रीत
मिलन के बाद की नींद बहुत गाढ़ी होती है, और ऊपर से जब इत्ती लम्बी जंग खत्म हुई हो, उसका टेंशन दूर हुआ हो, इतने दिन बाद साजन से भेंट हुई हो। गाढ़ी नींद में थे, बस नींद में कुछ उल्टी पुल्टी हुई और अब रीत और करन, ।अगल-बगल
इतने दिनों तक दुर्दांत परस्थितियों से लड़ने के कारण, या काशी के कोतवाल और दसों महाविद्याओं के आशीर्वाद के कारण, उसकी योग की दीक्षा के कारण या पता नहीं क्यों, रीत की छठी इन्द्रिय कुछ ज्यादा जागृत थी। कोई भी खतरा आनेवाला हो उसे 10-12 मिनट पहले ही अंदाजा लग जाता था और इसके कारण, कितनी बार वो दुश्मनों के खतरनाक से खतरनाक वार बचा ले जाती थी।जहाँ किसी को कुछ भी हवा नहीं रहती थी वो खतरे को सूंघ लेती थी और भले ही उसकी सारी इन्द्रियां सुषुप्तावस्था में हो, उसके दिमाग में खतरे की घंटी बज जाती थी और पल भर में न वो सिर्फ चैतन्य हो जाती थी बल्की, आनेवाले संकट से लड़ने उसे पराजित करने को, अपने आप उसकी दैहिक शक्तियां, मेधा सब कुछ 100 गुना ऊर्जा के साथ जागृत हो जाती थी।
और यही हुआ।
रीत की आँख खुली। सब कुछ वैसा का वैसा था। कमरे में अँधेरा था, खिड़की का पर्दा हल्का सा खुला था जिससे पास की समुद्र की हल्की-हल्की लहरें दिख रही थी। दरवाजा खिड़की सब बंद थी, कोई भी आवाज नहीं आ रही थी। उसके कान एकदम जग चुके थे और अगर कोई चूहा भी चलता तो उसे सुनाई देता। लेकिन चारों ओर चुप्पी थी।
उसकी खुली आँखें अब अँधेरे की अभ्यस्त हो गई थी और बिना सिर हिलाये अपने पेरीफेरल विजन से उसने देख लिया था, कहीं कुछ भी गड़बड़ नहीं था। फिर भी उसके दिमाग में घंटी जोर-जोर से बज रही थी। बिना हिले चुपचाप उसने बगल में लेटे करन का हाथ दबाया, अब तक उन दोनों की फिजिक्स केमिस्ट्री सब परफेक्ट हो चुकी थी और बिना कहे, बिना इशारे के दोनों एक दूसरे की मन की बात समझलेते थे । उसने बगल में रखा रिमोट दबा दिया, जो पहले से ही म्यूट मोड में था।
कंट्रोल रूम की फीड आनी शुरू हो गई। पहले तो उसे स्लो रिवाइंड किया, फिर फास्ट रिवाइंड। तीन-चार मिनट पीछे तक। दोनों बिना हिले दम साधे देखते रहे
‘गड़बड़’ एक फुसफुसाया । ‘महा गड़बड़’ रीत उससे भी धीमे से बोली और हाथ जोर से दबा दिया। कंट्रोल रूम की फीड में एक आपरेटर मानिटर से देख रहा था और दूसरा टेलिस्कोप से खिड़की से बाहर देख रहा था। लेकिन तीन मिनट की रिवाइंड में दोनों के पोस्चर में कोई चेंज नहीं था, और न ही कोई हरकत। इसका मतलब साफ था की कंट्रोल रूम पर दुश्मन का कब्ज़ा हो चुका था। और उसने वहां की फीड को लूप पे लगा दिया था।
इसलिए यहाँ से देखने पे, बजाय कंट्रोल रूम दिखने के, वहां की कुछ देर पहले की रिकार्डेड सीन ही बार-बार दिखती। और यही हालत बाहर से आने वाले फीड की होती।
रीतने टीवी बंद कर दिया।
रीत खुद, पलंग के किनारे से सरक कर नीचे उतर गई और जमीन से एकदम सटकर रेंगते हुए दीवाल से लगे हुए कबर्ड के पास पहुँची। उंगली मोड़कर उसने अपना असेसमेंट को बता दिया था, चार-पाँच मिनट के बीच में हमला होगा, और उन्हें निःशब्द, हमले के लिए तैयार रहना होगा। कंट्रोल रूम कम्प्रोमाइज होने के बाद बाहर से किसी हेल्प की इतनी कम समय में आने की उम्मीद करना बेकार होगा। उन्हें खुद न्यूट्रलाइज करना होगा।
