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Erotica रंग -प्रसंग,कोमल के संग

komaalrani

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भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी

Phagun ke din chaar update posted

please read, like, enjoy and comment






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तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी
 

Rajizexy

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ग्लाक 19 जेन 4

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कुछ देर पहले की ही तो बात थी , खेल खेल में और गुड्डी की जिद्द,

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गुड्डी सब दराज चेक कर रही थी और, अचानक एक सामान निकालकर उसने दिखाया और पूछा- “और ये। और ये किसका है?”

मेरी तो जान सूख गई गई- “ये, यहाँ कैसे, मैंने तो बहुत सम्हालकर…” लेकिन था तो मेरा ही। और गुड्डी के आगे झूठ बोलने का तो सोच ही नहीं सकते- “वो। असल में मेरा ही है। लेकिन लगता है कल किसी सामान के साथ, अभी रख देता हूँ…” मैंने जुर्म का इकबाल किया।

गुड्डी के हाथों में मेरी ग्लॉक थी।
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दुनियां की सबसे पापुलर हैंडगन्स में से एक। और किसी के भी हाथ में तुरंत अड्जस्ट हो जाने वाली, उसका रफ टेक्स्चर ग्रिप बहुत स्ट्रांग कर देता है, चाहे पहली बार इश्तेमाल करने वाला हो या प्रोफेशनल, हैंडगन में ग्रिप बहुत जरूरी चीज होती है। इसके हल्के वजन, स्लिम स्ट्रक्चर और छोटी साइज की वजह से ये कन्सील्ड वेपन की तरह आसानी से इश्तेमाल की जा सकती थी।

इसलिए मैं इसे रखता था। और इसमें मैंने बहुत सी चीजें और लगा रखी थी, जैसे ट्रीजिकान एच॰डी॰ नाइट साइट्स।


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इसके साथ-साथ ट्राइटियम लैम्प्स अँधेरी रात में भी निशाना लगाने में मदद करते हैं। लेकिन सबसे खास बात ये थी की, अपनी साइज की वजह से ये लेडीज गन की तरह से भी इश्तेमाल होती है क्योंकी पर्स में ये आसानी से आ जाती है।

और बस इसी चक्कर में मुझे डांट पड़ गई- “रीत के पास यही वाली है न?” ग्लाक को घुमा के देखते हुये गुड्डी ने पूछा।

“हाँ ये लेडीज गन है…” मेरे मुँह से निकलना था की मेरी मुसीबत हो गई।



“ये तुम्हें लेडीज चीजें क्यों पसंद है, कुछ गड़बड़ लगता है मुझे…” मुड़कर मेरी नाक पकड़कर वो बोली।

“नहीं नहीं ऐसा कुछ नहीं, असल में…” मैंने डिफेंड करने की कोशिश की लेकिन, गुड्डी के आगे।



“नहीं नहीं क्या, साले, झूठे, भोंसड़ी के मैं शुरू से देख रही हूँ अभी तूने बोला था न लेडीज गन…”

गुड्डी अब अपने बनारसी और मेरे ससुराली अवतार में आ गई थी, गाली-मय रूप में, और फिर बारिश पूरी तेजी से चालू हो गई-

“अब हो सकता है तेरी पसंद ही ऐसे हो बचपन से आदत लग गई हो, बोल ये भी झूठ है की चंदा भाभी के नीचे के बाल साफ करने वाली क्रीम तूने अपने गाल में लथड़-लथड़ के पोती थी और ढाढ़ी के साथ अपनी मर्दानगी का झंडा भी साफ कर लिया था, बन गए थे चिकनी चमेली। बोलो बोलो, तेरी बहन की…”
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बात सच थी लेकिन अब ये कौन बोले की गुड्डी ने खुद मुझे चंदा भाभी की हेयर रिमूविंग क्रीम इम्पोर्टेड शेविंग क्रीम कहकर मेरे पूरे चेहरे पे लगाई थी, और मेरी आँखें भी बंद करवा रखी थी।

गुड्डी की अदालत में दूसरा चार्ज भी लग गया-


“और उसके भी पहले रात में चंदा भाभी की साड़ी पहनकर सोये थे, तुझे लड़कियों के कपड़े पहनने का शौक है। चल यार है तो है अब ससुराल पहुँचना न, बनारस में, मेरे गाँव में तो बस करवा दूंगी इंतजाम। लेकिन कबूल करो, शर्माते क्यों हो, तेरी बहनें तो पूरे मुहल्ले में बाँटते नहीं शर्माती, तू ही लौंडिया स्टाइल शर्मा रहे हो…”

और इस बार भी गुड्डी से ये कौन कहे की उसने मुझे वापस नहीं जाने दिया था, मेरे कपड़े ले उड़ी थी और मजबूरन मैंने साड़ी लूंगी की तरह पहनी थी, वो भी बस थोड़ी देर। उसके बाद तो चंदा भाभी की पाठशाला में ककहरा सिखने लग गया था।

