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Erotica रंग -प्रसंग,कोमल के संग

komaalrani

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भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी

Phagun ke din chaar update posted

please read, like, enjoy and comment






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तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी
 

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शीला भाभी और गुड्डी -

सेटिंग कराई शीला भाभी ने



गुड्डी किचेन की ओर मुड़ गई और मैं डाइनिंग टेबल की ओर।

शीला भाभी वहाँ थाली वाली लगा रही थी।

उनके बड़े-बड़े मस्त नितम्ब साड़ी में एकदम चिपके, बीच की दरार साफ दिख रही थी। मैंने पीछे से उन्हें दबोच लिया मेरे दोनों हाथ आँचल के अंदर सीधे मस्त जोबन पर और जंगबहादुर। चूतड़ के बीच की दरार। शीला भाभी भी बजाय छुड़ाने की कोशिश किये, मुश्कुराकर अपने नितम्ब मेरे खड़े लिंग पर रगड़ दी। मैंने भी हचक के अपना खूंटा उनकी गाण्ड के बीच रगड़ दिया और कान में बोला-

“भौजी एक काम है तुमसे…”

“अरे लाला बोलो ना भौजाई से कौन शर्म, कौनो लौंडिया वाला मामला है का। तुम हमारे जो कर रहे हो। जान हाजिर है। हमारी इज्जत बच गई गाँव जुआर में सीना तान के चल सकती हूँ। बोलो ना…”

मैंने किचन में खाना लगा रही गुड्डी की ओर इशारा किया।

वो मुश्कुराकर बोली-


“अरे उ… जब चाहो लाला। तुमही ढीले हो इतना मस्त हथियार लेकर। कहो तो आजे… खाने के बाद तोहार भौजी तो ऊपर चल जहियें। बस। ससुरी नखड़ा ज्यादा करे ना। तो मैंने हाथ पैर पकड़ लेती हूँ ओकरा। एक बार जब तुम ठेल दोगे ना। पूरा। मजा मिल जाएगा इसका बस तुम्हारे आगे-पीछे घूमेगी…”



मैं भी कनफ्यूज था कैसे उनसे दिल की बात कहूँ।

लेकिन मैंने बोल दिया- “भौजी असल में। का बताऊं। भाभी कहती है ना की उन्हें देवरानी चाहिए। तो ठीक तो है ये। लेकिन अगर उ और उसके घर वाले मान जाय और भाभी भी। अब मैं भी सोचता हूँ की अगर…”

शीला भाभी मेरी बात समझ गईं, खुश भी हुई और चकित भी।

मुड़कर उन्होंने मुझे कसकर बांहों में भर लिया और बोली-

“लाला सच बोलो हमको बिस्वास नहीं हो रहा है। त तुम उसके साथ। सच बोलो। सोच लिए हो…”

“हाँ भौजी अगर आप जुगाड़ करवा दो। उसके बिना मेरा। मैं फिर और किसी के साथ नहीं। लेकिन उसके घर वाले अगर ना माने…”

शीला भाभी को अभी भी एक मिनट लगा विश्वास करने में। फिर तो वो अपने रूप में आ गई। अपने हाथ में ली हुई दाल निकालने की कलछुल को मुझे दिखाती बोली-

“लाला इ देख रहे हो। तनिको नखड़ा करिहे एनकर महतारी ना। त इहे उनकी गांड़ी में डार के पूरा। निकाल लेब और सीधे उनके मुँह में। हिम्मत है उनकी। इतना बढ़िया लड़का, बढ़िया नौकरी, घरबार और,... उहो सब एकदम चाक चौबंद। कहाँ मिली और रहा तोहरे भौजाई क बात। त उनकर त काम आसान हो गया ना। फिर ये भी तो एक तरह से उन्हीं के ओर की है…”



गुड्डी को देखते वो बोली।

और फिर बोली- “लाला एक बार तुम हाँ कह दिए हाउ ना। बस देखना…”

मुश्कुराती हुए उन्होंने मुझे छोड़ दिया। क्योंकि गुड्डी खाने के बाकी बर्तन लेकर पास आ गई थी। गुड्डी उन्हें और वो गुड्डी को देखकर मुश्कुरा रही थी लेकिन आज उन दोनों के मुश्कुराने का राज अलग-अलग था। गुड्डी मुश्कुरा रही थी की मैंने उसकी बात मानकर शीला भाभी को पटाने की दिशा में एक कदम और बढ़ाया। और शीला भाभी अब गुड्डी को एक नई नजर से देख रही थी।

और अब वो मेरी हमराज हो गई थी इसलिए मुश्कुरा रही थी। तब तक भाभी सीढ़ी से नीचे उतरी और पीछे-पीछे भैया। भैया वाशबेसिन की ओर चले गए और वो सीधे डाइनिंग टेबल की ओर। भाभी इस समय सुबह से भी ज्यादा। उनके होंठ हल्के सूजे से थे और बाइट्स के निशान एकदम साफ थे और सिर्फ होंठों पर ही नहीं गालों पर भी। ब्लाउज़ उनका काफी खुला था शायद ऊपर के दो हुक्स टूट गए थे। और वहां से उनके क्लीवेज के साथ नेल मार्क्स और बाइट्स नजर आ रहे थे।

लेकिन सबसे बड़ी बात ये थी की उनके हाव भाव से, चाल ढाल से, आँखों से, चेहरे से सेक्स का रस छलक रहा था। भाभी,... गुड्डी देवरानी।

वो मुझे देखकर मुश्कुरायीं। जैसे उन्हें मालूम हो की, मुझे मालूम है ऊपर वो क्या कर के आ रही हैं। और फिर गुड्डी के साथ खाने के टेबल का उन्होंने पूरा मुआयना किया। कल तो सिर्फ मूली के पराठे थे। लेकिन आज पूरी टेबल भरी पड़ी थी।

उन्होंने गुड्डी को बांहों में लेकर हल्के से दबा दिया और बोली-

“तू ना। तेरे हाथों में जादू है मैं साढ़े ग्यारह बजे तुझे किचेन में छोड़कर गई थी और दो घन्टे में। इत्ता सारा। वो भी अकेले…”

गुड्डी के चेहरे से भी खुशी छलक रही थी लेकिन वो बोली- “अकेले नहीं। शीला भाभी भी तो थी…”




“अरे मैं कहाँ। मैंने तो सिर्फ रोटी बेली थी। क्योंकि बेलन पकड़ना अभी नहीं आता इसको…” शीला भाभी हँसकर बोली।

ये द्विअर्थि डायलाग समझ के भाभी भी मुश्कुरायीं। और प्यार से गुड्डी के चिकने गोरे गाल सहलाते हए उसके उभारों को देखते बोली-


“अरे सीख लेगी वो भी। उमर तो अब हो ही गई है बेलन पकड़ने की। क्यों?” और गुड्डी को छेड़ते हुए उसके गाल पे कसकर पिंच कर दिया।

