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Erotica रंग -प्रसंग,कोमल के संग

komaalrani

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भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी

Phagun ke din chaar update posted

please read, like, enjoy and comment






Teej-Anveshi-Jain-1619783350-anveshi-jain-2.jpg





तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी
 

motaalund

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लिस्ट





" मलाई पूरी की पूरी अंदर ही गिराना मेरी समधन के,... गाभिन हो जाएंगी तो हो जाएंगी,... " मम्मी ने कहा।

पर गुड्डी थी न आज एकदम आपने मायके वालियों के साथ,... बोली,

" अरे नहीं मम्मी उसकी कोई चिंता नहीं,... इनके होने के बाद ही उन्होंने आपरेशन करवा लिया था इन्होने खुद ही मुझसे बोला था "

" ठीक तो किया तेरी सास ने, बेचारी नाड़ा तो बाँध नहीं पाती हैं इतने यार है एक आएगा दूसरा जाएगा,... और रबड़ में मजा आधा तिहा फिर खर्चा, और गोली में अलग परेशानी ,... " मम्मी बोलीं,...

और मम्मी ने बात मेरी ओर मोड़ दिया, " और एक बार जब तोहार खूंटा घुस जायेगा तोहरी महतारी के भोसड़े में तो बस हम लोग तोहार सास सलहज सब छोड़ देंगी तो बस दोनों चूँची पकड़ के रगड़ रगड़ के चोदना,... एक बार हमरे दामाद क मूसल घोंटे के बाद तो खुदे वो चूतड़ उठा उठा के चुदवायेगी,... "



" देखो मम्मी कितनी अच्छी हैं तुम्हारा कितना ख्याल रखती हैं " गुड्डी ने मुझे मक्खन लगाया,... पर लगा मम्मी को, खुश हो के मुझसे बोलीं,...

" गाँव में दर्जन भर से ऊपर है जो हमसे पहले से कहे हैं बयाना बट्टा दिए है फिर गुड्डी के चाचा, फूफा , दो दो मौसा है, वो सब भी,... लेकिन हमने भी तय कर लिया था पहला नंबर हमरे दामाद का लगेगा, वो भी सबके सामने,... जिससे बाद मैं कउनो छिनरपन न करें, गुड्डी तोहार साली, सलहज, सास,... सब के सामने,... "

छुटकी बोली, " अरे नहीं मम्मी, उसके साथ वीडियो रिकार्डिंग भी करेंगे, ताकि सनद रहे और वक्त बेवक्त काम आये,... मैं खुद करुँगी एकदम क्लोज ऊपर और सामने से भी जिससे जीजू का और उनकी माँ दोनों लोगो का चेहरा एकदम साफ़ साफ आये "

फिर छुटकी मुझसे बोलीं,... " और जीजू आपकी उस रिकारीडिंग की कोई फ़ीस भी नहीं लुंगी आपसे और ये सोचिये की मेरे चाचा, मौसा, फूफा सब इंतजार करते रहजाएंगे,... लेकिन हम सालियों ने आपका नंबर पहले लगवा दिया। "



" अरे तोहरे चाचा, फूफा, मौसा का भी नंबर आएगा, और फिर खाली इनकी महतारी थोड़ी आएँगी, बुआ, चाची ,मौसी, तब तक उन लोगों की चढ़ाई होगी। " बुआ ने मामला साफ़ कर दिया।


तब तक बुआ ने अपने पति के फायदे की कोई बात उन्हें दिलायी- “अरे गुड्डी क माँ, कुल मजा अपने दमादै के दे दोगी क्या? गुड्डी के फूफा, तोहरे नंदोई, गुड्डी के चाचा, मौसा। मामा…”


“अरे ई कौन मना करेगा, एहमें तो इसके चाची, मौसी, बुआ सबका फायदा है…” फिर उन्होंने बात का रुख मेरी ओर मोड़ा और बोली- “सुनो, जैसे तुमने अपने सालों का मन रखा, अपनी सब बहनें उनके नाम लिख दी, वैसे ही गुड्डी के फूफा हैं, गुड्डी के चाचा हैं जब से तुम्हारी बात चली है तब से सबका तन्नाया है, और फिर गाँव के जितने मर्द हैं सब रिश्ते से कोई गुड्डी क चचा कोई फूफा लगेगा। तुम तो पहले ही बोल चुके हो हाँ, तब क्या पूछना, मैंने तो सबको बोल भी दिया है की मेरा दामाद बहुत अच्छा है, कभी मना नहीं करेगा। मंझली चल लिस्ट बना…”

