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Erotica रंग -प्रसंग,कोमल के संग

komaalrani

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भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी

Phagun ke din chaar update posted

please read, like, enjoy and comment






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तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी
 

komaalrani

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सेफ हाउस

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उनका अंदाज था की एक्सटर्नल सिक्योरटी पैरामीटर 250 मीटर पर सेट किया गया होगा, इसलिए उसके 10-15 मीटर पहले ही वो रुक गए।

सेफ हाउस। हाथी को कहाँ छुपा सकते हैं? हाथियों के बीच। ये एक बड़ा पुराना सवाल जवाब है। लेकिन अगर उस हाथी के साथ आप दो-चार एक्स्ट्रा महावत रखें, उसका हौदा बुलेट प्रूफ बना दें। तो क्या वो हाथी बाकी हाथियों में छिप सकेगा? बिलकुल यही समस्या सेफ हाउस की होती है। उसकी सबसे बड़ी सिक्योरिटी है, इंटेलिजेंस। उसके बारे में किसी को पता न चले। और दूसरी है आसपास के माहौल में वो खप जाय। उसके साथ वो चीज भी जुड़ी है जो सारे सिक्योरिटी आपरेटस के साथ जुड़ी है, सिक्योरटी का लेवल, थ्रेट परसेप्शन के हिसाब से होता है। अगर थ्रेट परसेप्शन कम हो गया है तो सिक्योरिटी का लेवल कम जाएगा।

और दूसरी बात मौके की है, अगर बहुत पहले से मालूम है की ऐसा कुछ इंतजाम करना है, जैसे किसी टेररिस्ट को पकड़कर इंट्रोगेट करना है और उसे छुड़ाने वाले ग्रुप के हमले की आशंका है तो पहले से ही तैयारी की जा सकती है। लेकिन अगर कोई मेहमान अचानक आ जाए तो फिर दाल में पानी बढ़ाने के अलावा कोई चारा नहीं बचता।


इस हालत में भी यही हुआ।



जब करन, रीत चले थे बड़ोदरा से, तो किसी को नहीं मालूम था की ऐसी कोई जरूरत पड़ेगी। हाँ, जब रास्ते में कालिया के स्ट्राइक की बात पता चली तो ये तय हुआ


उस समय वो लोग नेवल सिक्योरिटी के अधीन थे। उनके साथ भी मुम्बई के सफल आपरेशन के बाद, सिक्योरिटी थ्रेट लेवल कम कर दिया गया था क्योंकी काफी सारे लोग पकड़े जा चुके थे।

दूसरी बात ये भी थी एजेंट्स का सारा पकड़ने, समेटने और उन्हें इंट्रोगेट करने के चक्कर में आई॰बी॰ भी पूरी तरह ओवर स्ट्रेच्ड थी। तब भी एक डिप्टी डायरेकटर लेवल के आफिसर ने सारा सिक्योरटी डिटेल रिव्यू किया था और कुछ चीजों में उन्हें फर्दर स्ट्रेंथन भी किया। सेफ हाउस में चार-पांच चीजें इम्पार्टेंट होती हैं, जैसे लोकेशन, इलेक्ट्रानिक सरविलेन्स, ट्रेंड सिक्योरिटी पर्सोनल, रिजक्यू रिस्पांस टीम और कमांड कंट्रोल सेंटर और वहां से कम्युनिकेशन।

लेकिन सबसे इम्पोर्टेंट है लोकशन।

सेफ हाउस की सबसे बड़ी मजबूरी है वहां खुलकर सिक्योरिटी ज्यादा डिप्लॉय नहीं की जा सकती, वरना ये तो बोर्ड लगाना हो जाएगा की हमारा एक इम्पोरटेंट असेट यहाँ है। इसलिए लोकेशन की इम्पोरटेंस बढ़ जाती है। और सिक्योरिटी एजेंसीज हमेशा उलटा सोचते हैं, इसलिए पहले ये देखा जाता है की हमला किधर से होगा। अगर हमला एक साथ तीन-चार दिशाओं से हो सकता हो तो उसे तुरंत खारिज कर दिया जाता है। और सबसे अच्छी लोकेशन वो होती है जिससे आने जाने का रास्ता सिर्फ एक ओर हो और उसे ट्रैक करना और सील करना ज्यादा आसान होता है।

इस मामले में ये लोकेशन बेहतर थी इसके पीछे की ओर समुद्र था और सामने से सिर्फ एक आने जाने की सड़क थी, और उसी से खतरे के आने की आशंका थी और उसे ट्रैक करना सुगम भी था।

ये नहीं था की समुद्र के रास्ते का असेसमेंट नहीं हुआ था। नेवल सिक्योरटी और कोस्ट-गार्ड दोनों ने उसका थ्रेट असेसमेंट किया था और उसे लो-थ्रेट बताया था। इसके पहले 26-11 को हुए हमले में ‘वो’ फिशिंग बोट से मुम्बई में मच्छीमार नगर में रात में आये थे जहाँ सैकड़ों मछली मारने की नावें रात में आती हैं। फिर उन्होंने एक अपहृत हिन्दुस्तानी नाव इश्तेमाल की थी। इसलिए उन नावों के बीच उनकी नाव भी आ गई थी।

और इस जगह कोई मछली मारने की नावों की जेटी आसपास पचास साठ किलोमीटर तक नहीं थी। बीस किलोमीटर दूर एक फर्टिलाइजर जेटी थी (जहाँ नेवल शिप से रीत और करन आये थे) और दूसरी ओर एक नया बन रहा पोर्ट था। दोनों को तीन दिन के लिए बंद कर दिया गया था। और वहां वैसे भी बड़े कार्गो शिप ही आते थे। समुद्र का तट राकी था और दिन में 16-18 घंटे समुद्र चापी रहता था। और किनारे पर गहराई चार-पाँच फिट ही थी करीब 600 मीटर तक। इसलिए वहां लैंडिंग की सम्भावनायें नगण्य थी। फिर भी तट से करीब 8-10 किलोमीटर दूर, कोस्टगार्ड की बोट्स नजर बनाये हुए थी। (चापी समुद्र, राक्स और कम गहराई के कारण उन्हें भी दूर से ही नजर रखना था)।




सड़क की ओर एक कमांड पोस्ट बना दी गई थी और आधी सड़क को रिपेअर के नाम पे बंद कर दिया गया था, जिसे कोई बड़ी वेहिकल जैसे ट्रक आदि एक्सप्लोसिव के साथ न आ सके। वहां से सेफ हाउस के बीच कम्युनिकेशन लाइन भी बना दी गई।
 
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सिक्योरिटी अरेंजमेंट




सड़क की ओर एक कमांड पोस्ट बना दी गई थी और आधी सड़क को रिपेअर के नाम पे बंद कर दिया गया था, जिसे कोई बड़ी वेहिकल जैसे ट्रक आदि एक्सप्लोसिव के साथ न आ सके। वहां से सेफ हाउस के बीच कम्युनिकेशन लाइन भी बना दी गई। सिक्योरिटी अरेंजमेंट। उस रेस्टहाउस के चारों ओर फेंसिंग पहले से थी, उसे और स्ट्रांग कर दिया गया था और सरविलेन्स कैमरे भी फिट कर दिए गए थे। जब करन और रीत आये तो उसे एलेक्ट्रिफाई भी कर दिया गया।

