Premkumar65
Don't Miss the Opportunity
- 5,602
- 5,915
- 173
Nanad bhabhi ki masti bahut hi achhi tarah se Darsha hai Komal ji.सावन की मस्ती, ननद संग
मेरी ननद और मैंने खूब मस्ती की, सास तो इनके मामा के पास, ये भी छोड़ने गए तो इनकी मामी ने रोक लिया पांच दसदिन के लिए,
कोई मेला न बचा होगा जहाँ मैं और ननद न गए हों , मैं तो पहली बार गाँव का मेला देख रही थी ननद जी का सब देखा सुना
--- काले उमड़ते, घुमड़ते बादल, बारिश से भीगी मिट्टी की सोंधी-सोंधी महक, चारों ओर फैली हरी-हरी चुनरी की तरह धान के खेत,
हल्की-हल्की बहती ठंडी हवा,
हरी, लाल, पीली, चुनरिया, पहने अठखेलियां करती, कजरी और मेले के गाने के तान छेड़ती, लड़कियों और औरतों के झुंड मस्त, मेले की ओर जा रहे थे, लग रहा था कि ढेर सारे इंद्रधनुष जमीन पर उतर आयें हो।
और उनको छेड़ते, गाते, मस्ती करते, लम्बे, खूब तगड़े गठीले बदन के मर्द भी… नजर ही नहीं हटती थी।
ननद मेरी गाँव की सब ननदों की लीडर, कुँवारी,शादी शुदा,
और साथ में गाँव की भौजाइयां, गुलबिया, चमेलिया, चुम्मन भौजी,
मैंने बताया था न, मैं और मेरी ननद रंग रूप जोबन सब एक, हाँ सिर्फ मेरी ठुड्डी पे तिल था और ननद के गाल पे और मैंने गाल पे एकदम उसी तरह के तिल का गुदना गुदा लिया और ननद ने मेरी ठुड्डी वाले तिल की तरह, बस अब तो एक बार ये भी देख के न पहचान पाएं,
उन्हें चिढ़ाती भी थी की ननद रानी कभी मुझे समझ के आपके भैया आपके ऊपर चढ़ गए तो,
और मेले की तैयारी भी मेरी ननद ने सिखायी, " अरे भौजी ऐसे कपडे नहीं, मेले में ऐसे चलो की आग लग जाए "
अपने हाथ से खूब चटक लाल साडी और खूब लो काट चोली की तरह का ब्लाउज, निकाल के, फिर तो कोहनी तक चूड़ी,
बड़े बड़े झुमके, आँख भर काजल, खूब गाढ़ी लाल लिपस्टिक, मेंहदी, पैरों में चटक लाल महावर,
चौड़ी हजार घंघरू वाली पायल, बड़ी सी लाल बिंदी और तैयार भी हम दोनों एकदम एक जैसे होते, जैसी साडी वो वैसी मेरी लिए, खाली रंग नहीं, पल्लू, डिजाइन, जिस दिन मेरी ननद लाल चूड़ी पहनती मैं भी लाल चूड़ी और जिस दिन मैं हरी चूड़ी पहनती वो सब उतार के फिर से हरी चूड़ी,
दूर से क्या पास से भी देख के कोई ननद भौजाई में अंतर् नहीं बता सकता था,
राजा इंदर की परियों के झुण्ड ऐसे, और कभी मैं गाना छेड़ती कभी मेरी ननद
" पांच रुपया दे दो बालम मेला देखन जाउंगी, "
और सब ननद भौजाई भी साथ, साथ, जहां गाँव क सिवान डका, कोई ससुर जेठ पहचान वाले नहीं होने का डर तो बस भौजियों का भी घूघंट हट जाता था, बस माथा ढका रहता था,
और मेला में अगर ठेला न हो तो मेले का मजा क्या, पहले मेले में ही एक पतला सा रस्ता था, एक संकरी गली सी, नीलू ने मेरी ननद से पूछा
" नयकी भौजी को उधर से ले चले "
" एकदम, अरे मेले में जबतक ठेले का मजा न मिले, रेलम पेल न हो, "
