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Incest रिश्तो की डोर,,,, (completed)

Sanju@

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हंसता खेलता एक सुखी परिवार धीरे धीरे वासना के सागर में खींचता चला जा रहा था,,,। संजय सिंह अपनी दुनिया में मस्त था,,,,अपनी पोजीशन अपनी रुतबा का पूरा फायदा उठा कर वह किसी न किसी खूबसूरत यौैवन से अपनी प्यास बुझाता था,,, संध्या संस्कार और मर्यादा की दीवार में कैद होने के बावजूद भी अपने पति के सानिध्य में संभोग सुख का आनंद ले रही थी लेकिन कुछ दिनों से उसका नजरिया सोचने समझने का ढंग पूरी तरह से बदलता जा रहा था अब उसे अपने ही जवान बेटे की तरफल खिंचाव सा महसूस होने लगा था,,, और यही हाल संध्या के बेटे सोनू का था,,, अपनी मां के खूबसूरत बदन उसकी मदमस्त है महकती जवानी की खुशबू अपनी छातियों के अंदर महसूस करके उसका भी जवान दिन धड़कने लगा था और शगुन डॉक्टर की तैयारी करने के साथ-साथ जवानी की किताब के पन्ने भी पलटने शुरू कर दि थी,,, लेकिन उसकी किताब में उसके पापा के प्रति बढ़ती जा रही आकर्षण का अध्याय जुड़ता जा रहा था,,, और यह निरंतर बढ़ता ही जा रहा था,,,,

ऐसे ही 1 दिन संजय अपने बंगले में बने जीम के अंदर मेहनत करके अपने पसीने निकाल रहा था,,, जिम में कसरत करते हुए वह केवल छोटी सी शॉर्ट ही पहनता था,,, जिसमें उसका मर्दाना अंग बराबर काले नाग की तरह कुंडली मार कर बैठा हुआ नजर आता था,,, अगर वह खड़ा हो जाए तो शार्ट में इतना जबरदस्त तंबू बन जाता था कि मानो शादी विवाह के लिए शामियाना का तंबू तान दिया गया हो,,,, एक डॉक्टर होने के नाते संजय अपने शरीर का पूरा ख्याल रखता था,,, रोज एक डेढ़ घंटा वह अपने जिम में गुजारता था तभी तो उसका बदन एकदम कसरती हो चुका था,, तभी तो औरतों का आकर्षण उसकी तरफ कुछ ज्यादा ही रहता था यहां तक कि अब तो सब उनका भी आकर्षण अपने पापा की तरफ बढ़ने लगा था,,, संजय अपने दोनों हाथों में पाठ 5 किलो का वजन उठाकर बारी-बारी से उसी से कसरत कर रहा था जिससे उसके डोले शोले बेहतरीन नजर आ रहे थे एकदम फिल्मी हीरो के तरह,,, संध्या रोज एक गिलास संतरे का जूस संजय के लिए पहुंचाया करती थी लेकिन उस दिन देर हो जाने की वजह से शगुन को संतरे का जूस ले जाना पड़ा,,, शगुन भी हल्की फुल्की कसरत और योगा करती थी जिसकी वजह से वह भी अपने बदन पर एक पजामी और ढीली टी-शर्ट डाल रखी थी पजामी ऐसी थी उसके नितंबों का घेरा और गांड की फांकों के बीच की गहरी दरार साफ नजर आती थी,,,, शगुन एक ट्रे में संतरे के जूस का गिलास लेकर अपने पापा के रूम में गई जहां पर वह कसरत कर रहा था दरवाजा खुला हुआ था,,,, दरवाजे पर पहुंचते ही सब उनकी नजर जैसे ही अपने पापा पर पड़ी जोकि पाच पाच किलो का वजन बारी-बारी से उठा रहा था उसे देखते ही एकदम से दंग रह गई संजय उस समय शॉर्ट में था,,, उसका कसरती बदन देखते ही सगुन के दिल में कुछ कुछ होने लगा,,, शगुन की हालत अजीब सी होती जा रही थी अजीब सी कशमकश उसके तन बदन को अपनी आगोश में लिए जा रहा था वह नहीं चाहती थी कि वह अपने पापा को इस नजरिए से देखें लेकिन ना चाहते हुए भी जब भी उसके पापा उसकी आंखों के सामने आते थे तब उसको देखने का नजरिया एकदम से बदल जाता था अपनी पापा में उसे अपने सपनों का राजकुमार नजर आने लगा था खास करके उस रात से जब वह अपनी आंखों से अपने पापा के लंबे मोटे और लंबे लंड को अपनी मां की बुर में अंदर-बाहर होता हुआ देखी थी,,,, अपनी मां को अपने पापा के लंड से चुदवाती हुए और मस्ती भरी आए हैं लेते हुए देखकर शगुन के तन बदन में जो हलचल हुई थी उस हलचल के चलते उसके सोचने समझने का और देखने का नजरिया दोनों बदल चुका था,,,। इत्तेफाक से जिस समय शगुन दरवाजे पर पहुंची थी उसी समय कसरत करते हुए संजय के ख्यालों में एक बार फिर से सरिता का खूबसूरत है गदराया बदन घूमने लगा था,,,, और संजय की आंखों के सामने वही दृश्य नजर आने लगा था जब वह सरिता की गोरी गोरी बड़ी-बड़ी गांड को अपने हाथों में पकड़ कर अपना लंबा लंबा लंड उसकी बुर में पेल रहा था,,, और अत्यधिक कामोत्तेजना और मादकता से भरपूर ऊस दृश्य का ख्याल मन में आते ही शार्ट के अंदर कुंडली मारकर सोया हुआ सांप जागने लगा,,, संजय खिड़की की तरफ मुंह करके पांच 5 किलो का वजन उठा रहा था और शगुन जहां पर खड़ी थी वहां से संजय का बदन साइड से नजर आ रहा था,,,, और पूरी तरह से जवान हो चुकी शगुन की नजर औपचारिक रूप से अपने पापा के शार्ट के ऊपर थी जो की साइड से नजर आ रही थी लेकिन संजय के ख्यालों में सरिता का ध्यान आते ही उसकी शार्ट में शांत हुआ उसका लंड धीरे-धीरे खड़ा होने लगा जैसे-जैसे उसका लंड खड़ा हो रहा था वैसे वैसे उसका शॉट आगे की तरफ से बढ़ता चला जा रहा था अब तक तो सब कुछ ठीक था सिर्फ शगुन आकर्षण बस दरवाजे पर खड़ी थी और वह भी हाथ में संतरे का जूस दिए लेकिन जैसे ही उसकी नजर अपने पापा के बढ़ते हुए शोर्ट पर पड़ी वह हैरान रह गई,,, उसका दिल जोरो से धड़कने लगा उसकी हालत खराब होने लगी एक खूबसूरत जवान लड़की होने के नाते उसे इतना तो समझ में आ रहा था कि उसके पापा का शाोर्ट आगे से क्यों बढ़ता जा रहा है,,,। शगुन की आंखों के सामने उसके पापा के छोटे से शोर्ट में उसका लंड पूरी तरह से खड़ा होने लगा था और देखते ही देखते तंबू की शक्ल ले चुका था,,, शकुन तो एकदम हैरान थी दरवाजे पर खड़ी होकर वह एक-एक पल के बेहतरीन कामोत्तेजना से भरपूर नजारे को अपनी आंखों से देखती रही थी और उसे मन की आंखों में कैद भी कर रही थी,,,, शगुन अपने पापा के शॉर्ट मे बनी तंबू को देखकर अंदाजा लगा रही थी कि उसके पापा का लंड तकरीबन 1 फीट का था,,,और अपने पापा के लंबे तगड़े मोटे लंड की कल्पना करते हुए अपने मन में यह सोच रही थी कि अगर उसके पापा चाहे तो खिड़की की जाली पर खड़े होकर भी किसी भी औरत की चुदाई आराम से कर सकती है बस उन्हें खिड़की की जाली से अपने लंड को कमरे के अंदर उतारना है और उसके बाद कोई भी औरत अपनी बुर में उसके पापा के लंड से चुदाई का अद्भुत सुख प्राप्त कर सकती हैं,,,, यह उसकी कल्पना मात्र थी उसकी सोच थी हालांकि अभी तक उसने संभोग सुख से वाकिफ नहीं हो पाई थी बस जिंदगी में पहली बार खिड़की से अपने मम्मी पापा के चुदाई के खेल को देखी भर‌ थी,,, इससे ज्यादा ज्ञान उसे बिल्कुल भी नहीं था,,,संजय अपनी मस्ती में सविता के ख्यालों में खोया हुआ पांच 5 किलो का वजन उठाते हुए उत्तेजित हुआ जा रहा था उसकी छोटी सी चड्डी में पूरी तरह से तंबू बन चुका था,,,, और वह केवल चड्डी में होने के नाते उसका कसरती बदन पूरी तरह से शगुन की आंखों में आकर्षण का केंद्र बना हुआ था,,,,अपने पापा की छोटी सी चड्डी में बने तंबू को देखकर शगुन की दोनों टांगों के बीच हलचल होना शुरू हो गया था उसे अपनी पेंटिं गीली होती हुई महसूस हो रही थी,,, उसका संपूर्ण वजूद कांप रहा था,,,एक पल को तो ऐसा लगा कि जैसे उसके हाथों से जूस की ट्रे छूट कर नीचे गिर जाएगी लेकिन वह बड़ी मजबूती से ट्रे कों पकड़ी हुई थी,,,।
तभी कसरत करते हुए संजय सिंह को यह एहसास हुआ कि दरवाजे पर कोई खड़ा है इसलिए उसकी नजर दरवाजे पर गई तो दरवाजे पर शगुन को देखकर एकदम से हड़बड़ा गया,,,क्योंकि वह जानता था कि इस समय जूस लेकर उसकी पत्नी संध्या कमरे में आती थी इसलिए वह निश्चिंत होकर छोटी सी चड्डी पहन कर कसरत किया करता था लेकिन अपनी बेटी को दरवाजे पर खड़ा देखकर‌ वह एकदम से हडबडाते हुए बोला,,,,

ओहहहह,,, शगुन तुम,,,,, मम्मी कहां है तुम्हारी,,,, ?
( संजय की बातों मैं शगुन का बिल्कुल भी ध्यान नहीं था संजय उसकी तरफ घूम गया था और इस समय शगुन का सारा ध्यानसंजय की छोटी सी चट्टी में बने तंबू पर ही था जब इस बात का एहसास संजय सिंह को हुआ तो वह एकदम से घबरा कर अपनी टांगों के बीच की तरफ देखा और जैसे ही उसे इस बात का अहसास हुआ कि उसकी शोर्ट में पूरी तरह से तंबू तना हुआ है तो वह एकदम शर्मिंदा होकर दूसरी तरफ घूम गया ,,,,,, और हकलाते हुए बोला,,,)

शशश,,,, शगुन तुम जूस लेकर क्यो आई अपनी मम्मी को भेज दी होती,,,,
( इस बार अपने पापा की आवाज सुनकर शगुन की तंद्रा भंग हुई तो उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और वह एकदम शर्मिंदा होकर,,, हडबडाते हुए लगभग हकलाते हुए बोली,,,)

वववव,,वो,,,ममममम,,मैं,,,, वह क्या है ना मम्मी किचन में परेशान थी इसलिए मुझे भेज दी,,,,(शगुन शर्म के मारे इधर-उधर नजरें घुमाते हुए बोली,,,)

ठठ,, ठीक है शगुन तुम,,,, वही टेबल पर जूस का गिलास रख दो,,,,(संजय बार-बार पीछे नजर घुमाकर अपनी बेटी की तरफ देखते हुए बोला,,,,,,, शगुन की हालत खराब थी वह कांपते हुए पैरों को आगे बढ़ा कर कमरे में दाखिल हुई है और पास में पड़ी टेबल पर जूस का गिलास रखने लगी संजय एकदम घबराया हुआ था अनुभव से भरा हुआ संजय अपनी बेटी की आंखों में आई चमक जोकि उसके तंबू को देख कर आई थी इतना तो समझ गया था कि उसकी बेटी शगुन क्या देख रही थी,,,, वह पीछे नजर घुमाकर शगुन की तरफ देखने लगा जो कि वह टेबल पर बड़े आराम से जूस की ट्रे रख रही थी संजय की नजर सीधे अपनी बेटी के गोलाकार नितंबों पर पड़ी जोकि पजामी पहनने की वजह से पजामी के ऊपर से भी उसकी गोलाकार सुडोल गांड की फांक जोकि काफी गहरी नजर आ रही थी वह बड़े साफ तौर पर नजर आ रही थी,,, ना जाने कैसा सुरूर ना जाने कैसी खुमारी संजय पर छा गई कि वह एक पल के लिए अपनी बड़ी बेटी की मदमस्त गांड को पजामी के ऊपर से ही निहारने लगा,,,, उसे अपनी बेटी की गांड में अजीब सा अद्भुत सा आकर्षण नजर आने लगा जो कि निर्वस्त्र ना होने के बावजूद भी पजामी के ऊपर से बेहतरीन तरीके से एक एक कटाव उभरा हुआ नजर आ रहा था,,,,। ना चाहते हुए भी अपनी बेटी की गांड को देखकर संजय सिंह के लंड का तनाव बढ़ गया,,,, सरीता के मदमस्त जवानी से भरपूर बदन की खुमारी उसके ऊपर पहले से ही छाई थी और उसी खुमारी के नतीजन संजय अपनी बेटी की गांड को प्यासी आंखों से देखने लगा,,,, वैसे भी शर्म के मारे शगुन का संपूर्ण बदन कसमसा रहा था जिसकी वजह से ट्रे मै से जुस का ग्लास रखते हुए उसके नितंबों में अद्भुत तरह की थिरकन हो रही थी,,, जिसे देखकर संजय एकदम मस्त हुआ जा रहा था कुछ पल के लिए वह भूल गया कि जिसकी मदमस्त गांड को देखकर उसकी आंखें चमक रही है वह किसी गैर लड़की की नहीं बल्कि उसकी खुद की बड़ी लड़की की गांड थी,,,,, संजय के लंड का तनाव बढ़ता जा रहा था,,संजय को इस तरह का अद्भुत एहसास करा देने वाला तनाव काफी बरसों के बाद अपने लंड मे महसूस हो रहा था,,,उस तनाव को महसूस करके संजय को लगने लगा था कि जैसे उसके जवानी के दिन वापस आ गए हो,,,, वह अभी भी नजरों को पीछे घुमा कर अपनी बेटी के मदमस्त यौवन को अपनी आंखों से पी रहा था,,,,, तभी शगुन जूस का गिलास रखकर ट्रै कों हाथ में लिए एक बार फिर से अपने पापा की तरफ नजर घुमा कर देखी तो उसके होश उड़ गए यह देखकर कि उसके पापा झुकी होने की वजह से उसकी गांड की तरफ देख रहे थे शगुन पहले अपने पापा को और तुरंत अपनी नजरों को अपनी गांड की तरफ घुमा कर देखने लगी यह अद्भुत नजारा था संजय की आंखों में यह नजारा पूरी तरह से कैद हो चुका था अपने बेटी की नजाकत उसे ना चाहते हुए भी अद्भुत एहसास करा गई थी,,, पहले अपने पापा को देखना और फिर अपनी नजर को अपनी गांड की तरफ दौड़ाने का साफ मतलब था की सगुन अपने पापा की प्यासी नजरों की दिशा और सीधान दोनों को भाप गई थी,,,, सगुन के लिए भी यह पल शर्म से पानी पानी कर देने वाला था,,, एक अजीब सी लहर उसके तन बदन को झकझोर के रख दी,,,, पल भर के लिए शगुन एकदम से उत्तेजना में सराबोर होकर गनगना गई,,,, अपने आप को संभाल कर वह झट से कमरे से बाहर निकल गई,,,,।

संजय अपनी बेटी को रूम से बाहर जाता हुआ देख रहा था खास करके उसकी निगाह उसकी कमर के नीचे नितंबों के घेराव पर टिकी हुई थी जो कि जाते समय उसके नितंब अजीब सी थिरकन हुए मटक रहे थे,, संजय पूरी तरह से उत्तेजना से लिप्त हो चुका था उसका हाथ कब अपनी छोटी सी चड्डी के ऊपर अपने लंड पर आ गया उसे पता तक नहीं चला,,,उसकी सांसे बड़ी तेजी से चल रही थी ना चाहते हुए भी अपने आप को संभाल पाने में असमर्थ साबित हो रहा था,,,, वह टेबल के पास आकर जूस का गिलास उठाया और एक झटके में गटक गया,,,नारंगी के जूस को पीकर भी उसका दिमाग शांत नहीं हुआ बल्कि और ज्यादा गर्म होने लगा क्योंकि उसके दिमाग को शांत करने की ताकत नारंगी के जूस में नहीं बल्कि शगुन की छातियों की शोभा बढ़ा रहे दोनों अमरुद में थे,,, इस समय संजय सही गलत सब कुछ भूल चुका था एक माना जाना डॉक्टर होने के बावजूद भी वह वासना की पतली भेद रेखा को समझ पाने में असमर्थ हो रहा था,,,, इस समय उसकी गर्मी बुर का पानी ही शांत कर सकती थी,,, जो कि इस समय संभव नहीं था कि वह अपनी बीवी- की चुदाई कर सकें,,, इसलिए वह तुरंत अपनी कमरे में क्या और कमरे में चाहते ही कमरे में बनी बाथरूम में घुसकर बाथरूम का दरवाजा बंद कर लिया और अपनी छोटी सी चड्डी को भी निकाल कर एकदम नंगा हो गया,,,, वह आदम कद आईने में अपने आप को देख रहा था,,, आईने में उसका संपूर्ण नंगा बदन दिखाई दे रहा था साथ ही उसका खड़ा लंड,,, जोकि इस समय पूरी अपनी औकात में आ चुका था एकदम टाइट मानो की हाड़ मांस का बना हुआ लंड नहीं बल्कि लोहे की छड़ हो,,,,।
दूसरी तरफ शगुन की हालत खराब थी उसे इस बात का अहसास होते ही कि उसके पापा प्यासी नजरों से उसकी गांड को देख रहे थे इस बात का एहसास उसे पूरी तरह से उत्तेजना से भर गया,,, भाभी अपने कमरे में बने बाथरूम में घुस कर अपने सारे कपड़े उतार कर एकदम नंगी हो गई,,, अपनी कोरी बेदाग जवानी को देख कर उसे अपने खूबसूरत बदन पर गर्व होने लगा,,,, शगुन एकदम उत्तेजित हो चुकी थी बार-बार उसकी आंखों के सामने उसके पापा के छोटी सी चड्डी में खड़े होते हुए लंड वाला दृश्य नजर आराम उससे गरमा गरम कृषि को याद करके अपनी दोनों टांगों को फैला कर आईने के सामने ही अपनी गुलाबी बुर को अपनी हथेली से मसलने लगी,,,,सससहहहहह,आहहहहहहहह,,,पल भर में ही उसकी आंखें बंद हो गई और उसके मुख से गर्म सिसकारी की आवाज फुटने लगी,,,,

दूसरी तरफ संजय ना चाहते हुए भी अपने लंड को अपने हाथ में पकड़ कर हिलाने लगा उसके जेहन में शगुन का ही ख्याल आ रहा था और ना जाने क्यों इस समय अपने बेटी का ख्याल करके उसकी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी वह बिल्कुल भी नहीं चाह रहा था कि वह अपनी बेटी की कल्पना करके मुठ मारे लेकिन एक अद्भुत अलौकिक एहसास उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर को बढ़ा रहा था,,, अपनी बेटी के ख्यालों में खोते हुए,,,उसे अद्भुत शुक्ला के साथ सो रहा था ना चाहते हुए भी अपनी बेटी को याद करके अपने लंड को मुट्ठीयाना शुरू कर दिया,,,,
आहहहहहह,,,,,आहहहहहहहहह,,,,ओहहहहहह,,,,
गरम सिसकारी लेते हुए संजय सिंह के कल्पनाओं का घोड़ा बड़ी तेजी से दौड़ रहा था संजय की कल्पना अद्भुत और बेहद साफ नजर आ रही थी संजय अपनी आंखों को बंद करके पूरी तरह से अपनी कल्पनाओं की दुनिया में खो गया था,, उसे वह पल याद आ रहा था जब उसकी बेटी झुककर ट्रे में से जुश का ग्लास टेबल पर रख रही थी और जो कि होने की वजह से उसकी गांड मस्त नजर आ रही थी उसी समय संजय आगे बढ़ा और अपनी बेटी की पजामी को दोनों हाथों से पकड़कर नीचे घुटनों तक एक झटके में कर दिया,,, उसकी नंगी नंगी गांड को दोनों हाथों से पकड़कर फैलाता हुआअपने खड़े लंड को उसकी बुर में डालकर उसे चोदना शुरु कर दिया इस तरह की कल्पना करत हुए बहुत ही जल्द,,, वह अपने लंड की पिचकारी बाथरूम की टाइल्स पर मारने लगा उसे अद्भुत सुख का अहसास हुआ था इस तरह का सुख उसे कभी भी मुठिया मारने में नहीं आया था,,,

दूसरी तरफ शगुन किसी भी तरह से संभोग सुख का अहसास और सुख नहीं पहुंच पाई थी उसे इस तरह का मौका ही प्राप्त नहीं हुआ था लेकिन फिर भी कल्पना करते हुए वहां अपनी गुलाबी बुर की गुलाबी पत्तियों को जोर जोर से मसल रही थी,,, उसकी कल्पनाओं का राजकुमार उसके पापा,,, उसकी कल्पनाओं को और ज्यादा रंगीन कर रहे थे,,,, उसकी कल्पना भी बेहद अद्भुत थी वह इस तरह की कल्पना कर रही थी कि उसके पापा उसे बिस्तर पर लिटा कर उसकी दोनों टांगों को फैला कर अपनी मर्दाना ताकत से भरे हुए लंड को उसकी बुर में डालकर उसे चोदना शुरू कर दिए थे और वह जोर-जोर से अपनी बुर को मसल रही थी,,, पानी छोड़ने में ऊसे ज्यादा वक्त नहीं लगा,,, और देखते ही देखते हो आप ही अपने हाथों से ही चरम सुख को प्राप्त कर ली,,,।
अब लगता है की बाप बेटी और मां बेटे की चुदाई का खेल शुरु होने वाला है मजा आ जायेगा
बहुत ही गरमागरम और कामुक उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
 

