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Erotica सोलवां सावन

The Immortal

Live Life In Process.
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Hello everyone.

We are Happy to present to you The annual story contest of XForum


"The Ultimate Story Contest" (USC).

Jaisa ki aap sabko maloom hai abhi pichhle hafte hi humne USC ki announcement ki hai or abhi kuch time pehle Rules and Queries thread bhi open kiya hai or Chit Chat thread toh pehle se hi Hindi section mein khula hai.

Well iske baare mein thoda aapko bata dun ye ek short story contest hai jisme aap kisi bhi prefix ki short story post kar sakte ho, jo minimum 700 words and maximum 7000 words tak ho sakti hai. Isliye main aapko invitation deta hun ki aap is contest mein apne khayaalon ko shabdon kaa roop dekar isme apni stories daalein jisko poora XForum dekhega, Ye ek bahot accha kadam hoga aapke or aapki stories ke liye kyunki USC ki stories ko poore XForum ke readers read karte hain.. . Isliye hum aapse USC ke liye ek chhoti kahani likhne ka anurodh karte hain.

Aur jo readers likhna nahi chahte woh bhi is contest mein participate kar sakte hain "Best Readers Award" ke liye. Aapko bas karna ye hoga ki contest mein posted stories ko read karke unke upar apne views dene honge.

Winning Writers ko Awards k alawa Cash prizes bhi milenge jinki jaankaari rules thread mein dedi gayi hai, Total 7000 Rupees k prizes iss baar USC k liye diye jaa rahe hain, sahi Suna aapne total 7000 Rupees k cash prizes aap jeet shaktey hain issliye derr matt kijiye or apni kahani likhna suru kijiye.

Entry thread 7th February ko open hoga matlab aap 7 February se story daalna shuru kar sakte hain or woh thread 28th February tak open rahega is dauraan aap apni story post kar shakte hain. Isliye aap abhi se apni Kahaani likhna shuru kardein toh aapke liye better rahega.

Aur haan! Kahani ko sirf ek hi post mein post kiya jaana chahiye. Kyunki ye ek short story contest hai jiska matlab hai ki hum kewal chhoti kahaniyon ki ummeed kar rahe hain. Isliye apni kahani ko kayi post / bhaagon mein post karne ki anumati nahi hai. Agar koi bhi issue ho toh aap kisi bhi staff member ko Message kar sakte hain.


Rules Check karne ke liye is thread ka use karein — Rules & Queries Thread

Contest ke regarding Chit Chat karne ke liye is thread ka use karein — Chit Chat Thread



Prizes
Position Benifits
Winner 3000 Rupees + Award + 5000 Likes + 30 days sticky Thread (Stories)
1st Runner-Up 1500 Rupees + Award + 3000 Likes + 15 day Sticky thread (Stories)
2nd Runner-UP 1000 Rupees + 2000 Likes + 7 Days Sticky Thread (Stories)
3rd Runner-UP 750 Rupees + 1000 Likes
Best Supporting Reader 750 Rupees Award + 1000 Likes
Members reporting CnP Stories with Valid Proof 200 Likes for each report



Regards :- XForum Staff
 

Shetan

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सोलवां सावन

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बीसवीं फुहार


घर आँगन में

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झूले पे



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दिनेश






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गनीमत था कि जब मैं घर पहुँची तो भाभी और चम्पा भाभी नहीं थी, सिर्फ बसंती थी। उसने बताया कि सब लोग पड़ोस के गांव में गये हैं और शाम के आस-पास ही 3-4 घंटे बाद लौटेंगे, मेरा खाना रखा है और उसे भी कुछ काम से जाना है।


मैं अपने कमरे में चली गई और जल्दी से कपड़े बदले। कहीं जाना तो था नहीं इसलिये मैंने, एक टाप और स्कर्ट पहना और खाना खाने आ गयी।

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खाने के बाद मैं अपने कमरें में थोड़ी देर लेटी थी और बसंती सब काम समेट रही थी। तभी बसंती ने दरवाजे के पास आकर बताया कि दिनेश आया है।


मैं चौंक कर उठ बैठी और मुश्कुराने लगी। मुझे याद आया कि जब मैंने चन्दा से दिनेश के बारे में पूछा था तो उसने हँसकर कहा था कि खुद देख लेना। और बहुत खोदने पर वो बोली-

“मिलने के पहले कम से कम आधी शीशी वैसलीन की लगा लेना…




मैंने बसंती से कहा- “बैठाओ, मैं आ रही हूं…”


मैंने अपने ड्रेस की ओर देखा।

मेरी टाप खूब टाइट थी या शायद इधर दबवा-दबवा कर मेरे जोबन के साईज़ कुछ बढ़ गये थे, मेरे उभार… यहां तक की निपल भी दिख रहे थे।


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ब्रा तो मैंने गांव आने के बाद पहननी ही छोड़ दी थी। और स्कर्ट भी जांघ से थोड़ी ही नीचे थी।



खड़ी होकर मैं ड्रेसिंग टेबल के पास गयी और लिपिस्टक हल्की सी लगा ली।



सामने वैसलीन की बोतल थी, मैंने दोनों उंगलीयों में लेकर टांग फैलाकर अपनी चूत के एकदम अंदर तक लगा ली। फिर थोड़ी और लेकर चूत के मुहाने पर भी लगा ली।

मुझे एक शरारत सूझी और मैंने हल्की सी लिपिस्टक चूत के होंठ पर भी लगा ली।


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मैं बाहर निकली तो दिनेश इंतजार कर रहा था, उसने पूछा- “

क्यों भाभी नहीं हैं क्या…”


मैंने हँसकर कहा-

“नहीं, आज तो हमीं से काम चलाना पड़ेगा…”

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और मैंने उसको सुनाते हुए बसंती से पूछा-

“क्यों भाभी लोग तो शाम को आयेंगी, तीन चार घंटे बाद…”





बसंती काम खतम करती हुई बोली- “हां शाम के आसपास, और मैं भी जा रही हूं, दरवाजा बंद कर लेना…”


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दरवाजा बंद करके मैंने मुश्कुराते हुए कहा-

“चलो, अंदर कमरें में चलते हैं…”

उसको लेकर चूतड़ मटकाती आगे आगे चलती मैं कमरें में आयी। उसे पलंग पर बैठाकर उसके सामने पड़ी कुरसी पर बैठकर मैंने धीरे-धीरे अपनी जांघें फैलानी शुरू कीं।





उसका ध्यान एकदम मेरी स्कर्ट से साफ-साफ दिख रही भरी-भरी गोरी-गोरी जांघों की ओर ही था। बैठते समय मेरी स्कर्ट थोड़ी ऊपर चढ़ भी गयी थी।


