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Romance श्रृष्टि की गजब रित

sunoanuj

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भाग - 24


राघव का हाल भी श्रृष्टि से दूजा नहीं था। वो भी उतना ही परेशान था बस बदहवास नहीं हुआ था। खुद पर काबू रखा हुआ था। वैसे तो राघव जल्दी घर नहीं जाता था इसकी वजह बरखा थीं। मगर आज उसका मन कही पे नहीं लगा तब घर चला गया। तिवारी भी उसी वक्त घर पर मौजूद था और बेटे को जल्दी आया देखकर उसके साथ कुछ वक्त बिताना चाहा इसलिए साथ में चाय पीने की फरमाइश कर दी।

बेमन से राघव पिता की बात मान लिया और उनके साथ बैठ गया। तिवारी बातों के दौरान ध्यान दिया कि राघव का ध्यान कहीं ओर है और उसके सामने रखा कॉफी पड़ा पड़ा ठंडा हों रहा था लेकिन राघव अभी तक एक भी घूंट नहीं पिया था। ये देख तिवारी जी बोले... राघव क्या हुआ बेटा तुझे कोई परेशानी है?

राघव... नहीं तो

तिवारी... क्यों झूठ बोल रहा हैं? मैं कब से देख रहा हूं कॉफी पड़े पड़े ठंडा हों रहा है और तू पीने के जगह कहीं और खोया हुआ हैं।

"तुम्हें तो सिर्फ़ अपने बेटे की परेशानी दिखती हैं। कभी इतना ही ध्यान मेरे बेटे पर भी दे दिया करो।" बरखा कमरे से बहार आ रहीं थी तो दोनों बाप बेटे की बाते सुनकर तंज का भाव शब्दों में घोलकर बोलीं

तिवारी... ये बात तुम कह रहीं हों जरा अपनी गिरेबान में झांककर देखो कभी तुमने मां होने का एक भी फर्ज निभाया? कभी राघव को पास बैठाकर एक मां की तरह उससे उसकी परेशानी पुछा? नही कभी नहीं मगर मैंने कभी अरमान और राघव में भेद नहीं किया दोनों को एक समान बाप का प्यार दिया।

बरखा... मैं तो करती हूं और आगे भी करती रहूंगी क्योंकि राघव मेरा सगा नहीं सौतेला हैं...।

राघव इतना सुनते ही उठकर चला गया और तिवारी बोला...बस करो बरखा ओर कब तक ऐसे ही मेरे बेटे को उसी के सामने सौतेला होने का एहसास करवाते रहोगे वो तो तुम दोनों से कभी भी भेद भाव नहीं करता हैं फ़िर तुम और अरमान सगा सौतेला का भेद क्यों करते हों? ना मैंने कभी सगा सौतेले का भेद किया हैं।

बरखा...मैं तो जो भी करती हूं सामने से करती हूं। तुम जो भी करते हो वो सब दिखावा करते हों। अगर दिखावा नहीं करते तो जायदाद में दोनों को बराबर हिस्सा देते। अरमान को कम और राघव को ज्यादा नहीं देते।

बातों का रूख बदलते देख तिवारी उठे और कमरे की और जाते हुए बोले...उसके लिए भी तुम दोनों मां बेटे ही ज़िम्मेदार हों जीतना दिया उसी में खुश हों लो वरना वो भी छीन लूंगा और मुझे ऐसा करने पर मजबुर न करो।

इतना बोलकर तिवारी कमरे में चला गया और बरखा दो चार बाते और सुनाया फ़िर अपने कमरे में चली गइ।

अजीब विडंबना में दोनों बाप बेटे जिए जा रहे हैं। दो पल बैठकर एक दूसरे की परेशानी भी जान नहीं पा रहे हैं। आज कोशिश की पर वो भी सिर्फ बरखा के कारण धारा का धारा रह गया।

रात्रि भोजन का वक्त हों चुका था मगर राघव कमरे से एक पल के लिए बाहर ही नहीं आया था। ये बात जानते ही तिवारी बेटे को बुलाने चले गए। कई आवाज देने के बाद राघव बाहर आया तब तिवारी बोला... चल बेटा भोजन कर ले।

राघव... पापा आप कर लिजिए मुझे भूख नहीं हैं।

तिवारी... चल रहा है की फिर से सुरसुरी करना शुरू करू।

राघव... नहीं पापा चलिए आप की सुरसुरी सहने से अच्छा भोजन ही कर लेता हूं।

दोनों बाप बेटे खाने के मेज पर आ के बैठ गए। भोजन लगाया जा रहा था उसी वक्त बरखा भी आ कर बैठ गई। निवाला मुंह में डालते हुए बरखा बोलीं... यहां बाप अपने बेटे के साथ बैठे भोजन कर रहा हैं मगर मेरा बेटा वहां भोजन किया भी कि नहीं ये तक किसी ने नहीं पुछा।

तिवारी... उसके लिए तुम हों न घड़ी घड़ी फ़ोन करके पूछ ही लेती हो तो फिर दूसरे को पूछने की जरूरत ही क्या है? अब तुम चुप चाप भोजन करो। यहां बैठना अच्छा नहीं लग रहा हैं तो अपने कमरे में जा सकती हों।

एक निवाल बनाकर राघव को खिलाते हुए बोला...आज मैं अपने बेटे को अपने हाथ से खाना खिलाता हूं और एक सौतेली मां को दिखा देना चाहता हूं वो भाले ही मेरे बेटे को मां का प्यार दे चाहे न दे लेकिन एक बाप मां और बाप दोनों का प्यार देना जानता हैं।

बरखा... हा हा...।

"चुप बरखा बिल्कुल चुप एक भी शब्द न बोलना नहीं तो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा। मुझे इतना भी मजबुर न कारो की मुझे तुम पर हाथ उठाना पड़े।" तिवारी ने अपनी बाते लगभग चीखते हुए बोला।

