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भाग ९२ ननद और आश्रम
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" हम को तो लागत है भौजी हम पहलवे दिन गाभिन हो गए, " शरारत भरी मुस्कान से खुश खुश मेरी ननद बोलीं। जो बात मैं मैं कहना चाहती थी, उन्होंने खुद दी। मेरे मरद का बीज खाली नहीं जानेवाला था।
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" लगता तो हमको भी यही है, बनायी दिहु अपने भैया के बाप. लेकिन, ... चला कल तो आराम कर लिया पांच में से दो दिन निकल गए, तीन दिन बचे, लेकिन ये तीन दिन नन्दोई जी की परछाई भी नहीं पड़नी चाहिए। पांचवें दिन के बाद भिन्सारे क जून साथे हम लोग होलिका माइ क नाम ले के चेक करेंगे, पक्का नौ महीने में बिटिया आएगी। "
मैंने अब साफ़ साफ़ बोल दिया।
" भौजी, आज तो कोई दिक्क्त नहीं है, भैया आयी रहे होंगे , और नन्दोई तोहार रात में नर्सों के साथ, लेकिन कल दुपहरिया में सांन्झ तक भी आगए तो तोहार ननद कैसे बचे, " अपनी परेशानी ननद ने बता दी।
बात तो उनकी सही थी, अपने साले की तरह उन्हें भी रोज हलवा पूड़ी चाहिए थी। लेकिन मैंने ये जिम्मेदारी भी अपने कंधे पर ले ली। ननद का गाल चूम के बोली,
" ओकर चिंता जिन करा, आखिर भौजाई सब काहें को होती हैं. कल रात तोहरे परछाई के पास नहीं फटकेंगे, बस जैसे जैसे हम कही,... और बाकी अपने भइया के साथ गपागप, गपागप,..... और एक बूँद बीज क न कही बाहर जाये, न बच्चेदानी के अलावा कहीं और, उनकर गाँड़ मारे क मन भी करे तो बोल दीजियेगा साफ़ साफ़ , की भैया भौजाई क हमरे गाँड़ मार ला, नहीं तो दो तीन दिन रुक जा। "
मेरी बात सुन के ननद हंसने लगी, बोली,' भौजाई हो तो ऐसी , अब हम सोने जा रहे हैं कल रात भर सहेलियों के साथ सब इतनी बदमाश, किसका मरद कैसे करता है, निहुरा के लेता है , गोद में बैठा के पेलता है और वो भी खाली जुबानी नहीं, सब कर कर के आपस में, एक मिनट नहीं सोने दिन। और रात में आपका मरद नहीं सोने देगा।'
तबतक सास की आवाज आयी की वो बाहर जा रही है, ग्वालिन चाची के साथ दूबे भौजी के यहां हम दोनों दरवाजा बंद कर लें।
दरवाजा बंद करने के बाद ननद मुझे अपने कमरे में ले आयी और उन्ही के बिस्तर पर, ….
