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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

komaalrani

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komaalrani

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ये तो सच ही है. अब भाभियाँ अपनी छिनार नांदिया की नथ नहीं उतारेगी तो कौन उतरेगा. और वो भी भौजी के भाइयो से. पर उसके भैया को भी क्यों छोड़ना साजन हो या देवर चढ़ेंगे अपनी बहेनिया पे. अरे ये तो भौजी का दिया हुआ आशीर्वाद होता है. छिनार नंदियाओ के लिए. सदा फाड़वाती रहो. अपने और भौजी के भाइयो के खुटे पर दोनों टांगे फैलाकार कुढ़ती रहो. जिला टॉप बनो.

और ये नांदिया छिनारे भौजी का साया उठाकर देकती है की भईया की मोटाई कितनी है. डाया नापति है बेचारी.

खास साजनजी के निचे उनकी बहेनिया को देखने का माझा कुछ और ही है. माझा आ गया.
एकदम सही कहा आपने नन्द भौजाई का झगड़ा इसी बात का

ननद कसमसा के रह जाती है रात भर, वहां भौजी की पायल छनकती है, चूड़ी चुरमुराती है, बिछुए बोलते हैं, भौजी मजे से सिसकियाँ लेती हैं और सुबह उनके चेहरे पे वो ख़ुशी नजर आती है , देह में वो थकान, जोबन पे वो उफान

और ननद रात भर बस करवट बदलती है सोचती है मेरी जाँघों के बीच भी तो वही बुलबुल है, चारा घोंटने को तैयार और भौजी मजे ले रही है और मैं कसक रही हूँ

इसलिए भौजी को जल्द से जल्द ननद की बुलबुल का इंतजाम करना चाहिए।
 

komaalrani

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वाह मेने कहा था एक बार समधी समधन के नाम का मज़ाक होना चाहिये. लगता है हमारे बाउजी कभी आए थे यहाँ. तभी तो मेरी और सासुमा की बेटी की सकल मिलती है.

क्या छेड़ा है सासु माँ को.

सास भी मस्त हे. मेरी बेटी तो अब तू है. लेकिन मौका छोड़ दे वो कोमलिया नहीं. पूरा गांव बहन चो.....

पर आखिर सास भी तो कभी बहु थी. बेटी ही बहु को बना लिया और ताना परफेक्ट. माझा ला दिया. और कबूल लिया.


अमेज़िंग नांदिया के छिनार्पन की तो पीएचडी. कुछ भी नहीं छोड़ा जबरदस्त.

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एकदम सही कहा आपने लेकिन एक बात और इस कहानी में कई बारे ऐसे प्रंसग भी आते हैं जब सुख के नीचे दुःख छिपा होता है, मजाक कि कलई कर के विषाद को छुपाया जाता है, और इस पोस्ट में खास तौर पर

इस कहानी में सास बहू का रिश्ता करीब करीब ऐसा ही है जैसा मोहे रंग दे में था, एक दूसरे को अच्छी तरह समझने वाला, बिना बोले दुःख सुख में साथ देना

और सावन में जाने को मना करना, सास के अकेलेपन के दर्द को देखते था जैसा एक लाइन में कहा

"जेठानी मेरी तो,... एक पैर उनका बंबई में, जेठ जी तो बंबई में ही रहते थे, कुछ काम धंधा था, मेरी शादी और गौने में आये थे, उसके बाद एक दो दिन के लिए एक दो बार, तो जेठानी पंद्रह बीस दिन के लिए जेठ जी के पास गयी थीं साथ में मेरी छोटी ननद भी, तो बस मैं सास और ये,"

और जहाँ तक इनका, सास के बेटे का सवाल था, एक पैर खेत में और एक पैर शहर में , बाजार में, कभी ये काम, कभी वो काम

और बहू अगर सावन के नाम पे मायके तो सास इतने बड़े घर में अकेले, बार बार दरवाजा देखेगीं, सूना आंगन और बोलेंगी तो कुछ नहीं लेकिन मन ही मन अकेलापन सालेगा,

लेकिन बहू ये बात तो सास से कह नहीं सकती कि वो जानती है सास का दुःख इसलिए मजाक में ही उस बात को कह देती है
" आपको अकेली छोड़ के मैं नहीं जाने वली धक्का देके भी भेजेंगी तो भी नहीं, आपके सर में दर्द होगा तो तेल कौन लगाएगा, फिर मैं मायके में, और लौटी तो देखा की मेरी सास को कोई उठा ले गया, तो दूसरी सास कहाँ से लाऊंगी, आठ दस रूपया देके भी मंगल वाली बजार में नहीं मिलेंगी "

