• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Erotica रंग -प्रसंग,कोमल के संग

komaalrani

Well-Known Member
22,129
57,324
259


भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी

Phagun ke din chaar update posted

please read, like, enjoy and comment






Teej-Anveshi-Jain-1619783350-anveshi-jain-2.jpg





तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी
 

komaalrani

Well-Known Member
22,129
57,324
259
काली रात



night-dark.jpg




चाँद भी अब आसमान के दूसरे कोने में पहुँच रहा था लेकिन अपना सफर पूरा करने के पहले, मुड़-मुड़कर हम तीनों को देख रहा था और उसकी टार्च की पूरी रौशनी हम पर पड़ रही थी। पर हम तीनों के लिए तो समय, चाँद, रात जैसे सब थम गई थी, बल्की थी ही नहीं।

दूर कहीं साढ़े तीन बजे का घंटा बजा।

चाँद ने एक बार फिर मुँह मोड़ लिया और चलते-चलते हम तीनों को ( मैं, गुड्डी और रंजी ) रात की काली स्याही की चादर ओढ़ा गया। हम तीनों एक दूसरे से गुथे, लदे, चिपके, थके सो गए। खुली खिड़की से आती हवा अब हमें थपकी देकर लोरी सुना रही थी।

रात का वह सबसे काला प्रहर था, आखिरी प्रहर। प्रत्युषा अभी भी आँख मीचे दूर सो रही थी। नभचर, थलचर सब सो रहे थे, सिवाय उन शिकारी जानवरों के जिनकी क्षुधा शांत नहीं हुई थी। यह वह प्रहर था जब सब कुछ अघटित, घटित होता है।



बाहर काले भीषण बादलों ने विधु की मुश्कें कस दी थी, चांदनी घुट-घुटकर सिसक-सिसक कर आखिरी सांसें ले रही थी। आसमान में अन्धकार की काली स्याही पुती हुई थी। डर कर तारों ने भी अपने मुँह छिपा लिए थे। एकदम काला ठोस अँधेरा, घना, जहरीला। हवा भी एकदम रुक गई थी। अमलताश, मंजरी से लदा आम, सब गुमसुम खड़े थे, सांस रोके।



अंदर, अचानक पलंग के एक कोने पे लेटे मेरी आँख खुली। दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, मन अचानक आशंकित हो उठा, मैंने आँखें खोली तो गुड्डी और रंजी नींद में दुबकी, आश्वस्त सो रही थी। पर बाहर रात एकदम काली हो गई थी।



कुछ था, कुछ गड़बड़ था, बस होने वाला था अगले ही पल, जैसे दुष्काल कोबरा बनकर अँधेरे में फुफकार मार रहा हो और सिर्फ उसकी फुफकार की आवाज सुनाई पड़ रही हो, दिख कुछ न रहा हो बस वैसे ही।

मैंने चौकन्नी नजरों से कमरे के चारों ओर निगाह दौड़ाई। सब कुछ नार्मल था। धीमे से सरक कर मैं पलंग से नीचे उतरा, और एकदम फर्श से चिपटकर क्राल करते हुए छत पर। पूरा अँधेरा था। हाथ को हाथ न सूझे ऐसा। घुप्प, काला, दमघोंटू अँधेरा।


बस मुझे लग रहा था की कुछ गड़बड़ है। बल्की बहुत गड़बड़ है। और उस काले अँधेरे में खतरा कहाँ से आ जाए पता नहीं।

मैं एकदम छत से चिपक कर, चारों ओर देखते हए रेंग रहा था। कुछ देर में ही आँखें अँधेरे की आदी हो गईं थी और उस काले ठोस धुंधलके को भेदकर पढ़ने की कोशिश कर रही थी। मैं आधा छत पार कर चुका था, और तभी बिजली चमकी।

और दामिनी ने मेरी सहायता कर दी। छत से सटे हुए, आम की काली डाल के नीचे कोई था। बहुत लम्बा लहीम शहीम, तगड़ा और जैसे मैं अँधेरे में देखने की कोशिश कर रहा था, वैसे ही वो भी कोशिश कर रहा था, लेकिन उसकी आँखें कमरे की खुली खिड़की में झाँकने कोशिश कर रही थी। खिड़की से अंदर देखने की कोशिश कर रही थी।

