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Erotica सोलवां सावन

komaalrani

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२१ वीं फुहार

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आँगन में ,...



जब मैं उठी तो शाम ढलने लगी थी। बाहर निकलकर मैंने देखा तो भाभी लोग अभी भी नहीं आयी थीं। मैंने किचेन में जाकर एक गिलास खूब गरम चाय बनायी और अपने कमरे की चौखट पर बैठकर पीने लगी।



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बादल लगभग छट गये थे, आसमान धुला-धुला सा लगा रहा था।



ढलते सूरज की किरणों से आकाश सुरमई सा हो रहा था, बादलों के किनारों से लगाकर इतने रंग बिखर रहे थे कि लगा रहा था कि प्रकृति में कितने रंग हैं।

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जहां हम झूला झूल रहे थे, उस नीम के पेड़ की ओर मैंने देखा, जैसे किसी बच्चे की पतंग झाड़ पर अटक जाय, उसके ऊपर बादल का एक शोख टुकड़ा अटका हुआ था।

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मैं सोच रही थी भाभी के गाँव में मुझे अभी पांच दिन भी तो नहीं हुए थे लेकिन पांंच लड़कों का मजा , शुरुआत अजय ने की।



और मेरा पहले से भी थोड़ा थोड़ा मन तो था ही ऊपर से चंदा ने और आग लगा दी।

भाभी यहाँ आने के पहले से ही खूब चिढ़ातीं ,



"चल गुड्डी तेरा सोलवां सावन , मेरे गाँव में बरसेगा, वहां मेरे भाई लोग , और लौट के आएगी तो तेरा भाई , डर तो नहीं रही हो , सुन मेरी सलाह मान नीचे चुनमुनिया में वैसलीन लगाना अभी से शुरू कर दे ,... "

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पर मैं असली ननद पलट के जवाब देती , " भाभी , आपके भाइयों में हिम्मत ही नहीं है, "

मुन्ने के होने पर जब सोहर शुरू होते तो जहाँ भाभियाँ इकठ्ठा होती, बस ,... मुन्ने की बधाई में मुन्ने की बुआ का दोगी , मैं तो आपन दोनों जोबना लुटाय दूंगी ,... " तो कोई भाभी पकड़ के दबाने मसलने लगती , बोलती लूटने लायक तो हो गए हैं ,... और बात सही भी थी , मेरी क्लास की लड़कियों से मेरे दोनों कबूतर , २१-२२ नहीं कम से कम २५ रहे होंगे ,... और यहाँ आयी तो गलती मेरी ही थी , इतना टाइट टॉप और छोटी सी स्कर्ट , ... भाभी के सारे जो गाँव के रिश्ते के भाई थे , अजय सुनील दिनेश रवि , सब को जानती थी मैं , चौथी लेकर आये थे तो खूब छेड़ा भी तो , और अजय तो उसके बाद भी चार पांच बार , दो तीन बार सुनील भी उसके साथ , ... अजय को तो मैं स्साला कह के ही बुलाती थी , भैया का साला तो मेरा ,...



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फिर गाँव के मेले में , अब तो सिर्फ मेरी सहेलियां ही नहीं गाँव की सभी मुझे अजय का माल कहती थीं , फिर कल की रात जैसे उसने चार बार रगड़ा ,अब तो मैं कहीं भी कभी भी उसके साथ ,… और ऊपर से उसने बोल दिया , माल तो मैं उसका हूँ और रहूंगी लेकिन खबरदार जो मैंने किसी को मना किया तो।



फिर मना करना मेरे बस में हैं क्या , मैं सोच भी नहीं सकती थी मेरी चुनमुनिया , खुले आसमान के नीचे , अमराई में बरसते पानी के बीच आधी रात में , फटेगी , और फाड़ने वाला वही साला अजय , और एक बार नहीं दो बार ,... किसी तरह उसी का सहारा लेकर घर लौटी थी , और घर में कोई नहीं सिर्फ बसंती थी ,... मैं चीखती रही वो फाड़ता रहा ,

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एकदम गझिन अमराई , दिन में न दिखाई दे और अँधेरी रात में तो और , शाम को भाभी अपनी भाभियों बहनो के साथ मुझे वहीँ झूला झुलाने ले गयीं थी और वहीँ उसी अमराई में आधी रात को उनके भाई ने , ...

वो छिनार चंदा ,


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अगले दिन उसने कसम धरा दी और गन्ने के खेत में सुनील के साथ ,…

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फिर सुनील ने जो शाम को अमराई में बुलाया , तो एक के साथ एक फ्री , वो साल्ला चूत चटोरा रवी भी , उस दिन तो दो बार ,वो भी चंदा के सामने।

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और अगले दिन , पूरबी के यार ने नंबर लगा दिया। ,मुझे पक्का श्योर है , पूरबी ने उससे सेटिंग की थी , मुझे दिलवाने की। तभी वो नदी नहलाने ले गयी मुझे और वहां भी बाकी लड़कियों से दूर ,सूने में ,… लेकिन उसके यार को क्यों कुछ कहूँ यार , गाँव के सारे लौंडे , देख के मुझे तम्बू खड़ा हो जाता है उनका।