तिवारी का गर्म तेवर देखकर बरखा चुप हो गई और चुप चाप भोजन करने लग गई।

तिवारी खुद से निवाला बनाकर राघव को खिलाए जा रहा था। कुछ निवाला खाने के बाद राघव खुद से निवाला बनाकर खाने लगा। राघव खुद से खा तो रहा था मगर उसके मस्तिस्क के किसी कोने में दोपहर के भोजन का वो दृश्य बार बार चल रहा था जब श्रृष्टि भोजन अधुरा छोड़कर चली गइ थी।

वो दृश्य मस्तिस्क में उभरते ही उस वक्त का पूरा दृश्य चलचित्र की तरह राघव के सामने चलने लग गया और राघव के चहरे पर एक बार फ़िर से परेशानी की लकीरें आ गया। बगल में बैठा बाप इसे भाप गया तो एक हाथ से राघव का हाथ थाम लिया।

स्पर्श का आभास होते ही राघव के सामने चल रहा चलचित्र अदृश्य हों गइ और राघव हाथ में लिया हुआ निवाला प्लेट में छोड़कर चला गया।

"राघव भोजन तो पूरा करता जा।" रोकते हुए तिवारी बोला

बरखा...अरे जानें दो क्यों गला फाड़ रहे हो उसे भूख नहीं होगा, होता तो भोजन अधुरा छोड़कर नहीं जाता।

तिवारी...बरखा मैंने तुमसे बोला था चुप रहना फिर क्यों अपना मुंह खोला, तुम्हें दिख नहीं रहा वो किसी बात से परेशान हैं।

बरखा…परेशान तो होगा ही रोज पता नहीं बहार से क्या गंदा संदा खा पीकर आता हैं। जा कर देखे कहीं तुम्हारे बेटे का लिवर सीवर सड़ तो नही गया।

बरखा की बातों ने तिवारी का पारा इतना चढ़ा दिया की वो खुद पर काबू नहीं रख पाया। तिवारी झट से अपना खुर्शी छोड़ा और चटाक, चटाक की आवाज वहा गूंज उठा। सहसा क्या हुआ ये बरखा के समझ से परे था और तिवारी यहां नहीं रूके एक के बाद एक कई चाटा ओर मारा फ़िर लगभग चीखते हुए बोला…बरखा आज तुम्हारे जुबान से जो निकला वो मेरे सहन सीमा को पार कर गया। आज तुम्हें चेतावनी देता हूं आज के बाद तुम अपनी ये सड़ी हुई सुरत लेकर मेरे बेटे के सामने आइ तो तुम्हरा वो हस्र करुंगा कि आईने में अपनी सूरत देखने से कतराओगे।

बरखा को इतने चाटे पड़े की उसका हुलिया बिगड़ गया। बिना बालों को छुए करीने से कड़े और जुड़ा किए हुए बालों को अस्त व्यस्त कर दिया गया।

तिवारी का रौद्र रूप बरखा के लिए किसी सदमे से कम न था इससे पहले भी बरखा ने न जानें कितनी वाहियात बाते कहीं थी मगर उस वक्त तिवारी सिर्फ टोकने के अलावा कुछ नहीं किया और आज वो हुआ जिसका आशा (इल्म) शायद बरखा को न थी, न ही तिवारी ने कभी किसी महिला के साथ किया होगा।

मेज पर रखा पानी उठाकर गट गट पी गया फिर गहरी गहरी सांसे लेकर तिवारी ने अपने गुस्से को ठंडा किया फिर बोला...बरखा तुम्हारी हरकतें और कड़वी बातों ने आज मुझे वो करने पर मजबुर कर दिया जो न मैंने कभी सोचा था न ही कभी किया था और हा जो भी बाते मैने गुस्से में कहा ये मत सोचना की मैं भूल जाऊंगा भले ही मैंने गुस्से में कहा हो मगर एक एक बाते सच हैं आज के बाद तुम्हारी सुरत मुझे या मेरे बेटे को दिखा तो तुम्हारा गत इससे भी बूरा करुंगा। मुझे ऐसा बहुत पहले कर देना चहिए था जिससे मेरे बेटे को इतना जलील न होना पड़ता चलो देर से ही सही अब से उसे उसके घर में जलील नहीं होना पड़ेगा।

इतना कहाकर एक प्लेट में खाना लगाया ओर राघव के कमरे की ओर जाते हुए बोला... मैं राघव को भोजन करवाने जा रहा हूं जब लौट कर आऊं तब तुम मुझे यहां नहीं दिखनी चहिए और हां अभी अभी तुम्हारे साथ जो भी हुआ इसकी भनक अरमान को नहीं लगना चाइए अगर उसे पाता चला तो तुम्हारा गत क्या होगा ये मैं भी नहीं जानता बस इतना कहुंगा बहुत बूरा होगा।

बरखा का मुह जैसे काटो तो खून ना निकले जैसा हो गया था शायद डर भी गई थी|


राघव के कमरे पे पहुचकार द्वार खटखटाया फ़िर बोला... राघव दरवाजा खोल और भोजन कर ले बेटा।

राघव... पापा...।

"राघव कोई बहाना नहीं चलेगा तू द्वार खोलता है कि मैं कुछ करूं।" झिड़कते हुए तिवारी बोला

राघव ने तुरंत द्वार खोल दिया फ़िर दोनों भीतर चले गए। राघव को बेड पर बैठने को कहकर खुद भी बैठ गए फ़िर राघव को खुद से भोजन करवाने लग गए। राघव ना ना करता रहा पर तिवारी माने नहीं डांट डपट कर जीतना भोजन लाया था लगभग सभी भोजन राघव को खिला दिया फ़िर प्लेट रखकर बोले... अब बोल तू किस बात से इतना परेशान हैं।

राघव...मैं कहा परेशान हूं लगता हैं आपको भ्रम हुआ था।

तिवारी...अच्छा मुझे भ्रम हुआ था ! ! मै तो कभी तुम्हारी उम्र में था ही नहीं शायद ऐसे ही बचपन से सीधा बुढा !!!! चल माना की मुझे भ्रम हुआ था मगर भोजन के वक्त तू किन ख्यालों में गुम था और मेरा स्पर्श पाते ही बना बनाया निवाला छोड़कर आ गया।

जारी रहेगा….



