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जोरू का गुलाम भाग २३८ पृष्ठ १४५०
वार -१ शेयर मार्केट में मारकाट
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पति ना सही...Last part
चाची उठ कर बिस्तर से जरा मेरी गोद में आओ
मेरे होठों को चूत से अपना अमृत रस पिलवाओ
चाची मेरे मुख पे फिर बैठ गई खोल के योनि द्वार
अपनी जीभ से लगा चाटने ऊसमे से रस की धार
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चाची चलो अब बिस्तर पर वही खेलेंगे अब खेल
आ चाची तेरी प्यासी चूत को लौड़े से दू अब पेल
पहुंच गई चाची बिस्तर पर कच्छी नीचे सरकायी
खोल के अपनी दोनों फाँके टपकती चूत दिखायी
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पहले ही अपनी जीभ से तूने मुझको दिया है झाड़
अब घुसा के अपना मोटा लौड़ा मेरी चूत दे फाड़
पकड़ के कमर चाची की पीछे खिंचा फिर थोड़ा
पकड़ के मम्मे चाची के गांड पे लगा रगड़ने लौड़ा
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खोल के जांघें चाची की फिर रखा छेद पर लौड़ा
रख की तकिया गांड के नीचे पैरों को थोड़ा मोड़ा
थाम के चुची चाची के और होठों पर रख के होठ
अपने लौड़े से चाची की चूत पर मैंने कर दी चोट
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जैसा ही मोटा सुपाड़ा चूत की फांको में हुआ पैबंद
मस्ती में सिस्की चाची और उसकीआँखें हो गईं बंद
हल्के से फिर खींच सुपाड़ा दिया जोर का झटका
चूत की झिल्ली पे फिर जाकर मेरा लौड़ा अटका
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समझ गया चाची की चूत की फटी नहीं है झिल्ली
मुझे ही अब चूत चोद चोद के करनी होगी ढिल्ली
अगले धक्के में चूत फटी चाची की निकली चीख
मुन्ना लौड़ा निकाल ले बाहर तुझसे मांगू मैं भीख
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चाची कोई सुन ले गा चिल्लायो ना इतना ज्यादा
चाची तेरी टाइट चूत में मेरा अभी घुसा है आधा
सुन मुन्ना तेरा चाचा तो बिस्तर पर है पूरा छक्का
असली मर्द का आज लगा है मेरी चूत पर धक्का
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चूत में जब है लगे कुलबुलाने चुदाई वाला कीड़ा
पहली बार लेने पे लौड़ा फिर मिलती है ये पीड़ा
लेकिन इस पीड़ा से कोई औरत कभी नहीं घबराए
मर्द में दम हो तो वो ये पीड़ा ख़ुशी ख़ुशी सह जाए
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औरत की चूत तो बनी हुई है खाने को लंड की मार
औरत की छेद हर रात लंड निगलने को रहते हैं त्यार
चाची इतनी ज्ञान की बातें फ़िर काहे मुझे समझाये
चूत में तुमको जब लेना है लौड़ा फिर काहे चिल्लाये
जिस चूत में घुसा नहीं है कुछ चार इंच से ज़्यादा
एक झटके में घुसा दिया तूने अपना लौड़ा आधा
चाहे मैं चीखू चिल्लाऊं लेकिन तू मत रहम दिखाना
अपना ये लम्बा लौड़ा मेरी बच्चे दानी तक पहुचाना
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चाची को खिसकाया मैने बिस्तर के कोने में थोड़ा
हचक हचक कर लगा पेलने उसकी चूत में लौड़ा
चाची को फिर पलट के बिस्तर पे बना दिया घोड़ी
फ़िर लगा लगाने धक्के गहरे गांड पकड़ के चौड़ी
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मुन्ना अब तुम आ जाओ नीचे मैं तेरे ऊपर आऊंगी
