• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Romance श्रृष्टि की गजब रित

Funlover

I am here only for sex stories No personal contact
14,860
20,717
229
भाग - 17


अपने सामने रखा लेटर पर सरसरी निगाह फेरकर राघव बोला... ये क्या है साक्षी, एक तो इतने दिनों बाद लौटी हों और आते ही लेटर थमा रहीं हों। कहीं ये लव लेटर तो नहीं, ऐसा हैं तो इसे अपने पास रख लो ये मेरे किसी काम का नहीं।

साक्षी... ये आपके काम का ही हैं। ये लव लेटर नहीं मेरा इस्तीफा हैं।

"क्या" चौकते हुए राघव बोला और लेटर उठकर पढ़ने लग गया। लेटर का कुछ हिस्सा पढ़कर राघव बोला...साक्षी ये क्या पागलपंती हैं। मैं तो तुमसे इस्तीफा नहीं मांगा फ़िर इस्तीफा क्यों दे रहीं हों।

साक्षी... जो भी मैंने किया और जो भी यहाँ हुआ। मैं समझती हूं उसके बाद मेरा यहां काम कर पाना संभवतः मुश्किल हैं। सिर्फ़ इसी कारण से मैं इस्तीफा दे रही हूं।

"जो भी क्या (सरसरी निगाह साक्षी पर फेरा फिर राघव आगे बोला) जो भी तुमने किया वो तो समझ में आया मगर जो भी हुआ उससे तुम्हारा क्या मतलब हैं? कहीं तुम्हें श्रृष्टि को प्रोजेक्ट हेड बना देना बूरा तो नहीं लग गया।

राघव के सवाल का कोई जबाव साक्षी नहीं दिया बस चुप्पी साधे खड़ी रहीं। साक्षी का यूं चुप्पी साध लेना इशारा कर रहा था कि राघव का तीर सही ठिकाने पर लगा हैं। इसलिए राघव बोला...साक्षी तुम काबिलियत के मामले में भले ही श्रृष्टि से कम नहीं हों मगर एक मामले में तुम उसके आस पास भी नहीं भटकती हों वो है उसकी सोच, उसकी सोच अव्वल दर्जे की हैं। बीते दो दिन हुए वो मेरे पास आई थीं और कह रही थीं कि मैं तुम्हें प्रोजेक्ट हेड बना दूं।

साक्षी...सर क्यों झूठ बोल रहें हों। इतने कम वक्त में कोई प्रोजेक्ट हेड बन जाएं और खुद ही आकर किसी ओर को, जिसे पछाड़कर प्रोजेक्ट हेड बनी हों। दुबारा उसे प्रोजेक्ट हेड बनाने को कहें ये मैं मान ही नहीं सकती। क्या आप मान सकते हो अगर आप मेरी जगह पर हो तो ???

राघव...साक्षी तुम और तुम्हारी सोच तुम मानो या न मानों यहीं सच हैं। हों सकता है तुम्हें बूरा लगे मगर यहीं सच हैं कि तुम सिर्फ़ अपने भले की ही सोचती हो जबकि तुम कई वर्षों से हमारी कम्पनी में काम कर रहीं हों और श्रृष्टि उसको आए अभी एक ही महीना हुआ हैं लेकिन वो खुद से ज्यादा हमारी कम्पनी के भले की सोच रहीं हैं। उसका कहना हैं कि तुम उससे ज्यादा काबिल हों इसलिए मैं तुम्हें उसके जगह प्रोजेक्ट हेड बाना दू। उसका यह भी कहना हैं इससे प्रोजेक्ट को फायदा होगा। अब तुम ही सोचो प्रोजेक्ट को फायदा मतलब सीधा सीधा कम्पनी को फायदा होगा। इस पर तुम्हारा क्या कहना हैं?

साक्षी अभी कुछ भी कह पाती उसे पहले ही "सर मै भीतर आ सकती हूं।" आवाज आई। आवाज सुनते ही राघव समझ गया। आवाज देने वाली कौन है? इसलिए साक्षी को चुप रहने का इशारा करके बोला... श्रृष्टि कोई जरूरी काम था?

"हां सर" श्रृष्टि बोलीं

राघव... ठीक हैं आ जाओ

श्रृष्टि भीतर आते ही कुछ औपचारिक बाते किया फिर असल मुद्दे पर आते हुए बोलीं... सर अब जब साक्षी मैम आ ही गई हैं तो आप उन्हें मेरे जगह प्रोजेक्ट हेड बना दिजिए (फ़िर साक्षी से सामने होकर बोलीं) साक्षी मैम मैं इतना तो समझ ही गई हूं कि मुझे प्रोजेक्ट हेड बना देना आपको बूरा लगा हैं। चाहे आप बताये या ना बताये पर आप काबिल हो और काफी वक्त से हमारी कम्पनी से जुड़ी हों सहसा नई नई आई किसी लडकी को प्रोजेक्ट हेड बना दिया जाए तो बूरा लगना स्वाभाविक हैं। आप की जगह मै होती तो मुझे भी बुरा लगता और मै ही क्या कोई भी होता तो उसको बुरा लगता |


 

Funlover

I am here only for sex stories No personal contact
14,860
20,717
229
भाग - 17


अपने सामने रखा लेटर पर सरसरी निगाह फेरकर राघव बोला... ये क्या है साक्षी, एक तो इतने दिनों बाद लौटी हों और आते ही लेटर थमा रहीं हों। कहीं ये लव लेटर तो नहीं, ऐसा हैं तो इसे अपने पास रख लो ये मेरे किसी काम का नहीं।

साक्षी... ये आपके काम का ही हैं। ये लव लेटर नहीं मेरा इस्तीफा हैं।

"क्या" चौकते हुए राघव बोला और लेटर उठकर पढ़ने लग गया। लेटर का कुछ हिस्सा पढ़कर राघव बोला...साक्षी ये क्या पागलपंती हैं। मैं तो तुमसे इस्तीफा नहीं मांगा फ़िर इस्तीफा क्यों दे रहीं हों।

साक्षी... जो भी मैंने किया और जो भी यहाँ हुआ। मैं समझती हूं उसके बाद मेरा यहां काम कर पाना संभवतः मुश्किल हैं। सिर्फ़ इसी कारण से मैं इस्तीफा दे रही हूं।

"जो भी क्या (सरसरी निगाह साक्षी पर फेरा फिर राघव आगे बोला) जो भी तुमने किया वो तो समझ में आया मगर जो भी हुआ उससे तुम्हारा क्या मतलब हैं? कहीं तुम्हें श्रृष्टि को प्रोजेक्ट हेड बना देना बूरा तो नहीं लग गया।

राघव के सवाल का कोई जबाव साक्षी नहीं दिया बस चुप्पी साधे खड़ी रहीं। साक्षी का यूं चुप्पी साध लेना इशारा कर रहा था कि राघव का तीर सही ठिकाने पर लगा हैं। इसलिए राघव बोला...साक्षी तुम काबिलियत के मामले में भले ही श्रृष्टि से कम नहीं हों मगर एक मामले में तुम उसके आस पास भी नहीं भटकती हों वो है उसकी सोच, उसकी सोच अव्वल दर्जे की हैं। बीते दो दिन हुए वो मेरे पास आई थीं और कह रही थीं कि मैं तुम्हें प्रोजेक्ट हेड बना दूं।

साक्षी...सर क्यों झूठ बोल रहें हों। इतने कम वक्त में कोई प्रोजेक्ट हेड बन जाएं और खुद ही आकर किसी ओर को, जिसे पछाड़कर प्रोजेक्ट हेड बनी हों। दुबारा उसे प्रोजेक्ट हेड बनाने को कहें ये मैं मान ही नहीं सकती। क्या आप मान सकते हो अगर आप मेरी जगह पर हो तो ???

