• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Romance श्रृष्टि की गजब रित

Funlover

I am here only for sex stories No personal contact
14,860
20,717
229
बेटी की बातों ने माताश्री को कुछ पल के लिए भावुक कर दिया फिर अपने भावनाओं को काबू करके बेटी का गाल सहला दिया और उसी हाथ को चूम कर बोलीं... कभी कभी तू ऐसी बातें कह देती हैं जिसे सुनकर लगता हैं। मैं तेरी मां नहीं तू मेरी मां हैं। मगर अगले ही पल कुछ ऐसा कह देती है जिसे सुनकर लगता हैं तेरे से बड़ा मूर्ख कोई ओर नहीं हैं।


"मां" ऐसे बोलीं जैसे पसंद नहीं आया


"क्या मां, तुझे पाता नहीं वो ऑटो चलाते हैं तो ऑटो स्टैंड पर ही मिलेंगे इसके अलावा तुझे कोई ओर जगह पाता हों तो चली जा।"


श्रृष्टि…ये तो मैं भी जानती हूं और सोचा भी यही था। मैं तो बस आपसे कन्फर्म कर रहीं थीं। वैसे मै आते जाते उस मोड़ पे देखती तो हु पर वो कही दिखाई नहीं देते


"अच्छा, मतलब मां को मामू बना रहीं थीं।"


श्रृष्टि... नहीं नहीं मां को मां बनना रहीं थीं। वो क्या है कि मेरी मां अपनी बेटी को अपनी मां बनाने पर तुली है ही ही ही।


इतना बोलकर श्रृष्टि भागी "ठहर जा तुझे अभी बताती हूं" इतना बोलकर माताश्री भी श्रृष्टि के पीछे भाग्गी लगा दी। मा को तंग करती है ???


ऐसे ही अगले तीन से चार दिन बीत गया। इन्हीं दिनों श्रृष्टि और साक्षी की देख रेख में पुर जोर काम चलता रहा। इन्हीं दिनों पूर्व की दिनों की तरह प्रत्येक दिन राघव लंच के समय उन्हीं के साथ लंच करने आ जाता था। राघव के मन में क्या हैं इससे ना श्रृष्टि अंजान थीं ना ही साक्षी अंजान थीं। ऐसे ही एक दिन जब राघव सभी के साथ लंच कर रहा था तो एक साथी बोला... सर कई दिनों से गौर किया हैं। आप लगभग प्रत्येक दिन हमारे साथ लंच करने आ जाते हैं। जान सकता हूं ऐसा क्यों?


"हां सर मैंने भी देखा हैं। ऐसी क्या बात हों गई जो आप लंच हमारे साथ ही करते हों जबकि और भी बहुत लोग यहां काम करते हैं। इससे बडी बात ये कि आप या तो अपने कमरे में लंच करते हों या कैंटीन में फिर सहसा क्या हों गया जो आप सिर्फ हमारे साथ ही लंच करने आ जाते हों।" नज़र फेरकर श्रृष्टि को देखा फ़िर साथी का साथ देते हुए साक्षी बोलीं।


"बस मन करता हैं इसलिए आ जाता हूं। इसके अलावा कोई ओर खास बात नहीं हैं आगर तुम सभी को बूरा लगता है तो कल से नहीं आऊंगा।" इतनी बात राघव ने श्रृष्टि को देखकर मुस्कुराते हुए कहा बदले में श्रृष्टि भी मुस्कुरा दिया और सिर झुका कर खाना खाने लग गईं। ये सभी एक्टिविटी साक्षी से छुप तो नहीं सकती थी अब


साक्षी... सर अपने जो वजह बताया वो तो ठीक हैं फ़िर भी मुझे लगता है हम में से कोई आपको भा गया हैं इसलिए आप उसके साथ वक्त बिताने के बहाने हमारे साथ लंच करने आ जाते हों।


इतना सुनते ही श्रृष्टि को ढचका लग गई और वो खो खो खो खांसने लग गई। श्रृष्टि के बगल में ही साक्षी बैठी थी वो तुंरत संभली और श्रृष्टि की ओर पानी का गिलास बढ़ा दिया फिर पीठ सहलाते हुए बोलीं... अरे श्रृष्टि तुम्हारा ध्यान किधर हैं। कम से कम भोजन के वक्त तो अपना ध्यान भोजन पर दो।


राघव… श्रृष्टि तुम ठीक तो हों न।


श्रृष्टि...जी मैं ठीक हूं बस...।


"बस तुम्हारा ध्यान काम पर था और जल्दी से खाना खाकर काम पर लगना था। अरे भाई कम से कम खाना खाते वक्त तो काम से ध्यान हटा लो। यहां ध्यान देने के लिए कुछ ओर भी हैं जरा उन पर भी ध्यान दे दो।"


श्रृष्टि का अधूरा वाक्य पूरा करते हुए साक्षी बोलीं साथ ही अपने तरफ से भी जोड़ दिया। जिसे सुनकर राघव मुस्कुरा दिया। लेकिन श्रृष्टि आंखे मोटी मोटी करके साक्षी को देखने लग गई। जिसे देखकर साक्षी बोलीं... अरे तुम मुझे खा जानें वाली नजरों से क्यों देख रही हों खाना ही हैं तो भोजन खाओ ही ही ही।


श्रृष्टि इतना तो समझ ही गई की साक्षी तफरी काट रहीं है और बातों ही बातों में राघव की ओर ध्यान देने की बात कह रही हैं। इसलिए बिना कुछ बोले चुप चाप भोजन करने लग गईं।


कुछ ही देर में भोजन समाप्त करके राघव चला गया और बाकि सब अपने अपने काम में लग गए। ऐसे ही दिन बीतने लगा और इतवार का दिन भी आ गया।



जारी रहेगा...


