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Erotica रंग -प्रसंग,कोमल के संग

komaalrani

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भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी

Phagun ke din chaar update posted

please read, like, enjoy and comment






Teej-Anveshi-Jain-1619783350-anveshi-jain-2.jpg





तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी
 

komaalrani

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Super update
Maza aa gaya
Thanks so much aapko pasand aaya to is update ko abhi aur aage badhati hun, readers ke comment isi liye jarori hote hain pata to lge ki main kahani suna rahin hun, koyi sun bhi raha hai ki nahi,

Thanks again

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
 
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komaalrani

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Wah maza aa gaya. Bade wakt se in shararto ki kami khal rahi thi.
Thanks so much isi baat pe aur udpates is prasnag ke
 

komaalrani

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UPDATE POSTED


भाग ५४
चस्का - स्वाद पिछवाड़े का


जोरू का गुलाम भाग १८४

मंजू

Please read, enjoy, like and share comments on my these two stories
 

komaalrani

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शीला भाभी, गुड्डी और,....



और गुड्डी सारे गानों में साथ दे रही थी बल्की शीला भाभी को याद भी दिला रही थी। गनीमत था की तभी भाभी ने घड़ी देखी और चौंक पड़ी, अरे 9:40 हो गया, मुझे 9:30 तक ऊपर जाना था। भाभी ने भैया के लिए मूली के पराठे रखे, गुझिया रखी और उठने के पहले गुड्डी से पूछा- “क्यों बहुत बचे तो नहीं…”

“एकदम नहीं। अरे चार तो आपके इस देवर ने खा लिए…” हँसते हुए वो बोली, फिर मेरी थाली देखकर उसने करेक्शन किया, नहीं, नहीं चार नहीं साढ़े तीन। आधा अभी बचा है…” फिर उसने मुझे हड़काया, अरे खतम करो इसको भी। और फिर मेरी थाली से लेकर एक बड़ा सा कौर बनाया और फिर थोड़ा सा खुद खाकर, बाकी अपना अधखाया, जूठा होंठ रस से लिथडा, अपने हाथ से सीधे मेरे मुँह में।

मैं खा गया।


मैंने कनखियों से देखा भाभी गुड्डी को कैसे कैसे देख रही थी, तारीफ, खुशी मजा सब कुछ मिला था उसमें।

“कल सोचती हूँ, केले की सब्जी बनाऊं और बैगन का भुरता, क्यों?” गुड्डी ने भाभी से कहा। (दोनों मेरी स्ट्रांग ना पसंद थी और भाभी से ज्यादा ये किसको मालूम होता।)



“एकदम उठते हुए वो बोली- “और मुश्कुराकर मुझसे कहा, इससे दोस्ती बनाकर रखना। किचेन इसके हवाले है, अब से। अभी भी और आगे भी। फिर शीला भाभी और गुड्डी से बोली- “जरा मुझे। आप लोग किचेन समेट लेना…”

“एकदम। एकदम आप जाओ ना। हमें मालूम है, हम कर लेंगे…” शीला भाभी और मंजू मुश्कुराते हुए एक साथ बोली और गुड्डी ने भी जोर से सिर हिलाया।

तब तक ऊपर से भैया की आवाज आई, और भाभी दौड़ते भागते ऊपर की ओर बढ़ी, लेकिन मैंने, पूछ ही लिया, बड़े भोलेपन से- “भाभी जाइये ना आराम से किस बात की इत्ती जल्दी है…”

अबकी कान की जगह गाल की बारी थी। कसकर उन्होंने चिकोटी काटी, और बोली- “बहुत बोलता है ना, जब मेरी देवरानी आयेगी ना, तो पूछूंगी। किस बात की जल्दी लगी रहेगी…” और ऊपर चल दी।

-----

अचानक मंजू ने एक नया मोर्चा खोल दिया। गुड्डी के ऊपर- “काहे नाम लेने में शर्म लागत है का, बबुनी…” वो गुड्डी की ओर देखकर बोली।

गुड्डी चुप।

भाभी जा चुकी थी। बस शीला भाभी, मुश्कुराते हुए सामने, और उनके बगल में मंजू और इधर गुड्डी के बगल में मैं।

“अरे ऊ गदहे का। का तुम कह रही थी की ना की वो रंजी, रंडी। गदहा का, देखकर पनिया रही थी। त नाम लेने में लाज लग रही थी की गदहवा का लंबा लम्बा लटक रहा था, चलो अब बोलो…” मंजू ने बात साफ की।

अब मैं भी मुश्कुराया, गारी वारी गाना और बात है लेकिन बात-चीत में वो भी जहां सिर्फ सहेलियां ना हो खुल्लम खुला बात करना।

शीला भाभी भी मंजू के साथ आ गईं-


“सही तो कह रही है ये अरे हम लोगों के सामने का शर्म और (मेरी और इशारा करके) इससे भी। बोल ना गदहे का। क्या देख वो छिनार ललचा रही थी…” वो बोली।

गुड्डी अभी भी हिचकिचा रही थी।

मंजू अब अपने रंग में आ गई- “अरे छिनरो, लण्ड छूने में शर्म नहीं, लण्ड पकड़ने में नहीं शर्म नहीं, लण्ड मुँह में लेने में शर्म नहीं, चूत में लण्ड घोंटने में शर्म नहीं। ता ससुरी। काहें नाम लेने में शर्म…”

और शीला भाभी भी बोलने लगी-

“अरे तू समझती नहीं। जौने के मुँह से लण्ड का बोल नहीं निकलता फागुन। में उ लड़की को होलिका देवी का शाप लगता है। उ तरसने लगती है लण्ड के लिए। और जो मजा असली चीज में है उ उंगली में नहीं। और हम तो कहते हैं की अगर खूब खोलकर लण्ड बुर सब बोले। ता का पता। परमानेंट लण्ड का इंतजाम हो जाय। रोज घच्चा-घच। घच्चा-घच…”



पता नहीं इस लालच का असर था या शीला भाभी, मंजू भाभी के डबल पेस अटैक का असर या शाम की भांग की बर्फी और खाने के साथ की डबल भांग वाली गुझिया का असर। गुड्डी भी डोलने लगी। उसने मेरी ओर देखा। और मैंने भी मुश्कुराकर शीला भाभी और मंजू का साथ दिया।

लेकिन फिर भी गुड्डी ने मुँह नहीं खोला।

“हूँ उ गदहे का देख रही थी…” मंजू ने फिर पूछा। अब वो आकर गुड्डी के बगल में बैठ गई थी।

मैंने हल्के से बोला- “बोल दे ना…”

गुड्डी पहले मुश्कुराई, फिर बोली- “गदहे का,.... रुकी। फिर बोली- “लण्ड…”

हम सब मुश्कुराने लगे लेकिन शीला भाभी इत्ती आसानी से नहीं छोड़ने वाली थी। उन्होंने फिर गुड्डी को रगड़ा-


“हे मैंने सुना नहीं फिर से बोल ना…”

गुड्डी एक पल के लिए हिचकी फिर मुश्कुराती हुई अबकी जोर से बोली- “गदहे का लण्ड…”



अब शीला भाभी भी आकर मेरे और गुड्डी के बीच में बैठ गई और उसे गले लगाती बोली- “अब हुई ना बात…”

लेकिन मंजू छोड़ती तब ना, उसने फिर गुड्डी से कहलवाया…”अच्छा। कित्ता बड़ा रहा होगा उसका जिससे इन का माल नैन मटका कर रहा था…”