गुड्डी के हमले चालू थे। अभियोग पक्ष की ओर से उसने अगला चार्ज पेश किया-

“चलो, तुम कहोगे तुम्हारे पास कोई कपड़ा सोने के लिए नहीं था इसलिए भाभी की साड़ी उधार ले ली। लेकिन अगले दिन, गुंजा का बरमुडा। वो भी पहनने का शौक तुम्हें चर्राया था? मेरे तो कुछ समझ में नहीं आता वैसे तो तुम ठीक ठाक लगते हो लेकिन, और उस दिन छत पर, रीत, दूबे भाभी सब गवाह हैं कि कैसे साड़ी ब्लाउज़ पहनकर मटक रहे थे…”

मैं चुप का चुप। कौन कहे, होली में चंदा भाभी, दूबे भाभी, रीत, गुड्डी और साथ में संध्या भाभी भी। मैं अकेले द्रौपदी की तरह और वो पांच। बस उनकी मर्जी चली।

और जवाब गुड्डी ने ही फिर दिया-

“चलो ससुराल में थे, साली, सलहज। लेकिन अपने मायके में, अपनी बहनों के सामने, ऐन होली के दिन, सिर्पफ साड़ी साया ब्लाउज़ ही नहीं पहना, पूरे मुहल्ले में चक्कर भी काटा। मेरे पास सारे फोटोग्राफ मौजूद हैं और तेरे फेसबुक पे पोस्ट भी करूंगी जानू…”

मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था की गुड्डी ने हमले की धार और तेजी कर दी-

“अब मेरी समझ में आ गया है, तेरी सास हैं चाभी। जब तुम ससुराल में रहोगे न। बल्की शादी के पहले भी तो आओगे न। तो बस और आखीरकार, दामाद की पसंद तो बिचारे ससुराल वालों को पूरी ही करनी पड़ती है तो बस मांग लेना, खोलकर…” वो दुष्ट बोली।

“क्या मांग लूंगा यार? पहेली क्यों बुझा रही हो?” मैंने झुंझला के पूछा।

“अरे यार सिंपल, अपनी सास से कहना कि तेरे लिए बाजार से कुछ अच्छी ब्रा-पैंटी खरीदवा देंगी। रूपा साफ्टलाइन चलेगी या कोई और फैंसी, अब बनारस में जो मिलेगी वही तो दिलवाएंगी बिचारी…”
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“लेकिन ब्रा-पैंटी क्यों?” मैंने पूछा।

“सिम्पल यार। तेरे को लड़कियों का सामान इश्तेमाल करने का शौक है अब देख ये लेडीज गन लटका के टहलने का शौक है तुझे, लड़कियों के कपड़े पहनते हो मौका मिलते ही। तो फिर अब ब्रा-पैंटी तो तुझे किसी और के नाप के आएंगी नहीं। फिर बाकी चीजें टाइट ढीली चलती है, ब्रा और पैंटी लेकिन एकदम फिटमफिट होनी चाहिए, आखीरकार, शेप साइज तो उसी से पता चलता है। पक्का न फिर मम्मी से क्या शर्माना?”

मेरी कुछ भी नहीं समझ में आ रहा था कि मैं क्या बोलूं?

इसलिए बात गुड्डी ने ही जारी रखी-


“अरे यार समझा कर, तेरी इस गोरी लचकीली देह पे साड़ी ब्लाउज़ बहुत जमेगा। अब साड़ी तू अपनी सास की पहन लेना, चंदा भाभी की साड़ी तो पहले ही पहन चुके हो, वो मना थोड़े ही करेंगी। रही बात ब्लाउज़ की, वो भी टांक टूंक के री-फिट करके मैं या मम्मी तेरे नाप की कर देंगे, लेकिन ब्रा तो सही चाहिए न। तो बोल देना, खरीद देंगी। सिगरा वाले माल से लेकर गोदौलिया और मैदागिन तक उनकी बहुत जान पहचान है। और आप जाओगे तो फिटिंग रूम में जो सेल्सगर्ल हैं न, बस अपने हाथ से नाप नाप के एकदम सही साइज की दिलवाएंगी…”

मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था बात का ट्रैक कैसे बदलूं। गुड्डी खिंचाई मेरी कर रही थी लेकिन निगाह उसकी बार-बार ग्लाक पे जा रही थी। हाथ में पकड़कर कभी वो उसे सहलाती तो कभी उसे ठीक से पकड़ने की कोशिश करती, तो कभी जैसे निशाना साध रही हो।

मैंने पेंच पकड़ ली- “चलाना सीखोगी?” मैंने पूछा।

“क्यों नहीं? आखीरकार, रीत चला सकती है तो थोड़ा बहुत मैं भी सीख सकती हूँ…” ठसके से वो बोली।

तो असली बात ये थी लेकिन मैंने तुरंत 500 ग्राम मस्का मारा- “अरे यार तुम तो अँखियों से गोली मारे टाइप बनारसी बाला हो, आँखें कटार, जुबना बरछी की धार, तुझे बन्दुक पिस्तौल की क्या जरूरत?” और ये कहते हुए मैंने हल्के से उसके खड़े, टाइट निपल दबा दिये।

