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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

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Bahut mast ragd
एक बार और

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रेनू अब कस कस के मेरी बुर चूस रही थी, मेरी जाँघे फैली जा रही थीं, मलाई कब की साफ़ हो गयी थी सीधे मेरी बुर से ननद के पेट में , और ये देख के कमल का खूंटा फनफना रहा था , स्साले का सच में बहुत मोटा था कोई भी लड़की सुपाड़ा देख के ही भड़क जाए, और गांड मारने के तो नाम पर ही ,

मेरी उँगलियाँ उसी सुपाड़े पर टहल रही थीं, खूब मोटा, किसी तरह गांड में घुस भी गया तो जब छल्ला पार करेगा तो सच में जान निकल जायेगी, लेकिन आज मोटे लौंड़े ने अपनी बहन रेनू की गांड मारी,

एकदम कच्ची कली, कल तक काले तम्बू में कैद, हिना की गांड मारी,
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और वो भी दोनों बार सिर्फ मेरे कहने पर, दोनों ही चिंचियाती रही, रोती रही कलपती रहीं गांड पटकती रही लेकिन मैंने कमल को बोल दिया था एकदम जड़ तक गांड तो कोई भी मार लेगा, गांड का भोंसड़ा बना के छोड़ना, हिना तो घंटे भर तक जमीन पे चूतड़ नहीं रख पा रही थी।

खुश होकर उस सुपाड़े को मैंने पूरा मुंह खोल के ले लिया।
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लेकिन रेनू छिनार सब देख रही थी, बोली, " अरे भैया, भौजी को आधे तिहे में मजा नहीं आता, एंकर मुंह , भौजी के बुर से कम मीठ न बा चोदा कस के,

पूरा तो नहीं लेकिन आधा लंड उसने मेरे मुंह में धीरे धीरे कर के सरका दिया,

आज कमल ने सब बातें मेरी मानी थी और अब उसे अपनी बहन को गाँव में सबके समाने भरौटी चमरौटी वालियों के सामने भी एकदम अपनी रखैल बना के रखना था, मैं बहुत प्यार से अपने देवर क लंड चूस रही थी, कभी जीभ को धीरे धीरे सुपाड़े पर घुमाती तो कभी दोनों होंठों से दबा के कस कस के चूसती, मुंह मेरा जबरदस्त खुला हुआ था लेकिन मेरी लार खूंटे को गीला किये हुए थी,
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उधर उसकी बहन छिनार, कभी दोनों फांको को एक साथ चूसती तो कभी जीभ से ही मेरी बुर चोद चोद के मेरा बुरा हाल कर रही थी , मन झड़ने के किनारे पहुँच जाती तो वो रुक जाती, और मैं उसे गरिया भी नहीं सकती थी, उसके भैया का लंड मेरे मुंह में घुसा था।

रेनू ने अपनी मन की बात कह दी, " भौजी यही निहुर के "

और मैं एक चौड़े से आम के पेड़ को पकड़ के निहुर गयी,

हवा तेज चल रही थी, लग रहा था कहीं आंधी न आये, आंधी कितनी भी तेज आये महुआ और टिकोरे बिनने का जो मजा है, सूरज की दो चार किरणे जो अब तक आ रही थीं वो भी अब जमीन से सरक कर पेड़ों के तने पर पड़ रही थीं,

लेकिन अँधेरे का चोदने वालों पर कोई फरक नहीं पड़ता, अमावस की रात तो मिलने वालों के लिए सबसे अच्छी होती है और घर में भी रजाई के अंदर मरद निशाना साध लेता है, कमल बड़ा खिलाड़ी, लेकिन आज असली देवर, भौजाई को तंग करने पे जुटा था और उसकी राय देनेवाली उसकी रखैल बहन,

रेनू ने जिस तरह से चाटा था मेरी फुद्दी फुदक रही थी। बस मन कर रहा था कमल पेल दे, लेकिन वो अपने कड़े मोटे सुपाड़े को बस बार मेरी बुर के होंठों पे रगड़ रहा था, अब मुझसे नहीं रहा गया,

" स्साले तेरी बहन महतारी को गदहों से चुदवाउ, जब चोदना नहीं था, तो काहें " लेकिन फिर उसकी रखैल बोल उठी,

" अरे भौजी, आपके देवर सोच रहे हैं पता नहीं दुबारा कब, "

वो मुझसे कबुलवाना चाह रही थी, और गाली सुनना चाह थी,

" देवर और भौजी क बीच में ननद क कौन काम है, देवर भौजी क साल भर क फागुन होता है ये भी नहीं मालूम तोहें लेकिन रोज हरे देवर क रखैल क गांड से सडका टपकता रहना चाहिए "

" एकदम भौजी "

कह के कमलवा ने वो धक्का मारा की मेरी चीख निकल गयी। वो तो आम के पेड़ को मैं कस के पकडे थी, और जांगर था देह में वरना भहरा पड़ती।
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और अब कमल का एक हाथ मेरे जोबन पे क्या कस के दबोचे हुए था और फिर दुबारा पहले से भी करारा धक्का, बुर की दीवालों को रगड़ते हुए जब देवर का मोटा सुपाड़ा अंदर घुसा चीख भी निकली और मजा भी आया।

खूब मोटा रगड़ते दरेरते अंदर घुस रहा था। और अब वो दोनों हाथ से मोटी मोटी चूँचियों को कस कस के निचोड़ रहा था। बहुत ताकत थी कमल की देह मे।


और अब मुझे भी मस्ती की सूझी, कमल ने जब पूरा बाहर निकाल कर एक धक्के में बच्चेदानी तक मारा मेरी बच्चेदानी हिल गयी। पूरा खूंटा जड़ तक अंदर था, बस मैंने धीरे धीरे बुर को सिकोड़ना शुरू किया उस मोटे मूसल पे, और फिर हलके से ढीली करके फिर एक बार में ही कस के दबोच लिया, बिना अंदर बाहर किये चुदाई का मजा मेरे देवर को आ रहा था।

" ओह भौजी ओह, बहुत मजा आ रहा है आज तक अइसन मजा "कमल बोल रहा था



" अरे तो हमरे नयकी भौजी क चोद भी तो पहली बार रहे हो भैया " रेनू ने छेड़ा कमल को।
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और अब कमल पूरी ताकत से चोद रहा था, लेकिन ननद को झूठ मूठ का छिनार थोड़े ही कहते हैं, मैं एकदम झड़ने के कगार पर थी।

रेनू ने कमल के कान में कुछ फुसफुसाया, और जब तक मैं समझूं रेनू ने खुद अपने हाथ से पकड़ कर अपने भैया का खूंटा मेरी बिल से बाहर कर के मेरी पिछवाड़े की दरार पर सटा दिया,


" अरे छिनार एक बार झड़ जाने देती, जब चूस रही थी तब नहीं झड़ने दी और जब मेरा प्यारा देवर पेल रहा था , एकदम झड़ने के कगार,...


