... और मैं क्यों बुरा मानती। मैं तो इस बात का बुरा मान रही थी की चोली फटी नहीं , अरे ऊपर झाँपर से तो होली में हर कोई चोली दबा लेता है

देवर का हक तो सीधे चोली के अंदर का है , ... ससुराल जा के साली सलहज के सामने नाक कटाओगे , ... खैर चलो , अगर कल चोली नहीं फटी और तेरी कम्मो भाभी का पेटीकोट नहीं खुला तो मैं भी उनके साथ मिल के तेरा ,... "

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देवर भौजी की असली होली अगले दिन हुयी सुबह सुबह ,


कम्मो भी तैयार थी और अब इनकी हिचक झिझक भी ,...

और मेरी जेठानी सास थे भी नहीं ,... इनकी और इनके कम्मो भौजी की होली अगले दिन कैसे शुरू हुयी , ये बताने का कोई मतलब नहीं , ...

देवर भाभी की होली तो कभी भी शुरू हो जाती है , कहाँ भी कैसे भी , और फागुन हो ,


कम्मो ऐसी रसीली जबरदंग जोबन वाली भौजी हो , जो अपने हर देवर को साजन बना के , ...


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फिर तो , बस परेशानी इनकी झिझक की थी तो कल रात में मैंने इन्हे खूब हड़काया था , ...

और कम्मो को भी समझाया था , देवर तोहरे थोड़े ज्यादा सीधे हैं , तो तोहिंके ,...


फिर सुबह सुबह मैंने दोनों को , देवर को भी भौजाई को भी , डबल भांग वाली एक नहीं दो दो गुझिया भी , ...


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मैं बरामदे में बैठी देख रही थी , मजे ले रही थी और आज मेरी सास जेठानी कोई थी भी नहीं ,
और तभी चरर की आवाज से मेरा ध्यान एक बार फिर से इनकी और इनकी कम्मो भौजी की ओर लौट गया। उनका ब्लाउज ,.... मैं मुस्कराने लगी , यही तो मैं चाहती थी।

कम्मो के मम्मे जबरदस्त थे ,

खूब बड़े , कड़े और एकदम खड़े , ... 38 डी डी ,

मम्मे देखकर तो ये वैसे ही ललचाते थे , और इनकी कम्मो भौजी के मम्मे तो और एकदम जबरदंग , और ऊपर से वो कभी भी ब्रा नहीं पहनती थी और ब्लाउज भी एकदम पतला , ... झलकते छलकते रहते थे , दोनों मम्मे

कल होली की शुरआत में बेचारे ब्लाउज के अंदर भले हाथ न डाल पाए हों पर रंग से भीगे , देह से चिपके पतले पारभासी ब्लाउज से झलक के एकदम साफ़ साफ़ दिख रहे थे , और ऊपर से जब वो ब्लाउज के ऊपर से अपनी कम्मो भौजी के ३८ डी डी वाले उभार दबा रहे थे , मसल रहे थे ,

वो भी उन्हें उकसा रही थी अपने कड़े कड़े बड़े बड़े चूतड़ कस कस के अपने देवर के भीगे पाजामे में तने बौराये खूंटे पे रगड़ रगड़ कर के ,

समझ तो ये भी रहे थे की उनकी भौजी फागुन में क्या चाहती हैं , और आज तो ,

एक तो कल रात मैंने उन्हें साफ़ साफ़ समझा दिया था , उनको भी , उनके उस मूसलचंद को भी , ... फागुन में भौजी , साली सलहज का हक इसपर मुझसे पहले है ( और मुझे तो शक था की जब ये ससुराल पहुंचेंगे तो उस लिस्ट में उनकी सास भी जुड़ जाएंगी ) ,
उन से ज्यादा उनकी कम्मो भौजी को ,

उनके देवर गौने की दुल्हिन से भी ज्यादा लजाते शर्माते हैं , जबतक कुछ जोर जबरदस्ती नहीं करेंगी वो , तो फागुन ऐसे सूखा चला जाएगा ,

और फिर आज सुबह देवर भौजाई दोनों को डबल भांग की दो दो गुझिया ,

और आज मेरी जेठानी, सास भी नहीं थी , सिर्फ मैं , और मैं तो खुद ही उन दोनों लोगो को चढ़ा रही थी ,
उनका एक हाथ ब्लाउज के अंदर घुस गया , चरर चररर , रहा सहा ब्लाउज भी फट गया ,... और अब दोनों हाथों की चांदी ,

कोई छोटे मोटे उभार नहीं थे , एकदम बड़े बड़े मक्खन के कटोरे , मुश्किल से उनके देवर के दोनों हाथों में आ रहे थे और ऊपर से उनकी कम्मो भौजी बजाय छुड़ाने के गरिया रही थीं

" अभिन हमहुँ फाड़ेंगी तोहार , लेकिन खाली पजामा नहीं पजामे अंदर वाला भी , ... बचपन में गांड मरवाये होंगे न वो याद आजायेगा , ... लौंडे तेल वैसलीन लगा के इस चिकने की मारते रहे होंगे पर मैं सूखी मारूंगी ,... "



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मैं बरामदे में बैठी बैठी देवर भाभी की मस्ती देख रही थी , पर मैं अपने को नहीं रोक पायी , ... वहीँ से खिलखिलाते हुए बोली ,

" अरे नहीं , अभी इनकी कोरी है , कोहबर में खुद अपनी सास सलहज के सामने कबूला था इन्होने "



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तब तक ये कस कस के कम्मो भौजी की बड़ी बड़ी चूँचिया मसल रहे थे , और जोबन मर्दन में तो जैसे इन्होने पी एच डी कर रखी थी , मुझसे ज्यादा कौन जानता था इस बात को , बस एक बार चोली खुल जाए और इनका हाथ लड़की के उभारों पर छू बस जाए , फिर तो वो खुद टाँगे फैला देगी , ...

कौन

और कम्मो तो खूब खेली खायी , ... उसकी हालत तो एकदम , ... वो एक जोबन एक निपल फ्लिक कर रहे थे तो दूसरे को पूरी ताकत से मीज रहे थे

सच में देवर भाभी की होली हो , जीजा साली की या नन्दोई सलहज की रंग तो बहाना है ,असली चीज तो जोबन मीजना मसलना रगड़ना है , और होली में जिसने भौजाई , साली , सलहज के जोबन नहीं मसले रगड़े न वो असली देवर , जीजा या नन्दोई है , और जिसने न मलवाया वो असली भौजाई , साली , सलहज नहीं ,

लेकिन कम्मो भौजी असली भौजी थीं , और उन्हें डर ये था की कहीं उनका देवर बिचक न जाये , इसलिए नाम के लिए भी वो इनका हाथ नहीं पकड़ रही थी , पर उन्हें गरियाने से कौन रोक सकता था

मैं तो कत्तई नहीं ,

" हे कहाँ से सीखा अइसन चूँची मीजना , मसलना , बचपन से आपन बहिन महतारी चूँची मीज मीज , के, स्साले तेरी बहन की गाँड़ मारुं ,... " कम्मो उन्हें गरिया रही थी ,




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और हँसते हुए मैं बोली

" एकदम सही कह रही हो आप , लेकिन उस एलवल वाली की कच्ची अमिया , .. जरूर अपनी महतारी के साथ , ... उन्ही की बड़ी बड़ी हैं , ... "
" एकदम सही कह रही है तोहार दुल्हिन , अरे एक चूँची ये चूसर चूसर पीते थे और दूसरी चूँची रगड़ता मीजते थे , काहें देवर जी "
मैं जानती थी अब क्या होना है और वही हुआ ,
क्या कोमल, होली खेलने के समय पोस्ट डाल रही हो, इस बार होली खेलने के लिए कोई नहीं है क्या
 

komaalrani

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होली -घर आंगन की

छत पर मस्ती


( फागुन के दिन चार से )




कुछ देर में हुरियारे चले गए, पर अपना असर छोड़ गए। कुछ रंगों की बौछार का असर और कुछ-कुछ रंगों की फुहार, कुछ गालियों की बौछार, फागुन की फगुनाहट, होली की मस्ती। हुरियारे चले गए थे। लेकिन मुझे और बेताब कर गए थे।



और मुझसे ज्यादा, गुड्डी चुदवासी हो रही थी। हम लोग छत के दूसरे ओर चले गए और वहां छज्जे के पास। जो आँगन से लगा था और जहाँ छत बहुत नीची थी। मेरे बिना कहे गुड्डी डागी पोजीशन में आ गई। और चूतड़ उचका दिए। इस पोजीशन के तीन फायदे थे। एक तो अगल-बगल से कोई हमें देख नहीं सकता था (वैसे भी पास पड़ोस में कोई घर इतने नजदीक नहीं थे) दूसरे, डागी पोजीशन का अपना मजा। मैं मस्ती से उसकी चूची दबा सकता था, हचक के चोद सकता था। पूरी ताकत से धक्के मार सकता था और गुड्डी भी चूतड़ मटका मटका के चुदवा सकती थी।



लेकिन सबसे बढ़कर था तीसरा फायदा। हम आँगन में होली पूरी तरह देख सकते थे, छत नीची थी इसलिए सब बातें भी सुनाई पड़ सकती थी और आँगन से कालोनी की लड़कियां, भौजाइयां हमें नहीं देख सकती थी। स्कर्ट गुड्डी ने खुद ही ऊँची कर दीदी थी। मैंने थांग उतारने की कोशिश की। लेकिन गुड्डी ने सिर पीछे करके अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से मुझे बरज दिया। थांग सरका के वैसे भी उस एक अंगुल के थांग का रहना ना रहना बराबर था। और अभी छज्जे पे, मैंने गुड्डी को पीछे से दबोच के, थांग सरका के।

जब हुरियारे नीचे से गुड्डी के ऊपर गुब्बारे और गालियों की बौछार कर रहे थे, मैं सटासट सटासट, उसकी गाण्ड और बुर में लण्ड दरेर रहा था तो बस मैंने पैंट घुटने तक उतारी, उसकी थांग एक किनारे सरकाई, दो उंगलियों में थूक लगाकर पहले तो उसकी बुर को फैलाया और फिर सुपाड़ा वहां सटाकर हचक के पेल दिया। एक धक्के में मोटा जोश में पागल, सुपाड़ा, गुड्डी की चूत में पैबस्त था।



गुड्डी ने हल्की सी सिस्की भरी और उसकी पतली कमर पकड़कर मैंने दो-तीन धक्के जोर-जोर से मारे। आधा मूसल अन्दर और अब मेरा एक हाथ ऊपर की ओर। उसके कसे टाप की सारी बटने पहले ही होली की बौछार में टूट चुकी थी, और टाप भी उसने ऊपर तक उठा रखा था। मेरे हाथों ने सीधे गुड्डी की टीन ब्रा में सेंध लगायी और दोनों जवानी के फूल मेरे हाथ में। बस एक बात थी की अबकी मेरे हाथों में गाढ़ा पक्का लाल पेंट भी लगा था और चूची की रगड़ाई और होली साथ-साथ चल रही थी। गुड्डी भी मस्ती में अपने किशोर चूतड़ पीछे कर के मेरे धक्के का जवाब धक्के से दे रही थी।

कभी उसकी प्यारी रसीली चुनमुनिया, मेरे जंगबहादुर को जोर से भींच लेती, तो कभी उसे निचोड़ लेती। लण्ड सटासट अन्दर-बाहर जा रहा था और अब मेरी और गुड्डी दोनों की निगाह नीचे आँगन में और बरामदे में पड़ी जहाँ होली की धमा चौकड़ी शुरू हो चुकी थी।


