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Erotica रंग -प्रसंग,कोमल के संग

komaalrani

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भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी

Phagun ke din chaar update posted

please read, like, enjoy and comment






Teej-Anveshi-Jain-1619783350-anveshi-jain-2.jpg





तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी
 

komaalrani

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Awesome update
🙏🙏🙏🙏🙏🙏 your regular cooments, support and like on this thread encourages me to post more, please keep on reading enjoying and posting comments
 

komaalrani

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komaalrani

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केतना नीक भौजी हुअए .....सच है; "देवर का दिल कहाँ अटका है, सिर्फ भउजाई समझती है"
सही बात है

शीला भौजी ने पल भर में वो काम कर दिया जिसकी हिम्मत किसी में नहीं थी,... देवर अपने मन की बात भौजाई से ही कह पाता है और भौजाई भी छेड़ छाड़ में सब पता कर लेती हैं की देवर के मन में क्या पक रहा है

और सिर्फ इसी कहानी में ही नहीं मोहे रंग में और लला फिर अइयो खेलन होरी में भी भाभी ही आयी देवर के काम में उसके पसंद की अपनी देवरानी लाने में
 

komaalrani

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Shetan

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शीला भाभी और गुड्डी -




“पागल हो गए हो क्या? इत्ती देर से कंप्यूटर में घूर रहे हो। इत्ते प्यार से किसी लड़की को घूरते तो कब की पट जाती। चलो खाना लगाने जा रही हूँ। कुछ खा पी लो ताकत आ जायेगी। शाम को तेरा माल आ रहा है कुश्ती लड़ने के लिए तैयार हो जाओ…”

और कौन होगा गुड्डी थी।

“अरे यार सिर में धमाल हो रहा है…” मैंने उसे बताया।

“कहो तो चन्दन का तेल मल दूं…” मेरे बालों में उंगलियां घुमाते वो बोली- “कुछ दर्द उसकी मखमली उंगलियों ने और कुछ रेशमी बातों ने ले लिया। मैंने एक झटके में उसे खींचकर आगे अपनी गोद में बिठा लिया और किस कर लिया।

वो छुड़ाने की कोशिश करती बोली-

“अरे जल्दी चलो यार अभी तेरी भाभी। सुबह से दोपहर तक के पहले सेशन का मैच तुम्हारे भैया के साथ खेल कर थकी हारी आ रही होंगी और खाने के बाद उन्हें सेकेड इनिंग भी शुरू करनी होगी। क्योंकि तुम्हारे भैया कहीं बाहर जा रहे हैं चार बजे और लेट नाईट लौटेंगे…”

मेरे हाथ उसका जोबन मर्दन करने में लगे थे।

उसके मस्त उरोजों की चमचा गिरी मैं इसलिए भी करता था की वो दिल के पास रहते है। दिल के दोनों और दो पहाड़ों की तरह रक्षा करते है। तो वो खुश रहेंगे तो गुड्डी के दिल में मेरी जगह पक्की करने में मदद करेंगे ना।



उसके निपल जोर से पिंच करते मैं बोला- “अगर एक बार तुम मेरी भाभी की देवरानी बन जाओ ना। तेरे इन मस्त जोबन की कसम, मैं तो इनिंग ब्रेक भी नहीं करूंगा। अन्दर डाले डाले…”

“मालूम है मुझे। लेकिन इतना डिटेल में बोलना जरूरी है क्या? पर पहले तुम्हारी भाभी माने तो सही…” वो बोली।


मेरा जवाब का एक ही तरीका था। मैंने उसे फिर चूम लिया। अबकी होंठों पर और उसे समझाया-

“अरे यार भाभी के तो मैं पैर भी छू लूंगा मनाने के लिए…”

“और मेरे…” वो इतराकर, अपने पैरों में पहनी चांदी की घुंघुरू वाली पायल झनका कर बोली।



“जब चाहो तब। अरे यार तेरे ये पैर उस समय मेरे माथे से तो लगे रहते हैं ना, जा तेरी ये लम्बी गोरी टांगें उठी रहती है, ठसके से मेरे कंधे पे बैठी रहती है…”

वो तुनक कर उठ गई और बोली-

“तुम भी न चलो खाने की देर हो रही है। इत्ते तरहकर तुम्हारे लिए सोच-सोचकर व्यंजन बनाये चुपचाप खा लेना, नो नखड़ा, वर्ना अपनी भाभी को सामने देखकर बहुत तुम्हारे भाव चढ़ जाते हैं…”

मैं क्या करता मैं भी उठ गया। उसकी आखे मेरे टेंट पोल पे चिपकी थी। मैं तो खाने जा रहा था लेकिन श्रीमान श्री जंगबहादुर जी। सुबह से भूखे थे और थाली सामने थी। एकदम अकुलाये तन्नाये, 90 डिग्री पर। मैंने गुड्डी का हाथ खींचकर सीधे वहीं रख दिया-
“हे इसका कुछ करो ना…” बिना हिचके उसने प्यार से उसे पहले तो सहलाया, पुचकारा फिर मसल दिया।

और बोली-

तुम भी ना अभी खाने की देरी हो रही है। चलो ना। उसे ही पकड़कर मुझे खींचते वो बाला बोली। फिर मेरी और मुड़कर कहा-

“हे मुँह मत बनाओ, मना थोड़ी किया है, खाने के बाद। देखती हूँ ना। भाभी तो तुरंत ऊपर जायेंगी सेकंड इनिंग के लिए। घन्टे डेढ़ घंटे की छुट्टी कम से कम और शीला भाभी तो खाने के बाद कम से कम दो घंटे की खर्र खों। और वैसे भी अब वो अपने गैंग की हो गई है। खुश इतना की एकदम छलकती रहती है। जब से तुमने मेरी बात मानकर उनके साथ। अब चलो भी…”

गुड्डी किचेन की ओर मुड़ गई और मैं डाइनिंग टेबल की ओर।



शीला भाभी वहाँ थाली वाली लगा रही थी।
Aam premi ki bate. Par samanya bato me bhi bahot jabardast Erotic ness he.

