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Romance श्रृष्टि की गजब रित

sunoanuj

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Bhaut hee behtarin updates… mehant ka fal mila or chugali ka kya side effects hoga wo ab aagey pata chalega ….

Raghav or shirti ke beech pyar hai ya kuch or yeh bhi dekhna dilchasp hoga …. 👏🏻👏🏻👏🏻

Har kisi ke past main kuch acha ke kuch bura chupa hua … bahut acha sambhal rahe ho vartman ke saath beet chuke samay ka 👏🏻👏🏻

Waiting for next update….
 
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Bhaut hee behtarin updates… mehant ka fal mila or chugali ka kya side effects hoga wo ab aagey pata chalega ….

Raghav or shirti ke beech pyar hai ya kuch or yeh bhi dekhna dilchasp hoga …. 👏🏻👏🏻👏🏻

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Waiting for next update….
As of now writer is not available ..........

She will definitely reply you on accordance to her point of views or in terms of this story

Till then please read further episode ........ for which I deployed here

She might be expected tomorrow............
 
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अब आगे

भाग - 13


राघव एक एक कदम द्वार की ओर बढ़ा रहा था। राघव के बढ़ते कदम के साथ साक्षी को एक अनजाना सा डर खाए जा रही थीं। सर क्या कहना चाहते है? क्यों सर ने मुझे रूकने को कहा? कहीं सर को मेरे करनी का पता तो नहीं चल गया? ऐसा हुआ तो पता नहीं आज मेरा क्या होगा? ऐसे विविध प्रकार के ख्याल साक्षी के मन में चल रहे थे।

कब राघव द्वार बन्द करके उसके पास आकर खड़ा हों गया सखी को भान भी नहीं हुआ। मंद मंद मुस्कान से मुस्कुराते हुए राघव ने साक्षी के कंधे पर हाथ रख दिया। सहसा स्पर्श का आभास होते ही "क क कौन हैं? कौन हैं? कहते हुए साक्षी ख्यालों से मुक्ति पाई।

"अरे क्या हुआ मैं हूं राघव, तुम ठीक तो हों न"

"सर मै ठीक हूं" बिचरगी सा राघव की ओर देखते हुए साक्षी बोलीं।

राघव अपने कुर्सी पर बैठकर मुद्दे पर आते हुए बोला…हां तो साक्षी तुम्हें ये खास तौफा कैसा लगा?

साक्षी... ये कैसा खास तौफ़ा हुआ। कल को आई एक लड़की को मेरा होद्दा दे दिया और आप पूछ रहें हों ये खाश तौफ़ा कैसा लगा? क्या ये मेरे लिए तौफा हो सकता है भला ?

राघव...कल आए या आज इससे फर्क नहीं पड़ता। फर्क पड़ता है तो बस इस बात से कि वो कितना काबिल हैं। काबिलियत के दाम पर ही किसी को उसका होद्दा मिलता है। समझ रहीं हों न मैं कहना क्या चहता हूं?

साक्षी... हां हां सर समझ रहीं हूं। आप सीधे सीधे मेरे काबिलियत पर उंगली उठा रहें हो और कह रहे हो। मुझमें काबिलियत नहीं हैं इसलिए मुझे इस प्रोजेक्ट का प्रॉजेक्ट हेड नहीं बनाया। जबकि एक वक्त था आप मेरे काबिलियत की तारीफ़ करते नहीं थकते थे फिर सहसा ऐसा किया हो गया जो मेरी काबिलियत आपके नजरों से ओजल हों गईं और कल आई श्रृष्टि की काबिलियत मूझसे ज्यादा हों गई।?

राघव…ओ हों साक्षी तुम्हारा ये दिमागी फितूर और अहम कि बारे में मूझसे ज्यादा काबिल कोई और नहीं हैं। और वोही तुम्हारे काबिलियत का भक्षण करता जा रहा हैं फिर भी तुम सहसा मेरे ऐसा करने के पीछे कारण क्या रहा जानना चाहती हों? तो सुनो वो कारण तुम खुद ही हो।

"तुम खुद ही हों" सुनते ही साक्षी हैरान सा राघव को देखती रहीं। एक भी शब्द उसके मुंह से नहीं निकला मानो उसके जुबान को लकवा मार गया हों। यू साक्षी के चुप्पी साध लेने से राघव मुस्कुरा दिया फिर बोला...क्या हुआ साक्षी तुम्हें सांप क्यों सुंग गया। चलो आगे का मै खुद ही बता देता हूं जिससे शायद तुम्हारी चुप्पी टूट जाए। बीते लंबे वक्त से तुम क्या कर रहीं हों इसका पता मुझे नहीं चलेगा अगर तुम ऐसा सोचती हो तो ये तुम गलत सोचती हैं। मैं अभी जब से श्रृष्टि आई है तब की नहीं उससे भी आगे की बात कर रहा हूं। श्रुष्टि तो अब आई है, मन तो किया तुम्हे धक्का मार कर निकाल दूं मगर ये सोचकर चुप रहा कि तुम अरमान की दोस्त हों और अरमान के साथ मेरे रिश्ते में तिराड हुईं पड़ी थी मैं उस फजियत को और बढ़ाना नही चाहता था सिर्फ इसलिए चुप रहा। मगर अब मेरा ओर अरमान का रिश्ता उस मुकाम पर पहुंच चुका हैं कि वो कभी सुधर नहीं सकता इसलिए सोचा तुम्हें तुम्हारी करनी का अहसास दिला दूं। लेकिन तुम ये मत समजो की तुम्हे निकाल रहा हु बस तुम्हारी कमिया तुजे दिखा रहा हु ताकि तुम और बेहतर कर सको|

