मेरे ख्याल से आनंद जी इस कहानी के पार्ट नहीं हैं...
लेकिन ये बात सही है कि ननदिया की डिक्शनरी से नहीं शब्द हटा दिया गया है.....
और भैया कहते रहने से किसी को शक भी नहीं होगा....
मेरे ख्याल से आनंद जी इस कहानी के पार्ट नहीं हैं...
Fagun vali feeling. Mahol me ghul rahi heमेरे ख्याल से आनंद जी इस कहानी के पार्ट नहीं हैं...
लेकिन ये बात सही है कि ननदिया की डिक्शनरी से नहीं शब्द हटा दिया गया है.....
और भैया कहते रहने से किसी को शक भी नहीं होगा....
कोमल जी का कहना है कि फागुन तो बारहों मास चलता है....Fagun vali feeling. Mahol me ghul rahi he
और मौज मस्ती के बीच ये दुःख कहानी में भी छलक आता है और मेरी बाकी दो कहानियों के मुकाबले यह कहानी गाँव पर बेस्ड हैं तो यहाँ ज्यादाग्राम्य जीवन ... हाय तेरी कहानी...
लेकिन फिर यही अकेलापन पास भी ले आता है...
बेशक... ये ऐसे रिश्ते हैं जो खून के नहीं होते...
लेकिन समझ और सहयोग से प्रगाढ़ और अटूट हो जाते हैं...
भले ही इस कहानी में आनंद न हों, चरित्र के रूप में लेकिन यह चिर सत्य ननद और ननद के भैया वाला इस कहानी में पल पल छलकता रहता है और यह प्रसंग भी वही है बल्कि आनंद की बहन तो ममेरी है यहाँ तो सगी बहन, भैया को सैंया बना रही है बल्कि गाभिन होने का भी प्लान है
यही प्रसंग कहानी को कहानी बनाते हैं...
बल्कि यादगार और जीवंत कहानी..
जिसमें मानवीय भावनाओं और मूल्यों को भी उतना हीं स्थान दिया गया है...
जितना कि काम शास्त्र से संबंधित प्रसंग...
और सचमुच उन प्रसंगों को कोट करके आपने भूली बिसरी बातें याद दिला दी...
और बरबस हीं आँखें नम भी...
बहुत बहुत धन्यवाद...
आपके इस विस्तृत उत्तर के लिए...
इस लिए मैंने जान बुझ के इस प्रसंग में मिलन के दौरान के संवाद कम रखे, कभी सन्नाटे को सुनना भी अच्छा लगता है, मोती से टपकते महुए और झरते आम के बौरो के बीच कुछ भी आवाज उस संवेदना को कम करतीइन प्रसंगों और उनके स्थान के चुनाव के पीछे भी कुछ भाव छुपा है...
सुन समझ के दिल मचल उठता है...