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Romance श्रृष्टि की गजब रित

Funlover

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हम तो ऐसी कहानियों के मुरीद है
आप लिखती रहिए
यह मत सोचिए की यौन केवल वीभत्स ही होता है
उसने प्यार ना हो तो वीभतसता आती है
Thank you

Muje sex se koi pareshani nahi
Balki shayad agli kahani meri sexual bhi ho sakti hai
To b frank sexual kahani likhne me jyada magaj daudane ki jarurat nahi hoti jo aya likh do shabdo ki koi khas importance nahi kyo ki main chiz sirf chudai hoti hai
Kher yahavis kahani me shabdo ka khel hai aisa mai samjti hu
Baki aapki bat se bilkul sehmat hu sex kabhi bhi bibhats nahi hai use banaya jata hai
 
  • Wow
Reactions: Raj_sharma

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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ये कहानी मैंने नहीं लिखी है पर किसी और ने लिखी है जो मुझे पसंद आई और मै मानती हु की आप लोगो को भि शायद पसंद आये

ये कहानी नि पूरी क्रेडिट ओरिजिनल लेखक को जाती है पर उनका नाम मै कहानी के अंत में बताउंगी ..............
ये कहानी में sex नहीं है !!!!!

आप का पूरा साथ रहेगा ये उम्मीद रखती हु


और लिखने की कोशिश करती हु ...............

प्लीज़ बने रहिये ....................
Congratulations 🎊 for the new thread ✨
 
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Reactions: Ajju Landwalia

Bittoo

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दोस्तों क्षमा याचना

मुझे अपने बिजनेस की वजह से विदेश जाना पड रहा है तो सोमवार को शायद उपडेट नहीं दे पाऊँगी क्यों की मै ट्रांजिट में होगी

लेकिन मैंने एक व्यवश्था की हुई है की आप को अपडेट मिलते रहे लेकिन पोस्टिंग का समय उस व्यक्ति पर निर्भर रहेगा |और लिखने का समय पे आधारित भी है......


और वैसे भी सिर्फ 4 ही दिनों की बात है फिर वापिस

असुविधा के लिए खेद है ..........बने रहिये

कोशिश करती हु शाम तक दूसरा एपिसोड भी दे दू ताकि कल रविवार को समय मिले ना मिले ......
काम धंधा भी ज़रूरी है
 

Tri2010

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भाग - 10


सहसा श्रृष्टि के आवाज देने से राघव के मस्तिस्क का सर्किट उलझ गया। क्या करे क्या न करे असमंजस की स्थिति में फस गया। मन किया वापस लौट जाएं मगर वो भी नहीं कर सकता था। क्योंकि श्रृष्टि द्वार की ओर आ रहीं थीं। कुछ ही कदम आगे बढ़ पाता कि श्रृष्टि बहार निकलकर उसे देख लेती फ़िर न जानें श्रृष्टि क्या क्या सोच लेती। सहसा राघव ने द्वार को धक्का दिया फ़िर बोला…श्रृष्टि जी मैं राघव।

"अरे सर आप..।" बस इतना ही बोला था कि श्रृष्टि के मन में एक शंका उत्पन्न हुआ और मन ही मन बोलीं...

“कही सर छुपकर तो नहीं देख रहे थे”? पर उन्हे छुपकर देखने की जरूरत क्यों पड़ गईं? वो जब चाहें भीतर आ सकते हैं फिर छुप कर देखने की वजह क्या हों सकता हैं?

“कहीं सर मुझे...” नहीं नहीं मुझे क्यों देखने लगे,

“उस दिन भी तो कैसे टकटकी लगाएं देख रहे थे। जब हम सभी उनके कमरे में गए थे। तो आज छुप कर क्यों नहीं देख सकते हैं?”