इतना बोलकर राघव चुप्पी सध लिया बस मंद मंद रहस्यमई मुस्कान से मुस्कुराने लग गया और साक्षी मानो जम सी गई। उसके बदन में रक्त प्रवाह रूक सा गया हो। सांस रोके, बिना हिले डुले, बिना पलकों को मीचे बस एक टक राघव को देखती रहीं। ये देखकर राघव बोला... अरे तुम्हारी तो सांसे रूक गई, पलके झपकाना भूल गईं हो क्या। चलो चलो पलके झपका लो चंद सांसे ले लो नहीं तो तुम्हारा दम घुट जायेगा। दम घुटने से तुम्हें कुछ हों गया तो मेरी इज्जत दाव पे लग जायेगी सो अलग साथ ही मेरा एक काबिल आर्किटेक्चर कम हों जायेगा। और मैं ऐसा बिल्कुल भी नहीं चाहता हूं। तुम एक काबील आर्किटेक्ट हो ये मत भूलो बस कुछ काम करने के रवैये में सुधार की जरुरत है|

आज साक्षी को राघव संभलने का एक भी मौका दिए बिना सदमे पर सदमे दिए जा रहा था और साक्षी दम साधे सुनती जा रहीं थीं। साक्षी का ऐसा हाल देखकर राघव कुछ कदम आगे बढ़कर द्वार से बहार चला गया।

साक्षी बैठी बस देखती रहीं। कुछ ही वक्त में राघव एक गिलास पानी साथ लिए लौट आया और साक्षी को देते हुए बोला... शायद तुम्हारा गला सुख गया होगा लो पानी पीकर गला तार कर लो इससे तुम्हें आगे की सुनने का हौसला मिलेगा।

साक्षी पानी का गिलास ले तो लिया मगर आगे की ओर सुनने की बात से ठहर सी गई और राघव की ओर चातक नजरो से देखने लग गई। जैसे पूछ रहीं हों इतना तो सूना दिया अब ओर क्या बाकी रह गया है।

राघव आज आर या पार के मूड में था। जैसे कसाई दो घुट पानी पिलाने के बाद एक झटके में शीश को धड़ से अलग कर देता हैं। ऐसा ही कुछ करने का शायद राघव मन बना चुका था तभी तो हाथ में पकड़ी पानी का गिलास खुद से साक्षी के मुंह से लगा दिया ओर इशारे से पीने को कहा तो साक्षी बिल्कुल आज्ञाकारी शिष्या की तरह घुट घुट करके पानी पी लिया फ़िर राघव की ओर ऐसे देखा जैसे पूछ रहीं हो अब इस गिलास का किया करूं। "ये भी मुझे बताना होगा" इतना कहकर गिलास साक्षी के हाथ से लेकर मेज पर रख दिया और जाकर अपने कुर्सी पर बैठ गया।

साक्षी बस बेचारी सा मुंह बनाए देखती रहीं ये देख राघव बोला... ओ साक्षी ऐसे न देखो की मुझे तुमसे प्यार हों जाएं। उफ्फ तुम भी तो यहीं चाहती थी कि मैं तुमसे प्यार करने लग जाऊं जिसके लिए तुमने न जानें कौन कौन से पैंतरे अजमाया अपने जिस्म की नुमाइश करने से भी बाज नहीं आई। अब तुम सोच रहीं होगी मुझे कैसे पाता चला, अरे नादान लड़की मैं भी इसी दुनिया का हूं किसी दुसरी दुनिया से नहीं आया हूं। लोगों की फितरत समझता हूं। दस साल, पूरे दस साल घर से बहार रहा उस वक्त ऐसे अनगिनत लोगों से मिला जो तुम्हारी तरह बचकानी हरकते करके बैठें बिठाए सफलता की बुलंदी पर पहुंचना चाहते हैं मगर तुम शायद भूल गई थीं जैसे पानी का गिलास भले ही कोई मुंह से लगा दे लेकिन खुद से पीकर ही प्यास शांत किया जा सकता हैं। वैसे ही सफलता की बुलंदी पर पहुंचने में भले ही कोई मदद कर दे मगर पहुंचना खुद को ही पड़ता है। क्यों मैंने सही कहा न?

राघव एक के बाद एक साक्षी का भांडा फोड़ता जा रहा था और शब्द इतने तीखे की साक्षी सहन नहीं कर पा रही थी। मगर राघव रूकने का नाम नहीं ले रहा था। बस बोलता ही जा रहा था।

राघव...तुम्हें बूरा लग रहा होगा जबकि मैं तुम्हारा किया तुम्हें बता रहा हूं। जरा सोचो श्रृष्टि को कितना बुरा लगा होगा जब बिना गलती के सिर्फ़ तुम्हारी वजह से उसे सुनना पड़ा एक बार नहीं दो दो बार अब….।

"बस कीजिए सर मुझे ओर कितना जलील करेंगे। मुझे समझ आ गया मैंने जो भी किया सिर्फ़ खुद को फायदा पहुंचने के लिए किया था।" इतना बोलकर साक्षी रो पड़ीं।

