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जोरू का गुलाम भाग २३८ पृष्ठ १४५०
वार -१ शेयर मार्केट में मारकाट
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Komal ji in cheekho ko kuch shabd bhi dijiye, guddi ki jabaniगुड्डी
गुड्डी लग भी ऐसी रही थी की किसी भी मरद की बोलती बंद हो जाए।
किसी भी आदमी की जो फैंटेसी होती है , बस लगता है वही मूर्तिमंत हो गयी हो ,
स्कूल गर्ल , विद इनोसेंट फेस एंड जस्ट मेच्योरिंग बॉडी
स्कूल यूनिफार्म का टॉप , जस्ट जैसे उसके नए नए आये जुबना को दबोचे ,
टेनिस बॉल्स की साइज के ,एकदम मुट्ठी में आ जाएँ , छोटे लेकिन खूब कड़े
और ऊपर से उस टॉप में साफ़ झलकते पोकिंग निप्स , एकदम खड़े , कड़े तने बरछी की तरह सीने में बेधते,
टॉप भी सिर्फ एक गाँठ से बंधा , बस वो खुला और जोबन छलक कर टॉप उसकी गहरी नाभी के बहुत ऊपर ख़तम हो जाता था , गोरा चिकना पेट
कातिल कटीली कमरिया , मुट्ठी में आ जाय इतनी पतली ,
और स्कर्ट भी कमर से बहुत नीचे बस किसी तरह कूल्हे पर टिकी फँसी ,...
और मुश्किल से बित्ते भर की , ज़रा सा भी निहुर जाए तो गोलकुंडा और प्रेम गली दोनों दिख जाए।
थॉन्ग भी क्रॉच लेस आगे पीछे दोनों ओर से ,.... खूब लम्बी छरहरी गोरी गोरी टाँगे , रेशमी चिकनी जाँघे ,
और सबसे बढ़कर , गालों के डिम्पल और जान लेने वाली मुस्कराहट ,
मुंह चिरैया ने ही खोला ,
" भाभी आपके जीजू तो मेरे भी जीजू , .... हलके से हँसते हुए वो बोली
और जैसे कोई तिलस्म टूटा हो , कमल जीजू भी खड़े हो गए ,
" और क्या जीजू से तो ,... " कमल जीजू बोले
लेकिन उनके पहले गुड्डी ही आगे बढ़ी और खिलखलाते बोली ,
' ... गले मिलना चाहिए। "
मैंने करेक्शन इशू किया ,
" अरे , मेरे जीजू तेरे जीजू नहीं भैय्या लगेंगे , ...और ये मेरी नालायक बहन , तेरी भाभी रीनू। "
" तो क्या भइया गले नहीं मिल सकते , .... " रीनू ने दोनों जीजू को उकसाते बोला ,
" एकदम मिल सकते हैं , ... " गुड्डी खुद बोली ,
" और दो हों तो एक आगे , एक पीछे ,... " मैं बोली लेकिन उसके पहले ही कमल जीजू पीछे और अजय आगे से ,...
और दोनों बदमाश , पहले तो उस छोटे से स्कूल टॉप के ऊपर से नाप जोख और फिर दोनों के हाथ अंदर ,
……………….
लेकिन कुछ देर बाद अजय ने मैदान कमल जीजू के लिए छोड़ दिया , और कमल जीजू पीछे से चिपके हुए।
गुड्डी भी खूब मजे से मजा ले रही थी। स्कर्ट कब की उठ चुकी थी , टॉप की टाइ खुल चुकी थी। बस किसी तरह क्वार्टर ब्रा नीचे से जुबना को और उभार उभार कर दिखा रहा था, वो आगे की ओर ज़रा सी झुकी तो बस निप्स भी दिखने लगे , ...
और रीनू मेरी कमीनी बहन मैदान में आगयी ,
कमल जीजू को हड़काया जोर से , अरे बहन से मिल रहे हो या उसके कपड़ों से ,
और ये कह के रीनू ने कमल जीजू का बॉक्सर शॉर्ट्स नीचे खींच दिया ,
मेरे होंठों ने पहले ही उनके खूंटे को खड़ा कर दिया था , फिर उस किशोरी के साथ रगड़ घिस , .... जीजू का औजार एकदम बौराया था ,
खूब मोटा , बालिश्त भर लंबा और एकदम टनटनाया ,...