राघव...साक्षी तुम और तुम्हारी सोच तुम मानो या न मानों यहीं सच हैं। हों सकता है तुम्हें बूरा लगे मगर यहीं सच हैं कि तुम सिर्फ़ अपने भले की ही सोचती हो जबकि तुम कई वर्षों से हमारी कम्पनी में काम कर रहीं हों और श्रृष्टि उसको आए अभी एक ही महीना हुआ हैं लेकिन वो खुद से ज्यादा हमारी कम्पनी के भले की सोच रहीं हैं। उसका कहना हैं कि तुम उससे ज्यादा काबिल हों इसलिए मैं तुम्हें उसके जगह प्रोजेक्ट हेड बाना दू। उसका यह भी कहना हैं इससे प्रोजेक्ट को फायदा होगा। अब तुम ही सोचो प्रोजेक्ट को फायदा मतलब सीधा सीधा कम्पनी को फायदा होगा। इस पर तुम्हारा क्या कहना हैं?

साक्षी अभी कुछ भी कह पाती उसे पहले ही "सर मै भीतर आ सकती हूं।" आवाज आई। आवाज सुनते ही राघव समझ गया। आवाज देने वाली कौन है? इसलिए साक्षी को चुप रहने का इशारा करके बोला... श्रृष्टि कोई जरूरी काम था?

"हां सर" श्रृष्टि बोलीं

राघव... ठीक हैं आ जाओ

श्रृष्टि भीतर आते ही कुछ औपचारिक बाते किया फिर असल मुद्दे पर आते हुए बोलीं... सर अब जब साक्षी मैम आ ही गई हैं तो आप उन्हें मेरे जगह प्रोजेक्ट हेड बना दिजिए (फ़िर साक्षी से सामने होकर बोलीं) साक्षी मैम मैं इतना तो समझ ही गई हूं कि मुझे प्रोजेक्ट हेड बना देना आपको बूरा लगा हैं। चाहे आप बताये या ना बताये पर आप काबिल हो और काफी वक्त से हमारी कम्पनी से जुड़ी हों सहसा नई नई आई किसी लडकी को प्रोजेक्ट हेड बना दिया जाए तो बूरा लगना स्वाभाविक हैं। आप की जगह मै होती तो मुझे भी बुरा लगता और मै ही क्या कोई भी होता तो उसको बुरा लगता |


 

Funlover

I am here only for sex stories No personal contact
14,860
20,717
229
श्रृष्टि की बातो ने साक्षी को अचंभित सा कर दिया। उसके मन में पनपी सभी शंका को एक पल में ही धराशाई कर दिए। सहसा श्रृष्टि की निगाह राघव के सामने रखी लेटर पर पड़ा। जिसे उठकर कुछ ही हिस्सा पढ़ते ही बोलीं...उम्हा तो आप इस्तीफा देने आई थीं। मगर अब आपको इस्तीफा देने की जरूरत नहीं हैं क्योंकि आज से आप इस प्रोजेक्ट की हेड होंगी। क्यों सर मै सही बोल रहीं हूं न।

राघव…”खेर तुम अभी बोस नहीं बनी श्रुष्टि” तुमने तो झट से अपना फैंसला सुना दिया। कुछ फैंसला मुझे ही करने दो आखिर मैं इस कम्पनी का हेड हूं।

"ठीक है। उम्मीद करूंगी आपका फैंसला साक्षी मैम के हक में हों। (साक्षी से मुखातिब होकर बोलीं) साक्षी मैम बहुत छुट्टी मार ली अब चलकर कुछ काम धाम कर ले।

साक्षी... तुम चलो मैं सर से कुछ जरुरी बात करके आती हूं।

"जल्दी आना" बोलकर श्रृष्टि चली गई। उसके जाते ही कुछ देर रूकी फ़िर साक्षी बोलीं... सर ये कैसा पीस है और इसे कहा से ढूंढ लाए।

राघव…अनमोल पीस हैं। खुद से आई हैं जो सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरा हैं।

"सिर्फ़ मेरा है" सुनते ही साक्षी की आंखे बडी बडी और मुंह खुला का खुला रहा गया ये देख राघव बोला...जब से श्रृष्टि आई हैं तब से साक्षी तुम्हारी ग्रह दशा बिगड़ गई हैं। सिर्फ़ सदमे पे सदमा मिल रहीं हैं।

साक्षी... सर ये सदमा मुझे तब तक मिलता रहेगा जब तक आप ये नहीं बता देते कि आप श्रृष्टि से कब-कैसे मिले और "मेरी हैं" से आपका क्या मतलब हैं।

राघव... मतलब तुम्हें सदमा लगने से बचाना हैं तो श्रृष्टि से मिलने की बात बताना जरूरी हैं।

साक्षी... हां सर बता दिजिए नहीं तो पता चला किसी दिन आपके दिए सदमे से मैं चल बसी और आपका एक आर्किटेक हमेशा हमेशा के लिए काम हों जाएं।

राघव... हमेशा हमेशा से मतलब तुम...।

"हां सर श्रृष्टि की बातों ने मुझे ये सोचने पर मजबुर कर दिया कि मेरी सोच कितनी गलत हैं। इसलिए चंद पलों में ही मैने फैंसला ले लिया कि मैं अब यह कम्पनी तब तक छोड़कर नहीं जाऊंगी जब तक आप खुद से मुझे निकाल नहीं देते और इस प्रॉजेक्ट पर श्रृष्टि को हेड मानकर ही काम करूंगी।" राघव की बातों को कांटकार साक्षी बोलीं

राघव…”अच्छा किया जो तुमने अपना फैंसला बादल दिया। अब तुम खुद ही श्रृष्टि को बताओगी की वो ही इस प्रोजेक्ट की हेड रहेगी।“

मै जहा तक उसे जानता हु तो तुम्हारे पीछे पीछे उसका भी इस्तीफा मेरे टेबल पे आ जाएगा “ क्या पता वो अपने कोम्पुटर पर वोही टाइप कर रही हो......”