वो मुश्कुराई एकदम हँसी तो फँसी वाले अंदाज में, फिर बोली- “सीधे से सीखा दो, वरना जो नीचे से बुलबुल आएगी न अभी, तड़पा दूंगी उसके लिए…”

और मैं तुरंत चालू हो गया, ग्लाक के बारे में, उसकी तारीफ, अंग्रेजी में।
Guddi ne to apna Virat rup dikha dai
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गुड्डी, ग्लाक और ट्रेनिंग



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मैंने पेंच पकड़ ली- “चलाना सीखोगी?” मैंने पूछा।

“क्यों नहीं? आखीरकार, रीत चला सकती है तो थोड़ा बहुत मैं भी सीख सकती हूँ…” ठसके से वो बोली।

तो असली बात ये थी लेकिन मैंने तुरंत 500 ग्राम मस्का मारा-

“अरे यार तुम तो अँखियों से गोली मारे टाइप बनारसी बाला हो, आँखें कटार, जुबना बरछी की धार, तुझे बन्दुक पिस्तौल की क्या जरूरत?” और ये कहते हुए मैंने हल्के से उसके खड़े, टाइट निपल दबा दिये।

वो मुश्कुराई एकदम हँसी तो फँसी वाले अंदाज में, फिर बोली- “सीधे से सीखा दो, वरना जो नीचे से बुलबुल आएगी न अभी, तड़पा दूंगी उसके लिए…”

और मैं तुरंत चालू हो गया, ग्लाक के बारे में, उसकी तारीफ, अंग्रेजी में।



***** *****

गुड्डी जोर-जोर से बहुत देर तक खिलखिलाती रही, फिर रुक के बोली-

“तुम पक्के सेल्समैन लग रहे हो। अरे बेचने का इतना शौक है न तो जो तेरी बहिनिया कम माल है, अभी आएगी नीचे से, उसे बेचो न। बहुत नगदी मिलेगी। हजारों का तो सिर्फ उसके जुबना का दाम लग जाएगा। अरे मुझे खरीदना नहीं है, सिर्फ जानना है कैसे चलाते हैं। सीधे से समझाओ वरना रात भर बैठकर तड़पना, हाथ न लगाने दूंगी उस बुलबुल को। और वैसे भी कल तेरे भैया भाभी आ जाएंगे। और उसके बाद बनारस, वहां तो आगे से ही उसकी बुकिंग है बस तुम देखते रहना और गिनते रहना, कितने पार उतरेंगे उसकी तलैया में। सिखाओ…”

कोई रास्ता बचा नहीं था। पहले मैंने उसे ग्लाक 19 जेन 4 के बारे में बताया, बैरेल 4 इंच की, पूरी पिस्टल 7॰2 इंच की, लेकिन गुड्डी भी न, वो मेरे ठीक आगे खड़ी थी, ग्लाक मेरे हाथ में थी।

उसने पीछे हाथ बढ़ाकर मेरे बाक्सर शार्ट के ऊपर से तने तम्बू को जोर से दबाया, और खिलखिलाते हुये बोली- “यार मेरी वाली पिस्टल तो तेरी ग्लाक से भी बड़ी है, और जोरदार भी, खैर चलो आगे बताओ…”
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और मैंने फिर उसको एक-एक पार्ट के बारे में बताना शुरू किया, ट्रिगर, साइट, कैसे पकड़ते हैं?

और गुड्डी फिर चालू हो गई बाक्सर के ऊपर से दबाकर बोली-

“अपनी उस छिनार को समझाना कैसे पकड़ते हैं, वैसे भले सील तुमने खोली हो, लेकिन पकड़ने में उसकी प्रैक्टिस पुरानी है। कित्ते मोहल्ले वाले का उसने पकड़ा और कितनों से उसने अपना पकड़वाया, उसकी गिनती उसके पास भी नहीं है…”
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गुड्डी की हरकतों और बातों से बचने का मेरे पास एक ही रास्ता था, मैंने उसे ग्लाक पकड़ा दी और बोला-


“दोनों हाथों से पकड़ो। सही ग्रिप, सही स्टांस, हाथ की पोजीशन सारी बातें और साथ में कैसे दूसरे हाथ से पकड़कर पिस्टल को एकदम स्टीडी पोजीशन में रखें…”

दो-चार बार की कोशिश के बाद उसने ग्रिप और स्टांस सीख लिया। मैंने पहले ही चेक कर लिया था की पिस्टल अनलोडेड है। उसकी मैगजीन बगल में रखी थी। गुड्डी ट्रिगर दबाने के लिए बेताब थी, लेकिन मैंने कहा की पहले पकड़ना अच्छी तरह सीख लो, फिर दबाना सीखना।

इस डबल मीनिंग डायलाग का उसपर कोई असर नहीं हुआ, इसका मतलब वो बड़ी तल्लीनता से ध्यान लगाकर प्रैक्टिस कर रही थी। ट्रिगर पकड़ना, उसपर कैसे दबाव बनाये अब मैंने ये समझाया।

दो-चार बार उसने प्रैक्टिस की लेकिन उसका ध्यान नाइट साइट्स की ओर गया, और बच्चों की तरह पूछ बैठी- “ये क्या है?”