Sanju@

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बाप बेटी और मां बेटा चारों के तन बदन में एक दूसरे के प्रति आकर्षण की ज्वाला भड़कने लगी थी,,, रिश्तो के बीच में आकर्षण जलती हुई आग में घी का काम करती है,,, अगर आपसी रिश्तो के बीच शारीरिक आकर्षण हो जाए तो वासना की दलदल में डूबने से फिर कोई नहीं रोक सकता,, और अब यही इन लोगों के साथ हो रहा था सोनू जो अब तक इन सब बातों से अछूता था अब वह भी अपनी मां के खूबसूरत बेहतरीन भराव दार बदन के आकर्षण में अपने आप को डुबोना शुरू कर दिया था,,,। अब वह किसी ना किसी बहाने अपनी मां के खूबसूरत बदन को निहारने लगा था,,,, अधिकांशतः उसकी कोशिश यही रहती थी कि वह अपनी मां के नंगे बदन की झलक पा सके लेकिन ऐसा होता नहीं था,, शायद अभी उसकी किस्मत इतनी तेज नहीं थी,,,
लेकिन अपनी मां के नितंबों पर अपने लंड के कड़क पन की रगड़ उसे अब तक मदहोश कर देती थी,,, साड़ी के ऊपर से ही सही लेकिन सोनू इतना तो समझ गया था कि उसकी मां की गांड एकदम रुई की तरह नरम नरम है,,,।
पहले ऐसा कभी नहीं होता था,,, लेकिन अब तो अपनी मां का ख्याल आते ही सोनू का लंड खड़ा हो जाता था,,, और यही हाल संध्या का भी था फुटपाथ पर खड़े दोनों लड़कों की बातों ने उसके दिमाग में अपने ही बेटे के प्रति ऐसा आकर्षण जगाया था कि चाह कर भी उसके दिमाग से अपने बेटे को लेकर गंदी बातें निकलने का नाम ही नहीं लेती थी,,, पहले तो शायद उसने इस बात पर ध्यान नहीं देती लेकिनअब उसे लगने लगा था कि उसका बेटा उसे उसी नजर से देखता है जिस तरह की बातें वह दोनों लड़के कर रहे थे,,, और बगीचे वाली बात भी उसे अच्छी तरह से आती थी जब वह झाड़ियों के बीच में हो रही चुदाई को अपनी आंखों से देख रही थी तो उसका बेटा भी उस नजारे को उसके साथ ही देखा था और तब उसने अपने नितंबों पर अपने बेटे के लंड के कड़क पन को बहुत अच्छी तरह से महसूस की थी,,,संध्या बार-बार यही सोचती थी कि जिस तरह से वह झाड़ियों के अंदर वाले दृश्य को देखकर मस्त हुई थी तो उसका बेटा भी झाड़ियों के बीच की चुदाई को देखकर मस्त हो गया होगा तभी तो उसका लंड खड़ा हो गया था और दौड़ते समय बार-बार उसका ध्यान उसकी बड़ी-बड़ी हिलती हुई कांड पर और उसकी चुचियों पर चली जा रही थी,,, तो क्या उसका बेटा भी दूसरे लड़कों की तरह उसे देख कर मस्त हो जाता है खास करके उसे दृश्य को देखकर जब दोनों मां बेटी एक साथ झाड़ियों के बीच की चुदाई देख रही थी वह औरत भी तो उसकी ही उम्र की थी और से चोदने वाला लड़का सोनू की उम्र का था,,, तो क्या उम्र के बीच इतना फासला होने के बावजूद भी दोनों के बीच चुदाई संभव होती है,,,,, अगर यह सच है तब तो सोनू भी उसे चोद सकता,है,,,, तो क्या सोनू उसे चोदेगा,,,,अपने मन में आए सवाल का जवाब और खुद ही अपने मन में देते हुए सोची,,, क्यों नहीं चोदेगा क्या कमी है उसमें,,, सब कुछ तो है जो एक जवान लड़के को चाहिए,,, और वैसे भी उसका बेटा खुद उसे प्यासी नजरों से देखता है अगर ऐसा ना होता तो झाड़ियों के बीच के दृश्य को देखते हुए वह उससे पीछे से एकदम सटकर खड़ा नहीं होता,,, और ऊसका लंड यों खड़ा नहीं होता,,,,,लेकिन अपने बेटे के बारे में यह ख्याल आते ही उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी उसकी सांसों की गति तेज हो गई अपने मन में यह ख्याल आते ही उसे लगने लगा कि जो कुछ भी वह सोच रही है गलत है ऐसा नहीं होना चाहिए उसके मन में ऐसा ख्याल आना भी पाप है लेकिन इन ख्यालों की वजह से उसके तन बदन में जिस तरह की हलचल जिस तरह की कंपन पैदा हो रही थी उसी अजीब सा सुख दे रही थी जिसके बारे में उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी खास करके उसकी दोनों टांगों के बीच छोटी सी पतली दरार में अद्भुत एहसास हो रहा था उसे ऐसा लग रहा था कि अपने बेटे के बारे में गंदे विचार अपने मन में लाकर उसके बुर के गुलाबी पत्तियां अपने आप ही फुदकने लगी है,,,। मदन रस की बुंदे अपने बेटे के रंगीन ख्याल से,,, बुर की अंदरूनी कसी हुई मांसल दीवारों से पसीजती हुई,,,, धीरे धीरे बुर के गुलाबी छेद से मदन रस की बूंदें अमृत की धार बनकर फूट रही थी जिससे उसकी पेंटिं गीली होती जा रही थी,,,,,, उससे अपने बदन की गर्मी बर्दाश्त नहीं हुई और वह सीधा बाथरूम में घुस गई और अंदर घुसते ही अपनी साड़ी को उतार कर नीचे फेंक दी उसका इरादा बिल्कुल भी अपने कपड़े उतारने का नहीं था लेकिन मन में 30 तरह के ख्याल हलचल मचाए हुए थे वहअपने आप को रोक नहीं पाई वह देखते ही देखते अपने सारे वस्त्र उतार कर बाथरूम के अंदर नंगी हो गई,,,, बदन की गर्मी शांत करने के लिए हमेशा वह संजय के मोटे तगड़े लंड का उपयोग करते आ रही थी,,, लेकिन इस समय अपनी गर्मी शांत करने का उसके पास अपनी दो उंगलियों के सिवा और कोई रास्ता नहीं था,,, इसलिए वह अपना एक पैर कमोड पर रखकर अपनी दोनों टांगों को अच्छी तरह से फैला ली,,, और अपनी नजरों को अपनी दोनों टांगों के बीच अपनी फूली हुई बुर पर टिका कर एक साथ अपनी दो उंगली को अपनी गुलाबी छेद में प्रवेश करने की इजाजत दे दी और उसे अंदर बाहर करते हुए अपनी कल्पनाओं के घोड़े को दौड़ाने लगी,,, कल्पना में वह झाड़ियों के बीच में उस औरत और उस लड़के की जगह अपने आप को और सोनू को रखकर कल्पना करने के लिए अक्सर वो इस तरह की कल्पना करने लगी थी जब से वह दृश्य देखी थी,,,,देखते ही देखते उसकी उंगली की रफ्तार बढ़ने लगी बाथरूम के अंदर उसकी गरम सिसकारी की आवाज गुंजने लगी पर थोड़ी ही देर में उसका गर्म लावा पिघल कर बाहर आ गया,,,, वासना का तूफान शांत हो चुका था,,,, और ठंडे पानी का सावर चालू करके अपनी गर्म बदन को ठंडा करने की कोशिश करने लगी,,,,।

कुछ दिन ऐसे ही गुजर गए,,,, अपने मन में आए इस तरह के भावनाओं से उन चारों का मन ग्लानि से भर जाता था उन्हें अपने आप पर ही गुस्सा आता था और हर बार वह इस तरह की गलती दोबारा न करने की अपने मन में ही कसम खा लेते थे लेकिन,,,, किस तरह का ख्याल कोई गलती नहीं बल्कि नशा का रूप धारण कर चुकी थी जब तक वह चारों इस तरह की कल्पना नहीं करते थे इस तरह के सवाल अपने मन में मिलाकर कोई तब तक उनका मन बेचैन रहता था,,,। और ना चाहते हुए भी उनके मन में इस तरह के ख्याल आ ही जाते थे,,,।

ऐसे ही 1 दिन घर पर कोई नहीं था,,, किराने की दुकान से दुकान वाले ने घर के लिए चावल और दाल की बोरियां भेजी थी और दुकान पर काम करने वाले लड़के ने चावल की बोरी और दाल की बोरी दरवाजे पर ही रख कर चला गया,,, जब इस बारे में संध्या को पता चला तो वह,,,दुकानदार को फोन करके इस बारे में शिकायत की दुकानदार को जब इस बारे में पता चला तो वह संध्या से माफी मांगते हुए बोला,,,।

मैडम जी नया कारीगर था इसलिए उसे नहीं पता था कि कहां रखना इसलिए मैं दरवाजे पर आकर चला गया इस बारे मैं उसी से मैं जरूर बात करूंगा अभी तो वह फिलहाल अपने घर पर गया है इसके लिए मैं माफी चाहता हूं,,, आप अपने तरीके से उसे उठवा कर रखवा लीजिए,, आइंदा से ऐसी गलती नहीं होगी,,,।

ठीक है,,,,(इतना कहकर संध्या फोन काट दी,,,, घर पर कोई नहीं था और अनाज की बोरी दरवाजे पर ही पड़ी थी जिसे घर में ले जाना जरूरी था वह खुद ही कोशिश करने लगी उसे उठाने की,,, 25 25 किलो की 4 बोरियां थी जिसमें से तो वह जैसे तैसे करके दो बोरी रख आई,,, दो बोरी रखने के बाद उसे अपने ऊपर आत्म विश्वास हो गया कि वह चारों बोरी रख लेगी,,,, और तीसरी बोरी उठाकर जैसे ही वह उठाने चली उसकी कमर एकदम से लचक पड़ी और वह बोरी के भार के साथ-साथ अपना भार भी नहीं संभाल पाई और लड़खड़ा कर गिर गई,,,, उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वह गिर गई है बेहद शर्मिंदगी का अहसास उसे हो रहा था वह हड़बड़ाहट में चारों तरफ देखने लगी कि कहीं कोई उसे देख तो नहीं रहा है,,, उसे अपने आप पर शर्म आ रही थी,,,,जब उसने तसल्ली कर ली कि उसे गिरते हुए किसी ने नहीं देखा है तो वह थोड़ा संतुष्ट हुई और उठने की कोशिश करने लगी लेकिन उठ नहीं पाई क्योंकि उसकी कमर बड़े जोरों की दुखने लगी थी,,,, उससे उठा नहीं जा रहा था,,, वह रोने जैसी हो गई,,,, दर्द के मारे उसे रोना भी आने लगा उसे दर्द कर रहा था कमर की नस में खिंचाव सा आ गया था,,, वह घबरा सी गई थी घर पर कोई नहीं था मोबाइल घर में रखा हुआ था वहां तक जाने की उसकी हिम्मत बिल्कुल भी नहीं थी,,,,बार-बार उठने की कोशिश कर रही थी लेकिन उससे उठा नहीं जा रहा था उसे अपने आप पर गुस्सा आने लगा कि अकेले ही बोरी उठाने की क्या जरूरत थी,,,,। वह वहीं पर दीवार का सहारा लेकर बैठी रह गई,,,, तभी मोटरसाइकिल की आवाज आई उसके चेहरे पर खुशी के भाव से रखने लगी क्योंकि वह जानती थी कि उसका बेटा सोनू आ गया है,,,, बाहर बाइक खड़ी करके जैसे ही सोनू गेट खोल कर अंदर प्रवेश किया तो वैसे ही दीवार का सहारा देकर बेटी अपनी मां पर नजर पड़ते ही वह एकदम से घबरा गया,,,,

क्या हुआ मम्मी ऐसे क्यों बैठी है,,,,?

सोनू मुझसे उठा नहीं जा रहा है मेरी कमर में दर्द हो रहा है,,,


लेकिन यह कैसे हो गया,,,,


यह अनाज की बोरी उठाते समय,,, लगता है कि मेरी कमर की नस खींचा गई है,,,,(संध्या दर्द से कराहते हुए बोली,,,)

चलो मम्मी मैं तुम्हें अपने हॉस्पिटल ले चलता हूं,,,।

नहीं नहीं बेटा,,,, अपना हॉस्पिटल तो बहुत दूर है एक घंटा लग जाएगा वह पहुंचने में,,, यही पास में क्लीनिक है वही चलते हैं,,,,

ठीक है मम्मी,,,,,(इतना कहकर सोनू अपनी मां का बांह पकड़कर ऊसे उठाने की कोशिश करने लगा,,, संध्या अपने बेटे का हाथ पकड़कर धीरे-धीरे उठने की कोशिश करने लगे उसे कमर में बहुत दर्द हो रहा था उससे उठा नहीं जा रहा था,,, जैसे तैसे वहअपने बेटे का सहारा लेकर खड़ी हुई जैसे यह कदम आगे बढ़ाई वैसे फिर से लड़खड़ा गई,,, सोनू तुरंत अपना हाथ अपनी मां की कमर में डालकर उसे अपने बदन का सहारा दे दिया,,,, लड़खड़ा करवा एकदम से गिरने वाली थी अपनी लेकिन अपने बेटे का सहारा पाकर उसके मुंह से बस आह निकल गई,,,,, सोनू एकदम से उत्तेजित हो गया था क्योंकि उसका हाथ उसकी मां की कमर पर था वह चिकनी मखमली एकदम मक्खन जैसी,,, पहली बार वह अपनी मां को इस तरह से पकड़े हुए था,,,, संध्या का बदन पूरी तरह से सोनू के बदन से सटा हुआ था वह अपनी मां को उसकी कमर में अपना हाथ डालकर सहारा देकर आगे की तरफ ले जा रहा था संध्या भी अपना एक हाथ अपने बेटे की कमर में डालकर उसका सहारा लेकर चल रही थी इतने दर्द होने के बावजूद भी जिस तरह से सोनू ने उसे अपना हाथ का सहारा देकर उसकी कमर को थामा था उससे वह अपने तन बदन में उत्तेजना की लहर को दौड़ते हुए साफ महसूस कर रही थी,,, अपने बेटे की इस हरकत पर वह पूरी तरह से लुभा गई थी,,, संध्या को अब अपनी बेटी का सहारा लेने में मजा आ रहा था खास करके उसे सहारा देते समय उसका हाथ इधर-उधर हो रहा था उससे वह काफी उत्तेजना महसूस कर रही थी,,,संध्या का अपने बेटे का सहारा बराबर मिल चुका था वह आराम से धीरे-धीरे अपने कदम आगे बढ़ा रही थी लेकिन उसके मन में ऐसे हालात में भी ना जाने क्यों शरारत करने की सुझ रही थी,,, दर्द तो उसे अभी भी अपनी कमर में कुछ ज्यादा ही हो रहा था एक बार फिर वह जानबूझकर लड़खडाने की कोशिश करते हुए आगे की तरफ झुक गई,,, और इस बार हड़बड़ाहट में सोनू का हाथ ऐसी जगह चला गया जहां वह सपने में भी नहीं सोचा था बस कल्पना किया करता था अपनी मां को संभालने के चक्कर में उसका हाथ आगे की तरफ आ कर एक उसकी चूची पर चला गया और वह अपनी मां को संभालने के चक्कर में उसे पकड़कर उठाने के चक्कर में अपनी मां की बाईं चूची को कस के पकड़ लिया,, और उसे फिर से सहारा देने लगा लेकिन जब उसे इस बात का एहसास हुआ कि वह हड़बड़ाहट में अपनी मां की चूची को पकड़ लिया है तो इस बात से वह पूरी तरह से मदहोश हो गया उत्तेजना के परम शिखर पर पहुंच गया झट से उसके पेंट के आगे वाला भाग तंबू की शक्ल ले लिया,,, सोनू की सांसे बड़ी तेजी से चलने लगी थी मुझे भी इस बात का एहसास संध्या को हुआ कि उसका बेटा उसे संभालने के चक्कर में उसकी चूची को पकड़ लिया है तो इस बात से वह पूरी तरह से गदगद हो गई,,, उसने तो बस तुक्का आजमाया था लेकिन उसकी सोच से भी ज्यादा कुछ हो गया था जिस तरह से सोनू अपनी मां की चूची को ब्लाउज के ऊपर से जोर से दबा कर उसे संभाला था उसकी मजबूत हथेलियों की पकड़ का एहसास संध्या को अच्छी तरह से हो गया था वह अपने बाप से भी तेज था उसकी मजबूत हथेलियों में उसकी मदमस्त खरबूजे जैसी चूची पूरी की पूरी समा तो नहीं पाई थी लेकिन आधे से ज्यादा आ गई थी,,,, जैसे ही सोनू अपनी मां की चूची को पकड़कर उसे संभाला था वैसे ही तुरंत चूची को जोर से पकड़े ने की वजह से दर्द के मारे संध्या के मुंह से आह निकल गई थी संध्या संभल चुकी थी अपने बेटे का सहारा पाकर चार पांच सेकेंड तक सोनू अपनी मां की चूची को अपनी हथेली में धरे रह गया उसका मन नहीं कर रहा था अपनी मां की चूची पर से अपना हाथ हटाने का लेकिन मजबूर था क्योंकि वह नहीं चाहता था कि उसकी मां को इस बात का अहसास हो कि वह ,,, उसकी चूची को पकड़ लिया है,,,, और संध्या जानबूझकर अपने चेहरे पर हैरानी के भाव को आने देना नहीं चाहती कि उसके बेटे को इस बात का पता चले कि उसका हाथ उसकी चूची पर आ गया है इसलिए वह एकदम सहज बनी रही,,, इस बारे में अपने बेटे को अहसास तक नहीं होने दी कि उसे पता चल गया है वह वैसे ही अपने बेटे का सहारा लेकर चलती रही और सोनू भी अपनी मां की चूची पर से हाथ हटा दिया था वैसे तो वह अपनी मां की सूची को पकड़े रहना चाहता था उसे दबाना चाहता था उस से खेलना चाहता था लेकिन ऐसा संभव नहीं था,,, सोनू अपनी मां को सहारा देकर गेट तक आ गया था जिस तरह से संध्या लड़खड़ा जा रही थी उससे उसे थोड़ा सा भी छोड़ देना मतलब साफ था कि वकील जाएगी इसलिए सोनू नहीं चाहता था कि उसकी मां फिर से नीचे गिर जाए इसलिए मैं गेट पर पहुंचकर वह गेट खोलने के लिए अपनी मां को ठीक अपने सामने ले लिया और अपना हाथ उसके दोनों बाजुओं से उठाता हुआ गेट खोलने लगा जिससे संध्या एकदम से मदहोश होने लगी क्योंकि इस पोजीशन में वह ठीक अपनी बेटी के आगे खड़ी थी और उसका बेटा दरवाजा खोलते समय उसे पूरा का पूरा अपने ऊपर ले लिया था संध्या भी जानबूझकर अपनी पीठ को अपने बेटे की छाती से सटाई हुए थी,,, और ऐसा करने में उसकी भारी-भरकम गांड ठीक उसके पेंट में बने तंबू पर स्पर्श हो रही थी अपने बेटे के मोटे तगड़े लंड की चुभन उसे अपनी गांड पर महसूस होते ही वह पूरी तरह से पिघलने लगी,,, गजब का ऐहसास ऊसके तन बदन को अपने आगोश में ले रहा था,,,, पल भर में संध्या की सांसे तेज चलने लगी सोनू अपने आगे वाले भाग को अपनी मां की गांड पर स्पर्श होता हुआ महसूस करते ही उसके तन बदन में आग लग गई,, ऊतेजना कि मारे सोनू का गला सूख रहा था,,, वह बार-बार अपने थुक से अपना गला गीला करने की कोशिश कर रहा था,,,। सोनू अपनी मां की भारी-भरकम गांड को अपने लंड पर रगड़ खाता हुआ महसूस कर रहा था उसकी मां अपने आप को संभालने की कोशिश में जानबूझकर अपनी गांड को गोल गोल नचा रही थी,,।अपनी मां की हरकत की वजह से सोनू की उत्तेजना बढ़ने लगी थी सोनू का लंड पूरी तरह से खड़ा हो गया था जिस बात का एहसास संध्या को भी अच्छी तरह से हो गया था,, सोनू जानबूझकर गेट खोलने में ज्यादा समय ले रहा था,,, तभी एक बार फिर से संध्या को शरारत करने की सुझी और वह जानबूझकर गिरने का नाटक करने लगी तो इस बार सोनू अपनी मां को संभालने की कोशिश करते हुए उसे अपनी बाहों में भर लिया,,,। ऐसा करते हुए संध्या पूरी तरह से अपने बेटे की बाहों में समा गई,,, और सोनू के पेंट में बना तंबू संध्या कि गांड के बीचो बीच दरार के अंदर घुस गया और सीधा जाकर साड़ी सहित पैंटी के ऊपर से ही उसकी बुर के मुख्य द्वार पर दस्तक देने लगा,,, संध्या एकदम से मदहोश हो गई उसकी सांसे एकदम भारी चलने लगी,, सोनू को इस बात का एहसास हो गया कि वह जिस पोजीशन में अपनी मां को पीछे से पकड़ा हुआ है वह पोजीशन अक्सर किस वजह से ली जाती है,,,इस बात का एहसास सोनू के तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ आने लगा और पूरी तरह से मदहोशी के आलम में अपने आपको डुबोने लगा,,उसकी बिल्कुल भी इच्छा नहीं हो रही अपनी मां को अपनी पकड़ से आजाद करने के लिए वह उसी तरह से अपनी मां को पकड़े रह गया और उसकी मां अपने एकदम मदहोश होकर अपनी आंखों को बंद कर ली,,, तकरीबन 10 सेकंड तक सोनू का लंड जोकी तंबू के सक्ल में था,,, ऊसकी मां की गांड की दरार के बीचो बीच फंसा रहा,,, जिस तरह से संध्या ने अपने बेटे के लंड को साड़ी सहित पेंटिं के ऊपरअपनी पुर पर दस्तक देता हुआ महसूस की थी इस बात का एहसास हो गया कि उसके बेटे का लंड कितना मजबूत और लंबा है,,, उसे अच्छी तरह से समझ में आ गया कि बेटा बाप से एक कदम आगे ही है,,,,संध्या का भी मन कर रहा था कि सोनू इसी तरह से अपनी बाहों में लेकर अपने लंड को उसकी गांड के बीचों-बीच धंसाए रहे,,,लेकिन सोनू को इस बात का अहसास हो गया कि इधर पर इस स्थिति में कोई भी देख सकता है इसलिए वह जल्दी से गेट खोल कर अपनी मां को संभालते हुए गेट के बाहर ले आया और जैसे तैसे करके अपनी मोटरसाइकिल पर बिठाकर उसे क्लीनिक की तरफ ले गया,,,।
अब लगता है की बाप बेटी और मां बेटे की चुदाई का खेल शुरु होने वाला है मजा आ जायेगा
बहुत ही गरमागरम और कामुक उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
 

Sanju@

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जैसे तैसे करके 5 मिनट में ही सोनू अपनी मां को लेकर क्लीनिक पहुंच गया,,, मोटरसाइकिल से उतरकर वह अपनी मां को सहारा देते हुए डॉक्टर के केबिन तक लेके गया,,,, वहां पर लेडी डॉक्टर थी,,,संध्या को देखते ही और उसकी बात सुनकर उसे समझ में आ गया कि क्या हुआ है वह सोनू से बोली,,,

चिंता करने की कोई बात नहीं है बस नसों में थोड़ा सा खिंचाव आ गया है लगता है कि कोई वजनदार चीज उठा रही थी,,,

जी मैडम अनाज की बोरी उठा रही थी इसके लिए ऐसा हो गया,,,

हां कभी-कभी वजन उठाते समय ऐसा हो जाता है,,, घबराने की कोई बात नहीं है,,,, आप ऐसा करिए वहां पर बैठ जाइए,,,, इंजेक्शन लगा देती हूं सब सही हो जाएगा,,,


इंजेक्शन,,,,, नहीं नहीं मैडम इंजेक्शन बिल्कुल भी नहीं,,,(संध्या इंजेक्शन का नाम सुनकर एकदम से घबराते हुए बोली,,,)

आप समझते क्यों नहीं इंजेक्शन लगेगा तो जल्दी आराम होगा,,,,


मैडम मुझे इंजेक्शन से बहुत डर लगता है,,,,(संध्या घबराते हुए बोल रही थी और अपनी मां की है बात सुनकर सोनू उसे आश्चर्य से देख रहा था उसे भी यह बात सुनकर हैरानी हो रही थी कि उसकी मां को इंजेक्शन से डर लगता है,,,)

क्या मैडम आप तो एकदम बच्चे जैसा व्यवहार कर रही है इतनी बड़ी होकर आपको इंजेक्शन से डर लगता है बिल्कुल भी पता नहीं चलता,, मैं एकदम आराम से लगाऊंगी,,,

नहीं नहीं मैडम मैं सुई नहीं लगवा सकती,,,,।

इंजेक्शन लगवाओगी तो आराम कैसे होगा,,,

मेडिसिन दे दो आराम हो जाएगा,,,,


आप समझ नहीं रही है,,,,, आपको जिस तरह की तकलीफ हुई है उसमें तुरंत आराम चाहिए वरना आप घर पर काम भी नहीं कर पाओगी,,,


क्या मम्मी तुम भी बच्चों जैसा डर रही हो,,, लगवा लो ना इंजेक्शन,,,,


नहीं नहीं बेटा मुझे इंजेक्शन से बहुत डर लगता है मैं आज तक इंजेक्शन नहीं लगवाई हुं,,,


डरो मत मम्मी मैं हूं ना तुम्हारे साथ बिल्कुल भी डर नहीं लगेगा,,,,

तुम ही समझाओ अपनी मम्मी को वरना घर पर खाना बनाना और घर के सारे काम करने के लिए तैयार रहो क्योंकि जिस स्थिति में तुम्हारी मम्मी है उन से काम नहीं हो पाएगा और अगर इंजेक्शन नहीं लगवाती है तो कम से कम चार पांच दिन तक ऐसे ही रहेगा,,,,

नहीं नहीं मैडम जी मैं समझाता हूं,,,, चलो उठो मम्मी,,, इंजेक्शन लगवा लो वरना खा म खा परेशान हो जाओगी,,,

लेकिन मुझे डर लगता है,,,,

डरने की कोई बात नहीं है बस उठो,,,,(इतना कहते हुए सोनू अपनी मां की दोनों बाहो को पकड़ कर उसे उठाने लगा,,,, यह देख कर वह लेडी डॉक्टर हंसने लगी और हंसते हुए बोली,,,)

मैंने आज तक ऐसा नजारा कभी नहीं देखी इतना जरूर देख कर आई हूं कि एक बेटे को मां समझाते हुए उसे इंजेक्शन लगाती है,,, लेकिन आज पहली बार देख रही हूं बेटा अपनी मां को इंजेक्शन लगवाने के लिए समझा रहा है,,,

क्या करूं मैडम मुझे क्या मालूम था कि मम्मी को इंजेक्शन से इतना डर लगता है,,,,।

चलो कोई बात नहीं ऐसा भी होता है,,,(इतना कहकर वह लेडी डॉक्टर अपनी जगह से खड़ी हुई और इंजेक्शन लगाने के लिए,, तैयारी करने लगी, वह, इंजेक्शन में दवा भरते हुए बोली,,,)

मैडम आप अपनी साड़ी और साया दोनों ढीला कर लो,,,
(इतना सुनते ही संध्या के साथ-साथ सोनू भी हैरान हो गया क्योंकि उसे लगा था कि हाथ में इंजेक्शन लगेगा इसलिए संध्या बोली)

हाथ में लगा दीजिए मैडम,,,,

नहीं नहीं इंजेक्शन भारी है हाथ में लगाने से हाथ दर्द करेगा और कोई काम नहीं कर पाओगी,,,,,(इतना कहते हुए वह पूरी तरह से ईंजेक्सन में दवा भर ली,,,, और इंजेक्शन लेकर संध्या के पास पहुंच गई,,,)

क्या आप भी अभी तक साड़ी और साया ढीला नहीं करी हो,,,

मुझे डर लगता है मैडम ,,,(संध्या फिर से मुंह बनाते हुए बोली,,, इतना सुनकर सोनू बोला)

ठीक है मैडम मैं बाहर इंतजार करता हूं अाप इंजेक्शन लगाइए,,,

नहीं नहीं आप यहीं रुकीए आपकी मम्मी को इंसान लगाने से बहुत डर लगता है कहीं डर के मारे झटपट आने लगी तो इंजेक्शन लग जाएगा तब इंफेक्शन होने का डर रहेगा,,,,


लेकिन मैडम जी मेरे सामने,,,,,(सोनू लगभग हकलाते हुए बोला,,,)

मैं समझती हूं तुम क्या कहना चाह रहे हो लेकिन तुम्हारा यहां रुकना जरूरी है,,,,
(लेडी डॉक्टर की बात सुनकर संध्या का दिल जोरो से धड़कने लगा था,,, संध्या को भी अपने बेटे के सामने इंजेक्शन लगवाने में शर्म महसूस हो रही थी,,,, कुछ देर तक सोनू और संध्या एक दूसरे का मुंह देखने लगे सोनू के तन पर अजीब सी हलचल डॉक्टर की साया और साड़ी ढीली करने वाली बात से ही सोनू के तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी थी,,,। लेडी डॉक्टर इंजेक्शन लेकर तैयार थी लेकिन संध्या उसी तरह से बैठी की बैठी थी,,, इसलिए डॉक्टर फिर से बोली।)