गुड्डी के गाल गुलाल हो गए।

लेकिन शीला भाभी कहाँ छोड़ने वाली थी। बोली- “अरे बेलन पकड़ने को बोल रही है। गाँव में होती तो अब तक शादी हो गई होती। पेट फुलाए घूमती…”

“सही कह रही हो आप। अब इसके लिए भी लड़का ढूँढ़ना चाहिए। वैसे मैंने तेरे मम्मी पापा को बोल दिया है की इसके लिए लड़का मैं खोजूंगी तो जो तेरे मन में हो बोल देना साफ-साफ। बता बता दे अभी से। वरना कहेगी नाक छोटी है। ये छोटा है…”

भाभी गुड्डी को जमकर छेड़ रही थी और वो शर्मा रही थी।



अब शीला भाभी का नंबर था गुड्डी को बांहों में दबोचने का और वो गुड्डी की ओर से बोली- “

अरे मेरी इत्ती प्यारी ननद है। गोरी चिकनी, छोटा क्यों मिलेगा। पहले मैं चेक करके देखूंगी ना। तब हाँ बोलूंगी। लंबा भी होगा और खूब मोटा भी। क्यों गुड्डी…”

अब वो क्या बोलती वो भी भाभी के सामने। सिर्फ धत्त बोलकर रह गई और एक बार फिर गोरे गालों पे गुलाब खिल उठे।

आज भाभी जिस हालत में थी। वो शीला भाभी से भी दो हाथ ज्यादा हाट मूड में थी। फुसफुसा के गुड्डी के कान में बोली (लेकिन मुझे सब सुनाई पड़ रहा था।)


“अरे शर्मा क्यों रही है। शीला भाभी ठीक तो कह रही हैं। कोई एक-दो दिन की तो बात है नहीं पूरी जिन्दगी की बात है। है कोई तेरे पसंद का तो बोल। किश्मत खुल जायेगी उसकी तेरी ऐसी लड़की पाकर। मुझसे मत छिपाना बोल देना। कान पकड़कर तुम्हारे सामने हाजिर करूँगी। चाहे जो हो…”

शीला भाभी को तो ओपनिंग मिल गई। वो इशारा करके भाभी को थोड़ा दूर ले गईं और उनके कान में कुछ फुसफुसा के बोली।




भाभी मुड़ मुड़कर कभी मेरी ओर देखती तो कभी गुड्डी की ओर,... और मुश्कुराती।




मैं डाइनिंग टेबल पर अच्छे बच्चों की तरह चुपचाप बैठा हुआ था। गुड्डी बिना बात टेबल पर कुछ काम करने की कोशिश कर रही थी, और कभी जब कनखियों से मुझे देखती। तो कभी मुश्कुरा देती, तो कभी लजा जाती। तब तक भैया आकर टेबल पर बैठ गए और भाभी भी उनके बायीं साइड बैठ गईं। गुड्डी भी मेरे बायीं ओर बैठ गई और शीला भाभी टेबल के साइड पे।

बस एक बात मैं श्योर था। आज मेरे ऊपर गालियों की बौछार नहीं होगी। वरना रोज खाने के साथ। मंजू शीला भाभी। और कल तो गुड्डी खुद।
 
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भाभी, मैं और

उनकी होने वाली देवरानी



तक भैया आकर टेबल पर बैठ गए और भाभी भी उनके बायीं साइड बैठ गईं। गुड्डी भी मेरे बायीं ओर बैठ गई और शीला भाभी टेबल के साइड पे।

बस एक बात मैं श्योर था। आज मेरे ऊपर गालियों की बौछार नहीं होगी। वरना रोज खाने के साथ। मंजू शीला भाभी। और कल तो गुड्डी खुद।

भैया मुझसे 12 साल बड़े थे और थोड़े रिजर्व संजीदा भी, इसलिए उनके सामने ज्यादा छेड़छाड़ नहीं होती थी। सब लोग सीरियस से ही रहते थे। लेकिन भाभी की बात और थी। वो भैया से 8-9 साल छोटी थी। मुझसे थोड़ी ही बड़ी। और वैसे मैं भी पहले थोड़ा रिजर्व सा ही था। इन्ट्रोवर्ट अपने कमरे में बंद। पढाई में लगा। लेकिन भाभी से मेरी केमेस्ट्री पहले दिन से ही जम गई। फिर तो दुपहर में कैरम और उन्होंने मुझे ताश भी सिखा दिया। और मैं उनसे कुछ भी छुपाता नहीं था।

यहाँ तक की मेरे मस्तराम साहित्य की फंडिंग भी वही करती थी दूसरी ओर उनकी ब्रा पैंटी, पैड ऐसे निजी चीजों की खरीददारी से लेकर उनके बैंक के लाकर तक का काम मेरे भरोसे था। जब मेरे एक्सानम चलते। वो भी रात भर जागती और हर तीन घंटे में कभी दूध कभी चाय। यूपीएस॰सी॰ के एक्जाम में, सर्विस की प्रिफरेंस भी मैंने उन्हीं से पूछ के भरी। और जब मेरा सेलेकशन हुआ। पहले अटेम्प्ट में तो सबसे पहले मैंने उन्हें ही बताया। वो इतनी खुश हुई उनसे बोला भी नहीं जा रहा था।

फिर एक मिनट बाद वो अपने स्टाइल में लौटी और बोली- “अब झट से मेरे लिए एक देवरानी लाकर दो…”

“ना भाभी…” मैंने सिर हिला दिया।

“क्यों नौकरी तो मिल गई अब छोकरी का नंबर है…” वो हँसते हुए बोली।

मैंने भी हँसकर जवाब दिया- “अरे भाभी वही तो। नौकरी मैं ले आया। छोकरी आप ले आइये। बस मेरी…”

“मालूम है तेरी दो शर्ते, वो मैं ध्यान रखूंगी। लेकिन फिर मैं जो पसदं करूँगी। नखड़ा मत बनाना…” वो हँसते हुए बोली।

“हिम्मत है मेरी। आप का एकलौता देवर हूँ…” और मैंने फोन रख दिया।

भाभी को मैंने दो बातें बतायी थी, बहुत पहले। कुछ मजाक में कुछ सच्ची भाभी ने मुझसे बहुत पहले पूछा था-


“हे तुम्हें कैसी लड़की पसन्द है। वरना मैंने कुछ और ढूँढ़ दिया तो।

बहुत ना-नुकुर के बाद मैंने उन्हें बताया- “आप ये समझ लीजिये की जब वो दीवाल की ओर मुँह कर दीवाल से सटकर खड़ी हो तो जो पहली चीज दीवाल से लड़े वो उसकी नाक ना हो…”

“तो तुम्हारा मतलब है तुम्हें बहुत छोटी नाक वाली पसंद है, नकपिच्ची। ऐसा क्यों? खैर ख्याल अपना अपना पसंद अपनी अपनी…”

भाभी जिस तरह से हँस रही थी। ये साफ था उन्हें सब समझ में आ रहा था। लेकिन मुझे चिढ़ाने में उन्हें बहुत मजा आता था। मैं बहुत जोर से चीखा-

“भाभी आप भी ना। आप समझ के भी…”