लेकिन मैं चीखी कमल ने ढकेल दिया था पूरी ताकत से मुट्ठी ऐसा मोटा सुपाड़ा पिछवाड़े अंड़स गया था,
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" भौजी ढीली करो " रेनू मुझे चिढ़ा रही थी जैसे मैं उसे समझा रही थी जब कमल ने पहली बार उसकी गांड में अपना खूंटा धँसाया था एकदम मेरी ही आवाज मे।

" स्साली छिनार तनी सांस तो लेने दो " मैं उससे बोली,

और मेरा देवर कम से कम उसने मेरी बात सुनी और जो मैंने समझाया था गांड मारते समय भी बुर रानी का ख्याल करना चाहिए वो सीख उसने अच्छी तरह सीख ली थी। एक हथेली वहां पर सहला रही थी, रगड़ रही कभी दो उँगलियाँ एक साथ बुर में अंदर बाहर एकदम लंड की तरह

और जब मेरे पिछवाड़े को देवर के मोटे सुपाड़े की आदत पड़ गयी तो धीरे धीरे पीठ सहलाते उसने ठेलना शुरू किय। मैं रेनू या हिना की तरह पहली बार तो पिछवाड़े नहीं घोंट रही थी इसलिए वो छल्ला मैंने ढीला कर रखा था,

गप्प

कमल का सुपाड़ा छल्ला पार कर गया।
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लेकिन भौजी हो और देवर के साथ छेड़खानी न करे, मैंने अब जब छल्ला पार हो गया था तो आधे घुसे खूंटे पे उसे कस के भींच लिय। लेकिन कमल भी कम शैतान नहीं था, पीछे का बदला उसने आगे से लिया एक साथ तीन उंगलिया पेल कर,

थोड़ी देर में ही मैं आगे पीछे दोनों छेदो का मजा ले रही थी। दस पंद्रह मिनट की जबरदस्त रगड़ाई के बाद पहले मैं ही झड़ी लेकिन उसके साथ ही साथ कमल भी। बड़ी देर तक वो अंदर ठुसे रहा फिर धीरे धीरे खूंटा बाहर निकाला, टप टप टप टप जैसे महुआ चुए, मलाई मेरे पिछवाड़े से टपक रही थी।
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पेड़ का सहारा पकड़ के मैं सीधी हुयी, शाम ढल चुकी थी। धीरे धीरे हम तीनो बाग़ से बाहर निकले
Bahut mast ragdai hui hai
 

jjjj1234

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मस्ती बाग़ में -ननद और देवर संग

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रेनू के होठ मेरे होंठों से हटे तो कमल के होठ मेरे होंठों से चिपक गए, और रेनू के होंठ मेरे निप्स को चूस रहे थे,

बड़ी ताकत थी कमल के हाथों में,... मेरे उभारों पर झरते हुए महुआ के फूलों को उसने इस तरह मसला की जैसे वो शराब बन के मेरे शराब के दोनों प्यालों में,और पीने वाला मेरा देवर तो था ही, कमल,... आज उसकी मैंने बरसों की साध पूरी की थी लेकिन उसने भी तो मेरी बात मानी, जो मैंने उसकी माँ से वादा किया था वो पूरा हुआ,...

और तभी क्या जोरदार धक्का, जैसे किसी ने पेट पर घूंसा मारा,...
और मैंने बहुत जोर से गरियाया,

"अपनी महतारी का भोंसड़ा चोद चोद के तुझे स्साले भोंसड़ा चोदने की आदत पड़ गयी है, ... ऐसी जल्दी क्या थी,..."
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पर उसे तो जल्दी थी, उसने मुझे दुहरा कर दिया और क्या रगड़ रगड़ के,...
मैं टप टप चुये सफ़ेद मोती के दानों ऐसे महुए के बिस्तर पे और मेरी देह पे जो महुए के फूल उसकी बहिनिया ने रगड़े थे, रखे थे हम दोनों की देह से चूर चूर हो के पिस के, साथ में आम के बौर की महक, हलकी हलकी चलती सांझ की फगुनहट से भरी हवा,

और मेरे ऊपर चढ़ा मेरा देवर, बगल में उसकी बहन, मेरी ननद


और उसकी बहन ने भी, ...

अरे भौजी तोहें देवर की मलाई चखा दूँ, जबतक दोनों मुंह में न जाए,... और मेरे मुंह में अपनी आज पहली बार चुदी अपनी चुत रगड़ रगड़ के, कमल की सब मलाई मेरे मुंह में,.. मैं क्यों छोड़ देती। मेरे देवर की रबड़ी मलाई,.. और साथ में ननद की चूत चूसने का सुख,...


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कभी जीभ अंदर कर के कभी रगड़ रगड़ के,


उधर कमल का हर धक्क्का सीधे बच्चेदानी में लग रहा था, स्साला शुरू से ही चौथे गियर में था,... आधे घंटे के बाद ही वो झडा तबतक मैं और रेनू दो बार झड़ चुके थे.



मैंने उठने की कोशिश की, हे कमल चलने दे अब शाम हो गयी है, बाकी लोग भी जा रहे हैं।

ढलते सूरज की किरणे, आम और महुआ के पत्ते से छन छन कर जमीन पर आ रही थी, पिघलते सोने की तरह। बाहर बगीचे से नंदों, भौजियों की आवाजें अब धीमी पड़ती जा रही थीं, लेकिन एक बार के बाद कौन देवर भौजाई को छोड़ता है और कौन भौजाई का ही मन भरता है, और यहाँ तो रेनू ऐसी छिनार ननद भी थी जो पहली बार अपने भाई से चुदी थी लेकिन लग उसकी जन्म जन्म की रखैल की तरह थी। अपने भाई की ओर से वही बोली,,

" भौजी, बस थोड़ी देर और, और कौन आप अकेली हैं आपकी ननद और देवर भी तो हैं "
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उसके हाथ मेरे जोबन पे टहल रहे थे।


" अरे नहीं मना थोड़ी कर रही हूँ, आज नहीं तो फिर कभी, देख तेरे भाई ने कितना कीचड़ कर दिया है, चोदल बुर फिर से चोदने में मजा थोड़े ही आता है, "

रेनू महा छिनार धीरे से मेरे कान में बोली

" अरे तो भौजी पिछवाड़े क छेद, हमार भाई बहुत मस्त गांड मारता है "


मैंने खींच के उसे चूम लिया और उसके भाई को सुनाते बोली,


" ये छिनार तोहार कुल चालबाजी हम समझ रहे हैं सोच रही की देवर क कुल मलाई यहीं ख़तम हो जाए और रात में टांग फैलाये के सोवा, चोदवावे क न पड़े, "
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" अरे नाही भौजी, चार साल से टरका रही थी जब से कच्ची अमिया आना शुरू हुयी थी, अब ये तो आज आपका आसीर्बाद था, एक मिनट नहीं सोने दूंगा, आपकी ननद को चोद चोद के, गौने की रात है आज उसकी, "

कमल ने पक्का वादा किया। वैसे तो वायदे लोग करते रहते हैं लेकिन मेरी ससुराल में जब कोई मरद अपनी बहिन चोदने का वायदा करता है तो मैं जरूर मान जाती हूँ।

और मैं मान गयी, हलके हलके मैं कमल का मूसल छू रही थी, सहला रही थी, अभी भी थोड़ा थका, थोड़ा सोया सा, फिर मैंने रेनू को काम पे लगाया,

" भैया क दुलारी, चल अपने भैया क मलाई चाट चूट के साफ़ करो, एको बूँद बची रह जाए, कौन भौजाई नहीं चाहेगी की उसकी ननद उसकी अपने भौजाई क बुर से अपने भैया क मलाई भैया के सामने साफ़ करे, "

रेनू चाट चूस भी रही थी, छेड भी रही थी, चिढ़ा भी रही थी,
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" केकरा मूसल यह में अंदर गया था पहले तोहरे मायके में भौजी " ऊँगली कर के कमल की मलाई निकाल के मुझे दिखा के चाटते रेनू ने चिढ़ाया,

" छिनार, तोहार भैया गौना करा के लाये थे, ओहि रात, "

मेरी बात पूरी भी नहीं हुयी थी की खिलखिलाती रेनू मेरी बुर में कस कस के दो ऊँगली घुमाती बोली,

" अरे हमको, अरे पूरे गाँव को मालूम है नयकी भौजी इतने जोर से चोकरी थीं, जब उनकी फटी थी, अरे हमरे गाँव क मरदन क अलावा केकर ताकत बा जउन हमारी नयकी भौजी क अस सुंदर चिक्क्न बुर क झिल्ली फाड़े, भौजी क महतारी यही लिए तो भेजी थी, सोच समझ के पता कई के। "
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बात रेनू की एकदम सही थी।

इन्होने सिर्फ मेरी नहीं मेरी दोनों छोटी बहनों की झिल्ली फाड़ी और छुटकी की एक सहेली, यहाँ तक की मेरे ममेरे भाई के पिछवाड़े का भी नेवान उन्होंने ही किया। और हम सब बहनों के पिछवाड़े का भी सिवाय छुटकी के, जो उन्होंने मेरे ननोदयी को वादा कर दिया था,

