गहराता प्लाट
डी॰बी॰ एक पल के लिए रुके और मुझे बोलने का मौका मिल गया- “लेकिन जेड को आज दिन में क्योंक्यों नहीं पकड़ लिया गया। एक बार जब सुबह सारे बाम्ब, डिटोनेटर पकड़ लिए गए थे। तो उसके बाद तो मैं सोच रहा था की उसे भी पकड़ लिया गया होगा। मदनपूरा में भी तो आपने कर्फ्यू लगा ही रखा था…”
अब उनकी बात काटने की बारी थी- “सोच तो मैं भी यही रहा था लेकिन सब कुछ हमारे तुम्हारे सोचने से ही नहीं होता भैया। और भी लोग हैं। मैं तुमसे शेयर तो नहीं कर सकता था। लेकिन अब वो नहीं रहा तो। तुमने और रीत ने जिसे पकड़ा था। वो जहरीला सांप ही नहीं था। हजार सिर वाला महानाग था। स्लीपर होने के साथ। उसके पासपोर्ट के डिटेल जब रा ने चेक किये तो पता चला की जब वो विदेश गया था तो वहां एक बड़े टेररिस्ट ग्रुप की मीटिंग थी और ऐसा तीन-चार बार हुआ। खैर आई॰बी॰ की प्लानिंग ये थी की ये अगर नेपाल जाता है तो उसे ट्रेस कर हम नेपाल के टेरर हब के बारे में पता कर सकते हैं। तुम्हें तो मालूम है इस आपरेशन के लिए आर॰डी॰एक्स॰ नेपाल से आया…”
मैंने सोचा मुझसे ज्यादा कौन जानता होगा। और क्या प्लानिंग थी।
नेपाल बार्डर पर एक ड्रग हाल की लीक हुई और सारे कस्टम वाले पुलिस वाले वहीं लग गए थे। और ड्रग्स पकड़ी भी गईं एक बहुत बड़ा हाल था। लेकिन ठीक उसी समय एक खेत से आर॰डी॰एक्स॰ का बहुत बड़ा कन्साइन्मेंट। और वहां से कचरे के ट्रक में रख कर। जिससे कोई भी स्निफिंग उसे पकड़ ना पाए और वही बनारस, मुम्बई और बड़ौदा…”
डी॰बी॰ ने अपनी बात आगे बढ़ाई।
डी॰बी॰ ने अपनी बात आगे बढ़ाई-
“पिछले तीन महीनों में नेपाल से फर्जी नोटों का भी बहुत बड़ा जखीरा भारत आया है। समझौता एक्सप्रेस की चेकिंग के बाद अब उधर से आना बंद हो गया तो इधर से। और ये पूरी इकोनामी को सैबोटेज कर रहा है। रा और आई॰बी॰ ने ये कनफर्म किया है की वो सेंटर नेपाल में पश्चिमी इलाके में कहीं है लेकिन सही पता नहीं चला पा रहा है। पिछले साल सत्रह करोड़ फेक करेंसी नोट्स सीज हुए थे। इस साल आल रेडी बाइस करोड़ से ऊपर सीज हो चुका है। नार्मली सीजर कुल पम्प किये रूपय्यों का 10% से ज्यादा नहीं होता तो ये मान सकते हो की करीब दो सौ करोड़ से ऊपर की फेक मनी इकोनामी में घुस गई है। ये इकोनामिक टेररिज्म, बम वाले टेरऱ से कम खतरनाक नहीं हैं। इस पैसे का करीब सत्तर से अस्सी फीसदी नेपाल से ही होकर आता है। एक अलग से एफ आइ सी एन (फेक इन्डियन करेंसी नोट्स) विंग बनाई गई है और नेपाल सरकार से हम लोग हमेशा सपोर्ट के लिए बोलते हैं। लेकिन वहां जो पोलिटिकल चेंजेस हुए हैं वो सरकार अब उतनी इन्डियन फ्रेंडली नहीं है…”
डी॰बी॰ की बात सही थी।
