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Erotica सोलवां सावन

Shetan

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सशीरकाम्भोधरमत्तकुञ्जरस्
तटित्पताकोऽशनिशब्दमर्दलः।
समागतो राजवत् उद्धतद्युतिर्
घनागमः कामिजनप्रियः प्रिये ॥ २-१


A king's convoy starts with sweaty elephants in rut, likewise the king of seasons, namely the rainy season, started with its march of elephantine clouds sweating raindrops... a king's retinue carry ornate flags and pennons, likewise the skyey flashes, rainbows etc are the pennants and buntings of this kingly rain... a king's ride will not be mute, but strident with trumpet's trumpeting and drumbeats' thundering, likewise this kinglike monsoon is set out with the thunders of the thunderbolts as its percussive drumbeats... whole environ is sheeny with cloudscapes, raindrops, rainbows etc with the pageant arrival of a king... all this is for the delight of voluptuous people.



ऋतुसंहार के वर्षा सर्ग का प्रथम श्लोक
क्या ये विचार धारा चाणक्य नीति पर अधारित हे??? कोमलजी???
 
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Shetan

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चंदा ---------चढ़ जा







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चंदा मेरी पक्की सहेली थी, जिस दिन से भैया की शादी इस गाँव में तय हुयी थी, मैं सब के साथ भाभी को देखने आयी थी, उसी दिन से,

लेकिन वो सबसे बड़ी मेरी दुश्मन भी थी, मुझसे ज्यादा मेरी चुनमुनिया की और पिछवाड़े की,दोनों को उसी ने फड़वाया, और आज तो एकदम, उसकी पांच दिन की छुट्टी चल रही थी , इसलिए रानी जी एकदम सेफ थीं , पूरी तरह पैक्ड, उसके कपडे तो उतरे भी नहीं थे,


हाँ मुंह और हाथों का इस्तेमाल उसने भी किया था , लेकिन शेर को खाली पागल करने के लिए , मुझे चीरफाड़ कर के,


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सच में देह का एक एक पोर पोर दुःख रहा था


खास तौर से जिस तरह गन्ने के खेत में मिटटी के कड़े कड़े ढेलों पर सुनील और दिनेश ने मुझे पाटा बना के घसीटा था,... जिस तरह से दिनेश ने उन मोटे मोटे कड़े ढेलों के ऊपर लिटाकर हचक हचक कर मेरी गाँड़ मारी थी,...

अभी तक उनके टुकड़े मेरे चूतड़ में धंसे थे, पूरी देह मिट्टी मिट्टी हो गयी थी, धुल धूसरित,... उठा नहीं जा रहा था, ... किसी तरह सुनील ने मुझे चिढ़ाते छेड़ते हाथ पकड़ कर उठाया,...


और चंदा पास में ही आम के पेड़ की मोटी डाल पे बैठी वहीँ से खिलखिला रही थी,

दिनेश को कहीं जाना था , वो कपडे पहनकर अपने चल दिया था, मैं और सुनील पास पास , सुनील ने भी अपने कपडे पहनने शुरू कर दिए,... तो मुझे याद आया , मेरे कपडे तो चंदा रानी के पास,


और कपडे क्या सिर्फ एक छोटी सी स्कर्ट और कसा कसा टॉप, जिसमें मैं दो साल पहले भी मुश्किल से घुस पाती थी, और अब तो जोबन और गद्दर हो गए और

ऊपर से भाभी के भाइयों ने मीस मीस कर, दबा दबा कर मसल मसल कर , पहले दिन जब चंदा के साथ मेले में गयी थी, उसी दिन कितनों ने रगड़ा मसला, दो दर्जन तक गिनने के बाद मैंने गिनना छोड़ दिया,और भाभी की भाभियाँ,बहनें , सहेलियां, इन लड़कों से भी दो हाथ आगे, झूले पर बैठते ही पीछे बैठी भाभी के हाथ मेरी छोटी सी चोली में घुस जाते थे, और लड़कों से भी ज्यादा कस के, और ऊपर से चंपा भाभी, बसंती और माँ,दो ग्लास दूध दो इंच मलाई के साथ,... जोबन तो गदराने ही थे,...



