शीला भाभी
वास्तव में मुझे नहीं मालूम था की वो क्या बोलने वाली है।
उसने बात नहीं बतायी सिर्फ मेरे होंठों पे एक जबर्दस्त किस लिया। बल्की होंठों को चूस लिया कसकर और बोली-
“यही की। तुम, बहुत अच्छे हो। थोड़े नहीं बहुत। मुझे मालूम था की तुम मेरी बात टालोगे नहीं। इसलिए मैंने उनसे प्रामिस कर दिया था की तुम शीला भाभी के लौटने से पहले, सिर्फ करोगे ही नहीं बल्की वो जिस काम के लिए आई हैं उसे पूरा कर दोगे। तभी तो कल रात पन्दरह मिनट में उनके पास से छूट के तुम्हारे पास आ गई थी। और अब उनसे घबड़ाने की भी कोई बात नहीं…”
तभी उसे कुछ याद आया और वो मेरा छुड़ाते हुए बोली-
“तुम बहुत बहुत बुरे हो। तुम्हारे पास आने के बाद मैं सब कुछ भूल जाती हूँ। कुछ भी ध्यान नहीं रहता। अब देखो, अभी शीला भाभी भी नहीं है और पूरा किचेन का काम तुम्हारी भाभी मेरे हवाले करके ऊपर बीजी है। अव सीधे एक घंटे में आँएगी और पूरा खाना तैयार होना चाहिए…”
वो उठी और अभी कमरे से बाहर निकल भी नहीं पायी थी की जैसे की लोग कहते है ना। शैतान का नाम लो और, तो शीला भाभी हाजिर। और गुड्डी को देखकर उन्होंने बहुत ही अर्थ पूर्ण ढंग से मुश्कुराया। लेकिन गुड्डी भी ना। उसने हल्के से उनको आँख मार दी और मुझको दिखाते हुए अपने मस्त बड़े-बड़े चूतड़ मटकाते बाहर निकल दी।
वो उठी और शीला भाभी मेरे सिंहासन पर।
मैंने खींचकर जबरन उनको अपने गोद में बैठा लिया था। और एक हाथ से उनके गोरे-गोरे गाल को सहलाते हुए पूछा- “भौजी आज सबेरे सबेरे किसको दरसन देने चली गई थी…”
मेरी बात टालते हुए, उन्होंने अपने भारी नितम्बों से पूरी तरह खड़े जंगबहादुर को दबाते हुए मुझे छेड़ा और बोली-
“लाला, झंडा तो बहुत जबर्दस्त खड़ा किये हो। अभी फहराए की नहीं। अरे मौका था तोहार भौजाई ऊपर लगवाय रही हैं। त तुमहूँ ठोंक दिहे होते छोकरिया का, बहुत छर्छरात फिरत है। एक बार इ घोंट लेगी ना ता बस गर्मी ठंडी हो जायेगी। खुदे मौका ढूँढ़ेगी तोहरे नीचे आने की। लेकिन तू तो मौका पाय के भी खाली ऊपर झांपर से मजा लैके। अरे इ अगर गाँव में होती ना त कितने लौंडे अरहर अउर गन्ना के खेत में चोद चोद के, लेकिन तू शहर वाले ना…”
बात त भाभी की कुछ ठीक थी और उसकी ताकीद मैंने उनकी दोनों खूब गदराई चूची को दाब कर की।
“लेकिन भाभी आप सबेरे सबेरे। इहाँ कौनो यार वार है का…” मैंने जानते हुए भी पूछा।
“अरे एक ठो साधू है ना। बस उही के चक्कर में…” उन्होंने कुछ इशारा किया और मैंने बात आगे बढ़ाई।
“अरे कहाँ बूढ़ पुरनिया साधू के चक्कर में भौजी। हम तो इहाँ जवान हट्टा कट्टा देवर घर में। और। अरे आप एक मौका दीजिये हम बोले तो थे की ठीक नौ महीने बाद सोहर होगा। गारंटी…”
और मैंने शीला भाभी के ब्लाउज़ के दो बटन भी खोल दिए। इत्ते मस्त रसीले जोबन का कैद में रखना नाइंसाफी है। और शीला भाभी ने कोई ऐतराज नहीं किया ना कोई रोक टोक।
बस बोला- “लाला, हम कब मना किये हैं। लेकिन तुमसे तो उ छटांक भर की लड़की पटती नहीं और। चलो आज हो जाय रात में कबड्डी…” वो बोली।
अब मेरे लिए मुश्किल थी। आज तो गुड्डी के पिछवाड़े का उद्घाटन था। मैंने फिर कम्प्यूटर देवी की सहायता से बात संभाली और एक साईट खोली और शीला भाभी को दिखाया। गर्भाधान के लिए उत्तम मुहूर्त। उनकी निगाह कंप्यूटर से एकदम चिपक गई थी।
मैंने उन्हें समझाया…”
अरे भौजी मजा लेना हो तो कभी भी ले लें। लेकिन हमें तो 9 महीने बाद आपके आँगन में किलकारी सुननी है ना। इसलिये ये देखिये…” साईट पर लिखा था की पूनम की रात में सम्भोग करने से गर्भाधान अवश्य होता है।