Bas ye line hi ek alag feelings peda karti he.
उसके निपल जोर से पिंच करते मैं बोला- “अगर एक बार तुम मेरी भाभी की देवरानी बन जाओ ना। तेरे इन मस्त जोबन की कसम, मैं तो इनिंग ब्रेक भी नहीं करूंगा। अन्दर डाले डाले…”
 

Shetan

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भाभी, मैं और

उनकी होने वाली देवरानी



तक भैया आकर टेबल पर बैठ गए और भाभी भी उनके बायीं साइड बैठ गईं। गुड्डी भी मेरे बायीं ओर बैठ गई और शीला भाभी टेबल के साइड पे।

बस एक बात मैं श्योर था। आज मेरे ऊपर गालियों की बौछार नहीं होगी। वरना रोज खाने के साथ। मंजू शीला भाभी। और कल तो गुड्डी खुद।

भैया मुझसे 12 साल बड़े थे और थोड़े रिजर्व संजीदा भी, इसलिए उनके सामने ज्यादा छेड़छाड़ नहीं होती थी। सब लोग सीरियस से ही रहते थे। लेकिन भाभी की बात और थी। वो भैया से 8-9 साल छोटी थी। मुझसे थोड़ी ही बड़ी। और वैसे मैं भी पहले थोड़ा रिजर्व सा ही था। इन्ट्रोवर्ट अपने कमरे में बंद। पढाई में लगा। लेकिन भाभी से मेरी केमेस्ट्री पहले दिन से ही जम गई। फिर तो दुपहर में कैरम और उन्होंने मुझे ताश भी सिखा दिया। और मैं उनसे कुछ भी छुपाता नहीं था।

यहाँ तक की मेरे मस्तराम साहित्य की फंडिंग भी वही करती थी दूसरी ओर उनकी ब्रा पैंटी, पैड ऐसे निजी चीजों की खरीददारी से लेकर उनके बैंक के लाकर तक का काम मेरे भरोसे था। जब मेरे एक्सानम चलते। वो भी रात भर जागती और हर तीन घंटे में कभी दूध कभी चाय। यूपीएस॰सी॰ के एक्जाम में, सर्विस की प्रिफरेंस भी मैंने उन्हीं से पूछ के भरी। और जब मेरा सेलेकशन हुआ। पहले अटेम्प्ट में तो सबसे पहले मैंने उन्हें ही बताया। वो इतनी खुश हुई उनसे बोला भी नहीं जा रहा था।

फिर एक मिनट बाद वो अपने स्टाइल में लौटी और बोली- “अब झट से मेरे लिए एक देवरानी लाकर दो…”

“ना भाभी…” मैंने सिर हिला दिया।

“क्यों नौकरी तो मिल गई अब छोकरी का नंबर है…” वो हँसते हुए बोली।

मैंने भी हँसकर जवाब दिया- “अरे भाभी वही तो। नौकरी मैं ले आया। छोकरी आप ले आइये। बस मेरी…”

“मालूम है तेरी दो शर्ते, वो मैं ध्यान रखूंगी। लेकिन फिर मैं जो पसदं करूँगी। नखड़ा मत बनाना…” वो हँसते हुए बोली।

“हिम्मत है मेरी। आप का एकलौता देवर हूँ…” और मैंने फोन रख दिया।

भाभी को मैंने दो बातें बतायी थी, बहुत पहले। कुछ मजाक में कुछ सच्ची भाभी ने मुझसे बहुत पहले पूछा था-


“हे तुम्हें कैसी लड़की पसन्द है। वरना मैंने कुछ और ढूँढ़ दिया तो।

बहुत ना-नुकुर के बाद मैंने उन्हें बताया- “आप ये समझ लीजिये की जब वो दीवाल की ओर मुँह कर दीवाल से सटकर खड़ी हो तो जो पहली चीज दीवाल से लड़े वो उसकी नाक ना हो…”

“तो तुम्हारा मतलब है तुम्हें बहुत छोटी नाक वाली पसंद है, नकपिच्ची। ऐसा क्यों? खैर ख्याल अपना अपना पसंद अपनी अपनी…”

भाभी जिस तरह से हँस रही थी। ये साफ था उन्हें सब समझ में आ रहा था। लेकिन मुझे चिढ़ाने में उन्हें बहुत मजा आता था। मैं बहुत जोर से चीखा-

“भाभी आप भी ना। आप समझ के भी…”

“साफ-साफ बताओ ना। नाक नहीं तो दीवाल से क्या लड़ेगा। होंठ, ठुड्डी तो हो नहीं सकता…” उन्होंने फिर छेड़ा।

मैंने मुश्कुरा कर कहा जब आप दीवाल से सटकर खड़ी होती हैं। तो आपका दीवाल से क्या पहले टच करता है। अब भाभी के चीखने की बारी थी।

“तुउम्म…” लेकिन फिर बात पलट कर बोली (भाभी से जीत पाना बहुत मुश्किल होता है)-

“अच्छा तभी तुम अपनी उस ममेरी बहन कम माल, रंजी को ताकते रहते हो। बहुत गदरा रहे हैं उभार उसके…”



भाभी की बात गलत नहीं थी। रंजी उस समय 9थ में थी लेकिन देखने में इंटर कोर्स वाली लगती थी। फिगर ऐसी थी उसकी।

लेकिन मेरा रोल माडल भाभी खुद थी। और ये बात वो अच्छी तरह-तरह जानती थी। तन्वंगी बदन, क्षीण कटि और उसके ऊपर दीर्घ खूब भरे-भरे, उनके लो-कट ब्लाउज़ से हरदम छलकते। शादी के एक साल बाद भी उनकी कमर 28 से ज्यादा नहीं थी और उभार 34सी में मुश्किल से समाते थे। भाभी ने मेरी बात मान ली और बोली-

“चलो तेरी बात सही है आज कल की ढूँढ़ते रह जाओगे टाइप लड़कियों में क्या मजा। मान गई वो शर्त मैं अगली बताओ…”

“शादी जाड़े में होनी चाहिए…” मैंने बोला।

“अच्छा। दुष्ट, बड़ा मजा आए रजैइया में। इसलिए…” भाभी हँसते आँख नचाते बोली।

“नहीं…” मैंने भाभी को समझाया- “जाड़े की रातें लम्बी होती है ना इसलिए…”

भाभी ने एक हाथ मारा मुझे और बोली- “देवरजी बहुत प्लानिंग किये हो। लेकिन अरे सबसे आसान मुझे पटा के रखो ना। जाड़ा गर्मी बरसात, रात कोई जरूरी है। मैं दिन में जुगाड़ लगवा दूंगी तुम्हारा।


मैं वर्तमान में लौट आया। गुड्डी भैया को खाना निकालने में लगी थी। मेरी भाभी की देवरानी। गुड्डी भैया को खाना निकालने में लगी थी।

“आज कल दो-तीन दिन से खाना बहुत अच्छा मिल रहा है, क्या हो गया…” भैया ने भाभी की ओर मुड़कर पूछा।
Sssss kya feelings he. Dewarani to chun hi li he. Bas thappa lagana rahe gaya. He. Bhabhi chahe dewar ki ho ya nandiya ki. Kam anokha vahi purana. Amezing maza aa gaya. Shararti bate sharmana amezing he.
 