अपनी सास के बारे में वो बात बताई की मेरे रोंगटे खड़े हो गए।
सास उनकी महा कंटाइन थी ये तो मैं जानती थी,
लेकिन इतनी छिनार होगी मैं भी नहीं सोच सकती थ। साल भर से मेरी ननद के पीछे पड़ी थी, बच्चे के लिए,
अब हर सास तो मेरी सास की तरह तो हो नहीं सकती थी, मैं जब गौने उतरी थी तो उसके चौथे दिन ही, उन्होंने साफ़ साफ़ मुझसे बोल दिया,
" बच्चे के बारे में न तो तेरे मरद की सास तय करेगी, न तोहार सास, सिर्फ और सिर्फ मेरी छोटी बहू फैसला करेगी, और कोई बोले तो पलट के गरिया के जवाब देना, पेट में तुझको रखना है फैसला तुम करोगी, और सास मेरी खुद मुझे लेके आसा बहू के पास गयीं और तांबे का ताला लगवा दिया, उसी दिन से आसा बहू से मेरी दोस्ती भी हो गयी और सास ने बोल दिया की जब खुलवाना हो ताला तो खुद चली आना, आसा बहू के पास, मुझे बताने की भी जरूरत नहीं है।
लेकिन मेरी ननद की सास, करीब साल भर से मेरी ननद के पीछे पड़ी थीं,
" तोहरे बाद क गौने से उतरी दो दो निकाल दी, एक कोरा में एक ऊँगली पकड़ के चल रहा है, यहाँ तो अभी उलटी भी नहीं शुरू हुयी। "
और करीब छह महीने पहले जब मेरी ननद की पड़ोस की चचिया देवरानी गाभिन हुयी तब से तो वो अगिया बैताल हो गयी।
ननद ने गोली खानी करीब साल भर पहले से बंद कर दी थी, मरद तो अपनी बीबी के साथ कंडोम कभी लगाते नही। छह महीने पहले वो ननद के कमरे में घुस के बिस्तर के अंदर , दवा के डिब्बे में हर जगह चेक कर के देखा और कुछ पुरानी एक्सपायर्ड गर्भ निरोधक गोलियां थीं, बस वो देख के आग बबूला सब उठा के उन्होंने फेंक दिया और मेरी ननद को साफ़ साफ बोल दिया,
" अब ये नीचे क खूनखच्चर बंद होना चाहिए, और उलटी शुरू करो, अब अगर अगले महीने आयी की पांच दिन रसोई में नहीं आओगी तो जउने दिन बाल धोओगी न ओहि दिन खुला झोंटा पकड़ के गुरु जी के आश्रम में ले जाउंगी, एक से एक बाँझिन को प्रसाद दे दिए हैं जहाँ डाक्टर वैद ओझा फ़क़ीर सब फेल हो गए। "
लेकिन अगले महीने ननद रानी को फिर रसोई से पांच दिन छुट्टी लेनी पड़ी, और सास एकदम अलफ,
' गौर रंग, सुंदर बदन ले के कोई का करे, बहू कोई काहें लाता है, घर पोती पोते से भर दे, बंस चलाये और ये महरानी जी, अरे हमरे जमाने में और अभी भी गौने दुल्हिन जिस दिन उतरती है, ठीक नौ महीने बाद सोहर होता है घर में बच्चे की आवाज सुनाई देती है और ये, दो साल से ऊपर हो गए, अभी उलटी भी नहीं शुरू हुयी, ऐसी बहू ले के कोई का करेगा, रूप जोबन का का फायदा, कोई चाटेगा ,
ननद से तो नहीं लेकिन कोई पड़ोसन आती तो अब उससे साफ़ साफ़ बोलती,
" पता नहीं कहाँ से ये बाँझिन घर आ गयी है, हमरे बेटा क, एक तो बेटा और उसकी बहू, पुराना जमाना होता तो साल भर में बहू कुछ नहीं निकालती तो दूसरी ला के बेटे के सेज पर चढाती, "
और पड़ोसन अगर कहती की साधु बाबा के आश्रम में, तो सास बात काट के कहतीं, मैं तो साल भर से कह रही हूँ, गाँव भर की बहुये जाती है लेकिन यही पाँव में महावर लगा के बैठी हैं, लेकिन महीने दो महीने में बात नहीं बनी तो जबरदस्ती ले जाउंगी , गुरु जी का तो बड़ा , और श्रद्धा से मेरी ननद की सास की आंखे बंद हो जाती,
