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Romance श्रृष्टि की गजब रित

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भाग - 16


अगला दिन सब कुछ सामान्य रहा बस राघव का व्यवहार और साक्षी का न आना सामान्य नहीं रहा। राघव दोपहर के बाद का बहुत सारा वक्त श्रृष्टि सहित बाकि के साथियों के साथ बिताया।

जहां सभी काम में लगे रहे वहीं राघव काम में हाथ तो बांटा ही रहा था मगर कभी कभी रूक सा जाता और श्रृष्टि को मग्न होकर काम करते हुए देखता रहता यदाकदा दोनों की निगाहे आपस में टकरा जाते तो राघव निगाहे ऐसे फेर लेता जैसे वो कुछ देख ही नहीं रहा हों और श्रृष्टि बस मुस्कुरा देती।

ऐसा अगले कई दिनों तक चला। इन्हीं दिनों राघव लंच भी उन्हीं के साथ करने लगा। श्रृष्टि के मन में जो थोड़ी बहुत शंका बची था वो खत्म हों गया। शंका खत्म होने से श्रृष्टि का राघव को देखने का नजरिया भी बदल गया। अब वो भी खुलकर तो नहीं मगर सभी से नज़रे बचाकर राघव को बीच बीच में देख लेती और जब कभी नज़रे टकरा जाती तो खुलकर मुस्कुरा देती।

नैनों का टकराव और छुप छुपकर ताकाझाकी हों रहा था इसका मतलब ये नहीं की काम से परहेज किया जा रहा हों। काम उसी रफ़्तार से किया जा रहा था।

बीते कई दिनों से जो भी हों रहा था वो शुरू शुरू में असामान्य घटना थी मगर अब सामान्य हों चुका था किंतु बीते दिनों की एक घटना अभी तक असामान्य बना हुआ था। जिस दिन राघव ने साक्षी को उसके मनसा या कहू उसके कारस्तानी बताया था उस दिन से अब तक एक भी दिन साक्षी दफ्तर नहीं आई थीं।

ये बात श्रृष्टि सहित बाकि साथियों को खटक रहा था। और ख़ास कर एक कर्मचारी को | इसलिए आज लंच के दौरान उसी सहयोगी ने उस मुद्दे को छेड़ा... श्रृष्टि मैम पिछले कुछ दिनों से साक्षी मैम दफ्तर नहीं आ रही हैं। पूछने पर कहती हैं तबीयत खराब हैं और कहती है की वो तबियत की खराबी मुझे नहीं बता सकती शायद लेडीज़ प्रोब्लेम्र हो, लेकिन मुझे लगता हैं सच्चाई कुछ ओर ही हैं।

"हां श्रृष्टि मैम जिस दिन आपको प्रोजेक्ट हेड बनाया गया था उस दिन भी साक्षी मैम कुछ अजीब व्यवहार कर रहीं थीं मुझे लगता हैं साक्षी मैम को ये बात पसंद नहीं आई इसलिए दफ्तर नहीं आ रहीं हैं।" दूसरे साथी ने कहा।

श्रृष्टि… गौर तो मैंने भी किया था। मगर तुम जो कह रहें हों मुझे लगता हैं सच्चाई ये नहीं है। ऐसा भी तो हों सकता है सच में साक्षी मैम की तबीयत खराब हों इसलिए नहीं आ रहीं हों।

"मैम हम लोग साक्षी मैम के साथ लम्बे समय से काम कर रहे हैं। उन्होंने कभी इतना लंबा छुट्टी नहीं लिया अगर लिया भी तो दो या तीन दिन इससे ज्यादा कभी नहीं लिया फिर एकदम से क्या हो गया जो इतनी लम्बी छुट्टी पर चली गई है। मुझे आपके प्रोजेक्ट हेड बनने के अलावा कोई और कारण नज़र ही नहीं आ रहा है।" एक साथी ने बोला