तो मेरे कपडे चंदा रानी के पास थे , और वो पास के आम के पेड़ की नीचे वाली डाल के सहारे खिलखिला रही थी,...


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इतना गुस्सा लग रहा था की मैं बता नहीं सकती, मेरी ऐसी बुरी हालत थी, भाभी के गाँव में आने के बाद कितनी बार चुदी थी, लेकिन आज तो जैसे बुलडोजर चला था, जैसे जेसीबी मंगा के किसी ने खुदाई करवा दी हो, हिलना भी मुश्किल, ऊपर से ये रानी जी दूर खड़ी हंस रही थीं,...


" अरे स्साली मैं उठ नहीं पा रही हूँ , तू वहां खड़ी खिलखिला रही है , ये नहीं की आ के उठा मुझे,... "

" तो न उठ न मेरी रानी, पड़ी रह यहीं, मैं और सुनील जा रहे हैं, और वो रोपनी करने वालियों को बोल देती हूँ, वो आ जाएंगी,...


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उनके टोला पुरबे के लौंडे, ऐसा मस्त माल,... तू पड़ी रहना, वो अपने काम करते रहेंगे,... और शाम को गंगा डोली बना के तुझे,... "


और फिर वही खिलखिलाना,

इत्ता गुस्सा लग रहा था किसी तरह एक हाथ से जमीन पर हाथ लगा के थोड़ी सी अधलेटी हुयी और फिर चंदा से बोली,

" कपडे तो दे दे न , ... ऐसा गुस्सा आ रहा है न अभी पकड़ में आएगी न तो बताउंगी,... स्साली छुट्टी के नाम पे छूट गयी आज तू. "


और गुस्से का असर उलटा हुआ , चंदा और अलफ़, बोली,

" तू न बड़ी शहर वाली,... जोबना उभार के चलती है , लौंडो को दिखा दिखा के चूतड़ मटकाती है और सोचती है गाँड़ तेरी बची रहेगी,... और गुस्सा हो ले,... कही रही थी न नहीं चढ़ेगी मेरे यार के खूंटे पर, अभी देख दोनों ओर डबल धमाका हुआ , कैसे गन्ने के खे में रगड़ रगड़ कर पाटा बना कर घसीटा त , पूरे गाँव में ऐसे ही , और दो में ये हालत है , अभी देखना एक एक दिन में दस दस बार तेरी गाँड़ न मरवाई तो मेरा नाम चंदा नहीं,... "

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मैं समझ गयी इस को पटाना ही पडेगा, गुस्से से काम और बिगड़ जाएगा,

मैं उसका निहोरा करती बोली,

" अच्छा चल कान पकड़ती हूँ , अगली बार से एकदम नखड़ा नहीं करुँगी, तू मेरी पक्की सहेली है असली वाली,... जो कहेगी वही करुँगी लेकिन प्लीज मेरी खूब अच्छी वाली चंदा प्लीज कपडे दे दे न,... "



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तबतक सुनील ने मुझे हाथ पकड़ के खड़ा कर दिया था,... पिछवाड़े बड़ी तेजी से चिलख उठी, ...

दर्द के मारे मैं बिलख उठी , किसी तरह सुनील का सहारा लेकर खड़ी रही , वरना वही गन्ने के खेत में फिर से गिर पड़ती ,... मैं अपनी बुर और गाँड़ दोनों कस के दबोचे हुए थी। जिसे एक बूँद भी मलाई की बाहर निकले नहीं , कामिनी भाभी ने बताया था वीर्य से अच्छा मलहम कोई नहीं होता।



चंदा ने मेरे कपडे कस के अपनी छाती से दबोच लिए और हंसती बोली,...

" अरे यार क्या करेगी कपडे, इत्ते मस्त जोबन , इस गाँव के नहीं आस पास के लौंडे भी एक दरस को तरस रहे हैं, देख लेंगे तो देखे लेंगे,.... "

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अब मैं रुंआसी सी हो गयी , मैंने सुनील से भी कहा , यार अपने माल को समझा न दे दे ,... "


पर सुनील ने साफ़ मना कर दिया , " तेरी भी तो सहेली है , तू ही बोल , मैं दो सहेलियों के बीच नहीं पड़ता,...