अब इसमें तो कुछ खास लगता नहीं प्रेम कहानी पनप रही है और साक्षी पता नहीं हेल्प कर रही है अपना काम .......
 

Funlover

I am here only for sex stories No personal contact
14,860
20,717
229
भाग - 20



इतवार की सुबह लगभग 10 बजे के करीब श्रृष्टि नजदीक के ऑटो स्टैंड चली गई। कई सारे ऑटो सवारी के इंतजार में खड़े थे। चकरी, चकरी, चकरी, बस एक सवारी चहिए चकरी की, मेढा, मेढा, मेढा, मेढा जानें वालो इधर आ जाओ, ये मामू हट न सामने से सवारी आने दे, अरे ओ... हां हां तुझे बोल रहा हूं अपना डिब्बा हटा मुझे जाना है।

तरह तरह की आवाजे वहां गूंज रहा था। कोई सवारी हातियाने के लिए सवारी का सामान खुद उठा ले रहे थे। तो कोई "अरे माताजी आप मेरे ऑटो में बैठिए बस चलने ही वाला हूं" बोल रहा था। इन्हीं आवाजों के बीच श्रृष्टि एक चेहरे को बड़े बारीकी से ढूंढ रहीं थी। कई ऑटो वाले उसे सवारी समझकर अपने ऑटो में बैठने को कह रहा था।

श्रृष्टि उन पर ध्यान न देकर आगे बढ़ जाती। तो ऑटो वाला "अरे मैम कहा जाना है जगह तो बताओं आपको वहा तक छोड़ आऊंगा" पीछे से बोल देता। श्रृष्टि इन पर ध्यान न देखकर सिद्दत से उस खास शख्स को ढूंढने में लगी हुई थीं।

श्रृष्टि को आए वक्त काफी हों चूका था। धूप की तपन बीतते वक्त के साथ बढ़ता जा रहा था। बिना इसकी प्रवाह किए माथे पर आई पसीना को पोछकर उस शख्स को ढूंढने में लगीं हुईं थीं। सहसा एक ऑटो आकर वहा रूका। चालक को ध्यान से देखने के बाद एक खिला सा मुस्कान श्रृष्टि के होठो पर तैर गया और श्रृष्टि उस ऑटो वाले की ओर बढ़ गइ।

सवारी समझकर ऑटो वाला बोला...बेटी आपको कहा जाना हैं।

"अंकल मैं आज आपकी ऑटो की सवारी करने नहीं आई हूं बल्कि आपसे मिलने आई हूं।" मुस्कुराते हुए श्रृष्टि बोलीं

"मूझसे पर क्यों? मैं तो तुम्हें जानता भी नही।"

श्रृष्टि... अंकल आप भूल गए होंगे मगर मैं नहीं भुली आज से लगभग एक महीना पहले आपने मेरी मदद कि थी। जिससे मुझे नौकरी मिली थी। धन्यवाद अंकल सिर्फ आपके कारण ही मुझे नौकरी मिला था। ये लिजिए...।

इतना कहकर श्रृष्टि अपने साथ लाई थैली को चालक की और बढ़ा दिया। चालक अनभिज्ञता का परिचय देते हुए श्रृष्टि का मुंह ताकने लग गया।

"क्या हुआ अंकल ऐसे क्यों देख रहें हों। लगता हैं आपको सच में मैं याद नही रहा चलिए कोई बात नहीं मैं आपको याद करवा देती हूं।"

इसके बाद श्रृष्टि ने उस दिन की घटना सूक्ष्म रूप में सूना दिए जिसे सुनकर चालक बोला…ओहो तो तुम हों चलो अच्छा हुआ बेटा जो उस दिन तुम्हें नौकरी मिल गई। मगर मैं ये नहीं ले सकता। बेटी मैंने तो उस दिन एक इंसान होने के नाते इंसानियत का फर्ज निभाया था।

श्रृष्टि...उस दिन अपने अपना फर्ज निभाया था आज मैं अपना फर्ज निभा रहीं हूं। वैसे भी अपने मुझे बेटी कहा हैं। बेटी कुछ दे तो मना नहीं करते।

"पर...।"

"पर वर कुछ नहीं बस आप रख लिजिए। प्लीज़ अंकल जी।" बचकाना भाव से श्रृष्टि बोलीं

"अच्छा अच्छा ठीक है लाओ दो। वैसे इसमें हैं क्या?।" हाथ में लेकर परखते हुए चालक बोला

श्रृष्टि... जो भी है आप बाद में देख लेना अभी आप अपना कॉन्टेक्ट नम्बर दे दिजिए मुझे जब भी कहीं आने जानें की जरूरत पड़ेगी मैं आपको बुला लिया करूंगी। आप आयेंगे न अंकल जी।

"हां हां आ जाऊंगा।" अपना संपर्क सूत्र देते हुए बोला

चालाक का संपर्क सूत्र लेकर श्रृष्टि चल दिया। वहां मौजुद एक लड़का यह सब देख और सुन रहा था। श्रृष्टि के जाते ही चालक के पास आया ओर बोला...अंकल ये लड़की थोड़ा अजीब हैं न, भाला कौन ऐसा करता हैं।

"अजीब तो हैं जहां लोग अपनो से मदद लेकर भूल जाते है वहां इस जैसी भी है जो एक अंजान के मदद करने पर भी उसे भूली नहीं बल्कि उसे ढूंढते हुए आ गई।"

"चलो अच्छा है अब देख भी लो क्या देकर गई हैं। बाद में पाता चला थैला सिर्फ दिखने में भारी है उसमे कुछ है ही नहीं।"

