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भाग ९८
अगली परेशानी - ननदोई जी, पृष्ठ १०१६
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Awesome super duper gazab sexiest updatesभाग ७२ - मेरा भाई मेरी जान
किस्से भैया बहिनिया के
12,93,990
सुबह रेनू और कमल की गाँठ जुड़वानी है ,
देवर को ननद पर चढाने से बड़ा पुण्य काम भौजाई के लिए क्या होगा।
और अब बात अगले दिन की, मेरी सारी गाँव भर की नंदों ने मनाया, मेरा भाई मेरी जान,...
जिसके जिसके सगे भाई थे, छोटे बड़े, सब चढ़े अपनी बहनों पर, कच्ची कलियाँ हो, बिन ब्याही चुदी ननदें हो या ब्याही और गौना न हुआ, साजन के पहले भाइयों ने नंबर लगाया, कुछ ने सीधे, कुछ ने धोखे से कुछ ने जबरदस्ती, लेकिन सबका पानी बच्चेदानी तक गया,... और जिसके सगे नहीं थी, तो चचेरे, नहीं तो उसी पट्टी के जिसको वो राखी बांधती थी, सबके सामने भैया भैया बोलती थीं, उन सब के संग जम के चुदेया हुयी और वो भी बीच गाँव में सब भौजाइयों के सामने,... न कोई ननद बची न बिन ब्याहा देवर, सब ने होली के संग राखी मनाई,
अब आप ये मत समझिये की मैंअपनी सगी ननद और उनके सगे भैया की कबड्डी गोल कर गयी, वो तो सारी रात चली और मेरे सामने चली, ... और कित्ती मुश्किल से फंसी थी, स्साली ( वैसे तो सब ननदें साली होती है लेकिन मेरी ननद तो असली वाली थीं,... मेरा ममेरा भाई, उनकी छोटी बहन मेरी सबसे छोटी ननद जो छुटकी की समौरिया, उसकी झिल्ली ऐन होली के दिन फाड़ गया, और मैंने खुद देखा,... बाद में ननद के बिल में से ऊँगली निकाल के अपने भैया की मलाई भी उसे चटाई,... तो जिसकी बहन मेरे भैया से चुदी, तो मेरे भैया की स्साली ही तो हुयी, बड़ी ही सही,... तो उसकी साली तो मेरी साली )
चमेलिया और गुलबिया दोनों ने जुगत लगाई और मिश्राइन भाभी ने भी घी डाला,...
दोंनो छेदो में डबल फिस्टिंग, पिछवाड़े चमेलिया और गुलबिया की मुट्ठी घुसती, अगवाड़े मेरी दोनों,... और बस मेरी ननद हदस गयी, वो समझी सचमुच,... खास तौर से पिछवाड़े,... कुछ दर्द का डर, कुछ बिना बियाये, बुर के भोंसड़ा होने का डर,... बस मान गयी मेरी शर्त, अपने भैया की गोदी में बैठ के चुम्मा चाटी, मेरे साजन के खूंटे पे बैठने की बात,...
और मेरे सामने,... और वैसे भी ननद भौजाई में कौन सरम,... कौन सबके सामने,... मेरे ही सामने तो,...
हाँ बाद में जब उन्हें आसीर्बाद मिला की पांच दिन में ही वो गाभिन होंगी और नौ महीने में मुझे मामी बना देंगी,.... तो एक और बदमासी मेरे दिमांग में बताउंगी,... बताउंगी सब फुल डिटेल, और दो तीन पार्ट में और सिर्फ ननद की नहीं मेरी सास की भी,... लेकिन अभी बात तो गाँव की बगिया की और मेरी सारी ननदिया की,...
ननदों को हम लोगों ने दस बजे बुलाया था, और देवरों को साढ़े दस बजे, ननदों को छुटकी बगिया में और देवरों को बड़की बगिया में, दोनों सटी थीं, अगल बगल बस बीच में एक पतली सी पगडण्डी जहाँ से कभी कभार कोई भूला भटका ही जाता था, दोनों बगिया गझिन थी, दुपहरिया में अमावस,... लेकिन बड़की बगिया के बीच में एक थोड़ा खूला मैदान था,... जहाँ कल कबड्डी हुयी थी,...