साक्षी का अपराध बोध उस पर हावी हो चुका था। इसलिए सिर झुकाए दोनो हाथों से चेहरा छुपाए सुबक सुबक कर रोने लगीं ये देखकर राघव साक्षी के पास आया और उसके कंधे पर हाथ रखकर बोला...साक्षी मैं बस तुम्हें अपराध बोध करवाना चाहता था। जिसका बोध तुम्हें हों चुका है। अब जब तुम अपराध बोध से ग्रस्त हों ही चुकी हों तो मैं तुम्हें एक ओर मौका देता हूं। तुम श्रृष्टि से बिना बैर रखे उसके साथ मिलकर अपने हुनर का परचम लहराओ श्रृष्टि में कितनी हुनर है ये मैं बहुत पहले से जानता हूं न तुम हुनर में उससे कम हो न ही वो तुमसे कम हैं।

श्रृष्टि को पहले से जानने की इस धमाके ने सहसा साक्षी को ऐसा झटका लगा जिसका नतीजा ये हुआ साक्षी रोना भूलकर अचंभित सा राघव को ताकने लग गई। ये देखकर राघव बोला... इतना हैरान होने की जरुरत नहीं हैं। सच में मैं तुम्हें एक और मौका देना चाहता हूं।

अभी तक जो सिर्फ़ दम साधे सुन रहीं थी सहसा लगे एक झटके ने साक्षी के लकवा ग्रस्त जुबान में खून का दौरा बढा दिया और साक्षी बोलीं... सर आप श्रृष्टि को कब से जानते हों?।

राघव... वो तो तुम्हें इस बात का झटका लगा कि मैं श्रृष्टि को कब से जनता हूं जबकि मैं सोच रहा था कि इतना कुछ करने के बाद मैं तुम्हें दुसरा मौका क्यों दे रहा हूं। देखो साक्षी मैं श्रृष्टि को कैसे और क्यों जानता हूं ये जानना तुम्हारे लिए जरूरी नहीं हैं।

साक्षी... पर...।

राघव... पर बर कुछ नहीं अब तुम जाओ और चाहो तो आज की छुट्टी ले लो इससे तुम्हारा मानसिक संतुलन जो हिला हुआ है। वो ठीक हों जायेगा फ़िर कल से नए जोश और जुनून से नए प्रोजेक्ट के काम पर लग जाना।

मना करने के बावजूद भी साक्षी जानना चाहि मगर राघव ने कुछ नहीं बताया। अंतः तरह तरह के विचार मन में लिए साक्षी चली गई। उसके जाते ही राघव ने एक फोन किया और बोला... एक गरमा गरम कॉफी भेजो और थोडा जल्दी भेजना।

कॉफी का ऑर्डर देकर एक बार फिर से पूर्ववत बैठ गया बस अंतर ये था आज टांगे नहीं हिला रहा था न ही होठो पर रहस्यमई मुस्कान था। बल्कि शांत भाव से बैठा हुआ। सहज भाव से मंद मंद मुस्करा रहा था।





बाप रे राघव ने आज सर का पद पर बैठ के सर जैसा व्यवहार कर दिया

क्या ये जरुरी था ??

क्या इस से उसकी कंपनी को कोई फायदा होगा ??

या साक्षी जैसी होनहार आर्किटेक्ट को खोना पड़ेगा ?

क्या इस से साक्षी सुधर जायेगी ???

या फिर उसका गुस्सा जो अब तक सिर्फ श्रुष्टि तक था अब उसमे राघव ने भी अपनी जगह बना ली ??? अब दो दुश्मन हो गए उसके ???

बड़ा सवाल तो ये है की राघव श्रुष्टि को कैसे जानता है जब की श्रुष्टि उसे जानती तक नहीं ????

साक्षी के साथ साथ मै भी बहोत अचंबित हु सच में .............

अरे मन में सवाल तो बहोत से है और बस आगे जानना भी तो पड़ेगा !!!

जारी रहेगा...
 

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हेल्लो दोस्तों

वैसे तो शुभ दिन कल था पर आज आई तो आज ...........


आप सब को स्वातंत्र दिवस की बहोत बहोत शुभकामनाये और इस नए शुभ अवसर और पावन दिवस की ढेर सारी बधाईया :grouphug:👏

एक विकसित अखंड भा का बुलंद सपने को बुनते और बनाते हुए...... हम इस कहानी में आगे बढ़ते है

 

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भाग - 14


साक्षी वापस तो आ गईं मगर उसका मन उथल पुथल से अब भी भरा हुआ था। कभी वो ये सोचती कि राघव सर श्रृष्टि को कब से और कैसे जानते हैं? जानते हैं तो क्या साक्षात्कार वाले दिन जो मैंने सोचा था क्या वो सच हैं? अगर सच हैं तो दोनों का क्या रिश्ता हैं?

