- 22,277
- 57,977
- 259
बयालिसवीं फुहार-
घर वापसी - बसंती
![Teej-100389947-286953392487672-2683824191668486144-n.jpg](https://i.ibb.co/fXPYgNp/Teej-100389947-286953392487672-2683824191668486144-n.jpg)
गुलबिया को भी जल्दी थी, मुझे भी। गुलबिया को अपने मर्द को खरमिटाव देने की जल्दी थी और मुझे घर पहुँचने की। दुपहरी ढल रही थी।
बाहर से ही उसने सांकल खटकाई और बसंती निकली, उसने जल्दी जल्दी बंसती को कुछ समझाया। मैंने सुनने को कोशिश नहीं की क्योंकी मुझे मालूम था की गुलबिया क्या बोल रही होगी। वही जो कामिनी भाभी ने बार-बार चेताया था, कल सुबह तक अगवाड़े पिछवाड़े नो एंट्री।
बसंती ने दरवाजा अंदर से बंद किया और आंगन में ही मुझे जोर से अंकवार में भर के भींच लिया, जैसे मैं न जाने कब की बिछुड़ी हूँ।
और आज जिस तरह बसंती देर तक मुझे अंकवार में लेकर दबा रही थी उसमें सिर्फ प्यार और दुलार था। और मैं भी उसे मिस कर रही थी। कल शाम को ही तो मैं कामिनी भाभी के घर गई थी, 24 घंटे भी नहीं हुए थे, लेकिन अब भाभी का ये घर अपना घर ही लगता था, उनकी माँ, चम्पा भाभी, बसंती, मजाक, मस्ती छेड़छाड़ अलग बात थी लेकिन ये सारे लोग मेरा ख्याल भी कितना रखते थे।
चुप्पी मैंने ही तोड़ी, पूछा- चम्पा भाभी कहाँ हैं?
![Girls-b7343884b817ffc0a11cfa23ba050f02.jpg](https://i.ibb.co/1X00vgQ/Girls-b7343884b817ffc0a11cfa23ba050f02.jpg)
दूसरा दिन होता तो बसंती उन्हें दस गालियां सुनाती, अपने देवरों से चुदवा रही हैं, कहीं गाण्ड मरवा रही होंगी, ऐसे ही जवाब सुनने की मुझे उम्मीद थी। लेकिन वो सीधे साधे ढंग से बोली-
“अंदर कुछ काम रही हैं। बस आ रही होंगी…”
दुपहरिया बस ढल रही थी।
धूप के घर वापस जाने का समय हो गया था और वो लम्बे-लम्बे डग भरते वापस जा रही थी। आधे आँगन में धूप थी, हल्की गुनगुनी नरम-नरम और आधे में छाँह थी, मेरे कमरे से सटी हुई एक चटाई पड़ी थी, आँगन के पुराने नीम के पेड़ की छाँह में। धूप उसपर चितकबरी ड्राइंग बना रही थी।
जो आवारा बादल, गाँव के लौंडों की तरह मुझे ललचाते ऊपर से झाँक रहे थे, जब मैं कामिनी भाभी के घर से चली थी, मेरा पीछा करते-करते आँगन तक पहुँच गए थे, और अब उनके साथ और भी श्वेत श्याम बादल।
![clouds-5.jpg](https://i.ibb.co/cY7F0kN/clouds-5.jpg)
चम्पा भाभी आईं और हम तीनों वही चटाई पर बैठ गए और गुटरगूं चालू हो गई।
पता चला की भाभी और उनकी माँ, शाम तक आ जाएंगी। कल वो लोग बगल के गाँव में किसी के यहां गई थीं। उन दोनों ने कुछ भी नहीं पूछा की कामिनी भाभी के यहां क्या हुआ?