घर के अंदर ही एक कंट्रोल रूम भी बना दिया गया था, एक बाहरी कमरे में जहाँ सारे कैमरे की फीड्स आती थी। सरविलेन्स कैमरे 110° डिग्री तक रोटेट कर सकते थे, और कम रोशनी में भी काम कर सकते थे। इसके साथ ही वो और इलेक्ट्रिफाइड फेन्स, एक आक्सिलरी सोर्स आफ पावर से भी जुड़े थे, जिससे अगर मुख्य पावर सोर्स किसी तरह डिस्कनेक्ट हो जाय तो भी वो आधे घंटे तक काम कर सकते थे।

कैमरे एक प्रोटेक्टिव डिवाइस से कवर थे, जिससे तेज हवा, बर्ड हिट आदि से वो डैमेज न हों। वो सारे कैमरे आई॰पी॰ बेस्ड थे यानी उनकी फीड इंटरनेट के जरिये कंट्रोल रूम तक पहुँचती थी। कंट्रोल रूम में 14 विंडो कंट्रोल मानिटर पर लगी थी, जिससे सारे कैमरे अलग-अलग देखे जा सकते थे। इसके साथ-साथ वहां से कैमरे का रोटेशन, जूम, एंगल इत्यादि कंट्रोल किया जाता था। वहां पर 3 दिन की रिकार्डिंग हार्ड ड्राइव पे रखी जा सकती थी और 4 घंटे की रिकार्डिंग सर्वर में भी रहती थी, जिसे रिवाइंड करके किसी भी एरिया को देखा जा सकता था।

इस कंट्रोल रूम से बाहरी सड़क के पास जहाँ ‘सड़क बन रही है’ के नाम पर आधी सड़क बंद करके सेफ हाउस की एंट्री कंटोल की जाती थी, वहां से भी था। एक बुलडोजर पर वहां एक स्पेशल फोर्स का आदमी था, जो ‘फुल्ली इक्विप्ड’ था और पास में रखी मोटर साइकिल से 7 मिनट में किसी इमरजंसी में ‘सेफ हाउस’ में पहुँच सकता था।

वो आदमी वहां से 4 किलोमीटर दूर एक पुलिस पोस्ट को किसी इमरजंसी में मेसज दे सकता था। वहाँ आई॰बी॰ का एक आफिसर बैठा था, जो स्टेट गवर्नमेंट से लियाजन कर रहा था। एक स्पेशल टास्क फोर्स आन काल थी और 14 मिनट में उस पुलिस पोस्ट तक पहुँच सकती थी। उसी तरह एम्बुलेंस, फायर ब्रिगेड की यूनिट भी अलर्ट पर थी। लेकिन न तो टास्क फोर्स को न एम्बुलेंस या फायर ब्रिगेड को इससे अधिक कुछ मालूम था की एक रिहर्सल होने वाली है।

कंट्रोल रूम में दो लोग थे और रोड सिक्योर किये आदमी को जोड़ के कुल तीन लोग सेफ हाउस के प्रोटेक्शन में थे जो नार्म्स के अनुसार सही थे। लेकिन उन तीनों को भी रीत और करन के बारे में कुछ नहीं मालूम था, हाँ मीनल से वो जरूर मिले थे। ये तीनों पूरी तरह आर्म्ड थे।

कंट्रोल रूम में बैठे दो लोगों में एक लगातार कैमरे की मानिटरिंग करता और दूसरा हर आधे घंटे में निकलकर एक्सटर्नल पेरीमीटर का 15 मिनट में धीमे-धीमे चक्कर काटता। दोनों अपने-अपने काम बदल के करते। हर दो घंटे की डूयटी के बाद आधे घंटे के लिए रिलेक्स भी करना होता था जिससे अलर्टनेस पीक पर रहे।

करन ने आने के बाद सिर्फ एक चेंज किया की कंट्रोल रूम में आ रही फीड के साथ-साथ कंट्रोल रूम में भी एक कैमरा लगाकर ये सारी फीड उन लोगों के कमरे में लगे 40 इंच के दीवार पर लगे टीवी पे कनेक्ट करवा ली, जिससे अब उस टीवी पे, टीवी के प्रोग्राम, रंगबिरंगी फिल्मों के साथ-साथ वो रिमोट से चैनेल बदलकर कंट्रोल रूम में लगे कैमरे से कंट्रोल रूम और वहां आ रही फीड को जब चाहें तब देख सकें।

दूसरी बात उसने ये की, की आई॰बी॰ आपरेटिव के साथ एक हाट लाइन कनेक्टिविटी इस्टैब्लिश की, जहाँ बस बटन दबाते ही उसे मालूम हो जाए की खतरा है। करन को मालूम था की एक तो दुश्मन अभी इस हालात में नहीं है की कुछ करे, और अगर कुछ हुआ तो वो उस ताकत के साथ होगा की अल्टीमेटली उसको और रीत को ही उनसे निबटना होगा।
 
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रीत


मिलन के बाद की नींद बहुत गाढ़ी होती है, और ऊपर से जब इत्ती लम्बी जंग खत्म हुई हो, उसका टेंशन दूर हुआ हो, इतने दिन बाद साजन से भेंट हुई हो। गाढ़ी नींद में थे, बस नींद में कुछ उल्टी पुल्टी हुई और अब रीत और करन, ।अगल-बगल

इतने दिनों तक दुर्दांत परस्थितियों से लड़ने के कारण, या काशी के कोतवाल और दसों महाविद्याओं के आशीर्वाद के कारण, उसकी योग की दीक्षा के कारण या पता नहीं क्यों, रीत की छठी इन्द्रिय कुछ ज्यादा जागृत थी। कोई भी खतरा आनेवाला हो उसे 10-12 मिनट पहले ही अंदाजा लग जाता था और इसके कारण, कितनी बार वो दुश्मनों के खतरनाक से खतरनाक वार बचा ले जाती थी।जहाँ किसी को कुछ भी हवा नहीं रहती थी वो खतरे को सूंघ लेती थी और भले ही उसकी सारी इन्द्रियां सुषुप्तावस्था में हो, उसके दिमाग में खतरे की घंटी बज जाती थी और पल भर में न वो सिर्फ चैतन्य हो जाती थी बल्की, आनेवाले संकट से लड़ने उसे पराजित करने को, अपने आप उसकी दैहिक शक्तियां, मेधा सब कुछ 100 गुना ऊर्जा के साथ जागृत हो जाती थी।