मम्मी मुस्करा कर बोलीं।



और फिर मुझे एक-एक का नाम, उम्र, रिश्ता फिगर सब कुछ उसी तरह लिखवानी पड़ी, जैसे मैंने कुछ देर अपनी कजिन्स का लिखवाया था। और साथ में छेड़खानी, गालियां।

और अब मम्मी और बुआ की तरह मेरी दोनों सालियाँ भी धीरे धीरे उसी लेवल पे आके खुल के बोलने लगी थीं और गुड्डी कौन कम, वो भी नमक मिर्च डालने से नहीं चूकती थी, मोबाइल पे रिकार्ड भी कर रही थीं दोनों और लिस्ट लिख भी रखी थीं और हर किसी के नाम पे, सवाल,...


जैसे मैंने बुआ का नाम लिया छुटकी कूद पड़ी,...

" अरे बुआ का नाम तो बताइये,... वैसे तो किसी को भी बुआ कह के , हम सब आधार कार्ड अंगुली का निशान सब चेक करेंगे,... "



मैंने जैसे आदत होती है बोल दिया, बड़ी बुआ,... तो दोनों सालिया खिलखिलाने लगीं,... ऐसा नाम पहली बार सुना , उनका जोबना क्या बहुत बड़ा है, उनके नाप की ब्रा भी मिलती है की नहीं,...

और गुड्डी ने नमंक मिर्च लगा दिया, अरे यार तुम सब इनके मायकेवालियों को हम लोगो की तरह समझ रही हो, इनके मायके में कोई लड़की हो औरत हो चड्ढी बनियाइन नहीं पहनती, चोली पहन लिया वही बहुत है,... ब्रा की जरूरत ही नहीं आएँगी तो बारात में खोल के देख लेना वरना अपने जीजू से कहाँ खुद ही खोल के दिखा देंगे , खुद ही तो कहा है अभी सालियों की सब बात मानेगें तो ये कौन बड़ी बात है, नाप के बता भी देंगे "

मैंने बात काट के बोलने की कोशिश की,

असल में मेरी दो बुआ है एक बड़ी एक छोटी, बड़ी वाली का नाम है पूनम और छोटी वाली का नाम है निशा।

और अब मम्मी पीछे पड़ गयीं कैसे जीजू हो छोटी साली ने एक सवाल किया की तोहरे बुआ का कितना बड़ा बड़ा है तो बता दो, बियाह में तो नाप जोख तोहरे चचिया ससुर , मौसिया ससुर सब करेंगे ही, तोहार हाथ भी लगवा देंगे,... अच्छा चलो ये बता दो की मेरे ऐसा है की इनके ऐसा,... गुड्डी की बुआ की ओर इशारा कर के,

उन ननद भौजाई के मज़ाक में मैं फंस गया था लेकिन बिना बताये चारा नहीं था,... मैंने कुछ सोच के बुआ की और इशारा किया,...



गुड्डी की बुआ कुछ बोलतीं की दोनों सालिया चढ़ गयी, ... झूठे कौंवा काटेगा, बड़ी जोर से,... हम लोग से बोल रहे थे साइज पता नहीं है अब, अरे इसका मतलब अपनी बूआ के जोबना पे निगाह रखते थे,...

अबकी बूआ मेरे साथ हो गयीं, दोनों को हड़काते बोलीं ,

" तो क्या गलत करता था, अरे इसकी बूआ के भाई ने इसकी माँ पे चढ़ाई की तो वो उनके बहन पे,... "



जब छोटी बुआ का नंबर आया तो उनकी शादी की तारीख और पहले बच्चे की तारीख में कुछ गड़बड़ तो उस पे चढ़ाई,...

" किसने गाभिन कर के भेजा था तोहरी बुआ को, जो सात महीने में उगल दी,... " मंझली बोली,

तो छुटकी ने और,

" अरे हमारे जीजा को कम समझती हो दीदी, आ गया होगा इन्ही का मन,... और आएगा तो बुआ की बिटिया से इनकी शकल मिला लीजियेगा,...