Bhavnaon se bharpur updates… Baap bete ke payar ka sajeev chitran kiya hai aapne …. 👏🏻👏🏻👏🏻
 
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भाग - 25


पिता के ख्यालों में खोने की बात कहते ही राघव एक बार फ़िर ख्यालों में खो गया। इस बार कुछ ओर ही ख्याल उसके मस्तिस्क में चला रहा था। वो सोच रहा था पापा को सच बताए या नहीं अगर सच नहीं बताना है है तो कुछ ऐसा बताना होगा जिससे पापा को लगे की राघव की परेशानी की यहीं वजह है। सहसा राघव मुस्कुराते हुए बोला... पापा वो दफ्तर से आते वक्त कुछ वक्त के लिए नजदीक के एक पार्क में गया था। वहा देखा एक बच्चे को उसकी मां खुद से खिला रहीं थीं ये देखकर मुझे मां की याद आ गई थी इसलिए थोड़ा परेशान हों गया था फ़िर भोजन के वक्त आप अपने हाथो से खिला रहें थे तो उस वक्त भी मां की याद आ गई कि मां होती तो वो भी मुझे ऐसे ही खिलाते बस इसलिए उठकर आ गया।

तिवारी... अच्छा कोई बात नहीं अब जब भी तेरा मन करें मुझे बता देना मैं तुझे अपने हाथों से खिला दिया करुंगा।

और हां ऐसा जूठ हम उमर वालो से बोला जता है !!!! हा हा हा

कुछ और इधर उधर की बाते होने लगा। धीरे धीरे बाते राघव की शादी की ओर चल पड़ा शादी की बात आते ही राघव के मन में श्रृष्टि का ख्याल आ गया। सीधा सीधा वो बाप से कह नहीं पा रहा था। इसलिए राघव बोला...पापा मान लिजिए मैं किसी ऐसी लड़की को पसंद करता हूं जो हमारी हैसियत की बराबरी नहीं करती है तो क्या आप...।

"हम्म तो मामला ये है मेरे बेटे को किसी से प्यार हों गया जो रूतवे में हमसे कम है। है ना मैं सही कह रहा हूं ना।" राघव की कहने का मतलब समझते हुए तिवारी बोला

राघव... जी पापा

जूठ बोलता हु तो पकड़ा जाता हु

तिवारी... बेटा कभी कभी जूठ बोलना भी सीखना पड़ता है कभी कभी जूठ ही काम में आ जाता है खेर चल अब ये भी बता दे तेरी प्रेम कहानी कहा तक पहुंची फ़िर मैं बताऊंगा की तेरे सवाल का क्या जवाब हैं।

सूक्ष्म रूप में श्रृष्टि के साक्षत्कार देने आने वाले दिन से लेकर अब तक की पुरी कथनी सूना दिया। जिससे सुनकर तिवारी बोला... हम्म तो तूने अभी अभी जो अपने परेशानी का कारण बताया था कारण वो नही बल्कि श्रृष्टि है जो आज तेरी शादी की झूठी खबर सुनकर परेशान हो गई।



राघव... जी पापा।

तिवारी... तो बेटा ये बताओ प्रपोज खुद से करोगे कि मैं शागुन की थैली लेकर उसके घर पहुंच जाऊं।

राघव... क्या पापा आप तो मेरे फेरे फेरवाने के पीछे पड़ गए। थोड़ा रूकिए पहले मुझे बात तो कर लेने दिजिए। आज जो बखेड़ा हुआ है उसके बाद पता नहीं वो क्या कहेंगी।

तिवारी... क्या कहेंगी ये मैं नहीं जानता मैं बस इतना जानता हूं कि उस जैसी उच्च सोच वाली कोई ओर लड़की शायद ही मुझे मेरी पुत्र बधू के रूप में मिले। इसलिए जल्दी से तुझे जो करना है कर नहीं हुआ तो मुझे बताना मैं उसके घर रिश्ता लेकर पहुंच जाऊंगा।

राघव... इसका मतलब आपको इस बात से कोई दिक्कत नहीं है कि उसकी हैसियत हमारे बराबर नहीं है और हमारे कम्पनी में काम करने वाली एक नौकरियात (मुलाजिम) हैं।

तिवारी…जब लड़की इतनी होनहार और दूजे ख्यालों वाली है तो उसके सामने हमारी हैसियत मायने ही नहीं रखता बेटे । उस जैसी लड़की को मुझे अपनी पुत्रवधू बनाने में भला क्या दिक्कत आयेगा।

राघव... ठीक है।

इसके बाद तिवारी जी राघव को सोने को कहकर चले गए और राघव आने वाले सुखद भविष्य के सुनहरी सपने बुनते हुए सो गया।


उधर तिवारी जी भी अपनी पुत्रवधू की कल्पना को लिए सोने के लिए चले गए
 

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sunoanuj

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.......
अगले दिन सुबह श्रृष्टि जब दफ्तर आई तब वो बिल्कुल सामान्य थीं। देखकर कोई ये नहीं कह सकता कि यहीं लड़की कल इतना परेशान थी की किसी से बात नहीं कर रहीं थीं और जब दफ्तर से गई थी तब तो एक अलग ही मरू या मारू के रूप में थी। मगर आज वो सभी से हस बोल रहीं थीं ठिठौली कर रहीं थीं।

राघव दफ्तर आते ही पहले श्रृष्टि को देखने गया कि वो कैसी हैं। श्रृष्टि को हसता मुस्कुराता देखकर राघव को बहुत ही ज्यादा सकून मिला लेकिन उसका यह सकून ज्यादा देर नहीं टिका क्योंकि श्रृष्टि ने सरसरी निगाह फेरकर ऐसे पलट गई। जैसे राघव श्रृष्टि के लिए अनजान हों।

राघव काफी देर खड़ा रहा इस उम्मीद में कि श्रृष्टि एक बार उसकी ओर देखे और थोडा मुस्कुराये मगर श्रृष्टि एक बार जो नज़रे झुकाया तो बस झुका ही रही। अंतः राघव वापस जाते वक्त बोला... श्रृष्टि कुछ काम की बात करना हैं मेरे साथ आना जरा।

बिना नज़रे उठाए बस इतना बोला "आप चलिए मैं आती हूं" ये सुन और श्रृष्टि का बरताव देखकर राघव कुछ विचलित सा होकर चला गया।

राघव के जाते ही श्रृष्टि कुछ देर बिल्कुल चुप बैठी रहीं फ़िर अपने रुमाल से आंखो को फोंछने लग गई ये देख साक्षी बोलीं... क्या हुआ श्रृष्टि?