और सच बोलूं तो मुझे भी अच्छा लगता है , वो जोबन भी क्या आये जो आग न लगाए।


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और आज लौट के आई तो दिनेश , क्या खूंटा है उसका , साला अबतका चूत परपरा रही है , बित्ते भर का रहा होगा। और मोटा भी कितना , सुनील से बीस ही रहा होगा।



अचानक मैं मुस्करा पड़ी , मुझे मम्मी की मां की बात याद आगयी। कितना खुल के छेड़ती है मुझे और कितना सपोर्ट भी करती हैं। और सबसे बड़ी बात उनकी बात सच भी निकलती है। जब मैं भाभी के साथ आई थी उसी समय ,जब सोहर हो रहा था और भाभी की भौजाइयां , बहने मुझे चिढ़ा रही थी और भाभी भी , हर सोहर में तो मुझे ही गालियां पड़ रही थीं।


सैंया जिन मांगो ननदी सेज का सिंगार रे , सैंया जिन मांगो ननदी सेज का सिंगार रे ,

अरे सैंया के बदले , अरे सैंया के बदले भैया दूंगी , अरे अजय को दूंगी , सुनील को दूंगी ,

चोदी चूत तोहार , अरे चोदी चूत तोहार रे , बुर खोल के मांगो ननदी जो मांगो सो दूंगी


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भाभी ने छेड़ते हुये पूछा था - “क्यों ननद रानी, मेरा कौन सा भाई पसंद है, अजय, सुनील, रवी या दिनेश… किससे चुदवाओगी…”


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मेरे कुछ बोलने के पहले ही भाभी की अम्मा बोल पड़ी-




“अरे किससे क्या… चारों से चुदवायेगी। मेरी ये प्यारी बिन्नो सबका मन रखेगी…” और यह कहते-कहते, मेरे गोरे, गुलाबी गालों पर चिकोटी काट ली थी उन्होने.

उस समय तो मैं शर्म से लाल हो गयी पर आज सोचती हूँ तो उनकी बात एकदम सही निकली। अजय ,सुनील, रवी ,दिनेश और पूरबी का यार राजीव भी तो , जहाँ यहाँ आने से पहले मैं कच्ची थी , शहर की छोरी , लड़कों का नाम लेने से ही शरमा जाती थी , अब तो एकदम।





और फिर दिन कितने हुए मुझे आये , पहली रात तो चंदा रानी ने सोने नहीं दिया , गाँव के लड़कों के किस्से सुना सुना के। और मन तो मैंने उसी रात बना लिया था की इस चंदा की दिखा दूंगी , मैं कम नहीं हूँ उससे।



और अगली रात तो मैं जिंदगी भर नहीं भूल सकती , जब आम के बाग़ में , बरसात में मेरी चिरैया ने पहली बार चारा घोंटा।


अजय भी न , सच में कुछ फुसला बहला के , कुछ जोर जबरदस्ती उसने मेरा चुदाई का डर निकाल दिया।

जब घर लौटी तो रात तो करीब करीब निकल ही गयी थी।



तीसरी रात रतजगे में बीती ,और वहां भी कितना मजा आया।


उस दिन से सारी भाभियों से और सबसे बढ़ कर भाभी की माँ से भी , आखिर हम सब ने एक दूसरे का सब कुछ देख लिया था , एकदम खुल के।







और कल की रात , चौथी रात मेरी जिंदगी की सबसे सुनहरी रात थी जब अजय ने , मेरे अजय ने , रात भर , चार बार , .... चार रातें गुजरी और पांच लड़के।



जब यहाँ आने की बात हो रही थीं तो भाभी मेरी खूब छेड़ती थीं , " कच्ची कली कचनार की " की और मैं भी उन्हें जवाब देती थी ," अरे भाभी मैं डरती नहीं हूँ ,देख लूंगी आपके भाइयों को भी। "



सोलहवां साल बस लगा ही लगा था , मैं अभी ग्यारहवें में पढ़ रही थी।







भाभी भी , कभी मेरे स्कर्ट के अंदर हाथ घुसा के कभी ,





शलवार के ऊपर से चुनमुनिया दबा के बोलती थीं ,



" अरी बिन्नो , जरूर देखना , बिना दिखाए , पकड़ाए , घुसाये वो छोड़ेंगे भी नहीं।

अब बहुत दिन तुमने इसे बचा के रख लिया ,अब फड़वाने की साइत आ गयी है। "



भाभी की बात एक दम सच निकली।



और उनसे भी बढ़कर भाभी की मम्मी की बात ,अजय ,सुनील ,रवी दिनेश कोई भी नहीं बचा।

मजा भी कितना आया , लेकिन उन्होंने एक बात और कही थी जिसे सोच के मैं काँप गयी।

कहीं वो भी तो सच नहीं निकलेगी।





जब से मैं आई थी ,बल्कि भैया की शादी में भी जब मुझे गारी दी जा रही थी ,

एकलौती बहन जो थी , ममेरी ही सही ,

रॉकी का नाम जोड़ के एक से एक खुल के , …





लेकिन अबकी तो पहले दिन से ही , और रॉकी भी अबकी कुछ ज्यादा ही ,

फिर पहली बार मैंने नोटिस किया उसका कितना बड़ा मोटा सा , …

बार बार चंपा भाभी मेरी भाभी से कहतीं थी ,



" बिन्नो अबकी कातिक में इसे जरूर ले आना , अबकी बिना रॉकी को इसपे चढ़ाएं छोड़ेंगे नहीं ,