लड़के एक तो अपनी माँ बहिन की गारी सुन के गरमाते हैं दूसरे दो लड़कियों की मस्ती देख के,

रेनू अब कस कस के मेरी बुर चूस रही थी, मेरी जाँघे फैली जा रही थीं, मलाई कब की साफ़ हो गयी थी सीधे मेरी बुर से ननद के पेट में , और ये देख के कमल का खूंटा फनफना रहा था , स्साले का सच में बहुत मोटा था कोई भी लड़की सुपाड़ा देख के ही भड़क जाए, और गांड मारने के तो नाम पर ही ,
Bhabhi akele me hum to samuhik ka intzar kar rahe
 

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रेनू के होठ मेरे होंठों से हटे तो कमल के होठ मेरे होंठों से चिपक गए, और रेनू के होंठ मेरे निप्स को चूस रहे थे,

बड़ी ताकत थी कमल के हाथों में,... मेरे उभारों पर झरते हुए महुआ के फूलों को उसने इस तरह मसला की जैसे वो शराब बन के मेरे शराब के दोनों प्यालों में,और पीने वाला मेरा देवर तो था ही, कमल,... आज उसकी मैंने बरसों की साध पूरी की थी लेकिन उसने भी तो मेरी बात मानी, जो मैंने उसकी माँ से वादा किया था वो पूरा हुआ,...

और तभी क्या जोरदार धक्का, जैसे किसी ने पेट पर घूंसा मारा,...
और मैंने बहुत जोर से गरियाया,

"अपनी महतारी का भोंसड़ा चोद चोद के तुझे स्साले भोंसड़ा चोदने की आदत पड़ गयी है, ... ऐसी जल्दी क्या थी,..."
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पर उसे तो जल्दी थी, उसने मुझे दुहरा कर दिया और क्या रगड़ रगड़ के,...
मैं टप टप चुये सफ़ेद मोती के दानों ऐसे महुए के बिस्तर पे और मेरी देह पे जो महुए के फूल उसकी बहिनिया ने रगड़े थे, रखे थे हम दोनों की देह से चूर चूर हो के पिस के, साथ में आम के बौर की महक, हलकी हलकी चलती सांझ की फगुनहट से भरी हवा,

और मेरे ऊपर चढ़ा मेरा देवर, बगल में उसकी बहन, मेरी ननद


और उसकी बहन ने भी, ...

अरे भौजी तोहें देवर की मलाई चखा दूँ, जबतक दोनों मुंह में न जाए,... और मेरे मुंह में अपनी आज पहली बार चुदी अपनी चुत रगड़ रगड़ के, कमल की सब मलाई मेरे मुंह में,.. मैं क्यों छोड़ देती। मेरे देवर की रबड़ी मलाई,.. और साथ में ननद की चूत चूसने का सुख,...


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कभी जीभ अंदर कर के कभी रगड़ रगड़ के,


उधर कमल का हर धक्क्का सीधे बच्चेदानी में लग रहा था, स्साला शुरू से ही चौथे गियर में था,... आधे घंटे के बाद ही वो झडा तबतक मैं और रेनू दो बार झड़ चुके थे.



मैंने उठने की कोशिश की, हे कमल चलने दे अब शाम हो गयी है, बाकी लोग भी जा रहे हैं।

ढलते सूरज की किरणे, आम और महुआ के पत्ते से छन छन कर जमीन पर आ रही थी, पिघलते सोने की तरह। बाहर बगीचे से नंदों, भौजियों की आवाजें अब धीमी पड़ती जा रही थीं, लेकिन एक बार के बाद कौन देवर भौजाई को छोड़ता है और कौन भौजाई का ही मन भरता है, और यहाँ तो रेनू ऐसी छिनार ननद भी थी जो पहली बार अपने भाई से चुदी थी लेकिन लग उसकी जन्म जन्म की रखैल की तरह थी। अपने भाई की ओर से वही बोली,,

" भौजी, बस थोड़ी देर और, और कौन आप अकेली हैं आपकी ननद और देवर भी तो हैं "
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उसके हाथ मेरे जोबन पे टहल रहे थे।


" अरे नहीं मना थोड़ी कर रही हूँ, आज नहीं तो फिर कभी, देख तेरे भाई ने कितना कीचड़ कर दिया है, चोदल बुर फिर से चोदने में मजा थोड़े ही आता है, "

रेनू महा छिनार धीरे से मेरे कान में बोली

" अरे तो भौजी पिछवाड़े क छेद, हमार भाई बहुत मस्त गांड मारता है "


मैंने खींच के उसे चूम लिया और उसके भाई को सुनाते बोली,


" ये छिनार तोहार कुल चालबाजी हम समझ रहे हैं सोच रही की देवर क कुल मलाई यहीं ख़तम हो जाए और रात में टांग फैलाये के सोवा, चोदवावे क न पड़े, "
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" अरे नाही भौजी, चार साल से टरका रही थी जब से कच्ची अमिया आना शुरू हुयी थी, अब ये तो आज आपका आसीर्बाद था, एक मिनट नहीं सोने दूंगा, आपकी ननद को चोद चोद के, गौने की रात है आज उसकी, "

कमल ने पक्का वादा किया। वैसे तो वायदे लोग करते रहते हैं लेकिन मेरी ससुराल में जब कोई मरद अपनी बहिन चोदने का वायदा करता है तो मैं जरूर मान जाती हूँ।

और मैं मान गयी, हलके हलके मैं कमल का मूसल छू रही थी, सहला रही थी, अभी भी थोड़ा थका, थोड़ा सोया सा, फिर मैंने रेनू को काम पे लगाया,

" भैया क दुलारी, चल अपने भैया क मलाई चाट चूट के साफ़ करो, एको बूँद बची रह जाए, कौन भौजाई नहीं चाहेगी की उसकी ननद उसकी अपने भौजाई क बुर से अपने भैया क मलाई भैया के सामने साफ़ करे, "

रेनू चाट चूस भी रही थी, छेड भी रही थी, चिढ़ा भी रही थी,
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" केकरा मूसल यह में अंदर गया था पहले तोहरे मायके में भौजी " ऊँगली कर के कमल की मलाई निकाल के मुझे दिखा के चाटते रेनू ने चिढ़ाया,

" छिनार, तोहार भैया गौना करा के लाये थे, ओहि रात, "

मेरी बात पूरी भी नहीं हुयी थी की खिलखिलाती रेनू मेरी बुर में कस कस के दो ऊँगली घुमाती बोली,

" अरे हमको, अरे पूरे गाँव को मालूम है नयकी भौजी इतने जोर से चोकरी थीं, जब उनकी फटी थी, अरे हमरे गाँव क मरदन क अलावा केकर ताकत बा जउन हमारी नयकी भौजी क अस सुंदर चिक्क्न बुर क झिल्ली फाड़े, भौजी क महतारी यही लिए तो भेजी थी, सोच समझ के पता कई के। "
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बात रेनू की एकदम सही थी।

इन्होने सिर्फ मेरी नहीं मेरी दोनों छोटी बहनों की झिल्ली फाड़ी और छुटकी की एक सहेली, यहाँ तक की मेरे ममेरे भाई के पिछवाड़े का भी नेवान उन्होंने ही किया। और हम सब बहनों के पिछवाड़े का भी सिवाय छुटकी के, जो उन्होंने मेरे ननोदयी को वादा कर दिया था,

लड़के एक तो अपनी माँ बहिन की गारी सुन के गरमाते हैं दूसरे दो लड़कियों की मस्ती देख के,

रेनू अब कस कस के मेरी बुर चूस रही थी, मेरी जाँघे फैली जा रही थीं, मलाई कब की साफ़ हो गयी थी सीधे मेरी बुर से ननद के पेट में , और ये देख के कमल का खूंटा फनफना रहा था , स्साले का सच में बहुत मोटा था कोई भी लड़की सुपाड़ा देख के ही भड़क जाए, और गांड मारने के तो नाम पर ही ,
Mast likh rahi ho komalji.
 