मैं सोच भी नहीं सकता था।

मेरी निगाह पहले बरामदे में गई। गुड्डी की किमियागरी का नमुना।

आधे से अधिक दारू मिली कोल्ड-ड्रिंक की बोतलें खलास चुकी थी। और फिर कालोनी की लड़कियां, मेरी भाभियों की ननदें, आठ दस तो कम से कम रही होंगी। तीन-चार शादीशुदा भी थी और बाकी दो-तीन तो गुड्डी से भी छोटी रही होंगी, 28-30 साइज की। गुड्डी के शब्दों में बड़े टिकोरे वाले। और बाकी बत्तीस-चौतीस साइज की। कुछ फ्राक में, बाकी टाप स्कर्ट में एक-दो शलवार सूट में और जो साड़ी में थी वो शादीशुदा ननदे थी और उतनी ही भाभियां। चौबीस से चौतीस तक की उम्र की और चौतीस से छत्तीस तक की साइज की।


लेकिन भाभियों की टीम को एक एडवांटेज था। बल्की दो एडवांटेज, एक तो मेरे घर की पलटन अबकी शीला भाभी की उपस्थिति से समृद्ध हो गई थी। उनका गाँव का अनुभव और 'कन्या प्रेम' तो भाभियों की संख्या में मेरी भाभी, शीला भाभी और मंजू जुड़ गईं थी सब एक से एक,




और गुड्डी भी।



दूसरी बात कैप्टेनशिप की थी। मिश्रायिन भाभी की कप्तानी का कोई जवाब नहीं था। और होली में अभी ही भाभियों की टीम आगे नजर आगे लग रही थी। एक-दो ने तो ताक के जो कच्ची कलियां थी सीधे उन्हीं पे हाथ साफ करना शुरू कर दिया था। रंग तो सिर्फ बहाना था, जस्ट उभरती, गदराती चूचियां, मसली रगड़ी जा रही थी और ना ना करते-करते वो भी मजा ले रही थी, जो थोड़ी बड़ी थी, गुड्डी या उससे थोड़ी बड़ी। इंटर में पढ़ने वाली या कालेज वाली। वो तो बराबर का मुकाबला भी कर रही थी। लेकिन असली मुकाबला आगन में चल रहा था।
 

Black horse

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( फागुन के दिन चार से )



मेरे गालों पर खूब मसल रगड़ कर रंग लगाया उसने। लता की तरह मुझसे चिपटी, लिपटी गुड्डी। और फिर मेरी बारी। मैंने अपने गालों से ही उसके गोरे गुलाबी कपोलों पे रगड़-रगड़कर रंग लगाया।
गुड्डी मुश्कुराकर बोली- “अब शुरू हो गई अपनी होली…”

और मैं बोला- “सात जन्मों वाली होली है…”
बाहर हुरियारों का झुण्ड गा रहा था-




आज अवध में होरी रे रसिया। होरी रे रसिया बरजोरी रे रसिया।

अपने अपने घर से निकरी कोई साँवर कोई गोरी रे रसिया।


कोई युवती कोई जोबन की थोरी रे रसिया।



होरी के हुरियारे गा रहे थे। और मैं और गुड्डी छज्जे के किनारे आ गए। हम लोगों का घर एकदम सड़क से सटा हुआ था। और जो भी होली के हुड़दंग वाले निकलते, लड़के लड़की बनकर जोगीरा में निकलते। छत से सब दिखता था और सड़क से छत पर जो खड़ा हो वो भी।

गुड्डी छज्जे से सटकर खड़ी थी, और मैं गुड्डी के ठीक पीछे। गुड्डी से सटकर बल्की चिपक के और हम दोनों की होली जारी थी। पहली बाजी गुड्डी के हाथ जरूर थी लेकिन अब मेरे दोनों हाथों में लड्डू थे। हाँ गुड्डी के टाप में घुसकर मेरे दोनों हाथों में अब तक लाल पैंट भी लग चुका था और मैं जमकर उसके गदराये जोबन रगड़ मसल रहा था। यही नहीं मैं उसकी छोटी सी स्कर्ट उठाकर उसके कमर पे खोंस चुका था। और अब मेरा पैंट फाड़ता लिंग। थोड़ी देर की ड्राई हम्पिंग के बाद मुझसे नहीं रहा गया और गुड्डी तो मुझसे भी मेरी मन की बात जानती है तो उसी ने हाथ पीछे कर के मेरा जिपर खोल दिया और अब लण्ड सीधे गुड्डी के मस्त भरे-भरे चूतड़ की दरार के बीच, रगड़ता, दरेरता।

बजाय नार्मल चड्ढी पहनने के गुड्डी ने एक बहुत छोटी सी थांग पहन रखी थी वो भी लेसी। गुड्डी बाहर सड़क पर गुजर रहे होली वालों को देख रही थी। तब तक होली के इक बज्जर हुड़दंगियों का दल आता दिखाई दिया। बीस तीस लड़के रहे होंगे कम से कम। साथ में एक ठेला जिस पे रंग का ड्रम, साथ में एक लड़का लड़की बना हुआ नाचता और उसी ठेले पे एक लाउडस्पीकर जिसपर कभी तो भोजपुरी के होली के एकदम खुल्लम खुल्ल़ा छाप गाने बजाते तो कभी जोर सा शुद्ध गाली वाला नारा गूंजता या कोई कबीर सुना देता। अगल-बगल के घरों की छतों पे जो थोड़ी बहुत लड़कियां औरतें थी वो सब हट गईं।

“हे हट जायं क्या?” गुड्डी ने सिर मेरी ओर मोड़कर पूछा।

“अरे मजा लेते हैं ना…” मैंने उसके रंग लगे गाल चूम के बोला, और एक हाथ से उसकी थांग थोड़ी सी सरका दी। बस मेरे लण्ड राज अब सीधे कभी गाण्ड के मुहाने पे कभी ठोकर मारते तो कभी अपने सहेली चूत रानी से गले मिलते।

तब तक नीचे से जोर से हंगामा हुआ।

और उन सबसे ऊपर मिश्रायिन भौजी की हुंकार गूंजी। कालोनी की कई लड़किया, औरतें अब आ चुकी थी और नीचे होली का घमासान शुरू ही होने वाला था। लगता है नीचे किसी लड़की ने ठंडाई पीने में नखड़ा किया तो मिश्रायिन भौजी की आवाज गूंजी-

“अरे साल्ली की शलवार खोलकर, पिछवाड़े से पिला दो ना…”

और मेरी भाभी की आवाज- “और क्या जाएगा तो दोनों और से पेट में ही…”

उस लड़की की आवाज भाभियों की खिलखिलाहट में गूंज गई। वो बिचारी बोली- “नहीं नहीं मैं कोल्ड-ड्रिंक। ये लिम्का या स्प्राईट ले लेती हूँ…”

मैं और गुड्डी दोनों साथ-साथ मुश्कुराए। उसमें इतनी वोदका और जिन मिली थी की एक ग्लास में ही ठंडाई का दूना नशा हो जाना था। प्लान ये था की होली की जो पार्टी आती। पहले वो खा पी लेती। उसके बाद होली शुरू होती क्योंकि होली में एक बार हाथ में इतना रंग लग जाता की खाना पीना मुश्किल हो जाता।

और दूसरा ज्यादा इम्पोर्टेंट रीजन ये था की भाभियां ननदों को खास तौर से कुँवारी और कच्ची कलियों को टुन्न कर देना चाहती थी जिनसे उनके साथ वो खुल कर और 'खोल कर’ होली की मस्ती कर सकें और उसी खाने 'पीने' के साथ छेड़ खानी मस्ती शुरू हो जाती।

मिश्रायिन भाभी ने शादी के बाद लौटकर आई अपनी किसी ननद को छेड़ते हुए बोला- “क्यों नंदोई जी तो अभी नहीं है। काम कैसे चलता है?”

वो जवाब देती उसके पहले मेरी भाभी बोल पड़ी- “अरे इन्हें क्या दिक्कत? इनका मायका है सब बचपन के यार हैं। एक बुलाएं चार आते हैं, चार लाइन लगाकर इन्तजार करते हैं…”

तब तक कोई और मोहल्ले की भाभी बोल पड़ी- “बिन्नो। कोई बात नहीं तब तक हमारे वाले से चाहो तो काम चला लो। ननदोई से कम नहीं होंगे गारंटी…”

तब तक मेरी भाभी ने फिर चिढ़ाया- “अरे लल्ली। चलो अच्छा अदला-बदली कर लेते हैं। रंग पंचमी में तो नंदोई जी आयेंगे ना। मेरे सैयां तेरे साथ और तेरे सैयां मेरे साथ। नीचे वाले मुँह का भी तो स्वाद बदलना चाहिए…”

वो विवाहित ननद बोली हँसकर बोली- (आवाज मेरी पहचानी लग रही थी लेकिन मैं प्लेस नहीं कर पा रहा था) “अच्छा भाभी मेरे भैया का मेरे साथ, ये आपके यहाँ होता होगा। चलिए मेरे भैया भी आपको मुबारक और सैयां भी। एक आगे से एक पीछे से…”

तब तक मिश्रायिन भाभी की आवाज आई- “अरे तू बता अभी पिछवाड़े का नम्बर लगा की नहीं। वरना आज होली का मौका भी है। होली में तुझे नंगा तो नचाएंगे ही यहीं आँगन में पटक के गाण्ड भी मारेंगे और मक्खन मलाई भी चटाएंगे…”

मुझे कल शाम की बात याद आ गई जब मंजू और शीला भाभी ने रंजी को नंगा तो किया ही था मेरे खड़े लण्ड पे भी बैठाया था। और आज तो होली का दिन है और ऊपर से मिश्रायिन भौजी तो मशहूर हैं इन चीजों के लिए। लेकिन तब तक नीचे से आ रही आवाजें दब गई। पास आ गये होली के हुड़दंगियों के शोर में। लाउडस्पीकर पे होली के 'टिपिकल’ गाने बज रहे थे।


अरे होली में। होली में। महंगा अब सरसों का तेल होई।

महंगा अब सरसों का तेल होई,


अरे जबरन जो डरीबा तो।

गुड्डी मेरी और देखकर मुश्कुरायी और मैं समझ गया (रात में मेरे पिछवाड़े छेड़ते वो बोली थी, तेरी कोरी है तो चलो कोई बात नहीं बनारस में, बल्की कोहबर में नथ उतार ली जायेगी तेरी भी। हाँ जरा मेरी मम्मी की चमचा गिरी करना मक्खन लगाना तो। तेरी कुप्पी में दो-चार बूंद सरसों का तेल डाल, देंगी नथ उतारने के पहले)

जवाब में मैंने जोर का धक्का मारा, गुड्डी की लेसी थांग तो सरकी ही थी, सुपाड़ा गाण्ड को दरेरता, रगड़ता सीधे चूत के मुहाने पे जा लगा और चूत की पुत्तियां अपने आप थोड़ी खुल गईं और उन होली के हुरियारों में किसी ने गुड्डी को देख लिया।



फिर तो वो हंगामा हुआ। आकाश से पाताल तक। मैं गुड्डी से इस तरह पीछे चिपक के खड़ा हुआ था की मुझे देखना मुश्किल था। और अब मैंने दोनों हाथ भी गुड्डी की पतली कमर से बाँध लिए थे। गुड्डी एक पल के लिए तो कुनमुनाई, सकपकाई, लेकिन मैं पीछे से उसे इस तरह दबोचे था की उसका छज्जा छोड़कर जाना क्या? हिलना भी मुश्किल था। और अपनी दोनों टांगें उसकी टांगों में डालकर मैंने उसकी टांगें भी फैला रखी थी। साथ में लण्ड तो उसकी गाण्ड और बुर को दरेर रहा ही था।