क्या मैडम जी आप कितना शर्मा रही है अपने बेटे के सामने,,, मेडिकल लाइन में यह सब भूल जाना पड़ता है,,, अब चलो जल्दी से अपने कपड़े ढीले करो इंजेक्शन लगाना है,,,,।

क्या मम्मी जल्दी करो ना इन्हें भी देर हो रही है,,,,,, ।
( सोनू की बात सुनकर संध्या को ऐसा लग रहा था कि जैसे वह अंदर से उतावला हो रहा है उसे अपने कपड़े ढीले करते हुए देखने के लिए,,,, आखिरकार संध्या को अपने कपड़े ढीले करने पड़े वह शर्माते हुए अपनी साड़ी को थोड़ा सा आगे से खोलकर अपने पेटीकोट की डोरी को खोलने लगी,,,, उस लेडी डॉक्टर को तो जरा सा भी फर्क नहीं पड़ रहा था लेकिन सोनू की हालत खराब हो रही थी वह बार-बार अपनी तिरछी नजरों से अपनी मां को अपने कपड़े ढीले करते हुए देख रहा था,,, और यही हाल संध्या का भी था उसका दिल जोरों से धड़क रहा था,,, देखते ही देखते संध्या ने अपने साया की डोरी को खोल कर अपने साये को ढीला कर दी,,, टेबल पर बैठने की वजह से संध्या की कमर के ऊपरी भाग पर हल्की सी लकीर दोनों तरफ पड़ जा रही थी जो कि औरतों की खूबसूरती में चार चांद लगा देती थी,,, कमर के ऊपरी भाग पर पड़ रही लकीर औरतों की मैच्योरिटी साबित करती है,,, और यही मांसल कटाव मर्दों को बेहद पसंद भी रहती है,,। और उसी मांसल कटाव पर बार-बार ना चाहते हुए भी सोनू की नजर चली जा रही थी,,, सोनू का इस बात का डर था कि कहीं उसकी पेंट में उसका तंबू ना बन जाए,,, वरना खामखा डॉक्टर के सामने और अपनी मां के सामने शर्मिंदा होना पड़ेगा,,,,
संध्या आपने साड़ी और साया दोनों को एकदम ढीला कर ली थी इतना ढीला की पत्रों टेबल पर से नीचे उतर जाती तो उसका साया खुद ब खुद नीचे उसके कदमों में गिर जाता,,, कपड़े ढीले होने पर वह लेडी डॉक्टर बोली,,,।

अब ठीक है,,,, अब आप पेट के बल लेट जाइए,,,,
(उस लेडी डॉक्टर के इतना कहते ही संध्या शर्म से पानी पानी हो गई क्योंकि उसके कहने के मतलब से साफ जाहिर था कि वह उसकी कमर के नीचे मतलब उसकी गांड में सुई लगाने वाली है,,, इस बात को सुनकर सोनू का भी दिल जोरो से धड़कने लगा वो तो बार-बार भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि उसका लंड में खड़ा हो जाए वरना पेंट में बना तंबू डॉक्टर की नजर में भी आ जाएगा। डॉक्टर की बात सुनकर संध्या फिर से बोली,,,)

मुझे डर लग रहा है,,,,।

डरने की क्या बात है मैडम 1 मिनट का भी काम नहीं है बस 5 सेकेंड के अंदर तो सुई लग जाएगी,,,, बस आप डरिए मत और पेट के बल लेट जाईए,,,,
(डॉक्टर की बात सुनकर संदेश वालों की तरफ देखने लगी तो सोनू भी उसे दिलासा देते हुए लेटने के लिए बोला,, संध्या शर्माते हुए टेबल पर करवट बदलकर पेट के बल लेटने लगी,,, जिस तरह से वह पेट के बल लेटने की तैयारी कर रही थीसोनू अपने मन में कल्पना कर रहा था कि जैसे उसकी मां चुदवाने के लिए पोजीशन ले रही है,,, देखते ही देखते वहां पेट के बल लेट गई,,, लेडी डॉक्टर इंजेक्शन लगाने के लिए एकदम तैयार हो चुकी थी ,,, वह ढीले कपड़े को कमर से पकड़ कर एक झटके में उसे लगभग चार पांच ईंच नीचे नीचे खींच दी जिससे सोनू की आंखों के सामने कमर के नीचे से शुरू हो रहा नितंबों का उभार झलकने लगा और साथ ही गांड की दोनों फांकों की ऊपरी सतह का हल्का सा लुभावना गड्ढा जिसमें दुनिया का हर मर्द टूटने के लिए तैयार रहता है वह नजर आने लगा यह देख कर सोनू की हालत खराब होने लगी,,, उस लेडी डॉक्टर ने एक मा के सामने इतनी भी दरकार नहीं की की उसका जवान बेटा वहीं पर खड़ा है,,,अपनी मां की मदमस्त नितंबों का वह भाग जो कि सिर्फ शुरू हो रहा था वही भर नजर आया था लेकिन इतने में सोनू एक दम मस्त हो चुका था,,,,,, वह लेडी डॉक्टर सुई लगाने वाली जगह पर हल्का सा दवा लगाकर उसे रगड़ने लगी और फिर जैसे ही सुई लगाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाई,,, संध्या दर्द और डर दोनों के मारे छटपटाने लगी,,, उसके बदन में हो रहे कंपन को देखकर डॉक्टर सोनू से बोली,,,।

तुम इधर आकर अपनी मम्मी का हाथ पकडो वरना यह इंजेक्शन नहीं लगाने देंगी,,,
(इतना सुनते ही सोनू तुरंत आगे की तरफ आ गया और अपनी मां का दोनों हाथ कस के पकड़ लिया हालांकि डर के मारे वह अपना पूरा बदन एकदम कड़क कर ली थी,,, लेकिन वह डॉक्टर तुरंत सुई लगाने लगी जैसे ही सुई की नोक गांड की मखमली सतह के अंदर प्रवेश की वैसे ही,,, संध्या मारे डर के छटपटाने की कोशिश करने लगी लेकिन सोनू बड़ी मजबूती से अपनी मां को पकड़ रखा था और देखते ही देखते उस लेडी डॉक्टर ने इंजेक्शन की सारी दवा संध्या की नितंब मे ऊलेड दी,,,।

बस बस बस हो गया,,,, कितना डरती है आप,,,(पर इतना कहते हुए रुई का टुकड़ा लेकर इंजेक्शन वाली जगह पर रखकर हल्का सा मसल दी,,,,, इंजेक्शन लग चुका था लेडी डॉक्टर ने संध्या को अपने कपड़े ठीक कर लेने के लिए कॉल कर अपनी जगह पर आकर बैठ गई और सोनू भी वही जाकर बैठ गया,,तब तक संध्या अपने कपड़े ठीक करने लगी,,,उसे अभी भी अपनी गांड पर सुई वाली जगह पर दर्द हो रहा था,,,)

सब कुछ ठीक तो है ना मैडम जी,,,

हां सब ठीक है,,कमर से लेकर जांघों तक खिंचाव है,, में दवा और मलनेके लिए ट्युब दे रही हुं,,, तुरंत आराम हो जाएगा,,,

ठीक है मैडम,,,,
( संध्या अपने कपड़े ठीक कर चुकी थी,,, लेकिन टेबल पर से ऊतर नहीं पा रही थी,, तो डाक्टर ही बोली,,)

जाओ अपनी मम्मी को उतरने में मदद करो,,,
( सोनू तुरंत गया और अपनी मां को सहारा देकर टेबल से नीचे उतरने में मदद कीया,,,और सहारा देकर क्लीनिक से बाहर ले आया,,, थोड़ी ही देर में वो दोनों घर पर पहुंच गए,,,, लेकिन रास्ते भर संध्या और सोनू दोनों की हालत खराब थी,,, मोटरसाइकिल चलाते चलाते जो कुछ भी हुआ उसके बारे में सोचकर सोनू के पेंट में तंबू बन चुका था,, बार बार सोनु की आंखों के सामने ऊसकी मां की गांड का मदमस्त उभार और गांड की फांकों के बीच का लुभावना गड्ढा नजर आ जा रहा था,,सोनु का मन अपने काबू में बिल्कुल भी नहीं था,,। अपनी मां को लेकर उसके मन में बार बार गंदे ख्याल आ जा रहे थे,,। और शायद ऊन ख्यालों को रोक पाना उसके बस में बिल्कुल भी नहीं था,,।
और यही हाल संध्या का भी था,, घर पर और क्लीनिक में जो कुछ भी हुआ,, उसके सोच के बिल्कुल विपरीत था,,।
जिसके बारे में उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी,,।लेकिन जो कुछ भी हुआ था वह संध्या के लिए बेहद सुखदाई था उसे यह सब अच्छा लग रहा था एक अजीब सी हलचल उसके तन बदन में अपना असर दिखा रही थी उसे सब कुछ अच्छा लगने लगा था भले ही अपनी कमर में बेहद दर्द का आभास हो रहा था लेकिन सोनू की हरकत और उसके सामने जो कुछ भी हुआ था उसी से उसका दर्द आनंद में बदल गया था सोनू धीरे-धीरे करके मुझे सहारा देते हुए उसे उसके कमरे मैं ले गया और बिस्तर पर लेटा दिया उसे दवा देकर आराम करने के लिए बोला और मलने वाली क्रीम को टेबल पर रखते हुए बोला,,,।

मम्मी यह कमर से लेकर के जांघों तक मलने की क्रीम है,,, शगुन आएगी तो उससे कह देना वह मालिश कर देगी,,,
(इतनी सी बात कहते हुए सोनू अपने मन में यही सोच रहा था कि काश वह क्रीम बनने के लिए उसकी मां खुद उसे बोल दे तो कितना मजा आ जाए और यही बात संध्या भी सोच रही थी कि काश यह क्रीम उसका बेटा खुद अपने हाथों से उसकी कमर से लेकर जांघो तक लगाकर मले तो कितना मजा आ जाए,,,, दोनों के मन में एक ही बात उपस रही थी लेकिन अपने मन की बात दोनों एक दूसरे से कहने में घबरा रहे थे एक दूसरे का संस्कार और दोनों के बीच का मां बेटे का रिश्ता यह बात कहने से इनकार कर रहा था,,,। संध्या कुछ बोल नहीं पाई बस हां में सिर हिला थी और सोनू कमरे में से बाहर जाते जाते बोला,,,।

कोई भी काम हो तो मुझे आवाज दे देना मैं आ जाऊंगा,,,

ठीक है बेटा,,,(यह सब तो संध्या बड़ी मुश्किल से बोल पाई थी क्योंकि उसका मन यही चाह रहा था कि उसका बेटा उसके पास बैठे उसकी कमर पर अपने हाथों से क्रीम लगाएं और सोनू दरवाजे पर पहुंचते-पहुंचते अपने मन में यह सोच रहा था कि कहां से उसकी मां कमरे से बाहर जाने की इजाजत उसे ना दे और क्रीम लगाने के लिए बोले लेकिन शायद यह अभी मुमकिन नहीं था,,,क्योंकि दोनों मां-बेटे के बीच की मर्यादा संस्कार और गहरे रिश्ते की दीवार अभी ध्वस्त नहीं हुई थी इसलिए ऐसा होना अभी संभव नहीं दिखाई दे रहा था,,,
सोनू कमरे से बाहर चला गया और संध्या मन मसोसकर रह गई।
Very nice update 👌👌👌👌
 

Sanju@

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शगुन जब घर पर आई तो उसे इस बारे में पता चला वह एकदम से घबरा गई,,, वह तुरंत अपनी मां के कमरे में गई,,,, जहां पर उसकी मां ने उसे सब कुछ बताया,,,,

क्या मम्मी तुम्हें अपने हॉस्पिटल चले जाना चाहिए था,,,

तू पागल हो गई है सगुन,,, मेरी जगह अगर तू होती तो तू भी यही करती जानती है ना अपना हॉस्पिटल कितनी दूर है और मेरी ऐसी हालत बिल्कुल भी नहीं थी कि मैं इतनी देर तक इंतजार कर पाती,, वोतो अच्छा हुआ कि सोनू समय पर आ गया और मुझे क्लीनिक लेकर गया,,। वरना आज ना जाने क्या हो जाता,,,।


अब कैसी तबीयत है आपकी,,,,

अब जाकर थोड़ा आराम लग रहा है,,,,।


दवा ले ली हो,,,,


हां दवाई तो ले ली हूं लेकिन (टेबल पर अपना हाथ बढ़ा कर वहां से ट्यूब उठाते हुए) इससे मालिश करना था मुझसे तो हो नहीं पा रहा है,,

लाइए में मालिश कर देती हूं ,,,(अपनी मां के हाथ से ट्यूब लेते हुए) मालिश करने से आप जल्दी ही अच्छी हो जाएंगी,,,(इतना कहते हुए शगुन ट्यूब का ढक्कन खोल नहीं जा रही थी कि संध्या बोली)

अभी रुक जाओ शगुन मुझे बाथरूम जाना है,,, मैं उठ नहीं पाऊंगी तूम्हे सहारा देना होगा,,,


चलिए मे ले चलती हूं,,,,(इतना कहते हुए सगुन अपनी मां को सहारा देकर बिस्तर पर से उठाने लगी,, संध्या का शरीर अच्छा खासा भरा हुआ था इसलिए शगुन को थोड़ा दिक्कत आ रही थी फिर भी वह जैसे तैसे करके अपनी मां को बिस्तर पर से खड़ी कर दी और अपना एक हाथ उसकी कमर में डालकर उसे सहारा देकर बाथरूम की तरफ ले जाने लगी जो कि रूम से ही अटैच था,,, जिस तरह से शगुनउसकी कमर में हाथ डाल कर उसे सहारा दी थी उसे सोनू की याद आ गई सोनू की इसी तरह उसकी कमर में हाथ डाल कर उसे सहारा दिया था लेकिन उसके सहारा देने से उसके तन बदन में जिस तरह की खलबली मची थी वैसा कुछ भी नहीं हुआ वरना सोनू का हाथ कमर पर स्पर्श करते ही उसकी टांगों के बीच उसकी गुलाबी बुर् के छेंद मैं उत्तेजना की शहनाई बजने लगी थी,,,, धीरे-धीरे करके शगुन बाथरूम के दरवाजे तक पहुंच गए और बाथरूम का दरवाजा खोल कर उसे अंदर की तरफ ले जाने लगी अपनी मां की स्थिति को देखकर सब उनको इतना तो अंदाजा लग गया था कि वह ठीक से चल नहीं पाएंगी,,, इसलिए बाथरूम के अंदर तक सहारा देना पड़ा,,,। शगुन अपनी मां को लेकर बाथरूम के कोने पर खड़ी हो गई और बोली,,।

यही कर लो मैं खड़ी हूं,,,,
(संध्या यह बात अच्छी तरह से जानती थी कि बिना सहारा के वहां हिल बोल नहीं सकती है इसलिए वह शगुन को बाथरूम से बाहर जाने के लिए भी नहीं बोली,,,और शगुन भी ऐसे हालात में अपनी मां को छोड़कर बाकी से बाहर जाना नहीं चाहती थी क्योंकि वह जानती थी कि अगर पैर फिसल गया कहीं गिर गई तो और दिक्कत आ जाएगी इसलिए वह वहीं खड़ी रही,,,, संध्या के लिए पहला मौका था जब वह अपनी बेटी के सामने पेशाब करने जा रही थी,,, एहसास तो बिल्कुल भी नहीं हुआ था लेकिन आज वह मजबूर थी,,, दर्द का एहसास उसे अभी भी हो रहा था,, अपनी बेटी के सामने ही उसकी उपस्थिति में अपनी साड़ी को दोनों हाथों से पकड़ कर ऊपर की तरफ उठाने लगी उसका दिल जोरों से धड़क रहा था दर्द के बावजूद भी उसके तन बदन में हलचल सी हो रही थी और वह भी इस बात से कि आज अपनी बेटी की आंखों के सामने वह पेशाब करने जा रही थी,,,। एक औरत को एक औरत के सामने पेशाब करने में झिझक तो नहीं होती लेकिन संध्या को शर्म महसूस हो रही थी,,, और वह भी एक डॉक्टर के परिवार होने के बावजूद भी,,,। खैर जो होना है वह तो होकर ही रहेगा,,लेकिन एक मलाल देखने रह गया था कि अगर शगुन की जगह उसका बेटा सोनू होता तो शायद उसे और भी ज्यादा अच्छा लगता,,,

देखते ही देखते संध्या अपनी साड़ी को धीरे धीरे उठाते हुए अपनी कमर तक उठा दी,,,शगुन ना चाहते हुए भी अपनी मां की भारी-भरकम पिछवाड़े को देख रही थी जो कि काली रंग की पेंटी के अंदर बेहद खूबसूरत लग रही थी,,, अजीब सी हलचल शगुन के भी तन बदन में हो रही थी,,, वह पीछे से अपनी मां को एक हाथ का सहारा देकर था में हुए थी,,,,


बहुत दर्द कर रही है मेरी कमर शगुन,,,,


ठीक हो जाएगा मम्मी चिंता मत करिए मैं अभी मालिश कर देती हूं बिल्कुल ठीक हो जाएगा,,,,
( शगुन की बातें सुनकर उसे राहत महसूस हो रही थी,, संध्या दोनों हाथों का सहारा लेकर अपनी काली रंग की पेंटी को उतारने लगी,,, शगुन की हालत खराब होती जा रही थी क्योंकि वह भी अच्छी तरह से जानती थी की खूबसूरती में उसकी मां उसे एक कदम आगे थी इस उम्र में भी उसके बदन का गठीला पन उसकी जवानी को शर्माने पर मजबूर कर देता था,,,,शगुन यह बात अच्छी तरह से जानती थी कि उसकी मां उससे हर मामले में 20 थी और वह एक कदम पीछे 19,,,, संध्या की गांड कुछ ज्यादा ही ऊभरी हुई और गोलाकार थी,,, जो की साड़ी पहनने के बावजूद भी बेहद खूबसूरत लगती थी तो फ़िर बिना साड़ी की कैसी लगती होगी यह बात हमेशा से सब उनके मन में उठती रहती थी लेकिन आज शायद उसे मौका मिल चुका था अपनी मां की मदमस्त गांड को बिना कपड़ों में देखने का,,,। देखते ही देखते संध्या अपनी काली रंग की पैंटी को धीरे धीरे उतारकर से नितंबों के गोलाकार आकार से नीचे जांघों तक ले आई,,, शगुन तो अपनी मां की नंगी गांड को देखते ही रह गई,,, आश्चर्य से उसका मुंह खुला का खुला है क्या क्योंकि उम्र के इस पड़ाव पर भी उसकी मां की नंगी गांड एकदम गोरी और एकदम चिकनी थी उस पर जरा सी भी झुर्रियां नहीं पड़ी थी शगुन को इस बात का बेहद आश्चर्य हो रहा था इस बात का एहसास उसे अच्छी तरह से था कि उसकी मां की गांड देखने के बाद कोई उसकी उम्र का अंदाजा नहीं लगा सकता था,,,अपनी मां की गांड को देखकर शगुन को ना जाने क्यों अपनी मां की गांड को अपनी नाजुक उंगलियो से स्पर्श करने का मन कर रहा था उसे छूने का मन कर रहा था,,, लेकिन ऐसा करने की हिम्मत उसमे बिल्कुल भी नहीं थी,,,, एक हाथ से अपनी मां को सहारा दिया हुए थी,,पढ़ना चाहते हो कि उसकी नजर बार-बार नीचे की तरफ संध्या के नितंबों पर चली जा रही थी,,

संध्या को जोरो की पिशाब लगी हुई थी,,, और वह धीरे धीरे नीचे बैठ गई और मुतना शुरू कर दी,,,, जैसे ही गुलाबी बुरके गुलाबी छेद के अंदर से सीटी की आवाज शगुन के कानों में पड़ी वो एकदम से मदहोश हो गई,,,, गजब की मधुर ध्वनि थी जो कि पूरे बाथरूम में अपना राग फैला रही थी,,, अपनी मां की बुर से निकलने वाली सीटी की आवाज से बांसुरी की मधुर आवाज लग रही थी,,, जो उसे एकदम मस्त कर दे रही थी और संध्या को भी इस बात का एहसास हो रहा था कि पेशाब करते समय उसकी बुर से सीटी की आवाज को ज्यादा ही चोरों से निकल रही थी जिससे उसे शर्म महसूस हो रही थी,,,, संध्या को पेशाब करते समय वह रंगीन पल याद आ रहा था जब उसका बेटा उसे सहारा देकर गेट से बाहर ले जा रहा था उसे अभी भी अपने नितंबों के बीचो बीच अपने बेटे के खड़े लंड का धंसने का एहसास बराबर हो रहा था,,,। वह पल उसके लिए बेहद अद्भुत और अतुल्य था,,, उस पल को याद करते हैं उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी,,,ना चाहते हुए भी संध्या की नजर अपनी दोनों टांगों के बीच की उस गुलाबी छेद पर चली गई जिसमें से पेशाब की धार फूट रही थी,,, वह अपनी ही बुर को देखकर मदहोश हो गई,,,, और पीछे खड़ी सगुन भी अपनी मां की बुर देखना चाहती थी,,,, लेकिन खड़े होने की वजह से उसे ठीक से दिखाई नहीं दे रहा था उसे सिर्फ उसकी मां की भारी-भरकम गांड ही नजर आ रही थी जिसका उसके पापा दीवाने थे,,,, तभी सगुन के मन में अपनी मां की बुर देखने की लालच प्रवृत्त होने लगी,,, और वह अपने इस लालच को दबा नहीं पाई और अपनी मां की पीठ पर अपनी हथेली रख कर उसे सहारा देने के बहाने अपनी मां के पीछे ही बैठ गई,,,, और अपनी नजरों को संध्या की मदमस्त गोरी गोरी गांड की दोनों फांकों के बीच स्थिर करके उसकी पुरानी बुर को देखने की कोशिश करने लगी,,, और बहुत ही जल्दी उसकी कोशिशे रंग लाने लगी उसे अपनी मां की बुर की गुलाबी पत्ति नजर आने लगी जिसमें से अभी भी पेशाब की धार पड रही थी। वह अपनी मां की बुर की गुलाबी पत्तियों को देखकर एकदम मस्त हो गई,,, उसे अपनी मां की बुर बहुत खूबसूरत लग रही थी,,
अपनी मां की बुर देख कर वह अपने मन में बोली,,।

तभी तो पापा मा के इतने दीवाने हैं,,,और इसलिए तो वह ऊस रात को मां की जम के ले रहे थे,,, शगुन को ऊस रात का दर्शय याद आते ही उसे अपने बदन में अजीब सी हलचल होती हुई महसूस होने लगी,,। वह एक बार फिर से अपनी मां को चुदते हुए देखना चाहती थी,,, उसकी इच्छाए बढ़ने लगी थी,,। मन मचलने लगा था,,ऐसा ही हलचल संध्या के भी तनबदन में हो रहा था,,,, बार बार उसके मन में यही ख्याल आ रहा था कि अगर बाथरूम में सगुन की जगह सोनू होता तो मजा आ जाता,,,।
संध्या पेशाब कर चुकी थी,,वह खड़ी होना चाहती थी,,,सगुन समझ गई थी,,और वह अपनी मां को सहारा देकर खड़ी कर दी और उसे बाथरूम से बिस्तर पर ले गई और खुद ही ऊसकी साड़ी को अपने हाथ से खोलकर उसकी कमर से लेकर जांघों तक मालीस कर दी,,,, आराम तो मिल रहा था लेकिन संध्या के मन मलाल रह गया था कि अगर मालीस सोनु करता तो बात कुछ और होती,,,


रात को जब संजय घर आया तो संध्या के बारे में सुनकर हैरान हो गया,,,लेकीन अपने दोनों बच्चों की सुझबुझ से काफी खुश हुआ,,,

रात को बिस्तर पर संजय को नींद नहीं आ रही थी,, संध्या तो दवा खाकर चैन की नींद सो रही थी लेकिन संजय की आंखों से नींद कोसों दूर थी,,,उसे चोदने का मन कर रहा था,, लेकिन संध्या की हालत को देखकर ऊसकी चुदाई करना ठीक नहीं था,,ना जाने कैसे उसके मन में सगुन का ख्याल आने लगा,,,और अपनी बेटी का ख्याल मन में आते ही उसका लंड खड़ा होने लगा,,,यह बहुत अजीब था,,, लेकिन सुखद एहसास से भरा हुआ था,,वह बिल्कुल भी नहीं चाहता था कि उसके मन में अपनी बेटी को लेकर कोई गंदा ख्याल आए,,,लेकीन अपनी बेटी को लेकर उसके मन में आ रहे गंदे ख्यालो को रोक सकने में वह असमर्थ था,,।
उस दिन जिम में जिस तरह से उसकी नजर अपनी ही बेटी के गोलाकार नितंबों पर पड़ी थी इस समय उसी नितंबों के बारे में सोच कर उसकी हालत खराब होती जा रही थी,,,।
उसकी आंखें बंद हो चुकी थी पजामे में तंबू सा बन गया था,,। अपनी मन में उठ रही कामवासना की इच्छाओं को अपने काबू में कर सकने ले वह कमजोर महसूस कर रहा था अपने मन में आ रहे कामवासना की इच्छाएं और वह भी अपनी बेटी को लेकर उसके तन बदन में अजीब सी हलचल पैदा कर रही थी वह कुछ भी करना नहीं चाहता था लेकिन वह मजबूर होता जा रहा था,,,, बगल में संध्या एकदम गहरी नींद में सो रही थी,,, जिस तरह का तनाव उसे अपने लंड में महसूस हो रहा था,, उसकी इच्छा बहुत हो रही थी जुदाई करने की सुबह संध्या को चोदने के बारे में सोच रहा था लेकिन उसे इस बात का डर था क्योंकि वह चौदते समय इतनी जोर जोर से धक्के लगाता था कि इस समय उसकी बीवी उसके धक्के सहने लायक बिल्कुल भी नहीं थी,,,
बेबस और लाचार होकर वह अपना पजामा घुटनों तक खींच दिया,,, उसका खड़ा टनटनाता लंड छत की तरफ मुंह उठाए खड़ा था,,, बगल में सो रही संध्या के नींद खुलेगी कि नहीं इस बारे में पूरी तरह से निश्चिंत होकर वह अपनी आंखों को बंद करके पूरी तरह से अपनी जवान बेटी शगुन के ख्यालों में खो गया,,, और अपने खड़े लंड को अपनी मुट्ठी में भर कर मुठीयाना शुरू कर दिया,,,,,,,
आनंद ही आनंद आ रहा था शकुन के ख्यालों में वह पूरी तरह से खो चुका था उत्तेजना से उसका तनबदन कसमसा रहा था,,, और देखते ही देखते उसकी लंड से निकली पिचकारी हवा में उड़ी और संध्या की साड़ी पर आकर गिरने लगा,,,, संजय एकदम मस्त हो चुका था वासना का तूफान गुजरते ही उसे अपनी हरकत पर शर्मिंदगी महसूस होने लगी,,, वह कपड़े से अपनी बीवी के ऊपर गिरे अपने वीर्य को साफ कर दिया और सो गया,,,।
Excellent update bhut hi pyara update hai
 

