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Erotica रंग -प्रसंग,कोमल के संग

komaalrani

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भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी

Phagun ke din chaar update posted

please read, like, enjoy and comment






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तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी
 

komaalrani

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शीला भाभी और होली की साँझ


गुड्डी वापस मुड़ी और रंजी से बोली- “यार तू स्कूटी निकाल मैं जरा पर्स भूल गई हूँ लेकर आती हूँ…” वो वापस मुड़ी, मुझे भी इशारा किया और मैं उसके पीछे-पीछे।

“क्या भूल गई थी?” मैंने गुड्डी से पूछा।



मुश्कुराकर मुझे बाहों में लेकर वो बोली- “एक बात और एक काम…”

फिर मुझे किस करके गुड्डी ने कहा-

“बात ये है कि आज तुझे मेरी कसम, शीला भाभी की खूब रगड़-रगड़कर हचक के करना, मेरे नाम का सवाल है। मेरा नाम मत डुबोना समझे और उन्हें गाभिन जरूर करना। पंद्रह दिन के अंदर अच्छी खबर आनी चाहिए। एक बात तुम्हें समझानी थी, भाभी ही असली चाभी हैं। सिर्फ मेरे घर में ही नहीं पूरे गाँव में उनकी चलती है और अगर एक बार तूने उनको फिट कर लिया ना तो समझ लो, चाहे मेरे मायकेवालियां हों या तेरी, सबका आगे-पीछे दोनों छेद पक्का…”

और जब तक मैं कोई सवाल करता, वो अलमारी की ओर मुड़ी, चंदा भाभी के दिए हुए हर्बल वियाग्रा वाले लड्डू निकाले, एक नहीं दो, और मेरे मुँह में डाल दिए। और अब तो मेरे बोलने का सवाल नहीं था। मुँह लड्डू से भरा था।

वही बोली- “यही काम मैं भूल रही थी। डबल डोज इसलिए कि सिर्फ उनकी लेना नहीं बल्की गाभिन भी करना है। और मैं इसलिए रंजी के साथ जा रही हूँ की फिर तुम निश्चिंत होकर रात भर उनकी लो। दूसरे इस छिनार तेरी बहन कम माल कि मुझे निगरानी भी करनी है। इसकी चूत में इत्ते चींटे काट रहे हैं तो कहीं किसी और से अपनी सील न तुड़वा ले। अब तो उसकी सील टूटेगी तो तेरे मूसल से और वो भी इतनी जबरदस्त कि उसकी चीख, पूरे मुहल्ले में सुनाई देनी चाहिए की उसकी फट गई। फिर तो उसके बाद देखना तुम्हारी किस-किस मायकेवालियों का नंबर लगवाती हूँ…”

बाहर से रंजी की आवाज आई और गुड्डी एक बार फिर जंगबहादुर को दबाकर, रंजी के साथ स्कूटी पे निकल गई। मैं और शीला भाभी दोनों को देख रहे थे। लेकिन रंजी के जाने के पहले शीला भाभी ने उसे मन भर अशीशा।

भाभी ने कसकर रंजी को अंकवार में बाँध रखा था। उनके हाथ प्यार से उसके गाल और बाल सहला रहे थे। पहली बार वो रंजी से अबकी मिली थी, लेकिन पक्का ननद भौजाई का रिश्ता बन गया था। और रंजी भी उनसे दुलार से चिपकी थी। फिर अचानक शीला भाभी ने रंजी को छेड़ने वाली निगाह से देखा और रंजी ने उसी तरह मुश्कुराती चिढ़ाती निगाह से जवाब दिया।


फिर क्या था अब तो शीला भाभी चालू हो गईं। अपने बड़े-बड़े जोबन से उसके किशोर उभार दबाती, मसलती, बोली-

“अरे रंडी, हमार मतलब रंजी रानी, जल्दी से जल्दी अपनी बुरिया में, अपने भइया का लण्ड ठोंकवाओ, अगवाड़े पिछवाड़े, (और गुड्डी ने वहीं मुझे अंगूठा और तरजनी मिला के चुदाई का इंटरनेशनल सिंबल दिखाया और रंजी ने भी पहले तो लम्बी सी जीभ निकालकर चिढ़ाया, और फिर फ्लाइंग किस), दिन रात चुदवाओ इस बहनचोद से, फिर अपने भय्या के साल्लों का नंबर लगवाओ, बनारस जाओ तो एक से एक मोटे लण्ड मिलें, मजे ले लेकर बुर चुदवाओ, गाण्ड मरवाओ, महीने में सौ का नंबर पार लग जाए तब पता चले कि हमार छिनार रंडी ननद है…”

रंजी भी कम नहीं थी, मुझे आँख मारकर बोली- “भाभी आपके मुँह में घी शककर, आपकी सब बात एकदम सही हो…”

“एकदम होगी, अरे हमको होलिका रानी का आशीर्वाद है, जौने ननद के होली के दिन आशीर्वाद दे दिया, ओकरे बुर में इतना लण्ड घुसंगे कि वो साल्ली छिनार गिनती भूल जायेगी…”



रंजी और गुड्डी स्कूटी से रंजी के घर की ओर निकल पड़ी और मैं और शीला भाभी किचन की ओर। शीला भाभी किचेन में खाना लगा रही थी और मैं उन्हें निहार रहा था।

पुष्ट उरोज, दीर्घ नितम्ब, मांसल देहयष्टि, कसी-कसी पिंडलियां और चपल चंचल नैन, एकदम पक्की प्रौढ़ा नायिका। शीला भाभी के चूतड़ जैसे दो तरबूज, कसर मसर करते, वो जरा भी हिलती तो उनकी गाण्ड की दरार एकदम साफ दिखती। और साड़ी भी कूल्हों के नीचे बंधी, तगड़ी मासंल जंघाएं जैसे याद दिला रही हों कितनी ताकत, कितनी मस्ती होगी इनके बीच।

रंजी और गुड्डी, शीला भाभी के मुकाबले मुग्धा नायिका कि श्रेणी में आती हैं, हिरनी की तरह चपल चंचल किशोरियां। कैशोर्य एक ऐसी उमर, बचपन और जवानी के बीच कि दहलीज पे खड़ी, जहाँ से कोई उन्हें हाथ पकड़कर जवानी कि रसीली गलियों में खींच ले। मुग्धा नायिका की पहचान ही यही है कि उसका थोड़ा मन करेगा, थोड़ा शर्मायेगी। काम का रस जैसे यौवन घट में लाज के भारी ढक्कन के नीचे बंद हो और मेरे जैसा कोई आकर उस ढक्कन को हटाकर, आज का घूघट खोलकर छक के उस रस का पान करे और उन किशोरियों को जवानी के सुख से परिचित कराये।

वहाँ आनंद उंगली पकड़कर उन्हें काम गली में चलना सिखाने का है। लेकिन रति का असली आनंद तो प्रौढ़ नायिका के ही साथ है, जो काम कला में प्रवीण हो, नैनों के साथ देह कि भाषा भी अच्छी तरह समझती हो और अखाड़े में बराबर कि टक्कर दे। और शीला भाभी सोलहो आना ऐसी ही लग रही थी तन से भी मन से भी।

केलि कला में अति चतुर, रति अरु पति सों हेत।

मोहि जाहि आनन्द ते, प्रौढ़ा वरनी सुचेत।

प्रौढ़ा के साथ काम मात्र देह का मिलन नहीं बल्की सभी इंद्रियों का सुख, सुनने का, बोलने का, नख क्षत, दन्त क्षत सब कुछ, यानि सम्पूर्ण काम रस है। वह केलि कला में चतुर होती है, प्रेमी को रति का आनंद देना जानती हैं। वह मदन के वशीभूत होकरलि काल में लज्जा पूरी तरह त्याग देती हैं।

शीला भाभी जब कुछ निकालने के झुकती तो उनके लो-कट चोली से जोबन, छलक-छलक बाहर आ रहे थे। उन गोरी मांसल बड़ी-बड़ी गोलाइयों के बीच कि खायीं देखकर जंगबहादुर की हालत खराब हो रही थी। और ऊपर से उनके कसर मसर करते चूतड़।, मैं और भाभी दोनों खाना निकालकर बाहर लाये। और सबसे बाद में मैंने भाभी को ही उठा लिया और बरामदे में ले आया।

हँसती खिलखिलाती भाभी बोली- “अरे लल्ला आई का कर रहे हो?”