Shetan

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गुड्डी, भाभी और

कौन बनेगी उनकी देवरानी





बाहर भाभी और गुड्डी की खिलखिलाहट बढ़ गई थी। मेरे लिए खुद को रोकना बहुत मुश्किल हो रहा था, इसलिए मैं बाहर आ गया। मेरी आँखें कार्टून कैरेक्टर्स की तरह गोल-गोल घूमने लगी। दोनों मुश्कुरा रही थी। भाभी ने गुड्डी के कंधे पे सहेलियों की तरह हाथ रखा हुआ था।

और मुझे देखकर भाभी और जोर से मुश्कुराने लगी। और साथ में गुड्डी भी। भाभी ने गुड्डी की और देखा जैसे पूछ रही हों बता दें और गुड्डी ने आँखों ही आँखों में हामी भर दी।

भाभी ने मुझे देखा, कुछ पल रुकीं और बोला, तुम्हारे लिए खुशखबरी है।

मैं इन्तजार कर रहा था उनके बोलने का। एक पल रुक के वो बोली-

“मैंने, तुम्हारे लिए, अपनी देवरानी सेलेक्ट कर ली है…”



मैंने गुड्डी की ओर देखा उसकी आँखों में खुशी छलक रही थी।

मैं एक पल के लिए रुका फिर कुछ हिम्मत कर कुछ सोचकर बोला- “जी… लेकिन कौन? नाम क्या है?”



दोनों, भाभी और गुड्डी, एक साथ शेक्सपियर की तरह बोली- “नाम, नाम में क्या रखा है? क्या करोगे नाम जानकर?”



और मैं चुप हो गया।



“देवरानी मेरी है की तुम्हारी, तुम क्या करोगे नाम जानकर…”


भाभी, मुश्कुराते हुए मेरी नाक पकड़ कर बोली।
गुड्डी किसी गुरु ज्ञानी की तरह, गंभीरता पूर्वक, सहमती में सिर हिला रही थी। भाभी ने नाक छोड़ दी, फिर बोली-

“लेकिन अभी बहुत खुश होने की जरूरत नहीं है, मैंने चुन लिया है, लेकिन वो तो माने। उसकी भी शर्ते हैं। अगर तुम मानोगे तभी बात पक्की हो सकती है…”



मैं फिर सकते में आ गया। ये क्या बात हुई। मैं कुछ बोलता इसके पहले भाभी ने गुड्डी से कहा-

“सुना दो ना इसको शर्ते। अब अगर ये मान गए तो बात बन जायेगी। वरना सिर्फ मेरे चुनने से थोड़ी ही कुछ होता है…”



गुड्डी ने एक पल सीधे मेरी आँखों में देखा। जैसे पूछ रही हो। बोलो है हिम्मत। और फिर उसने शर्त सुना दी।




“पहली शर्त है, जोरू का गुलाम बनना होगा। पूरा…”



भाभी ने संगत दी। बोलो है मंजूर वर्ना रिश्ता कैंसल।

मैंने धीमे से कहा- “हाँ…”

और वो दोनों एक साथ बोली- “हमने नहीं सुना।



मैंने अबकी जोर से और पूरा कहा। हाँ मंजूर है।

और वो दोनों खिलखिला पड़ी। लेकिन गुड्डी ने फिर एक्सप्लेन किया। और जोरू का मतलब सिर्फ जोरू का नहीं, ससुराल में सबका। साली, सलहज सास। सबकी हर बात बिना सोचे माननी होगी।






मैंने फिर हाँ बोल दिया।


भाभी बोली, तलवें चटवायेंगी सब तुमसे। गुड्डी अकेले में बोलती तो मैं उसे करारा जवाब देता लेकिन,... भाभी थी।

मैंने मुश्कुराकर हाँ बोल दिया।

भाभी बड़ी जोर से मुश्कुरायीं और गुड्डी से बोली-

“सुन वैसे तो कोई भी हाँ हाँ कर देगा। एकाध टेस्ट तो लेकर देख…”




और गुड्डी ने जैसे पहले से सोच रखा था तुरन्त बोली- “उट्ठक बैठक। कान पकड़कर 100 तक। और मैं तुरन्त चालू हो गया। कान पकड़कर 1, 2, 3, 6,

भाभी हँसते हुए गुड्डी से बोली- “तू भी इसका साथ दे रही है क्या। इत्ता आसान टेस्ट ले रही है। मैं होती तो सैन्डल पे नाक तो रगड़वाती ही।


और उधर मैं चालू था 21, 22, 23, 24। लेकिन गुड्डी ने बोला चलो मान गए हम लोग की तुम बन सकते हो जोरू के गुलाम। और भाभी ने जोड़ा, चलो अब मैं बोल दूंगी उसको, और अब उसने कर दी दया तो रिश्ता पक्का।



गुड्डी ने भी हामी भरी और वो दोनों लोग किचेन की ओर मुड़ ली,
Maza aa gaya Komalji. Ye kuchh zalak to pahele bhi padhi. Par har andaz alag he. Sayad me mere bolne ka matlab samaza nahi paungi. Par maza aa gaya.
 

malikarman

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Actually....this is my favourite story
Aur wajah hai boy ki jubani story chal rahi hai
 

komaalrani

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Actually....this is my favourite story
Aur wajah hai boy ki jubani story chal rahi hai
meri do aur stories hain jinme narartor male hai

1. लला ! फिर खेलन आइयो होरी ॥

aur ye uska link hai


2. It’s a hard rain


mauka milne par unhe bhi padhiyegaa
 

komaalrani

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शीला भाभी और गुड्डी



कैसे बनवाया शीला भाभी ने गुड्डी और इस कहानी के हीरो का रिश्ता पिछले भाग में आप पढ़ चुके हैं, पिछले पन्नों पर, PAGE 66

कुछ लाइनें लाइनें उसी सिलसिले में चुनी हुयी आगे


शीला भाभी ने आवाज दी और गुड्डी मुझे खींचकर बाहर लायी। शीला भाभी फ्रेश साड़ी वाड़ी पहनकर तैयार खड़ी थी। और अब मैंने ध्यान से देखा तो।

गुड्डी भी आज बहुत ही ट्रेडिशनल ड्रेस में, शलवार सूट में तैयार खड़ी थी, यहाँ तक की उसने चुन्नी भी डाल रखी थी। लेकिन उससे ना उसका जोबन छुप रहा था और रूप। बल्की टाईट कुर्ती में और छलक रहा था। चुन्नी भी उसने एकदम गले से चिपका रखी थी। लेकिन उसकी कोहनी तक भरी भरी चूड़ियां, कंगन, आँखों में शोख काजल, और नितम्बों तक लहराती चोटी में लाल परिंदा। मेरी निगाहें उससे एकदम चिपकी थी

और मेरी चोरी शीला भाभी ने पकड़ ली- “हे मेरी बिन्नो को क्यों नजर लगा रहे हो, अभी डीठोना लगाती हूँ…”

मैं झेंप गया और उन्होंने बात बदल कर मुझसे बोला- “मंदिर चलना है पैसा वैसा लिया है की नहीं?”

