sunoanuj
Well-Known Member
- 3,214
- 8,532
- 159
भाग - 24
राघव का हाल भी श्रृष्टि से दूजा नहीं था। वो भी उतना ही परेशान था बस बदहवास नहीं हुआ था। खुद पर काबू रखा हुआ था। वैसे तो राघव जल्दी घर नहीं जाता था इसकी वजह बरखा थीं। मगर आज उसका मन कही पे नहीं लगा तब घर चला गया। तिवारी भी उसी वक्त घर पर मौजूद था और बेटे को जल्दी आया देखकर उसके साथ कुछ वक्त बिताना चाहा इसलिए साथ में चाय पीने की फरमाइश कर दी।
बेमन से राघव पिता की बात मान लिया और उनके साथ बैठ गया। तिवारी बातों के दौरान ध्यान दिया कि राघव का ध्यान कहीं ओर है और उसके सामने रखा कॉफी पड़ा पड़ा ठंडा हों रहा था लेकिन राघव अभी तक एक भी घूंट नहीं पिया था। ये देख तिवारी जी बोले... राघव क्या हुआ बेटा तुझे कोई परेशानी है?
राघव... नहीं तो
तिवारी... क्यों झूठ बोल रहा हैं? मैं कब से देख रहा हूं कॉफी पड़े पड़े ठंडा हों रहा है और तू पीने के जगह कहीं और खोया हुआ हैं।
"तुम्हें तो सिर्फ़ अपने बेटे की परेशानी दिखती हैं। कभी इतना ही ध्यान मेरे बेटे पर भी दे दिया करो।" बरखा कमरे से बहार आ रहीं थी तो दोनों बाप बेटे की बाते सुनकर तंज का भाव शब्दों में घोलकर बोलीं
तिवारी... ये बात तुम कह रहीं हों जरा अपनी गिरेबान में झांककर देखो कभी तुमने मां होने का एक भी फर्ज निभाया? कभी राघव को पास बैठाकर एक मां की तरह उससे उसकी परेशानी पुछा? नही कभी नहीं मगर मैंने कभी अरमान और राघव में भेद नहीं किया दोनों को एक समान बाप का प्यार दिया।
बरखा... मैं तो करती हूं और आगे भी करती रहूंगी क्योंकि राघव मेरा सगा नहीं सौतेला हैं...।
राघव इतना सुनते ही उठकर चला गया और तिवारी बोला...बस करो बरखा ओर कब तक ऐसे ही मेरे बेटे को उसी के सामने सौतेला होने का एहसास करवाते रहोगे वो तो तुम दोनों से कभी भी भेद भाव नहीं करता हैं फ़िर तुम और अरमान सगा सौतेला का भेद क्यों करते हों? ना मैंने कभी सगा सौतेले का भेद किया हैं।
बरखा...मैं तो जो भी करती हूं सामने से करती हूं। तुम जो भी करते हो वो सब दिखावा करते हों। अगर दिखावा नहीं करते तो जायदाद में दोनों को बराबर हिस्सा देते। अरमान को कम और राघव को ज्यादा नहीं देते।
बातों का रूख बदलते देख तिवारी उठे और कमरे की और जाते हुए बोले...उसके लिए भी तुम दोनों मां बेटे ही ज़िम्मेदार हों जीतना दिया उसी में खुश हों लो वरना वो भी छीन लूंगा और मुझे ऐसा करने पर मजबुर न करो।
इतना बोलकर तिवारी कमरे में चला गया और बरखा दो चार बाते और सुनाया फ़िर अपने कमरे में चली गइ।
अजीब विडंबना में दोनों बाप बेटे जिए जा रहे हैं। दो पल बैठकर एक दूसरे की परेशानी भी जान नहीं पा रहे हैं। आज कोशिश की पर वो भी सिर्फ बरखा के कारण धारा का धारा रह गया।
रात्रि भोजन का वक्त हों चुका था मगर राघव कमरे से एक पल के लिए बाहर ही नहीं आया था। ये बात जानते ही तिवारी बेटे को बुलाने चले गए। कई आवाज देने के बाद राघव बाहर आया तब तिवारी बोला... चल बेटा भोजन कर ले।