चाची, मौसी, कोई नहीं बचा

मंझली, दुष्ट उसने न सिर्फ मुझसे लिस्ट पढ़वाई, बल्की दोनों लिस्ट के नीचे साइन करवाया।

गुड्डी मुझे देखकर मीठा-मीठा मुश्कुरा रही थी, जैसे कह रही हो क्यों आया मजा ससुराल का। बुआ को जाना था इसलिए मैं बच गया, वरना अभी क्या-क्या नहीं होता।

जाते समय मैंने जब बुआ का पैर छुआ तो उन्होंने एकदम मना नहीं किया बल्की जबरदस्त आशीर्वाद दिया-

“तोहार महतारी, बहन, चाची, बुआ सब क हचक चुदाई हो तोहरे ससुराल में…”

“बुआ,... खाली ससुराल वाले…” गुड्डी ने आँख नचाकर कहा।






“अरे समझ गई मैं अपने दुलहा का फायदा करवाना चाह रही हो, इस बहनचोद मादरचोद का नंबर तो जरूर लगेगा…” और बुआ बोलीं
ओह्ह.. तो दूसरी लिस्ट भी तैयार....
साइंड लिस्ट...
अब तो आनंद बाबू मुकर भी नहीं सकते....
 

motaalund

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शीला भाभी




तो यही सपना था जिसका जिक्र मैंने शीला भाभी से किया था,

शीला भाभी ने जैसे ही ये सुना की सुबह का सपना था तुरंत बोलीं, लाला जरूर सच होगा पूरा सच होगा और दो तीन महीने के अंदर ही, लेकिन सुनाना मत क्योंकि सुनाने से सपने का असर कम हो जाता है,...

और सपने में भी वही सब बातें थी जो रात भर घुमा फिर के शीला भाभी ने कहा था मुझसे हामी भी भरवा ली थी तीन तिरबाचा भी।

रात भर शीला भाभी के साथ कबड्डी हुयी, और हर बार मैंने वो आसन अपनाया की सब मलाई सीधे बच्चेदानी में जाए, गाभिन होने के चांस १०० % .

भोर होने पर कब आँख लगी पता नहीं, और कब कैसे मैं अपने कमरे में पहुँच गया ये भी,

सुबह उठा तो अपने कमरे में था। दिन के 10:00 बज रहे थे, और मंजू जगा रही थी- “अरे देवरजी उठो, शीला भाभी जा रही हैं, रिक्शा आ गया है। तुम्हारे भैया जा रहे हैं बस स्टेशन छोड़ने…”

जैसे मैं पलंग से उठा मंजू ने टोका- “लाला पजामा तो सीधा कर लो, रात किसके साथ थे?”
मैं थोड़ा सरमाया, थोड़ा सकपकाया। पाजामा सीधा करने के लिए उतारना तो पड़ेगा, और मंजू। मंजू ने मेरी झिझक भांप ली और मेरे कुछ, करने कहने के पहले ही पाजामे का नाड़ा खोलकर, घुटने तक सरका दिया और, आधे सोये आधे जागे जंगबहादुर बाहर।

मंजू ने उसे मुट्ठी में दबोच लिया और सहलाते, दबाते, बोली- “क्यों लाला, एही के लिए सरमा रहे थे। का हम इसको देखे नहीं है की पकड़े नहीं है, बस एक मौका मिले तो अंदर भी ले लूंगी, समझते का हो?”