"क्या है क्या नहीं तुझे उससे क्या करना हैं। मैं इतना तो जान गया हूं इसमें कुछ न कुछ है अगर कुछ नहीं भी हुआ। तब भी मेरे लिए इतना ही काफी है वो मेरा किया मदद भुला नहीं और मुझे ढूंढते हुए यह तक आ गई। चल जा अपना काम कर और मुझे अपना काम करने दे।" टका सा जवाब दे दिया

इतना बोल ऑटो वाला ऑटो बढ़ा दिया और लड़का "मैं तो बस ऐसे ही बोल रहा था। इन्हे तो बूरा लग गया चलो यार जाने दो अपने को क्या करना मैं अपना काम करता हूं वैसे भी सुबह से एक भी सवारी नहीं मिला।" बोलते हुए अपने ऑटो की ओर चला गया।



ठीक उसी समय जब श्रुष्टि उस ओटो वाले को ढूंढने गई थी तब घर पर माताश्री........


 

Funlover

I am here only for sex stories No personal contact
14,860
20,717
229
ठीक उसी समय जब श्रुष्टि उस ओटो वाले को ढूंढने गई थी तब घर पर माताश्री........
मा सोच रही थी पिछले कुछ दिनों से श्रुष्टि में काफी बदलाव आ गया है

पहेले सिर्फ समीक्षा से रमत करती थी खेर वो तो आजकल इस जमाने ने सब चलता है और दो सहेलियों की बात है मुझे उस तरफ नहीं सोचना चाहिए और उसमे मुझे कोई आपत्ति भी नहीं है

लेकिन आजकल देख रही हु की वो बाथरूम में कुछ ज्यादा समय ले रही है

अपने शरीर के रखरखाव पर कुछ ज्यादा ही ध्यान दे रही है

पेहले वो कभी बिंदी नहीं लगाती थी और जब मै कहती थी की बेटा बिंदी स्त्री का एक सौन्दर्यवर्धक साधन है तब कहती थी मा ये सब एक दिखावा है ऐसा कुछ नही ये सब आप लोगो के जमाने के तौरतरीके है और आजकल वो बिंदी लगा के ऑफिस जाती है

पहले वो अपने कपडे पे कुछ ध्यान ही नहीं देती थी आजकल वो मेचिंग कपडे पहेनके जाती है कपडे के चुनाव और पहेर्वेश में काफी फर्क आ गया है

पहेले दुपट्टा अपने स्तनों को ढके हुए से रखती थी आजकल वो सिर्फ एक साइड में रख के जाती है

जब देखो अपने शरीर को देखे हुए रहती है

कभी कभी अपने विचारो में खोई हुई लगती है जैसे दुनिया में वो है ही नहीं

कभी कभी बिना कारण मुस्कुराती रहती है ..........

क्या मै वोही सोच रही हु ????

क्या उसे कोई भा गया है ?????

क्या वो राघव ही तो नहीं ????

अगर ऐसा है तो मुझे क्या करना चाहिए ???

कैसे समजाऊ इस लड़की को ??? क्या वो भी मेरी तरह .............

नहीं नहीं नहीं कभी नहीं मेरी लड़की मेरी श्रुष्टि ऐसा कुछ नहीं कर सकती और वो ऐसा सह भी नहीं सकती, भोली बच्छी है मेरी

हे भगवान मुझे ऐसे विचार क्यों आ रहे है ?????



अरे ऐसा कुछनही हर पुरुष ऐसा होता तो दुनिया कैसे चलती ????

पता है मुझे पर हर पुरुष को चख भी तो नहीं सकते ????

सभी अच्छे है और होते है पर नशीब खराब हो तो ...........

साली तेरे मन में बस ऐसा ही आएगा तू कभी अच्छा सोच ही नहीं सकती

क्यों की मै मा हु

तो क्या दुनिया में कोई मा है ही नहीं ????? मा है तो आजन्म उसकी साथ रहेगी ????

अच्छा भी तो सोच लिया कर

कि लड़का देखने में सुन्दर हो मेरी बेटी के मुकाबले में भले ही थोडा श्याम हो पुरुष तो होते ही ऐसे है काले पर दिल का अच्छा हो मेरी बेटी को पलकों पे रखे ऐसा हो उसमे जितना प्रेम भरा हो सब मेरी बेटी पे न्योछावर करता हो प्रेम के पलो में भी और आम जिंदगी में भी ..........

ऐसा सोच तेरी तबियत अच्छी रहेगी वर्ना जल्दी ही मरेगी

अब सब सहो हो रहा है ना भगवान मुझे उसके दुःख दे दो और उसको बस खुशिया देदो बिना बाप की लड़की है ........


ऐसे ही कुछ गंदे और अच्छे की सोच में डूबी हुई थी की डोर बेल बजो और श्रुष्टि अपना काम निपटा के हस्ती हसती अन्दर आ गई .....
 

