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Romance श्रृष्टि की गजब रित

Funlover

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भाग - 30


श्रृष्टि के एक सवाल ने साक्षी को विचाराधीन कर दिया। दोषी कौन है मां, बाप या फिर नाना नानी कुछ देर गहन विचार के बाद साक्षी बोलीं...यार तूने जो किस्सा सुनाया उसे सुनने के बाद मेरे समझ में नहीं आ रहा हैं कि मैं किसे दोषी मानूं कभी लगता है तेरा बाप दोषी हैं कभी लगता तेरी मां दोषी हैं कभी लगता है तेरे नाना नानी दोषी है कभी तो ऐसा लगता है जैसे तीनों ही अपने अपने जगह दोषी हैं।

श्रृष्टि…तू सही कह रहीं है कौन दोषी है ये कह पाना असम्भव है। पता हैं मां खुद को दोषी मानती है और कहती है वो ऐसे दोहरे चरित्र शख्सियत वाले इंसान से प्यार न करती तो ऐसा कभी नहीं होता।

सब से बड़ी दुःख की बात ये है की उनकी भरी जवानी में उन्हों ने मेरी वजह से दूसरी शादी की नहीं सोची या फिर उनका एक अनुभव ने उन्हें ये करने से रोक के रखा जो भी है पर एक स्त्री या फिर पुरुष एक सही उम्र के पड़ाव पर दोनों को एक दुसरे की जरुरत होती है तुम समज सकती हो मै क्या कह रही हु ? उनका ये उपकार है मेरे पर और उन्हों ने अपनी जवानी मुज पर कुर्बान कर दी

कभी कभी सोच के ही डर लगता है अगर मेरे साथ भी ऐसा हुआ तो ????????

साक्षी…यार ये आंटी भी अजीब ही सोचती है भला वो अकेले कैसे दोषी हुइ। प्यार करना कोई गुनाह थोड़ी न है। हां उनसे गुनाह बस इतना हुआ की उन्होंने घर से भागकर शादी किया और प्यार ऐसे शख्स से किया जिसे उनसे प्यार था ही नहीं इसमें तेरा बाप भी कम दोषी नहीं है जब वो जान रहें थे कि तेरे नाना नानी राजी नहीं है। फिर उन्हें तेरे मां से प्यार था ही नहीं तो भाग कर शादी करने का विचार ही नहीं करना चहिए था। और तुम्हारी मा को भोग ना सही बात नहीं थी एक स्त्री की भावनाओं से खेलना मतलब वो स्त्री की जिंदगी से खेलना या फिर उसकी ह्त्या के बराबर है.......तेरे नाना नानी भी कम दोषी नहीं है उन्हें जब पता चला की बेटी किसी से प्यार करती हैं तो मान लेना चाहिए था और लड़के को परख लेते अगर गलत होते तब तेरी मां को समझा देते तो शायद ऐसा नहीं होता। तुझे क्या लगता हैं?

श्रृष्टि... मुझे लगता हैं तीनों में से कोई दोषी नहीं है अगर कोई दोषी है तो वो है परिस्थिति शायद उस वक्त कोई ऐसी परिस्थिति बनी होगी जिसके कारण मां और पापा मिले होंगे। उनकी मुलाकाते बढ़ती गई और शायद तब पापा जानें होंगे कि मेरे नाना नानी काफी ज्यादा धन संपन्न है तब शायद उनके मन में लालच ने जन्म ले लिया होगा और उनका मूल मकसद मां को पाना हो गया होगा फ़िर नाना नानी के मना कर देने पर परिस्थिति उनके विपरीत बन गइ और परिस्थिति को अपने पक्ष में करने के लिए उन्होंने भागकर शादी करने की योजना बनाया होगा मगर शादी के बाद भी परिस्थिति उनके पक्ष में नहीं बना तब शायद किसी परिस्थिति के चलते दूसरी महिला से मिले फिर सब परिस्थिती के भेट चढ़ती गई और मैं भी उसी परिस्थिती का शिकार बन गईं। या फिर उस परिस्थिति का फल स्वरुप हु

साक्षी... मुझे नहीं लगता की सिर्फ परिस्थिती ही दोषी हैं फ़िर भी एक बार को तेरा कहा मान लिया जाएं तो तू कैसे परिस्थिति की शिकार बनी देख श्रृष्टि तेरा बाप और नाना नानी ने जिन दोहरे चरित्र शख्सियत का प्रमाण दिया हैं। उनके जैसा राघव सर को मान लेना न्यायसंगत नहीं है क्योंकि राघव सर को बहुत वक्त से मैं जानती हूं और वो जैसा है वैसे ही दिखते हैं।