“अरे भाभी, स्वीट डिश तो आप ही हो इसलिए आपको भी उठाकर खाने की मेज पे ले जा रहा हूँ…” मैंने जवाब दिया।

खाना खाने के लिए हम दोनों तख़्त पे बैठे थे लेकिन शीला भाभी मेरी गोद में थी, मेरी ओर मुँह किये हुए।



“भाभी आज खाना आपके हाथ से खाऊंगा…” मैंने बड़े अंदाज से शीला भाभी से कहा।



“ये कौन सी बड़ी बात है, अरे खिला दूंगी न देवर को, लेकिन क्यों?” उन्होंने भी बहुत प्यार से कहा।



“एक तो भाभी आपके हाथ से खाना दूना मीठा हो जाएगा, और दूसरे मेरे हाथ को कुछ और भी काम हैं…” मैंने छेड़ते हुए कहा, और अगले ही पल हाथ उनके लो-कट ब्लाउज़ में था। चट-चट करते हुए चुटपुटिया बटन सारी टूट के खुल गईं, और मेरे दोनों हाथ में लड्डू।
 

malikarman

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meri do aur stories hain jinme narartor male hai

1. लला ! फिर खेलन आइयो होरी ॥

aur ye uska link hai


2. It’s a hard rain


mauka milne par unhe bhi padhiyegaa
Ye padh liya hai maine
Amazing story hai
लला फिर खेलने आइयो होरी
 

arushi_dayal

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गुड्डी, भाभी और

कौन बनेगी उनकी देवरानी





बाहर भाभी और गुड्डी की खिलखिलाहट बढ़ गई थी। मेरे लिए खुद को रोकना बहुत मुश्किल हो रहा था, इसलिए मैं बाहर आ गया। मेरी आँखें कार्टून कैरेक्टर्स की तरह गोल-गोल घूमने लगी। दोनों मुश्कुरा रही थी। भाभी ने गुड्डी के कंधे पे सहेलियों की तरह हाथ रखा हुआ था।

और मुझे देखकर भाभी और जोर से मुश्कुराने लगी। और साथ में गुड्डी भी। भाभी ने गुड्डी की और देखा जैसे पूछ रही हों बता दें और गुड्डी ने आँखों ही आँखों में हामी भर दी।

भाभी ने मुझे देखा, कुछ पल रुकीं और बोला, तुम्हारे लिए खुशखबरी है।

मैं इन्तजार कर रहा था उनके बोलने का। एक पल रुक के वो बोली-

“मैंने, तुम्हारे लिए, अपनी देवरानी सेलेक्ट कर ली है…”



मैंने गुड्डी की ओर देखा उसकी आँखों में खुशी छलक रही थी।

मैं एक पल के लिए रुका फिर कुछ हिम्मत कर कुछ सोचकर बोला- “जी… लेकिन कौन? नाम क्या है?”



दोनों, भाभी और गुड्डी, एक साथ शेक्सपियर की तरह बोली- “नाम, नाम में क्या रखा है? क्या करोगे नाम जानकर?”



और मैं चुप हो गया।



“देवरानी मेरी है की तुम्हारी, तुम क्या करोगे नाम जानकर…”


भाभी, मुश्कुराते हुए मेरी नाक पकड़ कर बोली।
गुड्डी किसी गुरु ज्ञानी की तरह, गंभीरता पूर्वक, सहमती में सिर हिला रही थी। भाभी ने नाक छोड़ दी, फिर बोली-

“लेकिन अभी बहुत खुश होने की जरूरत नहीं है, मैंने चुन लिया है, लेकिन वो तो माने। उसकी भी शर्ते हैं। अगर तुम मानोगे तभी बात पक्की हो सकती है…”



मैं फिर सकते में आ गया। ये क्या बात हुई। मैं कुछ बोलता इसके पहले भाभी ने गुड्डी से कहा-

“सुना दो ना इसको शर्ते। अब अगर ये मान गए तो बात बन जायेगी। वरना सिर्फ मेरे चुनने से थोड़ी ही कुछ होता है…”



गुड्डी ने एक पल सीधे मेरी आँखों में देखा। जैसे पूछ रही हो। बोलो है हिम्मत। और फिर उसने शर्त सुना दी।




“पहली शर्त है, जोरू का गुलाम बनना होगा। पूरा…”



भाभी ने संगत दी। बोलो है मंजूर वर्ना रिश्ता कैंसल।

मैंने धीमे से कहा- “हाँ…”

और वो दोनों एक साथ बोली- “हमने नहीं सुना।



मैंने अबकी जोर से और पूरा कहा। हाँ मंजूर है।

और वो दोनों खिलखिला पड़ी। लेकिन गुड्डी ने फिर एक्सप्लेन किया। और जोरू का मतलब सिर्फ जोरू का नहीं, ससुराल में सबका। साली, सलहज सास। सबकी हर बात बिना सोचे माननी होगी।






मैंने फिर हाँ बोल दिया।


भाभी बोली, तलवें चटवायेंगी सब तुमसे। गुड्डी अकेले में बोलती तो मैं उसे करारा जवाब देता लेकिन,... भाभी थी।

मैंने मुश्कुराकर हाँ बोल दिया।

भाभी बड़ी जोर से मुश्कुरायीं और गुड्डी से बोली-

“सुन वैसे तो कोई भी हाँ हाँ कर देगा। एकाध टेस्ट तो लेकर देख…”




और गुड्डी ने जैसे पहले से सोच रखा था तुरन्त बोली- “उट्ठक बैठक। कान पकड़कर 100 तक। और मैं तुरन्त चालू हो गया। कान पकड़कर 1, 2, 3, 6,

भाभी हँसते हुए गुड्डी से बोली- “तू भी इसका साथ दे रही है क्या। इत्ता आसान टेस्ट ले रही है। मैं होती तो सैन्डल पे नाक तो रगड़वाती ही।


और उधर मैं चालू था 21, 22, 23, 24। लेकिन गुड्डी ने बोला चलो मान गए हम लोग की तुम बन सकते हो जोरू के गुलाम। और भाभी ने जोड़ा, चलो अब मैं बोल दूंगी उसको, और अब उसने कर दी दया तो रिश्ता पक्का।



गुड्डी ने भी हामी भरी और वो दोनों लोग किचेन की ओर मुड़ ली,

कितना प्यारा रिश्ता है भाभी और देवर का
जैसे इक रिश्ता है मोती और जेवर का
देवर की दिल की बात भाभी जान जाती है
इसीलिये ही भाभी हर देवर को भाती है
देवर के दिल की मान ली बात
देवर को दे दी गुड्डी की सौगत

कोमल जी बहुत ही उत्कृष्ट अपडेट । आप एक बेहतरीन कहानीकार हैं और जानती हैं कि अपनी कहानी, शब्दों और मुहावरों से पाठकों को वह जानती कैसे बांधे.मैं निःशब्द हूं और ऐसी कहानी पढ़कर सम्मानित महसूस कर राही हूं
 

komaalrani

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कितना प्यारा रिश्ता है भाभी और देवर का
जैसे इक रिश्ता है मोती और जेवर का
देवर की दिल की बात भाभी जान जाती है
इसीलिये ही भाभी हर देवर को भाती है
देवर के दिल की मान ली बात
देवर को दे दी गुड्डी की सौगत