एक काली देह से चिपकी शर्ट, काली पैंट और चेहरे पे कैमोफ्लाज पैंट, कोई प्रोफेशनल हत्यारा, और जिस तरह से वो पीछे चिपक कर आम के पेड़ की परछाईं की आड़ लेकर खड़ा था, अगर छत पे रौशनी भी होती तो उसको देखना बहुत मुश्किल थी। गनीमत थी कि बादलों ने अपनी पकड़ थोड़ी हल्की की और चांदनी की एक छोटी सी किरण अब छत के उस हिस्से पे पड़ रही थी।

मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। वह जरूर हथियार से लैस होगा।

उसकी निगाह खिड़की से चिपकी थी और गनीमत थी की वो छत पर नहीं देख रहा था। छत से चिपक कर रेंगते, मैं अब उससे करीब 10-12 मीटर दूर रह गया था। दो कदम रेंग करके मैं हल्के से सिर उठकर उसकी टोह लेता, इस समय मेरे कान ही मेरी आँखें बन गए थे।

उस घने अँधेरे में उसका सिलयुहेट सिर्फ भूरे रंग के एक साये की तरह था, और कभी सिर्फ बाहरी आउटलाइन दिखती और जब बादल हल्के से हटते तो वो थोड़ा ज्यादा दिख जाता। मेरी सांसें रुकी हुई थी और मेरा पूरा ध्यान बस उसी पर था। मैं इन्तजार कर रहा था उसकी अगली हरकत का। वह कमरे की ओर बढ़ेगा, या वही से कुछ?

रेंगना रोक कर मैं अब चुपचाप इन्तजार कर रहा था। और वह भी इन्तजार कर रहा था। चाँद की रोशनी थोड़ी सी बढ़ी और मेरा दिल दहल गया, उसके कमर में एक बेल्ट थी जिसमें ढेर सारे चाकू थे, अलग-अलग साइज और शेप के। उसने फुर्ती से एक चाकू निकालकर हाथ में ले लिया था और उसे तौल रहा था। बिना गरदन मोड़े एक पल उसने इधर-उधर देखा, और फिर उसका हाथ हवा में उठा, आँखें अभी भी खुली खिड़की से चिपकी थी और बिजली की तेजी से चाकू कमरे की ओर, हवा में तैरता हुआ।


और मेरी सांस रुक गई, कहीं कमरे में गुड्डी, और फिर कई चीजें एक साथ हुईं।
 
Last edited:

komaalrani

Well-Known Member
22,129
57,324
259
हमला




night-dark-R.jpg



चाँद की रोशनी थोड़ी सी बढ़ी और मेरा दिल दहल गया, उसके कमर में एक बेल्ट थी जिसमें ढेर सारे चाकू थे, अलग-अलग साइज और शेप के। उसने फुर्ती से एक चाकू निकालकर हाथ में ले लिया था और उसे तौल रहा था। बिना गरदन मोड़े एक पल उसने इधर-उधर देखा, और फिर उसका हाथ हवा में उठा, आँखें अभी भी खुली खिड़की से चिपकी थी और बिजली की तेजी से चाकू कमरे की ओर, हवा में तैरता हुआ।


और मेरी सांस रुक गई, कहीं कमरे में गुड्डी, और फिर कई चीजें एक साथ हुईं।

ग्लाक के चलने की आवाज हुई, गोली की आवाज ने उस निस्तब्ध शान्ति को जैसे चीर कर रख दिया, मैंने सारी सावधानी की ऐसी की तैसी कर दी, और दौड़ते हुए सीधे उसपर हमला बोल दिया, मेरा सर, हाथ घुटना सब उस हमले में मेरे साथ थे।

गोली उसके दायें कंधे में लगी थी और लग रहा की हड्डी, लिगामेंट सब कुछ अपने साथ लेकर गई है। दायां हाथ बिलकुल बेकार हो गया है। लेकिन उससे टकराने के पहले मैंने देखा कि उसका ध्यान अभी भी खिड़की की ओर है, दर्द का कुछ भी असर उसके ऊपर नहीं हुआ और पलक झपकने के पहले, उसके बाएं हाथ ने दूसरा चाकू निकाल लिया था और हवा में उठा था।

और जिस समय मैं उससे टकराया, शायद वो मेरी जिंदगी का आखिरी पल होता। अपनी सारी ट्रेनिंग प्रैक्टिस मैंने उस समय लगा दी।