Sanju@

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दोपहर के 3:00 बज रहे थे और संजय अपनी ऑफिस में बैठकर कुछ काम कर रहा था,,,,,,, हॉस्पिटल का स्टाफ अपने अपने काम में लगा हुआ था,, संजय हॉस्पिटल में सारा दिन बिजी रहता था अभी किसी पेशेंट को देखना तो कभी किसी पेशेंट को कभी इमरजेंसी तो कभी ऑपरेशन,,, संजय का दिमाग थक सा जाता था,,, ऐसे ही वह अपनी टेबल पर किसी पेशेंट की फाइल देख रहा था,,, और दूसरी तरफ रूबी 25 वर्षीय एकदम जवान नर्स,,, अपने सर संजय को रिझाने की पूरी कोशिश करने में लगी हुई थी,,, वह जानती थी कि अगर उसे आगे बढ़ना है तो संजय का लंड पकड़ कर ही आगे बढ़ा जा सकता है,,,, इसलिए वह संजय के साथ किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार थी,,, वह अपनी केबिन में बैठकर ईसी बारे में सोच रही थी की कैसे अपना चक्कर चलाया जाए,,,, तभी उसके दिमाग में कोई युक्ति सूची और वह अपनी केबिन में कुर्सी पर से खड़ी हो गई और अपनी स्कर्ट को थोड़ा सा उठा कर अपने दोनों हाथों की नाजुक उंगलियों का सहारा लेकर वह अपनी लाल रंग की पैंटी को उतारने लगी और उसे अपनी लंबी लंबी चिकनी टांगों से निकालकर,,, उसे अपने पर्स में रख ली और पर्स को दो बार में रखकर अपने टेबल पर से फाइल उठा ली और संजय की ऑफिस की तरफ जाने लगी उसका दिल जोरों से धड़क रहा था उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसकी यह युक्ति काम करेगी कि नहीं लेकिन उसे विश्वास था कि संजय जी इस तरह से उसकी कामुक अदाओं को देखता है उससे जरूर उसकी यह युक्ति काम करेगी,,,,

मोबाइल की रिंग के बस्ते ही संजय स्क्रीन पर अपनी बेटी शगुन का नंबर देखकर उसे रिसीव करते हुए बोला,,,


हेलो शगुन,,,,

हां पापा,,,,,

क्या हुआ फोन क्यों की,,,,,


वह मुझे एक बुक चाहिए थी हॉस्पिटल से आते समय लेते आना,,,,


कौन सी बुक सगुन,,,,


वह मैं आपके मोबाइल पर व्हाट्सएप कर दी हूं,,,,


ठीक है मैं लेते आऊंगा,,,,,


ओके पापा,,,,,(इतना कहकर शगुन फोन कट कर दी अपने पापा की आवाज सुनते ही उसकी आंखों के सामने उसके पापा का गठीला बदन कसरती शरीर नजर आने लगा,,, और खास करके उसकी छोटी सी चड्डी में उभरते हुए उसके लंड को याद करके शगुन के तन बदन में मस्ती जाने लगी,,, वह अपने पापा को याद करके गर्म आहें भरने लगी और यही हाल संजय का भी हो रहा था अपनी ही बेटी शगुन की सुरीली आवाज को सुनकर उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी थी,,,, और ना चाहते हुए भी अपनी बेटी के बारे में सोच कर उसके पैंट का तंबू तनने लगा था,,,, बस अब उनके बारे में सोच ही रहा था कि तभी केबिन के दरवाजे पर दस्तक की आवाज सुनकर उसका ध्यान दरवाजे पर गया जोकि अंदर से बंद था लेकिन कड़ी नहीं लगी हुई थी,,,।

मे आई कम इन सर,,,,


हां आ जाओ,,,,,,
(इजाजत मिलते ही,, रूबी केबिन का दरवाजा खोल के ऑफिस में प्रवेश करने लगी तो उसकी खूबसूरत और गठीला बदन को देख कर जो अभी-अभी अपनी बेटी की सुरीली आवाज को उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर दोड़ना शुरु हुई थी वह एकाएक एकदम से रफ्तार पकड़ ली,,, संजय की अनुभवी आंखें रूबी के सफेद रंग के शर्ट के अंदर से झांक रही दोनों गोलाईयों को देखकर दोनों खरबूजे के नाप का अंदाजा लगा लिया था,,,, संजय समझ गया था कि रूबी के दोनों खरबुजो से खेलने में बेहद आनंद की प्राप्ति होगी क्योंकि रूबी अभी एकदम जवान थी मादकता और जवानी के रस से भरी हुई,,,,और जवान लड़की का रस पीने में संजय को बेहद आनंद आता था और ना जाने क्यों इस समय संजय को रुबी के अंदर अपनी बेटी शगुन नजर आ रही थी,,, रूबी टेबल के करीब आ चुकी थी उसे देखते हुए संजय बोला)

बोलो रुबी क्या काम था,,,?


सर मुझे,,,, श्रीवास्तव के बारे में बात करना था,,,,।


क्यों क्या हुआ,,,,,?

सर उनकी दवाइयों में चेंज करने हैं,,,

ऐसा क्यों सब कुछ तो ठीक है,,,,


सब कुछ ठीक नहीं है सर रह रह कर उनका ब्लड प्रेशर कभी हाई हो जाता है तो कभी लो हो जाता है,,, और उनकी कमर में दर्द भी है,,,। (रूबी अपनी मादक अदा बिखेरते हुए बोली,,,)

तो इसमें मुझसे पूछने की क्या जरूरत है तुम्हें भी तो नॉलेज है अपने हिसाब से मेडिसिन चेंज कर सकती हो,,,।


कर तो सकती हूं सर,,,, लेकिन हमें इतनी इजाजत कहां है,,,


क्यों ऐसा कह रही हो,,,,(जिस तरह से अपने शब्दों के बोल बड़ी ही मादक अदा से रुबी अपने होंठों के बीच से निकाल रही थी उसके लाल-लाल होठों को देखकर संजय के तन बदन में आग लग रही थी संजय उसके लाल-लाल होठों के रस को अपने मुंह में लेकर चूसना चाहता था,,,)

संजना मेम वह हमें इसकी इजाजत बिल्कुल भी नहीं देती,,,वह हम लोगों से कह चुकी है कि मुझसे पूछे बिना किसी भी पेशेंट को अपने हिसाब से कुछ भी नहीं देना है,,,
(संजना का नाम सुनते ही संजय को सब कुछ समझ में आ गया था संजय ने संजना को हॉस्पिटल में बहुत से छूट दे रखी थी जिसका एक ही कारण था संजना का संजय के लिए अपनी दोनों टांगों को खोल देना,,, संजय को भी संजना की दोनों टांगों के बीच कि वह पतली दरार बेहद पसंद थी,,, इसलिए तो संजय ने उसे इतनी ज्यादा छूट दे रखी थी,,,,लेकिन अब ना जाने क्यों संजय को ऐसा लगने लगा था कि जिस तरह की छूट संजना को मिली थी उसी तरह की छूट रूबी भी प्राप्त करना चाहती है इसलिए समझे रूबी से बोला,,,)

अच्छा चलो ठीक है संजना तो 1 सप्ताह की छुट्टी पर है तब तक तुम अपने हिसाब से मैनेज कर लेना,,,।
(संजय की बात सुनकर रूबी के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव नजर आने लगी लेकिन फिर वह सोची 1 सप्ताह के लिए फिर उसके बाद सब कुछ पैसा का ही वैसा सब कुछ संजना के हाथ में,,, और अब वह ऐसा नहीं चाहती थी लेकिन फिर भी संजय से वह खुलकर बोल नहीं पा रही थी,,,रूबी यह बात अच्छी तरह से जानती थी कि खुलकर बात वह तभी कर पाएगी जब वह संजय के लिए अपनी दोनों टांगे खोल पाएगी क्योंकि रूबी भी यह बात अच्छी तरह से जानती थी कि संजय की कमजोरी क्या है,,,,,,। पहले से ही पेंटी उतार कर उसके तन बदन में भी अजीब सी हलचल हो रही थी यह बात समझे को अगर मालूम हो जाए तो ऑफिस में ही उसकी चुदाई होना निश्चित था,,,रूबी अपने मन में यही सोच रही थी कि किसी भी तरह से अगर वह अपनी बुर उसे दिखाने में कामयाब हो जाती है तो आज ही उसे सब कुछ मिल जाएगा जैसा वह चाह रही है,,, इसलिए वह संजय से इजाजत लेकर कुर्सी पर से उठी और फाइल को अपने हाथ में दबाकर दो कदम की दूरी पर पहुंचकर जानबूझकर अपनी पेन नीचे गिरा दी,,,

ओह,,,,सिट,,,,,,(इतना कहकर वह बड़ी ही मादक अदाओं से अपनी गोल गोल गांड को हिलाते हुए नीचे की तरफ पेन उठाने के लिए झुकी,,, यह सब वाह संजय का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए कर रही थी वह पेन उठाते हुए अपनी नजरों को पीछे घुमा कर देखी तो संजय की नजर उसके ऊपर ही थी,,, और संजय की नजर जैसे ही उसकी दोनों टांगों के बीच की दरार से बाहर जाती गुलाबी पत्ती पर पड़ी तो उसके होश उड़ गए,,,, संजय यह देखकर दंग था कि रूबी पेंटी नहीं पहनी थी और उसकी गुलाबी बुर एकदम साफ नजर आ रही थी और वह भी एकदम मोटी मोटी पत्तियों से सुसोभित,,,, यह देखकर संजय के मुंह में पानी आ गया,,,, और रूबी यह देख कर खुश हो गई कि संजय बी वही देख रहा था जो वह दिखाना चाह रही थी,,,, तकरीबन या बेहतरीन नजारा 4 से 5 सेकंड का था और वह पेन लेकर खड़ी हो गई वह जानते थे कि उसका जादू संजय पर जरूर चल गया होगा इसलिए मैं संजय की तरफ देखेगी माही अपना कदम आगे बढ़ाई ही थी कि संजय पीछे से आवाज लगाता हुआ बोला,,,।)

रूबी,,,,

यस सर,,,,,(संजय की तरफ देखते हुए)

तुम पेंटी नहीं पहनी हो,,,,
(यह सुनते ही रूबी का दिल जोरो से धड़कने लगा क्योंकि उसे यकीन हो गया था कि उसकी युक्ति काम करना शुरू कर दी है... संजय की बात सुनते ही उसके होठों पर मुस्कान आ गई,,, और वह पेन उठाकर खड़ी हो गई और मुस्कुराते हुए बोली,,,)

गीली हो गई थी,,,,,
( संजय रूबी के जवाब और वह भी इतनी खुले तरीके से सुनकर एकदम से दंग रह गया वह कुर्सी पर अपनी गांड टीका कर बैठ नहीं पाया और खड़ा हो गया,,, और आश्चर्य से बोला,,)
गीली हो गई थी लेकिन कैसे,,,?


एक जवान लड़की की पेंटिं आखिर कार गिली क्यों और कब होती है,,,? ( रूबी मादक मुस्कान बिखेरते हुए एकदम स्पष्ट और खुले शब्दों में बोली रूबी की यह बात सुनकर संजय का लंड खड़ा होने लगा,,,, अपने आप को रोक नहीं सका और तुरंत रुबी के करीब पहुंच गया,,,संजय को इस तरह से अपने करीब आता देखकर रूबी का दिल जोरो से धड़कने लगा लेकिन उसे इस बात का विश्वास हो चुका था कि अब उसके और संजय के बीच में जरुर कुछ होगा,,,, संजय एक बड़ा डॉक्टर होने के साथ-साथ औरतों के चेहरे के हाव-भाव को पढ़ सकता था वह अच्छी तरह से जानता था कि किस समय औरत को किस चीज की जरूरत होती है और इस समय रूबी को क्या चाहिए था वह अच्छी तरह से जानता था इसलिए बिना समय कब आएगा अपने केबिन का दरवाजा बंद कर दिया दरवाजा के बंद होते ही रूबी का दिल जोरो से धड़कने लगा,,,,

दरवाजा क्यों बंद कर रहे हैं सर,,,,


रूबी में देखना चाहता हूं कि जिस वजह से तुम अपनी पैंटी निकाल चुकी हो क्या अभी भी वह चीज गीली है,,,,


ससससहहहहहह,,,, यह क्या कह रहे हैं सर,,,,,( संजय की बात से वह एकदम गरम आहें भरते हुए बोली)


क्या मैं छू कर देख सकता हूं रूबी,,,,।


इजाजत है सर,,,,,,

ओहहहहह ,,,,, रूबी,,,,,,( इतना कहते ही संजय रूबी के एकदम करीब आकर नायक आज उसकी स्कर्ट में डाल कर सीधे उसकी बुर पर अपनी हथेली रखकर उसके गीलेपन को महसूस करने लगा वास्तव में रूबी की बुरी गीली हो चुकी थी एकदम चिपचिपी,,,,, संजय अपनी दो उंगली उसकी फूली हुई बुर के ऊपर रखकर ऊसे जोर से दबाते हुए बोला,,,,)

ओहहहहहह,,,, छोटी है तो अभी भी पूरी तरह से गीली है,,,,।


इसका क्या इलाज है सर,,,,,,


इसका इलाज करवाना चाहोगी,,,( संजय रुबी की आंखों में आंखें डालकर बोला,,,)

जरूर करवाना चाहूंगी सर मैं बार-बार इसके गीलेपन से परेशान हो गई हूं,,,,


कोई बात नहीं रूबी मैं इसका अच्छे से इलाज कर दूंगा,,,(इतना कहने के साथ ही संजय एक साथ अपनी दो उंगली को उसकी गुलाबी बुर के छेद में डाल दिया,,,,, और संजय की तरफ से एकाएक इस हरकत से उसके मुंह से दर्द से कराहने की आवाज निकल गई,,,,)


आहहहहहह,,,, सर दर्द हो रहा है,,,,।

थोड़ा बहुत दर्द तो झेलना होगा रुबी वरना इलाज कैसे होगा,,,,,


आप इलाज करिए सर मेरे दर्द की परवाह मत करिए,,,,
( संजय अच्छी तरह से जानता था कि रूबी को सब कुछ मालूम है कि वह क्या चाहती है और उसके साथ क्या हो रहा है बस वह नादान बनने की कोशिश कर रही थी जबकि वो नादान बिल्कुल भी नहीं थी,,,,)

तो आओ रूबी इधर आओ,,,,(इतना कहते कि संजय उसे टेबल के पास लेकर गया और टेबल के सहारे उसकी गांड को टीकाकर उसे खड़ी कर दिया,,,,)

बस ऐसे ही खड़ी रहना,,,(इतना कहने के साथ ही संजय घुटनों के बल बैठ गया और उसकी स्कर्ट को अपने दोनों हाथों से उठाते हुए उसे कमर तक लाकर एकटक उसकी रसीली कमसिन मदमस्त कर देने वाली गुलाबी पत्तियों से सुशोभित बुर को देखने लगा,,,,,)

वाह कितनी खूबसूरत है मैंने आज तक ऐसी बिल्कुल भी नहीं देखा,,,,

क्या सर,,,,?


तुम्हारी बुर,,,,,(संजय भी मस्ती के आलम में एकदम खुले शब्दों में बोला और रूबी संजय की यह बात उसके मुंह से पूर्व शब्द सुनकर एकदम से मस्त हो गई उसके होठों पर मुस्कान आ गई,,,, संजय के लिए रास्ता खुल चुका था,,,, वह रूबी की बुर को देखकर एकदम मदहोश हुए जा रहा था रूबी एकदम जवान थी,,,,उसकी बुर को देख कर उसके मुंह में पानी आ रहा था और ना जाने कि उसके मन में ख्याल आ रहा था कि अगर रुबी की बोरी के लिए खूबसूरत और रसीली है तो उसकी बेटी की कितनी खूबसूरत होगी। अपनी बेटी का ख्याल आते ही उसके लंड का तनाव बढ़ने लगा,,,, रूबी की आंखों में आंखें डाल कर अपनी दो उंगली उसकी बुर में डालकर उसे अंदर बाहर करने लगा रूबी की सांसें उखड़ने लगी थी चाहे कुछ भी हो भले वह जानबूझकर ही संजय के साथ जिस्मानी ताल्लुकात बनाना चाहती थी लेकिन संजय की कामुक हरकतों से उसके तन बदन में उत्तेजना की अद्भुत लहर दौड़ रही थी उसके तन बदन में हलचल सी हो रही थी जिस तरह से संजय अपनी दो उंगली को उसकी बुर के अंदर डालकर उसे अंदर बाहर कर रहा था एक तरह से रूबी को इसमें चुदाई का आनंद प्राप्त हो रहा था,,,।संजय की हरकतों की वजह से उसकी बुर के अंदर से मदन रस का रिसाव बड़ी तेजी से होने लगा,,,, और इसलिए संजय बोला,,,)

रूबी तुम्हारी बुर से तो और ज्यादा पानी निकल रहा है,,,,


अब क्या होगा सर,,,,


कुछ नहीं होगा रूबी इसका भी इलाज है,,,,

क्या सर,,,?

अभी बताता हूं,,,
(इतना कहते ही संजय अपने प्यारे होठों को रूबी की दोनों टांगों के बीच के गुलाबी होठों पर रखकर उसका रसपान करने लगा रूबी एकदम मस्त हो गई संजय की इस तरह की हरकत उसके तन बदन में उत्तेजना की चिंगारी को और ज्यादा बढ़ कर रही थी और मदहोश होने लगी उससे रहा नहीं गया क्योंकि संजय पूरी तरह से उसके ऊपर छा चुका था वह अपनी जीभ को उसकी गुलामी बुर के छेद के अंदर तक डाल कर उसके मदन रस को चाट रहा था,,,,)

सससहहहहह,,,, आहहहहहहह,,,,सररररर,,,,,आहहहहहहहह,,,(रूबी से अपनी उत्तेजना बर्दाश्त नहीं हुई और अपना दोनों हाथ संजय के सर पर रख कर उसे जोर से अपनी बुर के ऊपर दबाना शुरू कर दी,,,,,,उसके मुख से लगातार गर्म से सवारी की आवाज पहुंच रही थी लेकिन इस केबिन से बाहर उसकी गर्म सिसकारी की आवाज जाने का बिल्कुल भी डर नहीं था क्योंकि केबिन पूरी तरह से साउंडप्रूफ थी,,,)

ओहहहहह,,, सर यह क्या कर रहे हो सर मुझे बहुत मजा आ रहा है ऐसा मजा मुझे आज तक नहीं मिला पर इतना कहने के साथ ही रूबी अपनी एक टांग उठा कर संजय के कंधे पर रख दी और संजय उसकी मोटी मोटी जांघों को अपने एक हाथ में भरकर उसे दबाते हुए उसकी बुर को चाटने का मजा लेने लगा,,,, संजय मदहोश हुआ जा रहा था वह एक तरफ रूबी की बुर चाट रहा था और दूसरी तरफ उसकी मोटी मोटी सुरंगों को अपनी हथेली से जोर जोर से दबा रहा था मानो कि नरम नरम मांस का टुकड़ा उसके हाथ में लग गया हो,,,, रूबी पूरी तरह से पानी पानी हुई जा रही थी,,,,,रूबी रह रहकर इतनी ज्यादा अत्याधिक उत्तेजित हो जाते क्योंकि वह अपनी कमर को ऊपर की तरफ उठाकर अपनी बुर को जोर से संजय के मुंह में दबा देती थी,,,,और संजय भी रुबी की मदहोश जवानी का पूरी तरह से फायदा उठाते हुए उसकी बुर को चाट रहा था,,,, कुछ देर तक वह रूबी की बुर में जुटा रहा रूबी एक दम मस्त हो चुकी थी मदहोश हो चुकी थीउसे अब अपनी गुलाबी पुर की गुलाबी खेत में संजय का मोटा तगड़ा लंड चाहिए था और वह यह सोच रही थी कि अब संजय उसकी बुर में लंड डाल देगा लेकिन समझे कुछ और चाहता था,,,,
वह जी भरकर रोटी की बुर का रसपान करने के बाद खड़ा हुआ,,,तो रूबी की नजर उस के पेंट में बने तंबू पर गई जो कि बेहद अद्भुत और विशाल थी वह उसके पेंट में बनी तंबू को देखती रह गई,,,, और संजय अपनी पैंट की चैन को खोलते हुए बोला,,,,,)

अब कैसा लग रहा है मेरी जान,,,,,


बहुत अच्छा है बहुत अच्छा,,,,,


अभी देखती जाओ तुम्हारा कैसा इलाज होता है,,,(इतना कहने के साथ ही संजय अपने पेंट की चैन खोलकर अपना मोटा तगड़ा मैं तो मस्त मुसल को हाथ से पकड़ कर बाहर निकालने लगा,,,, रुबी उत्सुकता के साथ संजय की हरकत को देख रही थी वह देखना चाहती थी कि पेंट नीचे संजय का हथियार किस तरह से बाहर आता है,,, संजय का लैंड कुछ ज्यादा ही भारी था इसलिए पूरी तरह से टन टनाए हुए स्थिति में उसे पेंट के छेद से बाहर निकालने में संजय को काफी मशक्कत करनी पड़ी लेकिन जैसे ही बाहर आया वह एकदम से हवा में लहराने लगा,,,,ऐसा लग रहा था कि बरसों के बाद वह कैद से आजाद हुआ है एकदम खुली हवा में अंगड़ाई लेते हुए वह ऊपर नीचे झूल रहा था,,, रूबी तो संजय के विशालकाय लंड को देखकर एकदम से आश्चर्यचकित हो गई उसके अंदर घबराहट होने लगी उसे इस बात का डर था कि इतना मोटा तगड़ा लंबा लेना उसकी बुर में घुस पाएगा कि नहीं,,, और अपनी घबराहट को अपने होठों पर लाते हुए संजय से बोली,,,।


सर क्या यह मेरी (उंगली से अपनी बुर की तरफ इशारा करते हुए) इसमें घुस पाएगा कि नहीं,,,


जरुर रुबी,,,वो भी पुरा,,,,

लेकिन सर आपका तो बहुत बड़ा और मोटा है,,,

तो क्या हुआ,,,आराम से ले लोगी,,,बस थोड़ा सा मेरा लंड मुंह में लेकर चूसकर गीला कर दो,,,,
( रुबी खुद इतने मोटे तगड़े लंड को अपने मुंह में लेकर चूसने के लिए मचल रही थी,,, इसलिए संजय की बात सुनते ही वह तुरंत अपने घुटनों के बल बैठ गई और संजय के खड़े लंड को अपने हाथ में पकड़ कर उसे अपने मुंह में डाल ली,,, पहली बार में ही रुबी लंड के मोटे सुपाड़े को मुंह में लेकर चूसने लगी,,,,)

आहहहहहह गजब,,, अद्भुत,,,,ऊफफफ,,, कमाल का चुस्ती हो,,,,ऊममममममम,,,, लाजवाब,,,,,( मदहोशी के आलम में संजय की आंखें मुंदने लगी,,,वह पुरी तरह से ईस अद्भुत एहसास में डुबने लगा,,,,मजा आ रहा था दोनों को,,रुबी पहली बार इतने मोटे तगड़े लंड को अपने मुंह में लेकर चूस रही थी,,,सच तो यही था कि रुबी पहली बार इतने मोटे तगड़े लंड को देख भी रही थी,। रुबी को विश्वास नहीं हो रहा था कि,,इतने बड़े डॉक्टर के केबिन में चुदाई का मजा लुट पाएगी,,, संजय अपनी कमर हिलाना शुरू कर दिया था,,,,एक तरह से वह रुबी के मुंह को ही चोद रहा था,,,

अब संजय को लगने लगा कि समय ज्यादा हो रहा है,,अब लंड को रुबी की बुर में डाल देना चाहिए,,,। इसलिए वह तुरंत अपना लौड़ा रुबी के मुंह से बाहर निकाल लिया,,, संजय अपने लंड को जोकी रुबी के थुक में पुरी तरह से नहाया हुआ था,,,उसे हाथ में लेकर हिलाते हुए रुबी को घुम जाने के लिए बोला,,,रुबी भी जल्द से जल्द संजय के लंड को अपनी बुर में ले लेना चाहती थी इसलिए तुरंत टेबल की तरफ मुंह करके घूम गई और बिना संजय के बोले ही उसे मालुम था कि कौन सा पोजीसन लेना है,,, इसलिए स्कर्ट को कमर तक उठा कर अपनी गांड को भी थोड़ा सा ऊपर की तरफ उठाते हुए अपनी गांड को हवा में लहराने लगी,,, संजय रुबी की ईस हरकत से बहुत खुश हुआ और तुरंत उसके पीछे लंड हीलाते हुए पहुंच गया,,, रूबी की गांड बेहद चिकनी और गोरी गोरी थी,, उसे देख कर संजय गांड की दोनों आंखों पर अपने दोनों हाथों से जोर-जोर से दो चार चपात जड़ दिया,,,