मैंने गुड्डी की ओर देखा, मेरा पर्स, कार्ड सब कुछ उसी के पास था।

गुड्डी ने मेरी ओर देखा और बोला- “तुम्हारा पर्स कहाँ है, मैं अपना तो सम्हालकर रखती हूँ और अपने झोले ऐसे लेडीज पर्स में से उसने पर्स निकाला, काल वैलेट फूला, ढेर सारे कार्ड। मेरा पर्स मुझी को दिखाती वो बोली- “ये देखो मैंने अपना पर्स कित्ता संभाल कर रखा है और एक तुम हो। चलो 10 रूपये ले लो चलो जल्दी…” और पर्स से निकालकर उसने मुझे पकड़ा दिया और चल पड़ा मैं उस सारंग नयनी के पीछे-पीछे।
मैं सोच रहा था। मेरा पर्स इसके पास। मेरे कपड़े वार्डरोब इसके पास। मेरा दिल इसके पास। मैं सोचने लगा की और उसके बदले में। तब तक वो शोख मुड़ी और मेरी ओर देखकर मुश्कुराने लगी। अगर ये सब देकर भी ये नाजनीन मिल जाय। हमेशा के लिए तो घाटे का सौदा नहीं मैंने सोचा।

बस मेरे मन में हमेशा यही डर नाच रहा था की पता नहीं भाभी ने क्या फैसला किया। गुड्डी लेकिन जिस तरह देख रही थी मेरी ओ मीठी निगाहों से। “अचानक मंदिर जाने का प्रोग्राम, क्यों किस लिए…” मैंने शीला भाभी से पूछा।
“क्यों? हर चीज जानना जरूरी है क्या?” गुड्डी ने घूर कर कहा।

लेकिन शीला भाभी बोल रही थी, गुड्डी की ओर इशारा करके- “अरे इसकी मन की इच्छा पूरी हुई, पुरानी मनौती। इसलिए…”

मैं कुछ और पूछता की गुड्डी ने शीला भाभी को भी चुप करा दिया- “भाभी। आप भी ना…”

मंदिर पास में था गुड्डी हाथ पकड़कर खींचते हुए अन्दर ले गई और शीला भाभी भी बोली-

“हे नखड़ा ना करो लाला इसके साथ क्या पता तोहरो इच्छा पूरी हो रही हो चलो दो मिनट हाथ जोड़ लो…” और वहाँ हम लोगों के कुछ बोलने से पहले शीला भाभी पंडित जी से ना जाने क्या बातें कर रही थी।

हम लोगों के पहुँचते ही हँसकर बोली- “पंडितजी जरा इन लोगों की जोड़े से पूजा कराइयेगा…”

गुड्डी ने अपनी चुन्नी, जैसे ही वो मंदिर में घुसी थी सिर पर ओढ़ ली थी। पूरी तरह ढँक कर जैसे दुल्हन। हम दोनों साथ-साथ मंदिर में बैठे थे, वो मेरे बांये। और उसके बगल में शीला भाभी। और जैसे ही शीला भाभी ने कहा इन दोनों की जोड़े से पूजा कराईयेगा, मेरे तो कुछ समझ में नहीं आया लेकिन गुड्डी बिना सकपकाए, मुझसे धीरे से बोली- “रुमाल है तुम्हारे पास, सिर पर रख लो…” रुमाल तो था नहीं। लेकिन गुड्डी ने अपनी चुन्नी मेरे सिर पर डाल दी, और मुझे कनखियों से देखकर हल्के से मुश्कुरा दी।

शीला भाभी मेरी ओर आई और हल्के से हड़का के बोली- “सटकर बैठो एकदम। हाँ…” और फिर उन्होंने चुन्नी मेरे ऊपर एडजस्ट कर दी, जिससे वो सरके नहीं और पंडित जी से मुश्कुराकर कहा- “बस गाँठ जोड़ने की कसर है…”

पंडित जी भी मुश्कुराकर बोले- “अरे ये चुन्नी है ना बस इनके शर्ट में फँसा दीजिये और इनकी कुर्ती में। हाँ बस हो गई गाँठ…”

शीला भाभी मेरे कान में बोली- “अब ये गाँठ खुलनी नहीं चाहिए और मांग लो इसको…”

“एकदम भाभी…” मैं मुश्कुराकर बोला। अपने दिल की बात तो मैं उनसे कह ही चुका था। और भाभी से मेरी अर्जी लगाने का काम उन्हीं के जिम्मे था। इसलिए उनसे क्या पर्दा। चुन्नी ना हिले इसलिए हम दोनों अब एकदम सटकर बैठे थे हम दोनों की देह तो सटी थी ही, गाल तक छू जा रहे थे। गुड्डी की चूड़ियों और कंगन की खनखन, कान के झुमकों की रन झुन, मेरे कानों में पड़ रही थी। इत्ती प्यारी लग रही थी वो की। और जब वो चोरी चोरी मुझे उसे देखते देखती। तो वो भी मीठी-मीठी निगाहों में मुश्कुरा देती।

पूजा लम्बी चली लेकिन जल छिड़कने से लेकर सारे काम जुड़े हुए हाथ से हुए। फिर उन्होंने मन्त्र पढ़ा, गुड्डी से कहा अपना नाम गोत्र सब बोलो और जो मन में हो वो मांग लो। तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी होगी। पंडित जी की हिदायतें चालू हो गईं। पूरी पूजा में ऐसे ही बैठे रहना, गाँठ हिलनी भी नहीं चाहिए। और उन्होंने पहले गुड्डी के हाथ में कलावा बांधा, फिर उसी के बचे हिस्से से मुझे भी बाँध दिया। गुड्डी का हाथ उन्होंने नीचे रखवाया, उसके ऊपर मेरा हाथ और फिर सबसे ऊपर गुड्डी का बायां हाथ। और फिर कहा आज ये सारी पूजा तुम लोग जुड़े हुए हाथ से ही करोगे।

गुड्डी ने आँखें बंद कर ली पर पंडित जी बोले नहीं आँखें खोल कर और जो चीज चाहिए वो अगर कहीं आसपास में हो तो उसकी ओर देख लेने मात्र से। इच्छा बहुत जल्द पूरी होती है।