और यही हुआ।



रीत की आँख खुली। सब कुछ वैसा का वैसा था। कमरे में अँधेरा था, खिड़की का पर्दा हल्का सा खुला था जिससे पास की समुद्र की हल्की-हल्की लहरें दिख रही थी। दरवाजा खिड़की सब बंद थी, कोई भी आवाज नहीं आ रही थी। उसके कान एकदम जग चुके थे और अगर कोई चूहा भी चलता तो उसे सुनाई देता। लेकिन चारों ओर चुप्पी थी।

उसकी खुली आँखें अब अँधेरे की अभ्यस्त हो गई थी और बिना सिर हिलाये अपने पेरीफेरल विजन से उसने देख लिया था, कहीं कुछ भी गड़बड़ नहीं था। फिर भी उसके दिमाग में घंटी जोर-जोर से बज रही थी। बिना हिले चुपचाप उसने बगल में लेटे करन का हाथ दबाया, अब तक उन दोनों की फिजिक्स केमिस्ट्री सब परफेक्ट हो चुकी थी और बिना कहे, बिना इशारे के दोनों एक दूसरे की मन की बात समझलेते थे । उसने बगल में रखा रिमोट दबा दिया, जो पहले से ही म्यूट मोड में था।

कंट्रोल रूम की फीड आनी शुरू हो गई। पहले तो उसे स्लो रिवाइंड किया, फिर फास्ट रिवाइंड। तीन-चार मिनट पीछे तक। दोनों बिना हिले दम साधे देखते रहे



‘गड़बड़’ एक फुसफुसाया । ‘महा गड़बड़’ रीत उससे भी धीमे से बोली और हाथ जोर से दबा दिया। कंट्रोल रूम की फीड में एक आपरेटर मानिटर से देख रहा था और दूसरा टेलिस्कोप से खिड़की से बाहर देख रहा था। लेकिन तीन मिनट की रिवाइंड में दोनों के पोस्चर में कोई चेंज नहीं था, और न ही कोई हरकत। इसका मतलब साफ था की कंट्रोल रूम पर दुश्मन का कब्ज़ा हो चुका था। और उसने वहां की फीड को लूप पे लगा दिया था।

इसलिए यहाँ से देखने पे, बजाय कंट्रोल रूम दिखने के, वहां की कुछ देर पहले की रिकार्डेड सीन ही बार-बार दिखती। और यही हालत बाहर से आने वाले फीड की होती।



रीतने टीवी बंद कर दिया।



रीत खुद, पलंग के किनारे से सरक कर नीचे उतर गई और जमीन से एकदम सटकर रेंगते हुए दीवाल से लगे हुए कबर्ड के पास पहुँची। उंगली मोड़कर उसने अपना असेसमेंट को बता दिया था, चार-पाँच मिनट के बीच में हमला होगा, और उन्हें निःशब्द, हमले के लिए तैयार रहना होगा। कंट्रोल रूम कम्प्रोमाइज होने के बाद बाहर से किसी हेल्प की इतनी कम समय में आने की उम्मीद करना बेकार होगा। उन्हें खुद न्यूट्रलाइज करना होगा।

डेढ़ मिनट में रीत न सिर्फ कबर्ड के अंदर थी, बल्की एक बार पूरी तरह ‘ड्रेस्ड’ थी। रीत ने अपने शस्त्रों से अपने को पूरी तरह लैस करना शुरू कर दिया। उसके सबसे बड़े शस्त्र थे, उसकी तत्परमती, धैर्य और उसकी देह। कबर्ड के अंदर घुसकर उसने सारे टंगे कपड़े अपने आगे कर लिए, जिससे अब वह पूरी तरह ढकी छुपी थी, सिर्फ एक छोटी सी झिर्री थी और कबर्ड के दरवाजे भी उसने आलमोस्ट चिपका के रखे थे और वहां भी उसने सिर्फ एक हल्की सी झिर्री छोड़ रखी थी।

इतना काफी था उसके लिए बाहर की खबर रखने के लिए। आँखें उसने बंद कर ली, और अब देखने के लिए कान थे उसके पास। हल्की सी आहट, हवा की सरसराहट, भी उसे सूचना दे देती आने वाले खतरे की। जोर से उसने सांसें भींची और फिर अंदर की सारी हवा बाहर और साथ में सारा तनाव, दुश्मन के बारे में सोच, सब कुछ बाहर।

एक बार उसने फिर आँख बंद की, गहरी सांस ली काशी के कोतवाल के साथ सारी महाविद्याओं को याद किया, और धीमे-धीमे। अब वह रीत नहीं रही। उसका पूरा शरीर एक अमोघ अस्त्र बन चुका था जिसका संधान किया जा चुका था और अब सिर्फ छोड़ने की देर थी।



और इन तीन मिनटों में करन भी पूरी तरह अलर्ट हो चुका था। वह भी अपने अस्त्रों से लैस था और बिस्तर से उतरकर पलंग के नीचे छिपा था।

बिस्तर से उतरने के पहले तकिये और कुशन उन्होंने इस तरह से लगा दिए थे की कोई पास से भी देखता तो उसे यही लगता की लोग रजाई के अंदर सो रहे हैं। यही नहीं उस बड़ी रजाई को उन्होंने इस तरह नीचे भी खींच दिया था की, खिड़की की ओर वह करीब फर्श छू रही थी और बिना उसके हटाये, पलंग के नीचे झांकना भी मुश्किल था। उन्हें आशंका यही थी की हमलावर खिड़की की ओर से ही घुसेंगे और उसके बाद की स्क्रिप्ट उनके घुसने के बाद ही तय होनी थी।

रीत कबर्ड के अंदर। करन पलंग के नीचे। और बाहर से जो भी अंदर घुसेगा उसे यही लगेगा की वो सारे रजाई के अंदर गहरी नींद सो रहे हैं। कुछ देर इन्तजार में गुजरा। वो दो-चार मिनट घण्टों ऐसे लगे।

रीत को लग रहा था की कंट्रोल को न्यूट्रलाइज करने के बाद हमले में 6-7 मिनट का समय लग सकता है। उन्हें ये मालूम था की ये लोग कहीं बाहर नहीं जा सकते। इसलिए उनकी पहली प्राथमिकता होगी, सेफ हाउस चेक करना की वहां कोई और सपोर्ट स्टाफ या सिक्योरिटी स्टाफ तो नहीं है, और अगर है तो उसे सिक्योर करना। उन लोगों के बेडरूम और कंट्रोल के अलावा, किचेन समेत तीन कमरे और थे।

इन कमरों के बाद, वह बाहर से आनेवाले किसी खतरे के लिए भी प्रोटेक्शन करते, और सारे कम्युनिकेशन डिस्ट्राय करते। इन सारे कामों में 6-7 मिनट का समय लगना था और रीत और करन के पास यही समय था, काउंटर अटैक के लिए तैयार होने का और डिफेंस सोचने का। उसमें से चार-पाँच मिनट निकल गए थे और अब किसी भी पल दुश्मन अंदर घुस सकता था।

