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Romance श्रृष्टि की गजब रित

vickyrock

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जी सही कहा आपने तभी तो मेरे पास बहोत कम पाठक है ...............

खेर अगली कहानी मेरी भी सेक्स पे आधारित होगी पर कहानी होगी उसमे उतना ही सेक्स डालूंगी जितना जरुरत होगी मेरे हिसाब से ............मुझे कहानी में सेक्स पसंद है सेक्सुअल प्रसंगों में कहानी नहीं ............ कहानी ऐसी होनी चाहिए जिसे पाठक को पकड़ के रखे आगे क्या हो सकता है उसका अनुमान करता नजर आना चाहिए .............मै खुद भी कहानी लिखते ऐसा ही करती हु
और पढ़ते समय भी ........ सेक्स अच्छा लगता है और होना भी चाहिए पर जितना कहानी में जरुरी हो .........पात्र के अनुरूप ...परिश्थिति के अनुरूप .....

खेर मै इस कहानी को भी सेक्सुअल बना सकती थी जैसे दो सहेलियों में ओपन बातचीत जो नॉर्मली होती ही है ........अरमान का छेड़ना उसे मै 2 एपिसोड बना सकती थी .....राघव और साक्षी के संबंध को भी सेक्स करा सकती थी .... मा बेटी के संवाद लिख सकती थी ......हो सके तो लेस्बो सम्बन्ध भी डेवलप कर सकती थी ....पर ऐसा नहीं किया क्यों की एक स्वच्छ कहानी पेश करना चाहती थी ........जो सभी लोग पढ़ सके शायद पाठक लोग अपने जान पहचान वालो की भी पढ़ा सके ........

खेर चलिए लेक्चर बहोत हुआ शायद

अब कहानी में थोडा आगे बढ़ते है .................

धन्यवाद आपका vickyrock जी आपने मेरी इस कहानी में रस लिया और पढ़ते है ,,,,, उम्मीद रखती हु समाप्ति तक बने रहेंगे ............और जुड़े रहेंगे .............
जैसा लेखक का मन हो वैसे ही लिखना चाहिए कुछ चीजें खुद के लिए भी करना जरुरी है 🙏
 

Funlover

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जैसा लेखक का मन हो वैसे ही लिखना चाहिए कुछ चीजें खुद के लिए भी करना जरुरी है 🙏
ji bilkul sahi hai
 

Funlover

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भाग - 22


शादी वो भी राघव की, सुनते ही श्रृष्टि के लिए पल जहां का तहां ठहर सा गया। किसी बात पर प्रतिक्रिया देना क्या होता हैं? श्रृष्टि भूल सी गईं। श्रृष्टि को यूं अटक हुआ देखकर साक्षी मुस्कुरा दिया और बोलीं... तुझे क्या हुआ तुझे किस बात का सदमा लग गया।

साक्षी की बाते कानों को छूते ही श्रृष्टि चेतना पाई फिर बोली... कुछ बोला क्या?

साक्षी...मैं तो बस इतना ही कह रहीं थीं। काम पर लगते हैं।

"हां चलो" इतना बोलकर दोनों काम में लग गई मगर साक्षी बीच बीच में श्रृष्टि की ओर देखकर मुस्करा देती क्योंकि श्रृष्टि ओर दिनों की तरह काम पर ध्यान ही नहीं दे पा रहीं थीं। जीतना खुद को सामान्य करके काम पर ध्यान देना चाहती। उतना ही उसका ध्यान किसी बात से भटक जाता और बेचैनी सा उस पे हावी हो जाता नतीजातन उसका ध्यान काम से विमुख हों जाता।

दिन का बचा हुआ वक्त श्रृष्टि का ध्यान भटकना फिर बेचैन हों जाना इसी में ही निकल गया। शाम को जैसे ही घर पहुंची माताश्री देखते ही पहचान गई कि उसकी बेटी पर थकान से ज्यादा कुछ ओर ही हावी हैं। तो तुरंत ही बेटी को अपने पास बैठाया फ़िर बोलीं...श्रृष्टि बेटा क्या बात है आज दफ्तर में कोई बात हों गई हैं जो तू इतना परेशान दिख रहीं हैं।?