"हां हां बता दूंगी अब आप अपना कथा पुराण शुरू कीजिए।" साक्षी मुस्कुराते हुए बोलीं। “मुझे बस उसमे ही रस है की श्रुष्टि से क्या लेनादेना है

अगर आपको मेरी काबलियत का पूरा पूरा निचोड़ चाहिए तो शर्त ये है “
राघव “पता नहीं था की तुम्हे ब्लेकमेल भी करना आता है| बहोत शातिर किसम की लड़की हो तुम “

साक्षी “ आपको बहोत कुछ अभी मेरे बारे में जानना बाकी है शुरुआत से ही डर गए?? मुस्कुराते हुए अपनी एक हाथ से आगे बोलने का इशारा करते हुए राघव की और ? मार्क भरी आँखों से देखते हुए बोली

राघव... ये बात तब की है जब हमारी कम्पनी और DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप पार्टनरशिप में एक बड़े प्रोजेक्ट पर काम कर रहें थे।

"सर ये तो दो तीन साल पुरानी बात हैं। राघव की बातों को बीच में कांटकर बोलीं

राघव... हां, ये उस वक्त की बात हैं। हालाकि श्रृष्टि ओर मेरा ज्यादा आमना सामना नहीं हुआ। याद कदा ही उससे मिला हूं वो भी कंसट्रक्शन साईड पर मगर उसकी चर्चा बहुत सूना था जिससे मैं बहुत प्रभावित हुआ। दरअसल हुआ ये था हमारी क्लाइंट बड़ा अजीब था। बीच कंस्ट्रक्शन ही अलग अलग मांग रख देता था। तुम तो जानती हो बीच कंस्ट्रक्शन में मांग रख दी जाए तो उसे पूरा करने में आर्किटेक के पसीने छूट जाते हैं। उस वक्त भी उस प्रॉजेक्ट से जुड़े सभी आर्किटेक्ट के पसीने छूटे हुए थे। मगर एक श्रृष्टि ही थी जो अपने सूज बुझ और कार्य कुशलता के दम पर बिना नीव को कोई नुकसान पहुंचाए क्लाइंट के एक के बाद एक मांग को पूरा करती गइ। इससे प्रभावित होकर DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप के मालिक श्रीमान दिनेश नैनवाल जी से श्रृष्टि के साथ एक पर्सनल मीटिंग करवाने की मांग रखा। मगर दिनेश नैनवाल जी मान ही नहीं रहे थे। बहुत मन मनुवाल के बाद राज़ी हुए इस शर्त पर कि उस मीटिंग में वो भी मौजूद रहेंगे। मेरे मन में कोई गलत विचार नहीं था तो मैंने भी हां कर दिया। हमारी मीटिंग हो पाती उससे पहले ही सूचना मिला कि श्रृष्टि ने नौकरी छोड़ दिया।

"क्या..ये लडकी भी पागल हैं। इतना नाम हों रहा था फ़िर भी नौकरी छोड़ दिया।" चौकते हुए बीच में साक्षी बोल पड़ी।

राघव... पागल नहीं इतना तो मैं दावे से कह सकता हू।

साक्षी... वो कैसे?

राघव... वो ऐसे कि जब मुझे पता चला श्रृष्टि ने वहां से नौकरी छोड़ दिया तो मैंने सोचा क्यों न मैं अपनी कम्पनी की तरफ से उसे जॉब ऑफर करू मगर इसके लिए उससे संपर्क करना जरूरी था। जो कि मुझे DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप से ही मिल सकता था। श्रृष्टि का कोई संपर्क सूत्र तो मिला नहीं मगर मुझे ये पता चल गया की दिनेश नैनवाल जी के बेटे ने श्रृष्टि के साथ बहुत गलत सलूक किया था जिस कारण उसने नौकरी छोड़ दिया था। ये बात पता चलते ही मैंने भी उनसे पार्टनरशिप तोड़ लिया। अब ये मत सोचना एक लड़की के लिए मैंने बड़ी पार्टनरशिप छोड़ दी मै अपने आप को जानता हु और मेरे भी कुछ नियम है जो शायद मेरे पिताजी ने दिए है खास कर महिलाओ के बारे में

भला मैं कैसे उन लोगो के साथ पार्टनरशिप आगे बड़ा सकता था जिनके यहां काम गारो की बिल्कुल भी इज्जत न किया जाता हों और उसके साथ गलत सलूक करने वाला खुद मालिक हों। मुझे यह भी लगा, हों सकता हैं इस बात की आंच मुझ तक भी पहुंच जाए। और मेरी इज्जत जो पिताजी ने बनाए राखी है वो एक पल में दाव पर लग जाए | मैं कतई ये नहीं चहता था कि कोई भी ऐसी बात जिससे मेरे कम्पनी जिसे मेरे बाप ने बहुत मेहनत से खड़ा किया उसके और मेरे बाप के साख पर कोई दाग लगे। खैर ये बात आई गई हो गई और एक काबिल आर्किटेक मेरे हाथ से निकल जानें का अफ़सोस होने लगा। मगर किस्मत को शायद कुछ ओर ही मंजूर था सहसा एक दिन श्रृष्टि से मेरी भेट यहां हुआ और उसके बाद का तुम जानती ही हों।


जारी रहेगा…..

लो भाई अब ये भी जानना बाकी था

खेर अब तक मै भी सोच ही रही थी की एक तरफा जानकारी कैसे हो सकती है (श्रुष्टि कोई PM तो है नहीं की उसे सब जाने पर वो किसी को ना जाने ........... एक भेद तो खुला
 

vickyrock

Active Member
607
1,575
139
श्रृष्टि की बातो ने साक्षी को अचंभित सा कर दिया। उसके मन में पनपी सभी शंका को एक पल में ही धराशाई कर दिए। सहसा श्रृष्टि की निगाह राघव के सामने रखी लेटर पर पड़ा। जिसे उठकर कुछ ही हिस्सा पढ़ते ही बोलीं...उम्हा तो आप इस्तीफा देने आई थीं। मगर अब आपको इस्तीफा देने की जरूरत नहीं हैं क्योंकि आज से आप इस प्रोजेक्ट की हेड होंगी। क्यों सर मै सही बोल रहीं हूं न।

राघव…”खेर तुम अभी बोस नहीं बनी श्रुष्टि” तुमने तो झट से अपना फैंसला सुना दिया। कुछ फैंसला मुझे ही करने दो आखिर मैं इस कम्पनी का हेड हूं।

"ठीक है। उम्मीद करूंगी आपका फैंसला साक्षी मैम के हक में हों। (साक्षी से मुखातिब होकर बोलीं) साक्षी मैम बहुत छुट्टी मार ली अब चलकर कुछ काम धाम कर ले।

साक्षी... तुम चलो मैं सर से कुछ जरुरी बात करके आती हूं।

"जल्दी आना" बोलकर श्रृष्टि चली गई। उसके जाते ही कुछ देर रूकी फ़िर साक्षी बोलीं... सर ये कैसा पीस है और इसे कहा से ढूंढ लाए।

राघव…अनमोल पीस हैं। खुद से आई हैं जो सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरा हैं।

"सिर्फ़ मेरा है" सुनते ही साक्षी की आंखे बडी बडी और मुंह खुला का खुला रहा गया ये देख राघव बोला...जब से श्रृष्टि आई हैं तब से साक्षी तुम्हारी ग्रह दशा बिगड़ गई हैं। सिर्फ़ सदमे पे सदमा मिल रहीं हैं।

साक्षी... सर ये सदमा मुझे तब तक मिलता रहेगा जब तक आप ये नहीं बता देते कि आप श्रृष्टि से कब-कैसे मिले और "मेरी हैं" से आपका क्या मतलब हैं।