और नंदों को दस बजे बुलाया गया था तो साढ़े नौ बजे के पहले हम सबो को पहुंचना ही था,
मुझे कुछ सोचना नहीं था क्या पहनूं, दूबे भाभी ने कल बता दिया था आसीर्बाद में होलिका माई की जो उतरन मिली थी,... उसके जबरदस्त असर के बारे में,... वो साड़ी पहनने के बाद, चाहे सास हो चाहे ननद चाहे देवर या कोई, बस एक नजर और उसके बाद वो सोच भी नहीं सकता था पहनने वाली की कोई बात टाले,... और कोई कहने की जरूरत भी नहीं होती जो सोचो वही अपने आप उसके मन में दिमाग में पत्थर की लकीर,
लेकिन असर और भी थे, होली तो मदन का त्योहार और होलिका माई रति का रूप, तो पहनने वाली और देखने वाली/वाले दोनों के मन में मन्मथ इस तरह मथता था की बस काम भावना ही,... फिर रिश्ता नाता कुछ नहीं बस जो सामने दिखे उस पे चढ़ जाने का मन,... लेकिन अच्छा हुआ दूबे भाभी ने उसको पहनने का गुन ढंग भी समझा दिया था,
सिर्फ वही उतरन की साड़ी, देह पे उसके बाद एक चिथड़ा भी नहीं बचना चाहिए, हर अंग पे उस माई के परसाद का स्पर्श होना चाहिए और फिर आधे घंटे के अंदर उसका असर पूरा हो जायेगा, जोबन एकदम पथरा जायँगे, जैसे प्रस्तर प्रतिमाओ में होते हैं,... निपल दोनों बरछी की नोक, योनि से हल्का हल्का मादक अलग ढंग की महक वाला स्त्राव निकलना शुरू करेगा, बस बूँद बूँद और उसकी महक जिस मरद की नाक में भी पड़ी तो बसंत में फूलों से भरी बगिया में जो
भौरे की हालत होती है, वही हालत होगी,... और बदमासी में कही वो एक बूँद किसी मर्द को चखा दिया, तो फिर तो खरगोश भी सांड़ हो जायेगा,... और अगर पहले से सांड़ हो तो दस सांड़ों की ताकत आ जायेगी,...
पर उस के साथ जरूरी है सुहागन का सोलह सिंगार, मांग में भरभराता, सिन्दूर, गले में मंगल सूत्र, आँखों में काजल, होंठों पे लाली हलकी नहीं पूरी और पैरों में घुंघरू वाले बिछुए,... कोहनी तक चूड़ियां, कुछ चुरमुर करें कुछ चटके,
देवर को भाभी पर चढ़ने में मजा तभी आता है, जब चढ़े हुए वो भौजाई के मांग में किसी और का सिन्दूर देखता है, गले में मंगल सूत्र दोनों उभारों के बीच दबा छुपा, तो वो और जोर से पूरी ताकत से धक्के लगाने लगता है , भाई के नाम का सिन्दूर और मंगल सूत्र देखकर खूंटा और कड़ा हो जाता है, ... खूब रगड़ रगड़ कर दरेर कर पेलता है और भाभी ये सब समझते हुए और जोर से नीचे से चूतड़ उठा उठा के देवर के धक्कों का जवाब देती है,
सच है,.. किसी और की कुर्सी में बैठने का मजा ही और है।
तो मैं आधे घंटे तक रगड़ रगड़ के नहाई सोलह सिंगार किया, उबटन लगाया और फिर एक बार होलिका माई को स्मरण करके उनका परसाद, उनकी उतरन वो खूब चटक लाल रंग वाली साड़ी पहनी, अंदर कुछ पहनने का सवाल नहीं था और हाँ जोबन पे ऐसे कस के बाँधा था की कुश्ती में भी न खुलें जब तक मैं न चाहूँ . और सिर्फ मैं ही नहीं जितनी मेरी जेठानियाँ थी ( और अकेली देवरानी चमेलिया, कल्लू हमरे कहार क दुल्हिन भी ). सब की सब उसी तरह से सिर्फ लाल साड़ी न ब्लाउज न साया और उभारों पर खूब कस के बंधी,...
एक झलक भी नहीं, आखिर आज देवरों को ललचाना भी तो था, और सबसे बढ़िया, जब चाहो तब खाली पतले से छल्ले की तरह कमर पर अटका, और देवर के ऊपर चढ़ के उसको चोद दो, ननद को चटा दो, शरबत पिला दो,...