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मेरी उँगलियाँ उसी सुपाड़े पर टहल रही थीं, खूब मोटा, किसी तरह गांड में घुस भी गया तो जब छल्ला पार करेगा तो सच में जान निकल जायेगी, लेकिन आज मोटे लौंड़े ने अपनी बहन रेनू की गांड मारी,

एकदम कच्ची कली, कल तक काले तम्बू में कैद, हिना की गांड मारी,
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और वो भी दोनों बार सिर्फ मेरे कहने पर, दोनों ही चिंचियाती रही, रोती रही कलपती रहीं गांड पटकती रही लेकिन मैंने कमल को बोल दिया था एकदम जड़ तक गांड तो कोई भी मार लेगा, गांड का भोंसड़ा बना के छोड़ना, हिना तो घंटे भर तक जमीन पे चूतड़ नहीं रख पा रही थी।

खुश होकर उस सुपाड़े को मैंने पूरा मुंह खोल के ले लिया।
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लेकिन रेनू छिनार सब देख रही थी, बोली, " अरे भैया, भौजी को आधे तिहे में मजा नहीं आता, एंकर मुंह , भौजी के बुर से कम मीठ न बा चोदा कस के,

पूरा तो नहीं लेकिन आधा लंड उसने मेरे मुंह में धीरे धीरे कर के सरका दिया,

आज कमल ने सब बातें मेरी मानी थी और अब उसे अपनी बहन को गाँव में सबके समाने भरौटी चमरौटी वालियों के सामने भी एकदम अपनी रखैल बना के रखना था, मैं बहुत प्यार से अपने देवर क लंड चूस रही थी, कभी जीभ को धीरे धीरे सुपाड़े पर घुमाती तो कभी दोनों होंठों से दबा के कस कस के चूसती, मुंह मेरा जबरदस्त खुला हुआ था लेकिन मेरी लार खूंटे को गीला किये हुए थी,
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उधर उसकी बहन छिनार, कभी दोनों फांको को एक साथ चूसती तो कभी जीभ से ही मेरी बुर चोद चोद के मेरा बुरा हाल कर रही थी , मन झड़ने के किनारे पहुँच जाती तो वो रुक जाती, और मैं उसे गरिया भी नहीं सकती थी, उसके भैया का लंड मेरे मुंह में घुसा था।

रेनू ने अपनी मन की बात कह दी, " भौजी यही निहुर के "

और मैं एक चौड़े से आम के पेड़ को पकड़ के निहुर गयी,

हवा तेज चल रही थी, लग रहा था कहीं आंधी न आये, आंधी कितनी भी तेज आये महुआ और टिकोरे बिनने का जो मजा है, सूरज की दो चार किरणे जो अब तक आ रही थीं वो भी अब जमीन से सरक कर पेड़ों के तने पर पड़ रही थीं,

लेकिन अँधेरे का चोदने वालों पर कोई फरक नहीं पड़ता, अमावस की रात तो मिलने वालों के लिए सबसे अच्छी होती है और घर में भी रजाई के अंदर मरद निशाना साध लेता है, कमल बड़ा खिलाड़ी, लेकिन आज असली देवर, भौजाई को तंग करने पे जुटा था और उसकी राय देनेवाली उसकी रखैल बहन,

रेनू ने जिस तरह से चाटा था मेरी फुद्दी फुदक रही थी। बस मन कर रहा था कमल पेल दे, लेकिन वो अपने कड़े मोटे सुपाड़े को बस बार मेरी बुर के होंठों पे रगड़ रहा था, अब मुझसे नहीं रहा गया,

" स्साले तेरी बहन महतारी को गदहों से चुदवाउ, जब चोदना नहीं था, तो काहें " लेकिन फिर उसकी रखैल बोल उठी,

" अरे भौजी, आपके देवर सोच रहे हैं पता नहीं दुबारा कब, "

वो मुझसे कबुलवाना चाह रही थी, और गाली सुनना चाह थी,

" देवर और भौजी क बीच में ननद क कौन काम है, देवर भौजी क साल भर क फागुन होता है ये भी नहीं मालूम तोहें लेकिन रोज हरे देवर क रखैल क गांड से सडका टपकता रहना चाहिए "

" एकदम भौजी "

कह के कमलवा ने वो धक्का मारा की मेरी चीख निकल गयी। वो तो आम के पेड़ को मैं कस के पकडे थी, और जांगर था देह में वरना भहरा पड़ती।
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और अब कमल का एक हाथ मेरे जोबन पे क्या कस के दबोचे हुए था और फिर दुबारा पहले से भी करारा धक्का, बुर की दीवालों को रगड़ते हुए जब देवर का मोटा सुपाड़ा अंदर घुसा चीख भी निकली और मजा भी आया।

खूब मोटा रगड़ते दरेरते अंदर घुस रहा था। और अब वो दोनों हाथ से मोटी मोटी चूँचियों को कस कस के निचोड़ रहा था। बहुत ताकत थी कमल की देह मे।


और अब मुझे भी मस्ती की सूझी, कमल ने जब पूरा बाहर निकाल कर एक धक्के में बच्चेदानी तक मारा मेरी बच्चेदानी हिल गयी। पूरा खूंटा जड़ तक अंदर था, बस मैंने धीरे धीरे बुर को सिकोड़ना शुरू किया उस मोटे मूसल पे, और फिर हलके से ढीली करके फिर एक बार में ही कस के दबोच लिया, बिना अंदर बाहर किये चुदाई का मजा मेरे देवर को आ रहा था।

" ओह भौजी ओह, बहुत मजा आ रहा है आज तक अइसन मजा "कमल बोल रहा था



" अरे तो हमरे नयकी भौजी क चोद भी तो पहली बार रहे हो भैया " रेनू ने छेड़ा कमल को।
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और अब कमल पूरी ताकत से चोद रहा था, लेकिन ननद को झूठ मूठ का छिनार थोड़े ही कहते हैं, मैं एकदम झड़ने के कगार पर थी।

रेनू ने कमल के कान में कुछ फुसफुसाया, और जब तक मैं समझूं रेनू ने खुद अपने हाथ से पकड़ कर अपने भैया का खूंटा मेरी बिल से बाहर कर के मेरी पिछवाड़े की दरार पर सटा दिया,


" अरे छिनार एक बार झड़ जाने देती, जब चूस रही थी तब नहीं झड़ने दी और जब मेरा प्यारा देवर पेल रहा था , एकदम झड़ने के कगार,...


लेकिन मैं चीखी कमल ने ढकेल दिया था पूरी ताकत से मुट्ठी ऐसा मोटा सुपाड़ा पिछवाड़े अंड़स गया था,
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" भौजी ढीली करो " रेनू मुझे चिढ़ा रही थी जैसे मैं उसे समझा रही थी जब कमल ने पहली बार उसकी गांड में अपना खूंटा धँसाया था एकदम मेरी ही आवाज मे।

" स्साली छिनार तनी सांस तो लेने दो " मैं उससे बोली,

और मेरा देवर कम से कम उसने मेरी बात सुनी और जो मैंने समझाया था गांड मारते समय भी बुर रानी का ख्याल करना चाहिए वो सीख उसने अच्छी तरह सीख ली थी। एक हथेली वहां पर सहला रही थी, रगड़ रही कभी दो उँगलियाँ एक साथ बुर में अंदर बाहर एकदम लंड की तरह

और जब मेरे पिछवाड़े को देवर के मोटे सुपाड़े की आदत पड़ गयी तो धीरे धीरे पीठ सहलाते उसने ठेलना शुरू किय। मैं रेनू या हिना की तरह पहली बार तो पिछवाड़े नहीं घोंट रही थी इसलिए वो छल्ला मैंने ढीला कर रखा था,

गप्प

कमल का सुपाड़ा छल्ला पार कर गया।
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लेकिन भौजी हो और देवर के साथ छेड़खानी न करे, मैंने अब जब छल्ला पार हो गया था तो आधे घुसे खूंटे पे उसे कस के भींच लिय। लेकिन कमल भी कम शैतान नहीं था, पीछे का बदला उसने आगे से लिया एक साथ तीन उंगलिया पेल कर,

थोड़ी देर में ही मैं आगे पीछे दोनों छेदो का मजा ले रही थी। दस पंद्रह मिनट की जबरदस्त रगड़ाई के बाद पहले मैं ही झड़ी लेकिन उसके साथ ही साथ कमल भी। बड़ी देर तक वो अंदर ठुसे रहा फिर धीरे धीरे खूंटा बाहर निकाला, टप टप टप टप जैसे महुआ चुए, मलाई मेरे पिछवाड़े से टपक रही थी।
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पेड़ का सहारा पकड़ के मैं सीधी हुयी, शाम ढल चुकी थी। धीरे धीरे हम तीनो बाग़ से बाहर निकले।
Uffff garam garam gaaand ki rupae .
 

