Sahi kiya. Kabhi kabhi jo nahi dikhta vahi bahetar hota he.Is Forum ke NIyam permit nahi karte the isliye bas baat ishaaron ishaaron men rah gayi rocky vaali
Kamini bhabhi to gyan ka bhandar hभाभी के 'वो'
मुझसे रहा नहीं गया और मैंने पूछ लिया-
“भाभी आपके वो कब आएंगे?”
कामिनी भाभी के ‘वो’ यानी?
अब भाभी अलफ।
सारी दोस्ती मस्ती एक मिनट में खत्म। उनका चेहरा तमक गया। मैं घबड़ा गई, क्या गलती हो गई मुझसे?
“तुम मुझे क्या बोलती हो?”
बहुत ठंडी आवाज में उन्होंने पूछा।
“भाभी, आपको भाभी बोलती हूँ…”
मैंने सहम के जवाब दिया।
“और मेरे ‘वो’ क्या लगे तुम्हारे?”
फिर उन्होंने पूछा।
अब मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया, और सुधारने का मौका भी मिल गया। दोनों कान पकड़ के बोली-
“गलती हो गई भाभी, भैया हैं मेरे, और आगे से आपको मैं भौजी बोलूंगी उनको भैया…”
सारा गुस्सा कामिनी भाभी का कपूर की तरह उड़ गया।
उन्होंने मुझे कस के बाँहों में भींच लिया और अपने बड़े-बड़े उभारों से मेरी कच्ची अमिया दबाती मसलती बोलीं-
“एकदम, तू हमार सच्च में असल ननद हो…”
फिर उन्होंने पूरा किस्सा बताया- जब वो शादी होकर आईं तो पता चला की उनकी कोई ननद नहीं है, सगी नहीं है, ये तो पता ही था। लेकिन कोई चचेरी, ममेरी, मौसेरी, फुफेरी बहन भी नहीं है उनके पति के उन्हें तब पता चला।
गाँव के रिश्ते से थी लेकिन असल रिश्ते वाली एकदम नहीं थी और आज उन्होंने मुझे अपनी वो ‘मिसिंग ननद’ बना लिया था।
“एकदम भौजी ओहमें कौनो शक?”
उनके मीठे-मीठे मालपूआ ऐसे गाल पे कचकचा के चुम्मा लेते मैंने बोला।
“डरोगी तो नहीं?” मेरी चुन्मुनिया रगड़ते उन्होंने पूछा।
“अगर डर गई भौजी तो आपकी ननद नहीं…” जवाब में उनकी चूची मैंने कस के मसल दी।
“मैंने तय किया था की मेरी जो असल ननद होगी न उसे भाईचोद बनाऊँगी और उनको पक्का बहनचोद, लेकिन कोई ननद थी नहीं…”
मुश्कुराते वो बोलीं।
“नहीं रही होगी लेकिन अब तो है न?”
उनकी आँखों में आँखें डाल के मैंने बोला।
और जवाब में मेरी साड़ी खोल के गचाक से एक उंगली उन्होंने मेरी कसी चूत में पेल दी।
“लेकिन भैया तो हैं नहीं?”
मैंने बोला, लेकिन मेरी बात का जवाब बिना दिए भाभी रसोई में वापस चली गईं।
हम दोनों बेडरूम में बिस्तर पर बैठे थे। जब वो लौटीं तो उनके हाथ में बड़ा सा ग्लास था। भौजी के हाथ में बखीर थी।
और वो भी मुझे तब पता चला जब एक कौर मेरे मुँह में चला गया।
Solhva sawan ki sabse maat fuhaar yahin hui h kamini bhabhi ke ghar parचीख
मेरी इतनी जोर से चीख निकली की आधे गाँव में सुनाई दिया होगा।
पूरी देह में दर्द की लहर दौड़ गई और अभी पहले धक्के के दर्द से उबरी भी नहीं थी की एक बार फिर, और अबकी पहले वाले से भी दूनी ताकत से… मुझे लग रहा था की मेरी चूत फट जायेगी। एक के बाद एक धक्के जैसे कोई धुनिया रुई धुने।
मेरी चीखें कुछ कम हो गई थीं, लेकिन बंद नहीं हुई थीं।
आँखों में दर्द का छलकता पानी, कुछ छलक कर गालों पे भी उतर आया था।
भैय्या का एक हाथ अभी भी जोर से मेरे चूतड़ को दबोचे हुआ था और दूसरा मेरी पतली कमर को पकड़े था।
चूचियां अब भौजी के कब्जे में थी और वो उसे कभी हल्के-हल्के सहलाती, दुलराती तो कभी कस-कस के मसल मीज देतीं और मुझे छेड़ते हुए बोलतीं-
“क्यों ननद रानी आ रहा है मजा चुदवाने का न? अब बन गई न भाईचोद?”