"नहीं मां, छोटी मोटी बाते तो होती ही रहती है उससे क्या परेशन होना। आज ज्यादा काम की वजह से मुझे थकान ज्यादा हों गई हैं शायद मेरी थकान आपको परेशानी के रूप में दिख रही हों। वैसे भी ज्यादा थकान भी तो परेशानी का कारण होता हैं।" हाव भव में बदलाव करते हुए श्रृष्टि बोलीं।

"मेरी नज़रे कभी धोका नहीं खा सकती है। मैं मेरी बेटी का चेहरा देखकर ही जान जाती हूं वो कब थकान के वजह से परेशान है और कब किसी बात को लेकर परेशान हैं। समझी।"

श्रृष्टि... उफ्फ मां आप भी न दिन भर की कामों से थकी हरी बेटी घर लौटी हैं। उसे एक कड़क चाय या कॉफी पिलाने के जगह आप बातों में लगीं हुईं हों।

"अच्छा अच्छा अभी लाती हूं।" इतना बोलकर माताश्री रसोई की ओर चल दिया कुछ कदम पर रूककर बोलीं...श्रृष्टि बेटा तेरी मां होने के साथ साथ तेरी पहली दोस्त भी हूं। इसलिए कोई बात अगर तुझे परेशान कर रहीं है तो मुझे बता देना शायद इससे तेरे परेशानी का हल मिल जाएं।

और इतना कह के माताश्री का ह्रदय थोडा सा हिल गया कुछ अनचाही डर से

"ओ हो मां फिलहाल तो मुझे कोई परेशानी नहीं हैं अगर कोई परेशानी होगी तो आपको बता दूंगी और किस को बताउंगी भला ? अब आप जल्दी से एक कड़क चाय लेकर आईए"

माताश्री आगे कुछ न बोलकर रसोई में चली गई और श्रृष्टि अपने कमरे में चली गई। अपने कमरे में जाके कपडे उतारते वक़्त एक नजर शीशे में देखना चाहा पर ऐसा वो ना कर सकी और दो बूंद अपने आँखों ने छोड़ दिए. जिसे पोछ कर वो कपड़े बदलकर आई तब तक माताश्री चाय बना चुकी थी। श्रृष्टि के आते ही दोनों मां बेटी चाय की चुस्कियां गपशप करते हुए लेने लग गई।


लेकिन अक अनुभवी आँखों ने ये नॉट कर लिया की श्रुष्टि की आँखों से कुछ अश्रु निकल चुके है और उसे पोछ दिया गया है. माताश्री को बहोत हलचली महसूस हुई पर सोचा अभी वक़्त नहि आया की उस से बात करू, शायद कुछ हुआ भी न हो या फिर ऐसा कुछ हुआ हो (राघव) की कुछ बात उसे पसंद ना आई हो. कही ऐसा तो नहीं की राघव ने कुछ ............. नहीं नहीं पागल ऐसा कुछ होता तो वो सीधा मुझे बोल देती .....तू अपने में से बाहर आ .....खुद से बोली
 

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अगले दिन लंच के वक्त सभी लंच करना शुरू ही किया था कि उसी वक्त राघव भी टिफिन लिए पहुंच गया।

बीते दिन राघव लंच करने नहीं आया था और राघव की झूठी शादी की खबर साक्षी ने पहले श्रृष्टि को बताया बाद में उसे छेड़ने के लिया दूसरे साथी को भी बता दिया।

यहां बात जानने की कातुहाल दूसरे साथियों के मन में खलबली मचाया हुआ था। राघव को देखते ही वो अपना सवाल दागने ही वाले थे की साक्षी बोल पड़ी...सर आप कल क्यों नहीं आए आप जानते तो है आपको देखे बिना कोई है जो बहुत बेचैन हों जाती हैं। खुद की नहीं तो उसकी ही फिक्र कर लेते।

साक्षी कह तो राघव से रही थी। मगर इशारा श्रृष्टि की ओर थीं यह बात श्रृष्टि समझ गई। इसलिए हल्का सा मुस्कुरा दिया फिर सरसरी निगाह राघव और साक्षी पे फेरकर सिर झुका लिया और भोजन करने में मग्न हो गई।

राघव नजदीक आकर एक कुर्सी पर बैठ गया फिर टिफन खोलते हुए बोला... फिक्र है बहुत ज्यादा फिक्र है इसलिए मैं आना भी चाहत था लेकिन कुछ जरुरी काम की वजह से नहीं आ पाया। आज आ गया हूं अब कल की भी भरपाई कर दूंगा।

बोलने के बाद राघव ने सरसरी निगाह श्रृष्टि पर फेर दिया और बगल में बैठा एक सहयोगी बोला…सर कौन है वो जिसकी फिक्र आपको बहुत ज्यादा हैं जरा हमे भी बता दिजिए हम भी तो जानें वो खुश नसीब कौन है जिसकी आपको बहुत ज्यादा फिक्र है।

साक्षी... है कोई अभी सर और उसके बीच छुप्पन छुपाई चल रहा हैं। जब दोनों का खेल खत्म हो जायेगा तब सभी को बता दिया जायेगा। क्यों श्रृष्टि ये बात शायद तुम भी जानती हों?