आहहहहह,,,,,(रूबी के मुंह से दर्द से कराहने की आवाज निकल पड़ी,,, दो चार चपत में ही संजय ने रूबी की गांड को टमाटर की तरह लाल कर दिया,,, संजय पूरी तरह से तैयार था रूबी की बुर में लंड डालने के लिए,,,रूबी भी उत्साह के साथ पीछे की तरफ नजर घुमाकर संजय की हर हरकत पर अपनी नजर रखे हुए थी संजय धीरे-धीरे अपने लंड को उसकी बुर के गुलाबी छेद में डालना शुरू कर दिया,,,,,जैसे-जैसे लंड का सुपाड़ा गुलाबी बुर की गुलाबी पतियों को फैलाता हुआ अंदर की तरफ घुस रहा था वेसे वैसे रुबी के चेहरे के हाव भाव बदलते जा रहे थे कभी आनंद तो कभी दर्द की आभा उसके चेहरे पर उपस रही थी,,,,, बुर पहले से ही काफी गिली और चिकनी हो चुकी थी इसलिए थोड़ी सी मशक्कत करने पर,,, धीरे-धीरे करके संजय का मोटा तगड़ा लंड रूबी की बुर के अंदर घुसना शुरू कर दिया,,,,और संजय तब तक नहीं रुका जब तक कि उसका मोटा तगड़ा लंबा लंड दूरी की बुर की गहराई पूरी तरह से नाप नहीं लिया,,,,, रूबी पीछे की तरफ अपनी मदमस्त गांड को ही देख रही थी जहां से उसे सिर्फ संजय का आधा लंड ही दिख रहा था लंड सब कुछ चीरता हुआ रुबी की बुर के अंदर समाने लगा था,,,, घबराहट और दर्द के भाव रूबी के चेहरे पर साफ झलक रहे थे लेकिन उसे अपने आप पर गर्व हो रहा था कि संजय के मोटे तगड़े लंड को उसने पूरी तरह से अपनी बुर की गहराई में ले ली थी,,,
संजय रूबी की कमर को अपने दोनों हाथों से थाम लिया था,, संजय चुदाई करना शुरू कर दिया था धीरे-धीरे उसकी कमर आगे पीछे हो रही थी और थोड़ी ही देर में संजय ने अपनी कमर की रफ्तार बढ़ा दिया अब उसका मोटा तगड़ा लंड से बुर में बड़े आराम से अंदर बाहर हो रहा था,,,।
और यही पल औरतों के लिए मर्दों की कमजोरी पकड़ने का सबसे अहम जरिया होता है वह जानती थी कि इस समय बड़ा अगर संजय से जो कुछ भी अपनी बात मनवाना चाहेगी वह संजय मांन लेगा इसलिए वह बोली,,,।

ओहहहह सर मुझे बहुत मजा आ रहा है आपका लंड बहुत मोटा और तगड़ा है,,,, आज तक मुझे ऐसा मजा कभी नहीं आया,,,,


ओहहहह रूबी मुझे भी बहुत मजा आ रहा है तुम्हारी बुर बहुत टाइट है,,,, और टाइट बुर चोदने में बहुत मजा आ रहा है,,,


तो हमेशा चोद लेना सर जब तुम्हारा मन करे तब मुझे बुला लेना मैं तुम्हारे लिए अपनी दोनों टांगे खोल दूंगी,,,

तुम सच कह रही हो रूबी,,,,


हां सर मैं एकदम सच कह रही हूं लेकिन मुझे एक बात अच्छी नहीं लगती संजना मुझे बार-बार टोकती रहती है,,,


तो तुम क्या चाहती हो मेरी जान,,,,( संजय रूबी की कमर पकड़े हुए जोर जोर से धक्के लगाते हुए बोला,,)

मुझे भी संजना जैसा रुतबा चाहिए,,,,।

मैं दिया रूबी तुमको,,,, तुम्हें किसी से भी कुछ भी पूछने की जरूरत नहीं है,,,, बस मुझे अपनी बुर का स्वाद चढ़ाने के लिए आ जाना,,,,


आज आओगे सर जब बुलाओगे तब आ जाऊंगी,,,
(रूबी मादक सिसकारी रहते हुए होली वह बहुत खुश थी क्योंकि आज उसके मन की हो चुकी थी वह भी संजय को मस्त करते हुए जोर जोर से अपनी गांड को पीछे की तरफ ठेल रही थी,,, रूबी की इस हरकत पर संजय का जोश और ज्यादा बढ़ गया और वह जोर जोर से धक्के देने लगा,,, थोड़ी ही देर में रूबी की सांसे बड़ी तेजी से चलने लगी उसका बदन अकड़ने लगा,संजय समझ गया कि रुबी का पानी निकलने वाला है इसलिए वह भी जोर जोर से धक्के लगाने लगा,,, और देखते ही देखते हैं 10 15 धक्कों के बाद दोनों एक साथ झड़ गए।संजय मस्त हो चुका था और पूरी तरह से तृप्ति का एहसास रूबी को भी दे चुका था लेकिन एक तीर से दो निशान लगा चुकी थी वह भी काफी खुश थी और अपने कपड़े ठीक कर के संजय की केबिन से बाहर चली गई,,,
रात को सब उनके द्वारा मंगाई गई बुक लेकर संजय तकरीबन 10:00 बजे घर पहुंच
बहुत ही गरमागरम और कामुक उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
रूबी और संजय की दमदार चूदाई हुई
 

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संजय सिंह जब अपने घर पहुंचा तो रात के 10:00 बज रहे थे,,,,, शगुन और सोनू दोनों खाना खाकर अपने अपने कमरे में जा चुके थे,,,, संध्या डाइनिंग टेबल पर खाना परोसने लगी,,, वह खाना खा चुकी थी क्योंकि पहले से ही उसकी आदत थी कि समय होते ही वह खाना खा लेती थी क्योंकि संजय का कोई ठिकाना नहीं रहता था कि वह कब वापस लौट आएगा इसलिए इंतजार करके कोई मतलब नहीं था,,,,, संध्या नाइट गाउन पहने हुए थी ,,,संजय फ्रेश होने के बाद तुरंत डाइनिंग टेबल पर आया और खाना खाने लगा,, साथ में जो वह बुक लाया था वह टेबल पर रख दिया था,,,, वह अपने हाथों से शगुन को वह बुक देना चाहता था इसलिए वह संध्या से बोला,,,।

संध्या तुम अपने कमरे में जाकर आराम करो मैं थोड़ी देर में आता हूं,,,

ठीक है मैं जा रही हूं मुझे भी नींद आ रही है,,,(इतना कहकर संध्या कुर्सी पर से उठी और सीढ़ियां चढ़कर अपने कमरे की तरफ जाने लगी,,,खाना खाते खाते संजय की नजर सीढीया पर चढ रही संध्या पर पड़ी तो वह संध्या की मटकती हुई गांड को देखकर एक दम मस्त हो गया,,, एकदम बड़ी-बड़ी गांड की दोनों टांगों के बीच की गहराई में उसका नाइट गाउन फंसा हुआ था,,, उसे देखकर संजय का लंड एक बार फिर से खड़ा होने लगा,,, सीढ़ियों पर अपने कदम उठाकर रखते हुए उसके नितंबों का घेराव कुछ ज्यादा ही बाहर की तरफ निकल जा रहा था जिसे देखकर संजय की हालत खराब होती जा रही थी ऐसा नहीं था कि वह पहले इस तरह का नजारा ना देखा हो लेकिन इस समय उसके तन बदन में अजीब सी हलचल मची हुई थी और वह भी अपनी ही बेटी सगुन को लेकर,,,,,, जब जब उसके जेहन में शगुन को लेकर कोई भी ख्याल आता था तो उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ ने लगती थी खास करके उसकी दोनों टांगों के बीच उसके लटकते हुए हथियार के अंदर,,,,, अपने बदन में अपनी बेटी को लेकर इस तरह के आए बदलाव को देखकर वह दंग रह जाता था और अपने आप से ग्लानी भी करता था,,, उसे अपने आप पर गुस्सा भी आता था कुछ देर के लिए अपने मन को एकदम शांत कर लेता था लेकिन फिर वही हाल हो जाता था,,,किसी जवान लड़की जो कि उसकी बेटी की हम उम्र हो उसे देखते ही उसके जीवन में एक बार फिर से शगुन की ही छवि उमडने लगती थी लाख कोशिश करने के बाद भी वह अपना नजरिया बदल नहीं पा रहा था,,,,, लेकिन एक बात को अपने अंदर जरूर महसूस करता था कि जब जब वह सब उनके बारे में सोचता था तोउसका लंड खड़ा होकर इतना जबरदस्त टाइट हो जाता था कि वैसा कभी भी नहीं हो पाता था,,,,

संध्या अपने कमरे में जा चुकी थी और संजय खाना खा चुका था,,, उसका दिल जोरों से धड़क रहा था टेबल पर रखी बुक जो कि मेडिकल से संबंधित थे उसे उठाकर शगुन के कमरे की तरफ जाने लगा,,, वह अपने मन में यही सोच रहा था कि इस समय अपनी बेटी के कमरे में जाना उचित होगा या नहीं,,, ना जाने वह क्या कर रही होगी पढ़ रही होगी या सो रही होगी इस बारे में वह बिल्कुल भी नहीं जानता था,,,,,,, वह अपने मन में यह सोच रहा था कि वह इस बुक को तो सुबह भी दे सकता है जरूरी तो नहीं कि इतनी रात को वहां अपनी बेटी के कमरे में जाकर अब्बू कर दे उसकी बेटी क्या समझेगी यह सब ख्यालात उसके मन में आ रहे थे और वह अपनी बेटी के कमरे में इस समय नहीं जाना चाहता था लेकिन,,, बार-बार शगुन का खूबसूरत जवान जिसमें उसकी आंखों के सामने नाच उठता था जिसके आकर्षण में वह पूरी तरह से मस्त होकर अपने कदमों को उसके कमरे के अंदर तक जाने के लिए रोक नहीं पा रहा था,,,और वैसे भी जिस तरह से आज वह अपने ऑफिस के अंदर अपनी ही बेटी के हम उम्र रूबी के मदमस्त यौवन का रसपान किया था उसे याद करके उसके तन बदन में अजीब सी हलचल हो रही थी,,, यह सब सोचकर उसके पैंट में तंबू सा बन चुका था,,,, और वह धीरे-धीरे अपनी बेटी के कमरे के दरवाजे तक पहुंच गया,,,
दरवाजे के नीचे से हल्की हल्की रोशनी बाहर की तरफ आ रही थी जिसका मतलब साफ था कि अभी सगुन जाग रही है यह सोच कर संजय के चेहरे पर मुस्कान आ गई,,,, दरवाजा खुला हुआ था इसका एहसास उसे हो गया अब तो वह कमरे में जाने के लिए मचलने लगा क्योंकि वह जानता था कि जवान लड़कियां अपने कमरे में अस्त-व्यस्त हालत में रहती हैं छोटे कपड़ों में तो कभी बिना कपड़ों में,,, यही सोचकर उसका दिल जोर से धड़कने लगा वह अब पूरी तरह से बिना पूछे बिना दरवाजे पर दस्तक दी में दबे पांव कमरे में जाने के लिए तैयार था,,, संजय अपने मन में यह सोच रहा था कि ना जाने उसकी बेटी शगुन कमरे में किस हालत में होगी और वह अपने मन में यही सोच रहा था कि काश शगुन अपने बिस्तर पर बिना कपड़ों के हो एकदम नंगी हो और वह उसके खूबसूरत जवान बदन को अपनी आंखों से देख सके,,,
और धड़कते दिल के साथ वह अपना हाथ आगे बढ़ा कर दरवाजे को हल्का सा धक्का दिया और दरवाजा अपने आप ही खुलता चला गया,,,, दरवाजे के खुलते ही संजय अपनी नजरों को कमरे के अंदर तक घुमाने लगा ट्यूबलाइट की सफेद रोशनी में पूरा कमरा जगमग आ रहा था ,,,, शगुन बिस्तर पर अस्त-व्यस्त हालत में तो नहीं लेकिन बिस्तर अस्त-व्यस्त हालत में था,,, बुक इधर-उधर बिखरे पड़े हुए थे,,, शगुन बिस्तर पर नहीं थी यह देखकर संजय थोड़ा सा हैरान हो गया और वह दबे पांव कमरे में दाखिल हो गया कि तभी उसे जो आवाज उसके कानों में सुनाई दी उसे सुनकर वह पूरी तरह से मदहोश हो गया उसे तसल्ली करने में बिल्कुल भी समय नहीं लगा कि वह आवाज जो उसके कानों में पढ़ रही है वह किस चीज से आ रही है,,,, उस मधुर आवाज को सुनकर संजय का दिल जोरो से धड़कने लगा उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी क्योंकि वह आवाज ही इतनी मादक और मदहोश कर देने वाली थी कीसंजय की जगह अगर और कोई भी होता तो उस का भी यही हाल होता । वह सु मधुर मादक आवाज़ बाथरूम में से आ रही थी और वह भी वह मधुर संगीत किसी और चीज से नहीं बल्कि शगुन की मदमस्त अनछुई रसीली बुर से आ रही थी,,,, संजय को इस बात का पता चल गया था कि बाथरूम में उसकी बेटी शगुन मुत रही थी,,, और इस बात का एहसास पलक झपकते ही उसके लंड को पूरी तरह से खड़ा कर गया उसके पैंट में अच्छा-खासा तंबू बन चुका था,,,, लगातार बाथरूम के अंदर से आ रही बुर से सीटी की आवाज किसी बांसुरी की मधुर संगीत की तरह संजय को अपने आकर्षण में बांधती चली जा रही थी,,,। संजय अपने मन में सोच रहा था कि उसकी बेटी शगुन कितना मुत रही हैं,,,,, वह अपने मन में कल्पना करने लगा कि कैसे उसकी बेटी अपना पजामा उतार कर और साथ में अपनी पेंटिं उतार कर और बाथरूम में बैठकर कैसे मुत रही होगी,,, इस तरह की कल्पना उसको पूरी तरह से मस्त कर दे रही थी अपनी बेटी के बारे में कल्पना करते हुए वह पैंट के ऊपर से ही अपने खड़े लंड को दबाने लगा,,,,संजय मदहोश होकर अपनी आंखों को बंद कर चुका था और अपनी बेटी के ख्यालों में पूरी तरह से खो चुका था,,,, इतना खो चुका था कि उसे इस बात का पता भी नहीं चला कि,,, शगुन पेशाब कर चुकी है और वह किसी भी वक्त बाथरूम से बाहर आ सकती है,,,, और ऐसा ही हुआ शकुन पेशाब कर चुकी थी और वह तुरंत बाथरूम का दरवाजा खोलकर जैसे ही बाहर अपने कदम रखी वैसे ही उसकी नजर अपने पापा पर चली गई जोकी बाथरूम के एकदम बगल में खड़े होकर कुछ सोच रहे थे ,,,सगुन को ऐसा ही लगा लेकिन जैसे ही उसकी नजर अपने पापा के हाथ पर पड़ी तो वह दंग रह गई क्योंकि उसके पापा का हाथ उसके लंड पर था जो कि वहां पेंट के ऊपर से ही पकड़े हुए था यह देखकर वह पूरी तरह से हैरान हो गए और वह एकाएक बोल पड़ी,,,।

ओहहह पापा आप,,,,(इतना सुनते ही संजय हड़बड़ाहट में अपनी आंख खोलकर जैसे ही बाथरूम की तरफ देखा तो उसकी बेटी शगुन खड़ी थी और वह भी कमर के नीचे एक पेंटी के सिवा उसने कुछ नहीं पहन रखी थी,,, अपनी बेटी का गोरा बदन और उसकी मोटी मोटी सूट और जांघों को देखकर संजय की आंखों में एकदम से चमक आ गई और वह हैरानी से अपनी बेटी के कमर के नीचे अर्ध नग्न बदन को देखते हुए बोला,,,।

सगुन,,,,,,,(वह इतना ही बोल पाया था कि शगुन तुरंत अपनी कमर के नीचे की तरफ देखी तो हुआ एकदम से हड़बड़ा कर अपने नंगे पन को छुपाने के लिए तुरंत बाथरूम में घुस गई और बाथरूम का दरवाजा फटाक से बंद कर दी,,,,बाथरूम के अंदर उसका बुरा हाल था उसकी सबसे बड़ी तेजी से चल रही थी क्योंकि उसकी नजरों ने जो कुछ भी देखी थी वह उसके सोचकर बिल्कुल भी विरुद्ध था क्योंकि वह कभी सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि उस समय उसके पापा उसके कमरे में आएंगे क्योंकि आज तक ऐसा बिल्कुल भी नहीं हुआ था और वह जिस हालत में बाथरूम के बाहर कदम रखकर अपने पापा की स्थिति को देखी थी उस से वह काफी हैरान थी,,,, वह समझ गई थी कि उसके पापा को चलो इस बात का एहसास हो गया होगा कि वह बाथरूम के अंदर है और पेशाब कर रही हैं,,,क्योंकि बाथरूम के चारदीवारी के अंदर बैठकर पेशाब करके वह दुनिया की नजरों से तो बच सकती थी और अपने पापा के नजरों से भी लेकिन दूर से आ रही गजब की सीटी की आवाज को वह बाथरूम के चारदीवारी से बाहर जाने से भला कैसे रोक पाती और उसे इस बात का एहसास हो चुका था कि उसके पेशाब करते समय निकलने वाली सीटी की आवाज और उसके पापा के कानों में पहुंच चुकी थी तभी तो उसके पापा एकदम मस्त होकर अपना लंड पकड़े हुए खड़े थे,,, इस बात का ख्याल शगुन को आते ही उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी,,, बस इस बात का भी अच्छी तरह से पता था कि उसके कमर के नीचे के नंगे बदन पर उसके पापा की नजर पड़ गई थी वह थोड़ी घबराई हुई थी लेकिन जिस तरह का हादसा उसके साथ हुआ था उसके तन बदन में मदहोशी की उमंग फैलने लगी थी जिसके चलते उसके होठों पर मुस्कान आ गई थी और वह तुरंत बाथरूम में टंगी अपने पजामे को उतार कर तुरंत पहन ली और बाथरूम से बाहर आ गई तब तक उसके पापा बिस्तर पर बैठ चुके थे,,,, शगुन के बाहर आते ही बात करने का कोई भी बहाना ना देख कर संजय बोल पड़ा।

शगुन तुमने जो फोन करके मुझसे बुक मंगाई थी वह मैं ले आया हूं,,,,(इतना कहने के साथ ही संजय अपने हाथ में लिए हुए बुक को वहीं बिस्तर पर रख दिया,,, शगुन भी धीरे-धीरे खत्म बढ़ाते हुए अपने पापा के पास गई और बिस्तर पर रखी हुई बुक उठाकर उसे पन्ना पलट कर देखते हुए जब पूरी तरह से संतुष्ट हो गई कि उसके द्वारा मंगाई गई बुक वही है तो वह मुस्कुरा कर बोली,,,)

थैंक्स पापा यह वही बुक है जो में आपसे मंगाई थी,,,
(संजय की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह अपने बेटी से नजरें मिलाकर बात कर सके बंद कर उधर देखता हुआ बोला)

शगुन दरवाजा तो बंद कर लेना चाहिए था,,,,।

जी पापा शायद जल्दबाजी में दरवाजा लॉक करना भूल गई,,,।(इतना कहते हुए वह भी बिस्तर पर बैठ गई,,, और जैसे ही संजय की नजर उसकी छातियों पर पड़ी वह एक बार फिर से मदहोश होने लगा,,,, क्योंकि संजय को साफ दिखाई दे रहा था कि इसलिए विलेज पतली सी कमीज के अंदर उसकी बेटी में ब्रा नहीं पहनी हुई थी जिससे संतरे की तरह गोल गोल उसकी चूचियां पतले से कमीज के अंदर एकदम साफ साफ नजर आ रहे थे,,, और खास करके उसकी दोनों गोलाईयों का हल्का सा भाग भी नजर आ रहा था,,,, संजय का अप वहां बैठ पा ना बिल्कुल मुश्किल हुए जा रहा था,,,क्योंकि उसे इस बात का डर था कि उसकी बेटी की मदहोश कर देने वाली जवानी के आगे वह कहीं अपना आपा ना खोदे,,,, और इसलिए वह हड़बड़ाहट में बिस्तर पर से खड़ा हुआ और वहां से जाने लगा लेकिन वह यह बात भूल गया किउत्तेजना की वजह से उसके पेंट में अच्छा खासा तंबू सा बन गया है और वह जैसे ही खड़ा हुआ वह अपने तंबू को छिपाने की बिल्कुल भी कोशिश नहीं किया वह पूरी तरह से भूल चुका था लेकिन सब उनकी नजर में उसके पेंट में बना तंबू पूरी कहां से आ चुका था और वह अपने पापा के पेंट में बने तंबू को देखती ही रह गई,,,

संजय बिना कुछ बोले शगुन के कमरे से बाहर जा चुका था और जाते-जाते एक बड़ा सा तूफान छोड़ गया था अपने अंदर भी और अपनी बेटी के अंदर भी,,,, शगुन को समझ में नहीं आ रहा था कि उसे क्या करना चाहिए लेकिन इस बात का एहसास हो से हो गया था कि उसके पापा उसे देखकर उत्तेजित हो चुके थे तभी तो उनके पेंट में अच्छा खासा तंबू बन गया था,,,, शगुन का दिल जोरों से धड़क रहा था उसे इस बात का एहसास हो रहा था कि उसके कमरे से निकलकर उसके पापा अपने कमरे में जाकर उसकी मां की चुदाई जरूर करेंगे क्योंकि उनकी हालत देखकर यही लगता था कि वह पूरी तरह से उत्तेजित और चुदवासे हो चुके थे,,,, और यही देखने के लिए सगुन,,5 मिनट बाद अपने कमरे में से बाहर निकल गई और अपने पापा के कमरे की तरफ जाने लगी उसके मन में ना जाने क्यों इस तरह के ख्याल आ रहे थे कि उसके पापा जरूर उसकी मां को चोदेंगे और यह देखने के लिए उसका मन मचल रहा था,,, और वह थोड़ी ही देर मेंअपने पापा के कमरे के बाहर पहुंच गई और उसकी किस्मत अच्छी थी कि खिड़की भी हल्की सी खुली हुई थी खिड़की के अंदर झांक कर देखे तो अंदर ट्यूबलाइट की दूधिया रोशनी में सब कुछ साफ नजर आ रहा था,,, उसकी मां नींद में थी लेकिन फिर भी उसके पापा उसके गाउन को ऊपर तक उठाने लगे और देखते ही देखते उसे कमर तक उठा दिए यह देखकर सगुन उनके दिल की धड़कन बढ़ने लगी,,,,और उसकी आंखों के सामने ही उसके पापा उसकी मां के ऊपर चढ़ गए और उन्हें नींद में ही चोदना शुरु कर दिए,,, यह देख कर सगुन की हालत खराब होने लगी,,, उसकी बुर से भी पानी निकलने लगा और उसकी पैंटी गीली होने लगी,,,, सगुन से रहा नहीं गया और अपने कमरे में जाकर अपने सारे कपड़े उतार कर बिस्तर पर लेट गई और अपनी दोनों टांगों को फैला कर अपनी उंगली का सहारा लेकर अपनी गर्म जवानी की आग बुझाने लगी थोड़ी देर में सब कुछ शांत हो गया वह नींद की आगोश में चली गई,,,।
Excellent update
बेचारी सुगन की भी चूदाई करवा दो रोज प्यासी रह जाती हैं
 

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संजय सिंह जब अपने घर पहुंचा तो रात के 10:00 बज रहे थे,,,,, शगुन और सोनू दोनों खाना खाकर अपने अपने कमरे में जा चुके थे,,,, संध्या डाइनिंग टेबल पर खाना परोसने लगी,,, वह खाना खा चुकी थी क्योंकि पहले से ही उसकी आदत थी कि समय होते ही वह खाना खा लेती थी क्योंकि संजय का कोई ठिकाना नहीं रहता था कि वह कब वापस लौट आएगा इसलिए इंतजार करके कोई मतलब नहीं था,,,,, संध्या नाइट गाउन पहने हुए थी ,,,संजय फ्रेश होने के बाद तुरंत डाइनिंग टेबल पर आया और खाना खाने लगा,, साथ में जो वह बुक लाया था वह टेबल पर रख दिया था,,,, वह अपने हाथों से शगुन को वह बुक देना चाहता था इसलिए वह संध्या से बोला,,,।