श्रृष्टि... सर के बारे में जो तू कह रही हैं। वो मुझे भी सही लगता हैं पर जरा सोच जब उनके घर वालों को पता चलेगा कि मैं एक तलकसुदा महिला की बेटी हूं जिसके मां बाप खुद उससे ताल्लुक नहीं रखते तब क्या होगा।

साक्षी... आंटी का तलाकसुदा होना तेरे और राघव सर का एक दूसरे से दूर होने का कारण नहीं बनता और बनना भी नहीं चाहिए क्योंकि राघव सर के पापा ने भी दो शादी किया है यह बात तू भी जानती हैं और पुरा शहर भी जानता हैं।

श्रृष्टि...उनके दूसरी शादी करने के पीछे मूल कारण उनके पहली पत्नी का मौत है पर मां के मामले में ऐसा कुछ नहीं हैं। मां तलाक सुदा हैं और बहुत सालों से अकेले रह रही हैं। अकेली महिला का चरित्र चित्रण समाज के ठेकेदार अपने अपने सहूलियत के अनुसार करते हैं। कल को मेरे कारण उनके परिवार वाले मां पर टिका टिप्पणी करे ये मुझे सहा नहीं जाएगा इसलिए मेरा उनसे दूर रहना ही बेहतर हैं।

इतना कहकर श्रृष्टि ने आंखें मिच लिया और अपना मुंह दूसरी ओर घुमा लिया ये देख साक्षी हल्का सा मुस्कुरा दिया फिर श्रृष्टि का मुंह खुद की ओर घुमा कर बोलीं... श्रृष्टि क्या तू सर से दूर रह पाएगी सिर्फ कहने भर से तेरी आंखें भर आई।

श्रृष्टि... नहीं जानती क्या करूंगी ये भी नहीं जानती मेरे किस्मत में क्या लिखा हैं मेरी छोड़ तू अपनी बता।

साक्षी... मैं तो अपनी बता ही दूंगी लेकिन मै अब तुजे एक गारंटी देती हु की तेरे किस्मत में राघव सर ही लिखा है ये मैं सुनिश्चित करके ही रहूंगी। चाहे उसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े और कुछ भी का मतलब कुछ भी

अब ये साक्षी पहले जैसी नहीं है और ख़ासकर तेरे साथ और आंटी के साथ जब मैंने आंटी के बारे में जाना |

श्रृष्टि... सुनिश्चित करेंगी कहीं तू...।

"हां मैं राघव सर को सब बता दूंगी।" श्रृष्टि की बाते पूरा करते हुए साक्षी बोलीं

श्रृष्टि...तू ऐसा बिल्कुल नहीं करेगी तुझे मेरी कसम है अगर तू मुझे दोस्त मानती है तो तुझे हमारी दोस्ती का वास्ता जो भी मैंने तुझे बताया इसका एक अंश भी तू सर को नहीं बताएगी।

साक्षी...तू मुझे तो वास्ता देकर रोक लिया मगर ऊपर जो बैठा है न इस श्रृष्टि की रचायता उसने जरूर तेरे लिए कुछ अच्छा सोच के ही रखा है और शायद उस ओर कदम बड़ा भी चुके होंगे बस सही वक्त आने का इंतेजार करना हैं।

श्रृष्टि...जो भी सोचा होगा वो मेरे पक्ष में तो नहीं होगा फ़िर भी तू कहती है तो प्रतीक्षा भी करके देख लूंगी अच्छा तू बैठ मैं दो कप चाय और बना लाती हूं फ़िर चाय की चुस्कियां लेते हुए तेरी प्रेम कहानी भी सुन लूंगी।

साक्षी...सिर्फ चाय ही बनना चाय के बहाने आंसू बहाने न लग जाना।

बिना कुछ कहें हल्का सा मुस्कुरा दिया फिर चाय बनाने चली गईं।

इस बिच माताश्री भी आ गई तो साक्षी ने बूम लगाईं श्रुष्टि अब तीन कप चाय आंटीजी आ गई है



अंदर से श्रुष्टि हा ठीक है

और आंटी से बाते करने लगी

थोड़ी बात चित के दौरान माताश्री ने जान लिया की साक्षी अब सब जानती है



थोड़ी ही देर में दो काफ चाय लेकर लौटी और चाय की चुस्कियां लेते हुए साक्षी को उसकी प्रेम कहानी सुनाने को बोला।

साक्षी ने एक बार माताश्री के सामने देखा तो माताश्री बोली क्या मुझे जान ने का अधिकार नहीं है या फिर मै मा ज्यादा हु और दोस्त कम हु |

साक्षी “ नहीं आंटी आप से अब क्या छुपाना जो है सब सामने है या होगा “

माता श्री “ तो अब मुझे तेरी प्रेम कहानी बाद में जानना है सब से पहले तू अपने बारे मे बता क्यों की तुम हमारे बारेमे सब जानती हो पर हम तुम्हे सिर्फ नाम से ही जानते है और कुछ नहीं “