आखिर वो भी तो इसी गाँव का मर्द है , उसका भी तो हक़ बनता है। "






लेकिन मेरी हालत कल रात खराब हो गयी , जब भाभी की मम्मी मुझसे बोलीं,



"अरे ई कुतिया गर्माती है कातिक में ,लेकिन तोहार एस जवान लड़की तो हरदमै गरम ,पनियाइल रहती हैं।




और रॉकी भी बारहों महीने तैयार रहता है तो कौनो जरूरी नाही की कातिक का इन्तजार करो , जब भी तोहार मन करे या तोहार भौजाई लोग जेह दिन चहिये ओहि दिन। "



और चंपा भाभी के लिए तो बस इशारा काफी था ,




उन्हें तो बस अब ग्रीन सिंगल मिल गया।

तो भाभी की माँ की ये बात सही हो गयी की मैं अजय, सुनील ,रवी और दिनेश सब के साथ ,

तो क्या ये भी बात सही हो जायेगी की इसी बार रॉकी के साथ भी ,…


सोच के ही मैं गिनगिना गयी ,
तभी ,...
 

komaalrani

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बड़ा मस्त अपडेट है



Thanks so much
 

Raj_Singh

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२१ वीं फुहार

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आँगन में ,...



जब मैं उठी तो शाम ढलने लगी थी। बाहर निकलकर मैंने देखा तो भाभी लोग अभी भी नहीं आयी थीं। मैंने किचेन में जाकर एक गिलास खूब गरम चाय बनायी और अपने कमरे की चौखट पर बैठकर पीने लगी।


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बादल लगभग छट गये थे, आसमान धुला-धुला सा लगा रहा था।



ढलते सूरज की किरणों से आकाश सुरमई सा हो रहा था, बादलों के किनारों से लगाकर इतने रंग बिखर रहे थे कि लगा रहा था कि प्रकृति में कितने रंग हैं।

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जहां हम झूला झूल रहे थे, उस नीम के पेड़ की ओर मैंने देखा, जैसे किसी बच्चे की पतंग झाड़ पर अटक जाय, उसके ऊपर बादल का एक शोख टुकड़ा अटका हुआ था।

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मैं सोच रही थी भाभी के गाँव में मुझे अभी पांच दिन भी तो नहीं हुए थे लेकिन पांंच लड़कों का मजा , शुरुआत अजय ने की।



और मेरा पहले से भी थोड़ा थोड़ा मन तो था ही ऊपर से चंदा ने और आग लगा दी।

भाभी यहाँ आने के पहले से ही खूब चिढ़ातीं ,



"चल गुड्डी तेरा सोलवां सावन , मेरे गाँव में बरसेगा, वहां मेरे भाई लोग , और लौट के आएगी तो तेरा भाई , डर तो नहीं रही हो , सुन मेरी सलाह मान नीचे चुनमुनिया में वैसलीन लगाना अभी से शुरू कर दे ,... "

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पर मैं असली ननद पलट के जवाब देती , " भाभी , आपके भाइयों में हिम्मत ही नहीं है, "

मुन्ने के होने पर जब सोहर शुरू होते तो जहाँ भाभियाँ इकठ्ठा होती, बस ,... मुन्ने की बधाई में मुन्ने की बुआ का दोगी , मैं तो आपन दोनों जोबना लुटाय दूंगी ,... " तो कोई भाभी पकड़ के दबाने मसलने लगती , बोलती लूटने लायक तो हो गए हैं ,... और बात सही भी थी , मेरी क्लास की लड़कियों से मेरे दोनों कबूतर , २१-२२ नहीं कम से कम २५ रहे होंगे ,... और यहाँ आयी तो गलती मेरी ही थी , इतना टाइट टॉप और छोटी सी स्कर्ट , ... भाभी के सारे जो गाँव के रिश्ते के भाई थे , अजय सुनील दिनेश रवि , सब को जानती थी मैं , चौथी लेकर आये थे तो खूब छेड़ा भी तो , और अजय तो उसके बाद भी चार पांच बार , दो तीन बार सुनील भी उसके साथ , ... अजय को तो मैं स्साला कह के ही बुलाती थी , भैया का साला तो मेरा ,...



