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Erotica जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी

komaalrani

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जोरू का गुलाम भाग २३६ - मंगलवार, दिल्ली

अपडेट पोस्टड, पृष्ठ १४३३ फायनेंसियल थ्रिलर का नया मोड़,

कृपया पढ़ें, आंनद लें और कमेंट जरूर करें
 
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Mass

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Wow Madam....if the teaser was "exciting", the main picture is "over the roof"...as the saying goes....
The backdoor scenes description, writing and coupled with the gifs was truly awesome!!!
Erotica at its best.

I am once again tempted to "repeat this photo" once again...dont mind pls...thanks.
Next time, I will try to search some other good pic pls.. :)

f99676a2175f9e25ea93bc5f9ad481e1.jpg

komaalrani
 
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motaalund

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कितनी सलहजो, सालियो, चाचियों का इस जनवरी की भीषण सर्दी में आपको आशीर्वाद मिलेगा गिना नहीं जा सकता। नारी के तन और मन दोनों के दर्द को अगर किसी ने समझा है तो बस आपने। नन्दोई जीजा और भतीजों के लम्बे मोटे रॉड वाले हीटर का इंतजाम इन कविता कहानियों ने कर दिया। जिसके मन में थोड़ी झिझक लाज हिचक रही भी होगी तो इस पार्ट को पढ़ के दूर हो गयी होगी।

चाची की इस बार की फोटुएं एकदम मादक है, नव विवहिता भी थोड़ी प्रौढ़ा भी लेकिन एम् आई एल ऍफ़ वाली उम्र की भी नहीं २५ -३० के बीच की जब आग सबसे ज्यादा लगती है। मन तो करता है चुरा के अपनी कहानियों में इस्तेमाल कर लूँ लेकिन अगर आप इजाजत देंगी तभी।

किसी कवि ने कहा है जाड़े में गर्मी छिप के नारी के उन्ही दोनों उपत्यकाओं में छिप जाती है तो गुणीजन रसिक और मर्मज्ञ वहीँ हाथ बढ़ाते हैं।

और आपकी इस पोस्ट की चाची के चित्रों को देख कर बस यही लगता है।

मंच एकदम तैयार है अगली पोस्ट में चाची भतीजे को चटनी चटा देंगी ऐसा लगता है हम सब सांस थामे इन्तजार कर रहे हैं


आपकी पोस्ट को अच्छी कहना पुनरोक्ति दोष से युक्त होगी।

आपकी पोस्ट है तो अच्छी होगी ही। और पहली बार चाची भतीजे के रिश्ते पर किसी ने कलम चलायी है।


मैं सामन्यतया इन्सेस्ट नहीं लिखती, लेकिन आपकी पोस्टें पढ़ पढ़ के लगता है आपको और डाक्टर साहिबा को ट्रिब्यूट के तौर पर ही सही एक पूरी इन्सेस्ट कथा लिखनी ही होगी।।।


आभार, नमन,

:thank_you: :thank_you: :bow::bow::bow::bow::bow::bow::claps::claps::claps::claps::claps::claps:
इस हाड़ कंपा देने वाली ठिठुरन में सचमुच.. तपती अंगीठी का काम करती है...
और इंसेस्ट कथा का तो बेसब्री से इंतजार रहेगा...
 
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motaalund

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आपने एकदम सही कहा आरुषि जी की इस कविता की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है

पांच बार तो मैं पढ़ चुकी हूँ, एक एक लाइन को बार बार पढ़ने का मन करता है


एक दिन जब बोले चाचू मैं आज शहर को जाउंगा
एक दिन का है कम्म वहां पे परसो वापस आऊंगा

सुन के ये बात चाचा की चाची हल्के से मुस्कायी
देख की मेरी आँखो में धीरे से अपनी आँख दबायी



वो मुस्कान, वो इशारा

कितने कम शब्दों में आप ने बात कह दी और भतीजे के ऊपर क्या गुजरी होगी एकदम चित्र सा खीँच दिया और अगली लाइने तो और गजब है


भतीजा उम्र में छोटा है थोड़ा नासमझ भी होगा पहली बार मिलन होगा उसका, देह सुख लेगा तो चाची ने बड़े होने का फर्ज अदा किया समझा दिया साफ़ साफ़


पकड़ के ब्रा और पैंटी मुझसे चाची थोड़ी शरमाई
बोली मुझसे तु भी नीचे की आज कर लेना सफाई



यह थ्रेड धन्य है हम सब धन्य है ऐसी रचना पढ़ने का सौभाग्य मिला


:thank_you: :thank_you: 👍👍:claps::claps::claps::claps::claps:
खेली-खाई और नासमझ का मिलन...
ये ललक.. ये जोश....
 

motaalund

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गुड्डी ने हांका कर के शिकार को अपने बचपन के यार की ओर खेद तो दिया ही है,

अब वही हो न हो, शिकारी भी अब होशियार हो गया है उसके मुंह में दो दो बुआ के बेटी की उम्र की दर्जा नौ वाली दो दो सालियों, मिसेज मोइत्रा के रसगुल्ले का खून बस लगने ही वाला है, और साथ में उनकी माँ का भी, अपनी भाभी का शिकार वो कर ही चुका है,

तो बस बुआ जी और उनकी बिटिया के आने की देर है, शिकार खुद झपट लेगा,

और बुआ जी के यहाँ सोहर भी तो होगा, नौ महीने बाद,

इसलिए गुड्डी हो न हो


और फिर आरुषि जी ने चाची भतीजा की कहानी लिख के बुआ भतीजे के प्रसंग को और हवा दे दी है।
अब तो साजन जी के दोनों हाथों में लड्डू... चारों उँगलियाँ घी में.. और सिर कड़ाही में....
 
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