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धरती ने धानी चूनर जैसे ओढ़ ली हो, चारों ओर हरियाली के इतने शेड्स, धुली-धुली भोर की बारिश के बाद, टटकी अमराई, जैसे रात भर पिया के संग जगने जगाने के बाद, दुल्हन नहा धो के एकदम ताजी-ताजी, बालों से पानी की बूंदें टपकती हुई, बस उसी तरह अमराई के पत्तों से अभी भी बूंदें रह-रहकर चू रही थीं।
पानी तेज बरसा था, जगह-जगह कीचड़ हो गया था। दूर-दूर तक हरे गलीचे की तरह दिखते धान के खेतों में अभी भी बित्ते भर से ज्यादा ही पानी लगा था। मेडों पर कतार से ध्यान में लीन साधुओं की तरह, सारसों की पांते, और आसमान जो कुछ देर तक एकदम साफ था, अब फिर गाँव के आवारा लौंडों की तरह धूम मचाते कुछ बादल के टुकड़े, जैसे धानी चुनरी पहने जमीन को ललचाई निगाहों से देख रहे हो। हल्की-हल्की पुरवाई भी चल रही थीं, नमी से भरी।
आपका कोई तोड़ नहीं।
Thanks so much