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Erotica सोलवां सावन

komaalrani

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धरती ने धानी चूनर जैसे ओढ़ ली हो, चारों ओर हरियाली के इतने शेड्स, धुली-धुली भोर की बारिश के बाद, टटकी अमराई, जैसे रात भर पिया के संग जगने जगाने के बाद, दुल्हन नहा धो के एकदम ताजी-ताजी, बालों से पानी की बूंदें टपकती हुई, बस उसी तरह अमराई के पत्तों से अभी भी बूंदें रह-रहकर चू रही थीं।


पानी तेज बरसा था, जगह-जगह कीचड़ हो गया था। दूर-दूर तक हरे गलीचे की तरह दिखते धान के खेतों में अभी भी बित्ते भर से ज्यादा ही पानी लगा था। मेडों पर कतार से ध्यान में लीन साधुओं की तरह, सारसों की पांते, और आसमान जो कुछ देर तक एकदम साफ था, अब फिर गाँव के आवारा लौंडों की तरह धूम मचाते कुछ बादल के टुकड़े, जैसे धानी चुनरी पहने जमीन को ललचाई निगाहों से देख रहे हो। हल्की-हल्की पुरवाई भी चल रही थीं, नमी से भरी।




आपका कोई तोड़ नहीं।


Thanks so much
 

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
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Lage ki kirdaar apne dil mein jo aarman liye khushiya dhund rahe the wo khushiya unhe mil gayi ho...lage ki khushi aur santushti se yehi to hai kirdaaro Jahan... Anjani rahon mein jo swarg dhoondhante phirte the wo unhe mil hi gaya... ...lage ki dur jinko samjhe the kirdaar.. wo to paas hi the. Jaise yahin ho unka aashiyaana..
Sach mein aapki ye jhilmilati manoram lekhni ... Kuch bholi si ada shabdon mein...
jaise dheere dheere chal ke lehrati ho ye mann lubha dene wali hawa...hum readers ko kirdaaro aur kahani ke jariye le jaaye wahan...Jahan ho kirdaaro gaon apna... Kirdaaro kuch Yaadon ka kuch basera ho ... Jahan varsa ritu mein kirdaaro milan ka din baar baar aaya ho... ...
Let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skills komaalrani ma'am :applause: :applause:
 

komaalrani

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Lage ki kirdaar apne dil mein jo aarman liye khushiya dhund rahe the wo khushiya unhe mil gayi ho...lage ki khushi aur santushti se yehi to hai kirdaaro Jahan... Anjani rahon mein jo swarg dhoondhante phirte the wo unhe mil hi gaya... ...lage ki dur jinko samjhe the kirdaar.. wo to paas hi the. Jaise yahin ho unka aashiyaana..
Sach mein aapki ye jhilmilati manoram lekhni ... Kuch bholi si ada shabdon mein...
jaise dheere dheere chal ke lehrati ho ye mann lubha dene wali hawa...hum readers ko kirdaaro aur kahani ke jariye le jaaye wahan...Jahan ho kirdaaro gaon apna... Kirdaaro kuch Yaadon ka kuch basera ho ... Jahan varsa ritu mein kirdaaro milan ka din baar baar aaya ho... ...
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ab main kya kahun, Your every comment makes me speechless, breathless

your gracing the thread was enough and comment like these, .... I just feel humbled.

No words of thanks are sufficient, little i can do it to post one more update
 

komaalrani

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इकतालीसवीं फुहार- गुलबिया








दो फायदे थे उसमें, जिस मेड़ पे हम चल रहे थे वो एकदम सूखी थी और हम दोनों को कोई देखने टोकने वाला नहीं था। और अपने टोले के, भरौटी के लौंडों की उसने खुल के तारीफ करनी शुरू कर दी, केतना मोटा केतना लम्बा, और कैसे गाली दे दे के, खुले में ही, वो भी अपने अंदाज में।



एक पल के लिए तो मैं घबड़ाई, की कहीं उसका इस गन्ने के खेत में ही तो मेरी फड़वाने का प्लान नहीं है? लेकिन तब तक मुझे कामिनी भौजी की बाद याद आ गई, आगे-पीछे क्रीम से सील करते हुए उन्होंने मुझसे तो बोला ही था गुलबिया को भी सहेजा था की कल सुबह तक इसकी चिरैया के मुँह में चारा नहीं जाना चाहिए, न आगे न पीछे, उंगली की एक पोर तक नहीं। और ये भी बोला था की वो ये बात बसंती और चम्पा भाभी को बता दे ठीक से।