Funlover

I am here only for sex stories No personal contact
14,860
20,717
229
यूं ही दिन पर दिन बीत रहा था और राघव लगभग प्रत्येक दिन श्रृष्टि के पास लंच करने पहुंच जाता था। इस बात का फायदा साक्षी बखूबी उठा रहीं थी। मौका देख दोनों को छेड़ देती और कुछ ऐसा कह देती जिसके जड में दोनों आ जाते। राघव तो खुद को संभाल लेता लेकिन श्रृष्टि खुद को संभाल नहीं पाती और उसे धाचका लग जाता।

श्रृष्टि राघव की हरकतों को बखूबी समझ रहीं थी और उसके दिल में भी राघव के लिए जगह बन चूकी थी फ़िर भी न जानें क्यों चुप सी रहती। राघव जब भी छुट्टी वाले दिन यानी इतवार वाले दिन लंच या फिर शाम की चाय पे मिलने की बात कहता तो काम न होते हुए भी बहना बनाकर टाल देती।

श्रृष्टि का ऐसा करना राघव के समझ से परे था। कभी कभी राघव को लगता श्रृष्टि के दिल में उसके लिए जगह बन चूका हैं और शायद वो भी उससे प्यार करने लगीं हैं फिर राघव के साथ अकेले मिलने से मना कर देने पर राघव को लगता शायद जैसा वो सोच रहा है वैसा कुछ नहीं हैं। मगर फिर श्रृष्टि के हाव भाव उसके सोच को बदल देता।

श्रृष्टि के इसी व्यवहार के चलते राघव परेशान सा रहने लगा। परेशानी का हाल कैसे ढूंढा जाएं इसका रास्ता उसे सूज नहीं रहा था।

राघव की परेशानी में उसकी सौतेली मां ओर इजाफा कर देती। जब भी कोई रास्ता सुजता और उस पर अमल करने की सोचता ठीक उसी दिन उसकी सौतेली मां वबाल करके उसके दिमाग को दिशा से भटका देता।

ऐसे ही एक दिन राघव सुबह सुबह वबाल करके बिना कुछ खाए पिए घर से निकल ही रहा था कि उसके पिता ने उसे रोका और घर से बहार लाकर बोला... राघव बेटा मुझे माफ़ करना मेरे एक भूल की सजा तुझे भुगतना पड रहा हैं।

राघव... आह पापा आप से कितनी बार कहा है आप माफी न मांगा करे आपने तो मेरे भले के लिए सोचा था मगर शायद मैं ही इतना मनहूस हूं जिसके किस्मत में मां की ममता लिखा ही नहीं है।

तिवारी... ये बात तू गलत कह रहा हैं तू मनहूस नहीं है अगर तू मनहूस होता तो मेरी ज़िम्मेदारी अपने कंधे पर लेते ही मेरा धंधा दिन दुगुनी और रात चौगुनी तरक्की नहीं कर रहा होता।

राघव…वो तो सिर्फ़ मेरी मेहनत की वजह से हों रहा हैं। पापा मैं सोच रहा था। अभी अभी जो प्लॉट लिया है मैं उसी में जाकर रहने लग जाऊं। इसे न मैं इनके सामने रहूंगा ओर न ही रोज रोज कहासुनी होगा।

तिवारी…ऐसा सोचने से पहले एक बार अपने इस बूढ़े बाप के बारे मे भी सोच लेता जो तेरे सहारे जीने की आस जगाए जी रहा हैं।

राघव...आप की बाते सोचकर ही तो अब तक चुप रहा लेकिन अब ओर सहन नहीं होता। आप भी चल देना दोनों बाप बेटे साथ में रहेंगे।

तिवारी... अच्छा ओर इस घर का क्या होगा? जिसे तेरी मां ने खुद अपने पसंद से बनवाया था एक एक कोना खुद अपने हाथों से सजाया था। आज भी उसकी यादें इस घर में बसी है मैं उसे छोड़कर कहीं ओर जा ही नहीं सकता हूं। तू क्या समजता है बेटा मै यहाँ इस औरत के लिए हु ??? नहीं मै यहाँ तेरी मा के लिए हु वो अभी भी मेरे साथ है तुम नहीं समज सकोगे बेटे

राघव... आप जा नहीं सकते मुझे जाने नहीं दे रहे। गजब की किस्मत लिखवा कर लाया हूं अब तो लगता है जिंदगी भर ऐसे ही ताने सुन सुनकर जीना होगा।

तिवारी... सब्र रख ऊपर वाले पर भरोसा रख वो जरूर हम बाप बेटे के लिए कुछ न कुछ करेगा।

राघव... पापा वो कुछ नहीं करता बस रास्ता दिखा देता हैं। अच्छा आप भीतर जाइए नहीं तो वो बहार आ गई तो फ़िर से शुरू हो जायेगी।

तिवारी... ठीक हैं जाता हूं और तू दफ्तर पहुंचने से पहले कुछ खां लेना।

राघव... कैंटीन में खा लूंगा

बाप से कहकर राघव चल तो दिया पर उसकी मनोदशा ठीक नहीं थी। अभी अभी जो बाते बरखा ने कहा था उसका एक एक शब्द राघव के कानों में गूंज रहा था। "तू इतना मनहूस हैं की पैदा होने के कुछ साल बाद अपने मां को खा गया अब मेरे खुशियों को खा रहा हैं। तुझसे मेरी खुशी देखी नहीं जाती इसलिए मेरे बेटे को मूझसे दूर भेज दिया। उसके जगह तू ही चला जाता कम से कम मुझे तेरा मनहूस सूरत तो न देखना पड़ता।"

इन्हीं शब्दों ने राघव के मन मस्तिस्क पर कब्जा जमा रखा था। उससे कार चलाया नहीं जा रहा था इसलिए कार को रोड साइड रोक दिया और भीगी पलकों को पोछकर अपना मोबाईल निकलकर गैलरी में से एक फोटो ढूंढ निकाला और उसे देखते हुए बोला...मां तू मुझे छोड़कर क्यों चली गई। मैं मनहूस हूं इसलिए तूने भी मूझसे पीछा छुड़ाने ले लिए वक्त से पहले भगवान के घर चली गई है न बोल मां बोल न।

"मेरा राजा बेटा मनहूस नहीं हैं।" सहसा एक आवाज राघव के कानों में गूंजा।


जारी रहेगा
….

