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Erotica सोलवां सावन

Shetan

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बँसवाड़ी में , बारिश में, ... पिछवाड़े का





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कब मेरे उठे गीले नितम्बों पर से कपड़े सरके मुझे नहीं मालूम, लेकिन जब उसने खूंटा धँसाना शुरू किया तो मुझे मालुम पड़ा। और तब तक उसकी उंगलियों ने मेरे निपल्स की ये हालत कर दी थी की मैं मना करने वाली हालत में थी ही नहीं, और मैंने मन को ये कह के मनाया की अगर मैं मना भी करती तो कौन वो साला मानता।


कड़कते बादल के बीच मेरी चीख दब के रह गई।


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तेज बरसते पानी की आवाज, पेड़ों से गिरती पानी की धार और जमीन पर बहती पानी की आवाज के साथ मेरी चीखें और सिसकियां मिल घुल गई थीं। कुछ ही देर में आधे से ज्यादा सुनील का मोटा खूंटा मेरी गाण्ड के अंदर था, और अब मैं भी पीछे धक्के मार-मार के गाण्ड मरवाते, मजा लेते उसका साथ दे रही थी।

बरसते पानी के सुर ताल के साथ हचक-हचक कर वो मेरी गाण्ड मार रहा था,


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और फिर अभी कुछ देर पहले ही जो कटोरी भर मलाई उसने मेरी गाण्ड को पिलाई थी, उसकी एक बूँद भी मैंने बाहर नहीं जाने दी थी, बस सटासट गपागप लण्ड अंदर-बाहर हो रहा था। निहुरे हुए दर्द भी हो रहा था और मजे भी आ रहे थे, बार-बार बस कामिनी भाभी की बात याद आ रही थी।


“ननद रानी, आई बात समझ लो, गाण्ड मरवाई का असल मजा तो दर्द में ही है, जेह दिन तुमको उस दर्द में मजा आने लगेगा, तुम एक बार अपनी बुर की खुजली भूल जाओगी लेकिन गाण्ड मरवाना कभी नहीं चोदोगी…” और मेरी अब वही हालत थी।

सुनील कुछ देर पहले ही तो झडा था मेरी गाण्ड में और उस बार अगर उसने 20-25 मिनट लिए होंगे तो अबकी आधे घंटे से ऊपर हो लेगा।


पहली बार मैं बरसते पानी में, खुली अमराई में सोलहवें सावन का मजा ले रही थी।

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सुनील भी न, जिस तेजी से वो मेरी गाण्ड मार रहा था उतनी ही तेजी से उसकी दो उंगलियां मेरी चूत का मंथन कर रही थीं, अंगूठा क्लिट रगड़ रहा था। थोड़ी देर में मैं झड़ने के कगार पर पहुँच गई पर न उसकी उंगलियां रुकीं न मूसल के तरह का लण्ड।


मैं झड़ती रही, वो चोदता रहा गाण्ड मारता रहा। दो बार मैं ऐसे ही झड़ी और जब तीसरी बार मैं झड़ी तो मेरे साथ वो भी देर तक। उसके लण्ड की मलाई मेरी गाण्ड को भरकर, टपक कर मेरी जाँघों को भिगोती बाहर गिर रही थी।

और जब मैंने आँखें खोली और नोटिस किया की बारिश तो कब की बंद हो चुकी है, और बादलों ने भी अपनी बाहों के बंधन से चांदनी को आजाद कर दिया है, जुन्हाई चारों ओर पसरी पड़ी थी, बँसवाड़ी, घर की ओर जाने वाली पगड़ंडी सब कुछ साफ नजर आ रहे थे और अमराई के बाहर गाँव के घरों की रोशनी भी।

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सुनील को देखकर मैं एक बार जोर से शर्माई अपने कपड़े ठीक किये उसे कस के चूमा और उससे बोली- मैं अब चली जाऊँगी।


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उसका घर दूसरी ओर पड़ता था, लेकिन तब भी पगड़ंडी पर वह कुछ देर मेरी साथ चला और जब मैं अमराई के बाहर निकल आई तभी उसने, वो पगड़ंडी पकड़ी जो उसके घर की ओर जाती थी।

मैं कुछ ही दूर चली थी की किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रख दिया। मैं एक बड़े से पेड़ के नीचे थी, वहां से घर भी दिख रहा था, और मैं जोर से चौंक गई।



ये सुनील तो नहीं हो सकता था, कौन था ये?