कामिनी भाभी की बात टालने की हिम्मत गुलबिया में भी नहीं थी।

सच में गुलबिया गाँव की सब भौजाइयों में सबसे मस्त और सबसे ज्यादा खेली खायी भी, उमर में तो हमारी भाभी की समौरिया ही होगी, उनके ऐसे ही खूब गोरी चिकनी, लेकिन जोबन की एकदम मदमाती, और खूब छेड़खानी करने वाली,







एकदम खुल्ल्म खुल्ला, कल झूले पर उसने मेरी कितनी,... लेकिन मैं दंग रह गयी जब उसने मुझसे भी छोटी, अरे वही सुनील की बहिनिया, नीरू,... कैसे चढ़कर उसके ऊपर, ...दोनों हाथ पर उसके अपनी टाँगे रख के, ...वो छटपटाती रही चूतड़ पटकती रही पर ये गुलबिया और बंसन्ती भौजी ने , अपनी उस छोटी ननद को ,... कैसे वो सुनहली शराब,... और आज जिस तरह कामिनी भौजी उसे उकसा रही थीं ,मेरा नाम ले ले कर , पिछवाड़े का भौजाइयों का वो पेसल स्वाद,...



दोनों ओर गन्ने के खेत आदमियों से भी डेढ़ हाथ ऊँचे, ...







तबतक मेंड़ थोड़ी चौड़ी हो गयी थी और लहकती हुयी गुलबिया भौजी मेरे साथ और मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर हँसते हुए बोली,



" क्यों मज़ा आया मरद का, रात भर ?"



मैं थोड़ी झिझकी, लेकिन इत्ते दिन का गाँव का मज़ा लेने के बाद, गन्ने के घने खेतों के बीच में वो भी गुलबिया ऐसी भौजी के साथ,... खिलखिलाते हुए मैने बिना हिचक कबूल कर लिया,



" हाँ भौजी'




और गुलबिया भौजी चालू होगयीं मर्दों का गुन बखानने, और बात उनकी सोलहों आने सही थी, कल रात तो मैं देख ही चुकी थी कामिनी भाभी के मर्द का बल, मेरा मतलब भैया का , ...

" देख, मरदन को एक तो, कौनों जल्दी नहीं रहती, कितनी लौंडिया औरत तो उ अपने नीचे,... और ओकरे बाद उनको कोई बात साबित नहीं करनी होती की वो लौंडिया चोद सकते हैं , लेकिन सबसे बड़ी बात जानती हो क्या होती है,


" क्या'

मैंने उत्सुकता वश पूछा। जब गुलबिया की ज्ञान गंगा बह रही हो तो उसमें डुबकी लगाने का मौका चूकना नहीं चाहिए।



" मरद को औरत के देह की एक एक इंच का पता रहता है, कहाँ कहाँ छूना है , कब दबाना मसलना रगड़ना है, कैसे लौंडिया को खूब मजा देना है , उन्हें मालूम है चुदाई का मतलब सिर्फ बुर में लंड पेल कर आगे पीछे करना नहीं है , बल्कि अपने माल के हर अंग का मज़ा लेना है, उसे मजा देना है। और एक तरीके से नहीं आसन बदल बदल कर के, लेकिन सबसे बड़ी बात ये है की लौंडिया के चीखने चिल्लाने की रोई रोहट का मरद के ऊपर कोई असर नहीं होता।जितना चिल्लायेगी उतनै और रगड़ेगा, हचक ह्च्चक के पेलेगा, क्योंकि वो जानता है जब ये थेथर हो जाएगी रो रो के तो चुदवायेगी आराम से,... "



गुलबिया एक मिनट के लिए रुकी और मेरे मन में कल रात की एक एक बात कौंध रही थी सच में गुलबिया की एक एक बात सच थी, कल रात में और आज सबेरे भी मैं जितना चीख चिल्ला रही थी भैया उतने ही जोर से पूरी ताकत लगा के चोद रहे थे, मेरी जान निकल रही थी मारे दर्द के लेकिन वो और जोर से पेल रहे थे , बाद में इत्ता मजा आया , इत्ता मजा आया,... इस गाँव में जिस दिन से मैं आयी हूँ , उसकी अगली रात से शायद ही कोई दिन नागा गया होगा बिन चुदे , लेकिन कल रात की तो बात ही अलग थी,...



" जबरदस्ती में ही असली मज़ा है " गुलबिया ने गुरुमंत्र दिया और मैं हंसने लगी, बात उसकी एकदम सही थी।




लेकिन ननद रानी जानत हो , मरदन में भी कौन मर्द सबसे मस्त होते हैं " ?