नहीं नहीं सर ऐसा नहीं कर सकते।

“मैं भी कितनी पागल हूं क्या से क्या सोचने लग गई लगाता है ज्यादा काम की वजह से मेरा दिमाग फिर गया हैं।“

राघव जिस शंका के चलते वापस नहीं गया। आखिरकार श्रृष्टि के मस्तिष्क ने उस ओर इशारा कर ही दिया। मगर इस वाबली ने अलग ही तर्क देकर अपने मस्तिष्क को चुप करा दिया।

यहां श्रृष्टि ख़ुद से बाते करने में मग्न थी ठीक उसी वक्त राघव भी खुद से बाते करने में मग्न था

"कहीं श्रृष्टि जी को शक तो नहीं हों गया? कि मैं उन्हें छुपकर देख रहा था। नहीं नहीं उनके शक को पुख्ता होने नहीं दिया जा सकता। मुझे कुछ करना होगा जिससे उनका ध्यान उस और न जाएं।"

अजीब कशमकश में दोनो उलझे हुए हैं। एक को शक हों गया मगर अपने मस्तिष्क को तर्क देकर उस ओर सोचने से रोक दिया। दुसरा अगर शक हुआ भी है तो शक को पुख्ता करने के लिए शक पर ध्यान केंद्रित न कर पाएं। उससे रोकना चहता हैं। क्या लिखा है दोनों की किस्मत में ये तो वक्त ही बता सकता हैं हमे सिर्फ उस वक्त का इंतजार करना हैं।

खैर राघव अपने मन की बातों को विराम देते हुए बोला...श्रृष्टि जी काम कहा तक पूरा हुआ?

श्रृष्टि तो उस वक्त मन ही मन खुद से बातें करने में मग्न थी। राघव की बातों को कितना सूना कीतना नहीं ये तो सृष्टि ही जाने। जब मन की बाते खत्म हुआ तब श्रृष्टि बोली…सर आप मेरे लिए जी न लगाया करो।

श्रृष्टि की बाते सुनकर किसी को फर्क पड़ा हों चाहें न पड़ा हों मगर साक्षी को बहुत ज्यादा फर्क पड़ा तभी तो धीरे से बोली... ओ तो किस्सा यहां तक पहुंच गया। मोहतरमा को जी सुनना पसन्द नहीं हैं। तो क्या जी बोलना पसन्द हैं?

इतना बोलकर साक्षी अपने नजरों को इधर उधर घुमाया, कही किसी ने सुना तो नहीं, जब देखा उसके नजदीक कोई खड़ा नहीं हैं तब अपना ध्यान सामने की ओर कर लिया। जहां राघव मुस्कुराते हुए बोला...क्यों?

श्रृष्टि... सर मुझे अच्छा नहीं लगता हैं। आप सिर्फ मेरा नाम लिया कीजिए जैसे साक्षी मैम का और बाकियों का लेते हों।

राघव... अच्छा ठीक हैं श्रृष्टि जी ओ नही नही श्रृष्टि! अब आप ये बताइए काम कहा तक पंहुचा।

श्रृष्टि...सॉरी सर मैंने आपको जो समय बताया था उतने समय में काम पुरा नहीं कर पाई बल्की उससे तीन दिन ज्यादा हों गया फिर भी थोडा काम बाकी रह गया।

राघव... लगता है ज्यादा तारीफ़ करने से आप हवा में उड़ने लग गईं थीं जो चार दिन के जगह सात दिन में भी काम पूरा नहीं हों पाया। लगता है आप भी कुछ लोगों की तरह आलसी हों गई हों ( इतनी बाते साक्षी की ओर देखकर बोला फिर श्रृष्टि की ओर देखकर आगे बोला) श्रृष्टि जिम्मेदारी से काम नहीं कर सकतीं हों तो जिम्मेदारी लेना भी नहीं चाहिए और वादा तो बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। जीतना काम रह गया उसे जल्दी से पूरा कर लिजिए।

इतना बोलकर राघव चला गया और श्रृष्टि एक बार फिर राघव की बातों से आहत हो गई। करें कोई भरे कोई वाला किस्सा एक बार फिर श्रृष्टि के साथ हों गया। काम समय से पूरा न हों पाए इसके लिए अडंगा साक्षी ने लगाया और सुनना श्रृष्टि को पड़ा। उसने साक्षी की ऑर देखा और मन ही मन में गन्दी गाली दे दी !!!