और सास भी समझती है वह बहू ही नहीं, बेटी भी है, और सुख दुःख कि सहेली भी।

इसी तरह ननद भौजाई के रिश्ते को एक नॉन एरोटिक ढंग से भी इस पार्ट में लाया गया है , दुःख बांटने वाली सहेली के तौर पर,

" लेकिन जब ननद भौजाई बहनों से बढ़ कर, सहेली झूठ ऐसा रिश्ता हो, सुख के साथ ननद अपने दुःख की गठरी पोटरी भी अपने भौजाई के आगे ही खोलती है,

कुछ बातें तो माँ से भी नहीं कही जाती, उनका दुःख ही बढ़ता है, पति से तो सपने में भी नहीं, बहुत अच्छा हुआ तो बोलेगा नहीं वरना कौन मरद अपनी माँ बहन की बुराई सुनता है,

--

मुझे पूरा विश्वास है कि आप और मेरे अन्य मित्र पाठकों ने इस निहतार्थ को, सास बहू और ननद भौजाई के रिश्ते के इन पक्षों को भी सराहा होगा।
 

komaalrani

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कहानी मे मस्ती होंगी शारारत होंगी. त्यौहार होगा शादी वाला माहोल होगा. लेकिन एक चीज कोमल रनी की कहानियो मे पक्का होंगी. खुशियाँ.

ननद भाभी की जुगलबंधी मन मोह लिया. इस ननंद भोजाई जोड़ी के लिए तो सखी शब्द इस्तमाल करना बनता है.

क्या मेले की रंगत दिखाई हे. ननंद भोजाई का टिल एक्सचेंज वाला आईडिया तो जबरदस्त था.


छिनार नांदिया को मालूम है की कहा डबवाने है. माशालवाने है. तभी तो सकडी गली. और 4 मर्दो से घिए. क्या जोबन और क्या पीछवाडा सब का स्वाद ले लिया ननद रनी ने.

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ब्याहता ननदे जब मायके लौटती हैं तो फिर घूंघट हटाकर कल की लड़कियां बन जाती है, वही उछल कूद, हंसी मजाक, पुराने गैल रस्ते सब याद आ जाते हैं और जब घर में माँ भी न हो, वो भी अपने मायके चली गयी हो और सिर्फ भौजी, एक तो समौरिया, दूसरे एकदम सहेली की तरह तो बस कुंवारेपन के दिन वापस आ जाते हैं, और भौजी की ऊँगली पकड़ के मेले में, अरे मेरे गाँव का मेला नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा भौजी,

और ननद भौजाई की छेड़छाड़, जो रही सही दूरियां खत्म करती है
फिर लगता है ननद को मायके का असली सुख, किसी के कंधे पर सर रख के सब दुःख सुख कहने का सुख और ये विश्वास
माँ रहे न रहे, मायका रहेगा, भौजाई तो है न।
 

komaalrani

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मेरा कहने का मतलब था कि अरविंदवा भी तो देवर है...
फिर इस समारोह में शामिल होने से क्यूँ बचा रह गया...
गाँव में नहीं था ... यानि बाहर किसी काम से गया हुआ था...
इस कहानी में ढेर सारे एरोटिक प्रसंगों के बीच कहीं कहीं अवसाद छलक जाता है, शायद यह फोरम के किसी अलिखित परंपंरा या पाठकों की आशा के अनुरूप न हो पर कहानी जिंदगी के आसपास चलती है तो दस बीस पार्ट्स के बाद रोकते रोके भी वह अनबोला दुःख छलक ही जाता है। मौज मस्ती की मोटी परत के नीचे कहीं कहीं अकेलापन भी है, सन्नाटा भी है और वह अकेलापन कुछ नजदीकियां भी ले आता है।

अरविन्द का मामला कुछ ऐसा ही है। आपको याद ही होगा, भाग ५० माँ ( पृष्ठ ५२१ ), दोहा में कई काम करने गए लोगों की मौत से जुडी थी वो पोस्ट और उसी से जुड़े थे अरविन्द और गीता के बाबू जी, उसी भाग में ये लाइन आयी थी

" गीता फिर चुप हो गयी,... फिर अब उसने बोलना शुरू किया तो नहीं रुकी,...

