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Erotica रंग -प्रसंग,कोमल के संग

komaalrani

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भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी

Phagun ke din chaar update posted

please read, like, enjoy and comment






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तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी
 

motaalund

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शीला भाभी और गुड्डी



कैसे बनवाया शीला भाभी ने गुड्डी और इस कहानी के हीरो का रिश्ता पिछले भाग में आप पढ़ चुके हैं, पिछले पन्नों पर, PAGE 66

कुछ लाइनें लाइनें उसी सिलसिले में चुनी हुयी आगे


शीला भाभी ने आवाज दी और गुड्डी मुझे खींचकर बाहर लायी। शीला भाभी फ्रेश साड़ी वाड़ी पहनकर तैयार खड़ी थी। और अब मैंने ध्यान से देखा तो।

गुड्डी भी आज बहुत ही ट्रेडिशनल ड्रेस में, शलवार सूट में तैयार खड़ी थी, यहाँ तक की उसने चुन्नी भी डाल रखी थी। लेकिन उससे ना उसका जोबन छुप रहा था और रूप। बल्की टाईट कुर्ती में और छलक रहा था। चुन्नी भी उसने एकदम गले से चिपका रखी थी। लेकिन उसकी कोहनी तक भरी भरी चूड़ियां, कंगन, आँखों में शोख काजल, और नितम्बों तक लहराती चोटी में लाल परिंदा। मेरी निगाहें उससे एकदम चिपकी थी

और मेरी चोरी शीला भाभी ने पकड़ ली- “हे मेरी बिन्नो को क्यों नजर लगा रहे हो, अभी डीठोना लगाती हूँ…”

मैं झेंप गया और उन्होंने बात बदल कर मुझसे बोला- “मंदिर चलना है पैसा वैसा लिया है की नहीं?”

मैंने गुड्डी की ओर देखा, मेरा पर्स, कार्ड सब कुछ उसी के पास था।

गुड्डी ने मेरी ओर देखा और बोला- “तुम्हारा पर्स कहाँ है, मैं अपना तो सम्हालकर रखती हूँ और अपने झोले ऐसे लेडीज पर्स में से उसने पर्स निकाला, काल वैलेट फूला, ढेर सारे कार्ड। मेरा पर्स मुझी को दिखाती वो बोली- “ये देखो मैंने अपना पर्स कित्ता संभाल कर रखा है और एक तुम हो। चलो 10 रूपये ले लो चलो जल्दी…” और पर्स से निकालकर उसने मुझे पकड़ा दिया और चल पड़ा मैं उस सारंग नयनी के पीछे-पीछे।
मैं सोच रहा था। मेरा पर्स इसके पास। मेरे कपड़े वार्डरोब इसके पास। मेरा दिल इसके पास। मैं सोचने लगा की और उसके बदले में। तब तक वो शोख मुड़ी और मेरी ओर देखकर मुश्कुराने लगी। अगर ये सब देकर भी ये नाजनीन मिल जाय। हमेशा के लिए तो घाटे का सौदा नहीं मैंने सोचा।

बस मेरे मन में हमेशा यही डर नाच रहा था की पता नहीं भाभी ने क्या फैसला किया। गुड्डी लेकिन जिस तरह देख रही थी मेरी ओ मीठी निगाहों से। “अचानक मंदिर जाने का प्रोग्राम, क्यों किस लिए…” मैंने शीला भाभी से पूछा।
“क्यों? हर चीज जानना जरूरी है क्या?” गुड्डी ने घूर कर कहा।

लेकिन शीला भाभी बोल रही थी, गुड्डी की ओर इशारा करके- “अरे इसकी मन की इच्छा पूरी हुई, पुरानी मनौती। इसलिए…”

मैं कुछ और पूछता की गुड्डी ने शीला भाभी को भी चुप करा दिया- “भाभी। आप भी ना…”

मंदिर पास में था गुड्डी हाथ पकड़कर खींचते हुए अन्दर ले गई और शीला भाभी भी बोली-

“हे नखड़ा ना करो लाला इसके साथ क्या पता तोहरो इच्छा पूरी हो रही हो चलो दो मिनट हाथ जोड़ लो…” और वहाँ हम लोगों के कुछ बोलने से पहले शीला भाभी पंडित जी से ना जाने क्या बातें कर रही थी।

हम लोगों के पहुँचते ही हँसकर बोली- “पंडितजी जरा इन लोगों की जोड़े से पूजा कराइयेगा…”

गुड्डी ने अपनी चुन्नी, जैसे ही वो मंदिर में घुसी थी सिर पर ओढ़ ली थी। पूरी तरह ढँक कर जैसे दुल्हन। हम दोनों साथ-साथ मंदिर में बैठे थे, वो मेरे बांये। और उसके बगल में शीला भाभी। और जैसे ही शीला भाभी ने कहा इन दोनों की जोड़े से पूजा कराईयेगा, मेरे तो कुछ समझ में नहीं आया लेकिन गुड्डी बिना सकपकाए, मुझसे धीरे से बोली- “रुमाल है तुम्हारे पास, सिर पर रख लो…” रुमाल तो था नहीं। लेकिन गुड्डी ने अपनी चुन्नी मेरे सिर पर डाल दी, और मुझे कनखियों से देखकर हल्के से मुश्कुरा दी।

शीला भाभी मेरी ओर आई और हल्के से हड़का के बोली- “सटकर बैठो एकदम। हाँ…” और फिर उन्होंने चुन्नी मेरे ऊपर एडजस्ट कर दी, जिससे वो सरके नहीं और पंडित जी से मुश्कुराकर कहा- “बस गाँठ जोड़ने की कसर है…”

पंडित जी भी मुश्कुराकर बोले- “अरे ये चुन्नी है ना बस इनके शर्ट में फँसा दीजिये और इनकी कुर्ती में। हाँ बस हो गई गाँठ…”

शीला भाभी मेरे कान में बोली- “अब ये गाँठ खुलनी नहीं चाहिए और मांग लो इसको…”

“एकदम भाभी…” मैं मुश्कुराकर बोला। अपने दिल की बात तो मैं उनसे कह ही चुका था। और भाभी से मेरी अर्जी लगाने का काम उन्हीं के जिम्मे था। इसलिए उनसे क्या पर्दा। चुन्नी ना हिले इसलिए हम दोनों अब एकदम सटकर बैठे थे हम दोनों की देह तो सटी थी ही, गाल तक छू जा रहे थे। गुड्डी की चूड़ियों और कंगन की खनखन, कान के झुमकों की रन झुन, मेरे कानों में पड़ रही थी। इत्ती प्यारी लग रही थी वो की। और जब वो चोरी चोरी मुझे उसे देखते देखती। तो वो भी मीठी-मीठी निगाहों में मुश्कुरा देती।

पूजा लम्बी चली लेकिन जल छिड़कने से लेकर सारे काम जुड़े हुए हाथ से हुए। फिर उन्होंने मन्त्र पढ़ा, गुड्डी से कहा अपना नाम गोत्र सब बोलो और जो मन में हो वो मांग लो। तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी होगी। पंडित जी की हिदायतें चालू हो गईं। पूरी पूजा में ऐसे ही बैठे रहना, गाँठ हिलनी भी नहीं चाहिए। और उन्होंने पहले गुड्डी के हाथ में कलावा बांधा, फिर उसी के बचे हिस्से से मुझे भी बाँध दिया। गुड्डी का हाथ उन्होंने नीचे रखवाया, उसके ऊपर मेरा हाथ और फिर सबसे ऊपर गुड्डी का बायां हाथ। और फिर कहा आज ये सारी पूजा तुम लोग जुड़े हुए हाथ से ही करोगे।

गुड्डी ने आँखें बंद कर ली पर पंडित जी बोले नहीं आँखें खोल कर और जो चीज चाहिए वो अगर कहीं आसपास में हो तो उसकी ओर देख लेने मात्र से। इच्छा बहुत जल्द पूरी होती है।

गुड्डी की लजीली शर्मीली आँखें मेरी ओर मुड़ी, पल भरकर लिए उसने मुझे देखा और पलकें झुका ली। और जब मेरा नंबर आया तो मैंने गुड्डी को मांग लिया। और खुलकर उसे नदीदे लालचियों की तरह देखा। वो कनखियों से मीठी-मीठी मुश्कुरा रही थी। भगवान जी तो अंतर्यामी होते हैं लेकिन जिस तरह से मैं देख रहा था कोई कुछ ना समझता हो वो भी समझ गया होगा की मुझे क्या चाहिये। जब पंडित जी ने प्रसाद दिया लड्डू का तो मुझे बोला। की मैं गुड्डी को अपने हाथ से खिलाऊं। शीला भाभी ने गुड्डी के कान में कुछ कहा और वो मुश्कुराई।