श्रृष्टि... साक्षी लगता है आंखों में धूल का कोई कण घुस गया हैं।

साक्षी...अच्छा ला दिखा मैं निकाल देती हूं।

श्रृष्टि... मैं निकाल लूंगी तू सर से मिलकर आ।

साक्षी... मैं क्यों जाऊं? बुलाकर तुझे गया हैं तो तू ही जा।

श्रृष्टि... मैं जाऊं या तू बात तो उन्हें काम की करनी हैं। हम दोनों प्रोजेक्ट हेड हैं तो काम की बात तुझसे भी किया जा सकता हैं। इसलिए तू होकर आ तब तक मैं कुछ जरुरी काम निपटा लेती हूं।

साक्षी...श्रृष्टि आज तेरा वर्ताव मेरे समझ में नहीं आ रहीं हैं। तुझे हुआ किया हैं। पहले तो तू सर के न बुलाने पर कोई न कोई काम का बहाना करके बात करने चली जाती थीं फिर आज क्या हुआ जो बुलाने पर भी नहीं जा रही हैं।?

"आ हा साक्षी मैंने जो कहा है वो कर न मुझे क्या हुआ क्या नहीं ये जानना जरूरी नहीं हैं।" चिड़ते हुए श्रृष्टि बोलीं

साक्षी... अरे इतनी सी बात के लिए चीड़ क्यों रहीं हैं। अच्छा ठीक है मैं ही चली जाती हूं।

इसके बाद साक्षी चली गई। भीतर जानें की अनुमति लेकर भीतर जाते ही राघव बोला... साक्षी तुम क्यों आईं हों। आने को श्रृष्टि को बोला था।

साक्षी... उसी ने ही भेजा हैं।

"क्या (चौकते हुए राघव आगे बोला) श्रृष्टि आज कुछ अजीब सा व्यवहार कर रही हैं समझ नहीं आ रहा कि वो ऐसा क्यों कर रहीं हैं।"

साक्षी... लगता है कल की बातों को कुछ ज्यादा ही दिल पे ले लिया हैं आप एक काम करिए अभी थोड़े देर बाद पुरी टीम को लंच पर ले जानें की बात कह दिजिए शायद इस बात से उसमे कुछ बदलाब आ जाए।

राघव... ठीक हैं तुम अभी जाओ।

साक्षी वापस चली गई और राघव ने तूरंत ही किसी को फ़ोन किया फिर काम में लग गया। कुछ वक्त काम करने के बाद वो वहां गया और बोला... आज मैं आप सभी को लंच पे ले जाना चाहता हूं तो आप सभी तैयार रहना।

राघव की इस बात पे श्रृष्टि ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिया न ख़ुशी जाहिर किया न गम बस सामान्य ही बनी रही और साक्षी बोलीं... अरे वाह सर आज किस ख़ुशी में हम पर ये मेहरबानी किया जा रहा हैं (फ़िर श्रृष्टि की ओर देखकर बोलीं) सर कही आप किसी की नाराजगी दूर करने के लिए सभी को लंच पर तो नही ले जा रहें हों।

"सर जब लंच पर ले ही जा रहे हो तो किसी अच्छे से रेस्टोरेंट में लेकर चलना।"एक सहयोगी बोला


साक्षी... अरे डाफेर जब सर लेकर जा रहे हैं तो अच्छे रेस्टोरेंट में लेकर ही जायेगे आखिर उन्हे किसी रूठे हुए को मनाना जो हैं। क्यों सर मैंने सही कहा न?

डाफेर सुनते ही श्रृष्टि की आंखें फैल गई और चौकने वाले अंदाज में साक्षी को देखने लग गईं। जब उसे अहसास हुआ की डाफेर उसे नहीं किसी ओर को बोला गया हैं। तो मंद मंद मुस्कान बिखेर कर नज़रे झुका लिया और राघव बोला...रेस्टोरेंट कैसा है ये तो तुम सभी को वहा पहुंचकर पता चल जायेगा। वैसे मेरा आधा काम हों चुका हैं बाकि का लंच के वक्त हों जायेगा। अच्छा तुम सभी काम करो मैं समय से आ जाऊंगा।

एक गलतफैमी जीवन में कौन कौन सा मोड़ ला सकता हैं। यह कहा नहीं जा सकता लेकिन अभी अभी राघव एक गलत फैमी के चलते जो समझा और जो कहा वो कितना सिद्ध होगा ये वक्त ही बता सकता हैं। बहरहाल श्रृष्टि के मंद मंद मुस्कान को हां समझकर राघव चला गया और साक्षी श्रृष्टि के पास जाकर श्रृष्टि के कंधे से कंधा टकराते हुए बोलीं…श्रृष्टि अब तो खुश हों जा। यह लंच खास तेरे लिए प्लान किया गया हैं।

श्रृष्टि... मैं भला क्यों खुश होने लगीं और मेरे ही लिए क्यों स्पेशियली लंच प्लान क्या जानें लगा?