“डेढ़ दो फीट का रहा होगा। लण्ड। एकदम कड़ा…” थूक घोंटते हुए गुड्डी बोली।

भांग का नशा सबके ऊपर चढ़कर बोल रहा था।

अब शीला भाभी की बारी थी गुड्डी को उकसाने की- “बोल तुझे कैसा लण्ड पसंद है…”

“धत्…” गुड्डी गुलाल हो गई।

“फिर छिनालपना…” मंजू ने घुड़का।

“अरे अगर कहीं होलिका देवी ने सुन लिया ना तो तड़पा देंगी, घोंटने को कौन कहे। देखने को नहीं मिलेगा…” शीला भाभी समझाते बोली।


मैं कहने वाला था की मेरे रहते इसे कोई कमी नहीं पड़ने वाली तब तक गुड्डी चीखी। मंजू ने उसकी स्कर्ट को उठाकर पिछवाड़े कसकर चिकोटी काट ली थी।

“बताती हूँ ना। गुड्डी बोली- “लण्ड लंबा मोटा और कड़ा…”


“और हचक कर चोदने वाला…” बात मंजू और शीला भाभी ने एक साथ पूरी की।



मैंने भी बात पूरी की-

जो भरा नहीं हो झांटों से बहती जिसमें वीर्य धार नहीं।

वह लण्ड नहीं वो नूनी है जिसको चूतों से प्यार नहीं।

सब बौरा गए थे, एक तो फगुनाहट ऊपर से चढ़ती जवानी और सबसे ऊपर भांग का नशा और आज शाम की होली ने हम सबका अंतर एकदम खतम कर दिया था। क्या-क्या नहीं बुलवाया, शीला भाभी और मंजू ने गुड्डी से। और उससे कबूल्वाया की आगे से हम चारों (मंजू, शीला भाभी और मेरे अलावा मेरी भाभी भी) के सामने अगर उसने लण्ड, चूत, गाण्ड, चुदाई के अलावा कुछ भी बोला तो बस उसकी खैर नहीं। वो सब लोग लोग टेबल समेट रही थी, और मैंने भी थोड़ी हेल्प की।



फिर मैंने गुड्डी को सुना के बोला- “मुझे नींद आ रही मैं कमरे में चलता हूँ…” और अपने कमरे की ओर मुड़ गया।

गुड्डी भी बोली- “बस मैं दो मिनट में आती हूँ और मेरे पीछे-पीछे…”
 
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शीला भाभी,...भभूत--अगले दिन

एक चीज मुझे सुबह से समझ में नहीं आ रही थी तो मैंने पूछ ली- “शीला भाभी कहाँ है सुबह से दिख नहीं रही हैं…”

“अरे तुमको नहीं पता। सुबह से जिस साधू के पास वो जाती हैं, वहीं आज पूजा का आखिरी दिन है, तो भभूत मिलेगी उन्हें। तुम्हें तो मालूम है उनकी शादी के तीन साल हो गए हैं लेकिन बच्चा नहीं हुआ। इसलिए साधू के पास आई है। गाँव में कई लोगों ने उन्हें इस साधू के बारे मैंमैं बोला था की भभूत से बच्चा हो जाता है…” गुड्डी मुश्कुराकर बोली।



मैंने जोर से गुड्डी की टनटनायी, निपल पिंच की और बोला अरी बुद्धू बच्चे भभूत से नहीं ‘इससे’ होते हैं…”


वो खिलखिलाई और बोली- “अरे मेरे बुद्धू मुझे मालूम है और मुझसे ज्यादा शीला भाभी को मालूम है…”

और कसकर मेरे लिंग को दबा दिया। वो तुरंत 90 डिग्री पे हो गया। फिर कड़े मोटे खुले सुपाड़े पे अंगूठे को रगड़ते बोली-

“मैंने तो उन्हें आफर भी कर दिया की ये छ: फूट का आदमी है, आपका देवर भी है किस दिन काम आयेगा, ले लीजिये इसका सफेद भभूत अपने अन्दर…”

और फिर गुड्डी ने मुझे देखकर कहा-

“अरे दे दो ना बिचारी को वीर्य दान, बहुत उपकार मानेगी…” फिर ठसके से बोली-

“किसी को चाहिए तो बहुत नखड़ा दिखा रहे हो। वरना अपनों बहनों का नाम ले लेकर। 61-62 करते होगे, इधर-उधर गिराते रहते होगे…”



गुड्डी ना। उसको समझना बहुत मुश्किल है।

मैंने फिर भी पूछ लिया- “बुद्धू… तू बुरा नहीं मानेगी। अगर मैं किसी और के साथ…”

वह फिर खिलखिलाई, उसने मेरे गाल को चूम लिया और हल्के-हल्के किशोर हाथ मेरे लिंग पे चलाने लगी और बोली- “अरे पगले, अभी तो मेरा नाम परमानेंटली इसपर लिखा नहीं है…”

मैंने तुरन्त उस किशोरी का मुँह भींच दिया और कहा- “सुबह-सुबह ऐसा बोलना भी मत, तुम जानती हो मैं क्या चाहता हूँ…”

दिवाली की फुलझड़ी की तरह हँसती हुई उसने मेरा हाथ हटा दिया और भोर की धुप की तरह खिलती खिलखिलाती बोली-

“मुझे क्या मालूम तुम क्या चाहते हो। और वैसे भी देवरानी चुनने का हक तो तुमने अपनी भौजाई को दे दिया है। लेकिन मान लो मेरा नाम इसपे लिख भी जाय तो। फिर तो और तुम्हारी चांदी…”

मेरे कुछ समझ में नहीं आया। वो भी समझ गई और मुझे समझाते बोली- “अरे यार। मेरे मायके वालियों को तो तुम छोड़ोगे नहीं, मेरी बहनेँ, सहेलियां, भाभियां…”

“तुम्हारी बहनें तो अभी बहुत छोटी है…” मैंने मुँह बनाकर कहा।

“तुम्हारे ऐसा जीजा मिलेगा तो कब तक वो छोटी रहेगीं। तुम्हारा हाथ पड़ेगा तो दिन दुनी बढेंगी।




वो हँसी फिर बोली लेकिन तब तक मेरी सहेलिया, गुंजा, महक ने तो आलरेडी नंबर लगा दिया है। इस बार ही इसका रस वो लेकर रहेंगी।

फिर मेरी ममेरी बहन नेहा। और मौसेरी बहनें सब उम्र में मुझसे एक-दो साल ऊपर-नीचे ही होंगी। और तुम्हें “लोलिता…” टाइप सालियां कैसी लगती हैं…” आँख नचाकर अपने बाले जोबन को उभार के उसने पूछा।

कच्ची कलियां किसे नहीं पसंद होंगी। खास तौर से जब उस दौर में भी उनमें खिलते फूलों का रंग और खुशबू आनी शुरू हो जाए। और मैंने भी बोल दिया- “हाँ एकदम पसंद हैं लेकिन तुम किसके बारे में बोल रही है और क्या गारंटी वो लिफ्ट दे या ना दे…”

“अरे किस साली की हिम्मत है जो अपने इस जीजू को मना कर दे और अगर इस बार जिसके होंठों पे तुम ये बांसुरी लगा दोगे। वो पीछे-पीछे फिरेगी और फिर कोई नाज नखड़ा करे तो। थोड़ी जोर जबरदस्ती भी चलती है जीजा साली में। आखीरकार, तुम्हारा हक है। याद है मेरे वो मुट्ठीगंज, अलाहाबाद वाले मामा जी की…”