किसी ने लाउडस्पीकर पे गुड्डी को देखकर सुना के कबीर गाना शुरू कर दिया-




हो कबीरा सारा रा रा।

किस यार ने चूची पकड़ी और किस यार ने चोदा। हो कबीरा सारा रा रा।

अरे इस छैला ने चूची पकड़ी और उस छैल ने चोदा। कबीरा सारा रा रा।

अरे होली की आई बहार चुदवाई लो।


अरे चोदिहैं, छैला तोहार। चोदिहें गुन्डा हजार चुदवाई लो।



जोगीडे का लौड़ा (लड़की बना लड़का) उस गाने की ताल पे नाच रहा था। बाकी लड़के गुड्डी को दिखा दिखाकर, अंगूठे और तरजनी का छेद बनाकर चुदाई का इंटरनेशनल सिगनल दिखा रहे थे। तभी उन्हीं में से किसी ने एक रंग भरा गुब्बारा गुड्डी के ऊपर मारा। लेकिन गुड्डी भी बनारसी चतुर सुजान थी, ऐन मौके पे सरक के बच गई। लेकिन होली में तो डलवाने की होती है बचने की थोड़ी और मेरी भावनाएं भी उन हुरियारों के साथ थी। इसलिए जब अगला गुब्बारा आया तो मैंने पीछे से कसकर गुड्डी को दबोच लिया और वो सीधे उसके मस्त उरोज पे। और फिर तो चार-पांच एक साथ।

गुड्डी की टाप की बटन टूट गईं और अब उसकी रसीली चूची खुलकर दिख रही थी। उन गोरे कबूतरों के पंख लाल हो गए थे, लेकिन गुड्डी तो गुड्डी थी, पूरी बनारसी। और उसने भी जबर्दस्त जवाब दिया, पहले मुझे फिर नीचे हुरियारों को।



अगला गुब्बारा उसने कैच करके सीधे मेरे कमर के नीचे। और जंगबहादुर लाल गुलाल हो गए। यही नहीं जो रंग गिरा उसके कोमल कोमल हाथों ने जमकर सिर्फ मेरे चर्म दंड पर ही नहीं बल्की, नीचे बाल्स पर और पिछवाड़े भी मसला रगड़ा। और नीचे से गुब्बारे, फेंक रहे रंग और गालियों की बौछार कर रहे हुरियारों को भी उसने नहीं बख्शा। कुछ तो उन्हीं के गुब्बारे उनको लौटाए और कुछ, उसने एक बाल्टी में रखे रंग भरे गुब्बारे उठा उठाकर। गालियों के नारों का एक नया जोश नीचे से शुरू हुआ और अब वो एकदम हम लोगों के छत के नीचे थे तो लाउडस्पीकर की भी जरूरत नहीं थी।




ये भी बुर में जाएंगे, लौंडे का धक्का खायेंगे।



सब लौंडे नीचे से बोल रहे थे। लेकिन गुड्डी बिना हिले उसी तरह से जवाब दे रही थी। और मैं भी उनकी बातें सुनकर अब पूरी ताकत और जोश से। उसके गुब्बारे का निशाना सीधे जोगीड़ा वाले लौंड़े पे पड़ा और अगला जो उनका लीडर था।



गुड्डी की थांग तो पहले ही सरक गई थी। और गुड्डी छज्जे पे निहुरी भी थी। तो बस कमर पकड़कर मैं हचक-हचक के। उसकी गाण्ड और चूत की दरार में लण्ड का धक्का जोर-जोर से मार रहा था। साथ ही उनपर जो रंग गुड्डी ने लगाया था वो सीधे अब सूद ब्याज सहित उसके चूतड़ और चूत पे।




कुछ देर में हुरियारे चले गए, पर अपना असर छोड़ गए।
होली की आप सभी को बहुत बहुत शुभकामनाए
 

komaalrani

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***** ***** ननद भौजाई की चोली फाड़ होली - मेरी दीदी, मुँहबोली राखी वाली बहन




एक कोई ससुराल से लौटी ननद और बुरी तरह घिरी। मेरी भाभी, मिश्रायिन भाभी और मंजू। इनमें से कोई एक ही काफी था। लेकिन तीन-तीन। बिचारी।


मंजू ने पीछे से दोनों हाथ पकड़ लिए थे। इसलिए वो चीखने चिल्लाने के अलावा कुछ कर ही नहीं सकती थी। और भाभी मेरी बहुत प्यार से उनकी साड़ी उतार रही थी आराम से, चिढ़ाते हुए-

“अरे लल्ली (ननदों का नाम नहीं लेते थे बिन्नो या लल्ली या ऐसे ही बुलाते थे। हाँ गालियां जरूर खुलकर दी जाती थी), नंदोई क्या चोदते समय साड़ी पहने रहने देते थे? शादी के दो साल बाद आई हो जरा हाल तो देख ले और कहीं साड़ी फट फटा गई तो। "

और उन्होंने एक झटके में साड़ी उतार दीदी और आँगन में एक कोने में फेंक दी। और उनकी आवाज और चेहरे की एक झलक ने मेरी यादों का घूंघट उतार फेंका। वही आवाज जिन्हें कुछ देर पहले भाभी और मिश्रायिन भाभी चिढ़ा रही थी।

'दीदी" मेरे मुँह से निकल गया और गुड्डी ने मुड़कर मुझे चिढ़ाते हुए कहा, अच्छा तेरी दीदी है, तब तो आज इन की कसकर ली जायेगी।


“पहले तू अपनी बचा" मेरे मुँह से निकला…” और गुड्डी के दोनों मस्त उभार पकड़कर मैंने फिर पूरी तेजी से हचक के चोदना शुरू कर दिया।

“क्यों क्या दीदी की याद आ रही है जो इत्ते जोर से दीदी समझ के चोद रहे हो क्या?” गुड्डी ने मुझे फिर छेड़ा।

और जवाब में मैंने सुपाड़े तक लण्ड निकालकर एक धक्के में जोरदार शाट मारा और पूरा आठ इंच अन्दर। मुझे मल्टी टास्किंग की आदत है। इसलिए इधर गुड्डी के साथ मैं देह की होली खेल रहा था। नीचे होली खेल रही भाभियों ननदों का चक्षु चोदन भी।

और वो और जोश बढ़ा रहा था। गुड्डी की निगाह भी नीचे आँगन में लगी थी।

और फिर। अचानक मेरी निगाह फिर आँगन में पड़ी। एक ब्लाउज़ नीचे से आकर हमारे ऊपर गिरा। और नीचे देखते ही मुझे पता चल गया। भाभी ने दीदी का ब्लाउज़ उतारकर छत पे फेंक दिया था और अब वो सिर्फ ब्रा। पेटीकोट में रह गई थी। हाफ कप लेसी ब्रा में झांकते गोरे गोरे गुदाज उरोज। लेकिन एक मंजू की पकड़ में आ गए। ब्रा में हाथ डालकर मेरी भाभी ने दूसरा दबोच लिया और दोनों साथ-साथ जोर-जोर से रगड़ने लगी। और साथ में छेड़ छाड़ भी।

“क्यों लाली। ननदोई जी ऐसे ही दबाते है या और जोर से…” भाभी ने पूछा।

“अरे सिर्फ नंदोई क्यों देवर भी तो हैं। क्यों ऐसी चुदवासी भाभी को वो कहाँ छोड़ने वाले…” निपल जोर से पिंच करते हुए मंजू ने बोला।

तब तक मिश्रायिन भाभी भी मैदान में आ गईं। हाथ में पेंट लेकर। पेटीकोट में उन्होंने पीछे से हाथ डालकर दीदी के भारी भारी चूतड़ों पे रंग लगाना शुरू कर दिया और पूछा-

“क्यों लाली। कितनों ने इस जोबन का रस लूटा था। ससुराल में होली में। पांच-छ…”

“अरे। पांच-छ से इसका क्या होगा। इत्ते यार तो मेरी लल्ली के मायके में थे। कम से कम सात आठ तो होंगे ही। तभी तो इतन गद्दर जोबन हो गया है मिजवा-मिजवा के…”

मेरी भाभी ने जोर से उनके चूचियों प्रेस करते हुए बोला।

लेकिन दीदी ने फिर न न में गर्दन हिलाई।

तो मंजू चालू हो गई- “अरे हमरी छिनार ननद रानी अबही तोहरे मुँह में कौन मोट लण्ड घुसल बा। खोलकर बोल काहें ना देती की ससुराल की पहली होली में ता नई दुलहिन से सब मजा लूटबे करे लें…”

और दीदी ने मुँह खोल दिया। पूरे एक दर्जन ने जोबन रस पान किया था उनका। यहाँ तक की उनके ससुर ने भी।

“अरे चलो देवर ना सही तो तोहार भौजाई है न इहाँ कौनो कमी ना होई चूची रगड़ाई में…”

मेरी भाभी और मंजू एक साथ बोली। और उस रगड़ाई में ब्रा फट के अलग। और वो भी अगले पल हमारे पास छत पे आकर गिरी।


“अब तो खूब जमकर रगड़ाई होगी तुम्हारी दीदी की। तुमने तो कभी नहीं मसला था उनका…”

गुड्डी की निगाहें भी मेरी साथ नीचे लगी थी। और अब उसकी मुझे छेड़ने की बारी थी।

मैंने जवाब अपनी स्टाइल में दिया। खूब कसकर उसके किशोर उभरते, उभार रगड़कर, निपल पिंच कर के- “पहले तू अपनी बचा ले। आज पता लगेगा। और हर धक्का सीधे सुपाड़ा बाहर निकाल कर लण्ड एकदम बच्चे दानी तक।

लेकिन साथ में याद भी आ रही थी दीदी की।

अपने किशोर दिनों की। मैं शायद आठवें या नौवें में था। मेरी कोई सगी बहन तो थी नहीं। इसलिए राखी के दिन मैं अक्सर गुस्सा हो जाता था। दीदी के मम्मी डैडी ट्रांसफर होकर उसी साल कालोनी में आये थे। और हम लोगों से अच्छी फेमली फ्रेंडशिप हो गई थी। दीदी भी अपने मम्मी डैडी की अकेली थी और वो भी उसी तरह राखी के दिन। सारी लड़कियां कालोनी की तैयार होकर सुबह-सुबह।

तो सारांश ये की दीदी हमारे घर आई और मेरे राखी बाँध गई। मैंने कई दिन तक वो राखी नहीं उतारी।

लेकिन अगले साल गड़बड़ हो गई। हम दोनों में झगड़ा हो गया। मेरा कहना था पहले राखी। उनका कहना था पहले पैसा। तय हुआ की वो राखी तो बाँध देंगी लेकिन बिना पैसे के मिठाई नहीं मिलेगी मुझे।

खैर मैं बड़ा हुआ और वो और बड़ी हो गईं। (और उनका और बड़ा हो गया) तब तक भाभी घर आ गईं थी और अब वो दीदी का नाम लेकर भी छेड़ती।

आखीरकार, उनकी ननद लगती थी। लेकिन सबसे ज्यादा कालेज के लड़के। मैं ग्यारहवें में आ गया था। तब लड़कियों को देखकर सिटी बजाना। उन्हें घर तक पहुँचाना मेरे ढेर सारे दोस्तों ने शुरू कर दिया था। और कई के तो अनुभवी भी हो गए थे, मोस्टली कजिन्स से।


एक लड़के ने एक दिन मुझे उन्हें देखाते हुए कहा- “जानते हो ये कालेज की बेस्ट माल है…”

दूसरा बोला एकदम गलत- “पूरे शहर की बेस्ट आइटम है लेकिन घास नहीं डालती। एकदम जिल्ल्ला टाप…” मुझे बुरा भी लगा और अच्छा भी।

उन्हें मैंने अपना रिश्ता नहीं बताया, और दीदी थी भी ऐसी। 5’7” की हाईट, फिगर भी भरपूर, उपर भी नीचे भी। बड़ी-बड़ी आँखें, हाई चीक बोन्स, खूब लम्बे चूतड़ तक बाल लेकिन इन सबसे ज्यादा दो चीजें उनमें थी। एक तो जो कहते हैं नमक। वो कुछ ज्यादा ही था। और दूसरा एट्टीट्युद। छोटे शहर में लड़कियां छिपती छिपाती निकलती, दुपट्टे में ढक के। लेकिन दीदी टाप और जीन्स में उस समय भी।




