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Bahut mast ragd
Bahut mast ragdai hui haiएक बार और
रेनू अब कस कस के मेरी बुर चूस रही थी, मेरी जाँघे फैली जा रही थीं, मलाई कब की साफ़ हो गयी थी सीधे मेरी बुर से ननद के पेट में , और ये देख के कमल का खूंटा फनफना रहा था , स्साले का सच में बहुत मोटा था कोई भी लड़की सुपाड़ा देख के ही भड़क जाए, और गांड मारने के तो नाम पर ही ,
मेरी उँगलियाँ उसी सुपाड़े पर टहल रही थीं, खूब मोटा, किसी तरह गांड में घुस भी गया तो जब छल्ला पार करेगा तो सच में जान निकल जायेगी, लेकिन आज मोटे लौंड़े ने अपनी बहन रेनू की गांड मारी,
एकदम कच्ची कली, कल तक काले तम्बू में कैद, हिना की गांड मारी,
और वो भी दोनों बार सिर्फ मेरे कहने पर, दोनों ही चिंचियाती रही, रोती रही कलपती रहीं गांड पटकती रही लेकिन मैंने कमल को बोल दिया था एकदम जड़ तक गांड तो कोई भी मार लेगा, गांड का भोंसड़ा बना के छोड़ना, हिना तो घंटे भर तक जमीन पे चूतड़ नहीं रख पा रही थी।
खुश होकर उस सुपाड़े को मैंने पूरा मुंह खोल के ले लिया।
लेकिन रेनू छिनार सब देख रही थी, बोली, " अरे भैया, भौजी को आधे तिहे में मजा नहीं आता, एंकर मुंह , भौजी के बुर से कम मीठ न बा चोदा कस के,
पूरा तो नहीं लेकिन आधा लंड उसने मेरे मुंह में धीरे धीरे कर के सरका दिया,
आज कमल ने सब बातें मेरी मानी थी और अब उसे अपनी बहन को गाँव में सबके समाने भरौटी चमरौटी वालियों के सामने भी एकदम अपनी रखैल बना के रखना था, मैं बहुत प्यार से अपने देवर क लंड चूस रही थी, कभी जीभ को धीरे धीरे सुपाड़े पर घुमाती तो कभी दोनों होंठों से दबा के कस कस के चूसती, मुंह मेरा जबरदस्त खुला हुआ था लेकिन मेरी लार खूंटे को गीला किये हुए थी,
उधर उसकी बहन छिनार, कभी दोनों फांको को एक साथ चूसती तो कभी जीभ से ही मेरी बुर चोद चोद के मेरा बुरा हाल कर रही थी , मन झड़ने के किनारे पहुँच जाती तो वो रुक जाती, और मैं उसे गरिया भी नहीं सकती थी, उसके भैया का लंड मेरे मुंह में घुसा था।
रेनू ने अपनी मन की बात कह दी, " भौजी यही निहुर के "
और मैं एक चौड़े से आम के पेड़ को पकड़ के निहुर गयी,
हवा तेज चल रही थी, लग रहा था कहीं आंधी न आये, आंधी कितनी भी तेज आये महुआ और टिकोरे बिनने का जो मजा है, सूरज की दो चार किरणे जो अब तक आ रही थीं वो भी अब जमीन से सरक कर पेड़ों के तने पर पड़ रही थीं,
लेकिन अँधेरे का चोदने वालों पर कोई फरक नहीं पड़ता, अमावस की रात तो मिलने वालों के लिए सबसे अच्छी होती है और घर में भी रजाई के अंदर मरद निशाना साध लेता है, कमल बड़ा खिलाड़ी, लेकिन आज असली देवर, भौजाई को तंग करने पे जुटा था और उसकी राय देनेवाली उसकी रखैल बहन,
रेनू ने जिस तरह से चाटा था मेरी फुद्दी फुदक रही थी। बस मन कर रहा था कमल पेल दे, लेकिन वो अपने कड़े मोटे सुपाड़े को बस बार मेरी बुर के होंठों पे रगड़ रहा था, अब मुझसे नहीं रहा गया,
" स्साले तेरी बहन महतारी को गदहों से चुदवाउ, जब चोदना नहीं था, तो काहें " लेकिन फिर उसकी रखैल बोल उठी,
" अरे भौजी, आपके देवर सोच रहे हैं पता नहीं दुबारा कब, "
वो मुझसे कबुलवाना चाह रही थी, और गाली सुनना चाह थी,
" देवर और भौजी क बीच में ननद क कौन काम है, देवर भौजी क साल भर क फागुन होता है ये भी नहीं मालूम तोहें लेकिन रोज हरे देवर क रखैल क गांड से सडका टपकता रहना चाहिए "