“साफ-साफ बताओ ना। नाक नहीं तो दीवाल से क्या लड़ेगा। होंठ, ठुड्डी तो हो नहीं सकता…” उन्होंने फिर छेड़ा।

मैंने मुश्कुरा कर कहा जब आप दीवाल से सटकर खड़ी होती हैं। तो आपका दीवाल से क्या पहले टच करता है। अब भाभी के चीखने की बारी थी।

“तुउम्म…” लेकिन फिर बात पलट कर बोली (भाभी से जीत पाना बहुत मुश्किल होता है)-

“अच्छा तभी तुम अपनी उस ममेरी बहन कम माल, रंजी को ताकते रहते हो। बहुत गदरा रहे हैं उभार उसके…”



भाभी की बात गलत नहीं थी। रंजी उस समय 9थ में थी लेकिन देखने में इंटर कोर्स वाली लगती थी। फिगर ऐसी थी उसकी।

लेकिन मेरा रोल माडल भाभी खुद थी। और ये बात वो अच्छी तरह-तरह जानती थी। तन्वंगी बदन, क्षीण कटि और उसके ऊपर दीर्घ खूब भरे-भरे, उनके लो-कट ब्लाउज़ से हरदम छलकते। शादी के एक साल बाद भी उनकी कमर 28 से ज्यादा नहीं थी और उभार 34सी में मुश्किल से समाते थे। भाभी ने मेरी बात मान ली और बोली-

“चलो तेरी बात सही है आज कल की ढूँढ़ते रह जाओगे टाइप लड़कियों में क्या मजा। मान गई वो शर्त मैं अगली बताओ…”

“शादी जाड़े में होनी चाहिए…” मैंने बोला।

“अच्छा। दुष्ट, बड़ा मजा आए रजैइया में। इसलिए…” भाभी हँसते आँख नचाते बोली।

“नहीं…” मैंने भाभी को समझाया- “जाड़े की रातें लम्बी होती है ना इसलिए…”

भाभी ने एक हाथ मारा मुझे और बोली- “देवरजी बहुत प्लानिंग किये हो। लेकिन अरे सबसे आसान मुझे पटा के रखो ना। जाड़ा गर्मी बरसात, रात कोई जरूरी है। मैं दिन में जुगाड़ लगवा दूंगी तुम्हारा।


मैं वर्तमान में लौट आया। गुड्डी भैया को खाना निकालने में लगी थी। मेरी भाभी की देवरानी। गुड्डी भैया को खाना निकालने में लगी थी।

“आज कल दो-तीन दिन से खाना बहुत अच्छा मिल रहा है, क्या हो गया…” भैया ने भाभी की ओर मुड़कर पूछा।
 
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खाना, भाभी और उनकी होने वाली देवरानी



गुड्डी


मैं वर्तमान में लौट आया। गुड्डी भैया को खाना निकालने में लगी थी। मेरी भाभी की देवरानी। गुड्डी भैया को खाना निकालने में लगी थी।

“आज कल दो-तीन दिन से खाना बहुत अच्छा मिल रहा है, क्या हो गया…” भैया ने भाभी की ओर मुड़कर पूछा।

“वो जो तुम्हारे सामने खड़ी है, वही जिम्मेदार है उसके लिए। अब किचेन मैंने उसके हवाले कर दिया है। और सिर्फ अभी नहीं जब तक वो वो यहाँ रहेगी। किचेन की मालेकिन वो…” भाभी ने गुड्डी की ओर इशारा करके बोला।

भैया ने एक कौर सब्जी खायी और बोल पड़े वाह। फिर कहा-

“कल मूली के पराठे तुम्हीं ने बनाए थे ना। मैंने कहाँ कहाँ नहीं खाए है। दिल्ली की पराठे वाली गली में भी इत्ते अच्छे नहीं बनते। तुम्हें तो इनाम देना चाहिए…”

भाभी चढ़ गई और गुड्डी से बोली- “मांग ले मुँह खोलकर। ये दोनों भाई बहुत कंजूस है…”

और फिर भैया से बोली-

“अरे इनाम देना है तो कुछ ऐसा दो जो जिंदगी भर इसके साथ रहे, इसके काम आये…”

भाभी उकसा भैया को रही थी लेकिन कनखियों से देख मेरी ओर रही थी, बीच-बीच में। मैं सामने रखी थाली में देख रहा था और गड़ा जा रहा था। मुझे मालूम था की भाभी “किस इनाम” की बात कर रही हैं, भले ही भैया के समझ में नहीं आ रहा था।

इसका मतलब शीला भाभी वाला तीर सीधे सीधे निशाने पर लगा। भैया ने अचानक ट्रैक बदला। उनके दिमाग से वो मूली के पराठे उतर नहीं रहे थे। मेरी ओर देखकर उन्होंने भाभी से पूछा- “और इसके लिए क्या बना था। ये तो छूता नहीं…”

भाभी ने सवाल के जवाब में गुड्डी से सवाल पूछा- “क्यों इनके छोटे भैया ने कल कितने मूली के पराठे खाए थे…”

गुड्डी उस समय भाभी को खाना परस रही थी। मेरी और देखकर हँसी रोकते वो बोली, चार मूली के पराठे। और वो भी खतम हो गए थे इसलिए और नहीं खाए…”

भैया के हाथ से कौर गिरते-गिरते बचा। गुड्डी शीला भाभी के पास खाना निकाल रही और भाभी ने फिर भैया को चढ़ाया- “अब मान गए ना इसको बड़ा इनाम बनता है ना…”

लेकिन भैया अब गुड्डी के बनाए खाने में खो गए थे, खाते-खाते बोले- “सच कहती हो। अब तो ये जो मांगे देना पड़ेगा…”शीला भाभी ने गुड्डी से फुसफुसाया, और मेरी ओर इशारा करके बोला- “अच्छा मौका है मांग ले ना। इस लड़के को…”



लेकिन वह प्रकरण भाभी ने बंद किया, भैया से कहकर-

“याद रखना, मुकर मत जाना…”

गुड्डी अब सबको (सिवाय मेरे) खाना निकालने के बाद अपनी थाली में खाना निकाल रही थी की भाभी ने छेड़ा-

“अरे गुड्डी, मेरे देवर को भूखा ही रखेगी क्या?”