मैंने ट्रीजिकान हाई डिफिनशन नाइट साइट्स के बारे में उसे समझाया और ये भी की कैसे बहुत कम रोशनी में ये निशाना सेट करने में मदद करती है। लेकिन सबसे कठिन था मैं उसे निशाना क्या बताऊँ? हम लोग भाभी के कमरे में थे, जो छत पर पहली मंजिल पे था और अकेला कमरा। बाहर बड़ी खुली छत थी। एक बड़ी सी खुली खिड़की थी, जिससे फगुनाहट वाली हवा आ रही थी।



और वहां से एक बड़ा सा आम का पेड़ भी दिख रहा था, जिसकी डालें हमारी छत पर आलमोस्ट झुक जाती थी। आम के बौर से भरा, रात की मस्ती से भरा वो भी झूम रहा था। लेकिन उसकी छाया में थोड़ा अँधेरा था और नाइट साइट के लिए वो परफेक्ट था। कमरे से मुश्किल से 15-20 गज की दूरी पे। और उसके ठीक नीचे छत की पैरापेट वाल थी, बहुत ऊँची नहीं करीब चार-पाँच फीट। उसपर रंग जगह-जगह उखड़ गया था और तरह-तरहकर शेप बन गए थे।


बस गुड्डी को मैंने वो समझाया और कहा की उसे 1, 2, 3, नंबर मान ले। फिर उसे फ्रंट सीट, रियर साइट और टारगेट कैसे मैच कराएं ये बताया।


गुड्डी भी, गुड्डी क्या कोई भी लड़की काम निकलने के बाद टाटा बाई-बाई कर देती है। गुड्डी ने यही किया, बोली-

“अच्छा अब पांच मिनट तक मुझे डिस्टर्ब न करो, मुझे ट्राई करने दो…”
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Guddi ko kisi ka murder karwane ke liye tyar mia ja raha lagta hai.Mya baat hai, adult site par hathiyar chalane ki training.
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परफेक्ट स्टांस

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“तो जरा जाकर देख न नीचे, किससे मरवा रही है वो। यार यहाँ बिचारा उसका तड़प रहा है। और हाँ जरा कुछ नीचे से खाने का भी सामान मिल जाय तो ले आना। कुछ नहीं हो तो अपनी झटपट सैंडविच ही बना लाना। तेरे माल की सैंडविच बनाने के चक्कर में शाम का सब कुछ खाया पिया पच गया…” गुड्डी ने समझाया। और झटपट मैं सीढ़ियों से नीचे उतर गया।

भूख वाली बात गुड्डी की एकदम सही थी। शाम का खाया पिज्जा कहाँ गायब हो गया पता नहीं चला। पूरा घर अँधेरे में डूबा था। सिर्फ एक कमरे में हल्की सी रोशनी जल रही थी जहाँ जी-टाक पर रंजी अपनी डायटसियन से बातें कर रही थी।

मुझे देखते ही मेरी बेबसी, मेरी बेताबी का अहसास उसे तुरंत हो गया और मुश्कुराकर, हल्के से हँसकर दोनों हाथों की उंगलियों से उसने इशारा किया- “बस दस मिनट…” और साथ में उसने हल्के से झटक के चेहरे पे आई लट को हटाया। कुछ लड़कियों के खिलखिलाने पे गालों पे गड्ढे पड़ते हैं लेकिन रंजी तो बस जरा सा फूलझड़ी की तरह हँस दे तो बस उसके गुलाबी गालों में गहरे गड्ढे पड़ जाते थे। तभी तो जिल्ला टाप माल थी वो और अब जग जीतने जा रही थी।

पूछा जो उनसे चाँद निकलता है किस तरह,

जुल्फों को रूख पे डालकर झटका दिया कि यूँ।

स्टार्च, कार्बोहाइड्रेट, डाइट, वाटर इनटेक और न जाने क्या-क्या खाने पीने की बातें हो रही थी। बल्की न खाने की बातें हो रही थी। और ये बातें सुनकर मेरी भूख और बढ़ गई। किचेन में कुछ भी नहीं मिला। मिलता कैसे, रंजी और गुड्डी दोनों मुझे खाने के फिराक में थी तो उन्होंने खाना कुछ बनाया नहीं। फ्रिज भी खंगाला, लेकिन सब बेकार।

अंत में मिली जुली सरकार टाइप अपनी झटपट सैंडविच ही बनानी पड़ी। गुड्डी को पसंद भी थी और जल्दी से बन भी जाती थी। 5-6 मिनट में एक प्लेट सैंडविच बनाकर मैं दबे पाँव ऊपर बढ़ा। रंजी के खाने के बारे में चर्चा खत्म होने के कगार पे थी, वो कुछ सीरियसली नोट कर रही थी।