पहले तो साइकिल से रिक्शा से, सुनौली बार्डर से जो चाहे वो। कितने तो कुरियर थे और अब जब से कंटेनर का धंधा चालू हुआ है, कस्टम वाले सारे कंटेनर तो खोल नहीं सकते और अगर उनमें से कुछ मिले हों। कितने फेक नोट एक साथ आ जायेंगे मैंने सोचा।
डी॰बी॰ ने गाड़ी इतिहास की ओर मोड़ दी थी।
“कंधार की याद है फ्लाईट 814 की…” उन्होंने पूछा।
“कौन भूल सकता है, काठमांडू से ही हाइजैक वाले चढ़े थे…” मैंने बोला।
“लेकिन सिर्फ दो-तीन लोग ऐसे प्लेन नहीं हाइजेक कर सकते उनके पीछे पूरा सपोर्ट सिस्टम रहता है…” वो बोले। फिर बात आगे बढ़ाई- “हम लोगों की बात पे तो कोई यकीन करता नहीं है, ये सबूत दो वो सबूत दो। लेकिन अमेरिकन एम्बसी ने आठ जुलाई 1997 को एक केबल भेजा था जिसे खुद उस समय के राजदूत, फ्रांक विस्नर ने साइन किया था।
साफ-साफ लिखा था की उस हाइजेकिंग के पहले आई एस आई ने नेपाल में एक टेरर हब खोला था। उससे कई आर्गनाइजेशन चलते थे। उसमें से एक आर्गनाइजेशन था जे के आई अफ (जम्मू कश्मीर इस्लामिक फ्रंट)। उस केबल में ये साफ-साफ लिखा था की जे के आई एफ का जो किंग पिन था जावेद करवाह। उसका काठमांडू में कारपेट का बड़ा बिजनेस था। आक्युपाइएड कश्मीर में बिलाल बेग उनका एजेंट था जो मुजफ्फराबाद में कैम्प चलाता था। हाइजैक के अलावा, उस केबल में ये भी जिक्र था की काठमांडू बेस्ड इस ग्रुप का इश्तेमाल लोकसभा चुनाव के पहले दिल्ली में बाम्ब ब्लास्ट के लिए भी किया गया।
उस केबल के अनुसार आई एस आई के एक कर्नल फारुक ने ये काम बिलाल बेग और टाइगर मेमन को सौंपा था, जिन्होंने काठमांडू बेस्ड लतीफ और जावेद कार्वाह को इस काम के लिए निर्देशित किया। इस मामले में इश्तेमाल किया आर॰डी॰एक्स॰ भी काठमांडू से ही आया था।
इसी तरह दौसा (राजस्थान) के पास बस में किये गए बम ब्लास्ट में भी यही ग्रुप सक्रिय था। इतनी बात तो उस अमेरिकन केबल ने कबूली है, असलियत इससे कम से कम बीस गुना ज्यादा है…” डी॰बी॰ बोले।
लेकिन ये बात थोड़ी पहले की नहीं हो गई। मैंने शंका जतायी।
“हाँ, और नहीं…” वो बोले। फिर उन्होंने सिचुएशन साफ की।
थ्रेट परसेप्शन इस समय पहले से सात गुना ज्यादा है उस दिशा से खतरे का और ये सिर्फ हमारी नहीं कई विदेशी सिक्योरिटी एजेंसीज का निष्कर्ष है। लेकिन ज्यादा बड़ा डर है भविष्य का। अफगानिस्तान, ईराक में हालत सुधरने के बाद ये लग रहा है की कहीं साउथ एशीया टार्गेट ना हो। इसलिए जब तीन शहरों पर एक साथ हमले की खबर पता चली तो सेंटर ने इसे कुछ फारेन एजेंसीज से भी शेयर किया। और क्योंकि सारा आर॰डी॰एक्स॰ नेपाल से आया था और फेक करेंसी में भी अचानक इतनी बढ़त हो गई। तो नेपाल के उस टेरर हब को ट्रेस करना फर्स्ट टार्गेट हो गया।