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फिर गाँव के मेले में , अब तो सिर्फ मेरी सहेलियां ही नहीं गाँव की सभी मुझे अजय का माल कहती थीं , फिर कल की रात जैसे उसने चार बार रगड़ा ,अब तो मैं कहीं भी कभी भी उसके साथ ,… और ऊपर से उसने बोल दिया , माल तो मैं उसका हूँ और रहूंगी लेकिन खबरदार जो मैंने किसी को मना किया तो।



फिर मना करना मेरे बस में हैं क्या , मैं सोच भी नहीं सकती थी मेरी चुनमुनिया , खुले आसमान के नीचे , अमराई में बरसते पानी के बीच आधी रात में , फटेगी , और फाड़ने वाला वही साला अजय , और एक बार नहीं दो बार ,... किसी तरह उसी का सहारा लेकर घर लौटी थी , और घर में कोई नहीं सिर्फ बसंती थी ,... मैं चीखती रही वो फाड़ता रहा ,

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एकदम गझिन अमराई , दिन में न दिखाई दे और अँधेरी रात में तो और , शाम को भाभी अपनी भाभियों बहनो के साथ मुझे वहीँ झूला झुलाने ले गयीं थी और वहीँ उसी अमराई में आधी रात को उनके भाई ने , ...

वो छिनार चंदा ,


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अगले दिन उसने कसम धरा दी और गन्ने के खेत में सुनील के साथ ,…

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फिर सुनील ने जो शाम को अमराई में बुलाया , तो एक के साथ एक फ्री , वो साल्ला चूत चटोरा रवी भी , उस दिन तो दो बार ,वो भी चंदा के सामने।

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और अगले दिन , पूरबी के यार ने नंबर लगा दिया। ,मुझे पक्का श्योर है , पूरबी ने उससे सेटिंग की थी , मुझे दिलवाने की। तभी वो नदी नहलाने ले गयी मुझे और वहां भी बाकी लड़कियों से दूर ,सूने में ,… लेकिन उसके यार को क्यों कुछ कहूँ यार , गाँव के सारे लौंडे , देख के मुझे तम्बू खड़ा हो जाता है उनका।

और सच बोलूं तो मुझे भी अच्छा लगता है , वो जोबन भी क्या आये जो आग न लगाए।


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और आज लौट के आई तो दिनेश , क्या खूंटा है उसका , साला अबतका चूत परपरा रही है , बित्ते भर का रहा होगा। और मोटा भी कितना , सुनील से बीस ही रहा होगा।



अचानक मैं मुस्करा पड़ी , मुझे मम्मी की मां की बात याद आगयी। कितना खुल के छेड़ती है मुझे और कितना सपोर्ट भी करती हैं। और सबसे बड़ी बात उनकी बात सच भी निकलती है। जब मैं भाभी के साथ आई थी उसी समय ,जब सोहर हो रहा था और भाभी की भौजाइयां , बहने मुझे चिढ़ा रही थी और भाभी भी , हर सोहर में तो मुझे ही गालियां पड़ रही थीं।


सैंया जिन मांगो ननदी सेज का सिंगार रे , सैंया जिन मांगो ननदी सेज का सिंगार रे ,

अरे सैंया के बदले , अरे सैंया के बदले भैया दूंगी , अरे अजय को दूंगी , सुनील को दूंगी ,


चोदी चूत तोहार , अरे चोदी चूत तोहार रे , बुर खोल के मांगो ननदी जो मांगो सो दूंगी


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भाभी ने छेड़ते हुये पूछा था - “क्यों ननद रानी, मेरा कौन सा भाई पसंद है, अजय, सुनील, रवी या दिनेश… किससे चुदवाओगी…”


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मेरे कुछ बोलने के पहले ही भाभी की अम्मा बोल पड़ी-




“अरे किससे क्या… चारों से चुदवायेगी। मेरी ये प्यारी बिन्नो सबका मन रखेगी…” और यह कहते-कहते, मेरे गोरे, गुलाबी गालों पर चिकोटी काट ली थी उन्होने.

उस समय तो मैं शर्म से लाल हो गयी पर आज सोचती हूँ तो उनकी बात एकदम सही निकली। अजय ,सुनील, रवी ,दिनेश और पूरबी का यार राजीव भी तो , जहाँ यहाँ आने से पहले मैं कच्ची थी , शहर की छोरी , लड़कों का नाम लेने से ही शरमा जाती थी , अब तो एकदम।





और फिर दिन कितने हुए मुझे आये , पहली रात तो चंदा रानी ने सोने नहीं दिया , गाँव के लड़कों के किस्से सुना सुना के। और मन तो मैंने उसी रात बना लिया था की इस चंदा की दिखा दूंगी , मैं कम नहीं हूँ उससे।



और अगली रात तो मैं जिंदगी भर नहीं भूल सकती , जब आम के बाग़ में , बरसात में मेरी चिरैया ने पहली बार चारा घोंटा।


अजय भी न , सच में कुछ फुसला बहला के , कुछ जोर जबरदस्ती उसने मेरा चुदाई का डर निकाल दिया।

जब घर लौटी तो रात तो करीब करीब निकल ही गयी थी।



तीसरी रात रतजगे में बीती ,और वहां भी कितना मजा आया।


उस दिन से सारी भाभियों से और सबसे बढ़ कर भाभी की माँ से भी , आखिर हम सब ने एक दूसरे का सब कुछ देख लिया था , एकदम खुल के।