गुलबिया ने सवाल दाग दिया और मैंने जवाब भी दे दिया, तुरंत



" खूब मोट "





गुलबिया जोर से हंसी और मुझे अपने अँकवार में भर लिया,



" सच्चों, हमार असली ननद हो तुम, सच में जितना मोटा होता है न ,... " फिर उसने ऊँगली और अंगूठे से जितना मोटा होने का इशारा किया तो मैं सिहर गयी , ये तो कामिनी भाभी के मरद, मेरा भैया के मूसल से भी ज्यादा मोटा,



" अरे मोटे से मोटे गन्ने से भी मोटा, ... " हँसते हुए वो बोली और दो गुण और जोड़े,



" लम्बा और कड़ा, जितना कड़ा होगा न उतने रगड़ रगड़ के फाड़ता जाएगा, और तू उतनी जोर से चिल्लाओगी, ... " एकदम असली भौजी की तरह, जिसे जितना ननद चिल्लाये उतना ज्यादा मज़ा आता है,

फिर गन्ने के खेत की ओर इशारा कर के बोली, जब चिल्लात, चीख़त चूतड़ से रगड़ रगड़ के माटी क ढेला एकदम चूरन हो जाए तब समझो असल चुदाई हुयी ननद रानी, खुले खेत में अमराई में और घबड़ा मत बस कल से , एक साथ ऐसे चार पांच मरद रोज हमारी ननद पर चढ़ेंगे, लेकिन एक बात, उ प्यार मोहबब्त चुम्मा चाटी नहीं, सीधे ह्च्चक के पटक के ठोंकेंगे, ... तब आएगा हमारी ननद को असल गाँव क चुदाई क मजा, अहिरौटी, चमरौटी, पठान टोला,... कउनो गाँव जवार बचेगा नहीं। "
 
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komaalrani

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यारों की बहार












लेकिन मैं सोच रही थी अजय सुनील दिनेश अपने यारों के बारे में और गुलबिया को एकदम से मन की बात पता चल जाती थी तुरंत मेरे गाल पे चिकोटी काट के बोली,



" अरे ई हम नहीं कह रहे की सुनिलवा से जिन चोदवावा, अरे ओकर मजा अलग है और मर्दन क अलग, अरे कोई हलवाई क दूकान पर जाता है तो का खाली गुलाब जामुन गपकता है , हर तरह का स्वाद , बस कबौं लौंडन से कबूं मरदन से एक जून एक तरह का तो दूसरे जून दूसरे तरह क , बाकी लौंडन में भी भरौटी क लौंडन क कउनो जवाब नहीं। "






अभी तो मुझे हफ्ता दस दिन गाँव में रहना था और मन तो मेरा भी कर रहा था, भरौटी के लौंडों का बसंती ने भी बहुत गुन गाया था उनका। और ये सोचकर मेरी हिम्मत और बढ़ गई की कम से कम अभी तो कोई खतरा नहीं है और मैं भी खुल के गुलबिया की बातों का जवाब देने लगी।



गुलबिया ने चिढ़ाया - “एक बार भरोटी के लौंडों का लौंड़ा घोंटगी न तो चूं बोल जायेगी तेरी चुनमुनिया…”



तो मैं ने भी हंस के उसी तरह से जवाब दिया - “अरे भौजी, बाकी गाँव के लौंडों का देख लिया है उनका भी देख लूंगी, निचोड़ के रख दूंगी साल्लों का…”




“अरे ऊ सब बाकी लौंडों की तरह नहीं है, ठोंकेंगे पहले बात बाद में करेंगे। एक साथ चार-चार चढ़वाऊँगी, और ऊपर से ऊ सब गन्ना, अरहर क खेत नहीं देखते, जहां पाएंगे उंहीं निहुरा के चोद देंगे…” गुलबिया बोली।



और उसकी बातों से एक बार फिर मेरी चुनमुनिया चुनचुनाने लगी थी- “चार-चार…” मेरे मुँह से हल्के से निकल गया।




“और क्या? उससे कम में हमार छिनार ननदिया को क्या मजा आयेगा। तीनों छेदो का मजा एक साथ। और एक हाथ में मुठियाते रहना। जैसे पहला झड़ेगा, वो पेल देगा…” गुलबिया ने समझाया।



"अच्छा ये बताओ कल अपने भैया से ह्च्चक के गांड मरवाने में मजा आया की नहीं " गुलबिया ने मेरी आँख में आँख डाल के पूछा।



मैं थोड़ा शर्मायी, लजायी, झिझकी फिर कबूला, " हाँ भौजी बहुत ".