Premkumar65

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किस्सा भैया बहिनी का. उर्फ़ मेरी ननदिया

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आप लोग भी जानने को बेताब होंगे न की क्या हुआ सास और सासू जी के बेटे के बीच ? और सासू जी और सासू जी के लाडले के बीच में वही होगा जो कल सासू जी के बेटे और सासू जी की लाड़ली के बीच हुआ और क्या जबरदस्त हुआ.


तो सही बात है जो बात पहले हुयी वो पहले बतानी चाहिए न, तो वो बात पहले, यानी किस्सा भैया बहिनी का. कैसे चुदी मेरी ननद अपने सगे प्यारे प्यारे भैया से।

कौन भौजाई होगी जो न चाहती होगी की बढ़ बढ़ कर छेड़ने वाली ननद किसी दिन वही खूंटा घोंटे जो पहले दिन से उसकी भौजाई बिना नागा आगे पीछे घोंट रही है, अरे जिस कहानी का यह सीक्वेल है उसके शुरू में ही बताया था, फिर दुहरा देती हूँ, वरना आप कहेंगे साल भर पुरानी बात कौन गाँठ बाँध के बैठा रहेगा

अरे पन्ना पलटने दीजिये , हाँ तो बस,

अरे पन्ना पलटने दीजिये , हाँ तो बस, चलिए शार्ट में लांग बातें बताती हूँ,



ननद मेरी चिढ़ाने में, छेड़ने में नंबरी, एक दिन मैं टाइट शलवार सूट पहन के टहल रही थी, गौने के तीन चार दिन ही हुए थे, नितम्ब दोनों कसर मसर,...



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इन्ही ननद ने पिछवाड़े ऊँगली करते हुए चिढ़ाया, भाभी ऐसा लेफ्ट राइट होगा तो ये पिछवाड़ा नहीं बचेगा,

" तो न बचे यार,... अगवाड़ा तो जिस दिन से आयी हूँ चार पांच बार, और रात दिन में कोई फर्क नहीं तो,"

मैं भी मस्ती में बोली और ननद की बात सच निकली। ननद के भैया आये और दिन दहाड़े ही पिछवाड़े का भी फीता काट दिया, और चीखते हुए मैं यही सोच रही थी की किसी दिन अपनी इस कलजीभी ननद की गाँड़ में ये खूंटा अपने सामने घुसवाऊँगी तो पता चलेगा, उसका कहा सही ही हुआ।

लेकिन इरादा मैंने पक्का कर लिया होली के बाद,


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मेरा ममेरा छोटा भाई आया था, हाईस्कूल का इम्तहान देकर,... मुझे अपने साथ शाम को ले जाने,... चुन्नू,... बस मेरी इन्ही ननद ने पहले तो होली के दिन मुझे देसी पिला के टुन्न कर दिया, फिर मेरे भाई की ऐसी रंगाई पुताई की,... की कोई देख के पहचान नहीं सकता था था, कपडे तो सब चिथड़े हो गए थे , और ननद मुझसे बोलीं ,

" भाभी आपका छोटा देवर है पेल दीजिये पटक के, तब होगी देवर भाभी की होली "
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मैं बावरी अपने भाई को देवर समझ के उस के ऊपर चढ़ के ऐसी चुदाई शुरू की, लेकिन था तो वो भी मर्द का बच्चा, थोड़ी देर में वो मेरे ऊपर, मैं नीचे ,.. और मेरी ननद मुझे उकसा रही थीं, हाँ भाभी हां, ... और ननद नन्दोई की मिली भगत मैंने देखा थोड़ी देर में ननदोई जी आ गए और,.. जिसे मैं देवर समझ रही थी, उस मेरे भाई के पीछे अपना मूसल,

" हाँ ननदोई जी, महतारी का दूध पिया हो एक धक्के में घुसा दीजिये चिकने स्साले की गाँड़ में अपना लंड "
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मैं ननदोई जी को यह समझ कर ललकार रही थी, मेरा देवर तो उनका स्साला हुआ, तो स्साले की लेने का हक़ तो बहनोई को है ही,...

मेरे ससुराल में कोई जेंडर में भेदभाव नहीं था बस खाली छेद होना चाहिए, ... और वो बेचारा चिंचिया रहा था,... दसवे में पढ़ने वाला,...

लेकिन जैसे ही उसने झड़ना शुरू किया, ननद जी ने दो बाल्टी सादा पानी हम दोनों के ऊपर, ... उसका रंग उतरा गया मेरा नशा , तब मैं समझी की देवर नहीं मेरा भाई है



लेकिन उस समय मैं झड़ रही थी और झड़ते समय कौन मरद को छोड़ता है चाहे कल का लौंडा ही क्यों न हों,... हाँ नन्दोई जी बहुत देर बाद झड़े।

और उसके बाद मेरी ननद ने मेरे भाई के सामने खुल के छेड़ा,

" अरे मैंने सोचा की मेरे भाई से तो जब से आयी हो रोज मज़ा ले रही हो, बरस बरस का दिन होली का, तानी अपने भाई से भी ले लो "
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मेरा भाई अभी भी बेचारा टाँगे फैलाये, किसी तरह दीवार का सहारा लेकर खड़ा था,... मुझसे आँखे बचा रहा था, बेचारा।

तभी मैंने तय कर लिया था की ननद के ऊपर उनके भाई को भी चढ़ाउंगी, वो भी अपने सामने ही.

और मौका मिल गया कबड्डी में जीत कर.

अब साल भर ननदों को हम भौजाइयों की बात माननी थी, चाहे उनके भाई को उन ननदों के ऊपर चढ़ाएं चाहे अपने भाई को.

लेकिन मैं समझ गयी थी की ये बात कुंवारी ननदों के लिए तो ठीक है लेकिन शादी शुदा ननदों के लिए मुश्किल, खास तौर पे मेरी ननद के लिए, बीस कोस पे ससुराल, पक्की सड़क, कभी यहाँ कभी वहां। कउनो बात होगी तो चूतड़ मटका के अपनी ससुराल चल देंगी।

लेकिन मौका मिल गया, जब ननदों की रगड़ाई हो रही थी कबड्डी में हारने के बाद,... और मौका दिया मेरी सहेलियों, चमेलिया और गुलबिया ने। दोनों मेरे साथ मेरी इन ननद को दबोचे थीं, और बोली रही थीं मुट्ठी करने को,... लेकिन झगड़ा ये था की दोनों ही गाँड़ में मुट्ठी करने की जिद करने कर रही थीं,...