मैंने अपने अब तक के सारे गुस्से को अपने हमले में बदल दिया था। मेरी पूरी देह अस्त्र हो गई थी, मेरा सिर गोली की तेजी से उसके पेट के ऊपरी भाग से टकराया, मेरा घुटना उसके दोनों पैरों के बीच फोकस था और मेरे सँड़सी से हाथों ने उसके घायल हाथ को पकड़कर मोड़ दिया।

मैं यह नहीं कहूँगा की मेरा हमला पूरा बेकार हो गया लेकिन उसने बचने के साथ-साथ काउंटर अटैक भी कर दिया। जैसे उसके ऊपर दर्द का असर ही न हो। अपने घुटने से एक पिस्टन की तरह मेरी रिब्स पर उसने हमला किया लेकिन सबसे घातक बात यह थी की उसके बायें हाथ का चाकू अब बजाय खिड़की के सीधे मेरी तरफ पूरी तरह एक्सपोज्ड गरदन की ओर आ रहा था।

सब कुछ जैसे स्लो मोशन में तब्दील हो गया था। लेकिन गोली और मेरे हमले के साथ उसपर पीछे से भी हमला हुआ और वो दो लोग थे। एक ने फांसी के फंदे से भी ज्यादा जोर की जकड़ से अपने हाथ को उसकी गरदन में फँसा रखा था और गैरोट की तरह वह ट्रेकिया को दबा रहा था। उसके दिमाग में खून पहुँचना तेजी से बंद हो रहा था और सांस भी। और दूसरे ने चीते की तेजी से अपने दोनों हाथों से बाएं हाथ को जिसमें उसने चाकू पकड़ रखा था को पकड़कर मरोड़ दिया और साथ ही अपने जूते से पीछे से उसके घुटने पर तेजी से वार किया।

यह सब लगभग एक साथ हुआ। अब हम तीन थे, गोली से उसका दायां हाथ बेकार हो चुका था लेकिन तब भी उसने मैदान नहीं छोड़ा। उसका गला दबा हुआ था। एक हाथ बेकार था, और दूसरा हाथ, जिसमें चाकू था, को दोनों हाथों से पकड़कर मरोड़ा जा रहा था, और दायें घुटने पे किक पड़ चुकी थी।

मेरे हेड बट्ट ने उसके पेट के अंदर जबरदस्त चोट पहुँचाई थी। इसके बावजूद वो पीछे हटने वाला नहीं था। हाँ। अब हमले का फोकस मैं नहीं रह गया था। उसकी पहली प्राथमिकता गरदन छुड़ाने की थी और जब तक ये बात मैं समझ के काउंटर अटैक करूँ उसने जोर से अपनी एड़ी से पीछे, जिसने उसकी गर्दन दबा रखी थी, उसके घुटने पे दे मारी। वो तो पीछे वाला अलर्ट था लेकिन तब भी गरदन पर पकड़ धीमी हो गई।

वो दुबारा वही ट्रिक अपनाता, उसके पहले मैंने पूरी ताकत से अपने दोनों हाथों से उसके पैर को पकड़कर उठा लिया और एंकल पर से मोड़ने लगा। अब बाजी उसके हाथ से फिसल रही थी। बाएं हाथ की कलाई कड़कड़ा के टूट गई और चाकू, छन्न की आवाज के साथ नीचे गिर पड़ा और मेरी निगाह चाकू पे जाकर पड़ी।



‘के’ का निशान… के… कालिया, काली रात।
 

motaalund

Well-Known Member
9,165
21,659
173
लगता है मुझे फागुन के दिन चार फिर से पोस्ट करनी पड़ेगी,

यह पार्ट फागुन के दिन चार में था, ...हाँ थ्रिलर ऐक्शन के साथ,... जब गुड्डी, रंजी के घर गयी और थी और उस की सहेली दिया और जिया भी आयी थीं. मैंने बस कुछ इधर का उधर कर के पोस्ट कर दिया, ... इस सपने के प्रसंग को शीला भाभी के प्रसंग से जोड़ के वरना यह पूरी तरह से कॉपी पेस्ट ही है,...

आपको अच्छा लगा,


धन्यवाद
ऐसा हो सकता है...
क्योंकि अंतिम तीन-चार सौ पृष्ठ जो कि पेन ड्राइव पर रखे थे... वो अब एक्सेस नहीं हो रहा...
मौजूदा फाइल मेल से रिट्रीव किए गए हैं...