कुछ देर राघव ओर श्रृष्टि को लेकर सोचती रही फिर सहसा उसे राघव की बताई बाते मस्तिष्क के किसी कोने में गूंजती हुई सुनाई दिया और अपने किए कर्मो को याद करके अपराध बोध से घिर गईं।

साक्षी की यह दशा श्रृष्टि सहित दूसरे साथियों के निगाह में आ गया। सभी ये सोच रहें थे कि नए प्रोजैक्ट का हेड न बनाए जानें से परेशान हैं। इस पर श्रृष्टि और दूसरे साथी बात करना चाहा पर साक्षी उनसे बात करने को कतई राज़ी नहीं हुई। बार बार जोर देने पर अंतः स्वस्थ खबर होने का बहाना बनाकर घर को चल दि।

जबकि साक्षी को किसी तरह का कोई बहाना बनाने की जरूरत ही नहीं थीं। क्योंकि राघव ने उसे पहले ही छुट्टी लेने को कह ही चुका था।

साक्षी के जाते ही श्रृष्टि सहित बाकि सभी कुछ पल ठहर सा गए फिर अपने काम में लग गए।




जारी है
 

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शाम को जब श्रृष्टि घर लौटाकर आई। बेटी का हंसता मुस्कुराता खिला हुआ चेहरा देखकर माताश्री बोलीं... क्या बात आज मेरी बेटी के चेहरे पर थकान का नामोनिशान नहीं हैं। लगता है आज उतना काम नहीं करना पड़ा।

"थकी हुइ तो हूं पर आज जो खुशी मुझे मिली है उसके आगे थकान कहीं टिकता ही नहीं, पाता है मां आज हमे नया प्रोजेक्ट मिला हैं और उसका हेड मुझे बनाया गया हैं।" खुशी को जताते हुए बोलीं और मां के गले लग गईं।

"बधाई हों बेटी ऐसे ही अपनी काबिलियत का परचम लहराते रहना" पीठ थपथपाते हुए माताश्री बोलीं।

श्रृष्टि सिर्फ हां में जवाब दिया और मां से लिपटी रही कुछ देर बाद अलग होकर माताश्री बोली... आज इस खुशी के मौके पर मैं वो सभी खाना बनाउंगी जिसे मेरी बेटी खाना पसंद करती हैं।

श्रृष्टि... मां सिर्फ़ मेरी नहीं समीक्षा के पसंद का खाना भी बना लेना मैं आज उसे भी खाने पर बुलाने वाली हूं।

"हां हां बुला ले उसके बिना तो तेरी खुशी अधूरी हैं।"

इतना बोलकर माताश्री रसोई घर को चली गई और श्रृष्टि ने कॉल करके समीक्षा को खाने की आमंत्रण दे दिया फिर मां के साथ हाथ बटाने लग गईं।

रात्रि करीब साढ़े आठ के करीब द्वार पर किसी के आने का संकेत मिला तो श्रृष्टि ने जाकर द्वार खोला "ये नादान लडकी घर आएं मेहमान से कोई इतनी देर प्रतीक्षा करवाता हैं भाला" इतना बोलकर समीक्षा ने श्रृष्टि से किनारा करते हुए अंदर आ गईं।

"आहा आंटी आज किस खुशी में इतनी स्वादिष्ट और सुगंध युक्त भोजन के महक से घर को महकाया जा रहा हैं।"गहरी स्वास भीतर खींचने के बाद समीक्षा बोलीं

"ये तू अपने दोस्त से पूछ वहीं बता देगी।" श्रृष्टि की और इशारा करते हुए माताश्री बोलीं

माताश्री का जवाब सुनाकर समीक्षा पलटी तो श्रृष्टि उसे, उसके पीछे खड़ी मिली। श्रृष्टि के दोनों कंधो पर हाथ टिका कर बोलीं... उमहू तो बहेनजी जरा अपना मुंह खोलिए और इस दावत का राज क्या है बोलिए।

या फिर मै खुद ही सोच लू ??? कह के एक आँख मार दी श्रुष्टि की ऑर....और कुछ ऐसी जगह उसने चीटी भी भर दी |

"आज हमे नया प्रोजेक्ट दिया गया हैं जिसका हेड मैं हूं इसी...।"

"सत्यानाश… लगता है कम्पनी मालिक को अपने कंपनी से मोह भंग हों गया इसलिए इस डॉफर को प्रोजेक्ट हेड बना दिया ही ही ही..।" श्रृष्टि की बातों को बीच में कांटकर समीक्षा बोलीं फ़िर श्रृष्टि के माथे पर उंगली रखकर हल्का सा धक्का दिया और दौड़ लगा दी।

"मैं डॉफर हूं, साली डॉफर रूक तुझे अभी बताती हूं।" इतना बोलकर श्रृष्टि भी उसके पीछे भागी । समीक्षा डायनिंग मेज का चक्कर लगाकर माताश्री के पीछे छिप गई और बोलीं...आंटी बचाओ देखो डॉफर को डॉफर बोला तो कितना चीड़ गई ही ही ही...।

श्रृष्टि समझ गई समीक्षा मस्ती कर रही थी फ़िर भी दिखावा करते हुए मेज पर इधर उधर देखने लग गई। ये देखकर समीक्षा बोलीं... ये डॉफर मेज पर क्या ढूंढ रहीं हैं?