" और ओकरे पहले अपने भाभी के भाइयों से बुर चुदवाने में" गुलबिया इतनी आसानी से छोड़ने वाली नहीं थी।



" उसमें भी " अब बेशरम हो कर मैं बोली,



"तो सोचो, एक साथ दोनों का मज़ा, एक लंड बुर में और एक गाँड़ में डबल मजा और अब तोहसे कोई पूछेगा थोड़ी , अब तो तोहरे गुलबिया भौजी के ऊपर है , कब भरौटी वाले चढ़ते हैं तोहरे ऊपर,... हँसते हुए वो बोलीं।



"और एक बात और जानती हो लौंडन और मरदन से बढ़के मज़ा देती हैं भौजाई सब, अरे लड़कियन क एक एक अंग के बारे में, कहाँ केतना मज़ा मिलता है सब उनको मालूम रहता है, और फिर जब अपने पर आय जाएँ न , ...और तोहरे एस छिनार बारी उमरिया वाली ननद उन्हें कहा मिली, खूब खिलायेगीं , पिलायेगीं ,.. लेकिन एक कोई और है रिश्ते में भाभी नहीं है लेकिन भाभियों से भी ज्यादा उनकी बुर तोहैं देख कर पनियाती रहती है, नहीं नहीं मैं ना बताउंगी जल्दी तोहैं खुद मालूम पड़ जाएगा। "

हँसते हुए गुलबिया बोली।





गन्ने का घना खेत जहाँ हाथ भर आगे का भी न दिख रहा हो, उसी के बीच से गुलबिया मेरा हाथ पकड़े-पकड़े, और एक से एक मस्त बातें, कभी अपने जवार के लौंडों के बारे में तो कभी अपने मर्द के बारे में, और कभी अपने मेरे बारे में, क्या-क्या करेगी वो मेरे साथ, ‘खिलाने पिलाने’के बारे में। और अचानक हम लोग गन्ने के खेत से बाहर आ गये।



एक खूब ऊँची मेड़, और अब गन्ने के खेत साइड में थे और दूसरी ओर एकदम खुला मैदान, थोड़ी दूर पर एक छोटा सा पोखर,


जिसके किनारे कुछ औरतें कपड़े धो रही थीं, थोड़ी दूर पर दस पन्दरह घर सारे कच्चे, कुछ पर झोपड़ी टाइप छत थी और कुछ पर खपड़ैल की। एक कच्चा कुंआ किनारे एक घर के सामने, नीम महुआ के थोड़े से पेड़। हम दोनों मेड़ पे चल रहे थे।






और तभी वो दिखा, एकदम मस्त माल, 10 में 10।
 
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komaalrani

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लौंडे भरौटी के



(आप लोग क्या सोचते हैं कि सिर्फ हम लड़कियां ही माल हो सकती हैं? कतई नहीं। लड़कों को देखकर हम लड़कियां भी आपस में बोलती यही हैं, मस्त माल)



लौंडा भरोटी का था इसमें कोई शक सुबहा की गुंजाइश थी ही नहीं। कद काठी में अब तक गाँव के जिन लड़कों से मिली थी 21 ही रहा होगा, लेकिन सबसे बढ़कर ताकत गजब की लग रही थी उसमें। गुलबिया ने गन्ने के खेत में अभी जो कुछ बताया था, अब साफ लग रहा था की उसमें कुछ बढ़ा-चढ़ा कर एकदम नहीं था।



कामिनी भाभी ने कल रात जो गुर सिखाये थे उसका हल्का सा इश्तेमाल मैंने कर दिया। नजरों के तीर और जोबन का जादू, बस हल्के से तिरछी नजर से उसे देखा और जोबन के उभार की (टाप वैसे भी इतना टाइट था की साइड से पूरा उभार, उसका कड़ापन सब कुछ झलकता था) हल्की सी झलक दिखला दी।



बस वही तो गजब हो गया। वैसे भी मेरे जोबन का जादू गाँव के चाहे लौंडे हाँ या मर्द सबके सर पे चढ़ के बोलता था, लेकिन सिर्फ झलक दिखाने का ये असर… उसका खूंटा सीधे 90° डिग्री का हो गया। क्या लम्बा, क्या मोटा, देखकर मेरी चुनमुनिया चुनचुनाने लगी।



मैं सोच रही थी की गुलबिया ने नहीं देखा लेकिन तब तक एक लड़का, और वो पहले वाले से भी ज्यादा (अगर बसंती की बोली में तो कहूं तो जबरदस्त चोदू) लग रहा था। और उसने अपनी मर्जी साफ-साफ जाहिर कर दी, कपड़े के ऊपर से ही जोर-जोर से वो अपने खूंटे को मसल रहा था। मुझे तो लग रहा था की कहीं ये दोनों, यहीं निहुरा के…