अगर दुबारा पोस्ट करने की जहमत उठाएंगी तो कहानी पूरी करने में सहायक सिद्ध होगी...
धन्यवाद...
 

motaalund

Well-Known Member
9,165
21,659
173
आपने वो सपना नहीं देखा होगा जो आनंद बाबू ने देखा

एक भी शब्द लाइन नयी नहीं जुडी

आप कह रहे थे की आप के फागुन के दिन चार पूरी नहीं है तो शायद यह प्रसंग छूट गया हो,... इसलिए मैं सोच रही हूँ की फागुन के दिन चार को फिर से पोस्ट करने के लिए,


बिना या एकाध चित्र के साथ और बिना कुछ जोड़े घटाए

शायद बहुत से लोग अब कुछ कुछ बिसरा रहे हों , हालंकि इन्सेस्ट न होने से शायद व्यूज या कमेंट का अभाव रहे ,... फिर भी सोचने में क्या जाता है।
नेकी और पूछ पूछ...
 

motaalund

Well-Known Member
9,165
21,659
173
असल में आनंद बाबू थोड़े ढीले टाइप के जीजा हैं

उनकी होने वाली पत्नी, उनकी भाभी भी सलहज भी शीला भाभी और सास तक सब उकसाती हैं


पर ' वो बुरा मान जाएगी तो ' ' ये ठीक नहीं है ' वाले टाइप के हैं।

अब ससुराल बनारस की है तो सुधर जाएंगे ये उम्मीद की जा सकती है।
आनंद बाबू किसी की भावनाओं को ठेंस नहीं पहुँचाना चाहते....
 

motaalund

Well-Known Member
9,165
21,659
173
वैसे शीला की जवानी वाला गाना भी था और डांस भी फागुन के दिन चार में, ...याद करिये
लगता है दो हजार से ज्यादा पृष्ठ में फैले कहानी के कुछ हिस्सों का विस्मरण हो गया है...
 

motaalund

Well-Known Member
9,165
21,659
173
पना बनारस की ससुराल का -

समधन का नंबर




…” मम्मी मेरी ओर इशारा करके बोली। फिर उन्होंने और मिर्च डाली-

“और ऊ जो तोहार सबसे कच्ची कली है, जो तू कह रहे थे छुटकी से भी छोट है, त कहाँ गाँव के लौंडन क मन इतना जल्दी भरी। उसको यहीं छोड़ देना, और चौथी की रसम अबकी 6 दिन के बाद निकली है, त चौथी में तोहार बहिनिया भी लौट जाएंगी उनहिंन के साथ। तब तक गाँव क मजा ले लेगी, गन्ना क खेत, अरहर क खेत, तू कह रहे थे न एकदम छोट है, त देखना जब लौटेगी त तोहार लड़कौर बहिन हैं न उंहु क नंबर डकाय देयी…” मम्मी बोली।

हमारे इलाके में चौथी की रस्म में, बिदाई के चार दिन बाद, दुल्हन के घर से उनके परिवार के लड़के लड़कियां चौथी लेकर आते हैं और दुल्हन की मायके वालों हो जाती है।



“हाँ मम्मी हाँ, एकदम सही आइडिया…” मेरी दोनों सालियां समवेत स्वर में बोली।

मेरे पास कोई च्वायस थी क्या, मैंने भी हामी भर दी। मुझे लगा की अब कल के इंगेजमेंट पर कोई खतरा नहीं लेकिन मम्मी ने दूसरा पत्ता फेंक दिया, और वो भी अपनी बेटियों पे।

मेरी सालियों से वो बोली- “अरे सालियों, तुम सबको खाली अपनी ननदों के मजे की पड़ी है, उनके लिए दो-दो, तीन-तीन का इंतजाम कर दिया और मेरी समधनों का क्या होगा? उनकी भी तो लिस्ट बनाओ इस साले से कबूलवाओ की…”



“मम्मी, ननदें हमारी, भाई हमारे इसलिए उनका इंतजाम हमने कर दिया। अब समधन आपकी, देवर, नंदोई आपके, उनका इंतजाम आप करिये। और जहां तक जीजा से कबुलवाने का सवाल है, अप समझती क्या हैं इनको, जब बहनों के लिए कबूल कर लिया तो इनके लिए भी कबूल कर लेंगे। और लिस्ट हम बना देंगे…”