मैंने दबे पाँव दरवाजा खोला, और वहीं दरवाजे पे खड़ा हो गया।

गुड्डी स्टांस लेकर खड़ी थी। परफेक्ट स्टांस। दोनों पैर फैले हुए थे, उसके कंधे की लम्बाई के बराबर, घुटना बहुत हल्का सा मुड़ा, और हाथ की पोजीशन भी, उसका दायां हाथ (गन हैंड) परफेक्ट ग्रिप की पोजीशन में और अंगूठा, हथेली बैक ग्रिप को पकड़े। दूसरा हाथ (सपोर्ट हैंड) भी उसी तरह ग्लॉक के दूसरी साइड को पकड़े, अंगूठा आगे की ओर जिधर स्लाइड फ्रेम से मिलती है, बाकी चार उंगलियां ट्रिगर गार्ड के नीचे जोर से दायें हाथ को दबाये।

लेकिन सबसे जबरदस्त था जिस तरह उसने अपनी आँख को ट्रेन किया था, फ्रंट साइट, रियर साइट उसकी आँख के अलाइनमेंट पे और जो तीन टारगेट उसे मैंने दिखाए थे उस पे बारी-बारी से निशाना लगाकर वो ट्रिगर पुल कर रही थी, पूरे कांफिडेंस के साथ। मैं हाथ में सैंडविच की ट्रे लिए दरवाजे पर खड़ा बस गुड्डी को देखता रहा।

गुड्डी का ध्यान सिर्फ पिस्टल पर था और टारगेट पर।

मेरा सिर्फ गुड्डी पर। ये बनारस वालियां कुछ भी सीखने में कितनी तेज होती हैं। अभी थोड़ी देर पहले ही इसने पहली बार स्ट्रैप आन डिल्डो अपनी कमर में बाँधा था और कैसे जबरदस्त, रंजी की कसी टाइट गाण्ड का हलवा बना दिया था।

रंजी मुझसे कभी न पटती, लेकिन इतनी जल्दी न,उसने रंजी को शीशे में उतार दिया, रंजी को माडल बनाने में भी वही पीछे पड़ी थी। और अब ये नया शौक?

धीमे-धीमे मैं अंदर घुसा और टेबल पर सैंडविच की ट्रे रखकर अन्नाउंस किया- “टन टना टन सैंडविच रेडी, मेरी स्पेशल सैंडविच…”

बिना निगाह हटाये वो बोली- “जानू साथ में कुछ पीने का है क्या? अभी तेरी कोई मायकेवाली न गाभिन हैं न दुधारू, हाँ 25 मई को जब लेकर आओगे न तो पक्की गारंटी आधी से ज्यादा गाभिन होकर लौंटेंगी…”

मैंने एक बार फिर उस आलमारी को खोला जिसमें भाभी ने चिट लगा रखी थी और जिन की एक बोतल (ब्लैकवुड 120 प्रूफ) निकालकर टेबल पे रख ली। ग्लास और आइस भी- “रेडी, सैंडविच भी और जिन भी…” मैंने फिर अनाउंस किया।

“और जिसकी सैंडविच बनेगी वो किधर है जानू? तेरी और तेरे पूरे शहर की फेवरिट छिनार…” गुड्डी ने फिर सवाल दागा।

“घबड़ा मत बस आ रही हूँ…” जवाब रंजी का मिला, दरवाजे के बाहर से।

और गुड्डी ने बिना घबड़ाये, पलक झपकते पिस्टल बेड के बगल की साइड टेबल पे रख दी और उसके ऊपर एक मैगजीन।



जब रंजी आई तो हम दोनों उस टेबल के सामने थे, जिसपर मैंने सैंडविच और जिन रख रखी थी।

“वाउ… मस्त सैंडविच, मेरे पेट में चूहे कूद रहे हैं, किसने बनायी है?” रंजी ने भूखी, नदीदी की तरह जोर से बोला।

“मैंने…” सीना फुलाकर मैं बोला।

“बधाई…” जोर से रंजी बोली और जैसा मेरे साथ अक्सर होता है, मुझे इग्नोर मारकर सीधे वो गुड्डी की ओर बढ़ी और उसे बाँहों में भींचकर बोली- “बधाई हो, तुझे इतनी सुघड़ गृहणी मिली है, घरेलू कामों में दक्ष, किचन में एक्सपर्ट…”

गुड्डी कौन कम थी उसने और जोर से दबोचा और अपने रैप में मुश्किल से ढके उभारों को, उसके ब्रा मुक्त, लेकिन मेरी लांग शर्ट में छुपे उरोजों पे जोर से रगड़ती, रंजी के होंठों को दबोच के चूम लिया और बोली- “अरे यार बधायी तुझे भी हो, आखीरकार, ये गृहिणी हम दोनों की साझे की है। जितनी मेरी उत्ती तेरी। तभी तो हम दोनों मिलकर इसकी नथ साथ-साथ उतार रहे हैं…”

रंजी खिलखिलाने लगी, अगर गुड्डी और रंजी एक साथ मिल जायँ न तो उस डबल पेस अटैक का मुकाबला कोई नहीं।

गुड्डी ने टोका- “अरे यार बोल तो, क्या सोच रही है?”