लेकिन दूबे भाभी चतुर चालाक उन्होंने मेरी आँखों की प्यास पढ़ ली की कैसे ननद को पाने काबू में करूँ। बस उन्होंने मुझसे तो कुछ नहीं कहा, हमारे नाउन की बहू गुलबिया को ललकारा,

" अरे काहें झगड़ रही हो, ऊंट के मुंह में जीरा,... ये ननद तोहार ससुराल में न जाने कितनों क एक साथ घोटती होंगी,... एक मुट्ठी से का होगी,... दोनों पिछवाड़े डालो एक साथ, तब तो चाकर होगी, ससुरारे लौटेंगी तब सास खुस होके मानेगी अपने समधियाने की ताकत और खुदे आएँगी यहाँ कुटवाने। "
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बस हो गया समझौता, गुलबिया चमेलिया दोनों मेरी ननद की गाँड़ एक साथ मारेंगी मुट्ठी से,... और मैं क्यों पीछे रहती, मैंने भी जोड़ दिया, जोर से बोली,



" सुन चमेलिया, यह गाँव क रीत है कउनो देवरानी जेठानी की बात नहीं टालती तो दूबे भौजी क हुकुम, लेकिन मैं यह नहीं देख सकती की चूत रानी के साथ जुलुम हो कउनो भेदभाव, गलत है न। यह गांव में सबको मजा देने के बाद अपने ससुराल में,... तो मैं भी ननद रानी की बुर में दोनों मुट्ठी एक साथ पेलुंगी "
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और जो मैं सोचती थी वही हुआ, हम तीनों की चाल चल गयी, ननद रानी हदस गयी. समझ नहीं पायीं तीन तीन भौजाई की चाल,.. खुद ही उन्होंने कबूल कर लिया , मैं कुछ भी कहूं उन्हें कबूल होगा, लेकिन दो दो मुट्ठी से बचा लूँ,

यही तो मैं चाहती थी और सबके सामने उनसे कबूल करा लिया,...

मेरे मरद के साथ, मेरे सामने,... और सिर्फ आज नहीं, जब भी मैं कहूं, जहाँ कहूं जिसके सामने, खुद टांग फैलाएंगी, चूसेंगी और उनके खूंटे पर चढ़ेंगी, ... अगवाड़ा पिछवाड़ा,... सब और एक बार नहीं तीन तिरबाचा भरवाया।

चमेलिया गुलबिया तो गवाह थीं ही, दूबे भाभी भी सुन रही थीं।

बस. रात में तो हम तीनो को ही घर में रहना था, कब्बडी के बात सास सब गाँव के बाहर चली जाती थीं वहीँ से, और चौबीस घंटे के बाद लौटती थीं. अगले दिन जब देवर ननद भौजाई की होली होती थी तो कोई ननद, देवर की महतारी गाँव में नहीं होती थी, तो सास को मेरे होना नहीं था,... और इनको भी रात में लौटना था, खाना हम सब को घर में, इसलिए मैंने ननद को बोल रखा था की वो पूड़ी बखीर बना के रखेंगी। तो जब मैं कमल की माई से मिल के लौटी तो ननद मेरी नहा धो के खाना बना के एकदम तैयार, और घर में घुसते ही मैंने उन्हें अँकवार में भर लिया।




मैंने तो अँकवार में ही भरा था ननदिया को, उन्होंने जबरदस्त चुम्मा ले लिया।
Ufffff Komalji what an erotic update. keeps one excited all the time.
 

Random2022

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Bahut badhiya. Kamal or Renu ki jindagi ba
कमल और रेनू

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मैं कमल और रेनू के साथ उन दोनों के घर की ओर.

जो रेनू अपने भैया कमल की परछाई नहीं देखना चाहती थी, आज उससे एकदम चिपक के, जो रेनू लड़का लड़की के रिश्ते की बात सुन के उखड़ जाती थी, आज खुल के चुदाई की बात कर रही थी और सबसे बढ़ के मेरे साथ मिल के अपने भाई को छेड़ रही थी,

छेड़ना मैंने ही शुरू किया, और रेनू एकदम मेरी ओर होगयी अपने भाई कम नए नए बने यार की रगड़ाई करने

" क्यों काहें कह रहे थे कोई लड़की नहीं देती, आज केतने की फाड़ी, " पहले कमल को छेड़ा फिर मुझसे बोली
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" अरे भौजी, मैं देख रही थी न कैसे मजे ले ले कर हिनवा क कच्ची बुर चोद रहा था, कउनो अलग ढंग का मज़ा आ रहा था, चेहरे पे केतना ख़ुशी,... और उहो छिनार हमरे भाई से चुदवावे मे कैसे मजा ले रही थी, चूतड़ उठा के गपागप घोंट रही थी. और रोज ये भौजी हमसे कहता था की रेनुवा दे दे कोई गाँव क लड़की देती नहीं है। और बदमाश कैसे मजे लेके हिना क गाँड़ मार रहा था'"


मैं खूब खुश हो रही थी कल इसी समय तो अपनी चचेरी सास, कमल की माँ से यही वादा तो कर के गयी थी आज उनके बेटे को उसकी बहन के ऊपर न चढ़ाया और उसके बाद बहन खुद ही उनके बेटे के लिए टांग फैलाएगी चिपकी रहेगी, वो लौट के आएँगी पहचानेगी नहीं रेनू -कमल को. और वही हाल था।

" एकदम तू सही कही रही है, हिना तो चलो पठान टोला वाली उसे अपने टोले का सबसे जबरदस्त मूसल दिखाना था,... लेकिन उसके अलावा "

मेरी बात काट के रेनू हँसते हुए बोली, " अरे भौजी तीन तो मेरे सामने,.... "

" हे देवर जी लेकिन अब मेरी इस ननद को छोड़के,... "

रेनू ने फिर मेरी बात काट दी, बोली

" अरे कहीं जाएगा तो लौट के मेरे ही पास आएगा,... कभी कभार स्वाद बदल ले, मुझे एतराज नहीं है "

मैंने पाला बदला, और देवर की ओर से बोली,...

" अरे ननद रानी, अब हमार देवर तोहें आपने रखेल बना के रखेगा, जब चाहेगा, जहाँ चाहेगा, जैसे चाहेगा निहुरा के पेलेगा, सोच लो बहुत तडपायी हो मेरे देवर को चार साल से बेचारा ललचा रहा है ये रसगुल्ला खाने के लिए " और ये कहके मैंने रेनू के उभार कस के दबा दिया,
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कमल जोर से मुस्कराया।

बिना मेरा हाथ हटाए रेनू बोली, " भौजी आप तो नेता लोगन से भी ज्यादा दलबदलू निकलीं। " फिर हँसते हुए जोड़ा,

" अरे भौजी अब ये स्साला नहीं पेलेगा तो मैं पटक के पेल दूंगी,... आज ही मैं अपना बिस्तर इसके कमरे में, बल्कि बिस्तर क्यों, इसी के पलंग पर अड्डा जमाऊँगी, चार साल का उधार चुकाना है सूद सहित, क्यों भैया। "

तब तक रेनू -कमल का घर आगया था,... कमल बोलने लगा,

" भौजी, माँ मामा के यहाँ गयी थीं आ गयी होंगी शायद, हालांकि ताली तो दे के गयी थीं "

अब मैंने राज खोला,...

" एकदम नहीं,... हफ्ते भर तक घर पर तुम दोनों का राज है मरद मेहरारू की तरह रहो, तोहार महतारी जेठानी देवरानी हमार दोनों सास , हफ्ता भर के लिए तोहरे ननिहाल गयी हैं मुझसे कल ही बोल दिया था."


ताला खोलते हुए रेनू बोली,...

" हफ्ता भर नहीं भौजी अब हरदम के लिए. मरद मेहरारू,... खाली राखी के दिन पैसा लेने के लिए भाई बहिन उसमें कोई कंजूसी नहीं , और ओकरे बाद,...


" वही राखी बंधे हाथ से तोहार चूँची दबायी "

हँसते हुए में बोली और अपने घर की ओर चल दी.



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वहां तो मेरी रिश्ते वाली सास हफ़ते भर नहीं आने वाली थी,...

पर यहाँ मेरी सास तो बस आने वाली थीं और उसके बाद क्या होगा ये सोच के मैं गिनगीना गयी।

क्या हुआ मेरी ननद सास के साथ, आगे के पार्ट्स में

कमल और रेनू

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मैं कमल और रेनू के साथ उन दोनों के घर की ओर.