डेढ़ मिनट में रीत न सिर्फ कबर्ड के अंदर थी, बल्की एक बार पूरी तरह ‘ड्रेस्ड’ थी। रीत ने अपने शस्त्रों से अपने को पूरी तरह लैस करना शुरू कर दिया। उसके सबसे बड़े शस्त्र थे, उसकी तत्परमती, धैर्य और उसकी देह। कबर्ड के अंदर घुसकर उसने सारे टंगे कपड़े अपने आगे कर लिए, जिससे अब वह पूरी तरह ढकी छुपी थी, सिर्फ एक छोटी सी झिर्री थी और कबर्ड के दरवाजे भी उसने आलमोस्ट चिपका के रखे थे और वहां भी उसने सिर्फ एक हल्की सी झिर्री छोड़ रखी थी।
इतना काफी था उसके लिए बाहर की खबर रखने के लिए। आँखें उसने बंद कर ली, और अब देखने के लिए कान थे उसके पास। हल्की सी आहट, हवा की सरसराहट, भी उसे सूचना दे देती आने वाले खतरे की। जोर से उसने सांसें भींची और फिर अंदर की सारी हवा बाहर और साथ में सारा तनाव, दुश्मन के बारे में सोच, सब कुछ बाहर।
एक बार उसने फिर आँख बंद की, गहरी सांस ली काशी के कोतवाल के साथ सारी महाविद्याओं को याद किया, और धीमे-धीमे। अब वह रीत नहीं रही। उसका पूरा शरीर एक अमोघ अस्त्र बन चुका था जिसका संधान किया जा चुका था और अब सिर्फ छोड़ने की देर थी।
और इन तीन मिनटों में करन भी पूरी तरह अलर्ट हो चुका था। वह भी अपने अस्त्रों से लैस था और बिस्तर से उतरकर पलंग के नीचे छिपा था।
बिस्तर से उतरने के पहले तकिये और कुशन उन्होंने इस तरह से लगा दिए थे की कोई पास से भी देखता तो उसे यही लगता की लोग रजाई के अंदर सो रहे हैं। यही नहीं उस बड़ी रजाई को उन्होंने इस तरह नीचे भी खींच दिया था की, खिड़की की ओर वह करीब फर्श छू रही थी और बिना उसके हटाये, पलंग के नीचे झांकना भी मुश्किल था। उन्हें आशंका यही थी की हमलावर खिड़की की ओर से ही घुसेंगे और उसके बाद की स्क्रिप्ट उनके घुसने के बाद ही तय होनी थी।
रीत कबर्ड के अंदर। करन पलंग के नीचे। और बाहर से जो भी अंदर घुसेगा उसे यही लगेगा की वो सारे रजाई के अंदर गहरी नींद सो रहे हैं। कुछ देर इन्तजार में गुजरा। वो दो-चार मिनट घण्टों ऐसे लगे।
रीत को लग रहा था की कंट्रोल को न्यूट्रलाइज करने के बाद हमले में 6-7 मिनट का समय लग सकता है। उन्हें ये मालूम था की ये लोग कहीं बाहर नहीं जा सकते। इसलिए उनकी पहली प्राथमिकता होगी, सेफ हाउस चेक करना की वहां कोई और सपोर्ट स्टाफ या सिक्योरिटी स्टाफ तो नहीं है, और अगर है तो उसे सिक्योर करना। उन लोगों के बेडरूम और कंट्रोल के अलावा, किचेन समेत तीन कमरे और थे।
इन कमरों के बाद, वह बाहर से आनेवाले किसी खतरे के लिए भी प्रोटेक्शन करते, और सारे कम्युनिकेशन डिस्ट्राय करते। इन सारे कामों में 6-7 मिनट का समय लगना था और रीत और करन के पास यही समय था, काउंटर अटैक के लिए तैयार होने का और डिफेंस सोचने का। उसमें से चार-पाँच मिनट निकल गए थे और अब किसी भी पल दुश्मन अंदर घुस सकता था।
रीत की आशंका एकदम सही थी।