साक्षी... तू जानती सब हैं फ़िर भी अनजान बन रहीं हैं चल कोई बात नहीं थोड़ी ही देर की बात हैं सब जान जायेगी।

श्रृष्टि... मुझे कुछ नहीं जानना और तेरा बाते बनना हों गया हो तो कुछ काम कर ले।

साक्षी... मैं बाते बना रहीं हूं कि सच कह रहीं हूं ये थोड़ी ही देर में पता चल जायेगा। चल अपना अपना काम करते है आज तो लंच पे मैं छक के खाऊंगी ही ही ही।

अभी इन्हें काम करते हुए कुछ ही वक्त हुआ था कि श्रृष्टि का फ़ोन घनघाना उठा। बात करते हुए श्रृष्टि कुछ विचलित सी हों गईं और परेशानी की लकीरें उसके चेहरे पर उभर आईं। फ़ोन कटते ही अपना हैंड बैग उठाया और साक्षी से बोलीं…साक्षी मुझे अभी घर जाना होगा सर को बता देना।

साक्षी... क्या हुआ?

श्रृष्टि... अभी बताने का समय नहीं है बाद में बता दूंगी।

इतना बोलकर श्रृष्टि चली गई। श्रृष्टि के चेहरे पे उभरी चिंता की लकीरें देखकर साक्षी भापने की जतन करने लगी की सहसा क्या हों गया जो श्रृष्टि इतनी जल्दबाजी में और इतनी चिंतित मुद्रा में घर चली गई।

जारी रहेगा….
 

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लो भाई अब एक नयी टेन्शन कड़ी करी दी श्रुष्टि ने ............ ये कहानी भी अजीब होती है कही भी एक ढंग से नहीं चलती ............

अब इस कहानी को ही ले लीजिये !!!! अरे भाई या तो दो प्रेमी को मिला दे या फिर भुला दे ये आगे क्या होगा की झंझट से तो छूटे !!!!!!!!!!!!!

हा हा हा हा...............
बने रहिये ये कहानी जल्द ही ख़तम होगी
 

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भाग - 26


श्रृष्टि का यूं अचानक बिना कोई कारण बताए चिंतित मुद्रा में घर चले जाना साक्षी सहित बाकि साथियों के लिया चिंता का विषय बन गया।

दूसरे साथी साक्षी से श्रृष्टि के जानें का कारण पूछने लग गए मगर साक्षी भी तो अनजान थी तो बस इतना ही बोलीं...मुझे नहीं पता लेकिन उसे देखकर इतना तो जान ही गईं हूं। कुछ तो हुआ हैं वरना वो ऐसे अचानक घर न चली जाती। तुम सभी काम पे ध्यान दो मैं सर को बताकर आती हूं।

साक्षी राघव के पास पहुंच गई। भीतर जानें की अनुमति लेकर भीतर जाते ही राघव बोला... बोलों साक्षी कुछ काम था।?

साक्षी... सर मै बस इतना बताने आई थी कि श्रृष्टि अभी अभी घर चली गई हैं।

"क्या (चौक कर राघव आगे बोला) श्रृष्टि का एसा व्यवहार मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा हैं वो चाहती किया हैं। आज फिर कोई बहाना बनाकर चली गई हैं।

साक्षी... सर मै इतना तो दावे से कह सकती हूं आज वो किसी तरह का कोई बहाना बनाकर नहीं गई हैं। पर जब वो गई थी तब बहुत ही विचलित और चिंतित थी। जैसे ही उसका फोन आया उसी टाइम से|

"क्या, क्या हुआ कुछ बताकर गई हैं?" राघव चिंतित होते हुए बोला

साक्षी... नहीं सर..।

इतना सुनते ही राघव तुंरत फोन निकाला और किसी को कॉल लगा दिया। एक के बाद एक कई कॉल किया पर दुसरी और से कोई रेस्पॉन्स ही नहीं मिला तो खीजते हुए राघव बोला... श्रृष्टि फोन क्यों रिसीव नहीं कर रहीं हैं?

साक्षी... अरे सर अभी अभी तो गई हैं स्कूटी चला रहीं होगी। आप चिंता न करें मैं थोड़ी देर में उससे बात करके आपको बता देती हु । अच्छा अब मैं जाती हूं और सभी को बता देती हूं आज का लंच कैंसिल हों गया हैं।

राघव... क्यों, लंच कैंसिल क्यों करना?

साक्षी... अरे सर जिसके लिए लंच प्लान किया गया था वो ही चली गई हैं। तो फिर लंच पर जाकर क्या फायदा?

राघव... नहीं साक्षी लंच कैंसिल नहीं कर सकते हैं। ऐसा किया तो उन सभी के अरमानों पर पानी फ़िर जायेगा। और मेरी क्या वेल्यु रहेगी

साक्षी... आप के अरमानों पर पानी फिर गया उसका क्या?

राघव... मेरे अरमानों पर पानी फिरता रहता हैं। अब तो इसकी आदत सी हो गई हैं। मैं तुम्हें वहा का एड्रेस दे देता हूं तुम सभी को साथ लेकर चली जाना

साक्षी... जाहिर सी बात है श्रृष्टि नहीं जा रही है मतलब आप भी नहीं जाओगे। आगर आप जा रहे है तो मैं खुद के जाने में बारे में सोच सकती हूं। बोलिए आप चल रहे हों।

राघव…सॉरी साक्षी मैं….।

साक्षी... बस सर मै समझ गयी। अब ये लंच का प्रोग्राम कैंसिल मतलब कैंसिल।

राघव…साक्षी समझा कारों यार।

साक्षी... समझ ही तो गई हूं तभी तो बोल रहीं हूं। दो आशिक एक दूसरे से प्यार का इजहार कर पाए इसलिए लंच पे जाने का प्लान किया गया था जब दोनों ही नहीं जा रहे है तो हमारे जानें का मतलब पैदा ही नहीं होता हैं। और अगर इस बहाने काम हो जाता तो हम सब ख़ुशी के मारे और एक पार्टी मांग लेते ही ह ही ही

इतना बोलकर साक्षी चल दि। जाते जाते पलट कर बोलीं... सर आप चिंता न करे उनके सामने आप की नाक नहीं कटने दूंगी।

राघव ने रूकने को बोला पर साक्षी नही रूकी वो चली गई। जब सहयोगियों के पास पहुंची तो साक्षी बोलीं...सुनो मुझे तुम सब से एक सवाल पूछना हैं। क्या तुम सब राघव सर के साथ लंच पर जाना चाहते हों?