और भौजी भैया को भी छेड़तीं-
“अरे बहन की चुदाई क्या जब तक आधे गाँव को पता न चले, पेलो हचक-हचक के। बिना चीख पुकार के कच्ची कुँवारी चूत की चुदाई थोड़े ही होती है, चीखने दो छिनार को…”
कुछ भौजी की छेड़छाड़, कुछ जिस तरह वो चूची मीज मसल रही थी
और कुछ भैय्या के धक्कों का जोर भी अब कम हो गया था।
एक बार फिर से दर्द अब मजे में बदल गया था। चूत में अभी भी टीस हो रही थी, फटी पड़ रही थी, लेकिन देह में बार-बार हर धक्के के साथ एक मजे की लहर उठती। मैं सिसक रही थी, धक्कों का जवाब भी अब चूतड़ उठा के दे रही थी।
लेकिन तब तक भैया ने चोदना रोक दिया, और जब तक मैं कुछ समझ पाती, भौजी ने झुक के मेरे होंठों को चूम के बोला-
“बिन्नो, अभी सिर्फ आधा गया है, जो इत्ता चीख रही हो, आधा मूसल बाकी है…”
और मैंने शर्माते लजाते, कुछ डरते झिझकते देखा, तो सच में करीब तीन चार इंच बांस बाकी था।
मेरी तो जान निकल गई, और असली जान तो तब निकली,
जब भैया ने एक हाथ से अपने लण्ड को पकड़ के मेरी चूत में गोल-गोल घुमाना शुरू कर दिया।
जिस तरह वो मेरी सहेली की अंदर की दीवारों को रगड़ रहा था, दरेर रहा था, घिसट रहा था,
बस दो मिनट में वही हुआ जो होना था।
पहले मैं दर्द से मर रही थी और अब मजे से।
भैय्या ने उसके साथ दूसरे हाथ से मेरी क्लिट को छेड़ना मसलना शुरू कर दिया।
भौजी भी उनके साथ, जोर-जोर से मेरे निप्स को पिंच कर रही थी।
मन तो यही कह रहा था की भैया अब बाकी बचा मूसल भी मेरी चूत में डाल दें लेकिन कैसे कहती?