कोमल जी बहुत ही उत्कृष्ट अपडेट । आप एक बेहतरीन कहानीकार हैं और जानती हैं कि अपनी कहानी, शब्दों और मुहावरों से पाठकों को वह जानती कैसे बांधे.मैं निःशब्द हूं और ऐसी कहानी पढ़कर सम्मानित महसूस कर राही हूं
आपकी तारीफ़ करना सूर्य को दिया दिखाना है आपकी मेरे थ्रेड पर उपस्थिति मात्र मेरे लिए सौभाग्य है।
आज छुटकी का भाग ५४ पोस्ट किया है अगर हो सके तो उसपर भी एक दृष्टिपात कर के अपनी टिप्पणी से लाभान्वित करें।



भाग ५५

माँ





अग्रिम धन्यवाद.
 

komaalrani

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शीला भाभी और होली की रात


खाना खाने के लिए हम दोनों तख़्त पे बैठे थे लेकिन शीला भाभी मेरी गोद में थी, मेरी ओर मुँह किये हुए।

“भाभी आज खाना आपके हाथ से खाऊंगा…” मैंने बड़े अंदाज से शीला भाभी से कहा।

“ये कौन सी बड़ी बात है, अरे खिला दूंगी न देवर को, लेकिन क्यों?” उन्होंने भी बहुत प्यार से कहा।

“एक तो भाभी आपके हाथ से खाना दूना मीठा हो जाएगा, और दूसरे मेरे हाथ को कुछ और भी काम हैं…” मैंने छेड़ते हुए कहा, और अगले ही पल हाथ उनके लो-कट ब्लाउज़ में था। चट-चट करते हुए चुटपुटिया बटन सारी टूट के खुल गईं, और मेरे दोनों हाथ में लड्डू।

क्या मस्त चूचियां थी, जीतनी बड़ी-बड़ी, उतनी ही कड़ी, एकदम पत्थर लेकिन खूब मांसल, गदराई। होली खेलने में मैंने शीला भाभी की चोली में हाथ भी डाला था और जोबन मीजा, मसला भी था लेकिन आज तो ब्लाउज़ का पर्दा एकदम गायब था और दोनों गद्दर जोबन सीधे मेरे मुट्ठी में थे। पहले मैंने सहलाया, फिर हल्के से दबाया और जब नहीं रहा गया तो जोर-जोर से मसलने रगड़ने लगा। चूचियों से भी ज्यादा मस्त थी, शीला भाभी कि चूची कि घुन्डियां। गजब। जैसे छोटे-छोटे जामुन हों।

मैं अंगूठे और तरजनी के बीच उन्हें मसलता रहा। लेकिन उन्हें छूते ही शीला भाभी की भी मस्ती से हालत खराब हो गई। वो सिसकियां भरने लगी। मेरे दोनों हाथ तो बिजी थे ही साथ में होंठ भी, कभी भौजाई के गालों का चूम्मा ले लेते, तो कभी नीचे झुक के चूची चूस लेते।

“बड़े लालची हो लाला। अरे भौजाई कहीं भागी नहीं जा जा रही है, पहले खाना तो खा लो…”

और वो अपने हाथ से पूड़ी और खीर मेरे होंठों के बीच डाल देती। साथ में उनके चूड़ियों की खन-खन, और पायल की रुनझुन मजे को और दूना कर रही थी।

मैंने जोर से उनके गालों को कचकचा के काटा और बोला- “अरे भौजी, एह मालपुआ के आगे सब फीका हौ…”


शीला भाभी, जैसा की मैंने कहा था कि पक्की प्रौढ़ा थी, वो कहाँ पीछे रहती जवाब में उन्होंने भी दूने जोर से मेरे गाल काट लिए और बोली-

“तुन्हु कौन कम नमकीन हउआ लाला…”

और अब जब मैंने उनके निपलों को खींचा तो जवाब में उन्होंने भी कसकर मेरे निपल पिंच कर दिए और बोली-

“अब तो तुमसे तिहरा रिश्ता है, तोहार तो जमकर रगड़ाई करे के पड़ी…”

“तिहरा कैसे भौजी…” मेरी समझ में नहीं आया इसलिए उनके गाल चूम के मैंने पूछ लिया।

एक कौर पूड़ी सब्जी मेरे मुँह में डालकर वो बोली- “एक तो भौजी वाला…
और जवाब में उनके गद्दर जोबन मीजते, मसलते मैं बोला- “एकदम… उहो सबसे मीठी वाली…”

“और गुड्डी, ऊ हमार ननद लगती है, लगती क्या है, है ही…” शीला भाभी फिर बोली।

मुझे गुड्डी की बात याद आई, भाभी ही चाभी हैं। एक बार इनको पटा लो फिर तो उसके मायके में, मायके में क्या पूरे गाँव में किसी कि हिम्मत नहीं ना बोलने की और जिस तरह से उन्होंने मेरी और गुड्डी कि शादी सेट करा दी थी, चट मंगनी वाली तर्ज पे, उसकी बात में पूरा दम था।

बात शीला भाभी ने ही आगे बढ़ायी- “तो जब ऊ ननद है तो तुम नन्दोई हुए ना। आई हुआ दूसरा रिश्ता…”

अबकी जवाब मैंने सीधे होंठों पे लिप्पी ली और जो कौर उन्होंने मुझे खिलाया था सीधे अब भाभी के मुँह में। फिर बोला-

“सही बात है भौजी, साली से सलहज अधिक पियारी, आखीरकार, सलहज सीखी सिखायी होती है, और सलहज को पटा लो, तो साली को वो पटवा ही देगी…”

“लाला, हो तुम समझदार, देखना तोहार कौनो साल्ली चूं चां करिहे न। अरे सबकी टांग फैलवाऊंगी तोहरे आगे…” खुश होकर शीला भाभी बोली।

“लेकिन आई तीसरा रिस्ता, भौजी इ समझ में नहीं आया…” मैंने सिर खुजाते हुए कहा।

“अरे लाला सोचो-सोचो, बहुत पढ़े हो दिमाग लगाओ जरा…” भाभी ने हँसते हुए उकसाया। शीला भाभी बड़ी जोर से खिलखिलायीं-

“अरे लाला तुम भी न बहुत सीधे हो, नहीं समझे न…”

“उंहु…” जोर से दायें बाएं सिर हिला के मैंने स्वीकार किया।



“अरे ऊ तोहार ममेरी बहन रंजी, ओहपे हमरे गाँव के लड़का, मरद सब चढ़ेंगे, हुमच-हुमच के साल्ली को चोदेंगे। और रंजी ही काहे, जितना तोहार चचेरी मौसेरी, फुफेरी बहन हैं सब पे, तो जब तोहार बहिन हमरे गाँव में चोदिहें त, तू लगबा गाँव वालन का, बोला- “

शीला भाभी पूरे जोश में थी। मेरे जंगबहादुर पे अपने मस्त चूतड़ को जोर-जोर से रगड़कर उन्होंने चिढ़ाया।

मैं चुप रहा।

“साल्ला, इ हौ तीसरा रिश्ता…” हँसकर शीला भाभी बोली।

मैंने पैंतरा बदला। शीला भाभी के गदराये जोबन को मुट्ठी में कसकर दबाते बोला- “भाभी, आई सोचो, नौ महीने के बाद जब इसमें छलछला के दूध भर जाएगा, तो कितना मस्त लगेगा…”

सोचकर शीला भाभी की आँखें भर आई और खुश होकर बोली- “लाला, जाऊँ ऊ दिन देखहिएं तौ हमें कितना खुशी होगी बता नहीं सकते…” खुशी छलछला रही थी।

लेकिन शीला भाभी तो शीला भाभी थी, अपने रंग में आकर बोली- “देवरजी जब दूध आएगा न तो एक से तुमको पिलाऊंगी और दूसरे से बिटिया को…”