अब द्विअर्थी डायलाग बोलने में गुड्डी को भी महारत हासिल हो गई थी, खाना निकालते हुए वो आँख नचाकर, मुश्कुराकर बोली-

“अरे ये कोई बच्चे थोड़े ही है, ले ले ना अपने से मैंने तो कभी मना नहीं किया, या कहिये की मैं खिला दूँ अपने हाथ से…”

और फिर एक बार अपना अधखाया कौर उसने मेरे मुँह में डाल दिया। और मैंने चुपचाप खा लिया।

कल की बात और थी। ये गुड्डी भी ना। आज तो भैया भी थे, लेकिन गनीमत थी की वो खाना खाने में इतने मगन थे। की उन्होंने कुछ देखा नहीं


लेकिन उन्हें सुनने से कौन रोक सकता था।

गुड्डी ने मेरे कान के पास मुँह लगाकर बोला- “कैसा लगा करेला। अच्छा था ना। काटा तो नहीं जोर से…” और भैया के हाथ से फिर कौर गिरते-गिरते बचा।

करेला और मैं कोई सोच नहीं सकता था।


भाभी बस गुड्डी को देखकर प्रशंसा भरी दृष्टि से मुश्कुरा रही थी। भैया ने एक बार मेरी थाली में निगाह डाली, मेरी लिए कुछ भी अलग नहीं और सब कुछ मेरी निगेटिव लिस्ट का, और अब भाभी की ओर देखकर मुश्कुरा दिए। भाभी कभी मेरी ओर देखती कभी गुड्डी की ओर। फिर कुछ भैया के कान में वो बोली। और खाने में मगन उन्होंने बस सिर हिला दिया।

भाभी ने एक बार मुझे देखा फिर भैया की ओर मुड़कर बोला- “मैं सोचती हूँ की अब मुझे अपनी देवरानी लानी ही चाहिए। क्यों?”

भैया खाते हुए बिना रुके बोले- “तुम जानो, तुम्हारा देवर जाने। बस मुझे बता देना लड़की कौन है। मैं उसके घरवालों से बात कर लूंगा। और बरात रिसेप्शन का इंतजाम कर दूंगा। लेकिन तुम्हारी देवरानी का फैसला, तुम जानो तुम्हारा देवर जाने…”


अब मैं सहम गया। भैया ने हाथ खड़े कर दिए थे। अब सिर्फ भाभी का सहारा था और हमारे यहाँ ज्यादातर फैसले खाने की टेबल पर ही होते थे।



मैं सब देवी देवता मना रहा था। लेकिन भाभी ने मेरी ओर देखकर अनाउन्स किया-


“देवरानी मेरी आएगी। इससे इसका क्या मतलब। और जून में कर देंगे…”


“जैसी तुम्हारी शादी हुई थी गरमी में। तीन दिन की शादी। भात खिचड़ी। कितना मजा आया था खूब गारी हुई थी…” शीला भाभी ने समर्थन किया


एकदम उसी तरह से- “अरे उसी आम के बाग में गाँव में बारात टिकेगी, जहां आपकी बारात टिकी थी…”

भाभी ने इरादा साफ किया।


मेरी सांस में थोड़ी सांस आई। गुड्डी और भाभी का गाँव तो एक ही है। और उसी बाग का मतलब फैसला मैं जो मना रहा था। वही। लेकिन मुझे प्रोटेस्ट करना था, सो किया-

“भाभी मैंने बोला था ना। गर्मी में छुट्टी कहां मिलेगी मुझे फिर…”

और जोर से डांट पड़ी भाभी की- “तुमसे कौन पूछ रहा है? अरे एक हफ्ते की छुट्टी ले लेना या बिना छुट्टी के आ जाना। चार दिन घर में रस्म होगी। और तीन दिन की बरात। दोपहर तक दुल्हन बिदा करा के ले आना, कंगन छुड़वाई, पूजा सब शाम तक करा के तुहारी छूट्टी। उसी दिन शाम को। शाम को ट्रेन है ना तुम्हारी बस। अगले दिन पहुँच जाओगे नौकरी पे। मेरी देवरानी मेरे हवाले कर देना, फिर तुम्हारा कोई काम नहीं। चाहे साल भर बाद आओ…”

गुड्डी मुझे देखकर मुश्कुरा रही थी और मैं अपने बड़बोलेपन पे अपने को कोस रहा था। यानी बिना सुहागरात मनाये भाभी मुझे नौकरी पे भेजने को तैयार थी। मेरी हालत देखकर भाभी ने मुझे कनखियों से देखा और जोर से मुश्कुराई की अब बोलो बच्चू।

फिर भैया से बोली, तो अब पक्का, शादी गर्मी में होगी और बारात गाँव में…”

अबकी भैया एक पल के लिए रुके और बोले- “हाँ, समझ गया मैं यार तय हो गया। बारात उसी आम के बाग में रुकेगी जहां मेरी बरात रुकी थी। तुमने बोल दिया बस हो गया, और अचानक उन्हें कुछ याद और वो बोले। लेकिन इसकी बरात। आम के बाग में। वो भी गर्मी में…”


उनकी निगाहे बस मुझ पर टिकी थी। आम मेरी निगेटिव लिस्ट में नहीं था वो मेरी चिढ़ में था। बचपन में तो कोई मेरे सामने नाम भी नहीं ले सकता था। और अभी भी मेरा मन बड़ा ऐसा वैसा हो जाता था। और खाने की तो बात ही नहीं। भाभी और गुड्डी ने बात सम्हाली, हमेशा की तरह।

और भाभी ने गुड्डी से इशारा किया- “वो जो आम का अचार तुम्हारी मम्मी ने भेजा था, वो दिया नहीं.
 
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आम का अचार



अबकी भैया एक पल के लिए रुके और बोले- “हाँ, समझ गया मैं यार तय हो गया। बारात उसी आम के बाग में रुकेगी जहां मेरी बरात रुकी थी। तुमने बोल दिया बस हो गया, और अचानक उन्हें कुछ याद और वो बोले। लेकिन इसकी बरात। आम के बाग में। वो भी गर्मी में…” उनकी निगाहे बस मुझ पर टिकी थी।

आम मेरी निगेटिव लिस्ट में नहीं था वो मेरी चिढ़ में था। बचपन में तो कोई मेरे सामने नाम भी नहीं ले सकता था। और अभी भी मेरा मन बड़ा ऐसा वैसा हो जाता था। और खाने की तो बात ही नहीं। भाभी और गुड्डी ने बात सम्हाली, हमेशा की तरह।

और भाभी ने गुड्डी से इशारा किया- “वो जो आम का अचार तुम्हारी मम्मी ने भेजा था, वो दिया नहीं…”

“उफफ्फ, मम्मी ने बोला था सबको खिलाना, इत्ते प्यार से उन्होंने भेजा था और मैं भी ना। लीजिये ना…” और सबसे पहले भैया को। फिर बाकी लोगों को (मेरे सिवाय) और सबसे अंत में अपनी थाली में रखा। भैया ने थोड़ा सा चखा और फिर उनके बिना बोले, उनका चेहरा उनकी आँखें सब बातें कह रही थी। उन्होंने गुड्डी से पूछा-

“तुम्हारी मम्मी ने बनाया है ना। बहुत अच्छा बना है, थोड़ा और दो…”

गुड्डी ने थोड़ा और दिया और बताया भी- “जी असल में मम्मी ने बताया था। लेकिन बनाया मैंने ही था…” अब तो भैया और,

गुड्डी ने अचार जरा सा हाथ में लेकर मेरी ओर ऐसे दिखाया मानो कह रही हो। लोगे, और मैं बुरी तरह घबड़ा गया।