जैसे ही मैंने लड्डू गुड्डी के मुँह में डाला, शर्माते लजाते थोड़ा सा मुँह खोला था उसने। लड्डू तो उसने बाद में खाया मेरी उंगली पहले काट ली। फिर पंडित जी ने गुड्डी से कहा की वो बचा हुआ लड्डू अपने हाथ से मुझे खिला दे और अबकी फिर गुड्डी ने अपने हाथ में लगा हुआ लड्डू मेरे गाल में पोत दिया। तुम लोगों की जोड़ी इस लड्डू से भी मीठी होगी पंडित जी ने आशीर्वाद दिया। उनके पैर भी हम लोगों ने अपने हाथ साथ-साथ जोड़ के छुए।

उन्होंने आशीर्वाद दिया। अब तुम लोग हर काम इसी तरह जोड़े से करना।

शीला भाभी ने जब चुन्नी अलग की तो वो गुड्डी से बोली- “आज मैं नाउन का काम कर रही हूँ। गाँठ बांधने और छोड़ने का बड़ा तगड़ा नेग होता है…”

“अरे एकदम… इनसे ले लीजियेगा ना… मैं बोल दूंगी…” मेरी ओर देखते हुए आँख नचाकर वो बोली। हम तीनों समझ रहे थे किस लेन देन की बात हो रही है।

शीला भाभी पंडित जी से कुछ और बात करने के लिए रुक गई थी हम दोनों बाहर की ओर निकल आये। मंदिर के बाहरी हिस्से में एक बड़ा सा शीशा लगा था। मैं और गुड्डी उसी के सामने रुक कर देखने लगे। मैंने उसकी पतली कमर में हाथ डालकर अपनी ओर खींच लिया और शीशे में देखते हुए पूछा- “हे ये जोड़ी कैसी लग रही है…”

“बहुत अच्छी…” गुड्डी बोली।

उसने अभी भी चुन्नी अपने सिर पे घूँघट की तरह डाल रखी थी। उसे दुलहन की तरह पकड़, शीशे में देखती वो बोली- “और ये दुल्हन…”

“दुनियां की सबसे प्यारी सबसे सुन्दर दुलहन…” मैंने बोला।

फिर कुछ रुक कर मैंने धीरे से कहा- “लेकिन ये दुल्हन मुझे मिल जाए…”


“मिल जाएगी, मिल जाएगी। चिंता मत करो। अब तो भगवान जी ने भी आशीर्वाद दे दिया है…” वो हँसकर बोली।

थोड़े देर में शीला भाभी आ गयीं

और मैंने उन्हें छेड़ा- “क्यों भाभी कहीं पंडित जी से कुछ स्पेशल प्रसाद तो नहीं लेने लग गईं थी आप…”“तुम्हारा ही काम करवा रही थी। कुंडली दी थी भाभी ने तुम्हारी मिलवाने के लिए। और सगुन…”
उनकी बात काटते मैं बोला- “मेरी कुंडली तो भाभी के पास थी लेकिन वो लड़की की…”

“तुम्हें आम खाने से मतलब है या…” अबकी गुड्डी ने बात काटी।

“आम और ये…” अब शीला भाभी चौंकी।

“अरे गरमी का सीजन आने दीजिये। कैसे नहीं खायेंगे। खायेंगे ये और खिलाऊँगी मैं। लेकिन कुंडली का क्या हुआ। मिली की नहीं…” गुड्डी उतावली हो रही थी।

“मिल गई बहुत अच्छी मिली। पंडित जी तो कह रहे थे की ये जोड़ी ऊपर से बनकर आई है। दुनियां में कोई ताकत नहीं जो रोक सके इन दोनों का मिलन। सोलह के सोलह गुण मिल गए हैं…”

शीला भाभी बहुत खुश हो रही थी। लेकिन जब तक हम दोनों कुछ बोलते एक खतरनाक बात बोल दी- “लेकिन, लड़की के लिए एक मुसीबत है…” वो बड़ी सीरियसली बोली- “और पंडित जी ने बताया है की इसका कोई उपाय भी नहीं है…”

“मतलब?” मैं और गुड्डी साथ-साथ बोले।

“अरे इसका शुक्र बहुत ही उच्च स्थान का है। पंडित जी बोले की इतना ऊँचा शुक्र उन्होंने आज तक नहीं देखा…” वो बोली।

“मतलब?” हम दोनों फिर साथ-साथ बोले।

अब वो मुश्कुराई और मेरी और मुँह करके बोली- “मतलब ये की। तुम दुलहिन के ऊपर चढ़े रहोगे हरदम। ना दिन देखोगे ना रात। बिना नागा…”

मैं और शीला भाभी दोनों गुड्डी की और देखकर मुश्कुराए। और गुड्डी बीर बहूटी हो गई। अब शीला भाभी फिर मेरी ओर मुखातिब हुई और बोली- “लेकिन असली अच्छी खबर तुम्हारे लिए है। पंडित जी ने कहा है। लड़की रूप में अप्सरा है, भाग्य में लक्ष्मी है। जिस घर में उसका प्रवेश होगा उस घर की भाग्य लक्ष्मी उदित हो जायेगी। वहां किसी चीज की कमी नहीं रहेगी और सबसे बड़ी बात। भाग्य तो तुम्हारा वैसे ही बली है लेकिन जिस दिन से उसका साथ होगा। वह महाबली हो जाएगा, तुम्हारी सारी मन की बातें बिना मांगे पूरी होंगी, नौकरी, पोस्टिंग…”

गुड्डी ये सब बातें सुनके कभी खुश होती तो कभी ब्लश करती। फिर बात बदलते हुए मुझसे बोली- “इत्ती देर से तुम्हरा दो-दो मोबाइल लादे फिर रही हूँ लो…” और उसने अपना पर्स खोलकर मेरे मोबाइल मुझे पकड़ा दिये। पूजाकर समय, उसने मेरे मोबाइल लेकर साइलेंट पे करके अपने पर्स में रख लिए थे।

लेकिन शीला भाभी चालू थी- “एक बात और तोहार भाभी कहें थी की पंडित जी से पूछे की- “लेकिन ओहमें कुछ गड़बड़ निकल गया…”

अब मैं परेशान, गुड्डी के चेहरे पे भी हवाइयां। हम दोनों शीला भाभी की ओर देख रहे थे। और वो चुप। आखीरकार, मैंने पूछा- “क्या बात है भाभी बताइए ना…”

“अरे लगन की तारीख। एह साल 25 मई से 15 जून तक जबर्दस्त लगन है। लेकिन जाड़ा में शुक्र डूबे हैं। एह लिए अब ओकरे बाद अगले साल अप्रैल के बाद लगन शुरू होई। और जून त तू मना कै दिहे हया। त लम्बा इन्तजार कराय के पड़े दुलहिन के लिए…”


इतना इंतजार तो खैर मुझसे नहीं होने वाला था। मैं और गुड्डी एक दूसरे की ओर देखकर मुश्कुराए। गुड्डी ने आँखों में मुझे बरज दिया की मैं अभी कुछ ना बोलूं। वो सीधे मुझे भाभी के पास ले जाती और मैं उन्हें बताता की मुझे छुट्टी गरमी में मिल जायेगी। मैं सिर्फ शीला भाभी की ओर देखकर मुश्कुरा दिया.

छुट्टी के लिए मैंने बात कर लिया था शीला भाभी के आने के पहले, अपने बॉस से हुयी बात जस की तस शेयर कर रहा हूँ


“तुम्हारी फील्ड ट्रेनिंग का प्रोग्राम आ गया है, 28 हफ्ते का। मैंने तुमसे बिना पूछे, बनारस के लिए बोल दिया था, कोई प्राबलम तो नहीं है। सत्रह मई से शुरू हो रही है। डिटेल तुम्हें मेल कर दिया है, तुम्हारे यहाँ के पुलिस आफिस में फैक्स भी कर दिया है, तुम्हारे घर पे भी डिलीवर कर देंगे वो…”
मैं सोच रहा था बोलूं। ना बोलूं। बोलूं। फिर बोल दिया- “कुछ छुट्टी मिल सकती है ट्रेनिंग में…”

“कब। कहीं शादी वादी तो नहीं कर रहे हो…” हँसकर वो बोले।

“हाँ। वही…” हिम्मत करके मैंने बोल दिया।

“किससे वही जिसके हास्टेल में दिन में तीन चिट्ठी आती थी। मिलवाया तो था तुमने। वही ना जिसने तुम्हें होस्टेज वाली सिचुएशन में ऊपर भेजा था…”

मैंने हाँ बोला।

“लड़की अच्छी है। एक तो उसे खाने का टेस्ट है। उस दिन तुम समोसे खाते चले गए। लेकिन उसने तारीफ भी की। टेस्ट है उसमें। कितने दिन की छुट्टी चाहिये अब एक महीने की मत मांग लेना। कब से चाहिए…” वो बोले।