गुड्डी ने मुश्कुरा कर कहा।



“कैसे भूल सकता हूँ मैं उनको खास तौर से तुम्हारी तीनों बहनों को। और उनकी मम्मी को…” मैंने भी मुश्कुराकर कहा।
 
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किस साली की हिम्मत है

“अरे किस साली की हिम्मत है जो अपने इस जीजू को मना कर दे और अगर इस बार जिसके होंठों पे तुम ये बांसुरी लगा दोगे। वो पीछे-पीछे फिरेगी और फिर कोई नाज नखड़ा करे तो। थोड़ी जोर जबरदस्ती भी चलती है जीजा साली में। आखीरकार, तुम्हारा हक है। याद है मेरे वो मुट्ठीगंज, अलाहाबाद वाले मामा जी की…”

गुड्डी ने मुश्कुरा कर कहा।

“कैसे भूल सकता हूँ मैं उनको खास तौर से तुम्हारी तीनों बहनों को। और उनकी मम्मी को…” मैंने भी मुश्कुराकर कहा।


वास्तव में, मेरे सेलेक्शन के कुछ दिन बाद की ही तो बात है। मुझे दो-तीन दिन के लिए अलाहाबाद जाना था। बनारस होते हुए गया तो गुड्डी के पापा ने कुछ कागज दे दिया, जो गुड्डी के मामा को वहां देना था। और गुड्डी ने मुझसे खास तौर से अपनी तीनों कजिन्स से जरूर मिलने के लिए बोला था और फोन पर उनसे कुछ खुसुर पुसुर की। किसी तरह गली-गली ढूँढ़ते उनके घर पहुँचा। दो बहनें गुड्डी से छोटी। एक तो दो साल छोटी अभी आठवें में गई थी। दूसरी एक साल छोटी अभी नवें में और एक बड़ी दो साल बारहवें में पढ़ती थी उस समय। अब बी॰ए॰ में गई होगी।

और उनकी माँ बड़ी वाली की बड़ी बहन लगती थी। रूप में भी व्यवहार में भी। मुझे लगा छोटी वाली तो अभी बच्चिया होंगी इसलिए मैं चाकलेट ले गया था। सबसे पहली मुलाकात छोटी वाली से हुई। नाम तो गुड्डी ने बता दिया था उसका रूपा। लेकिन देखते है मैं चौंक गया। मुझे लगा था की बस उसके उभार नवांकुर से होगे। टिकोरे ऐसे।

लेकिन वहां तो एकदम उभार गदरा रहे थे अच्छी तरह। और उससे भी बढ़कर, बात-चीत व्यवहार। एकदम अलग। जब मैंने उसे चाकलेट दी। तो वो एकदम चिपक गई बच्चों की तरह लेकिन जिस तरह उसने अपने उभार मेरे सीने पे रगड़े और कान में बोला-

“मुझे तो दूसरी वाली चाकलेट चाहिए, जो जितना चूसो कभी खतम नहीं होती…”

और एक दिन मैं रजाई में था तो मझली और छोटी दोनों घुस आई और मुझे आज तक नहीं पता चला की उनमें से किसके पैर मेरे लिंग मर्दन में लगे थे। ऊपर से गुड्डी से शिकायत अलग की। कीत्ते शर्मीले है। हम लोग तो सोच रहे थे की जिप खोल कर चेक कर लें। उस समय तो मैं थोड़ा लजीला शर्मिला था लेकिन अब एकदम नहीं और अगर वो “आफिसियल सालियां…” बन गईं तो मैं उन्हें छोड़ने से रहा।

गुड्डी मुझे यादों से बाहर ले आई और हँसकर बोली- “वो तो एक नमूना था। मेरी मौसी की लड़कियां तो उनसे भी दो हाथ आगे हैं, तो सोच लो कैसी मस्त सालियों से पाला पड़ेगा तुम्हारा और फिर भाभियां। कोई नहीं छोड़ने वाली तुम्हें। कई ने तो मुझसे वादा भी ले लिया है। हे तेरा दुल्हा आयेगा ना तो पहले मैं ट्राई करूँगी। साली, सलहज, रिश्ता ही ऐसा है और अगर तुमने किसी को छोड़ दिया न तो मैं बुरा मान जाऊँगी…” मुँह बनाती हुई वो सुमुखी बोली।

“किसी को भी सोच लो…” मैं मुश्कुराया। मेरे मन में रात में मैं उसकी माँ को लेकर जो छेड़खानी की थी वो याद थी। दनादन चार-पांच मुक्के मेरी छाती पर पड़े।

“बदमाश, दुष्ट। मुश्कुराते वो बोली। मैं समझ रही हूँ तुम्हारा इशारा किधर है, लालची। नदीदे। मेरी मम्मी पर ही…”

फिर हँसकर कहा। अच्छे घर दावत दे रहे हो। तुम्हें नहीं मालूम। हमारे यहाँ सास-दामाद में कित्ता खुलकर मजाक होता है। उनकी गाली तो सुन ही चुके हो ना। बस तुम्हारे घर में किसी को नहीं छोड़ेंगी। ऐसी गालियां पड़ेंगी तुम्हें और वो मजाक सिर्फ जुबानी नहीं होता छुआ छुवन, पकड़ना सब कुछ। फिर मैं कौन होती हूँ सास दामाद के बीच बोलने वाली। वैसे उनके तो मजे आ जायेंगे…”


फिर एक पल के लिए गुड्डी चुप रही फिर मुझे डांटते बोली-

“तुम भी ना। मैं सब भूल जाती हूँ तेरे चक्कर में, मैं यह कह रही थी की मेरे मायके वालियों को तो तुम छोड़ोगे नहीं। अभी से लार टपका रहे हो और वो हैं भी ऐसी। आखीरकार, मेरी मायकेवालियां है

और जहाँ तक तेरी मायके वालियां है। उनके लिए मेरी ओर से छूट है। बिचारी ना जाने यहाँ वहां इधर-उधर जाकर मुँह मारेंगी। कहीं कुछ रोग सोग लग जाय, कहीं कोई एम॰एम॰एस॰ बनाके कालिनगंज में बिठा दे। तो इससे अच्छा तुम्हारे साथ ही। रंजी को तो मैं तुम्हें दिलवा के रहूंगी। भले उसका हाथ-पैर बाँधकर दिलवाना पड़े और उसके अलावा जो भी तेरी चचेरी, मौसेरी, ममेरी फुफेरी सबका…”

इता लंबा डायलाग बोलकर वो थक गई और तब उसे याद आया की मेरे लिए नाश्ता लायी थी। तो उसने अपने हाथ से खिलाना शुरू किया और फिर मुझे याद दिलाती बोली-

“हे, दे दो ना बिचारी शीला भाभी को। तुम्हें क्या मालूम। गाँव में कितने ताने झेलने पड़ते है उनको और मुझको मालूम है तुम एक बार भी करोगे ना तो वो शर्तिया। प्लीज मेरी खातिर। परसों ही जाना है उन्हें और मेरी चिंता छोड़ो। दो दिन तो तुमने मुझे वैसे ही रगड़कर रख दिया है। एक बार करोगे ना तो वो गाभिन हो जायेंगी। मुझको पक्का मालूम है…”