जहां श्रृष्टि आहत थी। वहीं साक्षी मन ही मन खुश हों रहीं थीं। उसकी मनसा जो पूरा हो गया था। वो यहीं तो चाहती थी कि देर होने के कारण राघव श्रृष्टि को कड़वी बातें सुनाए जो राघव सुनाकर चला गया।

अगले दिन ऑफिस आते ही श्रृष्टि की पहली प्राथमिकता अधूरा छूटा काम पूरा करने की थी। जिसे सहयोगियों के साथ पुरा करने में जुट गई। साक्षी का मंतव्य पूरा हो चुका था। इसलिए आज उसने काम में किसी भी तरह का कोई विघ्न उत्पन्न नहीं किया। लगभग दोपहर के खाने के वक्त तक काम पूरा हों गया। एक लंबी गहरी चैन की स्वास भरते हुए श्रृष्टि बोलीं... आखिरकार पूरा हों ही गया। साक्षी मैम आप जाकर सर जी को ये प्रोजैक्ट सौफ आइए।

"ओ तो ये बात हैं कल ही आशंका जताया था और आज वो सच हों गया। मोहतरमा तो सच में जी बोलने लग गईं। ये श्रृष्टि तो रॉकेट की रफ्तार से बढ़ रहीं हैं। जाओ जाओ जितनी रफ़्तार से जाना हैं जाओ। तेरी रफ्तार पर गतिरोध लगाने के लिए मैं हूं।" जी शब्द सुनते ही साक्षी मन ही मन बोलीं जबकि श्रृष्टि ने साधारण लहजे में बोला था। श्रृष्टि के बोलते ही सहयोगियों में से एक बोला... हां साक्षी मैम आप जल्दी से जाकर यह प्रॉजेक्ट राघव सर को सौप आइए वरना देर हुआ तो श्रृष्टि मैम को फिर से सुनना पड़ेगा।

साक्षी...बडी जोरों की भूख लगा है और लंच टाईम भी हों गया है। पहले लंच करूंगी फ़िर जाऊंगी। श्रृष्टि तुम्हें कोई आपत्ती तो नहीं हैं। अगर हो तो बोल दो मैं अभी दे आती हूं।

"नहीं मैम मुझे कोई आपत्ती नहीं हैं।" मुस्कुराते हुए श्रृष्टि बोला।

लंच के बाद साक्षी प्रॉजेक्ट लेकर राघव के पास पहुंच गई। प्रॉजेक्ट देखने के बाद राघव बोला...इतने विघ्न के बाद आखिरकार ये प्रोजैक्ट पूरा हों ही गया। साक्षी मुझे लगता हैं अगर श्रृष्टि तुम्हारे टीम में नहीं होती तो ये प्रोजैक्ट और लंबा खीच जाता। क्यों मैं सही कह रहा हूं न?

"सर आप मुझ पर उंगली उठा रहें हों। इशारों इशारों में मुझे आलसी कह रहें हों।" खीजते हुए साक्षी बोलीं

राघव...मैंने ऐसा तो नहीं कहा खैर छोड़ो अब तुम जाओ और आज रेस्ट कर लो कल से नया काम दूंगा और हा कल तुम सभी को उपहार भी तो देना हैं। यहां उपहार श्रृष्टि के लिए जीतना खास होगा उतना ही खास तुम्हारे लिऐ भी होगा। अब जब खाली समय हैं? तो बैठकर सोच लेना वो खास उपहार क्या हों सकता हैं?