रीत की आशंका एकदम सही थी।
 
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हमलावर

दोनों रेंग करके बाहरी चारदीवारी तक पहुँच गए, और नाइट विजन ग्लासेज की सहायता से दूर से ही उन्होंने इलेक्ट्रिफाइड फेंस और कैमरे देख लिए थे। उनके लिए उस फेन्स को काटना इंसुलेटेड वायर कटर से ज्यादा आसान था, लेकिन करेंट डिसकनेकट होते ही सर्किट ट्रिप होती और अलार्म बज जाता, दूसरे किस जोन में सर्किट ट्रिप हुई थी ये पता चलते ही उनकी लोकेशन भी पता चल जाती।

कैमरे चारों तरफ घूम रहे थे और उन्होंने ये भांप लिया था की दो मिनट का एक गैप आता है, जब करीब चार फिट फेन्स कैमरे की जद में नहीं आती। बस उसी दो मिनट का इश्तेमाल करके, उन्होंने तार का एक लूप जेब से निकाला और इलेकट्रिफाइड फेंस में लगा दिया। और पीछे क्राल कर गए।

अब अगले दो मिनट के गैप में उन्होंने उस लूप के बीच वायर काट दिया। लूप के कारण, इलेक्ट्रिल सर्किट ब्रेक नहीं हुई और एकदम जमींन से सटकर घिसटते हुये अंदर घुस गए।

एक के अंदर घुसने तक दूसरा बाहर इन्तजार करता रहा और जब कोई अलार्म नहीं बजा तो अगले गैप में दूसरा भी अंदर था। इलेक्ट्रिफाइड फेंस और कैमरे ने ये स्पष्ट कर दिया था की वो टारगेट पर हैं। एक ने दायें ओर से दूसरे ने बायें से घर का चक्कर काटना शुरू कर दिया। अब उन्हें मालूम था की अगर कैमरे होंगे भी तो दरवाजे के ऊपर या रास्ते पे।

एक खिड़की थी जिसका पर्दा हल्का सा हटा था। उसके शीशे पे सक्सन माइक लगाकर कुछ देर उसने सुना, हल्के-हल्के खर्राटे की आवाज आ रही थी। ये साफ था की करन, रीत यहीं सो रहे होंगे। सक्शन कप चिकने से चिकने सर्फेस पर चिपक जाता था और अंदर की बातचीत को न सिर्फ सुनता था बल्की वायरलेश माइक के जरिये डिस्पैच भी करता था। मुश्किल से दो पल रुकने के बाद वो वहां से आगे के लिए चल दिया, क्योंकी अब इस कमरे की बातचीत उसके कान में लगे बड़े माइक में उसे सुनाई पड़ती।

यह बात जरूर थी की पर्दों के चलते आवाज काफी हल्की आती लेकिन इतना भी उसके लिए काफी था। अब वह खड़ा हो गया था और उसकी पीठ दीवाल से एकदम सटी थी। अगर छत पर कोई कैमरा लगा होता तो भी दीवाल से सटे होने के कारण वो उसकी पहुँचकर बाहर होता।

दूसरे अगर मकान से बाहर निकलकर कोई चक्कर लगाकर भी देख रहा होता तो उसके कैमोफ्लाज और दीवाल से चिपके होने के कारण, उसे दिखाई देना मुश्किल था। दो और खिड़कियां थी, लेकिन उनसे न कोई आवाज आ रही थी न लाइट और पर्दे भी उनके पूरे बंद थे। उसे पक्का विश्वास था की टारगेट वहीं थे जहाँ उसने खिड़की पे माइक लगाया था।

जब तक वो घर के सामने पहुँचा, वहां उसका साथी झुका बैठा था, और ऊपर की खिड़की से हल्की रोशनी भी आ रही थी और आवाजें भी। सक्शन माइक उसकी खिड़की पर लग चुका था, और उसके साथी ने उसे कान में लगाने का इशारा किया। फीड हल्की थी लेकिन साफ थी।

“अरे यार चलो अब बस तीन साढ़े तीन घंटे बचे हैं, फिर ये रतजगा बंद। वो अपने रास्ते, हम अपने…”

“कहाँ जाएंगे?” ये दूसरी आवाज थी।

“क्या मालूम? और मुझे पता करने की जरूरत भी नहीं, तुम्हें आधे घंटे हो गए जाकर एक चक्कर लगाकर आ जाओ…”

“अरे यार यहाँ कौन आएगा, आधे घंटे पहले तो गया था…”

तब तक फोन की घण्टी बजी और स्पीकर फोन के बटन के दबाने की हल्की आवाज आई।

“आल ओके…” फोन से आवाज आई।

“हाँ…”



“और एक्सटर्नल पेरीमीटर…”



अबकी दूसरा बोला- “हाँ आधे घंटे पहले लौटा हूँ, सब ठीक है, बस जा रहा हूँ…”



“ओके, आधे घंटे में दुबारा फोन करूँगा, इन का एक्सट्रैक्शन हो सकता है थोड़े पहले हो जाए पौने छ तक मैं पन्दरह मिनट पहले कन्फर्म करूँगा…” और इसके बाद फोन कटने की आवाज आई।



इन दोनों को काम की सारी बातें मिल गई थी। आधे घंटे में इनका कंट्रोलर चेक करता है, और अभी चेक किया है। इसका मतलब आधे घंटे में दुबारा फोन करेगा। और जवाब न मिलने पर वो दुबारा चार-पाँच मिनट चेक करके हो सकता है आये, यानी करीब 8-10 मिनट और।



इसका मतलब उनके पास 30-35 मिनट की क्लियर विंडो है। और अंदर दो लोग हैं, एक आधे घंटे बाद बाहर निकलकर चेक करता है और दूसरा कैमरे के जरिये नजर रखे है। दोनों ही ट्रेंड कमांडो होंगे।




तब तक अंदर से फिर आवाज आई- “अच्छा, अब तुम चलो…” और दरवाजा खुलने की आवाज आई। दोनों अलर्ट हो गए।
 
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कंट्रोल रूम न्यूट्रलाइज्ड

एक आदमी अंदर से निकलकर जैसे ही मुड़ा, वो दोनों तैयार थे। पीछे से अँधेरे से निकलकर एक ने उसे पीछे से दबोचा और सीधे हाथ मुँह पे जिससे कोई चीख न निकल पाये। साथ में क्लोरोफार्म में डूबा पैक नाक पे। उन्हें इंस्ट्रक्शन साफ थे की आखिरी टारगेट तक फायर आर्म का इश्तेमाल नहीं करना है, और सिक्योरिटी फोर्सेज को सिर्फ न्यूट्रलाइज करना है, बिना कोई आवाज किये।

उनका सबसे बड़ा वेपन सरप्राइज था। क्लोरोफार्म के साथ एक चाप उसकी गर्दन पे भी पड़ा और वो बेहोश होकर नीचे, लेकिन रोकते हुए, गिरते-गिरते आवाज हल्की सी हो ही गई।

और अंदर कंट्रोल रूम से आवाज आई- “क्या हुआ?”