अपने ऊपर झुकी भौजी की आँखों से लेकिन मेरी प्यासी आँखों ने अपनी फरियाद कह दी, और हल भी भौजी ने बता दिया, मेरे कानों में-
“आरी बिन्नो, अरे मजा लेना है तो लाज शर्म छोड़ के खुल के बोल न अपने भैय्या से की पूरा लण्ड डाल के चोदें, जब तक तू नहीं बोलेगी न उनसे, न वो पूरा चोदेंगे, न तुझे झड़ने देंगे, बस ऐसे तड़पाते रहेंगे…”
मैंने उनकी ओर देखा, उनकी आँखें मेरी आँखों में झाँक रही थी, मुश्कुरा रही थीं जैसे मेरे बोलने का इन्तजार कर रही हो और मैंने बोल दिया-
“भैय्या, करो न… प्लीज, करो न… भैय्या, करो न…”
Savan shuru ho gya , ab yeh rukne wala nhi hमस्ती की बारिश
“तो चुदवाओ ना… मेरी जान शर्मा क्यों कर रही थी, लो अभी चोदता हूँ अपनी रानी को…”
और उसने वहीं झूले पे मुझे लिटाके मेरे टीन जोबन को कसके रगड़ने, मसलने, चूमने लगा।
थोड़ी ही देर में मैं मस्ती में सिसकियां ले रही थी।
मेरा एक जोबन उसके हाथों से कसकर रगड़ा जा रहा था और दूसरे को वह पकड़े हुए था
और मेरे उत्तेजित निपल को कस-कस के चूस रहा था।
कुछ ही देर में उसने जांघों पर से मेरे साड़ी सरका दी और उसके हाथ मेरी गोरी-गोरी जांघों को सहलाने लगे।
मेरी पूरी देह में करेंट दौड़ गया।
देखते-देखते उसने मेरी पूरी साड़ी हटा दी थी और चन्दा की तरह मैं भी टांगें फैलाकर, घुटने से मोड़कर लेट गयी थी।
उसकी उंगलियां, मेरे प्यासे भगोष्ठों को छेड़ रहीं थी, सहला रही थी।
अपने आप मेरी जांघें, और फैल रही थीं।
अचानक उसने अपनी एक उंगली मेरी कुंवारी अनचुदी चूत में डाल दी और मैं मस्ती से पागल हो गयी।
उसकी उंगली मेरी रसीली चूत से अंदर-बाहर हो रही थी और मेरी चूत रस से गीली हो रही थी।
बारिश तो लगभग बंद हो गई थी पर मैं अब मदन रस में भीग रही थी। उसका अंगूठा अब मेरी क्लिट को रगड़, छेड़ रहा था।
और मैं जवानी के नशे में पागल हो रही थी-
“बस… बस करो ना… अब और कितना… उह्ह्ह… उह्ह्ह… ओह्ह्ह… अजय… बहुत… और मत तड़पाओ… डाल दो ना…”
अजय ने मुझे झूले पे इस तरह लिटा दिया कि मेरे चूतड़ एकदम किनारे पे थे।
बादल छंट गये थे और चांदनी में अजय का… मोटा… गोरा… मस्क्युलर… लण्ड,
उसने उसे मेरी गुलाबी कुंवारी… कोरी चूत पर रगड़ना शुरू कर दिया, मेरी दोनों लम्बी गोरी टांगें उसके चौड़े कंधों पर थीं।
जब उसके लण्ड ने मेरी क्लिट को सहलाया तो मस्ती से मेरी आँखें बंद हो गयीं।
उसने अपने एक हाथ से मेरे दोनों भगोष्ठों को फैलाया और अपना सुपाड़ा मेरी चूत के मुहाने पे लगा के रगड़ने लगा।
दोनों चूचीयों को पकड़ के उसने पूरी ताकत से धक्का लगाया तो उसका सुपाड़ा मेरी चूत के अंदर था।
ओह… ओह… मेरी जान निकल रही थी, लगा रहा था मेरी चूत फट गयी है-
“उह… उह… अजय प्लीज… जरा सा रुक जाओ… ओह…”
मेरी बुरी हालत थी।
अजय अब एक बार फिर मेरे होंठों को चूचुक को, कस-कस के चूम चूस रहा था।
थोड़ी देर में दर्द कुछ कम हो गया और अब मैं अपनी चूत की अदंरूनी दीवाल पर सुपाड़े की रगड़न,
उसका स्पर्श महसूस कर रही थी और पहली बार एक नये तरह का मज़ा महसूस कर रही थी।