एक पल के लिए तो मैं घबड़ा गई। घर एकदम पास ही था, लेकिन चारों ओर एकदम सूनसान था। कोई भी नहीं दिख रहा। और मैं चीख भी नहीं सकती थी, क्योंकी उस हाथ ने मेरे मुँह को दबोच लिया था जोर से, और दूसरा हाथ मेरे नितम्बों को सहला रहा था। उसकी दो उंगलियां नितम्बों के बीच की दरार में कपड़े के ऊपर से घुस गई थीं और वो हल्के से दबा रहा था। मेरा बदन एकदम भीगा था और कपड़े पूरी तरह चिपके थे।


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फिर पीछे से ही उसके दहकते होंठ सीधे मेरे गालों पर, और मैं पहचान गई।



हम दोनों साथ खिलखिलाने लगे। वो गुलबिया थी।

“कब से खड़ी थी तू यहाँ?” मैंने खिलखिलाते हुए पूछा।

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“जब से तुम उस मड़ई के नीचे घुसी थी, बस बगल में बँसवाड़ी में मैं खड़ी तोहार राह देख रही थी, मुझे मालूम था एहरे से आओगी…”

मैं जान गई कि मेरी पूरी गाण्ड मराई का नजारा उसने एकदम क्लोज अप में देखा होगा, लेकिन गुलबिया और मुझमें अब छुपा भी कुछ नहीं था।

“माँ परेशान हो रही थीं, जब बारिश तेज हो गई थी, खास तौर से जब तोहरी भाभी और चम्पा भाभी की खबर कामिनी भाभी भेजीं…” गुलबिया बोली।



मैंने टोका नहीं, मुझे मालुम था अभी खुद ही बोलेगी।



और गुलबिया ने बोला भी- “कामिनी भाभी के मर्द आज आये नहीं, कल रात को लौटेंगे तो कामिनी भाभी उन दोनों को वहीं रोक ली और वही खबर वो भेजवाई थी…”


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Romance ,shararat romanch sab he. Kaware pan ki masti maza aa gaya.

Fir samarpit he.

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Shetan

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***** *****चौवनवीं फुहार - रात अभी बाकी है


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और गाण्ड में सेंध लगाना मैं अच्छी तरह नहीं तो थोड़ा बहुत तो सीख ही गई थी, कामिनी भाभी ने न सिर्फ सिखाया समझाया था, बल्की अच्छी तरह ट्रेनिंग भी दी थी। और आज उस ट्रेनिंग को इश्तेमाल करने का दिन था। कुछ मस्ती, कुछ मौसम और कुछ दारू का असर, मैं एकदम मूड में थी आज ‘हर चीज ट्राई करने के’, और भाभी के मां चूतड़ थे भी बहुत मस्त, खूब बड़े-बड़े, मांसल गद्देदार लेकिन एकदम कड़े-कड़े।

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और साथ में गुलबिया के होंठ भले ही भाभी की माँ के भोसड़े से चिपके थे लेकिन उसके दोनों तगड़े हाथों ने भाभी की माँ के गुदाज चूतड़ों को उठा रखा था, जिससे मेरे लिए सेंध लगाना थोड़ा और आसान हो गया था।

मैंने शुरूआत चुम्बनों की बारिश से की और धीरे-धीरे मेरे गीले होंठ गाण्ड की दरार पर पहुँच गए, मैंने एक बड़ा सा थूक का गोला उनके गोल दरवाजे पर फेंका फिर उंगली घुसाने की कोशिश की, लेकिन नाकामयाब रही, छेद उनका बहुत कसा था। बहुत मुश्किल से एक पोर घुस पाया।