मैं मोहिनी भौजी के साथ ही पहुंची, वो बगल में ही रहती थीं. हम दोनों सीधे छोटी बगिया में जहाँ ननदों को आना था अभी भी पंद्रह बीस मिनट बाकी था। लेकिन हम लोगों के पहले रमजनिया, आशा बहू और उनकी सहेली आ चुकी थीं. उसी के साथ साथ चमेलिया और गुलबिया भी आ गयीं,...
आशा बहू को बोला गया था अंतरा की सूई २०-२५ ले आने के लिए ( गाँव में ये सूई आशा बहू ही लगाती हैं , तीन महीने तक कितना भी कोई लड़की मलाई खाये, पेट नहीं फूलेगा १४ से ४४ तक सब उम्र वालों के लिए ठीक है )आशा बहू थी तो बगल के गाँव की लेकिन रिश्ते में तो बजाय २०-२५ के पूरे ४० लायी थीं साथ में उनकी सहेली भी जिससे आधे पौने घंटे में सब ननदों को ( लीला और नीलू को छोड़ के उन दोनों को तो तीन महीने में गौने जाना था, तो जायँ पेट फुला के, सास भी खुस हो गयी जब दुल्हिन उतारने के महीने भर के अंदर खट्टा मांगेगी, उलटी शुरू कर देगी ),...
रमजनिया पूरी तैयारी के साथ आयी थी,
आज उसे रहना नहीं था साढ़े ग्यारह बजे के करीब कहीं जाना था. जड़ी बूटियों के मामले में उस का कोई जोड़ नहीं था सौ पचास गाँव तक, दूबे भाभी ने उसे अच्छी तरह समझाया था, तो वो नंदों और देवरों के दोनों के लिए,... दो चार जड़ी बूटी बड़ी तगड़ी नंदों के लिए,... और दो चार देवरों के लिए,... ननदों वाली ठंडाई में मिला के देनी थी। उस का असर पंद्रह बीस मिनट में हो जाना था, ऐसी मस्ती चढ़ती,... सगे भाई पर चढ़ के चोद दे ऐसी आग लगेगी चूत में, और ठंडाई में भांग तो थी ही,...वैसे भी ननदों पर जो कल परसाद वाला भभूत मैंने लगाया था उसका असर पूरे २४ घंटा रहना ही था , काम के पूरी तरह सब बस में रहतीं।
और लड़कों वाला और खतरनाक था एक तो रमजानिया दूबे भाभी से ढेर सारे शिलाजीत की असली गोलियां, मजमे वाली नहीं, असली,... जो सच में बकरे को सांड़ बना दे और सांड़ को दस सांड़ की ताकत दे,... वो लड्डू ऐसी गोलियों में और रामजनिया अपनी बूटियां मिला रही थी, उसके दो असर थे एक तो फ्रीक्वेंसी,... जिसका मुश्किल से सुबह दूसरी बार सुबह जाके खड़ा हो वो भी छह बार के पहले न रुके,... दूसरे मन बहुत तेज करता सारी शरम झिझक खाने के आधे घंटे के अंदर ख़तम हो जाती।
थोड़ी देर में बाकी जेठानियाँ भी आ गयीं,... चननिया ने मना कर दिया था कुछ काम था, मंजू भाभी भी नहीं आ रही थी, रमजानिया भी थोड़ी देर में चली जाती लेकिन ६-७ और दस बजने के पहले आ गयीं।
Masti ki shuruatभाग ७२ - मेरा भाई मेरी जान
किस्से भैया बहिनिया के
12,93,990
सुबह रेनू और कमल की गाँठ जुड़वानी है ,
देवर को ननद पर चढाने से बड़ा पुण्य काम भौजाई के लिए क्या होगा।
और अब बात अगले दिन की, मेरी सारी गाँव भर की नंदों ने मनाया, मेरा भाई मेरी जान,...
