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२१ वीं फुहार
आँगन में ,...
जब मैं उठी तो शाम ढलने लगी थी। बाहर निकलकर मैंने देखा तो भाभी लोग अभी भी नहीं आयी थीं। मैंने किचेन में जाकर एक गिलास खूब गरम चाय बनायी और अपने कमरे की चौखट पर बैठकर पीने लगी।
बादल लगभग छट गये थे, आसमान धुला-धुला सा लगा रहा था।
ढलते सूरज की किरणों से आकाश सुरमई सा हो रहा था, बादलों के किनारों से लगाकर इतने रंग बिखर रहे थे कि लगा रहा था कि प्रकृति में कितने रंग हैं।
जहां हम झूला झूल रहे थे, उस नीम के पेड़ की ओर मैंने देखा, जैसे किसी बच्चे की पतंग झाड़ पर अटक जाय, उसके ऊपर बादल का एक शोख टुकड़ा अटका हुआ था।
मैं सोच रही थी भाभी के गाँव में मुझे अभी पांच दिन भी तो नहीं हुए थे लेकिन पांंच लड़कों का मजा , शुरुआत अजय ने की।
और मेरा पहले से भी थोड़ा थोड़ा मन तो था ही ऊपर से चंदा ने और आग लगा दी।
भाभी यहाँ आने के पहले से ही खूब चिढ़ातीं ,
"चल गुड्डी तेरा सोलवां सावन , मेरे गाँव में बरसेगा, वहां मेरे भाई लोग , और लौट के आएगी तो तेरा भाई , डर तो नहीं रही हो , सुन मेरी सलाह मान नीचे चुनमुनिया में वैसलीन लगाना अभी से शुरू कर दे ,... "
पर मैं असली ननद पलट के जवाब देती , " भाभी , आपके भाइयों में हिम्मत ही नहीं है, "
मुन्ने के होने पर जब सोहर शुरू होते तो जहाँ भाभियाँ इकठ्ठा होती, बस ,... मुन्ने की बधाई में मुन्ने की बुआ का दोगी , मैं तो आपन दोनों जोबना लुटाय दूंगी ,... " तो कोई भाभी पकड़ के दबाने मसलने लगती , बोलती लूटने लायक तो हो गए हैं ,... और बात सही भी थी , मेरी क्लास की लड़कियों से मेरे दोनों कबूतर , २१-२२ नहीं कम से कम २५ रहे होंगे ,... और यहाँ आयी तो गलती मेरी ही थी , इतना टाइट टॉप और छोटी सी स्कर्ट , ... भाभी के सारे जो गाँव के रिश्ते के भाई थे , अजय सुनील दिनेश रवि , सब को जानती थी मैं , चौथी लेकर आये थे तो खूब छेड़ा भी तो , और अजय तो उसके बाद भी चार पांच बार , दो तीन बार सुनील भी उसके साथ , ... अजय को तो मैं स्साला कह के ही बुलाती थी , भैया का साला तो मेरा ,...
फिर गाँव के मेले में , अब तो सिर्फ मेरी सहेलियां ही नहीं गाँव की सभी मुझे अजय का माल कहती थीं , फिर कल की रात जैसे उसने चार बार रगड़ा ,अब तो मैं कहीं भी कभी भी उसके साथ ,… और ऊपर से उसने बोल दिया , माल तो मैं उसका हूँ और रहूंगी लेकिन खबरदार जो मैंने किसी को मना किया तो।
फिर मना करना मेरे बस में हैं क्या , मैं सोच भी नहीं सकती थी मेरी चुनमुनिया , खुले आसमान के नीचे , अमराई में बरसते पानी के बीच आधी रात में , फटेगी , और फाड़ने वाला वही साला अजय , और एक बार नहीं दो बार ,... किसी तरह उसी का सहारा लेकर घर लौटी थी , और घर में कोई नहीं सिर्फ बसंती थी ,... मैं चीखती रही वो फाड़ता रहा ,
एकदम गझिन अमराई , दिन में न दिखाई दे और अँधेरी रात में तो और , शाम को भाभी अपनी भाभियों बहनो के साथ मुझे वहीँ झूला झुलाने ले गयीं थी और वहीँ उसी अमराई में आधी रात को उनके भाई ने , ...