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और फिर गुलबिया काम आई, बिना बोले गुलबिया ने उंगली गाण्ड के अंदर से वापस खींच के मेरे मुँह में ठेल दिया।

उसका इशारा मैं समझ गई, पहले थूक से खूब गीला कर लो। और अब अपनी अंगुली को जो चूस-चूस के थूक लगाकर एकदम गीला करके मैंने छेद पर लगाया तो गुलबिया के हाथ मेरी मदद को मौजूद थे। उसने पूरी ताकत से दोनों हाथों से उनकी गाण्ड को चियार रखा था, और सिर्फ इतना ही नहीं जैसे ही मैंने उंगली अंदर ढकेला, तो गुलबिया के दायें हाथ ने मेरी कलाई को पकड़ के पूरी ताकत से, हम दोनों के मिले जुले जोर से पूरी उंगली सूत-सूत करके अंदर सरक गई।

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और फिर जैसे पूरी ताकत से माँ की गाण्ड ने मेरी अंदर घुसी तर्जनी को दबोच लिया।

बिना बुर से मुँह हटाये, गुलबिया ने फुसफुसा के मुझे समझाया-

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“अरे खूब जोर-जोर गोल-गोल घुमा, खरोंच खरोंच के…”

मेरी तर्जनी की टिप पे कुछ गीली-गीली, कुछ लसलसी सी फीलिंग्स हो रही थी, लेकिन गुलबिया की सलाह मान के गोल-गोल घुमाती रही, खरोंचती रही। उसके बाद हचक-हचक के अंदर-बाहर, जैसे कामिनी भाभी ने मेरे साथ किया था। और मेरी कलाई वैसे भी गुलबिया की मजबूत पकड़ में थी, एकदम सँड़सी जैसी। फिर दो-चार मिनट के बाद उसने मेरी उंगली बाहर कर ली।

और जब तक मैं समझूँ समझूँ, मेरे मुँह में सीधे और गुलबिया ने अबकी मुँह उठा के बोला-

“एक बार फिर से खूब थूक लगाओ और अबकी मंझली वाली भी…”

कुछ देर बाद मेरी समझ में की ये उंगली, कहाँ से? लेकिन मुँह से उंगली निकालना मुश्किल था।


गुलबिया ने कस के मेरा हाथ पकड़ रखा था, और जैसे वो मेरी दिल की बात समझ गई और हड़काती बोली-


“ज्यादा छिनारपना मत कर, लौंडों से गाण्ड मरवा-मरवा के उनका लण्ड मजे से चूसती हो, कामिनी भौजी ने तेरी गाण्ड में उंगली करके मंजन करवाया था, तो अपनी गाण्ड की चटनी तो कितनी बार चाट चुकी हो, फिर, चाट मजे ले ले के…”



कोई रास्ता था क्या?



और उसके बाद मेरी दोनों उंगलियां माँ की गाण्ड में, फिर उसी तरह खूब खरोंचने के बाद, वहां से सीधे मेरे मुँह में, सब कुछ लिसड़ा चुपड़ा, लेकिन थोड़ी देर में मैं अपने आप…


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गुलबिया ने मेरी कलाई छोड़ दी थी लेकिन मैं खुद ही, और उसका फायदा भी हुआ, कुछ मेरे थूक का असर, कुछ उंगलियों की पेलम-पेल का, दो चार बार दोनों उंगलियों की गाण्ड मराई के बाद उनका पिछवाड़े का छेद काफी खुल गया और अब जब मैंने मुँह लगाकर वहां चूसना शुरू किया तो मेरी जीभ आसानी से अंदर चली गई।


ये ट्रिक मुझे कामिनी भाभी ने ही सिखाई थी, जीभ से गाण्ड मारने की और आज मैं पहली बार इसका इश्तेमाल कर रही थी। दोनों होंठ गाण्ड के छेद से चिपके और अब तक जो काम मेरी दोनों उंगलियां कर रही थीं बस वही जीभ, और वही गूई लसलसी सी फीलिंग।