साक्षी “ मेरी कहानी या मेर एबारेमे में कुछ ज्यादा रोचक नहीं है आंटी “

जो भी हो सराहने वाली कोई बात होगी तो सराहेंगे और डांटनेवाली बात होगी तो जरुर डातुंगी जो भी है बस बता भी “



साक्षी ने शुरुआत में तो टाल ने की की पर दोनों मा बेटी के सामने हार गई



बने रहिये
 

vickyrock

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श्रृष्टि के एक सवाल ने साक्षी को विचाराधीन कर दिया। दोषी कौन है मां, बाप या फिर नाना नानी कुछ देर गहन विचार के बाद साक्षी बोलीं...यार तूने जो किस्सा सुनाया उसे सुनने के बाद मेरे समझ में नहीं आ रहा हैं कि मैं किसे दोषी मानूं कभी लगता है तेरा बाप दोषी हैं कभी लगता तेरी मां दोषी हैं कभी लगता है तेरे नाना नानी दोषी है कभी तो ऐसा लगता है जैसे तीनों ही अपने अपने जगह दोषी हैं।

श्रृष्टि…तू सही कह रहीं है कौन दोषी है ये कह पाना असम्भव है। पता हैं मां खुद को दोषी मानती है और कहती है वो ऐसे दोहरे चरित्र शख्सियत वाले इंसान से प्यार न करती तो ऐसा कभी नहीं होता।

सब से बड़ी दुःख की बात ये है की उनकी भरी जवानी में उन्हों ने मेरी वजह से दूसरी शादी की नहीं सोची या फिर उनका एक अनुभव ने उन्हें ये करने से रोक के रखा जो भी है पर एक स्त्री या फिर पुरुष एक सही उम्र के पड़ाव पर दोनों को एक दुसरे की जरुरत होती है तुम समज सकती हो मै क्या कह रही हु ? उनका ये उपकार है मेरे पर और उन्हों ने अपनी जवानी मुज पर कुर्बान कर दी

कभी कभी सोच के ही डर लगता है अगर मेरे साथ भी ऐसा हुआ तो ????????

साक्षी…यार ये आंटी भी अजीब ही सोचती है भला वो अकेले कैसे दोषी हुइ। प्यार करना कोई गुनाह थोड़ी न है। हां उनसे गुनाह बस इतना हुआ की उन्होंने घर से भागकर शादी किया और प्यार ऐसे शख्स से किया जिसे उनसे प्यार था ही नहीं इसमें तेरा बाप भी कम दोषी नहीं है जब वो जान रहें थे कि तेरे नाना नानी राजी नहीं है। फिर उन्हें तेरे मां से प्यार था ही नहीं तो भाग कर शादी करने का विचार ही नहीं करना चहिए था। और तुम्हारी मा को भोग ना सही बात नहीं थी एक स्त्री की भावनाओं से खेलना मतलब वो स्त्री की जिंदगी से खेलना या फिर उसकी ह्त्या के बराबर है.......तेरे नाना नानी भी कम दोषी नहीं है उन्हें जब पता चला की बेटी किसी से प्यार करती हैं तो मान लेना चाहिए था और लड़के को परख लेते अगर गलत होते तब तेरी मां को समझा देते तो शायद ऐसा नहीं होता। तुझे क्या लगता हैं?

श्रृष्टि... मुझे लगता हैं तीनों में से कोई दोषी नहीं है अगर कोई दोषी है तो वो है परिस्थिति शायद उस वक्त कोई ऐसी परिस्थिति बनी होगी जिसके कारण मां और पापा मिले होंगे। उनकी मुलाकाते बढ़ती गई और शायद तब पापा जानें होंगे कि मेरे नाना नानी काफी ज्यादा धन संपन्न है तब शायद उनके मन में लालच ने जन्म ले लिया होगा और उनका मूल मकसद मां को पाना हो गया होगा फ़िर नाना नानी के मना कर देने पर परिस्थिति उनके विपरीत बन गइ और परिस्थिति को अपने पक्ष में करने के लिए उन्होंने भागकर शादी करने की योजना बनाया होगा मगर शादी के बाद भी परिस्थिति उनके पक्ष में नहीं बना तब शायद किसी परिस्थिति के चलते दूसरी महिला से मिले फिर सब परिस्थिती के भेट चढ़ती गई और मैं भी उसी परिस्थिती का शिकार बन गईं। या फिर उस परिस्थिति का फल स्वरुप हु