जंगबहादुर फिर से खड़े हो रहे थे। मंजू ने एक झटके से चमड़ा खींचके सुपाड़ा खोल दिया और बोली- “अरे पजामा उतार तो हम दिहे हैं, अब पहिन लो की ऐसे चलोगे…” और अपने भारी चूतड़ मटकाते, मुझे ललचाते बाहर चली गई।

शीला भाभी का सामान बाहर चला गया था। भाभी उनके लिए किचेन से कुछ पैक कर रही थी। मुझे देखते ही शीला भाभी ने मुझे बांहों में भींच लिया और दबाते हुए बोली- “देवरजी, तुम्हारा अहसान मैं कभी नहीं भूलूंगी…” उनके आँखों में खुशी के आँसू थे।

उनका गाल सहलाते, मैंने कहा- “भाभी, देवर भी बोलती हैं और अहसान भी। अहसान तो आपका है की आपने गुड्डी को दिलवा दिया…”

तब तक भाभी भी निकल आई थी और बोली- “एकदम सही कह रहे हो, ये भाभी की देन थी की चट मंगनी पट ब्याह हो रहा है…”

शीला भाभी और चिढ़ाये नहीं, बोली- “अभी तो गुड्डी को दिलवाया है फिर गुड्डी की सारी ससुराल वालियों की भी दिलवाऊँगी, बहुत चींटे काटते है उनकी बिल में क्यों?”

और भाभी ने तुरंत हामी भरी- “एकदम भाभी…”

चलते समय शीला भाभी बोली- “आना जरूर गाँव। शादी के बाद भी…”

मेरी ओर से भाभी ने हामी भरी। और मैंने आँखों ही आँखों में। बाहर रिक्शा वाला चिल्ला रहा था- “भैया बस छूट जायेगी…”

शीला भाभी को छोड़कर मैं वापस आया, और बार बार जो शीला भाभी चिढ़ा रही थीं वही बातें याद आ रही थीं और वही सब तो सपने में भी था,... और चलते समय भी शीला भाभी बोल गयी थीं,


“अभी तो गुड्डी को दिलवाया है फिर गुड्डी की सारी ससुराल वालियों की भी दिलवाऊँगी, बहुत चींटे काटते है उनकी बिल में .
लेकिन सपने का जिक्र शीला भाभी से कर दिया है...
कहीं असर कम ना हो जाए...
 
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motaalund

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शीला भाभी से जुड़ा यह अंतिम भाग था

......


क्या मुझे इस फोरम में फागुन के दिन चार को फिर से पोस्ट करना चाहिए, अगर मैं करुँगी भी तो बहुत सीमित चित्रों के साथ और बिना कुछ घटाए बढाए,... लेकिन एक पहले की कहानी होने के नाते हो सकता है पाठकों में रूचि न हो,... यह कहानी थ्रिलर और रोमांस का मिश्रण है और इन्सेस्ट जरा भी नहीं है , इसलिए छुटकी की कहानी ख़तम होने के बाद या जब वह ख़तम होने के कगार पर,...
अवश्य.... जरुर... निसंदेह...
 

motaalund

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कोमल जी

आपकी कहानी फागुन के दिन चार का तो स्तर ही अलग है। आपको यह कहानी इस फोरम पर जरूर पोस्ट करनी चाहिए।

इसके साथ - साथ एक बिन मांगा सुझाव और हैं आशा करता हूं कि आप बुरा नहीं मानेंगी। वो यह कि कहानी में गुड्डी और आनंद बाबू की सुहागरात के विस्तृत विवरण के साथ - साथ रीत और करण का पुनर्मिलन , यदि संभव हो तो।

आपके लिए असंभव तो कुछ भी नहीं है पर पता नहीं आप मानेंगीं या नहीं। रीत और करण के पुनर्मिलन के लिए तो अन्य पाठकों ने भी निवेदन किया है।

निर्णय आपको ही करना है और हां गुड्डी और आनंद बाबू की शादी को 2 - 3 साल हो गए हैं तो फिर गर्भ धारण और शीला भाभी के क्या हुआ और उनके गांव भी तो जाना आदि - आदि।

मुझ जैसे पाठकों की तो मांगे खत्म ही नहीं होंगी पर क्या करें आपकी लेखनी है ही ऐसी।

आपके निर्णय का इंतजार रहेगा।


सादर
उपरोक्त कथन से मैं भी सहमत हूँ...
आशा है कि आप भी इस विचार करेंगी.... और आपका निर्णय पक्ष में हो...
ताकि हमें आपकी लेखनी से अभिभूत होने का अवसर प्राप्त हो...
प्रतीक्षा में...
 

motaalund

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You can inform her that the Ads policies have been modified and tried to minimize it for registered users. She can come back and continue her presence.