और वो दोनों मेरे हाथ पकड़ के उस संकरी गली में धस गयीं मैं भी निश्चिंत थी की मेरी दो दो ननदों ने हाथ पकड़ रखा है क्या होगा, लेकिन पहले धक्के में ही दोनों का हाथ छूटा, उसके बाद तो इतने मर्द, दो चार आगे चल रहे बस रुक जाते, और पीछे वाले धक्का मारते, फिर किसी का हाथ ऊपर से, किसी का चोली के अंदर भी, और खूब हल्ला , मर्दों से ज्यादा लड़कियों औरतों का, मैंने इधर उधर देखा, मेरी ननद दिखी और उनके साथ तो चार चार मर्द, दो ने तो सीधे चोली में हाथ डाल रखा था, एक ने ऊपर से एक ने नीचे से, एक चूतड़ की नाप जोख कर रहा था, एक जांघ सहला रहा था,
ननद मुझे देख के खूब जोर से मुस्करायीं और मैं भी,
गाँव में मेला घूमने आयीं हूँ तो मेले का पूरा मजा ले लूँ।
दो मिनट का रास्ता बीस मिनट में पार हुआ, लेकिन हम सब हंस रही थीं, खिलखिला रही थी, आधी से ज्यादा के तो चोली के एक दो बटन टूट भी गए थे, जो ज्यादा समझदार थीं, उन्होंने पहले से अपने ऊपर के दो बटन खोल दिए थे,
कभी गुड़ की जलेबी की दूकान पे तो कभी चूड़ी वाली के सामने, पूरा मेला हम ननद भौजाई मिल के नापते रहते थे। एक ऊंचा झूला था ,
जिसपर ज्यादातर औरतें अपने मर्दों के साथ, कुछ ज्यादा हिम्मती अपने यारों के साथ, झूला जब ऊपर से नीचे आता तो खूब जोर से हल्ला होता
मैंने ननद को चिढ़ाया, " का सोच रही हैं ननदोई जी होते तो साथ साथ झूला क मजा लेतीं"
" अरे तो हमार भौजाई कौन ननदोई से कम हैं "
हंसती हुयी वो बोली और हम दोनों झूले पे बैठे बाकी लोगो की तरह हो हो करते, जैसे ही झूला ऊपर गया, मेरी बदमाश ननद मेरे कंधे पे हाथ रख के कस के पकडे थी, चोली ऊपर से दबाते बोली, " काहो भौजी, भैया ऐसे दबाते हैं, "
" नहीं ऐसे " खिलखिलाते हुए मैं बोली और मेरा हाथ ननद की चोली के अंदर,
दो बटन उनके उस गली में यारों ने मसल मसल के तोड़ दिए थे , एक मैंने खोल दिया और सीधे मेरा हाथ ननद के मस्त जोबन का रस लेते कस कस के दबा रहा था, फिर पूरे झूले पर हम दोनोके हाथ एक दुसरे के जुबना का हाल चाल लेते रहे,
बीस तीस कोस में कोई मेला नहीं बचा था, जहाँ हम ननद भौजाई, न गए हों दो चार जगह तो ट्रैक्टर की ट्राली में भी बैठ के गए,
पूरे गाँव की औरतें हंसती, कहतीं आस पास के गाँव जवार में भी येह ननद भौजाई अस, मेलाघुमनी न होगी,
रात में भी कभी मैं नन्दोई बनती तो कभी वो अपने भैया की जगह लेती, एकदम पक्की दोस्ती, कुछ भी बचा छिपा नहीं था।
लेकिन जब ननद भौजाई बहनों से बढ़ कर, सहेली झूठ ऐसा रिश्ता हो, सुख के साथ ननद अपने दुःख की गठरी पोटरी भी अपने भौजाई के आगे ही खोलती है,
कुछ बातें तो माँ से भी नहीं कही जाती, उनका दुःख ही बढ़ता है, पति से तो सपने में भी नहीं, बहुत अच्छा हुआ तो बोलेगा नहीं वरना कौन मरद अपनी माँ बहन की बुराई सुनता है,
--