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लेकिन असर तुरंत हुआ, गुलबिया की बात एकदम सही थी। भाभी की माँ तड़प रही थी, चूतड़ पटक रही थी, मेरी जीभ अंदर-बाहर हो रही थी, गोल-गोल घूम रही थी। गुलबिया उनकी बुर खूब जोर-जोर से चूस रही थी, जीभ बुर के अंदर पेल रही थी, मेरे हाथ भी अब गुलबिया की सहायता को पहुँच गए थे। जोर-जोर से मैं माँ के क्लिट को रगड़ मसल रही थी।

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इस तिहरे हमले का असर हुआ और वो झड़ने लगीं। झड़ने के साथ उनकी गाण्ड भी सिकुड़ खुल रही थी, मेरी जीभ को दबोच रही थी, मेरा नाम ले-लेकर वो एक से एक गन्दी-गन्दी गालियां दे रही थी। एक बार झड़ने के बाद फिर दुबारा।
और अबकी उनके साथ गुलबिया भी,

फिर तिबारा, पांच छह मिनट तक वो और गुलबिया, बार-बार, कुछ देर तक ऐसे चिपकी पड़ीं रही मैं भी उनके साथ। और हटी भी तो एकदम लस्त पस्त, लथर पथर।

मैं भी उनके साथ पड़ी रही 20-25 मिनट तक दोनों लोगों की बोलने की हालात नहीं थी, फिर भाभी की माँ ने मुझे इशारे से बुलाया और अपने पास बैठा के दुलारती सहलाती रहीं, बोलीं-


“जमाने के बाद ऐसा मजा आया है…”

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गुलबिया अभी भी लस्त थी। भाभी की माँ की उंगली अभी भी उसके पिछवाड़े थी और, अचानक वहां से सीधे निकाल के मेरे मुँह में उन्होंने घुसेड़ दी।



मैंने बुरा सा मुँह बनाया।



तो बोलीं- “अरे अभी मेरा स्वाद तो इत्ते मजे ले-ले के ले रही थी, जरा इसका भी चख ले, वरना बुरा मान जायेगी ये छिनार, अच्छा चल ये भी घोंट ले, स्वाद बदल जाएगा…” और पास पड़ी बोतल उठा के मेरे मुँह में लगा दी।
Nasha chadhva diya komalji. Amezing.
 

Shetan

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.....बस







तब तक चन्दा ने सांकल खोल दी और पूरबी अंदर आ गई- “हे जल्दी चलो, बस खड़ी है, ड्राइवर हार्न बजाये जा रहा है…” उसने बोला।

मैंने बढ़कर अपनी पैंटी उठानी चाही तो पूरबी ने उसे उठा लिया और मुश्कुराते हुये बोली- “हे अब इसे पहनने, पोंछने का टाइम नहीं है बस तुम चल चलो…”


मेरी गाण्ड और चूत दोनों में वीर्य भरा था और बस चूना ही चाहता था। चूची और गाल पे जो लगा था सो अलग। पूरबी ने मेरे गाल पर लगे, अजय और रवी के वीर्य को कसकर चेहरे पे रगड़ दिया और कहा- “तेरा गोरा रंग अब और चमकेगा…”

चन्दा और गीता ने जल्दी-जल्दी मेरा टाप बंद कर दिया पर उन नालायकों ने मेरी ब्रा को खुला ही रहने दिया और मेरे निपल पर लगे वीर्य को भी वैसे ही छोड़ दिया।

मैं जल्दी-जल्दी चलकर गई। मेरे गालों पर तो लगा ही था, मेरा मुँह भी उन तीनों के रस से भरा था। बस खड़ी थी और ड्राइवर अभी भी हार्न बजा रहा था। मैं जल्दी-जल्दी सबसे मिली।


राकी भी आकर मेरे पैरों को चाट रहा था। मैं जब राकी को सहलाने लगी तो पीछे से किसी ने बोला- “अरे ज्यादा घबड़ाने की बात नहीं है, कातिक में तो ये फिर आयेगी…”

