परफेक्ट स्टांस
“तो जरा जाकर देख न नीचे, किससे मरवा रही है वो। यार यहाँ बिचारा उसका तड़प रहा है। और हाँ जरा कुछ नीचे से खाने का भी सामान मिल जाय तो ले आना। कुछ नहीं हो तो अपनी झटपट सैंडविच ही बना लाना। तेरे माल की सैंडविच बनाने के चक्कर में शाम का सब कुछ खाया पिया पच गया…” गुड्डी ने समझाया। और झटपट मैं सीढ़ियों से नीचे उतर गया।
भूख वाली बात गुड्डी की एकदम सही थी। शाम का खाया पिज्जा कहाँ गायब हो गया पता नहीं चला। पूरा घर अँधेरे में डूबा था। सिर्फ एक कमरे में हल्की सी रोशनी जल रही थी जहाँ जी-टाक पर रंजी अपनी डायटसियन से बातें कर रही थी।
मुझे देखते ही मेरी बेबसी, मेरी बेताबी का अहसास उसे तुरंत हो गया और मुश्कुराकर, हल्के से हँसकर दोनों हाथों की उंगलियों से उसने इशारा किया- “बस दस मिनट…” और साथ में उसने हल्के से झटक के चेहरे पे आई लट को हटाया। कुछ लड़कियों के खिलखिलाने पे गालों पे गड्ढे पड़ते हैं लेकिन रंजी तो बस जरा सा फूलझड़ी की तरह हँस दे तो बस उसके गुलाबी गालों में गहरे गड्ढे पड़ जाते थे। तभी तो जिल्ला टाप माल थी वो और अब जग जीतने जा रही थी।
पूछा जो उनसे चाँद निकलता है किस तरह,
जुल्फों को रूख पे डालकर झटका दिया कि यूँ।
स्टार्च, कार्बोहाइड्रेट, डाइट, वाटर इनटेक और न जाने क्या-क्या खाने पीने की बातें हो रही थी। बल्की न खाने की बातें हो रही थी। और ये बातें सुनकर मेरी भूख और बढ़ गई। किचेन में कुछ भी नहीं मिला। मिलता कैसे, रंजी और गुड्डी दोनों मुझे खाने के फिराक में थी तो उन्होंने खाना कुछ बनाया नहीं। फ्रिज भी खंगाला, लेकिन सब बेकार।
अंत में मिली जुली सरकार टाइप अपनी झटपट सैंडविच ही बनानी पड़ी। गुड्डी को पसंद भी थी और जल्दी से बन भी जाती थी। 5-6 मिनट में एक प्लेट सैंडविच बनाकर मैं दबे पाँव ऊपर बढ़ा। रंजी के खाने के बारे में चर्चा खत्म होने के कगार पे थी, वो कुछ सीरियसली नोट कर रही थी।
मैंने दबे पाँव दरवाजा खोला, और वहीं दरवाजे पे खड़ा हो गया।
गुड्डी स्टांस लेकर खड़ी थी। परफेक्ट स्टांस। दोनों पैर फैले हुए थे, उसके कंधे की लम्बाई के बराबर, घुटना बहुत हल्का सा मुड़ा, और हाथ की पोजीशन भी, उसका दायां हाथ (गन हैंड) परफेक्ट ग्रिप की पोजीशन में और अंगूठा, हथेली बैक ग्रिप को पकड़े। दूसरा हाथ (सपोर्ट हैंड) भी उसी तरह ग्लॉक के दूसरी साइड को पकड़े, अंगूठा आगे की ओर जिधर स्लाइड फ्रेम से मिलती है, बाकी चार उंगलियां ट्रिगर गार्ड के नीचे जोर से दायें हाथ को दबाये।
लेकिन सबसे जबरदस्त था जिस तरह उसने अपनी आँख को ट्रेन किया था, फ्रंट साइट, रियर साइट उसकी आँख के अलाइनमेंट पे और जो तीन टारगेट उसे मैंने दिखाए थे उस पे बारी-बारी से निशाना लगाकर वो ट्रिगर पुल कर रही थी, पूरे कांफिडेंस के साथ। मैं हाथ में सैंडविच की ट्रे लिए दरवाजे पर खड़ा बस गुड्डी को देखता रहा।
गुड्डी का ध्यान सिर्फ पिस्टल पर था और टारगेट पर।
मेरा सिर्फ गुड्डी पर। ये बनारस वालियां कुछ भी सीखने में कितनी तेज होती हैं। अभी थोड़ी देर पहले ही इसने पहली बार स्ट्रैप आन डिल्डो अपनी कमर में बाँधा था और कैसे जबरदस्त, रंजी की कसी टाइट गाण्ड का हलवा बना दिया था।
रंजी मुझसे कभी न पटती, लेकिन इतनी जल्दी न,उसने रंजी को शीशे में उतार दिया, रंजी को माडल बनाने में भी वही पीछे पड़ी थी। और अब ये नया शौक?