एक दिन मेरे साथ कुछ सीनियर लड़के थे उनमें कुछ दादा टाइप भी। दीदी अपनी सहेलियों के साथ जा रही थी और वो चालू हो गये-

लड़की चले जब सड़कों पे आये कयामत लड़कों पे।



मेरी तो हालत खराब। कहीं दीदी ने घर पे बोल दिया। खैर किसी तरह मैंने उन्हें चुप कराया। उसी साल राखी के दिन। मैं ऊपर अपने कमरे में बैठकर पढ़ रहा था। स्वेट-शर्ट और शार्ट में। उस समय वो बी॰ए॰वन में थी और मैं 11वीं में।

और दीदी एकदम हाट लग रही थी। उन्होंने लेमन येलो टाईट टाप पहन पहन रखा था और जीन्स। टाप जीन्स के अन्दर टक किये हुए थी। इसलिए उभार (32सी से तो ज्यादा ही रहे होंगे) एकदम और उछलकर दिख रहे थे। पहले तो मुझे डांट पड़ी की राखी के दिन मैं तैयार होकर क्यों नहीं बैठा।

फिर मेरी चोरी पकड़ी गई। मेरी निगाह बार-बार उनके उभार पे जा चिपकती थी और दीदी ने मेरा गाल पिंच कर दिया और राखी बाँध दी। लेकिन अब की वो मिठाई नहीं लायी थी और हर बार की तरह पैसा पहले मुझे देना था। मैंने उन्हें चिढ़ाया। जब नौकरी करूँगा तो उनका सारा उधार चुकता कर दूंगा।

लेकिन दीदी भी आज वो भी मूड में थी बोली- “चोर हो तुम मैं तलाशी लूंगी…”

और उन्होंने शार्ट में मेरी पाकेट में हाथ डाल दिया। अब तो मेरी लग गई। पाकेट पूरी तरह फटी थी और दूसरे नहाने के बाद मैंने शार्ट के नीचे ब्रीफ भी नहीं पहनी थी। दीदी के उभार को देखकर तम्बू पूरा तना था। और वही हुआ जो मैं डर रहा था। उनका हाथ जेब के अंदर होता हुआ सीधे वहां मेरे 'बम्बू' से लग गया।

अब तो मैं डरा की हुई शिकायत। लेकिन शैतानी से वो हल्के से मुश्कुरायीं और उनके हाथ ने मेरे 'उसे' पकड़ लिया। एकदम कड़ा था और कड़ा हो गया। एक-दो पल और ऐसे रखने के बाद उन्होंने उसे हल्के से आगे-पीछे किया और फिर एक झटके में ऐसा खींचा की सुपाड़े का चमड़ा उतर गया। पहली बार किसी लड़की का हाथ पड़ा था वहां वो जोर से खींचे रही। फिर अंगूठे से उन्होंने सुपाड़े को हल्के से सहला दिया। मेरी हालत खराब हो रही थी। उनकी आँख मेरे चेहरे पे टिकी थी।


और जब उन्होंने हाथ बाहर निकाला तो शरारत से बोली- “बोल मिठाई चाहिये…”



मैं भी ढीठ हो गया था मुश्कुराकर बोला- “नेकी और पूछ पूछ…”

मैं अब बेशर्मी से उनके उभारों को देख रहा था। दीदी झुकीं, दोनों हाथ से मेरे सिर को पकड़ा और जोर से मेरे होंठों पे किस ले ली। लेकिन उनके होंठ अलग नहीं हुए। उन्होंने मेरे होंठों को अपने होंठ में लेकर थोड़ी देर चूसा फिर छोड़ दिया और आँख नचाकर बोला अच्छी लगी मिठाई।

मेरी आँखें अभी भी उनके उभारों की सहला रही थी मैं बोला- “बहुत मीठी। लेकिन दो और चाहिए…”

“लालची…” वो गुस्से का नाटक करती बोली, फिर मेरे हाथ खींचकर अपने उभारों पे रख दिया। एकदम रूई के फाहे। जैसे आसमान से किसी ने बादल नोच कर उनकी टाप में डाल दिए हों। लेकिन तब तक भाभी के कदमों की आहट सुनाई पड़ी और हम अलग हो गए।



भाभी ने आकर पूछा- “क्या हुआ…” तो दीदी एकदम मेरी शिकायत लेकर चालू- “बिना पैसे दिए मिठाई मांग रहा है…”

भाभी ने मेरे कान पकड़े और बोली- “इसे बेईमानी की आदत है नीचे चलो पहले अपनी दीदी को पैसा दो फिर मिठाई मिलेगी…”

वही हुआ। लेकिन आपने हाथ से गुलाब जामुन खिलाते हुए वो बोली- “मिठाई कैसी है?”

भाभी आस पास नहीं थी। मैं मुश्कुराकर बोला- “ऊपर आप ने जो खिलाई थी वो ज्यादा मीठी थी…”

“नदीदे…” वो शरारत से मुझे देखते बोली और बाकी चाशनी मेरे गाल पे लपेट दीदी और कहा- “ज्यादा लालच अच्छी बात नहीं…”

अगली राखी में तो दीदी ने मजे करा दिए।

उस दिन वो साड़ी पहनकर आई थी और बहुत ही लो-कट ब्लाउज़। होंठों की मिठाई तो मिली ही। चोली के अन्दर की वह मिठाई भी मिल गई। ज्यादा नहीं सिर्फ किस्सी। वो भी चोली के ऊपर से। लेकिन बारहवें के स्टूडेंट के लिए वही बहुत था।

शायद आगे कुछ होता लेकिन मैं इन्जीनरिन्ग की पढाई के लिए बाहर चला गया। हाँ उनकी शादी में मैं सिर्फ आया ही नहीं बल्की भाई की सब रस्में भी मैंने पूरी की। दीदी के पति, जीजू ने मुझे छेड़ा- “हे मेरे माल पे लाइन मत मारना…”


शादी में दीदी की होने वाली ननदे भी काफी आई थी। उनकी ओर इशारा कर के मैंने कहा-

“जीजू अगर आप इन सब माल की बात कर रहे हैं और इसे अपना माल कह रहे हैं। जो आप साथ लाये हैं तो। उनकी तो लाइन क्या बहुत कुछ मारने का प्लान है।

दीदी जोर से मुश्कुरायी और जीजू से बोली- “मेरा भाई है, मजाक नहीं। बहनों को सम्हालकर रखियेगा…”

उसके बाद अब देखा था मैंने। उन्हें शादी के करीब पौने दो साल हो गए थे। पहली होली तो ससुराल में होती है। तो उस बार वो वहीं थी और इस बार मायके आई हैं। कुछ ज्यादा ही गदरा गईं हैं और उभार भी पहले से ज्यादा। तभी कुछ हुआ और गुड्डी ने मुझे इशारे से नीचे देखने को कहा। दीदी गिरी पड़ी थी। और उनके साथ मेरी भाभी।
 

komaalrani

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दीदी संग मस्ती भाभी की










उसके बाद अब देखा था मैंने। उन्हें शादी के करीब पौने दो साल हो गए थे। पहली होली तो ससुराल में होती है। तो उस बार वो वहीं थी और इस बार मायके आई हैं। कुछ ज्यादा ही गदरा गईं हैं और उभार भी पहले से ज्यादा। तभी कुछ हुआ और गुड्डी ने मुझे इशारे से नीचे देखने को कहा। दीदी गिरी पड़ी थी। और उनके साथ मेरी भाभी।

हुआ ये था की मंजू और मेरी भाभी दीदी की चूची पे रंग लगाने और उसकी रगड़ाई में लगी थी। ब्रा तो कब की फाड़कर छत पे फेंक दी गई थी और मिश्रायिन भाभी रंग की बाल्टी लेकर सीधे दीदी के 'सेंटर' पे रंग फेंक रही थी। दीदी ने मौके का फायदा उठाकर भागने की कोशिश की और आँगन में पड़े रंग पे फिसल के। और साथ में मेरी भाभी भी।

लेकिन मंजू और मिश्रायिन भाभी ने दोनों को पकड़ लिया। और चोट किसी को नहीं लगी। हाँ मौके का फायदा उठाकर मंजू ने दीदी का पेटीकोट भी खिंच के उतार दिया और अब वो सिर्फ पैंटी में थी। लेकिन अब हालत भाभियों की भी वही थी। ननदों के हमले में अब किसी की भी ब्लाउज़ या साड़ी नहीं बची थी सब आँगन में छितरी पड़ी थी। सब ब्रा और साए में। धुआँ धार रंगों की और गालियों की बारिश हो रही थी। टाप और स्कर्ट वाली सब टापलेश हो गईं थी और जिसकी ब्रा बची भी थी उसके अन्दर हाथ डालकर भाभियां जमकर रगड़ रही थी।



मैं और गुड्डी दोनों आँगन में देख रहे थे।



मंजू ने फिर गिरी हुई दीदी की चूचियां, जिन पे न जाने कितने रंग लगे थे, जोर-जोर से रगड़नी शुरू कर दीदी थी। मिश्रायिन भाभी ने दोनों हाथ गीली हुई पैंटी में लगाया। और पैंटी फट के दो टुकड़े में हो गई। और मेरी भाभी, एक पूरी बाल्टी लाल रंग की भरकर ले आई। मिश्रायिन भाभी ने पूरे जोर से दीदी की चिकनी जांघें फैला रखी थी। भाभी ने पूरी बाल्टी का रंग धीरे-धीरे दीदी की खुली चूत पे उंड़ेलना शुरू कर दिया और साथ-साथ में वो बोल रही थी-


“हे चूत रानी तुम्हारी गर्मी शांत हो, प्यास बुझाये, एही बुर में हमारे सारे देवर समाये, देवर और सैयां के सब साले समायें, अपने मायके सब पुराने यारों के लण्ड की नए यारों के लण्ड की प्यास बुझाओ…”


बिचारी दीदी नीचे पड़ी छटपटा रही थी, चूतड़ पटक रही थी। लेकिन मंजू और मिश्रायिन भाभी की पकड़ से कहाँ छूटने वाली।

पूरी बाल्टी का रंग सीधे सेंटर पे। गनीमत है की तब तक ननदों की टोली की चार-पांच लड़कियां आई एक साथ। और अब भाभी पकड़ी गईं और उनकी भी दुरगत शुरू हो गई।

लेकिन दीदी के लिए मंजू या मिश्रायिन भौजी अकेले बहुत थी और यहाँ तो ये दोनों। उन्होंने मंजू को कुछ इशारा किया और मंजू ने अपना पेटीकोट कमर तक लपेट लिया (वो तो पैंटी वाली थी नहीं) और अब सीधे दीदी के मुँह के ऊपर। वो छटपटाती रही लेकिन अपनी झांटों भरी बुर मंजू उनके होंठों पे रगड़ रही थी और बोल रही थी-

“अरे होली में जब तक, भौजाई ननद को बुर ना चटावे। तब तक होली पूरी नहीं होती…”

दीदी लाख सिर पटक रही थी, मुँह नहीं खोल रही थी। लेकिन मंजू के पास सब का जवाब था। उसने अपनी मोटी ताकतवर जांघों से दीदी के सिर को कसकर दबोच लिया और फिर एक हाथ से उनकी नाक पकड़कर बंद कर दी-

“करा अब छिनारपना। साल्ल्ली भाई चोदी। सांस लेवे के अब मुँह खोलोगी की नाहीं…”

मंजू ने अपने चूतड़ थोड़े उठा रखे थे।


और जैसे ही दीदी ने सांस लेने के लिए मुँह खोला। मंजू ने अपनी बुर सीधे वहीं लगाकर दीदी की नाक छोड़ दीदी और बोला-

“चलो। ससुरारी में होली में केकर केकर बुर चाटे चूसे होगी और इहाँ मायके में आयके अगर एक मिनट भी बुर की चुसाई, चटाई हल्की हुई तो फिर नाक बंद…”