वो छिनार चंदा ,
अगले दिन उसने कसम धरा दी और गन्ने के खेत में सुनील के साथ ,…
फिर सुनील ने जो शाम को अमराई में बुलाया , तो एक के साथ एक फ्री , वो साल्ला चूत चटोरा रवी भी , उस दिन तो दो बार ,वो भी चंदा के सामने।
और अगले दिन , पूरबी के यार ने नंबर लगा दिया। ,मुझे पक्का श्योर है , पूरबी ने उससे सेटिंग की थी , मुझे दिलवाने की। तभी वो नदी नहलाने ले गयी मुझे और वहां भी बाकी लड़कियों से दूर ,सूने में ,… लेकिन उसके यार को क्यों कुछ कहूँ यार , गाँव के सारे लौंडे , देख के मुझे तम्बू खड़ा हो जाता है उनका।
और सच बोलूं तो मुझे भी अच्छा लगता है , वो जोबन भी क्या आये जो आग न लगाए।
और आज लौट के आई तो दिनेश , क्या खूंटा है उसका , साला अबतका चूत परपरा रही है , बित्ते भर का रहा होगा। और मोटा भी कितना , सुनील से बीस ही रहा होगा।
अचानक मैं मुस्करा पड़ी , मुझे मम्मी की मां की बात याद आगयी। कितना खुल के छेड़ती है मुझे और कितना सपोर्ट भी करती हैं। और सबसे बड़ी बात उनकी बात सच भी निकलती है। जब मैं भाभी के साथ आई थी उसी समय ,जब सोहर हो रहा था और भाभी की भौजाइयां , बहने मुझे चिढ़ा रही थी और भाभी भी , हर सोहर में तो मुझे ही गालियां पड़ रही थीं।
सैंया जिन मांगो ननदी सेज का सिंगार रे , सैंया जिन मांगो ननदी सेज का सिंगार रे ,
अरे सैंया के बदले , अरे सैंया के बदले भैया दूंगी , अरे अजय को दूंगी , सुनील को दूंगी ,
चोदी चूत तोहार , अरे चोदी चूत तोहार रे , बुर खोल के मांगो ननदी जो मांगो सो दूंगी
भाभी ने छेड़ते हुये पूछा था - “क्यों ननद रानी, मेरा कौन सा भाई पसंद है, अजय, सुनील, रवी या दिनेश… किससे चुदवाओगी…”
मेरे कुछ बोलने के पहले ही भाभी की अम्मा बोल पड़ी-
“अरे किससे क्या… चारों से चुदवायेगी। मेरी ये प्यारी बिन्नो सबका मन रखेगी…” और यह कहते-कहते, मेरे गोरे, गुलाबी गालों पर चिकोटी काट ली थी उन्होने.
