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Erotica रंग -प्रसंग,कोमल के संग

komaalrani

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भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी

Phagun ke din chaar update posted

please read, like, enjoy and comment






Teej-Anveshi-Jain-1619783350-anveshi-jain-2.jpg





तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी
 

motaalund

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हमला




night-dark-R.jpg



चाँद की रोशनी थोड़ी सी बढ़ी और मेरा दिल दहल गया, उसके कमर में एक बेल्ट थी जिसमें ढेर सारे चाकू थे, अलग-अलग साइज और शेप के। उसने फुर्ती से एक चाकू निकालकर हाथ में ले लिया था और उसे तौल रहा था। बिना गरदन मोड़े एक पल उसने इधर-उधर देखा, और फिर उसका हाथ हवा में उठा, आँखें अभी भी खुली खिड़की से चिपकी थी और बिजली की तेजी से चाकू कमरे की ओर, हवा में तैरता हुआ।


और मेरी सांस रुक गई, कहीं कमरे में गुड्डी, और फिर कई चीजें एक साथ हुईं।

ग्लाक के चलने की आवाज हुई, गोली की आवाज ने उस निस्तब्ध शान्ति को जैसे चीर कर रख दिया, मैंने सारी सावधानी की ऐसी की तैसी कर दी, और दौड़ते हुए सीधे उसपर हमला बोल दिया, मेरा सर, हाथ घुटना सब उस हमले में मेरे साथ थे।

गोली उसके दायें कंधे में लगी थी और लग रहा की हड्डी, लिगामेंट सब कुछ अपने साथ लेकर गई है। दायां हाथ बिलकुल बेकार हो गया है। लेकिन उससे टकराने के पहले मैंने देखा कि उसका ध्यान अभी भी खिड़की की ओर है, दर्द का कुछ भी असर उसके ऊपर नहीं हुआ और पलक झपकने के पहले, उसके बाएं हाथ ने दूसरा चाकू निकाल लिया था और हवा में उठा था।

और जिस समय मैं उससे टकराया, शायद वो मेरी जिंदगी का आखिरी पल होता। अपनी सारी ट्रेनिंग प्रैक्टिस मैंने उस समय लगा दी।

मैंने अपने अब तक के सारे गुस्से को अपने हमले में बदल दिया था। मेरी पूरी देह अस्त्र हो गई थी, मेरा सिर गोली की तेजी से उसके पेट के ऊपरी भाग से टकराया, मेरा घुटना उसके दोनों पैरों के बीच फोकस था और मेरे सँड़सी से हाथों ने उसके घायल हाथ को पकड़कर मोड़ दिया।

मैं यह नहीं कहूँगा की मेरा हमला पूरा बेकार हो गया लेकिन उसने बचने के साथ-साथ काउंटर अटैक भी कर दिया। जैसे उसके ऊपर दर्द का असर ही न हो। अपने घुटने से एक पिस्टन की तरह मेरी रिब्स पर उसने हमला किया लेकिन सबसे घातक बात यह थी की उसके बायें हाथ का चाकू अब बजाय खिड़की के सीधे मेरी तरफ पूरी तरह एक्सपोज्ड गरदन की ओर आ रहा था।

सब कुछ जैसे स्लो मोशन में तब्दील हो गया था। लेकिन गोली और मेरे हमले के साथ उसपर पीछे से भी हमला हुआ और वो दो लोग थे। एक ने फांसी के फंदे से भी ज्यादा जोर की जकड़ से अपने हाथ को उसकी गरदन में फँसा रखा था और गैरोट की तरह वह ट्रेकिया को दबा रहा था। उसके दिमाग में खून पहुँचना तेजी से बंद हो रहा था और सांस भी। और दूसरे ने चीते की तेजी से अपने दोनों हाथों से बाएं हाथ को जिसमें उसने चाकू पकड़ रखा था को पकड़कर मरोड़ दिया और साथ ही अपने जूते से पीछे से उसके घुटने पर तेजी से वार किया।