ऊपर से चंदा और , वही पेड़ के पास से बोली,

" अच्छा यार तू इत्ता लजा रही है तो मैं एक रास्ता बताती हूँ , एक हाथ से दोनों जुबना छिपा ले

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और दूसरे से नीचे वाले खजाना। "

इस हालत में भी भी मैं मुस्करा पड़ी , और बोली

" अच्छा चंदा रानी , पिछवाडे का क्या करुँगी,... "

सुनील की ओर देख कर चंदा बोल पड़ी,...


" अरे ये स्साला ६ फिट का मेरा यार क्या करेगा, तेरे पिछवाड़े अपना खूंटा पेल देगा, बस नहीं दिखाई देगा,.. "

सुनील बदमाश, ये मौक़ा छोड़ता, मेरे पिछवाड़े सहलाते सहलाते एक बार फिर ऊँगली पेल दी, और चंदा से बोला

" मुझे मंजूर है, अरे यार इस मस्त गाँड़ के लिए तो, कभी भी , जितना मारता हूँ उत्ता और मन करता है,... देखे, अभी से तन्नाने लगा,... "

सच में उसका मोटा खूंटा सर उठाने लगा था।

मुझे लगा ये चंदा ऐसे नहीं मानेगी , और दौड़ने में उससे मैं २० नहीं २२ थी, बस मैंने दौड़ के पकड़ने की कोशिश की,

भाग के तो वो मुझसे नहीं बच सकती थी , लेकिन वो ग्राम्या पेड़ पर चढ़ने में शाखामृग थी एकदम और उस में मुझसे २० नहीं २४ थी,

और वो पेड़ के ऊपर चढ़ गयी, ज्यादा ऊपर नहीं , लेकिन एक दो डाल ऊपर, एक मोटी डाल पे बैठ के बोली


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" आ आ ले ,ले ,..सच्ची आ ना तुझे तेरे हाथ दे दूंगी पक्का,... "



मैं भी उसके पीछे पेड़ पेड़ पर चढ़ गयी, और उस डाल पर जहाँ वो थी, लेकिन तबतक वो उछल कर और ऊपर वाली डाल पर,...
Jawzni or kawarepan ki vo mastiya. Vo bhi us wakt. Mazedar romanchak. Par kahi irsha nahi apas me mil bat kar saheliyo ko prem apne apne sajan ko batna wow.

Or pichhvade ki trening to kamini bhabhi ne achhe se di he banno ko
 

Shetan

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वापस घर को

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लेकिन अब एक नया डर समा गया ,

पेड़ पर से उतरूंगी कैसे , और जैसे मेरे बिना कहे सुनील मेरी बात समझ गया, मेरे कान में बोला,

" तू कुछ मत कर, बस मेरे ऊपर बिश्वास कर, मैं उतार लूंगा तुझे , बस अपनी देह ढीली कर,.... और पैरों और हाथ की इस डाल पर पकड़ को ढीली कर दे,

चंदा ने भी हिम्मत बढ़ाई, छोड़ना मत बस पकड़ ढीली कर दे , सुनील उतार लेगा तुझे।

और सुनील मेरे अंदर धंसे धंसे, मुझे पकड़े पकडे, ... धीरे धीरे सरकते,...



और जब दो चार हाथ रह गया तो मुझे लिए दिए सुनील पेड़ पर से कूद गया,



और मेरे पैर जमीन पर, एक बार फिर मैं उस आम के पेड़ के तने से चिपकी,...