मेरे दिमाग में शीला भाभी ने पंडित जी से जो लगन की तारीखें पूछीं थी, तुरंत कौंध गई। 25 मई से 15 जून तक, उसके बाद अप्रेल में अगले साल। तक सन्नाटा तो सबसे अच्छी तो 25 मई ही है। और मैं भाभी को समझा दूंगा की। जितना देर करेंगी। उता बारिश का खतरा। मैंने झट से बोल दिया- “सर। बीस मई से…” (मैंने ये भी सोच लिया था की मुझे बनारस में जवाइन सतरह मई को करना है। सुबह कर लूंगा। 18, 19, वैसे भी शनिवार, रविवार है। और छूट्टी तो सोमवार से ही शरू होगी। तो भाभी जो हम लोगों के घर के रसम रिवाज की बात कर रही थी तो वो भी निपट जाएगा। वो जब कहेंगी मैं आ जाऊँगा। सात दिन पूरे मिलेंगे)।

वो लगता है दूसरे फोन पे किसी से बात कर रहे थे, फिर बोले- “बीस मई। ओके कब तक…”

“वो। अट्ठारह जून तक सर…” मैंने बहुत हिम्मत करके बोल ही दिया।

उनका दूसरा फोन बज रहा था।
“ओके। बीस मई से अट्ठारह जून। और कुछ…” उन्होंने पूछा।
“बस एक बात। असल में मुझे घर पे बताना होगा। फिर वो लड़की वालों से बात करेंगे और सब अरेंजमेंट। तो अगर आप छुट्टी का सैंक्शन एस॰एम॰एस॰ कर देते तो…” मैंने और हिम्मत कर ली।
“एक मिनट जरा रुको। मुझे नोट कर लेने दो। ओके अभी एस॰एम॰एस॰ कर दूंगा और तुम छुट्टी की अर्जी मेल कर देना मुझे…”
उन्होंने फोन रखा और मैंने तुरंत छुट्टी की अर्जी उन्हें मेल की। दो मिनट में एस॰एम॰एस॰ आया, उनके आफिस से की मेरी 28 हफ्ते की फील्ड ट्रेनिंग बनारस में है सत्रह मई से डिटेल प्रोग्राम मेल और फैक्स किया जा रहा है। मैं फोन को घूर रहा था। और ठीक दो मिनट बाद दूसरा एस॰एम॰एस॰ योर लीव हैज बीन सैंकसंड फ्राम ट्वेंटी मई टू एट्टीन जून।

बड़ी देर तक मैं उसे देखता रहा। मुझे विश्वास नहीं हो रहा था। और मैंने तुरंत उसे गुड्डी को फारवर्ड किया। दोनों मेसेज।

बीस जून से उसका कालेज खुल रहा था। तो इसका मतलब की तब तक तो वो बनारस उसे लौट ही आना है। और मेरी छुट्टी भी तभी खतम हो रही थी। मतलब हम दोनों साथ-साथ लौटेंगे और उसने ये भी बोला था की पूरी ट्रेनिंग। मैं बजाय रेस्टहाउस में रहने के उसके घर पे ही रहूँ।

और घर पहुँच के भाभी से भी

मेरी क्या हिम्मत होती गुड्डी थी न पीछे से लेकिन लगन तो ढूंढी थी शीला भाभी ने


तो भाभी के सामने क्या हुआ उसकी भी एक झांकी


“क्या बात है?” भाभी ने मुझसे पूछा।

मैं हिचक रहा था की गुड्डी ही बोली- “इन्हें कुछ कहना है इसलिए…”

“तू बड़ी वकील बन गई है इसकी…” हँसकर आँख तरेरते, भाभी गुड्डी से बोली और मुझसे बोली- “हाँ बोलो ना, क्या कहना है?”

मैंने पहले थूक गटका, फिर सोचा कैसे शुरू करूँ और हिम्मत करके बोलने ही वाला था की भाभी ने ही रोक दिया और गुड्डी से पूछा- “शापिंग हो गई, मिल गई सब चीजें?”


“हाँ अब बोलो क्या कह रहे थे?”

“भाभी बस मेरी समझ में नहीं आ रहा है। कैसे बोलूं मुझसे बड़ी गलती हो गई…” हिचकिचाते हुए मैं बोला- “भाभी वो खाने के समय मैंने। आपने पूछा था ना की गर्मी में गाँव में। तो वही मैंने बोल दिया था ना। की की। छुट्टी नहीं मिल पाएगी तो…”

“अरे तो इसमें इतना परेशान होने की कौन सी बात है। छुट्टी नहीं मिलेगी गरमी में। तो जाड़े में कर लेंगे। और लड़की वालों से बात कर लेंगे की तुम्हें गाँव की शादी नहीं पसंद है। तो उन्हें दिक्कत तो बहुत होगी लेकिन करेंगे कुछ वो जुगाड़ शहर से शादी करने का। तुम मत परेशान हो…” और भाभी मुड़ गईं।

गुड्डी मुझे घूरे जा रही थी। और मेरे समझ में कुछ नहीं आ रहा था की क्या करूँ। फिर मैंने डी॰बी॰ का छुट्टी सैंक्शन वाला मेसेज खोलकर मोबाइल भाभी की ओर बढ़ा दिया।

उन्होंने उसको देखा, पढ़ा और फिर। मुझे लौटा दिया।

“मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है। तुम खुद साफ-साफ क्यों नहीं बता देते…” वो बोली।

“वो छुट्टी मेरी…” मैंने बोला फिर रुक गया।


“क्या हुआ छुट्टी नहीं मिली। तो कोई बात नहीं जाड़े में। तुमने मुझसे पहले भी कहा था की नवम्बर दिसम्बर…” भाभी आराम से बोली।

गुड्डी दांत पीस रही थी।

“नहीं नहीं वही मैं कह रहा था की जब अभी हम लोग गए थे तो मैंने अपने बास से बात की सब बात समझाई। तो वो गरमी में छुट्टी के लिए मान गए हैं…” मैं जल्दी-जल्दी बोला।

अब भाभी रुक के ध्यान से सुनते हुए बोली- “ऐसे थोड़े ही। ये तो लगन पे होगा ना। और फिर दो-वार दिन की छुट्टी से काम नहीं चलेगा मैंने तुम्हें बता दिया था। तीन दिन की बरात, 4 दिन रसम रिवाज। कब से छुट्टी मिलेगी…”


“20 मई से…” मैंने बताया।

उन्हह कुछ सोचा उन्होंने, फिर बोली- “और कब तक?”


28 दिन की पूरी। 18 जून तक की। असल में मेरी ट्रेनिंग बनारस में लग गई है। करीब छ सात महीने की। सत्रह मई से है उसे मैं बनारस में जवाइन कर लूँगा। बीस से छुट्टी ही है अगर आप कहेंगी, कोई बात होगी तो। सतरह को शुक्रवार है। तो अगले दो दिन तो वैसे भी। अगर आप कहेंगी तो मैं 20 से एक-दो दिन पहले भी आ जाऊँगा। तो इसलिए छुट्टी वाली परेशानी अब नहीं हैं…” अबकी मैं पूरी बात बोल-कर ही रुका।

भाभी ने कुछ सोचा फिर बोला मैंने शीला भाभी से कहा था की पंडित जी से पूछ लें की लगन कब है


“पचीस मई से पन्दरह जून तक उनको पंडित जी ने बताया था। और ये भी कहा था की पच्चीस की लगन बहुत अच्छी है। और फिर गाँव की बरात। जित्ता देर होगा कहीं बारिश वारिश। तो लड़की वालों को भी…”

मेरी बात काटकर भाभी मुश्कुराकर बोली- “अच्छा अभी से लड़की वालों की तरफदारी चालू हो गई। वैसे बात तुम्हारी सही है। लेकिन एक बार मुझे उनसे बात करनी पड़ेगी ना। पर। फिर कुछ उन्हें याद आया। खुलकर मुश्कुराकर वो बोली- “छुट्टी के साथ ये बात भी तो थी, गाँव में तीन दिन की बरात, वो भी आम के बाग में। तो उसमें तो कोई परेशानी नहीं है…”

गुड्डी मुझे देखकर खिस्स-खिस्स मुश्कुरा रही थी।

“नहीं नहीं भाभी ऐसा कुछ नहीं है। मुझे क्यों परेशानी होगी गाँव में बारात से। गाँव की शादी में तो और…” मैंने बात बनाने की कोशिश की।