साथी की बातों ने श्रृष्टि को सोचने पर मजबूर कर दिया। अलग अलग तथ्य पर विचार विमर्श करने के बाद मन ही मन एक फैंसला लिया और जल्दी से लंच खत्म करके राघव के पास पहुंच गईं। कुछ औपचारिता के बाद श्रृष्टि बोलीं... सर आज आप हमारे साथ लंच करने नहीं आए।

राघव... आज लंच नहीं लाया था इसलिए...।

"मतलब अपने आज लंच नहीं किया।" राघव की बातों को बीच में कांटकर श्रृष्टि बोलीं।

राघव... अरे नहीं नहीं लंच किया हैं बहार से मंगवाया था इसलिए तुम सभी के साथ लंच नहीं किया।

श्रृष्टि... बहार से मंगवाया था तो क्या हुआ आ जाते हम आपका लंच हड़प थोड़ी न लेते। खैर छोड़िए इन बातों को मैं आपसे कुछ जरूरी बातें करने आई थी।

राघव... तो करो न मैंने कब रोका हैं और तुम ये आप की औपचारिकता कब बंद कर रहें हों। मैंने तुम्हें कहा था न, तुम मेरे लिए आप संबोधन इस्तेमाल नहीं करोगे।

श्रृष्टि...जब सभी आपको आप कहकर संबोधित करते हैं तो मेरे कहने में बुराई क्या हैं।

राघव... बूराई है श्रृष्टि, क्योंकि तुम सबसे खास हों ( फिर मन में बोला ) तुम क्यों नहीं समझती यार तुम मेरे लिए कितनि खास हों इतने इशारे करने के बाद भी तुम रहे डॉफर के डॉफर ही।


क्रमश .....
 

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श्रृष्टि... खास बास मैं कुछ नहीं जानती। दूसरो की तरह मैं भी आपको आप से ही संबोधित करूंगी। आपको बूरा लगता हैं तो लगें। (फ़िर मन में बोलीं) सर जानती हूं मैं आप के लिए मै कितनी खास हूं या यूं काहू एक कामगार से बढ़कर कुछ ओर ही हूं। लेकिन मैं ऐसा हरगिज नहीं होने देना चहती हूं।

{ राघव आपको (आपको नहीं पर तुमको ) क्या पता जब मैंने ये जाना की मै कुछ ख़ास बन रही हु तो सब से पहले नहाते वक़्त मैंने खुद को शीशे के सामने देखा बस ये जान ने के लिए की क्या मै उतनी आकर्षक हु की किसी को आकर्षित कर सकू ?? और ये तीसरी बार था पहली बार स्कुल में किसी ने छेड़ दिया था तब दूसरी बार वो हरामी का पिल्ला जिस ने मोल में मेरे नितंब छुए थे तब उसकी वो हरकत ने मुझे मेरे ही नितम्बो को देखने मजबूर कर दिया और अब आपकी वजह से, कभी कभी साली वो समीक्षा कि छेडछाड भी खेर वो तो मै भी उसे वैसे ही करती रहती हु पर शायद ये कुछ मेरे खयालो से विपरीत ही मैंने अपने आप को पूरी तरीके से टोवेल उतार के देखा और ये पहली बार था और शायद मुझे लगा की मै आकर्षक तो हु }

राघव... तुम मानने से रहीं इसलिए तुम्हारा जैसे मन करे वैसे ही संबोधित करो मगर ध्यान रखना एक दिन मैं अपनी बात तुमसे मनवा कर रहूंगा।

श्रृष्टि... मैं भी देखती हूं आप कैसे मनवाते है। खैर छोड़िए इन बातों को जो मैं कहने आई थीं वो सुनिए...।

राघव... हां तो सुनाओ न मैं भी सुनने के लिए ही बैठा हूं। (बस कुछ मीठा मीठा ही बोल दो )