ये लड़की न… किस-किस की चिंता इसे नहीं है।

दूसरी कोई होती तो जरा सा आँख उठाकर देख लो तो मुँह फुलाकर बैठ जायेगी और ये खुद। मैंने सोचा। और उसके गाल पे एक खूब जोर से चुम्मी ली और बोला-

“अरे यार मेरी हिम्मत की तेरी बात टालूँ। लेकिन कल तुमने इसका वायदा किया था…” और मैंने थोड़ा सा उसे उचका के एक हाथ नितम्ब पे रखा और उंगली सीधे नितम्ब के बीच की दरार पे।



“दे दूंगी यार जब दिल दे दिया तो बिल क्या चीज है। चाहे आगे की हो चाहे पीछे की। लेकिन तुम्हें एक बात नहीं मालूम…” वो आँख नचाते, ठसके से बोली।
 

komaalrani

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शीला भाभी

वास्तव में मुझे नहीं मालूम था की वो क्या बोलने वाली है।

उसने बात नहीं बतायी सिर्फ मेरे होंठों पे एक जबर्दस्त किस लिया। बल्की होंठों को चूस लिया कसकर और बोली-

“यही की। तुम, बहुत अच्छे हो। थोड़े नहीं बहुत। मुझे मालूम था की तुम मेरी बात टालोगे नहीं। इसलिए मैंने उनसे प्रामिस कर दिया था की तुम शीला भाभी के लौटने से पहले, सिर्फ करोगे ही नहीं बल्की वो जिस काम के लिए आई हैं उसे पूरा कर दोगे। तभी तो कल रात पन्दरह मिनट में उनके पास से छूट के तुम्हारे पास आ गई थी। और अब उनसे घबड़ाने की भी कोई बात नहीं…”


तभी उसे कुछ याद आया और वो मेरा छुड़ाते हुए बोली-

“तुम बहुत बहुत बुरे हो। तुम्हारे पास आने के बाद मैं सब कुछ भूल जाती हूँ। कुछ भी ध्यान नहीं रहता। अब देखो, अभी शीला भाभी भी नहीं है और पूरा किचेन का काम तुम्हारी भाभी मेरे हवाले करके ऊपर बीजी है। अव सीधे एक घंटे में आँएगी और पूरा खाना तैयार होना चाहिए…”

वो उठी और अभी कमरे से बाहर निकल भी नहीं पायी थी की जैसे की लोग कहते है ना। शैतान का नाम लो और, तो शीला भाभी हाजिर। और गुड्डी को देखकर उन्होंने बहुत ही अर्थ पूर्ण ढंग से मुश्कुराया। लेकिन गुड्डी भी ना। उसने हल्के से उनको आँख मार दी और मुझको दिखाते हुए अपने मस्त बड़े-बड़े चूतड़ मटकाते बाहर निकल दी।

वो उठी और शीला भाभी मेरे सिंहासन पर।

मैंने खींचकर जबरन उनको अपने गोद में बैठा लिया था। और एक हाथ से उनके गोरे-गोरे गाल को सहलाते हुए पूछा- “भौजी आज सबेरे सबेरे किसको दरसन देने चली गई थी…”

मेरी बात टालते हुए, उन्होंने अपने भारी नितम्बों से पूरी तरह खड़े जंगबहादुर को दबाते हुए मुझे छेड़ा और बोली-

“लाला, झंडा तो बहुत जबर्दस्त खड़ा किये हो। अभी फहराए की नहीं। अरे मौका था तोहार भौजाई ऊपर लगवाय रही हैं। त तुमहूँ ठोंक दिहे होते छोकरिया का, बहुत छर्छरात फिरत है। एक बार इ घोंट लेगी ना ता बस गर्मी ठंडी हो जायेगी। खुदे मौका ढूँढ़ेगी तोहरे नीचे आने की। लेकिन तू तो मौका पाय के भी खाली ऊपर झांपर से मजा लैके। अरे इ अगर गाँव में होती ना त कितने लौंडे अरहर अउर गन्ना के खेत में चोद चोद के, लेकिन तू शहर वाले ना…”

बात त भाभी की कुछ ठीक थी और उसकी ताकीद मैंने उनकी दोनों खूब गदराई चूची को दाब कर की।

“लेकिन भाभी आप सबेरे सबेरे। इहाँ कौनो यार वार है का…” मैंने जानते हुए भी पूछा।

“अरे एक ठो साधू है ना। बस उही के चक्कर में…” उन्होंने कुछ इशारा किया और मैंने बात आगे बढ़ाई।

“अरे कहाँ बूढ़ पुरनिया साधू के चक्कर में भौजी। हम तो इहाँ जवान हट्टा कट्टा देवर घर में। और। अरे आप एक मौका दीजिये हम बोले तो थे की ठीक नौ महीने बाद सोहर होगा। गारंटी…”

और मैंने शीला भाभी के ब्लाउज़ के दो बटन भी खोल दिए। इत्ते मस्त रसीले जोबन का कैद में रखना नाइंसाफी है। और शीला भाभी ने कोई ऐतराज नहीं किया ना कोई रोक टोक।

बस बोला- “लाला, हम कब मना किये हैं। लेकिन तुमसे तो उ छटांक भर की लड़की पटती नहीं और। चलो आज हो जाय रात में कबड्डी…” वो बोली।

अब मेरे लिए मुश्किल थी। आज तो गुड्डी के पिछवाड़े का उद्घाटन था। मैंने फिर कम्प्यूटर देवी की सहायता से बात संभाली और एक साईट खोली और शीला भाभी को दिखाया। गर्भाधान के लिए उत्तम मुहूर्त। उनकी निगाह कंप्यूटर से एकदम चिपक गई थी।

मैंने उन्हें समझाया…”

अरे भौजी मजा लेना हो तो कभी भी ले लें। लेकिन हमें तो 9 महीने बाद आपके आँगन में किलकारी सुननी है ना। इसलिये ये देखिये…” साईट पर लिखा था की पूनम की रात में सम्भोग करने से गर्भाधान अवश्य होता है।

मैंने शीला भाभी को समझाया की आज रात आप पूरी तरह से आराम करिए। कल होली है ना, पूनम की रात। तो बस कल रतजगा होगा देवर भाभी का और 9 महीने बाद पूनम ऐसी बेटी। चन्दा चकोरी ऐसी…”

भाभी कंप्यूटर देख रही थी, उसमें तमाम तंत्र मन्त्र कुंडली इत्यादि बने थे। मन्त्र मुग्ध होकर मेरी ओर देखकर बोली- “लाला बात तो तू सोलह आना सच कह रहे हो। इ मशिनिया त उ बबवा से केतना आगे है…”

एक बटन और खुली और मेरा हाथ अब शीला भाभी के ब्लाउज़ में अन्दर था और खुलकर जोबन मर्दन का सुख ले रहा था।

“ता भाभी उ साधू त कतौं भभूत के नाम पे इ हमारी छमक छल्लो भौजी। के साथ…”

“अरे लाला ‘उ’ खड़ा ना होए ओकर ढंग से। आज इहे तो तमाशा हो गया…”

वो अपनी कहानी शुरू करती की गुड्डी पास में आकर खड़ी हो गई।



भाभी थोड़ा कुनमुनाई, थोड़ा कसमसाई लेकिन मैंने उनके ब्लाउज़ से हाथ बाहर नहीं निकाला और उनके कान में बोला-