जिसके जिसके सगे भाई थे, छोटे बड़े, सब चढ़े अपनी बहनों पर, कच्ची कलियाँ हो, बिन ब्याही चुदी ननदें हो या ब्याही और गौना न हुआ, साजन के पहले भाइयों ने नंबर लगाया, कुछ ने सीधे, कुछ ने धोखे से कुछ ने जबरदस्ती, लेकिन सबका पानी बच्चेदानी तक गया,... और जिसके सगे नहीं थी, तो चचेरे, नहीं तो उसी पट्टी के जिसको वो राखी बांधती थी, सबके सामने भैया भैया बोलती थीं, उन सब के संग जम के चुदेया हुयी और वो भी बीच गाँव में सब भौजाइयों के सामने,... न कोई ननद बची न बिन ब्याहा देवर, सब ने होली के संग राखी मनाई,
अब आप ये मत समझिये की मैंअपनी सगी ननद और उनके सगे भैया की कबड्डी गोल कर गयी, वो तो सारी रात चली और मेरे सामने चली, ... और कित्ती मुश्किल से फंसी थी, स्साली ( वैसे तो सब ननदें साली होती है लेकिन मेरी ननद तो असली वाली थीं,... मेरा ममेरा भाई, उनकी छोटी बहन मेरी सबसे छोटी ननद जो छुटकी की समौरिया, उसकी झिल्ली ऐन होली के दिन फाड़ गया, और मैंने खुद देखा,... बाद में ननद के बिल में से ऊँगली निकाल के अपने भैया की मलाई भी उसे चटाई,... तो जिसकी बहन मेरे भैया से चुदी, तो मेरे भैया की स्साली ही तो हुयी, बड़ी ही सही,... तो उसकी साली तो मेरी साली )
चमेलिया और गुलबिया दोनों ने जुगत लगाई और मिश्राइन भाभी ने भी घी डाला,...
दोंनो छेदो में डबल फिस्टिंग, पिछवाड़े चमेलिया और गुलबिया की मुट्ठी घुसती, अगवाड़े मेरी दोनों,... और बस मेरी ननद हदस गयी, वो समझी सचमुच,... खास तौर से पिछवाड़े,... कुछ दर्द का डर, कुछ बिना बियाये, बुर के भोंसड़ा होने का डर,... बस मान गयी मेरी शर्त, अपने भैया की गोदी में बैठ के चुम्मा चाटी, मेरे साजन के खूंटे पे बैठने की बात,...
और मेरे सामने,... और वैसे भी ननद भौजाई में कौन सरम,... कौन सबके सामने,... मेरे ही सामने तो,...
हाँ बाद में जब उन्हें आसीर्बाद मिला की पांच दिन में ही वो गाभिन होंगी और नौ महीने में मुझे मामी बना देंगी,.... तो एक और बदमासी मेरे दिमांग में बताउंगी,... बताउंगी सब फुल डिटेल, और दो तीन पार्ट में और सिर्फ ननद की नहीं मेरी सास की भी,... लेकिन अभी बात तो गाँव की बगिया की और मेरी सारी ननदिया की,...
ननदों को हम लोगों ने दस बजे बुलाया था, और देवरों को साढ़े दस बजे, ननदों को छुटकी बगिया में और देवरों को बड़की बगिया में, दोनों सटी थीं, अगल बगल बस बीच में एक पतली सी पगडण्डी जहाँ से कभी कभार कोई भूला भटका ही जाता था, दोनों बगिया गझिन थी, दुपहरिया में अमावस,... लेकिन बड़की बगिया के बीच में एक थोड़ा खूला मैदान था,... जहाँ कल कबड्डी हुयी थी,...