साक्षी... मुझे नहीं लगता की सिर्फ परिस्थिती ही दोषी हैं फ़िर भी एक बार को तेरा कहा मान लिया जाएं तो तू कैसे परिस्थिति की शिकार बनी देख श्रृष्टि तेरा बाप और नाना नानी ने जिन दोहरे चरित्र शख्सियत का प्रमाण दिया हैं। उनके जैसा राघव सर को मान लेना न्यायसंगत नहीं है क्योंकि राघव सर को बहुत वक्त से मैं जानती हूं और वो जैसा है वैसे ही दिखते हैं।

श्रृष्टि... सर के बारे में जो तू कह रही हैं। वो मुझे भी सही लगता हैं पर जरा सोच जब उनके घर वालों को पता चलेगा कि मैं एक तलकसुदा महिला की बेटी हूं जिसके मां बाप खुद उससे ताल्लुक नहीं रखते तब क्या होगा।

साक्षी... आंटी का तलाकसुदा होना तेरे और राघव सर का एक दूसरे से दूर होने का कारण नहीं बनता और बनना भी नहीं चाहिए क्योंकि राघव सर के पापा ने भी दो शादी किया है यह बात तू भी जानती हैं और पुरा शहर भी जानता हैं।

श्रृष्टि...उनके दूसरी शादी करने के पीछे मूल कारण उनके पहली पत्नी का मौत है पर मां के मामले में ऐसा कुछ नहीं हैं। मां तलाक सुदा हैं और बहुत सालों से अकेले रह रही हैं। अकेली महिला का चरित्र चित्रण समाज के ठेकेदार अपने अपने सहूलियत के अनुसार करते हैं। कल को मेरे कारण उनके परिवार वाले मां पर टिका टिप्पणी करे ये मुझे सहा नहीं जाएगा इसलिए मेरा उनसे दूर रहना ही बेहतर हैं।

इतना कहकर श्रृष्टि ने आंखें मिच लिया और अपना मुंह दूसरी ओर घुमा लिया ये देख साक्षी हल्का सा मुस्कुरा दिया फिर श्रृष्टि का मुंह खुद की ओर घुमा कर बोलीं... श्रृष्टि क्या तू सर से दूर रह पाएगी सिर्फ कहने भर से तेरी आंखें भर आई।

श्रृष्टि... नहीं जानती क्या करूंगी ये भी नहीं जानती मेरे किस्मत में क्या लिखा हैं मेरी छोड़ तू अपनी बता।

साक्षी... मैं तो अपनी बता ही दूंगी लेकिन मै अब तुजे एक गारंटी देती हु की तेरे किस्मत में राघव सर ही लिखा है ये मैं सुनिश्चित करके ही रहूंगी। चाहे उसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े और कुछ भी का मतलब कुछ भी

अब ये साक्षी पहले जैसी नहीं है और ख़ासकर तेरे साथ और आंटी के साथ जब मैंने आंटी के बारे में जाना |

श्रृष्टि... सुनिश्चित करेंगी कहीं तू...।

"हां मैं राघव सर को सब बता दूंगी।" श्रृष्टि की बाते पूरा करते हुए साक्षी बोलीं

श्रृष्टि...तू ऐसा बिल्कुल नहीं करेगी तुझे मेरी कसम है अगर तू मुझे दोस्त मानती है तो तुझे हमारी दोस्ती का वास्ता जो भी मैंने तुझे बताया इसका एक अंश भी तू सर को नहीं बताएगी।

साक्षी...तू मुझे तो वास्ता देकर रोक लिया मगर ऊपर जो बैठा है न इस श्रृष्टि की रचायता उसने जरूर तेरे लिए कुछ अच्छा सोच के ही रखा है और शायद उस ओर कदम बड़ा भी चुके होंगे बस सही वक्त आने का इंतेजार करना हैं।

श्रृष्टि...जो भी सोचा होगा वो मेरे पक्ष में तो नहीं होगा फ़िर भी तू कहती है तो प्रतीक्षा भी करके देख लूंगी अच्छा तू बैठ मैं दो कप चाय और बना लाती हूं फ़िर चाय की चुस्कियां लेते हुए तेरी प्रेम कहानी भी सुन लूंगी।

साक्षी...सिर्फ चाय ही बनना चाय के बहाने आंसू बहाने न लग जाना।

बिना कुछ कहें हल्का सा मुस्कुरा दिया फिर चाय बनाने चली गईं।

इस बिच माताश्री भी आ गई तो साक्षी ने बूम लगाईं श्रुष्टि अब तीन कप चाय आंटीजी आ गई है




अंदर से श्रुष्टि हा ठीक है

और आंटी से बाते करने लगी

थोड़ी बात चित के दौरान माताश्री ने जान लिया की साक्षी अब सब जानती है




थोड़ी ही देर में दो काफ चाय लेकर लौटी और चाय की चुस्कियां लेते हुए साक्षी को उसकी प्रेम कहानी सुनाने को बोला।