दरवाजा दुबारा खुला, लेकिन अबकी पहला हमलावर तैयार था और दरवाजा खुलते ही दो स्मोक बाम्ब उसने कंट्रोल रूम के अंदर फेंके और जब तक कंट्रोल रूम का आपरेटिव कुछ समझता, टेजर गन के दो डाट उसके अंदर पैबस्त थे और वो आलमोस्ट बेहोश था।

क्लोरोफार्म का पैच उसके मुँह पर भी लगा, और उसके बाद उसे गैग करके प्लास्टिकफ से उसके हाथ पीछे करके बाँध दिए और पैर भी। यही नहीं एक काले कपड़े की पट्टी उसके आँख पे भी कसकर बाँध दी गई। और यही काम बाहर गिरे आपरेटिव के साथ भी हुआ। वैसे क्लोरोफार्म का असर कम से कम 45 मिनट रहता और उसके बाद भी पूरी तरह गैग और बंधे वो किसी काम के नहीं थे। एक पल के लिए उनकी नजर कंट्रोल मानीटर पर पड़ी लेकिन अचानक एक पैनल देखकर दोनों चौंक गए। उन दोनों की पूरी तस्वीर वहां आ रही थी। दोनों ने चारों ओर निगाह डाली और ढूँढ़ते हुए आखीरकार, वो कैमरा मिल गया जो कंट्रोल रूम पे निगाह रख रहा था।

पहले तो उन्होंने उस कैमरे को उतारा, और पिछले 5 मिनट की रिकार्डिंग डिलीट की, जिसमें उनके कंट्रोल रूम पे कब्जा करने की दास्तान कैद थी।

“ये कैमरा इन दोनों के लिए तो रहा नहीं होगा, कोई और मानीटर कर रहा होगा…” एक बोला और फिर उसने कैमरे की रिकार्डिग थोड़ी पीछे करके लूप बनाकर सेट कर दी लेकिन कैमरे की क्लॉक भी टिंकर कर दी। अब जो भी उस कैमरे की फीड देखता, पांच मिनट से पहले की तीन मिनट की फीड देखता जो बार-बार लूप होती लेकिन क्लॉक चलती रहती। अभी भी काफी काम बाकी था।

जिसने रीत के कमरे के बाहर माइक लगाया था, उसने घर चेक करने की जिम्मेदारी सम्हाली और दूसरे ने बाहर का एरिया सिक्योर करने की, और तुरंत बाहर निकल लिया। उन लोगों को बोट से उतरे 12 मिनट हो चुके थे और 5-6 मिनट में उन्हें आपरेशन शुरू कर देना था। 15 मिनट आपरेशन के और 5-10 मिनट वापस तट पर पहुँचने के, कुल 45 मिनट समय उन्होंने तय किया था। और आपरेशन सक्सेसफुल होते ही उन्हें प्रीफेड कनफर्मेंशन मेसेज करना था।

बाहर का इलाका सिक्योर करने का पहला स्टेप था, जैमर लगाना और टेलीफोन केबल काटना। अब वहां से बाहर कम्युनिकेशन इम्पासिबल था। जो आदमी एक्सटर्नल पेरीमीटर पर एक नजर डाल रहा था, फेन्स सिर्फ एक जगह से खुली थी जहाँ से सड़क का रास्ता था।

कोई आएगा तो इधर से ही आएगा। उन लोगों ने जो फोन सुना था, उसके हिसाब से आधे घंटे पे उसका फोन आना था और कोई जवाब न मिलने पर 40-45 मिनट पर ही वो आता, लेकिन उसके पहले भी अगर वो या और कोई आया तो उसका ‘इंतजाम’ तो करना था। सड़क पर करीब 500 मीटर दूर उसने कुछ डिटोनेटर लगा दिए, और अब कोई भी वेहिकल वहां से गुजरती या पैदल भी तो दबाव पैड्स से वो अलार्म ट्रिप होते जो साउंड अलार्म ट्रिगर करते।

फिर घर के एकदम पास करीब 200 मीटर दूर उसने दो एंटी पर्सोनल माइंस लगा दी और उन्हें मार्क भी कर दिया। कोई भी वेहिकल अगर उसके ऊपर से गुजरती तो दबाव से वो माइंस ब्लास्ट होती। ये एम-16 माइंस थी और इनका कैजुअल्टी रेट 20 से 25 मीटर तक था। दोनों माइन उसने अच्छी तरह कैमोफ्लाज कर दिया। रात के अँधेरे में कुछ भी दिखना मुश्किल था, और ऊपर से कोई इन्हें सस्पेक्ट नहीं करता।

अब अगर अंदर से टारगेट कोई हेल्प मांगते भी तो जैमर की वजह से मुश्किल था और अगर कोई हेल्प आई भी तो ये दो माइंस उनके लिए काफी थे। तब तक उसके पास उसके साथी का मेसेज आया इनर एरिया सिक्योर। और वह वापस घर की ओर बढ़ लिया। उसके साथी ने, जिसने रीत का कमरा आडेंटीफाई किया था, घर के अंदर के सारे कमरे, किचेन बाथरूम के साथ चेक कर लिए थे।

सारे कमरे खाली थे। कंट्रोल रूम के दोनों आपरेटिव के अलावा कोई नहीं था। फिर भी उसने सारे कमरों के दरवाजे बाहर से बंद करके उसमें प्लास्टिकफ लगाकर लाक कर दिया। अगर कोई रिस्क्यू टीम आई तो हो सकता है कि वो इन कमरों की खिड़कियों से घुसने की कोशिश करे, तो अगर वो कमरे में घुस भी गए तो उन्हें दरवाजे को तोड़ना पड़ेगा।

रीत का कमरा भी उसने बाहर से लाक कर दिया था। अब रीत करन अपने बिल में बंद थे और सिर्फ उन्हें उस कमरे में घुस के एलिमिनेट करना था। न वो कहीं बाहर भाग सकते थे, न कहीं बाहर से हेल्प आ सकती थी। उसने एक बार फिर ध्यान से फीड सुना, रीत के कमरे से कोई आवाज नहीं आ रही थी। इसका मतलब वो सभी निश्चिन्त सो रहे थे।

दोनों एक साथ बाहर रीत के कमरे के सामने इकट्ठे हुए। खिड़की से उनकी नाइट विजन ग्लासेज से साफ दिख रहा था, बिस्तर पर सब सो रहे थे, रजाई से ढंके, हाँ रजाई थोड़ी सी सरक गई थी एक ओर, जो अक्सर अगर एक पलंग पे कई लोग सोएं तो हो जाता है।

जो आदमी एक्सटर्नल एरिया चेक करके आया था उसने अपने को कंट्रोल रूम के बाहर पोजीशन किया, जहाँ से वो बाहर का रास्ता देख सकता था, कंट्रोल रूम में कोई फोन आये तो सुन सकता था और वहां से रीत की खिड़की के बाहर खड़े अपने साथी के विजुअल कांटैक्ट में भी था। दोनों के बीच की दूरी मुश्किल से 80-85 मीटर थी और कोई बात होने पे वो 15-20 सेकंड पे पहुँच जाता।