उस समय तो मैं शर्म से लाल हो गयी पर आज सोचती हूँ तो उनकी बात एकदम सही निकली। अजय ,सुनील, रवी ,दिनेश और पूरबी का यार राजीव भी तो , जहाँ यहाँ आने से पहले मैं कच्ची थी , शहर की छोरी , लड़कों का नाम लेने से ही शरमा जाती थी , अब तो एकदम।
और फिर दिन कितने हुए मुझे आये , पहली रात तो चंदा रानी ने सोने नहीं दिया , गाँव के लड़कों के किस्से सुना सुना के। और मन तो मैंने उसी रात बना लिया था की इस चंदा की दिखा दूंगी , मैं कम नहीं हूँ उससे।
और अगली रात तो मैं जिंदगी भर नहीं भूल सकती , जब आम के बाग़ में , बरसात में मेरी चिरैया ने पहली बार चारा घोंटा।
अजय भी न , सच में कुछ फुसला बहला के , कुछ जोर जबरदस्ती उसने मेरा चुदाई का डर निकाल दिया।
जब घर लौटी तो रात तो करीब करीब निकल ही गयी थी।
तीसरी रात रतजगे में बीती ,और वहां भी कितना मजा आया।
उस दिन से सारी भाभियों से और सबसे बढ़ कर भाभी की माँ से भी , आखिर हम सब ने एक दूसरे का सब कुछ देख लिया था , एकदम खुल के।
और कल की रात , चौथी रात मेरी जिंदगी की सबसे सुनहरी रात थी जब अजय ने , मेरे अजय ने , रात भर , चार बार , .... चार रातें गुजरी और पांच लड़के।
जब यहाँ आने की बात हो रही थीं तो भाभी मेरी खूब छेड़ती थीं , " कच्ची कली कचनार की " की और मैं भी उन्हें जवाब देती थी ," अरे भाभी मैं डरती नहीं हूँ ,देख लूंगी आपके भाइयों को भी। "
सोलहवां साल बस लगा ही लगा था , मैं अभी ग्यारहवें में पढ़ रही थी।
भाभी भी , कभी मेरे स्कर्ट के अंदर हाथ घुसा के कभी ,
शलवार के ऊपर से चुनमुनिया दबा के बोलती थीं ,
" अरी बिन्नो , जरूर देखना , बिना दिखाए , पकड़ाए , घुसाये वो छोड़ेंगे भी नहीं।
अब बहुत दिन तुमने इसे बचा के रख लिया ,अब फड़वाने की साइत आ गयी है। "
भाभी की बात एक दम सच निकली।
और उनसे भी बढ़कर भाभी की मम्मी की बात ,अजय ,सुनील ,रवी दिनेश कोई भी नहीं बचा।
मजा भी कितना आया , लेकिन उन्होंने एक बात और कही थी जिसे सोच के मैं काँप गयी।
कहीं वो भी तो सच नहीं निकलेगी।
जब से मैं आई थी ,बल्कि भैया की शादी में भी जब मुझे गारी दी जा रही थी ,
एकलौती बहन जो थी , ममेरी ही सही ,
रॉकी का नाम जोड़ के एक से एक खुल के , …
लेकिन अबकी तो पहले दिन से ही , और रॉकी भी अबकी कुछ ज्यादा ही ,
फिर पहली बार मैंने नोटिस किया उसका कितना बड़ा मोटा सा , …
बार बार चंपा भाभी मेरी भाभी से कहतीं थी ,
" बिन्नो अबकी कातिक में इसे जरूर ले आना , अबकी बिना रॉकी को इसपे चढ़ाएं छोड़ेंगे नहीं ,
आखिर वो भी तो इसी गाँव का मर्द है , उसका भी तो हक़ बनता है। "
लेकिन मेरी हालत कल रात खराब हो गयी , जब भाभी की मम्मी मुझसे बोलीं,
"अरे ई कुतिया गर्माती है कातिक में ,लेकिन तोहार एस जवान लड़की तो हरदमै गरम ,पनियाइल रहती हैं।
और रॉकी भी बारहों महीने तैयार रहता है तो कौनो जरूरी नाही की कातिक का इन्तजार करो , जब भी तोहार मन करे या तोहार भौजाई लोग जेह दिन चहिये ओहि दिन। "
और चंपा भाभी के लिए तो बस इशारा काफी था ,
उन्हें तो बस अब ग्रीन सिंगल मिल गया।
तो भाभी की माँ की ये बात सही हो गयी की मैं अजय, सुनील ,रवी और दिनेश सब के साथ ,
तो क्या ये भी बात सही हो जायेगी की इसी बार रॉकी के साथ भी ,…
सोच के ही मैं गिनगिना गयी ,
तभी ,...