साक्षी ने एक बार माताश्री के सामने देखा तो माताश्री बोली क्या मुझे जान ने का अधिकार नहीं है या फिर मै मा ज्यादा हु और दोस्त कम हु |

साक्षी “ नहीं आंटी आप से अब क्या छुपाना जो है सब सामने है या होगा “

माता श्री “ तो अब मुझे तेरी प्रेम कहानी बाद में जानना है सब से पहले तू अपने बारे मे बता क्यों की तुम हमारे बारेमे सब जानती हो पर हम तुम्हे सिर्फ नाम से ही जानते है और कुछ नहीं “

साक्षी “ मेरी कहानी या मेर एबारेमे में कुछ ज्यादा रोचक नहीं है आंटी “

जो भी हो सराहने वाली कोई बात होगी तो सराहेंगे और डांटनेवाली बात होगी तो जरुर डातुंगी जो भी है बस बता भी “




साक्षी ने शुरुआत में तो टाल ने की की पर दोनों मा बेटी के सामने हार गई



बने रहिये
गजब कहानी 👌
 

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अब साक्षी की जुबान से

साक्षी ने बोलला शुरू किया

देखो आंटी मै ज्यादा डीप में तो नहीं बताउंगी पर ऊपर ऊपर से बता देती हु

मेरे मा बाप का नाम “अनाथालय” है

क्या ??????? दोनों मा बेटी के मुह से एक स्वर निकला

साक्षी: अरे अभी से हैरान हो गई दोनों ........पहले मुझे बता देने दो बाद में सवाल जवाब भी होते रहेंगे

साक्षी आगे बोली

मुझे नहीं पता मै अनाथालय कैसे पहोची हु, मा ने जन्म देते ही छोड़ दिया होगा या फिर मै एक अनैतिक सम्बन्ध का परिणाम हो सकती हु या फिर किसी बलात्कार का फल या फिर एक हवस मा की भी या बाप की भी या दोनों की या फिर एक अनचाही औलाद या फिर किसी की भूल कम उम्र की भूल या फिर एक पाप जो भी हो लेकिन बाद में ये सब मेरे सर्टिफिकेट बन गए |



खेर हर बच्चे के पैदा होने के मकसद होते है मा बाप की आशा होती है उम्मीद होती है ख़ुशी होती है अपने प्रेम का सफल फल के स्वरुप में माना जाता है या फिर मा बाप को अपनी क्रियेटिविटी का अनोखा सुख होता है

मेरा जन्म मकसद के बगैर का था खेर अनाथालय में पाई गई और वही बड़ी हुई मेट्रन के हाथ निचे उनकी देखरेख में पली बाप का नाम ऐसे ही दिया गया रामलाल जो सिर्फ एक सर्टिफिकेट के लिए जरुरी था और वहां भी एक हेस्त्रिक लगा हुआ है की सिर्फ नाम दिया गया है जैविक कुछ भी नहीं

स्कुल में अव्वल रहने की वजह से पढ़ाई जारी रखी गई वो भी ट्रस्टी के मेहरबानी से..... खेर प्यार प्रेम क्या होता है वो हम अनाथो के लिए शब्दकोष से बहार होता है

स्कुल शिक्षण के बाद कोलेज में जाने के लिए और उसकी फ़ीस भरने के लिए मैंने लोगो के घरकाम भी किया सफाई भी की, ऑफिस की सफाई भी की

आखिर एक लड़की हु ना निखरी भी और रस पीनेवाले शुरू भि हुए

एक दिन मेरा सौदा भी हो गया लेकिन जैसे तैसे मै वहा से भाग निकली

आंटी, नारी होना और वो भी सुन्दर मतलब गुनाह है मुझे कम उमर में ही पता चला की नारी क्या होती है और वही से मैंने थाम ली की मै बिकनेवालो में से नहीं हु मा बाप ने छोड़ा है लेकिन जीना तो मुझे है ही और अपने ढंग से मेट्रन से लड़ी भी और सिखा की कैसे जिंदगी में जीने के लिए लड़ना जरुरी है अपने वजूद के लिए

आखिर फिर से वोही मेट्रन के निचे जाना पड़ा लेकिन इस बार उद्देश्य कोलेज था काम भी करती रही और अपने आप को बचाती भी रही और इस प्रकार मेरा निखार जो आज है वैसा बना और मेरा सौदा फिर से हो गया पर भगवान ने मेरे नसीब कुछ अच्छे लिखे थे की मैंने उनकी बाते सुनी और अनाथालय छोड़ दिया और मै भी, आप ही की तरह यहाँ आके एक झोपड़ी में रही और कोलेज ख़त्म किया और आज मै ऐसी हु जो आप लोगो को दिख रही हु|