अजय की एक उंगली अब मेरी क्लिट को रगड़ रही थी और मैं भी दर्द को भूलकर धीरे-धीरे चूतड़ फिर से उचका रही थी।
एक बार फिर से बादल घने हो गये थे और पूरा अंधेरा छा गया था।
अजय ने अपने दोनों मजबूत हाथों से मेरी पतली कमर को कस के पकड़ा और लण्ड को थोड़ा सा बाहर निकाला, और पूरी ताकत से अंदर पेल दिया। बहुत जोर से बादल गरजा और बिजली कड़की… और मेरी सील टूट गयी।
मेरी चीख किसी ने नहीं सुनी, अजय ने भी नहीं, वह उसी जोश में धक्के मारता रहा।
मैं अपने चूतड़ कस के पटक रही थी पर अब लण्ड अच्छी तरह से मेरी चूत में घुस चुका था और उसके निकलने का कोई सवाल नहीं था। दस बाहर धक्के पूरी ताकत से मारने के बाद ही वह रुका।
जब उसे मेरे दर्द का एहसास हुआ और उसने धक्के मारने बंद किये।
प्यासी धरती की तरह मैं सोखती रही और जब अजय ने अपना लण्ड बाहर निकाल लिया तो भी मैं वैसे ही पड़ी रही।
अजय ने मुझे उठाकर अपनी गोद में बैठा लिया। मैंने झुक कर अपनी जांघों के बीच देखा, मेरी चूत अजय के वीर्य से लथपथ थी
और अभी भी मेरी चूत से वीर्य की सफेद धार, मेरी गोरी जांघ पर निकल रही थी। पर तभी मैंने देखा-
“ओह… ये खून खून कहां से… मेरा खून…
अजय ने मेरा गाल चूमते हुए, मेरा ब्लाउज उठाया और उसीसे मेरी जांघ के बीच लगा वीर्य और खून पोंछते हुए बोला-
“अरे रानी पहली बार चुदोगी तो बुर तो फटेगी ही… और बुर फटेगी तो दर्द भी होगा और खून भी निकलेगा, लेकिन अब आगे से सिर्फ मजा मिलेगा…”
अजय का लण्ड अभी भी थोड़ा खड़ा था। उसे पकड़कर अपनी मुट्ठी में लेते हुए, मैं बोली-
“सब इसी की करतूत है… मजे के लिये मेरी कुवांरी चूत फाड़ दी… और खून निकाला सो अलग…
और फिर इतना मोटा लंबा पहली बार में ही पूरा अंदर डालना जरूरी था क्या…”
अजय मेरा गाल काटता बोला-
“अरे रानी मजा भी तो इसी ने दिया है… और आगे के लिये मजे का रास्ता भी साफ किया है…
लेकिन आपकी ये बात गलत है की जब तुम्हें दर्द ज्यादा होने लगा तो मैंने सिर्फ आधे लण्ड से चोदा…” ''
बनावटी गुस्से में उसके लण्ड को कस के आगे पीछे करती, मैं बोली-
“आधे से क्यों… अजय ये तुम्हारी बेईमानी है… इसने मुझे इत्ता मजा दिया, जिंदगी में पहली बार और तुमने…
और दर्द… क्या… आगे से मैं चाहे जितना चिल्लाऊँ, चीखूं, चूतड़ पटकूं, चाहे दर्द से बेहोश हो जाऊँ,
पर बिना पूरा डाले तुम मुझे… छोड़ना मत, मुझे ये पूरा चाहिये…”
अजय भी अब मेरी चूत में कस-कस के ऊँगली कर रहा था-
“ठीक है रानी अभी लो मेरी जान अभी तुम्हें पूरे लण्ड का मजा देता हूं, चाहे तुम जित्ता चूतड़ पटको…”
मैंने मुँह बनाया-
“मेरा मतलब यह नहीं था और अभी तो… तुम कर चुके हो… अगली बार… अभी-अभी तो किया है…”
लेकिन अजय ने अबकी मेरे सारे कपड़े उतार दिये और मुझे झूले पे इस तरह लिटाया की सारे कपड़े मेरे चूतड़ों के नीचे रख दिये
और अब मेरे चूतड़ अच्छी तरह उठे हुए थे। वह भी अब झूले पर ही मेरी फैली हुई टांगों के बीच आ गया
और अपने मोटे मूसल जैसे लण्ड को दिखाते हुए बोला-