और कल की रात , चौथी रात मेरी जिंदगी की सबसे सुनहरी रात थी जब अजय ने , मेरे अजय ने , रात भर , चार बार , .... चार रातें गुजरी और पांच लड़के।



जब यहाँ आने की बात हो रही थीं तो भाभी मेरी खूब छेड़ती थीं , " कच्ची कली कचनार की " की और मैं भी उन्हें जवाब देती थी ," अरे भाभी मैं डरती नहीं हूँ ,देख लूंगी आपके भाइयों को भी। "



सोलहवां साल बस लगा ही लगा था , मैं अभी ग्यारहवें में पढ़ रही थी।







भाभी भी , कभी मेरे स्कर्ट के अंदर हाथ घुसा के कभी ,





शलवार के ऊपर से चुनमुनिया दबा के बोलती थीं ,



" अरी बिन्नो , जरूर देखना , बिना दिखाए , पकड़ाए , घुसाये वो छोड़ेंगे भी नहीं।

अब बहुत दिन तुमने इसे बचा के रख लिया ,अब फड़वाने की साइत आ गयी है। "



भाभी की बात एक दम सच निकली।



और उनसे भी बढ़कर भाभी की मम्मी की बात ,अजय ,सुनील ,रवी दिनेश कोई भी नहीं बचा।

मजा भी कितना आया , लेकिन उन्होंने एक बात और कही थी जिसे सोच के मैं काँप गयी।

कहीं वो भी तो सच नहीं निकलेगी।





जब से मैं आई थी ,बल्कि भैया की शादी में भी जब मुझे गारी दी जा रही थी ,

एकलौती बहन जो थी , ममेरी ही सही ,

रॉकी का नाम जोड़ के एक से एक खुल के , …





लेकिन अबकी तो पहले दिन से ही , और रॉकी भी अबकी कुछ ज्यादा ही ,

फिर पहली बार मैंने नोटिस किया उसका कितना बड़ा मोटा सा , …

बार बार चंपा भाभी मेरी भाभी से कहतीं थी ,



" बिन्नो अबकी कातिक में इसे जरूर ले आना , अबकी बिना रॉकी को इसपे चढ़ाएं छोड़ेंगे नहीं ,

आखिर वो भी तो इसी गाँव का मर्द है , उसका भी तो हक़ बनता है। "






लेकिन मेरी हालत कल रात खराब हो गयी , जब भाभी की मम्मी मुझसे बोलीं,



"अरे ई कुतिया गर्माती है कातिक में ,लेकिन तोहार एस जवान लड़की तो हरदमै गरम ,पनियाइल रहती हैं।




और रॉकी भी बारहों महीने तैयार रहता है तो कौनो जरूरी नाही की कातिक का इन्तजार करो , जब भी तोहार मन करे या तोहार भौजाई लोग जेह दिन चहिये ओहि दिन। "



और चंपा भाभी के लिए तो बस इशारा काफी था ,




उन्हें तो बस अब ग्रीन सिंगल मिल गया।

तो भाभी की माँ की ये बात सही हो गयी की मैं अजय, सुनील ,रवी और दिनेश सब के साथ ,

तो क्या ये भी बात सही हो जायेगी की इसी बार रॉकी के साथ भी ,…


सोच के ही मैं गिनगिना गयी ,
तभी ,...

Kya ROCKY ke sath kuch hoga ? :hinthint2:

agar hua to bahut hi Erotic rahega.
 
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Kya ROCKY ke sath kuch hoga ? :hinthint2:

agar hua to bahut hi Erotic rahega.


aage aage dekhiye , kya hota hai Guddi ji ka Bhabhi ke gaon men , saavn ke mahine men
 
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तभी ,



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तभी कहीं से राकी आकर मेरे पास बैठ आया और मेरे पैर चाटने लगा।


मेरे मन में वही सब बातें घूमने लगीं जो मुझे चिढ़ाते हुए, चम्पा भाभी कहतीं थीं…

पहले दिन ही तो बस मैं भाभी के साथ आयी ही थी , गाँव की औरतें, भाभी की गाँव के रिश्ते की बहनें , भाभियाँ और भाभी की माँ भी , बस सोहर और सोहर के साथ गारी और मैं एकलौती ननद, मुन्ने की बुआ तो , भाभी की बहनें , भाभियाँ सब मेरे पीछे ,


मुन्ने की बूआ तो का दोगी मुन्ने की बधाई ,

मैं तो मुन्ने के मामा से चुदवाय लुंगी , अरे मैं तो अजय और सुनील से चोदवाय लूंगी ,

मुन्ने की बधाई ,

मैं तो रॉकी से चोदवाय लूंगी , अरे रॉकी से पेलवाय लूंगी


मुन्ने की बधाई , ...

एक कोई कामवाली थी , भाभी की रिश्ते में भाभी ही लगती थी , उन्हें चिढ़ाते बोली,

" अरे बिन्नो , तेरी ननद में बड़ी कैपसिटी है , रॉकी से भी "

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लेकिन चंदा मेरी सहेली और भाभी की कजिन चिढ गयी , बोली ,

अरे वाह , रॉकी से क्यों नहीं , आयी किसलिए हैं ,... आखिर वो भी तो हमलोगों का भाई लगता है , हमारी रक्षा करता है , रॉकी का नंबर तो जरूर लगेगा, ...