बिचारी दीदी।

उन्होंने मंजू की बुर जोर-जोर से चाटनी शुरू कर दी। मिश्राइन भाभी ने खुश होकर मंजू की ओर देखा। और उन्होंने दीदी की अब खुली चूत का मोर्चा सम्हाला।

“अरे छिनारो ई मत कहना की खाली तुन्ही भौजाई के चूत को मजा दे रही हो और तोहरी बुरिया के आग को कोई पूछ नहीं रहा। मैं हूँ न। भूल जाओगी ससुराल की होली। आज तोहरे चूत की ऐसन आग बुझाऊँगी, जितना तो ना तो तोहरे बचपन के छैला बुझाये होंगे ना ससुरारी में तोहार मर्द, देवर और ननदोई…”

मिश्रायिन भाभी बोली।

और दीदी की चिकनी रेशमी गदराई जांघों को पहले खूब प्यार से सहलाया और फिर जोर से फैला दिया। थोड़ी देर तक तो वो हल्के-हल्के दीदी की मखमली चूत सहलाती रही, फिर अंगूठे और तर्जनी के बीच उनके चूत की पुत्तियों को पकड़कर रगड़ना शुरू कर दिया, एक उंगली चूत के अन्दर घुस गई। सटा-सट, सटा-सट और दीदी जोर से गिनगिनाने लगी। लेकिन ये तो अभी शुरूआत थी। मिश्रायिन भाभी ने अब पूरी हथेली का जोर दीदी की फैली खुली चूत पे लगा दिया। दीदी की चूत एकदम मक्खन मलाई थी। एक भी झांट नहीं जैसे वैक्सिंग करा के आई हों। मिश्रायिन भाभी की हथेली का निचला, कलाई की ओर का हिस्सा दीदी के क्लिट और आस पास रगड़ रहा था और उंगलियां दोनों पुत्तियों को।

यही नहीं दूसरे हाथ से भी अब वो जोर से कभी दीदी की क्लिट रगड़ती, तो कभी एक चूची मसलती, निपल पिंच करती। दीदी बार-बार झड़ने के कगार पे पहुँच जाती तो मिश्रायिन भाभी अपना टेम्पो थोड़ा कम कर देती। दीदी अपने मोटे मोटे चूतड़ उचका रही थी, मचल रही थी। लेकिन मिश्रायिन भाभी उन्हें झड़ने नहीं दे रही थी। दीदी की दूसरी गद्दर चूची, मंजू के कब्जे में थी।

कोई मर्द क्या मसलेगा। उस बेरहमी से वो रगड़ रही थी। उसकी कमर भी फिरकी की तरह गोल-गोल घूम रही थी और वो जोर-जोर से अपनी झांटों भरी बुर दीदी के खुले होंठों के बीच रगड़ रही थी और साथ में अनवरत गालियां-


“बुर चोद्दो। तेरी सारे खानदान की गाण्ड मारूं। तोहार छिनार, इतना मस्त माल कहाँ से पैदा की। तोहरे मामा से चोदवाये के का। बोल भाई चोदी। तोहरी बुर में हमारी ससुराल के सब लण्ड जायं। बुर चुसायी कहाँ से सीखी। मस्त चूसती हो।अगर रुकी ना तो ऐसा गाण्ड मारूंगी तेरी की तेरे सारे खानदान की, गदहा चोदी, तोहरे चूत में इतना लण्ड घुसेंगे की कालीन गंज के रंडियों को मात कर दोगी, रंडी की जनी, हरामन की चूस और जोर से चूस। अभी गाण्ड भी चटवाऊँगी…”
 

komaalrani

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***** *****'दीदी' की ले ली

मिश्रायिन भाभी और मंजू बीच में एक दूसरे को देखकर मुश्कुरा रही थी। मिश्रायिन भाभी ने गियर बदला और दीदी की चूत पे हमला तेज किया। अब उनकी दो उंगलियां दीदी की चूत में तेजी से गोल-गोल घूम रही थी। और अंगूठा क्लिट पे। हथेली का निचला हिस्सा भी चूत को रगड़ रहा था और दूसरा हाथ, दीदी की चूची पे। एक चूची मंजू मसल रही थी तो दूसरी वो, और दोनों काम प्रवीण महिलाओं के बीच मुकाबला चल रहा था की दोनों मैं कौन ज्यादा एक्सपर्ट है चूची मर्दन में।

दीदी अब खूब जोर से चूतड़ उचका रही थी, सिसक रही थी और अबकी वो जब झड़ने के कगार पे पहुँची तो मिश्रायिन भाभी रुकी नहीं बल्की झुक के उनकी क्लिट अपने होंठों के बीच दबा लिया और जोर से चूसने लगी। दीदी झड़ रही थी। जोर से झड़ रही थी लेकिन मिश्रायिन भाभी रुकी नहीं, हाँ एकाध पल के लिए। कुछ देर के बाद उनकी रफ्तार धीमी हुई। लेकिन फिर वही। तीन-चार मिनट के अन्दर दीदी दुबारा किनारे पे थी और अबकी मिश्रायिन भाभी ने अंगूठे और तरजनी के बीच क्लिट मसलना शुरू कर दिया और मंजू को इशारा किया जिसने खूब जोर से दीदी का निपल पिंच कर दिया। दीदी के दोनों निपल एकदम खड़े थे जिससे लग रहा था की उन्हें कितनी मस्ती छाई है।

कुछ ही देर में दीदी तीन-चार बार झड़ गई। और अब उनकी चूत से खूब पानी बाहर आ रहा था। उसका फायदा उठाकर मिश्रायिन भाभी ने अपनी तीन उंगली पेल दी, एकदम जड़ तक। दी के चेहरे पे दर्द उभर आया। लेकिन खूब तेजी से मिश्रायिन भाभी ने उसे अन्दर-बाहर करना शुरू किया और दूसरे हाथ से जोर-जोर से क्लिट मसलना शुरू किया। दर्द सिसकियों में बदल गया और दीदी ने एक बार फिर से झड़ना शुरू कर दिया। थोड़ी देर में वो थेथर हो गईं बुर पूरी तरह रस से लिपटी।

एक बार झड़ना बंद नहीं होता की दूसरी बार शुरू हो जाता। लेकिन मिश्रायिन भाभी और मंजू की जुगलबंदी रुकी नहीं। मंजू अपनी बुर से दीदी के मुँह को सील किये हुए थी इसलिए बिचारी चीख चिल्ला भी नहीं सकती थी। तब तक मेरी भाभी, ननदों के झुरमुट से किसी तरह से छूट के आ गई लेकिन उनकी ब्रा आलमोस्ट खेत रही। किसी तरह उनके उभार को बस कवर कर रही थी और उनके आँगन में पहुँचते ही मिश्रायिन भाभी के चेहरे पे मुश्कान नाच उठी।



उन्होंने कुछ हाथ से इशारा किया और मेरी भाभी किचेन की ओर मुड़ पड़ी।

और वो जब बाहर आई तो उनके हाथ में नारियल के तेल की बोतल थी। जो उन्होंने मिश्रायिन भाभी को दे दी। और दीदी के जांघों के बीच जो मोर्चा अब तक मिश्रायिन भाभी ने सम्हाल रखा था, खुद सम्हाल लिया।

मंजु से भी उन्होंने कुछ इशारा किया। फर्क सिर्फ इतना था की पहले दीदी की चूत में उंगली थी और अब भाभी के होंठ जोर-जोर से किस कर रहे, चाट रहे, कसकर चूस रहे थे।

लेकिन मैं मिश्रायिन भाभी को देखकर चकित था। पहले उन्होंने अपनी सब चूड़ियां दाए हाथ से निकाली, फिर एक मोटा भारी कंगन था, वो उतारा और फिर दो अंगूठियां उन्होंने पहन रखी थी वो भी निकाल दी। मेरी मेरी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था।


अब भाभी जो नारियल का तेल लायीं थी वो उन्होंने अपने बाएं हाथ में लिया और फिर उससे दायें हाथ में तेल की मालिश शुरू कर दी। लेकिन इतना भी जैसे काफी नहीं हो। दायें हाथ की सारी उंगलियां उन्होंने जोड़ी। और उपर से सीधे बोतल से तेल गिराना शुरू कर दिया। अब दायां हाथ कलाई तक, बल्की आलमोस्ट कुहनी तक नारियल के तेल में डूब गया था। बारी-बारी से भाभी और मंजू, उन्हें देखती और दोनों शरारत से मुश्कुराती। दीदी के देखने का सवाल ही नहीं था की क्योंकि मंजू उनके ऊपर चढ़ी हुई थी और कभी अपनी बुर, और कभी गाण्ड मुँह पे रगड़ रही थी, उनके दोनों हाथ भी उसने पकड़ रखे थे।

मेरी भाभी भी। उनका सिर दीदी की दोनी खूब चिकनी गोरी, रेशमी जवान जांघों के बीच झुक हुआ था और अपने तगड़े हाथों से उन्होंने दीदी की जांघों को बुरी तरह फैला रखा था। और भाभी की जीभ दीदी के निचले होंठों पे लप-लप हो रही थी। उन्होंने थोड़ी देर जोर-जोर से चाटने के बाद दीदी की चूत को अपने दोनों होंठों के बीच भींच लिया और जोर-जोर से रस लेने लगी।

भाभी भी कम कन्या प्रेम में प्रवीण नहीं लग रही थी। जैसे कोई बनारसी लंगड़े आम की फांक मुँह लगा लगाकर चाटे चूसे, वो उसे उसी तरह चाट रही थी, जोर-जोर से चूस रही थी। उनके गोरे सलोने होली के रंग गुलाल से लिपटे गालों पे अब दीदी का चूत रस चमक रहा था। फिर उन्होंने आराम से अपनी दोनों उंगलियों से दीदी की चूत के दोनों फांक फैलाए और उसके बीच अपनी चूत, जैसे कोई मर्द लण्ड ठेलता है ठेल दिया। भाभी की ठुड्डी अब दीदी की चूत के बेस पे और लम्बी सुतवां नाक, दीदी की जोश में आई उभरी बौराई क्लिट पे बार-बार रगड़ खा रही थी।

भाभी की इस चुसाई और चटाई का नतीजा वही हुआ जो होना था। दीदी थोड़ी देर में बार-बार आँगन में, रंगों से लथपथ अपने भारी भारी चूतड़ पटक रही थी, मचल रही थी, उछाल रही थी। लेकिन मेरी भाभी भी मिश्राइयिन भाभी से कम नहीं थी की अगर जिस ननद पे उन्होंने घुड़सवारी कर ली उसे, मंजिल तक पहुँचा के ही छोड़ती थी, वो लाख अपने सवार को हटाने की, पटकने की कोशिश करे।

और हुआ वही। दीदी थोड़ी देर में ही जोर-जोर से झड़ने लगी। लेकिन भाभी रुकी नहीं चूत चूसती रही जुबान से उसे चोदती रही, कोई मर्द क्या चोदेगा जिस जोश से भाभी चोद रही थी और थोड़ी देर में दीदी फिर झड़ने लगी। इस तरह तीन-चार बार दीदी को झाड़ने के बाद भाभी ने अब सीधे उनकी क्लिट चूसनी शुरू की। दीदी चूत रस में लथपथ थी। वो बार-बार चूतड़ पटक रही थी लेकीन भाभी रुकने का नाम नहीं ले रही थी।
 
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मुट्ठी भर होली



उधर मिश्रायिन भाभी ने अपने तेल में डूबी कलाई में एक बार फिर नारियल का तेल लगाया और भाभी को हटाकर दीदी की जांघों के बीच आ गईं। दीदी की जांघें भाभी ने जोर से फैला रखी थी। अब दीदी की चूत, मिश्रायिन भाभी के कब्जे में थी और नारियल के तेल की बोतल मेरी भाभी के कब्जे में। पहले मिश्रायिन भाभी ने अपनी तेल में डूबी हथेली से दीदी की चूत रस में डूबी, बुरी तरह, पनियाई चूत को जोर-जोर से रगड़ा और सीधा असर दीदी पे पड़ा।