मैं मुश्कुराये बिना नहीं रह सकी।



ड्राइवर भी बगल के गाँव का था। वह भी बिना बोले नहीं रह सका, आखिर मैं उसके बहनोई की बहन जो थी। मुझे देखते हुए, द्विअर्थी ढंग से बोला- “मैंने इतनी देर से खड़ा कर रखा है…”

चमेली भाभी कैसे चुप रहतीं, उन्होंने तुरंत उसी स्टाइल में जवाब दिया-

“अरे खड़ा किया है तो क्या हुआ? आ तो गई हैं चढ़ने वाली, बैठाना दो घंटे तक…”

किसी ने कहा कि ये बहुत देर से हार्न बजा रहा था।

तो चम्पा भाभी मेरे गालों पर कस के चिकोटी काटतीं, बोलीं-


“अब इसका हार्न बजायेगा…”

सामान पहले ही रखा जा चुका था। मैं जाकर बस में बैठ गई, खिड़की के बगल में और बस चल दी। मैं देख रही थी, बाहर, खिड़की से, गुजरती हुई, अमराई, जहां हम झूला झूलने जाते थे और जहां रात में पहली बार अजय ने… वो गन्ने के खेत, मेले का मैदान, नदी का किनारा, सब पड़ रहे थे और पिक्चर के दृश्य की तरह सारा दृश्य एक-एक करके सामने आ रहा था।


भाभी ने पूछा- “क्यों क्या सोच रही हो?

तब तक एक झटका लगा और मेरी गाण्ड और चूत दोनों से वीर्य का एक टुकड़ा मेरे चूतड़ और जांघ पर फिसल पड़ा।


भाभी और मेरे पास सट गईं और मेरे गाल से गाल सटाकर बोलीं-

“घर चलो, वहां मेरा देवर इंतजार कर रहा होगा…”



मेरे चेहरे पर मुश्कान खिल उठी। मेरे सामने रवीन्द्र की शक्ल आ गई। मैंने भी भाभी के कंधे पे हाथ रखकर, मुश्कुराकर कहा-

“भाभी आपके भाइयों को देख लिया, अब देवर को भी देख लूंगी…”




तो ये रही मेरी भाभी के गाँव में आप बीती।



भाभी के देवर ने मेरे साथ क्या किया, या मैंने भाभी के देवर के साथ, ये तो मैं अपकी कल्पना पर छोड़ती हूँ
Khatarnak shararat or comedy.

ड्राइवर भी बगल के गाँव का था। वह भी बिना बोले नहीं रह सका, आखिर मैं उसके बहनोई की बहन जो थी। मुझे देखते हुए, द्विअर्थी ढंग से बोला- “मैंने इतनी देर से खड़ा कर रखा है…”

चमेली भाभी कैसे चुप रहतीं, उन्होंने तुरंत उसी स्टाइल में जवाब दिया-

“अरे खड़ा किया है तो क्या हुआ? आ तो गई हैं चढ़ने वाली, बैठाना दो घंटे तक…”

Superb......
 

Shetan

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उन्नत कुच, पत्थर से कठोर,


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दरवाजे के पास से मुड़कर शोख अदा से, जीभ होंठ पर फिराते मैं बोली- “तो क्या हुआ, जूठा खाने से प्रेम बढ़ता है। और था भी बड़ा स्वादिष्ट…”

लौट कर मैंने हिंदी की एक किताब उठाई, बिहारी की, और उसमें से मैंने एक दोहा निकाला- “ये देखिये… उन्नत कुच, पत्थर से कठोर, उल्टे कटोरे की तरह… क्या मतलब है इसका?”