मैंने उसे छेड़ा- “कहां ध्यान है… तुम दिखते नहीं, कहां रहते हो… मैंने भाभी से भी पूछा कई बार…”


“नहीं नहीं… कहीं नहीं… मेरा मतलब है…” हडबड़ा कर अब उसने अपनी निगाहें ऊपर कर लीं।


पर मैं कहां मानने वाली थी।





मेरे कबूतर तो वैसे ही मेरे कसे टाप को फाड़कर बहर निकलना चाहते थे, मैंने उनको थोड़ा और उभारा। अब उसकी निगाहें वहीं चिपक गयीं थीं। मैंने अपने दोनों हाथों को उनके बेस को क्रास करके उन्हें पूरा पुश करते हुए भोलेपन से पूछा-

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“अच्छा… एक बात बताओ, मैं तुमको कैसी लगती हूं…”


उसका तम्बू अब साफ-साफ तनने लगा था- “अच्छी लगती हो… बहुत अच्छी लगती हो…”

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मैंने अपने टाप के बाकी बटन भी खोलते हुये कहा- “उमस लग रही है ना, आराम से बैठो…” बटन खुलने से मेरा क्लीवेज तो अब पूरा दिख ही रहा था, मेरे रसीले जोबन भी झांक रहे थे।


उसकी हालत एकदम बेकाबू हो रही थी पर मैं कहां रुकने वाली थी।


मैंने अपने दोनों पैर मोड़ लिये और स्कर्ट को एड्जस्ट करके अच्छी तरह फैला लिया।


अब तो उसे मेरी चूत की झलक भी अच्छी तरह मिल रही थी। उसकी निगाहें मेरी जांघों के बीच अच्छी तरह धंसी हुई थीं और उसका लण्ड उसके पाजामे से बाहर आने को बेताब था।



थोड़ी देर वह देखता रहा फिर अचानक उठकर मैं उसके पास आकर, एकदम सटकर बैठ गयी। मैंने उसका हाथ खींचकर अपने कंधे को रख लिया और उसे अपने भरे-भरे जोबन के पास ले गयी और मेरा गोरा हाथ उसकी जांघ पे था, उसके तने हुए टेंटपोल के पास।


“अच्छा… अगर मैं तुम्हें अच्छी लगती हूँ तो तुम मेरे पास क्यों नहीं आते…” मैंने मुश्कुराकर पूछा।

“मुझे लगता है… था… कि कहीं तुम बुरा ना मानो…”


मैंने अब खींचकर उसका हाथ अपने जोबन पर रखकर हल्के से दबा दिया और बोली


“बुद्धू, अरे अगर किसी को कोई लड़की अच्छी लगेगी, तो वह बुरा क्यों मानेगी, उसे तो और अच्छा लगेगा…”


और उसके हाथ अब खूब कस के अपने जोबन पर दबाते हुए, मेरा हाथ जो उसकी जांघ पर था,

हल्के से उसके खड़े खूंटे को छूने लगा।



मैंने अपने दहकते होंठों से उसके कान को सहलाते हुये कहा-
“और मुझे तो तुम कुछ भी… कुछ भी करोगे तो बुरा नहीं लगेगा…”

“सच… कुछ भी… करूं…” उसकी आवाज थरथरा रही थी।


मैंने अपने गुलाबी गाल उसके गाल से रगड़ते हुए कहा- “हां… कुछ भी जो तुम चाहो… जैसे भी… जितनी बार… जब भी…
Wow yaha muje kuchh mohe rang de vali vo feel aai. vo sajan ji ka budhu pan ki zalak. Vo tumhara name kya he. Vo feel. Bar bar puchhne par batana muje komal pasand he. Becheni bekararai ke sath romance ka romanch
 
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Shetan

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तभी ,



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तभी कहीं से राकी आकर मेरे पास बैठ आया और मेरे पैर चाटने लगा।


मेरे मन में वही सब बातें घूमने लगीं जो मुझे चिढ़ाते हुए, चम्पा भाभी कहतीं थीं…

पहले दिन ही तो बस मैं भाभी के साथ आयी ही थी , गाँव की औरतें, भाभी की गाँव के रिश्ते की बहनें , भाभियाँ और भाभी की माँ भी , बस सोहर और सोहर के साथ गारी और मैं एकलौती ननद, मुन्ने की बुआ तो , भाभी की बहनें , भाभियाँ सब मेरे पीछे ,


मुन्ने की बूआ तो का दोगी मुन्ने की बधाई ,

मैं तो मुन्ने के मामा से चुदवाय लुंगी , अरे मैं तो अजय और सुनील से चोदवाय लूंगी ,

मुन्ने की बधाई ,

मैं तो रॉकी से चोदवाय लूंगी , अरे रॉकी से पेलवाय लूंगी


मुन्ने की बधाई , ...

एक कोई कामवाली थी , भाभी की रिश्ते में भाभी ही लगती थी , उन्हें चिढ़ाते बोली,

" अरे बिन्नो , तेरी ननद में बड़ी कैपसिटी है , रॉकी से भी "

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लेकिन चंदा मेरी सहेली और भाभी की कजिन चिढ गयी , बोली ,

अरे वाह , रॉकी से क्यों नहीं , आयी किसलिए हैं ,... आखिर वो भी तो हमलोगों का भाई लगता है , हमारी रक्षा करता है , रॉकी का नंबर तो जरूर लगेगा, ...

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और ऊपर से मेरी भाभी , मुझे देखकर सबसे बोलीं ,

" कैपसिटी की बात मत करियेगा , मेरी ननद की। ये जिस गली में रहती हैं उसके बाहर गदहे रहते हैं , बचपन से ही गदहों का लम्बा मोटा, ... "

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फिर तो बिना रॉकी का नाम जोड़े ,...और वो भी जहाँ मुझे देखता , चाटना शुरू कर देता।

उस दिन चन्दा कह रह थी,
जब अमराई वाले कमरे से सुनील और रवि ने मिलकर मेरे ऊपर, दो दो राउंड और देसी अलग जबरन पिला दी थी ,

मैंने चंदा से कहा , सब लोग , भाभी चंपा भाभी , यहाँ तक की माँ भी , रॉकी का नाम लेकर छेड़ती हैं और बंसती तो खारा शरबत ,...