आँगन में ,...
जब मैं उठी तो शाम ढलने लगी थी। बाहर निकलकर मैंने देखा तो भाभी लोग अभी भी नहीं आयी थीं। मैंने किचेन में जाकर एक गिलास खूब गरम चाय बनायी और अपने कमरे की चौखट पर बैठकर पीने लगी।
बादल लगभग छट गये थे, आसमान धुला-धुला सा लगा रहा था।
ढलते सूरज की किरणों से आकाश सुरमई सा हो रहा था, बादलों के किनारों से लगाकर इतने रंग बिखर रहे थे कि लगा रहा था कि प्रकृति में कितने रंग हैं।
जहां हम झूला झूल रहे थे, उस नीम के पेड़ की ओर मैंने देखा, जैसे किसी बच्चे की पतंग झाड़ पर अटक जाय, उसके ऊपर बादल का एक शोख टुकड़ा अटका हुआ था।
मैं सोच रही थी भाभी के गाँव में मुझे अभी पांच दिन भी तो नहीं हुए थे लेकिन पांंच लड़कों का मजा , शुरुआत अजय ने की।
और मेरा पहले से भी थोड़ा थोड़ा मन तो था ही ऊपर से चंदा ने और आग लगा दी।
भाभी यहाँ आने के पहले से ही खूब चिढ़ातीं ,
"चल गुड्डी तेरा सोलवां सावन , मेरे गाँव में बरसेगा, वहां मेरे भाई लोग , और लौट के आएगी तो तेरा भाई , डर तो नहीं रही हो , सुन मेरी सलाह मान नीचे चुनमुनिया में वैसलीन लगाना अभी से शुरू कर दे ,... "
पर मैं असली ननद पलट के जवाब देती , " भाभी , आपके भाइयों में हिम्मत ही नहीं है, "
मुन्ने के होने पर जब सोहर शुरू होते तो जहाँ भाभियाँ इकठ्ठा होती, बस ,... मुन्ने की बधाई में मुन्ने की बुआ का दोगी , मैं तो आपन दोनों जोबना लुटाय दूंगी ,... " तो कोई भाभी पकड़ के दबाने मसलने लगती , बोलती लूटने लायक तो हो गए हैं ,... और बात सही भी थी , मेरी क्लास की लड़कियों से मेरे दोनों कबूतर , २१-२२ नहीं कम से कम २५ रहे होंगे ,... और यहाँ आयी तो गलती मेरी ही थी , इतना टाइट टॉप और छोटी सी स्कर्ट , ... भाभी के सारे जो गाँव के रिश्ते के भाई थे , अजय सुनील दिनेश रवि , सब को जानती थी मैं , चौथी लेकर आये थे तो खूब छेड़ा भी तो , और अजय तो उसके बाद भी चार पांच बार , दो तीन बार सुनील भी उसके साथ , ... अजय को तो मैं स्साला कह के ही बुलाती थी , भैया का साला तो मेरा ,...
फिर गाँव के मेले में , अब तो सिर्फ मेरी सहेलियां ही नहीं गाँव की सभी मुझे अजय का माल कहती थीं , फिर कल की रात जैसे उसने चार बार रगड़ा ,अब तो मैं कहीं भी कभी भी उसके साथ ,… और ऊपर से उसने बोल दिया , माल तो मैं उसका हूँ और रहूंगी लेकिन खबरदार जो मैंने किसी को मना किया तो।
फिर मना करना मेरे बस में हैं क्या , मैं सोच भी नहीं सकती थी मेरी चुनमुनिया , खुले आसमान के नीचे , अमराई में बरसते पानी के बीच आधी रात में , फटेगी , और फाड़ने वाला वही साला अजय , और एक बार नहीं दो बार ,... किसी तरह उसी का सहारा लेकर घर लौटी थी , और घर में कोई नहीं सिर्फ बसंती थी ,... मैं चीखती रही वो फाड़ता रहा ,
एकदम गझिन अमराई , दिन में न दिखाई दे और अँधेरी रात में तो और , शाम को भाभी अपनी भाभियों बहनो के साथ मुझे वहीँ झूला झुलाने ले गयीं थी और वहीँ उसी अमराई में आधी रात को उनके भाई ने , ...