हां यहाँ आप से एक बात नहीं छुपाना चाहती ऐसे परिश्थिति से अपने आप को बचाया भी लेकिन अपने आप को अक्षत नहीं रख पायी सो आज मै अक्षत नहीं हु अब ये ना पूछना की वो भेडीया कौन था उस नज़र से मै आज भी अक्षत हु पर मेरी मेट्रन ने मुज से समलैंगिक शारीरिक सम्बन्ध बनाए थे मेरे लिए वो जरुरी भी था क्यों की वोही थी जो मुझे बचा के रख सकती थी फिर भी पैसो के लिए उसने मेरा सौदा 2 बार किया पर बच निकली सो किसी पुरुष ने मेरी अक्षतता नहीं ली पर एक नार ही......

अब आप जान ना चाहेगी की मेरी उपलब्धि

ये जान लो की मेरी उपलब्धि ये है की मै कोई वेश्या नहीं बनी अपने आप को काबिल बनाया और भद्र समाज में रहने के काबिल हु ये सब से बड़ी उपलब्धि होती है हम जैसे अनाथो के लिए

अब श्रुष्टि ये जान लो की मै ने तेरे साथ जो सुलूक किया वो मेरा पुराना अनुभव से हुआ मुझे लगता है की सिर्फ मै ही होनी चाहिए लेकिन तुम्हारे व्यवहार ने मुझे समाज को फिर मान देना पड़ा वर्ना मै इस भद्र समाज को सिर्फ गाली ही देती हु या देती थी

मै नशिबवाली हु पर अनाथालय की हर बच्ची मेरे जैसे नसीब नहीं ले के आती कही ना कही उसे हार मान ही लेनी पड़ती है क्यों की रक्षा का विशवास मा बाप की नहीं, सर के ऊपर छत्र नहीं, सुरक्षा की कोई गेरंटी नहीं.........फिर भी सभी जीती है

श्रुष्टि तुम्हे ऐसा लगता है की मा की वजह से ऐसा होता है या फिर तुम खुद अपने आप को कोसती हो और अपनी मा के गोद में अपना सर रख के रो सकती हो, एक प्रेमाल और हेतार्थ हाथ सदा के लिए तेरे सीर पर रहेगा उसका विश्वास है

मै क्या करू ???? कहा रोउ कौनसे कंधे पे जाके ,,,, किस को अपना ख़ुशी या दुःख पेश करू ? बहार एक से एक कंधे पड़े है जो रोने देते है और अपनी हवस भी मिटाते है विश्वनीय कंधा तुम्हारे पास है.....कुछ किताबो में पढ़ा था श्रुष्टि की कुछ दुःख तो मा के शरीर की गंध (सुगंध) आते ही दूर हो जाते है मुझे पता नहीं की वो गंध या सुगंध कैसी होती है और बेटी के दुःख उस सुगंध कैसे दूर करती है, मुज से विवरण मत पूछना

लेकिन फिर भी खुश हु हा ये जरुर है की तुम जैसो को मा के प्रेम पाते हुए देख के मुझे बहोत जलन होती है मै तुरंत वो जगह छोड़ देती हु और उसी वजह से मैंने उस दिन तुम दोनों से खास बात नहीं की थी

मै मेरे घर जाके कितने सवाल पूछती हु अपने माँ और बाप से कोई नहीं जानता लेकिन कोई जवाब भी तो नहीं देता ........मेरे अनुभव और आकलन ने मुझे ये सिखाया है की कुछ भी करो लेकिन अपने वजूद बनाए रखो शायद इसलिए मैंने तुम से ऐसा व्यवहार किया माफ़ कर देना अगर हो सके तो



अब रूम में कुल मिला के 6 आंखे रो रही थी

आखिर माताश्री ने चुपकी तोड़ी “बेटा तुम्हारे बारे में जानने के बाद हमारा रोना तो बिलकुल बेकार है तुम सच में महान हो मुझे पता है की एक अकेली नारी को जीने के लिए कितना सहन करना पड़ता है और तूने तो बचपन से यही देखा है

“मुझे तुम से कोई शिकायत पहले भी नहीं थी और आज भी नहीं है” श्रुष्टि ने भी अपना विचार प्रगट कीया

साक्षी “खेर मैंने कहा था ना की मेरी कहानी रोचक नहीं” मानती ही नहीं थी

हो सकता है मैंने कुछ गलत बोला हो या मेरी भाषा अभद्र रही हो पर मैंने यही सिखा है और यही सिखाया है अगर मा होती तो शायद मै भी आप लोगों की तरह .........भद्र ..ही ......होती ..........रो देती हुई

माताश्री “ बेटी एक बात कहू ?? अगर तुम्हे बुरा ना लगे तो ?