जो रेनू अपने भैया कमल की परछाई नहीं देखना चाहती थी, आज उससे एकदम चिपक के, जो रेनू लड़का लड़की के रिश्ते की बात सुन के उखड़ जाती थी, आज खुल के चुदाई की बात कर रही थी और सबसे बढ़ के मेरे साथ मिल के अपने भाई को छेड़ रही थी,

छेड़ना मैंने ही शुरू किया, और रेनू एकदम मेरी ओर होगयी अपने भाई कम नए नए बने यार की रगड़ाई करने

" क्यों काहें कह रहे थे कोई लड़की नहीं देती, आज केतने की फाड़ी, " पहले कमल को छेड़ा फिर मुझसे बोली
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" अरे भौजी, मैं देख रही थी न कैसे मजे ले ले कर हिनवा क कच्ची बुर चोद रहा था, कउनो अलग ढंग का मज़ा आ रहा था, चेहरे पे केतना ख़ुशी,... और उहो छिनार हमरे भाई से चुदवावे मे कैसे मजा ले रही थी, चूतड़ उठा के गपागप घोंट रही थी. और रोज ये भौजी हमसे कहता था की रेनुवा दे दे कोई गाँव क लड़की देती नहीं है। और बदमाश कैसे मजे लेके हिना क गाँड़ मार रहा था'"


मैं खूब खुश हो रही थी कल इसी समय तो अपनी चचेरी सास, कमल की माँ से यही वादा तो कर के गयी थी आज उनके बेटे को उसकी बहन के ऊपर न चढ़ाया और उसके बाद बहन खुद ही उनके बेटे के लिए टांग फैलाएगी चिपकी रहेगी, वो लौट के आएँगी पहचानेगी नहीं रेनू -कमल को. और वही हाल था।

" एकदम तू सही कही रही है, हिना तो चलो पठान टोला वाली उसे अपने टोले का सबसे जबरदस्त मूसल दिखाना था,... लेकिन उसके अलावा "

मेरी बात काट के रेनू हँसते हुए बोली, " अरे भौजी तीन तो मेरे सामने,.... "

" हे देवर जी लेकिन अब मेरी इस ननद को छोड़के,... "

रेनू ने फिर मेरी बात काट दी, बोली

" अरे कहीं जाएगा तो लौट के मेरे ही पास आएगा,... कभी कभार स्वाद बदल ले, मुझे एतराज नहीं है "

मैंने पाला बदला, और देवर की ओर से बोली,...

" अरे ननद रानी, अब हमार देवर तोहें आपने रखेल बना के रखेगा, जब चाहेगा, जहाँ चाहेगा, जैसे चाहेगा निहुरा के पेलेगा, सोच लो बहुत तडपायी हो मेरे देवर को चार साल से बेचारा ललचा रहा है ये रसगुल्ला खाने के लिए " और ये कहके मैंने रेनू के उभार कस के दबा दिया,
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कमल जोर से मुस्कराया।

बिना मेरा हाथ हटाए रेनू बोली, " भौजी आप तो नेता लोगन से भी ज्यादा दलबदलू निकलीं। " फिर हँसते हुए जोड़ा,

" अरे भौजी अब ये स्साला नहीं पेलेगा तो मैं पटक के पेल दूंगी,... आज ही मैं अपना बिस्तर इसके कमरे में, बल्कि बिस्तर क्यों, इसी के पलंग पर अड्डा जमाऊँगी, चार साल का उधार चुकाना है सूद सहित, क्यों भैया। "

तब तक रेनू -कमल का घर आगया था,... कमल बोलने लगा,

" भौजी, माँ मामा के यहाँ गयी थीं आ गयी होंगी शायद, हालांकि ताली तो दे के गयी थीं "

अब मैंने राज खोला,...

" एकदम नहीं,... हफ्ते भर तक घर पर तुम दोनों का राज है मरद मेहरारू की तरह रहो, तोहार महतारी जेठानी देवरानी हमार दोनों सास , हफ्ता भर के लिए तोहरे ननिहाल गयी हैं मुझसे कल ही बोल दिया था."


ताला खोलते हुए रेनू बोली,...

" हफ्ता भर नहीं भौजी अब हरदम के लिए. मरद मेहरारू,... खाली राखी के दिन पैसा लेने के लिए भाई बहिन उसमें कोई कंजूसी नहीं , और ओकरे बाद,...


" वही राखी बंधे हाथ से तोहार चूँची दबायी "

हँसते हुए में बोली और अपने घर की ओर चल दी.



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वहां तो मेरी रिश्ते वाली सास हफ़ते भर नहीं आने वाली थी,...

पर यहाँ मेरी सास तो बस आने वाली थीं और उसके बाद क्या होगा ये सोच के मैं गिनगीना गयी।

क्या हुआ मेरी ननद सास के साथ, आगे के पार्ट्स में
Renu Kamal ki jindagi badal di komal bhabhi ne
 

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किस्सा भैया बहिनी का. उर्फ़ मेरी ननदिया

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आप लोग भी जानने को बेताब होंगे न की क्या हुआ सास और सासू जी के बेटे के बीच ? और सासू जी और सासू जी के लाडले के बीच में वही होगा जो कल सासू जी के बेटे और सासू जी की लाड़ली के बीच हुआ और क्या जबरदस्त हुआ.


तो सही बात है जो बात पहले हुयी वो पहले बतानी चाहिए न, तो वो बात पहले, यानी किस्सा भैया बहिनी का. कैसे चुदी मेरी ननद अपने सगे प्यारे प्यारे भैया से।

कौन भौजाई होगी जो न चाहती होगी की बढ़ बढ़ कर छेड़ने वाली ननद किसी दिन वही खूंटा घोंटे जो पहले दिन से उसकी भौजाई बिना नागा आगे पीछे घोंट रही है, अरे जिस कहानी का यह सीक्वेल है उसके शुरू में ही बताया था, फिर दुहरा देती हूँ, वरना आप कहेंगे साल भर पुरानी बात कौन गाँठ बाँध के बैठा रहेगा

अरे पन्ना पलटने दीजिये , हाँ तो बस,

अरे पन्ना पलटने दीजिये , हाँ तो बस, चलिए शार्ट में लांग बातें बताती हूँ,



ननद मेरी चिढ़ाने में, छेड़ने में नंबरी, एक दिन मैं टाइट शलवार सूट पहन के टहल रही थी, गौने के तीन चार दिन ही हुए थे, नितम्ब दोनों कसर मसर,...



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इन्ही ननद ने पिछवाड़े ऊँगली करते हुए चिढ़ाया, भाभी ऐसा लेफ्ट राइट होगा तो ये पिछवाड़ा नहीं बचेगा,

" तो न बचे यार,... अगवाड़ा तो जिस दिन से आयी हूँ चार पांच बार, और रात दिन में कोई फर्क नहीं तो,"

मैं भी मस्ती में बोली और ननद की बात सच निकली। ननद के भैया आये और दिन दहाड़े ही पिछवाड़े का भी फीता काट दिया, और चीखते हुए मैं यही सोच रही थी की किसी दिन अपनी इस कलजीभी ननद की गाँड़ में ये खूंटा अपने सामने घुसवाऊँगी तो पता चलेगा, उसका कहा सही ही हुआ।

लेकिन इरादा मैंने पक्का कर लिया होली के बाद,


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मेरा ममेरा छोटा भाई आया था, हाईस्कूल का इम्तहान देकर,... मुझे अपने साथ शाम को ले जाने,... चुन्नू,... बस मेरी इन्ही ननद ने पहले तो होली के दिन मुझे देसी पिला के टुन्न कर दिया, फिर मेरे भाई की ऐसी रंगाई पुताई की,... की कोई देख के पहचान नहीं सकता था था, कपडे तो सब चिथड़े हो गए थे , और ननद मुझसे बोलीं ,

" भाभी आपका छोटा देवर है पेल दीजिये पटक के, तब होगी देवर भाभी की होली "
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मैं बावरी अपने भाई को देवर समझ के उस के ऊपर चढ़ के ऐसी चुदाई शुरू की, लेकिन था तो वो भी मर्द का बच्चा, थोड़ी देर में वो मेरे ऊपर, मैं नीचे ,.. और मेरी ननद मुझे उकसा रही थीं, हाँ भाभी हां, ... और ननद नन्दोई की मिली भगत मैंने देखा थोड़ी देर में ननदोई जी आ गए और,.. जिसे मैं देवर समझ रही थी, उस मेरे भाई के पीछे अपना मूसल,

" हाँ ननदोई जी, महतारी का दूध पिया हो एक धक्के में घुसा दीजिये चिकने स्साले की गाँड़ में अपना लंड "
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मैं ननदोई जी को यह समझ कर ललकार रही थी, मेरा देवर तो उनका स्साला हुआ, तो स्साले की लेने का हक़ तो बहनोई को है ही,...