सुनील पीछे से मुझसे चिपका, मेरे अंदर धंसा घुसा,

और चंदा हंसती खिलखिलाती , सुनील को उकसाती, मुझे चिढ़ाती

अरे अभी भी इस की गाँड़ में मोटे मोटे चींटे काट रहे हैं, कस कस के एक बार और गाँड़ मार ले इसकी खड़े खड़े,

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सुनील का भी न जबरदस्त, स्साले का झड़ने का बाद भी एकदम ढीला नहीं होता था, अच्छा खासा सा कड़ा मोटा,



बस मैं पेड़ को पकडे चिपके, और वो वहीँ खड़े खड़े धक्के मारने लगा,



मैं जानती थी वो मज़ाक कर रहा है पर क्या पता, मैं कभी चिल्लाती कभी निहोरा करती,

और में भी स्साली मोटे लंड को , खास तौर पे सुनील का पा के न पागल हो जाती थी,मैं कस के पेड़ को पकडे चिपकी, लंड के धक्के मजे से गाँड़ में खा रही थी।

पर कुछ देर बाद मुझे होश की ये स्साला बहन का, .. कहीं चालू हो गया न तो रोके नहीं रुकेगा,...और मैं फिर उससे निहोरा करने लगी

" यार मेरे छोड़ दे न प्लीज, जब बुलाएगा, जहाँ बुलाएगा आउंगी, जो कहेगा, सच में अगली बार ज़रा भी नखड़ा नहीं करुँगी, चढ़ जाउंगी जो कहेगा तुरंत, लेकिन अभी निकाल ले यार,... "



सुनील ने निकाल लिया अभी भी थोड़ा सा टनटनाया, आधा खड़ा,... और हचक के मारी गयी गाँड़ से निकले लंड की जो हालत होती है, मक्खन मलाई दोनों से लिपटा,



" हे मेरी सहेली, गाँड़ इतना मजे ले लेकर मरवा रही थी अब इसे साफ़ सूफ़ कौन करेगा,... " चंदा ने मुझे हड़काया,...

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और अब तक इस में मुझे भी मजा आने लगा था, सुनील उस आम के मोटे पेड़ के सहारे खड़ा,... और मैं घुटने के बल बैठी, ...


सुनील की आँखों में आँखों डाल के उसे चिढ़ाती , पहले जीभ से आराम से धीरे धीरे सुपाड़ा साफ़ करती,...


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चंदा भी मेरे बगल में मेरी तरह से ही बैठी, मुझे साफ़ करते चूसते देख रही थी,

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" जल्दी जल्दी कर,... " वो बोली और मैंने गप्प से आधा मूसल मुंह में ले लिया, और रस ले ले के चूसने लगी,



" रानी, अभी तो अपनी गाँड़ का रस ले रही है, बहुत जल्द तरह तरह की अलग अलग, गाँड़ का,... सीधे से नहीं तो जबरदस्ती,... तेरी सब भौजाइयां गाँव भर की पगला रही है तुझे अपनी अपनी गाँड़ का, ... "


मेरे कान में फुसफुसाती,उस दुष्ट ने मुझे चिढ़ाया,



मैं कुछ जवाब दे भी नहीं सकती थी , मेरे गले तो तक सुनील ने अपना खूंटा पेल रखा था,..


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लेकिन चंदा स्साली जन्म की छिनार अपने यार से भी दो हाथ आगे थी,... चढ़ गयी मेरे ऊपर.

सुनील ने तो खूंटा निकाल लिया, पर चंदा रानी,

" हे देख ले अच्छी तरह से चाट चूट के साफ़ कर दे , कुछ भी बचना नहीं चाहिए,... जरा सा भी,... "

"अच्छा कमीनी, ... " और एक बार फिर मैं साइड से भी,... अच्छी तरह से चाट चाट के,...