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और ऊपर से मेरी भाभी , मुझे देखकर सबसे बोलीं ,

" कैपसिटी की बात मत करियेगा , मेरी ननद की। ये जिस गली में रहती हैं उसके बाहर गदहे रहते हैं , बचपन से ही गदहों का लम्बा मोटा, ... "

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फिर तो बिना रॉकी का नाम जोड़े ,...और वो भी जहाँ मुझे देखता , चाटना शुरू कर देता।

उस दिन चन्दा कह रह थी,
जब अमराई वाले कमरे से सुनील और रवि ने मिलकर मेरे ऊपर, दो दो राउंड और देसी अलग जबरन पिला दी थी ,

मैंने चंदा से कहा , सब लोग , भाभी चंपा भाभी , यहाँ तक की माँ भी , रॉकी का नाम लेकर छेड़ती हैं और बंसती तो खारा शरबत ,...

मेरी बात काटकर चंदा खिलखिलाते हुए बोली ,

अरी बिन्नो ये मजाक नहीं है बिलकुल सच है , बिना रॉकी को चढ़ाये ये छोड़ने वाली नहीं , और स्साली तू काहें नखड़ा पेल रही है , बस तुझे तो सिर्फ निहुरना है , बाकी का काम चंपा भाभी , और बंसती कर देंगी , और एक बार बस घुस जाने की देर है , फिर तो तू लाख चूतड़ पटकना , एक बार बस गाँठ बंध गयी , घेर्रा घेर्रा कर ,... अरे गाँव का सब मजा ले रही हो , ये भी ले लेना , ... फिर कौन तुझ से पूछने वाला है , और वो खारा शरबत भी,... और कोई छोड़ दे , लेकिन चंपा भाभी और बसंतिया तो नहीं छोड़ने वालीं तुझे ,...

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और सबसे बढ़ कर भाभी की बात ,

यहां आने के बात मुझे छेड़ने चिढ़ाने की जिम्मेदारी उन्होंने अपनी भौजाइयों और बहनों पे छोड़ दी थी ,

पांच दिन आये हुए थे मुझे भाभी के साथ उनके गाँव , सावन में ,... पर आज पहली बार इस तरह घर में मैं अकेले , कच्चे वाले आंगन में बैठी, ... कुछ देर पहले ही पानी बंद हुआ था, हवा में अभी भी पानी की नमी थी , जैसे जवान होती लड़की के पीछे लौंडे चक्कर काटते रहते हैं उसी तरह आसमान में बादलों के झुण्ड , एकदम उसी तरह जैसे उस दिन मेले में सब लड़कों के झुण्ड मेरे आगे पीछे , न सिर्फ भाभी के गाँव वाले बल्कि मेले में आये सब, .... जिधर मैं चंदा कजरी पूरबी निकल जाते , लौंडे सब उसी ओर , ...

आँगन में सिर्फ मैं और रॉकी , दरवाजा अंदर से बंद ,...

हाँ चिढ़ाते समय सब भाभियाँ यही कहती की अबकी कातिक में जरूर आना रॉकी को चढ़ाय देंगे तुम्हारे ऊपर ,...

मैं भी मज़ाक में ,... अभी तो सावन चल रहा है सोच कर , पर कल भाभी की माँ ने ,...

लेकिन भाभी की बात, कल रात जिस तरह वो मुस्कराकर अपनी माँ और चंपा भाभी के सामने मुझसे बोल रही थीं ,



" ये तो बहुत उदास हो गयी थी , कह रही थी , भाभी , कातिक तो अभी बहुत दूर है ,आने को तो मैं आ जाउंगी लेकिन , इतना लम्बा इन्तजार , मैंने बहुत समझाया , अरे तब तक गाँव में इतने लड़के हैं , अजय , सुनील ,रवी दिनेश , और भी तब तक उनके साथ काम चलाओ , दो तीन महीने की बात है लेकिन , माँ आप ने तो इसके मन की बात समझ ली , और परेशानी दूर कर दी। "


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मैंने ऐसा कुछ भी नहीं बोला था लेकिन भाभी और चम्पा भाभी जब साथ साथ हो जाएँ ,

माँ ने ( मैं भी उन्हें भाभी की तरह माँ ही कहती थी ) ने कातिक वाली बात का भी कल इलाज कर दिया , उन्होंने साफ़ साफ़ कह दिया की अरे कातिक की बात तो देसी कुतिया के लिए है , कुत्ते के लिए थोड़ी , फिर रॉकी तो विदेशी और जिस ब्रीड का है , वो साल में हर रोज , और वो भी चार बार पांच बार ,...