“यही तो…” खिलखिलाते हुए मेरी नाक पकड़कर जोर से हिलाते हुए भाभी बोली- “जबर्दस्त रगड़ाई होगी तुम्हारी। तुम्हारे भैया के साथ तो कुछ मुर्रुवत हो गई थी। लेकिन तेरे साथ नहीं होने वाली। डेढ़ दिन का कोहबर होता है हमारे गाँव में। और गालियां वालियां तो छोटी बात हैं। वहां तुमसे गालियां गवाई जायेगीं तुम्हारे मायके वालों के लिए। चलो खैर उसकी कोई चिंता नहीं। मुझे एक से एक आती है। तुम्हें सब सिखा दूंगी…” (सुना तो मैंने भी था इस कोहबर की शर्त के बारे में। शादी के बाद लड़के को लड़की वाले के घर में ही रोक लिया जाता है। और ससुराल की सभी औरतें सालियां। सास, सलहज, उसके पास रहती है और दुलहन भी। जब दुल्हन की विदाई होती है तब लड़का उसके साथ ही निकलता है। माना ये जाता है की इससे दुल्हा ससुराल में घुल मिल जाता है। आखीरकार, दुलहन तो जिंदगी भरकर लिए जाती है अपनी ससुराल। लेकिन मैंने ये भी सुना था की ये सब रस्म अब पुराने जमाने की बातें हो गई।)

मेरी नाक अभी भी भाभी के हाथ में थी और गुड्डी खिलखिला के हँस रही थी।

भाभी चिढ़ाते हुए बोली- “डर तो नहीं गए भैया। वरना अभी मैंने बात नहीं की है। फिर वही जाड़े वाली बात शहर की शादी की…”

उनकी बात काटकरके मैं तुरंत बोला- “नहीं नहीं भाभी प्लीज। ऐसा कुछ नहीं है। आपकोई चेंज वेंज की बात मत करिएगा। मुझे कोई दिक्कत नहीं है गरमी की शादी और गाँव में। आखीरकार, हर जगह की अपनी रस्म रिवाज है। मैं रैगिंग समझ लूँगा। एक-दो दिन की क्या बात है?”


“जी नहीं…” भाभी ने तुरंत समझाया।

“उसकोहबर की रगड़ाई के सामने, बड़ी से बड़ी रैगिंग बच्चों का खेल है। और तुम्हारे साथ तुम्हारे मायके से कोई कजिन वजिन जो कुँवारी हो बस वही रह सकती है। और उसकी खूब रगड़ाई होगी खुलकर। बस यही है की मैं नहीं देख पाऊँगी…”

गुड्डी बड़ी देर से चुप थी, बोली- “अरे ऐसा कुछ नहीं है। वीडियो रिकार्डिंग करा लेंगे ना। कोई इनकी साली वाली ही कर देगी। फिर आप ही क्यों इनके सारे मायके वाले देखेंगे बड़ी स्क्रीन पर…”

भाभी ने खुशी से गुड्डी की पीठ थपथपाई और बोली ये हुई ना बात आज जब मैं लड़की वालों से बात करूँगी ना। तो ये भी बोल दूंगी। फिर मेरी और मुड़कर बोली- “इसलिए मैं तुमसे कह रही थी ना की शादी के 6-7 दिन पहले आ जाओ। तो अपने घर की तो रसम जो होगी सो होगी। मैं तुम्हें तुम्हारे ससुराल के लिए भी ट्रेन कर दूंगी…”

मेरी सांस वापस आई। मुझे मालूम था की जाड़े में कोई लगन वगन है नहीं। अगली लगन अप्रैल यानी साल भर से ज्यादा का इन्तजार और अगर 25 मई वाली बात बन गई तो बस सवा दो महीने के बाद। एकदम। मैंने तुरंत भाभी की बात में हामी भरी।

“आप एकदम सही सोच रही थी। मैंने कहा ना मैं ही बेवकूफ हूँ। अगर 25 की बात पक्की होती है ना तो मैं 18 को ही आपके हवाले हो जाऊंगा। पूरे सात दिन। जो भी रसम हो ट्रेनिंग हो सब आँख कान मूंद कर…”

“एकदम…” अबकी भाभी ने मेरा कान पकड़ा। और 27 की रात को मैं तुम्हें अपनी देवरानी के हवाले कर दूंगी। उसके बाद पूरा कब्ज़ा उसका…”

मैंने सब कुछ मना डाला। चलिए मेरी बात रह गई।

लेकिन भाभी ने फिर एक सवाल दाग दिया- “हाँ और वो आम के बाग वाली बात। गाँव में बारात तो वही रुकती है और वैसे भी बहुत बड़ी बाग है वो डेढ़ दो सौ पेड़ होंगे कम से कम। खूब घने दशहरी, कलमी सब तरहकर। और उस समय तो लदा लद भरे होंगे। और तुम्हें तो इतना परहेज है और अगर कहीं तुम्हारी साली सलहज को मालूम पड़ गया तो। फिर तो…”

मैंने उनकी बात काटकर कहा- “भाभी चलेगा बल्की दौड़ेगा। अरे नेचुरल और आर्गेनिक का जमाना है। तो मुझे आम के बाग से भी ऐसा कुछ नहीं। फिर ससुराल में साली सलहज टांग तो खिचेंगी ही यही तो ससुराल का मजा है…”

भाभी और गुड्डी मेरे इस धाराप्रवाह बात को सुनकर, एक दूसरे को देखकर आँखों ही आँखों में मुश्कुरायीं और फिर बोली- “तूने इतनी सब बातें बोल दी मैं कन्फुज हो गई। एक बार में सब साफ-साफ समझा दो तो मैं अभी लड़की वालों से बात करके डेट फाइनल कर दूँ…”

मैं समझ गया था की भाभी मुझे रगड़ रही है वो मेरे से सब सुनना चाहती हैं। मुझे मंजूर था। मैंने सब बातें एक बार फिर से दिमाग में बिठाई और उन्हें पकड़कर बोल दिया- “भाभी मेरी अच्छी भाभी, मुझे गरमी की गाँव में शादी, और आम के बाग में बारात सब मंजूर है। सौ बार मंजूर है। मुझे मई जून में पूरे अट्ठाईस दिन की छुट्टी मिल गई है, बीस मई से और अगर आप पच्चीस मई की शादी तय करती हैं तो मैं अट्ठारह को ही आपके पास आ जाऊँगा। तो बस अब आप इसी गरमी में फाइनल कर दीजिये ना। और बेस्ट होगा पच्चीस मई को…” भाभी मुश्कुरायीं और गुड्डी से बोली।

“देखा ये आदमी अभी दो घंटे पहले क्या बोल रहा था, ये नहीं वो नहीं छुट्टी नहीं। और अभी। दुल्हन पाने के लिए आदमी कुछ भी करने को तैयार रहता है…” गुड्डी ने खिलखिला कर जवाब दिया।

भाभी ने खुशी से मुझे बांहों में भर लिया। और बोली- “मैं आज ही सब पक्का कर दूंगी और तुम मेरी सारी बातें मान गए तो चलो एक बात तुम्हारे लिए…” फिर गुड्डी की ओर मुड़कर बोली- “हे तुम मत सुनना। उधर मुँह करो। कुछ सुना क्या?”

“नहीं आप कुछ बोल रही थी क्या? मुझे तो कुछ भी नहीं सुनाई दे रहा…” गुड्डी भी उसी अंदाज में बोली।

भाभी ने मेरे कान में कहा, लेकिन पूरे जोर से- “चल तेरा फायदा करवा देती हूँ। रोज रात में ठीक नौ बजे मेरी देवरानी तुम्हारे हवाले, पूरे बारह घंटे के लिए। बाहर से ताला बंद करके चाभी मैं अपने पास रखूंगी जिससे मेरी कोई छिनाल ननद आकर तंग ना करे। और अगर तुमने मेरी सब बातें अच्छी तरह मानी। और उसे ज्यादा तंग नहीं किया ना…”



“ज्यादा तंग मतलब भाभी…” मैंने पूछा और गुड्डी की ओर देखा।

वो मुश्कुरा रही थी और कान फाड़े सुन रही थी।

“अरे ज्यादा मतलब। तीन-चार बार से ज्यादा। अब नई दुलहन है और वो भी इत्ती प्यारी तो, तीन-चार बार तो बनता है।

“हाँ और जैसा मैं कह रही थी की तुम मेरी बात मानोगे तो। दिन में भी दो-तीन घंटे के लिए छोड़ दूंगी अपनी देवरानी को, बाकी समय दूर-दूर से ललचाना…”

फिर भाभी ने मुश्कुराकर गुड्डी से पूछा- “हे तूने तो कुछ नहीं सुना…” और बड़े भोलेपन से गुड्डी ने अपनी बड़ी-बड़ी आँखें नचाते हुए कहा- “आपने कुछ कहा था क्या? मैंने तो कुछ नहीं सुना…”
शीला भाभी तो जादूगर हैं...
बिगड़ी बात भी झट से बना देती हैं....
 