और नंदों को दस बजे बुलाया गया था तो साढ़े नौ बजे के पहले हम सबो को पहुंचना ही था,
मुझे कुछ सोचना नहीं था क्या पहनूं, दूबे भाभी ने कल बता दिया था आसीर्बाद में होलिका माई की जो उतरन मिली थी,... उसके जबरदस्त असर के बारे में,... वो साड़ी पहनने के बाद, चाहे सास हो चाहे ननद चाहे देवर या कोई, बस एक नजर और उसके बाद वो सोच भी नहीं सकता था पहनने वाली की कोई बात टाले,... और कोई कहने की जरूरत भी नहीं होती जो सोचो वही अपने आप उसके मन में दिमाग में पत्थर की लकीर,
लेकिन असर और भी थे, होली तो मदन का त्योहार और होलिका माई रति का रूप, तो पहनने वाली और देखने वाली/वाले दोनों के मन में मन्मथ इस तरह मथता था की बस काम भावना ही,... फिर रिश्ता नाता कुछ नहीं बस जो सामने दिखे उस पे चढ़ जाने का मन,... लेकिन अच्छा हुआ दूबे भाभी ने उसको पहनने का गुन ढंग भी समझा दिया था,
सिर्फ वही उतरन की साड़ी, देह पे उसके बाद एक चिथड़ा भी नहीं बचना चाहिए, हर अंग पे उस माई के परसाद का स्पर्श होना चाहिए और फिर आधे घंटे के अंदर उसका असर पूरा हो जायेगा, जोबन एकदम पथरा जायँगे, जैसे प्रस्तर प्रतिमाओ में होते हैं,... निपल दोनों बरछी की नोक, योनि से हल्का हल्का मादक अलग ढंग की महक वाला स्त्राव निकलना शुरू करेगा, बस बूँद बूँद और उसकी महक जिस मरद की नाक में भी पड़ी तो बसंत में फूलों से भरी बगिया में जो
भौरे की हालत होती है, वही हालत होगी,... और बदमासी में कही वो एक बूँद किसी मर्द को चखा दिया, तो फिर तो खरगोश भी सांड़ हो जायेगा,... और अगर पहले से सांड़ हो तो दस सांड़ों की ताकत आ जायेगी,...
पर उस के साथ जरूरी है सुहागन का सोलह सिंगार, मांग में भरभराता, सिन्दूर, गले में मंगल सूत्र, आँखों में काजल, होंठों पे लाली हलकी नहीं पूरी और पैरों में घुंघरू वाले बिछुए,... कोहनी तक चूड़ियां, कुछ चुरमुर करें कुछ चटके,
देवर को भाभी पर चढ़ने में मजा तभी आता है, जब चढ़े हुए वो भौजाई के मांग में किसी और का सिन्दूर देखता है, गले में मंगल सूत्र दोनों उभारों के बीच दबा छुपा, तो वो और जोर से पूरी ताकत से धक्के लगाने लगता है , भाई के नाम का सिन्दूर और मंगल सूत्र देखकर खूंटा और कड़ा हो जाता है, ... खूब रगड़ रगड़ कर दरेर कर पेलता है और भाभी ये सब समझते हुए और जोर से नीचे से चूतड़ उठा उठा के देवर के धक्कों का जवाब देती है,
सच है,.. किसी और की कुर्सी में बैठने का मजा ही और है।
तो मैं आधे घंटे तक रगड़ रगड़ के नहाई सोलह सिंगार किया, उबटन लगाया और फिर एक बार होलिका माई को स्मरण करके उनका परसाद, उनकी उतरन वो खूब चटक लाल रंग वाली साड़ी पहनी, अंदर कुछ पहनने का सवाल नहीं था और हाँ जोबन पे ऐसे कस के बाँधा था की कुश्ती में भी न खुलें जब तक मैं न चाहूँ . और सिर्फ मैं ही नहीं जितनी मेरी जेठानियाँ थी ( और अकेली देवरानी चमेलिया, कल्लू हमरे कहार क दुल्हिन भी ). सब की सब उसी तरह से सिर्फ लाल साड़ी न ब्लाउज न साया और उभारों पर खूब कस के बंधी,...
एक झलक भी नहीं, आखिर आज देवरों को ललचाना भी तो था, और सबसे बढ़िया, जब चाहो तब खाली पतले से छल्ले की तरह कमर पर अटका, और देवर के ऊपर चढ़ के उसको चोद दो, ननद को चटा दो, शरबत पिला दो,...
मैं मोहिनी भौजी के साथ ही पहुंची, वो बगल में ही रहती थीं. हम दोनों सीधे छोटी बगिया में जहाँ ननदों को आना था अभी भी पंद्रह बीस मिनट बाकी था। लेकिन हम लोगों के पहले रमजनिया, आशा बहू और उनकी सहेली आ चुकी थीं. उसी के साथ साथ चमेलिया और गुलबिया भी आ गयीं,...