संध्या तुम अपने कमरे में जाकर आराम करो मैं थोड़ी देर में आता हूं,,,

ठीक है मैं जा रही हूं मुझे भी नींद आ रही है,,,(इतना कहकर संध्या कुर्सी पर से उठी और सीढ़ियां चढ़कर अपने कमरे की तरफ जाने लगी,,,खाना खाते खाते संजय की नजर सीढीया पर चढ रही संध्या पर पड़ी तो वह संध्या की मटकती हुई गांड को देखकर एक दम मस्त हो गया,,, एकदम बड़ी-बड़ी गांड की दोनों टांगों के बीच की गहराई में उसका नाइट गाउन फंसा हुआ था,,, उसे देखकर संजय का लंड एक बार फिर से खड़ा होने लगा,,, सीढ़ियों पर अपने कदम उठाकर रखते हुए उसके नितंबों का घेराव कुछ ज्यादा ही बाहर की तरफ निकल जा रहा था जिसे देखकर संजय की हालत खराब होती जा रही थी ऐसा नहीं था कि वह पहले इस तरह का नजारा ना देखा हो लेकिन इस समय उसके तन बदन में अजीब सी हलचल मची हुई थी और वह भी अपनी ही बेटी सगुन को लेकर,,,,,, जब जब उसके जेहन में शगुन को लेकर कोई भी ख्याल आता था तो उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ ने लगती थी खास करके उसकी दोनों टांगों के बीच उसके लटकते हुए हथियार के अंदर,,,,, अपने बदन में अपनी बेटी को लेकर इस तरह के आए बदलाव को देखकर वह दंग रह जाता था और अपने आप से ग्लानी भी करता था,,, उसे अपने आप पर गुस्सा भी आता था कुछ देर के लिए अपने मन को एकदम शांत कर लेता था लेकिन फिर वही हाल हो जाता था,,,किसी जवान लड़की जो कि उसकी बेटी की हम उम्र हो उसे देखते ही उसके जीवन में एक बार फिर से शगुन की ही छवि उमडने लगती थी लाख कोशिश करने के बाद भी वह अपना नजरिया बदल नहीं पा रहा था,,,,, लेकिन एक बात को अपने अंदर जरूर महसूस करता था कि जब जब वह सब उनके बारे में सोचता था तोउसका लंड खड़ा होकर इतना जबरदस्त टाइट हो जाता था कि वैसा कभी भी नहीं हो पाता था,,,,

संध्या अपने कमरे में जा चुकी थी और संजय खाना खा चुका था,,, उसका दिल जोरों से धड़क रहा था टेबल पर रखी बुक जो कि मेडिकल से संबंधित थे उसे उठाकर शगुन के कमरे की तरफ जाने लगा,,, वह अपने मन में यही सोच रहा था कि इस समय अपनी बेटी के कमरे में जाना उचित होगा या नहीं,,, ना जाने वह क्या कर रही होगी पढ़ रही होगी या सो रही होगी इस बारे में वह बिल्कुल भी नहीं जानता था,,,,,,, वह अपने मन में यह सोच रहा था कि वह इस बुक को तो सुबह भी दे सकता है जरूरी तो नहीं कि इतनी रात को वहां अपनी बेटी के कमरे में जाकर अब्बू कर दे उसकी बेटी क्या समझेगी यह सब ख्यालात उसके मन में आ रहे थे और वह अपनी बेटी के कमरे में इस समय नहीं जाना चाहता था लेकिन,,, बार-बार शगुन का खूबसूरत जवान जिसमें उसकी आंखों के सामने नाच उठता था जिसके आकर्षण में वह पूरी तरह से मस्त होकर अपने कदमों को उसके कमरे के अंदर तक जाने के लिए रोक नहीं पा रहा था,,,और वैसे भी जिस तरह से आज वह अपने ऑफिस के अंदर अपनी ही बेटी के हम उम्र रूबी के मदमस्त यौवन का रसपान किया था उसे याद करके उसके तन बदन में अजीब सी हलचल हो रही थी,,, यह सब सोचकर उसके पैंट में तंबू सा बन चुका था,,,, और वह धीरे-धीरे अपनी बेटी के कमरे के दरवाजे तक पहुंच गया,,,
दरवाजे के नीचे से हल्की हल्की रोशनी बाहर की तरफ आ रही थी जिसका मतलब साफ था कि अभी सगुन जाग रही है यह सोच कर संजय के चेहरे पर मुस्कान आ गई,,,, दरवाजा खुला हुआ था इसका एहसास उसे हो गया अब तो वह कमरे में जाने के लिए मचलने लगा क्योंकि वह जानता था कि जवान लड़कियां अपने कमरे में अस्त-व्यस्त हालत में रहती हैं छोटे कपड़ों में तो कभी बिना कपड़ों में,,, यही सोचकर उसका दिल जोर से धड़कने लगा वह अब पूरी तरह से बिना पूछे बिना दरवाजे पर दस्तक दी में दबे पांव कमरे में जाने के लिए तैयार था,,, संजय अपने मन में यह सोच रहा था कि ना जाने उसकी बेटी शगुन कमरे में किस हालत में होगी और वह अपने मन में यही सोच रहा था कि काश शगुन अपने बिस्तर पर बिना कपड़ों के हो एकदम नंगी हो और वह उसके खूबसूरत जवान बदन को अपनी आंखों से देख सके,,,
और धड़कते दिल के साथ वह अपना हाथ आगे बढ़ा कर दरवाजे को हल्का सा धक्का दिया और दरवाजा अपने आप ही खुलता चला गया,,,, दरवाजे के खुलते ही संजय अपनी नजरों को कमरे के अंदर तक घुमाने लगा ट्यूबलाइट की सफेद रोशनी में पूरा कमरा जगमग आ रहा था ,,,, शगुन बिस्तर पर अस्त-व्यस्त हालत में तो नहीं लेकिन बिस्तर अस्त-व्यस्त हालत में था,,, बुक इधर-उधर बिखरे पड़े हुए थे,,, शगुन बिस्तर पर नहीं थी यह देखकर संजय थोड़ा सा हैरान हो गया और वह दबे पांव कमरे में दाखिल हो गया कि तभी उसे जो आवाज उसके कानों में सुनाई दी उसे सुनकर वह पूरी तरह से मदहोश हो गया उसे तसल्ली करने में बिल्कुल भी समय नहीं लगा कि वह आवाज जो उसके कानों में पढ़ रही है वह किस चीज से आ रही है,,,, उस मधुर आवाज को सुनकर संजय का दिल जोरो से धड़कने लगा उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी क्योंकि वह आवाज ही इतनी मादक और मदहोश कर देने वाली थी कीसंजय की जगह अगर और कोई भी होता तो उस का भी यही हाल होता । वह सु मधुर मादक आवाज़ बाथरूम में से आ रही थी और वह भी वह मधुर संगीत किसी और चीज से नहीं बल्कि शगुन की मदमस्त अनछुई रसीली बुर से आ रही थी,,,, संजय को इस बात का पता चल गया था कि बाथरूम में उसकी बेटी शगुन मुत रही थी,,, और इस बात का एहसास पलक झपकते ही उसके लंड को पूरी तरह से खड़ा कर गया उसके पैंट में अच्छा-खासा तंबू बन चुका था,,,, लगातार बाथरूम के अंदर से आ रही बुर से सीटी की आवाज किसी बांसुरी की मधुर संगीत की तरह संजय को अपने आकर्षण में बांधती चली जा रही थी,,,। संजय अपने मन में सोच रहा था कि उसकी बेटी शगुन कितना मुत रही हैं,,,,, वह अपने मन में कल्पना करने लगा कि कैसे उसकी बेटी अपना पजामा उतार कर और साथ में अपनी पेंटिं उतार कर और बाथरूम में बैठकर कैसे मुत रही होगी,,, इस तरह की कल्पना उसको पूरी तरह से मस्त कर दे रही थी अपनी बेटी के बारे में कल्पना करते हुए वह पैंट के ऊपर से ही अपने खड़े लंड को दबाने लगा,,,,संजय मदहोश होकर अपनी आंखों को बंद कर चुका था और अपनी बेटी के ख्यालों में पूरी तरह से खो चुका था,,,, इतना खो चुका था कि उसे इस बात का पता भी नहीं चला कि,,, शगुन पेशाब कर चुकी है और वह किसी भी वक्त बाथरूम से बाहर आ सकती है,,,, और ऐसा ही हुआ शकुन पेशाब कर चुकी थी और वह तुरंत बाथरूम का दरवाजा खोलकर जैसे ही बाहर अपने कदम रखी वैसे ही उसकी नजर अपने पापा पर चली गई जोकी बाथरूम के एकदम बगल में खड़े होकर कुछ सोच रहे थे ,,,सगुन को ऐसा ही लगा लेकिन जैसे ही उसकी नजर अपने पापा के हाथ पर पड़ी तो वह दंग रह गई क्योंकि उसके पापा का हाथ उसके लंड पर था जो कि वहां पेंट के ऊपर से ही पकड़े हुए था यह देखकर वह पूरी तरह से हैरान हो गए और वह एकाएक बोल पड़ी,,,।

ओहहह पापा आप,,,,(इतना सुनते ही संजय हड़बड़ाहट में अपनी आंख खोलकर जैसे ही बाथरूम की तरफ देखा तो उसकी बेटी शगुन खड़ी थी और वह भी कमर के नीचे एक पेंटी के सिवा उसने कुछ नहीं पहन रखी थी,,, अपनी बेटी का गोरा बदन और उसकी मोटी मोटी सूट और जांघों को देखकर संजय की आंखों में एकदम से चमक आ गई और वह हैरानी से अपनी बेटी के कमर के नीचे अर्ध नग्न बदन को देखते हुए बोला,,,।

सगुन,,,,,,,(वह इतना ही बोल पाया था कि शगुन तुरंत अपनी कमर के नीचे की तरफ देखी तो हुआ एकदम से हड़बड़ा कर अपने नंगे पन को छुपाने के लिए तुरंत बाथरूम में घुस गई और बाथरूम का दरवाजा फटाक से बंद कर दी,,,,बाथरूम के अंदर उसका बुरा हाल था उसकी सबसे बड़ी तेजी से चल रही थी क्योंकि उसकी नजरों ने जो कुछ भी देखी थी वह उसके सोचकर बिल्कुल भी विरुद्ध था क्योंकि वह कभी सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि उस समय उसके पापा उसके कमरे में आएंगे क्योंकि आज तक ऐसा बिल्कुल भी नहीं हुआ था और वह जिस हालत में बाथरूम के बाहर कदम रखकर अपने पापा की स्थिति को देखी थी उस से वह काफी हैरान थी,,,, वह समझ गई थी कि उसके पापा को चलो इस बात का एहसास हो गया होगा कि वह बाथरूम के अंदर है और पेशाब कर रही हैं,,,क्योंकि बाथरूम के चारदीवारी के अंदर बैठकर पेशाब करके वह दुनिया की नजरों से तो बच सकती थी और अपने पापा के नजरों से भी लेकिन दूर से आ रही गजब की सीटी की आवाज को वह बाथरूम के चारदीवारी से बाहर जाने से भला कैसे रोक पाती और उसे इस बात का एहसास हो चुका था कि उसके पेशाब करते समय निकलने वाली सीटी की आवाज और उसके पापा के कानों में पहुंच चुकी थी तभी तो उसके पापा एकदम मस्त होकर अपना लंड पकड़े हुए खड़े थे,,, इस बात का ख्याल शगुन को आते ही उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी,,, बस इस बात का भी अच्छी तरह से पता था कि उसके कमर के नीचे के नंगे बदन पर उसके पापा की नजर पड़ गई थी वह थोड़ी घबराई हुई थी लेकिन जिस तरह का हादसा उसके साथ हुआ था उसके तन बदन में मदहोशी की उमंग फैलने लगी थी जिसके चलते उसके होठों पर मुस्कान आ गई थी और वह तुरंत बाथरूम में टंगी अपने पजामे को उतार कर तुरंत पहन ली और बाथरूम से बाहर आ गई तब तक उसके पापा बिस्तर पर बैठ चुके थे,,,, शगुन के बाहर आते ही बात करने का कोई भी बहाना ना देख कर संजय बोल पड़ा।

शगुन तुमने जो फोन करके मुझसे बुक मंगाई थी वह मैं ले आया हूं,,,,(इतना कहने के साथ ही संजय अपने हाथ में लिए हुए बुक को वहीं बिस्तर पर रख दिया,,, शगुन भी धीरे-धीरे खत्म बढ़ाते हुए अपने पापा के पास गई और बिस्तर पर रखी हुई बुक उठाकर उसे पन्ना पलट कर देखते हुए जब पूरी तरह से संतुष्ट हो गई कि उसके द्वारा मंगाई गई बुक वही है तो वह मुस्कुरा कर बोली,,,)

थैंक्स पापा यह वही बुक है जो में आपसे मंगाई थी,,,
(संजय की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह अपने बेटी से नजरें मिलाकर बात कर सके बंद कर उधर देखता हुआ बोला)

शगुन दरवाजा तो बंद कर लेना चाहिए था,,,,।

जी पापा शायद जल्दबाजी में दरवाजा लॉक करना भूल गई,,,।(इतना कहते हुए वह भी बिस्तर पर बैठ गई,,, और जैसे ही संजय की नजर उसकी छातियों पर पड़ी वह एक बार फिर से मदहोश होने लगा,,,, क्योंकि संजय को साफ दिखाई दे रहा था कि इसलिए विलेज पतली सी कमीज के अंदर उसकी बेटी में ब्रा नहीं पहनी हुई थी जिससे संतरे की तरह गोल गोल उसकी चूचियां पतले से कमीज के अंदर एकदम साफ साफ नजर आ रहे थे,,, और खास करके उसकी दोनों गोलाईयों का हल्का सा भाग भी नजर आ रहा था,,,, संजय का अप वहां बैठ पा ना बिल्कुल मुश्किल हुए जा रहा था,,,क्योंकि उसे इस बात का डर था कि उसकी बेटी की मदहोश कर देने वाली जवानी के आगे वह कहीं अपना आपा ना खोदे,,,, और इसलिए वह हड़बड़ाहट में बिस्तर पर से खड़ा हुआ और वहां से जाने लगा लेकिन वह यह बात भूल गया किउत्तेजना की वजह से उसके पेंट में अच्छा खासा तंबू सा बन गया है और वह जैसे ही खड़ा हुआ वह अपने तंबू को छिपाने की बिल्कुल भी कोशिश नहीं किया वह पूरी तरह से भूल चुका था लेकिन सब उनकी नजर में उसके पेंट में बना तंबू पूरी कहां से आ चुका था और वह अपने पापा के पेंट में बने तंबू को देखती ही रह गई,,,

संजय बिना कुछ बोले शगुन के कमरे से बाहर जा चुका था और जाते-जाते एक बड़ा सा तूफान छोड़ गया था अपने अंदर भी और अपनी बेटी के अंदर भी,,,, शगुन को समझ में नहीं आ रहा था कि उसे क्या करना चाहिए लेकिन इस बात का एहसास हो से हो गया था कि उसके पापा उसे देखकर उत्तेजित हो चुके थे तभी तो उनके पेंट में अच्छा खासा तंबू बन गया था,,,, शगुन का दिल जोरों से धड़क रहा था उसे इस बात का एहसास हो रहा था कि उसके कमरे से निकलकर उसके पापा अपने कमरे में जाकर उसकी मां की चुदाई जरूर करेंगे क्योंकि उनकी हालत देखकर यही लगता था कि वह पूरी तरह से उत्तेजित और चुदवासे हो चुके थे,,,, और यही देखने के लिए सगुन,,5 मिनट बाद अपने कमरे में से बाहर निकल गई और अपने पापा के कमरे की तरफ जाने लगी उसके मन में ना जाने क्यों इस तरह के ख्याल आ रहे थे कि उसके पापा जरूर उसकी मां को चोदेंगे और यह देखने के लिए उसका मन मचल रहा था,,, और वह थोड़ी ही देर मेंअपने पापा के कमरे के बाहर पहुंच गई और उसकी किस्मत अच्छी थी कि खिड़की भी हल्की सी खुली हुई थी खिड़की के अंदर झांक कर देखे तो अंदर ट्यूबलाइट की दूधिया रोशनी में सब कुछ साफ नजर आ रहा था,,, उसकी मां नींद में थी लेकिन फिर भी उसके पापा उसके गाउन को ऊपर तक उठाने लगे और देखते ही देखते उसे कमर तक उठा दिए यह देखकर सगुन उनके दिल की धड़कन बढ़ने लगी,,,,और उसकी आंखों के सामने ही उसके पापा उसकी मां के ऊपर चढ़ गए और उन्हें नींद में ही चोदना शुरु कर दिए,,, यह देख कर सगुन की हालत खराब होने लगी,,, उसकी बुर से भी पानी निकलने लगा और उसकी पैंटी गीली होने लगी,,,, सगुन से रहा नहीं गया और अपने कमरे में जाकर अपने सारे कपड़े उतार कर बिस्तर पर लेट गई और अपनी दोनों टांगों को फैला कर अपनी उंगली का सहारा लेकर अपनी गर्म जवानी की आग बुझाने लगी थोड़ी देर में सब कुछ शांत हो गया वह नींद की आगोश में चली गई,,,।
Excellent update
बेचारी सुगन की भी चूदाई करवा दो रोज प्यासी रह जाती हैं
 

Sanju@

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धीरे-धीरे समय अपनी रफ्तार से गुजरता जा रहा था और परिवार के सभी सदस्य अपने अपने काम को करते हुए अपनी वासना के खड़डे को और ज्यादा अपने ही हाथों से खोदते चले जा रहे थे,,, संजय की आंखों के आगे हमेशा उसकी बड़ी बेटी का खूबसूरत बदन नाचता रहता था और संध्या धीरे-धीरे अपने बेटे की तरफ पूरी तरह से आकर्षित होती चली जा रही थी,,, और सोनू भी अपनी मां को प्यासी नजरों से निहारने का एक भी मौका छोड़ता नहीं था,,अपनी मां के बारे में सोच सोच कर उसके खूबसूरत कामुक बदन के कटाव से पूरी तरह से आकर्षित होकर अपने मन में अपनी मां को लेकर गंदे ख्याल लाते हुए वह ना जाने कितनी बार अपने हाथों से हीला कर अपनी गर्मी बाहर निकाल चुका था,,,,,,, रूबी जब एक बार अपनी दोनों टांगे संजय के लिए खोल दी तो फिर वह खुलती चली गई बदले में संजय ने उसे हॉस्पिटल में ढेर सारी रियायतें दे रखा था,,, लेकिन अपनी जवान बेटी के मदमस्त बदन को याद करते हुए वह रूबी की रोज लेता था,,,

जिस दिन से रात के समय संजय बिना बताए शगुन के कमरे में गया था उस दिन से लेकर सकून जिस तरह के हालात में वह बाथरूम से बाहर आई थी और अपने पापा को बाथरूम के एकदम करीब खड़ा हुआ देखी थी साथ ही पारदर्शी स्लीवलेस और केवल पेंटी मैं होने के नाते उसके पापा की नजर उसके ऊपर पूरी तरह से पड़ चुकी थी और चोर नजरों से अपने पापा के पेंट में बने तंबू को देखकर जो हाल सगुन का उस दिन हुआ था,,,, उस दिन से लेकर आज तक वहअपने पापा के मोटे तगड़े लंबे लंड की कल्पना करते हुए अपनी बुर में अपनी दोनों उंगली डालकर अपने बदन की गर्मी को मिटाने की कोशिश कर रही थी लेकिन यह गर्मी थी कि मिटने का नाम ही नहीं लेती थी,,,,,।

ऐसे ही एक दिन शाम को संध्या मार्केट जाने के लिए तैयार हो रही थी,,, तभी सोनू घर आ गया और अपनी मां को तैयार होता हुआ देखकर बोला,,,।

कहां जा रही हो मम्मी,,,


मार्केट जा रही थी सब्जियां और फल खरीदना है,,,,,,,


मेरे लिए खरबूजा खरीदना मम्मी मुझे खरबूजे बहुत पसंद है,,,


ऐसा क्यों कि सब फल छोड़कर तुम्हें सिर्फ खरबूजे पसंद है,,,(आंखों को नचाते हुए वह सोनू की तरफ देखते हुए बोली,,,,)

क्योंकि मम्मी खरबूजा में रस बहुत होता है और सही कहो तो मुझे गोल गोल खरबूजे और वह भी बड़े-बड़े बहुत पसंद है,,,,,(सोनू अपनी मां की छातियों की तरफ उसके चुचियों के उभार को देखते हुए बोला,,,, संध्या अपने बेटे की नजरों को भांप गई थी,,, इसलिए वह एकदम अंदर तक सिहर उठी,,, उसके होठों पर मादक मुस्कान तैरने लगी,,,, सोनू अपनी मां की तरफ खास करके उसकी छातियों की तरफ देखते हुए फिर बोला,,,,)

और तुम्हें क्या पसंद है मम्मी,,,,।

मुझे,,,, मुझे तो केला पसंद है,,,, और वह भी लंबा लंबा और मोटा,,,,,(अपनी मां की बातों को सुनकर सोनू एकदम से गनगना गया,,,,)

ऐसा क्यों मम्मी तुम्हें खरबूजे क्यों नहीं पसंद है,,?

खरबूजे तो तुम्हें पसंद है ना मुझे तो केला ही पसंद है,,,।


केला में ऐसी कौन सी खास बात है जो तुम्हें इतना पसंद है,,।


केला कितना लंबा मोटा और तगड़ा होता है,,,,( संध्या एकदम मदहोश होकर बोल रही थी,,, सोनू भी समझ रहा था कि उसकी मां केला के नाम लेकर किस बारे में बातें कर रहे हैं,,,) और तो और सोनु अंदर जाने के बाद अच्छी तरह से एहसास होता है कि पेट पूरा भरा हुआ है,,,,(संध्या यह बात सोनू के पेंट में बन रहे धीरे धीरे तंबू की तरफ देखते हुए बोली सोनू समझ गया था कि उसकी मां दो अर्थ वाले बातें कर रही है जिसमें अब दोनों को मजा आ रहा था,,,।)

क्या तुम सच कह रही हो मम्मी लंबे मोटे और तगड़े केले में इतना ज्यादा मजा आता है,,,,।


हां रे मैं सच कह रही हूं,,,, वही तो खरीदने जा रही हूं मैं मार्केट में,,,, चलोगे मेरे साथ,,,,

हां हां क्यों नहीं मैं भी चलूंगा मार्केट देखु तो सही तूम्हे किस तरह के केले पसंद है,,,,।

तो चलो मेरे साथ,,,,(इतना कहने के साथ ही संध्या टेबल पर पड़ा अपना पर्स उठाई और आगे आगे चलने लगी सोनू अपनी मां की भारी-भरकम और मटकती गांड को देखकर एक दम मस्त हुआ जा रहा था,,,, सोनू अपनी मां के पीछे पीछे जाने लगा इस तरह से उसकी मां बातें कर रही थी उससे उसके तन बदन में अजीब सी हलचल हो रही,,,, इतना तो उसे समझ में आई क्या था कि उसकी मां किस बारे में बातें कर रही थी और जिस तरह से बातें कर रही थी उसे सुनकर सोनू हैरान तो था ही लेकिन एकदम मस्त हो गया था,,, देखते ही देखते संध्या गांड मटकाते हुए घर से बाहर निकल गई,,,, और सोनू भी घर से बाहर आ गया,,, दरवाजा लॉक करने के बाद सोनू अपनी मोटरसाइकिल निकालकर स्टार्ट कर दिया और संध्या अपनी बेटी सोने के कंधों का सहारा लेकर अपनी भारी भरकम गांड को उठाकर पिछली सीट पर बैठ गई,,,, जानबूझकर अपने बेटे से कुछ ज्यादा ही सट कर बैठ गई,,, ऐसा नहीं था कि सोनू की पिछली सीट पर उसकी मां से मिला पहली बार बैठ रही हो और पहले भी इसी तरह से बैठ चुकी थी लेकिन आज उसके सोचने समझने और दोनों के बर्ताव में बदलाव आ चुका था इसलिए तो जैसे ही सोनू ने अपनी मां के बदन को अपने बदन से सत्ता हुआ महसूस किया वैसे ही उसके बदन में उत्तेजना की चिंगारी फुटने लगी,,, संध्या सोनू के कंधे पर हाथ रखकर बराबर बैठ गई थी और सोनू को चलने के लिए बोली सोनू भी एक्सीलेटर देकर मोटरसाइकिल को आगे बढ़ा दिया,,,, संध्या जिस तरह से अपना एक हाथ उठाकर सोनू के कंधे पर रखकर बैठी थी उससे उसकी दाहिनी चूची सोनू की पीठ से रगड़ खा रही थी,,, सोनू मदहोश हुआ जा रहा था संध्या की चूची की नुकीली निप्पल किसी भाले की तरह सोनू की पीठ पर चुभ रही थी,,, सोनू को ऐसा लग रहा था कि मानो उसकी मां की चूचियां उसकी पीठ पर गुदगुदी कर रही है,,,,संध्या को भी इस बात का एहसास हो रहा था कि उसकी दाहिनी चूची उसके बेटे की पीठ से रगड़ खा रही है,,, लेकिन यह जानते हुए भी वह बेफिक्र होकर उसी तरह से अपने बेटे के कंधे पर हाथ रखे हुए थी,,,,, क्योंकि संध्या को भी इसमें मजा आ रहा था,,,,,,,,

तभी हवा से उड़ रही अपनी साड़ी के आंचल को ठीक करने के लिए जैसे ही वह सोनू के कंधे पर से हाथ हटाकर अपनी साड़ी को ठीक करना चाह ही रही थी कि ,,, तभी जानबूझकर सोनू छोटे से खड्डे में मोटरसाइकिल के टायर को हल्का सा ब्रेक मार कर उतार कर आगे बढ़ने लगा लेकिन खड्डे और ब्रेक मारने की वजह से सभी अपने आप को संभालने के चक्कर में जल्दबाजी में अपना हाथ सोनू की कमर मैं डालना चाहिए और उसे कस के पकड़ना चाहि लेकिन उसका हाथ सोनू के कमर से होता हुआ सीधे सोनू के पेंट बनाने तंबू पर चला गया अपने आप को संभालने के चक्कर में संध्या सोनू के लंड को जो की पैंट में तंबू की शक्ल ले चुका था उसे पकड़ ली,,,,,