काफी इमोशन से भरा दोनों घर में कोई अपनी मा के लिए रो रहा है तो कोई अपनी बेटी के लिए

दोनों घरो में कुछ ना कुछ अंदेशा है क्या करे .......
 

vickyrock

Active Member
607
1,575
139
यूं ही दिन पर दिन बीत रहा था और राघव लगभग प्रत्येक दिन श्रृष्टि के पास लंच करने पहुंच जाता था। इस बात का फायदा साक्षी बखूबी उठा रहीं थी। मौका देख दोनों को छेड़ देती और कुछ ऐसा कह देती जिसके जड में दोनों आ जाते। राघव तो खुद को संभाल लेता लेकिन श्रृष्टि खुद को संभाल नहीं पाती और उसे धाचका लग जाता।

श्रृष्टि राघव की हरकतों को बखूबी समझ रहीं थी और उसके दिल में भी राघव के लिए जगह बन चूकी थी फ़िर भी न जानें क्यों चुप सी रहती। राघव जब भी छुट्टी वाले दिन यानी इतवार वाले दिन लंच या फिर शाम की चाय पे मिलने की बात कहता तो काम न होते हुए भी बहना बनाकर टाल देती।

श्रृष्टि का ऐसा करना राघव के समझ से परे था। कभी कभी राघव को लगता श्रृष्टि के दिल में उसके लिए जगह बन चूका हैं और शायद वो भी उससे प्यार करने लगीं हैं फिर राघव के साथ अकेले मिलने से मना कर देने पर राघव को लगता शायद जैसा वो सोच रहा है वैसा कुछ नहीं हैं। मगर फिर श्रृष्टि के हाव भाव उसके सोच को बदल देता।

श्रृष्टि के इसी व्यवहार के चलते राघव परेशान सा रहने लगा। परेशानी का हाल कैसे ढूंढा जाएं इसका रास्ता उसे सूज नहीं रहा था।

राघव की परेशानी में उसकी सौतेली मां ओर इजाफा कर देती। जब भी कोई रास्ता सुजता और उस पर अमल करने की सोचता ठीक उसी दिन उसकी सौतेली मां वबाल करके उसके दिमाग को दिशा से भटका देता।

ऐसे ही एक दिन राघव सुबह सुबह वबाल करके बिना कुछ खाए पिए घर से निकल ही रहा था कि उसके पिता ने उसे रोका और घर से बहार लाकर बोला... राघव बेटा मुझे माफ़ करना मेरे एक भूल की सजा तुझे भुगतना पड रहा हैं।

राघव... आह पापा आप से कितनी बार कहा है आप माफी न मांगा करे आपने तो मेरे भले के लिए सोचा था मगर शायद मैं ही इतना मनहूस हूं जिसके किस्मत में मां की ममता लिखा ही नहीं है।

तिवारी... ये बात तू गलत कह रहा हैं तू मनहूस नहीं है अगर तू मनहूस होता तो मेरी ज़िम्मेदारी अपने कंधे पर लेते ही मेरा धंधा दिन दुगुनी और रात चौगुनी तरक्की नहीं कर रहा होता।

राघव…वो तो सिर्फ़ मेरी मेहनत की वजह से हों रहा हैं। पापा मैं सोच रहा था। अभी अभी जो प्लॉट लिया है मैं उसी में जाकर रहने लग जाऊं। इसे न मैं इनके सामने रहूंगा ओर न ही रोज रोज कहासुनी होगा।

तिवारी…ऐसा सोचने से पहले एक बार अपने इस बूढ़े बाप के बारे मे भी सोच लेता जो तेरे सहारे जीने की आस जगाए जी रहा हैं।

राघव...आप की बाते सोचकर ही तो अब तक चुप रहा लेकिन अब ओर सहन नहीं होता। आप भी चल देना दोनों बाप बेटे साथ में रहेंगे।

तिवारी... अच्छा ओर इस घर का क्या होगा? जिसे तेरी मां ने खुद अपने पसंद से बनवाया था एक एक कोना खुद अपने हाथों से सजाया था। आज भी उसकी यादें इस घर में बसी है मैं उसे छोड़कर कहीं ओर जा ही नहीं सकता हूं। तू क्या समजता है बेटा मै यहाँ इस औरत के लिए हु ??? नहीं मै यहाँ तेरी मा के लिए हु वो अभी भी मेरे साथ है तुम नहीं समज सकोगे बेटे

राघव... आप जा नहीं सकते मुझे जाने नहीं दे रहे। गजब की किस्मत लिखवा कर लाया हूं अब तो लगता है जिंदगी भर ऐसे ही ताने सुन सुनकर जीना होगा।

तिवारी... सब्र रख ऊपर वाले पर भरोसा रख वो जरूर हम बाप बेटे के लिए कुछ न कुछ करेगा।

राघव... पापा वो कुछ नहीं करता बस रास्ता दिखा देता हैं। अच्छा आप भीतर जाइए नहीं तो वो बहार आ गई तो फ़िर से शुरू हो जायेगी।

तिवारी... ठीक हैं जाता हूं और तू दफ्तर पहुंचने से पहले कुछ खां लेना।

राघव... कैंटीन में खा लूंगा

बाप से कहकर राघव चल तो दिया पर उसकी मनोदशा ठीक नहीं थी। अभी अभी जो बाते बरखा ने कहा था उसका एक एक शब्द राघव के कानों में गूंज रहा था। "तू इतना मनहूस हैं की पैदा होने के कुछ साल बाद अपने मां को खा गया अब मेरे खुशियों को खा रहा हैं। तुझसे मेरी खुशी देखी नहीं जाती इसलिए मेरे बेटे को मूझसे दूर भेज दिया। उसके जगह तू ही चला जाता कम से कम मुझे तेरा मनहूस सूरत तो न देखना पड़ता।"

इन्हीं शब्दों ने राघव के मन मस्तिस्क पर कब्जा जमा रखा था। उससे कार चलाया नहीं जा रहा था इसलिए कार को रोड साइड रोक दिया और भीगी पलकों को पोछकर अपना मोबाईल निकलकर गैलरी में से एक फोटो ढूंढ निकाला और उसे देखते हुए बोला...मां तू मुझे छोड़कर क्यों चली गई। मैं मनहूस हूं इसलिए तूने भी मूझसे पीछा छुड़ाने ले लिए वक्त से पहले भगवान के घर चली गई है न बोल मां बोल न।

"मेरा राजा बेटा मनहूस नहीं हैं।" सहसा एक आवाज राघव के कानों में गूंजा।


जारी रहेगा….