आशा बहू को बोला गया था अंतरा की सूई २०-२५ ले आने के लिए ( गाँव में ये सूई आशा बहू ही लगाती हैं , तीन महीने तक कितना भी कोई लड़की मलाई खाये, पेट नहीं फूलेगा १४ से ४४ तक सब उम्र वालों के लिए ठीक है )आशा बहू थी तो बगल के गाँव की लेकिन रिश्ते में तो बजाय २०-२५ के पूरे ४० लायी थीं साथ में उनकी सहेली भी जिससे आधे पौने घंटे में सब ननदों को ( लीला और नीलू को छोड़ के उन दोनों को तो तीन महीने में गौने जाना था, तो जायँ पेट फुला के, सास भी खुस हो गयी जब दुल्हिन उतारने के महीने भर के अंदर खट्टा मांगेगी, उलटी शुरू कर देगी ),...
रमजनिया पूरी तैयारी के साथ आयी थी,
आज उसे रहना नहीं था साढ़े ग्यारह बजे के करीब कहीं जाना था. जड़ी बूटियों के मामले में उस का कोई जोड़ नहीं था सौ पचास गाँव तक, दूबे भाभी ने उसे अच्छी तरह समझाया था, तो वो नंदों और देवरों के दोनों के लिए,... दो चार जड़ी बूटी बड़ी तगड़ी नंदों के लिए,... और दो चार देवरों के लिए,... ननदों वाली ठंडाई में मिला के देनी थी। उस का असर पंद्रह बीस मिनट में हो जाना था, ऐसी मस्ती चढ़ती,... सगे भाई पर चढ़ के चोद दे ऐसी आग लगेगी चूत में, और ठंडाई में भांग तो थी ही,...वैसे भी ननदों पर जो कल परसाद वाला भभूत मैंने लगाया था उसका असर पूरे २४ घंटा रहना ही था , काम के पूरी तरह सब बस में रहतीं।
और लड़कों वाला और खतरनाक था एक तो रमजानिया दूबे भाभी से ढेर सारे शिलाजीत की असली गोलियां, मजमे वाली नहीं, असली,... जो सच में बकरे को सांड़ बना दे और सांड़ को दस सांड़ की ताकत दे,... वो लड्डू ऐसी गोलियों में और रामजनिया अपनी बूटियां मिला रही थी, उसके दो असर थे एक तो फ्रीक्वेंसी,... जिसका मुश्किल से सुबह दूसरी बार सुबह जाके खड़ा हो वो भी छह बार के पहले न रुके,... दूसरे मन बहुत तेज करता सारी शरम झिझक खाने के आधे घंटे के अंदर ख़तम हो जाती।
थोड़ी देर में बाकी जेठानियाँ भी आ गयीं,... चननिया ने मना कर दिया था कुछ काम था, मंजू भाभी भी नहीं आ रही थी, रमजानिया भी थोड़ी देर में चली जाती लेकिन ६-७ और दस बजने के पहले आ गयीं।
सब आपकी संगत सोहबत का असर है और सिखाने पढ़ाने का,
शृंगार का उत्तेजनात्मक वर्णनसिर्फ वही उतरन की साड़ी, देह पे उसके बाद एक चिथड़ा भी नहीं बचना चाहिए, हर अंग पे उस माई के परसाद का स्पर्श होना चाहिए और फिर आधे घंटे के अंदर उसका असर पूरा हो जायेगा, जोबन एकदम पथरा जायँगे, जैसे प्रस्तर प्रतिमाओ में होते हैं,... निपल दोनों बरछी की नोक, योनि से हल्का हल्का मादक अलग ढंग की महक वाला स्त्राव निकलना शुरू करेगा, बस बूँद बूँद और उसकी महक जिस मरद की नाक में भी पड़ी तो बसंत में फूलों से भरी बगिया में जो
भौरे की हालत होती है, वही हालत होगी,... और बदमासी में कही वो एक बूँद किसी मर्द को चखा दिया, तो फिर तो खरगोश भी सांड़ हो जायेगा,... और अगर पहले से सांड़ हो तो दस सांड़ों की ताकत आ जायेगी,...
पर उस के साथ जरूरी है सुहागन का सोलह सिंगार, मांग में भरभराता, सिन्दूर, गले में मंगल सूत्र, आँखों में काजल, होंठों पे लाली हलकी नहीं पूरी और पैरों में घुंघरू वाले बिछुए,... कोहनी तक चूड़ियां, कुछ चुरमुर करें कुछ चटके,