“ये… ये कहां से मिला? ये तुम्हारे कोर्स में तो नहीं है…” वो बोला।

“तो क्या हुआ? बिहारी तो कोर्स में हैं ना? मैंने सोचा की मूल पुस्तक पढ़नी चाहिये तो मैं लाइब्रेरी से ले आई, पर ये जो अर्थ लिखा है… वह भी समझ में नहीं आ रहा है, तुम्हें मालूम है तो ठीक, वरना मैं किसी और से पूछ लूंगी…”

“नहीं नहीं… किसी और से मत पूछना… इसका मतलब है की… नायक को नायिका के उन्नत कुच… जो पत्थर की तरह कठोर हैं, पसंद हैं… मतलब…”

मैं उससे और सट गई और साफ-साफ जोबन को उभारकर अदा से बोली- “खुलकर साफ-साफ बताओ ना…”

उसकी सांस मेरे सीने को देखकर तेज हो रही थी- “मतलब की नायक को नायिका के कुच, उसका सीना, सीने के उभार जो खूब…”

तब तक लाईट चली गई और मैंने उसके हाथ को अपने कंधे पे रख लिया, एकदम उभारों के पास खींच लिया और उसके चेहरे के पास चेहरे को लेजाकर मैंने धीरे से पूछा-


“अच्छा तुम बताओ, तुम्हें कैसी लड़की पसंद है? कोई तो होगी जो तुम्हें पसंद होगी?”

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“हां पसंद है… है एक बहुत अच्छी है…”

मैंने उसके हाथ को अब और कस के खींच लिया था और अब वह सीधे मेरे उभार पर था। मेरे गाल उसके गाल से सटे हुए थे।

मैंने फिर पूछा- “बताओ ना कैसी है? कौन है? मैं भी तो जानूं…”

“है एक, तुम जानती हो उसको… बहुत सुंदर है, एकदम सेक्सी, प्यारी सी…” वह धीमे से बोला।

“अगर एक बार मिल जाय ना मुझको…” मैंने फुस्फुसाहट में कहा।

“क्यों, मिल जाय तो क्या करोगी?” मुश्कुराकर वह बोला।

“मुँह नोच लूंगी उसका… और क्या? लेकीन बड़ी किश्मत वाली होगी जिसे तुम चाहोगे…”

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“जलती हो उससे?” हँसकर वो बोला।

तभी हवा तेज चली और खिड़की, दरवाजे खड़खड़ होने लगे।

मैं उठकर गई और दोनों की सिटकनी लगाकर बंद कर दी। लौटकर बैठते समय, मैं उसके पैरों से फँस गई और गिरकर उसकी गोद में बैठ गई।



मैंने फिर उसका हाथ खींचकर अपने कंधे पर रख लिया और अपने उभार पर हल्के से दबा दिया।

“जलूंगी ही… अगर मैं उसकी जगह होती…” हल्के से मैं बोली और उसके हाथ को सीने पे हल्के से दबा दिया।
अबकी उसने भी मेरे उभार को हल्के से सहलाते हुए, मेरे गाल से गाल रगड़कर पूछा-


“अगर उसकी जगह तुम होती तो क्या करती?”

मैं भी अपने गुलाबी गालों से उसके गाल रगड़कर बोली-

“पहले मेरी तो इतनी किश्मत नहीं है… फिर करने को, वो तो शेर वाली बात होती, मिलने पर जो करेगा शेर ही करेगा, तो उसी तरह जो करते तुम ही करते। लेकिन तुम जो भी जितना भी जैसे भी करते, मैं सब करवा लेती… जरा भी चूं नहीं करती, पूर्ण समर्पण के साथ… लेकिन मैं इत्ती अच्छी नहीं हूँ कि तुम… मुझे…”

मैं अब खुल के बोली।



“नहीं… ये आज के बाद तुम कभी मत कहना ऐसा, तुमसे अच्छा कौन होगा?” वो बोला।



अब मैं समझ गई थी और मैं उसके दूसरे हाथ को अपने सीने के ऊपर ले गई और उसे वहां कस के दबाते हुए कहा- “अच्छा तो तुम्हें मेरी कसम… खुलकर बताओ ना उसके बारें में कितनी उमर है, कैसी लगती है?”
सोलहवां सावन है उसका और बड़ी सेक्सी है…”