वो छिनार चंदा ,
अगले दिन उसने कसम धरा दी और गन्ने के खेत में सुनील के साथ ,…
फिर सुनील ने जो शाम को अमराई में बुलाया , तो एक के साथ एक फ्री , वो साल्ला चूत चटोरा रवी भी , उस दिन तो दो बार ,वो भी चंदा के सामने।
और अगले दिन , पूरबी के यार ने नंबर लगा दिया। ,मुझे पक्का श्योर है , पूरबी ने उससे सेटिंग की थी , मुझे दिलवाने की। तभी वो नदी नहलाने ले गयी मुझे और वहां भी बाकी लड़कियों से दूर ,सूने में ,… लेकिन उसके यार को क्यों कुछ कहूँ यार , गाँव के सारे लौंडे , देख के मुझे तम्बू खड़ा हो जाता है उनका।
और सच बोलूं तो मुझे भी अच्छा लगता है , वो जोबन भी क्या आये जो आग न लगाए।
और आज लौट के आई तो दिनेश , क्या खूंटा है उसका , साला अबतका चूत परपरा रही है , बित्ते भर का रहा होगा। और मोटा भी कितना , सुनील से बीस ही रहा होगा।
अचानक मैं मुस्करा पड़ी , मुझे मम्मी की मां की बात याद आगयी। कितना खुल के छेड़ती है मुझे और कितना सपोर्ट भी करती हैं। और सबसे बड़ी बात उनकी बात सच भी निकलती है। जब मैं भाभी के साथ आई थी उसी समय ,जब सोहर हो रहा था और भाभी की भौजाइयां , बहने मुझे चिढ़ा रही थी और भाभी भी , हर सोहर में तो मुझे ही गालियां पड़ रही थीं।
सैंया जिन मांगो ननदी सेज का सिंगार रे , सैंया जिन मांगो ननदी सेज का सिंगार रे ,
अरे सैंया के बदले , अरे सैंया के बदले भैया दूंगी , अरे अजय को दूंगी , सुनील को दूंगी ,
चोदी चूत तोहार , अरे चोदी चूत तोहार रे , बुर खोल के मांगो ननदी जो मांगो सो दूंगी
भाभी ने छेड़ते हुये पूछा था - “क्यों ननद रानी, मेरा कौन सा भाई पसंद है, अजय, सुनील, रवी या दिनेश… किससे चुदवाओगी…”
मेरे कुछ बोलने के पहले ही भाभी की अम्मा बोल पड़ी-
“अरे किससे क्या… चारों से चुदवायेगी। मेरी ये प्यारी बिन्नो सबका मन रखेगी…” और यह कहते-कहते, मेरे गोरे, गुलाबी गालों पर चिकोटी काट ली थी उन्होने.