गुड्डी की लजीली शर्मीली आँखें मेरी ओर मुड़ी, पल भरकर लिए उसने मुझे देखा और पलकें झुका ली। और जब मेरा नंबर आया तो मैंने गुड्डी को मांग लिया। और खुलकर उसे नदीदे लालचियों की तरह देखा। वो कनखियों से मीठी-मीठी मुश्कुरा रही थी। भगवान जी तो अंतर्यामी होते हैं लेकिन जिस तरह से मैं देख रहा था कोई कुछ ना समझता हो वो भी समझ गया होगा की मुझे क्या चाहिये। जब पंडित जी ने प्रसाद दिया लड्डू का तो मुझे बोला। की मैं गुड्डी को अपने हाथ से खिलाऊं। शीला भाभी ने गुड्डी के कान में कुछ कहा और वो मुश्कुराई।

जैसे ही मैंने लड्डू गुड्डी के मुँह में डाला, शर्माते लजाते थोड़ा सा मुँह खोला था उसने। लड्डू तो उसने बाद में खाया मेरी उंगली पहले काट ली। फिर पंडित जी ने गुड्डी से कहा की वो बचा हुआ लड्डू अपने हाथ से मुझे खिला दे और अबकी फिर गुड्डी ने अपने हाथ में लगा हुआ लड्डू मेरे गाल में पोत दिया। तुम लोगों की जोड़ी इस लड्डू से भी मीठी होगी पंडित जी ने आशीर्वाद दिया। उनके पैर भी हम लोगों ने अपने हाथ साथ-साथ जोड़ के छुए।

उन्होंने आशीर्वाद दिया। अब तुम लोग हर काम इसी तरह जोड़े से करना।

शीला भाभी ने जब चुन्नी अलग की तो वो गुड्डी से बोली- “आज मैं नाउन का काम कर रही हूँ। गाँठ बांधने और छोड़ने का बड़ा तगड़ा नेग होता है…”

“अरे एकदम… इनसे ले लीजियेगा ना… मैं बोल दूंगी…” मेरी ओर देखते हुए आँख नचाकर वो बोली। हम तीनों समझ रहे थे किस लेन देन की बात हो रही है।

शीला भाभी पंडित जी से कुछ और बात करने के लिए रुक गई थी हम दोनों बाहर की ओर निकल आये। मंदिर के बाहरी हिस्से में एक बड़ा सा शीशा लगा था। मैं और गुड्डी उसी के सामने रुक कर देखने लगे। मैंने उसकी पतली कमर में हाथ डालकर अपनी ओर खींच लिया और शीशे में देखते हुए पूछा- “हे ये जोड़ी कैसी लग रही है…”

“बहुत अच्छी…” गुड्डी बोली।

उसने अभी भी चुन्नी अपने सिर पे घूँघट की तरह डाल रखी थी। उसे दुलहन की तरह पकड़, शीशे में देखती वो बोली- “और ये दुल्हन…”

“दुनियां की सबसे प्यारी सबसे सुन्दर दुलहन…” मैंने बोला।

फिर कुछ रुक कर मैंने धीरे से कहा- “लेकिन ये दुल्हन मुझे मिल जाए…”


“मिल जाएगी, मिल जाएगी। चिंता मत करो। अब तो भगवान जी ने भी आशीर्वाद दे दिया है…” वो हँसकर बोली।

थोड़े देर में शीला भाभी आ गयीं

और मैंने उन्हें छेड़ा- “क्यों भाभी कहीं पंडित जी से कुछ स्पेशल प्रसाद तो नहीं लेने लग गईं थी आप…”“तुम्हारा ही काम करवा रही थी। कुंडली दी थी भाभी ने तुम्हारी मिलवाने के लिए। और सगुन…”
उनकी बात काटते मैं बोला- “मेरी कुंडली तो भाभी के पास थी लेकिन वो लड़की की…”

“तुम्हें आम खाने से मतलब है या…” अबकी गुड्डी ने बात काटी।

“आम और ये…” अब शीला भाभी चौंकी।

“अरे गरमी का सीजन आने दीजिये। कैसे नहीं खायेंगे। खायेंगे ये और खिलाऊँगी मैं। लेकिन कुंडली का क्या हुआ। मिली की नहीं…” गुड्डी उतावली हो रही थी।

“मिल गई बहुत अच्छी मिली। पंडित जी तो कह रहे थे की ये जोड़ी ऊपर से बनकर आई है। दुनियां में कोई ताकत नहीं जो रोक सके इन दोनों का मिलन। सोलह के सोलह गुण मिल गए हैं…”

शीला भाभी बहुत खुश हो रही थी। लेकिन जब तक हम दोनों कुछ बोलते एक खतरनाक बात बोल दी- “लेकिन, लड़की के लिए एक मुसीबत है…” वो बड़ी सीरियसली बोली- “और पंडित जी ने बताया है की इसका कोई उपाय भी नहीं है…”

“मतलब?” मैं और गुड्डी साथ-साथ बोले।

“अरे इसका शुक्र बहुत ही उच्च स्थान का है। पंडित जी बोले की इतना ऊँचा शुक्र उन्होंने आज तक नहीं देखा…” वो बोली।

“मतलब?” हम दोनों फिर साथ-साथ बोले।

अब वो मुश्कुराई और मेरी और मुँह करके बोली- “मतलब ये की। तुम दुलहिन के ऊपर चढ़े रहोगे हरदम। ना दिन देखोगे ना रात। बिना नागा…”

मैं और शीला भाभी दोनों गुड्डी की और देखकर मुश्कुराए। और गुड्डी बीर बहूटी हो गई। अब शीला भाभी फिर मेरी ओर मुखातिब हुई और बोली- “लेकिन असली अच्छी खबर तुम्हारे लिए है। पंडित जी ने कहा है। लड़की रूप में अप्सरा है, भाग्य में लक्ष्मी है। जिस घर में उसका प्रवेश होगा उस घर की भाग्य लक्ष्मी उदित हो जायेगी। वहां किसी चीज की कमी नहीं रहेगी और सबसे बड़ी बात। भाग्य तो तुम्हारा वैसे ही बली है लेकिन जिस दिन से उसका साथ होगा। वह महाबली हो जाएगा, तुम्हारी सारी मन की बातें बिना मांगे पूरी होंगी, नौकरी, पोस्टिंग…”

गुड्डी ये सब बातें सुनके कभी खुश होती तो कभी ब्लश करती। फिर बात बदलते हुए मुझसे बोली- “इत्ती देर से तुम्हरा दो-दो मोबाइल लादे फिर रही हूँ लो…” और उसने अपना पर्स खोलकर मेरे मोबाइल मुझे पकड़ा दिये। पूजाकर समय, उसने मेरे मोबाइल लेकर साइलेंट पे करके अपने पर्स में रख लिए थे।

लेकिन शीला भाभी चालू थी- “एक बात और तोहार भाभी कहें थी की पंडित जी से पूछे की- “लेकिन ओहमें कुछ गड़बड़ निकल गया…”