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शीला भाभी और होली की साँझ


गुड्डी वापस मुड़ी और रंजी से बोली- “यार तू स्कूटी निकाल मैं जरा पर्स भूल गई हूँ लेकर आती हूँ…” वो वापस मुड़ी, मुझे भी इशारा किया और मैं उसके पीछे-पीछे।

“क्या भूल गई थी?” मैंने गुड्डी से पूछा।



मुश्कुराकर मुझे बाहों में लेकर वो बोली- “एक बात और एक काम…”

फिर मुझे किस करके गुड्डी ने कहा-

“बात ये है कि आज तुझे मेरी कसम, शीला भाभी की खूब रगड़-रगड़कर हचक के करना, मेरे नाम का सवाल है। मेरा नाम मत डुबोना समझे और उन्हें गाभिन जरूर करना। पंद्रह दिन के अंदर अच्छी खबर आनी चाहिए। एक बात तुम्हें समझानी थी, भाभी ही असली चाभी हैं। सिर्फ मेरे घर में ही नहीं पूरे गाँव में उनकी चलती है और अगर एक बार तूने उनको फिट कर लिया ना तो समझ लो, चाहे मेरे मायकेवालियां हों या तेरी, सबका आगे-पीछे दोनों छेद पक्का…”

और जब तक मैं कोई सवाल करता, वो अलमारी की ओर मुड़ी, चंदा भाभी के दिए हुए हर्बल वियाग्रा वाले लड्डू निकाले, एक नहीं दो, और मेरे मुँह में डाल दिए। और अब तो मेरे बोलने का सवाल नहीं था। मुँह लड्डू से भरा था।

वही बोली- “यही काम मैं भूल रही थी। डबल डोज इसलिए कि सिर्फ उनकी लेना नहीं बल्की गाभिन भी करना है। और मैं इसलिए रंजी के साथ जा रही हूँ की फिर तुम निश्चिंत होकर रात भर उनकी लो। दूसरे इस छिनार तेरी बहन कम माल कि मुझे निगरानी भी करनी है। इसकी चूत में इत्ते चींटे काट रहे हैं तो कहीं किसी और से अपनी सील न तुड़वा ले। अब तो उसकी सील टूटेगी तो तेरे मूसल से और वो भी इतनी जबरदस्त कि उसकी चीख, पूरे मुहल्ले में सुनाई देनी चाहिए की उसकी फट गई। फिर तो उसके बाद देखना तुम्हारी किस-किस मायकेवालियों का नंबर लगवाती हूँ…”

बाहर से रंजी की आवाज आई और गुड्डी एक बार फिर जंगबहादुर को दबाकर, रंजी के साथ स्कूटी पे निकल गई। मैं और शीला भाभी दोनों को देख रहे थे। लेकिन रंजी के जाने के पहले शीला भाभी ने उसे मन भर अशीशा।

भाभी ने कसकर रंजी को अंकवार में बाँध रखा था। उनके हाथ प्यार से उसके गाल और बाल सहला रहे थे। पहली बार वो रंजी से अबकी मिली थी, लेकिन पक्का ननद भौजाई का रिश्ता बन गया था। और रंजी भी उनसे दुलार से चिपकी थी। फिर अचानक शीला भाभी ने रंजी को छेड़ने वाली निगाह से देखा और रंजी ने उसी तरह मुश्कुराती चिढ़ाती निगाह से जवाब दिया।


फिर क्या था अब तो शीला भाभी चालू हो गईं। अपने बड़े-बड़े जोबन से उसके किशोर उभार दबाती, मसलती, बोली-

“अरे रंडी, हमार मतलब रंजी रानी, जल्दी से जल्दी अपनी बुरिया में, अपने भइया का लण्ड ठोंकवाओ, अगवाड़े पिछवाड़े, (और गुड्डी ने वहीं मुझे अंगूठा और तरजनी मिला के चुदाई का इंटरनेशनल सिंबल दिखाया और रंजी ने भी पहले तो लम्बी सी जीभ निकालकर चिढ़ाया, और फिर फ्लाइंग किस), दिन रात चुदवाओ इस बहनचोद से, फिर अपने भय्या के साल्लों का नंबर लगवाओ, बनारस जाओ तो एक से एक मोटे लण्ड मिलें, मजे ले लेकर बुर चुदवाओ, गाण्ड मरवाओ, महीने में सौ का नंबर पार लग जाए तब पता चले कि हमार छिनार रंडी ननद है…”

रंजी भी कम नहीं थी, मुझे आँख मारकर बोली- “भाभी आपके मुँह में घी शककर, आपकी सब बात एकदम सही हो…”

“एकदम होगी, अरे हमको होलिका रानी का आशीर्वाद है, जौने ननद के होली के दिन आशीर्वाद दे दिया, ओकरे बुर में इतना लण्ड घुसंगे कि वो साल्ली छिनार गिनती भूल जायेगी…”



रंजी और गुड्डी स्कूटी से रंजी के घर की ओर निकल पड़ी और मैं और शीला भाभी किचन की ओर। शीला भाभी किचेन में खाना लगा रही थी और मैं उन्हें निहार रहा था।

पुष्ट उरोज, दीर्घ नितम्ब, मांसल देहयष्टि, कसी-कसी पिंडलियां और चपल चंचल नैन, एकदम पक्की प्रौढ़ा नायिका। शीला भाभी के चूतड़ जैसे दो तरबूज, कसर मसर करते, वो जरा भी हिलती तो उनकी गाण्ड की दरार एकदम साफ दिखती। और साड़ी भी कूल्हों के नीचे बंधी, तगड़ी मासंल जंघाएं जैसे याद दिला रही हों कितनी ताकत, कितनी मस्ती होगी इनके बीच।

रंजी और गुड्डी, शीला भाभी के मुकाबले मुग्धा नायिका कि श्रेणी में आती हैं, हिरनी की तरह चपल चंचल किशोरियां। कैशोर्य एक ऐसी उमर, बचपन और जवानी के बीच कि दहलीज पे खड़ी, जहाँ से कोई उन्हें हाथ पकड़कर जवानी कि रसीली गलियों में खींच ले। मुग्धा नायिका की पहचान ही यही है कि उसका थोड़ा मन करेगा, थोड़ा शर्मायेगी। काम का रस जैसे यौवन घट में लाज के भारी ढक्कन के नीचे बंद हो और मेरे जैसा कोई आकर उस ढक्कन को हटाकर, आज का घूघट खोलकर छक के उस रस का पान करे और उन किशोरियों को जवानी के सुख से परिचित कराये।

वहाँ आनंद उंगली पकड़कर उन्हें काम गली में चलना सिखाने का है। लेकिन रति का असली आनंद तो प्रौढ़ नायिका के ही साथ है, जो काम कला में प्रवीण हो, नैनों के साथ देह कि भाषा भी अच्छी तरह समझती हो और अखाड़े में बराबर कि टक्कर दे। और शीला भाभी सोलहो आना ऐसी ही लग रही थी तन से भी मन से भी।

केलि कला में अति चतुर, रति अरु पति सों हेत।

मोहि जाहि आनन्द ते, प्रौढ़ा वरनी सुचेत।

प्रौढ़ा के साथ काम मात्र देह का मिलन नहीं बल्की सभी इंद्रियों का सुख, सुनने का, बोलने का, नख क्षत, दन्त क्षत सब कुछ, यानि सम्पूर्ण काम रस है। वह केलि कला में चतुर होती है, प्रेमी को रति का आनंद देना जानती हैं। वह मदन के वशीभूत होकरलि काल में लज्जा पूरी तरह त्याग देती हैं।

शीला भाभी जब कुछ निकालने के झुकती तो उनके लो-कट चोली से जोबन, छलक-छलक बाहर आ रहे थे। उन गोरी मांसल बड़ी-बड़ी गोलाइयों के बीच कि खायीं देखकर जंगबहादुर की हालत खराब हो रही थी। और ऊपर से उनके कसर मसर करते चूतड़।, मैं और भाभी दोनों खाना निकालकर बाहर लाये। और सबसे बाद में मैंने भाभी को ही उठा लिया और बरामदे में ले आया।

हँसती खिलखिलाती भाभी बोली- “अरे लल्ला आई का कर रहे हो?”