धीमे-धीमे मैं अंदर घुसा और टेबल पर सैंडविच की ट्रे रखकर अन्नाउंस किया- “टन टना टन सैंडविच रेडी, मेरी स्पेशल सैंडविच…”
बिना निगाह हटाये वो बोली- “जानू साथ में कुछ पीने का है क्या? अभी तेरी कोई मायकेवाली न गाभिन हैं न दुधारू, हाँ 25 मई को जब लेकर आओगे न तो पक्की गारंटी आधी से ज्यादा गाभिन होकर लौंटेंगी…”
मैंने एक बार फिर उस आलमारी को खोला जिसमें भाभी ने चिट लगा रखी थी और जिन की एक बोतल (ब्लैकवुड 120 प्रूफ) निकालकर टेबल पे रख ली। ग्लास और आइस भी- “रेडी, सैंडविच भी और जिन भी…” मैंने फिर अनाउंस किया।
“और जिसकी सैंडविच बनेगी वो किधर है जानू? तेरी और तेरे पूरे शहर की फेवरिट छिनार…” गुड्डी ने फिर सवाल दागा।
“घबड़ा मत बस आ रही हूँ…” जवाब रंजी का मिला, दरवाजे के बाहर से।
और गुड्डी ने बिना घबड़ाये, पलक झपकते पिस्टल बेड के बगल की साइड टेबल पे रख दी और उसके ऊपर एक मैगजीन।
जब रंजी आई तो हम दोनों उस टेबल के सामने थे, जिसपर मैंने सैंडविच और जिन रख रखी थी।
“वाउ… मस्त सैंडविच, मेरे पेट में चूहे कूद रहे हैं, किसने बनायी है?” रंजी ने भूखी, नदीदी की तरह जोर से बोला।
“मैंने…” सीना फुलाकर मैं बोला।
“बधाई…” जोर से रंजी बोली और जैसा मेरे साथ अक्सर होता है, मुझे इग्नोर मारकर सीधे वो गुड्डी की ओर बढ़ी और उसे बाँहों में भींचकर बोली- “बधाई हो, तुझे इतनी सुघड़ गृहणी मिली है, घरेलू कामों में दक्ष, किचन में एक्सपर्ट…”
गुड्डी कौन कम थी उसने और जोर से दबोचा और अपने रैप में मुश्किल से ढके उभारों को, उसके ब्रा मुक्त, लेकिन मेरी लांग शर्ट में छुपे उरोजों पे जोर से रगड़ती, रंजी के होंठों को दबोच के चूम लिया और बोली- “अरे यार बधायी तुझे भी हो, आखीरकार, ये गृहिणी हम दोनों की साझे की है। जितनी मेरी उत्ती तेरी। तभी तो हम दोनों मिलकर इसकी नथ साथ-साथ उतार रहे हैं…”
रंजी खिलखिलाने लगी, अगर गुड्डी और रंजी एक साथ मिल जायँ न तो उस डबल पेस अटैक का मुकाबला कोई नहीं।
गुड्डी ने टोका- “अरे यार बोल तो, क्या सोच रही है?”
“जब ये सज धज के ट्रे में चाय लेकर गए होंगे, और तुम लोग इनको देखने गए होगे, तो कितना मजेदार सीन रहा होगा…”
और अब गुड्डी भी उस खिलखिलाने में शामिल हो गई और बोली- “सही कह रही हो, इतनी तेज ट्रे खड़खड़ा रही थी की मैं तो समझी कहीं भूकम्प तो नहीं आया, वो तो मम्मी मेरी, उन्होंने उठकर ट्रे इनके हाथ से थाम ली और समझा के बोली- “घबड़ा मत बेटी, इसमें डरने की क्या बात है, ये दिन तो हर लड़की की जिंदगी में एक दिन आता है। धीरे-धीरे प्रैक्टिस हो जायेगी…”
गुड्डी अकेले ही काफी है और अगर उसे किसी का साथ मिल जाये मेरी होने वाली दोनों सालियों का, उसकी सहेलियों का तो मेरी तो,...
---
लेकिन बस दस पंद्रह मिनट में ग्लाक की उस ट्रेनिंग ने, ... हम सब को बचा लिया,... कालिया का वार आज तक खाली नहीं गया, लेकिन कंधे में घुसी गुड्डी के ग्लाक से चली गोली और मिल गया वो मौका,... कालिया जिससे कोई नहीं जीत पाया था, गुड्डी की गोली,
हे भगवान कोमल जी
ग्लॉक 14 जेन 4 की इतनी विस्तृत डिटेलिंग और निशानेबाजी, कहीं कहानी का ये भाग डिफेंस डिपार्टमेंट बैन न करदे।
आप क्या - क्या जानती है सोचते ही झुरझुरी आ जाती है। किसी इरोटिक कहानी के साथ हथियार की ये बारीकियां मुझ जैसे पाठक की बुद्धि से परे है।
अभी तो पाठकों को मॉडलिंग वर्ल्ड की बारीकियों से भी दो - चार होना है।
सच मैं आप इस प्लानेट की तो नहीं लगती हो।
आप की कहानियों की डिटेलिंग आर्थर हेली के पल्प फिक्शन की याद दिला देती है।
आप की लेखनी और ज्ञान को नमन।
सादर