“जब ये सज धज के ट्रे में चाय लेकर गए होंगे, और तुम लोग इनको देखने गए होगे, तो कितना मजेदार सीन रहा होगा…”

और अब गुड्डी भी उस खिलखिलाने में शामिल हो गई और बोली- “सही कह रही हो, इतनी तेज ट्रे खड़खड़ा रही थी की मैं तो समझी कहीं भूकम्प तो नहीं आया, वो तो मम्मी मेरी, उन्होंने उठकर ट्रे इनके हाथ से थाम ली और समझा के बोली- “घबड़ा मत बेटी, इसमें डरने की क्या बात है, ये दिन तो हर लड़की की जिंदगी में एक दिन आता है। धीरे-धीरे प्रैक्टिस हो जायेगी…”
गुड्डी अकेले ही काफी है और अगर उसे किसी का साथ मिल जाये मेरी होने वाली दोनों सालियों का, उसकी सहेलियों का तो मेरी तो,...

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लेकिन बस दस पंद्रह मिनट में ग्लाक की उस ट्रेनिंग ने, ... हम सब को बचा लिया,... कालिया का वार आज तक खाली नहीं गया, लेकिन कंधे में घुसी गुड्डी के ग्लाक से चली गोली और मिल गया वो मौका,... कालिया जिससे कोई नहीं जीत पाया था, गुड्डी की गोली,
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✅✅✅✅✅
 

Sutradhar

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परफेक्ट स्टांस

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“तो जरा जाकर देख न नीचे, किससे मरवा रही है वो। यार यहाँ बिचारा उसका तड़प रहा है। और हाँ जरा कुछ नीचे से खाने का भी सामान मिल जाय तो ले आना। कुछ नहीं हो तो अपनी झटपट सैंडविच ही बना लाना। तेरे माल की सैंडविच बनाने के चक्कर में शाम का सब कुछ खाया पिया पच गया…” गुड्डी ने समझाया। और झटपट मैं सीढ़ियों से नीचे उतर गया।

भूख वाली बात गुड्डी की एकदम सही थी। शाम का खाया पिज्जा कहाँ गायब हो गया पता नहीं चला। पूरा घर अँधेरे में डूबा था। सिर्फ एक कमरे में हल्की सी रोशनी जल रही थी जहाँ जी-टाक पर रंजी अपनी डायटसियन से बातें कर रही थी।

मुझे देखते ही मेरी बेबसी, मेरी बेताबी का अहसास उसे तुरंत हो गया और मुश्कुराकर, हल्के से हँसकर दोनों हाथों की उंगलियों से उसने इशारा किया- “बस दस मिनट…” और साथ में उसने हल्के से झटक के चेहरे पे आई लट को हटाया। कुछ लड़कियों के खिलखिलाने पे गालों पे गड्ढे पड़ते हैं लेकिन रंजी तो बस जरा सा फूलझड़ी की तरह हँस दे तो बस उसके गुलाबी गालों में गहरे गड्ढे पड़ जाते थे। तभी तो जिल्ला टाप माल थी वो और अब जग जीतने जा रही थी।

पूछा जो उनसे चाँद निकलता है किस तरह,

जुल्फों को रूख पे डालकर झटका दिया कि यूँ।

स्टार्च, कार्बोहाइड्रेट, डाइट, वाटर इनटेक और न जाने क्या-क्या खाने पीने की बातें हो रही थी। बल्की न खाने की बातें हो रही थी। और ये बातें सुनकर मेरी भूख और बढ़ गई। किचेन में कुछ भी नहीं मिला। मिलता कैसे, रंजी और गुड्डी दोनों मुझे खाने के फिराक में थी तो उन्होंने खाना कुछ बनाया नहीं। फ्रिज भी खंगाला, लेकिन सब बेकार।

अंत में मिली जुली सरकार टाइप अपनी झटपट सैंडविच ही बनानी पड़ी। गुड्डी को पसंद भी थी और जल्दी से बन भी जाती थी। 5-6 मिनट में एक प्लेट सैंडविच बनाकर मैं दबे पाँव ऊपर बढ़ा। रंजी के खाने के बारे में चर्चा खत्म होने के कगार पे थी, वो कुछ सीरियसली नोट कर रही थी।

मैंने दबे पाँव दरवाजा खोला, और वहीं दरवाजे पे खड़ा हो गया।

गुड्डी स्टांस लेकर खड़ी थी। परफेक्ट स्टांस। दोनों पैर फैले हुए थे, उसके कंधे की लम्बाई के बराबर, घुटना बहुत हल्का सा मुड़ा, और हाथ की पोजीशन भी, उसका दायां हाथ (गन हैंड) परफेक्ट ग्रिप की पोजीशन में और अंगूठा, हथेली बैक ग्रिप को पकड़े। दूसरा हाथ (सपोर्ट हैंड) भी उसी तरह ग्लॉक के दूसरी साइड को पकड़े, अंगूठा आगे की ओर जिधर स्लाइड फ्रेम से मिलती है, बाकी चार उंगलियां ट्रिगर गार्ड के नीचे जोर से दायें हाथ को दबाये।