मेरे ससुराल में कोई जेंडर में भेदभाव नहीं था बस खाली छेद होना चाहिए, ... और वो बेचारा चिंचिया रहा था,... दसवे में पढ़ने वाला,...

लेकिन जैसे ही उसने झड़ना शुरू किया, ननद जी ने दो बाल्टी सादा पानी हम दोनों के ऊपर, ... उसका रंग उतरा गया मेरा नशा , तब मैं समझी की देवर नहीं मेरा भाई है



लेकिन उस समय मैं झड़ रही थी और झड़ते समय कौन मरद को छोड़ता है चाहे कल का लौंडा ही क्यों न हों,... हाँ नन्दोई जी बहुत देर बाद झड़े।

और उसके बाद मेरी ननद ने मेरे भाई के सामने खुल के छेड़ा,

" अरे मैंने सोचा की मेरे भाई से तो जब से आयी हो रोज मज़ा ले रही हो, बरस बरस का दिन होली का, तानी अपने भाई से भी ले लो "
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मेरा भाई अभी भी बेचारा टाँगे फैलाये, किसी तरह दीवार का सहारा लेकर खड़ा था,... मुझसे आँखे बचा रहा था, बेचारा।

तभी मैंने तय कर लिया था की ननद के ऊपर उनके भाई को भी चढ़ाउंगी, वो भी अपने सामने ही.

और मौका मिल गया कबड्डी में जीत कर.

अब साल भर ननदों को हम भौजाइयों की बात माननी थी, चाहे उनके भाई को उन ननदों के ऊपर चढ़ाएं चाहे अपने भाई को.

लेकिन मैं समझ गयी थी की ये बात कुंवारी ननदों के लिए तो ठीक है लेकिन शादी शुदा ननदों के लिए मुश्किल, खास तौर पे मेरी ननद के लिए, बीस कोस पे ससुराल, पक्की सड़क, कभी यहाँ कभी वहां। कउनो बात होगी तो चूतड़ मटका के अपनी ससुराल चल देंगी।

लेकिन मौका मिल गया, जब ननदों की रगड़ाई हो रही थी कबड्डी में हारने के बाद,... और मौका दिया मेरी सहेलियों, चमेलिया और गुलबिया ने। दोनों मेरे साथ मेरी इन ननद को दबोचे थीं, और बोली रही थीं मुट्ठी करने को,... लेकिन झगड़ा ये था की दोनों ही गाँड़ में मुट्ठी करने की जिद करने कर रही थीं,...

लेकिन दूबे भाभी चतुर चालाक उन्होंने मेरी आँखों की प्यास पढ़ ली की कैसे ननद को पाने काबू में करूँ। बस उन्होंने मुझसे तो कुछ नहीं कहा, हमारे नाउन की बहू गुलबिया को ललकारा,

" अरे काहें झगड़ रही हो, ऊंट के मुंह में जीरा,... ये ननद तोहार ससुराल में न जाने कितनों क एक साथ घोटती होंगी,... एक मुट्ठी से का होगी,... दोनों पिछवाड़े डालो एक साथ, तब तो चाकर होगी, ससुरारे लौटेंगी तब सास खुस होके मानेगी अपने समधियाने की ताकत और खुदे आएँगी यहाँ कुटवाने। "
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बस हो गया समझौता, गुलबिया चमेलिया दोनों मेरी ननद की गाँड़ एक साथ मारेंगी मुट्ठी से,... और मैं क्यों पीछे रहती, मैंने भी जोड़ दिया, जोर से बोली,



" सुन चमेलिया, यह गाँव क रीत है कउनो देवरानी जेठानी की बात नहीं टालती तो दूबे भौजी क हुकुम, लेकिन मैं यह नहीं देख सकती की चूत रानी के साथ जुलुम हो कउनो भेदभाव, गलत है न। यह गांव में सबको मजा देने के बाद अपने ससुराल में,... तो मैं भी ननद रानी की बुर में दोनों मुट्ठी एक साथ पेलुंगी "
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और जो मैं सोचती थी वही हुआ, हम तीनों की चाल चल गयी, ननद रानी हदस गयी. समझ नहीं पायीं तीन तीन भौजाई की चाल,.. खुद ही उन्होंने कबूल कर लिया , मैं कुछ भी कहूं उन्हें कबूल होगा, लेकिन दो दो मुट्ठी से बचा लूँ,

यही तो मैं चाहती थी और सबके सामने उनसे कबूल करा लिया,...

मेरे मरद के साथ, मेरे सामने,... और सिर्फ आज नहीं, जब भी मैं कहूं, जहाँ कहूं जिसके सामने, खुद टांग फैलाएंगी, चूसेंगी और उनके खूंटे पर चढ़ेंगी, ... अगवाड़ा पिछवाड़ा,... सब और एक बार नहीं तीन तिरबाचा भरवाया।

चमेलिया गुलबिया तो गवाह थीं ही, दूबे भाभी भी सुन रही थीं।

बस. रात में तो हम तीनो को ही घर में रहना था, कब्बडी के बात सास सब गाँव के बाहर चली जाती थीं वहीँ से, और चौबीस घंटे के बाद लौटती थीं. अगले दिन जब देवर ननद भौजाई की होली होती थी तो कोई ननद, देवर की महतारी गाँव में नहीं होती थी, तो सास को मेरे होना नहीं था,... और इनको भी रात में लौटना था, खाना हम सब को घर में, इसलिए मैंने ननद को बोल रखा था की वो पूड़ी बखीर बना के रखेंगी। तो जब मैं कमल की माई से मिल के लौटी तो ननद मेरी नहा धो के खाना बना के एकदम तैयार, और घर में घुसते ही मैंने उन्हें अँकवार में भर लिया।




मैंने तो अँकवार में ही भरा था ननदिया को, उन्होंने जबरदस्त चुम्मा ले लिया।

Ab nanad ki baari ka intejar rahega. Koi kanjusi mt krna btane me. Achhe se detail me ek ek pal ka
 

Sutradhar

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Updated posted.

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धन्य हो आपकी लेखनी, कोमल मैम

ये अपडेट तो गजब का रहा।

वाह वाह शानदार

अब तो अगले अपडेट का इंतजार तो और भी शिद्दत से रहेगा।


सादर
 

arushi_dayal

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Yess as they say in Hindi, सही पकड़ा है।

I too used to read the story and make comments. Beautiful writing style However there was a turn where daughter-in-law turned out to be daughter so that relationship got converted into a father-daughter relationship.

so for me, it was your poetry, that I prefer over the story of Kanchan, as you have a knack of saying things in such a few words and hitting the nail on the head. and tribute is to your writing skills, eroticism and creating a beautiful feeling without a sense of guilt or being judgmental.

Thanks so much for reading the part, inspired by your work and appreciating it.

:thanks: :thanks: :thanks: :thanks: :thanks: :thanks:
🙏🙏Thanks
 

komaalrani

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Phagun ke Din chaar part 9

रीत की रीत,
रीत ही जाने

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