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थोड़ी देर बाद मैंने मुंह हटाया तो मारे थकान और दर्द के खेत में खेत रही,... न उठा जा रहा था न उठने का मन कर रहा था, पूरा पोर पोर दुःख रहा था।
हाँ एक बात और जब चन्दा दिनेश को खेत से बाहर छोड़ने गई थी, सुनील ने मुझसे एक जरूरी बात की और तीन तिरबाचा भरवा लिया उसके लिए।


बताऊँगी न, एक बार चन्दा को जाने तो दीजिये।

मैं उठ नहीं पाई, किसी तरह सुनील और चन्दा ने मुझे खड़ा किया और दोनों के कंधे के सहारा लेकर मैं चल रही थी। एकदम जैसे गौने की रात के बाद ननदें अपनी भौजाई को किसी तरह पकड़कर सहारे से, पलंग से उठा के ले आती हैं।

सुनील तो गन्ने के खेत से बाहर निकल के जहां अमराई आती है वहीं मुड़ गया, हाँ इशारे से उसने अपने वादे की याद दिलाई और मैंने भी हल्के से सर हिला के, मुश्कुरा के हामी भर दी।







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Full masti vo bhi saheli ke mal ke sath. Wah saheliyo ka pyar sab mil batkar maza aa gaya
 

Shetan

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***** *****सैंतालिसवीं फुहार


वापस घर


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हाँ एक बात और जब चन्दा दिनेश को खेत से बाहर छोड़ने गई थी, सुनील ने मुझसे एक जरूरी बात की और तीन तिरबाचा भरवा लिया उसके लिए।

बताऊँगी न, एक बार चन्दा को जाने तो दीजिये।



मैं उठ नहीं पाई, किसी तरह सुनील और चन्दा ने मुझे खड़ा किया और दोनों के कंधे के सहारा लेकर मैं चल रही थी। एकदम जैसे गौने की रात के बाद ननदें अपनी भौजाई को किसी तरह पकड़कर सहारे से, पलंग से उठा के ले आती हैं।


सुनील तो गन्ने के खेत से बाहर निकल के जहां अमराई आती है वहीं मुड़ गया, हाँ इशारे से उसने अपने वादे की याद दिलाई और मैंने भी हल्के से सर हिला के, मुश्कुरा के हामी भर दी।


चन्दा भी घर के दरवाजे के बाहर से ही निकल जाना चाहती थी, पर दरवाजा खुला था और भाभी की माँ ने उसे बुला लिया। हाँ, उसके पहले वो मुझे बता चुकी थी की उसके यहाँ कोई आने वाला है इसलिए शाम को तो किसी भी तरह नहीं आ सकती और कल भी मुश्किल है।

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भाभी की माँ ने उससे क्या सवाल जवाब किये-

“अरे बाहर से ही निकल जाओगी क्या? कितने यारों को टाइम दे रखा है, अंदर आओ, हमारी बिटिया को भूखा ही रखा या…”

एक साथ आधे दरजन सवाल भाभी की माँ ने चन्दा के ऊपर दाग दिए।

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वो आँगन में चटाई पे नीम के पेड़ के नीचे लेटी, गुलबिया से तेल लगवा रही थीं, साड़ी उनकी घुटनों से भी बहुत ऊपर तक उठी थी और मांसल चिकनी गोरी जांघें खुली साफ दिख रही थीं। पास में ही बसंती बैठी चावल बिन रही थी और तीनों लोग ‘अच्छी अच्छी’ बातें कर रहे थे।


मेरे घुसते ही वो तीनों लोग खड़े हो गए और माँ तो एकदम मेरे पास आके, ऊपर से नीचे तक, अपनी एक्स रे निगाहों से देख रही थीं। और मैं श्योर थी उन्हें सब कुछ पता चल गया होगा। मैं मुश्किल से अपनी मुश्कुराहट रोक पा रही थी, जिस तरह से उन्होंने चन्दा को हड़काया।

चन्दा कुछ जवाब देती उसके पहले ही वो तेल पानी लेकर गुलबिया और बसंती के ऊपर पिल पड़ीं-

“कइसन भौजाई हो, अरे ननद घूम टहलकर लौटी है, जरा हालचाल तो पूछो? चेक वेक करके देख लो…”

उनका इतना इशारा करना काफी थी, गुलबिया पहले ही मेरे पीछे आ के खड़ी हो गई थी। मेरे पिछवाड़े की दीवानी थी वो इतना तो मैं समझ गई ही थी।



“गचाक, गचाक…”