“अरे भाभी, बरही में कतों हमको बुलाना भुला मत जाइयेगा…” मैंने छेड़ा।

शीला भाभी का जवाब हमेशा बीस रहता था था, बोली- “अरे लाला, तुम नहीं आओगे तो महतारी बहिन किसकी गरियाई जाएंगी…”

मेरे पास जवाब नहीं था इसलिए कचकचा के मैंने उनकी चूची काट ली।
 

komaalrani

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शीला भाभी



“अरे भाभी, बरही में कतों हमको बुलाना भुला मत जाइयेगा…” मैंने छेड़ा।

शीला भाभी का जवाब हमेशा बीस रहता था था, बोली- “अरे लाला, तुम नहीं आओगे तो महतारी बहिन किसकी गरियाई जाएंगी…”

मेरे पास जवाब नहीं था इसलिए कचकचा के मैंने उनकी चूची काट ली।

शीला भाभी बोली-

“लाला हमको तो कोई शक नहीं है तुम्हरे जांघ के जोर में, आज तू गाभिन करी दोगे, और नौ महीने बाद नवंबर-दिसंबर में, सोहर होगा। यही खुशी में हमने तय किया है कि तोहरी माई बहिन के लिए खूब मोटे मोटे लण्ड का इंतजाम किया जाय। कौनो छिनार बचिए ना, सबकी हचक-हचक के चुदाई होगी तगड़े लण्ड से…”

मैंने मुँह बनाकर कहा- “भौजी हरदम मजाक…”

“मजाक नहीं एकदम सच बोल रही हूँ, एक-एक पे तीन चढ़ेंगे वो भी साथ-साथ। अच्छा आई बताओ कि गुड्डी की मम्मी से बात हुई थी तुम्हारी…” शीला भाभी बोली।

मेरी तो हिम्मत नहीं कि गुड्डी कि मम्मी बोलूं, मैं तो मम्मी ही बोलता था। और दूसरे शीला भाभी से ‘सेंसर’ करके भी बात बताने की मेरी हिम्मत नहीं थी।

तब तक शीला भाभी ने फिर मेरे गाल पे जोर से चिकोटी काटकर पूछा-

“अरे लाला, काहें लौंडिया की तरह शर्मा रहे हो बोला ना ऊ का बोली थी, तोहरे मायकेवालियों के बारात में आवे के बारे में…”

और मैंने जस का तस बोल दिया।

“छिनार के पूत, रंडी के, तुम्हारी जेतनी बहन, महतारी, चाची, बुआ, मौसी, जितना माल होगा तेरे घर में, सब आनी चाहिए बरात में। एक को भी घर में छोड़कर आये ना, ता निहुरा के गाण्ड मारी जायेगी और बिना दुलहिन के बिदा कर दूंगी। जिसको झांट ना आई हो वो भी, कौनो तोहार बहिन माई चाची, घर में मत छोड़कर आना कि उँहा ऊ दूध वाले से, घर के नौकरों से बुर चोदवाएं। सबके लिए मस्त इंतजाम रहेगा बोल देना छिनारों से। गाँव के लड़कों का तो फनफना रहा ही है, गाँव के मर्द भी अभी से सरसों का तेल लगाकर मुठिया रहे हैं…”

और फिर मुझसे गलती हो गई। शीला भाभी के जोबन मसलते मैंने बोल दिया- “भाभी, ऊ मजाक कर रही होंगी। उहो होली और भांग के नशे में थी और मैं भी…”

और शीला भाभी ने हाल खुलासा बयान कर दिया। वो बोली-

“लाला एक बात समझ ल्यो, तोहार सास इह मामले में एकदम पक्की हैं, मजाक भी करिहे ताऊ ओके सच समझो। अच्छा आई बताओ तोहार बरात, तोहार सास का कहीं थी कि कहाँ टिकी…”

मैं भला भूल सकता था- “भौजी, आम के बाग में, गाँव में, तीन दिन…”


“जबरदस्त आम की बाग है ऊ, एकदम गझिन। एक बाग में कई बाग। दिन में अँधेरा रहता है। गाँव के बाहर का कोई हो तो रास्ता भुलाय जाय और चारों ओर गन्ने और अरहर क खेत…” शीला भाभी बोली।

लेकिन गुड्डी ने मुझे ये सब बातें पहले बोली थी जब ये तय हुआ था कि सावन में मैं उसके साथ उसके गाँव जाऊँगा और गाँव कि अमराई में झूले का मजा लूंगा।

शीला भाभी ने बात आगे बढ़ायी- “गाँव क बात है। एहलिये, बारात में आदमी और औरत का इंतजाम अलग अलग होगा। ओहि बाग में ही। लेकिन ओकरे अंदर कई बाग हैं, तो जो लंगड़ा आम वाली बाग है और बहुते गझिन है, ओही में औरतन, लड़कियन का इंतजाम होगा। ऊ जगह जहां मरद लोग का इंतजाम है, उन्हा से थोड़ा अलग है लेकिन है बाग में ही, समझे…” मुश्कुराकर आँख मारकर भाभी बोली।

मैं अभी भी नहीं समझा।

“तुम न एकदमे सोझवा हो, बुद्धू…” मेरे गाल पे चिकोटी काटकर बोली वो।

“अरे उन्हीं तो कबड्डी तोहरी महतारी बहनी के साथ। अरे आखीरकार, स्वागत सत्कार करे, घराती वाले रहेंगे न, त बस, मौका देखकर जिसको जो माल पसंद आया, लड़का लोग तोहरी बहनिन पे हाथ साफ करिहें और मर्द तोहरी चाची, मौसी, बुआ पे। तम्बू से निकलकर अमराई में, गन्ने और अरहर के खेत में…”

उन्हें शायद लगा की बुरा लगा मुझे, इसलिए एक चुम्मी गाल पे लेकर बोली- “अरे एहमें बुरा माने कै कौन बात है, तोहार महतारी का नाम लाई लिहे एह बदे, दुल्हा का महतारी क तो सबसे ज्यादा गाली पड़ती है। अरे आई सोचो न कि बिना केहुके उनके चोदे तू पैदा हुए होगे…”

और फिर अपने बड़े-बड़े चूतड़, शीला भाभी ने मेरे जंगबहादुर पे रगड़े। वो थोड़ा उचकीं और मैंने उनकी साड़ी ऊपर सरका दी और साथ ही बिना कहे पजामा खुलकर नीचे सरक गया। मेरा लण्ड अब सीधे शीला भाभी के गाण्ड के छेद पे सेंटर किये था।

बिना बुरा माने उन्होंने और जोर से अपना चूतड़ मेरे खुले लण्ड पे रगड़ा और मेरे निपल को पिंच करके बोली- “अरे गुड्डी क सास, न जाने कहाँ कहाँ, गदहा, घोड़ा सब, तबे तो आई सांड जैसा लड़का पैदा हुआ, ता उनकी तो सबसे ज्यादा…”

फिर भाभी ने मुझे चूमकर कहा- “अरे लाला, तू हमार इतना बड़ा उपकार कर रहे हो, त आई तो हमार जिम्मेदारी हाउ कि तोहरे महतारी बहन के लिए मोटे मोटे हथियार का इंतजाम करीं…”

भाभी का बात मैं एकदम बुरा नहीं मान रहा था क्योंकी थोड़ी देर पहले गुड्डी कि मम्मी, मेरा मतलब मम्मी भी तो इसी तरह बल्की इससे भी बढ़कर, वो तो सीधे मुझी से नंबर…”



और भौजाई खाना खिलाये और गारी ना हो, तो बीच-बीच में गारी -
 
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गारी


उन्हें शायद लगा की बुरा लगा मुझे, इसलिए एक चुम्मी गाल पे लेकर बोली-

“अरे एहमें बुरा माने कै कौन बात है, तोहार महतारी का नाम लाई लिहे एह बदे, दुल्हा का महतारी क तो सबसे ज्यादा गाली पड़ती है। अरे आई सोचो न कि बिना केहुके उनके चोदे तू पैदा हुए होगे…”