राघव... मतलब तुम्हें सदमा लगने से बचाना हैं तो श्रृष्टि से मिलने की बात बताना जरूरी हैं।

साक्षी... हां सर बता दिजिए नहीं तो पता चला किसी दिन आपके दिए सदमे से मैं चल बसी और आपका एक आर्किटेक हमेशा हमेशा के लिए काम हों जाएं।

राघव... हमेशा हमेशा से मतलब तुम...।

"हां सर श्रृष्टि की बातों ने मुझे ये सोचने पर मजबुर कर दिया कि मेरी सोच कितनी गलत हैं। इसलिए चंद पलों में ही मैने फैंसला ले लिया कि मैं अब यह कम्पनी तब तक छोड़कर नहीं जाऊंगी जब तक आप खुद से मुझे निकाल नहीं देते और इस प्रॉजेक्ट पर श्रृष्टि को हेड मानकर ही काम करूंगी।" राघव की बातों को कांटकार साक्षी बोलीं

राघव…”अच्छा किया जो तुमने अपना फैंसला बादल दिया। अब तुम खुद ही श्रृष्टि को बताओगी की वो ही इस प्रोजेक्ट की हेड रहेगी।“

मै जहा तक उसे जानता हु तो तुम्हारे पीछे पीछे उसका भी इस्तीफा मेरे टेबल पे आ जाएगा “ क्या पता वो अपने कोम्पुटर पर वोही टाइप कर रही हो......”

"हां हां बता दूंगी अब आप अपना कथा पुराण शुरू कीजिए।" साक्षी मुस्कुराते हुए बोलीं। “मुझे बस उसमे ही रस है की श्रुष्टि से क्या लेनादेना है

अगर आपको मेरी काबलियत का पूरा पूरा निचोड़ चाहिए तो शर्त ये है “
राघव “पता नहीं था की तुम्हे ब्लेकमेल भी करना आता है| बहोत शातिर किसम की लड़की हो तुम “

साक्षी “ आपको बहोत कुछ अभी मेरे बारे में जानना बाकी है शुरुआत से ही डर गए?? मुस्कुराते हुए अपनी एक हाथ से आगे बोलने का इशारा करते हुए राघव की और ? मार्क भरी आँखों से देखते हुए बोली

राघव... ये बात तब की है जब हमारी कम्पनी और DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप पार्टनरशिप में एक बड़े प्रोजेक्ट पर काम कर रहें थे।

"सर ये तो दो तीन साल पुरानी बात हैं। राघव की बातों को बीच में कांटकर बोलीं

राघव... हां, ये उस वक्त की बात हैं। हालाकि श्रृष्टि ओर मेरा ज्यादा आमना सामना नहीं हुआ। याद कदा ही उससे मिला हूं वो भी कंसट्रक्शन साईड पर मगर उसकी चर्चा बहुत सूना था जिससे मैं बहुत प्रभावित हुआ। दरअसल हुआ ये था हमारी क्लाइंट बड़ा अजीब था। बीच कंस्ट्रक्शन ही अलग अलग मांग रख देता था। तुम तो जानती हो बीच कंस्ट्रक्शन में मांग रख दी जाए तो उसे पूरा करने में आर्किटेक के पसीने छूट जाते हैं। उस वक्त भी उस प्रॉजेक्ट से जुड़े सभी आर्किटेक्ट के पसीने छूटे हुए थे। मगर एक श्रृष्टि ही थी जो अपने सूज बुझ और कार्य कुशलता के दम पर बिना नीव को कोई नुकसान पहुंचाए क्लाइंट के एक के बाद एक मांग को पूरा करती गइ। इससे प्रभावित होकर DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप के मालिक श्रीमान दिनेश नैनवाल जी से श्रृष्टि के साथ एक पर्सनल मीटिंग करवाने की मांग रखा। मगर दिनेश नैनवाल जी मान ही नहीं रहे थे। बहुत मन मनुवाल के बाद राज़ी हुए इस शर्त पर कि उस मीटिंग में वो भी मौजूद रहेंगे। मेरे मन में कोई गलत विचार नहीं था तो मैंने भी हां कर दिया। हमारी मीटिंग हो पाती उससे पहले ही सूचना मिला कि श्रृष्टि ने नौकरी छोड़ दिया।

"क्या..ये लडकी भी पागल हैं। इतना नाम हों रहा था फ़िर भी नौकरी छोड़ दिया।" चौकते हुए बीच में साक्षी बोल पड़ी।

राघव... पागल नहीं इतना तो मैं दावे से कह सकता हू।

साक्षी... वो कैसे?

राघव... वो ऐसे कि जब मुझे पता चला श्रृष्टि ने वहां से नौकरी छोड़ दिया तो मैंने सोचा क्यों न मैं अपनी कम्पनी की तरफ से उसे जॉब ऑफर करू मगर इसके लिए उससे संपर्क करना जरूरी था। जो कि मुझे DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप से ही मिल सकता था। श्रृष्टि का कोई संपर्क सूत्र तो मिला नहीं मगर मुझे ये पता चल गया की दिनेश नैनवाल जी के बेटे ने श्रृष्टि के साथ बहुत गलत सलूक किया था जिस कारण उसने नौकरी छोड़ दिया था। ये बात पता चलते ही मैंने भी उनसे पार्टनरशिप तोड़ लिया। अब ये मत सोचना एक लड़की के लिए मैंने बड़ी पार्टनरशिप छोड़ दी मै अपने आप को जानता हु और मेरे भी कुछ नियम है जो शायद मेरे पिताजी ने दिए है खास कर महिलाओ के बारे में


भला मैं कैसे उन लोगो के साथ पार्टनरशिप आगे बड़ा सकता था जिनके यहां काम गारो की बिल्कुल भी इज्जत न किया जाता हों और उसके साथ गलत सलूक करने वाला खुद मालिक हों। मुझे यह भी लगा, हों सकता हैं इस बात की आंच मुझ तक भी पहुंच जाए। और मेरी इज्जत जो पिताजी ने बनाए राखी है वो एक पल में दाव पर लग जाए | मैं कतई ये नहीं चहता था कि कोई भी ऐसी बात जिससे मेरे कम्पनी जिसे मेरे बाप ने बहुत मेहनत से खड़ा किया उसके और मेरे बाप के साख पर कोई दाग लगे। खैर ये बात आई गई हो गई और एक काबिल आर्किटेक मेरे हाथ से निकल जानें का अफ़सोस होने लगा। मगर किस्मत को शायद कुछ ओर ही मंजूर था सहसा एक दिन श्रृष्टि से मेरी भेट यहां हुआ और उसके बाद का तुम जानती ही हों।

जारी रहेगा…..