लेकिन सबसे जबरदस्त था जिस तरह उसने अपनी आँख को ट्रेन किया था, फ्रंट साइट, रियर साइट उसकी आँख के अलाइनमेंट पे और जो तीन टारगेट उसे मैंने दिखाए थे उस पे बारी-बारी से निशाना लगाकर वो ट्रिगर पुल कर रही थी, पूरे कांफिडेंस के साथ। मैं हाथ में सैंडविच की ट्रे लिए दरवाजे पर खड़ा बस गुड्डी को देखता रहा।

गुड्डी का ध्यान सिर्फ पिस्टल पर था और टारगेट पर।

मेरा सिर्फ गुड्डी पर। ये बनारस वालियां कुछ भी सीखने में कितनी तेज होती हैं। अभी थोड़ी देर पहले ही इसने पहली बार स्ट्रैप आन डिल्डो अपनी कमर में बाँधा था और कैसे जबरदस्त, रंजी की कसी टाइट गाण्ड का हलवा बना दिया था।

रंजी मुझसे कभी न पटती, लेकिन इतनी जल्दी न,उसने रंजी को शीशे में उतार दिया, रंजी को माडल बनाने में भी वही पीछे पड़ी थी। और अब ये नया शौक?

धीमे-धीमे मैं अंदर घुसा और टेबल पर सैंडविच की ट्रे रखकर अन्नाउंस किया- “टन टना टन सैंडविच रेडी, मेरी स्पेशल सैंडविच…”

बिना निगाह हटाये वो बोली- “जानू साथ में कुछ पीने का है क्या? अभी तेरी कोई मायकेवाली न गाभिन हैं न दुधारू, हाँ 25 मई को जब लेकर आओगे न तो पक्की गारंटी आधी से ज्यादा गाभिन होकर लौंटेंगी…”

मैंने एक बार फिर उस आलमारी को खोला जिसमें भाभी ने चिट लगा रखी थी और जिन की एक बोतल (ब्लैकवुड 120 प्रूफ) निकालकर टेबल पे रख ली। ग्लास और आइस भी- “रेडी, सैंडविच भी और जिन भी…” मैंने फिर अनाउंस किया।

“और जिसकी सैंडविच बनेगी वो किधर है जानू? तेरी और तेरे पूरे शहर की फेवरिट छिनार…” गुड्डी ने फिर सवाल दागा।

“घबड़ा मत बस आ रही हूँ…” जवाब रंजी का मिला, दरवाजे के बाहर से।

और गुड्डी ने बिना घबड़ाये, पलक झपकते पिस्टल बेड के बगल की साइड टेबल पे रख दी और उसके ऊपर एक मैगजीन।



जब रंजी आई तो हम दोनों उस टेबल के सामने थे, जिसपर मैंने सैंडविच और जिन रख रखी थी।

“वाउ… मस्त सैंडविच, मेरे पेट में चूहे कूद रहे हैं, किसने बनायी है?” रंजी ने भूखी, नदीदी की तरह जोर से बोला।

“मैंने…” सीना फुलाकर मैं बोला।

“बधाई…” जोर से रंजी बोली और जैसा मेरे साथ अक्सर होता है, मुझे इग्नोर मारकर सीधे वो गुड्डी की ओर बढ़ी और उसे बाँहों में भींचकर बोली- “बधाई हो, तुझे इतनी सुघड़ गृहणी मिली है, घरेलू कामों में दक्ष, किचन में एक्सपर्ट…”

गुड्डी कौन कम थी उसने और जोर से दबोचा और अपने रैप में मुश्किल से ढके उभारों को, उसके ब्रा मुक्त, लेकिन मेरी लांग शर्ट में छुपे उरोजों पे जोर से रगड़ती, रंजी के होंठों को दबोच के चूम लिया और बोली- “अरे यार बधायी तुझे भी हो, आखीरकार, ये गृहिणी हम दोनों की साझे की है। जितनी मेरी उत्ती तेरी। तभी तो हम दोनों मिलकर इसकी नथ साथ-साथ उतार रहे हैं…”

रंजी खिलखिलाने लगी, अगर गुड्डी और रंजी एक साथ मिल जायँ न तो उस डबल पेस अटैक का मुकाबला कोई नहीं।

गुड्डी ने टोका- “अरे यार बोल तो, क्या सोच रही है?”

“जब ये सज धज के ट्रे में चाय लेकर गए होंगे, और तुम लोग इनको देखने गए होगे, तो कितना मजेदार सीन रहा होगा…”

और अब गुड्डी भी उस खिलखिलाने में शामिल हो गई और बोली- “सही कह रही हो, इतनी तेज ट्रे खड़खड़ा रही थी की मैं तो समझी कहीं भूकम्प तो नहीं आया, वो तो मम्मी मेरी, उन्होंने उठकर ट्रे इनके हाथ से थाम ली और समझा के बोली- “घबड़ा मत बेटी, इसमें डरने की क्या बात है, ये दिन तो हर लड़की की जिंदगी में एक दिन आता है। धीरे-धीरे प्रैक्टिस हो जायेगी…”
गुड्डी अकेले ही काफी है और अगर उसे किसी का साथ मिल जाये मेरी होने वाली दोनों सालियों का, उसकी सहेलियों का तो मेरी तो,...