बहुत खराब खबर थी,... पास के गाँव की दो औरतों ने,... एक को तो मैं जानती भी थी,... सिन्दूर पोंछ लिया, चूड़ी तोड़ दिया,...बिदा होके गौने आयी थी तो मैं गयी थी, गौने के दस दिन के अंदर ही,... उसका मरद, वही बाबू जी वाली एजेंसी से ही,... साल भर हुआ होगा,... बोल के गया था जल्दी आयंगे,... हम लोग चिढ़ाते भी थे की जब अबकी आएंगे तो नौ महीने बाद सोहर होगा,... लेकिन,... लेकिन अखबार में फोटो आयी।"

और होलिका माई वाले प्रसंग में ( भाग ६७ पृष्ठ ६४३ )

" बाइस पुरवा में ही तो पांच लोग मरे थे फूटबाल के खेल के लिए जो गए थे, गितवा के बाबू जी भेजे थे, गलती उनकी कोई नहीं थी वो तो अच्छी नौकरी ही दिलवाये थे,... लेकिन उसमें एक सुहागिन थी, हाथ की मेंहदी, पैर का महावर भी नहीं सूखा था की ज्यादा पैसे के लालच में वो चला गया और लौटी तो अखबार में फोटो, और कोई उसको समझा दिया की यही गितवा के माई के मर्द बुलवाये थे,

बस उसने जब चौखट पर चूड़ी तोड़ी तो गितवा के माई का नाम ले ले कर, जैसा मेरा सुहाग उजड़ा वैसे ही,...

बाद में लोगो ने बहुत समझाया,... गितवा के माई से वो खुद बोली, लेकिन गितवा क माई बोली, गलती तुम्हारी नहीं है दुःख ऐसा कौन बर्दास्त कर पायेगा, बस हम लोगों को माफ़ कर दो , गितवा के बाबू का पता नहीं चल रहा था, मिले भी तो कई महीने से टल रहा था अब बम्बई लौटेंगे तब लौटेंगे, लेकिन अब पक्का हो गया दो महीने में,... और गाँव नहीं आ पाएंगे की इतने लोगों की आह लगी है,..."

यहाँ तक की होलिका माई ने भी मना कर दिया की अरविन्द के बाबू अब इस गाँव की सरहद में नहीं आ पाएंगे,

" गितवा क माई बहुत पूजा पाठ की है, सबका उपकार की है, सपने में भी किसी का बुरा नहीं सोची, है तो सावित्री की तरह सत्यवान को लौटा लेगी, अषाढ़ के उज्जर पाख के एकादशी के दिन, लौट आयंगे समुन्दर पार से,... लेकिन,...


वो आवाज रुक गयी , फिर हलकी आवाज में बोली,

उनकर मरद बस ठीक ठाक रहेंगे, ये लड़कन को यहाँ से ले जाने क धंधा छोड़ दें,... हाँ अब यह बाइस पुरवा क सरहद में बकी अब वो नहीं आ सकते,... नहीं आएं तो ठीक,... गितवा क माई का घर गाँव है जब चाहे आये,... सावन में आएगी वो महीना भर के लिए तो सत्ती माई क पूजा करे और बाइस पुरवा क औरतों को भोज दे, ."

तो अब आप सोच सकते हैं अरविन्द और गीता की मनस्थिति, अरविन्द ने इसी लिए मन बना लिया था, गीता के अलावा और किसी के साथ नहीं हाँ फुलवा की बहिनिया या फुलवा की ननद की बात अलग थी, फुलवा खुद उसको अपनी बहन सौंप कर गयी थी।

लेकिन अरविन्द को छुटकी भा गयी थी इसलिए कबड्डी से ही गीता जैसे ही आउट हुयी छुटकी भी आउट हो गयी और वो दोनों

अरविन्द के पास, अगले दिन छुटकी को आना भी नहीं था , न वो ननद थी न भाभी तो अरविन्द, छुटकी और गीता और वो प्रंसग अलग से आएगा बाद में हो सकता है अंतिम हिस्से के आसपास।


 

Shetan

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Congratulation Komalji. 17 lakhs views superb. Abhi rasta bahot lamba he. Pichar abhi baki he.

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Shetan

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एकदम सही कहा आपने नन्द भौजाई का झगड़ा इसी बात का

ननद कसमसा के रह जाती है रात भर, वहां भौजी की पायल छनकती है, चूड़ी चुरमुराती है, बिछुए बोलते हैं, भौजी मजे से सिसकियाँ लेती हैं और सुबह उनके चेहरे पे वो ख़ुशी नजर आती है , देह में वो थकान, जोबन पे वो उफान

और ननद रात भर बस करवट बदलती है सोचती है मेरी जाँघों के बीच भी तो वही बुलबुल है, चारा घोंटने को तैयार और भौजी मजे ले रही है और मैं कसक रही हूँ

