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Erotica रंग -प्रसंग,कोमल के संग

komaalrani

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भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी

Phagun ke din chaar update posted

please read, like, enjoy and comment






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तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी
 

malikarman

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शीला भाभी

वास्तव में मुझे नहीं मालूम था की वो क्या बोलने वाली है।

उसने बात नहीं बतायी सिर्फ मेरे होंठों पे एक जबर्दस्त किस लिया। बल्की होंठों को चूस लिया कसकर और बोली-

“यही की। तुम, बहुत अच्छे हो। थोड़े नहीं बहुत। मुझे मालूम था की तुम मेरी बात टालोगे नहीं। इसलिए मैंने उनसे प्रामिस कर दिया था की तुम शीला भाभी के लौटने से पहले, सिर्फ करोगे ही नहीं बल्की वो जिस काम के लिए आई हैं उसे पूरा कर दोगे। तभी तो कल रात पन्दरह मिनट में उनके पास से छूट के तुम्हारे पास आ गई थी। और अब उनसे घबड़ाने की भी कोई बात नहीं…”


तभी उसे कुछ याद आया और वो मेरा छुड़ाते हुए बोली-


“तुम बहुत बहुत बुरे हो। तुम्हारे पास आने के बाद मैं सब कुछ भूल जाती हूँ। कुछ भी ध्यान नहीं रहता। अब देखो, अभी शीला भाभी भी नहीं है और पूरा किचेन का काम तुम्हारी भाभी मेरे हवाले करके ऊपर बीजी है। अव सीधे एक घंटे में आँएगी और पूरा खाना तैयार होना चाहिए…”

वो उठी और अभी कमरे से बाहर निकल भी नहीं पायी थी की जैसे की लोग कहते है ना। शैतान का नाम लो और, तो शीला भाभी हाजिर। और गुड्डी को देखकर उन्होंने बहुत ही अर्थ पूर्ण ढंग से मुश्कुराया। लेकिन गुड्डी भी ना। उसने हल्के से उनको आँख मार दी और मुझको दिखाते हुए अपने मस्त बड़े-बड़े चूतड़ मटकाते बाहर निकल दी।

वो उठी और शीला भाभी मेरे सिंहासन पर।

मैंने खींचकर जबरन उनको अपने गोद में बैठा लिया था। और एक हाथ से उनके गोरे-गोरे गाल को सहलाते हुए पूछा- “भौजी आज सबेरे सबेरे किसको दरसन देने चली गई थी…”

मेरी बात टालते हुए, उन्होंने अपने भारी नितम्बों से पूरी तरह खड़े जंगबहादुर को दबाते हुए मुझे छेड़ा और बोली-

“लाला, झंडा तो बहुत जबर्दस्त खड़ा किये हो। अभी फहराए की नहीं। अरे मौका था तोहार भौजाई ऊपर लगवाय रही हैं। त तुमहूँ ठोंक दिहे होते छोकरिया का, बहुत छर्छरात फिरत है। एक बार इ घोंट लेगी ना ता बस गर्मी ठंडी हो जायेगी। खुदे मौका ढूँढ़ेगी तोहरे नीचे आने की। लेकिन तू तो मौका पाय के भी खाली ऊपर झांपर से मजा लैके। अरे इ अगर गाँव में होती ना त कितने लौंडे अरहर अउर गन्ना के खेत में चोद चोद के, लेकिन तू शहर वाले ना…”

बात त भाभी की कुछ ठीक थी और उसकी ताकीद मैंने उनकी दोनों खूब गदराई चूची को दाब कर की।

“लेकिन भाभी आप सबेरे सबेरे। इहाँ कौनो यार वार है का…” मैंने जानते हुए भी पूछा।

“अरे एक ठो साधू है ना। बस उही के चक्कर में…” उन्होंने कुछ इशारा किया और मैंने बात आगे बढ़ाई।

“अरे कहाँ बूढ़ पुरनिया साधू के चक्कर में भौजी। हम तो इहाँ जवान हट्टा कट्टा देवर घर में। और। अरे आप एक मौका दीजिये हम बोले तो थे की ठीक नौ महीने बाद सोहर होगा। गारंटी…”

और मैंने शीला भाभी के ब्लाउज़ के दो बटन भी खोल दिए। इत्ते मस्त रसीले जोबन का कैद में रखना नाइंसाफी है। और शीला भाभी ने कोई ऐतराज नहीं किया ना कोई रोक टोक।

बस बोला- “लाला, हम कब मना किये हैं। लेकिन तुमसे तो उ छटांक भर की लड़की पटती नहीं और। चलो आज हो जाय रात में कबड्डी…” वो बोली।

अब मेरे लिए मुश्किल थी। आज तो गुड्डी के पिछवाड़े का उद्घाटन था। मैंने फिर कम्प्यूटर देवी की सहायता से बात संभाली और एक साईट खोली और शीला भाभी को दिखाया। गर्भाधान के लिए उत्तम मुहूर्त। उनकी निगाह कंप्यूटर से एकदम चिपक गई थी।

मैंने उन्हें समझाया…”

अरे भौजी मजा लेना हो तो कभी भी ले लें। लेकिन हमें तो 9 महीने बाद आपके आँगन में किलकारी सुननी है ना। इसलिये ये देखिये…” साईट पर लिखा था की पूनम की रात में सम्भोग करने से गर्भाधान अवश्य होता है।

मैंने शीला भाभी को समझाया की आज रात आप पूरी तरह से आराम करिए। कल होली है ना, पूनम की रात। तो बस कल रतजगा होगा देवर भाभी का और 9 महीने बाद पूनम ऐसी बेटी। चन्दा चकोरी ऐसी…”

भाभी कंप्यूटर देख रही थी, उसमें तमाम तंत्र मन्त्र कुंडली इत्यादि बने थे। मन्त्र मुग्ध होकर मेरी ओर देखकर बोली- “लाला बात तो तू सोलह आना सच कह रहे हो। इ मशिनिया त उ बबवा से केतना आगे है…”

एक बटन और खुली और मेरा हाथ अब शीला भाभी के ब्लाउज़ में अन्दर था और खुलकर जोबन मर्दन का सुख ले रहा था।

“ता भाभी उ साधू त कतौं भभूत के नाम पे इ हमारी छमक छल्लो भौजी। के साथ…”

“अरे लाला ‘उ’ खड़ा ना होए ओकर ढंग से। आज इहे तो तमाशा हो गया…”

वो अपनी कहानी शुरू करती की गुड्डी पास में आकर खड़ी हो गई।



भाभी थोड़ा कुनमुनाई, थोड़ा कसमसाई लेकिन मैंने उनके ब्लाउज़ से हाथ बाहर नहीं निकाला और उनके कान में बोला-

“अरे भौजी, इससे क्या शर्माना छिपाना, ये भी तो अपने गैंग की है…”

और दूसरा हाथ सीधे गुड्डी के मस्त टाईट कुर्ते के बाहर छलकते, गदराये, गुदाज जोबन के ऊपर और उसे मैंने बिना झिझके दबा दिया। गुड्डी ने ना मेरा हाथ हटाया न पास से सरकी बल्की और सट गई और तारीफ भरी निगाह से मेरी ओर देखने लगी। आखीरकार, मैंने उसकी बात जो मानी थी और शीला भाभी पे लाइन मार रहा था। मैंने एक साथ दोनों का जोबन मर्दन किया, एक उभरता नवल किशोर गदराता उरोज और दूसरी मस्त भरपूर छलकता जोबन के जोर से भरपूर।

“हाँ तो भाभी आप उ साधू की बात बता रही थी…” फिर मैंने बात का रुख शीला भाभी की ओर किया और गुड्डी भी मेरे हमले में शामिल हो गई।

“उ आप मुँह अँधेरे सबेरे गई थी। बोली थी की एक-दो घंटा लगेगा। लेकिन चार घंटा से ऊपर। अरे अगर उ बाबा “इतना टाइम…” लगाये हैं तब तो पक्का। जरूर से…”
गुड्डी की शरारती मीठी निगाह बोल रही थी की “इतना टाइम…” से उसका किस चीज से मतलब था।