और भी गाँव के लोगों के बारे में, बिना मेरे पूछे बसंती बोली की अजय भी भाभी लोगों के साथ गया था लेकिन वो शायद परसों आएगा। हाँ चन्दा मिली थी और पूछ रही थी।
रात भर की थकन, जिस तरह से भैया भाभी ने… देह थक के चूर-चूर हो रही थी। एक पल को भी मुश्किल से आँख लगी थी। और ऊपर से गुलबिया, शार्ट कट के नाम पे कम से कम दो चार किलोमीटर का एक्स्ट्रा चक्कर तो उसने लगवाया ही था।
मैंने लाख मना किया लेकिन बसंती बोली की मैं कुछ खा लूँ।
पर चम्पा भाभी मेरी मदद को आईं। मुझसे बोली- “थकी-थकी लग रही हो थोड़ी देर सो जा, कुछ देर बाद बसंती चाय बनाएगी तो तुझे जगा देंगे…”
![Teej-103124458-2711802482376818-8566392160699124408-n.jpg](https://i.ibb.co/f0VGP3n/Teej-103124458-2711802482376818-8566392160699124408-n.jpg)
और मैं झट से कोठरी में घुस गई। पहले तो कामिनी भाभी ने जो क्रीम, तेल, गोलियां और लड्डू दिए थे सब ताखे में सम्हाल के लगा दिए। फिर मेरी नजर पड़ी और मैं बिना मुश्कुराए नहीं रह सकी। कड़ुवे तेल की बोतल, एकदम गर्दन तक बचाबच भरी, ताखे पर सबसे ऊपर फिर मेरी निगाह उस छोटे से दरवाजे पर पड़ी जहां से अजय आया था और सारी रात निचोड़ के रख दिया था मुझे।
छोटी सी खिड़की जहां से गाँव की बँसवाड़ी और घनी अमराई दिखती थी। थकी इतनी थी की झट से नींद ने आ दबोचा। लेकिन आप कितनी भी थकी रहो, रात को, किसी भी गाँव की नई दुल्हन से पूछो, मर्द छोड़ता है क्या? और वही हालत सपनों की थी, न जाने कहाँ-कहाँ से रंग बिरंगे सपने, पंख लगाए इंद्रधनुषी।
बस सिर्फ एक बात थी की अगर सपने सेंसर होते, तो सब पर कैंची चल जाती और कुछ पर अडल्ट का सर्टिफिकेट लग जाता। सपनों की कोई सींग पूँछ भी तो नहीं होती, कहीं से शुरू कहीं से खत्म हो जाते हैं। कोई भी बीच में आ जाता है। लड़के लड़कियां, औारतें सब।
घर वापसी - बसंती
![Teej-100389947-286953392487672-2683824191668486144-n.jpg](https://i.ibb.co/fXPYgNp/Teej-100389947-286953392487672-2683824191668486144-n.jpg)
गुलबिया को भी जल्दी थी, मुझे भी। गुलबिया को अपने मर्द को खरमिटाव देने की जल्दी थी और मुझे घर पहुँचने की। दुपहरी ढल रही थी।
बाहर से ही उसने सांकल खटकाई और बसंती निकली, उसने जल्दी जल्दी बंसती को कुछ समझाया। मैंने सुनने को कोशिश नहीं की क्योंकी मुझे मालूम था की गुलबिया क्या बोल रही होगी। वही जो कामिनी भाभी ने बार-बार चेताया था, कल सुबह तक अगवाड़े पिछवाड़े नो एंट्री।
बसंती ने दरवाजा अंदर से बंद किया और आंगन में ही मुझे जोर से अंकवार में भर के भींच लिया, जैसे मैं न जाने कब की बिछुड़ी हूँ।
और आज जिस तरह बसंती देर तक मुझे अंकवार में लेकर दबा रही थी उसमें सिर्फ प्यार और दुलार था। और मैं भी उसे मिस कर रही थी। कल शाम को ही तो मैं कामिनी भाभी के घर गई थी, 24 घंटे भी नहीं हुए थे, लेकिन अब भाभी का ये घर अपना घर ही लगता था, उनकी माँ, चम्पा भाभी, बसंती, मजाक, मस्ती छेड़छाड़ अलग बात थी लेकिन ये सारे लोग मेरा ख्याल भी कितना रखते थे।
चुप्पी मैंने ही तोड़ी, पूछा- चम्पा भाभी कहाँ हैं?