और फिर अपने बड़े-बड़े चूतड़, शीला भाभी ने मेरे जंगबहादुर पे रगड़े। वो थोड़ा उचकीं और मैंने उनकी साड़ी ऊपर सरका दी और साथ ही बिना कहे पजामा खुलकर नीचे सरक गया। मेरा लण्ड अब सीधे शीला भाभी के गाण्ड के छेद पे सेंटर किये था।


बिना बुरा माने उन्होंने और जोर से अपना चूतड़ मेरे खुले लण्ड पे रगड़ा और मेरे निपल को पिंच करके बोली-

“अरे गुड्डी क सास, न जाने कहाँ कहाँ, गदहा, घोड़ा सब, तबे तो आई सांड जैसा लड़का पैदा हुआ, ता उनकी तो सबसे ज्यादा…”

फिर भाभी ने मुझे चूमकर कहा- “अरे लाला, तू हमार इतना बड़ा उपकार कर रहे हो, त आई तो हमार जिम्मेदारी हाउ कि तोहरे महतारी बहन के लिए मोटे मोटे हथियार का इंतजाम करीं…”

भाभी का बात मैं एकदम बुरा नहीं मान रहा था क्योंकी थोड़ी देर पहले गुड्डी कि मम्मी, मेरा मतलब मम्मी भी तो इसी तरह बल्की इससे भी बढ़कर, वो तो सीधे मुझी से नंबर…”



और भौजाई खाना खिलाये और तो बीच-बीच में गालियां-



चमचम बटुआ रतन पहाड़ी केकरे केकरे घर जाए रे

अरे हमरे देवरे क बहिनी अरे हमरे देवर का माई बज्जर छिनार,

हमारे भैया से रोज चुदवाए रे।

अगवाड़े मरवाये, पिछवाड़े मरवाये गदहन से चुदवाये रे,

चीठी आई गई शहर बनारस से चिट्ठी आई गई।

अरे देवर बहनचोद चिठ्ठी पढ़ला कि न,

अरे देवर मादरचो चीठी बँचला कि ना

तोहरा बहना छिनार तोहरी माई छिनार,

तोहरी मौसी छिनार तोहरी बुआ छिनार

कइली तुर्क पठान, खोजें मर्द जवान

ओनके चोदे देवर हमार, चोदे उन्हीं के सार

चोदें गुड्डी के भतार, गाण्ड मारे बार-बार।



***** *****

अरे ऊँचे चबूतरा पे पे बैठे आनंद लाला, बैठे देवर राजा,

अरे हमरे देवरू बहनचोद, देवरू मादरचोद

करे अपनी बहनी का मोल, अरे करी अपनी रंजी का मोल

अरे जोबना का मांगे पांच रुपैया, अरे छिनरो का बुरिया बड़ी अनमोल।

देवर साला भंड़ुआ है, अपनी बहनी चुदाये आनी माई चुदाये

देवर साल्ला गंडुआ है,

तोहरी बहनी तोहरी माई जब्बर छिनार,

अरे एक जाए आगे दूसर पिछवाड़े, बचा
नहीं कोई नौउआ कहार।



और इसी बीच पूरा खाना भाभी ने खिला डाला। मैं नखड़ा करता तो बोलती, चल तो तेरे पिछवाड़े के छेद से ठेल देती हूँ जाएगा तो पेट में ही।

हम दोनों ने मिलकर बरतन किचेन में वापस वापस रखे। शीला भाभी के साथ मैं भी उनके कमरे में पहुँच गया। लेकिन मुझे कुछ याद आया और मैंने भाभी से बोला कि मैं बस अभी आता हूँ। मैं अपने कमरे में आ गया, और वही काम करने लगा जो रोज गुड्डी अपने कमरे में करती थी।

मुझे मालूम था कि घर में सिर्फ भाभी थी और वो ऊपर भैया के साथ रात भर ‘बिजी’ रहने वाली थी। लेकिन फिर भी मैंने, वही काम किया जो जो गुड्डी अपने कमरे में करती थी, जब वो रात बिताती थी। मैंने तकिये लगाकर, ऊपर से चद्दर इस तरह ओढ़ा दी की लगे कोई सो रहा है। यहाँ तक कि अपनी स्लीपर्स भी बिस्तर के नीचे रख दी और फिर शीला भाभी के कमरे की ओर चल दिया।

मुझे गुड्डी से किया वायदा याद आ रहा था।

गुड्डी ने कहा था मेरा नाम मत डुबोना, मतलब मुझे खूब हचक के हुमच के आज भाभी को चोदना था।

दूसरी बात ये थी कि मैंने गुड्डी से वायदा किया था कि मैं शीला भाभी को गाभिन करके रहूँगा। और गुड्डी ने उसके लिए मुझे जरूरी सूचना भी दे दी थी। शीला भाभी के पीरियड्स खतम हुए चौदह दिन हो गए थे ये बात गुड्डी ने ही बतायी थी और ये भी कि उनकी पीरियड कि साइकिल 28 दिन कि थी। और इतना तो मुझे मालूम ही था की किसी भी औरत के गाभिन होने के लिए ये समय सबसे उत्तम होता है। यानि पीरियड शुरू होने के चौदह दिन पहले चुदवाने पे गाभिन होने के चांसेज अधिकतम होते हैं।

रही बात मेरी। तो मैंने भी दोपहर से, होली खतम होने के बाद अपनी रबड़ी, मलायी भाभी के लिए बचाकर रखी थी। जिससे वो खूब गाढ़ी रहे और पहले धक्के में ही उनके गाभिन होने में कोई कसर बाकी ना रहे। और अगर पहली बार कसर रह भी गई तो मुझे कम से कम उनके ऊपर तीन बार चढ़ाई करनी थी, वो भी डिस्चार्ज में कम से कम एक घंटे के गैप के साथ। जिससे हर बार वो खूब गाढ़ा रहे।

और सबसे बड़ी बात ये थी की भाभी ही चाभी हैं, ये बात मुझे गुड्डी ने बार-बार बतायी थी और अब मैं खुद भी समझ गया था। गुड्डी के घर, गाँव में उनकी खूब चलती थी। यहाँ तक कि खाने के समय की उनकी बातों से लग गया था की गुड्डी कि मम्मी, मेरा मतलब मम्मी से भी वो बहुत क्लोज हैं और अगर मुझे ससुराल में साली, सलहज का मजा लेना था (मम्मी की बात मानूं, तो सास का भी नंबर लग सकता था) तो शीला भाभी का खुश रहना जरूरी था।

जब मैं शीला भाभी के कमरे में पहुँचा तो वो चादर के अंदर थी। बत्ती बुझी थी। लेकिन पिछवाड़े की खिड़की पूरी खुली थी। और पीछे से आम के पेड़ों के पीछे होली के पूनम के चाँद की चांदनी ने कमरे में पूरा उजाला कर रखा था। मैंने दरवाजा अंदर से बंद किया और चद्दर के अंदर घुस गया।

उम्मीद से भी दूना, रेडी फार एक्शन, शीला भाभी पूरी तरह अनावृत थी, कपड़ों के बंधन से मुक्त। और उनकी भूखी उंगलियों ने पल भर में मेरे कपड़े भी उतार फेंके। और कुछ देर में चादर भी हट गई। सिर्फ, चांदनी की चादर हम दोनों के शरीर पे थी, सहलाती।
 
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उन्हें शायद लगा की बुरा लगा मुझे, इसलिए एक चुम्मी गाल पे लेकर बोली-

“अरे एहमें बुरा माने कै कौन बात है, तोहार महतारी का नाम लाई लिहे एह बदे, दुल्हा का महतारी क तो सबसे ज्यादा गाली पड़ती है। अरे आई सोचो न कि बिना केहुके उनके चोदे तू पैदा हुए होगे…”