मैंने शीला भाभी को समझाया की आज रात आप पूरी तरह से आराम करिए। कल होली है ना, पूनम की रात। तो बस कल रतजगा होगा देवर भाभी का और 9 महीने बाद पूनम ऐसी बेटी। चन्दा चकोरी ऐसी…”
भाभी कंप्यूटर देख रही थी, उसमें तमाम तंत्र मन्त्र कुंडली इत्यादि बने थे। मन्त्र मुग्ध होकर मेरी ओर देखकर बोली- “लाला बात तो तू सोलह आना सच कह रहे हो। इ मशिनिया त उ बबवा से केतना आगे है…”
एक बटन और खुली और मेरा हाथ अब शीला भाभी के ब्लाउज़ में अन्दर था और खुलकर जोबन मर्दन का सुख ले रहा था।
“ता भाभी उ साधू त कतौं भभूत के नाम पे इ हमारी छमक छल्लो भौजी। के साथ…”
“अरे लाला ‘उ’ खड़ा ना होए ओकर ढंग से। आज इहे तो तमाशा हो गया…”
वो अपनी कहानी शुरू करती की गुड्डी पास में आकर खड़ी हो गई।
भाभी थोड़ा कुनमुनाई, थोड़ा कसमसाई लेकिन मैंने उनके ब्लाउज़ से हाथ बाहर नहीं निकाला और उनके कान में बोला-
“अरे भौजी, इससे क्या शर्माना छिपाना, ये भी तो अपने गैंग की है…”
और दूसरा हाथ सीधे गुड्डी के मस्त टाईट कुर्ते के बाहर छलकते, गदराये, गुदाज जोबन के ऊपर और उसे मैंने बिना झिझके दबा दिया। गुड्डी ने ना मेरा हाथ हटाया न पास से सरकी बल्की और सट गई और तारीफ भरी निगाह से मेरी ओर देखने लगी। आखीरकार, मैंने उसकी बात जो मानी थी और शीला भाभी पे लाइन मार रहा था। मैंने एक साथ दोनों का जोबन मर्दन किया, एक उभरता नवल किशोर गदराता उरोज और दूसरी मस्त भरपूर छलकता जोबन के जोर से भरपूर।
“हाँ तो भाभी आप उ साधू की बात बता रही थी…” फिर मैंने बात का रुख शीला भाभी की ओर किया और गुड्डी भी मेरे हमले में शामिल हो गई।
“उ आप मुँह अँधेरे सबेरे गई थी। बोली थी की एक-दो घंटा लगेगा। लेकिन चार घंटा से ऊपर। अरे अगर उ बाबा “इतना टाइम…” लगाये हैं तब तो पक्का। जरूर से…”
गुड्डी की शरारती मीठी निगाह बोल रही थी की “इतना टाइम…” से उसका किस चीज से मतलब था।
लेकिन उसी तरह मुश्कुराते हुए शीला भाभी ने पूरी कहानी बतायी।
“अरे इ सब कुछ नाहीं। जो तुम सोच रही हो। सुबेरे एक सेठानी अपनी नई बहुरिया…” फिर गुड्डी की और देखकर बोली-
“एकदम तोहार समौरिया, उहे रंग रूप उहे जोबन, तोहार ऐसन, त उ ओके। साधू बाबा के पास भेजी की बाबा इसको आशीर्वाद दे देंगे। बहुरिया गई अन्दर। अब साधू बाबा आपन सांप निकारें लेकिन उ फन काढ़े के लिए तैयारे ना होय। बाबा उ बहुरिया से कहें की बेटा जरा इसको हाथ लगाओ, सहलाओ अभी एकदम तन्तानायेगे। लेकिन कुछ ना, आधा घंटा बेचारी बहुरिया। रगड़ती मसलती रही। फिर उ बोले की तनी आपन होंठ लगाओ। उ उहो किहिस और तनिक जान आई। फिर उसके बाद बाबा उसकी बिल में घुसाने की कोशिश की। त उ फिर से केंचुआ। उहो मरघिल्ला। नई बहुरिया की बिल, ओकरे सास का कौनो भोंसड़ा तो था नहीं। कैसे जाता। थोड़े देर बाद उ पगलाय गई और वही बाबा को वो पिटाई। फिर पुलिस आई। तो पता चला की उ कैमरा लगाकर फिल्म बनाकर ब्लैकमेल भी करता था ता पुलिस वाला हम सबका ब्यान लिया इसलिए इतना टाइम लग गया…”
मैं और गुड्डी दोनों मुश्कुराए बिना नहीं रह पाए। गुड्डी अपना होंठ दबाकर बोली- “भाभी जरा किचेन में हेल्प करा दीजिये ना बेलने में…”
शीला भाभी खड़ी होकर उसे छेड़ते हुए बोली- “अभी तुझे बेलन पकड़ना नहीं आया क्या। चल सिखा देती हूँ। तुझे अभी बहुत ट्रेनिंग देनी है…”
वो जब बाहर निकल रही थी तो गुड्डी ने एक बार मुझे देखा और उनसे हँसते हुए बोली- “कड़ियल नाग होते हुए भी आप केंचुए के चक्कर में पड़ गई थी…”
वो दोनों किचेन में चली गई