राघव... पापा आप कर लिजिए मुझे भूख नहीं हैं।
तिवारी... चल रहा है की फिर से सुरसुरी करना शुरू करू।
राघव... नहीं पापा चलिए आप की सुरसुरी सहने से अच्छा भोजन ही कर लेता हूं।
दोनों बाप बेटे खाने के मेज पर आ के बैठ गए। भोजन लगाया जा रहा था उसी वक्त बरखा भी आ कर बैठ गई। निवाला मुंह में डालते हुए बरखा बोलीं... यहां बाप अपने बेटे के साथ बैठे भोजन कर रहा हैं मगर मेरा बेटा वहां भोजन किया भी कि नहीं ये तक किसी ने नहीं पुछा।
तिवारी... उसके लिए तुम हों न घड़ी घड़ी फ़ोन करके पूछ ही लेती हो तो फिर दूसरे को पूछने की जरूरत ही क्या है? अब तुम चुप चाप भोजन करो। यहां बैठना अच्छा नहीं लग रहा हैं तो अपने कमरे में जा सकती हों।
एक निवाल बनाकर राघव को खिलाते हुए बोला...आज मैं अपने बेटे को अपने हाथ से खाना खिलाता हूं और एक सौतेली मां को दिखा देना चाहता हूं वो भाले ही मेरे बेटे को मां का प्यार दे चाहे न दे लेकिन एक बाप मां और बाप दोनों का प्यार देना जानता हैं।
बरखा... हा हा...।
"चुप बरखा बिल्कुल चुप एक भी शब्द न बोलना नहीं तो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा। मुझे इतना भी मजबुर न कारो की मुझे तुम पर हाथ उठाना पड़े।" तिवारी ने अपनी बाते लगभग चीखते हुए बोला।
तिवारी का गर्म तेवर देखकर बरखा चुप हो गई और चुप चाप भोजन करने लग गई।
तिवारी खुद से निवाला बनाकर राघव को खिलाए जा रहा था। कुछ निवाला खाने के बाद राघव खुद से निवाला बनाकर खाने लगा। राघव खुद से खा तो रहा था मगर उसके मस्तिस्क के किसी कोने में दोपहर के भोजन का वो दृश्य बार बार चल रहा था जब श्रृष्टि भोजन अधुरा छोड़कर चली गइ थी।
वो दृश्य मस्तिस्क में उभरते ही उस वक्त का पूरा दृश्य चलचित्र की तरह राघव के सामने चलने लग गया और राघव के चहरे पर एक बार फ़िर से परेशानी की लकीरें आ गया। बगल में बैठा बाप इसे भाप गया तो एक हाथ से राघव का हाथ थाम लिया।
स्पर्श का आभास होते ही राघव के सामने चल रहा चलचित्र अदृश्य हों गइ और राघव हाथ में लिया हुआ निवाला प्लेट में छोड़कर चला गया।
"राघव भोजन तो पूरा करता जा।" रोकते हुए तिवारी बोला
बरखा...अरे जानें दो क्यों गला फाड़ रहे हो उसे भूख नहीं होगा, होता तो भोजन अधुरा छोड़कर नहीं जाता।
तिवारी...बरखा मैंने तुमसे बोला था चुप रहना फिर क्यों अपना मुंह खोला, तुम्हें दिख नहीं रहा वो किसी बात से परेशान हैं।
बरखा…परेशान तो होगा ही रोज पता नहीं बहार से क्या गंदा संदा खा पीकर आता हैं। जा कर देखे कहीं तुम्हारे बेटे का लिवर सीवर सड़ तो नही गया।
बरखा की बातों ने तिवारी का पारा इतना चढ़ा दिया की वो खुद पर काबू नहीं रख पाया। तिवारी झट से अपना खुर्शी छोड़ा और चटाक, चटाक की आवाज वहा गूंज उठा। सहसा क्या हुआ ये बरखा के समझ से परे था और तिवारी यहां नहीं रूके एक के बाद एक कई चाटा ओर मारा फ़िर लगभग चीखते हुए बोला…बरखा आज तुम्हारे जुबान से जो निकला वो मेरे सहन सीमा को पार कर गया। आज तुम्हें चेतावनी देता हूं आज के बाद तुम अपनी ये सड़ी हुई सुरत लेकर मेरे बेटे के सामने आइ तो तुम्हरा वो हस्र करुंगा कि आईने में अपनी सूरत देखने से कतराओगे।