लेकिन उसी तरह मुश्कुराते हुए शीला भाभी ने पूरी कहानी बतायी।

“अरे इ सब कुछ नाहीं। जो तुम सोच रही हो। सुबेरे एक सेठानी अपनी नई बहुरिया…” फिर गुड्डी की और देखकर बोली-


“एकदम तोहार समौरिया, उहे रंग रूप उहे जोबन, तोहार ऐसन, त उ ओके। साधू बाबा के पास भेजी की बाबा इसको आशीर्वाद दे देंगे। बहुरिया गई अन्दर। अब साधू बाबा आपन सांप निकारें लेकिन उ फन काढ़े के लिए तैयारे ना होय। बाबा उ बहुरिया से कहें की बेटा जरा इसको हाथ लगाओ, सहलाओ अभी एकदम तन्तानायेगे। लेकिन कुछ ना, आधा घंटा बेचारी बहुरिया। रगड़ती मसलती रही। फिर उ बोले की तनी आपन होंठ लगाओ। उ उहो किहिस और तनिक जान आई। फिर उसके बाद बाबा उसकी बिल में घुसाने की कोशिश की। त उ फिर से केंचुआ। उहो मरघिल्ला। नई बहुरिया की बिल, ओकरे सास का कौनो भोंसड़ा तो था नहीं। कैसे जाता। थोड़े देर बाद उ पगलाय गई और वही बाबा को वो पिटाई। फिर पुलिस आई। तो पता चला की उ कैमरा लगाकर फिल्म बनाकर ब्लैकमेल भी करता था ता पुलिस वाला हम सबका ब्यान लिया इसलिए इतना टाइम लग गया…”

मैं और गुड्डी दोनों मुश्कुराए बिना नहीं रह पाए। गुड्डी अपना होंठ दबाकर बोली- “भाभी जरा किचेन में हेल्प करा दीजिये ना बेलने में…”

शीला भाभी खड़ी होकर उसे छेड़ते हुए बोली- “अभी तुझे बेलन पकड़ना नहीं आया क्या। चल सिखा देती हूँ। तुझे अभी बहुत ट्रेनिंग देनी है…”

वो जब बाहर निकल रही थी तो गुड्डी ने एक बार मुझे देखा और उनसे हँसते हुए बोली- “कड़ियल नाग होते हुए भी आप केंचुए के चक्कर में पड़ गई थी…”




वो दोनों किचेन में चली गई
Good one update
 

motaalund

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ekdm sahi kaaha aapne and that is why i introduced her back in MOHE RANG DE, where i was planning a sequel with a background of dystopian world, and convergence of technologies threatening Individual identity with both Reet and K fighting together. But i realized it will be hard to get readers and some mods may also object.
There is always a workaround.
Like ages of characters can be represented in your story and you have left it to imagination of each readers without violating forum rules.
 

motaalund

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शीला भाभी, गुड्डी और

मैंने रंग प्रसंग में कई प्रसंग फागुन के दिन चार के शेयर किये थे कुछ होली के, कुछ रीत करन के और कुछ गुड्डी के भी जहाँ शीला भाभी का भी जिक्र आया था उन्होंने ही गुड्डी की सेटिंग कराई, उसे लेकर मंदिर गयीं, जोड़े से पूजा करवाई, लगन तारीख तय करवाई और होली में भी भौजाइयों की ओर से उन्होंने और मंजू ने जबरदस्त

कुछ मित्रों का आग्रह है इस रंग प्रसंग में शीला भाभी से भी जुड़े प्रसंग तो प्रस्तुत है

फागुन के दिन चार के शीला भाभी से जुड़े प्रसंग
शीला भाभी या शीला की जवानी...
 

motaalund

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शीला भाभी,



अब गुड्डी और शीला भाभी दोनों एक दूसरे के साथ गुत्थम गुथा थे। शीला भाभी का हाथ तो पहले ही उस कली के स्कूल यूनिफार्म के अन्दर था। लेकिन अब गुड्डी भी पीछे नहीं थी। आखीरकार, वो भी बनारस के मशहूर दूबे भाभी और चन्दा भाभी के स्कूल की पढ़ी थी।

उसकी उंगलियों ने कुछ ऐसी हरकत की की शीला भाभी की भी चीख निकल पड़ी और जवाब में उन्होंने भी लगता है की पूरी उंगली जड़ तक।

गुड्डी ने भी बहुत जोर से सिसकी भरी।

तब तक शीला भाभी की निगाह मेरे ऊपर पड़ गई की मैं उन लोगों की लीला का रस ले रहा हूँ, वो बहुत जोर से मुश्कुरायीं और मैं भी। मैंने उल्टे दो उंगली का इशारा किया और सिर हिलाकर उन्होंने हामी भरी। आखीरकार, गुड्डी भी तो मंजू के साथ मिलकर मेरी रगड़ाई कर रही थी।

लेकिन जब तक कुछ और होली आगे बढ़ती, बाहर से भैया के आने की आवाज सुनाई दी। फिर तो हम सब तितर बितर। हो गए।



मैं तो देवर लगता था, लेकिन भैया काफी बड़े थे और वो रिश्ते में शीला भाभी के जेठ ही लगते थे इसलिए वो पूरा पर्दा करती थी। गुड्डी छटक कर बाथरूम चली गई थी। मैं मंजू और शीला भाभी एक कमरे में। और जिस तरह हम तीनों एक दूसरे को देख रहे थे। लग रहा था की सारा दुराव, छिपाव, संकोच, झिझक खतम हो गई थी। हम तीनों एक दूसरे को देखकर मुश्कुरा रहे थे। मंजू फिर आँगन में लगे नल पे हाथ पैर धोने और उसके बाद किचेन में चली।


मैंने शीला भाभी को छेड़ते हुए कहा- “भौजी परसों की रात होली की रात है, दूज के चाँद से पूर्णमासी बना दूंगा…”



वो बोली- “आज क्यों नहीं?”



मैंने कहा- “वो संयोग परसों की रात का है। जब ठीक 9 महीने बाद सोहर होगा…”
गुड्डी बाथरूम से निकल आई थी तो वो मुझे मीठी निगाहों से देखती हुई वहां घुस गई।

गुड्डी से मैंने कहा- “यार अपनी होली तो हुई नहीं…”

उसने मेरे गाल पे एक कसकर चिकोटी काटी और अपनी बड़ी-बड़ी कजरारी आँख नचाकर बोली- “अरे होगी ना रात को। जमकर। बस थोड़ा सा ठहरो…” और नयनों से पिचकारी की धार छोड़ते बाहर जाने लगी।



मैंने उसे रोक कर पूछा- “हे ये शार्ट और टी-शर्ट चेंज कर लूं…”

वो रुक गई गई और बोली- “खबरदार, इत्ती मेहनत से तो मैंने और मंजू ने तुम्हारे अगवाड़े पिछवाड़े रंग लगाया है, और घर में कौन देख रहा है हमी ना। हाँ चाहो तो हाथ वाथ धुल लो…”

मेरी हिम्मत जो उसकी बात टालूँ। मैंने वाश बेसिन पे जाकर हाथ पैर धुल लिया। मैं अपने कमरे में जाकर कंप्यूटर पे बैठा ही था की ऊपर से। (भैया भाभी का कमरा ऊपर ही था), भैया की आवाज सुनाई पड़ी वो भाभी को आवाज दे रहे थे, शायद पानी मांग रहे थे।

और नीचे शीला भाभी और मंजू भाभी को छेड़ रही थी- “जाओ जाओ ऊपर भूखा शेर मिलेगा। गुफा में घुसने को तैयार…”

“गुफा ही ऐसी है, शेर की क्या गलती…” शीला भाभी ने और पलीता लगाया।



भाभी पानी लेकर ऊपर की ओर बढ़ीं तब तक उन्होंने फिर चिढ़ाया- “प्यासे को पानी पिलाने से बड़ा पूण्य मिलता है…”

मैंने देखा है की मजाक खास तौर से खुले मजाक के मामले में औरतों में बहुत समाजवाद है। मुझसे नहीं रहा गया और मैं भी मजा लेने बाहर आ गया।

भाभी मंजू को समझा रही थी की उन्होंने गुझिया बना दी है सिर्फ तलना बाकी है तो वो तल दें, शीला भाभी के साथ।