साक्षी का इतना बोलना था की श्रृष्टि को एक बार फिर धचका लग गई। ये देख राघव श्रृष्टि को पानी का गिलास बढा दिया। श्रृष्टि बिना कुछ कहे पानी ले लिया। थोड़ी ही वक्त में श्रृष्टि संभली तो सहयोगी में से एक बोला...सर कल साक्षी मैम कह रही थी आप शादी करने वाले हों। जिसके लिए लड़की भी देखा जा रहा हैं।

एक बार फ़िर से शादी की बात छिड़ते ही श्रृष्टि दम सादे सिर झुकाए बैठी राघव के जवाब का इंतजार करने लगी।

खुद की शादी की बात जिससे राघव खुद अंजान था। सुनते ही साक्षी की ओर देखा और इशारे से पुछा ऐसा क्यो कहा। तब साक्षी ने श्रृष्टि की ओर इशारा कर दिया और राघव को हां बोलने को कहा।

अब राघव गंभीर परिस्थिति में फंस गया। क्या जवाब दे क्या न दे ये समझ ही नहीं पा रहा था? सहसा उसे क्या सूझा की बोल पडा... हां देख तो रहें हैं। मैं भी कब तक टाला मटोली करूं उम्र निकलता जा रहा हैं अब सोच रहा हूं शादी कर ही लेता हूं।

राघव का हां बोलना और श्रृष्टि जो दम सादे सुन रहीं थीं। उसको सहसा दम घुटने सा लगा। खाने का निवाला जो हाथ में पकड़ी थी वो हाथ से छुट कर प्लेट पे गिर गया। यह सब साक्षी सहित सभी देख रहे थे। देखते ही साक्षी बोलीं... श्रृष्टि क्या हुआ खाना पसंद नहीं आया या फिर किसी की बाते पसंद नहीं आई। बोलों क्या बात हैं?

श्रृष्टि से बोला कुछ नहीं गया। चुप चाप अपने जगह से उठी और चली गई। ये देख राघव विचलित सा हो गया और मन ही मन पछताने लगा कि उसने साक्षी का कहना क्यों माना और साक्षी आवाज देते हुए बोली... श्रृष्टि क्या हुआ तुम कहा जा रहीं हों खाना पसंद नहीं आया तो मेरे में से खा लो।

श्रृष्टि ने कोई जबाव नहीं दिया और चुप चाप रूम से बहार चली गई और राघव विचलित सा साक्षी को देखा तो साक्षी ने इशारे से आश्वासन देते हुए कहा कुछ नहीं हुआ वो सब संभाल लेगी। मगर राघव पे आश्वासन का कोई असर नहीं हुआ।

सभी खाने में लगे रहें मगर राघव से एक भी निबला निगला नहीं गया इसलिए वो भी अधूरा खाना छोड़कर जाते वक्त साक्षी को उसके रूम में आने को कह गया।

पल भर में पूरा शमा ही बदल गया एक झूठी हां ने दोनों को हद से ज्यादा विचलित कर दिया। श्रृष्टि अपना खाना फेंक कर आई और बेमन से कम में लग गई। साक्षी खाना खाने के बाद राघव के रूम में पहुंच गई।

राघव... तुमने देखा ना मेरे झूठी हां से श्रृष्टि कितना परेशान हों गईं। तुम्हें कहना ही था तो कोई ओर बात बता देती। मेरी झूठी शादी की बात कहने की जरूरत ही किया थीं। कह दिया सो कह दिया मुझे भी सच बोलने से रोक दिया। साक्षी तुम्हें ऐसा नहीं करना चहिए था।

साक्षी... सर आज जैसा हुआ कल भी श्रृष्टि का ऐसा ही हाल हुआ था बस आज आपने खुद से हां कहा तो इसका कुछ ज्यादा ही असर हुआ। इस बात से इतना तो आप जान ही गए होंगे कि श्रृष्टि भी आपसे प्यार करती हैं। अब आपको देर नहीं करना चहिए कल ही जैसा मैंने कहा था वैसे ही सभी को साथ में लंच पे ले चले और मौका देखकर प्रपोज कर दे।