इसलिए भौजी को जल्द से जल्द ननद की बुलबुल का इंतजाम करना चाहिए।
Kaha se lati ho esi jabardast panch line.
देह में वो थकान, जोबन पे वो उफान
 

Umakant007

चरित्रं विचित्रं..
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ब्याहता ननदे जब मायके लौटती हैं तो फिर घूंघट हटाकर कल की लड़कियां बन जाती है, वही उछल कूद, हंसी मजाक, पुराने गैल रस्ते सब याद आ जाते हैं और जब घर में माँ भी न हो, वो भी अपने मायके चली गयी हो और सिर्फ भौजी, एक तो समौरिया, दूसरे एकदम सहेली की तरह तो बस कुंवारेपन के दिन वापस आ जाते हैं, और भौजी की ऊँगली पकड़ के मेले में, अरे मेरे गाँव का मेला नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा भौजी,

और ननद भौजाई की छेड़छाड़, जो रही सही दूरियां खत्म करती है
फिर लगता है ननद को मायके का असली सुख, किसी के कंधे पर सर रख के सब दुःख सुख कहने का सुख और ये विश्वास
माँ रहे न रहे, मायका रहेगा, भौजाई तो है न।

बेटियां कुछ लेने नहीं आती हैं पीहर

बेटियां पीहर आती हैं अपनी जड़ों को सींचने के लिए...
तलाशने आती हैं भाई की खुशियां...
वे ढूंढ़ने आती हैं अपना सलोना बचपन...
रखने आती हैं आंगन में स्नेह का दीपक...
बेटियां कुछ लेने नहीं आती हैं पीहर...

बेटियां ताबीज बांधने आती हैं दरवाजे पर कि नजर से बचा रहे घर...
वे नहाने आती हैं ममता की निर्झरिणी में...
देने आती हैं अपने भीतर से पवित्र चंदन...
बेटियां कुछ लेने नहीं आती हैं पीहर...

बेटियां जब भी लौटती हैं ससुराल जाते-जाते भी यहीं छूट जाती हैं...
 
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komaalrani

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बेटियां कुछ लेने नहीं आती हैं पीहर

बेटियां पीहर आती हैं अपनी जड़ों को सींचने के लिए...
तलाशने आती हैं भाई की खुशियां...
वे ढूंढ़ने आती हैं अपना सलोना बचपन...

रखने आती हैं आंगन में स्नेह का दीपक...
बेटियां कुछ लेने नहीं आती हैं पीहर...

बेटियां ताबीज बांधने आती हैं दरवाजे पर कि नजर से बचा रहे घर...
वे नहाने आती हैं ममता की निर्झरिणी में...
देने आती हैं अपने भीतर से पवित्र चंदन...
बेटियां कुछ लेने नहीं आती हैं पीहर...


बेटियां जब भी लौटती हैं ससुराल जाते-जाते भी यहीं छूट जाती हैं...
सब कुछ तो कह दिया आपने

जो मैं कहना चाहती थी

जो चाह कर भी नहीं कह पा रही थी, जो चित्र बस आँखों के आगे झिलमिला के रह जाते थे वो सब उतार दिए आपने कागज पे

बहुत धन्यवाद
 

Premkumar65

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भाग ८४ -इन्सेस्ट कथा - ननद के भैया बने उनके सैंया


मेरी ननद, मेरा मरद
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जिस दिन भौजाई गौने उतरती है और उसकी नजर अपनी ननद पर पड़ती है, वो मन ही मन अपने भाई का टांका उससे भिड़वाने का सोचने लगती है,

कैसे ननद के ऊपर अपने भाई को चढ़ाये, चाहे कुंवारी हो या बियहता, बस उस भौजाई के मन में एक ही शकल बार बार घूमती है, की ननदिया लेटी है टाँगे ऊपर किये, जाँघे फैलाये और उसका भाई गपागप, गपागप, ननद रानी की ओखली में अपना मूसल चला रहा है,


पर गौने की रात में जब भौजाई की फटती है,
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रात भर ननद का भाई उसके ऊपर चढ़ता है, सुबह तक जाँघे फटी पड़ी रहती हैं, जमींन पर पैर नहीं रखा जाता, दो ननदें टांग कर बिस्तर से उठा कर ले जाती है, दीवार के सहारे से चलना पड़ता है तभी भी बार बार चिल्ख उठती है, और नंदों के झुरमुट में वैसी ननदें भी जिनकी झांटे भी ठीक से नहीं आयी होती, पूछती हैं,