काफी इमोशन से भरा दोनों घर में कोई अपनी मा के लिए रो रहा है तो कोई अपनी बेटी के लिए

दोनों घरो में कुछ ना कुछ अंदेशा है क्या करे .......
बहुत ही बेहतरीन कहानी एक तरफ हर लेखक सिर्फ सेक्स स्टोरी पर ध्यान दे रहा है बहीं आपकी ये इमोशन से भरपूर कहानी अलग ही रोमांटिक स्टोरी है 👌
 

Funlover

I am here only for sex stories No personal contact
14,860
20,717
229
बहुत ही बेहतरीन कहानी एक तरफ हर लेखक सिर्फ सेक्स स्टोरी पर ध्यान दे रहा है बहीं आपकी ये इमोशन से भरपूर कहानी अलग ही रोमांटिक स्टोरी है 👌
जी सही कहा आपने तभी तो मेरे पास बहोत कम पाठक है ...............

खेर अगली कहानी मेरी भी सेक्स पे आधारित होगी पर कहानी होगी उसमे उतना ही सेक्स डालूंगी जितना जरुरत होगी मेरे हिसाब से ............मुझे कहानी में सेक्स पसंद है सेक्सुअल प्रसंगों में कहानी नहीं ............ कहानी ऐसी होनी चाहिए जिसे पाठक को पकड़ के रखे आगे क्या हो सकता है उसका अनुमान करता नजर आना चाहिए .............मै खुद भी कहानी लिखते ऐसा ही करती हु
और पढ़ते समय भी ........ सेक्स अच्छा लगता है और होना भी चाहिए पर जितना कहानी में जरुरी हो .........पात्र के अनुरूप ...परिश्थिति के अनुरूप .....

खेर मै इस कहानी को भी सेक्सुअल बना सकती थी जैसे दो सहेलियों में ओपन बातचीत जो नॉर्मली होती ही है ........अरमान का छेड़ना उसे मै 2 एपिसोड बना सकती थी .....राघव और साक्षी के संबंध को भी सेक्स करा सकती थी .... मा बेटी के संवाद लिख सकती थी ......हो सके तो लेस्बो सम्बन्ध भी डेवलप कर सकती थी ....पर ऐसा नहीं किया क्यों की एक स्वच्छ कहानी पेश करना चाहती थी ........जो सभी लोग पढ़ सके शायद पाठक लोग अपने जान पहचान वालो की भी पढ़ा सके ........

खेर चलिए लेक्चर बहोत हुआ शायद

अब कहानी में थोडा आगे बढ़ते है .................

धन्यवाद आपका vickyrock जी आपने मेरी इस कहानी में रस लिया और पढ़ते है ,,,,, उम्मीद रखती हु समाप्ति तक बने रहेंगे ............और जुड़े रहेंगे .............
 
  • Love
Reactions: vickyrock

Funlover

I am here only for sex stories No personal contact
14,860
20,717
229
भाग - 21


"मेरा राजा बेटा मनहूस नहीं हैं" ये आवाज कानों में गूंजते ही राघव दाएं, बाएं, पीछे देखने लग गया मगर उसे ऐसा कोई नहीं दिखा जिसने यह शब्द कहा हों। जब कोई नहीं दिखा तो राघव एक बार फिर मां की फ़ोटो देखते हुए बोला... मां इस जन्म में भले ही आप मूझसे पीछा छुड़ा लिया लेकिन अगले जन्म में फिर से आपका बेटा बनकर आऊंगा तब आपको बहुत परेशान करुंगा। आप मुझसे पीछा छुड़ाना चाहोगी तब भी नहीं छोडूंगा।

राघव मां की फ़ोटो देखकर बाते करने में लगा हुआ था। बातों के बीच उसका फ़ोन बजा कुछ देर बात करने के बाद राघव चल दिया।

दृश्य में बदलाव

श्रृष्टि सुबह जब दफ्तर आई तब सामान्य थीं। मगर आने के कुछ देर बाद असामान्य व्यवहार करने लग गई। काम करते करते उठकर द्वार के पास जाकर खड़ी हो जाया करती। कुछ पल खड़ी रहती फिर जाकर काम में लग जाती। कुछ देर काम करती फ़िर द्वार पर चली जाती कुछ देर खड़ी रहती फिर आकर काम में लग जाती। अबकी बार जैसे ही श्रृष्टि उठकर द्वार की और जानें लगी तब साक्षी रोकते हुए बोलीं... श्रृष्टि क्या हुआ ऐसा क्यों कर रहीं हैं। किस बात की बेचैनी हैं जो दो पल कही ठहर ही नहीं रहीं हैं।

"कुछ नहीं" बस इतना ही बोलीं और द्वार की ओर चल दिया। कुछ देर खड़ी रहीं फ़िर भागती हुई साक्षी के पास पहुचा और बोला... साक्षी मैम सर कुछ परेशान सा लग रहे हैं जाइए न पूछकर आइए क्या हुआ हैं?