यह सब लगभग एक साथ हुआ। अब हम तीन थे, गोली से उसका दायां हाथ बेकार हो चुका था लेकिन तब भी उसने मैदान नहीं छोड़ा। उसका गला दबा हुआ था। एक हाथ बेकार था, और दूसरा हाथ, जिसमें चाकू था, को दोनों हाथों से पकड़कर मरोड़ा जा रहा था, और दायें घुटने पे किक पड़ चुकी थी।

मेरे हेड बट्ट ने उसके पेट के अंदर जबरदस्त चोट पहुँचाई थी। इसके बावजूद वो पीछे हटने वाला नहीं था। हाँ। अब हमले का फोकस मैं नहीं रह गया था। उसकी पहली प्राथमिकता गरदन छुड़ाने की थी और जब तक ये बात मैं समझ के काउंटर अटैक करूँ उसने जोर से अपनी एड़ी से पीछे, जिसने उसकी गर्दन दबा रखी थी, उसके घुटने पे दे मारी। वो तो पीछे वाला अलर्ट था लेकिन तब भी गरदन पर पकड़ धीमी हो गई।

वो दुबारा वही ट्रिक अपनाता, उसके पहले मैंने पूरी ताकत से अपने दोनों हाथों से उसके पैर को पकड़कर उठा लिया और एंकल पर से मोड़ने लगा। अब बाजी उसके हाथ से फिसल रही थी। बाएं हाथ की कलाई कड़कड़ा के टूट गई और चाकू, छन्न की आवाज के साथ नीचे गिर पड़ा और मेरी निगाह चाकू पे जाकर पड़ी।




‘के’ का निशान… के… कालिया, काली रात।
ये कालिया के काले कारनामे ... काली रात में..
लेकिन अब किसी ट्रेंड बंदे के हत्थे चढ़ा है...
जिसे अपनी होने वाली संगिनी को बचाने का भी ध्यान है...
तो अब तो कालिया का कालिया मर्दन होना तय है....
 

motaalund

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फागुन के दिन चार के अंतिम हिस्सों के कुछ अंश मैने इसी थ्रेड पर पोस्ट करने शुरू किये है

देखिएगा


काली रात
इस प्रसंग को पढ़ते हुए कलेजा मुँह को आ गया...
क्या कालिया कामयाब होगा ..
या फिर आनंद बाबू अपनी प्रियतमा को सुरक्षित....
 

komaalrani

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इस प्रसंग को पढ़ते हुए कलेजा मुँह को आ गया...
क्या कालिया कामयाब होगा ..
या फिर आनंद बाबू अपनी प्रियतमा को सुरक्षित....
या आनंद बाबू की प्रियतमा ने आनंद बाबू के प्राणो की रक्षा की ?

ग्लाक पिस्टल की भी तो आवाज हुयी थी.

अगले भाग में,

कालिया इसके पहले दो बार इस कहानी में कामयाब रह चुका है और पुलिस को उसकी हवा भी नहीं लगी।
 

arushi_dayal

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Very well said in honour of our lovely poetess Arushi darling 💋 sister.I also second ur lovely welcoming comments..
Just btw Komal & Arushi r my 2 arms,one left second right.
Raji ko to apni dono arms (behne)hi chahiye.
कोमल जी...मैंने मानसून मेलोडिज़ पर आपके अपडेट देखा और पढ़ा Iआपने फिर साबित कर दिया कि आपका कोई मुकाबला नहीं है। आप कामुक लेखन का आदर्श प्रतीक हैं. आपका लेखन सदैव दिल और दिमाग को आनंदित करता है।
आपके हालिया अपडेट से प्रेरित होकर मैंने कई दिनों के बाद कुछ पंक्तियाँ लिखी हैं। ये पंक्तियाँ मानसून के इस मौसम में एक युवा विवाहित महिला के विचारों को व्यक्त करती हैं। आशा है आप और मेरे सभी पाठक हमेशा की तरह सराहना करेंगे