कूद कूद के तेरे लौड़े पे अब अपनी चूत मारवाऊंगी
चार बार उस रात को चाची फिर मुझ से चुदवाई
कभी चुदाई वो मेरे नीचे और कभी वो ऊपर आयी
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पहली बार झड़ी हूं इतना मेरी काँप रही अब टागे
अपनी गांड भी दे दू तुझको कभी जो मुझसे मांगे
उस रात पूरे बदन पे चाची के हो गए थे लव बाइट्
एक रात में कर दी खुल्ली कल तक थी जो टाइट
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छाती पर सिर रख चाची मेरे बा बालों को सहलाए
औरत कैसे ख़ुश रखी जाती है वो मुझको समझाए
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औरत चोदते वक्त बिस्तर में जो मर्द रहम दिखाये
औरत उस मर्द के लंड के नीचे फिर कभी ना आये
चुदते वक्त औरत बिस्तर में पसंद करती है वो मर्द
पटक के चोदे चूत बेरेहमी से दे के मिट्ठा मिट्ठा दर्द
मसल मसल के दोनों चूची जो धक्के खूब लगाए
फाड़ के फुद्दी औरत की लौड़ा नाभी तक पहुँचाये
किसी औरत के लिये नहीं कोई इससे ज्यादा दुख
बिस्तर पर मिलता नहीं जब पति से मन चाहा सुख
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और एक दूसरे के दिलों के हाल बयां करती इच्छाएँ..आरुषि जी का जवाब नहीं
कविता के साथ चित्रों का संगम और कहानी का तोड़ मोड़ क्या नहीं है वहां
यही तालमेल तो गजब ढा देती है....चौथा भाग सबसे जबरदस्त है
किस तरह से भतीजे की मिलन की चाह मिलन की आस में बदल गयी और उम्मीद की एक किरण चाची ने दिखा दी और अपनी मेच्योरिटी का भी परिचय दिया इन दो लाइनों में जिसे लिखने में कहानी में दसो पन्ने खर्च हो जाते
चाची लिपट गई मुझसे और बोली मुझको थाम
अगर दोनों पकड़े गए तो सोचो क्या होगा अंजाम
और इन लाइनों के नीचे का चित्र भी उठी हुए आँखे, आशा भी उम्मीद भी लेकिन सावधानी भी
लेकिन अभी नहीं है ये वक़्त मिटाने को मेरी प्यास
जब भी मिलेगा सही मौका खुद आऊंगी तेरे पास
और इन लाइनों के नीचे की मुस्कराती हुयी तस्वीर
शब्द नहीं है आपकी तारीफ़ के लिए
और खास कर तब जब दूसरे कुर्सी वाले को इसकी कोई खबर नहीं...मजा भी, एक प्रौढ़ा तो नहीं लेकिन किशोरी भी नहीं विवाहिता से मिलन का सुख
कहते हैं जितना मज़ा अपनी कुर्सी पर बैठने से नहीं आता उतना दूसरों की कुर्सी पर बैठने से आता है
बस वही और
काम क्रीड़ा के बाद को पलों को भी कैसे अच्छी तरह से शब्दों में पिरोया है आरुषि जी ने
औरत चोदते वक्त बिस्तर में जो मर्द रहम दिखाये
औरत उस मर्द के लंड के नीचे फिर कभी ना आये
चुदते वक्त औरत बिस्तर में पसंद करती है वो मर्द
पटक के चोदे चूत बेरेहमी से दे के मिट्ठा मिट्ठा दर्द
मसल मसल के दोनों चूची जो धक्के खूब लगाए
फाड़ के फुद्दी औरत की लौड़ा नाभी तक पहुँचाये
किसी औरत के लिये नहीं कोई इससे ज्यादा दुख
बिस्तर पर मिलता नहीं जब पति से मन चाहा सुख
और इन लाइनों में पीड़ा भी है व्यथा भी है असंख्य औरतों की अनकही चाह भी है और भतीजे को सीख भी
छाती पर सिर रख चाची मेरे बालों को सहलाए
औरत कैसे ख़ुश रखी जाती है वो मुझको समझाए
बस यही कह सकती हूँ अपनी ओर से अपने इस थ्रेड की ओर से और मेरे आपके असंख्य मित्रों की ओर से
यह थ्रेड आपका है आपका रहेगा और आपकी अगली कविता का इन्तजार करेगा