“अरे भाभी, स्वीट डिश तो आप ही हो इसलिए आपको भी उठाकर खाने की मेज पे ले जा रहा हूँ…” मैंने जवाब दिया।

खाना खाने के लिए हम दोनों तख़्त पे बैठे थे लेकिन शीला भाभी मेरी गोद में थी, मेरी ओर मुँह किये हुए।



“भाभी आज खाना आपके हाथ से खाऊंगा…” मैंने बड़े अंदाज से शीला भाभी से कहा।



“ये कौन सी बड़ी बात है, अरे खिला दूंगी न देवर को, लेकिन क्यों?” उन्होंने भी बहुत प्यार से कहा।



“एक तो भाभी आपके हाथ से खाना दूना मीठा हो जाएगा, और दूसरे मेरे हाथ को कुछ और भी काम हैं…” मैंने छेड़ते हुए कहा, और अगले ही पल हाथ उनके लो-कट ब्लाउज़ में था। चट-चट करते हुए चुटपुटिया बटन सारी टूट के खुल गईं, और मेरे दोनों हाथ में लड्डू।
और ऊपर नीचे सब जगह से खाएंगी भी... और घोंटेंगी भी....
तभी इतने दिनों की आस पूरी होगी...
 
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कितना प्यारा रिश्ता है भाभी और देवर का
जैसे इक रिश्ता है मोती और जेवर का
देवर की दिल की बात भाभी जान जाती है
इसीलिये ही भाभी हर देवर को भाती है
देवर के दिल की मान ली बात
देवर को दे दी गुड्डी की सौगत

कोमल जी बहुत ही उत्कृष्ट अपडेट । आप एक बेहतरीन कहानीकार हैं और जानती हैं कि अपनी कहानी, शब्दों और मुहावरों से पाठकों को वह जानती कैसे बांधे.मैं निःशब्द हूं और ऐसी कहानी पढ़कर सम्मानित महसूस कर राही हूं
आपका रिश्ता भी इस थ्रेड के साथ प्यारा है....
हमेशा कविताओं में पिरो कर मन मोह लेती हैं...
 

motaalund

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शीला भाभी और होली की रात


खाना खाने के लिए हम दोनों तख़्त पे बैठे थे लेकिन शीला भाभी मेरी गोद में थी, मेरी ओर मुँह किये हुए।

“भाभी आज खाना आपके हाथ से खाऊंगा…” मैंने बड़े अंदाज से शीला भाभी से कहा।

“ये कौन सी बड़ी बात है, अरे खिला दूंगी न देवर को, लेकिन क्यों?” उन्होंने भी बहुत प्यार से कहा।

“एक तो भाभी आपके हाथ से खाना दूना मीठा हो जाएगा, और दूसरे मेरे हाथ को कुछ और भी काम हैं…” मैंने छेड़ते हुए कहा, और अगले ही पल हाथ उनके लो-कट ब्लाउज़ में था। चट-चट करते हुए चुटपुटिया बटन सारी टूट के खुल गईं, और मेरे दोनों हाथ में लड्डू।

क्या मस्त चूचियां थी, जीतनी बड़ी-बड़ी, उतनी ही कड़ी, एकदम पत्थर लेकिन खूब मांसल, गदराई। होली खेलने में मैंने शीला भाभी की चोली में हाथ भी डाला था और जोबन मीजा, मसला भी था लेकिन आज तो ब्लाउज़ का पर्दा एकदम गायब था और दोनों गद्दर जोबन सीधे मेरे मुट्ठी में थे। पहले मैंने सहलाया, फिर हल्के से दबाया और जब नहीं रहा गया तो जोर-जोर से मसलने रगड़ने लगा। चूचियों से भी ज्यादा मस्त थी, शीला भाभी कि चूची कि घुन्डियां। गजब। जैसे छोटे-छोटे जामुन हों।

मैं अंगूठे और तरजनी के बीच उन्हें मसलता रहा। लेकिन उन्हें छूते ही शीला भाभी की भी मस्ती से हालत खराब हो गई। वो सिसकियां भरने लगी। मेरे दोनों हाथ तो बिजी थे ही साथ में होंठ भी, कभी भौजाई के गालों का चूम्मा ले लेते, तो कभी नीचे झुक के चूची चूस लेते।

“बड़े लालची हो लाला। अरे भौजाई कहीं भागी नहीं जा जा रही है, पहले खाना तो खा लो…”

और वो अपने हाथ से पूड़ी और खीर मेरे होंठों के बीच डाल देती। साथ में उनके चूड़ियों की खन-खन, और पायल की रुनझुन मजे को और दूना कर रही थी।

मैंने जोर से उनके गालों को कचकचा के काटा और बोला- “अरे भौजी, एह मालपुआ के आगे सब फीका हौ…”


शीला भाभी, जैसा की मैंने कहा था कि पक्की प्रौढ़ा थी, वो कहाँ पीछे रहती जवाब में उन्होंने भी दूने जोर से मेरे गाल काट लिए और बोली-


“तुन्हु कौन कम नमकीन हउआ लाला…”

और अब जब मैंने उनके निपलों को खींचा तो जवाब में उन्होंने भी कसकर मेरे निपल पिंच कर दिए और बोली-


“अब तो तुमसे तिहरा रिश्ता है, तोहार तो जमकर रगड़ाई करे के पड़ी…”

“तिहरा कैसे भौजी…” मेरी समझ में नहीं आया इसलिए उनके गाल चूम के मैंने पूछ लिया।

एक कौर पूड़ी सब्जी मेरे मुँह में डालकर वो बोली- “एक तो भौजी वाला…
और जवाब में उनके गद्दर जोबन मीजते, मसलते मैं बोला- “एकदम… उहो सबसे मीठी वाली…”

“और गुड्डी, ऊ हमार ननद लगती है, लगती क्या है, है ही…” शीला भाभी फिर बोली।

मुझे गुड्डी की बात याद आई, भाभी ही चाभी हैं। एक बार इनको पटा लो फिर तो उसके मायके में, मायके में क्या पूरे गाँव में किसी कि हिम्मत नहीं ना बोलने की और जिस तरह से उन्होंने मेरी और गुड्डी कि शादी सेट करा दी थी, चट मंगनी वाली तर्ज पे, उसकी बात में पूरा दम था।

बात शीला भाभी ने ही आगे बढ़ायी- “तो जब ऊ ननद है तो तुम नन्दोई हुए ना। आई हुआ दूसरा रिश्ता…”

अबकी जवाब मैंने सीधे होंठों पे लिप्पी ली और जो कौर उन्होंने मुझे खिलाया था सीधे अब भाभी के मुँह में। फिर बोला-


“सही बात है भौजी, साली से सलहज अधिक पियारी, आखीरकार, सलहज सीखी सिखायी होती है, और सलहज को पटा लो, तो साली को वो पटवा ही देगी…”

“लाला, हो तुम समझदार, देखना तोहार कौनो साल्ली चूं चां करिहे न। अरे सबकी टांग फैलवाऊंगी तोहरे आगे…” खुश होकर शीला भाभी बोली।

“लेकिन आई तीसरा रिस्ता, भौजी इ समझ में नहीं आया…” मैंने सिर खुजाते हुए कहा।

“अरे लाला सोचो-सोचो, बहुत पढ़े हो दिमाग लगाओ जरा…” भाभी ने हँसते हुए उकसाया। शीला भाभी बड़ी जोर से खिलखिलायीं-

“अरे लाला तुम भी न बहुत सीधे हो, नहीं समझे न…”

“उंहु…” जोर से दायें बाएं सिर हिला के मैंने स्वीकार किया।



“अरे ऊ तोहार ममेरी बहन रंजी, ओहपे हमरे गाँव के लड़का, मरद सब चढ़ेंगे, हुमच-हुमच के साल्ली को चोदेंगे। और रंजी ही काहे, जितना तोहार चचेरी मौसेरी, फुफेरी बहन हैं सब पे, तो जब तोहार बहिन हमरे गाँव में चोदिहें त, तू लगबा गाँव वालन का, बोला- “

शीला भाभी पूरे जोश में थी। मेरे जंगबहादुर पे अपने मस्त चूतड़ को जोर-जोर से रगड़कर उन्होंने चिढ़ाया।

मैं चुप रहा।

“साल्ला, इ हौ तीसरा रिश्ता…” हँसकर शीला भाभी बोली।

मैंने पैंतरा बदला। शीला भाभी के गदराये जोबन को मुट्ठी में कसकर दबाते बोला- “भाभी, आई सोचो, नौ महीने के बाद जब इसमें छलछला के दूध भर जाएगा, तो कितना मस्त लगेगा…”

सोचकर शीला भाभी की आँखें भर आई और खुश होकर बोली- “लाला, जाऊँ ऊ दिन देखहिएं तौ हमें कितना खुशी होगी बता नहीं सकते…” खुशी छलछला रही थी।

लेकिन शीला भाभी तो शीला भाभी थी, अपने रंग में आकर बोली- “देवरजी जब दूध आएगा न तो एक से तुमको पिलाऊंगी और दूसरे से बिटिया को…”

“अरे भाभी, बरही में कतों हमको बुलाना भुला मत जाइयेगा…” मैंने छेड़ा।

शीला भाभी का जवाब हमेशा बीस रहता था था, बोली- “अरे लाला, तुम नहीं आओगे तो महतारी बहिन किसकी गरियाई जाएंगी…”

मेरे पास जवाब नहीं था इसलिए कचकचा के मैंने उनकी चूची काट ली।
भौजी मालपुआ और देवर नमकीन...
अब तो होली होगी रंगीन....
 