बारिश का मौसम और बूंदो की बौछार
बाँहों का घेरा और साजन का प्यार
झीनी सी कुर्ती में मेरे तने हुए चूचक
मेरी असीम प्यास के बने हैं सुचक
साजन के पेंट में बड़ा सा उभार
सजनी के होठों को है बेकरार
सिले से मौसम में सांसो की गर्मी
तपते हुए बदन और होठों की नरमी
होठों से होठों का मीठा सा चुम्बन
उभरी हुई चुचो का हाथो से मर्दन

IMG-3559
बूंद-बूंद टपक रहा शहद योनि द्वार से
चाट लो अमृत सारा जीभ की तलवार से
चूस के कठोर लिंग को नसो को मैं उभार दू
सुर्ख लाल होठों से मैं गहराई तक प्यार दूं

IMG-3558
कठोरता को अपनी मेरे जिस्म में उतार दो
वक्ष होंठ विशाल नितंब हर अंग पे प्यार दो
लिपटे रहे हम रात पूरी एक दूसरे के संग मे
भीग जाए हम रात पूरी एक दूसरे के रंग में
अंग से अंग मिलते रहे प्यार के जज़्बात हो
मेरे पूरे यौवन पे तेरे प्यार की बरसात हो

IMG-3557
 

arushi_dayal

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आपके इस फोरम पर पॉलिसी के कारण अनुपस्थित रहने से ...
हम सब व्यथित थे...
और आपकी नव निर्मित कृतियों से महरूम हो गए थे....
आपके फिर से फोरम पर दर्शन से चित प्रसन्न हो उठा...
आशा है कि आगे से आपकी कविताओं का रसास्वादन का अवसर हमें निरंतर मिलता रहेगा...

सराहनीय है कोमल रानी का आपके प्रति सपोर्ट ...
Thanks for your kind words. Have just updated few lines recently written. Hope you enjoy them
 

Rajizexy

Punjabi Doc, Raji, ❤️ & let ❤️
Supreme
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कोमल जी...मैंने मानसून मेलोडिज़ पर आपके अपडेट देखा और पढ़ा Iआपने फिर साबित कर दिया कि आपका कोई मुकाबला नहीं है। आप कामुक लेखन का आदर्श प्रतीक हैं. आपका लेखन सदैव दिल और दिमाग को आनंदित करता है।
आपके हालिया अपडेट से प्रेरित होकर मैंने कई दिनों के बाद कुछ पंक्तियाँ लिखी हैं। ये पंक्तियाँ मानसून के इस मौसम में एक युवा विवाहित महिला के विचारों को व्यक्त करती हैं। आशा है आप और मेरे सभी पाठक हमेशा की तरह सराहना करेंगे

बारिश का मौसम और बूंदो की बौछार
बाँहों का घेरा और साजन का प्यार
झीनी सी कुर्ती में मेरे तने हुए चूचक
मेरी असीम प्यास के बने हैं सुचक
साजन के पेंट में बड़ा सा उभार
सजनी के होठों को है बेकरार
सिले से मौसम में सांसो की गर्मी
तपते हुए बदन और होठों की नरमी
होठों से होठों का मीठा सा चुम्बन
उभरी हुई चुचो का हाथो से मर्दन

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बूंद-बूंद टपक रहा शहद योनि द्वार से
चाट लो अमृत सारा जीभ की तलवार से
चूस के कठोर लिंग को नसो को मैं उभार दू
सुर्ख लाल होठों से मैं गहराई तक प्यार दूं

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कठोरता को अपनी मेरे जिस्म में उतार दो
वक्ष होंठ विशाल नितंब हर अंग पे प्यार दो
लिपटे रहे हम रात पूरी एक दूसरे के संग मे
भीग जाए हम रात पूरी एक दूसरे के रंग में
अंग से अंग मिलते रहे प्यार के जज़्बात हो
मेरे पूरे यौवन पे तेरे प्यार की बरसात हो

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Awesome super duper gazab bestest lines, proud of u Aru sis
👌👌👌👌👌👌👌
💯💯💯💯💯💯
✅✅✅✅✅