अब मैं परेशान, गुड्डी के चेहरे पे भी हवाइयां। हम दोनों शीला भाभी की ओर देख रहे थे। और वो चुप। आखीरकार, मैंने पूछा- “क्या बात है भाभी बताइए ना…”

“अरे लगन की तारीख। एह साल 25 मई से 15 जून तक जबर्दस्त लगन है। लेकिन जाड़ा में शुक्र डूबे हैं। एह लिए अब ओकरे बाद अगले साल अप्रैल के बाद लगन शुरू होई। और जून त तू मना कै दिहे हया। त लम्बा इन्तजार कराय के पड़े दुलहिन के लिए…”


इतना इंतजार तो खैर मुझसे नहीं होने वाला था। मैं और गुड्डी एक दूसरे की ओर देखकर मुश्कुराए। गुड्डी ने आँखों में मुझे बरज दिया की मैं अभी कुछ ना बोलूं। वो सीधे मुझे भाभी के पास ले जाती और मैं उन्हें बताता की मुझे छुट्टी गरमी में मिल जायेगी। मैं सिर्फ शीला भाभी की ओर देखकर मुश्कुरा दिया.

छुट्टी के लिए मैंने बात कर लिया था शीला भाभी के आने के पहले, अपने बॉस से हुयी बात जस की तस शेयर कर रहा हूँ


“तुम्हारी फील्ड ट्रेनिंग का प्रोग्राम आ गया है, 28 हफ्ते का। मैंने तुमसे बिना पूछे, बनारस के लिए बोल दिया था, कोई प्राबलम तो नहीं है। सत्रह मई से शुरू हो रही है। डिटेल तुम्हें मेल कर दिया है, तुम्हारे यहाँ के पुलिस आफिस में फैक्स भी कर दिया है, तुम्हारे घर पे भी डिलीवर कर देंगे वो…”
मैं सोच रहा था बोलूं। ना बोलूं। बोलूं। फिर बोल दिया- “कुछ छुट्टी मिल सकती है ट्रेनिंग में…”

“कब। कहीं शादी वादी तो नहीं कर रहे हो…” हँसकर वो बोले।

“हाँ। वही…” हिम्मत करके मैंने बोल दिया।

“किससे वही जिसके हास्टेल में दिन में तीन चिट्ठी आती थी। मिलवाया तो था तुमने। वही ना जिसने तुम्हें होस्टेज वाली सिचुएशन में ऊपर भेजा था…”

मैंने हाँ बोला।

“लड़की अच्छी है। एक तो उसे खाने का टेस्ट है। उस दिन तुम समोसे खाते चले गए। लेकिन उसने तारीफ भी की। टेस्ट है उसमें। कितने दिन की छुट्टी चाहिये अब एक महीने की मत मांग लेना। कब से चाहिए…” वो बोले।

मेरे दिमाग में शीला भाभी ने पंडित जी से जो लगन की तारीखें पूछीं थी, तुरंत कौंध गई। 25 मई से 15 जून तक, उसके बाद अप्रेल में अगले साल। तक सन्नाटा तो सबसे अच्छी तो 25 मई ही है। और मैं भाभी को समझा दूंगा की। जितना देर करेंगी। उता बारिश का खतरा। मैंने झट से बोल दिया- “सर। बीस मई से…” (मैंने ये भी सोच लिया था की मुझे बनारस में जवाइन सतरह मई को करना है। सुबह कर लूंगा। 18, 19, वैसे भी शनिवार, रविवार है। और छूट्टी तो सोमवार से ही शरू होगी। तो भाभी जो हम लोगों के घर के रसम रिवाज की बात कर रही थी तो वो भी निपट जाएगा। वो जब कहेंगी मैं आ जाऊँगा। सात दिन पूरे मिलेंगे)।

वो लगता है दूसरे फोन पे किसी से बात कर रहे थे, फिर बोले- “बीस मई। ओके कब तक…”

“वो। अट्ठारह जून तक सर…” मैंने बहुत हिम्मत करके बोल ही दिया।

उनका दूसरा फोन बज रहा था।
“ओके। बीस मई से अट्ठारह जून। और कुछ…” उन्होंने पूछा।
“बस एक बात। असल में मुझे घर पे बताना होगा। फिर वो लड़की वालों से बात करेंगे और सब अरेंजमेंट। तो अगर आप छुट्टी का सैंक्शन एस॰एम॰एस॰ कर देते तो…” मैंने और हिम्मत कर ली।
“एक मिनट जरा रुको। मुझे नोट कर लेने दो। ओके अभी एस॰एम॰एस॰ कर दूंगा और तुम छुट्टी की अर्जी मेल कर देना मुझे…”
उन्होंने फोन रखा और मैंने तुरंत छुट्टी की अर्जी उन्हें मेल की। दो मिनट में एस॰एम॰एस॰ आया, उनके आफिस से की मेरी 28 हफ्ते की फील्ड ट्रेनिंग बनारस में है सत्रह मई से डिटेल प्रोग्राम मेल और फैक्स किया जा रहा है। मैं फोन को घूर रहा था। और ठीक दो मिनट बाद दूसरा एस॰एम॰एस॰ योर लीव हैज बीन सैंकसंड फ्राम ट्वेंटी मई टू एट्टीन जून।

बड़ी देर तक मैं उसे देखता रहा। मुझे विश्वास नहीं हो रहा था। और मैंने तुरंत उसे गुड्डी को फारवर्ड किया। दोनों मेसेज।

बीस जून से उसका कालेज खुल रहा था। तो इसका मतलब की तब तक तो वो बनारस उसे लौट ही आना है। और मेरी छुट्टी भी तभी खतम हो रही थी। मतलब हम दोनों साथ-साथ लौटेंगे और उसने ये भी बोला था की पूरी ट्रेनिंग। मैं बजाय रेस्टहाउस में रहने के उसके घर पे ही रहूँ।

और घर पहुँच के भाभी से भी

मेरी क्या हिम्मत होती गुड्डी थी न पीछे से लेकिन लगन तो ढूंढी थी शीला भाभी ने


तो भाभी के सामने क्या हुआ उसकी भी एक झांकी


“क्या बात है?” भाभी ने मुझसे पूछा।

मैं हिचक रहा था की गुड्डी ही बोली- “इन्हें कुछ कहना है इसलिए…”

“तू बड़ी वकील बन गई है इसकी…” हँसकर आँख तरेरते, भाभी गुड्डी से बोली और मुझसे बोली- “हाँ बोलो ना, क्या कहना है?”

मैंने पहले थूक गटका, फिर सोचा कैसे शुरू करूँ और हिम्मत करके बोलने ही वाला था की भाभी ने ही रोक दिया और गुड्डी से पूछा- “शापिंग हो गई, मिल गई सब चीजें?”