मेरी बात काटकर चंदा खिलखिलाते हुए बोली ,

अरी बिन्नो ये मजाक नहीं है बिलकुल सच है , बिना रॉकी को चढ़ाये ये छोड़ने वाली नहीं , और स्साली तू काहें नखड़ा पेल रही है , बस तुझे तो सिर्फ निहुरना है , बाकी का काम चंपा भाभी , और बंसती कर देंगी , और एक बार बस घुस जाने की देर है , फिर तो तू लाख चूतड़ पटकना , एक बार बस गाँठ बंध गयी , घेर्रा घेर्रा कर ,... अरे गाँव का सब मजा ले रही हो , ये भी ले लेना , ... फिर कौन तुझ से पूछने वाला है , और वो खारा शरबत भी,... और कोई छोड़ दे , लेकिन चंपा भाभी और बसंतिया तो नहीं छोड़ने वालीं तुझे ,...

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और सबसे बढ़ कर भाभी की बात ,

यहां आने के बात मुझे छेड़ने चिढ़ाने की जिम्मेदारी उन्होंने अपनी भौजाइयों और बहनों पे छोड़ दी थी ,

पांच दिन आये हुए थे मुझे भाभी के साथ उनके गाँव , सावन में ,... पर आज पहली बार इस तरह घर में मैं अकेले , कच्चे वाले आंगन में बैठी, ... कुछ देर पहले ही पानी बंद हुआ था, हवा में अभी भी पानी की नमी थी , जैसे जवान होती लड़की के पीछे लौंडे चक्कर काटते रहते हैं उसी तरह आसमान में बादलों के झुण्ड , एकदम उसी तरह जैसे उस दिन मेले में सब लड़कों के झुण्ड मेरे आगे पीछे , न सिर्फ भाभी के गाँव वाले बल्कि मेले में आये सब, .... जिधर मैं चंदा कजरी पूरबी निकल जाते , लौंडे सब उसी ओर , ...

आँगन में सिर्फ मैं और रॉकी , दरवाजा अंदर से बंद ,...

हाँ चिढ़ाते समय सब भाभियाँ यही कहती की अबकी कातिक में जरूर आना रॉकी को चढ़ाय देंगे तुम्हारे ऊपर ,...

मैं भी मज़ाक में ,... अभी तो सावन चल रहा है सोच कर , पर कल भाभी की माँ ने ,...

लेकिन भाभी की बात, कल रात जिस तरह वो मुस्कराकर अपनी माँ और चंपा भाभी के सामने मुझसे बोल रही थीं ,



" ये तो बहुत उदास हो गयी थी , कह रही थी , भाभी , कातिक तो अभी बहुत दूर है ,आने को तो मैं आ जाउंगी लेकिन , इतना लम्बा इन्तजार , मैंने बहुत समझाया , अरे तब तक गाँव में इतने लड़के हैं , अजय , सुनील ,रवी दिनेश , और भी तब तक उनके साथ काम चलाओ , दो तीन महीने की बात है लेकिन , माँ आप ने तो इसके मन की बात समझ ली , और परेशानी दूर कर दी। "


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मैंने ऐसा कुछ भी नहीं बोला था लेकिन भाभी और चम्पा भाभी जब साथ साथ हो जाएँ ,

माँ ने ( मैं भी उन्हें भाभी की तरह माँ ही कहती थी ) ने कातिक वाली बात का भी कल इलाज कर दिया , उन्होंने साफ़ साफ़ कह दिया की अरे कातिक की बात तो देसी कुतिया के लिए है , कुत्ते के लिए थोड़ी , फिर रॉकी तो विदेशी और जिस ब्रीड का है , वो साल में हर रोज , और वो भी चार बार पांच बार ,...

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अब चंपा भाभी को मौका मिल गया मेरे ऊपर भी चढ़ने का और अपनी सास की भी खिंचाई करने का ,

" अच्छा , तो आपका मतलब आपकी यह बिटिया , मतलब कुतिया के लिए बारहों महीने कातिक , हरदम गरमाई रहती है , और रॉकी का भी तो इसको देख के टनटनाने लगता है , फिर तो ,... "

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अबकी बात काटने की बारी , भाभी की माँ की थी ,

"एकदम और मेरी बिटिया पीछे नहीं हटने वाली ,... ये तो तुम भौजाई लोग ही आलस करती हो अपने चक्कर में , जब चाहो आंगन में यही निहुरा के , अगर मेरी बिटिया मन करे तो मुझसे कहना ,... चढ़ा दो ,... "

कल तो भाभी की माँ भी , टॉप के अंदर हाथ डाल के मेरी पीठ सहलाते बोलीं ,


" तुम दोनों न , मेरी बेटी को समझती क्या हो , बहुत अच्छी है ये सबका मन रखेगी। गाँव के लड़को से तो चुदवायेगी ही , गाँव के मर्दों से भी. आखिर चम्पा के खाली देवर थोड़ी जेठ लोगों का भी तो मन करता है शहरी माल का मजा लेने का. हैं न बेटी , और रॉकी तो इसी घर का मर्द है ,तुम लोग जबरदस्ती बिचारी को चिढ़ाती हो ,


खुद ही उसका बहुत मन करता है रॉकी के साथ और रॉकी भी कितना चूम चाट रहा था था , जाने के पहले , बेटी चुदवा के जाना।

माना गाँठ बनेगी तो बहुत दर्द होगा लेकिन उसी दर्द में तो मजा है ,


चंपा जाओ बिटिया के साथ एक दो दिन परका दो , उसके बाद रॉकी की जिम्मेदारी तो ये खुद ही ले लेगी ,क्यों बेटी है न ,"




मैं आँखे बंद किये कल की छेड़छाड़ सोच कर मजा ले रही थी , ठंडी ठंडी पुरवाई चल रही थी।

घर में मैं एकदम अकेली थी , आँगन से बाहर का दरवाजा भी अंदर से बंद था। सोच सोच कर मेरी किशोर चूंचियां पथरा रही थीं।



और तब तक रॉकी ने मेरे तलवे चाटने शुरू किया ,


मेरी पूरी देह गिनगिना उठी , जबरदस्त टिंगलिंग उठी मेरी देह में , पैरों से लेकर सीधे 'वहां तक' ,

लेकिन न मैंने पैर हटाये , न रॉकी को मना किया , बस जोर से आँखे भींच ली, अपने आप मेरी टाँगे थोड़ी खुल गयीं , …


और मेरी बंद आँखों के सामने कल रात के आँगन नाच रहा था ,का सीन नाच रहा था , तेज हवा चल रही थी , बस लग रहा था थोड़ी देर में तूफ़ान आएगा , ... घने बादल , एकदम अँधेरा , बस लालटेन की हलकी सी लाइट और माँ ने मुझे और चंपा भाभी को बोला था की रॉकी को आँगन से हटा कर बाहर उसकी कुठरिया में कर दें