"ये भी कोई पूछने की बात हैं। सर ने खुद ही कहा हैं तो जाना तो बनता हैं भला ऐसा मौका रोज रोज कहा मिलता हैं।" सर को लुटने का हा हा हा हा एक सहयोगी बोला

एक साथ सभी ने अपनी अपनी मनसा जहीर कर दिया जिसे सुनकर साक्षी बोलीं...कह तो सही रहे हों ऐसा मौका रोज रोज नहीं मिलता हैं पर श्रृष्टि चली गई है इसलिए मेरा भी मन नहीं हैं। मैं तो भाई सर को मना कर आई हूं। तुम सभी को जाना है तो चले जाना सर जानें को तैयार हैं।

साक्षी के लंच पे जाने से मना कर देने पर सभी पहले तो एक दूसरे का चेहरा ताकने लगे फिर आपस में विचार विमर्श करने लग गए। कुछ देर बाद उनमें से एक बोला... क्या साक्षी मैम कम से कम आप तो चलती बड़े दिनों से सोच रहा था। आपको लंच पर चलने को कहू पर हिम्मत नहीं जुटा पाया आज राघव सर के बहाने मेरी इच्छा पूरी हों रही थी मगर लगता है मेरी किस्मत एक टांग की घोड़ी पर सवार होकर धीरे धीरे आ रहा हैं जो बात बनते बनते बिगड़ गया।

"मतलब " चौकते हुए साक्षी बोलीं

"अरे बोल दे शिवम ( ये वही कर्मचारी है जो हमेशा साक्षी के पक्ष में होता था याद है ना) आज मौका है इतनी हिम्मत करके ये बोल दिया है तो आगे का भी बोल दे जो बोलने के लिए लंच पर ले जाना चाहता था।" एक सहयोगी धीरे से शिवम के कान में बोला

शिवम... वो साक्षी मैम, वो क्या हैं न मैं आपको बहुत दिनों से पसंद करता हूं और प्यार भी पर कभी कहने का साहस ही नहीं जुटा पाया।

"तो फिर आज कैसे साहस जुटा लिया।" मुस्कुराते हुए साक्षी बोलीं

शिवम... वो आज आपके साथ लंच पर न जा पाने की हताशा के कारण कुछ बातें निकल गया फिर…

"फ़िर इसने मेरे कान भरने से पुरी बात उसके मुंह से निकल गया। क्यों शिवम सही कहा न।" शिवम की बाते पूरा करते हुए उसके कान में बोलने वाले ने बोला

साक्षी... चलो अच्छा हुआ जो आज बोल दिया। मैं भी कई दिनों से गौर कर रहीं थी तुम कुछ कहना चाहते हों मगर बात जुबां तक आते आते कही अटक जा रहा था। अच्छा मुझे थोड़ा वक्त मिल सकता है या फिर आज ही जवाब देना हैं।?

शिवम... नहीं आपको वक्त चहिए तो ले लो मगर थोड़ा जल्दी बोल देना।

हां मेम जरा जल्दी ही बोल देना शिवम् से रहा नहीं जाएगा उसी कर्मचारी ने उसकी टांग खीचते हुए बोला

साक्षी... ठीक है अब बोलों किसी को सर के साथ लंच पर जाना हैं।

"अब भला लंच पर कौन जायेगा। लंच तो यहीं करेंगे और लंच पार्टी शिवम देगा।" एक सहयोगी बोला

शिवम... वो क्यों भाला अभी सिर्फ मैने बोला है उधर से कोई जबाव नहीं आया जिस दिन जवाब आयेगा अगर हां हुआ तो भरपुर पार्टी दूंगा।

"चल ठीक है तेरी बात मान लेते है। साक्षी मैम आप सर को बोल दिजिए लंच पार्टी कैंसिल कोई नहीं जा रहा हैं।"

लंच कैंसिल करने की बात जब साक्षी राघव को बोलने गई तो सुनने के बाद राघव बोला... तो साक्षी तुम्हें भी तुम्हारा चाहने वाला मिल गया।

साक्षी...मतलब की आज फ़िर आप छुप छुप कर हमे देख और हमारी बाते सुन रहे थे।

राघव…हा साक्षी...।

साक्षी... आप अपनी ये आदत कब छोड़ेंगे।

राघव... कभी नहीं! साक्षी शिवम को लेकर जो भी फैंसला लेना सोच समझकर कर लेना क्योंकि मुझे लगता हैं शिवम तुम्हारे लिए बिल्कुल परफेक्ट लड़का हैं। मैं बस अपनी राय बता रहा हूं।

साक्षी...वो मैं देख लूंगी कुछ भी जवाब देने से पहले शिवम को अच्छे से परख लूंगी अच्छा अब मैं चलती हूं कुछ काम भी कर लेती हूं।





 

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दृश्य में बदलाब

श्रृष्टि इस वक्त एक हॉस्पिटल में हैं। जहां उसकी मां बेड पर लेटी हुई है। उनके एक पाव में प्लास्टर चढ़ा हुआ है और श्रृष्टि मां से बोल रहीं हैं।

"जब आप की तबीयत सुबह से खराब लग रही थी तो आपको कॉलेज जानें की जरूरत क्या थीं।"

"श्रृष्टि बेटा मैं एक शिक्षक हूं। शिक्षक होना बहुत ज़िम्मेदारी का काम हैं। चाहें कुछ भी हों जाएं मैं अपनी ज़िम्मेदारी से विमुख नहीं हों सकता।"

"शिक्षक होने के साथ साथ आप एक मां हों और आपके अलावा आपके बेटी का इस दुनिया में कोई नहीं है ये बात क्यों भुल जाती हों।" श्रृष्टि लगभग रोते हुए बोलीं

"अहा श्रृष्टि बेटा रोते नहीं हैं मुझे कुछ हुआ थोड़ी हैं बस पाव थोड़ा सा मोच हुआ है और ये बोतल तो डॉक्टर लोगों ने बस अपना बिल बढ़ने के लिए लगा रखा हैं।"

