सास और दामाद ..आज सुना रही हूँ एक ऐसे दामाद की कहानी
जिसको तड़पा रही थी उसकी सास की जवानी
ऐसा मस्त था योवन उसका मुश्किल है जो कहना
देख को उसको लगती थी अपनी बीवी की बहना
वैसे तो पति को गुजरे हुए बीत गए थे दस साल
फिर भी अपनी जवानी को रखा था मस्त संभाल
गहरी नाभि वक्ष सुडोल और नयनो के तीर
एक बार जो प्यार से देखे घाव करे गंभीर
रेशम की साड़ी में लिपटी वो मोटी चौड़ी गांड
उसे दुधारू गया को चाहिए तगड़ा मोटा सांड
साड़ी के पल्लू के नीचे वो चूचे कस्से हुए
ऊंची ऊंची पर्वत को जैसे बादल ढके हुए
गज गामिनी सी चाल थी उसकी लम्बे काले केश
धरती पे जैसी उतरी हो अप्सरा धर नारी के वेश
पहली बार जो देखा उसको हाल हुआ बेहाल
ऐसा था उस रूप मोहिनी ने फेंका अपना जाल
रिश्ते नाते भूल के सारे सपने वो खूब सजाये
कैसे वो इस परम सुंदरी को लौड़े के नीचे लाए
वैसे तो सासु के दिल में भी मचले खूब अरमान
पर दामाद के सपनों से थी वो बिल्कुल अंजान
दमाद भी जाने सास चौदना काम नहीं आसान
दिल पे अपने काबू रख के निकल दिये अरमान
एक जादुई अहसास..
आपकी कविता ने एक नया शमां बांध दिया है...