और अबकी जब मेरी ननद होली में मायके आयीं तो सास ने साफ़ साफ अल्टीमेटम दे दिया,
" लौट आयो मायके से, भौजाई की पहली होली है, इसलिए जाने दे रही हूँ, लेकिन होली के बाद झोंटा पकड़ के ले चलूंगी गुरु जी के भाग ९२ बाँझिन और आश्रम, और गुरु जी के पैरों में पटक दूंगी, बड़ी कृपा है उनकी। बोल दूंगी जब तक आपकी कृपा नहीं बरसेगी, ये यही रहेगी आपका गोड़ दबाएगी, मेरी एकलौती बहू है।"
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" लगता तो हमको भी यही है, बनायी दिहु अपने भैया के बाप. लेकिन, ... चला कल तो आराम कर लिया पांच में से दो दिन निकल गए, तीन दिन बचे, लेकिन ये तीन दिन नन्दोई जी की परछाई भी नहीं पड़नी चाहिए। पांचवें दिन के बाद भिन्सारे क जून साथे हम लोग होलिका माइ क नाम ले के चेक करेंगे, पक्का नौ महीने में बिटिया आएगी। "
मैंने अब साफ़ साफ़ बोल दिया।
" भौजी, आज तो कोई दिक्क्त नहीं है, भैया आयी रहे होंगे , और नन्दोई तोहार रात में नर्सों के साथ, लेकिन कल दुपहरिया में सांन्झ तक भी आगए तो तोहार ननद कैसे बचे, " अपनी परेशानी ननद ने बता दी।
बात तो उनकी सही थी, अपने साले की तरह उन्हें भी रोज हलवा पूड़ी चाहिए थी। लेकिन मैंने ये जिम्मेदारी भी अपने कंधे पर ले ली। ननद का गाल चूम के बोली,
" ओकर चिंता जिन करा, आखिर भौजाई सब काहें को होती हैं. कल रात तोहरे परछाई के पास नहीं फटकेंगे, बस जैसे जैसे हम कही,... और बाकी अपने भइया के साथ गपागप, गपागप,..... और एक बूँद बीज क न कही बाहर जाये, न बच्चेदानी के अलावा कहीं और, उनकर गाँड़ मारे क मन भी करे तो बोल दीजियेगा साफ़ साफ़ , की भैया भौजाई क हमरे गाँड़ मार ला, नहीं तो दो तीन दिन रुक जा। "
मेरी बात सुन के ननद हंसने लगी, बोली,' भौजाई हो तो ऐसी , अब हम सोने जा रहे हैं कल रात भर सहेलियों के साथ सब इतनी बदमाश, किसका मरद कैसे करता है, निहुरा के लेता है , गोद में बैठा के पेलता है और वो भी खाली जुबानी नहीं, सब कर कर के आपस में, एक मिनट नहीं सोने दिन। और रात में आपका मरद नहीं सोने देगा।'
तबतक सास की आवाज आयी की वो बाहर जा रही है, ग्वालिन चाची के साथ दूबे भौजी के यहां हम दोनों दरवाजा बंद कर लें।
दरवाजा बंद करने के बाद ननद मुझे अपने कमरे में ले आयी और उन्ही के बिस्तर पर, ….
अपनी सास के बारे में वो बात बताई की मेरे रोंगटे खड़े हो गए।
सास उनकी महा कंटाइन थी ये तो मैं जानती थी,
लेकिन इतनी छिनार होगी मैं भी नहीं सोच सकती थ। साल भर से मेरी ननद के पीछे पड़ी थी, बच्चे के लिए,
अब हर सास तो मेरी सास की तरह तो हो नहीं सकती थी, मैं जब गौने उतरी थी तो उसके चौथे दिन ही, उन्होंने साफ़ साफ़ मुझसे बोल दिया,