और फिर अपने बड़े-बड़े चूतड़, शीला भाभी ने मेरे जंगबहादुर पे रगड़े। वो थोड़ा उचकीं और मैंने उनकी साड़ी ऊपर सरका दी और साथ ही बिना कहे पजामा खुलकर नीचे सरक गया। मेरा लण्ड अब सीधे शीला भाभी के गाण्ड के छेद पे सेंटर किये था।


बिना बुरा माने उन्होंने और जोर से अपना चूतड़ मेरे खुले लण्ड पे रगड़ा और मेरे निपल को पिंच करके बोली-

“अरे गुड्डी क सास, न जाने कहाँ कहाँ, गदहा, घोड़ा सब, तबे तो आई सांड जैसा लड़का पैदा हुआ, ता उनकी तो सबसे ज्यादा…”

फिर भाभी ने मुझे चूमकर कहा- “अरे लाला, तू हमार इतना बड़ा उपकार कर रहे हो, त आई तो हमार जिम्मेदारी हाउ कि तोहरे महतारी बहन के लिए मोटे मोटे हथियार का इंतजाम करीं…”

भाभी का बात मैं एकदम बुरा नहीं मान रहा था क्योंकी थोड़ी देर पहले गुड्डी कि मम्मी, मेरा मतलब मम्मी भी तो इसी तरह बल्की इससे भी बढ़कर, वो तो सीधे मुझी से नंबर…”



और भौजाई खाना खिलाये और तो बीच-बीच में गालियां-




चमचम बटुआ रतन पहाड़ी केकरे केकरे घर जाए रे

अरे हमरे देवरे क बहिनी अरे हमरे देवर का माई बज्जर छिनार,

हमारे भैया से रोज चुदवाए रे।

अगवाड़े मरवाये, पिछवाड़े मरवाये गदहन से चुदवाये रे,

चीठी आई गई शहर बनारस से चिट्ठी आई गई।

अरे देवर बहनचोद चिठ्ठी पढ़ला कि न,


अरे देवर मादरचो चीठी बँचला कि ना

तोहरा बहना छिनार तोहरी माई छिनार,

तोहरी मौसी छिनार तोहरी बुआ छिनार

कइली तुर्क पठान, खोजें मर्द जवान

ओनके चोदे देवर हमार, चोदे उन्हीं के सार


चोदें गुड्डी के भतार, गाण्ड मारे बार-बार।



***** *****

अरे ऊँचे चबूतरा पे पे बैठे आनंद लाला, बैठे देवर राजा,

अरे हमरे देवरू बहनचोद, देवरू मादरचोद

करे अपनी बहनी का मोल, अरे करी अपनी रंजी का मोल

अरे जोबना का मांगे पांच रुपैया, अरे छिनरो का बुरिया बड़ी अनमोल।

देवर साला भंड़ुआ है, अपनी बहनी चुदाये आनी माई चुदाये


देवर साल्ला गंडुआ है,

तोहरी बहनी तोहरी माई जब्बर छिनार,

अरे एक जाए आगे दूसर पिछवाड़े, बचा
नहीं कोई नौउआ कहार।



और इसी बीच पूरा खाना भाभी ने खिला डाला। मैं नखड़ा करता तो बोलती, चल तो तेरे पिछवाड़े के छेद से ठेल देती हूँ जाएगा तो पेट में ही।

हम दोनों ने मिलकर बरतन किचेन में वापस वापस रखे। शीला भाभी के साथ मैं भी उनके कमरे में पहुँच गया। लेकिन मुझे कुछ याद आया और मैंने भाभी से बोला कि मैं बस अभी आता हूँ। मैं अपने कमरे में आ गया, और वही काम करने लगा जो रोज गुड्डी अपने कमरे में करती थी।

मुझे मालूम था कि घर में सिर्फ भाभी थी और वो ऊपर भैया के साथ रात भर ‘बिजी’ रहने वाली थी। लेकिन फिर भी मैंने, वही काम किया जो जो गुड्डी अपने कमरे में करती थी, जब वो रात बिताती थी। मैंने तकिये लगाकर, ऊपर से चद्दर इस तरह ओढ़ा दी की लगे कोई सो रहा है। यहाँ तक कि अपनी स्लीपर्स भी बिस्तर के नीचे रख दी और फिर शीला भाभी के कमरे की ओर चल दिया।

मुझे गुड्डी से किया वायदा याद आ रहा था।

गुड्डी ने कहा था मेरा नाम मत डुबोना, मतलब मुझे खूब हचक के हुमच के आज भाभी को चोदना था।

दूसरी बात ये थी कि मैंने गुड्डी से वायदा किया था कि मैं शीला भाभी को गाभिन करके रहूँगा। और गुड्डी ने उसके लिए मुझे जरूरी सूचना भी दे दी थी। शीला भाभी के पीरियड्स खतम हुए चौदह दिन हो गए थे ये बात गुड्डी ने ही बतायी थी और ये भी कि उनकी पीरियड कि साइकिल 28 दिन कि थी। और इतना तो मुझे मालूम ही था की किसी भी औरत के गाभिन होने के लिए ये समय सबसे उत्तम होता है। यानि पीरियड शुरू होने के चौदह दिन पहले चुदवाने पे गाभिन होने के चांसेज अधिकतम होते हैं।

रही बात मेरी। तो मैंने भी दोपहर से, होली खतम होने के बाद अपनी रबड़ी, मलायी भाभी के लिए बचाकर रखी थी। जिससे वो खूब गाढ़ी रहे और पहले धक्के में ही उनके गाभिन होने में कोई कसर बाकी ना रहे। और अगर पहली बार कसर रह भी गई तो मुझे कम से कम उनके ऊपर तीन बार चढ़ाई करनी थी, वो भी डिस्चार्ज में कम से कम एक घंटे के गैप के साथ। जिससे हर बार वो खूब गाढ़ा रहे।

और सबसे बड़ी बात ये थी की भाभी ही चाभी हैं, ये बात मुझे गुड्डी ने बार-बार बतायी थी और अब मैं खुद भी समझ गया था। गुड्डी के घर, गाँव में उनकी खूब चलती थी। यहाँ तक कि खाने के समय की उनकी बातों से लग गया था की गुड्डी कि मम्मी, मेरा मतलब मम्मी से भी वो बहुत क्लोज हैं और अगर मुझे ससुराल में साली, सलहज का मजा लेना था (मम्मी की बात मानूं, तो सास का भी नंबर लग सकता था) तो शीला भाभी का खुश रहना जरूरी था।

जब मैं शीला भाभी के कमरे में पहुँचा तो वो चादर के अंदर थी। बत्ती बुझी थी। लेकिन पिछवाड़े की खिड़की पूरी खुली थी। और पीछे से आम के पेड़ों के पीछे होली के पूनम के चाँद की चांदनी ने कमरे में पूरा उजाला कर रखा था। मैंने दरवाजा अंदर से बंद किया और चद्दर के अंदर घुस गया।

उम्मीद से भी दूना, रेडी फार एक्शन, शीला भाभी पूरी तरह अनावृत थी, कपड़ों के बंधन से मुक्त। और उनकी भूखी उंगलियों ने पल भर में मेरे कपड़े भी उतार फेंके। और कुछ देर में चादर भी हट गई। सिर्फ, चांदनी की चादर हम दोनों के शरीर पे थी, सहलाती।
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“अरे एहमें बुरा माने कै कौन बात है, तोहार महतारी का नाम लाई लिहे एह बदे, दुल्हा का महतारी क तो सबसे ज्यादा गाली पड़ती है। अरे आई सोचो न कि बिना केहुके उनके चोदे तू पैदा हुए होगे…”