जब तक मैं कुछ सोचू, समझूँ सम्हलूं, गुलबिया ने मेरी बित्ते भर की छोटी सी स्कर्ट ऊपर की और दो उंगलियां पिछवाड़े अंदर, एकदम जड़ तक। उसने चम्मच की तरह मोड़ा, और सीधे अंदर की दीवारों से जैसे कुछ खरोंच कर निकाल रही हो, फिर गोल-गोल जोर लगाकर घुमाने लगी।


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बसंती क्यों पीछे रहती। उसकी मंझली उंगली मेरी खुली स्कर्ट का फायदा उठा के सीधे बुर के अंदर और अंगूठा क्लिट पे।

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मैं गिनगिना उठी। दो मिनट तक जबरदस्त उंगली करके गुलबिया ने पिछवाड़े से उंगली निकाली और सीधे भाभी की माँ को दिखाया। सुनील और दिनेश की मलाई से लबरेज थी, लेकिन सिर्फ मलाई ही नहीं मक्खन भी था मेरे अपने खजाने का।

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तीनों जोर से मुश्कुराई, गुलबिया बोलीं-

“लगता है कुछ तो पेट में गया है। ऊपर वाले छेद से नहीं तो नीचे वाले से ही, गया तो पेट में ही है…”

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और तब तक बसंती ने भी बुर में से उंगली निकाल ली। वो भी गाढ़े सफेद वीर्य से लिथड़ी थी।

खुशी से भाभी की माँ का चेहरा दमक रहा था और पता नहीं उन्होंने गुलबिया को आँख मारी (मुझे तो ऐसा ही लगा) या खुद गुलबिया ने, वो मक्खन मलाई से लदी उंगली मेरे मुँह में।

और तभी मैंने देखा की मेरी भाभी और चम्पा भाभी भी आँगन में किचेन से निकलकर आ गई थीं और दोनों मेरी हालत देखकर बस किसी तरह हँसी रोक रही थीं।



मेरी भाभी, आज कुछ ज्यादा ही, बोलीं-

“मैंने बोला था न जब ये लौटे तो आगे-पीछे दोनों छेद से सड़का टपकना चाहिए, तब तो पता चलेगा न की सोलहवें सावन में भाभी के गाँव आई हैं…”

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और जैसे उनकी बात के जवाब में, अबतक तो मैंने चूत और गाण्ड दोनों ही कस के सिकोड़ रखी थी। जो कटोरे कटोरे भर मलाई सुनील, दिनेश ने मेरी गाण्ड में चुआया था एक बूँद भी मैंने बाहर निकलने नहीं दी थी। लेकिन जैसे ही गुलबिया और बसंती की उंगलियों ने अगवाड़े पिछवाड़े सेंध लगाई, बूँद-बूँद दोनों ओर से मलाई टपकने लगी।

मेरी भाभी खुश, चम्पा भाभी खुश लेकिन, सबसे ज्यादा खुश, माँ, भाभी की माँ



मैंने जल्दी से पूरी ताकत लगाकर चूत और गाण्ड दोनों कस के भींचा। आखिर कामिनी भाभी की शिष्या थी, लेकिन रोकते-रोकते भी, चार पांच बूँद गाढ़ी थक्केदार, सफेद रबड़ी आगे मेरी गोरी चिकनी जाँघों से फिसलती, घुटनों के नीचे पहुँच गई। और उससे भी बुरी हालत पिछवाड़े थी जहां लिसलिसाता मक्खन मलाई के थक्के, चूतड़ को गीला करते, मेरी मखमली पिंडलियों तक पहुँच गए।
Jabardast yahi maza ka to wait tha. Maza aa gaya. Yaha kamini bhabhi ke jyada jalve he

Or ye line to superb he.