इस बात पर श्रृष्टि मुस्कुरा दिया फिर बोली... सर मैंने फैसला लिया हैं कि आप इस प्रोजेक्ट का हेड साक्षी मैम को बना दीजिए।

"अच्छा? क्या मैं जान सकता हूं तुमने ये फैसला क्यों लिया एक वाजिब वजह बता दो।"सहज भाव से मुस्कुराते हुए राघव बोला

श्रृष्टि... सर वजह ये हैं की जिस दिन से आपने मुझे प्रोजेक्ट हेड बनाया हैं उसके बाद से ही साक्षी मैम छुट्टी पर हैं। इसलिए मुझे लगता है, साक्षी मैम को मुझे प्रोजेक्ट हेड बनाना पसंद नहीं आया।

राघव... जरूरी तो नहीं कि यहीं वजह रहीं हों कुछ ओर भी कारण हों सकता हैं। बीमार हो

श्रृष्टि... सर आप ये भलीभांति जानते हों साक्षी मैम कभी भी इतना लम्बा छुट्टी नहीं लिया हैं फ़िर इतनी लंबी छुट्टी लेने का ओर क्या करण हों सकता हैं। मुझे तो बस यहीं एक कारण दिख रहा हैं जो प्रत्यक्ष सामने है।

राघव... ओ श्रृष्टि तुम काम के मामले में जितनी तेज तर्रार हों उतनी ही भोली, कुछ ओर मामले में हों। अब देखो न तुम ही कहती हो जो प्रत्यक्ष दिख रहा है सच उसके उलट होता हैं। इस मामले में भी जो दिख रहा है सच वो नहीं हैं। अब तुम सच जानने की बात मत कह देना क्योंकि ये सच मैं किसी को नहीं बताने वाला हूं। और हां देखो मुझे यहाँ अपने धंधे से काम है अगर मेरा काम ढंग से हो ही रहा है तो मुझे किसी की भी पर्व नहीं है

श्रृष्टि... ठीक हैं मैं सच नहीं जानना चाहूंगी मगर मुझे साक्षी मैम का यूं इग्नोर रहना बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा।

राघव... वो क्यों भाला?

श्रृष्टि... “सर साक्षी मैम यहां लंबे समय से काम कर रहीं हैं और जीतना भी वक्त मैं उनके साथ काम किया है उतने वक्त में, मैं इतना तो समझ ही गई हूं साक्षी मैम काबिलियत के बहुत धनी है। मुझे तो लगता हैं वो मूझसे भी ज्यादा काबिल है इसलिए इस प्रोजेक्ट में उनका साथ रहना इस प्रोजेक्ट के लिए बहुत फायदेमंद होगा। और ये मै मेरे लिए नहीं कह रही पर हमारी कंपनी के फायदे में ये जरुरी है शायद आप को ठीक लगे “

"ठीक हैं मैं कुछ करता हूं" मुस्कुराते हुए राघव बोला

श्रृष्टि... “जो करना हैं जल्दी से कीजिए अच्छा अब मैं चलती हूं।“

श्रृष्टि जाने की अनुमति मांगा तो राघव उसे रोकते हुए बोला... श्रृष्टि इस इतवार को तुम खाली हों।

"आप क्यों पूछ रहें हों" जानकारी लेने के भाव से बोलीं

राघव... अगर खाली हों तो इस इतवार को लंच या फ़िर शाम की चाय पर चल सकती हों।?

श्रृष्टि... उम्हू तो आप मुझे डेट पर ले जाना चाहते हैं। क्या मैं जान सकती हूं क्यों?