और दोनों इयर-बड और फेस-माइक के जरिये कांटैक्ट में थे ही। पहला आदमी खिड़की से घुस के टारगेट को एलिमिनेट या न्यूट्रलाइज करता और चार मिनट के बाद दूसरा भी अंदर पहुँच जाता। फिर दोनों को बोट पर बैठे अपने कंट्रोल को सक्सेस मेसेज देना था जहाँ से सेटेलाइट फोन से वो सबमैरीन को और कमांड सेंटर को मेसेज भेजता।



पहले हमलावर ने एक पल के लिए खिड़की से अंदर कमरे को देखा और चारों ओर की पोजीशन चेक की। पहली बार से कोई फर्क नहीं था। या तो वो खिड़की शीशा तोड़कर दाखिल होता लेकिन वो रीत और करन के बारे में अच्छी तरह ब्रीफ किया गया था और उसकी सक्सेस 90% सरप्राइज पर ही डिपेंड करती थी।



उसने अपनी डुंगरी की जेब से मल्टीपर्पज 5॰11 डबल रिस्पान्डर नाइफ निकाला, और खिड़की के शीशे पर एक निशान खींचा और दुबारा जब परपेंडीकुलर दबाव लगाकर उसने काटना शुरू किया तो पूरा का पूरा ग्लास नीचे से कट गया लेकिन वो अलर्ट था और शीशे के टूटकर गिरने के पहले उसने एक शीट पर सारा ग्लास कलेक्ट कर लिया जिससे कोई आवाज न हो। अब पूरी खिड़की बिना शीशे के थी और कोई भी जैग्गड एजेज नहीं थी।



कमरे में अभी भी कोई हरकत नहीं थी। उसके बाद कमरे में घुसना बच्चे का खेल था। लेकिन उसे नहीं मालूम था आगे क्या होना है?




( आगे की कहानी पृष्ठ ५७ पर )
 
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komaalrani

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so please do share your views about this part, this attack on Reet and her defence will continue in the next part too. Thanks
 
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komaalrani

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Please do share your views kaisa laga aapko Reet ka ye roop lekin asali rroop to agli post men aayega aapk sab ke comments ke baad thanks so much
 
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Shetan

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रीत करन और हमला अरब सागर से



बाहर तेज हवायें चल रही थी। अंदर खिड़की का परदा सरक गया था, और बंद शीशे से कुछ दूर उछलती कूदती अरब सागर की तरंगे दिख रही थी और उसमें अपना मुँह देखता झांकता चाँद, जो बस सामान समेटकर, अपने घर पहुँचने की जल्दी में था। करन और उसके एक ओर रीत गहरी नींद के आगोश में।

गाढ़ी काली स्याही की चादर में लिपटा अरब सागर गहरी नींद में सो रहा था। शांत, थका। बस कभी-कभी छोटी-छोटी कोई लहर चली आती। ऊपर आसमान भी जैसे उसी का प्रतिविम्ब हो रहा था। बादलों ने चादर तान रखी थी और न चाँद, न तारे, सिर्फ काला आसमान। हवा भी एकदम बंद थी।

जैसे कुछ होने की आशंका से चाँद अपना काम निपटा के जल्दी-जल्दी पग भरता, अपने घर की ओर भागा जा रहा था। पर रात अभी बाकी थी। आखिरी पहर था रात का। प्रत्युषा ने अभी अंगड़ाई भी लेनी नहीं शुरू की थी। और वैसे भी पश्चिमी तट पर सुबह थोड़ी देर से ही होती थी। और अरब सागर के उस कोने में वैसे भी कोई आबादी नहीं थी, बस सन्नाटा था।


लेकिन तभी एक काली नीली रंग की इंफ्लेटबेल बोट क्षितिज पर उभरी। लहरों के बीच छुपी ढकी। करीब 5 मीटर लम्बी, ढाई मीटर चौड़ी।

जिसे मिलेट्री आपरेशन के बारे में थोड़ा भी ज्ञान होता वो पहचान लेता की ये सी॰आर॰आर॰सी॰ (काम्पैक्ट रबर रेडिंग क्राफ्ट) है, या जिसे अक्सर जोडियक के नाम से भी जानते हैं। यह उछलती कूदती लहरों पर भी तैर लेती है और अगर कहीं चार फिट तक ही पानी हो वहां भी उसे समस्या नहीं आती। कैमोफ्लाज रंग के चलते रात के अँधेरे में पास से भी उसका पता करना लगभग असंभव था।


तट पर आने के पहले वो कुछ देर ठिठकी, ठहरी और जब उसे लग गया की इस काली रात में उसे किसी ने नहीं देखा तो, दो आदमी उसमें से निकलकर हल्के पानी में कुछ देर तैरकर फिर चल के तट पर आ गये। काली डुंगरी के साथ उनके चेहरे बालाक्लवा से ढंके थे और उनपर भी कैमोफ्लाज पेंट पुता हुआ था। आँखों पर बहुत हल्की नाइट विजन गागल्स बी॰एन॰वी॰डी॰ (बायनोक्यूलर नाइट विजन डिवाइस) लगे हुए थे जिसका तकनीकी नाम एल॰3 एन॰पी॰वी॰एस॰31 है।

वह दोनों स्पेशल सर्विस ग्रुप (नेवी) के चुने हुए लोगों में से थे। 12 घंटे में 55 किलोमीटर मार्च, सारे सामान के साथ आधे घंटे में 8 किलोमीटर दौड़ना, अंडरवाटर डाइविंग के साथ-साथ हाई अल्टीट्यूड हाई ओपनिंग और हाई अल्टीट्यूड लो ओपनिंग पैराशूट ट्रेनिंग उन्होंने डिस्टिंक्शन के साथ पूरी की थी।

लेकिन उससे महत्वपूर्ण बात ये थी की उन्होंने अमेरिकन नेवी सील्स के साथ ट्रेनिंग की थी और उन गिने चुने लोगों में थे जिन्हें 24 हफ्ते की बी॰यू॰डी॰ ट्रेनिंग (बेसिक अंडरवाटर डिमालिशन ट्रेनिंग) के साथ-साथ सील क्वालिफिकेशन ट्रेनिंग (एस॰क्यू॰टी॰) और सील ट्रूप ट्रेनिंग (एस॰टी॰टी॰) भी की।


नेवी सील के साथ कई बार स्पेशल बोट सर्विस (एस॰बी॰एस॰) जो ब्रिटिश नेवी की स्पेशल यूनिट है, उन्होंने जवाइंट एक्सरसाइज में भाग लिया था। अभी कुछ दिनों पहले तक वह कराची में पी॰एन॰एस॰इकबाल के पार्ट थे, लेकिन उसके बाद कराची में ही बेस्ड के स्पेशल अंडरकवर आपरेशन के पार्ट हो गए थे जिसके बारे में आई॰ एस॰ आई॰ के भी कुछ लोगों को ही पता था।