श्रृष्टि...आपको तो सब सहज लगता हैं। लेकिन मुझ पर क्या बीत रहीं थी मैं ही जानती हूं। जब मेरे पास फ़ोन आया कि आप सीढ़ी से गिर गई हों। तब कितने अनाप शनाप ख्याल मेरे दिमाग़ में आ रहे थे।

"अहा श्रृष्टि ज्यादा अनाप शनाप ख्याल आपने दिमाग में न लाया कर एक तू और एक वो बताने वाला उसने पुरी बात बताया नहीं और तूने पुरी बात सूनी नहीं मैं तो बस...।"

"बस आपको चक्कर आ गया था ओर आप गिर गई थी जिसे आपका पैर मुड़ गया था।" मां की बात पूरा करते हुए श्रृष्टि बोलीं

"हां बस इतना ही हुआ देखना शाम तक बिल्कुल ठीक हों जाउंगी।"

श्रृष्टि... कितना ठिक हों जाओगी मैं जानती हूं। जब तक आपका पाव ठीक नहीं हो जाता तब तक आप कॉलेज नहीं जाओगी।

"पर...।"

"पर वर कुछ नहीं जो बोला यहीं आपको करना होगा अब आप आराम करो मैं डॉक्टर से मिलकर आती हूं।" मां को लगभग डांटते हुए बोली
मा “ ये लड़की मेरी मा ही बनेगी “



इसके बाद श्रृष्टि डॉक्टर के पास पहुंची और मां के सेहत की जानकारी लिया तब डॉक्टर बोला... ज्यादा मेजर प्रॉब्लम नहीं है हल्की सी फैक्चर है। उनके उम्र को देखते हुए हमने ऐतिहातन (प्रिकोशनरी) प्लास्टर चढ़ा दिया है ।

श्रृष्टि... डॉक्टर, मां को घर कब ले जा सकती हूं।

डॉक्टर... बस कुछ ही देर ओर रूकना है ड्रिप खत्म होते ही आप उन्हें ले जा सकती हों।

इसके बाद श्रृष्टि मां के पास आकर बैठ गई और उनसे बाते करके समय काटने लग गई। ड्रिप खत्म होने के बाद माताश्री को छुट्टी दे दिया गया।

घर आकर माताश्री को उनके रूम में लिटाकर श्रृष्टि घर के कामों में लग गई ऐसे ही शाम हो गया। श्रृष्टि मां के साथ शाम के चाय का लुप्त ले रहीं थी उसी वक्त द्वार घंटी ने बजकर किसी के आने का आवाहन दिया।

जारी रहेगा...

अब शायद कहानी जोर पकड़ रही है ........... अब आपका इस कहानी में बने रहने का बनता ही है !!!!!!!!!!!!
 

Tri2010

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भाग - 26


श्रृष्टि का यूं अचानक बिना कोई कारण बताए चिंतित मुद्रा में घर चले जाना साक्षी सहित बाकि साथियों के लिया चिंता का विषय बन गया।

दूसरे साथी साक्षी से श्रृष्टि के जानें का कारण पूछने लग गए मगर साक्षी भी तो अनजान थी तो बस इतना ही बोलीं...मुझे नहीं पता लेकिन उसे देखकर इतना तो जान ही गईं हूं। कुछ तो हुआ हैं वरना वो ऐसे अचानक घर न चली जाती। तुम सभी काम पे ध्यान दो मैं सर को बताकर आती हूं।

साक्षी राघव के पास पहुंच गई। भीतर जानें की अनुमति लेकर भीतर जाते ही राघव बोला... बोलों साक्षी कुछ काम था।?

साक्षी... सर मै बस इतना बताने आई थी कि श्रृष्टि अभी अभी घर चली गई हैं।

"क्या (चौक कर राघव आगे बोला) श्रृष्टि का एसा व्यवहार मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा हैं वो चाहती किया हैं। आज फिर कोई बहाना बनाकर चली गई हैं।

साक्षी... सर मै इतना तो दावे से कह सकती हूं आज वो किसी तरह का कोई बहाना बनाकर नहीं गई हैं। पर जब वो गई थी तब बहुत ही विचलित और चिंतित थी। जैसे ही उसका फोन आया उसी टाइम से|

"क्या, क्या हुआ कुछ बताकर गई हैं?" राघव चिंतित होते हुए बोला

साक्षी... नहीं सर..।

इतना सुनते ही राघव तुंरत फोन निकाला और किसी को कॉल लगा दिया। एक के बाद एक कई कॉल किया पर दुसरी और से कोई रेस्पॉन्स ही नहीं मिला तो खीजते हुए राघव बोला... श्रृष्टि फोन क्यों रिसीव नहीं कर रहीं हैं?

साक्षी... अरे सर अभी अभी तो गई हैं स्कूटी चला रहीं होगी। आप चिंता न करें मैं थोड़ी देर में उससे बात करके आपको बता देती हु । अच्छा अब मैं जाती हूं और सभी को बता देती हूं आज का लंच कैंसिल हों गया हैं।

राघव... क्यों, लंच कैंसिल क्यों करना?

साक्षी... अरे सर जिसके लिए लंच प्लान किया गया था वो ही चली गई हैं। तो फिर लंच पर जाकर क्या फायदा?

राघव... नहीं साक्षी लंच कैंसिल नहीं कर सकते हैं। ऐसा किया तो उन सभी के अरमानों पर पानी फ़िर जायेगा। और मेरी क्या वेल्यु रहेगी

साक्षी... आप के अरमानों पर पानी फिर गया उसका क्या?