Many many thanks to you and Admin team for reconsidering the policy in readers/writers favour..
 

motaalund

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आनंद बाबू और शीला भाभी के बीच में रति क्रिया प्रसंग अतयंत ही खूबसूरत और भावनाओं से भरा हुआ लगा मुझे।देवर और भाभी के बीच में प्यार, शरारत और मीठी और कामुक नोक झोंक को बहुत ही खूबसूरत तरीके से पेश किया है आपने कोमल जी। मेरा मानना है कि प्रेम और संभोग एक ही सिक्के के दो पहलू है...!!जैसे बिन प्रेम,संभोग अधूरा है...।।वैसे ही बिन संभोग, प्रेम अधूरा है...!!
आपके इस फोरम पर पॉलिसी के कारण अनुपस्थित रहने से ...
हम सब व्यथित थे...
और आपकी नव निर्मित कृतियों से महरूम हो गए थे....
आपके फिर से फोरम पर दर्शन से चित प्रसन्न हो उठा...
आशा है कि आगे से आपकी कविताओं का रसास्वादन का अवसर हमें निरंतर मिलता रहेगा...

सराहनीय है कोमल रानी का आपके प्रति सपोर्ट ...
 
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komaalrani

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भाग ६० कबड्डी राउंड २

( पहला राउंड - भौजाई २ - ननद १ )
update posted, please read, like, enjoy and share your comments.
 

komaalrani

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ओह्ह.. तो दूसरी लिस्ट भी तैयार....
साइंड लिस्ट...
अब तो आनंद बाबू मुकर भी नहीं सकते....
फागुन के दिन चार के अंतिम हिस्सों के कुछ अंश मैने इसी थ्रेड पर पोस्ट करने शुरू किये है

देखिएगा

काली रात
 
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motaalund

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काली रात



night-dark.jpg




चाँद भी अब आसमान के दूसरे कोने में पहुँच रहा था लेकिन अपना सफर पूरा करने के पहले, मुड़-मुड़कर हम तीनों को देख रहा था और उसकी टार्च की पूरी रौशनी हम पर पड़ रही थी। पर हम तीनों के लिए तो समय, चाँद, रात जैसे सब थम गई थी, बल्की थी ही नहीं।

दूर कहीं साढ़े तीन बजे का घंटा बजा।

चाँद ने एक बार फिर मुँह मोड़ लिया और चलते-चलते हम तीनों को ( मैं, गुड्डी और रंजी ) रात की काली स्याही की चादर ओढ़ा गया। हम तीनों एक दूसरे से गुथे, लदे, चिपके, थके सो गए। खुली खिड़की से आती हवा अब हमें थपकी देकर लोरी सुना रही थी।

रात का वह सबसे काला प्रहर था, आखिरी प्रहर। प्रत्युषा अभी भी आँख मीचे दूर सो रही थी। नभचर, थलचर सब सो रहे थे, सिवाय उन शिकारी जानवरों के जिनकी क्षुधा शांत नहीं हुई थी। यह वह प्रहर था जब सब कुछ अघटित, घटित होता है।



बाहर काले भीषण बादलों ने विधु की मुश्कें कस दी थी, चांदनी घुट-घुटकर सिसक-सिसक कर आखिरी सांसें ले रही थी। आसमान में अन्धकार की काली स्याही पुती हुई थी। डर कर तारों ने भी अपने मुँह छिपा लिए थे। एकदम काला ठोस अँधेरा, घना, जहरीला। हवा भी एकदम रुक गई थी। अमलताश, मंजरी से लदा आम, सब गुमसुम खड़े थे, सांस रोके।



अंदर, अचानक पलंग के एक कोने पे लेटे मेरी आँख खुली। दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, मन अचानक आशंकित हो उठा, मैंने आँखें खोली तो गुड्डी और रंजी नींद में दुबकी, आश्वस्त सो रही थी। पर बाहर रात एकदम काली हो गई थी।



कुछ था, कुछ गड़बड़ था, बस होने वाला था अगले ही पल, जैसे दुष्काल कोबरा बनकर अँधेरे में फुफकार मार रहा हो और सिर्फ उसकी फुफकार की आवाज सुनाई पड़ रही हो, दिख कुछ न रहा हो बस वैसे ही।