“हाँ अब बोलो क्या कह रहे थे?”

“भाभी बस मेरी समझ में नहीं आ रहा है। कैसे बोलूं मुझसे बड़ी गलती हो गई…” हिचकिचाते हुए मैं बोला- “भाभी वो खाने के समय मैंने। आपने पूछा था ना की गर्मी में गाँव में। तो वही मैंने बोल दिया था ना। की की। छुट्टी नहीं मिल पाएगी तो…”

“अरे तो इसमें इतना परेशान होने की कौन सी बात है। छुट्टी नहीं मिलेगी गरमी में। तो जाड़े में कर लेंगे। और लड़की वालों से बात कर लेंगे की तुम्हें गाँव की शादी नहीं पसंद है। तो उन्हें दिक्कत तो बहुत होगी लेकिन करेंगे कुछ वो जुगाड़ शहर से शादी करने का। तुम मत परेशान हो…” और भाभी मुड़ गईं।

गुड्डी मुझे घूरे जा रही थी। और मेरे समझ में कुछ नहीं आ रहा था की क्या करूँ। फिर मैंने डी॰बी॰ का छुट्टी सैंक्शन वाला मेसेज खोलकर मोबाइल भाभी की ओर बढ़ा दिया।

उन्होंने उसको देखा, पढ़ा और फिर। मुझे लौटा दिया।

“मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है। तुम खुद साफ-साफ क्यों नहीं बता देते…” वो बोली।

“वो छुट्टी मेरी…” मैंने बोला फिर रुक गया।


“क्या हुआ छुट्टी नहीं मिली। तो कोई बात नहीं जाड़े में। तुमने मुझसे पहले भी कहा था की नवम्बर दिसम्बर…” भाभी आराम से बोली।

गुड्डी दांत पीस रही थी।

“नहीं नहीं वही मैं कह रहा था की जब अभी हम लोग गए थे तो मैंने अपने बास से बात की सब बात समझाई। तो वो गरमी में छुट्टी के लिए मान गए हैं…” मैं जल्दी-जल्दी बोला।

अब भाभी रुक के ध्यान से सुनते हुए बोली- “ऐसे थोड़े ही। ये तो लगन पे होगा ना। और फिर दो-वार दिन की छुट्टी से काम नहीं चलेगा मैंने तुम्हें बता दिया था। तीन दिन की बरात, 4 दिन रसम रिवाज। कब से छुट्टी मिलेगी…”


“20 मई से…” मैंने बताया।

उन्हह कुछ सोचा उन्होंने, फिर बोली- “और कब तक?”


28 दिन की पूरी। 18 जून तक की। असल में मेरी ट्रेनिंग बनारस में लग गई है। करीब छ सात महीने की। सत्रह मई से है उसे मैं बनारस में जवाइन कर लूँगा। बीस से छुट्टी ही है अगर आप कहेंगी, कोई बात होगी तो। सतरह को शुक्रवार है। तो अगले दो दिन तो वैसे भी। अगर आप कहेंगी तो मैं 20 से एक-दो दिन पहले भी आ जाऊँगा। तो इसलिए छुट्टी वाली परेशानी अब नहीं हैं…” अबकी मैं पूरी बात बोल-कर ही रुका।

भाभी ने कुछ सोचा फिर बोला मैंने शीला भाभी से कहा था की पंडित जी से पूछ लें की लगन कब है


“पचीस मई से पन्दरह जून तक उनको पंडित जी ने बताया था। और ये भी कहा था की पच्चीस की लगन बहुत अच्छी है। और फिर गाँव की बरात। जित्ता देर होगा कहीं बारिश वारिश। तो लड़की वालों को भी…”

मेरी बात काटकर भाभी मुश्कुराकर बोली- “अच्छा अभी से लड़की वालों की तरफदारी चालू हो गई। वैसे बात तुम्हारी सही है। लेकिन एक बार मुझे उनसे बात करनी पड़ेगी ना। पर। फिर कुछ उन्हें याद आया। खुलकर मुश्कुराकर वो बोली- “छुट्टी के साथ ये बात भी तो थी, गाँव में तीन दिन की बरात, वो भी आम के बाग में। तो उसमें तो कोई परेशानी नहीं है…”

गुड्डी मुझे देखकर खिस्स-खिस्स मुश्कुरा रही थी।

“नहीं नहीं भाभी ऐसा कुछ नहीं है। मुझे क्यों परेशानी होगी गाँव में बारात से। गाँव की शादी में तो और…” मैंने बात बनाने की कोशिश की।

“यही तो…” खिलखिलाते हुए मेरी नाक पकड़कर जोर से हिलाते हुए भाभी बोली- “जबर्दस्त रगड़ाई होगी तुम्हारी। तुम्हारे भैया के साथ तो कुछ मुर्रुवत हो गई थी। लेकिन तेरे साथ नहीं होने वाली। डेढ़ दिन का कोहबर होता है हमारे गाँव में। और गालियां वालियां तो छोटी बात हैं। वहां तुमसे गालियां गवाई जायेगीं तुम्हारे मायके वालों के लिए। चलो खैर उसकी कोई चिंता नहीं। मुझे एक से एक आती है। तुम्हें सब सिखा दूंगी…” (सुना तो मैंने भी था इस कोहबर की शर्त के बारे में। शादी के बाद लड़के को लड़की वाले के घर में ही रोक लिया जाता है। और ससुराल की सभी औरतें सालियां। सास, सलहज, उसके पास रहती है और दुलहन भी। जब दुल्हन की विदाई होती है तब लड़का उसके साथ ही निकलता है। माना ये जाता है की इससे दुल्हा ससुराल में घुल मिल जाता है। आखीरकार, दुलहन तो जिंदगी भरकर लिए जाती है अपनी ससुराल। लेकिन मैंने ये भी सुना था की ये सब रस्म अब पुराने जमाने की बातें हो गई।)

मेरी नाक अभी भी भाभी के हाथ में थी और गुड्डी खिलखिला के हँस रही थी।

भाभी चिढ़ाते हुए बोली- “डर तो नहीं गए भैया। वरना अभी मैंने बात नहीं की है। फिर वही जाड़े वाली बात शहर की शादी की…”

उनकी बात काटकरके मैं तुरंत बोला- “नहीं नहीं भाभी प्लीज। ऐसा कुछ नहीं है। आपकोई चेंज वेंज की बात मत करिएगा। मुझे कोई दिक्कत नहीं है गरमी की शादी और गाँव में। आखीरकार, हर जगह की अपनी रस्म रिवाज है। मैं रैगिंग समझ लूँगा। एक-दो दिन की क्या बात है?”