मंजू ने कुछ इशारे से पूछा तो भाभी ने फुसफुसा कर बताया (और मैंने सुन भी लिया समझ भी लिया। डबल भांग की डोज वाली गुझिया के बारे में बात हो रही थी। और ऊपर से मैं लाया भी सबसे स्ट्रांग वाली प्योर भांग)- “वही हैं, जो गोठी नहीं ऐसी ही मोड़ दी है और याद करके गुलाबी डब्बे में रखना, 40-45 होंगी कम से कम। और उसके बाद गुलाब जामुन की भी तैयारी कर दी है मैंने, बस तुम लोग बना लेना, उसमें भी। है…”

तब तक गुड्डी वहां पहुँच गई। भाभी ने उसको भी काम पकड़ा दिया- “आज किचेन तुम्हारे हवाले। ये लोग तो गुझिया, गुलाब जामुन और होली के बाकी सामान में लगी रहेंगी तो आज खाना तुम्हें एकदम अकेले बनाना पड़ेगा। बना लेना…”

“एकदम…” सिर हिला के वो बोली।



“और हाँ जरा इसका देख लेना, मेरी ओर इशारा करके वो बोली,

ये बहुत। ये नहीं खाऊँगा, वो नहीं खाऊँगा वाला है। बस खाना थोड़ा जल्दी बना देना, नौ सवा नौ तक हो जाय। मैं तो तुम लोगों के साथ खा लूँगी और इनका ऊपर ले जाऊँगी, ये तो आज नीचे उतरेंगे नहीं…” ये कहते हुए भाभी ऊपर जाने लगी।

तब तक नीचे से गुड्डी ने हुंकार लगाई- “मूली के पराठे बना लूं, जल्द बन जायेंगे…”



“अरे यार…” मेरी ओर इशारा करके वो बोली- “ये भूखा रहा जाएगा। ये तो छुएगा भी नहीं, वैसे इसके भैया को और मुझे बहुत पसंद है, इसके लिए कुछ और बना देना…”

तब तक भैया की ऊपर से दुबारा आवाज आ गई और भाभी धड़धड़ाते हुए ऊपर सीढ़ी चढ़ गईं। गुड्डी ने मुझे देखकर मुश्कुरा दिया और मुँह चिढ़ाते हुए बोली- “खाना हो तो खाना वरना उपवास करना…”

मैं समझ रहा था की वो किस उपवास की बात कर रही थी और वो मुझे किसी सूरत में नहीं करना था- “अरे ऊपर से नहीं खायेंगे तो मूली नीचे वाले मुँह से खिला देना…” मंजू बोली और शीला भाभी ने भी हामी भरी। शाम की खुलम खुल्ला होली के बाद हम चारों में दुराव छिपाव खतम हो गया था। उन्होंने किचेन में मुझे भी बुलाया, लेकिन एक तो मेरा कम्प्यूटर मुझे बुला रहा था दूसरे मैं जानता था की वो तीनों मिलकर मेरी ऐसी की तैसी करेंगी।



मैं अपने कमरे में चला गया लेकिन मंजू और शीला भाभी अब खुलकर गुड्डी को छेड़ रही थी।
गुड्डी तो बनी बनाई है..
पांच फुट ... इंच
 
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motaalund

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शीला भाभी, गुड्डी और




शीला भाभी के बारे में थोड़ा बहुत अंदाजा तो भाभी ने दे दिया था, उन्ही के गाँव की,... रिश्ते में भाभी लगती थीं,... दूर की नहीं नजदीक की,... शादी भाभी से चार पांच साल पहले हुयी थी लेकिन गाँव में कभी कभी शादी कम उम्र में भी तो उम्र में भाभी की समौरिया ही , दो तीन साल बड़ी ज्यादा से ज्यादा देह खूब भरी भरी, मज़ाक में भाभी से भी दस हाथ आगे,..

और किसी रिश्ते में गुड्डी के ननिहाल की ओर से भी कोई मजाक का ही रिश्ता लगता था तो वैसे भी कोई कच्ची अमिया वाली लड़की मिल जाए तो कौन औरत छोड़ती है, हाँ मेरे खिलाफ जरूर वो, मंजू और गुड्डी एक हो जाती थीं

मैं कम्प्यूटर से उलझा था की भाभी ने आके हड़काया



“तुम ना। मैं देख रही हूँ सुबह से, इसी से चिपके हो। अरे मैंने तुम्हें बोला था बनारस से गुड्डी को साथ लाने को। तो मैंने सोचा था की कुछ उसका मन लगा रहेगा। कुछ। और वो सुबह से या तो काम में लगी हुई है या शीला भाभी उसके पीछे पड़ी हुई हैं। थोड़ा उसके साथ टाइम पास करो। लेकिन तुम तो छुट्टी पे आये हो ना…” उन्होंने सीरियस होकर पूछा।



कुछ बात टालने की गरज से, कुछ उत्सुकता वश मैंने पूछा- “भाभी ये शीला भाभी का क्या चक्कर है। ये आई किस लिए हैं…”

“अरे यार। भाभी मुश्कुरायीं थोड़े अपने फार्म में आई, बोली-

“इनकी शादी के 5-6 साल हो गए हैं कोई बच्चा नहीं हुआ। तो किसी ने इनसे कहा था की यहाँ एक साधू हैं वो गंडा बांधते है, भभूत देते हैं। तो कल उनसे मिलकर वो काम तो उन्होंने कर लिया। मैंने ही कहा की अब दो-तीन दिन होली रह गई है यहीं रुक जाइए। तो मान गईं…”

“लेकिन इत्ते दिन शादी के हुआ तो। इनके पति। और डाक्टर को क्यों नहीं दिखाया…” मैंने बोला।

भाभी खिलखिलाने लगी, फिर हल्के से बोली-

“सब ठीक है डाक्टर ने बोला है। लेकिन तुम्हीं क्यों नहीं कुछ कर देते अपना भभूत दे दो ना। इधर-उधर नाली में बहाते होगे…”

फिर उन्होंने ने राज खोला-

“उनके पति बालक प्रिय हैं। और वो भी बाटम (पैसिव),

भाभी ने मेरी संगत में ये सब शब्द सीख लिए थे।

"और थोड़ा होता भी नहीं उनसे। तभी तुम्हारा तम्बू देखकर पनिया रही थीं और नतीजा ये हो गया की ये भी थोड़ा कन्या प्रेमी हो गई। कुछ तो शादी के पहले से ही थी और अब ज्यादा…”





अब मेरी समझ में आया की गुड्डी के पीछे क्यों पड़ी थी और गुड्डी उनसे क्यों बच रही थी और मेरी ओर भी जिस तरह से वो देख रही थी।

“दे दो न बिचारी को वीर्य दान…” भाभी हँसकर बोली।

“धत्…” मैं शर्माया।

“अरे इसमें शर्माने की क्या बात है। वो भी बचपन की खिलाड़ी हैं तुम्हारी भी अच्छी ट्रेनिंग हो जायेगी मजा मिलेगा। और बिचारी का काम हो जाएगा…” भाभी ने मेरे गाल पे कसकर चिकोटी काटी


हाँ तो फिर जहाँ बात पिछली पोस्ट में छोड़ी थी वहीँ से
“उनके पति बालक प्रिय हैं। और वो भी बाटम (पैसिव),

भाभी ने मेरी संगत में ये सब शब्द सीख लिए थे।

"और थोड़ा होता भी नहीं उनसे। तभी तुम्हारा तम्बू देखकर पनिया रही थीं और नतीजा ये हो गया की ये भी थोड़ा कन्या प्रेमी हो गई। कुछ तो शादी के पहले से ही थी और अब ज्यादा…”


बेचारी शीला भाभी..
भरी जवानी बर्बाद हो गई...
लेकिन तब शायद ३७७ नहीं हटा होगा...
 

motaalund

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***** ***** खाना और गाना

शीला भाभी, गुड्डी और

तभी गुड्डी की आवाज आई। खाना लग गया जल्दी आओ, सामने दीवाल घड़ी ने 9:00 बजाये।

मैं बाहर निकला तो देखा की भाभी सीढ़ी से अभी उतरी थी और मंजू और शीला भाभी दोनों उन्हें चिढ़ा रही थी।

