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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

motaalund

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जोरू का गुलाम भाग २२१ -

स्साली का गोलकुंडा



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जो मजा स्साली की गाँड़ मारने में है, चाहे कोरी हो या फटी, चाहे जबरदस्ती चाहे मर्जी से, चाहे कुँवारी हो चाहे शादी शुदा, उतना मजा किसी चीज में नहीं,

और अगर शादी शुदा साली है तब उसके मर्द के सामने, उसको दिखा के, ललचा के, कभी थोड़ा निकाल के थोड़ा घुसा के, कभी दिखा के कभी छुपा के, कभी निहुरा के कभी गोद में बिठा के स्साली की गाँड़ मारने में है उस मजे केआगे सब मजा फीका,

और मारने वाले जीजू से कम मजा मरवाने वाली साली को नहीं आता, अपने मरद के सामने, अपने मरद को दिखा के, ललचा के, उकसा के, चिढ़ा के चिढ़ा के अपने जीजू से मरवाने में

update posted, please read, enjoy, like and share your comments.
दबे छुपे अरमानों और खास कर मरद के सामने लेने की बात हो तो...
जज्बात उफान मारने लगते हैं...
उत्तेजना अपने अलग हीं सीमा पर पहुँच जाती है...
ये लाइनें कहानियों की लड़ी को चमकदार बना देते हैं...
 

motaalund

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यह ससुर बहू आयुषी जी को एक ट्रिब्यूट सरीखा है , लेकिन अब आपको अच्छा लगा तो इस प्रंसग को विस्तार देकर ५-६ भागों में पोस्ट करना ही होगा। बस मैं यह देख रही थी की आप और बाकी मित्रों की क्या राय है। असल में अभी यह सुगना के परिचय सरीखा ही है और गाँव में जहां पेट की आग के चलते मेहँदी सुखने के पहले पति को बिदेश जाना पड़ता है, भोजपुरी क्षेत्रों में बिदेसिया के गीत, रेलिया न बैरी, जहजिया न बैरी, इहे पइसवा बैरी हो, और सुगना और उसके ससुर का संबध सिर्फ देह का ही नहीं केयर का भी है, घर में सिर्फ दो लोग हो तो इस प्रकार के संबंध सहज है लेकिन इस भाग का जो आखिरी भाग है जहाँ सुगना के ससुर को फालिज मार गया है, वो देह से आगे बढ़ के रिश्तों को दिखाता है।

बहुत धन्यवाद।
यही उस अंचल का अभिशाप बन गया...
बाहुबली तो डेग डेग पर मिल जाएंगे..
लेकिन काम.. उद्योग... नौकरी...
इसके लिए परदेश हीं जाना पड़ेगा...
एक ख़ास उम्र के लोग(मरद) मुश्किल से हीं दिखते हैं..
लेकिन उसी उम्र की नव-विवाहित स्त्रियाँ ..
अपनी आग में जलती रहती हैं...
और घर-परिवार में हीं सहारा ढूंढती रहती हैं...
 

motaalund

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सुगना और उनके ससुर का प्रसंग फिर आएगा और विस्तार से, अभी तो मैंने रात की दावत कह के बस इशारा सा कर दिया, लेकिन सुगना ने क्या परोसा दावत में और खाने वाले ने कैसे खाया सब डिटेल के साथ
अपना छप्पन भोग लगवाया होगा...
 

motaalund

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एकदम चाहे ननद हो या देवर बड़ा करने का काम तो भौजाई का ही है। और फिर बंटी भी पच्छिम पट्टी का, सुगना के पड़ोस का तो उन्ही की जिम्मेदारी, फिर जबरदस्ती तो करनी ही पड़ती है चाहे देवर हो या ननद।
फागुन का महीना हीं ऐसा है कि..
सब पर मस्ती छाई रहती है...
यहाँ तक की पशु पक्षी भी संसर्ग के लिए साथी को तलाश लेते हैं....
और फिर देह का खेल शुरू...
 

motaalund

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सुगना और ससुर के अपडेट आयंगे तो लेकिन शायद दस बारह पोस्टों के बाद, और आपके सुझवों का जरूर ध्यान दूंगी।
ससुर -बहु के प्रसंग पहली बार आपके कहानी में पढ़ कर मजा आ गया...
सास-दामाद तो पीछे भी कई बार पढ़ा...
लेकिन जो सिचुएशन यहाँ बनाई है.. वो एक सामाजिक दर्पण की तरह है...
 

motaalund

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बहुत अच्छी कहानी चल रही है। वास्तव में देवर के लिए बुर का इंतजाम करना भौजाई की ही जिम्मेवारी होती है। कच्चा लंड जल्दी झड़ नही पाता और शुरुआत ही बुर से हो तो देर से झड़ने की आदत पड़ जाती है। वहीं अगर बुर न मिले और देवर मुट्ठी मारने लग जाए तो हाथ की जगह बुर बहुत ही मुलायम होती है इसीलिए डालते ही झड़ जाने की बिमारी धर लेती है। इसलिए लंड की पिचकारी की शुरुआत बुर को रंगने से ही होनी चाहिए।
सिर्फ देवर हीं नहीं...
ननदों का भी खास ख्याल रखती हैं भाभियां...
 
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