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पहले खींचा.. फिर ताना.. और फिर लटका दिया...उम्मीद पे दुनिया कायम है लेकिन कहानी में वो हिन्दुस्तान के बाहर दिखाई गयी है और अधिक पात्रों के साथ कहानी में न्याय करना सम्भव नहीं हो पाता। इस बार के प्रंसग में तीन लड़कियां /तरुड़ियाँ है, और तीन पुरुष, मुकाबला बराबर का है।
शायद एडमिन नए कानूनों के तहत इस पर ध्यान दें और नियम में बदलाव लाएं...Perfect full form,... ekdam sahi kaha aapne Kamal Jiju ke liye and no gender discrimination ab 377 khatam to hogaya hai lekin is forum me kuch rukavat hai abhi bhi ilsiye unki simit pratibha ka hi pata chal paayega
वो सारे अपडेट्स लाजवाब थे...एकदम सही कहा आपने और उसके पहले के ट्रुथ और डेयर वाले गेम्स भी
कहानी के अलावा अपनी टिप्पणी से भी कोमल जी मन्त्र मुग्ध कर देती हैं...पिछले दो दिनों से मैं आपकी समीक्षात्मक टिप्पणियों का इंतजार कर रही थी और अब जब वह आ गई है... तो मैं बहुत गौरवान्वित और सम्मानित महसूस कर रही हूं। जिस तरह से आप कुछ पंक्तियों का चयन करती हैं और फिर उन पंक्तियों का उपयोग अपनी समीक्षाएँ जोड़ने के लिए करती हैं, वह एक अत्यधिक कुशल लेखिका के लक्षण हैं। मुझे स्थान और प्रेरणा देने के लिए धन्यवाद.
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अपन का क्या है...एकदम नहीं
दो बातें थीं
पहली बात वो जो कहानी आप नहीं पढ़ते छुटकी - होली दीदी की ससुराल में
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Adultery - छुटकी - होली दीदी की ससुराल में
छुटकी - होली दीदी की ससुराल मेंयह कहानी सीक्वेल है, मेरी एक छोटी सी लेकिन खूब मज़ेदार और गरमागरम होली की कहानी, मज़ा पहली होली का ससुराल में, जी अभी उसकी लिंक भी दूंगी , उसके पहले पेज को रिपोस्ट भी करुँगी, लेकिन उसके पहले इस कहानी की हलकी सी रूपरेखा, जिस कहानी से जुडी है ये कहानी दो चार...exforum.live
उस का अपडेट अभी पोस्ट कर रही हूँ, एक लम्बा बड़ा अपडेट शाम तक पूरा हो जाएगा और फिर एक दो दिन के बाद इस कहानी का अपडेट भी
दूसरी बात आरुषि जी की इतनी अच्छी कविता कहानी चल रही थी, चाची और भतीजे की मुझे लग रहा था कहानी की पोस्ट शायद उस काव्य यात्रा में अवरोध बने इसलिए दो चार दिन देर भी हो जाए कम से कम सारे पार्ट पूरे हो जाएँ और अब वह पूरा हो गया है. और एक बार उनकी कविता आती है तो चार पांच बार तो कम से कम वही पढ़ना होता है मन में वही घूमता रहता है
तो बस एक दो दिन के बाद इस सप्ताह के पूर्वार्ध में ही अगला अपडेट निश्चित आ जाएगा।
समय मिलता नहीं... निकालना पड़ता है...Thank you Madam. Reg Arushi's poem, you are right...your update immediately after her poem would have robbed her of the views/comments that adorn her poems now.
Doosri baat...arre yaar, mere paas itna time nahi hain ki main har story ko follow/read karoon. Agar main woh story ko bhi follow karoon aur reply naa doon to aap naaraaz ho jaayegi![]()
But I understand..even that story is also important for you and it has its own fan following
Look forward to the updates..have a good weekend and maybe tomorrow as well...
komaalrani