उनकी शक्ल देखकर लग रहा था जैसे हचक के चुदवा के आ रही हों। बिखरे हुए बाल, गालों पर दांत के निशान, सूजे हुए होंठ, जैसे किसी ने कसकर काटा और चूसा हो, ब्लाउज़ के ऊपर के दो टूटे हुए हुक, जैसे कोई बेसबरा, जोबन मर्दन को बेताब इन्तजार न कर पाया हो। झाँकती हुई दो बड़ी-बड़ी गोरी गोलाइयां और उसके ऊपरी भाग पर जोश में कचकचा कर काटे गए दांत के निशान, लेकिन सबसे रसीली बात थी उनकी चाल, दोनों टांगें हल्की सी फैली थी और वो धीमे-धीमे चल रही थी।

“लगता है पीछे भी कुदाल हचक के चली है…” शीला भाभी ने चिढ़ाया।



मानो स्वीकृति में भाभी ने बस हल्के से मुश्कुरा दिया।

तब तक वो मेरे पास आ गईं। गुड्डी भी थोड़ी ही दूर पर थी, खाने की टेबल सेट करती मंजू के साथ, लेकिन हम लोगों की बात सुन रही थी।

“क्यों भाभी लगता है, खूब जमकर, अभी इंटरवल हुआ है या छुट्टी?” मैंने भी छेड़ा।


लगता है, तेरे लिए जल्द ही देवरानी लानी पड़ेगी, फिर पूछूंगी…”

मेरे गाल पे उन्होंने कसकर एक चिकोटी काटी लेकिन नजरें उनकी गुड्डी पे गड़ी थी। फिर बोली- “देवरानी लाऊंगी ना तो दिन रात चिपके रहोगे, चढ़े रहोगे उसके ऊपर…”



तब तक हम लोग खाने की टेबल पर पहुँच गए थे। मेरे एक ओर भाभी बैठी थी और दूसरी और गुड्डी। सामने शीला भाभी और मंजू। गुड्डी ने निकालकर एक गरमागरम, करारा मूली का पराठा, भाभी की थाली में परोसा।

“बहुत बढ़िया बनाया है तूने…” थोड़ा सा चख कर भाभी बोली और मेरी और इशारा करके कहा-


“और इसे तो नहीं पसंद है, लेकिन इनके भैया को तो बहुत अच्छा लगता है…”

“कैसी देवरानी चाहिए आपको…” शीला भाभी ने मुश्कुराते हुए पूछा।



“अरे। बढ़िया खाना बनाने वाली हो, पराठा खाते हुए, कनखियों से गुड्डी की ओर देखते हुए वो बोली- फिर जोड़ा, " गाना गाने वाली हो और…”

“और जमकर चुदवाने वाली हो…” मंजू ने बात पूरी की और शीला भाभी ने हामी भरी- “एकदम असली बात तो यही है…”


वो तीनों कसकर हँसने लगी और भाभी मेरी ओर देखकर मुश्कुराने लगी। गुड्डी भी कुछ खिसिया रही थी, कुछ मुश्कुरा रही थी और शीला भाभी और मंजू की थाली में पराठे डाल रही थी। शीला भाभी ने गुड्डी के चूतड़ पे जोर से चिकोटी काट ली और बोली-

“अरे काहें शर्मा रही हो, जिस दिन मिलेगा ना दिन रात टांगें उठाये रहोगी, और वो भी ऐसा मस्त माल देखकर रगड़ता रहेगा…”




और फिर एक बार हँसी का दौर चालू हो गया। भाभी, मंजू और शीला भाभी। तीनों।

मैं बहुत मुश्किल से अपनी मुश्कुराहट रोक पा रहा था। भाभी ने एक बार कनखियों से गुड्डी को देखा फिर मुझसे कान में पूछा- “थोड़ी कमसिन उम्र की देवरानी चलेगी क्या?”



मैंने भी हल्की आवाज में जवाब दिया- “भाभी, चलेगी नहीं। दौड़ेगी, अरे कली का मजा ही और है…”

तब तक भाभी को कुछ याद आ गया और मंजू से बोला अरे जरा गरम गरम गुझिया तो ला। मंजू उठकर चलने लगी तो भाभी ने आँख से कुछ इशारा किया और वो मुश्कुराती अपने बड़े-बड़े चूतड़ मटकाते हुए चल दी।

उधर गुड्डी भी उन लोगों की थाली में पराठे डालकर मेरे बगल में बैठ गई और अपनी थाली में पराठे निकालकर रख लिए।

भाभी ने उससे पूछा- “हे मेरे देवर के लिए क्या बनाया है, इसे तो ये एकदम नहीं पसंद है…”

“मैं क्या जानू, मैंने रंजी से पूछा था की उसे क्या खाने में पसंद है तो वो बोली, मूली, गाजर, बैगन, खीरा। तो मुझे लगा की जो इनके बचपन के माल को पसंद है वही इनको भी पसंद होगा…”

अपनी बड़ी-बड़ी आँख नचाते, वो शैतान बड़ी अदा से बोली।


“अरे वो रंडी, उसने अपने निचले मुँह के लिए बोला होगा…” मंजू, जो गरम गरम गुझिया लेकर आ गई थी, उसने बोला।

“रंडी नहीं। रंजी नाम है उसका…” मैंने करेक्ट किया।

लेकिन मेरी कौन सुनता, सब लोग गरमा गरम गुझिया खाने में मगन थे, सिवाय भाभी के जिन्होंने बोला की वो ऊपर ले जायेंगी और भैया के साथ ही खायेंगी।

अचानक मैंने नोटिस किया की, अरे तो वो गुझिया है, बिना डिजायन वाली मतलब। डबल भांग की डोज। लेकिन तब तक मैं एक खा चुका था और गुड्डी दूसरी खा रही थी। गुड्डी ने अपनी थाली में परेठा रखा और एक बड़ा सा कौर मुँह में लेकर मुझसे, बड़ी अदा से पूछा- “खाओगे, काटेगा नहीं। देखो मैं तो खा रही हूँ…”

कोई नहीं होता तो ठीक था। लेकिन यहाँ सबके सामने। बनारस में तो होटल में मुझ शाकाहारी को इस दुष्ट ने, चिकेन, फिश, मटन ना जाने क्या-क्या खिला दिया था।

लेकिन यहाँ।


थोड़ा सा खाकर उसने बाकी अधखाया, जूठा मूली के पराठे का टुकड़ा, मेरे होंठों की ओर बढ़ाया। मैंने बगल में देखा। भाभी खाने में मगन थी। एक पल के लिए सहम कर। फिर मेरे होंठों ने उसे गपक लिया। गुड्डी ने बिना देर किये फिर एक कौर अपने मुँह में लिया और खाते हुए, एक टुकड़ा, अपना जूठा, मुश्कुराकर मेरी ओर बढ़ा दिया और मेरे होंठों ने फिर लपक लिया। तभी मैंने देखा की गुड्डी और भाभी की आँखें चार हुई और दोनों की आँखें मुश्कुरा रही थी

गुड्डी ने एक पराठा मेरी थाली में रखा, फिर शीला भाभी और मंजू को सुनाकर बोला-

“अब समझ में आया ये क्यों नहीं खा रहे हैं। पसंद वसंद नहीं। अरे बात ये है की। तीन-तीन भौजाइया बैठी हैं, और इनके बहन कम माल का हाल आप लोग सुना नहीं रही हैं। तो बिना गारी वारी के सूखे सूखे कैसे खाएंगे ये…”



शीला भाभी ने उलटा वार किया- “बात तो तेरी एकदम सही है लेकिन तू ही क्यों नहीं सुना देती एक-दो अच्छी वाली। मुँह में कुछ घोंट के बैठी हो क्या लम्बा मोटा…”



मैं बहुत खूश हुआ।
“अरे। बढ़िया खाना बनाने वाली हो, पराठा खाते हुए, कनखियों से गुड्डी की ओर देखते हुए वो बोली- फिर जोड़ा, " गाना गाने वाली हो और…”

“और जमकर चुदवाने वाली हो…” मंजू ने बात पूरी की और शीला भाभी ने हामी भरी- “एकदम असली बात तो यही है…”

लड़की तो ऐसी हीं चाहिए...
 