और घबड़ाहट में मेरी हिचकियों का दौर चालू हो गया। मेरे बगल में गुड्डी ही थी और पहले तो उसने मेरी पीठ सहलाई फिर गले पे थोड़ा सा मारा, फिर बोली। बस एक मिनट बस जरा सा सुखी रोटी का टुकड़ा खा लो। अभी ठीक हो जाएगा।

मेरी तो मारे हिचकी के आँखें बंद थी उस दुष्ट ने रोटी का एक बड़ा सा टुकड़ा बना लिया। भाभी ध्यान से देख रही थी। फिर उसमें उस आम के अचार का टुकड़ा लगा दिया बड़े प्यार से, फिर मेरे मुँह में डालते हुए बोली-

“खा लो बस हल्के से कुचलना और गटक जाओ। एक मिनट में हिचकी गायब…”

वास्तव में हिचकी गायब हो गई। लेकिन स्वाद थोड़ा अलग सा था। जब मैंने सामने भाभी को मुश्कुराते देखा तो समझ गया की कुछ तो गड़बड़ है। भैया उठ रहे थे ये बोलके- की उनका कोई फोन ऊपर लैंड लाइन पे दो बजे आने वाला है। और भाभी को उन्होंने हिदायत दे दी की वो भी खाना खाकर ऊपर आ जायं, कुछ जरूरी बात करनी है…”

और उनके हटते ही गुड्डी और शेर हो गई। और फिर तो थोड़ा सा अचार फिर उसने रोटी में लगाकर बढ़ाया। सामने भाभी मुश्कुरा रही थी।

“मैं नहीं खाता ना… तुम तो जानती हो…” मैंने गुड्डी से कहा।

पर वह दुष्ट बोली- “हाँ मैं भी यही जानती थी लेकिन अभी तो खाया उस रोटी के साथ, क्यों?” और वो भाभी की ओर देख रही थी।

उन्होंने भी हुंकारी भरी। हाँ एकदम मेरे सामने।

“तो फिर अब क्यों नखड़ा कर रहे हो लो ना, मैंने बनाया है। "

और सीधे मेरे मुँह में…”

टेबल पर से उठते हुए, भाभी कुछ बोलती, शीला भाभी और गुड्डी एक साथ बोल पड़ी। आप जाइये हम लोग टेबल समेट देंगे। और किचेन भी। वरना ऊपर से दुबारा बुलावा आ जाएगा।

और उसी समय बास्तव में ऊपर से आवाज आ गई और भाभी लगभग दौड़ते हुए ऊपर।

मैं अपने कमरे में और गुड्डी और शीला भाभी किचेन में।

मैं अपने कमरे में पलंग पर लेटा घड़ी देख रहा रहा था। एक मिनट, दो मिनट, 5 मिनट। पूरे 8 मिनट बाद 2:20 पर गुड्डी आई और कमरे में घुसते ही दरवाजा बंद कर दिया
 
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मेरी भाभी की देवरानी, मान मनुहार



और वो आकर मेरे पास बैठ गई। मेरे चेहरे को सहलाते बोली। गुस्सा हो क्या? बस यही परेशानी है मेरे चेहरे और आँखों के साथ। हैं मेरे। और तुरंत मेरे मन की चुगली गुड्डी से कर देते हैं।

मैं कुछ नहीं बोला।

अब उसने अपनी देह मेरी देह पे टिका दी और अपना गाल मेरे गाल से सटाकर बोली- “जरा सा मजाक किया तो। बुरा मान गए। अरे यार, मान भी जाओ ना। अच्छा कैसे मानोगे बोलो ना?”

मैं फिर कुछ नहीं बोला। उसने मेरा हाथ खींचकर खुद अपने उभारों पर रख लिया और मेरी नाक पकड़कर बोली- “मान जाइये मान जाइये अरे बात मेरे दिल की…”

मैंने फिर भी कोई रिएक्शन नहीं दिया। और अब वो अलफ हो गई। मुझसे दूर हटकर बैठ गई और बोली-


“अगर आप जरा से मेरे छेड़ने से इस तरह से नाराज हो जाते हैं, तो कैसे चलेगा। मुझे तो आदत है। इत्ती देर से मैं मना रही हूँ। और। मैंने क्या कर दिया। जरा सा। वो भी। अगर मैं आपको नहीं पसंद हूँ। तो बस एक रिक्वेस्ट है। अभी चार बजे भाभी आएंगी ना। तो आप साफ-साफ उनसे कह दीजिये की आपको मैं नहीं पसंद हूँ। मैं बहुत नान सीरियस हूँ। या जो भी। प्लीज क्योंकि अगर एक बार उन्होंने मेरे मम्मी पापा से बात कर ली और उन्होंने हाँ कर दी। फिर आप ना बोलेंगे तो उन्हें बहुत शाक लगेगा। आपको तो कोई मिल जायेगी। और मेरी क्या है। मैं इन यादों के सहारे काम चला लूँगी…”

और वो उठने लग गई।

अब तो मेरी लग गई। काटो तो खून नहीं। मैं भी कित्ता बेवकूफ हूँ। इत्ती प्यारी सी अच्छी सी लड़की। मेरे लिए कुछ भी करने को तैयार। खुद आकर मुझे मना रही थी और मैं भी। इत्ता नकचढ़ा। जरा सी बात पे…”


मैंने आगे बढ़कर उसकी कलाई पकड़कर खिंची अपनी ओर,पर पहले तो एक उंगली से भी मैं बुलाऊं। तो वो कच्चे धागे से बंधी चली आती थी पर अब।



वो पूरी ताकत से कलाई छुड़ा रही थी। और बोली-


“प्लीज मुझे छोड़ दीजिये। अच्छा नहीं लगता। मैं यहाँ बैठूं और आप पता नहीं किस बात का बुरा मान जाएं…”

मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। बात तो ये सही कह रही थी। और आज जब लगा रहा था शायद भाभी भी मान जायं। तो मेरे एक पल की बेवकूफी ने पूरी जिंदगी भर के लिए।

मैंने उसकी कलाई छोड़ दी और कान पकड़ लिए, अपने। कलाई छूटने पर भी वो नहीं गई। बस खड़े खड़े मुझे देखती रही और मैं कान पकड़े बस उसकी ओर देखता रहा बिना कुछ बोले, मेरे चेहरे और आँखों ने फिर मेरी चुगली की।

लेकिन अबकी मेरे फेवर में। और गुड्डी मेरे पास फिर बैठ गई। लेकिन थोड़ी दूर। अब मैंने बोलना शुरू किया। कुछ भी बिना समझे। कान पकड़े।

“मैं बुद्धू हूँ, बेवकूफ हूँ। मेरी बात का बुरा मत माना करो प्लीज। अब आगे से मैं कभी गुस्सा नहीं होऊँगा। तुम बहुत अच्छी हो आई लव यू सो मच। मैं नहीं रह सकता तुम्हारे बिना प्लीज…” बिना रुके मैं बोले जा रहा था धारा प्रवाह।

वो अब थोड़ा सा और पास आ गई बस थोड़ा सा। उसकी देह मेरी देह से अभी भी टच नहीं कर रही थी।

पहले तो बिना बोले ठसके से सीधे मेरी गोद में ही बैठती थी। और आज। गलती मेरी ही थी। क्या जरूरत थी इतनी नक्शेबाजी की। इत्ता भाव खाने की।

लेकिन उसका चेहरा मेरे चेहरे के पास था। गुड्डी बोली- “कान छोड़ो। कान छोड़ो तुरंत। और मैंने तुरंत कान छोड़ दिया

मेरी बाड़ी में कोई मेकेनिज्म थी जिसका रिमोट गुड्डी के पास था। बिना सोचे समझे मेरी बाड़ी रिएक्ट करती थी।

“कान क्यों पकड़ा था?” गुड्डी ने पूछा।

मैं क्या बोलता। बस मैं मना रहा था प्लीज किसी तरह ये मान जाय। किसी तरह मान जाय आगे से ये गलती कभी नहीं करूंगा।

उसने फिर पूछा- “क्या बोल रहे थे?”