"चक्कू ढूंढ रहीं हूं चक्कू, लो मिल गया चक्कू हा हा हा" इतना बोलकर चक्कु हाथ में लेकर पलटी तो समीक्षा बोलीं... आंटी देखो इस डॉफर को ऐसे खुशी के मौके पर केक काटा जाता हैं मगर इस डॉफर की सोच भी डॉफर जैसी हैं दोस्त की गर्दन काटकर खुशी मनाएगी ही ही ही।

"किसने कहा मैं तेरी गर्दन काटूंगी मैं तो तेरी जीभ काटूंगी जिससे की तू मुझे डॉफर न बोल पाए हा हा हा।" चक्कू घूमते हुए श्रृष्टि बोला ये देखकर माताश्री किनारे होकर रसोई को चल दिया।

"आंटी अब आप कहा चली आप ही तो मेरी ढाल थी।"

"तुम दोनों दोस्तों के बीच मेरा क्या काम आपस में निपटा लो ही ही ही।" और एक नजर श्रुष्टि की वो जगह पर डाली जहा समीक्षा ने चिटी भरी थी और थोडा सा मुस्कुराके अपने गंतव्य की और चल दी\

मौका पाते ही श्रृष्टि ने समीक्षा को पकड़ लिया और धकेलते हुए सोफे तक ले गईं फिर समीक्षा को बिठाकर उसके गोद में चढ़ बैठी और चक्कू घूमते हुए बोलीं... अब बोल क्या बोल रहीं थी।

"तू चक्कू दिखाकर डराएगी तो क्या मैं डर जाऊंगी। तू तो डॉफर हैं और डॉफर ही रहेगी, डॉफर कहीं की ( फिर श्रृष्टि की माथे पर उंगली लगाकर धक्का देते हुए बोलीं) हटना न मेरी जांघें टूट गई कितना भरी हो गई है थोडा बर्जीश वर्जीश किया कर ।" और एक नजर उसके स्तनों पर डालते हुए बोली ये भी भारी हो रहे है शायद उसी का वजन ज्यादा है

"तुम दोनों अपनी ये नौटंकी बंद करो ओर इधर आओ।" सहसा माताश्री एक केक मेज पर रखते हुए बोलीं।

"वाह आंटी सही टाइम पर एंट्री मारी हैं नहीं तो ये डॉफर आज मेरी जीभ ही काट देती (फ़िर श्रृष्टि से बोलीं) ये डॉफर ये जीभ बीभ काटने का प्रोग्राम कैंसल कर और केक काटने का प्रोग्राम फिक्स कर।"

"समीक्षा" चिखते हुए श्रृष्टि बोलीं, तो समीक्षा उसके गालों पर हाथ फेरकर हाथ को चूमते हुए बोलीं...मुआआ क्यों छिड़ती है मेरी जान।

इतना सुनते ही श्रृष्टि मुस्कुराते हुए समीक्षा की गोद से उतर गई और समीक्षा उठकर माताश्री की और जाते हुए बोलीं…आंटी देखो इसे बस प्यार से जान बोल दो सारा गुस्सा गायब। आंटी मेरे को न एक शंका हो रहीं हैं कहीं इसने अपने बॉस को जान बोलकर प्रोजेक्ट हेड का तोहफा छीन तो नहीं लिया।

माताश्री बस मुस्कुरा दी और बोली “अब तुम दोनों एक दुसरे की टांग खीचने से बहार आओ तो कुछ काम आगे बढे “

मा ने भी श्रुष्टि के स्तनों की और देखा और बोली

“दोनों सिर्फ और सिर्फ शरीर से दिख रही है बाकी उम्र का व्यवहार आना बाकी है “ बस भगवान ही आगे जाने

"समीक्षा तू कुछ ज्यादा नहीं बोल रहीं हैं अब तो पक्का तेरी जीभ काट दूंगी।" इतना बोलकर श्रृष्टि तेजी से दो चार कदम बढ़ी ही थी की सहसा उसके कदम रूक गए और कुछ सोचकर मुस्करा दिया फ़िर सिर झटक दिया और समीक्षा के पास जाकर बोलीं…अब बोल क्या बोल रहीं थीं?

समीक्षा... मैं तो बस इतना बोल रहीं थी जल्दी से केक काट बहुत जोरों की भूख लगी हैं।

समीक्षा रूक रूक कर बोलीं जिससे श्रृष्टि मुस्कुरा दिया और समीक्षा से गले मिली और धीरे से बोली डफेर मा के सामने इधर उधर छुआ मत कर|

फिर केक कांटकर खुद को मिली उपलब्धि की खुशी मनाई और खान पीना करके समीक्षा अपने घर और श्रृष्टि अपने घर सपनों की हंसी वादियों में खो गईं।

जारी रहेगा...
 

Ajju Landwalia

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भाग - 14


साक्षी वापस तो आ गईं मगर उसका मन उथल पुथल से अब भी भरा हुआ था। कभी वो ये सोचती कि राघव सर श्रृष्टि को कब से और कैसे जानते हैं? जानते हैं तो क्या साक्षात्कार वाले दिन जो मैंने सोचा था क्या वो सच हैं? अगर सच हैं तो दोनों का क्या रिश्ता हैं?