मैंने चौकन्नी नजरों से कमरे के चारों ओर निगाह दौड़ाई। सब कुछ नार्मल था। धीमे से सरक कर मैं पलंग से नीचे उतरा, और एकदम फर्श से चिपटकर क्राल करते हुए छत पर। पूरा अँधेरा था। हाथ को हाथ न सूझे ऐसा। घुप्प, काला, दमघोंटू अँधेरा।


बस मुझे लग रहा था की कुछ गड़बड़ है। बल्की बहुत गड़बड़ है। और उस काले अँधेरे में खतरा कहाँ से आ जाए पता नहीं।

मैं एकदम छत से चिपक कर, चारों ओर देखते हए रेंग रहा था। कुछ देर में ही आँखें अँधेरे की आदी हो गईं थी और उस काले ठोस धुंधलके को भेदकर पढ़ने की कोशिश कर रही थी। मैं आधा छत पार कर चुका था, और तभी बिजली चमकी।

और दामिनी ने मेरी सहायता कर दी। छत से सटे हुए, आम की काली डाल के नीचे कोई था। बहुत लम्बा लहीम शहीम, तगड़ा और जैसे मैं अँधेरे में देखने की कोशिश कर रहा था, वैसे ही वो भी कोशिश कर रहा था, लेकिन उसकी आँखें कमरे की खुली खिड़की में झाँकने कोशिश कर रही थी। खिड़की से अंदर देखने की कोशिश कर रही थी।

एक काली देह से चिपकी शर्ट, काली पैंट और चेहरे पे कैमोफ्लाज पैंट, कोई प्रोफेशनल हत्यारा, और जिस तरह से वो पीछे चिपक कर आम के पेड़ की परछाईं की आड़ लेकर खड़ा था, अगर छत पे रौशनी भी होती तो उसको देखना बहुत मुश्किल थी। गनीमत थी कि बादलों ने अपनी पकड़ थोड़ी हल्की की और चांदनी की एक छोटी सी किरण अब छत के उस हिस्से पे पड़ रही थी।

मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। वह जरूर हथियार से लैस होगा।

उसकी निगाह खिड़की से चिपकी थी और गनीमत थी की वो छत पर नहीं देख रहा था। छत से चिपक कर रेंगते, मैं अब उससे करीब 10-12 मीटर दूर रह गया था। दो कदम रेंग करके मैं हल्के से सिर उठकर उसकी टोह लेता, इस समय मेरे कान ही मेरी आँखें बन गए थे।

उस घने अँधेरे में उसका सिलयुहेट सिर्फ भूरे रंग के एक साये की तरह था, और कभी सिर्फ बाहरी आउटलाइन दिखती और जब बादल हल्के से हटते तो वो थोड़ा ज्यादा दिख जाता। मेरी सांसें रुकी हुई थी और मेरा पूरा ध्यान बस उसी पर था। मैं इन्तजार कर रहा था उसकी अगली हरकत का। वह कमरे की ओर बढ़ेगा, या वही से कुछ?

रेंगना रोक कर मैं अब चुपचाप इन्तजार कर रहा था। और वह भी इन्तजार कर रहा था। चाँद की रोशनी थोड़ी सी बढ़ी और मेरा दिल दहल गया, उसके कमर में एक बेल्ट थी जिसमें ढेर सारे चाकू थे, अलग-अलग साइज और शेप के। उसने फुर्ती से एक चाकू निकालकर हाथ में ले लिया था और उसे तौल रहा था। बिना गरदन मोड़े एक पल उसने इधर-उधर देखा, और फिर उसका हाथ हवा में उठा, आँखें अभी भी खुली खिड़की से चिपकी थी और बिजली की तेजी से चाकू कमरे की ओर, हवा में तैरता हुआ।


और मेरी सांस रुक गई, कहीं कमरे में गुड्डी, और फिर कई चीजें एक साथ हुईं।
काली ... भयानक .. अंधियारी रात..
दुश्मन घात लगाए हुए...
बिना किसी आवाज के हथियार (चाकू) से वार करने को तत्पर...
लेकिन अपने हीरो भी चौकन्ने...
दुश्मन पर प्रतिघात को तैयार....

बहुत अच्छा डिस्क्रिपशन दिया है....
 
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