आंटीजी आपको पूछने का कोई अधिकार नहीं है सिर्फ कहना है चाहे बुरा लगे या अच्छा

“क्या मै आंटी जी से माताश्री में आ सकती हु तुम्हारे लिए ???”

साक्षी हतप्रभ बनी हुई देखती रही

श्रुष्टि: अब जल्दी जवाब दे वर्ना मै दे दुगी और माँ को बता दूंगी की आपने मुझे एक बहन दे दी

साक्षी कुछ बोल ना सकी बस माता के कंधे पे सर रख के फुट फुट और चिल्ला चिल्ला के रोने लगी

और 4 आँखे और 2 ह्रदय भी उसका साथ देने लगे

मा : रो ले बेटे जितना रो सकती है रो ले और साक्षी की पीठ को पसारे जा रही थी

काफी देर के बाद में साक्षी अपने आप को संभल पायी

आंटीजी आपका आभार

उतना ही बोल सकी की एक हल्का सा तमाचा उसके गाल पर पड़ा और वो मा के हाथ से था

“आज के बाद आंटी शब्द मेरे लिए तुम्हारे मुह से निकला तो अभि सिर्फ़ हल्का तमाचा पडा है फिर झाड़ू से मार पड़ेगी ये मत भूलना की मै तुम्हे झेलती जाउंगी” कह के उसे गले लगा दिया और कान में बोली मा बोल

“मा” !!!!!!!!!! माफ़ कर दो ............साक्षी अपनी आप को ना रोक पाई और फिर से रोने बैठ गई



बहन से मिलेगी ??? या दोस्त से मिलेगी या फिर सहकर्मचारी से ????

यहाँ बहन से मिलूंगी, खानगी में दोस्त से मिलूंगी जब मा नहीं होगी तब, और ऑफिस में सहकर्मचारी से मिलूंगी बोल अब कुछ बोलना है तुजे !!!!!!!!!!



वातावरण गमगीनी से कुछ प्रसन्नता की तरफ बढ़ा



अरे हां तेरी प्रेम कहानी का मुझे उस में ज्यादा रूचि थी ये मा भी ना बिच में आ गई सच में “ कह के साक्षी को आँख मरते हुए और एक ऊँगली उसके पेट में सरसरी करते हुए बोली

“देख अब मा है मतलब वो सब नहीं” मा से शर्म रख साक्षी ने भी आँख मारते हुए जवाब दिया



अरे मा है तो क्या है बेटे बता भी दे मन में रखने से तो अच्छा है और मा भी तो दोस्त बन ही जाती है जब बेटी बैठती उठती हो जाती है ठीक है चलो मै फिर थोड़ी चाय बना लेती हु कह के दोनों बहनों को अकेला छोड़ ना ही बेहतर समजी

मुझे क्या पता ?? ही ही ही ही

चल शुरू कर श्रुष्टि ने फिर से आँख मारी




साक्षी...मेरी प्रेम कहानी तेरी तरह टिपिकल नहीं है बिल्कुल सिंपल सा हैं। जैसा की तू जानती है शिवम और मैं बहुत समय से तिवारी कंस्ट्रक्शन ग्रुप में काम कर रहें हैं। जब से मैं और शिवम एक साथ एक ही प्रोजेक्ट पर काम करने लगें तभी से शिवम मुझे पसंद करने लगा लेकिन मैं उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया क्योंकि मेरे दिमाग़ में कोई ओर ही फितूर चल रहा था। अब तू उस फितूर के बारे में पूछने न लग जाना ठीक हैं। (श्रृष्टि हां में मुंडी हिला दिया तब साक्षी आगे बताना शुरू किया) जैसे जैसे वक्त बीतता गया वो मेरे प्यार में गिरता गया। मैं जो करने को कहता चाहे सही हो या गलत खुद भी करता और दूसरे सहयोगी को भी वैसा करने को मनवा लेता था।

कारण वो सभी जानते थे मगर शिवम में इतनी हिम्मत नहीं हुआ कि वो मुझे प्रपोज कर पाए कहीं न कहीं उसके मन में डर था कहीं मैं बूरा मान गई ओर राघव सर से कहके उसे नौकरी से निकलवा दिया तो वो मूझसे दूर चला जायेगा। बाकी सहयोगी के बार बार कहने पर उसमे थोड़ा थोड़ा हिम्मत आने लगा और मेरे एक हफ्ते की छुट्टी के बाद वापस लौटते ही उसमे बहुत बदलाब आ चुका था। वो मूझसे कुछ कहना चहता था लेकिन झिकक के कारण कहा नहीं पाता था।