"सर की इतनी फिक्र है तो तू ही जाकर पूछ ले।" मुस्कुराते हुए साक्षी बोलीं

"साक्षी मैम प्लीज़ जाइए न।" विनती करते हुए बोलीं

साक्षी... अच्छा बाबा जाती हूं।

इतना कहकर साक्षी चली गई और कुछ ही देर में वापिस आ गई। आते ही श्रृष्टि बोलीं…बात हों गई।!! क्या हुआ कुछ पाता चला।?

साक्षी... नहीं रे सर अभी बिजी हैं थोड़ी देर में खुद ही बुला लेंगे।

कुछ जानने का मन हो ओर उस बारे में पाता न चले तो मन अशांत सा रहता हैं और जानने की बेचैनी बीतते पल के साथ बढ़ता जाता है। वैसे ही कुछ श्रृष्टि के साथ हों रहा था। उसे राघव की परेशानी जानना था मगर अभी तक कुछ पता नहीं चल पाया। इसलिए श्रृष्टि काम तो कर रहीं थी लेकिन ध्यान उसका काम में न होकर कहीं ओर ही था।

यह बात साक्षी समझ रहीं थी और मन ही मन मुस्कुरा रहीं थीं। खैर कुछ वक्त बीता ओर फिर से श्रृष्टि साक्षी के पास जाकर बोलीं... मैम अभी जाकर देखिए न शायद सर फ्री हो गए होंगे।

साक्षी...बोला न सर खुद ही बुला लेंगे। अच्छा एक बात बता सर परेशान हैं। उससे तू क्यों इतना बैचेन हो रही हैं?

"पता नहीं" झेपते हुए श्रृष्टि ने जवाब दिया। इतने में साक्षी का फ़ोन बज उठा। फोन देखकर साक्षी बोलीं... ले सर का फ़ोन आ गया।

"जाइए न जल्दी से पूछ आइए" बेचैनी से श्रृष्टि बोलीं

"अरे बेबी जाती हूं। हेलो सर...।" फ़ोन रिसीव करके बात करते हुए साक्षी चली गई।

राघव के पास पहूंचकर भीतर जाने की अनुमति लेकर जैसे ही भीतर गइ। राघव ने सवाल दाग दिया।

"साक्षी कुछ काम था।?"

साक्षी…सर मुझे कोई काम नहीं था काम तो आपके दिलरुबा को था। उसी ने भेजा हैं।

राघव... दिलरुबा ... ओ श्रृष्टि को, उसे काम था तो खुद आ जाती।

साक्षी... वो आ जाती तो आप उसकी बेचैनी भाप नहीं लेते। अच्छा ये बताइए आप परेशान किस बात से हों।

राघव...बेचैनी उसे किस बात की बेचैनी हैं और रहीं बात परेशानी की तो तुम खुद ही देख लो, क्या मैं तुम्हें परेशान लग रहा हूं?

साक्षी...बेचैनी तो होगी ही आपने आदत जो लगा दिया। दफ्तर आते ही मिलने पहुंच जाओगे आज जब नहीं आए तब से एक पल एक जगह ठहर ही नहीं रहीं थीं। बार बार द्वार पर आकर खड़ी हों जाती तभी शायद आप उसे दिख गई होगी और भागते हुए मेरे पास आकर मुझे यहां भेज दिया कि आपको क्या परेशानी है जानकर आऊ।

राघव…वाहा जी वाहा कमाल की लङकी से पाला पड़ा हैं। दो पल निगाह क्या टकराया उसी में जान लिया मैं परेशान हूं जबकि कोई ओर जान ही नहीं पाया और इतने दिनों से मेरे दिल में क्या है उससे अनजान बनी हुई हैं।

साक्षी...अनजान बनी हुई है तो खुद से कह दो आगे बड़ो और प्रपोज कर दो फिर समझ जायेगी।

 

Funlover

I am here only for sex stories No personal contact
14,860
20,717
229
राघव... क्या खाक आगे बढूं जब वो खुद से आगे ही नहीं बढ़ रहीं हैं। कितनी बार उसे इतवार को लंच या फिर शाम को चाय पर मिलने को बोला मगर हर बार कोई न कोई बहाना बनाकर टाल देती है। अब तुम ही बताओं मैं करूं तो करूं क्या?

"उहुम्म ( कुछ सोचते हुए साक्षी आगे बोलीं) अभी से इतने नखरे पता नहीं बाद में श्रृष्टि आपका क्या हाल करेंगी ही ही ही।

राघव...एक बार हां तो कर दे फ़िर चाहें जितने नखरे करना हों कर ले मैं बिना उफ्फ किए सह लूंगा। अब तुम मेरी खिल्ली उडाने के जगह कोई रस्ता हों तो बताओं।

साक्षी...उफ्फ ये प्रेम रोग मुझे कब लगेगा। खैर छोड़िए आप एक काम करिए पूरे टीम को एक साथ लंच पर ले चलिए सभी साथ होंगे। तब मना भी नहीं कर पाएगी फ़िर वहां पर उसे आपके साथ अलग टेबल पर बिठा देंगे फिर कह देना जो आपको कहना हों।

राघव... आइडिया तो सही हैं मगर मुझे एक शंका है। इतवार को लंच पर चलने की बात कहा तो कहीं फिर से टाल न दे।

साक्षी... अरे तो इतवार को लेकर जानें को कह ही कौन रहा हैं।

राघव...इसका मतलब मुझे थोड़ा नुकसान सहना पड़ेगा चलो कोई बात नही इसकी भरपाई बाद में तुम सभी से काम करवा कर लूंगा ही ही ही।

