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दृश्य में बदलाव
श्रृष्टि जैसे ही घर पहुंची माताश्री देखते ही पहचान गई। आज उसकी बेटी कल से ज्यादा परेशान हैं उसके अंतरमन में उफान सा आया हुआ हैं।
ये भापते ही माताश्री तूरंत श्रृष्टि को अपने पास बैठाया और बोला... श्रृष्टि बेटा क्या हुआ कुछ बात हों गई हैं जो इतना परेशान दिख रही हैं।
माताश्री का इतना ही पूछना था कि श्रृष्टि के हृदय में उपजा तूफान सैलाब का रूप ले लिया फ़िर रूदन के रूप में बहार निकल आई और श्रृष्टि मां से लिपट कर रोने लग गई।
श्रृष्टि का रूदन अन्य दिनों से अलग था। जिसने माताश्री के हृदय में खलबली मचा दिया। अब माताजी को विश्वास हो चूका था की वो जो सोच रही थी वो हो रहा है और माताजी भी डर गई
इसलिए माताश्री पुचकारते हुए बोलीं... श्रृष्टि, बेटा क्या हुआ तू ऐसे क्यों रो रहीं है?
माताश्री के पुचकारते ही श्रृष्टि का रूदान और बढ़ गया। जिसे देखकर माताश्री एक बार फ़िर पुचकारते हुए पुछा मुझे नहीं बताएगी बेटा ? क्या मै इस लायक नहीं हु जो मेरी ही बेटी के दिल में क्या चल रहा मै जान सकू ? मेरी बच्ची इतनी बड़ी हो गई की अब मा को बताने में उसे शर्म महसूस हो रही है ?
तो इस बार श्रृष्टि फफकते हुए बोलीं... मां वो न वो न शादी कर रहा हैं।
माताश्री... कौन शादी कर रहा है? हां बोल कौन (साहस माताश्री के मस्तिष्क में कुछ खिला और मताश्री बोलीं) जिसकी शादी हों रहा हैं कहीं तू उससे प्यार तो नहीं करती।
"हां" सुबकते हुए श्रृष्टि बोलीं
" कौन है वो और तू ने मुझे पहले क्यों नहीं बताया।" अपनी सोच को वास्तविकता होते हुए देख रही थी | अब डर श्रुष्टि से ज्यादा मा को हो रहा था
क्या कोई ऊंचनीच हुई है ? या वहेम ?
श्रृष्टि... मां वो न वो न राघव सर हैं।
राघव सर सुनते ही मानो माताश्री पर वज्र पात हों गया हों। तूरंत श्रृष्टि को खुद से अलग किया फिर बोलीं... ये तूने क्या किया? तू भी उसी रास्ते पे चल पड़ी जिस रास्ते पर चलकर मैं पछता रहीं हूं। क्यो आखिर क्यों?
श्रृष्टि…मैंने खुद को बहुत रोकना चाहा मगर रोक ही नहीं पाई। दिल पे भला किसका बस चला हैं। प्यार तो किसी से भी हों सकता है। प्यार न अमीरी, न गरीबी, न जाति, न धर्म देखता है। वो तो बस हो जाता हैं। मुझे भी हो गया अब वो शादी कर रहें हैं। जब से उनकी शादी की बात जाना हैं। तब से मुझ पे क्या बीत रहीं हैं? मै ही जानती हूं।
"वो शादी कर रहें हैं तो तू भी इस बात को भूल जा मुझे साफ साफ दिख रहा हैं तेरा प्यार एक तरफा हैं इसलिए मेरी मान तू खुद को यही पर रोक ले।"
“बेटा एक बात सच में बता क्या तुम ने उस से अपने आप को सौपा है ? मेरा मतलब शारीरक समागम सेक्स ?