जब चम्पा भाभी मुझे लेकर घुप्प अँधेरे में आँगन में गयी थी और ,


जैसे उसने मुझे पहचान लिया हो और उसका भौंकना एकदम बंद हो गया।



मेरी निगाह फिर रॉकी के ' वहां ' पड़ गयी , वो , .... वो, … बाहर निकला था ,

एकदम किसी आदमी के जैसा , लाल गुलाबी करीब तीन चार इंच ,


और ,… मेरी साँस रुक गयी ,… वो थोड़ा मोटा होता जा रहा था , और बाहर निकल रहा था।

मैंने थूक घोंटा , सांस आलमोस्ट रुक गयी।

मुझे भाभी की माँ की बात याद आ गयी।



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' बेटी कातिक -वातिक की सिर्फ कुतिया के लिए है, कुतिया कातिक में गरमाती हैं ,

रॉकी तो बारहो महीना तैयार रहता है , अगर उसे महक लग जाय ,…लौंडिया "



पैंटी तो मैं पहनती नहीं थी , और नीचे अब कुछ लसलसा सा लग रहा था।

मेरी टाँगे अब पिघल रही थीं , और मैं समझ रही थी , की अगर इस अँधेरे में रॉकी ने कुछ ,… तो कोई आएगा भी नहीं।




धीरे धीरे मेरा डर कुछ कम हो रहा था , मैंने उसका ध्यान बंटाने के लिए , उसे खाने का तसला दिखाया।

मुझे लगा खाने को देख कर शायद कर उसका मन बदल जाय ,

लेकिन शायद उसके सामने ज्यादा मजेदार रसीला भोजन था , और अब रॉकी के नथुने मेरे स्कर्ट में घुस गए थे , वो जांघ के ऊपरी हिस्से को चाट रहा था , लपलप लपलप,

मेरी जांघे अब अपने आप पूरी फैल गयी थीं , 'वो 'खूब पानी फ़ेंक रही थी ,

मेरे पैर लग रहा था अब गए , तब गए , … मैं रॉकी को खूब प्यार से सहला रही थी , रॉकी रॉकी बुला रही थी ,


और तभी मेरी निगाह नीचे की ओर मुड़ी ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह , मेरी चीख निकलते निकलते बची , …


कम से कम ८ इंच ,लाल गुस्सैल , एकदम तना ,कड़ा गुस्सैल , और मोटा ,


मेरी तो जान सूख गयी ,

मतलब ,मतलब वो ,… पूरे जोश में है , एकदम तन्नाया। और अब कहीं वो मेरे ऊपर चढ़ बैठा ,....


और जिस तरह से अब उसकी जीभ , मैं गनगना रही थी ,

चार पांच मिनट अगर वो इसी तरह चाटता रहां तो मैं खुद किसी हालत में नहीं रहूंगी कुछ ,....

मेरी जांघे पूरी तरह अपने आप फैल गयी थीं,

बड़ी मुश्किल से मैं उसके बगल में घुटने मोड़ के उँकड़ू बैठी और उसकी गरदन ,

उसकी पीठ सहलाती रही , मैं लाख कोशिश कर रही थी की मेरी निगाह उधर न जाय लेकिन अपने आप ,


'वो ' उसी तरह से खड़ा ,तना मोटा और अब तो आठ इंच से भी मोटा उसकी नोक लिपस्टिक की तरह से निकली।

और तभी मैंने देखा की चंपा भाभी भी मेरे बगल में बैठी है , मुस्कराती , लालटेन की लौ उन्होंने खूब हलकी कर दी थी।







' पसंद आया न " मेरे गाल पे जोर से चिकोटी काट के वो बोलीं , और जब तक मैं जवाब देती

उनका हाथ सीधे मेरी जाँघों के बीच और मेरी बुलबुल को दबोच लिया उन्होंने जोर से।


खूब गीली ,लिसलिसी हो रही थी। और चंपा भाभी की गदोरी उसे जोर जोर से रगड़ रही थी।

" मेरी छिनार बिन्नो , जब देख के इतनी गीली हो रही तो जो ये सटा के रगडेगा तो क्या होगा , इसका मतलब अब तू तो राजी है और रॉकी की तो हालत देख के लग रहा है , तुझे पहला मौका पाते ही पेल देगा। "

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मेरे कान में फुसफुसा के वो बोलीं।



और मैं कल रात से वापस आई



सोच सोच के मेरी गीली हो रही थी।

नीचे वाला मुंह एकदम लिसलिसा हो गया था।



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मेरी आँखे अभी भी बंद थी , फिर धीरे धीरे मैंने आँखे खोली ,

लगता है, राकी भी वही कुछ सोच रहा था, मेरे पैर चाटते चाटते, अब उसकी जीभ मेरे गोरे-गोरे घुटनों तक पहुँच गयी थी।

मैं वही टाप और स्कर्ट पहने हुए थी जो दिनेश के आने पे मैंने पहन रखा था।


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न टॉप के नीचे कुछ , न स्कर्ट के नीचे कुछ

कुछ सोचकर मैं मुश्कुरायी। राकी को प्यार से सहलाते, पुचकारते, मैंने अपनी, जांघें थोड़ी फैलायीं और स्कर्ट थोड़ी ऊपर की,


जैसे मैंने दिनेश को सिड्यूस करने के लिये किया था।


उसका असर भी वैसे ही हुआ, बल्की उससे भी ज्यादा, मेरी निगाहें जब नीचे आयीं तो… मैं विश्वास नहीं कर सकती…

उसका लाल उत्तेजित शिश्न काफी बाहर निकल अया था।

और अब वह मेरी जांघों को चाट रहा था।

मेरी शरारत बढ़ती ही जा रही थी। मैंने हिम्मत करके स्कर्ट काफी ऊपर कर ली और जांघें भी पूरी फैला दीं।

अब तो राकी… जैसे मेरी चूत को घूर रहा हो।


मेरे निपल भी कड़े हो रहे थे लेकीन मैं चाय, दोनों जांघें फैला के आराम से पी रही थी।

मेरी छोटी सी स्कर्ट , अब बस कमर में एक छल्ले की तरह फँसी थी.





मैंने अपने भारी भारी चूतड़ बस सीढ़ी के कोने से जस्ट टिका रखा था ,और जांघे अब एकदम खुल गयी थी , जिससे न सिर्फ मेरी कच्ची गीली चूत एकदम खुली थी ,बल्कि चूतड़ भी।




दरवाजा बंद था , घर में मैं अकेली और धीरे धीरे एक बार फिर घने काले बादल आसमान को ढकने लगे थे। हवा के ठन्डे ठन्डे झोंके तेज हो गए थे।

कुछ हवा और बादलों का असर और कुछ , …


मैंने चाय का प्याला बगल में रख दिया था , मैं अपना आपा खो रही थी ,

और मेरी आँखे धीरे धीरे एक बार फिर मूँद गयीं। मैं हाथों के सहारे पीछे की ओर मुड़ गयी और ,


अब मुझे सिर्फ एक चीज का अहसास था , रॉकी की जीभ का।


Are nanand ke chhinarpan ki had hi par karwa di komal ji.