लो भाई अब ये भी जानना बाकी था

खेर अब तक मै भी सोच ही रही थी की एक तरफा जानकारी कैसे हो सकती है (श्रुष्टि कोई PM तो है नहीं की उसे सब जाने पर वो किसी को ना जाने ........... एक भेद तो खुला
बहुत बढ़िया
शानदार फ्लेसबैक

अब कहानी स्पीड से आगे बढ़ेगी
 

Funlover

I am here only for sex stories No personal contact
14,860
20,717
229
बहुत बढ़िया
शानदार फ्लेसबैक

अब कहानी स्पीड से आगे बढ़ेगी
जी हां अब कहानी अपने समाप्ति की और बढ़ेगी और शायद मै उसे जल्दी ही ख़तम कर दूंगी

बने रहिये
 

Funlover

I am here only for sex stories No personal contact
14,860
20,717
229
चलिए अब कहानी में आगे बढ़ते है और जान ने की कोशिश करते है आगे क्या क्या है
 
  • Like
Reactions: Ajju Landwalia

Funlover

I am here only for sex stories No personal contact
14,860
20,717
229
भाग - 18


राघव ने वह सभी बाते बता दिया। जिसके कारण वो श्रृष्टि से और उसकी काबिलियत से परिचित था। सभी बाते सुनने के बाद साक्षी बोलीं... मानना पड़ेगा सर आप इस मामले में बहुत शक्त हों कि कोई आप पर, आपके पिता पर या फ़िर कम्पनी पर उंगली न उठा पाए साथ ही इस बात का भी ध्यान रखते थे किसी के साथ गलत सलूक न हों। और मुज से ज्यादा इस बारे में और कोई नहीं जान सकता |

राघव…हां इसलिए जब तुम नुमाइश करके मेरे साथ गलत सलूक करती थी तब मैं तुम्हें टोकता था मगर तुम थीं कि सुनती ही नहीं थीं। सुनती भी कैसे तुम्हारे दिमाग में फितूर जो भरा हुआ था।

साक्षी... सर आप फ़िर से मुझे जलील करने लग गए।

राघव...इसमें जलील किया करना मैं तो वहीं कह रहा हूं। जो सच हैं। और जलील दूसरो के सामने होते है साक्षी यहाँ सिर्फ मै और तुम है और हमदोनो एक दुसरे को बखूबी जानते है

साक्षी... हां हां कह लो अभी मौका आपके हाथ में हैं जिस दिन मेरे हाथ मौका आया एक एक बात का गिन गिन के बदला लूंगी ही ही ही।

राघव...वो मौका तुम्हें कभी नहीं मिलने वाला हा हा हा।

साक्षी... वो तो वक्त ही बताएगा अब आप "मेरी है" से आपका क्या मतलब है। कहीं आप….।

"हा साक्षी तुम जो कहना चाहती हो वो सच है मैं श्रृष्टि को पसंद करता हूं और शायद प्यार भी करने लगा हूं। मगर वो निर्दय मेरी भावनाओं को समझकर भी अंजान बनी रहती हैं।" साक्षी की बातो को बीच में कांटकर खेद जताते हुए राघव बोला।

साक्षी...चलो अच्छा किया जो मुझे बता दिया अब तो मैं आपकी एक एक बातों का गिन गिन कर बदला लूंगी।

राघव...मतलब तुम फ़िर से...।

"नही नही मैं वैसा कुछ नहीं करने वाली बस आप दोनों के प्रेम कहानी का पने ढंग से कुछ लुफ्त लेने वाली हूं ही ही ही।" राघव की बातों को बीच में कांटकर बोलीं

राघव... क्या ही ही ही... मदद करने के जगह तुम्हें मजे लेने की पड़ी हैं।

साक्षी...ऐसा तो मैं करके रहूंगी आखिरकार लाइन में सबसे पहले मैं लगीं थी मगर मेरा रास्ता श्रृष्टि नाम की बिल्ली ने कांट दिया इसका बदला लेकर रहूंगी।

राघव...साक्षी मैं तुमसे हाथ जोड़कर विनती करता हूं विनंती क्या यार भीख मांगता हु कुछ भी ऐसा न करना जिससे की श्रृष्टि की नजरों में मैं गिर जाऊं देखो तुम्हे बदला लेना है मूझसे लो।

साक्षी...देखे देखो जमाने वाले देखो राघव तिवारी, तिवारी कंस्ट्रक्शन ग्रुप के मालिक कैसे हाथ जोड़े विनती कर रहा हैं। चलो ठीक है आपकी विनती मान लेती हूं ओर कोशिश करूंगी आप दोनों की प्रेम नैया जल्दी से पर लग जाएं।

राघव... चलो अच्छा है जो तुम मदद करने को मान गई।

साक्षी...हा हा ठीक हैं अब ज्यादा मक्खन न लगाओ। अच्छा मैं श्रृष्टि को बुलाकर लाती हूं और आपके सामने उसे कह दूंगी कि वो ही प्रोजेक्ट हेड बनी रहेगी।

इतना बोलकर बिना राघव की सुने साक्षी चली गईं और कुछ ही देर में श्रृष्टि के साथ वापस आ गईं। आते ही श्रृष्टि बोलीं... सर अपने किस लिए बुलाए।

इतना सुनते ही राघव समझ गया साक्षी उसके कंधे का सहरा लेकर बंदूक चलाना चहती है तो राघव मुस्कुराते हुए बोला...श्रृष्टि तुमसे साक्षी कुछ कहना चाहती हैं। इसलिए बुलाया था।

श्रृष्टि... साक्षी मैम आप को कुछ कहना था तो वहीं कह देती यहां बुलाने की जरूरत ही क्या थीं?

साक्षी...श्रृष्टि मैं चाहती हूं तुम इस प्रोजेक्ट का हेड तुम ही बनी रहो।

श्रृष्टि...पर मैम आप मूझसे ज्यादा काबिल हो और बहुत पुरानी भी फिर मैं कैसे।

साक्षी... श्रृष्टि तुम कितनी काबिल हों ये राघव सर बहुत पहले से जानते हैं और आज मैं भी जान गईं।

"बहुत पहले लेकिन कब से, इनसे मिले हुए मात्र एक महीना हों रहा हैं।" अनभिज्ञता जाहिर करते हुए श्रृष्टि बोलीं

साक्षी...DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप में जब तुम काम करती थी तब से।

श्रृष्टि... मतलब की आप वोही राघव हो जो DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप छोड़ने के बाद मूझसे मिलना चाहते थे।

क्रमश:
 

Funlover

I am here only for sex stories No personal contact
14,860
20,717
229
राघव... हां

श्रृष्टि... क्या, जिस कारण मैं DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप छोड़ा था आज वहीं कारण मेरा पीछा करते करते मुझ तक पहुंच ही गई। छी मेरी किस्मत भी कितनी बुरी हैं। मां ने बार बार कहा था मैं आगे नौकरी न करू मगर मैं उनकी एक भी नहीं माना जिसका नतीजा आज मेरे सामने वहीं लोग आ गए जिनसे पीछा छुड़ाना चाहती थीं।