साक्षी... हां हां करवा लेना अब आप ये कहिए कि आप किस बात से परेशान थे। क्या है न मेरे जाते ही आपकी श्रृष्टि फिर से मेरे पीछे पड़ जायेगी।

राघव... घर में कुछ कहा सुनी हों गया था जिससे बाते बहुत बढ़ गई थीं। इसलिए मैं थोड़ा परेशान था।

साक्षी... किस बात पे कहा सुनी हुआ था। ये मुझे नहीं जानना मैं तो बस आपके श्रृष्टि के लिए पूछ रहीं हूं। क्योंकि जब तक वो पुरी बात नहीं जान लेगी तब तक उस बेचैन आत्मा को चैन नहीं मिलेगा।

राघव...कहासूनी की वजह मेरी अपनी है। मैं उसका बखान किसी के सामने करना नहीं चाहूंगा तुम अपनी तरफ से जोड़कर कुछ भी बोल देना जिससे उसे लगे की सच में यहीं मेरे परेशानी की वजह हैं।

"ठीक है सर" बोलकर साक्षी चली गई


दृश्य में बदलाव

साक्षी जैसे ही भीतर आई उसे देखकर श्रृष्टि अपने जगह से उठने लगीं तो साक्षी बोलीं…अरे इतनी जल्दी में क्यों है? मैं आ तो रहीं हूं।

इतना सुनते ही श्रृष्टि हल्का सा मुस्कुरा दिया फिर अपने जगह बैठ गई। साक्षी पास आकर बोलीं... श्रृष्टि बता तू इतना बेचैन क्यों हैं।

श्रृष्टि... मैम...।

"ये मेम की औपचारिकता तू कब भूलेगी मैंने कहा था न हम दोनों दोस्त है और दोस्तों में कोई औपचारिकता नहीं होती।" टोकते हुए साक्षी बोलीं

श्रृष्टि... आदत से मजबुर हूं मैम, नहीं नहीं साक्षी। अब ठीक है न।

साक्षी... अब बता तू इतना बेचैन क्यों हैं और तुझे कैसे पता चला सर परेशान हैं?

"क्यो और कैसे पता नहीं।" इतना बोलकर श्रृष्टि नज़रे झुका लिया। शायद इसलिए कि कहीं उसकी नज़रे चुगली करके उसके दिल का हाल बयां न कर दे। मगर इस पगली को कौन समझाए चुगल खोरी तो हो चूका है जिसे भाप कर साक्षी बोलीं...कुछ लोग होते है जो बिना बताए ही जान लेते हैं कि सामने वाले का हाल क्या हैं। पता हैं श्रृष्टि मैंने एक क्वेट्स में पढ़ा था ऐसे लोग दिल के बहुत करीब होते हैं और मुझे लगता हैं सर तेरे दिल के बहुत करीब हैं। इसलिए तो तू बिना बताए ही जान गई कि सर को कोई परेशानी हैं। जबकि मैं भी उन्हें देखकर पता नहीं कर पाईं कि उन्हें कोई परेशानी हैं भी।

साक्षी के कथन का श्रृष्टि के पास कोई जवाब नहीं था फ़िर भी कुछ न कुछ बोलकर इस कथन को नकारना था इसलिए श्रृष्टि बोलीं…मेरा स्वभाव शुरू से ही ऐसा हैं इसलिए मैं सर को देखते ही भाप गई कि उन्हें कोई परेशानी हैं। अब तुम ये बताओं सर किस बात से परेशान थे

साक्षी...सर कह रहें थे। उनके घर पर कुछ कहा सुनी हुआ था इसलिए परेशान थे।

श्रृष्टि…कहासुनी.. हल्की फुल्की कहासुनी से कोई इतना परेशान नहीं होता। तुमने पुछा था किस बात पे इतना कहासुनी हुआ था। बताओ न।

"कहासुनी इस बात पे हुई (इतना बोलकर रूकी फिर कुछ सोचकर बोलीं) सर कह रहे थे उनके घर वाले उनकी शादी के लिए कोई लड़की देखा हैं लेकिन सर अभी शादी नहीं करना चाहते हैं इसी बात पर बहस हों गई और बाद में बहस बहुत गरमा गया बस इसी बात से सर परेशान थे।

जारी रहेगा….




क्या साक्षी अपना कम कर रही है ????

श्रुष्टि के मन और दिल में जो है साक्षी तो भाप गई पर हीरो और हिरोइन को पता चलेगा ??? एक दुसरे की भावनाओं का .......
या फिर ये साक्षी !!!!!!!!!!!! मुझे तो इस साक्षी नाम का केरेक्टर से डर लगता है सच में !!!!
एक सीधी सादी जिंदगी को कोई कभी भी अपने बेरंग स्वभाव या हरकतों से किसी का भी जीवन बेरंग कर सकते है ..........रंग भरनेवाले बहोत कम है इस श्रुष्टि में.........और जो रंग भरनेवाले है उसे पहचान ने वाले भी बहोत कम है......... क्या पता .........

आप को क्या लगता है ????? आप सहमत है मुज से ??? या कहा तक सहमत है ????? है भी या नहीं ?????? अपनी सोच दे कोमेंट बॉक्स में ..........


अगले भाग में और कुछ जानकारी लेंगे .............
 
Last edited:

Funlover

I am here only for sex stories No personal contact
14,860
20,717
229
ये कहानी को मै जल्द ही ख़तम करने की कोशिश करती हु ...............कहानी की स्पीड थोड़ी बढ़ा देती हु ......या फिर लिखने की स्पीड ..............
 
  • Love
Reactions: vickyrock
Top