Ese sabad ka istmal

1) अरे वाह , रॉकी से क्यों नहीं , आयी किसलिए हैं ,... आखिर वो भी तो हमलोगों का भाई लगता है , हमारी रक्षा करता है , रॉकी का नंबर तो जरूर लगेगा, ...

2) अच्छा , तो आपका मतलब आपकी यह बिटिया , मतलब कुतिया के लिए बारहों महीने कातिक , हरदम गरमाई रहती है , और रॉकी का भी तो इसको देख के टनटनाने लगता है , फिर तो ,... "

3)
खुद ही उसका बहुत मन करता है रॉकी के साथ और रॉकी भी कितना चूम चाट रहा था था , जाने के पहले , बेटी चुदवा के जाना।

माना गाँठ बनेगी तो बहुत दर्द होगा लेकिन उसी दर्द में तो मजा है ,


4) और रॉकी तो इसी घर का मर्द है ,तुम लोग जबरदस्ती बिचारी को चिढ़ाती हो ,
 
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Shetan

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गाँव के मरद


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चंपा भाभी ने मुझे स्कर्ट नीचे नहीं करने दिया तो मैं उन्हें पेटीकोट साड़ी क्यों करने देती ,

पहली बार हम ननद भौजाई , दिन दहाड़े , घर के आँगन में इस तरह, खुल्लम खुल्ला,... सावन की तिझरिया की भीगी भीगी नम नम हवा मेरी गुलाबो को और गीली कर रही थी ,

पहले तो रॉकी ने जो चटाई की थी , उसके बाद चंपा भाभी की बातें और ऊँगली ,... मेरी चुनमुनिया चासनी से लिपटी पड़ी थी ,



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रस में लिपटी जलेबी की तरह , और अब एकदम खुली , ... एकदम खुली तो नहीं भौजी की हथेली अभी भी उसी के ऊपर थे , कभी वो हलके से सहला देतीं , तो कभी बस दबा देतीं ,

हम दोनों जबरदस्त झड़े थे ,... मैं उनकी ऊँगली से और वो मेरी चुसाई से ,... इसलिए थोड़ी देर तक बस ऐसे ही बैठे सावन की हवा का मजा लेते रहे फिर बात चंपा भाभी ने ही शुरू की , ...

" बड़ी मस्त हौ तोहार ,... " मेरी चूत को खूब हलके हलके सहलाते दुलराते वो बोलीं , फिर जोड़ा

" यह गाँव के मरद बड़े जबरदस्त ,... " और कह कर चुप हो गयीं,


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मैंने बोला नहीं ये सोच के की आधे से ज्यादा तो चंपा भाभी के देवर लगते हैं तो जरूर उन्होंने कबड्डी खेली होगी और फिर जेठ भी तो साल में एक महीने में ,...

चंपा भाभी की हथेली में जादू था , वो हलके हलके ही मेरी एकदम खुली चूत सहला रही थीं लेकिन वो फिर पनियाने लगी,

' सबका लम्बा और लम्बे ज्यादा खूब मोटा और कड़ा , लेकिन सब ज्यादा जिस तरह पटक कर बेरहमी से रगड़ते हैं ,... तेरे पीछे तो सब पड़े हैं , रोज दो चार मेरी देवरानी और जेठानी आ के अर्जी लगा जाती है तेरे जोबन रस के लिए ,... "

मैं भी कुछ सोच रही थी ,चंपा भाभी ने ही बताया था और बसंती ने तो पूरे डिटेल में ,...

" कामिनी भाभी के मरद भाभी ,... " मेरे मुंह से निकल गया,

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और चम्पा भाभी हंसने लगी , देर तक हंसने लगीं , फिर मुझे अँकवार में भर कर चूम लिया ,...

" क्या सुना है ,... यही न की बालक प्रेमी हैं , अभी तक चिकने लौंडे की तलाश में ,... बात सही है , लेकिन आधी है , अरे ये बात तू समझ ले ज्यादा मरद कबड्डी कम उम्र में लौंडों की ही गाँड़ मार के ,... तो इसमें क्या , और वो असल में वो भेद नहीं करते , लेकिन उन्हें पिछवाड़ा बहुत पसंद है , लेकिन जिस बेरहमी से वो गांड मारते हैं , काम वाली भी , कटाई रोपाई वाली भी उनसे बचती हैं ,


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बेचारी कामिनी भाभी जिस दिन टांग फैला के चलें समझों उनके पिछवाड़े का बाजा बज गया , तुझे तो मेले में जिस दिन से देखा था उन्होंने ,... और वो आगे पीछे के छेद में भी भेद नहीं करते ,... तेरा पिछवाड़े वाला अभी खुला की नहीं , ... "

मैं शरमा गयी , आगे वाले में ही जान निकल जाती है , पिछवाड़ा , कतई नहीं ,... जान चली जायेगी पक्का ,...



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अच्छा हुआ चंपा भाभी की बात फिर गाँव के मरदों पर आ गयीं , ...

" अरे कामिनी भाभी के मरद तो मशहूर हैं लेकिन चमेली भाभी के भी कम नहीं है , और जो रतजगे में नाच रही थी न बिलसिया , उस मरद भी ,... सब कहते हैं गदहे का है उसका ,... "

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उसके बात उन्होंने कम से कम दर्जन भर मरदो का नाम बताया , और उन भौजाइयों से तो मैं रतजगा में कभी झूले पर मिल ही चुकी थी ,

" और सबसे बड़ी बात ये की वो गन्ना अरहर का खेत भी नहीं ढूंढते , बँसवाड़ी में सरपत के पीछे कहीं भी ,.... अरे आज कल धान की रोपनी हो रही है न , बस जो रोपनी करने वाली आती हैं , उसमे से दो चार का रोज नाड़ा खुलता है , और सबको मालूम है ,


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रोपनी ख़तम होते होते कउनो लड़की औरत नहीं बचेगी , जिसपर चार पांच मरद आठ दस बार न चढ़ चुके हों ,... "



अब तक भाभी की एक ऊँगली फिर मेरी बिल में घुस चुकी थी जैसे कोई गाँव का मरद चढ़ कर हचक हचक कर चोद रहा हो एकदम उसी तरह पूरी तेजी से

" जउने दिन गाँव का कोई मरद चढ़ेगा न तेरे ऊपर फेचकुर फेंक दोगी , फिर बंसतिया पाव भर कडुआ तेल पिलाएगी बुरिया में , और गाय के घी से रगडेगी न तब अगली बार के लिए ,... लेकिन जल्दिये ,... "


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भौजी की बात सुन सुन के मैं गीली हो गयी थी और ऊपर से ऊँगली ,

रॉकी जैसे उठ गया और उस की निगाह हम दोनों की ओर , बल्कि सिर्फ मेरी ओर ,

चंपा भाभी जोर से मुस्करायी , ... लेकिन जानती हो गाँव का सबसे तगड़ा मरद कौन है ,...