अब वो अपने काबू में नहीं थी, उनके चूतड़ फिर आँगन में रगड़ने लगे। थोड़ी देर की रगड़ा रगड़ी के बाद अब मिश्रायिन भाभी ने अपने दोनों हाथों के अंगूठों को दीदी की चूत में घुसेड़ कर पूरी ताकत से फैला दिया और अब मेरी भाभी मैदान में आ गई। उन्होंने तेल की बोतल सीधे दीदी की चूत में घुसेड़कर दीदी और मिश्रायिन भाभी की ओर देखकर मुश्कुराया।

और भाभी का ग्रीन सिगनल मिलते ही एक हाथ लगाकर दीदी के चूतड़ के नीचे लगाकर उन्होंने उचका दिया। और तेल की बोतल उलट दी। अब तेल सीधे दीदी की बुर में। आधा बोतल तेल तो वो पी ही गई होगी और इतने पे भी उन्होंने बस नहीं किया। फिर बोतल बाहर निकाल कर उनकी चूत की पुत्तियों पे क्लिट पे हर जगह तेल गिराया। और अब दीदी की चूत भी उसी तरह तेल में चुपड़ गई थी, जिस तरह मिश्रायिन भाभी का दायां हाथ।



मेरी समझ में अभी भी कुछ नहीं आ रहा था। गुड्डी की आँखें भी मेरी तरह नीचे चिपकी थी। लेकिन वो लगता है की कुछ-कुछ समझ रही थी, उसने मुझे छेड़ा-


“देखा। पहले तेरी दीदी की गीली हुई, खूब पनियाई और अब तेलियाई गईं फिर रगड़ी जाएंगी। उसके बाद देखना। तेरी सारी बहनों की ऐसी ही हालत होगी…”

गुड्डी की छेड़खानी से मैं वैसे तो निबट नहीं सकता था। बस, एक रास्ता था मेरे पास और वही किया मैंने। उसकी दोनों किशोर उभार पकड़कर सुपाड़े तक लण्ड निकालकर, एक झटके में पूरा आठ इंच अन्दर ठेल दिया। और वो जोर से चीखी। लेकिन नीचे आँगन में जो हंगामा चल रहा था होली का उसमें नक्कार खाने में इस तूती की आवाज किसे सुनाई देती।

और उधर एक बार में ही मिश्रायिन भाभी ने तीन उंगलियां हचाक से, एक झटके में दीदी की बुर में पेल दी, पूरे जड़ तक। मेरी भाभी अब पूरी ताकत से दीदी की दोनों जांघें फैलाएं हुयें थी। मेरी समझ में अभी भी कुछ नहीं आया। दीदी की चूत में तो मिश्रायिन भाभी ने तीन उंगलियां पहले भी डाली थी। जब वह अच्छी तरह पनिया गई थी। लेकिन पिक्चर अगले पल साफ हो गई। जब मिश्रायिन भाभी ने तीन के साथ चौथी उंगली भी लेकिन उन्हीं तीन उंगलियों के ऊपर रखकर डालकर, घुसेड़ दीदी और अब कुछ देर तक कभी उसे क्लाक वाइज घुमाती तो कभी एंटी क्लाक वाइज और धीरे-धीरे चारों उंगलियां दीदी की बुर के अन्दर समाती जा रही थी।

लेकिन दो-चार मिनट के बाद मिश्रायिन भाभी ने, अपना हाथ थोड़ा सा पीछे खींचा, और अब अंगूठा भी जैसे चूड़ी पहनाने वालियां, हाथ को मोड़कर सारी अंगुलियां समेट के, अंगूठे के साथ, खास तौर से कुँवारी लड़कियों की, मजाक करते चिढ़ाते, पहना देती है, बस मिश्रायिन भाभी का हाथ एकदम वैसा ही हो गया था। लेकिन उंगलियां तो घुस गई थी, आगे नहीं सरक पा रहा था।

मेरी भाभी अब बहुत ध्यान से कभी दीदी की बहुत फैली चूत पे धीरे-धीरे तेल चुआ रही थी तो कभी मिश्रायिन भाभी की अन्दर घुसती मुट्ठी पे। मैं सांस रोके बस वही देख रहा था, और गुड्डी भी। मंजू जो दीदी के मुँह को अपने मोटे मोटे चूतड़ों से सील किये हुए थी वो भी। यहाँ तक की आँगन और बरामदे में चल रही होली भी थोड़ी धीमी हो गईं थी।

कुँवारी कच्ची कली ऐसी ननदों को दबोचे भाभियों की आँखें भी आँगन की ओर बार-बार मुड़ रही थी। मिश्रायिन भाभी इन सबसे बेखबर, अपनी मुट्ठी धीमे-धीमे, हल्के-हल्के गोल-गोल घुमा रही थी जैसे कोई चूड़ी वाला ढक्कन हो और मेरी भाभी भी तेल की बूँद-बूँद चुआ रही थी। सूत-सूत मुठ्ठी अन्दर घुस रही थी। लेकिन थोड़ी देर बाद वो अटक गई। मुट्ठी के नकल्स, मुड़ी हुई उंगलियों की हड्डियों वाला जो हिस्सा होता है। बस वो।

मिश्रायिन भाभी लाख कोशिश कर रही थी लेकिन वो अन्दर नहीं जा रहा था। थोड़ी देर तक मिश्रायिन भी जूझती रहीं फिर वो रुक गईं और उन्होंने मंजू और मेरी भाभी की ओर देखा.


दोनों ने मुश्कुराकर सिर हिलाया।

मंजू ने थोड़ी सी अपनी कमर ऊपर उठायी, मुश्कुराकर मिश्रायिन भाभी को देखा। उधर इत्ती देर से दबे दीदी के गोरे गुलाबी गालों को थोड़ा आराम मिला। और उन्होंने हल्के से अपने होंठ खोले। मंजू की बुर अब दीदी के होंठों से कम से कम चार-पांच इंच ऊपर तो रही ही होगी। गहरी सांस ली और तभी मंजू ने अपनी कमर ऊँचे किये हुए ही अपने हाथ से दीदी के गाल कसकर दबा दिए।

दी कुछ समझें उसके पहले ही दीदी का मुँह एकदम चिड़िया की चोंच की तरह खुल गया था। पूरी तरह से। और मंजू की छर्र छररररर। सुनहरी पीली सुबह की धूप की तरह तेज धार। दो-चार बूँद पहले फिर धार।

फिर और छर्र छरररर। सुनहरी पीली शराब। अब तक मैंने गोल्डन शावर के बारे में पढ़ा था कुछ कहानियों में, एकाध वीडयो में भी जरा जरा सा लेकिन सामने देखने का मौका पहली बार मिला। दीदी ना सिर हिला पा रही थी क्योंकि मंजू की जांघों ने उन्हें फिर दबोच लिया था, ना मुँह बंद कर पा रही थी। क्यंकि अब मंजू ने उनकी नाक भी बंद कर दी थी और सांस वो मुँह से ही ले पा रही थी और बस एकाध पल के बाद फिर दुबारा मंजू ने दीदी का मुँह अपनी झांटों भरी बुर से सील कर दिया। और उसी के साथ ठीक उसी समय मेरी भाभी ने दीदी की क्लिट पे जोर से पिंच किया।

लेकिन दीदी बिचारी चीख भी नहीं सकती थी उनका मुँह तो मंजू की बुर ने सील कर रखा था।


और ठीक उसी समय। मिश्रायिन भाभी ने अपनी मुट्ठी थोड़ी सी आगे खींची, और फिर पूरी ताकत से उसे अन्दर पेल दिया। दर्द से दीदी बिलबिला रही थी लेकिन वो रुकी नहीं ठेलती रही धकेलती रही। गोल-गोल घुमाती रही और एक-दो मिनट के बाद जो वो तो नकल के साथ-साथ आधी से ज्यादा मुट्ठी घुस गई थी। चौड़ा वाला हिस्सा तो पूरा घुस गया था।
मिश्रायिन भाभी ने खुश होकर मंजू और मेरी भाभी को देखा। बस उन तीनों ने हाई फाइव नहीं किया, बस जैसे कोई लड़का खुश हो की बस किसी तरह पटी कच्ची कली की चूत में उसने सुपाड़ा घुसा दिया हो और अब सोच रहा हो की अब ये साल्ली लाख चूतड़ पटके लण्ड बाहर नहीं आने वाला बिना चोदे। बस उसी तरह।

और उधर मंजू बार-बार मुश्कुरा रही थी, दीदी के होंठे पे अपनी बुर रगड़ रही थी। भाभी दीदी की गोल-गोल ठोस चूचियां धीमे-धीमे बहुत प्यार से सहला रही थी।

जैसे सुहागरात में एक बार कुँवारी दुल्हन की सील जबरन तोड़ देने के बाद मर्द, उसे प्यार से पुचकारता है मनाता है बस उसी तरह। और मिश्रायिन भाभी इन सबसे बेखबर। गोल-गोल हल्के-हल्के अपनी मुट्ठी घुमा के अन्दर-बाहर कर रही थी और जब एक बार फिर उन्होंने प्रेस किया तो आलमोस्ट पूरी मुट्ठी अन्दर। और उसका असर मेरे और गुड्डी के उपर भी पड़ा।

मैं इतने जोश में आ गया की मैंने कसकर गुड्डी की किशोर चूचियां दबोच ली और पूरे जोर-जोर से हचक-हचक के चोदने लगा। इतना जोश उसे चोदने में मुझे कभी नहीं आया था। एकदम बेरहमी से कभी निपल नीच लेता तो कभी गुड्डी के गाल काट लेता।

डागी पोजीशन का फायदा उठाकर लण्ड आलमोस्ट बाहर निकालकर हचक के पूरा अन्दर पेल रहा था, चूतड़ों पे हल्के से चपत भी लगा रहा था, गाण्ड के छेद में भी उंगली कर रहा था। और गुड्डी तो ये फिस्टिंग देखकर मुझसे भी ज्यादा जोश में आ गई थी। मेरे धक्के के जवाब में मुझसे भी ज्यादा जोश से वो अपने चूतड़ मेरी ओर पुश करती और कसकर मेरा मोटा लण्ड भींच लेती अपनी कसी चूत से निचोड़ लेती। और उनके साथ गालियों की बौछार बिना रुके।

मेरे सारे मायके वालियों को-


“तेरी सारी बहनों की बुर का भोंसड़ा बनवाऊँगी। इसी तरह तेरी दीदी की बुर की जो हालत हो रही है ना। वो तो कुछ भी नहीं है जो तेरे माल कम बहन रंजी की होने वाली है। पहले तुझसे चुदवाऊँगी, फिर तेरी बाकी सारी चचेरी, मौसेरी, फुफेरी बहनों को भी। बहनचोद तो तू है ही देख मेरी मम्मी तुझे और क्या-क्या बनवाती है। तेरी सारी बहनों की फुद्दी उनकी गाण्ड, तेरे साल्लो से मरवाऊं…”


और जिस तरह से गुड्डी गालियां दे रही थी खास तौर से रंजी औ मेरी बहनों का नाम ले लेकर गालियां दे रही थी। बस मुझे लग रहा था की मैं रंजी को ही चोद रहा हूँ। उसके मोटे मोटे चूतड़ से मेरा लण्ड रगड़ रहा है। और मेरी चुदाई की रफ्तार दुनी हो गई जिस तरह से गुड्डी रंजी और मेरी कुँवारी कजिन्स का नाम ले लेकर गालियां दे रही थी, मुझे लग रहा था की जैसे मैं रंजी की ही कसी गाण्ड मार रहा हूँ या अपनी किसी कजिन की कुँवारी कच्ची चूत चोद रहा हूँ।
 