"श्रृष्टि तुम गलत समझ रहीं हों राघव सर दिनेश नैनवाल जी के बेटे जैसा नहीं हैं। ये मूझसे बेहतर कोई नहीं जानता हैं। श्रृष्टि मेरी बात ध्यान से सुनो (श्रृष्टि का बाजू पकड़े खुद की ओर मोड़ा फ़िर आगे बोलीं)सर को जब पाता चला वहां दिनेश नैनवाल जी के बेटे ने तुम्हारे साथ गलत सलूक किया था। जिस कारण तुमने नौकरी छोड़ दी थीं। तब इन्होंने उनसे पॉर्टनरशिप तोड़ लिया सिर्फ़ ये सोचकर की उनके वजह से उन पर और हमारे कम्पनी पर कोई उंगली न उठाए। ये तुम भी जानती हो बीच कंस्ट्रक्शन पॉर्टनरशिप तोड़ने पर कितना हर्जाना भरना पड़ता हैं। अब भी तुम्हें लगे की सर उन जैसा हैं तो तुम गलत ख्याल अपने जेहन में पाल रखी हो।" एक सांस में साक्षी ने अपनी बात कह दी।

जिसे सुनकर श्रृष्टि अचंभित सा राघव को देखने लग गई तो राघव बोला...श्रृष्टि तुम्हें डरने की जरूरत नहीं हैं मै उन जैसा नहीं हूं और न ही उन जैसा बर्ताब करने वाले किसी भी बंदे को काम पर रखा हूं।

इतना सुनते ही सहसा श्रृष्टि की आंखे छलक आई और हाथ जोड़कर बोलीं...सर मुझे माफ़ कर देना मैं सच्चाई जानें बिना न जानें आपको क्या क्या बोल दिया और न जानें क्या क्या सोच बैठी। प्लीज़ सर मुझे माफ़ कर देना।

राघव बैठे बैठे साक्षी को इशारा किया तो साक्षी श्रृष्टि को सहारा दिया फिर राघव बोला...श्रृष्टि मैं तुम्हारी बातों का बूरा नहीं माना क्योंकि तुमने जो भी कहा अंजाने में कहा इसलिए तुम माफी न मांगो।

इतना सुनने के बाद श्रृष्टि एक बार फिर राघव को देखा तो राघव मुस्कुरा दिया देखा देखी श्रृष्टि भी मुस्कुरा दिया। कुछ देर की चुप्पी छाई रहीं फिर चुप्पी तोड़ते हुए राघव बोला... श्रृष्टि अब तो तुम इस प्रोजेक्ट के हेड बनी रहना चाहोगी और जैसे कार्य कुशलता का परिचय DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप में दिया था वैसे ही कार्य कुशलता का परिचय हमारी कम्पनी और इस प्रॉजेक्ट के लिए भी देना।

श्रृष्टि... सर आपने और खास कर साक्षी मेडम ने मुझ पर भरोसा किया हैं तो मैं आपका भरोसा टूटने नहीं दूंगी। (फिर कुछ सोचकर आगे बोलीं) सर क्या ऐसा नहीं हों सकता कि एक ही प्रोजेक्ट में दो हेड हों।

राघव... मतलब तुम साक्षी को भी अपने साथ साथ इस प्रोजेक्ट का हेड बनना चाहती हों (फिर साक्षी से मुखताबी होकर बोला) साक्षी मैंने तुमसे कहा था न श्रृष्टि की सोच अव्वल दर्जे की है देखो प्रमाण तुम्हारे सामने है।

इतना सुनकर साक्षी ने श्रृष्टि को गले से लगा लिया फ़िर बोलीं... श्रृष्टि जिस मां ने तुम्हें जन्म दिया वो मां बहुत भाग्य शाली है। मैं एक बार उस मां से मिलना चाहती हूं और पूछना चाहती हूं कि क्या खाकर तुम्हें जन्म दिया जो खुद के बारे मे सोचने से पहले दूसरे के बारे मे सोचती हैं।
वैसे मा क्या होती है मुझे नहीं पता धीरे से बोली
एक बार फ़िर से चुप्पी छा गई। कुछ देर बाद चुप्पी तोड़ते हुए श्रृष्टि बोलीं...किसी दिन समय निकालकर घर आना मिलवा दूंगी फ़िर पूछ लेना जो पूछना हों।

राघव... अच्छा सिर्फ़ साक्षी को अपनी मां से मिलवाओगी मुझे नहीं,? भाई मैने क्या गुनाह कर दिया जो मूझसे बैर कर रही हों।

"आपको तो बिल्कुल भी नहीं मिलवाना है। क्योंकि अपने मूझसे बाते छुपाया जब आप मुझे पहचान गए थे तो पहले ही बता क्यों नही दिया।" रूठने का दिखावा करते हुए श्रृष्टि बोलीं।

"हा श्रृष्टि बिलकुल भी मत बुलाना।" साथ देते हुए साक्षी बोलीं।

कुछ देर ओर बाते हुआ फिर दोनों राघव से विदा लेकर चले गए। दोनों के जाते ही राघव ने तुरंत ही फोन करके एक कॉफी का ऑर्डर दे दिया और शांत चित्त मन से कुर्सी के पुस्त से सिर टिका लिया। सहसा उसके आंखो के पोर से आंसु के कुछ बंदे बह निकला जिसे पोंछकर राघव बोला...श्रृष्टि तुम कितना भाग्य शाली हों जो कोई भी तुम्हारी मां से मिलना चाहें तो तुम खुशी खुशी उन्हें अपनी मां से मिलवा सकती हों और मैं कितना अभागा हूं कि मेरे पास ऐसा कोई शख्स नहीं हैं जिसे मां बोलकर मिलवा सकूं। एक सौतेली मां हैं जिसकी आंखों में मैं हमेशा खटकता रहता हूं उन जैसी महिला से मैं कभी किसी को मिलवा ही नहीं सकता। हे प्रभु मुझे किस जन्म के गुनाह की सजा दे रहा हैं। बस एक विनती है अगले जन्म में मुझे ऐसे मां के कोख से जन्म देना जो जीवन भर मेरे साथ रहें, अपने आंचल के छाव तले मेरे जीवन के एक एक पल को संवारे।

इतने में किसी ने भीतर आने की अनुमति माँगा। झट से राघव ने आंखो को पोछा चहरे के भाव को बदला फ़िर आए हुए शख्स को भीतर आने की अनुमति दी। भीतर आए शख्स से राघव को कॉफी दिया फ़िर चला गया।


जारी रहेगा
….