" बच्चे के बारे में न तो तेरे मरद की सास तय करेगी, न तोहार सास, सिर्फ और सिर्फ मेरी छोटी बहू फैसला करेगी, और कोई बोले तो पलट के गरिया के जवाब देना, पेट में तुझको रखना है फैसला तुम करोगी, और सास मेरी खुद मुझे लेके आसा बहू के पास गयीं और तांबे का ताला लगवा दिया, उसी दिन से आसा बहू से मेरी दोस्ती भी हो गयी और सास ने बोल दिया की जब खुलवाना हो ताला तो खुद चली आना, आसा बहू के पास, मुझे बताने की भी जरूरत नहीं है।
लेकिन मेरी ननद की सास, करीब साल भर से मेरी ननद के पीछे पड़ी थीं,
" तोहरे बाद क गौने से उतरी दो दो निकाल दी, एक कोरा में एक ऊँगली पकड़ के चल रहा है, यहाँ तो अभी उलटी भी नहीं शुरू हुयी। "
और करीब छह महीने पहले जब मेरी ननद की पड़ोस की चचिया देवरानी गाभिन हुयी तब से तो वो अगिया बैताल हो गयी।
ननद ने गोली खानी करीब साल भर पहले से बंद कर दी थी, मरद तो अपनी बीबी के साथ कंडोम कभी लगाते नही। छह महीने पहले वो ननद के कमरे में घुस के बिस्तर के अंदर , दवा के डिब्बे में हर जगह चेक कर के देखा और कुछ पुरानी एक्सपायर्ड गर्भ निरोधक गोलियां थीं, बस वो देख के आग बबूला सब उठा के उन्होंने फेंक दिया और मेरी ननद को साफ़ साफ बोल दिया,
" अब ये नीचे क खूनखच्चर बंद होना चाहिए, और उलटी शुरू करो, अब अगर अगले महीने आयी की पांच दिन रसोई में नहीं आओगी तो जउने दिन बाल धोओगी न ओहि दिन खुला झोंटा पकड़ के गुरु जी के आश्रम में ले जाउंगी, एक से एक बाँझिन को प्रसाद दे दिए हैं जहाँ डाक्टर वैद ओझा फ़क़ीर सब फेल हो गए। "
लेकिन अगले महीने ननद रानी को फिर रसोई से पांच दिन छुट्टी लेनी पड़ी, और सास एकदम अलफ,
' गौर रंग, सुंदर बदन ले के कोई का करे, बहू कोई काहें लाता है, घर पोती पोते से भर दे, बंस चलाये और ये महरानी जी, अरे हमरे जमाने में और अभी भी गौने दुल्हिन जिस दिन उतरती है, ठीक नौ महीने बाद सोहर होता है घर में बच्चे की आवाज सुनाई देती है और ये, दो साल से ऊपर हो गए, अभी उलटी भी नहीं शुरू हुयी, ऐसी बहू ले के कोई का करेगा, रूप जोबन का का फायदा, कोई चाटेगा ,
ननद से तो नहीं लेकिन कोई पड़ोसन आती तो अब उससे साफ़ साफ़ बोलती,
" पता नहीं कहाँ से ये बाँझिन घर आ गयी है, हमरे बेटा क, एक तो बेटा और उसकी बहू, पुराना जमाना होता तो साल भर में बहू कुछ नहीं निकालती तो दूसरी ला के बेटे के सेज पर चढाती, "
और पड़ोसन अगर कहती की साधु बाबा के आश्रम में, तो सास बात काट के कहतीं, मैं तो साल भर से कह रही हूँ, गाँव भर की बहुये जाती है लेकिन यही पाँव में महावर लगा के बैठी हैं, लेकिन महीने दो महीने में बात नहीं बनी तो जबरदस्ती ले जाउंगी , गुरु जी का तो बड़ा , और श्रद्धा से मेरी ननद की सास की आंखे बंद हो जाती,
और अबकी जब मेरी ननद होली में मायके आयीं तो सास ने साफ़ साफ अल्टीमेटम दे दिया,
" लौट आयो मायके से, भौजाई की पहली होली है, इसलिए जाने दे रही हूँ, लेकिन होली के बाद झोंटा पकड़ के ले चलूंगी गुरु जी के भाग ९२ बाँझिन और आश्रम, और गुरु जी के पैरों में पटक दूंगी, बड़ी कृपा है उनकी। बोल दूंगी जब तक आपकी कृपा नहीं बरसेगी, ये यही रहेगी आपका गोड़ दबाएगी, मेरी एकलौती बहू है।"
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