वह इन्फ्लेटेबल बोट एक मिडगेट सबमैरीन के जरिये आई थी और सी-कोस्ट के कुछ दूर पहले कुछ देर के लिए सरफेस हुई थी जहाँ पर उसने इन्फ्लेटेबल बोट उतारी थी। टारगेट सी-कोस्ट से 450 मीटर दूर था। घुप्प अँधेरे में भी वो साफ दिख रहा था। सी-कोस्ट से ही वो रेंग करके आगे बढ़ रहे थे, हालंकि उनके नाइट विजन से साफ दिख रहा था की आस-पास कोई नहीं है। शोल्डर, चूतड़ एक लेवल पर थे और वो सिर्फ ऐंकल को पुश करते-करते बढ़ रहे थे। करीब 200 मीटर रेंग करके वो रुक गए। टारगेट अब 250 मीटर के आसपास था। सारी खिड़कियां बंद थी और पर्दों से ढंकी। सिर्फ एक खिड़की का पर्दा कुछ हटा था।

उनका अंदाज था की एक्सटर्नल सिक्योरटी पैरामीटर 250 मीटर पर सेट किया गया होगा, इसलिए उसके 10-15 मीटर पहले ही वो रुक गए।

सेफ हाउस। हाथी को कहाँ छुपा सकते हैं? हाथियों के बीच। ये एक बड़ा पुराना सवाल जवाब है। लेकिन अगर उस हाथी के साथ आप दो-चार एक्स्ट्रा महावत रखें, उसका हौदा बुलेट प्रूफ बना दें। तो क्या वो हाथी बाकी हाथियों में छिप सकेगा?
Superb kahani ki roop rekha me alag hi badlav.

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Shetan

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सेफ हाउस

उनका अंदाज था की एक्सटर्नल सिक्योरटी पैरामीटर 250 मीटर पर सेट किया गया होगा, इसलिए उसके 10-15 मीटर पहले ही वो रुक गए।

सेफ हाउस। हाथी को कहाँ छुपा सकते हैं? हाथियों के बीच। ये एक बड़ा पुराना सवाल जवाब है। लेकिन अगर उस हाथी के साथ आप दो-चार एक्स्ट्रा महावत रखें, उसका हौदा बुलेट प्रूफ बना दें। तो क्या वो हाथी बाकी हाथियों में छिप सकेगा? बिलकुल यही समस्या सेफ हाउस की होती है। उसकी सबसे बड़ी सिक्योरिटी है, इंटेलिजेंस। उसके बारे में किसी को पता न चले। और दूसरी है आसपास के माहौल में वो खप जाय। उसके साथ वो चीज भी जुड़ी है जो सारे सिक्योरिटी आपरेटस के साथ जुड़ी है, सिक्योरटी का लेवल, थ्रेट परसेप्शन के हिसाब से होता है। अगर थ्रेट परसेप्शन कम हो गया है तो सिक्योरिटी का लेवल कम जाएगा।

और दूसरी बात मौके की है, अगर बहुत पहले से मालूम है की ऐसा कुछ इंतजाम करना है, जैसे किसी टेररिस्ट को पकड़कर इंट्रोगेट करना है और उसे छुड़ाने वाले ग्रुप के हमले की आशंका है तो पहले से ही तैयारी की जा सकती है। लेकिन अगर कोई मेहमान अचानक आ जाए तो फिर दाल में पानी बढ़ाने के अलावा कोई चारा नहीं बचता।


इस हालत में भी यही हुआ।



जब करन, रीत चले थे बड़ोदरा से, तो किसी को नहीं मालूम था की ऐसी कोई जरूरत पड़ेगी। हाँ, जब रास्ते में कालिया के स्ट्राइक की बात पता चली तो ये तय हुआ


उस समय वो लोग नेवल सिक्योरिटी के अधीन थे। उनके साथ भी मुम्बई के सफल आपरेशन के बाद, सिक्योरिटी थ्रेट लेवल कम कर दिया गया था क्योंकी काफी सारे लोग पकड़े जा चुके थे।

दूसरी बात ये भी थी एजेंट्स का सारा पकड़ने, समेटने और उन्हें इंट्रोगेट करने के चक्कर में आई॰बी॰ भी पूरी तरह ओवर स्ट्रेच्ड थी। तब भी एक डिप्टी डायरेकटर लेवल के आफिसर ने सारा सिक्योरटी डिटेल रिव्यू किया था और कुछ चीजों में उन्हें फर्दर स्ट्रेंथन भी किया। सेफ हाउस में चार-पांच चीजें इम्पार्टेंट होती हैं, जैसे लोकेशन, इलेक्ट्रानिक सरविलेन्स, ट्रेंड सिक्योरिटी पर्सोनल, रिजक्यू रिस्पांस टीम और कमांड कंट्रोल सेंटर और वहां से कम्युनिकेशन।

लेकिन सबसे इम्पोर्टेंट है लोकशन।

सेफ हाउस की सबसे बड़ी मजबूरी है वहां खुलकर सिक्योरिटी ज्यादा डिप्लॉय नहीं की जा सकती, वरना ये तो बोर्ड लगाना हो जाएगा की हमारा एक इम्पोरटेंट असेट यहाँ है। इसलिए लोकेशन की इम्पोरटेंस बढ़ जाती है। और सिक्योरिटी एजेंसीज हमेशा उलटा सोचते हैं, इसलिए पहले ये देखा जाता है की हमला किधर से होगा। अगर हमला एक साथ तीन-चार दिशाओं से हो सकता हो तो उसे तुरंत खारिज कर दिया जाता है। और सबसे अच्छी लोकेशन वो होती है जिससे आने जाने का रास्ता सिर्फ एक ओर हो और उसे ट्रैक करना और सील करना ज्यादा आसान होता है।

इस मामले में ये लोकेशन बेहतर थी इसके पीछे की ओर समुद्र था और सामने से सिर्फ एक आने जाने की सड़क थी, और उसी से खतरे के आने की आशंका थी और उसे ट्रैक करना सुगम भी था।

ये नहीं था की समुद्र के रास्ते का असेसमेंट नहीं हुआ था। नेवल सिक्योरटी और कोस्ट-गार्ड दोनों ने उसका थ्रेट असेसमेंट किया था और उसे लो-थ्रेट बताया था। इसके पहले 26-11 को हुए हमले में ‘वो’ फिशिंग बोट से मुम्बई में मच्छीमार नगर में रात में आये थे जहाँ सैकड़ों मछली मारने की नावें रात में आती हैं। फिर उन्होंने एक अपहृत हिन्दुस्तानी नाव इश्तेमाल की थी। इसलिए उन नावों के बीच उनकी नाव भी आ गई थी।