कुछ देर राघव ओर श्रृष्टि को लेकर सोचती रही फिर सहसा उसे राघव की बताई बाते मस्तिष्क के किसी कोने में गूंजती हुई सुनाई दिया और अपने किए कर्मो को याद करके अपराध बोध से घिर गईं।

साक्षी की यह दशा श्रृष्टि सहित दूसरे साथियों के निगाह में आ गया। सभी ये सोच रहें थे कि नए प्रोजैक्ट का हेड न बनाए जानें से परेशान हैं। इस पर श्रृष्टि और दूसरे साथी बात करना चाहा पर साक्षी उनसे बात करने को कतई राज़ी नहीं हुई। बार बार जोर देने पर अंतः स्वस्थ खबर होने का बहाना बनाकर घर को चल दि।

जबकि साक्षी को किसी तरह का कोई बहाना बनाने की जरूरत ही नहीं थीं। क्योंकि राघव ने उसे पहले ही छुट्टी लेने को कह ही चुका था।

साक्षी के जाते ही श्रृष्टि सहित बाकि सभी कुछ पल ठहर सा गए फिर अपने काम में लग गए।




जारी है

Dear Funlover Ji,

Sabhi updates ek se badhkar ek he............Superb outstanding

Raghav ne aaj ek boss ki tarah bartav kiya...............shrishti ko project head bana diya

Sakshi ko bhi uske dwara kiye gaye sabhi kaando ki yaad bhi dila di....... aur sath hi sath ek shanka bhi uske man me jama di ki wo shrishti ko pehle se janta he

Ab dekhna ye he kis sakshi ko pachtava hoga ya fir vo dobara naye sire naye kaand karegi

Keep rocking Dear
 
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Sabhi updates ek se badhkar ek he............Superb outstanding

Raghav ne aaj ek boss ki tarah bartav kiya...............shrishti ko project head bana diya

Sakshi ko bhi uske dwara kiye gaye sabhi kaando ki yaad bhi dila di....... aur sath hi sath ek shanka bhi uske man me jama di ki wo shrishti ko pehle se janta he

Ab dekhna ye he kis sakshi ko pachtava hoga ya fir vo dobara naye sire naye kaand karegi

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Ji Ajju ji aapke vichar sahi hai

muje aisa lagta hai ki Raghav ab tak chup tha kyo ki wo ek businessman hai aur uske liye usko priority business hi hai to wo shakshi ko jhelta raha kyo ki uske pas uske jaise honhaar architect dusara koi nahi tha jis se wo compete kar sake

ab Shrushti ke agman se aur uske performance ye tay ho chuka tha ki sakshi ko wo sahi tairike se compete kar sakti hai aur usko nuksan nahi hona tha aur usne ek risk le liya sakshi ko apnitasveer dikhake (risk ye hai ki agar sakshi resign bhi karti hai to uske business ko ko inuksaan nahi hoan tha )

uske is ravaiye se ye bhi dikhaya ki ab sakshi ko uski skill se jyada aur koi bhi activity me use interest nahi hai

yes mai is baat se sahmant hu ki ab sakshi ko pachhtava hoga ya fir aur jyada takat se apne aap ko saabit karegi ( useab pata hai ki Raghav sab jaanta hai aur shrushti ki favor kar raha hai to use ab do target hai Raghav ke pas uska koi chanve hai nahi aur shrushti vaise hi use napasand hai to uske liye ab shayad ye khulla maidan hai revenge ke liye) ho sakta hai wo koi aur compitative company me jaa ke Raghav ke Tivari construction ki imformation de ke aur jyada nuksaan pahuchaaye

kher ye sab aage kya hoga wo to muje bhi nahi pata bahot jatil hoti jaa rahi hai ye kahaani shayad use saral kar de

sawaal bahot hai par javaab ek ek kar ke dhundhna padega
 
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भाग - 15


अगले दिन सभी दफ्तर में मौजूद थे अगर कोई नहीं था तो वो थी साक्षी, राघव दफ्तर आते ही शिग्रता से कुछ काम निपटाया फ़िर श्रृष्टि और उसके साथियों के पास पहुंच गया।

राघव…हां तो सभी जानें के लिए तैयार हों।

श्रृष्टि... सर तैयार तो है पर साक्षी मैम अभी तक नहीं आई।

राघव... उसका msg आया था उसकी तबीयत खराब हैं इसलिए आज नहीं आ पाएगी (फ़िर मन में बोला) लगता हैं कल की बातों का ज्यादा ही असर पड़ गया।

श्रृष्टि... ओह ऐसा क्या? हम तो कुछ ओर ही सोच बैठें थे।

राघव... जो भी सोचा हो उसे यहीं पर पूर्णविराम दो और चलने की तैयारी करो हमे देर हों रहा हैं। किसी के लिए कोई रुकता है भला ??

"जी हा" कहकर सभी अपने अपने जरूरी यन्त्र लेकर दफ्तर से बहार आए। दूसरे साथियों के पास अपने अपने कार थे तो वो उसी ओर चल दिए और श्रृष्टि अपने स्कूटी लेने जा रहीं थीं कि राघव रोकते हुए बोला...श्रृष्टि आप कहा चली आप मेरे साथ मेरे कार से चलिए।

श्रृष्टि... पर सर मेरे पास मेरी स्कूटी है।

राघव...हा जानता हूं आपके पास स्कूटी है। आप उसे यहीं छोड़ दीजिए ओर मेरे साथ चलिए क्योंकि हमे दो चार किलोमीटर नहीं शहर के दूसरे छोर लगभग तीस किलोमीटर दूर जाना हैं।

"ऐसा है तो मैं उनके साथ उनके कार में चलती हूं।" असहज होते हुए बोलीं

राघव... क्यों? मेरे साथ चलने में क्या बुराई हैं? मैं कोई भूखा भेड़िया नहीं हूं जो आपको खा जाऊंगा।