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गुड्डी- गारी वारी






गुड्डी ने एक पराठा मेरी थाली में रखा, फिर शीला भाभी और मंजू को सुनाकर बोला- “अब समझ में आया ये क्यों नहीं खा रहे हैं। पसंद वसंद नहीं। अरे बात ये है की। तीन-तीन भौजाइया बैठी हैं, और इनके बहन कम माल का हाल आप लोग सुना नहीं रही हैं। तो बिना गारी वारी के सूखे सूखे कैसे खाएंगे ये…”

शीला भाभी ने उलटा वार किया- “बात तो तेरी एकदम सही है लेकिन तू ही क्यों नहीं सुना देती एक-दो अच्छी वाली। मुँह में कुछ घोंट के बैठी हो क्या लम्बा मोटा…”

मैं बहुत खूश हुआ।

अब मुझे भी मौका मिला न। वरना ये चारों मिलकर मेरी तो। मैंने तुरंत पलीता लगाया। मैं भाभी की ओर मुड़कर बोला- “अरे भाभी रहने दीजिये इस बिचारी को। कहाँ। कोई फिल्मी विल्मी, डिस्को विसको छाप गाना सुनाने को बोल दीजिये तो वो अलग है, ये कहाँ गाँव के गाने सुना पाएगी…”

भाभी ने मुड़कर गुड्डी की और देखा और बोली- “इज्जत की बात है। बोल है कबूल अच्छी तरह सुनाना। बनारस वाली मीठी गाली…”



अब गुड्डी फँस गई। सबके सामने। लेकिन वो भी बिंदास बनारसी थी बोली- “सुनाऊंगी। तो पैंट ढीली हो जायेगी। फिर मत रोने लगना…”

“अरे जाओ जाओ। गाना वाना तो आता नहीं। बहाना बना लो…” मैंने उसे छेड़ा।

“सुना दूं…”





वो भाभी से बोली शायद इस उम्मीद से की वो मना कर दें या कोई और मैदान में आ जाए।

“सुना दे। इनको भी तो मालूम पड़ जाय की किसी बनारस वाली से पाला पड़ा है…” वो उसे ललकारते बोली।

अब उसके पास कोई रास्ता नहीं था, वो चालू हो गई। मुझे लगा की मैंने किस मधुमख्खी के छत्ते में हाथ डाल दिया। और बाकी तीनों भी ना सिर्फ गुड्डी के साथ गा रही थी बल्की ताल भी दे रही थी। भाभी चम्मच से ग्लास पर और शीला भाभी मेज पर। गुड्डी की आवाज बड़ी सुरीली थी और ये छेड़छाड़ से भरी गाली बहुत ही रसीली लग रही थी।

उसने शुरू किया,


“अरे कामदानी दुपट्टा हमारा है, कामदानी।

(वो एक मिनट मेरा नाम लेने में हिचकिचाई लेकिन भाभी ने इशारा किया और वो चालू हो गई।)

अरे कामदानी दुपट्टा हमारा है, कामदानी।

अरे आनंद की बहना ने अरे आनंद की रंजी ने।

एक किया, दो किया, साढ़े तीन किया।

एक किया, दो किया, साढ़े तीन किया (भाभी, शीला भाभी और मंजू साथ गा रही थी)

हिन्दू मुसलमान किया, नाउ कोम्हार किया

हमरो भतार किया, भतरो के सार किया

अरे नौ सो, ओह, अरे नौ सौ।

“अरे रंजी साली ने, रंजी छिनार ने। रंडी चूत मरानो ने
(रंडी चूत मरानो ने, मंजू ने जोड़ा)

(फिर गुड्डी एक मिनट के लिए रुकी, मेरी ओर देखा और मुश्कुराकर बोली।)

अरे नौ सो। नौ सौ पण्डे बनारस के कामदानी

अरे नौ सो छैले बनारस के कामदानी।

अरे यार बड़ी ताकत है उस साली में, एक-दो नहीं पूरे 900, वो भी बनारस के मुस्टंडे पण्डे…” शीला भाभी ने चिढ़ाया।



“अरे हमारी ननद है कोई मजाक है, जो दो-वार में मन भर जाय उसका…” हँसते हुए मेरी भाभी बोली।

“चलो इसी खुशी में एक पराठा और लो…” कहकर गुड्डी ने मेरी थाली में एक मूली का पराठा डाला और गाना आगे बढ़ाया।


“अरे कामदानी दुपट्टा हमारा है, कामदानी।

अरे आनंद साले की बहिनी ने, इस भंडूए की बहिनी ने।

एक किया, दो किया, साढ़े तीन किया, अरे नौ सो।


अरे नौ सो, अरे नौ सो।



(गुड्डी गा रही थी और भाभी, शीला भाभी, मंजू सब उसको फालो कर रही थी मेरी ओर इशारा करके)

अरे नौ सौ भंड़ुए, कालीनगंज के अरे नौ सौ।

अरे नौ सौ।


(अब सब लोग देख रहे थे की गुड्डी किसके साथ रंजी का नाम जोड़ती है, वो जोर से बोली।)

अरे नौ सौ, नौ सौ गदहे एलवल के, नौ सौ अरे नौ सौ गदहे एलवल के
(कालीन गंज मेरे शहर के रेड लाईट एरिया का नाम है, और एलवल उस मोहल्ले का जहाँ रंजी रहती थी।)



अब तो हँसी को वो फव्वारा छूटा और मुझे चिढ़ाने का वो दौर। और इसमें सबसे तेज मेरी भाभी शामिल थी।

“अब मान गए ना इस बनारस वाली को अच्छी तरह। तुम्हारी बहनों की ऐसी की तैसी कर सकती है…” भाभी बोली और गुड्डी की पीठ थपथपाई और फिर कहा-

“खाना बनाने में तो तुमने अपने को नंबर एक साबित ही कर दिया था और अब। गाना गाने में भी…”

गुड्डी खूब खुशी से मुश्कुरा रही थी।

शीला भाभी ने मेरी ओर इशारा कर अगला तीर छोड़ा-


“काहो भैया। बड़ी ताकत है तुम्हारी उसमें का नाम है। हाँ रंडी। गदहों के साथ भी…”



आज भाभी बहुत जोश में थी, शायद भैया के साथ जो अभी ताजा डबल राउंड हुआ था उसका नतीजा रहा हो। उन्होंने टुकड़ा लगाया-

“अरे तो इसमें कौन सी बात है, उसके मोहल्ले के ही तो है, आते जाते नैन मटक्का हुआ होगा। फिर मोहल्ले के रिश्ते से उसके भाई लगेगे। और बचपन से ही वो अपने भाइयों से…”


“भाइयों से चुदवाने के चक्कर में लगी रहती है ना…” मंजू ने बात आगे बढ़ाई और फिर मेरी ओर मुड़कर कहने लगी-

“अरे भैया अब एक दिन पटक के चोद दो साली को, कहो तो हाथ पैर हम लोग पकड़ लेंगे वरना ऐसे गदहा घोड़ा के पास जाकर घूमेगी…”

मैंने गुड्डी को जोर से घूरा। वो बड़े भोलेपन से मुझे देख रही थी, जैसे उसने कुछ किया ही ना हो।



भाभी फिर उसके बचाव में आ गईं-


“अरे ऐसे का देख रहे हो, तुम्हारा ही तो मन था इसके मुँह से कुछ अच्छा अच्छा सुनने का। अपने माल का हाल सुनने का तो उसने सुना दिया…”



अब तो वो सातवें असमान पे। मुश्कुराकर उसने भाभी की ओर देखा और बोली- “सच्ची मैंने तो जो देखा वो सुना दिया। कोई अपने मन से थोड़ी कुछ कहा…”

अब तो चारों और से, क्या देखा जरा खोलकर बोल ना। बता। सब बता, पूरा हाल।

शीला भाभी, मंजू और सबसे बढ़कर मेरी भाभी।

मेरी तो लग गई। मैं समझ गया वो क्या बताएगी, और वही हुआ। मुश्कुराकर अपनी बड़ी-बड़ी आँखें नचाकर मुझे देखा, फिर मु
झसे पूछा- “बोलो, बता दूं सब, बुरा तो नहीं मानोगे…”

शादी ब्याह... और फागुन के अवसर पर गाए जाने वाले गारी (गाली नहीं) ने ऐसा तड़का लगाया कि स्वाद सौ गुना बढ़ गया..
 