और इस जगह कोई मछली मारने की नावों की जेटी आसपास पचास साठ किलोमीटर तक नहीं थी। बीस किलोमीटर दूर एक फर्टिलाइजर जेटी थी (जहाँ नेवल शिप से रीत और करन आये थे) और दूसरी ओर एक नया बन रहा पोर्ट था। दोनों को तीन दिन के लिए बंद कर दिया गया था। और वहां वैसे भी बड़े कार्गो शिप ही आते थे। समुद्र का तट राकी था और दिन में 16-18 घंटे समुद्र चापी रहता था। और किनारे पर गहराई चार-पाँच फिट ही थी करीब 600 मीटर तक। इसलिए वहां लैंडिंग की सम्भावनायें नगण्य थी। फिर भी तट से करीब 8-10 किलोमीटर दूर, कोस्टगार्ड की बोट्स नजर बनाये हुए थी। (चापी समुद्र, राक्स और कम गहराई के कारण उन्हें भी दूर से ही नजर रखना था)।




सड़क की ओर एक कमांड पोस्ट बना दी गई थी और आधी सड़क को रिपेअर के नाम पे बंद कर दिया गया था, जिसे कोई बड़ी वेहिकल जैसे ट्रक आदि एक्सप्लोसिव के साथ न आ सके। वहां से सेफ हाउस के बीच कम्युनिकेशन लाइन भी बना दी गई।
Sayad kahani ke makshad me badlav he. Par amezing.

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Shetan

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सिक्योरिटी अरेंजमेंट



सड़क की ओर एक कमांड पोस्ट बना दी गई थी और आधी सड़क को रिपेअर के नाम पे बंद कर दिया गया था, जिसे कोई बड़ी वेहिकल जैसे ट्रक आदि एक्सप्लोसिव के साथ न आ सके। वहां से सेफ हाउस के बीच कम्युनिकेशन लाइन भी बना दी गई। सिक्योरिटी अरेंजमेंट। उस रेस्टहाउस के चारों ओर फेंसिंग पहले से थी, उसे और स्ट्रांग कर दिया गया था और सरविलेन्स कैमरे भी फिट कर दिए गए थे। जब करन और रीत आये तो उसे एलेक्ट्रिफाई भी कर दिया गया।

घर के अंदर ही एक कंट्रोल रूम भी बना दिया गया था, एक बाहरी कमरे में जहाँ सारे कैमरे की फीड्स आती थी। सरविलेन्स कैमरे 110° डिग्री तक रोटेट कर सकते थे, और कम रोशनी में भी काम कर सकते थे। इसके साथ ही वो और इलेक्ट्रिफाइड फेन्स, एक आक्सिलरी सोर्स आफ पावर से भी जुड़े थे, जिससे अगर मुख्य पावर सोर्स किसी तरह डिस्कनेक्ट हो जाय तो भी वो आधे घंटे तक काम कर सकते थे।

कैमरे एक प्रोटेक्टिव डिवाइस से कवर थे, जिससे तेज हवा, बर्ड हिट आदि से वो डैमेज न हों। वो सारे कैमरे आई॰पी॰ बेस्ड थे यानी उनकी फीड इंटरनेट के जरिये कंट्रोल रूम तक पहुँचती थी। कंट्रोल रूम में 14 विंडो कंट्रोल मानिटर पर लगी थी, जिससे सारे कैमरे अलग-अलग देखे जा सकते थे। इसके साथ-साथ वहां से कैमरे का रोटेशन, जूम, एंगल इत्यादि कंट्रोल किया जाता था। वहां पर 3 दिन की रिकार्डिंग हार्ड ड्राइव पे रखी जा सकती थी और 4 घंटे की रिकार्डिंग सर्वर में भी रहती थी, जिसे रिवाइंड करके किसी भी एरिया को देखा जा सकता था।

इस कंट्रोल रूम से बाहरी सड़क के पास जहाँ ‘सड़क बन रही है’ के नाम पर आधी सड़क बंद करके सेफ हाउस की एंट्री कंटोल की जाती थी, वहां से भी था। एक बुलडोजर पर वहां एक स्पेशल फोर्स का आदमी था, जो ‘फुल्ली इक्विप्ड’ था और पास में रखी मोटर साइकिल से 7 मिनट में किसी इमरजंसी में ‘सेफ हाउस’ में पहुँच सकता था।

वो आदमी वहां से 4 किलोमीटर दूर एक पुलिस पोस्ट को किसी इमरजंसी में मेसज दे सकता था। वहाँ आई॰बी॰ का एक आफिसर बैठा था, जो स्टेट गवर्नमेंट से लियाजन कर रहा था। एक स्पेशल टास्क फोर्स आन काल थी और 14 मिनट में उस पुलिस पोस्ट तक पहुँच सकती थी। उसी तरह एम्बुलेंस, फायर ब्रिगेड की यूनिट भी अलर्ट पर थी। लेकिन न तो टास्क फोर्स को न एम्बुलेंस या फायर ब्रिगेड को इससे अधिक कुछ मालूम था की एक रिहर्सल होने वाली है।

कंट्रोल रूम में दो लोग थे और रोड सिक्योर किये आदमी को जोड़ के कुल तीन लोग सेफ हाउस के प्रोटेक्शन में थे जो नार्म्स के अनुसार सही थे। लेकिन उन तीनों को भी रीत और करन के बारे में कुछ नहीं मालूम था, हाँ मीनल से वो जरूर मिले थे। ये तीनों पूरी तरह आर्म्ड थे।

कंट्रोल रूम में बैठे दो लोगों में एक लगातार कैमरे की मानिटरिंग करता और दूसरा हर आधे घंटे में निकलकर एक्सटर्नल पेरीमीटर का 15 मिनट में धीमे-धीमे चक्कर काटता। दोनों अपने-अपने काम बदल के करते। हर दो घंटे की डूयटी के बाद आधे घंटे के लिए रिलेक्स भी करना होता था जिससे अलर्टनेस पीक पर रहे।

करन ने आने के बाद सिर्फ एक चेंज किया की कंट्रोल रूम में आ रही फीड के साथ-साथ कंट्रोल रूम में भी एक कैमरा लगाकर ये सारी फीड उन लोगों के कमरे में लगे 40 इंच के दीवार पर लगे टीवी पे कनेक्ट करवा ली, जिससे अब उस टीवी पे, टीवी के प्रोग्राम, रंगबिरंगी फिल्मों के साथ-साथ वो रिमोट से चैनेल बदलकर कंट्रोल रूम में लगे कैमरे से कंट्रोल रूम और वहां आ रही फीड को जब चाहें तब देख सकें।

दूसरी बात उसने ये की, की आई॰बी॰ आपरेटिव के साथ एक हाट लाइन कनेक्टिविटी इस्टैब्लिश की, जहाँ बस बटन दबाते ही उसे मालूम हो जाए की खतरा है। करन को मालूम था की एक तो दुश्मन अभी इस हालात में नहीं है की कुछ करे, और अगर कुछ हुआ तो वो उस ताकत के साथ होगा की अल्टीमेटली उसको और रीत को ही उनसे निबटना होगा।
Is bar komalji ne kuchh ekdam hi alag kiya. Action sayad paheli nar aap ki kalam se amezing.

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