श्रृष्टि... मैंने ऐसा तो नहीं कहा।

राघव... भले ही नहीं कहा मगर आपके हावभाव कुछ ऐसा ही दर्शा रहीं हैं। यकीन मानिए मैं कोई अधोमुखी नहीं हूं आपकी तरह एक साधारण इंसान हूं। इसलिए ओर बाते न बढ़ाकर मेरे साथ चलिए।

राघव के इतना बोलते ही श्रृष्टि ना चाहते हुए भी राघव के पीछे पीछे चल दिया तो राघव बोला...आप यहीं रूकिए मैं कार लेकर आता हूं।

श्रृष्टि वहीं रूक गईं और तरह तरह की बाते उसके मन मस्तिष्क में चलने लगे । मैं सर के साथ उन्हीं के कार में जाकर क्या सही कर रहीं हूं? किसी ने ध्यान दिया तो तरह तरह की बाते बनाने लग जायेंगे। ऐसा हुआ तो मैं इन सब बातों का सामना कैसे करूंगी। उफ्फ मैने चलने को हां क्यों कहा? मुझे हां कहना ही नहीं चाहिए था अब क्या करूं?

श्रृष्टि खुद की विचारों में खोई थी कि सहसा हॉर्न की आवाज ने उसके विचारों से उसे मुक्त करवाया। सामने राघव कार लिए खड़ा था। उसके बैठने को कहने पर एक बार फिर श्रृष्टि सोच में पड गई कि बैठे तो बैठें कहा आगे बैठे कि पीछे सहसा न जानें उसके मस्तिष्क में किया खिला जो पीछे का दरवाजा खोलकर बैठने जा ही रहीं थी की राघव बोला...अरे डोफर पीछे क्यों बैठ रहीं हो आगे का सीट खाली है वहा बैठो न खामखा मुझे अपना ड्राइवर बनाने पे क्यों तुली हों।

डोफर सुनते ही श्रृष्टि राघव को खा जाने वाली नजरों से ऐसे देखने लगीं मानो अभी के अभी राघव को बिना पानी के सबूत निगल जायेगी। ये देख राघव बोला... सॉरी सॉरी श्रृष्टि गलती हों गइ। अब मुझे ऐसे न घूरो जल्दी से बैठो हमे देर हों रहा है ओर हा पीछे मत बैठना आगे की सीट पर बैठना (फिर मन में बोला) ओह लगता हैं कुछ ज्यादा ही नाराज हो गई है। होना भी चाहिए डोफर सुनते ही किसी भी खूबसूरत लडकी को गुस्सा आ ही जाएगा। मै भी शायद बुध्धू ही हु इतना आसान बात भी मेरे समज में नहीं आया”

श्रृष्टि बस घूरते हुए घूमकर सामने की सीट पर बैठ गई फिर "भाडाम" से कार का दरवाजा बन्द कर दिया। अपना गुस्सा दरवाजे पे ठोक दिया| ये देखकर राघव बोला... अरे अरे नाराज हों तो नाराजगी मुझ पर निकालो कार का द्वार तोड़ने पे क्यों तुली हो इसे कुछ हुआ तो मेरा बापू दुसरा नहीं दिलाएगा हा हा हा।

श्रृष्टि…”एकदम गोबर जोक था जब जोक सुनाना नहीं आता। तो सुनाते क्यों हों?”

इतना बोलकर श्रृष्टि मुंह फूला कर बैठ गई। इन लड़कियों के नखरे भी अजब गजब है कल दोस्त डोफर डोफर बोल रहीं थीं तो बहनजी मस्त, मस्ती कर रही थी और आज बॉस ने डोफर क्या बोल दिया बहनजी रूठ गई हैं।

खैर कार अपने गंतव्य को चल दिया और कार में सन्नाटा था। न राघव कुछ बोल रहा था ना ही श्रृष्टि कुछ बोल रहीं थी। लम्बा वक्त यूं सन्नाटे में बीत गया। सहसा राघव सन्नाटे को भंग करते हुए बोला... श्रृष्टि आप न भोली सूरत वाली एक खूबसूरत लडकी हों।

ये सुनते ही श्रृष्टि हल्का सा मुस्कुरा दिया और निगाहे फेरकर राघव की ओर देखा मगर राघव उसकी और न देखकर सामने की और देख रहा था। एक बार फिर कुछ पल का सन्नाटा छा गया इस बार की सन्नाटा को भंग करते हुए श्रृष्टि बोलीं...सर किसी रूठी लडकी को मनाने का ये पैंतरा पुराना हों चुका हैं कोई और तरीका हों तो अजमा सकते हैं। वैसे हर नारी को अपनी तारीफ़ अच्छी लगती है और श्रुष्टि उसमे से कैसे बकात रह सकती है | उसे अच्छा तो लगा पर गुस्सा जो दिखाना था

राघव... पुराना भले ही हो मगर कारगर हैं तुम सिर्फ़... तुम बोल सकता हूं न।

श्रृष्टि…सर ये आप और तुम की औपचारिकता छोड़िए जो मन करें बो बोलिए। (मन में लेकिन कुछ अच्छा बोलना ये फिर से डोफर ना कह देना )


"मेरा मन तो जानेमन बोलने को कर रहा है।" धीरे से बोला ताकि श्रृष्टि सुन न ले।

श्रृष्टि... सर क्या बोला जरा ऊंचा बोलेंगे मुझे कम सुनाई देता हैं।

राघव... तुम्हें और कम क्यों झूठ बोल रहीं हों। तुम तो हल्की सी आहट भी सुन लेती हों।