अरे बाप रे,,,,,,(अपने बेटे के तंबू को पकड़कर संध्या तो अपने आप को संभाल ले चुकी थी लेकिन जब उसे इस बात का एहसास हुआ कि वह अनजाने में अपने बेटे के लंड को पकड़ ली है तो एकदम से गनगना गई,,,, संख्या को इस बात का एहसास होते वह तुरंत अपना हाथ सोनू के तंबू पर से हटा कर कंधे पर रख ली लेकिन मदहोशी के आलम में वह अपना हाथ हटाते हटाते जानबूझकर एक बार करके अपने बेटे के लिए अपनी मुट्ठी में लेकर दबा दी उसे इस बात का एहसास हो गया कि उसके बेटे का हथियार कुछ ज्यादा ही मोटा तगड़ा और बड़ा है,,,,संध्या ईतने में काफी उत्तेजित हो चुकी थी और अपने बेटे के कंधे पर हाथ रख कर एक बार फिर से अपने आप को संभाल ले गई थी,,, लेकिन सोनू का बुरा हाल था उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसकी युक्ति इतना काम कर जाएगी की पहली बार में ही उसकी मां उसके लंड को पकड़ लेगी भले ही पेंट के ऊपर से ही सही लेकिन उसे गरमा गरम एहसास दे गई थी,,, आश्चर्य और उत्तेजना के मारे सोनू का मुंह खुला का खुला रह गया था,,,, लेकिन इस अफरातफरी में सोनू को दुगना मजा भी प्राप्त हो चुका था क्योंकि एकाएक ब्रेक मारने की वजह से संध्या की दाहिनी चूची पूरी की पूरी तरह से दबाव बनाते हुए उसके बेटे की पीठ से चिपक सी गई थी,,,और सोनू को अपनी पीठ के ऊपर अपनी मां की नरम नरम चुची का अहसास बड़ी अच्छी तरह से हुआ था,,,,,,,

इस हरकत को लेकर दोनों एक दूसरे से किसी भी प्रकार की बहस किए बिना ही मार्केट पहुंच गए,,,, सोनू एक अच्छी सी जगह पर मोटरसाइकिल खड़ी करके,,, अपनी मां के पीछे पीछे,,,शब्जी मंडी में जाने लगा
बहुत ही गरमागरम और कामुक उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया लगता है कि अब तो सोनू का भी अपनी मां को चोदने का सपना पूरा होगा
 

Sanju@

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हाथ में थैला लिए हुए संध्या मार्केट के अंदर की तरफ जाने लगी जहां पर ढेर सारे ठेले लगे हुए थे,,,, सोनू अपनी मां की मटकती हुई गांड देख कर मस्त हो जा रहा था,,, ऐसा नहीं था कि वहां पर और भी मटकती हुई गांड नहीं थी,,, वहां ढेर सारी मदमस्त खूबसूरत औरतों की मदमस्त बड़ी-बड़ी मटकती गांड थी,,,लेकिन सोनू का आकर्षण सबसे ज्यादा अपनी मां की बड़ी बड़ी गांड पर ही था जो की कसी हुई साड़ी पहने होने के नाते उसकी बड़ी-बड़ी गांड की दोनों फांकें एकदम सटी हुई और उसके उभार साड़ी के ऊपर से भी साफ नजर आ रहे थे,,,,, अंदर के बाजू केवल सब्जियां ही मिलती थी इसलिए सोनू को वहां का इशारा करके वही खड़े रहने के लिए बोली और सोनू वही खड़ा रह गया,,।
सोनू वहीं खड़े होकर मार्केट में आने जाने वाली हर एक औरत को बड़ी बारीकी से निहार रहा था खास करके उनके दोनों खरबूजो को और उनके पिछवाड़े को,, लेकिन जो बात उसकी मां के खरबूजा और पिछवाड़े में था वह बात किसी में उसे नजर नहीं आई,,,,, सोनू को वह पल याद आने लगा जब खड्डे में मोटरसाइकिल का टायर जाकर बाहर निकला और ब्रेक लगाने की वजह से उसकी मां अपने आप को संभाल नहीं पाई और संभालने के लिए उसका सहारा लेने के लिए अनजाने में ही पेंट में बनी तंबू को वह अपने हाथ में लेकर दबोच ली,,,, कुछ पल को याद करके सोनू की हालत खराब होने लगी अनजाने में ही सही अपने लंड को अपनी मां की हथेली में महसूस करके उसे अद्भुत सुख का अहसास हुआ था अपने मन में यही सोच रहा था कि काश उसकी मां के हाथों में उसका नंगा लंड आ जाए तो कितना मजा आ जाए,,,,,

थोड़ी ही देर में संध्या हरी सब्जियां खरीद कर बाहर आने लगी,,,, और सोनू की नजर जैसे ही अपनी मां पर पड़ी उसके चेहरे पर खुशी के भाव झलक ने लगे,,, सोनू का अपनी मां को देखने का रवैया पूरी तरह से बदल चुका था,,,। अपनी मां के अंदर उसे काम की देवी नजर आती थी जिसे देख कर उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगती थी,,,,,,, संध्या सोनू के एकदम करीब पहुंच गई और उसे सब्जियों का थैला थमाते हुए बोली,,,।

मेरे पीछे पीछे आओ,,,, फल खरीदना है,,,,
(इतना कहकर संध्या आगे आगे अपनी गांड को जानबूझकर कुछ ज्यादा ही मटकाते हुए चलने लगी,,, क्योंकि वह यह बात अच्छी तरह से जानती थी कि जब उसके पीछे सोनू रहता है तो उसकी नजर उसकी बड़ी-बड़ी पिछवाड़े पर ही रहती है,,,वसंत विहार इस बात को भी अच्छी तरह से जानती थी कि मर्दों की सबसे बड़ी कमजोरी औरतों की बड़ी बड़ी गांड होती है जैसा कि सोनू की कमजोरी उसकी खुद की गांड बनती जा रही थी,,, सोनू अपनी मां के कमर के नीचे वाले घेराव को देखता हुआ आगे बढ़ रहा था और संध्या इस बात की तसल्ली करने के लिए रह रह कर अपनी नजर को पीछे की तरफ घुमा कर सोनु की तरफ देख ले रही थी और उसकी नजरों को अपनी कमर के नीचे भारी भरकम घेराव पर पड़ता हुआ देखकर वह मन ही मन प्रसन्न हो जाती थी,,, कुछ दूरी तक चलने के बाद एक ठेला वाला नजर आया,,, जिस के ठेले पर केले संतरे तरबूज खरबूजा सब कुछ थे,,,,। संध्या ठेले के करीब पहुंचकर,,, सोनू की तरफ देखते हुए मोटे तगड़े लंबे केले के गुच्छों की तरफ उंगली से इशारा करते हुए बोली,,,।

भैया यह केले कैसे दिए,,,,


ले लीजिए बहन जी आपसे कैसा भाव तोल करना आप तो हमेशा के ग्राहक हैं,,,,,,,(पहले वाला उम्रदराज बुढा इंसान था संध्या अक्सर उसी के ठेले पर से फल खरीदा करती थी और बिल्कुल भी भाव तोल नहीं करती थी,,,, उसकी बातें सुनकर संध्या के चेहरे पर मुस्कुराहट तैरने लगी और वह केले के गुच्छे को उठाकर उसे अपने हाथ में लेते हुए सोनू से बोली,,)

देख सोनु केला हो तो ऐसा लंबा तगड़ा और मोटा ताकि एक ही केले में पेट भर जाए,,,, छोटे केले मुझे बिल्कुल भी नहीं पसंद,,,, तेरे पास भी है ना ऐसा,,,( एकाएक उसके मुंह से इस तरह के शब्द निकलते ही वह झट से अपनी बात को बदलते हुए बोली,,) मेरा मतलब है कि तुझे भी इस तरह के कहने पसंद है ना,,,,.


नहीं नहीं मम्मी मुझे अकेला बिल्कुल भी नहीं पसंद मुझे तो खरबूजा पसंद है और वह भी इस तरह के (सोनू उंगली से इशारा बड़े-बड़े खरगोशों की तरफ कर रहा है लेकिन उसकी नजर अपनी मां के दोनों खरबूजो पर थी,,, सोनू की नजरों को देखकर संध्या एकदम से सिहर उठी,,,,)

ओहहहह,,, माफ करना मैं भूल गई थी तुझे केला नहीं पसंद है,,,,( संध्या केले के गुच्छो में से एक केले को पकड़ कर उसे अपनी हथेली में भरली और उसे इधर-उधर घुमा कर देखने लगी सोनू यह देखकर एक दम मस्त हो जाए होता सोनू अपने मन में यही सोच रहा था कि उसकी मां केले को अपनी हथेली में लेकर शायद लंड की मोटाई और लंबाई का अंदाजा लगा रही थी,,,,, और यह बात बिल्कुल सच है थी संध्या केले को हथेली में पकड़ कर कुछ देर पहले जो अनजाने में यह अपने बेटे के तंबू को पकड़े ली थी उससे अंदाजा लगा रही थी कि उसके बेटे का लंड कितना मोटा और लंबा होगा,,,केले की लंबाई और मोटाई को अपने बेटे के लिंग की मोटाई और लंबाई से तुलना करके उसके चेहरे पर तसल्ली खड़ी मुस्कान तैरने लगी,,, वह पूरी तरह से संतुष्ट होते हुए ठेले वाले भैया से बोली,,,।)

लीजिए भैया इसे पेक कर दीजिए,,,,(इतना कहकर अपने बेटे की तरफ देख कर मुस्कुरा रही थी सोनू के दिल में खलबली मची हुई थी उसकी मां कुछ ज्यादा ही खुलती चली जा रही थी सोनू को अपनी मां की कही बातों का अर्थ तो समझ में आ रहा था लेकिन मैं समझ नहीं पा रहा था कि उसकी मां की तरफ से उसे यह इशारा है या अनजाने में ही यह सब हो रहा है इसी कशमकश में वह असमंजस में पड़ा हुआ था तभी वह ठेलेवाला केले को एक पॉलीथिन की थैली में डालकर संध्या को थमाते हुए बोला,,,)

और कुछ चाहिए बहन जी,,,

हां ,,, मेरे बेटे को खरबूजा पसंद है और वह भी गोल गोल और बड़े-बड़े,,,,,,(सोनू की तरफ मुस्कुरा कर देखते हुए बोली)

हां मम्मी मुझे तो बड़े-बड़े खरबूजे ही पसंद है देखते ही पता चल जाता है कि कितना मजा आने वाला है,,,(सोनू अपनी मां की भरी हुई छातियों की तरफ देखते हुए बोला,,,दोनों मां-बेटे जिस तरह से बातें कर रहे थे दोनों एक दूसरे की बातों का मतलब अच्छी तरह से समझ रहे थे लेकिन वह ठेलेवाला बिल्कुल भी उन दोनों मां-बेटे की बातों का मतलब समझ नहीं पा रहा था,,, सोनू अपनी मां की छातियों की तरफ देखते हुए ठेले पर से तो बड़े-बड़े खरबूजे अपने हाथों में उठा लिया और दोनों खरबूजो की जोड़ी को सामने हाथ पर रख कर अपनी मां को दिखाते हुए संध्या की भारी-भरकम छातियों से तकरीबन 1 फीट की दूरी पर लाते हुए बोला,,,)

इस तरह के खरबूजे मम्मी मुझे बहुत पसंद है,,,,।

ठीक है बेटा तेरी खुशी में मेरी खुशी है तुझे तो पसंद है मैं तेरी ख्वाहिश जरूर पुरी करूंगी,,,,(इतना कहते हुए वह अपने बेटे के हाथों में से दोनों खरबुजो को लेकर उस ठेले वालों को थमाते हुए बोली,,,)

लो भैया इसे भी वजन कर दो,,,,

(ठेलेवाला झट से संध्या के हाथों में से बड़े-बड़े खर्चे को लेकर तराजू में रखकर उसे तोलने लगा और तोलने के बाद उसे थेली में भरकर संध्या को थमा दिया,,,दोनों मां-बेटे की तरह से बातें कर रहे थे उन बातों के मतलब को अपने मन में ही समझ कर दोनों अंदर ही अंदर खुश हो रहे थे और मस्त भी हुए जा रहे थे,,, सोनू की खुशी का ठिकाना ना था क्योंकि इस तरह से दो अर्थ वाली बात वह पहली बार कर भी रहा था और अपने मां के मुंह से सुन भी रहा था उसे इस तरह की बातें करने में मजा आ रहा था और काफी उत्तेजना का अनुभव हो रहा था और इसी उत्तेजना के चलते उसके पेंट में धीरे-धीरे तंबू सा बनता चला जा रहा था,, और संध्या अपने बेटे के पेंट में बन रहे तंबू को चोर नजरों से देख कर मन ही मन प्रसन्न हो रही थी उसे इस बात की संतुष्टि थी कि उसकी गर्म बातों से उसका बेटा गर्म हो रहा था,,,,,,, थोड़ी ही देर में दोनों वापस मोटरसाइकिल पर बैठकर घर आ गए,,, तब तक शगुन घर पर आ चुकी थी,,,,,,,,, इस बात का अंदाजा दोनों को इस बात से लग गया था क्योंकि घर के बाहर उसकी सैंडल रखी हुई थी,,,, संध्या को लगा था कि घर पर शगुन के आ जाने पर उसे गरमा गरम चाय जरूर मिलेगी क्योंकि उसे थोड़ी थकान महसूस हो रही है इसलिए दरवाजा खोल कर जैसे ही वह घर में प्रवेश की,,, वह सोनू से बोली,,,

सोनू देख तो शगुन ने चाय बनाई है कि नहीं,,,, अगर बना दी हो तो मेरे लिए भी एक कप चाय लेते आना और ना बनाई हो तो उसे बनाने के लिए कह देना,,,,

ठीक है मम्मी,,,,( सोनू अपनी मां के ठीक पीछे ही खड़ा था और उसके दाएं और पर कुर्सी रखी हुई थी,,, संध्या सब्जी से भरा थैला अपने दाहिने साइड पर नीचे रख दी और सोनू इतना कहने के साथ ही आगे बढ़ना चाहता था क्योंकि उसे लगा कि उसकी मां दाहिने और घूमेगी और कुर्सी पर बैठे की लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं हुआ संध्या तुरंत बांऊ और अपने कदम बढ़ा दी सोनू एकदम से अपने आप को संभाल नहीं पाया और अपने कदम जैसे ही आगे बढ़ाया था वह अपनी मां से टकरा गया,,,, इतनी जल्दी मैं वह अपनी मां के कहे अनुसार किचन में जाने के लिए कदम बढ़ाया था कि काफी जोर से वह अपनी मां से टकरा गया था और उसकी मां धक्का खा कर आगे की तरफ लगभग लगभग गिरने ही वाली थी कि सोनू अपने दोनों हाथ आगे की तरफ लाकर उसे कस के अपनी बाहों में भर लिया जो कि सोनू का लिया गया यह कदम उसे संभालने के लिए था लेकिन जिस तरह से अपना दोनों हाथ आगे की तरफ लाकर अपनी मां को पकड़ा था उसे संभाला था वह बिल्कुल अपनी बाहों में लेने जैसा ही हरकत था,,,, अफरा तफरी में सोनू का हाथ अपनी मां की दोनों चूचियों पर आ गया था,,, और सोनू के पेंट में बना तंबू ठीक उसके पिछवाड़े से जा लगा था जोकि उत्तेजना के मारे काफी कड़क हो चुका था,,,संध्या लगभग आगे की तरफ गिरने ही वाली थी इसलिए उसे संभालने के चक्कर में सोनू कसके अपनी हथेली दबोच कर उसे थाम लिया था लेकिन उसे बचाने के चक्कर में उसकी दोनों हथेलियां कसके संध्या की दोनों चुचियों पर जम गई थी और सोनू उसे अपनी हथेली में जोर से दबाए हुए था और अपना तंबू अपनी मां के पिछवाड़े में एकदम से सटाया हुआ था जिसकी वजह से सोनू के पेंट ने बना तंबू एक बार फिर से,,, साड़ी सहित उसकी बड़ी बड़ी गांड की दोनों फांकों के बीच गहराई में धंसने लगी थी,,,संध्या को अपने बेटे का लंड एक बार फिर से अपने गांड के बीचोबीच धंसता हुआ महसूस हुआ,,, वह एकदम से गनगना गई,,,, पल भर में ही उसे अपने बदन में सोनू की हरकत की वजह से दुगना मजा मिला था एक तो सोनू ने कसके उसकी दोनों चूचियों को अपनी हथेली में दबोच रखा था और दूसरा वह अपने लंड को जानबूझकर ना सही लेकिन उसे बचाने के चक्कर में उसकी गांड के बीचो-बीच दे मारा था,,,, अपने बेटे के जवान लंड को अपनी गांड के बीचो बीच महसूस करके संध्या एकदम से मदहोश हो गई,,, उसे कुछ समझ में नहीं आया कि वह क्या करें,,,,सोनू अपनी मां को संभाल चुका था लेकिन वह काफी उत्तेजित हो चुका था और उत्तेजना बस अपने आप पर काबू ना रखने की वजह से सोनू की कमर अपने आप आगे की तरफ बढ़ गई और सोनू की कमर इस तरह से आगे की तरफ बढी मानो,,, किसी औरत की बुर में लंड डालकर बचे हुए लंड को बड़ी चलाकी से पूरा का पूरा अंदर डाल रहा हो,,, सोनू तो संभोग के हर एक पहलू से अनजान था लेकिन संध्या अच्छे तरीके से संभोग के हर एक पहलू हर एक पृष्ठ को बकायदा पड़ चुकी थी इसलिए सोनू की यह हरकत संध्या को उस पल की याद ताजा करा गया जब ऐसे ही उसका पति संजय बचे हुए लंड को पूरी शिद्दत से उसकी बुर की गहराई में नापने के लिए डाल देता था,,,, सोनू मदहोश हो चुका था अपनी मां की भारी-भरकम गरमा-गरम पिछवाड़े को ठीक अपने लंड के आगे वाले भाग पर एकदम से महसूस करके वह पूरी तरह से गर्म हो चुका था,,, और ऊतेजना बस वह अपनी मां को संभालने के चक्कर में उसकी चूची को अपनी हथेली में भर लिया था और उसे अब जानबूझकर एक बार कस के दबा लिया था सोनू की पांचों ऊंगलियां ऐसा लग रहा था कि मानो घी में नहा रही हो,,,संध्या अपने बेटे की हर एक हरकत को अपने वजन के अंदर अच्छी तरह से महसूस कर रही थी उसे अपने बेटे की यह हरकत बेहद मदहोश कर देने वाली महसूस हो रही थी वह अपने बेटे को बिल्कुल भी रोकना नहीं चाहती थी वह तो चाहती थी कि सोनू इससे आगे बढ़ जाए लेकिन तभी सोनू अगले ही पल अपनी मां को संभाल कर उसके बदन से दूर होता हुआ बोला,,,,।

सॉरी मम्मी अनजाने में हो गया,,,,


ठीक है बेटा जा जल्दी से देख,,,,(इतना कहते हुए संध्या अपने कदम जो कि बाएं तरफ बढ़ा रही थी उसे दाएं तरफ वापस घुमाकर कुर्सी पर बैठ गई,,,, उत्तेजना के मारे उसकी सांसे उखड़ी हुई थी,,, इससे ज्यादा वह अपने बेटे से कुछ भी बोल सकने की स्थिति में बिल्कुल भी नहीं थी वह तो खुद ही अपने अंतर्मन के मनों मंथन में लगी हुई थी,,, सोनू की हर एक हरकत संध्या को मादकता का एहसास दिला रही थी,,, सोनू किचन में जा चुका था और वहां जाकर देखा तो वहां चाय बनी हुई नहीं थी इसलिए वह वापस आकर अपनी मां से बोला,,,।)

मम्मी चाय तो बनी हुई नहीं है,,,,,। (बड़े ही नम्र भाव से वह अपनी मां से बोला लेकिन अपने पेंट में बने तंबू को अपनी मां की नजरों से बचा नहीं सका किचन से निकलते ही संध्या की नजर सीधी अपने बेटे के तंबू पर ही गई थी जो कि अच्छे खासे शक्ल में उभर चुका था,,, उसे देखते ही संध्या अपने मन में बोली,,,)

बाप रे बाप मुझे तो लगता है कि मेरे पति का लंड मेरे पति से भी ज्यादा मोटा तगड़ा और लंबा है,,,,
(संध्या यह सब सोचते हुए ऐसा लग रहा था कि मानो ख्यालों में खो गई हो इसलिए सोनू एक बार फिर बोला)

क्या करूं मम्मी चाय तो बनी नहीं है,,,,।

ठीक है बेटा जैसा जून को उसके कमरे में से बुला कर ले आ और मुझे चाय बनाने के लिए बोल एकदम लापरवाह हो गए हैं ऐसा नहीं कि शाम की चाय बना दुं,,,

(सोनू अपनी मां की बात सुनकर अपनी बड़ी बहन के कमरे की तरफ जाने लगा अपनी मां के ख्यालों में वह पूरी तरह से खोया हुआ था,,,,,थोड़ी ही देर में बस अपनी बड़ी बहन सब उनके कमरे के बाहर खड़ा था दरवाजा हल्का सा खुला हुआ था शगुन बेफिक्र और एकदम लापरवाह थी और अभी अभी अपने बाथरूम से नहाकर बाहर निकली थी,,, कुर्ती तो पहन चुकी थी लेकिन थोड़ा सा झुक कर अपने अलमारी में से अपनी सलवार ढूंढ रही थी सोनू तो अपनी मां के ख्यालों में मस्त था उसे नहीं मालूम था कि कमरे के अंदर एक बेहद कामुकता भरा दृश्य उसका इंतजार कर रहा है,,,,पर वह बिना दरवाजे पर दस्तक दिए दरवाजे को हल्का सा खोल दिया और जैसे ही उसकी नजर सामने पड़ी वह एकदम से हक्का-बक्का रह गया नीचे उसकी मां और ऊपर कमरे में उसकी जवान बहन उसके बदन में आग लगा रही थी,,,, सोनू की नजर सीधे अपनी बहन की गोल-गोल एकदम दूध से भी गोरी गांड पर चली गई,,, पल भर में ही सोनू के बदन में 4 बोतलों का नशा छा गया इतनी खूबसूरत और कसी हुई गांड वह जिंदगी में पहली बार देख रहा था और वह भी एक दम नंगी भले ही कमर के ऊपर कुर्ती थी लेकिन कमर के नीचे से उसकी बहन पूरी तरह से नंगी थी जो कि अलमारी में अपने कपड़े ढूंढने के लिए झुकी हुई थी जिसकी वजह से उसकी गोल-गोल गांड कुछ ज्यादा ही उभर कर बाहर की तरफ निकली हुई नजर आ रही थी,,, अपनी बहन की मस्त गांड देखकर सोनू के लंड में दर्द होने लगा,,,, सोनू के साथ आनन-फानन में मादकता भरा वाक्या पेश आ चुका था,,, अभी-अभी वह अपनी मां के मदमस्त पिछवाड़े को अपने लंड पर महसूस करके और उसकी गोल गोल खरबूजे को अपनी हथेली में लेकर दबा कर उसका आनंद लेकर आया ही था कि उसकी बहन ने अपनी गोरी गोरी गांड दिखाकर उसके ऊपर बिजलियां गिराने का काम कर दी थी,,, अब होश का बिल्कुल भी ठिकाना ना था सोनू पागलों की तरह अपनी बहन की गांड को घुरे जा रहा था,,,,तभी सगुन को दरवाजे पर कुछ हलचल सी महसूस हुई और वह झट से पलटकर दरवाजे की तरफ देखी तो सोनू को दरवाजे पर खड़ा देखकर और उसकी नजरों को ठीक अपनी गांड पर चुभता हुआ महसूस करके वह एकदम से हक्की बक्की हो गई,,,,,, वह आनन-फानन में सोनू की तरफ मुंह करके खड़ी हो गई और अपनी सलवार को अपने दोनों हाथों में पकड़ कर उसे अपनी दोनों टांगों के बीच के बेशकीमती खजाने को छुपाने की भरपूर कोशिश करने लगी,,, अपनी बहन की यह हरकत सोनू के तन बदन में वासना की लहर को और ज्यादा उंची उठाने लगी,,, शगुन अपनी बेशकीमती खजाने को छुपाने में कामयाब हो चुकी थी,,,। सोनू के मन में अपनी बहन की बुर देखने की इच्छा हो चुकी है क्योंकि उसे ऐसा ही था कि जिस तरह से वह कमर के नीचे नंगी है अगर वह घूमने की तो उसकी बुर उसे जरूर दिखाई दे जाएगी,,, लेकिन शगुन अपनी तरफ से पूरी फुर्ती दिखाते हुए अपनी बुर को छुपा ले गई थी,,, और वह लगभग हकलाते हुए बोली,,,,।


ततततत,,, तू क्या कर रहा है इधर,,,,,,

मैं तो तुम्हें बुलाने आया था मम्मी बुला रही है चाय बनाने के लिए,,,,,

नोक नहीं कर सकता था दरवाजे पर,,,,


ममममम,,,, मुझे क्या मालूम था कि तुम इस तरह से होगी,,,,


अच्छा ठीक है तू जा मै आती हुं,,,,

ठीक है जल्दी आना,,,,(इतना कहकर सोनू वापस चला गया लेकिन अपने मन में अपने दिलो-दिमाग में अपनी बहन की मदमस्त यौवन से भरी हुई छवि लेता है गया,,, वह पूरी तरह से मदहोश हो चुका था,,, शगुन की भी हालत कम खराब नहीं थी सोनू के जाते ही वह लगभग उसी स्थिति में जल्दी से दरवाजे के लाता कर दरवाजा बंद करके लोग कर दी,,,,)