ख़ास उपहार मिलने की बात से साक्षी मुस्कान बिखेरते हुए चली गई (उसके लिए खास का मतलब कुछ और ही था ) उसके जाते ही राघव पूर्वात बैठ कर रहस्यमई मुस्कान से मुस्कुराने लग गया।

यहां साक्षी साथियों के पास वापस आकर रेस्ट करने की बात कहीं तो सब के चेहरे पर मुस्कान आ गया।

रेस्ट करने का ऑर्डर मिल चुका था तो सभी लग गए बतियाने, विविध प्रकार की बाते होने लग गइ। बातों के दौरान एक दूसरे की टांगे खींचा जा रहा था।

नाराज होने के जगह सभी लुफ्त ले रहें थे। धीरे धीरे बातों का सिलसिला आगे बड़ा बढ़ते बढ़ते सहसा एक सहयोगी अपने प्रेम जीवन का बखान सुनाने लग गया। जिसे सुनकर साक्षी बोलीं...श्रृष्टि जरा अपने लव लाईफ के बारे मे भी कुछ बताओं, हम भी तो जानें इतनी खूबसूरत भोली सी सूरत वाली लड़की का कोई तो परवाना होगा जो अपने शब्दों में तुम्हारी तारीफ़ करता हों तुम्हारे नाज नखरे सहता हों।

"ऐसा कोई नहीं है अगर होता तो मैं बता देती।" शरमाई सी श्रृष्टि बोलीं।

"चल झूठी" एक धाप श्रृष्टि के पीठ पर जमाते हुए साक्षी बोलीं।

"मैं झूठ नहीं बोल रहीं हूं चलो माना कि मैं झूठ बोल रहीं हूं। सच आप ही बता दो। आपके लाईफ में कोई तो ऐसा होगा जिसे आप पसन्द करती हों जिसे देखकर आपके दिल का सितार राग छेड़ देता हों।" पलटवार करते हुए श्रृष्टि बोलीं।

"हां है एक, जिसे कई बार इशारा दे चुकी हूं पर निर्मोही ध्यान ही नहीं देता हर बार मेरे चाहत की नाव को बीच धार में डूबा देता हैं।" अफसोस जताते हुए साक्षी ने दिल की बात कह दिया।

"कौन है, कौन है वो निर्मोही" श्रृष्टि सहित सभी उतावला होकर एक स्वर में बोला।

सभी के पूछने पर भी साक्षी ने उस शख्स के बारे मे कुछ नहीं बताया। बार बार पुछा गया प्रत्येक बार सिर्फ नहीं का प्रतिउत्तर आया। अंतः सभी ने इस मुददे को टालकर बातों की दिशा बादल दिया। बातों बातों में यह दिन बीत गया और सभी अपने अपने घरों को ओर प्रस्थान कर गए।

जारी रहेगा….




क्या एक प्रेम कहानी जन्म ले रही है या फिर दो कलि और एक माली ?????
अब ये ख़ास उपहार क्या है ????? सब को असमंजस में डाला हुआ है ??
क्या राघव अपनी जेब से कोई नया पत्ता निकालेगा ????
चलिए जानते है अगले एपिसोड में ..............बने रहिये
Awesome update and nice story
 

Funlover

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भाग - 12


फोन करके राघव ने साक्षी को श्रृष्टि सहित सभी साथियों के साथ दफ्तर के निजी कमरे में बुलाया था। कुछ ही वक्त में द्वार पर आहट हुआ और भीतर आने की अनुमति मांगा गया।

भीतर आने की अनुमति मिलते ही सभी एक एक करके भीतर आ गए। हैलो हाय की औपचारिकता के बाद राघव बोला... कल आधे दिन की छुट्टी का लुफ्त लिया जा रहा था। हंसी ठहाके एक दूसरे की टांग खींचना एक दूसरे की लव लाईफ के बारे में जानना बड़ा मस्ती….।

"उफ्फ ये किया बोला दिया। जो नहीं बोलना था वहीं बोल गया। अब क्या करूं अब तो सभी को शंका हों जायेगा कि मैं उन्हें छुप छुप कर काम करते हुए देखता हूं। दूसरे शायद इस घटना को सामान्यतः ले जो अक्सर होता रहता हैं लेकिन श्रृष्टि, उसे अगर थोडी बहुत शंका हुई भी होगी कि मैं उसे छुप छुप कर देखता हूं जो कि सच हैं। अब तो उसकी शंका यकीन में बादल जायेगा। हे प्रभु ये कैसा अनर्थ मूझसे हों गया कोई रास्ता दिखा"