" भौजी केतना मोट था, बहुत दर्द हुआ का,"
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और गाँव देहात में तो कई बार दो चार बरजोर तगड़ी ननद मिल के औचक भौजी का दोनों हाथ पीछे से पकड़ लेती हैं, छुड़ाने का तो दूर, भौजाई हिल नहीं पाती, घूंघट ऊपर से, फिर बाकी सब ननदें धीरे धीरे आराम से भौजी का लहंगा ऊपर सरकाती जाती हैं, और जहाँ जांघ तक पहुंचा तो एक झटके में कमर तक, और दो चार ननदें तैयार रहती हैं पहले से, कमर पे उसे पकड़ने को,

और बुलबुल दिख जाती है, रात भर का धक्का खा खा के एकदम लाल, और बजबजाती मलाई, अभी भी बूँद बूँद रिसती,


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जेठानियाँ, और सास लोग, जहाँ ये सब शुरू हुआ खुद सरक लेती हैं, दरवाजा उठँगा देती है हाँ काम करने वाली जो रिश्ते में ननद ही लगती है, कुँवारी, ब्याहता वो सब जरूर और सब को उकसाती है, अरे ऊपर वाल मुंह तो सास जेठानी देखती हैं, ननदें तो नीचे वाला ही देखती हैं,



फिर छेड़ने वाले सवाल जवाब, "भैया ने कितनी बार किया, देख यार एकदम लाल हो गया है बुलबुल का मुंह बहुत जोर के धक्के पड़े होंगे"

और फिर नयी नयी भौजाई के मन में यही आता है, कोई कोई तो ननद को चिढ़ाते अपनी जेठानी से बोल भी देती हैं

" दीदी आज रात को इन्ही को भेज दीजिये अपने देवर के पास, पता चला जाएगा, धक्का कितनी जोर का पड़ता है, मोटा कितना है "
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और उसी समय से भौजाई सोचती है किसी दिन मौका पड़ने पे इसके भैया को इसके ऊपर न चढ़ाया तो,


तो बस मैंने भी सोच रखा था गौने के अगले ही दिन, ननद पे इनके भैया को चढाने की बात, ज़रा इनको भी पता चल जाए,




और अब वो मौका आ गया था।



हम तीनों की, मेरी चमेलिया और गुलबिया की चाल चल गयी, ननद रानी हदस गयी. समझ नहीं पायीं तीन तीन भौजाई की चाल,.. खुद ही उन्होंने कबूल कर लिया , मैं कुछ भी कहूं उन्हें कबूल होगा, लेकिन दो दो मुट्ठी से बचा लूँ,


यही तो मैं चाहती थी और सबके सामने उनसे कबूल करा लिया,... मेरे मरद के साथ, मेरे सामने,... और सिर्फ आज नहीं, जब भी मैं कहूं, जहाँ कहूं जिसके सामने, खुद टांग फैलाएंगी, चूसेंगी और उनके खूंटे पर चढ़ेंगी, ... अगवाड़ा पिछवाड़ा,... सब और एक बार नहीं तीन तिरबाचा भरवाया। चमेलिया गुलबिया तो गवाह थीं ही, दूबे भाभी भी सुन रही थीं।


बस. रात में तो हम तीनो को ही घर में रहना था, मैं मेरी ननद और मेरा मरद

कब्बडी के बाद सास सब गाँव के बाहर चली जाती थीं वहीँ से, और चौबीस घंटे के बाद लौटती थीं. अगले दिन जब देवर ननद भौजाई की होली होती थी तो कोई ननद, देवर, की महतारी गाँव में नहीं होती थी, तो सास को मेरे होना नहीं था,... और इनको भी रात में लौटना था, खाना हम सब को घर में, इसलिए मैंने ननद को बोल रखा था की वो पूड़ी बखीर बना के रखेंगी। तो जब मैं कमल की माई से मिल के लौटी तो ननद मेरी नहा धो के खाना बना के एकदम तैयार, और घर में घुसते ही मैंने उन्हें अँकवार में भर लिया।



मैंने तो अँकवार में ही भरा था ननदिया को, उन्होंने जबरदस्त चुम्मा ले लिया। सीधे जीभ मेरे मुंह में छल कब्बड्डी खेलने लगी. एकदम उसके भैया वाला स्वाद। मैंने सीधे साड़ी पे हाथ मारा और जोबन पकड़ के दबाने लगी,.... खूब कड़े कड़े, एकदम मुट्ठी में भरने लायक,.. और सोचने लगी ननद के बारे में, सास के बारे में, सावन में जब सिर्फ मैं और ननद थे और क्या मस्ती हम ननद भौजाई ने की
Mast mast update hai komal ji. Nanad ki ragadai ka intezar hai.
 
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