“अरे भौजी, इससे क्या शर्माना छिपाना, ये भी तो अपने गैंग की है…”

और दूसरा हाथ सीधे गुड्डी के मस्त टाईट कुर्ते के बाहर छलकते, गदराये, गुदाज जोबन के ऊपर और उसे मैंने बिना झिझके दबा दिया। गुड्डी ने ना मेरा हाथ हटाया न पास से सरकी बल्की और सट गई और तारीफ भरी निगाह से मेरी ओर देखने लगी। आखीरकार, मैंने उसकी बात जो मानी थी और शीला भाभी पे लाइन मार रहा था। मैंने एक साथ दोनों का जोबन मर्दन किया, एक उभरता नवल किशोर गदराता उरोज और दूसरी मस्त भरपूर छलकता जोबन के जोर से भरपूर।

“हाँ तो भाभी आप उ साधू की बात बता रही थी…” फिर मैंने बात का रुख शीला भाभी की ओर किया और गुड्डी भी मेरे हमले में शामिल हो गई।

“उ आप मुँह अँधेरे सबेरे गई थी। बोली थी की एक-दो घंटा लगेगा। लेकिन चार घंटा से ऊपर। अरे अगर उ बाबा “इतना टाइम…” लगाये हैं तब तो पक्का। जरूर से…”
गुड्डी की शरारती मीठी निगाह बोल रही थी की “इतना टाइम…” से उसका किस चीज से मतलब था।

लेकिन उसी तरह मुश्कुराते हुए शीला भाभी ने पूरी कहानी बतायी।

“अरे इ सब कुछ नाहीं। जो तुम सोच रही हो। सुबेरे एक सेठानी अपनी नई बहुरिया…” फिर गुड्डी की और देखकर बोली-

“एकदम तोहार समौरिया, उहे रंग रूप उहे जोबन, तोहार ऐसन, त उ ओके। साधू बाबा के पास भेजी की बाबा इसको आशीर्वाद दे देंगे। बहुरिया गई अन्दर। अब साधू बाबा आपन सांप निकारें लेकिन उ फन काढ़े के लिए तैयारे ना होय। बाबा उ बहुरिया से कहें की बेटा जरा इसको हाथ लगाओ, सहलाओ अभी एकदम तन्तानायेगे। लेकिन कुछ ना, आधा घंटा बेचारी बहुरिया। रगड़ती मसलती रही। फिर उ बोले की तनी आपन होंठ लगाओ। उ उहो किहिस और तनिक जान आई। फिर उसके बाद बाबा उसकी बिल में घुसाने की कोशिश की। त उ फिर से केंचुआ। उहो मरघिल्ला। नई बहुरिया की बिल, ओकरे सास का कौनो भोंसड़ा तो था नहीं। कैसे जाता। थोड़े देर बाद उ पगलाय गई और वही बाबा को वो पिटाई। फिर पुलिस आई। तो पता चला की उ कैमरा लगाकर फिल्म बनाकर ब्लैकमेल भी करता था ता पुलिस वाला हम सबका ब्यान लिया इसलिए इतना टाइम लग गया…”

मैं और गुड्डी दोनों मुश्कुराए बिना नहीं रह पाए। गुड्डी अपना होंठ दबाकर बोली- “भाभी जरा किचेन में हेल्प करा दीजिये ना बेलने में…”

शीला भाभी खड़ी होकर उसे छेड़ते हुए बोली- “अभी तुझे बेलन पकड़ना नहीं आया क्या। चल सिखा देती हूँ। तुझे अभी बहुत ट्रेनिंग देनी है…”

वो जब बाहर निकल रही थी तो गुड्डी ने एक बार मुझे देखा और उनसे हँसते हुए बोली- “कड़ियल नाग होते हुए भी आप केंचुए के चक्कर में पड़ गई थी…”



वो दोनों किचेन में चली गई
 

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शीला भाभी, गुड्डी और,....



और गुड्डी सारे गानों में साथ दे रही थी बल्की शीला भाभी को याद भी दिला रही थी। गनीमत था की तभी भाभी ने घड़ी देखी और चौंक पड़ी, अरे 9:40 हो गया, मुझे 9:30 तक ऊपर जाना था। भाभी ने भैया के लिए मूली के पराठे रखे, गुझिया रखी और उठने के पहले गुड्डी से पूछा- “क्यों बहुत बचे तो नहीं…”

“एकदम नहीं। अरे चार तो आपके इस देवर ने खा लिए…” हँसते हुए वो बोली, फिर मेरी थाली देखकर उसने करेक्शन किया, नहीं, नहीं चार नहीं साढ़े तीन। आधा अभी बचा है…” फिर उसने मुझे हड़काया, अरे खतम करो इसको भी। और फिर मेरी थाली से लेकर एक बड़ा सा कौर बनाया और फिर थोड़ा सा खुद खाकर, बाकी अपना अधखाया, जूठा होंठ रस से लिथडा, अपने हाथ से सीधे मेरे मुँह में।

मैं खा गया।


मैंने कनखियों से देखा भाभी गुड्डी को कैसे कैसे देख रही थी, तारीफ, खुशी मजा सब कुछ मिला था उसमें।

“कल सोचती हूँ, केले की सब्जी बनाऊं और बैगन का भुरता, क्यों?” गुड्डी ने भाभी से कहा। (दोनों मेरी स्ट्रांग ना पसंद थी और भाभी से ज्यादा ये किसको मालूम होता।)



“एकदम उठते हुए वो बोली- “और मुश्कुराकर मुझसे कहा, इससे दोस्ती बनाकर रखना। किचेन इसके हवाले है, अब से। अभी भी और आगे भी। फिर शीला भाभी और गुड्डी से बोली- “जरा मुझे। आप लोग किचेन समेट लेना…”

“एकदम। एकदम आप जाओ ना। हमें मालूम है, हम कर लेंगे…” शीला भाभी और मंजू मुश्कुराते हुए एक साथ बोली और गुड्डी ने भी जोर से सिर हिलाया।

तब तक ऊपर से भैया की आवाज आई, और भाभी दौड़ते भागते ऊपर की ओर बढ़ी, लेकिन मैंने, पूछ ही लिया, बड़े भोलेपन से- “भाभी जाइये ना आराम से किस बात की इत्ती जल्दी है…”

अबकी कान की जगह गाल की बारी थी। कसकर उन्होंने चिकोटी काटी, और बोली- “बहुत बोलता है ना, जब मेरी देवरानी आयेगी ना, तो पूछूंगी। किस बात की जल्दी लगी रहेगी…” और ऊपर चल दी।

-----

अचानक मंजू ने एक नया मोर्चा खोल दिया। गुड्डी के ऊपर- “काहे नाम लेने में शर्म लागत है का, बबुनी…” वो गुड्डी की ओर देखकर बोली।

गुड्डी चुप।

भाभी जा चुकी थी। बस शीला भाभी, मुश्कुराते हुए सामने, और उनके बगल में मंजू और इधर गुड्डी के बगल में मैं।

“अरे ऊ गदहे का। का तुम कह रही थी की ना की वो रंजी, रंडी। गदहा का, देखकर पनिया रही थी। त नाम लेने में लाज लग रही थी की गदहवा का लंबा लम्बा लटक रहा था, चलो अब बोलो…” मंजू ने बात साफ की।

अब मैं भी मुश्कुराया, गारी वारी गाना और बात है लेकिन बात-चीत में वो भी जहां सिर्फ सहेलियां ना हो खुल्लम खुला बात करना।