“तुम बहुत अच्छी हो आई लव यू सो मच…” मैंने बोला।

“नहीं उसके पहले…” वो बोली।

“मैं बहुत बेवकूफ हूँ बुद्धू हूँ…”

अब वो थोड़ा सा मुश्कुरायी और अपनी देह मेरी देह पे टिका के मेरी नाक पकड़कर बोला-

“वो तो तुम हो। बेवकूफ भी बुद्धू भी, और उसके बाद क्या बोल रहे थे?” हल्के से हँसकर वो बोली।

“तुम बहुत अच्छी हो। आई लव यू सो मच। आई लव यू…” मैंने हल्के से बोला

“इतना वक्त लगा तुम्हें यह कहने में…” वो फुसफुसा के बोली और आज मैंने अहसास किया की आज पहली बार मैंने उसे आई लव यू बोला था।

और अब सारे बाँध टूट गए। मैंने उसे कसकर बाहों में भींच लिया और उसके गालों को होठों को आँखों को चूमते हुए बोला। आई लव यू। आई लव यू।

और अब उसने अलग होने की कोई कोशिश नहीं की। थोड़ी देर बाद उसने अपना परी चेहरा थोड़ा सा उठाया, मेरी नाक पकड़कर पिंच किया और बोली, तुम्हारी सजा ये है की,...

मैं सजा सुनाये जाने का इन्तजार कर रहा था

और उसने सजा सुना दी। मेरी नाक पकड़े-पकड़े।

“तुम्हारी सजा ये है की तुम रोज सुबह से शाम तक मुझसे एक हजार बार बोलो की। तुम बहुत अच्छी हो। और सौ बार बोलोगे की आई लव यू…”

ये सजा थी की इनाम। मैंने उसे फिर अपनी बाहों में भींच लिया और उसके चेहरे पर चुम्बनों की बारिश। बार-बार मैं बोल रहा था-


“तुम बहुत अच्छी हो बहुत अच्छी हो। आई लव यू…”

8-10 मिनट के बाद उसने अपने को अलग किया और बोली-

“तुम भी ना। मैंने सुबह से शाम तक 1000 बार बोलने को कहा था। अभी सब थोड़ी। मैं गिन रही थी 428 बार तुम बोल चुके हो। तुम बहुत अच्छी हो और 69 बार आई लव यू। बाकी बाद में। सजा तो हो गई। लेकिन अब मेरा एक हुक्म सुनो ध्यान से…”

मैं भी उठकर बैठ गया था। वो शोख बोली-


“तुम कभी, कभी भी गुस्सा नहीं करोगे। गुस्सा होने का हक सिर्फ मेरा है। और तुम्हारा काम मनाना है समझे…”

मैंने एक बार फिर से कान पकड़ लिया और बोला- “एकदम नहीं। मेरी गलती थी। अब कभी भी गुस्सा नहीं होऊँगा…”

उसने अपने नाजुक हाथों से मेरे कान को छुड़ा दिया और शरारत से आँखें नचाते हुए मुश्कुराकर बोली-

“ये तुम बार-बार कान क्यों पकड़ लेते हो। मैं हूँ ना तुम्हारा कान पकड़ने के लिए…”

और उसने कान का पान बनाकर कसकर पकड़ लिया और फिर पकड़े-पकड़े बोली-

“तुम्हारे सामने एक इत्ती अच्छी सी प्यारी सी लड़की बैठी है, बहुत चीजें है उसकी पकड़ने के लिए। देख देखकर ललचाते रहते हो, और सामने है तो। बुद्धू लोगों के सींग पूँछ नहीं होती…”

अब इससे ज्यादा क्या दावतनामा मिलता। मैंने उसे तुरन्त भींच लिया और मेरे हाथ सीधे उसके उभारों पे। मेरी बेवकूफी की ये सबसे बड़ी मिसाल होती की अगर ये रसीले किशोर मस्त उभार मेरे हाथ से हमेशा के लिये चले जाते। और अबकी मैंने उसके कुर्ते के बटन खोले और हाथ सीधे गुड्डी की गदराई चूची पे। और गुड्डी भी पीछे नहीं रहने वाली थी

और बस थोड़ी देर में हम दोनों की देह गुत्थमगुत्था।

बस जरा सा सांस ली तो मैंने बोला- “हे तूने तो मेरी जान ही निकाल ली थी…”

बस मछली की तरह फिसल कर मेरे बांह जाल से वो बाहर और मेरे सामने बैठकर मुश्कुराते हुए बोली-

“हे तेरी जान, दिल हैं क्या तेरे पास। जो घबड़ा रहे थे। वो मेरी मुट्ठी में हैं एकदम सेफ और दूसरे को क्या तुम्हें भी हाथ नहीं लगाने दूंगी, अगले सात जनम तक चाहे लाख हाथ पैर पटक लो और चाहे जीत्ता भी चिढ़ लो, गुस्सा हो लो। वो मेरा था मेरा है और मेरा रहेगा…”

मेरे तन्नाये लिंग की ओर इशारा करती वो बोली- “और हाँ इसे चाहे अपनी माँ बहनों जिसको देते रहो। मुझे फर्क नहीं पड़ता…”


मैंने उसे खींचकर फिर से लिटा दिया। और अब मैं उसके पीछे से। मेरा खूंटा सीधे उसके चूतड़ों की दरार के बीच धक्के मारते हुए और हाथ फिर से कुर्ते के अन्दर चूची का रस लेते। मैंने कचाक से उसके रसीले गालों को काटा और उसके कान में मुँह लगाकर पूछा-

“हे तुझे क्या लगता है भाभी मान लेगी जो मैं चाहता हूँ। तुझे अपनी देवरानी बनाने वाली बात…”

गुड्डी ने एक पल सोचा फिर बोली- “मुझे 80% तो लगता है हाँ। तूने गड़बड़ कर दी वरना मुझे 95% हाँ लग रही थी…”

“क्या?” धीमे से मैं बोला।

“अरे वही, गरमी में गाँव में आम के बाग में बरात के नाम पे जो तुम नखड़ा बनाने लगे। की छुट्टी नहीं मिलेगी…” उसने मुझे हड़काते हुए बोला।