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गुड्डी-गदहे वाली बात





भाभी फिर उसके बचाव में आ गईं- “अरे ऐसे का देख रहे हो, तुम्हारा ही तो मन था इसके मुँह से कुछ अच्छा अच्छा सुनने का। अपने माल का हाल सुनने का तो उसने सुना दिया…”

अब तो वो सातवें असमान पे। मुश्कुराकर उसने भाभी की ओर देखा और बोली- “सच्ची मैंने तो जो देखा वो सुना दिया। कोई अपने मन से थोड़ी कुछ कहा…”

अब तो चारों और से, क्या देखा जरा खोलकर बोल ना। बता। सब बता, पूरा हाल। शीला भाभी, मंजू और सबसे बढ़कर मेरी भाभी। मेरी तो लग गई। मैं समझ गया वो क्या बताएगी, और वही हुआ। मुश्कुराकर अपनी बड़ी-बड़ी आँखें नचाकर मुझे देखा, फिर मुझसे पूछा- “बोलो, बता दूं सब, बुरा तो नहीं मानोगे…”

मैंने कुछ किया भी नहीं था की भाभी ने मेरा कान पकड़ लिया और गुड्डी से बोली- “इससे डरने की कोई जरूरत नहीं है ना अभी। ना कभी। समझी। मैं हूँ ना। झटपट इसका कान पकड़ने वाली। बोल तू…”

बस इतना अभयदान पाने के बाद गुड्डी चालू हो गई, पाव भर लाल मिर्च अपनी ओर से जोड़ के वो चालू हो गई-

“जब ये अपने उस माल को पिक्चर दिखाकर खिला पिला के बाजार में घुमा के लौट रहे थे और हम लोग रिक्शे में बैठे थे…”



भाभी ने बात काटकर पूछा- “वो कहाँ बैठी थी, इनकी माल…”

“बीच में, और इनका हाथ सीधे उसके…” गुड्डी बोली।
और वैसे उसकी ये बात सही भी थी। मेरा हाथ था तो रंजी के उभार पर ही, उसके उभार हैं ही इतने मस्त। लेकिन शीला भाभी ने फास्ट फारवर्ड करने की मांग की-

“अरे वो गदहे वाली बात बताओ ना…”



"इनके माल को हम लोग उसकी गली के बाहर छोड़ दिए। वहां गदहे बंधे रहते हैं ना। असल में उस गली को धोबी वाली गली कहते हैं, तो बस एक को उसने देखा, और फिर उस गदहे का एकदम तुरन्ते खड़ा हो गया। इनके माल की निगाह बस उसी से चिपकी थी। पूरा तन्नाया था। खूब मोटा और लंबा भी करीब डेढ़ दो फीट रहा होगा। हम लोगों से ना दुआ ना सलाम। बस रिक्शे से उतर के सीधे उसी पास खड़ी हो गई…”


गुड्डी चालू हो गयी अपनी ओर से और लाल मिर्च डाल के,...

भाभी ने गुड्डी को तारीफ वाली नजर से देखा और थोड़ा आग में घी डाला- “अरे तो उसने कहीं पकड़ वकड़ तो नहीं लिया…” आज भाभी भी पूरे जोश में थी।

“पकड़ ही लेती ऐसे ललचा रही थी, मुँह से पानी टपक रहा था उसके। लेकिन कई लोग खड़े थे वहाँ… बस उसके कान में कुछ कहा, उसका कंधा सहलाया। और एक बार फिर से ललचा के उसके…” गुड्डी बोल रही थी।

लेकिन अब मंजू जोश में आ गई और चालू हो गईं- “अरे का, इ का, उ का बोल रही है साफ-साफ बोल ना गदहे का उ का देख रही थी, नाम लेने मैं कौनो शर्म है का…”

मैंने सोचा की गुड्डी अब फँस गई लेकिन ये बनारस वाली कन्नी काटकर निकलने में बहुत माहिर होती हैं। और रास्ता भी मैंने दिया मेरे मुँह से निकल गया- “अरे ऐसा कुछ भी नहीं था…”

बस क्या गुड्डी शेर हो गई। मुझे आलमोस्ट डांटते हुए बोली- “तुम चुप ही रहो, वो जब जा रही थी, बेशर्मों की तरह खाली उसका पिछवाड़ा देख रहे थे और वो भी साली ऐसे इन्हें दिखाकर मटका रही थी…”



“गाण्ड तो उसकी है जबर्दस्त मारने लायक…” मंजू अब चालू हो गई थी।

मैंने अब दूसरा रास्ता ढूँढ़ा। अटैक का.

" भाभी आपकी इस बनारस वाली के पास स्टाक सिर्फ एक का था लगता है, और उसमें भी मिर्च तो बिलकुल नहीं था।" मैना दूसरा मोर्चा खोल दिया बात बदलने के लिए

आज भाभी पीछे हटने के मूड में बिलकुल नहीं थी। उन्होंने गुड्डी से कहा- “चल सुना दे उनको वो बनारस वाली, असल में इनका मन कर रहा है अपने बहन कम माल की ऐसी तैसी कराने का, और इनका मन कर रहा है तो डाल दे मिर्चा, भले ही इनकी परपराये…”

मीठी गाली। और गुड्डी भी चालू हो गई:


“चिट्ठी आइ गई शहर बनारस से, चिट्ठी आई गई।



एकदम मंजू और शीला भाभी की पसंद की। उन दोनों के साथ भाभी भी जमकर साथ दे रही थी गुड्डी का

चीठी आई गई शहर बनारस से चिठ्ठी आई गई,

अरे आनंद बहनचोद, अरे हमरे देवर बहनचोद (ये लाइन भाभी ने गाई)

चिट्ठी पढ़ला की ना, चिट्ठी बंचला की ना,

तुम्हारी अम्मा छिनार, तुहरी बहना छिनार, तुहारी रंजी छिनार।

कयली हमरो भतार कयालिं भतरो के सार,

अरे चोदे हमरो भतार, चोदे भैया हमार

चोदे टंगिया उठाय, चोदे चूचियां दबाय

अरे आनंद बहनचोद, अरे हमरे देवर बहनचोद
(ये लाइन भाभी ने गाई)

चिट्ठी पढ़ला की ना, चिट्ठी बंचला की ना,

चीठी आई गई शहर बनारस से चिठ्ठी आई गई,

अरे बहनचोद तुहारी बहना छिनार, तुहारी रंजी छिनार।

चूत मरावे, पेट रखावे। अरे उनकी यही चलनिया रे।


चीठी आई गई शहर बनारस से चिठ्ठी आई गई।



अबकी तो गुड्डी जब रुकी तो बस भाभी ने उसे गले से नहीं लगा लिया (टेक्नीकल कारण ये था की बीच में मैं था), इस तरह तारीफ की नजर से देख रही थी उसे वो। और गुड्डी भी भाभी की ये नजर देखकर फूली नहीं समाई पड़ रही थी।

“क्यों आया मजा सुन लिया ना क्या-क्या किया मेरे घर वालों ने तुम्हारी रंजी के साथ, अब तो मान गए गुड्डी को…” भाभी ने जीत का डंका बजाते हुए मुझे सुनाया।

मेरे लिए हार मानने में ही भलाई थी लेकिन गुड्डी, दुष्ट ना। वो मुझे रगड़ने का कोई भी मौका क्यों छोड़ती खास कर भाभी के सामने- “अरे नहीं। अभी तो मैं एक और सुना देती हूँ, वरना फिर कहोगे तुम्हारे स्टाक में खाली दो ही थे और कहो तो मिर्च ऊपर से डाल देती हूँ, अगर कम लग रही हो…”

भाभी ने एक बार फिर तारीफ वाली निगाह से उसे देखा और बोली- “सुना दे, इनकी माँ बहन सबका हाल। बल्की इन्हीं से जोड़कर। बिचारा ये भी खुश हो जाएगा…”

अब तो आनंद बाबू फंस गए... चक्की के चारो पाटों के बीच..
 