जब सर ने हम सभी को लंच पर ले जानें की बात कहा तब शिवम मौका ताड़ने की सोचा और लंच पर ही कोई मौका देखकर मूझसे बात करने का प्लान बना लिया। आंटी की वजह से तू चली आई और तेरे आ जानें के कारण राघव सर लंच पे नहीं जाना चाहते थे।

"क्या सिर्फ मेरे कारण सर लंच पर नहीं जाना चाहते थे।"चौकते हुए श्रृष्टि बोलीं

साक्षी... हां क्योंकि लांच पर जानें का प्लान सिर्फ तेरे कारण बनाया गया था ताकि सर तुझसे बात कर पाए और लंच पर जानें का प्लान मैंने ही बनाने को कहा था क्योंकि तू सर के साथ अकेले कहीं जानें को राज़ी नहीं हों रहीं थीं।

श्रृष्टि…मतलब तू सब जानती थीं ओर मैं सोचती थी तू मेरी हरकते देखकर तुक्का भिड़ती थी जो सही बैठता था।

साक्षी...चल हट पगली मैं सब जान बूझकर कहती थीं। मुझे उस दिन पता चला जब मैं छुट्टी के बाद इस्तीफा देने वापस आईं थीं। तू तो मुझे प्रोजेक्ट हेड बनाने की बात कहकर चली आई पर बाद में सर ने मुझे बता दिया की उनके मन में तेरे लिए क्या है। पता है सर कितना हक से कह रहे थे "श्रृष्टि सिर्फ मेरी हैं।"

"श्रृष्टि सिर्फ मेरी हैं।" ये सुनकर श्रृष्टि मुस्करा दिया फ़िर बोला... मैं कितना उनकी हूं ये तो बाद में पाता चलेगा अब तू अपनी सूना।

साक्षी... राघव सर ने मुझे सभी को लंच पे ले जानें को कहा पर मेरा मन जानें को नहीं कर रहा था इसलिए मैंने भी मना कर दिया। मेरे न जानें की बात जब उन लोगों को कहा तो तब शिवम ने झिझकते हुए अपने दिल की बात कह दिया। मुझे पहले से अंदाजा था कि वो कुछ कहना चाहत है। जब जाना तो मैंने उससे कुछ वक्त मांगा और उसने दे भी दिया। इस बीच मैंने उसकी कुंडली खंगाला और उसके साथ छुट्टी वाले दिन कुछ वक्त बिताने लगी तब मुझे पता चला शिवम नेचर का बहुत अच्छा है। मगर अब तेरे बाप और नाना नानी के दोहरे चरित्र शख्सियत की बात जानकर लग रहा हैं शिवम के साथ ओर वक्त बिताना पडेगा। तभी पता चलेगा कही शिवम ने भी दोहरे चरित्र शख्सियत का मुखौटा तो नहीं ओढ़ रखा हैं साथ ही ये भी पाता करना है उसके परिवार वाले कैसे हैं।

जारी रहेगा...
 

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दोस्तों सच कहू तो ये ऊपरवाला एपिसोड लिखते लिखते ही मेरी भी आँखे नम गई थी शायद आँखों ने थोडा पानी बहा ही दिया था
क्यों की लिखते लिखते साक्षी का केरेक्टर मुज में उतर गया था शायद

मुझे नहीं पता आपको क्या लगा वो एपिसोड पढ़ते हुए पर एक नज़र उन अनाथालयो की लडकियों के बारे में सोच के देखना जरा बस ..........यही विनंती ............. मैंने ये एपिसोड बहोत छोटा रखा है क्यों की ये डीप में जाने से बहोत रोना पड सकता है


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Ajju Landwalia

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दोस्तों सच कहू तो ये ऊपरवाला एपिसोड लिखते लिखते ही मेरी भी आँखे नम गई थी शायद आँखों ने थोडा पानी बहा ही दिया था
क्यों की लिखते लिखते साक्षी का केरेक्टर मुज में उतर गया था शायद

मुझे नहीं पता आपको क्या लगा वो एपिसोड पढ़ते हुए पर एक नज़र उन अनाथालयो की लडकियों के बारे में सोच के देखना जरा बस ..........यही विनंती ............. मैंने ये एपिसोड बहोत छोटा रखा है क्यों की ये डीप में जाने से बहोत रोना पड सकता है


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Dear Funlover Ji,

Aaj kaafi sare updates ek sath padhe............kahani kaafi aage badh chuki he..........

Sakshi ki kahani badi hi chunautiyo se bhari huyi he............usne itna survive kiya abdi hi himmat ki baat he...........

Aakhirkar shristi ke man ka vaham/duvisha dur ho hi gayi.............ab intezar he raghav aur shrishti ke purpose ka......

Keep rocking Dear
 
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sunoanuj

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Bahut hi behtarin updates… bhawanaon ka jabardast toofaan tha last update main …

Adhbhut likh rahe ho app …. 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
 
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