बात तो गुड्डी की सही थी। छुट्टी का जुगाड़ तो हो ही जाता। अब मैंने फिर उसी से पूछा- “

वो थोड़ी देर चुप रही फिर बोली- “भाभी जब 4 सवा 4 बजे नीचे उतरेंगी ना तो बस उनसे बोल देना अपनी गलती मान लेना की तुम्हें गर्मी में गाँव में आम के बाग वाली बात बहुत पसंद है…”

गुड्डी भी ना एकदम सही सजेशन देती है। मारे खुशी के मैंने उसे मोड़कर अपनी ओर कर लिया। अब हम दोनों के चेहरे आमने सामने थे। मैंने झट से उसको चूम लिया, फिर सोचकर बोला जानती हो अगर भाभी ने मेरे मन की बात मान ली। तो तेरे लिए लिए एक बड़ी मुसीबत की बात होगी।

“क्या?” मुझे चूमते हुए वो बोली।

“जून में भाभी वाली बात हो जाय तो मजा आ जाय, जुलाई में मेरी 22वीं बर्थ-डे है…” मैंने कहा।

“मालूम है। आज तक कभी भूली हूँ तेरी बर्थ-डे…” मुझे चूमते बोली वो।

“तो साल में 12 महीने, हर महीने में 30 दिन, और हर महीने में तेरी मासिक छुट्टी वाले 5 दिन काट दिए तो 25 दिन, और हर रोज तीन बार…”

मेरे गणित को रोक कर फिर कसकर चूमते वो बोली- “मालूम है मुझे, जब से तुम्हारे साथ बनारस से आई हूँ रोज तो हेट ट्रिक कर रहे हो…”

मैंने जोड़ जारी रखा- “25 तियां 75 मल्टीप्लाइड बाई 12… और 50 साल में। 72 साल तक तो ये चालू ही रहेगा 45,000 बार। तेरी इसकी रगड़ाई होगी…”

गुड्डी ने मुझे जोर से अपनी बाहों में भींच लिया और कसकर किस करके जोर से मेरे लिंग को दबाकर बोली-


“और मेरा जवाब भी सुन लो। अगर इस में से एक दिन भी नागा हुआ। तो तुम्हारी माँ बहन सब एक कर दूंगी। और जो तुम अपनी मायके वाली और मेरी ससुराल वाली छिनारों के साथ करोगे ना, वो इसमें नहीं जुड़ेगा, कर लेना चाहे जितना अपनी बहनों के साथ या मेरी बहनों के साथ लेकिन वो सब एक्स्ट्रा, मेरे कोटे से नहीं।

बाहर से शीला भाभी की आवाज आयी और वो बाहर,

बस घण्टे भर और,... मैं मना रहा था देखू भाभी जब नीचे आती हैं तो क्या फैसला सुनाती हैं, भाभी ने अब भैया को साफ़ साफ़ बता भी दिया होगा, इसके घर बात भी कर ली होगी। गुड्डी सही कहती है मैं ही बुद्धू हूँ, गर्मी में और छुट्टी को लेकर, ... और सबसे बड़ा काम तो शीला भाभी ने किया, मेरी तो कभी हिम्मत नहीं पड़ती भाभी से सीधे गुड्डी के बारे में बौलने की,.. और शीला भाभी,... भाभी से थोड़ी बड़ी भी है , गुड्डी के मायके से भी रिश्ते की,... और कैसे पल भर में जो बात मैं इतने दिनों से सोच रहा था,...

और थोड़ी देर में सीढ़ियों से नीचे आते पैरों की आवाज सुनाई पड़ी , भाभी ही थीं साथ में गुड्डी की भी आवाज।
 
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गुड्डी, भाभी और

कौन बनेगी उनकी देवरानी





बाहर भाभी और गुड्डी की खिलखिलाहट बढ़ गई थी। मेरे लिए खुद को रोकना बहुत मुश्किल हो रहा था, इसलिए मैं बाहर आ गया। मेरी आँखें कार्टून कैरेक्टर्स की तरह गोल-गोल घूमने लगी। दोनों मुश्कुरा रही थी। भाभी ने गुड्डी के कंधे पे सहेलियों की तरह हाथ रखा हुआ था।

और मुझे देखकर भाभी और जोर से मुश्कुराने लगी। और साथ में गुड्डी भी। भाभी ने गुड्डी की और देखा जैसे पूछ रही हों बता दें और गुड्डी ने आँखों ही आँखों में हामी भर दी।

भाभी ने मुझे देखा, कुछ पल रुकीं और बोला, तुम्हारे लिए खुशखबरी है।

मैं इन्तजार कर रहा था उनके बोलने का। एक पल रुक के वो बोली-

“मैंने, तुम्हारे लिए, अपनी देवरानी सेलेक्ट कर ली है…”



मैंने गुड्डी की ओर देखा उसकी आँखों में खुशी छलक रही थी।

मैं एक पल के लिए रुका फिर कुछ हिम्मत कर कुछ सोचकर बोला- “जी… लेकिन कौन? नाम क्या है?”



दोनों, भाभी और गुड्डी, एक साथ शेक्सपियर की तरह बोली- “नाम, नाम में क्या रखा है? क्या करोगे नाम जानकर?”



और मैं चुप हो गया।



“देवरानी मेरी है की तुम्हारी, तुम क्या करोगे नाम जानकर…”

भाभी, मुश्कुराते हुए मेरी नाक पकड़ कर बोली।
गुड्डी किसी गुरु ज्ञानी की तरह, गंभीरता पूर्वक, सहमती में सिर हिला रही थी। भाभी ने नाक छोड़ दी, फिर बोली-

“लेकिन अभी बहुत खुश होने की जरूरत नहीं है, मैंने चुन लिया है, लेकिन वो तो माने। उसकी भी शर्ते हैं। अगर तुम मानोगे तभी बात पक्की हो सकती है…”



मैं फिर सकते में आ गया। ये क्या बात हुई। मैं कुछ बोलता इसके पहले भाभी ने गुड्डी से कहा-

“सुना दो ना इसको शर्ते। अब अगर ये मान गए तो बात बन जायेगी। वरना सिर्फ मेरे चुनने से थोड़ी ही कुछ होता है…”



गुड्डी ने एक पल सीधे मेरी आँखों में देखा। जैसे पूछ रही हो। बोलो है हिम्मत। और फिर उसने शर्त सुना दी।




“पहली शर्त है, जोरू का गुलाम बनना होगा। पूरा…”



भाभी ने संगत दी। बोलो है मंजूर वर्ना रिश्ता कैंसल।

मैंने धीमे से कहा- “हाँ…”

और वो दोनों एक साथ बोली- “हमने नहीं सुना।



मैंने अबकी जोर से और पूरा कहा। हाँ मंजूर है।

और वो दोनों खिलखिला पड़ी। लेकिन गुड्डी ने फिर एक्सप्लेन किया। और जोरू का मतलब सिर्फ जोरू का नहीं, ससुराल में सबका। साली, सलहज सास। सबकी हर बात बिना सोचे माननी होगी।