“अभी का क्या मतलब… अरे ये फिर से तैयार है अभी तुम्हारी इस चूत को कैसा मजा देता है, असली मजा तो अबकी ही आयेगा…” वह अपना सुपाड़ा मेरी चूत के मुँह पर रगड़ रहा था और उसके हाथ मेरी चूचियां मसल रहे थे। वह अपना मोटा, पहाड़ी आलू ऐसा मोटा, कड़ा सुपाड़ा मेरी क्लिट पर रगड़ता रहा।
और जब मैं नशे से पागल होकर चिल्लाने लगी-
“अजय प्लीज… डाल दो ना… नहीं रहा जा रहा… ओह… ओह… करो ना… क्यों तड़पाते हो…” तो अजय ने एक ही धक्के में पूरा सुपाड़ा मेरी चूत में पेल दिया।
उह्ह्ह्ह, मेरे पूरे शरीर में दर्द की एक लहर दौड़ गयी, पर अबकी वो रुकने वाला नहीं था। मेरी पतली कमर पकड़ के उसने दूसरा धक्का दिया। मेरी चूत को फाड़ता, उसकी भीतरी दीवाल को रगड़ता, आधा लण्ड मेरी कसी किशोर चूत में घुस गया। दर्द तो बहुत हो रहा था पर मजा भी बहुत आ रहा था।
ह कभी मुझे चूमता, मेरी रसीली चूचियों को चूसता, कभी उन्हें कस के दबा देता, कभी मेरी क्लिट सहला देता, पर उसके धक्के लगातार जारी थे।
मैंने भी भाभी के सिखाने के मुताबिक अपनी टांगों को पूरी तरह फैला रखा था।
उसके धक्कों के साथ मेरी पायल में लगे घुंघरू बज रहे थे और साथ में सुर मिलाती सावन की झरती बूंदे, मेरे और उसके देह पर और इस सबके बीच मेरी सिसकियां, उसके मजबूत धक्कों की आवाज… बस मन कर रहा था कि वह चोदता ही रहे… चोदता ही रहे।
कुछ देर में ही उसका पूरा लण्ड मेरी रसीली चूत में समा गया था और अब उसके लण्ड का बेस मेरी चूत से क्लिट से रगड़ खा रहा था।
नीचे कपड़े रखकर जो उसने मेरे चूतड़ उभार रखे थे। एकदम नया मजा मिल रहा था।
थोड़ी देर में जैसे बरसात में, प्यासी धरती के ऊपर बादल छा जाते हैं वह मेरे ऊपर छा गया। अब उसका पूरा शरीर मेरी देह को दबाये हुए था और मैंने भी अपनी टांगें उसकी पीठ पर कर कस के जकड़ लिया था। कुछ उसके धक्कों का असर, कुछ सावन की धीरे-धीरे बहती मस्त हवा… झूला हल्के-हल्के चल रहा था।
मुझे दबाये हुए ही उसने अब धक्के लगाने शुरू कर दिये और मैं भी नीचे से चूतड़ उठा-उठाकर उसका जवाब दे रही थी। मेरे जोबन उसके चौड़े सीने के नीचे दबे हुए थे। वह पोज बदल-बदल कर, कभी मेरे कंधों को पकड़कर, कभी चूचियों को, तो कभी चूतड़ों को पकड़कर लगातार धक्के लगा रहा था, चोद रहा था, न सावन की झड़ी रुक रही थी, न मेरे साजन की चुदाई… और यह चलता रहा।
मैं एक बार… दो बार… पता नहीं कितनी बार झड़ी… मैं एकदम लथपथ हो गयी थी।
तब बहुत देर बाद अजय झड़ा और बहुत देर तक मैं अपनी चूत की गहराईयों में उसके वीर्य को महसूस कर रही थी।
उसका वीर्य मेरी चूत से निकलकर मेरी जांघों पर भी गिरता रहा। कुछ देर बाद अजय ने मुझे सहारा देकर झूले पर से उठाया। मैंने किसी तरह से साड़ी पहनी, पहनी क्या बस देह पर लपेट ली।
ekdm mujhe bhi apni likhi chhoti erotic stories men ye bahoot pasnd hai gaaon ka maahaul saavan ka mausam aur bhabhi ka gaaon jahan koyi rok tok nahiSavan shuru ho gya , ab yeh rukne wala nhi h