शीला भाभी भी मंजू के साथ आ गईं-


“सही तो कह रही है ये अरे हम लोगों के सामने का शर्म और (मेरी और इशारा करके) इससे भी। बोल ना गदहे का। क्या देख वो छिनार ललचा रही थी…” वो बोली।

गुड्डी अभी भी हिचकिचा रही थी।

मंजू अब अपने रंग में आ गई- “अरे छिनरो, लण्ड छूने में शर्म नहीं, लण्ड पकड़ने में नहीं शर्म नहीं, लण्ड मुँह में लेने में शर्म नहीं, चूत में लण्ड घोंटने में शर्म नहीं। ता ससुरी। काहें नाम लेने में शर्म…”

और शीला भाभी भी बोलने लगी- “अरे तू समझती नहीं। जौने के मुँह से लण्ड का बोल नहीं निकलता फागुन। में उ लड़की को होलिका देवी का शाप लगता है। उ तरसने लगती है लण्ड के लिए। और जो मजा असली चीज में है उ उंगली में नहीं। और हम तो कहते हैं की अगर खूब खोलकर लण्ड बुर सब बोले। ता का पता। परमानेंट लण्ड का इंतजाम हो जाय। रोज घच्चा-घच। घच्चा-घच…”

पता नहीं इस लालच का असर था या शीला भाभी, मंजू भाभी के डबल पेस अटैक का असर या शाम की भांग की बर्फी और खाने के साथ की डबल भांग वाली गुझिया का असर। गुड्डी भी डोलने लगी। उसने मेरी ओर देखा। और मैंने भी मुश्कुराकर शीला भाभी और मंजू का साथ दिया।

लेकिन फिर भी गुड्डी ने मुँह नहीं खोला।

“हूँ उ गदहे का देख रही थी…” मंजू ने फिर पूछा। अब वो आकर गुड्डी के बगल में बैठ गई थी।

मैंने हल्के से बोला- “बोल दे ना…”

गुड्डी पहले मुश्कुराई, फिर बोली- “गदहे का,.... रुकी। फिर बोली- “लण्ड…”

हम सब मुश्कुराने लगे लेकिन शीला भाभी इत्ती आसानी से नहीं छोड़ने वाली थी। उन्होंने फिर गुड्डी को रगड़ा-


“हे मैंने सुना नहीं फिर से बोल ना…”

गुड्डी एक पल के लिए हिचकी फिर मुश्कुराती हुई अबकी जोर से बोली- “गदहे का लण्ड…”

अब शीला भाभी भी आकर मेरे और गुड्डी के बीच में बैठ गई और उसे गले लगाती बोली- “अब हुई ना बात…”

लेकिन मंजू छोड़ती तब ना, उसने फिर गुड्डी से कहलवाया…”अच्छा। कित्ता बड़ा रहा होगा उसका जिससे इन का माल नैन मटका कर रहा था…”

“डेढ़ दो फीट का रहा होगा। लण्ड। एकदम कड़ा…” थूक घोंटते हुए गुड्डी बोली।

भांग का नशा सबके ऊपर चढ़कर बोल रहा था।

अब शीला भाभी की बारी थी गुड्डी को उकसाने की- “बोल तुझे कैसा लण्ड पसंद है…”

“धत्…” गुड्डी गुलाल हो गई।

“फिर छिनालपना…” मंजू ने घुड़का।

“अरे अगर कहीं होलिका देवी ने सुन लिया ना तो तड़पा देंगी, घोंटने को कौन कहे। देखने को नहीं मिलेगा…” शीला भाभी समझाते बोली।


मैं कहने वाला था की मेरे रहते इसे कोई कमी नहीं पड़ने वाली तब तक गुड्डी चीखी। मंजू ने उसकी स्कर्ट को उठाकर पिछवाड़े कसकर चिकोटी काट ली थी।

“बताती हूँ ना। गुड्डी बोली- “लण्ड लंबा मोटा और कड़ा…”

“और हचक कर चोदने वाला…” बात मंजू और शीला भाभी ने एक साथ पूरी की।

मैंने भी बात पूरी की-

जो भरा नहीं हो झांटों से बहती जिसमें वीर्य धार नहीं।

वह लण्ड नहीं वो नूनी है जिसको चूतों से प्यार नहीं।

सब बौरा गए थे, एक तो फगुनाहट ऊपर से चढ़ती जवानी और सबसे ऊपर भांग का नशा और आज शाम की होली ने हम सबका अंतर एकदम खतम कर दिया था। क्या-क्या नहीं बुलवाया, शीला भाभी और मंजू ने गुड्डी से। और उससे कबूल्वाया की आगे से हम चारों (मंजू, शीला भाभी और मेरे अलावा मेरी भाभी भी) के सामने अगर उसने लण्ड, चूत, गाण्ड, चुदाई के अलावा कुछ भी बोला तो बस उसकी खैर नहीं। वो सब लोग लोग टेबल समेट रही थी, और मैंने भी थोड़ी हेल्प की।



फिर मैंने गुड्डी को सुना के बोला- “मुझे नींद आ रही मैं कमरे में चलता हूँ…” और अपने कमरे की ओर मुड़ गया।



गुड्डी भी बोली- “बस मैं दो मिनट में आती हूँ और मेरे पीछे-पीछे…”
Wah kya bat he. Guddi ko kesa lena pasand he. Uske muh se hi bulva liya maza aa gaya. Nanand bhabhi ki masti aap ki kalam se padhne ka maza hi kuchh aur he. Amezing.
 
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शीला भाभी,...भभूत

एक चीज मुझे सुबह से समझ में नहीं आ रही थी तो मैंने पूछ ली- “शीला भाभी कहाँ है सुबह से दिख नहीं रही हैं…”

“अरे तुमको नहीं पता। सुबह से जिस साधू के पास वो जाती हैं, वहीं आज पूजा का आखिरी दिन है, तो भभूत मिलेगी उन्हें। तुम्हें तो मालूम है उनकी शादी के तीन साल हो गए हैं लेकिन बच्चा नहीं हुआ। इसलिए साधू के पास आई है। गाँव में कई लोगों ने उन्हें इस साधू के बारे मैंमैं बोला था की भभूत से बच्चा हो जाता है…” गुड्डी मुश्कुराकर बोली।

मैंने जोर से गुड्डी की टनटनायी, निपल पिंच की और बोला अरी बुद्धू बच्चे भभूत से नहीं ‘इससे’ होते हैं…”


वो खिलखिलाई और बोली- “अरे मेरे बुद्धू मुझे मालूम है और मुझसे ज्यादा शीला भाभी को मालूम है…”

और कसकर मेरे लिंग को दबा दिया। वो तुरंत 90 डिग्री पे हो गया। फिर कड़े मोटे खुले सुपाड़े पे अंगूठे को रगड़ते बोली-

“मैंने तो उन्हें आफर भी कर दिया की ये छ: फूट का आदमी है, आपका देवर भी है किस दिन काम आयेगा, ले लीजिये इसका सफेद भभूत अपने अन्दर…”

और फिर गुड्डी ने मुझे देखकर कहा-
“अरे दे दो ना बिचारी को वीर्य दान, बहुत उपकार मानेगी…” फिर ठसके से बोली-

“किसी को चाहिए तो बहुत नखड़ा दिखा रहे हो। वरना अपनों बहनों का नाम ले लेकर। 61-62 करते होगे, इधर-उधर गिराते रहते होगे…”

