Shetan
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Romance ,shararat romanch sab he. Kaware pan ki masti maza aa gaya.बँसवाड़ी में , बारिश में, ... पिछवाड़े का
कब मेरे उठे गीले नितम्बों पर से कपड़े सरके मुझे नहीं मालूम, लेकिन जब उसने खूंटा धँसाना शुरू किया तो मुझे मालुम पड़ा। और तब तक उसकी उंगलियों ने मेरे निपल्स की ये हालत कर दी थी की मैं मना करने वाली हालत में थी ही नहीं, और मैंने मन को ये कह के मनाया की अगर मैं मना भी करती तो कौन वो साला मानता।
कड़कते बादल के बीच मेरी चीख दब के रह गई।
तेज बरसते पानी की आवाज, पेड़ों से गिरती पानी की धार और जमीन पर बहती पानी की आवाज के साथ मेरी चीखें और सिसकियां मिल घुल गई थीं। कुछ ही देर में आधे से ज्यादा सुनील का मोटा खूंटा मेरी गाण्ड के अंदर था, और अब मैं भी पीछे धक्के मार-मार के गाण्ड मरवाते, मजा लेते उसका साथ दे रही थी।
बरसते पानी के सुर ताल के साथ हचक-हचक कर वो मेरी गाण्ड मार रहा था,
और फिर अभी कुछ देर पहले ही जो कटोरी भर मलाई उसने मेरी गाण्ड को पिलाई थी, उसकी एक बूँद भी मैंने बाहर नहीं जाने दी थी, बस सटासट गपागप लण्ड अंदर-बाहर हो रहा था। निहुरे हुए दर्द भी हो रहा था और मजे भी आ रहे थे, बार-बार बस कामिनी भाभी की बात याद आ रही थी।
“ननद रानी, आई बात समझ लो, गाण्ड मरवाई का असल मजा तो दर्द में ही है, जेह दिन तुमको उस दर्द में मजा आने लगेगा, तुम एक बार अपनी बुर की खुजली भूल जाओगी लेकिन गाण्ड मरवाना कभी नहीं चोदोगी…” और मेरी अब वही हालत थी।
सुनील कुछ देर पहले ही तो झडा था मेरी गाण्ड में और उस बार अगर उसने 20-25 मिनट लिए होंगे तो अबकी आधे घंटे से ऊपर हो लेगा।
पहली बार मैं बरसते पानी में, खुली अमराई में सोलहवें सावन का मजा ले रही थी।
सुनील भी न, जिस तेजी से वो मेरी गाण्ड मार रहा था उतनी ही तेजी से उसकी दो उंगलियां मेरी चूत का मंथन कर रही थीं, अंगूठा क्लिट रगड़ रहा था। थोड़ी देर में मैं झड़ने के कगार पर पहुँच गई पर न उसकी उंगलियां रुकीं न मूसल के तरह का लण्ड।
मैं झड़ती रही, वो चोदता रहा गाण्ड मारता रहा। दो बार मैं ऐसे ही झड़ी और जब तीसरी बार मैं झड़ी तो मेरे साथ वो भी देर तक। उसके लण्ड की मलाई मेरी गाण्ड को भरकर, टपक कर मेरी जाँघों को भिगोती बाहर गिर रही थी।
और जब मैंने आँखें खोली और नोटिस किया की बारिश तो कब की बंद हो चुकी है, और बादलों ने भी अपनी बाहों के बंधन से चांदनी को आजाद कर दिया है, जुन्हाई चारों ओर पसरी पड़ी थी, बँसवाड़ी, घर की ओर जाने वाली पगड़ंडी सब कुछ साफ नजर आ रहे थे और अमराई के बाहर गाँव के घरों की रोशनी भी।
सुनील को देखकर मैं एक बार जोर से शर्माई अपने कपड़े ठीक किये उसे कस के चूमा और उससे बोली- मैं अब चली जाऊँगी।
उसका घर दूसरी ओर पड़ता था, लेकिन तब भी पगड़ंडी पर वह कुछ देर मेरी साथ चला और जब मैं अमराई के बाहर निकल आई तभी उसने, वो पगड़ंडी पकड़ी जो उसके घर की ओर जाती थी।
मैं कुछ ही दूर चली थी की किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रख दिया। मैं एक बड़े से पेड़ के नीचे थी, वहां से घर भी दिख रहा था, और मैं जोर से चौंक गई।
ये सुनील तो नहीं हो सकता था, कौन था ये?
एक पल के लिए तो मैं घबड़ा गई। घर एकदम पास ही था, लेकिन चारों ओर एकदम सूनसान था। कोई भी नहीं दिख रहा। और मैं चीख भी नहीं सकती थी, क्योंकी उस हाथ ने मेरे मुँह को दबोच लिया था जोर से, और दूसरा हाथ मेरे नितम्बों को सहला रहा था। उसकी दो उंगलियां नितम्बों के बीच की दरार में कपड़े के ऊपर से घुस गई थीं और वो हल्के से दबा रहा था। मेरा बदन एकदम भीगा था और कपड़े पूरी तरह चिपके थे।
फिर पीछे से ही उसके दहकते होंठ सीधे मेरे गालों पर, और मैं पहचान गई।
हम दोनों साथ खिलखिलाने लगे। वो गुलबिया थी।
“कब से खड़ी थी तू यहाँ?” मैंने खिलखिलाते हुए पूछा।
“जब से तुम उस मड़ई के नीचे घुसी थी, बस बगल में बँसवाड़ी में मैं खड़ी तोहार राह देख रही थी, मुझे मालूम था एहरे से आओगी…”
मैं जान गई कि मेरी पूरी गाण्ड मराई का नजारा उसने एकदम क्लोज अप में देखा होगा, लेकिन गुलबिया और मुझमें अब छुपा भी कुछ नहीं था।
“माँ परेशान हो रही थीं, जब बारिश तेज हो गई थी, खास तौर से जब तोहरी भाभी और चम्पा भाभी की खबर कामिनी भाभी भेजीं…” गुलबिया बोली।
मैंने टोका नहीं, मुझे मालुम था अभी खुद ही बोलेगी।
और गुलबिया ने बोला भी- “कामिनी भाभी के मर्द आज आये नहीं, कल रात को लौटेंगे तो कामिनी भाभी उन दोनों को वहीं रोक ली और वही खबर वो भेजवाई थी…”
Fir samarpit he.










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