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गुड्डी









“क्यों आया मजा सुन लिया ना क्या-क्या किया मेरे घर वालों ने तुम्हारी रंजी के साथ, अब तो मान गए गुड्डी को…” भाभी ने जीत का डंका बजाते हुए मुझे सुनाया।

मेरे लिए हार मानने में ही भलाई थी लेकिन गुड्डी, दुष्ट ना। वो मुझे रगड़ने का कोई भी मौका क्यों छोड़ती खास कर भाभी के सामने- “अरे नहीं। अभी तो मैं एक और सुना देती हूँ, वरना फिर कहोगे तुम्हारे स्टाक में खाली दो ही थे और कहो तो मिर्च ऊपर से डाल देती हूँ, अगर कम लग रही हो…”

भाभी ने एक बार फिर तारीफ वाली निगाह से उसे देखा और बोली- “सुना दे, इनकी माँ बहन सबका हाल। बल्की इन्हीं से जोड़कर। बिचारा ये भी खुश हो जाएगा…”

शीला भाभी बोली- “अरे सब साली पूरे मोहल्ले में चुदवाती फिरती हैं। तुम ही तो कह रही थी की रंडी छिनार, गदहे तक पे लाइन मार रही थी, उस गदहाचोद रंजी की चूत में इतने चींटे काटते हैं। त इ बेचारा हमारा देवर…”

“अरे काहो इ बात सच है का। तुमको तो मालूम होगा की उसके चूत में चींटे कांटते है…” अब मंजू मेरे पीछे पड़ गई।

“अरे मीठी चीज हो तो चींटे लगते ही हैं। कभी चटाई वटाई तो होगी तुमको…”

अब भाभी भी मैदान में आ गई मैं क्या बोलता। तो वो फिर बोली-

“अरे नहीं चटाई है, तभी तो चलो कोई बात नहीं। कल आएगी ना। बस तुम चाट लेना मनभर शहद। हाँ अगर हाथ पैर चलाएगी तो हम चारों है ना…” सबने एक साथ हाँ भरी और सबसे जोर से गुड्डी ने और गुड्डी ने अगली गारी शुरू कर दी (और साथ में मेरी खाली थाली में एक पराठा और डाल दिया।)




आरिया आरिया सगवा लगाई, बिचवा लगाई चौरैय्या हो रे अरे बिचवा लगाई चौरैय्या हो



शीला भाभी, मेरी भाभी और मंजू सब गुड्डी का साथ दे रही थी।



आरिया आरिया सगवा लगाई, बिचवा लगाई चौरैय्या हो रे अरे बिचवा लगाई चौरैय्या हो

सगवा खोटन गईं अरे सगवा खोटन गईं आनंद क बहिनी, अरे सगवा खोटन गईं रंजी छिनरो

अरे सगवा खोटन गईं रंजी छिनरो, गिरी पड़न बिछलायी हो

अरे बुरिया में धंसल लकड़िया हो, अरे बुरिया में धंसल लकड़िया हो

अरे दौड़ा दौड़ा आनंद भैया, अरे तनी दौड़ा दौड़ा आनंद भैया

अरे बुरिया से खींचा लकड़िया हो, अरे अपने मुँहवा से खींचा लकड़िया हो।

अरे एक कदम चलली, दुई कदम चलली, छिनरो गिरी पड़ी भहराई जी।

अरे गंड़िया में धंसल लकड़िया हो, अरे गंड़िया में फँस गेल लकड़िया हो

अरे दौड़ा दौड़ा आनंद भैया, अरे तनी दौड़ा दौड़ा आनंद भैया


अरे गंड़िया से खींचा लकड़िया हो, अरे अपने होंठवा से खींचा लकड़िया हो।



इस गाने से तो मंजू को भी जोश आ गया और उसके साथ शीला भाभी भी। एक से एक-



गंगाजी तुम्हारा भला करे, गंगाजी

अरे आनंद की बहिनी की बुरिया पतिलिया ऐसी, बटुलवा ऐसी

उहमें 9 मन चावल पका करे।

अरे उनकी बहिनी की बुरिया पोखरवा ऐसी।

उहमें 900 गुंडे कूदा करे मजा लूटा करें।



***** ****

अरे चुदवाय लो रंजी आई बहार

चुदवाय लो, चोदिये भैया हमार,


चोदियें तेलवा लगाय, तनको नहीं दुखाय।



और गुड्डी सारे गानों में साथ दे रही थी बल्की शीला भाभी को याद भी दिला रही थी। गनीमत था की तभी भाभी ने घड़ी देखी और चौंक पड़ी, अरे 9:40 हो गया, मुझे 9:30 तक ऊपर जाना था। भाभी ने भैया के लिए मूली के पराठे रखे, गुझिया रखी और उठने के पहले गुड्डी से पूछा- “क्यों बहुत बचे तो नहीं…”

“एकदम नहीं। अरे चार तो आपके इस देवर ने खा लिए…” हँसते हुए वो बोली, फिर मेरी थाली देखकर उसने करेक्शन किया, नहीं, नहीं चार नहीं साढ़े तीन। आधा अभी बचा है…” फिर उसने मुझे हड़काया, अरे खतम करो इसको भी। और फिर मेरी थाली से लेकर एक बड़ा सा कौर बनाया और फिर थोड़ा सा खुद खाकर, बाकी अपना अधखाया, जूठा होंठ रस से लिथडा, अपने हाथ से सीधे मेरे मुँह में।

मैं खा गया।

मैंने कनखियों से देखा भाभी गुड्डी को कैसे कैसे देख रही थी, तारीफ, खुशी मजा सब कुछ मिला था उसमें। “कल सोचती हूँ, केले की सब्जी बनाऊं और बैगन का भुरता, क्यों?” गुड्डी ने भाभी से कहा। (दोनों मेरी स्ट्रांग ना पसंद थी और भाभी से ज्यादा ये किसको मालूम होता।)

“एकदम उठते हुए वो बोली- “और मुश्कुराकर मुझसे कहा, इससे दोस्ती बनाकर रखना। किचेन इसके हवाले है, अब से। अभी भी और आगे भी। फिर शीला भाभी और गुड्डी से बोली- “जरा मुझे। आप लोग किचेन समेट लेना…”

“एकदम। एकदम आप जाओ ना। हमें मालूम है, हम कर लेंगे…” शीला भाभी और मंजू मुश्कुराते हुए एक साथ बोली और गुड्डी ने भी जोर से सिर हिलाया।

तब तक ऊपर से भैया की आवाज आई, और भाभी दौड़ते भागते ऊपर की ओर बढ़ी, लेकिन मैंने, पूछ ही लिया, बड़े भोलेपन से- “भाभी जाइये ना आराम से किस बात की इत्ती जल्दी है…”

अबकी कान की जगह गाल की बारी थी। कसकर उन्होंने चिकोटी काटी, और बोली- “बहुत बोलता है ना, जब मेरी देवरानी आयेगी ना, तो पूछूंगी। किस बात की जल्दी लगी रहेगी…” और ऊपर चल दी।

( continues on the next page )
भागने की जल्दी तो होगी हीं..
आखिर ऊपर का फरमान जो आया है...
 

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शीला भाभी, गुड्डी और,....