“जी नहीं…” भाभी ने तुरंत समझाया।

“उसकोहबर की रगड़ाई के सामने, बड़ी से बड़ी रैगिंग बच्चों का खेल है। और तुम्हारे साथ तुम्हारे मायके से कोई कजिन वजिन जो कुँवारी हो बस वही रह सकती है। और उसकी खूब रगड़ाई होगी खुलकर। बस यही है की मैं नहीं देख पाऊँगी…”

गुड्डी बड़ी देर से चुप थी, बोली- “अरे ऐसा कुछ नहीं है। वीडियो रिकार्डिंग करा लेंगे ना। कोई इनकी साली वाली ही कर देगी। फिर आप ही क्यों इनके सारे मायके वाले देखेंगे बड़ी स्क्रीन पर…”

भाभी ने खुशी से गुड्डी की पीठ थपथपाई और बोली ये हुई ना बात आज जब मैं लड़की वालों से बात करूँगी ना। तो ये भी बोल दूंगी। फिर मेरी और मुड़कर बोली- “इसलिए मैं तुमसे कह रही थी ना की शादी के 6-7 दिन पहले आ जाओ। तो अपने घर की तो रसम जो होगी सो होगी। मैं तुम्हें तुम्हारे ससुराल के लिए भी ट्रेन कर दूंगी…”

मेरी सांस वापस आई। मुझे मालूम था की जाड़े में कोई लगन वगन है नहीं। अगली लगन अप्रैल यानी साल भर से ज्यादा का इन्तजार और अगर 25 मई वाली बात बन गई तो बस सवा दो महीने के बाद। एकदम। मैंने तुरंत भाभी की बात में हामी भरी।

“आप एकदम सही सोच रही थी। मैंने कहा ना मैं ही बेवकूफ हूँ। अगर 25 की बात पक्की होती है ना तो मैं 18 को ही आपके हवाले हो जाऊंगा। पूरे सात दिन। जो भी रसम हो ट्रेनिंग हो सब आँख कान मूंद कर…”

“एकदम…” अबकी भाभी ने मेरा कान पकड़ा। और 27 की रात को मैं तुम्हें अपनी देवरानी के हवाले कर दूंगी। उसके बाद पूरा कब्ज़ा उसका…”

मैंने सब कुछ मना डाला। चलिए मेरी बात रह गई।

लेकिन भाभी ने फिर एक सवाल दाग दिया- “हाँ और वो आम के बाग वाली बात। गाँव में बारात तो वही रुकती है और वैसे भी बहुत बड़ी बाग है वो डेढ़ दो सौ पेड़ होंगे कम से कम। खूब घने दशहरी, कलमी सब तरहकर। और उस समय तो लदा लद भरे होंगे। और तुम्हें तो इतना परहेज है और अगर कहीं तुम्हारी साली सलहज को मालूम पड़ गया तो। फिर तो…”

मैंने उनकी बात काटकर कहा- “भाभी चलेगा बल्की दौड़ेगा। अरे नेचुरल और आर्गेनिक का जमाना है। तो मुझे आम के बाग से भी ऐसा कुछ नहीं। फिर ससुराल में साली सलहज टांग तो खिचेंगी ही यही तो ससुराल का मजा है…”

भाभी और गुड्डी मेरे इस धाराप्रवाह बात को सुनकर, एक दूसरे को देखकर आँखों ही आँखों में मुश्कुरायीं और फिर बोली- “तूने इतनी सब बातें बोल दी मैं कन्फुज हो गई। एक बार में सब साफ-साफ समझा दो तो मैं अभी लड़की वालों से बात करके डेट फाइनल कर दूँ…”

मैं समझ गया था की भाभी मुझे रगड़ रही है वो मेरे से सब सुनना चाहती हैं। मुझे मंजूर था। मैंने सब बातें एक बार फिर से दिमाग में बिठाई और उन्हें पकड़कर बोल दिया- “भाभी मेरी अच्छी भाभी, मुझे गरमी की गाँव में शादी, और आम के बाग में बारात सब मंजूर है। सौ बार मंजूर है। मुझे मई जून में पूरे अट्ठाईस दिन की छुट्टी मिल गई है, बीस मई से और अगर आप पच्चीस मई की शादी तय करती हैं तो मैं अट्ठारह को ही आपके पास आ जाऊँगा। तो बस अब आप इसी गरमी में फाइनल कर दीजिये ना। और बेस्ट होगा पच्चीस मई को…” भाभी मुश्कुरायीं और गुड्डी से बोली।

“देखा ये आदमी अभी दो घंटे पहले क्या बोल रहा था, ये नहीं वो नहीं छुट्टी नहीं। और अभी। दुल्हन पाने के लिए आदमी कुछ भी करने को तैयार रहता है…” गुड्डी ने खिलखिला कर जवाब दिया।

भाभी ने खुशी से मुझे बांहों में भर लिया। और बोली- “मैं आज ही सब पक्का कर दूंगी और तुम मेरी सारी बातें मान गए तो चलो एक बात तुम्हारे लिए…” फिर गुड्डी की ओर मुड़कर बोली- “हे तुम मत सुनना। उधर मुँह करो। कुछ सुना क्या?”

“नहीं आप कुछ बोल रही थी क्या? मुझे तो कुछ भी नहीं सुनाई दे रहा…” गुड्डी भी उसी अंदाज में बोली।

भाभी ने मेरे कान में कहा, लेकिन पूरे जोर से- “चल तेरा फायदा करवा देती हूँ। रोज रात में ठीक नौ बजे मेरी देवरानी तुम्हारे हवाले, पूरे बारह घंटे के लिए। बाहर से ताला बंद करके चाभी मैं अपने पास रखूंगी जिससे मेरी कोई छिनाल ननद आकर तंग ना करे। और अगर तुमने मेरी सब बातें अच्छी तरह मानी। और उसे ज्यादा तंग नहीं किया ना…”



“ज्यादा तंग मतलब भाभी…” मैंने पूछा और गुड्डी की ओर देखा।

वो मुश्कुरा रही थी और कान फाड़े सुन रही थी।

“अरे ज्यादा मतलब। तीन-चार बार से ज्यादा। अब नई दुलहन है और वो भी इत्ती प्यारी तो, तीन-चार बार तो बनता है।

“हाँ और जैसा मैं कह रही थी की तुम मेरी बात मानोगे तो। दिन में भी दो-तीन घंटे के लिए छोड़ दूंगी अपनी देवरानी को, बाकी समय दूर-दूर से ललचाना…”

फिर भाभी ने मुश्कुराकर गुड्डी से पूछा- “हे तूने तो कुछ नहीं सुना…” और बड़े भोलेपन से गुड्डी ने अपनी बड़ी-बड़ी आँखें नचाते हुए कहा- “आपने कुछ कहा था क्या? मैंने तो कुछ नहीं सुना…”
 
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