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अब चंपा भाभी को मौका मिल गया मेरे ऊपर भी चढ़ने का और अपनी सास की भी खिंचाई करने का ,

" अच्छा , तो आपका मतलब आपकी यह बिटिया , मतलब कुतिया के लिए बारहों महीने कातिक , हरदम गरमाई रहती है , और रॉकी का भी तो इसको देख के टनटनाने लगता है , फिर तो ,... "

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अबकी बात काटने की बारी , भाभी की माँ की थी ,

"एकदम और मेरी बिटिया पीछे नहीं हटने वाली ,... ये तो तुम भौजाई लोग ही आलस करती हो अपने चक्कर में , जब चाहो आंगन में यही निहुरा के , अगर मेरी बिटिया मन करे तो मुझसे कहना ,... चढ़ा दो ,... "

कल तो भाभी की माँ भी , टॉप के अंदर हाथ डाल के मेरी पीठ सहलाते बोलीं ,


" तुम दोनों न , मेरी बेटी को समझती क्या हो , बहुत अच्छी है ये सबका मन रखेगी। गाँव के लड़को से तो चुदवायेगी ही , गाँव के मर्दों से भी. आखिर चम्पा के खाली देवर थोड़ी जेठ लोगों का भी तो मन करता है शहरी माल का मजा लेने का. हैं न बेटी , और रॉकी तो इसी घर का मर्द है ,तुम लोग जबरदस्ती बिचारी को चिढ़ाती हो ,


खुद ही उसका बहुत मन करता है रॉकी के साथ और रॉकी भी कितना चूम चाट रहा था था , जाने के पहले , बेटी चुदवा के जाना।

माना गाँठ बनेगी तो बहुत दर्द होगा लेकिन उसी दर्द में तो मजा है ,


चंपा जाओ बिटिया के साथ एक दो दिन परका दो , उसके बाद रॉकी की जिम्मेदारी तो ये खुद ही ले लेगी ,क्यों बेटी है न ,"




मैं आँखे बंद किये कल की छेड़छाड़ सोच कर मजा ले रही थी , ठंडी ठंडी पुरवाई चल रही थी।

घर में मैं एकदम अकेली थी , आँगन से बाहर का दरवाजा भी अंदर से बंद था। सोच सोच कर मेरी किशोर चूंचियां पथरा रही थीं।



और तब तक रॉकी ने मेरे तलवे चाटने शुरू किया ,


मेरी पूरी देह गिनगिना उठी , जबरदस्त टिंगलिंग उठी मेरी देह में , पैरों से लेकर सीधे 'वहां तक' ,

लेकिन न मैंने पैर हटाये , न रॉकी को मना किया , बस जोर से आँखे भींच ली, अपने आप मेरी टाँगे थोड़ी खुल गयीं , …


और मेरी बंद आँखों के सामने कल रात के आँगन नाच रहा था ,का सीन नाच रहा था , तेज हवा चल रही थी , बस लग रहा था थोड़ी देर में तूफ़ान आएगा , ... घने बादल , एकदम अँधेरा , बस लालटेन की हलकी सी लाइट और माँ ने मुझे और चंपा भाभी को बोला था की रॉकी को आँगन से हटा कर बाहर उसकी कुठरिया में कर दें

जब चम्पा भाभी मुझे लेकर घुप्प अँधेरे में आँगन में गयी थी और ,


जैसे उसने मुझे पहचान लिया हो और उसका भौंकना एकदम बंद हो गया।



मेरी निगाह फिर रॉकी के ' वहां ' पड़ गयी , वो , .... वो, … बाहर निकला था ,

एकदम किसी आदमी के जैसा , लाल गुलाबी करीब तीन चार इंच ,


और ,… मेरी साँस रुक गयी ,… वो थोड़ा मोटा होता जा रहा था , और बाहर निकल रहा था।

मैंने थूक घोंटा , सांस आलमोस्ट रुक गयी।

मुझे भाभी की माँ की बात याद आ गयी।



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' बेटी कातिक -वातिक की सिर्फ कुतिया के लिए है, कुतिया कातिक में गरमाती हैं ,

रॉकी तो बारहो महीना तैयार रहता है , अगर उसे महक लग जाय ,…लौंडिया "



पैंटी तो मैं पहनती नहीं थी , और नीचे अब कुछ लसलसा सा लग रहा था।

मेरी टाँगे अब पिघल रही थीं , और मैं समझ रही थी , की अगर इस अँधेरे में रॉकी ने कुछ ,… तो कोई आएगा भी नहीं।




धीरे धीरे मेरा डर कुछ कम हो रहा था , मैंने उसका ध्यान बंटाने के लिए , उसे खाने का तसला दिखाया।

मुझे लगा खाने को देख कर शायद कर उसका मन बदल जाय ,

लेकिन शायद उसके सामने ज्यादा मजेदार रसीला भोजन था , और अब रॉकी के नथुने मेरे स्कर्ट में घुस गए थे , वो जांघ के ऊपरी हिस्से को चाट रहा था , लपलप लपलप,

मेरी जांघे अब अपने आप पूरी फैल गयी थीं , 'वो 'खूब पानी फ़ेंक रही थी ,

मेरे पैर लग रहा था अब गए , तब गए , … मैं रॉकी को खूब प्यार से सहला रही थी , रॉकी रॉकी बुला रही थी ,


और तभी मेरी निगाह नीचे की ओर मुड़ी ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह , मेरी चीख निकलते निकलते बची , …


कम से कम ८ इंच ,लाल गुस्सैल , एकदम तना ,कड़ा गुस्सैल , और मोटा ,


मेरी तो जान सूख गयी ,

मतलब ,मतलब वो ,… पूरे जोश में है , एकदम तन्नाया। और अब कहीं वो मेरे ऊपर चढ़ बैठा ,....