और फिर अपने बड़े-बड़े चूतड़, शीला भाभी ने मेरे जंगबहादुर पे रगड़े। वो थोड़ा उचकीं और मैंने उनकी साड़ी ऊपर सरका दी और साथ ही बिना कहे पजामा खुलकर नीचे सरक गया। मेरा लण्ड अब सीधे शीला भाभी के गाण्ड के छेद पे सेंटर किये था।


बिना बुरा माने उन्होंने और जोर से अपना चूतड़ मेरे खुले लण्ड पे रगड़ा और मेरे निपल को पिंच करके बोली-

“अरे गुड्डी क सास, न जाने कहाँ कहाँ, गदहा, घोड़ा सब, तबे तो आई सांड जैसा लड़का पैदा हुआ, ता उनकी तो सबसे ज्यादा…”

फिर भाभी ने मुझे चूमकर कहा- “अरे लाला, तू हमार इतना बड़ा उपकार कर रहे हो, त आई तो हमार जिम्मेदारी हाउ कि तोहरे महतारी बहन के लिए मोटे मोटे हथियार का इंतजाम करीं…”

भाभी का बात मैं एकदम बुरा नहीं मान रहा था क्योंकी थोड़ी देर पहले गुड्डी कि मम्मी, मेरा मतलब मम्मी भी तो इसी तरह बल्की इससे भी बढ़कर, वो तो सीधे मुझी से नंबर…”



और भौजाई खाना खिलाये और तो बीच-बीच में गालियां-




चमचम बटुआ रतन पहाड़ी केकरे केकरे घर जाए रे

अरे हमरे देवरे क बहिनी अरे हमरे देवर का माई बज्जर छिनार,

हमारे भैया से रोज चुदवाए रे।

अगवाड़े मरवाये, पिछवाड़े मरवाये गदहन से चुदवाये रे,

चीठी आई गई शहर बनारस से चिट्ठी आई गई।

अरे देवर बहनचोद चिठ्ठी पढ़ला कि न,


अरे देवर मादरचो चीठी बँचला कि ना

तोहरा बहना छिनार तोहरी माई छिनार,

तोहरी मौसी छिनार तोहरी बुआ छिनार

कइली तुर्क पठान, खोजें मर्द जवान

ओनके चोदे देवर हमार, चोदे उन्हीं के सार


चोदें गुड्डी के भतार, गाण्ड मारे बार-बार।



***** *****

अरे ऊँचे चबूतरा पे पे बैठे आनंद लाला, बैठे देवर राजा,

अरे हमरे देवरू बहनचोद, देवरू मादरचोद

करे अपनी बहनी का मोल, अरे करी अपनी रंजी का मोल

अरे जोबना का मांगे पांच रुपैया, अरे छिनरो का बुरिया बड़ी अनमोल।

देवर साला भंड़ुआ है, अपनी बहनी चुदाये आनी माई चुदाये


देवर साल्ला गंडुआ है,

तोहरी बहनी तोहरी माई जब्बर छिनार,

अरे एक जाए आगे दूसर पिछवाड़े, बचा
नहीं कोई नौउआ कहार।



और इसी बीच पूरा खाना भाभी ने खिला डाला। मैं नखड़ा करता तो बोलती, चल तो तेरे पिछवाड़े के छेद से ठेल देती हूँ जाएगा तो पेट में ही।

हम दोनों ने मिलकर बरतन किचेन में वापस वापस रखे। शीला भाभी के साथ मैं भी उनके कमरे में पहुँच गया। लेकिन मुझे कुछ याद आया और मैंने भाभी से बोला कि मैं बस अभी आता हूँ। मैं अपने कमरे में आ गया, और वही काम करने लगा जो रोज गुड्डी अपने कमरे में करती थी।

मुझे मालूम था कि घर में सिर्फ भाभी थी और वो ऊपर भैया के साथ रात भर ‘बिजी’ रहने वाली थी। लेकिन फिर भी मैंने, वही काम किया जो जो गुड्डी अपने कमरे में करती थी, जब वो रात बिताती थी। मैंने तकिये लगाकर, ऊपर से चद्दर इस तरह ओढ़ा दी की लगे कोई सो रहा है। यहाँ तक कि अपनी स्लीपर्स भी बिस्तर के नीचे रख दी और फिर शीला भाभी के कमरे की ओर चल दिया।

मुझे गुड्डी से किया वायदा याद आ रहा था।

गुड्डी ने कहा था मेरा नाम मत डुबोना, मतलब मुझे खूब हचक के हुमच के आज भाभी को चोदना था।

दूसरी बात ये थी कि मैंने गुड्डी से वायदा किया था कि मैं शीला भाभी को गाभिन करके रहूँगा। और गुड्डी ने उसके लिए मुझे जरूरी सूचना भी दे दी थी। शीला भाभी के पीरियड्स खतम हुए चौदह दिन हो गए थे ये बात गुड्डी ने ही बतायी थी और ये भी कि उनकी पीरियड कि साइकिल 28 दिन कि थी। और इतना तो मुझे मालूम ही था की किसी भी औरत के गाभिन होने के लिए ये समय सबसे उत्तम होता है। यानि पीरियड शुरू होने के चौदह दिन पहले चुदवाने पे गाभिन होने के चांसेज अधिकतम होते हैं।

रही बात मेरी। तो मैंने भी दोपहर से, होली खतम होने के बाद अपनी रबड़ी, मलायी भाभी के लिए बचाकर रखी थी। जिससे वो खूब गाढ़ी रहे और पहले धक्के में ही उनके गाभिन होने में कोई कसर बाकी ना रहे। और अगर पहली बार कसर रह भी गई तो मुझे कम से कम उनके ऊपर तीन बार चढ़ाई करनी थी, वो भी डिस्चार्ज में कम से कम एक घंटे के गैप के साथ। जिससे हर बार वो खूब गाढ़ा रहे।

और सबसे बड़ी बात ये थी की भाभी ही चाभी हैं, ये बात मुझे गुड्डी ने बार-बार बतायी थी और अब मैं खुद भी समझ गया था। गुड्डी के घर, गाँव में उनकी खूब चलती थी। यहाँ तक कि खाने के समय की उनकी बातों से लग गया था की गुड्डी कि मम्मी, मेरा मतलब मम्मी से भी वो बहुत क्लोज हैं और अगर मुझे ससुराल में साली, सलहज का मजा लेना था (मम्मी की बात मानूं, तो सास का भी नंबर लग सकता था) तो शीला भाभी का खुश रहना जरूरी था।

जब मैं शीला भाभी के कमरे में पहुँचा तो वो चादर के अंदर थी। बत्ती बुझी थी। लेकिन पिछवाड़े की खिड़की पूरी खुली थी। और पीछे से आम के पेड़ों के पीछे होली के पूनम के चाँद की चांदनी ने कमरे में पूरा उजाला कर रखा था। मैंने दरवाजा अंदर से बंद किया और चद्दर के अंदर घुस गया।

उम्मीद से भी दूना, रेडी फार एक्शन, शीला भाभी पूरी तरह अनावृत थी, कपड़ों के बंधन से मुक्त। और उनकी भूखी उंगलियों ने पल भर में मेरे कपड़े भी उतार फेंके। और कुछ देर में चादर भी हट गई। सिर्फ, चांदनी की चादर हम दोनों के शरीर पे थी, सहलाती।
बहुत खूब। देवर भाभी के इस प्रसंग के लाजवाब व्याख्या के जश्न मनाने के लिए कुछ पंक्तियां

रात भर जगाती तुम्हारी उंगलियाँ
नींद भगाती तुम्हारी उंगलियाँ
सूखी हो या गीली जैसी भी हो देह
आग लगाती तुम्हारी उंगलियाँ
बड़ी चिपचिपी हैं तम्हारी उंगलियाँ
चाशनी पगी हैं तुम्हारी उंगलियाँ
कैसा ये नशा मुझे हो रहा है।
लबं से लगी हैं तुम्हारी उंगलियाँ...


