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बेटी की बातों ने माताश्री को कुछ पल के लिए भावुक कर दिया फिर अपने भावनाओं को काबू करके बेटी का गाल सहला दिया और उसी हाथ को चूम कर बोलीं... कभी कभी तू ऐसी बातें कह देती हैं जिसे सुनकर लगता हैं। मैं तेरी मां नहीं तू मेरी मां हैं। मगर अगले ही पल कुछ ऐसा कह देती है जिसे सुनकर लगता हैं तेरे से बड़ा मूर्ख कोई ओर नहीं हैं।
"मां" ऐसे बोलीं जैसे पसंद नहीं आया
"क्या मां, तुझे पाता नहीं वो ऑटो चलाते हैं तो ऑटो स्टैंड पर ही मिलेंगे इसके अलावा तुझे कोई ओर जगह पाता हों तो चली जा।"
श्रृष्टि…ये तो मैं भी जानती हूं और सोचा भी यही था। मैं तो बस आपसे कन्फर्म कर रहीं थीं। वैसे मै आते जाते उस मोड़ पे देखती तो हु पर वो कही दिखाई नहीं देते
"अच्छा, मतलब मां को मामू बना रहीं थीं।"
श्रृष्टि... नहीं नहीं मां को मां बनना रहीं थीं। वो क्या है कि मेरी मां अपनी बेटी को अपनी मां बनाने पर तुली है ही ही ही।
इतना बोलकर श्रृष्टि भागी "ठहर जा तुझे अभी बताती हूं" इतना बोलकर माताश्री भी श्रृष्टि के पीछे भाग्गी लगा दी। मा को तंग करती है ???
ऐसे ही अगले तीन से चार दिन बीत गया। इन्हीं दिनों श्रृष्टि और साक्षी की देख रेख में पुर जोर काम चलता रहा। इन्हीं दिनों पूर्व की दिनों की तरह प्रत्येक दिन राघव लंच के समय उन्हीं के साथ लंच करने आ जाता था। राघव के मन में क्या हैं इससे ना श्रृष्टि अंजान थीं ना ही साक्षी अंजान थीं। ऐसे ही एक दिन जब राघव सभी के साथ लंच कर रहा था तो एक साथी बोला... सर कई दिनों से गौर किया हैं। आप लगभग प्रत्येक दिन हमारे साथ लंच करने आ जाते हैं। जान सकता हूं ऐसा क्यों?
"हां सर मैंने भी देखा हैं। ऐसी क्या बात हों गई जो आप लंच हमारे साथ ही करते हों जबकि और भी बहुत लोग यहां काम करते हैं। इससे बडी बात ये कि आप या तो अपने कमरे में लंच करते हों या कैंटीन में फिर सहसा क्या हों गया जो आप सिर्फ हमारे साथ ही लंच करने आ जाते हों।" नज़र फेरकर श्रृष्टि को देखा फ़िर साथी का साथ देते हुए साक्षी बोलीं।
"बस मन करता हैं इसलिए आ जाता हूं। इसके अलावा कोई ओर खास बात नहीं हैं आगर तुम सभी को बूरा लगता है तो कल से नहीं आऊंगा।" इतनी बात राघव ने श्रृष्टि को देखकर मुस्कुराते हुए कहा बदले में श्रृष्टि भी मुस्कुरा दिया और सिर झुका कर खाना खाने लग गईं। ये सभी एक्टिविटी साक्षी से छुप तो नहीं सकती थी अब
साक्षी... सर अपने जो वजह बताया वो तो ठीक हैं फ़िर भी मुझे लगता है हम में से कोई आपको भा गया हैं इसलिए आप उसके साथ वक्त बिताने के बहाने हमारे साथ लंच करने आ जाते हों।
इतना सुनते ही श्रृष्टि को ढचका लग गई और वो खो खो खो खांसने लग गई। श्रृष्टि के बगल में ही साक्षी बैठी थी वो तुंरत संभली और श्रृष्टि की ओर पानी का गिलास बढ़ा दिया फिर पीठ सहलाते हुए बोलीं... अरे श्रृष्टि तुम्हारा ध्यान किधर हैं। कम से कम भोजन के वक्त तो अपना ध्यान भोजन पर दो।
राघव… श्रृष्टि तुम ठीक तो हों न।
श्रृष्टि...जी मैं ठीक हूं बस...।
"बस तुम्हारा ध्यान काम पर था और जल्दी से खाना खाकर काम पर लगना था। अरे भाई कम से कम खाना खाते वक्त तो काम से ध्यान हटा लो। यहां ध्यान देने के लिए कुछ ओर भी हैं जरा उन पर भी ध्यान दे दो।"
श्रृष्टि का अधूरा वाक्य पूरा करते हुए साक्षी बोलीं साथ ही अपने तरफ से भी जोड़ दिया। जिसे सुनकर राघव मुस्कुरा दिया। लेकिन श्रृष्टि आंखे मोटी मोटी करके साक्षी को देखने लग गई। जिसे देखकर साक्षी बोलीं... अरे तुम मुझे खा जानें वाली नजरों से क्यों देख रही हों खाना ही हैं तो भोजन खाओ ही ही ही।
श्रृष्टि इतना तो समझ ही गई की साक्षी तफरी काट रहीं है और बातों ही बातों में राघव की ओर ध्यान देने की बात कह रही हैं। इसलिए बिना कुछ बोले चुप चाप भोजन करने लग गईं।
कुछ ही देर में भोजन समाप्त करके राघव चला गया और बाकि सब अपने अपने काम में लग गए। ऐसे ही दिन बीतने लगा और इतवार का दिन भी आ गया।
जारी रहेगा...