200-2
 
Last edited:

motaalund

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कोमल जी...मैंने मानसून मेलोडिज़ पर आपके अपडेट देखा और पढ़ा Iआपने फिर साबित कर दिया कि आपका कोई मुकाबला नहीं है। आप कामुक लेखन का आदर्श प्रतीक हैं. आपका लेखन सदैव दिल और दिमाग को आनंदित करता है।
आपके हालिया अपडेट से प्रेरित होकर मैंने कई दिनों के बाद कुछ पंक्तियाँ लिखी हैं। ये पंक्तियाँ मानसून के इस मौसम में एक युवा विवाहित महिला के विचारों को व्यक्त करती हैं। आशा है आप और मेरे सभी पाठक हमेशा की तरह सराहना करेंगे

बारिश का मौसम और बूंदो की बौछार
बाँहों का घेरा और साजन का प्यार
झीनी सी कुर्ती में मेरे तने हुए चूचक
मेरी असीम प्यास के बने हैं सुचक
साजन के पेंट में बड़ा सा उभार
सजनी के होठों को है बेकरार
सिले से मौसम में सांसो की गर्मी
तपते हुए बदन और होठों की नरमी
होठों से होठों का मीठा सा चुम्बन
उभरी हुई चुचो का हाथो से मर्दन

IMG-3559
बूंद-बूंद टपक रहा शहद योनि द्वार से
चाट लो अमृत सारा जीभ की तलवार से
चूस के कठोर लिंग को नसो को मैं उभार दू
सुर्ख लाल होठों से मैं गहराई तक प्यार दूं

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कठोरता को अपनी मेरे जिस्म में उतार दो
वक्ष होंठ विशाल नितंब हर अंग पे प्यार दो
लिपटे रहे हम रात पूरी एक दूसरे के संग मे
भीग जाए हम रात पूरी एक दूसरे के रंग में
अंग से अंग मिलते रहे प्यार के जज़्बात हो
मेरे पूरे यौवन पे तेरे प्यार की बरसात हो

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महिला पुरुष के इस छंद से प्रेम रस की बारिश कर दी आपने....
और शृंगार रस तो रसराज है...
बहुत अच्छे से भावनाओं को दर्शाया है...
साथ चित्रों का समन्वय भी बहुत सुंदर है....

अति-उत्तम....
 
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motaalund

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या आनंद बाबू की प्रियतमा ने आनंद बाबू के प्राणो की रक्षा की ?

ग्लाक पिस्टल की भी तो आवाज हुयी थी.

अगले भाग में,

कालिया इसके पहले दो बार इस कहानी में कामयाब रह चुका है और पुलिस को उसकी हवा भी नहीं लगी।
अब तो दोनों दो जिस्म एक जान हैं....
 
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komaalrani

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ऐसा हो सकता है...
क्योंकि अंतिम तीन-चार सौ पृष्ठ जो कि पेन ड्राइव पर रखे थे... वो अब एक्सेस नहीं हो रहा...
मौजूदा फाइल मेल से रिट्रीव किए गए हैं...

अगर दुबारा पोस्ट करने की जहमत उठाएंगी तो कहानी पूरी करने में सहायक सिद्ध होगी...
धन्यवाद...
देखिये कोशिश करुँगी

और न हो तो कुछ भाग अंत वाले यही पर गुड्डी से जुड़े,

फागुन के दिन चार का अंत में कविता भी थी , और साथ में थी कुछ शहरों की दास्तान भी , पूर्वांचल की व्यथा कथा भी और सारे चरित्रों के बारे में एक पोस्ट स्क्रिप्ट भी, आनंद, गुड्डी, रंजी, रीत, करन सभी

कविता एक बनारस से जुडी थी केदारनाथ सिंह जी की, शुरू की कुछ लाइने इस तरह से थीं

इस शहर में वसंत अचानक आता है,
और जब आता है तो मैंने देखा है,
लहरतारा या मडुवाडीह की तरफ से,
उठता है धूल का एक बवंडर,
और इस महान पुराने शहर की जीभ
किरकिराने लगती है

और सबसे अंत में कबीर की लाइने, थीं इस कहानी में , बनारस की बात बिना कबीर के पूरी नहीं हो सकती,...

सुखिया सब संसार है, खाए और सोये।
दुखिया दास कबीर है, जागे और रोये।
 
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