गुड्डी ना। उसको समझना बहुत मुश्किल है।

मैंने फिर भी पूछ लिया- “बुद्धू… तू बुरा नहीं मानेगी। अगर मैं किसी और के साथ…”

वह फिर खिलखिलाई, उसने मेरे गाल को चूम लिया और हल्के-हल्के किशोर हाथ मेरे लिंग पे चलाने लगी और बोली- “अरे पगले, अभी तो मेरा नाम परमानेंटली इसपर लिखा नहीं है…”

मैंने तुरन्त उस किशोरी का मुँह भींच दिया और कहा- “सुबह-सुबह ऐसा बोलना भी मत, तुम जानती हो मैं क्या चाहता हूँ…”

दिवाली की फुलझड़ी की तरह हँसती हुई उसने मेरा हाथ हटा दिया और भोर की धुप की तरह खिलती खिलखिलाती बोली-

“मुझे क्या मालूम तुम क्या चाहते हो। और वैसे भी देवरानी चुनने का हक तो तुमने अपनी भौजाई को दे दिया है। लेकिन मान लो मेरा नाम इसपे लिख भी जाय तो। फिर तो और तुम्हारी चांदी…”

मेरे कुछ समझ में नहीं आया। वो भी समझ गई और मुझे समझाते बोली- “अरे यार। मेरे मायके वालियों को तो तुम छोड़ोगे नहीं, मेरी बहनेँ, सहेलियां, भाभियां…”

“तुम्हारी बहनें तो अभी बहुत छोटी है…” मैंने मुँह बनाकर कहा।

“तुम्हारे ऐसा जीजा मिलेगा तो कब तक वो छोटी रहेगीं। तुम्हारा हाथ पड़ेगा तो दिन दुनी बढेंगी। वो हँसी फिर बोली लेकिन तब तक मेरी सहेलिया, गुंजा, महक ने तो आलरेडी नंबर लगा दिया है। इस बार ही इसका रस वो लेकर रहेंगी।

फिर मेरी ममेरी बहन नेहा। और मौसेरी बहनें सब उम्र में मुझसे एक-दो साल ऊपर-नीचे ही होंगी। और तुम्हें “लोलिता…” टाइप सालियां कैसी लगती हैं…” आँख नचाकर अपने बाले जोबन को उभार के उसने पूछा।

कच्ची कलियां किसे नहीं पसंद होंगी। खास तौर से जब उस दौर में भी उनमें खिलते फूलों का रंग और खुशबू आनी शुरू हो जाए। और मैंने भी बोल दिया- “हाँ एकदम पसंद हैं लेकिन तुम किसके बारे में बोल रही है और क्या गारंटी वो लिफ्ट दे या ना दे…”

“अरे किस साली की हिम्मत है जो अपने इस जीजू को मना कर दे और अगर इस बार जिसके होंठों पे तुम ये बांसुरी लगा दोगे। वो पीछे-पीछे फिरेगी और फिर कोई नाज नखड़ा करे तो। थोड़ी जोर जबरदस्ती भी चलती है जीजा साली में। आखीरकार, तुम्हारा हक है। याद है मेरे वो मुट्ठीगंज, अलाहाबाद वाले मामा जी की…”

गुड्डी ने मुश्कुरा कर कहा।



“कैसे भूल सकता हूँ मैं उनको खास तौर से तुम्हारी तीनों बहनों को। और उनकी मम्मी को…” मैंने भी मुश्कुराकर कहा।
Bhabhi ke muh se ye paheli line jese samne ho rahe kisse ka ehsas dilati he. Dill aaj khush khush kar diya.

और फिर गुड्डी ने मुझे देखकर कहा-
“अरे दे दो ना बिचारी को वीर्य दान, बहुत उपकार मानेगी…” फिर ठसके से बोली-

“किसी को चाहिए तो बहुत नखड़ा दिखा रहे हो। वरना अपनों बहनों का नाम ले लेकर। 61-62 करते होगे, इधर-उधर गिराते रहते होगे…”

गुड्डी ना। उसको समझना बहुत मुश्किल है।

मैंने फिर भी पूछ लिया- “बुद्धू… तू बुरा नहीं मानेगी। अगर मैं किसी और के साथ…”
 
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शीला भाभी

वास्तव में मुझे नहीं मालूम था की वो क्या बोलने वाली है।

उसने बात नहीं बतायी सिर्फ मेरे होंठों पे एक जबर्दस्त किस लिया। बल्की होंठों को चूस लिया कसकर और बोली-

“यही की। तुम, बहुत अच्छे हो। थोड़े नहीं बहुत। मुझे मालूम था की तुम मेरी बात टालोगे नहीं। इसलिए मैंने उनसे प्रामिस कर दिया था की तुम शीला भाभी के लौटने से पहले, सिर्फ करोगे ही नहीं बल्की वो जिस काम के लिए आई हैं उसे पूरा कर दोगे। तभी तो कल रात पन्दरह मिनट में उनके पास से छूट के तुम्हारे पास आ गई थी। और अब उनसे घबड़ाने की भी कोई बात नहीं…”


तभी उसे कुछ याद आया और वो मेरा छुड़ाते हुए बोली-


“तुम बहुत बहुत बुरे हो। तुम्हारे पास आने के बाद मैं सब कुछ भूल जाती हूँ। कुछ भी ध्यान नहीं रहता। अब देखो, अभी शीला भाभी भी नहीं है और पूरा किचेन का काम तुम्हारी भाभी मेरे हवाले करके ऊपर बीजी है। अव सीधे एक घंटे में आँएगी और पूरा खाना तैयार होना चाहिए…”

वो उठी और अभी कमरे से बाहर निकल भी नहीं पायी थी की जैसे की लोग कहते है ना। शैतान का नाम लो और, तो शीला भाभी हाजिर। और गुड्डी को देखकर उन्होंने बहुत ही अर्थ पूर्ण ढंग से मुश्कुराया। लेकिन गुड्डी भी ना। उसने हल्के से उनको आँख मार दी और मुझको दिखाते हुए अपने मस्त बड़े-बड़े चूतड़ मटकाते बाहर निकल दी।

वो उठी और शीला भाभी मेरे सिंहासन पर।

मैंने खींचकर जबरन उनको अपने गोद में बैठा लिया था। और एक हाथ से उनके गोरे-गोरे गाल को सहलाते हुए पूछा- “भौजी आज सबेरे सबेरे किसको दरसन देने चली गई थी…”

मेरी बात टालते हुए, उन्होंने अपने भारी नितम्बों से पूरी तरह खड़े जंगबहादुर को दबाते हुए मुझे छेड़ा और बोली-

“लाला, झंडा तो बहुत जबर्दस्त खड़ा किये हो। अभी फहराए की नहीं। अरे मौका था तोहार भौजाई ऊपर लगवाय रही हैं। त तुमहूँ ठोंक दिहे होते छोकरिया का, बहुत छर्छरात फिरत है। एक बार इ घोंट लेगी ना ता बस गर्मी ठंडी हो जायेगी। खुदे मौका ढूँढ़ेगी तोहरे नीचे आने की। लेकिन तू तो मौका पाय के भी खाली ऊपर झांपर से मजा लैके। अरे इ अगर गाँव में होती ना त कितने लौंडे अरहर अउर गन्ना के खेत में चोद चोद के, लेकिन तू शहर वाले ना…”