और गुड्डी सारे गानों में साथ दे रही थी बल्की शीला भाभी को याद भी दिला रही थी। गनीमत था की तभी भाभी ने घड़ी देखी और चौंक पड़ी, अरे 9:40 हो गया, मुझे 9:30 तक ऊपर जाना था। भाभी ने भैया के लिए मूली के पराठे रखे, गुझिया रखी और उठने के पहले गुड्डी से पूछा- “क्यों बहुत बचे तो नहीं…”

“एकदम नहीं। अरे चार तो आपके इस देवर ने खा लिए…” हँसते हुए वो बोली, फिर मेरी थाली देखकर उसने करेक्शन किया, नहीं, नहीं चार नहीं साढ़े तीन। आधा अभी बचा है…” फिर उसने मुझे हड़काया, अरे खतम करो इसको भी। और फिर मेरी थाली से लेकर एक बड़ा सा कौर बनाया और फिर थोड़ा सा खुद खाकर, बाकी अपना अधखाया, जूठा होंठ रस से लिथडा, अपने हाथ से सीधे मेरे मुँह में।

मैं खा गया।


मैंने कनखियों से देखा भाभी गुड्डी को कैसे कैसे देख रही थी, तारीफ, खुशी मजा सब कुछ मिला था उसमें।

“कल सोचती हूँ, केले की सब्जी बनाऊं और बैगन का भुरता, क्यों?” गुड्डी ने भाभी से कहा। (दोनों मेरी स्ट्रांग ना पसंद थी और भाभी से ज्यादा ये किसको मालूम होता।)



“एकदम उठते हुए वो बोली- “और मुश्कुराकर मुझसे कहा, इससे दोस्ती बनाकर रखना। किचेन इसके हवाले है, अब से। अभी भी और आगे भी। फिर शीला भाभी और गुड्डी से बोली- “जरा मुझे। आप लोग किचेन समेट लेना…”

“एकदम। एकदम आप जाओ ना। हमें मालूम है, हम कर लेंगे…” शीला भाभी और मंजू मुश्कुराते हुए एक साथ बोली और गुड्डी ने भी जोर से सिर हिलाया।

तब तक ऊपर से भैया की आवाज आई, और भाभी दौड़ते भागते ऊपर की ओर बढ़ी, लेकिन मैंने, पूछ ही लिया, बड़े भोलेपन से- “भाभी जाइये ना आराम से किस बात की इत्ती जल्दी है…”

अबकी कान की जगह गाल की बारी थी। कसकर उन्होंने चिकोटी काटी, और बोली- “बहुत बोलता है ना, जब मेरी देवरानी आयेगी ना, तो पूछूंगी। किस बात की जल्दी लगी रहेगी…” और ऊपर चल दी।

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अचानक मंजू ने एक नया मोर्चा खोल दिया। गुड्डी के ऊपर- “काहे नाम लेने में शर्म लागत है का, बबुनी…” वो गुड्डी की ओर देखकर बोली।

गुड्डी चुप।

भाभी जा चुकी थी। बस शीला भाभी, मुश्कुराते हुए सामने, और उनके बगल में मंजू और इधर गुड्डी के बगल में मैं।

“अरे ऊ गदहे का। का तुम कह रही थी की ना की वो रंजी, रंडी। गदहा का, देखकर पनिया रही थी। त नाम लेने में लाज लग रही थी की गदहवा का लंबा लम्बा लटक रहा था, चलो अब बोलो…” मंजू ने बात साफ की।

अब मैं भी मुश्कुराया, गारी वारी गाना और बात है लेकिन बात-चीत में वो भी जहां सिर्फ सहेलियां ना हो खुल्लम खुला बात करना।

शीला भाभी भी मंजू के साथ आ गईं-


“सही तो कह रही है ये अरे हम लोगों के सामने का शर्म और (मेरी और इशारा करके) इससे भी। बोल ना गदहे का। क्या देख वो छिनार ललचा रही थी…” वो बोली।

गुड्डी अभी भी हिचकिचा रही थी।

मंजू अब अपने रंग में आ गई- “अरे छिनरो, लण्ड छूने में शर्म नहीं, लण्ड पकड़ने में नहीं शर्म नहीं, लण्ड मुँह में लेने में शर्म नहीं, चूत में लण्ड घोंटने में शर्म नहीं। ता ससुरी। काहें नाम लेने में शर्म…”

और शीला भाभी भी बोलने लगी-

“अरे तू समझती नहीं। जौने के मुँह से लण्ड का बोल नहीं निकलता फागुन। में उ लड़की को होलिका देवी का शाप लगता है। उ तरसने लगती है लण्ड के लिए। और जो मजा असली चीज में है उ उंगली में नहीं। और हम तो कहते हैं की अगर खूब खोलकर लण्ड बुर सब बोले। ता का पता। परमानेंट लण्ड का इंतजाम हो जाय। रोज घच्चा-घच। घच्चा-घच…”



पता नहीं इस लालच का असर था या शीला भाभी, मंजू भाभी के डबल पेस अटैक का असर या शाम की भांग की बर्फी और खाने के साथ की डबल भांग वाली गुझिया का असर। गुड्डी भी डोलने लगी। उसने मेरी ओर देखा। और मैंने भी मुश्कुराकर शीला भाभी और मंजू का साथ दिया।

लेकिन फिर भी गुड्डी ने मुँह नहीं खोला।

“हूँ उ गदहे का देख रही थी…” मंजू ने फिर पूछा। अब वो आकर गुड्डी के बगल में बैठ गई थी।

मैंने हल्के से बोला- “बोल दे ना…”

गुड्डी पहले मुश्कुराई, फिर बोली- “गदहे का,.... रुकी। फिर बोली- “लण्ड…”

हम सब मुश्कुराने लगे लेकिन शीला भाभी इत्ती आसानी से नहीं छोड़ने वाली थी। उन्होंने फिर गुड्डी को रगड़ा-


“हे मैंने सुना नहीं फिर से बोल ना…”

गुड्डी एक पल के लिए हिचकी फिर मुश्कुराती हुई अबकी जोर से बोली- “गदहे का लण्ड…”



अब शीला भाभी भी आकर मेरे और गुड्डी के बीच में बैठ गई और उसे गले लगाती बोली- “अब हुई ना बात…”

लेकिन मंजू छोड़ती तब ना, उसने फिर गुड्डी से कहलवाया…”अच्छा। कित्ता बड़ा रहा होगा उसका जिससे इन का माल नैन मटका कर रहा था…”

“डेढ़ दो फीट का रहा होगा। लण्ड। एकदम कड़ा…” थूक घोंटते हुए गुड्डी बोली।

भांग का नशा सबके ऊपर चढ़कर बोल रहा था।

अब शीला भाभी की बारी थी गुड्डी को उकसाने की- “बोल तुझे कैसा लण्ड पसंद है…”

“धत्…” गुड्डी गुलाल हो गई।

“फिर छिनालपना…” मंजू ने घुड़का।

“अरे अगर कहीं होलिका देवी ने सुन लिया ना तो तड़पा देंगी, घोंटने को कौन कहे। देखने को नहीं मिलेगा…” शीला भाभी समझाते बोली।


मैं कहने वाला था की मेरे रहते इसे कोई कमी नहीं पड़ने वाली तब तक गुड्डी चीखी। मंजू ने उसकी स्कर्ट को उठाकर पिछवाड़े कसकर चिकोटी काट ली थी।

“बताती हूँ ना। गुड्डी बोली- “लण्ड लंबा मोटा और कड़ा…”


“और हचक कर चोदने वाला…” बात मंजू और शीला भाभी ने एक साथ पूरी की।



मैंने भी बात पूरी की-

जो भरा नहीं हो झांटों से बहती जिसमें वीर्य धार नहीं।

वह लण्ड नहीं वो नूनी है जिसको चूतों से प्यार नहीं।

सब बौरा गए थे, एक तो फगुनाहट ऊपर से चढ़ती जवानी और सबसे ऊपर भांग का नशा और आज शाम की होली ने हम सबका अंतर एकदम खतम कर दिया था। क्या-क्या नहीं बुलवाया, शीला भाभी और मंजू ने गुड्डी से। और उससे कबूल्वाया की आगे से हम चारों (मंजू, शीला भाभी और मेरे अलावा मेरी भाभी भी) के सामने अगर उसने लण्ड, चूत, गाण्ड, चुदाई के अलावा कुछ भी बोला तो बस उसकी खैर नहीं। वो सब लोग लोग टेबल समेट रही थी, और मैंने भी थोड़ी हेल्प की।



फिर मैंने गुड्डी को सुना के बोला- “मुझे नींद आ रही मैं कमरे में चलता हूँ…” और अपने कमरे की ओर मुड़ गया।

गुड्डी भी बोली- “बस मैं दो मिनट में आती हूँ और मेरे पीछे-पीछे…”
जो भरा नहीं हो झांटों से बहती जिसमें वीर्य धार नहीं।

वह लण्ड नहीं वो नूनी है जिसको चूतों से प्यार नहीं।

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