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***** ***** समोसेवाली



और जब मेरी निगाह एक बार फिर नीचे आँगन की ओर मुड़ी। तो मिश्रायिन भाभी की मुट्ठी पूरी कलाई तक दीदी की बुर में घुसी हुई थी। वो कभी गोल-गोल उनकी चूत में उसे घुमाती तो कभी नकल तक बाहर निकालकर धीमे-धीमे फिर अन्दर पेलती।



उधर मेरी भाभी ने भी पैंतरा बदल लिया था। उन्होंने दीदी के चूतड़ जरा सा उठाये फिर पहले एक, फिर दूसरी अंगुली भी दीदी के गाण्ड पे पेल दी। लेकिन दीदी की गाण्ड बहुत ही कसी थी मुश्किल से दो नकल तक अंगुली जा पाई।

“काहो ननद रानी, नंदोई जी तुम्हारा पीछे का बाजा नहीं बजाये। कहीं उ साल्ला, खुदे तो गान्डू नहीं है…” मेरी भाभी ने छेड़ा।

और जो हँसी का फव्वारा टूटा तो। उसमें सिर्फ भाभियां ही नहीं बल्की सारी ननदें, लड़कियां भी शामिल थी। तभी मंजू ने फिर एक बार कमर ऊपर उठायी, अपनी जांघों से दीदी के चेहरे को थोड़ा सा अलग किया। और मिश्रायिन भाभी की ओर देखा। मेरी भाभी और मिश्रायिन भाभी दोनों मंजू को देखकर एक साथ मुश्कुरायीं, और मेरी भाभी ने हल्के से आँख भी मारी।

मंजू प्यार से दीदी के गाल सहला रही थी, फिर उसने अचानक एक हाथ से दीदी के मुलायम कोमल गुलाबी गाल कसकर दबा दिए और दूसरे हाथ से दीदी की नाक भी पिंच कर दी। नतीजा वही हुआ।

दीदी का मुँह पूरी तरह खुल गया। मंजू की काली घने झांटों से भरी बुर चार-पांच इंच उपर रही होगी। और एक बार फिर मंजू की बुर से वही नशीली सुनहरी शराब छरर छर्र घल-घल। पहले एक-दो-चार बूंदें फिर अनवरत तेज धार, सीधे दीदी के होंठों के बीच।



और असर मेरे उपर हुआ मैंने और जोश में गुड्डी को चोदना शुरू कर दिया।

लेकिन ध्यान में मेरे कल शाम का दिन था। मैं बाहर दरवाजे से सुन रहा था और जब मेरी भाभी रंजी के सामने चन्दा भाभी से बनारस बात कर रही थी, स्पीकर फोन आन था, भाभी, चन्दा भाभी को बता रही थी की गुड्डी के साथ रंजी हफ्ते दस दिन के लिए बनारस जायेगी की रंजी की बनारस में क्या 'खातिर’ की जाय।


तो चंदा भाभी बोली-

“अरे आवे दा उह्ह… साल्ल्ली, छिनार रंडी के रोज भिनसारे निहारे मुँह, झांटों से छना, बुर का सुनहला नमकीन शरबत पिलाऊँगी ना उसको पेट भर। पानी की जगह खाली नमकीन शरबत, सुबह शाम। लौटेगी तो मस्त नमकीन हो जायेगी…”

“और तनी चटनी भी…” मेरी भाभी बोली।

“तनी भर क्यों? चन्दा भाभी बोली. "आखीरकार, हमारी भी तो ननद है दोनों टाइम बढ़िया सीधे चूतड़ से निकला गरम गरम बेसन का हलवा। हमारे पेट से उसके पेट में…”



रंजी खिलखिला रही थी। जब यहाँ खुले आँगन में, जहाँ मोहल्ले वाले हैं पड़ोस की लड़कियां है, वहां भाभी और मंजू ने मिलकर दीदी को 'सुनहरी शराब’ पिला ही दी। तो वहां बनारस में (जो अब मेरी भी ससुराल होगी) तो इससे सौ गुना ज्यादा रंजी के साथ और गुड्डी वैसे भी छोड़ने वाली नहीं। फिर तो वहां रीत भी होगी, गुंजा भी होगी। चंदा भाभी ने जो कुछ कहा था उससे ज्यादा ही होना था। और उस जोश में जो मैंने धक्का मारा और गुड्डी जोर से झड़ने लगी।

उसकी पूरी देह काँप रही थी। चूत मेरे लण्ड को निचोड़ रही थी। लेकिन बिना रुके मैं धक्के मारता रहा, चोदता रहा और मेरी निगाह फिर नीचे गई।



दीदी का मुँह, गाल पूरे फूले हुए थे। इसका मतलब की ‘वो’ अभी गले से नीचे नहीं उतरी थी। लेकिन मिश्रायिन भाभी भी। उन्होंने जोर से दीदी का एक निपल पिंच किया।

और बोली-


“हे ननद रानी ज्यादा छिनारपना मत करा। इ होली का परसाद हौ, घोंट ल प्यार से नहीं ता। जितना भौजाई हईं ना इहाँ कुल नंबर लगाहिये बारी-बारी से और फिर तोहरे चूत में हम अबहीये कमल खिलाय देब। हफ्ता भर टांग छितराय के चलबू…”

कमल खिलाने का मतलब बाद में मुझे मंजू ने समझाया। मिश्रायिन भाभी ने अभी दीदी की बुर में जो मुट्ठी डाली थी, तो उंगलियां सटी हुई थी, लेकिन कमल खिलाने का मतलब हुआ की चूत के एकदम अन्दर डालकर वो मुट्ठी खोल देंगी बल्की उंगलियों को धीरे-धीरे कमल के पत्तों की तरह फैला देंगी। यानी अन्दर चूत बुरी तरह फैल जायेगी।

दीदी के गाल धीमे-धीमे पिचकने लगे और अब उनके चारों ओर मेरी निगाह पड़ी तो सभी, लड़कियां भौजाइयां, और शायद जान के भौजाइयों ने जो कच्ची कलिया थी, कम उम्र की ननदें थी, उनको सब से आगे कर रखा था रिंग साइड सीट पे।

और शीला भाभी ने 'समोसेवाली' को अपने आगे दबोच कर खड़ी कर के रखा था।


उसको देखकर मेरा और तन्ना गया। दीदी के घर के बगल वाले घर में रहती थी। छोटी थी लेकिन। गुड्डी की मझली बहन के बराबर या दो-चार महीने छोटी ही रही होगी। टिकोरे उसके लेकिन गुड्डी की बहनसे थोड़े बड़े ही थे।



बगल में एक समोसे वाले की दुकान थी वहां वो भी आती थी शाम को समोसे लेने और उसकी अदा से उस समय भीड़ थोड़ी बढ़ जाती थी। लोग बोलते भी की ये समोसे लेने आती है या देने। एक-दो बहादुर पीछे से चूतड़ सहला भी देते या पिंच भी कर देते तो वो बुरा नहीं मानती।वो हलवाई भी उसे एक समोसा एक्स्ट्रा ही दे देता। एक दिन बारिश थी, वो “समोसेवाली…” एकदम भीग गई थी, दुकान भी खाली थी, पहुँची तो उसके 'समोसे' झलक रहे थे। हलवाई ने हिम्मत करके बोल दिया

हे सुन एक दिन तो तू अपने समोसे मुझे दे दे रोज ले जाती है मेरे।

उसने न ना बोली ना हाँ। लेकिन और उसके पास सरक के खड़ी हो गई और हलवाई ने हिम्मत करके देते हुए ना सिर्फ छू दिया बल्की उसके उभरते उभार कसकर मींज भी दिया और निपल हल्के से पिंच कर दिया। वो कुछ नहीं बोली लेकिन चलते चलते उसकी ओर मुड़कर मुश्कुराकर बोली-

“हे मेरे समोसे अच्छे हैं की तेरे…”

हलवाई हँसकर बोला- “तेरे…” तब से उसको कालोनी वाले समोसेवाली ही कहते।

और शीला भाभी के हाथ उसकी फ्राक के अन्दर थे, समोसे पे। फ्राक भी रंग की रगड़ाई में आधी फट गई थी।

दीदी की बुर में अब मिश्रायिन भाभी रगड़कर के खूब तेजी से फिस्टिंग कर रही थी। मंजू उनके मुँह पे अब अपनी गाण्ड रगड़ रही थी और मस्त गालियां दे रही थी-

“अरे छिनार गाण्ड चाट्टो, तेरे सारे खानदान को कुत्ते चोदें, गदहे चोदें…”



ये देखकर अब मैंने फिर जोर-जोर से गुड्डी को चोदना शुरू किया। गुड्डी दुबारा झड़ने लगी और उसकी चूत अब कसकर मेरे लण्ड को निचोड़ रही थी। अब साथ-साथ मैंने भी झड़ना शुरू कर दिया। मेरा लण्ड पूरी तरह अन्दर धंसा था सारी मलाई बुर के अन्दर। एक बार गिरना बंद हुआ की गुड्डी की बुर ने दुबारा निचोड़ना, भींचना शुरू किया और मैं दुबारा झड़ने लगा। मैंने अपनी बाँहों में गुड्डी को दबोच रखा था। कुछ देर के लिए तो हम आँगन से दुनियां से ही दूर हो गए थे।

बस मैं था गुड्डी थी। और जब मैंने नीचे देखा तो मंजू और मेरी भाभी दीदी से दूर खड़ी थी। मिश्रायिन भाभी भी दीदी की बुर से अपनी मुट्ठी निकाल रही थी।

दीदी जब खड़ी हुई तो मुझे लगा की वो खूब नाराज होंगी, लेकिन उन्होंने सबसे पहले उन्होंने मंजू को गले लगाया और बोली- “आज भौजी के साथ होली का मजा आया?”



और फिर वो मेरी भाभी और मिश्राईन भाभी के भी गले लगी। उनकी ब्रा और ब्लाउज़ तो ऊपर छत पे फेंक दिए गए थे। मंजू ने उनकी साड़ी आँगन से उठाकर दी। जो उन्होंने लपेट दी। लग रहा था जैसे इंटरवल हो गया हो। तभी मिश्रायिन भाभी को कुछ याद आया और उन्होंने पहले मंजू फिर शीला भाभी से पूछा। लेकिन किसी ने शायद छत की ओर इशारा किया। मैं समझ गया की भाभी को अब देवर की याद आ रही है। अब मेरी तलाश हो रही होगी। मैंने देखा की नीचे से दो-दो लड़कियां और दो नई भाभियां ऊपर आ रही थी।

हम और गुड्डी झट से खड़े हो गए। गनीमत थी की हम कपड़े पहने-पहने चुदाई कर रहे थे। गुड्डी ने बस अपनी थांग सीधी की, स्कर्ट नीचे की, ब्रा ठीक किया और टाप सेट किया और तैयार हो गई। मैंने भी बस जंगबहादुर को किसी तरह से ब्रीफ में समेटा, पैंट बंद की और रेडी। छत के एक कोने में मैं छिपा। एक कमरे की दीवाल के पीछे और दूसरी ओर गुड्डी छिपी। अलग अलग। लेकिन हम दोनों पकड़े गए। भाभियों ने मुझे दबोचा और लड़कियों ने गुड्डी को।


कुछ देर में हम दोनों नीचे थे। मिश्रायिन भाभी के दरबार में।
 
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उधर मिश्रायिन भाभी ने अपने तेल में डूबी कलाई में एक बार फिर नारियल का तेल लगाया और भाभी को हटाकर दीदी की जांघों के बीच आ गईं। दीदी की जांघें भाभी ने जोर से फैला रखी थी। अब दीदी की चूत, मिश्रायिन भाभी के कब्जे में थी और नारियल के तेल की बोतल मेरी भाभी के कब्जे में। पहले मिश्रायिन भाभी ने अपनी तेल में डूबी हथेली से दीदी की चूत रस में डूबी, बुरी तरह, पनियाई चूत को जोर-जोर से रगड़ा और सीधा असर दीदी पे पड़ा।