अब ये कहानी ने इमोशन पकड़ लिया

अब क्या बताऊ और क्या लिखू कुछ समज में नहीं आ रहा

साक्षी ऐसी निकलेगी पता ही नहीं था ये केरेक्टरने मुझे परेशान कर रखा है


हिरोइन श्रुष्टि है या साक्षी ????
 

vickyrock

Active Member
607
1,575
139
राघव... हां

श्रृष्टि... क्या, जिस कारण मैं DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप छोड़ा था आज वहीं कारण मेरा पीछा करते करते मुझ तक पहुंच ही गई। छी मेरी किस्मत भी कितनी बुरी हैं। मां ने बार बार कहा था मैं आगे नौकरी न करू मगर मैं उनकी एक भी नहीं माना जिसका नतीजा आज मेरे सामने वहीं लोग आ गए जिनसे पीछा छुड़ाना चाहती थीं।

"श्रृष्टि तुम गलत समझ रहीं हों राघव सर दिनेश नैनवाल जी के बेटे जैसा नहीं हैं। ये मूझसे बेहतर कोई नहीं जानता हैं। श्रृष्टि मेरी बात ध्यान से सुनो (श्रृष्टि का बाजू पकड़े खुद की ओर मोड़ा फ़िर आगे बोलीं)सर को जब पाता चला वहां दिनेश नैनवाल जी के बेटे ने तुम्हारे साथ गलत सलूक किया था। जिस कारण तुमने नौकरी छोड़ दी थीं। तब इन्होंने उनसे पॉर्टनरशिप तोड़ लिया सिर्फ़ ये सोचकर की उनके वजह से उन पर और हमारे कम्पनी पर कोई उंगली न उठाए। ये तुम भी जानती हो बीच कंस्ट्रक्शन पॉर्टनरशिप तोड़ने पर कितना हर्जाना भरना पड़ता हैं। अब भी तुम्हें लगे की सर उन जैसा हैं तो तुम गलत ख्याल अपने जेहन में पाल रखी हो।" एक सांस में साक्षी ने अपनी बात कह दी।

जिसे सुनकर श्रृष्टि अचंभित सा राघव को देखने लग गई तो राघव बोला...श्रृष्टि तुम्हें डरने की जरूरत नहीं हैं मै उन जैसा नहीं हूं और न ही उन जैसा बर्ताब करने वाले किसी भी बंदे को काम पर रखा हूं।

इतना सुनते ही सहसा श्रृष्टि की आंखे छलक आई और हाथ जोड़कर बोलीं...सर मुझे माफ़ कर देना मैं सच्चाई जानें बिना न जानें आपको क्या क्या बोल दिया और न जानें क्या क्या सोच बैठी। प्लीज़ सर मुझे माफ़ कर देना।

राघव बैठे बैठे साक्षी को इशारा किया तो साक्षी श्रृष्टि को सहारा दिया फिर राघव बोला...श्रृष्टि मैं तुम्हारी बातों का बूरा नहीं माना क्योंकि तुमने जो भी कहा अंजाने में कहा इसलिए तुम माफी न मांगो।

इतना सुनने के बाद श्रृष्टि एक बार फिर राघव को देखा तो राघव मुस्कुरा दिया देखा देखी श्रृष्टि भी मुस्कुरा दिया। कुछ देर की चुप्पी छाई रहीं फिर चुप्पी तोड़ते हुए राघव बोला... श्रृष्टि अब तो तुम इस प्रोजेक्ट के हेड बनी रहना चाहोगी और जैसे कार्य कुशलता का परिचय DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप में दिया था वैसे ही कार्य कुशलता का परिचय हमारी कम्पनी और इस प्रॉजेक्ट के लिए भी देना।

श्रृष्टि... सर आपने और खास कर साक्षी मेडम ने मुझ पर भरोसा किया हैं तो मैं आपका भरोसा टूटने नहीं दूंगी। (फिर कुछ सोचकर आगे बोलीं) सर क्या ऐसा नहीं हों सकता कि एक ही प्रोजेक्ट में दो हेड हों।

राघव... मतलब तुम साक्षी को भी अपने साथ साथ इस प्रोजेक्ट का हेड बनना चाहती हों (फिर साक्षी से मुखताबी होकर बोला) साक्षी मैंने तुमसे कहा था न श्रृष्टि की सोच अव्वल दर्जे की है देखो प्रमाण तुम्हारे सामने है।

इतना सुनकर साक्षी ने श्रृष्टि को गले से लगा लिया फ़िर बोलीं... श्रृष्टि जिस मां ने तुम्हें जन्म दिया वो मां बहुत भाग्य शाली है। मैं एक बार उस मां से मिलना चाहती हूं और पूछना चाहती हूं कि क्या खाकर तुम्हें जन्म दिया जो खुद के बारे मे सोचने से पहले दूसरे के बारे मे सोचती हैं।
वैसे मा क्या होती है मुझे नहीं पता धीरे से बोली
एक बार फ़िर से चुप्पी छा गई। कुछ देर बाद चुप्पी तोड़ते हुए श्रृष्टि बोलीं...किसी दिन समय निकालकर घर आना मिलवा दूंगी फ़िर पूछ लेना जो पूछना हों।

राघव... अच्छा सिर्फ़ साक्षी को अपनी मां से मिलवाओगी मुझे नहीं,? भाई मैने क्या गुनाह कर दिया जो मूझसे बैर कर रही हों।

"आपको तो बिल्कुल भी नहीं मिलवाना है। क्योंकि अपने मूझसे बाते छुपाया जब आप मुझे पहचान गए थे तो पहले ही बता क्यों नही दिया।" रूठने का दिखावा करते हुए श्रृष्टि बोलीं।

"हा श्रृष्टि बिलकुल भी मत बुलाना।" साथ देते हुए साक्षी बोलीं।

कुछ देर ओर बाते हुआ फिर दोनों राघव से विदा लेकर चले गए। दोनों के जाते ही राघव ने तुरंत ही फोन करके एक कॉफी का ऑर्डर दे दिया और शांत चित्त मन से कुर्सी के पुस्त से सिर टिका लिया। सहसा उसके आंखो के पोर से आंसु के कुछ बंदे बह निकला जिसे पोंछकर राघव बोला...श्रृष्टि तुम कितना भाग्य शाली हों जो कोई भी तुम्हारी मां से मिलना चाहें तो तुम खुशी खुशी उन्हें अपनी मां से मिलवा सकती हों और मैं कितना अभागा हूं कि मेरे पास ऐसा कोई शख्स नहीं हैं जिसे मां बोलकर मिलवा सकूं। एक सौतेली मां हैं जिसकी आंखों में मैं हमेशा खटकता रहता हूं उन जैसी महिला से मैं कभी किसी को मिलवा ही नहीं सकता। हे प्रभु मुझे किस जन्म के गुनाह की सजा दे रहा हैं। बस एक विनती है अगले जन्म में मुझे ऐसे मां के कोख से जन्म देना जो जीवन भर मेरे साथ रहें, अपने आंचल के छाव तले मेरे जीवन के एक एक पल को संवारे।

इतने में किसी ने भीतर आने की अनुमति माँगा। झट से राघव ने आंखो को पोछा चहरे के भाव को बदला फ़िर आए हुए शख्स को भीतर आने की अनुमति दी। भीतर आए शख्स से राघव को कॉफी दिया फ़िर चला गया।


जारी रहेगा….