मेरी दोनों सालियां एकसाथ खिलखिलाते बोली।



और मम्मी फिर चालू हो गईं अपनी समधन के लिए। गालियों की मात्रा और उनका तीखापन एकदम से बढ़ गया, क्योंकी अब बुआ और मम्मी मैदान में थी और टारगेट पर उनकी समधन थी। और एक पल के लिए अल्पविराम हुआ तो मम्मी ने वो सवाल कर दिया जिसका जवाब मैं सपने में भी ना में नहीं दे सकता था।

“बोल मेरी बेटी को प्यार करता है?” गुड्डी के गाल पे प्यार से हाथ फेरते उन्होंने पूछा।

“हाँ, मम्मी, अपनी जान से भी ज्यादा, किसी भी चीज से ज्यादा…”


“मेरी बात मानते हो?” अगले सवाल का जवाब भी हाँ में ही होना था।


“हाँ मम्मी, सपने में भी मैं आपकी बात को मना नहीं कर सकता…” मैंने हुंकारी भरी।

और मम्मी तुरंत अपने लेवल पर आ गई- “मादरचोद, छिनार के, तेरी माँ का भोंसड़ा। बोल जो मैं बोलती हूँ। बिना रुके, बिना सोचे, बोल…”

“जी, मम्मी…”

“बोल, मैं मादरचोद हूँ…” मम्मी ने तुरंत बोला।
“मैं, मादरचोद हूँ…” मेरे पास बोलने के अलावा कोई रास्ता भी नहीं था।

पांच बार उन्होंने यही मुझसे कहलवाया। मंझली अपना रिकार्डर लेकर तैयार थी और मेरी सब बातें उसके मोबाइल में रिकार्ड हो गईं।

लेकिन सबसे तीखी मिर्ची छुटकी थी और उसकी अपनी बुआ से कुछ ज्यादा ही लगी बुझी थी। “बुआ, जीजू कितने अच्छे हैं, एकदम श्रीमान सत्यवादी। जाने कितने होते होंगे, लेकिन सबके सामने उन्होंने पांच बार कबूल किया की…”

लेकिन उसकी बात पूरी होने के पहले ही बुआ ने काट दी- “चुप, जीजा की चमची। अरे अगर मादरचोद होने में शर्म नहीं, चोदने में शर्म नहीं, सटासट उनके भोंसड़े में पेलने में शर्म नहीं, तो मादरचोद कहलाने में कौन शर्म…”




मम्मी और गुड्डी दोनों मुश्कुरा रही थी। और मम्मी ने बुआ की बात की ताईद की, गुड्डी से- “सही तो कह रही हैं तेरी बुआ, तेरी सारी ससुरालवालियां कितनी अच्छी हैं, चाहे ननदें हो, चाहे सास, किसी को मना नहीं करती। तो मेरे इस 6 फिट के दामाद को क्यों मना करेंगी?”

और गुड्डी भी इस आल राउंड पेस अटैक में चालू हो गई- “मम्मी सही कह रही हो, मैं तो होली में जो गई थी मैंने खुद देखा। इनके यहाँ खर्चा बहुत कम है, चाहे दूध वाला हो, धोबी हो यहाँ तक की मोची भी, बस महीने में जिसका जितना हुआ उसके हिसाब से, ले जाता है…”



“बिल के बदले में बिल…” मझली चहकी।



लेकिन जहाँ तक मम्मी का सवाल था, जब तक मामला ‘खुल्लमखुल्ला’ न हो हो तब तक क्या बात?
ये रिकॉर्डिंग तो करारनामे से बढ़कर है....
आनंद बाबू की अपनी आवाज...
जब चाहें जहाँ चाहें.. फिर से सुनवाई जा सकती है...
लेकिन सास तो सास... सालियां भी....एकदम खुराफाती....
 

motaalund

Well-Known Member
9,165
21,659
173
मम्मी



लेकिन जहाँ तक मम्मी का सवाल था, जब तक मामला ‘खुल्लमखुल्ला’ न हो हो तब तक क्या बात?