अब वो अपने काबू में नहीं थी, उनके चूतड़ फिर आँगन में रगड़ने लगे। थोड़ी देर की रगड़ा रगड़ी के बाद अब मिश्रायिन भाभी ने अपने दोनों हाथों के अंगूठों को दीदी की चूत में घुसेड़ कर पूरी ताकत से फैला दिया और अब मेरी भाभी मैदान में आ गई। उन्होंने तेल की बोतल सीधे दीदी की चूत में घुसेड़कर दीदी और मिश्रायिन भाभी की ओर देखकर मुश्कुराया।

और भाभी का ग्रीन सिगनल मिलते ही एक हाथ लगाकर दीदी के चूतड़ के नीचे लगाकर उन्होंने उचका दिया। और तेल की बोतल उलट दी। अब तेल सीधे दीदी की बुर में। आधा बोतल तेल तो वो पी ही गई होगी और इतने पे भी उन्होंने बस नहीं किया। फिर बोतल बाहर निकाल कर उनकी चूत की पुत्तियों पे क्लिट पे हर जगह तेल गिराया। और अब दीदी की चूत भी उसी तरह तेल में चुपड़ गई थी, जिस तरह मिश्रायिन भाभी का दायां हाथ।



मेरी समझ में अभी भी कुछ नहीं आ रहा था। गुड्डी की आँखें भी मेरी तरह नीचे चिपकी थी। लेकिन वो लगता है की कुछ-कुछ समझ रही थी, उसने मुझे छेड़ा-


“देखा। पहले तेरी दीदी की गीली हुई, खूब पनियाई और अब तेलियाई गईं फिर रगड़ी जाएंगी। उसके बाद देखना। तेरी सारी बहनों की ऐसी ही हालत होगी…”

गुड्डी की छेड़खानी से मैं वैसे तो निबट नहीं सकता था। बस, एक रास्ता था मेरे पास और वही किया मैंने। उसकी दोनों किशोर उभार पकड़कर सुपाड़े तक लण्ड निकालकर, एक झटके में पूरा आठ इंच अन्दर ठेल दिया। और वो जोर से चीखी। लेकिन नीचे आँगन में जो हंगामा चल रहा था होली का उसमें नक्कार खाने में इस तूती की आवाज किसे सुनाई देती।

और उधर एक बार में ही मिश्रायिन भाभी ने तीन उंगलियां हचाक से, एक झटके में दीदी की बुर में पेल दी, पूरे जड़ तक। मेरी भाभी अब पूरी ताकत से दीदी की दोनों जांघें फैलाएं हुयें थी। मेरी समझ में अभी भी कुछ नहीं आया। दीदी की चूत में तो मिश्रायिन भाभी ने तीन उंगलियां पहले भी डाली थी। जब वह अच्छी तरह पनिया गई थी। लेकिन पिक्चर अगले पल साफ हो गई। जब मिश्रायिन भाभी ने तीन के साथ चौथी उंगली भी लेकिन उन्हीं तीन उंगलियों के ऊपर रखकर डालकर, घुसेड़ दीदी और अब कुछ देर तक कभी उसे क्लाक वाइज घुमाती तो कभी एंटी क्लाक वाइज और धीरे-धीरे चारों उंगलियां दीदी की बुर के अन्दर समाती जा रही थी।

लेकिन दो-चार मिनट के बाद मिश्रायिन भाभी ने, अपना हाथ थोड़ा सा पीछे खींचा, और अब अंगूठा भी जैसे चूड़ी पहनाने वालियां, हाथ को मोड़कर सारी अंगुलियां समेट के, अंगूठे के साथ, खास तौर से कुँवारी लड़कियों की, मजाक करते चिढ़ाते, पहना देती है, बस मिश्रायिन भाभी का हाथ एकदम वैसा ही हो गया था। लेकिन उंगलियां तो घुस गई थी, आगे नहीं सरक पा रहा था।

मेरी भाभी अब बहुत ध्यान से कभी दीदी की बहुत फैली चूत पे धीरे-धीरे तेल चुआ रही थी तो कभी मिश्रायिन भाभी की अन्दर घुसती मुट्ठी पे। मैं सांस रोके बस वही देख रहा था, और गुड्डी भी। मंजू जो दीदी के मुँह को अपने मोटे मोटे चूतड़ों से सील किये हुए थी वो भी। यहाँ तक की आँगन और बरामदे में चल रही होली भी थोड़ी धीमी हो गईं थी।

कुँवारी कच्ची कली ऐसी ननदों को दबोचे भाभियों की आँखें भी आँगन की ओर बार-बार मुड़ रही थी। मिश्रायिन भाभी इन सबसे बेखबर, अपनी मुट्ठी धीमे-धीमे, हल्के-हल्के गोल-गोल घुमा रही थी जैसे कोई चूड़ी वाला ढक्कन हो और मेरी भाभी भी तेल की बूँद-बूँद चुआ रही थी। सूत-सूत मुठ्ठी अन्दर घुस रही थी। लेकिन थोड़ी देर बाद वो अटक गई। मुट्ठी के नकल्स, मुड़ी हुई उंगलियों की हड्डियों वाला जो हिस्सा होता है। बस वो।

मिश्रायिन भाभी लाख कोशिश कर रही थी लेकिन वो अन्दर नहीं जा रहा था। थोड़ी देर तक मिश्रायिन भी जूझती रहीं फिर वो रुक गईं और उन्होंने मंजू और मेरी भाभी की ओर देखा.


दोनों ने मुश्कुराकर सिर हिलाया।

मंजू ने थोड़ी सी अपनी कमर ऊपर उठायी, मुश्कुराकर मिश्रायिन भाभी को देखा। उधर इत्ती देर से दबे दीदी के गोरे गुलाबी गालों को थोड़ा आराम मिला। और उन्होंने हल्के से अपने होंठ खोले। मंजू की बुर अब दीदी के होंठों से कम से कम चार-पांच इंच ऊपर तो रही ही होगी। गहरी सांस ली और तभी मंजू ने अपनी कमर ऊँचे किये हुए ही अपने हाथ से दीदी के गाल कसकर दबा दिए।

दी कुछ समझें उसके पहले ही दीदी का मुँह एकदम चिड़िया की चोंच की तरह खुल गया था। पूरी तरह से। और मंजू की छर्र छररररर। सुनहरी पीली सुबह की धूप की तरह तेज धार। दो-चार बूँद पहले फिर धार।

फिर और छर्र छरररर। सुनहरी पीली शराब। अब तक मैंने गोल्डन शावर के बारे में पढ़ा था कुछ कहानियों में, एकाध वीडयो में भी जरा जरा सा लेकिन सामने देखने का मौका पहली बार मिला। दीदी ना सिर हिला पा रही थी क्योंकि मंजू की जांघों ने उन्हें फिर दबोच लिया था, ना मुँह बंद कर पा रही थी। क्यंकि अब मंजू ने उनकी नाक भी बंद कर दी थी और सांस वो मुँह से ही ले पा रही थी और बस एकाध पल के बाद फिर दुबारा मंजू ने दीदी का मुँह अपनी झांटों भरी बुर से सील कर दिया। और उसी के साथ ठीक उसी समय मेरी भाभी ने दीदी की क्लिट पे जोर से पिंच किया।

लेकिन दीदी बिचारी चीख भी नहीं सकती थी उनका मुँह तो मंजू की बुर ने सील कर रखा था।


और ठीक उसी समय। मिश्रायिन भाभी ने अपनी मुट्ठी थोड़ी सी आगे खींची, और फिर पूरी ताकत से उसे अन्दर पेल दिया। दर्द से दीदी बिलबिला रही थी लेकिन वो रुकी नहीं ठेलती रही धकेलती रही। गोल-गोल घुमाती रही और एक-दो मिनट के बाद जो वो तो नकल के साथ-साथ आधी से ज्यादा मुट्ठी घुस गई थी। चौड़ा वाला हिस्सा तो पूरा घुस गया था।
मिश्रायिन भाभी ने खुश होकर मंजू और मेरी भाभी को देखा। बस उन तीनों ने हाई फाइव नहीं किया, बस जैसे कोई लड़का खुश हो की बस किसी तरह पटी कच्ची कली की चूत में उसने सुपाड़ा घुसा दिया हो और अब सोच रहा हो की अब ये साल्ली लाख चूतड़ पटके लण्ड बाहर नहीं आने वाला बिना चोदे। बस उसी तरह।

और उधर मंजू बार-बार मुश्कुरा रही थी, दीदी के होंठे पे अपनी बुर रगड़ रही थी। भाभी दीदी की गोल-गोल ठोस चूचियां धीमे-धीमे बहुत प्यार से सहला रही थी।

जैसे सुहागरात में एक बार कुँवारी दुल्हन की सील जबरन तोड़ देने के बाद मर्द, उसे प्यार से पुचकारता है मनाता है बस उसी तरह। और मिश्रायिन भाभी इन सबसे बेखबर। गोल-गोल हल्के-हल्के अपनी मुट्ठी घुमा के अन्दर-बाहर कर रही थी और जब एक बार फिर उन्होंने प्रेस किया तो आलमोस्ट पूरी मुट्ठी अन्दर। और उसका असर मेरे और गुड्डी के उपर भी पड़ा।

मैं इतने जोश में आ गया की मैंने कसकर गुड्डी की किशोर चूचियां दबोच ली और पूरे जोर-जोर से हचक-हचक के चोदने लगा। इतना जोश उसे चोदने में मुझे कभी नहीं आया था। एकदम बेरहमी से कभी निपल नीच लेता तो कभी गुड्डी के गाल काट लेता।

डागी पोजीशन का फायदा उठाकर लण्ड आलमोस्ट बाहर निकालकर हचक के पूरा अन्दर पेल रहा था, चूतड़ों पे हल्के से चपत भी लगा रहा था, गाण्ड के छेद में भी उंगली कर रहा था। और गुड्डी तो ये फिस्टिंग देखकर मुझसे भी ज्यादा जोश में आ गई थी। मेरे धक्के के जवाब में मुझसे भी ज्यादा जोश से वो अपने चूतड़ मेरी ओर पुश करती और कसकर मेरा मोटा लण्ड भींच लेती अपनी कसी चूत से निचोड़ लेती। और उनके साथ गालियों की बौछार बिना रुके।

मेरे सारे मायके वालियों को-


“तेरी सारी बहनों की बुर का भोंसड़ा बनवाऊँगी। इसी तरह तेरी दीदी की बुर की जो हालत हो रही है ना। वो तो कुछ भी नहीं है जो तेरे माल कम बहन रंजी की होने वाली है। पहले तुझसे चुदवाऊँगी, फिर तेरी बाकी सारी चचेरी, मौसेरी, फुफेरी बहनों को भी। बहनचोद तो तू है ही देख मेरी मम्मी तुझे और क्या-क्या बनवाती है। तेरी सारी बहनों की फुद्दी उनकी गाण्ड, तेरे साल्लो से मरवाऊं…”


और जिस तरह से गुड्डी गालियां दे रही थी खास तौर से रंजी औ मेरी बहनों का नाम ले लेकर गालियां दे रही थी। बस मुझे लग रहा था की मैं रंजी को ही चोद रहा हूँ। उसके मोटे मोटे चूतड़ से मेरा लण्ड रगड़ रहा है। और मेरी चुदाई की रफ्तार दुनी हो गई जिस तरह से गुड्डी रंजी और मेरी कुँवारी कजिन्स का नाम ले लेकर गालियां दे रही थी, मुझे लग रहा था की जैसे मैं रंजी की ही कसी गाण्ड मार रहा हूँ या अपनी किसी कजिन की कुँवारी कच्ची चूत चोद रहा हूँ।
🔥🔥 garam , wapas se mast kar diya aapne 💦😍😍
 
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