मैंने बोला था न जब ये लौटे तो आगे-पीछे दोनों छेद से सड़का टपकना चाहिए, तब तो पता चलेगा न की सोलहवें सावन में भाभी के गाँव आई हैं…”
 
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क्या ये विचार धारा चाणक्य नीति पर अधारित हे??? कोमलजी???
नहीं नहीं।

ये महाकवि कालिदास के खंड काव्य ऋतुसंहार से लिया गया है। ऋतू संहार में षड ऋतू वर्णन है उसी में वर्षा का ये श्रृंगारिक वर्णन है. मैंने इस कहानी में कई जगहों पर संस्कृत काव्य की छवियों का प्रयोग किया है. मेरा मानना है कि इरोटिक राइटिंग में संस्कृत काव्य का कोई जवाब नहीं है,... और उसके बाद रीति क़ालीन साहित्य, मेरी एक अंग्रेजी की कहानी में मैंने कश्मीर के संस्कृत कवि बिल्हण की रचनाओं का भी इस्तेमाल किया है।

लेकिन आप ऐसे रसिक पढ़नेवाली/पढ़ने वाले कम ही होते हैं जो इसे अप्रीशिएट कर पाएं। मैंने और के थ्रेड में कामदेव के पांच तीरों का वर्णन किया था और चित्र भी था पर किसी ज्ञानी मॉडरेटर ने उस पर कैंची चला दी , पांच शर यानी पांच पुष्प, अरविन्द, आम्रमंजरी, अशोक, नीलोतपल्ल और मल्लिका।

मैं बहुत कुछ अपनी कहानियों में लिखती हूँ लेकिन आप ऐसे पाठिका मेरी किस्मत से कभी कभी ही आती है जिससे मन भर बतकही कर सकें।
 
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Jabardast yahi maza ka to wait tha. Maza aa gaya. Yaha kamini bhabhi ke jyada jalve he

Or ye line to superb he.

मैंने बोला था न जब ये लौटे तो आगे-पीछे दोनों छेद से सड़का टपकना चाहिए, तब तो पता चलेगा न की सोलहवें सावन में भाभी के गाँव आई हैं…”
Ekdam sahi kaha aapne Gaon bhar ki BHabhiya is teenage Nanad ke solahvane saavan ko special banane men help kar rhai hain
 
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Bhabhi ho to esi jo khul ke moj karwae. Chahe khud ke bhaiya se ya nandiya ke bhaiya se bhed na karne de. Maza aa gaya
Thanks so much, kya baat kahi aapne


mere aur aapke vichaar ekdm milte julte hain


:thanks::thanks:🙏🙏🙏🙏
 
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Itni jabardast erotic feelings Vo bhi ek jawan aurat or kachi kali ke bich amazing bhale nanand bhabhi par jabardast maza aaya. Vo creem lagana vo soch jabardast. Aap to budhe ko bhi jawan bana dogi
:blush1::blush1::blush1::blush1::thankyou::thankyou:
 
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Shetan

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पिछवाड़े का मजा, और मेरी भाभी


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पूरे तीन बार भाभी की गाँड़ उस दिन मारी गयी।



फिर खूब हचक के कुटी गयीं वो और उसका मरद हफ्ता भर की छुट्टी ले के , और रोज बिना नागा उनके पिछवाड़े क कुटाई होती , और जब वो गया तो तोहरे भाभी क धड़क और गाँड़ दोनों अच्छी तरह खुल गयी थी।



लेकिन एक बात मुझे नहीं समझ में आयी,बसंती को ये सब इतना डिटेल में कैसे,... और मैंने पूछ लिया ,



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" जैसा तोहार ओह दिन फटी थी और मैं घर में थी" फिर बात पूरी खुली।



बसंती का उसी के कुछ दिन पहले ही गौना हुआ था, ओह दिन वो घर में अकेले थी जब भाभी साइकल चलाते लौटीं, पहले तो झूठ बोलीं की साइकिल से गिर .गयी थीं, इसलिए पिछवाड़े चिलख लग गयी है, .. और बसंती कुछ ज्यादा पूछी भी नहीं, उनके चलने से समझ गयी थी की पिछवाड़ा अच्छी तरह कूटा गया है।

समुआ से भाभी का नैन मटक्का तो देखती ही , गुलबिया की गोतनी ने पूरा किस्सा भी सुना दिया था।

एक दो बार बँसवाड़ी में दोनों को लिपटे चिपटे भी,

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तो पानी गुनगुना करके , बसंती ने खूब अच्छी तरह से धीरे धीरे भाभी का पिछवाड़ा सेंका, तो दर्द कुछ कम हुआ, और बसंती ने एक ऊँगली अंदर ज़रा सा पिछवाड़े घुसेड़ कर,


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असल में घुसेड़ने की जरुरत भी नहीं थी, मलाई बाहर तक बजबजा रही थी. और चांटों से चूतड़ एकदम लाल था।



लेकिन अगले दिन सुबह भाभी खुदै बसंती से सब उगल दी.