राघव…शायद डेट ही हों मगर क्यों ले जाना चाहता हूं ये जब चलोगी तब पाता चलेगा।

श्रृष्टि... सॉरी सर मै इस इतवार को बिल्कुल भी खाली नहीं हूं वो क्या है न मुझे मां के साथ कहीं जाना हैं ओर शायद लौटने में देर हों जाए इसलिए आपसे वादा नहीं कर सकतीं हूं।

राघव... कोई बात नही फ़िर कभी चल देगें।

इसके बाद श्रृष्टि विदा लेकर चल दिया जाते वक्त मन ही मन बोलीं... सर मै जानती हूं आप मुझे डेट पर क्यों ले जाना चाहते हों पर मैं आपके साथ एक कामगार के अलावा कोई ओर रिश्ता जोड़ना नहीं चाहता। सॉरी सर मैंने आपसे झूठ बोला मगर मैं भी क्या करूं मैं मजबूर जो हूं।

मन ही मन इतना बोलकर आंखो के कोर पर छलक आई आंसू के बूंदों को पोंछते हुए चली गई और यहां राघव श्रृष्टि के जाते ही खुद से बोला... ओ श्रृष्टि तुम साक्षी से कितनी अलग हों यही बात मैंने साक्षी या किसी ओर से बोला होता तो कितना भी जरुरी काम होता सब छोड़कर मेरे साथ चल देती मगर तुम...हो ...की ....डाफेर..... ओहो श्रृष्टि तुम कब मेरे दिल की भावना को समझोगी कितनी बार दर्शा चुका हूं कि मै तुम्हें पसंद करता हूं और शायद प्यार भी करने लगा हूं।

मन ही मन खुद से बातें करने के बाद मुस्कुरा दिया फिर कुछ याद आते ही किसी को फ़ोन किया, एक बार नहीं कहीं बार फ़ोन किया मगर कोई रेस्पॉन्स ही नहीं मिला तो थक हरकर मोबाइल रख दिया ओर अपने काम में लग गया।

लगभग दो दिन का वक्त ओर बिता था की साक्षी दफ्तर आ पहोची उसे देखकर श्रृष्टि सहित सभी साथी गण उसका हालचाल लेने लग गए और इतने दिन ना आने का कारण पूछने लग गए। तबीयत ख़राब होने की पुरानी बात बताकर टाल दिया। वे भी ज्यादा सवाल जवाब न करके जो साक्षी ने बताया मान लेना ही बेहतर समझा।

जैसे ही राघव के दफ़्तर पहुंचने का पता चला सभी को राघव से मिलने जानें की बात कहकर चल दिया और कुछ औपचारिक बाते करने के बाद एक लेटर राघव के मेज पर थापक से रख दिया।


जारी रहेगा...

आप के मन में जो भी सवाल आये है तो आप यहाँ बता दे

वर्ना अगला भाग तो है ही ....................
 
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sunoanuj

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Bahut hi behtarin updates….

Lagta hai madam ji ne resignation diya hai ?

Ek naya pentra apne no banane ka…
 
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Agla Update jaldi do
अभी अभी तो लिख के उठी थी ..............आज तो 2 एपिसोड दे दिए

आपकी इंतेजारी की कदर करती हु थोडा टाइम दे द्जिये हो सकता है मै थोडा बहोत और लिख दू
मुझे अच्छा लगा की कहानी में आप को रस पड़ा .......... वैसे यहाँ मेरे सिर्फ 3-4 लोग ही पाठक है ............ हा हा हा हा
 

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Bahut hi behtarin updates….

Lagta hai madam ji ne resignation diya hai ?

Ek naya pentra apne no banane ka…
बिलकुल शायद सही भी

साक्षी unpredictable केरेक्टर लगती है .......... जानिये मेरे साथ साथ आगे

आप लोगो को दिल से धन्यवाद की आप को ये कहानी में रस पड़ा है ..............

मै तो ये सोच रही थी अगली कहानी सिर्फ और सिर्फ सेक्स से भरपूर लिखू जिसमे कथावाश्तु ना हो सिर्फ सेक्स के प्रसंग हो .............तभी मुझे शायद पाठक मिलेंगे .............
 

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चलिए एक और भाग लिख लिया है आपके लिए

शायद आपको पसंद आये ................
 
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