राघव... एक तो वो पहले से ही मेरे साथ जानें को राजी नहीं हों रही थी उसके बाद आज जो हुआ अब तो वो बिल्कुल भी राजी नहीं होगी।

साक्षी...सर आप ट्राई तो कीजिए अगर नहीं जाती है तो मैं खुद उससे बात करके सच बता दूंगी और आगर लंच पर चल देती है त`ब आप पहले उसे सच बता देना फिर प्रपोज कर देना।

राघव... तुमने अलग ही टेंशन में डाल दिया अब तुम जाओ ओर श्रृष्टि को संभालो मैं कुछ काम कर लेता हूं फ़िर समय निकल कर एक फेरा आ जाऊंगा।

साक्षी राघव से बात करके वापस आ गई। यहां श्रृष्टि का हाल कल से ज्यादा बेहाल था वो काम पर ध्यान ही नहीं लगा पा रही थी। साक्षी कई बार बात करना चाह मगर श्रृष्टि साक्षी ही नहीं किसी से बात करने को राजी नहीं हुई। मानो उसने चुप्पी सी सद ली हों।

उधर राघव का हाल भी दूजा नही था। वो भी काम में ध्यान ही नहीं लगा पा रहा था। बार बार रह रहकर एक ही ख्याल मन में आ रहा था कि वो साक्षी की बात माना ही क्यों उसे साक्षी की बात मानना ही नहीं चाहिए था।

एक दो बार वहां गया मगर श्रृष्टि ने उस पे ज्यादा ध्यान ही नहीं दिया और श्रृष्टि को बेचैन सा देखकर इशारे इशारे में साक्षी को डांटकर चला गया।

जारी रहेगा
….



आग दोनों तरफ लगी है और साक्षी शायद मजे ले रही है या उसका कोई काम हो रहा है


ये साक्षी को समज ने में शायद मै भी धोखा खा गई हु

मुझे तो ऐसा लगता है की राघव ने साक्षी पे इतना बड़ा विश्वास क्यों किया ????
 

vickyrock

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अगले दिन लंच के वक्त सभी लंच करना शुरू ही किया था कि उसी वक्त राघव भी टिफिन लिए पहुंच गया।

बीते दिन राघव लंच करने नहीं आया था और राघव की झूठी शादी की खबर साक्षी ने पहले श्रृष्टि को बताया बाद में उसे छेड़ने के लिया दूसरे साथी को भी बता दिया।

यहां बात जानने की कातुहाल दूसरे साथियों के मन में खलबली मचाया हुआ था। राघव को देखते ही वो अपना सवाल दागने ही वाले थे की साक्षी बोल पड़ी...सर आप कल क्यों नहीं आए आप जानते तो है आपको देखे बिना कोई है जो बहुत बेचैन हों जाती हैं। खुद की नहीं तो उसकी ही फिक्र कर लेते।

साक्षी कह तो राघव से रही थी। मगर इशारा श्रृष्टि की ओर थीं यह बात श्रृष्टि समझ गई। इसलिए हल्का सा मुस्कुरा दिया फिर सरसरी निगाह राघव और साक्षी पे फेरकर सिर झुका लिया और भोजन करने में मग्न हो गई।

राघव नजदीक आकर एक कुर्सी पर बैठ गया फिर टिफन खोलते हुए बोला... फिक्र है बहुत ज्यादा फिक्र है इसलिए मैं आना भी चाहत था लेकिन कुछ जरुरी काम की वजह से नहीं आ पाया। आज आ गया हूं अब कल की भी भरपाई कर दूंगा।

बोलने के बाद राघव ने सरसरी निगाह श्रृष्टि पर फेर दिया और बगल में बैठा एक सहयोगी बोला…सर कौन है वो जिसकी फिक्र आपको बहुत ज्यादा हैं जरा हमे भी बता दिजिए हम भी तो जानें वो खुश नसीब कौन है जिसकी आपको बहुत ज्यादा फिक्र है।

साक्षी... है कोई अभी सर और उसके बीच छुप्पन छुपाई चल रहा हैं। जब दोनों का खेल खत्म हो जायेगा तब सभी को बता दिया जायेगा। क्यों श्रृष्टि ये बात शायद तुम भी जानती हों?

