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Search men jaa ke try kariye ya google pe dekhiye shaayd kuch pata chaleBehna Ka khyal me rakhunga.
Is story Ka koi pata ho kisiko to please share kare
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इन प्रसंगों और उनके स्थान के चुनाव के पीछे भी कुछ भाव छुपा है...महुआ और आम के बौर की महक ही बौरा देती है, इसलिए इस प्रसंग के लिए मैंने यह जगह चुनी, बाकी लोगो से अलग, सिर्फ तीन, रेनू, कमल और जिसने रेनू कमल की गाँठ जुड़वायी,
खास कर रेनुआ की माँ...उन के घर में सुख शान्ति के लिए भी जरूरी था, जिस तरह से कमल की माँ ने कहा था ,
ललिया ने कैसे रेनू और कमल के बीच अम्बुजा सीमेंट वाली दीवाल खड़ी की थी फेविकोल का जोड़ लगा के जिसे खली भी न तोड़ सके ( पोस्ट ६९२३, दीवाल भाई बहिन के बीच में भाग ७१, पृष्ठ ६९३ ),
और जिस तरह से वो बोलीं,
" लेकिन एक बार फिर वो उदास हो गयी थीं, बहुत धीमी आवाज में बोली
लेकिन तोहरे देवर की किस्मत तो बिगड़ी गयी न, अइसन सोना अस देह सांड़ अस ताकत,.. और महीना दो महीना में कउनो काम वाली, घास वाली , कभी वो भी नहीं, .... हरदम उदास रहता या गुस्से में,.... बहुत चिंता है।
रेनू की चाची ने बताया फिर एकदम चुप, चेहरा झांवा,... बस रो नहीं रही थीं।फिर बहुत धीरे धीरे बोलीं, रेनुआ वो अब एकदम चुप्प, कतो गाना रतजगा होता है तो वहां भी नहीं जाती, मैं सोचती हूँ सादी बियाह होगा गौना होगा तो वहां भी कैसे, ऐसी हदसी डरी घबड़ायी रहेगी तो कैसे और कमल की भी हालात, अइसन सोना अस देह, जांगर ताकत लेकिन हम लोगन तो तो पूरे घर पे जैसे गरहन ,
तो उस पोस्ट के संदर्भ में तो अब पूरा परिवार खुश रहेगा
अरे नहीं...मैंने कहा था न एक बार में एक ही घटनास्थल पर और उस से जुडी घटनाओं पर फोकस रहेगा, और बाकी घटनाएं बाद में
अरविन्द, गीता, छुटकी, गीता की सहेलियां इन सबके किस्से भी आएंगे बाद में, कबड्डी से ही गीता छुटकी गीता के साथ चली गयी थी और ये बता के की तीन चार दिन के लिए, वो उसे अपने भाई से मिलवाने के लिए तो क्या हुआ ये सब विस्तार से आएगा
अभी पहले साजन ने क्या किया अपनी सगी बहन मेरी ननद के साथ, घर की कहानी
फिर सुगना भौजी और उनके ससुर की दास्तान,
पठानटोली वालियां
फिर छुटकी और
अभी इसमें कुछ काटने बेराने ऐसा नहीं लग रहा है।
जो कहीं न कहीं जीवन से जुड़ी हुई थी...एकदम गाँव का पूरा खाका खींच दिया और डाक्टर वाली बात पर रेनू जी का मैला आँचल याद आ गया
साजन सजनी के मिलन में हर तरह की भावनाओं का सम्मिश्रण होता है...मस्ती के इस सागर मे क्या क्या लू और क्या छोड़ू. मै सायद पूरा बता भी नहीं पाऊँगी.
1) प्रेम भरे वो शब्द जो सजनी बोलते ही गद गदा जाती है.
2) पर उसके तुरंत ही बाद आगे की लाइन मे शारारत और वासना से भरी लाइन. जिसे पढ़ते हसीं और बहोत कुछ महसूस हुआ. जो बताया नहीं जाएगा.
3) अब अपने साजन की और क्या तारीफ करें. वो तो हे ही.
मे उनकी तारीफ ऐसे कैसे छोड़ दू. इस लाइन के लिए मुजे फिर back होना पड़ा.
4)
अब ये तो भौजी धरम है. उसे कैसे छोड़ा जा सकता हे. पाप लगेगा एक भी ससुराल वाली बची तो. क्यों मायके वलियो को समर्पित नहीं किया. उनकी सेवा मे.
5) अब नांदिया हो तो ऐसी ही हो. जिला टॉप जल्दी बनेगी. फर्क नहीं करेंगी के भईया उसका है. या उसकी भौजी का.
6) वह डूबे भौजी. मान गए. साजन जगे रात भर और गचक के नांदिया की.
बहोत कुछ बताना था. पर भूल भी गई.
अब पुड़िया से काम नहीं चलने वाला...देखिये इस कमेंट का दो असर तो हुआ
एक तो आपने कमेंट कर दिया, और मुझे इस बात का विश्वास हुआ की कुछ लोग तो हैं ऐसे, जो पोस्ट्स का इन्तजार करते हैं,
दूसरे आपके कमेंट के बाद, पहला कमेंट पोस्ट के पोस्ट होने के करीब दो दिन बाद, मेरी मित्र लेखिका का आया, जो मेरे सूत्रों की अभिन्नं अंग है।
हाँ, अगर इस पुड़िया का असर ऐसा है जैसा आपने कहा तो मुझे उत्पादन और वितरण में सुधार करना चाहिए और मैंने आज जोरू का गुलाम में भी पुड़िया दे दी है और कोशिश करुँगी की फागुन के दिन चार में भी कल पोस्ट कर दूँ।
एक बार फिर से धन्यवाद, आप ऐसे थोड़े भी पाठक हों तो लिखना सार्थक हो जाता है जो एक एक लाइन पढ़ें और उसपर प्रतिक्रया दें
आभार।
छेड़ने पर धारा भी लगाया जा सकता है...बहुत - बहुत धन्यवाद कोमल जी
अब आपने एक - एक लाइन की बात कर ही दी है तो ये लाइनें मैने सबसे पहले आपकी कालजयी रचना "मोहे रंग दे" में पढ़ी थी।
इसे स्मगलिंग (इधर का माल उधर ) भी कह सकते हैं।
आपको छेड़ने का हक हमारा भी हैं।
ऐसे ही स्नेह बनाए रखें।
सादर