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Sutradhar

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गारी


उन्हें शायद लगा की बुरा लगा मुझे, इसलिए एक चुम्मी गाल पे लेकर बोली-

“अरे एहमें बुरा माने कै कौन बात है, तोहार महतारी का नाम लाई लिहे एह बदे, दुल्हा का महतारी क तो सबसे ज्यादा गाली पड़ती है। अरे आई सोचो न कि बिना केहुके उनके चोदे तू पैदा हुए होगे…”

और फिर अपने बड़े-बड़े चूतड़, शीला भाभी ने मेरे जंगबहादुर पे रगड़े। वो थोड़ा उचकीं और मैंने उनकी साड़ी ऊपर सरका दी और साथ ही बिना कहे पजामा खुलकर नीचे सरक गया। मेरा लण्ड अब सीधे शीला भाभी के गाण्ड के छेद पे सेंटर किये था।


बिना बुरा माने उन्होंने और जोर से अपना चूतड़ मेरे खुले लण्ड पे रगड़ा और मेरे निपल को पिंच करके बोली-

“अरे गुड्डी क सास, न जाने कहाँ कहाँ, गदहा, घोड़ा सब, तबे तो आई सांड जैसा लड़का पैदा हुआ, ता उनकी तो सबसे ज्यादा…”

फिर भाभी ने मुझे चूमकर कहा- “अरे लाला, तू हमार इतना बड़ा उपकार कर रहे हो, त आई तो हमार जिम्मेदारी हाउ कि तोहरे महतारी बहन के लिए मोटे मोटे हथियार का इंतजाम करीं…”

भाभी का बात मैं एकदम बुरा नहीं मान रहा था क्योंकी थोड़ी देर पहले गुड्डी कि मम्मी, मेरा मतलब मम्मी भी तो इसी तरह बल्की इससे भी बढ़कर, वो तो सीधे मुझी से नंबर…”



और भौजाई खाना खिलाये और तो बीच-बीच में गालियां-



चमचम बटुआ रतन पहाड़ी केकरे केकरे घर जाए रे

अरे हमरे देवरे क बहिनी अरे हमरे देवर का माई बज्जर छिनार,

हमारे भैया से रोज चुदवाए रे।

अगवाड़े मरवाये, पिछवाड़े मरवाये गदहन से चुदवाये रे,

चीठी आई गई शहर बनारस से चिट्ठी आई गई।

अरे देवर बहनचोद चिठ्ठी पढ़ला कि न,

अरे देवर मादरचो चीठी बँचला कि ना

तोहरा बहना छिनार तोहरी माई छिनार,

तोहरी मौसी छिनार तोहरी बुआ छिनार

कइली तुर्क पठान, खोजें मर्द जवान

ओनके चोदे देवर हमार, चोदे उन्हीं के सार

चोदें गुड्डी के भतार, गाण्ड मारे बार-बार।



***** *****

अरे ऊँचे चबूतरा पे पे बैठे आनंद लाला, बैठे देवर राजा,

अरे हमरे देवरू बहनचोद, देवरू मादरचोद

करे अपनी बहनी का मोल, अरे करी अपनी रंजी का मोल

अरे जोबना का मांगे पांच रुपैया, अरे छिनरो का बुरिया बड़ी अनमोल।

देवर साला भंड़ुआ है, अपनी बहनी चुदाये आनी माई चुदाये

देवर साल्ला गंडुआ है,

तोहरी बहनी तोहरी माई जब्बर छिनार,

अरे एक जाए आगे दूसर पिछवाड़े, बचा
नहीं कोई नौउआ कहार।



और इसी बीच पूरा खाना भाभी ने खिला डाला। मैं नखड़ा करता तो बोलती, चल तो तेरे पिछवाड़े के छेद से ठेल देती हूँ जाएगा तो पेट में ही।

हम दोनों ने मिलकर बरतन किचेन में वापस वापस रखे। शीला भाभी के साथ मैं भी उनके कमरे में पहुँच गया। लेकिन मुझे कुछ याद आया और मैंने भाभी से बोला कि मैं बस अभी आता हूँ। मैं अपने कमरे में आ गया, और वही काम करने लगा जो रोज गुड्डी अपने कमरे में करती थी।

मुझे मालूम था कि घर में सिर्फ भाभी थी और वो ऊपर भैया के साथ रात भर ‘बिजी’ रहने वाली थी। लेकिन फिर भी मैंने, वही काम किया जो जो गुड्डी अपने कमरे में करती थी, जब वो रात बिताती थी। मैंने तकिये लगाकर, ऊपर से चद्दर इस तरह ओढ़ा दी की लगे कोई सो रहा है। यहाँ तक कि अपनी स्लीपर्स भी बिस्तर के नीचे रख दी और फिर शीला भाभी के कमरे की ओर चल दिया।

मुझे गुड्डी से किया वायदा याद आ रहा था।

गुड्डी ने कहा था मेरा नाम मत डुबोना, मतलब मुझे खूब हचक के हुमच के आज भाभी को चोदना था।

दूसरी बात ये थी कि मैंने गुड्डी से वायदा किया था कि मैं शीला भाभी को गाभिन करके रहूँगा। और गुड्डी ने उसके लिए मुझे जरूरी सूचना भी दे दी थी। शीला भाभी के पीरियड्स खतम हुए चौदह दिन हो गए थे ये बात गुड्डी ने ही बतायी थी और ये भी कि उनकी पीरियड कि साइकिल 28 दिन कि थी। और इतना तो मुझे मालूम ही था की किसी भी औरत के गाभिन होने के लिए ये समय सबसे उत्तम होता है। यानि पीरियड शुरू होने के चौदह दिन पहले चुदवाने पे गाभिन होने के चांसेज अधिकतम होते हैं।

रही बात मेरी। तो मैंने भी दोपहर से, होली खतम होने के बाद अपनी रबड़ी, मलायी भाभी के लिए बचाकर रखी थी। जिससे वो खूब गाढ़ी रहे और पहले धक्के में ही उनके गाभिन होने में कोई कसर बाकी ना रहे। और अगर पहली बार कसर रह भी गई तो मुझे कम से कम उनके ऊपर तीन बार चढ़ाई करनी थी, वो भी डिस्चार्ज में कम से कम एक घंटे के गैप के साथ। जिससे हर बार वो खूब गाढ़ा रहे।

और सबसे बड़ी बात ये थी की भाभी ही चाभी हैं, ये बात मुझे गुड्डी ने बार-बार बतायी थी और अब मैं खुद भी समझ गया था। गुड्डी के घर, गाँव में उनकी खूब चलती थी। यहाँ तक कि खाने के समय की उनकी बातों से लग गया था की गुड्डी कि मम्मी, मेरा मतलब मम्मी से भी वो बहुत क्लोज हैं और अगर मुझे ससुराल में साली, सलहज का मजा लेना था (मम्मी की बात मानूं, तो सास का भी नंबर लग सकता था) तो शीला भाभी का खुश रहना जरूरी था।

जब मैं शीला भाभी के कमरे में पहुँचा तो वो चादर के अंदर थी। बत्ती बुझी थी। लेकिन पिछवाड़े की खिड़की पूरी खुली थी। और पीछे से आम के पेड़ों के पीछे होली के पूनम के चाँद की चांदनी ने कमरे में पूरा उजाला कर रखा था। मैंने दरवाजा अंदर से बंद किया और चद्दर के अंदर घुस गया।

उम्मीद से भी दूना, रेडी फार एक्शन, शीला भाभी पूरी तरह अनावृत थी, कपड़ों के बंधन से मुक्त। और उनकी भूखी उंगलियों ने पल भर में मेरे कपड़े भी उतार फेंके। और कुछ देर में चादर भी हट गई। सिर्फ, चांदनी की चादर हम दोनों के शरीर पे थी, सहलाती।
Dear Komaal Ji
I am still waiting for the missing episode which is about to come.
Regards
 
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