मेरी आँखें बस उन्हें ही निहार रही थी, होंगी 35-36 साल की लेकिन लगती थी गुड्डी की बड़ी बहन या भाभी की तरह ही, खूब गोरी, दीर्घ नितम्बा, पूरी तरह + साइज वाली, ब्लाउज़ 36डीडी, साइज को छुपाने में एकदम असमर्थ, बल्की और उभर रहा था। कूल्हे से बंधी साड़ी से सिर्फ गोरा चिकना पेट ही नहीं दिख रहा था, बल्की खूब गहरी नाभि भी और जिस तरह से वो बैठीं थी उनकी गोरी मांसल पिंडलियां पूरी तरह खुली थी, आलमोस्ट घुटनों तक।



लेकिन सबसे बड़ी बात उनकी जो एक डामिनेटिंग स्टाइल थी की बस, उनकी बात चुपचाप मानकर सरेंडर करने का अपना मजा था और उसके साथ ही एक जबरदस्त नमक भी था और एक शैतानी भरी नटखट मुश्कान उनकी आँखों में भी और होंठों में भी।

और वो ये भी देख रही थी की मैं किस निगाह से उन्हें देख रहा हूँ, और वो फिर चालू हो गईं- “अच्छा गुड्डी की हर बात में हाँ करेगा न?” उन्होंने तीर फेंका।

“एकदम मम्मी…” और मैंने हाथ खड़े कर दिए, लेकिन वहां एक ट्रैप था।

“जोरू के गुलाम, सिर्फ जोरू की हर बात में हाँ करेगा और मेरी?” और उसी के साथ वो झुकीं, पल्लू गिरा और मेरी निगाह ‘वहीं’ अटक गई।



मुझे शीला भाभी की बात याद आ गई- “असली मजा तो भोंसड़ी वालियों में है…” लेकिन सम्हल कर तुरंत जवाब दे दिया- “लेकिन सिर्फ गुड्डी क्यों, आपकी भी …” मुश्कुराकर मैंने बात सम्हाली।

लेकिन यहाँ तो हर ओर से तीर बरस रहे थे। पीछे से मंझली और छुटकी एक साथ बोली- “और जीजू हमारी?”




“एकदम, किसकी हिम्मत है जो साली की बात पे ना करे…” पीछे मुड़कर मैं बोला, लेकिन तब तक मेरी निगाह बुआ की ओर पड़ी और मैंने तुरंत कोर्स करेक्शन किया- “सारे ससुराल वालियों की गुलामी…” हँसकर मैं बोला।

लेकिन गुड्डी ने कैच कर लिया- “मम्मी, एकदम इनका टेस्ट करके देख लीजिये, वरना वहां के लोगों को कोई भरोसा नहीं…” वो शोख मुश्कुराकर बोली।

“एकदम। सुन मादरचोद, मैं जो कहूँगी मेरी हर बात पे हाँ बोलना, और वो भी सिर्फ हाँ नहीं, पूरी बात खुलकर। और बच्चू एक बात और कान और गाण्ड दोनों खोलकर समझ लो। मैं जबरदस्ती नहीं करती, लेकिन जिस चीज के लिए तुम एक बार हाँ बोल दोगे न, फिर मुकर नहीं सकते, मजाक नहीं है। फिर तो मैं जबरन अपने सामने करवाऊँगी तुमसे वो, बनारस वाली हूँ…”

“हाँ मम्मी, हाँ, टेस्ट करके देख लीजिये न…” मन में कांपते हुए और ऊपर से मुश्कुराते हुए मैंने हामी भरी।

“बोल चोदेगा मेरी समधन को?”

“हाँ, मम्मी चोदूंगा…”

“बोल चोदेगा, अपनी…”

“बोल मारेगा गाण्ड, हचक-हचक के, अपनी…”

किस-किस बात की हामी मम्मी ने नहीं भरवाई, और एक से एक बढ़कर गन्दी, किंकी और मुझसे पूरे डिस्क्रिप्शन के साथ कहलवाई। 10 क्या, गिन कौन रहा था, 20-25 तो कम से कम रही होंगी।

हाँ फिर मम्मी के चेहरे पे जो खुशी चमकी, उसने मेरा सारा टेंशन खत्म कर दिया। मेरे पास आकर प्यार से मेरा उन्होंने गाल सहलाया और जोर से पिंच करके बोली-

“मान गई मैं, तुम मेरे परफेक्ट दामाद हो, न सिर्फ जोरू के बल्की सासु के भी गुलाम, लेकिन याद रखना अगर एक चीज भी इसमें से मुकरे तो शादी कछ जबरदस्ती…”