श्रुष्टि “नहीं मा ऐसा कुछ नहीं जो आप सोच रही हो
मा के कलेजे पे ठंडक पहोची चलो एक बात से तो डरना नहीं है
श्रृष्टि... नहीं मां मेरा प्यार एक तरफा नहीं हैं। मैंने कई बार भापा है वो भी मूझसे प्यार करते।
"अच्छा अगर वो भी तुझे प्यार करते तो शादी क्यों कर रहें हैं। सोच जरा।"
माताश्री की बातों से श्रृष्टि को स्तब्ध कर दिया। वो कुछ बोल ही नहीं पाई मगर उसके मस्तिष्क में विचार चल पडा, उसका मस्तिष्क बार बार उससे कह रहा था की मां सही कह रहीं है अगर उन्हें मूझसे प्यार होता तो सभी के जानने पर हा क्यों कहते कि उनकी शादी की बात सही है..।
श्रृष्टि विचारों में खोई थी की माताश्री उसके विचारों में सेंद मरते हुए बोलीं...श्रृष्टि मैंने तुझे पहले ही कहा था। कुछ लोग हाव भाव से कुछ दर्शाते है और उनके मस्तिष्क में कुछ ओर चलता हैं। तेरे राघव सर भी शायद उन्हीं में से एक हैं। देख तेरी मां होने के नाते मैं तेरा अहित कभी नही चाहूंगी और ये भी नहीं चाहूंगी कि जो गलती मैंने किया जिसकी सजा मैं आज भी भुगत रही हूं। तू भी वही गलती दोहराए इसलिए मैं बस इतना ही कहुंगी जो भी फैंसला लेना सोच समझ कर लेना ताकि तुझे भविष्य में पछतावा न हो।
माताश्री की बातों ने एक बार फिर से श्रृष्टि के मन मस्तिस्क में खलबली मचा दिया। कुछ देर तक उसके मस्तिस्क में मची खलबली उसे परेशान करती रही। सहसा ही आंखो से आंसु पोछकर बोलीं... मां मुझे एक काफ चाय मिल सकता है।
"ठीक है तू हाथ मुंह धोकर आ मैं चाय बनाती हूं।"
श्रृष्टि उठकर कमरे में चल दिया और माताश्री रसोई की ओर "अभी तो कितना रो रहीं थी सहसा उसके स्वर में इतना बदलाब कैसे आ गया। हे प्रभू जो मेरी बेटी के लिए सही हो वहीं करना उसके भविष्य के साथ खिलवाड़ मत करना जैसे मेरे भविष्य के साथ किया था बस इतनी सी मेरी विनती मान लेना।" बोलते हुए चल दिया।
श्रृष्टि ने कौन सा फैंसला लिया जिससे उसका रूदन स्वर में बदलाव आ गया जिसे भापकर माताश्री प्रभू से विनती करने लग गई। यह तो बस समय ही बता पाएगा बहरहाल माताश्री रसोई में प्रवेश किया ही था कि द्वार घंटी ने किसी के आगमन का संकेत दे दिया।
श्रृष्टि जैसे ही घर पहुंची माताश्री देखते ही पहचान गई। आज उसकी बेटी कल से ज्यादा परेशान हैं उसके अंतरमन में उफान सा आया हुआ हैं।
ये भापते ही माताश्री तूरंत श्रृष्टि को अपने पास बैठाया और बोला... श्रृष्टि बेटा क्या हुआ कुछ बात हों गई हैं जो इतना परेशान दिख रही हैं।
माताश्री का इतना ही पूछना था कि श्रृष्टि के हृदय में उपजा तूफान सैलाब का रूप ले लिया फ़िर रूदन के रूप में बहार निकल आई और श्रृष्टि मां से लिपट कर रोने लग गई।
श्रृष्टि का रूदन अन्य दिनों से अलग था। जिसने माताश्री के हृदय में खलबली मचा दिया। अब माताजी को विश्वास हो चूका था की वो जो सोच रही थी वो हो रहा है और माताजी भी डर गई
इसलिए माताश्री पुचकारते हुए बोलीं... श्रृष्टि, बेटा क्या हुआ तू ऐसे क्यों रो रहीं है?
माताश्री के पुचकारते ही श्रृष्टि का रूदान और बढ़ गया। जिसे देखकर माताश्री एक बार फ़िर पुचकारते हुए पुछा मुझे नहीं बताएगी बेटा ? क्या मै इस लायक नहीं हु जो मेरी ही बेटी के दिल में क्या चल रहा मै जान सकू ? मेरी बच्ची इतनी बड़ी हो गई की अब मा को बताने में उसे शर्म महसूस हो रही है ?
तो इस बार श्रृष्टि फफकते हुए बोलीं... मां वो न वो न शादी कर रहा हैं।
माताश्री... कौन शादी कर रहा है? हां बोल कौन (साहस माताश्री के मस्तिष्क में कुछ खिला और मताश्री बोलीं) जिसकी शादी हों रहा हैं कहीं तू उससे प्यार तो नहीं करती।
"हां" सुबकते हुए श्रृष्टि बोलीं
" कौन है वो और तू ने मुझे पहले क्यों नहीं बताया।" अपनी सोच को वास्तविकता होते हुए देख रही थी | अब डर श्रुष्टि से ज्यादा मा को हो रहा था
क्या कोई ऊंचनीच हुई है ? या वहेम ?