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शीला भाभी



“अरे भाभी, बरही में कतों हमको बुलाना भुला मत जाइयेगा…” मैंने छेड़ा।

शीला भाभी का जवाब हमेशा बीस रहता था था, बोली- “अरे लाला, तुम नहीं आओगे तो महतारी बहिन किसकी गरियाई जाएंगी…”

मेरे पास जवाब नहीं था इसलिए कचकचा के मैंने उनकी चूची काट ली।

शीला भाभी बोली-

“लाला हमको तो कोई शक नहीं है तुम्हरे जांघ के जोर में, आज तू गाभिन करी दोगे, और नौ महीने बाद नवंबर-दिसंबर में, सोहर होगा। यही खुशी में हमने तय किया है कि तोहरी माई बहिन के लिए खूब मोटे मोटे लण्ड का इंतजाम किया जाय। कौनो छिनार बचिए ना, सबकी हचक-हचक के चुदाई होगी तगड़े लण्ड से…”

मैंने मुँह बनाकर कहा- “भौजी हरदम मजाक…”

“मजाक नहीं एकदम सच बोल रही हूँ, एक-एक पे तीन चढ़ेंगे वो भी साथ-साथ। अच्छा आई बताओ कि गुड्डी की मम्मी से बात हुई थी तुम्हारी…” शीला भाभी बोली।

मेरी तो हिम्मत नहीं कि गुड्डी कि मम्मी बोलूं, मैं तो मम्मी ही बोलता था। और दूसरे शीला भाभी से ‘सेंसर’ करके भी बात बताने की मेरी हिम्मत नहीं थी।

तब तक शीला भाभी ने फिर मेरे गाल पे जोर से चिकोटी काटकर पूछा-

“अरे लाला, काहें लौंडिया की तरह शर्मा रहे हो बोला ना ऊ का बोली थी, तोहरे मायकेवालियों के बारात में आवे के बारे में…”

और मैंने जस का तस बोल दिया।

“छिनार के पूत, रंडी के, तुम्हारी जेतनी बहन, महतारी, चाची, बुआ, मौसी, जितना माल होगा तेरे घर में, सब आनी चाहिए बरात में। एक को भी घर में छोड़कर आये ना, ता निहुरा के गाण्ड मारी जायेगी और बिना दुलहिन के बिदा कर दूंगी। जिसको झांट ना आई हो वो भी, कौनो तोहार बहिन माई चाची, घर में मत छोड़कर आना कि उँहा ऊ दूध वाले से, घर के नौकरों से बुर चोदवाएं। सबके लिए मस्त इंतजाम रहेगा बोल देना छिनारों से। गाँव के लड़कों का तो फनफना रहा ही है, गाँव के मर्द भी अभी से सरसों का तेल लगाकर मुठिया रहे हैं…”

और फिर मुझसे गलती हो गई। शीला भाभी के जोबन मसलते मैंने बोल दिया- “भाभी, ऊ मजाक कर रही होंगी। उहो होली और भांग के नशे में थी और मैं भी…”

और शीला भाभी ने हाल खुलासा बयान कर दिया। वो बोली-

“लाला एक बात समझ ल्यो, तोहार सास इह मामले में एकदम पक्की हैं, मजाक भी करिहे ताऊ ओके सच समझो। अच्छा आई बताओ तोहार बरात, तोहार सास का कहीं थी कि कहाँ टिकी…”

मैं भला भूल सकता था- “भौजी, आम के बाग में, गाँव में, तीन दिन…”


“जबरदस्त आम की बाग है ऊ, एकदम गझिन। एक बाग में कई बाग। दिन में अँधेरा रहता है। गाँव के बाहर का कोई हो तो रास्ता भुलाय जाय और चारों ओर गन्ने और अरहर क खेत…” शीला भाभी बोली।

लेकिन गुड्डी ने मुझे ये सब बातें पहले बोली थी जब ये तय हुआ था कि सावन में मैं उसके साथ उसके गाँव जाऊँगा और गाँव कि अमराई में झूले का मजा लूंगा।

शीला भाभी ने बात आगे बढ़ायी- “गाँव क बात है। एहलिये, बारात में आदमी और औरत का इंतजाम अलग अलग होगा। ओहि बाग में ही। लेकिन ओकरे अंदर कई बाग हैं, तो जो लंगड़ा आम वाली बाग है और बहुते गझिन है, ओही में औरतन, लड़कियन का इंतजाम होगा। ऊ जगह जहां मरद लोग का इंतजाम है, उन्हा से थोड़ा अलग है लेकिन है बाग में ही, समझे…” मुश्कुराकर आँख मारकर भाभी बोली।

मैं अभी भी नहीं समझा।

“तुम न एकदमे सोझवा हो, बुद्धू…” मेरे गाल पे चिकोटी काटकर बोली वो।

“अरे उन्हीं तो कबड्डी तोहरी महतारी बहनी के साथ। अरे आखीरकार, स्वागत सत्कार करे, घराती वाले रहेंगे न, त बस, मौका देखकर जिसको जो माल पसंद आया, लड़का लोग तोहरी बहनिन पे हाथ साफ करिहें और मर्द तोहरी चाची, मौसी, बुआ पे। तम्बू से निकलकर अमराई में, गन्ने और अरहर के खेत में…”

उन्हें शायद लगा की बुरा लगा मुझे, इसलिए एक चुम्मी गाल पे लेकर बोली- “अरे एहमें बुरा माने कै कौन बात है, तोहार महतारी का नाम लाई लिहे एह बदे, दुल्हा का महतारी क तो सबसे ज्यादा गाली पड़ती है। अरे आई सोचो न कि बिना केहुके उनके चोदे तू पैदा हुए होगे…”

और फिर अपने बड़े-बड़े चूतड़, शीला भाभी ने मेरे जंगबहादुर पे रगड़े। वो थोड़ा उचकीं और मैंने उनकी साड़ी ऊपर सरका दी और साथ ही बिना कहे पजामा खुलकर नीचे सरक गया। मेरा लण्ड अब सीधे शीला भाभी के गाण्ड के छेद पे सेंटर किये था।

बिना बुरा माने उन्होंने और जोर से अपना चूतड़ मेरे खुले लण्ड पे रगड़ा और मेरे निपल को पिंच करके बोली- “अरे गुड्डी क सास, न जाने कहाँ कहाँ, गदहा, घोड़ा सब, तबे तो आई सांड जैसा लड़का पैदा हुआ, ता उनकी तो सबसे ज्यादा…”

फिर भाभी ने मुझे चूमकर कहा- “अरे लाला, तू हमार इतना बड़ा उपकार कर रहे हो, त आई तो हमार जिम्मेदारी हाउ कि तोहरे महतारी बहन के लिए मोटे मोटे हथियार का इंतजाम करीं…”

भाभी का बात मैं एकदम बुरा नहीं मान रहा था क्योंकी थोड़ी देर पहले गुड्डी कि मम्मी, मेरा मतलब मम्मी भी तो इसी तरह बल्की इससे भी बढ़कर, वो तो सीधे मुझी से नंबर…”



और भौजाई खाना खिलाये और गारी ना हो, तो बीच-बीच में गारी -
बच्चे के बाप को बुलाना बनता है...
 