गनीमत थी की गुलबिया ने मुड़ के देख लिया और उसको देखकर एक ने पूछ लिया- “ए भौजी, इतना मस्त सहरी माल ले के, तनी हम लोगन की भी…”



कुछ इशारे से, कुछ बोल के गुलबिया ने बोलके समझा दिया की मिलेगी लेकिन आज नहीं।



और मेरे दिल की धड़कनें कुछ नारमल हुईं, चलो आज का खतरा टला। लेकिन तब तक एक और… मैंने भी जब ये समझ लिया की आज मेरी बच गई। कामिनी भाभी ने जो अगवाड़ा पिछवाड़ा सील किया है और गुलबिया को चेताया है, तो अभी तो कुछ…



और मैंने खुल के अपने तीर चलाने शुरू किये, कभी झुक के जो लौंडे आगे थे उन्होंने सिर्फ उभारों की गहराई नहीं, बल्की कड़ी-कड़ी अपने कबूतरों की चोंचें भी दिखा देती। और पीछे वालों को पिछवाड़े की झलक मिल रही थी। कुछ देर में पांच छ लड़के, और सबके खूंटे खड़े, सब खुल के उसे मसल रहे थे, मुठिया रहे थे।



“अरे जहाँ गुड़ होगा चींटे आएंगे ही…” कह के गुलबिया ने जोर से मेरे गुलाबी गालों पे चिकोटी काटी।



एक बार उन लड़कों की ओर देखा, मुश्कुराई, और बोली- “सामने घर है मेरा, बस अभी गई अभी आई। तोहरे भैया के लिए खरमिटाव लाने जा रही हूँ…”



वो घर जिसपर खपड़ैल वाली छत थी और सामने एक कच्चा कुंआ था, अब हम लोगों की पगड़ंडी के ठीक बगल में आ गया था, मुश्किल से 200 कदम रहा होगा, और गुलबिया उसी घर की ओर मुड़ गई।



और वो लौंडे अब मेरे एकदम पास आ गए। साथ में एकदम खुल के, एक बोला- “अरे गाण्ड तो खूब मारने लायक है…”



“अरे चूची तो देख साली की, निहुरा के दोनों चूची पकड़ के हचक-हचक के मारेंगे इसकी…” दूसरे ने कमेंट मारा।



एक के बाद एक कमेंट, सबके औजार तने। कुछ देर के बाद- “बोल चुदवायेगी?” जो उन सबका लीडर लग रहा था उसने खुल के पूछ लिया।



लेकिन जवाब गुलबिया ने दिया जो बस लौटी ही थी- “अरे चुदवायेगी भी, गाण्ड भी मरवायेगी और लौड़ा भी चूसेगी तुम सबका, बस एक दो दिन में। ये केहू को मना नहीं करती, काहें हमारी प्यारी ननद रानी…”



जवाब मैंने गुलबिया को नहीं उन भरोटी के लौंडों को दिया, ज्जा ज्जा के इशारे से, थोड़ा पलकों को उठा गिरा के, जुबना की झलक दिखा के, और तेजी से गुलबिया के साथ गन्ने के खेत के बगल की पगड़ंडी पर मुड़ पड़ी।



वो सब पीछे रह गए, और कुछ देर चलने के बाद मुझे कुछ याद आया- “यही तो वो पगड़ंडी है, जिसके पास चन्दा ने मुझे छोड़ा था और मुड़ के भरोटी की ओर गई थी…” पगड़ंडी खत्म होते ही बस मुड़ते ही घर दिखाई दे रहा था।



गुलबिया को भी जल्दी थी, मुझे भी। गुलबिया को अपने मर्द को खरमिटाव देने की जल्दी थी और मुझे घर पहुँचने की। दुपहरी ढल रही थी।



बाहर से ही उसने सांकल खटकाई और बसंती निकली, उसने जल्दी जल्दी बंसती को कुछ समझाया। मैंने सुनने को कोशिश नहीं की क्योंकी मुझे मालूम था की गुलबिया क्या बोल रही होगी। वही जो कामिनी भाभी ने बार-बार चेताया था, कल सुबह तक अगवाड़े पिछवाड़े नो एंट्री।



बसंती ने दरवाजा अंदर से बंद किया और आंगन में ही मुझे जोर से अंकवार में भर के भींच लिया, जैसे मैं न जाने कब की बिछुड़ी हूँ।
 
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komaalrani

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Guri006

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Bhai readers se request hai like and comment jarur kre jisse writer ka hausla badta hai .
 

komaalrani

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aapki baat ekdam sahi hai,
 
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