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लेकिन बस दस पंद्रह मिनट में ग्लाक की उस ट्रेनिंग ने, ... हम सब को बचा लिया,... कालिया का वार आज तक खाली नहीं गया, लेकिन कंधे में घुसी गुड्डी के ग्लाक से चली गोली और मिल गया वो मौका,... कालिया जिससे कोई नहीं जीत पाया था, गुड्डी की गोली,
हे भगवान कोमल जी

ग्लॉक 14 जेन 4 की इतनी विस्तृत डिटेलिंग और निशानेबाजी, कहीं कहानी का ये भाग डिफेंस डिपार्टमेंट बैन न करदे।


आप क्या - क्या जानती है सोचते ही झुरझुरी आ जाती है। किसी इरोटिक कहानी के साथ हथियार की ये बारीकियां मुझ जैसे पाठक की बुद्धि से परे है।


अभी तो पाठकों को मॉडलिंग वर्ल्ड की बारीकियों से भी दो - चार होना है।


सच मैं आप इस प्लानेट की तो नहीं लगती हो।


आप की कहानियों की डिटेलिंग आर्थर हेली के पल्प फिक्शन की याद दिला देती है।


आप की लेखनी और ज्ञान को नमन।


सादर
 

komaalrani

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Guddi ne to apna Virat rup dikha dai
👌👌👌👌👌👌
vah apne hone vaale suhaag ki raksha ke liye kuch bhi kar sakti thi, aur kaalia se bachana matalab kaal ke gaal se bachana


aapko is thread par dekh kar bahoot acccha laga dher saaara 🙏
 

komaalrani

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हे भगवान कोमल जी

ग्लॉक 14 जेन 4 की इतनी विस्तृत डिटेलिंग और निशानेबाजी, कहीं कहानी का ये भाग डिफेंस डिपार्टमेंट बैन न करदे।


आप क्या - क्या जानती है सोचते ही झुरझुरी आ जाती है। किसी इरोटिक कहानी के साथ हथियार की ये बारीकियां मुझ जैसे पाठक की बुद्धि से परे है।


अभी तो पाठकों को मॉडलिंग वर्ल्ड की बारीकियों से भी दो - चार होना है।


सच मैं आप इस प्लानेट की तो नहीं लगती हो।


आप की कहानियों की डिटेलिंग आर्थर हेली के पल्प फिक्शन की याद दिला देती है।


आप की लेखनी और ज्ञान को नमन।


सादर
क्योंकि मामला रात का था इसलिए नाइट साइट्स और ट्राइटियम लैम्प्स का भी जिक्र जरूरी था वरना कोई कहता की अँधेरी रात में गुड्डी ने कालिया को देखा कैसे,... और डिटेल के बिना वो कहानी का टेक्स्चर नहीं बनता, जैसे जोरू का गुलाम में डाक्टर गिल वाले प्रसंग में पहले तो अल्ट्रा साउंड और फिर आई यू डी का डिटेल चित्र सहित,...
 

komaalrani

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Guddi ko kisi ka murder karwane ke liye tyar mia ja raha lagta hai.Mya baat hai, adult site par hathiyar chalane ki training.
👌👌👌
अरे नहीं,

गुड्डी तो नैनों के बाण चलाने वाली बनारसी बाला है , अँखियों से गोली मारे टाइप, न लाइसेंस की जरूरत न गोली की, उसके तीरे नीमकश से आनंद बाबू कब के घायल हो चुके हैं


बस जिदंगी में पहली और आखिरी बार पिस्टल को हाथ लगाया था,... गुड्डी ने, और ट्रेनिंग इसलिए देनी पड़ी की आनंद बाबू की हिम्मत गुड्डी क्या उसके मायके की किसी की भी बात टालने की नहीं थी,... और गुड्डी बस सीखना इसलिए चाहती थी की रीत उसकी सहेली चला सकती है तो वो क्यों नहीं, बस, जिद्द//

लेकिन कालिया का शटर डाउन करने में वो सीखना काम आया,... पर असली बात तो ये थी,...

गुड्डी को चाकू लगा था, खून बह रहा था, बोला नहीं जा रहा था और बड़ी मुश्किल से बोली तो बोला,


अब गुड्डी ने अपनी बड़ी-बड़ी दिए ऐसी आँखें खोल दी और लरजते होंठों से पूछा-


“तुम ठीक हो?” मेरी आँख भर आई।

बस सिर हिलाया,
 

komaalrani

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Kamaal ka double pace attack,kya jasusi update likhi hai mixed with erotica
Awesome super duper updates
👌👌👌👌👌👌👌
💯💯💯💯💯💯
✅✅✅✅✅
🙏🙏🙏🙏🙏:thank_you::thank_you::thank_you::thank_you::thank_you::thank_you:
 

komaalrani

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komaalrani

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