बात त भाभी की कुछ ठीक थी और उसकी ताकीद मैंने उनकी दोनों खूब गदराई चूची को दाब कर की।

“लेकिन भाभी आप सबेरे सबेरे। इहाँ कौनो यार वार है का…” मैंने जानते हुए भी पूछा।

“अरे एक ठो साधू है ना। बस उही के चक्कर में…” उन्होंने कुछ इशारा किया और मैंने बात आगे बढ़ाई।

“अरे कहाँ बूढ़ पुरनिया साधू के चक्कर में भौजी। हम तो इहाँ जवान हट्टा कट्टा देवर घर में। और। अरे आप एक मौका दीजिये हम बोले तो थे की ठीक नौ महीने बाद सोहर होगा। गारंटी…”

और मैंने शीला भाभी के ब्लाउज़ के दो बटन भी खोल दिए। इत्ते मस्त रसीले जोबन का कैद में रखना नाइंसाफी है। और शीला भाभी ने कोई ऐतराज नहीं किया ना कोई रोक टोक।

बस बोला- “लाला, हम कब मना किये हैं। लेकिन तुमसे तो उ छटांक भर की लड़की पटती नहीं और। चलो आज हो जाय रात में कबड्डी…” वो बोली।

अब मेरे लिए मुश्किल थी। आज तो गुड्डी के पिछवाड़े का उद्घाटन था। मैंने फिर कम्प्यूटर देवी की सहायता से बात संभाली और एक साईट खोली और शीला भाभी को दिखाया। गर्भाधान के लिए उत्तम मुहूर्त। उनकी निगाह कंप्यूटर से एकदम चिपक गई थी।

मैंने उन्हें समझाया…”

अरे भौजी मजा लेना हो तो कभी भी ले लें। लेकिन हमें तो 9 महीने बाद आपके आँगन में किलकारी सुननी है ना। इसलिये ये देखिये…” साईट पर लिखा था की पूनम की रात में सम्भोग करने से गर्भाधान अवश्य होता है।

मैंने शीला भाभी को समझाया की आज रात आप पूरी तरह से आराम करिए। कल होली है ना, पूनम की रात। तो बस कल रतजगा होगा देवर भाभी का और 9 महीने बाद पूनम ऐसी बेटी। चन्दा चकोरी ऐसी…”

भाभी कंप्यूटर देख रही थी, उसमें तमाम तंत्र मन्त्र कुंडली इत्यादि बने थे। मन्त्र मुग्ध होकर मेरी ओर देखकर बोली- “लाला बात तो तू सोलह आना सच कह रहे हो। इ मशिनिया त उ बबवा से केतना आगे है…”

एक बटन और खुली और मेरा हाथ अब शीला भाभी के ब्लाउज़ में अन्दर था और खुलकर जोबन मर्दन का सुख ले रहा था।

“ता भाभी उ साधू त कतौं भभूत के नाम पे इ हमारी छमक छल्लो भौजी। के साथ…”

“अरे लाला ‘उ’ खड़ा ना होए ओकर ढंग से। आज इहे तो तमाशा हो गया…”

वो अपनी कहानी शुरू करती की गुड्डी पास में आकर खड़ी हो गई।



भाभी थोड़ा कुनमुनाई, थोड़ा कसमसाई लेकिन मैंने उनके ब्लाउज़ से हाथ बाहर नहीं निकाला और उनके कान में बोला-

“अरे भौजी, इससे क्या शर्माना छिपाना, ये भी तो अपने गैंग की है…”

और दूसरा हाथ सीधे गुड्डी के मस्त टाईट कुर्ते के बाहर छलकते, गदराये, गुदाज जोबन के ऊपर और उसे मैंने बिना झिझके दबा दिया। गुड्डी ने ना मेरा हाथ हटाया न पास से सरकी बल्की और सट गई और तारीफ भरी निगाह से मेरी ओर देखने लगी। आखीरकार, मैंने उसकी बात जो मानी थी और शीला भाभी पे लाइन मार रहा था। मैंने एक साथ दोनों का जोबन मर्दन किया, एक उभरता नवल किशोर गदराता उरोज और दूसरी मस्त भरपूर छलकता जोबन के जोर से भरपूर।

“हाँ तो भाभी आप उ साधू की बात बता रही थी…” फिर मैंने बात का रुख शीला भाभी की ओर किया और गुड्डी भी मेरे हमले में शामिल हो गई।

“उ आप मुँह अँधेरे सबेरे गई थी। बोली थी की एक-दो घंटा लगेगा। लेकिन चार घंटा से ऊपर। अरे अगर उ बाबा “इतना टाइम…” लगाये हैं तब तो पक्का। जरूर से…”
गुड्डी की शरारती मीठी निगाह बोल रही थी की “इतना टाइम…” से उसका किस चीज से मतलब था।

लेकिन उसी तरह मुश्कुराते हुए शीला भाभी ने पूरी कहानी बतायी।

“अरे इ सब कुछ नाहीं। जो तुम सोच रही हो। सुबेरे एक सेठानी अपनी नई बहुरिया…” फिर गुड्डी की और देखकर बोली-


“एकदम तोहार समौरिया, उहे रंग रूप उहे जोबन, तोहार ऐसन, त उ ओके। साधू बाबा के पास भेजी की बाबा इसको आशीर्वाद दे देंगे। बहुरिया गई अन्दर। अब साधू बाबा आपन सांप निकारें लेकिन उ फन काढ़े के लिए तैयारे ना होय। बाबा उ बहुरिया से कहें की बेटा जरा इसको हाथ लगाओ, सहलाओ अभी एकदम तन्तानायेगे। लेकिन कुछ ना, आधा घंटा बेचारी बहुरिया। रगड़ती मसलती रही। फिर उ बोले की तनी आपन होंठ लगाओ। उ उहो किहिस और तनिक जान आई। फिर उसके बाद बाबा उसकी बिल में घुसाने की कोशिश की। त उ फिर से केंचुआ। उहो मरघिल्ला। नई बहुरिया की बिल, ओकरे सास का कौनो भोंसड़ा तो था नहीं। कैसे जाता। थोड़े देर बाद उ पगलाय गई और वही बाबा को वो पिटाई। फिर पुलिस आई। तो पता चला की उ कैमरा लगाकर फिल्म बनाकर ब्लैकमेल भी करता था ता पुलिस वाला हम सबका ब्यान लिया इसलिए इतना टाइम लग गया…”

मैं और गुड्डी दोनों मुश्कुराए बिना नहीं रह पाए। गुड्डी अपना होंठ दबाकर बोली- “भाभी जरा किचेन में हेल्प करा दीजिये ना बेलने में…”

शीला भाभी खड़ी होकर उसे छेड़ते हुए बोली- “अभी तुझे बेलन पकड़ना नहीं आया क्या। चल सिखा देती हूँ। तुझे अभी बहुत ट्रेनिंग देनी है…”

वो जब बाहर निकल रही थी तो गुड्डी ने एक बार मुझे देखा और उनसे हँसते हुए बोली- “कड़ियल नाग होते हुए भी आप केंचुए के चक्कर में पड़ गई थी…”




वो दोनों किचेन में चली गई
Amezing komalji. Pichhle ke bhi 2 updates baki the. Jiska muje pata hi nahi tha. Or usi me vahi gariyane vale geet the. Jiski me deewani hu. Maza aa gaya.
 
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