और जिस तरह से अब उसकी जीभ , मैं गनगना रही थी ,

चार पांच मिनट अगर वो इसी तरह चाटता रहां तो मैं खुद किसी हालत में नहीं रहूंगी कुछ ,....

मेरी जांघे पूरी तरह अपने आप फैल गयी थीं,

बड़ी मुश्किल से मैं उसके बगल में घुटने मोड़ के उँकड़ू बैठी और उसकी गरदन ,

उसकी पीठ सहलाती रही , मैं लाख कोशिश कर रही थी की मेरी निगाह उधर न जाय लेकिन अपने आप ,


'वो ' उसी तरह से खड़ा ,तना मोटा और अब तो आठ इंच से भी मोटा उसकी नोक लिपस्टिक की तरह से निकली।

और तभी मैंने देखा की चंपा भाभी भी मेरे बगल में बैठी है , मुस्कराती , लालटेन की लौ उन्होंने खूब हलकी कर दी थी।







' पसंद आया न " मेरे गाल पे जोर से चिकोटी काट के वो बोलीं , और जब तक मैं जवाब देती

उनका हाथ सीधे मेरी जाँघों के बीच और मेरी बुलबुल को दबोच लिया उन्होंने जोर से।


खूब गीली ,लिसलिसी हो रही थी। और चंपा भाभी की गदोरी उसे जोर जोर से रगड़ रही थी।


" मेरी छिनार बिन्नो , जब देख के इतनी गीली हो रही तो जो ये सटा के रगडेगा तो क्या होगा , इसका मतलब अब तू तो राजी है और रॉकी की तो हालत देख के लग रहा है , तुझे पहला मौका पाते ही पेल देगा। "

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मेरे कान में फुसफुसा के वो बोलीं।



और मैं कल रात से वापस आई



सोच सोच के मेरी गीली हो रही थी।

नीचे वाला मुंह एकदम लिसलिसा हो गया था।



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मेरी आँखे अभी भी बंद थी , फिर धीरे धीरे मैंने आँखे खोली ,

लगता है, राकी भी वही कुछ सोच रहा था, मेरे पैर चाटते चाटते, अब उसकी जीभ मेरे गोरे-गोरे घुटनों तक पहुँच गयी थी।

मैं वही टाप और स्कर्ट पहने हुए थी जो दिनेश के आने पे मैंने पहन रखा था।


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न टॉप के नीचे कुछ , न स्कर्ट के नीचे कुछ

कुछ सोचकर मैं मुश्कुरायी। राकी को प्यार से सहलाते, पुचकारते, मैंने अपनी, जांघें थोड़ी फैलायीं और स्कर्ट थोड़ी ऊपर की,


जैसे मैंने दिनेश को सिड्यूस करने के लिये किया था।


उसका असर भी वैसे ही हुआ, बल्की उससे भी ज्यादा, मेरी निगाहें जब नीचे आयीं तो… मैं विश्वास नहीं कर सकती…


उसका लाल उत्तेजित शिश्न काफी बाहर निकल अया था।

और अब वह मेरी जांघों को चाट रहा था।

मेरी शरारत बढ़ती ही जा रही थी। मैंने हिम्मत करके स्कर्ट काफी ऊपर कर ली और जांघें भी पूरी फैला दीं।

अब तो राकी… जैसे मेरी चूत को घूर रहा हो।


मेरे निपल भी कड़े हो रहे थे लेकीन मैं चाय, दोनों जांघें फैला के आराम से पी रही थी।

मेरी छोटी सी स्कर्ट , अब बस कमर में एक छल्ले की तरह फँसी थी.





मैंने अपने भारी भारी चूतड़ बस सीढ़ी के कोने से जस्ट टिका रखा था ,और जांघे अब एकदम खुल गयी थी , जिससे न सिर्फ मेरी कच्ची गीली चूत एकदम खुली थी ,बल्कि चूतड़ भी।




दरवाजा बंद था , घर में मैं अकेली और धीरे धीरे एक बार फिर घने काले बादल आसमान को ढकने लगे थे। हवा के ठन्डे ठन्डे झोंके तेज हो गए थे।

कुछ हवा और बादलों का असर और कुछ , …


मैंने चाय का प्याला बगल में रख दिया था , मैं अपना आपा खो रही थी ,

और मेरी आँखे धीरे धीरे एक बार फिर मूँद गयीं। मैं हाथों के सहारे पीछे की ओर मुड़ गयी और ,


अब मुझे सिर्फ एक चीज का अहसास था , रॉकी की जीभ का।
 
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komaalrani

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Thanks so much , will try to post, next post today, have posted a new post in Mohe Rang de too
 
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