साक्षी का इतना बोलना था की श्रृष्टि को एक बार फिर धचका लग गई। ये देख राघव श्रृष्टि को पानी का गिलास बढा दिया। श्रृष्टि बिना कुछ कहे पानी ले लिया। थोड़ी ही वक्त में श्रृष्टि संभली तो सहयोगी में से एक बोला...सर कल साक्षी मैम कह रही थी आप शादी करने वाले हों। जिसके लिए लड़की भी देखा जा रहा हैं।

एक बार फ़िर से शादी की बात छिड़ते ही श्रृष्टि दम सादे सिर झुकाए बैठी राघव के जवाब का इंतजार करने लगी।

खुद की शादी की बात जिससे राघव खुद अंजान था। सुनते ही साक्षी की ओर देखा और इशारे से पुछा ऐसा क्यो कहा। तब साक्षी ने श्रृष्टि की ओर इशारा कर दिया और राघव को हां बोलने को कहा।

अब राघव गंभीर परिस्थिति में फंस गया। क्या जवाब दे क्या न दे ये समझ ही नहीं पा रहा था? सहसा उसे क्या सूझा की बोल पडा... हां देख तो रहें हैं। मैं भी कब तक टाला मटोली करूं उम्र निकलता जा रहा हैं अब सोच रहा हूं शादी कर ही लेता हूं।

राघव का हां बोलना और श्रृष्टि जो दम सादे सुन रहीं थीं। उसको सहसा दम घुटने सा लगा। खाने का निवाला जो हाथ में पकड़ी थी वो हाथ से छुट कर प्लेट पे गिर गया। यह सब साक्षी सहित सभी देख रहे थे। देखते ही साक्षी बोलीं... श्रृष्टि क्या हुआ खाना पसंद नहीं आया या फिर किसी की बाते पसंद नहीं आई। बोलों क्या बात हैं?

श्रृष्टि से बोला कुछ नहीं गया। चुप चाप अपने जगह से उठी और चली गई। ये देख राघव विचलित सा हो गया और मन ही मन पछताने लगा कि उसने साक्षी का कहना क्यों माना और साक्षी आवाज देते हुए बोली... श्रृष्टि क्या हुआ तुम कहा जा रहीं हों खाना पसंद नहीं आया तो मेरे में से खा लो।

श्रृष्टि ने कोई जबाव नहीं दिया और चुप चाप रूम से बहार चली गई और राघव विचलित सा साक्षी को देखा तो साक्षी ने इशारे से आश्वासन देते हुए कहा कुछ नहीं हुआ वो सब संभाल लेगी। मगर राघव पे आश्वासन का कोई असर नहीं हुआ।

सभी खाने में लगे रहें मगर राघव से एक भी निबला निगला नहीं गया इसलिए वो भी अधूरा खाना छोड़कर जाते वक्त साक्षी को उसके रूम में आने को कह गया।

पल भर में पूरा शमा ही बदल गया एक झूठी हां ने दोनों को हद से ज्यादा विचलित कर दिया। श्रृष्टि अपना खाना फेंक कर आई और बेमन से कम में लग गई। साक्षी खाना खाने के बाद राघव के रूम में पहुंच गई।

राघव... तुमने देखा ना मेरे झूठी हां से श्रृष्टि कितना परेशान हों गईं। तुम्हें कहना ही था तो कोई ओर बात बता देती। मेरी झूठी शादी की बात कहने की जरूरत ही किया थीं। कह दिया सो कह दिया मुझे भी सच बोलने से रोक दिया। साक्षी तुम्हें ऐसा नहीं करना चहिए था।

साक्षी... सर आज जैसा हुआ कल भी श्रृष्टि का ऐसा ही हाल हुआ था बस आज आपने खुद से हां कहा तो इसका कुछ ज्यादा ही असर हुआ। इस बात से इतना तो आप जान ही गए होंगे कि श्रृष्टि भी आपसे प्यार करती हैं। अब आपको देर नहीं करना चहिए कल ही जैसा मैंने कहा था वैसे ही सभी को साथ में लंच पे ले चले और मौका देखकर प्रपोज कर दे।

राघव... एक तो वो पहले से ही मेरे साथ जानें को राजी नहीं हों रही थी उसके बाद आज जो हुआ अब तो वो बिल्कुल भी राजी नहीं होगी।

साक्षी...सर आप ट्राई तो कीजिए अगर नहीं जाती है तो मैं खुद उससे बात करके सच बता दूंगी और आगर लंच पर चल देती है त`ब आप पहले उसे सच बता देना फिर प्रपोज कर देना।

राघव... तुमने अलग ही टेंशन में डाल दिया अब तुम जाओ ओर श्रृष्टि को संभालो मैं कुछ काम कर लेता हूं फ़िर समय निकल कर एक फेरा आ जाऊंगा।