श्रृष्टि... मां वो न वो न राघव सर हैं।
राघव सर सुनते ही मानो माताश्री पर वज्र पात हों गया हों। तूरंत श्रृष्टि को खुद से अलग किया फिर बोलीं... ये तूने क्या किया? तू भी उसी रास्ते पे चल पड़ी जिस रास्ते पर चलकर मैं पछता रहीं हूं। क्यो आखिर क्यों?
श्रृष्टि…मैंने खुद को बहुत रोकना चाहा मगर रोक ही नहीं पाई। दिल पे भला किसका बस चला हैं। प्यार तो किसी से भी हों सकता है। प्यार न अमीरी, न गरीबी, न जाति, न धर्म देखता है। वो तो बस हो जाता हैं। मुझे भी हो गया अब वो शादी कर रहें हैं। जब से उनकी शादी की बात जाना हैं। तब से मुझ पे क्या बीत रहीं हैं? मै ही जानती हूं।
"वो शादी कर रहें हैं तो तू भी इस बात को भूल जा मुझे साफ साफ दिख रहा हैं तेरा प्यार एक तरफा हैं इसलिए मेरी मान तू खुद को यही पर रोक ले।"
“बेटा एक बात सच में बता क्या तुम ने उस से अपने आप को सौपा है ? मेरा मतलब शारीरक समागम सेक्स ?
श्रुष्टि “नहीं मा ऐसा कुछ नहीं जो आप सोच रही हो
मा के कलेजे पे ठंडक पहोची चलो एक बात से तो डरना नहीं है
श्रृष्टि... नहीं मां मेरा प्यार एक तरफा नहीं हैं। मैंने कई बार भापा है वो भी मूझसे प्यार करते।
"अच्छा अगर वो भी तुझे प्यार करते तो शादी क्यों कर रहें हैं। सोच जरा।"
माताश्री की बातों से श्रृष्टि को स्तब्ध कर दिया। वो कुछ बोल ही नहीं पाई मगर उसके मस्तिष्क में विचार चल पडा, उसका मस्तिष्क बार बार उससे कह रहा था की मां सही कह रहीं है अगर उन्हें मूझसे प्यार होता तो सभी के जानने पर हा क्यों कहते कि उनकी शादी की बात सही है..।
श्रृष्टि विचारों में खोई थी की माताश्री उसके विचारों में सेंद मरते हुए बोलीं...श्रृष्टि मैंने तुझे पहले ही कहा था। कुछ लोग हाव भाव से कुछ दर्शाते है और उनके मस्तिष्क में कुछ ओर चलता हैं। तेरे राघव सर भी शायद उन्हीं में से एक हैं। देख तेरी मां होने के नाते मैं तेरा अहित कभी नही चाहूंगी और ये भी नहीं चाहूंगी कि जो गलती मैंने किया जिसकी सजा मैं आज भी भुगत रही हूं। तू भी वही गलती दोहराए इसलिए मैं बस इतना ही कहुंगी जो भी फैंसला लेना सोच समझ कर लेना ताकि तुझे भविष्य में पछतावा न हो।
माताश्री की बातों ने एक बार फिर से श्रृष्टि के मन मस्तिस्क में खलबली मचा दिया। कुछ देर तक उसके मस्तिस्क में मची खलबली उसे परेशान करती रही। सहसा ही आंखो से आंसु पोछकर बोलीं... मां मुझे एक काफ चाय मिल सकता है।
"ठीक है तू हाथ मुंह धोकर आ मैं चाय बनाती हूं।"
श्रृष्टि उठकर कमरे में चल दिया और माताश्री रसोई की ओर "अभी तो कितना रो रहीं थी सहसा उसके स्वर में इतना बदलाब कैसे आ गया। हे प्रभू जो मेरी बेटी के लिए सही हो वहीं करना उसके भविष्य के साथ खिलवाड़ मत करना जैसे मेरे भविष्य के साथ किया था बस इतनी सी मेरी विनती मान लेना।" बोलते हुए चल दिया।
श्रृष्टि ने कौन सा फैंसला लिया जिससे उसका रूदन स्वर में बदलाव आ गया जिसे भापकर माताश्री प्रभू से विनती करने लग गई। यह तो बस समय ही बता पाएगा बहरहाल माताश्री रसोई में प्रवेश किया ही था कि द्वार घंटी ने किसी के आगमन का संकेत दे दिया।