मेरी चूत से चासनी एक बार फिर बह रही थी , मैं बोली , नहीं , बताओ न भौजी ,...

रॉकी की ओर इशारा करके बोलीं ,

" ये तेरा असल यार "


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उन्होंने सहलाते-सहलाते मेरी स्कर्ट को पूरी कमर तक उठा दिया और जैसे, राकी को दिखाकर मेरी रसीली चूत एक झपट्टे में पकड़ लिया।



पहले तो वह उसे सहलाती रहीं फिर उनकी दो उंगलियां मेरे भगोष्ठों को बाहर से प्यार से रगड़ने लगीं।


मेरी चूत अच्छी तरह गीली हो रही थी।


भाभी ने एक उंगली धीरे से मेरी चूत में घुसा दी और आगे पीछे करने लगी।

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जैसे वो राकी से बोल रहीं हों, उसे दिखाकर, भाभी कह रह थीं-

“क्यों, देख ले ठीक से, पसंद आया माल, मुझे मालूम है… जैसे तू जीभ निकाल रहा है, ठीक है…

दिलवाऊँगीं तुझे अबकी कातिक में। बल्कि कातिक में क्यों , अरे ई तो बारहों महीने गरमाने वाला माल है , बस जल्द ही ,

बिना तुम्हारा घोंटे इसे जाने नहीं देना है अब सासू माँ का हुकुम है . और मन तो इस का भी बहुत कर रहा है.


हां एक बार ये लेगा न… तो बाकी सब कुतिया भूल जायेगा, देशी, बिलायती सभी… हां हां सिर्फ एक बार नहीं रोज, चाहे जितनी बार… अपना माल है…”


भाभी की उंगली अब खूब तेजी से मेरी बुर में जा रही थी।



और राकी भी… वह इतना नजदीक आ गया था कि उसकी सांस मुझे अपनी बुर पे महसूस हो रही थी और इससे मैं और उत्तेजित हो रही थी।
Chhinar pan par is topic par adultery aaj tak kisi ne nahi likhi.

चंपा भाभी जोर से मुस्करायी , ... लेकिन जानती हो गाँव का सबसे तगड़ा मरद कौन है ,...

मेरी चूत से चासनी एक बार फिर बह रही थी , मैं बोली , नहीं , बताओ न भौजी ,...

रॉकी की ओर इशारा करके बोलीं ,

" ये तेरा असल यार "






भाभी ने एक उंगली धीरे से मेरी चूत में घुसा दी और आगे पीछे करने लगी।

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जैसे वो राकी से बोल रहीं हों, उसे दिखाकर, भाभी कह रह थीं-

“क्यों, देख ले ठीक से, पसंद आया माल, मुझे मालूम है… जैसे तू जीभ निकाल रहा है, ठीक है…


दिलवाऊँगीं तुझे अबकी कातिक में। बल्कि कातिक में क्यों , अरे ई तो बारहों महीने गरमाने वाला माल है , बस जल्द ही ,


Or ye to had par wards he. Kalpna se pare. Maza aaya padhke. Duniya ki har bhojai apni nanand ko ese hi dekhna chahti he.
अरे कुत्ता क्या, अगर तू हिम्मत करे तो गदहे का भी लण्ड अंदर ले सकती है और मैं मजाक नहीं कर रही,

बस ट्रेनिंग चाहिये और हिम्मत, ट्रेनिंग मैं करवा दूंगी, और हिम्मत तो तेरे अंदर है ही…”

Aap bahot khatrnak ho. Dara diya muje.

जब मैं झड़ कर शांत हो गयी तो उन्होंने, अपनी उंगलियों में लगा मेरी चूत का सारा रस,

राकी के नथुनों पर खूब अच्छी तरह पोत दिया। उसे लगा कि, दो बोतल शराब का नशा हो आया हो।
 
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Shetan

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मेरी गाण्ड

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मेरी चूत सुनील के लण्ड की धकापेल चुदाई का पूरा मजा ले रही थी और मैं भी अपनी चूत उसके मोटे खूंटे जैसे लण्ड पर भींच रही थी।

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तभी चन्दा ने किसी ट्यूब की एक नोज़ल मेरी गाण्ड के छेद में डाल दी। मैं मन ही मन उसे खूब गालियां दे रही थी। वह जेली की ट्यूब थी और उसने दबा-दबाकर पुरी ट्यूब मेरी गाण्ड में खाली कर दी।
मेरी पूरी गाण्ड चप-चप हो रही थी।





उसके ट्यूब निकालते ही सुनील ने अपना लण्ड मेरी चूत से निकालकर

मेरी डर से दुबदुबाती गाण्ड के छेद पे लगा दी।


चन्दा ने बेरहमी से मेरे दोनों चूतड़ों को पकड़ के, खूब कस के गाण्ड के छेद तक फैला दिया था।


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अब सुनील का लण्ड भी मेरी चूत को चोद के अच्छी तरह गीला हो गया था और गाण्ड के अंदर भी खूब क्रीम भरी थी, इसलिये अब जब उसने धक्का मारा तो थोड़ा सा मेरी गाण्ड में घुस गया।

पर मेरी गाण्ड एकदम कड़ी हो गयी थी और मसल्स अंदर लण्ड घुसने नहीं दे रही थीं।

सुनील ने मुझसे कहा कि मैं डरूं नहीं और थोड़ा ढीली करूं पर मैं और सहम गयी।


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चन्दा कस के बोली-

“हे ज्यादा छिनारपना ना दिखा, गाण्ड ढीली कर ठीक से मरवा नहीं तो और दर्द होगा…”
और उसने अचानक मेरी दोनों टांगों के बीच हाथ डालकर कस के अपने नाखूनों से मेरी क्लिट पर खूब कस के चिकोट लिया।


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मैं दर्द से बिलबिला कर चीख उठी और मेरा ध्यान मेरी गाण्ड से हट गया।



सुनील पूरी तरह तैयार था और उसने तुरंत मेरी कमर पकड़ के कस के तीन-चार धक्कों में अपना पूरा सुपाड़ा मेरी गाण्ड में पेल दिया।