साक्षी राघव से बात करके वापस आ गई। यहां श्रृष्टि का हाल कल से ज्यादा बेहाल था वो काम पर ध्यान ही नहीं लगा पा रही थी। साक्षी कई बार बात करना चाह मगर श्रृष्टि साक्षी ही नहीं किसी से बात करने को राजी नहीं हुई। मानो उसने चुप्पी सी सद ली हों।

उधर राघव का हाल भी दूजा नही था। वो भी काम में ध्यान ही नहीं लगा पा रहा था। बार बार रह रहकर एक ही ख्याल मन में आ रहा था कि वो साक्षी की बात माना ही क्यों उसे साक्षी की बात मानना ही नहीं चाहिए था।

एक दो बार वहां गया मगर श्रृष्टि ने उस पे ज्यादा ध्यान ही नहीं दिया और श्रृष्टि को बेचैन सा देखकर इशारे इशारे में साक्षी को डांटकर चला गया।

जारी रहेगा
….



आग दोनों तरफ लगी है और साक्षी शायद मजे ले रही है या उसका कोई काम हो रहा है

ये साक्षी को समज ने में शायद मै भी धोखा खा गई हु

मुझे तो ऐसा लगता है की राघव ने साक्षी पे इतना बड़ा विश्वास क्यों किया ????
अब सृष्टि को अपने दिल की बात बोलनी ही पड़ेगी 😍
 

sunoanuj

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राघव... हां

श्रृष्टि... क्या, जिस कारण मैं DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप छोड़ा था आज वहीं कारण मेरा पीछा करते करते मुझ तक पहुंच ही गई। छी मेरी किस्मत भी कितनी बुरी हैं। मां ने बार बार कहा था मैं आगे नौकरी न करू मगर मैं उनकी एक भी नहीं माना जिसका नतीजा आज मेरे सामने वहीं लोग आ गए जिनसे पीछा छुड़ाना चाहती थीं।

"श्रृष्टि तुम गलत समझ रहीं हों राघव सर दिनेश नैनवाल जी के बेटे जैसा नहीं हैं। ये मूझसे बेहतर कोई नहीं जानता हैं। श्रृष्टि मेरी बात ध्यान से सुनो (श्रृष्टि का बाजू पकड़े खुद की ओर मोड़ा फ़िर आगे बोलीं)सर को जब पाता चला वहां दिनेश नैनवाल जी के बेटे ने तुम्हारे साथ गलत सलूक किया था। जिस कारण तुमने नौकरी छोड़ दी थीं। तब इन्होंने उनसे पॉर्टनरशिप तोड़ लिया सिर्फ़ ये सोचकर की उनके वजह से उन पर और हमारे कम्पनी पर कोई उंगली न उठाए। ये तुम भी जानती हो बीच कंस्ट्रक्शन पॉर्टनरशिप तोड़ने पर कितना हर्जाना भरना पड़ता हैं। अब भी तुम्हें लगे की सर उन जैसा हैं तो तुम गलत ख्याल अपने जेहन में पाल रखी हो।" एक सांस में साक्षी ने अपनी बात कह दी।

जिसे सुनकर श्रृष्टि अचंभित सा राघव को देखने लग गई तो राघव बोला...श्रृष्टि तुम्हें डरने की जरूरत नहीं हैं मै उन जैसा नहीं हूं और न ही उन जैसा बर्ताब करने वाले किसी भी बंदे को काम पर रखा हूं।

इतना सुनते ही सहसा श्रृष्टि की आंखे छलक आई और हाथ जोड़कर बोलीं...सर मुझे माफ़ कर देना मैं सच्चाई जानें बिना न जानें आपको क्या क्या बोल दिया और न जानें क्या क्या सोच बैठी। प्लीज़ सर मुझे माफ़ कर देना।

राघव बैठे बैठे साक्षी को इशारा किया तो साक्षी श्रृष्टि को सहारा दिया फिर राघव बोला...श्रृष्टि मैं तुम्हारी बातों का बूरा नहीं माना क्योंकि तुमने जो भी कहा अंजाने में कहा इसलिए तुम माफी न मांगो।

इतना सुनने के बाद श्रृष्टि एक बार फिर राघव को देखा तो राघव मुस्कुरा दिया देखा देखी श्रृष्टि भी मुस्कुरा दिया। कुछ देर की चुप्पी छाई रहीं फिर चुप्पी तोड़ते हुए राघव बोला... श्रृष्टि अब तो तुम इस प्रोजेक्ट के हेड बनी रहना चाहोगी और जैसे कार्य कुशलता का परिचय DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप में दिया था वैसे ही कार्य कुशलता का परिचय हमारी कम्पनी और इस प्रॉजेक्ट के लिए भी देना।