श्रृष्टि…अच्छा... ये आप कैसे कह सकते हों। (सहसा कुछ याद आया जिसे सोचकर श्रृष्टि मन ही मन बोलीं) ऊम्म तो आपका इशारा उस दिन की बात पर हैं चलो मेरा भ्रम तो दूर हुआ अब बस ये जानना हैं कि आपके मन में चल क्या रहा हैं।

इतने में राघव ने कार को रोक दिया फिर बोला... श्रृष्टि हम पहुंच चुके हैं।

श्रृष्टि ने आगे देखा तो सामने एक बड़ा सा खाली जमीन है जिसे देखकर श्रृष्टि बोलीं... सर हम बडी जल्दी पहुंच गए।

राघव... बातों बातों में पाता ही नहीं चला जरा अपने हाथ में बंधी घड़ी को देखो फ़िर पता चल जायेगा हम कितने समय तक सफर करते रहें।

घड़ी देखने के बाद श्रृष्टि को पता चला लगभग एक घंटे का सफर करने के बाद वो लोग यहां तक पहुंचे खैर और देर करना व्यर्थ समझकर श्रृष्टि लपककर गाड़ी से उतरी, जेठ महीने की झुलसा देने वाली सूरज की तपन देह को छूते ही श्रृष्टि बोलीं... धूप कितनी तेज हैं।

राघव... धूप तो तेज है लेकिन अब किया भी ही क्या जा सकता हैं तुम पहले कहती तो मैं एक छाता ले आता।

श्रृष्टि... अच्छा मेरे कहने भर से आप छाता ले आते।

राघव... तुम कह कर तो देखती नहीं लेकर आता फ़िर कहती।

श्रृष्टि मुस्कुराकर देखा और मन में बोलीं... आज मुझे हो क्या हो रहा हैं सर से ऐसे क्यों बात कर रही हूं। सर भी ओर दिनों से ज्यादा फ्रैंकली बात कर रहें हैं। उनके दिमाग में चल किया रहा हैं। मुझे उसे ऐसे कोई ढील देनी नहीं चाहिए ये पुरुष होते है ऐसे है कुछ जगह मिली नहीं की पूरी सिट खुद की मान लेते है |

यहां श्रृष्टि खुद से बातें करने में मस्त थीं वहां राघव भी कुछ ऐसा ही बात मन में बोला रहा था। "आज मुझे क्या हों गया जो में श्रृष्टि से ऐसे बात कर रहा हूं। पहले तो उसे डफेर बोल दिया फिर खुद को उसका ड्राइवर बोल दिया वो पीछे बैठ रहीं थी तो इसमें कौन सी बुराई थीं। मगर मैंने लागभग विनती करते हुए उसे आगे बैठने को कहा इतना तो ठीक हैं वो मेरे साथ आना ही नहीं चाहती थी फिर भी उसे लगभग जबरदस्ती मेरे साथ बैठने को मजबूर कर दिया। मैं ऐसा क्यों कर रहा हूं क्यों...।

"सर यहां कब तक खड़े रहना हैं धूप बहुत तेज़ है हमे जल्दी से काम निपटाकर चलना चाहिए।" सहसा एक आवाज राघव के कानों को छुआ तो उसकी तंद्रा भंग हुआ, सामने देखा तो उसके साथ आए साथियों में से एक खड़ा था जो उससे कुछ बोला था मगर राघव विचारो में खोए होने के कारण सुन नहीं पाया तब उसने क्या बोला ये पुछा तो जवाब में "सर आप को हो क्या गया है? अच्छे भले दिखते हो फ़िर भी कहीं खोए खोए से लगते हों। आप ऐसे तो न थे | मैं तो बस इतना ही कह रहा था धूप बहुत तेज़ है जल्दी से हमे काम निपटाकर चलना चाहिए।

राघव... ठीक कह रहे हों।

इतना बोलकर एक नज़र श्रृष्टि की ओर देखा तो उसे दिखा श्रृष्टि उसी की ओर देखकर मंद मंद मुस्करा रहीं थीं। ये देखकर राघव भी हल्का सा मुस्कुरा दिया।

राघव को मुस्कुराते देखकर श्रृष्टि ने निगाह ऐसे फेर लिया जैसे दर्शाना चाहती हों उसने कुछ नहीं देखा। बहरहाल जमीन की पैमाईश और बाकि जरुरी काम शुरू किया गया। तेज धूप और उमस अपना प्रभाव उन सभी पर छोड़ रहा था। इसलिए कुछ देर काम करते फिर कार में आकर एसी के ठंडक का मजा लेकर फिर से काम करने लग जाते। काम खत्म करते करते लगभग तीन साढ़े तीन बज गए। थक तो गए ही थे साथ ही सभी को भूख भी बड़ी जोरों का लगा था। तो लौटते वक्त सभी को एक रेस्टोरेंट में ले जाकर सभी को उनके पसंद का खान खिलाया फ़िर दुनिया भर की बाते करते हुए दफ्तर लौट आएं।




अब ये नया कुछ आया श्रुष्टि और राघव ना जाने क्या सोच रहे है ये ऑफिस का तो काम है ही पर एक दुसरे के बारे में सोचना तो ऑफिस वर्क में नहीं आता !!!!!!
जारी रहेगा…..
 
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