“नहीं मम्मी नहीं, आपकी बात टालने की मैं सोच भी नहीं सकता…” उनकी बात बीच में काटता बोला मैं। माहौल कौन खराब कर सकता था। इत्ती मुश्किल से तो वो खुश हुई थी।
जोरू नहीं ससुराल के हर जन(लोग) की बात माननी होगी...
तभी गुड्डी के साथ-साथ सास और सालियों का भोग लग पाएगा...
 

motaalund

Well-Known Member
9,165
21,659
173
मम्मी





हाँ फिर मम्मी के चेहरे पे जो खुशी चमकी, उसने मेरा सारा टेंशन खत्म कर दिया। मेरे पास आकर प्यार से मेरा उन्होंने गाल सहलाया और जोर से पिंच करके बोली- “मान गई मैं, तुम मेरे परफेक्ट दामाद हो, न सिर्फ जोरू के बल्की सासु के भी गुलाम, लेकिन याद रखना अगर एक चीज भी इसमें से मुकरे तो शादी कछ जबरदस्ती…”

“नहीं मम्मी नहीं, आपकी बात टालने की मैं सोच भी नहीं सकता…” उनकी बात बीच में काटता बोला मैं। माहौल कौन खराब कर सकता था। इत्ती मुश्किल से तो वो खुश हुई थी।

मम्मी का मूड कुछ अच्छा हुआ, मुझे लगा की गुड्डी की शादी में आयी बाधा टली, और उसी मूड में मम्मी ने प्यार दुलार से मेरा गाल सहलाते हुए, मेरी हिम्मत बधाई,...

" अरे दुलरुआ, तू ये सोच रहे हो न की कहीं तोहार महतारी मना कर दें, न दें तो,... तो उसकी चिंता छोड़ दो, अरे हम हम हैं तोहार साली, सलहज,... बुआ सास, चचिया सास, दो दो मौसिया सास,... "

छुटकी न जितनी उमर में छोटी थी उत्ती ही तीखी हरी मिर्च,... कनखियों से में उसे देख रहा था और उसे ये मालूम था, मुस्कराते हुए वो जान बूझ के अपनी कच्चे टिकोरे और उभार के मुझे ललचा रही थी और उसका असर सीधे जंगबहादुर,... पर पड़ा और वो तन के,...



किसी तरह से मैंने शॉर्ट्स पर अपने दोनों हाथ रख के बल्ज को छिपाने की कोशिश की, पर मेरी स्साली, पक्की स्साली थी. छुटकी ने अपनी माँ से और आग लगायी,...

" मम्मी, आपने इनकी महतारी का नाम लिया और जीजू का सोच के तनतना गया, ... क्यों जीजू, जब नाम सुन के इतना मज़ा आ रहा है तो झूठ मूठ का बहाना काहें बना रहे थे,... "



मैं क्या लड़कियां ब्लश करती हैं एकदम लाल गुलाबी,... कस के दोनों हाथों से छिपाते गुड्डी की मम्मी से बोला,...

" नहीं नहीं मम्मी ऐसा कुछ नहीं है "

पर शादी के बाद जितनी जोर से लोगों को डांट नहीं पड़ती उतनी जोर से शादी के पहले पड़ गयी, गुड्डी ने जोर से हड़काया,...

" तो क्या मेरी छोटी बहन झूठ बोल रही है ? "




और साथ ही मंझली को इशारा किया,...

बस जब तक मैं कुछ समझता, मंझली ने मेरे दोनों हाथ पकड़ कर न सिर्फ हटा दिए बल्कि प्यार से टनटनाये जंगबहादुर को हलके से सहला भी दिया,...

शार्ट में कुतुबमीनार, पूरे बित्ते भर के बम्बू से तम्बू तना था,...



लेकिन मेरी सास मेरे साथ थीं, वो और गुड्डी की बुआ ध्यान से उसे तने खंम्भे को देख रही थीं , और मम्मी मेरी ओर से गुड्डी से बोलीं,...

" अरे तो का हुआ अपनी सास के चूतड़ देखी है कैसे जबरदस्त, कसर मसर, कसर मसर, और दोनों जोबन ३८ नंबर से कम नहीं होंगे लेकिन एकदम तने रहते हैं बिना बनियान के चोली पहनती हैं ,... तो कोई भी होगा सोच के गरमा जाएगा, तोहरे चाचा, फूफा मौसा कुल अभी से तेल लगा लगा के मुठिया रहे हैं समधिन के स्वागत के लिए, इसलिए हम एक ही शर्त रखे थे, बरात में जितनी लड़कियां औरतें हो सब आवें, भले रतजगा आगे पीछे कर लें,... "

और अब फिर प्यार से मेरा गाल सहलाते हुए मुझको थोड़ा डांट के थोड़ा प्यार से समझाने लगी,...