बरखा को इतने चाटे पड़े की उसका हुलिया बिगड़ गया। बिना बालों को छुए करीने से कड़े और जुड़ा किए हुए बालों को अस्त व्यस्त कर दिया गया।
तिवारी का रौद्र रूप बरखा के लिए किसी सदमे से कम न था इससे पहले भी बरखा ने न जानें कितनी वाहियात बाते कहीं थी मगर उस वक्त तिवारी सिर्फ टोकने के अलावा कुछ नहीं किया और आज वो हुआ जिसका आशा (इल्म) शायद बरखा को न थी, न ही तिवारी ने कभी किसी महिला के साथ किया होगा।
मेज पर रखा पानी उठाकर गट गट पी गया फिर गहरी गहरी सांसे लेकर तिवारी ने अपने गुस्से को ठंडा किया फिर बोला...बरखा तुम्हारी हरकतें और कड़वी बातों ने आज मुझे वो करने पर मजबुर कर दिया जो न मैंने कभी सोचा था न ही कभी किया था और हा जो भी बाते मैने गुस्से में कहा ये मत सोचना की मैं भूल जाऊंगा भले ही मैंने गुस्से में कहा हो मगर एक एक बाते सच हैं आज के बाद तुम्हारी सुरत मुझे या मेरे बेटे को दिखा तो तुम्हारा गत इससे भी बूरा करुंगा। मुझे ऐसा बहुत पहले कर देना चहिए था जिससे मेरे बेटे को इतना जलील न होना पड़ता चलो देर से ही सही अब से उसे उसके घर में जलील नहीं होना पड़ेगा।
इतना कहाकर एक प्लेट में खाना लगाया ओर राघव के कमरे की ओर जाते हुए बोला... मैं राघव को भोजन करवाने जा रहा हूं जब लौट कर आऊं तब तुम मुझे यहां नहीं दिखनी चहिए और हां अभी अभी तुम्हारे साथ जो भी हुआ इसकी भनक अरमान को नहीं लगना चाइए अगर उसे पाता चला तो तुम्हारा गत क्या होगा ये मैं भी नहीं जानता बस इतना कहुंगा बहुत बूरा होगा।
बरखा का मुह जैसे काटो तो खून ना निकले जैसा हो गया था शायद डर भी गई थी|
राघव के कमरे पे पहुचकार द्वार खटखटाया फ़िर बोला... राघव दरवाजा खोल और भोजन कर ले बेटा।
राघव... पापा...।
"राघव कोई बहाना नहीं चलेगा तू द्वार खोलता है कि मैं कुछ करूं।" झिड़कते हुए तिवारी बोला
राघव ने तुरंत द्वार खोल दिया फ़िर दोनों भीतर चले गए। राघव को बेड पर बैठने को कहकर खुद भी बैठ गए फ़िर राघव को खुद से भोजन करवाने लग गए। राघव ना ना करता रहा पर तिवारी माने नहीं डांट डपट कर जीतना भोजन लाया था लगभग सभी भोजन राघव को खिला दिया फ़िर प्लेट रखकर बोले... अब बोल तू किस बात से इतना परेशान हैं।
राघव...मैं कहा परेशान हूं लगता हैं आपको भ्रम हुआ था।
तिवारी...अच्छा मुझे भ्रम हुआ था ! ! मै तो कभी तुम्हारी उम्र में था ही नहीं शायद ऐसे ही बचपन से सीधा बुढा !!!! चल माना की मुझे भ्रम हुआ था मगर भोजन के वक्त तू किन ख्यालों में गुम था और मेरा स्पर्श पाते ही बना बनाया निवाला छोड़कर आ गया।
जारी रहेगा….
Bhavnaon se bharpur updates… Baap bete ke payar ka sajeev chitran kiya hai aapne ….