स्कूल जाने के नाम से उनकी फट रही थी. स्कूल पहुंचते ही मास्टरनी उनको अपने घर ले जा के अपने मरद के हवाले कर देती , लेकिन भाभी जिस बात से डर रही थीं की,... एक तो सूखे, दूसरे मास्टराइन ये बोलीं थी की आज भाभी को खुद फैला के अपने पिछवाड़े मास्टर का घोंटना है , अगर नहीं ले पायीं गाँड़ में तो बहुत पिटाई होगी , और कल तो दो तीन घंटा था , आज दिन भर,...



बसंती ने हिम्मत बँधायी फिर जुगाड़ किया घर में ताजा ताजा मक्खन निकला था, बजार वाला नहीं। दही मथ के जो निकलता है वही, बस उसी का खूब बड़ा सा गोला ले आयी, उनको पेट के बल लिटाया और फिर गाँड़ उनकी फैला के पहले अंजुरी भर , फिर थोड़ा और , थोड़ा और पूरा पाव भर से ज्यादा, और उसके ऊपर गाय का घी, बस दस मिनट तक भाभी पेट के बल लेटी रहीं, फिर हिम्मत कर के स्कूल गयीं।



" तो तो क्या भाभी उस दिन चढ़ कर के घोंट ली " हिम्मत कर के मैंने पूछ लिया।



वो जोर से हंसी, बोली नहीं उनकी किस्मत अच्छी थी. गांड मरौव्वल तो खूब हुयी लेकिन जो बड़ी मस्टराइन, का कहते हैं उसको ,"



" प्रिंसिपल " मैंने बात पूरी की,...



" हाँ हाँ उहै , उसके यहाँ कुछ पूजा पाठ , या कोई मेहमान या कुछ था तो कुल मास्टराइन क अपने घर पर वो डुयटी लगा दी, तो वो स्साली नहीं थी,... हाँ मस्टरवा था तो उसको निहुरा के लेने में ज्यादा मजा आता था, तो चार बार, कभी पलंग पे निहुरा के , कुतिया बना के ,


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तो कभी मेज के सहारे , तो कभी सोफा पे ,

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और एक दो बार तो खड़ा कर के,...
लेकिन दो तीन दिन बाद जब उ मास्टराइन घरे पर थी तो अपने सामने चढ़वाया उनको अपने मरद के लंड पे,


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और उस दिन तो तीन चार बार बस वैसे , लेकिन तबतक क्या हुआ रोज सबेरे शाम मैं तोहरी भाभी को लेटा के वही ताजा निकला मक्खन का गोला धीरे धीरे गाँड़ में, ... हफ्ते भर बाद वो मस्टरवा गया

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लेकिन तोहरी भाभी क ये फायदा हुआ की पिछवाड़े क कुल ढंग सीख गयीं। "


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थोड़ी देर मैं और बसंती खिलखिलाते रहे।



खाना बन गया था , एक ही थाली में मैंने खाना निकाला और हम दोनों फिर आँगन में,...
Matlab duniya ki har bhabhi bhi nanando ki tarah chhinal jivan ji chuki he. Maza aa gaya. Masrain bhi apne sajanva ka kachi kaliyo se bhog lagva di. Sab ke apne apne dewta ka pujan. Maza aa gaya.

In pyari pyari kachi chhinal nanado ko aap ke hawale kar rahi hu. Rocky se hi fate sabki. Tabhi to bhouji partyo ko dekhne me maza aae


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भाग १७३ -

दिन भर - सासू माँ,....



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