राघव... मेरे अरमानों पर पानी फिरता रहता हैं। अब तो इसकी आदत सी हो गई हैं। मैं तुम्हें वहा का एड्रेस दे देता हूं तुम सभी को साथ लेकर चली जाना

साक्षी... जाहिर सी बात है श्रृष्टि नहीं जा रही है मतलब आप भी नहीं जाओगे। आगर आप जा रहे है तो मैं खुद के जाने में बारे में सोच सकती हूं। बोलिए आप चल रहे हों।

राघव…सॉरी साक्षी मैं….।

साक्षी... बस सर मै समझ गयी। अब ये लंच का प्रोग्राम कैंसिल मतलब कैंसिल।

राघव…साक्षी समझा कारों यार।

साक्षी... समझ ही तो गई हूं तभी तो बोल रहीं हूं। दो आशिक एक दूसरे से प्यार का इजहार कर पाए इसलिए लंच पे जाने का प्लान किया गया था जब दोनों ही नहीं जा रहे है तो हमारे जानें का मतलब पैदा ही नहीं होता हैं। और अगर इस बहाने काम हो जाता तो हम सब ख़ुशी के मारे और एक पार्टी मांग लेते ही ह ही ही

इतना बोलकर साक्षी चल दि। जाते जाते पलट कर बोलीं... सर आप चिंता न करे उनके सामने आप की नाक नहीं कटने दूंगी।

राघव ने रूकने को बोला पर साक्षी नही रूकी वो चली गई। जब सहयोगियों के पास पहुंची तो साक्षी बोलीं...सुनो मुझे तुम सब से एक सवाल पूछना हैं। क्या तुम सब राघव सर के साथ लंच पर जाना चाहते हों?

"ये भी कोई पूछने की बात हैं। सर ने खुद ही कहा हैं तो जाना तो बनता हैं भला ऐसा मौका रोज रोज कहा मिलता हैं।" सर को लुटने का हा हा हा हा एक सहयोगी बोला

एक साथ सभी ने अपनी अपनी मनसा जहीर कर दिया जिसे सुनकर साक्षी बोलीं...कह तो सही रहे हों ऐसा मौका रोज रोज नहीं मिलता हैं पर श्रृष्टि चली गई है इसलिए मेरा भी मन नहीं हैं। मैं तो भाई सर को मना कर आई हूं। तुम सभी को जाना है तो चले जाना सर जानें को तैयार हैं।

साक्षी के लंच पे जाने से मना कर देने पर सभी पहले तो एक दूसरे का चेहरा ताकने लगे फिर आपस में विचार विमर्श करने लग गए। कुछ देर बाद उनमें से एक बोला... क्या साक्षी मैम कम से कम आप तो चलती बड़े दिनों से सोच रहा था। आपको लंच पर चलने को कहू पर हिम्मत नहीं जुटा पाया आज राघव सर के बहाने मेरी इच्छा पूरी हों रही थी मगर लगता है मेरी किस्मत एक टांग की घोड़ी पर सवार होकर धीरे धीरे आ रहा हैं जो बात बनते बनते बिगड़ गया।

"मतलब " चौकते हुए साक्षी बोलीं

"अरे बोल दे शिवम ( ये वही कर्मचारी है जो हमेशा साक्षी के पक्ष में होता था याद है ना) आज मौका है इतनी हिम्मत करके ये बोल दिया है तो आगे का भी बोल दे जो बोलने के लिए लंच पर ले जाना चाहता था।" एक सहयोगी धीरे से शिवम के कान में बोला

शिवम... वो साक्षी मैम, वो क्या हैं न मैं आपको बहुत दिनों से पसंद करता हूं और प्यार भी पर कभी कहने का साहस ही नहीं जुटा पाया।

"तो फिर आज कैसे साहस जुटा लिया।" मुस्कुराते हुए साक्षी बोलीं

शिवम... वो आज आपके साथ लंच पर न जा पाने की हताशा के कारण कुछ बातें निकल गया फिर…

"फ़िर इसने मेरे कान भरने से पुरी बात उसके मुंह से निकल गया। क्यों शिवम सही कहा न।" शिवम की बाते पूरा करते हुए उसके कान में बोलने वाले ने बोला

साक्षी... चलो अच्छा हुआ जो आज बोल दिया। मैं भी कई दिनों से गौर कर रहीं थी तुम कुछ कहना चाहते हों मगर बात जुबां तक आते आते कही अटक जा रहा था। अच्छा मुझे थोड़ा वक्त मिल सकता है या फिर आज ही जवाब देना हैं।?

शिवम... नहीं आपको वक्त चहिए तो ले लो मगर थोड़ा जल्दी बोल देना।

हां मेम जरा जल्दी ही बोल देना शिवम् से रहा नहीं जाएगा उसी कर्मचारी ने उसकी टांग खीचते हुए बोला

साक्षी... ठीक है अब बोलों किसी को सर के साथ लंच पर जाना हैं।

"अब भला लंच पर कौन जायेगा। लंच तो यहीं करेंगे और लंच पार्टी शिवम देगा।" एक सहयोगी बोला

शिवम... वो क्यों भाला अभी सिर्फ मैने बोला है उधर से कोई जबाव नहीं आया जिस दिन जवाब आयेगा अगर हां हुआ तो भरपुर पार्टी दूंगा।

"चल ठीक है तेरी बात मान लेते है। साक्षी मैम आप सर को बोल दिजिए लंच पार्टी कैंसिल कोई नहीं जा रहा हैं।"

लंच कैंसिल करने की बात जब साक्षी राघव को बोलने गई तो सुनने के बाद राघव बोला... तो साक्षी तुम्हें भी तुम्हारा चाहने वाला मिल गया।

साक्षी...मतलब की आज फ़िर आप छुप छुप कर हमे देख और हमारी बाते सुन रहे थे।

राघव…हा साक्षी...।

साक्षी... आप अपनी ये आदत कब छोड़ेंगे।

राघव... कभी नहीं! साक्षी शिवम को लेकर जो भी फैंसला लेना सोच समझकर कर लेना क्योंकि मुझे लगता हैं शिवम तुम्हारे लिए बिल्कुल परफेक्ट लड़का हैं। मैं बस अपनी राय बता रहा हूं।

साक्षी...वो मैं देख लूंगी कुछ भी जवाब देने से पहले शिवम को अच्छे से परख लूंगी अच्छा अब मैं चलती हूं कुछ काम भी कर लेती हूं।





Wonderful update and nice story
 
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