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गारी


उन्हें शायद लगा की बुरा लगा मुझे, इसलिए एक चुम्मी गाल पे लेकर बोली-

“अरे एहमें बुरा माने कै कौन बात है, तोहार महतारी का नाम लाई लिहे एह बदे, दुल्हा का महतारी क तो सबसे ज्यादा गाली पड़ती है। अरे आई सोचो न कि बिना केहुके उनके चोदे तू पैदा हुए होगे…”

और फिर अपने बड़े-बड़े चूतड़, शीला भाभी ने मेरे जंगबहादुर पे रगड़े। वो थोड़ा उचकीं और मैंने उनकी साड़ी ऊपर सरका दी और साथ ही बिना कहे पजामा खुलकर नीचे सरक गया। मेरा लण्ड अब सीधे शीला भाभी के गाण्ड के छेद पे सेंटर किये था।


बिना बुरा माने उन्होंने और जोर से अपना चूतड़ मेरे खुले लण्ड पे रगड़ा और मेरे निपल को पिंच करके बोली-

“अरे गुड्डी क सास, न जाने कहाँ कहाँ, गदहा, घोड़ा सब, तबे तो आई सांड जैसा लड़का पैदा हुआ, ता उनकी तो सबसे ज्यादा…”

फिर भाभी ने मुझे चूमकर कहा- “अरे लाला, तू हमार इतना बड़ा उपकार कर रहे हो, त आई तो हमार जिम्मेदारी हाउ कि तोहरे महतारी बहन के लिए मोटे मोटे हथियार का इंतजाम करीं…”

भाभी का बात मैं एकदम बुरा नहीं मान रहा था क्योंकी थोड़ी देर पहले गुड्डी कि मम्मी, मेरा मतलब मम्मी भी तो इसी तरह बल्की इससे भी बढ़कर, वो तो सीधे मुझी से नंबर…”



और भौजाई खाना खिलाये और तो बीच-बीच में गालियां-




चमचम बटुआ रतन पहाड़ी केकरे केकरे घर जाए रे

अरे हमरे देवरे क बहिनी अरे हमरे देवर का माई बज्जर छिनार,

हमारे भैया से रोज चुदवाए रे।

अगवाड़े मरवाये, पिछवाड़े मरवाये गदहन से चुदवाये रे,

चीठी आई गई शहर बनारस से चिट्ठी आई गई।

अरे देवर बहनचोद चिठ्ठी पढ़ला कि न,


अरे देवर मादरचो चीठी बँचला कि ना

तोहरा बहना छिनार तोहरी माई छिनार,

तोहरी मौसी छिनार तोहरी बुआ छिनार

कइली तुर्क पठान, खोजें मर्द जवान

ओनके चोदे देवर हमार, चोदे उन्हीं के सार


चोदें गुड्डी के भतार, गाण्ड मारे बार-बार।



***** *****

अरे ऊँचे चबूतरा पे पे बैठे आनंद लाला, बैठे देवर राजा,

अरे हमरे देवरू बहनचोद, देवरू मादरचोद

करे अपनी बहनी का मोल, अरे करी अपनी रंजी का मोल

अरे जोबना का मांगे पांच रुपैया, अरे छिनरो का बुरिया बड़ी अनमोल।

देवर साला भंड़ुआ है, अपनी बहनी चुदाये आनी माई चुदाये


देवर साल्ला गंडुआ है,

तोहरी बहनी तोहरी माई जब्बर छिनार,

अरे एक जाए आगे दूसर पिछवाड़े, बचा
नहीं कोई नौउआ कहार।



और इसी बीच पूरा खाना भाभी ने खिला डाला। मैं नखड़ा करता तो बोलती, चल तो तेरे पिछवाड़े के छेद से ठेल देती हूँ जाएगा तो पेट में ही।

हम दोनों ने मिलकर बरतन किचेन में वापस वापस रखे। शीला भाभी के साथ मैं भी उनके कमरे में पहुँच गया। लेकिन मुझे कुछ याद आया और मैंने भाभी से बोला कि मैं बस अभी आता हूँ। मैं अपने कमरे में आ गया, और वही काम करने लगा जो रोज गुड्डी अपने कमरे में करती थी।

मुझे मालूम था कि घर में सिर्फ भाभी थी और वो ऊपर भैया के साथ रात भर ‘बिजी’ रहने वाली थी। लेकिन फिर भी मैंने, वही काम किया जो जो गुड्डी अपने कमरे में करती थी, जब वो रात बिताती थी। मैंने तकिये लगाकर, ऊपर से चद्दर इस तरह ओढ़ा दी की लगे कोई सो रहा है। यहाँ तक कि अपनी स्लीपर्स भी बिस्तर के नीचे रख दी और फिर शीला भाभी के कमरे की ओर चल दिया।

मुझे गुड्डी से किया वायदा याद आ रहा था।

गुड्डी ने कहा था मेरा नाम मत डुबोना, मतलब मुझे खूब हचक के हुमच के आज भाभी को चोदना था।

दूसरी बात ये थी कि मैंने गुड्डी से वायदा किया था कि मैं शीला भाभी को गाभिन करके रहूँगा। और गुड्डी ने उसके लिए मुझे जरूरी सूचना भी दे दी थी। शीला भाभी के पीरियड्स खतम हुए चौदह दिन हो गए थे ये बात गुड्डी ने ही बतायी थी और ये भी कि उनकी पीरियड कि साइकिल 28 दिन कि थी। और इतना तो मुझे मालूम ही था की किसी भी औरत के गाभिन होने के लिए ये समय सबसे उत्तम होता है। यानि पीरियड शुरू होने के चौदह दिन पहले चुदवाने पे गाभिन होने के चांसेज अधिकतम होते हैं।

रही बात मेरी। तो मैंने भी दोपहर से, होली खतम होने के बाद अपनी रबड़ी, मलायी भाभी के लिए बचाकर रखी थी। जिससे वो खूब गाढ़ी रहे और पहले धक्के में ही उनके गाभिन होने में कोई कसर बाकी ना रहे। और अगर पहली बार कसर रह भी गई तो मुझे कम से कम उनके ऊपर तीन बार चढ़ाई करनी थी, वो भी डिस्चार्ज में कम से कम एक घंटे के गैप के साथ। जिससे हर बार वो खूब गाढ़ा रहे।

और सबसे बड़ी बात ये थी की भाभी ही चाभी हैं, ये बात मुझे गुड्डी ने बार-बार बतायी थी और अब मैं खुद भी समझ गया था। गुड्डी के घर, गाँव में उनकी खूब चलती थी। यहाँ तक कि खाने के समय की उनकी बातों से लग गया था की गुड्डी कि मम्मी, मेरा मतलब मम्मी से भी वो बहुत क्लोज हैं और अगर मुझे ससुराल में साली, सलहज का मजा लेना था (मम्मी की बात मानूं, तो सास का भी नंबर लग सकता था) तो शीला भाभी का खुश रहना जरूरी था।

जब मैं शीला भाभी के कमरे में पहुँचा तो वो चादर के अंदर थी। बत्ती बुझी थी। लेकिन पिछवाड़े की खिड़की पूरी खुली थी। और पीछे से आम के पेड़ों के पीछे होली के पूनम के चाँद की चांदनी ने कमरे में पूरा उजाला कर रखा था। मैंने दरवाजा अंदर से बंद किया और चद्दर के अंदर घुस गया।

उम्मीद से भी दूना, रेडी फार एक्शन, शीला भाभी पूरी तरह अनावृत थी, कपड़ों के बंधन से मुक्त। और उनकी भूखी उंगलियों ने पल भर में मेरे कपड़े भी उतार फेंके। और कुछ देर में चादर भी हट गई। सिर्फ, चांदनी की चादर हम दोनों के शरीर पे थी, सहलाती।
मुहूर्त भी था पूर्णिमा का..
अब तो गाभिन होने की गारंटी...
 

motaalund

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बहुत खूब। देवर भाभी के इस प्रसंग के लाजवाब व्याख्या के जश्न मनाने के लिए कुछ पंक्तियां

रात भर जगाती तुम्हारी उंगलियाँ
नींद भगाती तुम्हारी उंगलियाँ
सूखी हो या गीली जैसी भी हो देह
आग लगाती तुम्हारी उंगलियाँ
बड़ी चिपचिपी हैं तम्हारी उंगलियाँ
चाशनी पगी हैं तुम्हारी उंगलियाँ
कैसा ये नशा मुझे हो रहा है।
लबं से लगी हैं तुम्हारी उंगलियाँ...


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इन थिरकती उँगलियों का जादू.. वाकई कमाल है...
 

komaalrani

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Super update
Thanks so much, will try to post more updates of Shila Bhabhi soon 🙏🙏🙏🙏🙏
 
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komaalrani

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बहुत खूब। देवर भाभी के इस प्रसंग के लाजवाब व्याख्या के जश्न मनाने के लिए कुछ पंक्तियां

रात भर जगाती तुम्हारी उंगलियाँ
नींद भगाती तुम्हारी उंगलियाँ
सूखी हो या गीली जैसी भी हो देह
आग लगाती तुम्हारी उंगलियाँ
बड़ी चिपचिपी हैं तम्हारी उंगलियाँ
चाशनी पगी हैं तुम्हारी उंगलियाँ
कैसा ये नशा मुझे हो रहा है।
लबं से लगी हैं तुम्हारी उंगलियाँ...


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kya baat hai aapki baaten aur pic dono shila bhaabhi pe fit bathte hain and i had posted updates in Chhutaki too, just have a look

 

komaalrani

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Dear Komaal Ji
I am still waiting for the missing episode which is about to come.
Regards
may be next few parts will satiate you.

When i started episodes related to Shila Bhbhai i had to cull it out and present it in manner that at least some connectivity comes out. That is why her role in getting wedding of Anand and Guddi, episode related to Sadhu and Bhabhut and other posts had to be shared so anybody who does not recall or have not read the novel, will still be able to enjoy it. Now the story of Shila Bhabhi is going to reach its culmination and I am sure you will enjoy it. Thanks..
 
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