![Girls-b7343884b817ffc0a11cfa23ba050f02.jpg](https://i.ibb.co/1X00vgQ/Girls-b7343884b817ffc0a11cfa23ba050f02.jpg)
दूसरा दिन होता तो बसंती उन्हें दस गालियां सुनाती, अपने देवरों से चुदवा रही हैं, कहीं गाण्ड मरवा रही होंगी, ऐसे ही जवाब सुनने की मुझे उम्मीद थी। लेकिन वो सीधे साधे ढंग से बोली-
“अंदर कुछ काम रही हैं। बस आ रही होंगी…”
दुपहरिया बस ढल रही थी।
धूप के घर वापस जाने का समय हो गया था और वो लम्बे-लम्बे डग भरते वापस जा रही थी। आधे आँगन में धूप थी, हल्की गुनगुनी नरम-नरम और आधे में छाँह थी, मेरे कमरे से सटी हुई एक चटाई पड़ी थी, आँगन के पुराने नीम के पेड़ की छाँह में। धूप उसपर चितकबरी ड्राइंग बना रही थी।
जो आवारा बादल, गाँव के लौंडों की तरह मुझे ललचाते ऊपर से झाँक रहे थे, जब मैं कामिनी भाभी के घर से चली थी, मेरा पीछा करते-करते आँगन तक पहुँच गए थे, और अब उनके साथ और भी श्वेत श्याम बादल।
![clouds-5.jpg](https://i.ibb.co/cY7F0kN/clouds-5.jpg)
चम्पा भाभी आईं और हम तीनों वही चटाई पर बैठ गए और गुटरगूं चालू हो गई।
पता चला की भाभी और उनकी माँ, शाम तक आ जाएंगी। कल वो लोग बगल के गाँव में किसी के यहां गई थीं। उन दोनों ने कुछ भी नहीं पूछा की कामिनी भाभी के यहां क्या हुआ?
और भी गाँव के लोगों के बारे में, बिना मेरे पूछे बसंती बोली की अजय भी भाभी लोगों के साथ गया था लेकिन वो शायद परसों आएगा। हाँ चन्दा मिली थी और पूछ रही थी।
रात भर की थकन, जिस तरह से भैया भाभी ने… देह थक के चूर-चूर हो रही थी। एक पल को भी मुश्किल से आँख लगी थी। और ऊपर से गुलबिया, शार्ट कट के नाम पे कम से कम दो चार किलोमीटर का एक्स्ट्रा चक्कर तो उसने लगवाया ही था।
मैंने लाख मना किया लेकिन बसंती बोली की मैं कुछ खा लूँ।
पर चम्पा भाभी मेरी मदद को आईं। मुझसे बोली- “थकी-थकी लग रही हो थोड़ी देर सो जा, कुछ देर बाद बसंती चाय बनाएगी तो तुझे जगा देंगे…”
![Teej-103124458-2711802482376818-8566392160699124408-n.jpg](https://i.ibb.co/f0VGP3n/Teej-103124458-2711802482376818-8566392160699124408-n.jpg)
और मैं झट से कोठरी में घुस गई। पहले तो कामिनी भाभी ने जो क्रीम, तेल, गोलियां और लड्डू दिए थे सब ताखे में सम्हाल के लगा दिए। फिर मेरी नजर पड़ी और मैं बिना मुश्कुराए नहीं रह सकी। कड़ुवे तेल की बोतल, एकदम गर्दन तक बचाबच भरी, ताखे पर सबसे ऊपर फिर मेरी निगाह उस छोटे से दरवाजे पर पड़ी जहां से अजय आया था और सारी रात निचोड़ के रख दिया था मुझे।
छोटी सी खिड़की जहां से गाँव की बँसवाड़ी और घनी अमराई दिखती थी। थकी इतनी थी की झट से नींद ने आ दबोचा। लेकिन आप कितनी भी थकी रहो, रात को, किसी भी गाँव की नई दुल्हन से पूछो, मर्द छोड़ता है क्या? और वही हालत सपनों की थी, न जाने कहाँ-कहाँ से रंग बिरंगे सपने, पंख लगाए इंद्रधनुषी।
बस सिर्फ एक बात थी की अगर सपने सेंसर होते, तो सब पर कैंची चल जाती और कुछ पर अडल्ट का सर्टिफिकेट लग जाता। सपनों की कोई सींग पूँछ भी तो नहीं होती, कहीं से शुरू कहीं से खत्म हो जाते हैं। कोई भी बीच में आ जाता है। लड़के लड़कियां, औारतें सब।