" एकदम भौजी "
कह के कमलवा ने वो धक्का मारा की मेरी चीख निकल गयी। वो तो आम के पेड़ को मैं कस के पकडे थी, और जांगर था देह में वरना भहरा पड़ती।
और अब कमल का एक हाथ मेरे जोबन पे क्या कस के दबोचे हुए था और फिर दुबारा पहले से भी करारा धक्का, बुर की दीवालों को रगड़ते हुए जब देवर का मोटा सुपाड़ा अंदर घुसा चीख भी निकली और मजा भी आया।
खूब मोटा रगड़ते दरेरते अंदर घुस रहा था। और अब वो दोनों हाथ से मोटी मोटी चूँचियों को कस कस के निचोड़ रहा था। बहुत ताकत थी कमल की देह मे।
और अब मुझे भी मस्ती की सूझी, कमल ने जब पूरा बाहर निकाल कर एक धक्के में बच्चेदानी तक मारा मेरी बच्चेदानी हिल गयी। पूरा खूंटा जड़ तक अंदर था, बस मैंने धीरे धीरे बुर को सिकोड़ना शुरू किया उस मोटे मूसल पे, और फिर हलके से ढीली करके फिर एक बार में ही कस के दबोच लिया, बिना अंदर बाहर किये चुदाई का मजा मेरे देवर को आ रहा था।
" ओह भौजी ओह, बहुत मजा आ रहा है आज तक अइसन मजा "कमल बोल रहा था
" अरे तो हमरे नयकी भौजी क चोद भी तो पहली बार रहे हो भैया " रेनू ने छेड़ा कमल को।
और अब कमल पूरी ताकत से चोद रहा था, लेकिन ननद को झूठ मूठ का छिनार थोड़े ही कहते हैं, मैं एकदम झड़ने के कगार पर थी।
रेनू ने कमल के कान में कुछ फुसफुसाया, और जब तक मैं समझूं रेनू ने खुद अपने हाथ से पकड़ कर अपने भैया का खूंटा मेरी बिल से बाहर कर के मेरी पिछवाड़े की दरार पर सटा दिया,
" अरे छिनार एक बार झड़ जाने देती, जब चूस रही थी तब नहीं झड़ने दी और जब मेरा प्यारा देवर पेल रहा था , एकदम झड़ने के कगार,...
लेकिन मैं चीखी कमल ने ढकेल दिया था पूरी ताकत से मुट्ठी ऐसा मोटा सुपाड़ा पिछवाड़े अंड़स गया था,
" भौजी ढीली करो " रेनू मुझे चिढ़ा रही थी जैसे मैं उसे समझा रही थी जब कमल ने पहली बार उसकी गांड में अपना खूंटा धँसाया था एकदम मेरी ही आवाज मे।
" स्साली छिनार तनी सांस तो लेने दो " मैं उससे बोली,
और मेरा देवर कम से कम उसने मेरी बात सुनी और जो मैंने समझाया था गांड मारते समय भी बुर रानी का ख्याल करना चाहिए वो सीख उसने अच्छी तरह सीख ली थी। एक हथेली वहां पर सहला रही थी, रगड़ रही कभी दो उँगलियाँ एक साथ बुर में अंदर बाहर एकदम लंड की तरह
और जब मेरे पिछवाड़े को देवर के मोटे सुपाड़े की आदत पड़ गयी तो धीरे धीरे पीठ सहलाते उसने ठेलना शुरू किय। मैं रेनू या हिना की तरह पहली बार तो पिछवाड़े नहीं घोंट रही थी इसलिए वो छल्ला मैंने ढीला कर रखा था,
गप्प
कमल का सुपाड़ा छल्ला पार कर गया।
लेकिन भौजी हो और देवर के साथ छेड़खानी न करे, मैंने अब जब छल्ला पार हो गया था तो आधे घुसे खूंटे पे उसे कस के भींच लिय। लेकिन कमल भी कम शैतान नहीं था, पीछे का बदला उसने आगे से लिया एक साथ तीन उंगलिया पेल कर,
थोड़ी देर में ही मैं आगे पीछे दोनों छेदो का मजा ले रही थी। दस पंद्रह मिनट की जबरदस्त रगड़ाई के बाद पहले मैं ही झड़ी लेकिन उसके साथ ही साथ कमल भी। बड़ी देर तक वो अंदर ठुसे रहा फिर धीरे धीरे खूंटा बाहर निकाला, टप टप टप टप जैसे महुआ चुए, मलाई मेरे पिछवाड़े से टपक रही थी।
पेड़ का सहारा पकड़ के मैं सीधी हुयी, शाम ढल चुकी थी। धीरे धीरे हम तीनो बाग़ से बाहर निकले