अब ये कहानी ने इमोशन पकड़ लिया

अब क्या बताऊ और क्या लिखू कुछ समज में नहीं आ रहा

साक्षी ऐसी निकलेगी पता ही नहीं था ये केरेक्टरने मुझे परेशान कर रखा है


हिरोइन श्रुष्टि है या साक्षी ????
बेहतरीन अपडेट 👌
 

Funlover

I am here only for sex stories No personal contact
14,860
20,717
229
भाग - 19


इतने में किसी ने भीतर आने की अनुमति मांगा। झट से राघव ने आंखो को पोछा चहरे के भव को बदला फ़िर आए हुए शख्स को भीतर आने की अनुमति दी। भीतर आए शख्स ने राघव को कॉफी दिया फ़िर चला गया।

शाम को श्रृष्टि दिन भर की कामों से निजात पाकर घर पहुंची। माताश्री से कुछ औपचारिक बाते किया फ़िर अपने कपड़े बदलकर आई और मां के सामने जमीन पर बैठ गई। इतने में ही माताश्री समझ गई बेटी को आज फिर मालिश की जरूरत हैं।


तुंरत रसोई से तेल लेकर आई और मालिश शुरू कर दिया। मालिश का मजा लेते हुए श्रृष्टि बोलीं... पता हैं मां आज साक्षी मैम दफ्तर आई थीं। वो न बहुत दिनों से छुट्टी पर थीं।


"छट्टी पर थीं इसमें क्या बडी बात हैं कोई जरूरी काम होगा तभी छुट्टी पर गई होगी।"


श्रृष्टि...कोई जरुरी काम नहीं था। मुझे प्रोजेक्ट हेड बनाए जानें से वो नाराज हों गईं थीं इसलिए छुट्टी पर चली गई और पाता है मां आज वो दफ्तर सिर्फ इस्तीफा देने आई थी मगर मैंने कुछ ऐसा किया जिससे वो कभी इस्तीफा देने की बात नहीं कहेंगे।


"अब कौन सा कांड कर आई।"


श्रृष्टि... मैंने कोई कांड बांड नहीं किया बल्कि मैंने सर को उन्हें प्रोजेक्ट हेड बनाने को कहा पर साक्षी मैम चाहती थी मैं ही प्रोजेक्ट हेड बनी रहूं। ये बात जानकार मैंने भी सर से मांग रख दी कि मेरे साथ साथ साक्षी मैम भी प्रोजेक्ट हेड रहे और सर मन गए। अच्छा मां आपने मुझे क्या खाकर पैदा किया था ऐसा मैं नही साक्षी मैम पूछ रहीं थीं।


"उम्हू लगता हैं तेरी सोच से तेरी साक्षी मैम बहुत प्रभावित हुईं हैं। उनसे कहना सभी मांये जो खाना खाती हैं मैंने भी वहीं खाना खाया बस दुनिया की वाहियात सोच से तुझे बचाकर रखा और तुझे उस सोच से रूबरू करवाया जो तुझे दुनिया से अलग बनाती हैं।"


"तभी तो मैं कहती हूं मेरी मां दुनिया की सबसे अच्छी मां है।" बोलते हुए श्रृष्टि पलटी और माताश्री के गले से लिपट गई।


"अच्छा अच्छा ठीक हैं अब तू चुपचाप बैठके मालिश करवा।" खुद से अलग करते हुए माताश्री बोलीं।


श्रृष्टि... मां आपको एक बात बताना तो भूल ही गई (इतना बोलकर माताश्री की तरफ घूम कर बैठ गईं फ़िर बोलीं) मां मैं जहां काम करती हूं न ये वहीं राघव की कम्पनी हैं जो मुझे DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप छोड़ने के बाद ढूंढ रहें थे।


"क्या????, फ़िर तो ये भी शायद उन्हीं के जैसे सोच रखते होंगे लड़कियों को अपने बाप की जागीर और खेलने वाला खिलौना समझते होंगे आखिर दोनों पार्टनर जो थे।" चौकते हुए माताश्री बोलीं


श्रृष्टि... नहीं नहीं मां वो ऐसे नहीं है बल्कि उनसे बहुत अलग हैं। जब उन्हें पाता चला कि मेरे साथ वहा गलत सलूक हुआ और इस बात की आंच उन पर और उनके कम्पनी पर न पड़े इसलिए DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप से पार्टनरसिप तोड़ दिया था। पता हैं मां इसके लिए उन्हें हर्जाना भी भरना पड़ा।


"जैसा तू कह रही है इससे तो लगता है तेरे सर की सोच बहुत अच्छी हैं फ़िर भी मैं तुझे इतना ही कहूंगी ऐसे लोगों का कोई भरोसा नहीं हैं। ऐसे लोग छद्दम आवरण ओढ़े रहते हैं और जरूरत के मुताबिक बदलाव करते रहते हैं।"


श्रृष्टि... मां मैं जानती हूं ऐसे ही छद्दम आवरण ओढ़े एक शख्स के छलावे के चलते आज हम मां बेटी एक दूसरे का सहारा बने हुए हैं। वैसे मां लोग मुखौटा क्यों ओढ़े रहते हैं अपना वास्तविक चेहरा सभी के सामने क्यों नहीं रख देते।


"वो इसलिए क्योंकि इससे उनके रसूक पर आंच आ जायेंगे। कभी कभी तेरी बाते मेरी समझ से परे होती हैं तू काम काज के मामले में इतनी तेज़ तर्रार हैं मगर जिंदगी की कुछ अहम बाते समझने में डाफेर के डाफेर ही रहीं।" एक टपली श्रृष्टि के सिर पर मार दी।


श्रृष्टि... मां मैं डफेर नहीं हूं फ़िर भी आपको लगता हैं तो मैं डफेर ही सही जब आप मेरे साथ हों फिर मुझे फिक्र करने की जरुरत ही नहीं।


"कैसे जरूरत नहीं मैं हमेशा तेरे साथ नहीं रहने वाली हूं।"


श्रृष्टि... क्यों आप कहीं जा रही हों। जहां भी जाना है मुझे साथ में लेकर जाना।


"चुप बबली आज नहीं तो कल तेरी शादी होगी तब मैं तेरे साथ नहीं रहूंगी। तब क्या करेगी?।" एक ओर टपली मरते हुए बोली


"जिस भी लड़के से ( कुछ देर रूकी और मंद मंद मुस्कुराते हुए आगे बोलीं) मेरी शादी होगी उससे साफ साफ कह दूंगी। दहेज में मेरी मां को साथ ले रहे हों तो बात करो वरना रास्ता नापो।"


"तू सच में डफेर हैं जिससे भी तेरी शादी होगा उसका भी अपना परिवार होगा। तो फिर वो मुझे क्यों साथ रखने लगा? वैसे भी शादी के बाद बेटी पर मां का कोई हक नहीं होता। पति और उसका परिवार ही सब कुछ होता हैं। इसलिए तुझे वहां नए सिरे से जिंदगी शुरू करना होगा उसके परिवार को संवारना होगा। समझी की नहीं।" ऐसे नहीं चलेगा जब चाहा सो गई जब चाहा उठ गई, ना खाने का ढंग ना किसी चीज़ का अब क्या बताऊ तुजे....बच्चे होंगे मा बनेगी कई जवाबदारिया आएगी तभी तो कहती हु अपनी जिंदगी में बदलाव ला थोडा | ये सहेलियों से मिलना झुलना ......बस उतना कह के चुप हो गई ....


श्रृष्टि... उम्हू नहीं समझी मेरा पहला परिवार मेरी मां हैं जहां मेरी मां नहीं वहां मेरा कोई ओचित्य नहीं अब आप इस बात को भूल जाओ जब मेरी शादी होगी तब सोचेंगे क्या करना हैं? अभी आप मुझे ये बातों उस अंकल से कैसे मिला जाए।
 
Top