मेरी पूरी गाण्ड दर्द से फटी जा रही थी। मैंने बहुत जोर से चीखने की कोशिश की पर अजय ने और कस के अपना लण्ड मेरे हलक तक ठेल दिया और कस के मेरा सर दबाये रहा। सिर्फ मेरी गों गों की आवाज निकल पा रही थी। मैं कस-कस के अपनी गाण्ड हिला रही थी पर…



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“गुड्डी रानी, अब चाहो कितना भी चूतड़ हिलाओ, गाण्ड पटको,


पूरा सुपाड़ा अंदर घुस गया है, इसलिये अब लण्ड बाहर निकलने वाला नहीं है…”





चन्दा मेरे सामने आकर मुझे चिढ़ाते हुये बोली और मेरा जोबन कस के दबा दिया।
Bhabhi ke gav aai nanand ka ek bhi chhed baki rahe jae tab tak vo asli chhinar ka pad nahi hasil karegi. bhabhi ke har bhaiya ek ek chhed ko siddat se na pele to kana ki chhinar. ab bani tu guddi. Asli chhinar + randi no 1 jilla top.
 

komaalrani

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Shetan

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सावन की मस्ती

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कामिनी भौजी ने जरा साथ हाथ और अंदर किया और, ब्लाउज का कपड़ा एक तो एकदम घिसा हुआ और पुराना था, फिर एकदम टाइट भी,

जरा सा कामिनी भाभी के तगड़े हाथ का जोर और,


चर्र चरर,

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और बसंती ये मौका क्यों छोड़ती, जहाँ जरा सा फटा था,

वहीं से पकड़ के सीधे नीचे तक, एक उभार अब खुल के बाहर।




ई हाउ जुबना क ताकत देखा एकदम चोली फाड़ देहलस…”


एक भौजाई बोली।


तो बसंती बोली अरे एह ननद के भाई लोग हमार फाड़े हैं तो एनकर फायदे क जिमेदारी भौजाई क है…”



और एक बचा हुआ हुक भी तोड़ दिया।

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एक-एक उभार बसंती और कामिनी भाभी ने बाँट लिया और कामिनी भाभी के एक हाथ दोनों जाँघों के बीच, सीधे प्रेम गली में।

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बस गनीमत थी कि अब अँधेरा इतना हो गया था की कुछ दिख नहीं रहा था, बारिश भी तेज हो गई थी। बस बिजली जब चमकती तो,


और नीरू की हालत और ज्यादा खराब हो रही थी,

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गुलबिया के साथ दो और भौजाइयों ने उसे दबोच लिया था।


और कामिनी भाभी की चतुर चालाक उंगली मेरी दोनों मांसल रसीली पनियाई चूत की पुत्तियों के बीच रगड़ घिस्स कर रही थी,



एक निपल बसंती की मुट्ठी में तो दूसरा उभार कामिनी भाभी के हाथों में और अब तो ब्लाउज का कवच भी नहीं था।

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चूंचियां एकदम पथरा गई थीं।



बस मन कर रहा था की, किसी तरह…





लेकिन आँगन में जैसे बंसती भौजी ने तड़पाया, तीन बार किनारे तक ले गईं, लेकिन बिना झाड़े छोड़ दिया। बस वही हालत कामिनी भाभी भी मेरी कर रही थीं।

मैं सिसक रही थी, तड़प रही थी, चूतड़ पटक रही थी।

मस्ती के चककर में गाने बंद हो गए थे, हाँ पेंगे और जोर-जोर से लग रही थीं।

किसी भौजी ने मुझे ललकारा-

“अरे काहें मुस्स भड़क बइठल हो तानी कौनो मोटा लण्ड घुसेड़ल हो का?”


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मैंने मुँह बनाया की मुझे कजरी नहीं आती तो कामिनी भाभी ने बोला-

“अरे रतजगा में जो सुनाया था उहे सुना दो, हम सब साथ देंगे न।


तब तक गुलबिया की आवाज सनाई पड़ी-

“कौनो बात न अगर न सुनावे क मन होय तो, बिलौजवा के बाद आई साडियों फाड़ के तुहरे गंड़ियां में घुसेड़ देब और नंगे नचाइब। बोला गइबू की नचबू?”


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अब तो कोई सवाल ही नहीं था मैं चालू हो गई,


तानी धीरे-धीरे डाला बड़ा दुखाला रजऊ,
मस्त जुबनवा चोली धईला, गाल त कई देहला लाल।
काहें धँसावत बाड़ा भाला, बड़ा दुखाला रजउ।

और उस गाने की ताल पर कामिनी भाभी की उंगली मेरी खूब पनियाई चूत में जिस तरह अंदर-बाहर हो रही थी,

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मुझे लग रहा था अब गई कि तब गई।


लेकिन तब तक अरररा कर एक पेड़ की डाल गिरी और हम सब कूदकर झूले से उतर गए की कहीं ये डाल भी नहीं,


किसी ने बोला की चला जाय क्या?
Lesbo to mera fev he. Par with male. Love it.

Komalji koi ek reply dena. Bar bar aap ki story click karte login mangta he. Reply hoga to nahi mangega. Likes bhi nahi ho pa rahe he. Lagta he forum ka shoftwer dagmaga gaya he.
 
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Komal mam , I'm back :D
 
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Shetan

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छब्बीसवीं फुहार

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कच्ची कली : नीरू


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लेकिन पेड़ की डाल टूट कर गिरने के पहले , मेरे ठीक पीछे झूले पर बैठी , उस कच्ची कली के साथ जस्ट जवान होती ,

अरे वही नीरू , सुनील की बहिनिया , जो अभी ...,...,



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(सुबह नदी नहाने मैंने भी तो , …, गीता और मैंने , एकदम बस चूँचियाँ उठान , ….बस छोटे छोटे आते उभार , जस्ट ललछौंहे , लेकिन मैंने मीजा मसला खूब , और नीचे भी तो , एकदम कच्ची कसी , बस दो चार रेशमी बाल ' वहां ' )



,... गुलबिया और बसंती दोनों ,... जो हरकत मेरे साथ कामिनी भाभी कर रही थीं , उससे भी बढ़कर गुलबिया उस कच्ची कली के साथ ,

मेरे मन में ये सवाल उमड़ घुमड़ ही रहा था की ये तो अभी छोटी होगी ,

लेकिन गुलबिया जैसे उसने मेरे मन को पढ़ लिया , बिना मेरे पूछे बोल उठी ,

" अरे यह गाँव में कुल ननदिया , ... झांट बाद में आती है , लंड पहले खोजने लगती हैं , झांटे तो आ गयी ना , ... "