सहसा राघव को आभास हुआ कि जो नहीं बोलना था। वहीं बोल गया। तो अपने वाक्य को अधूरा छोड़कर मन ही मन ख़ुद से बाते करने लग गया।

ठीक उसी वक्त राघव की अधूरी बाते सुनकर साक्षी, श्रृष्टि सहित बाकी साथियों के अलग अलग प्रतिक्रिया थी। जहां दूसरे साथीगण इस घटना को सामान्यतः ले रहें थे। वहीं साक्षी के मन का चोर द्वार खुल गया और मन ही मन बोलीं... अगर सर छुप छुप कर हम पर नज़र रख रहे थे तो कहीं उन्हे पाता न चल जाएं मेरे ही कारण श्रृष्टि को दिए समय से प्रोजेक्ट पूरा नहीं हों पाया। तब क्या होगा?अब डर न साक्षी को था | और होना भी चाहिए था | वैसे भी चोर को सब से ज्यादा डर लगता है जब रजा चोर को पकड़ने के लिए बोलता है क्यों की चोर को ही उसके परिणाम के बारे में सोचना पड़ता है वही गलती भी करता है| खेर हमें उस से क्या लेना देना है

ठीक उसी वक्त श्रृष्टि का मन कुछ अलग ही कह रहा था। "ऊम्ह तो मेरी शंका सही निकली साला सर मुझे छुप छुप कर देखते हैं। नहीं नहीं मुझे क्यों देखने लगे, हों सकता है सर छुपकर ये देखते हो हम काम कर रहें हैं कि नहीं पर जब भी मैं सर के सामने आती हूं तब टकटकी लगाएं मुझे ही देखते रहते हैं। इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता। तो क्या सर छुप कर मुझे ही देखते हैं। ओ हो मैं ये किस उलझन में फांस गई।" वो देखता भि है तो मै क्या कर सकती हु ??? सब की आँखे है और देखने का अधिकार भी है

पर सब की नजर एक सी भी नहीं होती !!!

उफ्फ्फ मै ये सब क्या सोच रही हु क्या होता है वो भी देखना पड़ेगा न ऐसे ही मेरे मनगाडत विचारो से दुनिया थोड़ी ना चलती है पक्का कर के देखना चाहिए फिर कोई निर्णय लेना चाहिए|

जहां श्रृष्टि, साक्षी और राघव अपने अपने विचारो में उलझे हुए थे। ठीक उसी वक्त दूसरे साथियों में से एक बोला... खाली समय था तो उसका सदुपयोग करते हुए मस्ती मजाक और एक दूसरे की टांग खींच रहें थे। अगर अपने देख ही लिया था तो आप भी कुछ वक्त के लिए हमारे साथ मिल जाते इससे आपका मानसिक तनाव थोडा बहुत कम हों जाता।

इन आवाजों के कानों को छूते ही राघव विचार मुक्त हुआ और बोला...क क क्या बोला।

"सर लगता है आपका ध्यान कहीं ओर था। मैं तो बस इतना ही कह रहा था कि जब आपने देख ही लिया था तो आप भी हमारे साथ थोडा मस्ती मजाक कर लेते ही ही ही...।

"मैंने सोचा तो कई बार फिर ये सोचकर रूक जाता हूं कहीं आप लोग मेरे मस्ती मजाक करने का गलत मतलब न निकाल ले और काम धाम छोड़कर मस्ती में लगे रहें। ऐसा हुआ तो मेरा बहोत बड़ा नुकसान हों जायेगा।" एक निगाह श्रृष्टि पर डाला फ़िर मुस्कुराते हुए राघव ने अपनी बात कह दिया।

"सर कभी कभी कामगारो के साथ थोड़ी बहुत मस्ती मजाक भी कर लेना चाहिए इससे दफ्तर का माहौल सही बना रहता हैं।" राघव के मुस्कान का जवाब मुस्कान से देते हुए श्रृष्टि बोलीं।