अब इसमें तो कुछ खास लगता नहीं प्रेम कहानी पनप रही है और साक्षी पता नहीं हेल्प कर रही है अपना काम .......
"मां" ऐसे बोलीं जैसे पसंद नहीं आया
"क्या मां, तुझे पाता नहीं वो ऑटो चलाते हैं तो ऑटो स्टैंड पर ही मिलेंगे इसके अलावा तुझे कोई ओर जगह पाता हों तो चली जा।"
श्रृष्टि…ये तो मैं भी जानती हूं और सोचा भी यही था। मैं तो बस आपसे कन्फर्म कर रहीं थीं। वैसे मै आते जाते उस मोड़ पे देखती तो हु पर वो कही दिखाई नहीं देते
"अच्छा, मतलब मां को मामू बना रहीं थीं।"
श्रृष्टि... नहीं नहीं मां को मां बनना रहीं थीं। वो क्या है कि मेरी मां अपनी बेटी को अपनी मां बनाने पर तुली है ही ही ही।
इतना बोलकर श्रृष्टि भागी "ठहर जा तुझे अभी बताती हूं" इतना बोलकर माताश्री भी श्रृष्टि के पीछे भाग्गी लगा दी। मा को तंग करती है ???
ऐसे ही अगले तीन से चार दिन बीत गया। इन्हीं दिनों श्रृष्टि और साक्षी की देख रेख में पुर जोर काम चलता रहा। इन्हीं दिनों पूर्व की दिनों की तरह प्रत्येक दिन राघव लंच के समय उन्हीं के साथ लंच करने आ जाता था। राघव के मन में क्या हैं इससे ना श्रृष्टि अंजान थीं ना ही साक्षी अंजान थीं। ऐसे ही एक दिन जब राघव सभी के साथ लंच कर रहा था तो एक साथी बोला... सर कई दिनों से गौर किया हैं। आप लगभग प्रत्येक दिन हमारे साथ लंच करने आ जाते हैं। जान सकता हूं ऐसा क्यों?
"हां सर मैंने भी देखा हैं। ऐसी क्या बात हों गई जो आप लंच हमारे साथ ही करते हों जबकि और भी बहुत लोग यहां काम करते हैं। इससे बडी बात ये कि आप या तो अपने कमरे में लंच करते हों या कैंटीन में फिर सहसा क्या हों गया जो आप सिर्फ हमारे साथ ही लंच करने आ जाते हों।" नज़र फेरकर श्रृष्टि को देखा फ़िर साथी का साथ देते हुए साक्षी बोलीं।
"बस मन करता हैं इसलिए आ जाता हूं। इसके अलावा कोई ओर खास बात नहीं हैं आगर तुम सभी को बूरा लगता है तो कल से नहीं आऊंगा।" इतनी बात राघव ने श्रृष्टि को देखकर मुस्कुराते हुए कहा बदले में श्रृष्टि भी मुस्कुरा दिया और सिर झुका कर खाना खाने लग गईं। ये सभी एक्टिविटी साक्षी से छुप तो नहीं सकती थी अब
साक्षी... सर अपने जो वजह बताया वो तो ठीक हैं फ़िर भी मुझे लगता है हम में से कोई आपको भा गया हैं इसलिए आप उसके साथ वक्त बिताने के बहाने हमारे साथ लंच करने आ जाते हों।
इतना सुनते ही श्रृष्टि को ढचका लग गई और वो खो खो खो खांसने लग गई। श्रृष्टि के बगल में ही साक्षी बैठी थी वो तुंरत संभली और श्रृष्टि की ओर पानी का गिलास बढ़ा दिया फिर पीठ सहलाते हुए बोलीं... अरे श्रृष्टि तुम्हारा ध्यान किधर हैं। कम से कम भोजन के वक्त तो अपना ध्यान भोजन पर दो।
राघव… श्रृष्टि तुम ठीक तो हों न।
श्रृष्टि...जी मैं ठीक हूं बस...।
"बस तुम्हारा ध्यान काम पर था और जल्दी से खाना खाकर काम पर लगना था। अरे भाई कम से कम खाना खाते वक्त तो काम से ध्यान हटा लो। यहां ध्यान देने के लिए कुछ ओर भी हैं जरा उन पर भी ध्यान दे दो।"
श्रृष्टि का अधूरा वाक्य पूरा करते हुए साक्षी बोलीं साथ ही अपने तरफ से भी जोड़ दिया। जिसे सुनकर राघव मुस्कुरा दिया। लेकिन श्रृष्टि आंखे मोटी मोटी करके साक्षी को देखने लग गई। जिसे देखकर साक्षी बोलीं... अरे तुम मुझे खा जानें वाली नजरों से क्यों देख रही हों खाना ही हैं तो भोजन खाओ ही ही ही।
श्रृष्टि इतना तो समझ ही गई की साक्षी तफरी काट रहीं है और बातों ही बातों में राघव की ओर ध्यान देने की बात कह रही हैं। इसलिए बिना कुछ बोले चुप चाप भोजन करने लग गईं।
कुछ ही देर में भोजन समाप्त करके राघव चला गया और बाकि सब अपने अपने काम में लग गए। ऐसे ही दिन बीतने लगा और इतवार का दिन भी आ गया।
जारी रहेगा...
अब इसमें तो कुछ खास लगता नहीं प्रेम कहानी पनप रही है और साक्षी पता नहीं हेल्प कर रही है अपना काम .......