" अरे तोहार महतारी के सोच के अगर ये खड़ा हो गया तो एहमें लजाने शरमाने छुपाने क कौन बात है, खड़ा हो गया तो खड़ा हो गया. अब तोपना ढांकना मत , और दूसर बात तो अगर ये सोच रहे हो की तोहार महतारी उछले कूदें मना करें तो कउनो चिंता करने की बात है न तो हार सास सलहज, साली सब हैं न। बस ये तोहार बुआ सास, चचिया मौसिया सास कुल पकड़ के निहुराय देंगी, पेटीकोट उठाय के कमर तक,... बस और तोहार साली सलहज पकड़ के वैसे,... और फिर जब महतारी क सोच सोच के टनटना रहा है"



" तो मातृभूमि देख के तो एकदम उछल पडेगा क्यों जीजू " ये मंझली थी.

अपनी मंझली बेटी की बात सुन के मम्मी, मेरी सास मुस्करायी, और पूछी मुझसे आगे का करोगे,...

" करूँगा मैं " मुश्किल से मेरे बोल निकले,...

" का करियेगा साफ़ साफ़ बोलिये ना " छुटकी ने फिर आग में घी डाला, ... मैंने आग्नेय नेत्रों से उसकी ओर देखा लेकिन वो षोडसी मुस्कराती चिढ़ाती उकसाती रही,...

और बुआ एक बार फिर से दुर्वासा का रूप धारण करें, मैंने बोल दिया, चोदूगा,....

अरे किसको,... छुटकी ने न सिर्फ मुझसे पूछा बल्कि अपने टिकोरों को भी सहला दिया जैसे कह रही हो जीजू ये चाहिए तो साफ़ साफ़ बोल दो,...





और मैंने बोल दिया,...

अपनी महतारी को,... माँ को,... माँ का क्या,

मम्मी भी अब छेड़ने में छुटकी का साथ दे रही थीं वो साफ़ साफ़ देख रही थीं की छुटकी कैसे अपनी कच्ची अमिया को,... मुझे चिढ़ाते बोलीं

" माँ का क्या,... अब यह मत कहना की चूत,... दो दो तोहरे ऐसे मर्द निकाल चुकी हैं, ... सैकड़ों चढ़े उतरे होंगे बोलो,... "

" माँ का, ... का,... भोंसड़ा,... " धीमे से मेरे मुंह से निकला,

बस अबकी छुटकी अलफ़,... क्या जीजू इत्ते धीरे से बोलते हैं तो करेंगे कित्ते धीरे से, सब बात पूरी एक साथ बोलिये और थोड़ा जोर से,...

" मैं चोदुँगा अपनी माँ का भोंसड़ा" कहने से बचने का कोई चारा भी नहीं था,...

लेकिन दोनों सालियों ने पांच बार कहलवाया,... खूब जोर से और हर बार मुझे दिखा के मंझली ने अपने मोबाइल में रिकार्ड भी किया। और रिकार्डिंग सुनाई भी।



" मलाई पूरी की पूरी अंदर ही गिराना मेरी समधन के,... गाभिन हो जाएंगी तो हो जाएंगी,... " मम्मी ने कहा।

पर गुड्डी थी न आज एकदम आपने मायके वालियों के साथ,... बोली,

" अरे नहीं मम्मी उसकी कोई चिंता नहीं,... इनके होने के बाद ही उन्होंने आपरेशन करवा लिया था इन्होने खुद ही मुझसे बोला था "

" ठीक तो किया तेरी सास ने, बेचारी नाड़ा तो बाँध नहीं पाती हैं इतने यार है एक आएगा दूसरा जाएगा,... और रबड़ में मजा आधा तिहा फिर खर्चा, और गोली में अलग परेशानी ,... " मम्मी बोलीं,...
पर शादी के बाद जितनी जोर से लोगों को डांट नहीं पड़ती उतनी जोर से शादी के पहले पड़ गयी, गुड्डी ने जोर से हड़काया,...
गुलामी की शुरुआत अभी से हो चुकी है.. यानि शादी के पहले से हीं....
 
Top