राघव... कह तो सही रही हों खैर छोड़ो इन बातों पर बाद में सोचेंगे अभी (प्रोजेक्टर पर एक वीडियो प्ले करते हुए आगे बोला) अभी इस वीडियो को ध्यान से देखो।

जब तक वीडियो चलता रहा तब तक सभी ध्यान से देखते रहें। वीडियो खत्म होते ही राघव बोला... ये हमारा नया कंस्ट्रक्शन साइड हैं। इस पर एक आलीशान बहुमंजिला इमारत बनाना हैं। जिसके बाहरी आवरण की खूबसूरती मन मोह लेने वाली होना चाहिए उतना ही खूबसूरत और आकर्षक भीतरी भाग होना चाहिए। इसलिए क्लाइंट का कहना हैं पहले मानचित्र बनाकर उसकी रूप रेखा 3D मॉडल के जरिए दिखाया जाएं अगर उन्हें पसंद आया तब ही कंस्ट्रक्शन शुरू किया जा सकता हैं। अब आप सभी अपने अपने हुनर को प्रदर्शित करे और एक बेहतरीन मॉड्यूल तैयार करें और हां एक बात का ध्यान रखना यहां प्रॉजेक्ट हमारी और हमारी कम्पनी की साख का सवाल है इसलिए कोई भी चूक नहीं होना चाहिए। ये बहोत भारी शब्दों में बोला ताकि उसकी गंभीरता बन जाए|

सभी एक साथ एक ही स्वर में "सर हम पूरा ध्यान रखेंगे" बोले फिर राघव आगे बोला... हां तो अब कुछ जरुरी बाते इस प्रॉजेक्ट का प्रॉजेक्ट हेड श्रृष्टि को बनाया जाता है ये खास उपहार मेरे ओर से श्रृष्टि और साक्षी के लिए है। साथ ही दुसरे के लिए भी हैं।

ऐसा खास उपहार साक्षी को मिलेगा ऐसा कभी उसने सोचा नहीं था। जो प्रॉजेक्ट हेड हुआ करती थी सहसा एक नई लड़की जिसको आए हुए अभी महीना भर भी नहीं हुआ। प्रोजेक्ट हेड बना दिया जाता है। यह बात साक्षी को हजम नहीं हुआ और अंदर ही अंदर खीजते हुए बोलीं...साली श्रृष्टि तूने मेरा होद्दा मूझसे छीन लिया। बात चाहें कम्पनी की साख की हो मुझे फर्क नहीं पड़ता अब बात मेरी साख पर आ गई है? अब देख मैं तेरे साथ क्या क्या करती हूं?

यहां साक्षी, श्रृष्टि से खीज गई वहीं श्रृष्टि इस बात से बहुत खुश हुई। होना भी चाहिए जहां लोगों को काम करते करते वर्षों बीत जाते हैं फिर भी प्रॉजेक्ट हेड नहीं बन पाते है वहीं मात्र कुछ ही दिनों में उसे एक ऐसे प्रोजेक्ट का हेड बना दिया गया। जिसका ताल्लुक कम्पनी के साख से हैं। बहरहाल श्रृष्टि खुश, साक्षी खीजी हुई इससे उलट दूसरे साथी श्रृष्टि को बधाई देने लग गए। जिसे श्रृष्टि सहस्र स्वीकार कर रहीं थीं। खैर बधाई देने के बाद एक साथी बोला…सर श्रृष्टि मैम के साथ बस कुछ ही दिन काम करके हम सभी इतना तो जान ही गए हैं कि श्रृष्टि मैम हुनर के मामले में बहुत धनी है। इतने बड़े प्रोजेक्ट पर इनके साथ काम करने का हमें सौभाग्य प्राप्त हुआ। शायद हमारे लिए इससे बड़ा दुसरा कोई उपहार हों नहीं सकता था? सर किसी और का मै नहीं कह सकता मगर अपनी बात दावे से कहता हूं। इस प्रॉजेक्ट पर श्रृष्टि मैम के साथ जी जान से काम करेगें और हमारी कम्पनी के साख पर दाग नहीं लगने देगें। इसी बहाने श्रृष्टि मैम से उनके हुनर के कुछ गुर भी सीख लूंगा। शायद भविष्य में उनसे सीखे गुर मेरे कुछ काम आ जाए और किसी प्रोजेक्ट का मै भी हेड बन जाऊं।