बाप रे,,,, यह सोनू की मां बिल्कुल भी तमीज नहीं है,,,,
(इतना कहकर वाली सलवार पहनने से पहले बिस्तर पर रखी हुई गुलाबी रंग की पेंटी पहनने लगी,,,, और अपने मन में सोचने लगी कि उसका भाई उसकी गांड जरूर देख लिया होगा तभी तो उसकी आंखें फटी की फटी रह गई थी,,,, इतना अपने मन में सोच के उसके मन में अजीब सी हलचल होने लगी उसे इस बात का ख्याल आया कि उसके भाई ने उसे कमर से नीचे एकदम नंगी देख लिया है खास करके वह उसकी गांड को ही देख रहा था,,,,इसका मतलब साफ था कि वह उसकी गांड को देखकर मस्त हो चुका था तभी तो बार दरवाजे से गया नहीं वरना चला जाता बिना कुछ बोले और उसे पता भी नहीं चलता लेकिन मैं तो पागलों की तरह तेरी नजरों से उसे ही घूर रहा था,,,सलवार पहनते हुए शगुन को इस बात का ख्याल आया कि जब वह सोनू की तरफ मुंह करके खड़ी थी और हाथ में तलवार लेकर अपनी बुर को छुपा रही थी तो सोनू की निगाहें उसकी दोनों टांगों के बीच ही घूम रही थी इसका मतलब साफ था कि वह उसकी बुर देखना चाहता था,,, यह ख्याल मन में आते ही शगुन की हालत खराब होने लगी,,,, अजीब सी हलचल उसके तन बदन में होने लगी पल भर में उसे ऐसा लगा कि जो चीज उसका भाई देखना चाहता था उस चीज को छुपाकर नहीं बल्कि खोल कर दिखा देना चाहिए था,,, शगुन अपने मन में यह सोच रही थी कि ,,, वह भी तो देखें कि उसकी गर्म जवानी और खूबसूरत गोरा बदन लोगों पर किस तरह से बिजलिया गिराता है,,,,इतना तो उसे विश्वास हो चुका था कि उसके पापा के साथ-साथ उसके गोरे बदन को देख कर उसके भाई की भी हालत खराब हो चुकी थी यह ख्याल मन में आते ही उसके चेहरे पर उसके होठों पर मुस्कान तैरने लगी वह जल्दी से कपड़े पहन कर कमरे से बाहर आ गई और चाय बनाने लगी,,, तीन कप चाय बनाकर वह अपनी मां और अपने भाई को धीमा कर उन दोनों के सामने ही बैठकर चाय का मजा लेने लगी सोनू अपनी बहन से नजर नहीं मिला पा रहा था और शगुन अपने भाई के तन बदन में हो रही हलचल को महसूस करके खुश हो रही थी,,। संध्या को तो इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि सोनू अपनी बहन की नंगी गांड के दर्शन करके आया है वह तो सोनू के साथ दो अर्थों में की गई बातों को लेकर मस्त हुए जा रही थी,,,।
अब लगता है की भाई और बहनऔर मां बेटे की चुदाई का खेल शुरु होने वाला है मजा आ जायेगा
बहुत ही गरमागरम और कामुक उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
 

Sanju@

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सोनू का दिन अच्छा तो था ही लेकिन बड़ी बेचैनी में बीत रहा थारात दिन उसकी आंखों के सामने उसकी मां का खूबसूरत बदन घूमता रहता था अब तो जब से वह अपनी बड़ी बहन की खूबसूरत नंगी गांड को देखा था तब से और मदहोश और बदहवास होता जा रहा था,,,,अब सोनू का आकर्षण दोनों तरफ था एक तो अपनी मां की तरफ और दूसरा अपनी बड़ी बहन की तरफ,,, दोनों मदहोश कर देने वाली जवानी से भरी हुई थी दोनों की जवानी उफान मार रही थी,,, जो हाल सोनू का था वहीं हाल संध्या का भी था अपने बेटै से जिस तरह से बातें की थी उन बातों के बारे में सोच सोच कर ही उसकी टांगों के बीच हलचल होना शुरू हो जाती थी,,,। और शगुन के दिल में तो अजीब अजीब से ख्याल आ रहे थे और उन ख्यालों को लेकर वह काफी उत्साहित थी,, उसे इस बात का पक्का यकीन था कि,, उसकी गर्म जवानी देख कर उसका भाई जरूर पिघल गया होगा जैसे उसके पापा उसकी तरफ पूरी तरह से आकर्षित हो चुके थे उसी तरह से उसका भाई भी उसकी तरफ आकर्षित होता जा रहा है,,,,।

शगुन कैंटीन में बैठी हुई थी अपनी सहेली प्रीति के साथ,,, दोनों कॉफी की चुस्कीयों का आनंद ले रहे थे लेकिन सगुन के मन में ढेर सारे सवाल उठ रहे थे,,,, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि प्रीति से किस तरह से बात करने की शुरुआत की जाए क्योंकि वह इस तरह की बातें करना चाहती थी उस तरह की बात ऊसने आज तक कभी नहीं की थी,,,, लेकिन फिर भी वह हिम्मत करके बोली,,,।

प्रीति क्या अभी भी तू अपने बॉयफ्रेंड के साथ मिलती है,,,।

अफकोर्श,,,, अभी भी उससे रोज मिलती हुं,,,लेकिन तु ऐसा क्यों पूछ रही है कहीं ऐसा तो नहीं कि तुझे भी बॉयफ्रेंड चाहिए,,,,,,,


नहीं नहीं ऐसे ही पूछ रही हूं,,,,


नहीं ऐसे तो तू नहीं पूछ रही है कहीं ऐसा तो नहीं कि,,,तेरी बुर में भी खुजली हो रही है और तू से मिटाना चाहती है इसीलिए बोयफ्रेंड ढूंढ रही है,,,, अगर ऐसा है तो सगुन में तेरे लिए इंतजाम कर दूंगी,,,,,(प्रीति सबकी नजरें बचाकर धीरे धीरे इस तरह की बातें कर रही थी ताकि कोई सुन ना ले शगुन प्रीति की बात सुनकर उसे डांटते हुए बोली।।)

पागल हो गई है क्या तू इस तरह से बातें करती है तुझे शर्म नहीं आती,,,,।


आती है मेरी जान लेकिन क्या करूं जो भगवान ने अपने दोनों टांगों के बीच जो पतली सी दरार बनाई है ना वो बेशर्म कर देती है और कुछ भी करने के लिए मजबूर कर देती है,,,।
(प्रीति की बातें सुनकर शगुन का दिल जोरों से धड़क रहा था,,,, उसके तन बदन में कुछ-कुछ हो रहा था,,,, प्रीति अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,,,) मेरी जान तुझे भी मजबूर कर देती होगी तेरी बुर,,,,

प्रीति थोड़ा तो शर्म कर,,,, हम कैंटीन में है कोई सुन लिया तो हम दोनों के बारे में क्या सोचेगा ,,,,।


क्या सोचेगा,,,,घर पर जाकर अपनी बीवी या अपनी गर्लफ्रेंड को चोदेगा ,,,,अगर कोई जुगाड़ नहीं मिला तो हम दोनों के बारे में सोच सोच कर अपना लंड हीलाता रहेगा,,, और क्या करेगा इससे ज्यादा और कुछ नहीं कर सकता,,,।

तुझे बहुत ज्ञान है इन सब मामलों में जैसे कि तू सब कुछ जानती है,,,,।(शगुन प्रीति के मुंह से और भी बातें सुनना चाहती है इसीलिए उसे ऊकसाते हुए बोली,,,)


तू शायद भूल कर रही है मेरे पास बॉयफ्रेंड है,,,, और एक मर्द के हाल को एक मर्द अच्छी तरह से समझ सकता है मेरा बॉयफ्रेंड मुझे सब कुछ बताता है,,,,। शगुनहम औरतों के पास वह है ना जिससे हम सारे मर्द को अपना गुलाम बना सकते हैं,,,, मर्दों के लिए औरत दुनिया की सबसे खूबसूरत चीज है,,,, बस औरत को अपने अंगों का सही इस्तेमाल करने आना चाहिए,,,,।

मैं कुछ समझी नहीं,,,(प्रीति की बात को ध्यान से सुनने के बाद शगुन बोली)

तु डॉक्टर बन कर भी क्या उखाड़ लेगी,,, जब मर्दों को ही अच्छी तरह से नहीं समझ पाएगी तो,,,, अरे पागल भगवान ने जो हमको दोनों चूचियां दीए है ना,,, जानती है यह सिर्फ बच्चों को दूध पिलाने के लिए नहीं बल्कि मर्दों को रिझाने के लिए भी है,,, मर्दों की नजर जब हम जैसी लड़कीयों के बड़े बड़े दूध पर पड़ती है तो पागल हो जाते उन्हें दबाने के लिए नियमों में भरकर पीने के लिए वह पागल हो जाते हैं तड़प उठते हैं,,,,(शगुन बड़े ध्यान से प्रीति की बातें सुन रही थी और उसे प्रीति की बातें अच्छी भी लग रही थी,,,, प्रीति अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली) और तो और मर्दों की नजर औरतों के अंगों पर सबसे पहले बड़ी-बड़ी चूची यां बड़ी बड़ी गांड पर ही जाती है,,,, और सच कहूं तो शगुन मर्द जितना हम औरतों की लड़कियों की गांड देखकर मस्त होते हैं इतना शायद मजा उन्हें और किसी चीज में नहीं आता,,,, यह तो हम लोगों को कपड़ों में देखकर इतना उत्तेजित होते हैं अगर बिना कपड़ों के देख ले तो शायद इनका पानी ही छूट जाए,,,,,
(शगुन एकदम गरम हो चुकी थी प्रीति के इस तरह की गंदी खुली बातें उसके दिमाग में हथोड़े चला रहे थे,,, शगुन अपने मन में सोचने लगी कि उसका भाई तो उसकी नंगी गांड को देख चुका है तभी शायद वह इतना व्याकुल हो गया है उसके पापा ने थे अब तक उसके नंगी गांड उसके नंगे बदन को ठीक तरह से देखना भी नहीं है फिर भी उनका हाल एकदम बेहाल है,,,, शगुन प्रीति की बातों को सुन ही रही थी कि प्रीति अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,) सच कहूं तो शगुन हमें अपनी खूबसूरत बदन का सही इस्तेमाल करके अपना काम निकालना चाहिए वह चाहे जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए हो या फिर अपनी प्यास बुझाने के लिए मैं तो दोनों तरीके से अपनी खूबसूरती का सही उपयोग करती हूं और शगुन तू तो मुझसे भी ज्यादा खूबसूरत है एकदम चिकनी है,,, तेरे छातियों पर लटकते खरबूजे और तेरी मदमस्त तरबुजे जैसी गांड मुझसे भी ज्यादा खूबसूरत है तू चाहे तो किसी भी मर्द को अपना गुलाम बना सकती है,,,।(प्रीति की बात सुनकर शगुन के चेहरे पर शर्म की लालीमा छाने लगी,,,और प्रीति की बातों को सुनकर उसे अपनी खूबसूरती पर और अपने अंगों पर गर्व होने लगा,,, दोनों की बातचीत आगे बढ़ती ईससे पहले ही,,,, लेक्चर का समय हो गया और वह दोनों कैंटीन से बाहर आ गई लेकिन प्रीति की बातों ने शगुन के हौसलों में जैसे जान डाल दिया हो,,, उसके जवानी के पंख फड़फड़ाने के लिए मचल रहे थे शगुन की एक-एक बात उसके जेहन में फिर बैठती चली जा रही थी,,,प्रीति की बातों को सुनकर उसे पक्का यकीन हो गया था कि अगर वह चाहे तो अपने बाप और अपने भाई दोनों को अपना दीवाना और गुलाम दोनों बना सकती है और जिस तरह से उसके साथ वाक्या होता आ रहा था उससे उसकी जवानी पानी मांग रही थी,,,, वह भी प्रीति की तरह मजा लेना चाहती थी,,,, यही सब ख्याल उसके मन में आ रहे थे,,,,।


संध्या की जवानी और खिलने लगी थी तड़प बढ़ती जा रही थी संजय के मुसल से वह पूरी तरह से संतुष्ट थी,,, लेकिन फिर भी अपने बेटे और अपने बेटे के लंड को लेकर वह काफी उत्सुक थी,,,मोटरसाइकिल पर बैठकर अपने आप को संभालने की कोशिश करते हुए अनजाने में ही पेंट के ऊपर से ही आए लंड को अपने हाथ में पकड़ कर जिस तरह की गर्माहट का अनुभव अपने बदन में की थी उसे याद करके अभी भी उसके बदन में सिहरन सी दौड़ ऊठती थी,,।
अपने बेटे से दो अर्थों में बात किए हुए लगभग 1 सप्ताह बीत चुका था वह बाथरूम में नहाने के लिए गई हुई थी और धीरे-धीरे करके अपने सारे कपड़े उतार रही थी लेकिन जब वह अपनी पैंटी को उतारी तो उसे अपनी पैंटी थोड़ी सी फटी हुई नजर आई,,, संध्या की यह आदत थी कि वह फटे हुए कपड़े कभी नहीं पहनती थी,,,। अपनी पेंटी में हुए छेद को देखकर उसे बुरा लग रहा था इसलिए वह आज ही नहीं पेंटी खरीदना चाहती थी,, वह जल्दी से नहा ली और केवल टावर लपेटकर बाथरूम से बाहर आ गई वैसे तो बाथरूम कमरे हीं था इसलिए कोई दिक्कत नहीं थी,,,। वह कमरे में इधर से उधर अपने कपड़े ढूंढने के लिए घूमने लगी और दूसरी तरफ सोनू को भूख लगी हुई थी और अपनी मां को ना पाकर वह उसे बुलाने के लिए उसके कमरे की तरफ जाने लगा,,,, धीरे-धीरे सोनू अपनी मां के कमरे के ठीक सामने पहुंच गया कमरे के बाहर खड़े होकर दरवाजे को देखते हैं उसे समझ में आ गया कि दरवाजा अंदर से लॉक नहीं था,, उसे जोरों की भूख लगी हुई थी इसलिए वह बीना दरवाजे पर दस्तक दिए,,, दरवाजा खोल कर उसके मुंह से केवल इतना ही निकल पाया,,,,
म,,,,,,,,(एकाएक दरवाजा खुलने की वजह से संध्या के हाथों से टावल छुट कर तुरंत नीचे गिर गया,,, और जो नजारा सोनू की आंखों के सामने नजर आया उसे देखकर वह आवाक रह गया,,, उसकी आंखें फटी की फटी रह गई,,,, उसकी आंखों के सामने उसकी खूबसूरत मम्मी एकदम नंगी हो चुकी थी,,, एकदम नंगी मादरजात,,, बदन पर कपड़े का रेशा तक नहीं था और वह भी बाथरूम से निकलने की वजह से पूरी तरह से भीगा हुआ बदन,,, होश उड़ा दे ऐसा खूबसूरत जिस्म,,,, गोरी गोरी भीगे बदन पर से पानी की बूंदे मोती के दाने की तरह से फिसल रही थी,,, भीगे हुए रेशमी बालों के गुच्छे में से पानी की बूंदे ऐसे टपक रही थी मानो किसी अद्भुत झरने से पानी का रिसाव हो रहा हो,,,जिंदगी में सोनू ने कभी इस तरह कतरी से नहीं देखा था और ना ही इस तरह के दृश्य की कभी कल्पना की थी एक लड़का होने के नाते उसने मोबाइल में कभी कबार पोर्न मूवी देख चुका था लेकिन जिस तरह से उस में नंगी औरतें खूबसूरत नजर आती थी उससे भी कहीं ज्यादा खूबसूरत इस समय उसकी मां नजर आ रही थी,,, संध्या को इस बात का अहसास तक नहीं था कि उसने दरवाजा खुला छोड़ रखी है इसीलिए तो जैसे ही भड़ाक की आवाज के साथदरवाजा खुला वैसे ही उसके यहां से टावल छुट कर नीचे गिर गई और वह अपने बेटे के सामने एकदम नंगी हो गई,,,,,, कुछ पल के लिए तो वह भी कुछ समझ में नहीं पाई कि क्या हो रहा है उसे क्या करना चाहिए,,,और वह कुछ पल तक अपने बेटे के सामने उसी अवस्था में एकदम नंगी खड़ी रह गई मानो कि अपने बेटे को अपने जिस्म का हर एक कोना दिखाना चाहती हो,,अब तो कुछ नहीं अपने हाथों से भी अपनी खूबसूरत बेशकीमती आंखों को छुपाने की कोशिश तक नहीं की थी लेकिन जैसे ही उसे इस बात का अहसास हुआ कि उसके बेटे की आंखों के सामने वह एकदम नंगी खड़ी है तो वह शर्म के मारे तुरंत नीचे झुक कर वापस टावल उठा लिया और उसे तुरंत अपने बदन पर लपेट ली,,, लेकिन अफरा-तफरी में जल्दबाजी दिखाते हुए वहां टावर को अपनी छाती के ऊपर तक लपेट ली जिससे उसकी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार को छुपाने में टावल नीचे से छोटी पड़ गई,,, और सोनू की नजर अपनी मां की दोनों टांगों के बीच चली गई,,,,सोनू का दिल जोरो से धड़कने लगा उसकी हालत खराब होने लगी हालांकि इतनी दूर से वह अपनी मां की रसीली बुर को ठीक से देख नहीं पा रहा था लेकिन उसे इस बात का अहसास था कि दोनों टांगो के बीच दुनिया की सबसे खूबसूरत अंग छिपा हुआ है,,,, इस एहसास सेवा पूरी तरह से मदहोश हो गया उसके पेंट में तुरंत तंबू सा बन गया,,,,, वह अभी भी दरवाजा पकड़कर दरवाजे पर ही खड़ा था अंदर आने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी और ना ही उसके मुंह से कुछ शब्द फुट पा रहे थे वह पूरी तरह से निशब्द हो चुका था,,,, हालात को पूरी तरह से संभालते हुए उसकी मा ही बोली,,,।

ततततत,, तू किस लिए आए हो,,,,(अपनी मां की आवाज कानों में पड़ते ही जैसे उसे होश आया हूं और वह भी हकलाते हुए बोला,,,)

ममममम,,,, मम्मी मुझे भूख लगी है,,,,।

भूख लगी है तो किचन में जाना चाहिए था ना बेटा,,,,

मम्मी आप तो जानते हो कि मैं अपने हाथ से खाना निकालकर कभी नहीं खाता,,।


मैं जानती हूं बेटा लेकिन तुम्हें अंदर आने से पहले दरवाजे पर नोकक तो करना चाहिए था,,,।(संध्या अभी भी नहीं समझ पाई थी कि उसकी टावर उसकी जांघों तक नहीं बल्कि कमर के ऊपर तक है थी जिससे उसके बेटे की नजर अभी भी उसकी दोनों टांगों के बीच ही थी,,,)

सॉरी मम्मी मुझे नहीं मालूम था कि आप इस हालत,,,,,(इतना कहकर वह चुप हो गया)

ठीक है तुम चलो मैं आती हूं,,,,
(अपनी मां की यह बातें सुनकर सोनू की जाने की तो इच्छा नहीं हो रही थी क्योंकि उसकी नजरें अभी भी अपनी मां की दोनों टांगों के बीच टिकी हुई थी इसी ताक में था कि उसे उसकी मां की बेहतरीन खूबसूरत बुर अच्छे से नजर आ जाए,,, लेकिन मोटी चिकनी मांसल जांघों के आपस में रगड़ खाने की वजह से उसकी बुर ठीक से दिखाई नहीं दे रही थी,,,, इसलिए सोनू मन मसोसकर अपनी मां को जल्दी से आने के लिए बोल कर चला गया ,,,, लेकिन जाते-जाते आखिरी बार अपनी मां की दोनों टांगों के बीच नजर घुमाकर दरवाजा बंद करके चला गया,,,इस बार संध्या उसकी नजरों को भांप गई और जैसे ही वह अपनी नजर नीचे करके देखी तो वह एकदम से दंग रह गई कमर के नीचे से वह पूरी तरह से नंगी थी और उसकी बुर साफ नजर आ रही थी ,,,अपने बेटे की नजरों और अपनी स्थिति का अहसास होते ही वह शर्म से पानी पानी हो गई उसे समझते देर नहीं लगी कि उसका बेटा उसकी बुर को देख रहा था,,,, अजीब सी,, हलचल उसके तन बदन में फैलती चली जा रही थी,,,,, उसके चेहरे पर शर्म की लाली छाने लगी,,,,,,, उसे अपनी बुर से अमृत धारा का रिसाव होता हुआ महसूस हो रहा था,,,, जिंदगी में सोनू दूसरा मर्द था जो उसे नंगी देख रहा था,,,, और इसी एहसास से लेकर उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ रही थी और वह अंदर ही अंदर खुश हो रही थी उसे ना जाने क्यों अच्छा ही लग रहा था कि अच्छा हुआ उसके बेटे ने उसे नंगी देख लिया,,, संध्या जल्दी-जल्दी अपने कपड़े पहनने लगी,,, नीचे सोनू उसका बेसब्री से इंतजार कर रहा था उसकी आंखों के सामने बार-बार उसकी मां का नंगा बदन घूम जा रहा था जिंदगी में पहली बार वह किसी औरत को साक्षात नंगी देखा था और अभी किसी दूसरी औरत को नहीं बल्कि अपनी मां को अपनी मां की खूबसूरती और नंगे बदन को देख कर उसे इस बात का एहसास हुआ कि उसकी मां वास्तव में दुनिया की सबसे खूबसूरत औरत है जिसे पाने के लिए भोगने के लिए दुनिया का हर मर्द मचलता रहता है,,, अपनी मां के बारे में सोच कर सोनु उत्तेजित हुआ जा रहा था,,, उसका लंड पैंट के अंदर गदर मचाया हुआ था,,,सोनू का बस चलता तो वह कमरे में प्रवेश करके दरवाजा अपने हाथों से बंद करके अपनी मां की चुदाई कर दिया होता लेकिन ऐसा करने की हिम्मत अभी उसमें बिल्कुल भी नहीं थी,,,,।

थोड़ी ही देर में संध्या सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए उसे नजर आई पीले रंग की साड़ी में वह बेहद खूबसूरत लग रही थी बाल अभी भी गीले ही थे वह सज धज कर नहीं बल्कि सिर्फ कपड़े पहन कर आई थी,,,,और अपने बेटे की तरफ देख कर हल्की सी स्माइल देकर किचन में चली गई,,,, सोनू अपनी मां को देखकर हैरान था उसे लगा था कि उसकी मां उसे गुस्से में देखेगी उससे बात तक नहीं करेगी लेकिन उसके होठों पर आई मुस्कुराहट देखकर सोनू को राहत महसूस होने लगी उसे लगने लगा कि जो कुछ भी हुआ था वह अनजाने में ही हुआ था इस बात का एहसास उसकी मां को अच्छी तरह से है,,। थोड़ी ही देर में थाली में खाना परोस कर संध्या किचन से बाहर आ गई और डाइनिंग टेबल पर परोसी हुई थाली रखते हुए बोली,,,,।

इतनी भूख लगी थी कि सीधा कमरे में घुस आया यह भी नहीं सोचा कि किस हालत में होंऊगी ,,,।


मम्मी आप आप मुझे शर्मिंदा कर रही है अगर पता होता तो मैं कभी भूलकर भी कमरे में नहीं आता मुझे बिल्कुल भी पता नहीं था,,,(सोनू नजरे नीचे झुकाए हुए ही बोला)

चलो कोई बात नहीं आइंदा से याद रखना,,,,( अपने बेटे के सर पर हाथ रखकर उसके रेशमी बालों को सहलाते हुए बोली,,,, संध्या अपनी बेटे के मन में उसके द्वारा की गई अनजाने में हरकत की वजह से घृणा पैदा नहीं करना चाहती थी इसलिए वह उसे सामान्य बनाए रखना चाहती थी ताकि इस तरह की गलती वह दोबारा भी करें क्योंकि अपने बेटे की इस गलती की वजह से उसके तन बदन में जो आग लगी थी उसी से उसके तन बदन में उत्तेजना की मीठी लहर दौड़ने लगी थी,,,अपनी मां का बर्ताव देखकर सोनू को भी अच्छा लगा और वह खाना खाने लगा,,, संध्या वही उसके पास कुर्सी खींचकर बैठ गई,,,,, और बोली,,,)

अब जल्दी से खाना खाले हमें बाहर जाना है,,,,।


बाहर कहां,,,?


अरे बाजार जाना है कुछ कपड़े खरीदने हैं,,,,

कैसे कपड़े मम्मी आपके पास तो ढेर सारे कपड़े है,,,(निवाला मुंह में डालते हुए बोला,,)

अरे जरूरी है की ढेर सारे कपड़े हो तो कपड़े ना खरीदा जाए,,,, तु सिर्फ चुपचाप खाना खाकर मेरे साथ चल,,,,।
(इतना सुनकर वहां कुछ बोला नहीं और खाना खाने लगा संध्या उठकर अपने बाल को संवारने के लिए चली गई,,, थोड़ी ही देर में सोनू खाना खा लिया संध्या तैयार होकर नीचे आ गई वह दोनों,,, जाने ही वाले थे कि,,, डोर बेल बजने लगी और सोनू जाकर दरवाजा खोला तो सामने शगुन खड़ी थी,,, शगुन को देखते ही सोनू की आंखों के सामने शगुन की नंगी गांड नाचने लगी,,, सोनू अभी भी शर्म के मारे उससे नज़रें नहीं मिला पा रहा था,,, और सोनू को इधर-उधर अपनी नजरें बचाता देखकर शगुन को इस बात का एहसास हो गया था कि उस दिन के वाक्य को लेकर सोनू उससे नज़रें नहीं मिला पा रहा है और वह अंदर ही अंदर खुश हो रही थी,,,। वह बिना कुछ बोले घर में आ गई और अपनी मां को तैयार हुआ देखकर बोली,,,।)

कहीं जा रहे हो क्या मम्मी,,,,

हां बेटा थोड़ा बाजार जाना था,,,

मैं भी चलूं क्या मम्मी,,,,।

नहीं बेटा तुम यहीं रहो अगर तुम्हारे पापा आ गए तो उन्हें खाना देना होगा,,,,

ठीक है मम्मी में यहीं रुक जाती हुं,,,(इतना कहकर वह अपना बैग कुर्सी पर रख दी वैसे तो संध्या शगुन को अपने साथ ले जा सकती थी लेकिन वह अपने बेटे के साथ अकेले ही जाना चाहती थी क्योंकि उसे पेंटी खरीदनी थी और वह भी अपने बेटे की आंखों के सामने,,,, इसलिए बहाना बनाकर सब उनको घर पर ही रुकने के लिए बोली थोड़ी ही देर में दोनों घर से बाहर निकल गए,,,।
Nice update 👌👌👌👌👌
 
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