" कब की , "

हंसती खिलखिलाती उस कच्ची कली की आवाज सुनाई पड़ी।

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उमरिया में भले मुझसे बारी हो, पर कच्चे टिकोरे अब गदराने लगे थे, भौजाइयों के हाथ और गाँव के लौंडों की निगाहें दोनों बार बार वहीँ पड़ती थी और वो जवान होती नीरू समझती तो पक्का होगी

पर अभी झूले पर जवानी का पहाड़ा उसे गुलबिया पढ़ा रही थी , वही गुलबिया जिससे दो चार बच्चों की माँ ननदें भी पनाह मांगती थी,

गुलबिया का एक हाथ कच्चे टिकोरो पर और दूसरा उस कच्ची कली , कोरी ननदिया की चड्ढी में,

गुलबिया की ऊँगली का जोर,

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नीरू कभी सिसकती तो कभी चीखती और उस की चीख सुन के सारी भौजाइयों के कहकहे, हंसी और हल्ला एक साथ,

" अरे ननदों के भाई हम लोगो की फाड़ते हैं तो ये कउनो छिनार ननद बचनी नहीं चाहिए।"


गचाक , खच्च से गुलबिया ने अपनी मंझली ऊँगली दो पोर तक पेल दी , और जोर से उस कच्ची जवानी की चीख सुनाई पड़ी।

और जैसे जवाब में कामिनी भाभी ने जड़ तक दो ऊँगली मेरी गुलाबो में हचक कर ठेल दी।

" ननदन क चीख से मीठी आवाज कउनो नहीं होती , ... "

बसंती उस नयी आयी जवानी के नए नए जोबन को कस के मीजते रगड़ते बोली।

और उस के पहले चर्र चरर बंसती ने नीरू का ब्लाउज फाड़ कर , झूले से दूर

बारिश की तेज बूंदे अब सीधे उन कच्चे टिकोरों पर

तेज पानी बरस रहा था , बादल खूब घने छाए थे , आम की यह बाग़ वैसे भी इतनी गझिन , दिन में भी कुछ नहीं दिखता था ,


अब ऊपर का इलाका बंसती के कब्जे में कस कस के नीरू की उठती हुयी चूँचियाँ रंगड़ी मसली जा रही थीं

और नीचे का इलाका गुलबिया के कब्जे में , गपागप सटासट, चोदने के मामले में गुलबिया की ऊँगली गाँव के लौंडो से भी दो हाथ आगे थी

झूले पर खूब मस्ती हो रही थी,

काले घने बादल , खूब गझिन आम की बाग़ ,


इसी बाग़ में तो अजय ने सबसे पहले मेरा जोबन लूटा था ,

सांझ भी पूरी तरह , ...


लेकिन मैं गर्दन पीछे कर के , कनखियों से उस कच्ची कली की रगड़ाई ,...


मुझे कुछ मजा ज्यादा इसलिए भी आ रहा था की आज इसी के भाई ने कितनी बेरहमी से मेरे पिछावड़े , मेरे रोने चीखने के बाद भी उस दुष्ट ने मेरी फाड़ कर रख दी थी अब तक चिल्हक मच रही थी ,

और झुरमुट सी झलक भले ही हलकी हलकी दिख रही थी लेकिन उस छुटकी की चीखें सिसकियाँ तो अच्छी तरह सुनाई दे रही थी।




" नाही गुलबिया भौजी निकार लो , बहुत दर्द हो रहा है ,... "


नीरू चीख रही थी।




गुलबिया , जिसके नाम से इस गाँव की सारी ननदे कांपती थी , ऐसी मस्ती कच्ची कली को पकड़ने के बाद कैसे छोड़ देती ,

" अभी कउनो लौंडा पकड़ के अरहर के खेत में पटक के पेल देता तो , तो तोहरे चीखे से छोड़ देत का , ... चल अबकी होली में तोहैं , तोहरे भैया के खूंटे पर बैठाऊंगी , ... "




गुलबिया ऊँगली अंदर बाहर करती बोली।

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" अरे होली में त अभिन बहुत दूर हो , तब तक ई बेचारी का ,... "

एक हाथ से कस कस के मेरे जोबन रगड़ते दूसरे से मेरी चुनमुनिया में जोर जोर से ऊँगली करते कामिनी भाभी बोलीं , ...





" अरे हम भौजाई लोग काहें क हई , तब तक ई चिरैया , भउजी लोगन के साथ , तानी हमहुँ लोग तो यह कच्ची कली क रस ,... "

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ये बसंती की आवाज थी , वो जोर से उस नयी जवानी के कच्चे टिकोरों को मसल रगड़ रही थी , ऊँगली से उसके जरा जरा सा निप्स को ,...


और साथ में गुलबिया की ऊँगली उसके बिल में घचर घचर ,

और मेरी हालत तो नीरू से भी खराब,

कामिनी भाभी अकेले बंसती और गुलबिया के मिल के बराबर थीं , और आज तो वो खुल के खेल रही थीं, फिर एक बार गाँव के लौंडों के साथ गन्ने के खेत में कबड्डी खेल कर के , मुझे भी मजा आने लगा था इस सब में

कामिनी भाभी की दो दो ऊँगली , कभी अंदर बाहर कभी गोल गोल ,


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और आगे कामिनी भाभी जोर जोर से मेरी बिल में , उनका अंगूठा मेरे क्लिट पर ,

मैं झड़ने के कगार पर थी , मन बहुत कर रहा था मेरा भौजी किसी तरह झड़ा दें , बंसन्ती ने , तीन चार बार ,... लेकिन हर बार ,... किनारे पर ले जाके छोड़ दिया था बंसती ने और अब कामिनी भाभी भी वही, बस किनारे तक ले जाके रुक जा रही थीं

अभी बस लग रहा था अब झड़ी , तब झड़ी ,...

और उसी समय अरररा कर वो पास में डाल टूटी और हम सब झूले पर से हट कर ,


मैं बिना झड़ी , वैसे ही प्यासी ,...
Kya daylog set kiye he baki.

अरे यह गाँव में कुल ननदिया , ... झांट बाद में आती है , लंड पहले खोजने लगती हैं , झांटे तो आ गयी ना , ... "

" कब की , "

Lekin niru to bhabhi ki bahen lagi na. Iska matlab guddi ki bhi bhabhi. Or us gav ki bhabhiya ki guddi ki bhabhi nanand hui. Bahot jabardast masti.


Comment or likes karna bahot mushkil ho raha he. Me pahele se kam network me hu. muje bahot si comment karni thi. Par nahi kar pai.
 
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