तेज सांसों के साथ अब मेरा सीना तेजी से ऊपर-नीचे हो रहा था।
मैंने उसके दोनों हाथ अब कस के अपने सीने पे दबा लिये थे। और मैं बोली-


“और वह… तुम्हारे स्कूल में ही पढ़ती है, तुम्हारे क्लास में…” मुश्किल से वो बोला


अब मैंने कस के उसके हाथ अपने सीने पे अपने हाथ से भींच दिये।

वह भी अब खुलकर हल्के-हल्के मेरे रसीले जोबन दबा रहा था। उसका उत्तेजित लिंग लग रहा था कि, जीन्स फाड़ देगा। चन्दा की बात अब मुझे गलत लग रही थी। उसका उससे भी बड़ा लग रहा था जितना चन्दा ने बताया था।

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“और बोलो ना…” उसके खड़े लिंग को मैंने अपने नितंब से हल्के से दबाते हुये पूछा।

उसने अब बिना किसी हिचक के कस के मेरे दोनों रसीले जोबनों को दबाकर, मजा लेते हुए कहा-

“और वह इसी गली में रहती है…”


तब तक लाईट आ गई। हम दोनों उठ गये और मैंने सांकल खोल दी। जब वह जाते समय सबसे मिल रहा था तो उससे पूछा गया कि कल रक्षाबंधन में क्या प्रोग्राम है?


उसने मुझसे पूछा कि क्या मैं आ सकती हूँ?

ठसके से मैं बोली- “जिसको राखी बंधवाना हो वो आये…”

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लेकिन मुझे डांट पड़ गई और तय ये हुआ कि कल मैं उसके घर जाऊँगी। मैंने उससे पूछा- उसे कैसी राखी पसंद है?

तो वो मेरी ओर देखकर शैतानी से बोला- “बड़ी-बड़ी…”
Romance romanch shararat sab kuchh superb.
 

Sutradhar

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प्रिय कोमल जी

आपकी इस कहानी की थीम एक वाक्य में कही जा सकती है ""Why should boys have all the fun "" । लेकिन बात सिर्फ इतनी सी ही नहीं है आपकी लेखनी से आपके विशद ज्ञान के अनेकों आयामों का परिचय मिलता है और आपका आयुर्वेद का ज्ञान तो अदभुत है। एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहता हूं। जायफल के बारे में मुझे इतना ही ज्ञात था कि यह सर्दियों में बच्चों को दी जाने वाली एक आयुर्वेदिक दवा है परंतु जब मैंने आपकी इस कहानी में जायफल को Aphrodisiacs जाना तो पहले तो मुझे विश्वास नहीं हुआ परंतु चूंकि आपने वर्णन किया है अतः ना मानने का प्रश्न ही नहीं उठता फिर भी गूगल बाबा की शरण में जाने पर यह स्पष्ट हो गया कि आप पर मेरा विश्वास सही है।

सदर
 

Sutradhar

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पुनश्च

कोमल जी एक बात और कहना चाह रहा था। यू तो आपकी हर एक कहानी पर आपका निर्णय करना आपका एकाधिकार है। फिर भी इस कहानी में नायिका और रविंद्रवा का प्रसंग पूर्ण हो ऐसी आकांक्षा है।
सादर
 

komaalrani

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Komal ji aapki story nanad ki training aur nanad ne kheli holi uske bad ki story kaun si hai
sorry for late reply. Nanad ne kheli holi, sequel hai Nanad ki training ka. uske baad maine kayi kahaniyan likhi lekin vo sab alag alag thin. sequel ke naam par छुटकी - होली दीदी की ससुराल में ek sequel hain jo abhi chal raha hai uska link main yahan de rahi hun


yah kahani sequl hai मजा पहली होली का, ससुराल में

aur is ka bhi main link de rahi hun


 
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Shetan

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Kaware pan ki sahi shararat aur pahele pyar vali kawari feelings. Is se aur badhiya kuchh nahi.


Rocky vala seen adhura rahe gaya.


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