श्रृष्टि... सर आपने और खास कर साक्षी मेडम ने मुझ पर भरोसा किया हैं तो मैं आपका भरोसा टूटने नहीं दूंगी। (फिर कुछ सोचकर आगे बोलीं) सर क्या ऐसा नहीं हों सकता कि एक ही प्रोजेक्ट में दो हेड हों।

राघव... मतलब तुम साक्षी को भी अपने साथ साथ इस प्रोजेक्ट का हेड बनना चाहती हों (फिर साक्षी से मुखताबी होकर बोला) साक्षी मैंने तुमसे कहा था न श्रृष्टि की सोच अव्वल दर्जे की है देखो प्रमाण तुम्हारे सामने है।

इतना सुनकर साक्षी ने श्रृष्टि को गले से लगा लिया फ़िर बोलीं... श्रृष्टि जिस मां ने तुम्हें जन्म दिया वो मां बहुत भाग्य शाली है। मैं एक बार उस मां से मिलना चाहती हूं और पूछना चाहती हूं कि क्या खाकर तुम्हें जन्म दिया जो खुद के बारे मे सोचने से पहले दूसरे के बारे मे सोचती हैं।
वैसे मा क्या होती है मुझे नहीं पता धीरे से बोली
एक बार फ़िर से चुप्पी छा गई। कुछ देर बाद चुप्पी तोड़ते हुए श्रृष्टि बोलीं...किसी दिन समय निकालकर घर आना मिलवा दूंगी फ़िर पूछ लेना जो पूछना हों।

राघव... अच्छा सिर्फ़ साक्षी को अपनी मां से मिलवाओगी मुझे नहीं,? भाई मैने क्या गुनाह कर दिया जो मूझसे बैर कर रही हों।

"आपको तो बिल्कुल भी नहीं मिलवाना है। क्योंकि अपने मूझसे बाते छुपाया जब आप मुझे पहचान गए थे तो पहले ही बता क्यों नही दिया।" रूठने का दिखावा करते हुए श्रृष्टि बोलीं।

"हा श्रृष्टि बिलकुल भी मत बुलाना।" साथ देते हुए साक्षी बोलीं।

कुछ देर ओर बाते हुआ फिर दोनों राघव से विदा लेकर चले गए। दोनों के जाते ही राघव ने तुरंत ही फोन करके एक कॉफी का ऑर्डर दे दिया और शांत चित्त मन से कुर्सी के पुस्त से सिर टिका लिया। सहसा उसके आंखो के पोर से आंसु के कुछ बंदे बह निकला जिसे पोंछकर राघव बोला...श्रृष्टि तुम कितना भाग्य शाली हों जो कोई भी तुम्हारी मां से मिलना चाहें तो तुम खुशी खुशी उन्हें अपनी मां से मिलवा सकती हों और मैं कितना अभागा हूं कि मेरे पास ऐसा कोई शख्स नहीं हैं जिसे मां बोलकर मिलवा सकूं। एक सौतेली मां हैं जिसकी आंखों में मैं हमेशा खटकता रहता हूं उन जैसी महिला से मैं कभी किसी को मिलवा ही नहीं सकता। हे प्रभु मुझे किस जन्म के गुनाह की सजा दे रहा हैं। बस एक विनती है अगले जन्म में मुझे ऐसे मां के कोख से जन्म देना जो जीवन भर मेरे साथ रहें, अपने आंचल के छाव तले मेरे जीवन के एक एक पल को संवारे।

इतने में किसी ने भीतर आने की अनुमति माँगा। झट से राघव ने आंखो को पोछा चहरे के भाव को बदला फ़िर आए हुए शख्स को भीतर आने की अनुमति दी। भीतर आए शख्स से राघव को कॉफी दिया फ़िर चला गया।


जारी रहेगा
….



अब ये कहानी ने इमोशन पकड़ लिया

अब क्या बताऊ और क्या लिखू कुछ समज में नहीं आ रहा

साक्षी ऐसी निकलेगी पता ही नहीं था ये केरेक्टरने मुझे परेशान कर रखा है


हिरोइन श्रुष्टि है या साक्षी ????

Bhaut hi behtarin updates… story main lagta hai jaldi hee kuch naya mod aane wala hai … itni asani se kuch bhi nahin milta …..

👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
 

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अब सृष्टि को अपने दिल की बात बोलनी ही पड़ेगी 😍
well श्रुष्टि का तो पता नहीं पर मुझे डर साक्षी का लग रहा है ..................साक्षी नाम का पात्र पता नहीं कब कहा कैसे अपने रंग बदल दे कुछ भी नहीं कहा जा सकता

मुझे भी तो लग ही रहा है की श्रुष्टि को बोल देना चाहिए
 

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Bhaut hi behtarin updates… story main lagta hai jaldi hee kuch naya mod aane wala hai … itni asani se kuch bhi nahin milta …..

👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
जी आपकी बात सही है

मै इस कहानी को थोडा जल्दी ही ख़तम करने की कोशिश में हु इसलिए जो कहानी के अनुरूप नहीं है ऐसे द्रश्यो को एडिट कर रही हु

कहानी को लम्बा नही खीचना चाहती

बने रहिए थोड़ी ही देर में मै एक नया एपिसोड पोस्ट करुँगी अभी लिख रही हु शायद रोचक लगे
 
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भाग - 23


शाम होते होते श्रृष्टि का हाल ऐसा हों गया। जैसे अनगिनत तूफान उसके अंदर उमड़ रहे हो और उसके जड़ में आने वालों के परखाचे उड़ा दे।

छुट्टी का वक्त होते ही श्रृष्टि दफ़्तर से ऐसे निकली मानों वो वहां किसी को जानती ही नहीं सभी उसके लिए अजनबी हों। ये देखकर साक्षी मन ही मन खुद को कोसने लगीं। सहसा उसके ख्यालों में कुछ उपजा "नहीं वो ऐसा नहीं कर सकतीं है।" बोलते हुए तुरंत दफ्तर से बहार भागी।

जब साक्षी लिफ्ट का सहारा लेकर नीचे पहुंची। ठीक उसी वक्त श्रृष्टि उसके सामने से निकल गई। श्रृष्टि किस ओर जा रहीं है ये देखकर साक्षी तुरंत अपनी कार लेकर उस ओर चल दि।

जितनी रफ़्तार से साक्षी कार को दौड़ा सकती थी दौड़ा रहीं थीं और श्रृष्टि की रफ्तार भी कुछ कम नहीं था। वो स्कूटी की कान अंतिम छोर तक उमेठकर दौड़ाए जा रहीं थीं।

दोनों के बीच पकड़म पकड़ाई जोरों पर थीं। रास्ते पर अजबाही करती दूसरी गाडियां भी थी और कुछ ज्यादा ही था। जिससे साक्षी को आगे निकलने में कुछ दिक्कत आ रही थी मगर श्रृष्टि हल्की सी गली मिलते ही स्कूटी ऐसे निकल रहीं थी मानों उसे किसी बात की परवाह ही न हों।

ट्रैफिक से निकलकर जब खाली रस्ता मिला तब जल्दी से श्रृष्टि तक पहुंचने के लिए साक्षी ने कार की रफ्तार बड़ा दिया। जब तक साक्षी पास पहुंचती तब तक श्रृष्टि एक गली में घुस गई।

साक्षी को गली में घुसने में थोड़ा देर हों गया। जब वो गली में घुसा श्रृष्टि जा चुकी थी। अब साक्षी के सामने दुस्वरी ये थी इस अंजान गली में श्रृष्टि को ढूंढे तो ढूंढे कहा तो कार को रोक कर बोलीं... ये पगली कुछ कर न बैठें अब मैं क्या करूं उसका घर कहा है कैसे ढूंढू कोई और दिख भी नहीं रहा। हे प्रभू उसके मन में कोई गलत ख्याल न आने देना मैं कान पकड़ती हूं कभी किसी से ऐसा मजाक नहीं करूंगी तब तो बिल्कुल भी नहीं जब मामला दो दिलों का हों।

वो अपने आप को कोसती रही .......जिस चीज़ पे मेरा हक़ नहीं वो चीज़ को मै हासिल करने की चाहत में मै दो दिलो को तोड़ रही हु !!!!!!

सोच अगर ये हादसा मेरे साथ हुआ होता तो मै क्या करती ?

मुझे श्रुष्टि के बारे में सोचना चाहिए

क्या मै अपनी चाहतो में ये भी भूल गई की मै भी एक नारी हु ? और नारी के मन और दिल से खेलने पर नारी पे क्या गुजरती है?

क्या ये मेरा मजाक था ? या फिर ......


हे भगवान् मुझे माफ़ कर मेरी गलती सुधारने का एक मौक़ा दे मेरी खातिर नहीं तो उस भोली नादान लड़की के लिए
 
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