उस समय तो मैं शर्म से लाल हो गयी पर आज सोचती हूँ तो उनकी बात एकदम सही निकली। अजय ,सुनील, रवी ,दिनेश और पूरबी का यार राजीव भी तो , जहाँ यहाँ आने से पहले मैं कच्ची थी , शहर की छोरी , लड़कों का नाम लेने से ही शरमा जाती थी , अब तो एकदम।
और फिर दिन कितने हुए मुझे आये , पहली रात तो चंदा रानी ने सोने नहीं दिया , गाँव के लड़कों के किस्से सुना सुना के। और मन तो मैंने उसी रात बना लिया था की इस चंदा की दिखा दूंगी , मैं कम नहीं हूँ उससे।
और अगली रात तो मैं जिंदगी भर नहीं भूल सकती , जब आम के बाग़ में , बरसात में मेरी चिरैया ने पहली बार चारा घोंटा।
अजय भी न , सच में कुछ फुसला बहला के , कुछ जोर जबरदस्ती उसने मेरा चुदाई का डर निकाल दिया।
जब घर लौटी तो रात तो करीब करीब निकल ही गयी थी।
तीसरी रात रतजगे में बीती ,और वहां भी कितना मजा आया।
उस दिन से सारी भाभियों से और सबसे बढ़ कर भाभी की माँ से भी , आखिर हम सब ने एक दूसरे का सब कुछ देख लिया था , एकदम खुल के।
और कल की रात , चौथी रात मेरी जिंदगी की सबसे सुनहरी रात थी जब अजय ने , मेरे अजय ने , रात भर , चार बार , .... चार रातें गुजरी और पांच लड़के।
जब यहाँ आने की बात हो रही थीं तो भाभी मेरी खूब छेड़ती थीं , " कच्ची कली कचनार की " की और मैं भी उन्हें जवाब देती थी ," अरे भाभी मैं डरती नहीं हूँ ,देख लूंगी आपके भाइयों को भी। "
सोलहवां साल बस लगा ही लगा था , मैं अभी ग्यारहवें में पढ़ रही थी।
भाभी भी , कभी मेरे स्कर्ट के अंदर हाथ घुसा के कभी ,
शलवार के ऊपर से चुनमुनिया दबा के बोलती थीं ,
" अरी बिन्नो , जरूर देखना , बिना दिखाए , पकड़ाए , घुसाये वो छोड़ेंगे भी नहीं।
अब बहुत दिन तुमने इसे बचा के रख लिया ,अब फड़वाने की साइत आ गयी है। "
भाभी की बात एक दम सच निकली।
और उनसे भी बढ़कर भाभी की मम्मी की बात ,अजय ,सुनील ,रवी दिनेश कोई भी नहीं बचा।
मजा भी कितना आया , लेकिन उन्होंने एक बात और कही थी जिसे सोच के मैं काँप गयी।
कहीं वो भी तो सच नहीं निकलेगी।
जब से मैं आई थी ,बल्कि भैया की शादी में भी जब मुझे गारी दी जा रही थी ,
एकलौती बहन जो थी , ममेरी ही सही ,
रॉकी का नाम जोड़ के एक से एक खुल के , …
लेकिन अबकी तो पहले दिन से ही , और रॉकी भी अबकी कुछ ज्यादा ही ,
फिर पहली बार मैंने नोटिस किया उसका कितना बड़ा मोटा सा , …
बार बार चंपा भाभी मेरी भाभी से कहतीं थी ,
" बिन्नो अबकी कातिक में इसे जरूर ले आना , अबकी बिना रॉकी को इसपे चढ़ाएं छोड़ेंगे नहीं ,
आखिर वो भी तो इसी गाँव का मर्द है , उसका भी तो हक़ बनता है। "
लेकिन मेरी हालत कल रात खराब हो गयी , जब भाभी की मम्मी मुझसे बोलीं,
"अरे ई कुतिया गर्माती है कातिक में ,लेकिन तोहार एस जवान लड़की तो हरदमै गरम ,पनियाइल रहती हैं।
और रॉकी भी बारहों महीने तैयार रहता है तो कौनो जरूरी नाही की कातिक का इन्तजार करो , जब भी तोहार मन करे या तोहार भौजाई लोग जेह दिन चहिये ओहि दिन। "
और चंपा भाभी के लिए तो बस इशारा काफी था ,
उन्हें तो बस अब ग्रीन सिंगल मिल गया।
तो भाभी की माँ की ये बात सही हो गयी की मैं अजय, सुनील ,रवी और दिनेश सब के साथ ,
तो क्या ये भी बात सही हो जायेगी की इसी बार रॉकी के साथ भी ,…
सोच के ही मैं गिनगिना गयी ,
तभी ,...