सहयोगी की ये बातें जहां श्रृष्टि के हृदय में हर्ष का भाव उत्पन कर रही थीं। वहीं साक्षी के मन में सिर्फ और सिर्फ़ बैर पैदा कर रहा था, जहा जहा मिर्ची लग सकती थी वहा वहा मिर्ची अपने रंग दिखा रही थी और साक्षी से ये सब बर्दाश्त से बहार होता जा रहा था | और राघव एक नज़र श्रृष्टि की और मुस्कुराते हुए देखा फ़िर साक्षी की ओर देखकर बोला... कह तो तुम ठीक रहें हों। सीखने का जज्बा हमारे अंदर उम्र के आखरी पड़ाव तक जिंदा रहना चाहिए। तुम्हारी सोच मेरी नज़र में तारीफो के काबिल हैं। मगर (एक अल्प विराम लिया फ़िर साक्षी से निगाह हटाकर आगे बोला) मगर कुछ लोग सीखने की इस जज्बा को दावा लेते हैं शायद ऐसा वो अकड़ के चलते है कि मुझे जीतना सीखना था सिख चुका अब ओर सीखकर क्या फायदा खैर छोड़ो बाते बहुत हुआ अब जाओ ओर काम पर लग जाओ। साक्षी तुम कुछ देर रूककर जाना तुमसे कुछ जरुरी बात करना हैं।

राघव की बाते सभी को सामान्य लगा और कुछ ज्ञानवर्धक भी मगर साक्षी को राघव की बाते चुभन का अहसास करा गई और रूकने की बात सुनकर एक अनजाना सा डर मन में घर कर गया जिसका नतीजा साक्षी के हाव भाव बदल गए। इन सभी से अंजान श्रृष्टि बोलीं... सर इतना बड़ा प्रोजेक्ट है ऊपर से कंपनी की साख का सवाल हैं। कोई चूक न रह जाएं इसलिए मैं सोच रहीं थीं। एक बार साइड का दौरा कर आते तो ठीक होता आगर दूर है तो कोई बात नहीं हम मैनेज कर लेंगे।

"हा सर एक बार साइड का दौरा हो जाता तो अच्छा होता। अच्छा किया जो श्रृष्टि मैम ने याद दिला दिया वरना हम तो भूल ही गए थे।"एक सहयोगी बोला

राघव…ठीक है फिर कल को चलते हैं। अपने अपने सभी जरूरी यन्त्र जांच लेना अगर किसी में कोई कमी हैं तो ठीक करवा दूंगा।

इसके बाद सभी एक एक कर चलते बने जैसे ही साक्षी अपने जगह खड़ी हुई। राघव तुंरत बोला...साक्षी तुम कहा जा रहीं हों तुम्हें रूकने को कहा था न।

इतना सुनते ही साक्षी वापस बैठ गई और सभी के जानें के बाद राघव द्वार की ओर बड़ गया।

अब साक्षी सोच रही थी अब तक मै संडास के बहाने राघव सर को श्रुष्टि के खिलाफ लगाती थी लेकिन अब तो ये महसूस होता है की सच में उसे संडास जाना पड़ेगा |


अब क्या बात होगी राघव सर और साक्षी के बिच में ???

क्या साक्षी को और एक तक मिलेगी श्रुष्टि के खिलाफ कुछ बोलने की ?? क्यों की अभो वो दोनों अकेले है जो चाहे वो कर सकती है

क्या श्रुष्टि अब अपने पद से गुरुर मी आएगी ??? साक्षी को अब दबा सकती है ??? या फिर वो खुद साक्षी जैसी बन के रहेगी ??? पैसा, गुरुर और पद आदमी को अपने संस्कार को भुला देने के लिए काबिल होते है

देखते है आगे


जारी रहेगा...
 
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