मैंने फिर हाँ बोल दिया।


भाभी बोली, तलवें चटवायेंगी सब तुमसे। गुड्डी अकेले में बोलती तो मैं उसे करारा जवाब देता लेकिन,... भाभी थी।

मैंने मुश्कुराकर हाँ बोल दिया।

भाभी बड़ी जोर से मुश्कुरायीं और गुड्डी से बोली-

“सुन वैसे तो कोई भी हाँ हाँ कर देगा। एकाध टेस्ट तो लेकर देख…”




और गुड्डी ने जैसे पहले से सोच रखा था तुरन्त बोली- “उट्ठक बैठक। कान पकड़कर 100 तक। और मैं तुरन्त चालू हो गया। कान पकड़कर 1, 2, 3, 6,

भाभी हँसते हुए गुड्डी से बोली- “तू भी इसका साथ दे रही है क्या। इत्ता आसान टेस्ट ले रही है। मैं होती तो सैन्डल पे नाक तो रगड़वाती ही।


और उधर मैं चालू था 21, 22, 23, 24। लेकिन गुड्डी ने बोला चलो मान गए हम लोग की तुम बन सकते हो जोरू के गुलाम। और भाभी ने जोड़ा, चलो अब मैं बोल दूंगी उसको, और अब उसने कर दी दया तो रिश्ता पक्का।



गुड्डी ने भी हामी भरी और वो दोनों लोग किचेन की ओर मुड़ ली,
 
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गुड्डी, भाभी और

कौन बनेगी उनकी देवरानी





बाहर भाभी और गुड्डी की खिलखिलाहट बढ़ गई थी। मेरे लिए खुद को रोकना बहुत मुश्किल हो रहा था, इसलिए मैं बाहर आ गया। मेरी आँखें कार्टून कैरेक्टर्स की तरह गोल-गोल घूमने लगी। दोनों मुश्कुरा रही थी। भाभी ने गुड्डी के कंधे पे सहेलियों की तरह हाथ रखा हुआ था।

और मुझे देखकर भाभी और जोर से मुश्कुराने लगी। और साथ में गुड्डी भी। भाभी ने गुड्डी की और देखा जैसे पूछ रही हों बता दें और गुड्डी ने आँखों ही आँखों में हामी भर दी।

भाभी ने मुझे देखा, कुछ पल रुकीं और बोला, तुम्हारे लिए खुशखबरी है।

मैं इन्तजार कर रहा था उनके बोलने का। एक पल रुक के वो बोली-

“मैंने, तुम्हारे लिए, अपनी देवरानी सेलेक्ट कर ली है…”



मैंने गुड्डी की ओर देखा उसकी आँखों में खुशी छलक रही थी।

मैं एक पल के लिए रुका फिर कुछ हिम्मत कर कुछ सोचकर बोला- “जी… लेकिन कौन? नाम क्या है?”



दोनों, भाभी और गुड्डी, एक साथ शेक्सपियर की तरह बोली- “नाम, नाम में क्या रखा है? क्या करोगे नाम जानकर?”



और मैं चुप हो गया।



“देवरानी मेरी है की तुम्हारी, तुम क्या करोगे नाम जानकर…”


भाभी, मुश्कुराते हुए मेरी नाक पकड़ कर बोली।
गुड्डी किसी गुरु ज्ञानी की तरह, गंभीरता पूर्वक, सहमती में सिर हिला रही थी। भाभी ने नाक छोड़ दी, फिर बोली-

“लेकिन अभी बहुत खुश होने की जरूरत नहीं है, मैंने चुन लिया है, लेकिन वो तो माने। उसकी भी शर्ते हैं। अगर तुम मानोगे तभी बात पक्की हो सकती है…”



मैं फिर सकते में आ गया। ये क्या बात हुई। मैं कुछ बोलता इसके पहले भाभी ने गुड्डी से कहा-

“सुना दो ना इसको शर्ते। अब अगर ये मान गए तो बात बन जायेगी। वरना सिर्फ मेरे चुनने से थोड़ी ही कुछ होता है…”



गुड्डी ने एक पल सीधे मेरी आँखों में देखा। जैसे पूछ रही हो। बोलो है हिम्मत। और फिर उसने शर्त सुना दी।




“पहली शर्त है, जोरू का गुलाम बनना होगा। पूरा…”



भाभी ने संगत दी। बोलो है मंजूर वर्ना रिश्ता कैंसल।

मैंने धीमे से कहा- “हाँ…”

और वो दोनों एक साथ बोली- “हमने नहीं सुना।



मैंने अबकी जोर से और पूरा कहा। हाँ मंजूर है।

और वो दोनों खिलखिला पड़ी। लेकिन गुड्डी ने फिर एक्सप्लेन किया। और जोरू का मतलब सिर्फ जोरू का नहीं, ससुराल में सबका। साली, सलहज सास। सबकी हर बात बिना सोचे माननी होगी।






मैंने फिर हाँ बोल दिया।


भाभी बोली, तलवें चटवायेंगी सब तुमसे। गुड्डी अकेले में बोलती तो मैं उसे करारा जवाब देता लेकिन,... भाभी थी।

मैंने मुश्कुराकर हाँ बोल दिया।

भाभी बड़ी जोर से मुश्कुरायीं और गुड्डी से बोली-

“सुन वैसे तो कोई भी हाँ हाँ कर देगा। एकाध टेस्ट तो लेकर देख…”




और गुड्डी ने जैसे पहले से सोच रखा था तुरन्त बोली- “उट्ठक बैठक। कान पकड़कर 100 तक। और मैं तुरन्त चालू हो गया। कान पकड़कर 1, 2, 3, 6,

भाभी हँसते हुए गुड्डी से बोली- “तू भी इसका साथ दे रही है क्या। इत्ता आसान टेस्ट ले रही है। मैं होती तो सैन्डल पे नाक तो रगड़वाती ही।


और उधर मैं चालू था 21, 22, 23, 24। लेकिन गुड्डी ने बोला चलो मान गए हम लोग की तुम बन सकते हो जोरू के गुलाम। और भाभी ने जोड़ा, चलो अब मैं बोल दूंगी उसको, और अब उसने कर दी दया तो रिश्ता पक्का।



गुड्डी ने भी हामी भरी और वो दोनों लोग किचेन की ओर मुड़ ली,
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Delta101

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“लाला इ देख रहे हो। तनिको नखड़ा करिहे एनकर महतारी ना। त इहे उनकी गांड़ी में डार के पूरा। निकाल लेब और सीधे उनके मुँह में। हिम्मत है उनकी। इतना बढ़िया लड़का, बढ़िया नौकरी, घरबार और,... उहो सब एकदम चाक चौबंद। कहाँ मिली और रहा तोहरे भौजाई क बात। त उनकर त काम आसान हो गया ना। फिर ये भी तो एक तरह से उन्हीं के ओर की है…”
केतना नीक भौजी हुअए .....सच है; "देवर का दिल कहाँ अटका है, सिर्फ भउजाई समझती है"
 
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