रीनू ने थोड़ा सा , गुड्डी को आगे की ओर पुश किया तो वो सामने एक सोफे को पकड़ के झुक गयी , बस अपने आप
और कमल जीजू का खूंटा गुड्डी के अगवाड़े पिछवाड़े ठोकर मारने लगा ,.. और गुड्डी भी अब इतनी नादान नहीं थी की न समझ पाती
वो और आगे निहुर गयी , जबसे वो आयी थी , कितनी बार उसके भैया उसे कुतिया बना कर , निहुरा कर ,...
लेकिन कमल जीजू पक्के खिलाड़ी , उनका एक हाथ गुड्डी के जाँघों के बीच और दूसरा उसके उभार के बीच ,
अंगूठे और तर्जनी के बीच मेरी ननद के निप्स पकड़ कर वो हलके हलके रगड़ रहे थे ,
दूसरे हाथ की उँगलियाँ खुले क्रॉच से सीधे चुनमुनिया के भीगे भीगे होंठों रगड़ रही थी।
गुड्डी सिसक रही थी , गीली हो रही थी , और सिसकियों के बीच हलके से चीख उठी , ... मैं रीनू की ओर देख कर मुस्करायी ,
साफ़ था कमल जीजू ने अपनी एक ऊँगली , अंदर घुसेड़ दी थी , प्रेम गली में और अगले पल उनका अंगूठा गुड्डी की क्लिट पर ,..
कमल जीजू का सिर्फ हथियार ही नहीं जबरदस्त था उन्हें नयी नवेली हो या खूब खेली खायी ,... दोनों को पिघलाना भी अच्छी तरह से आता था।
और गुड्डी पिघल रही थी , मचल रही थी ,... और वैसे भी उसकी सहेली अब एक बार खूंटे का मजा ले चुकी थी , तो उसका मन भी ,...
और एक बार फिर एक और ऊँगली , और अबकी गुड्डी जोर से चीखी ,....
मैं समझ गयी दोनों उँगलियाँ कम से कम दो पोर तक घुस चुकी है और गोल गोल,
लेकिन कुछ हो देर में चीखें एक बार फिर जोर जोर की सिसकियों में बदल चुकी थीं ,
बिलकुल सही कहा आपने, मैं पूरा समर्थन करता हूं।कोमल जी प्लीज. ऐसे टुकड़ो मे वो मज़ा नहीं आएगा. ये मैजिक कहानी होंगी. प्लीज आप प्रोपर लॉन्च करो. आप जानते हो आप की स्किल के दीवानो की कमी नहीं. पूरा उपन्यास इत्मीनान से पढ़ने मे मज़ा आएगा. ऐसे इन मोतियों को मत बिखेरो. हम परा हार पहेन ना चाहेंगे. प्लीज कोमल जी. लॉन्च कर दो.
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Komal ji, let me admit that your command on language, both English and Hindi, is superb. I occasionally keep on visiting your thread. Somehow, the story content is too raw for my taste. This is an individual choice, and not an adverse comment on your style. Your knowledge of eastern UP/ Bihar rural culture and also complex corporate culture, specially club life and ladies jealousies and there desperate attempt to be closer to the Madam (President/ CEO's wife) are worth mentioning. The snippets you have posted above promise an interesting story, and I would recommend you to go ahead with it. One thing more, sometime back you had posted another snippet of a story where bhabhi leads hero and guddi to some place where some sadhus are meditating. That also looked interesting.सिद्दीकी
“क्यों बे किससे बात कर रहा है तुझे टाइम नहीं है। और ये क्या यहाँ शरीफ आदमियों के साथ लफड़ा किया और ये साली लौंडिया कहाँ भगाकर ले जा रहा है? किससे बात कर रहा है? मोबाइल छीन इसका…” वो गरजे।
डी॰बी॰ अभी फोन पर ही थे- “वो वो। आपसे ही बात करना चाहते हैं जी। लीजिये…” और फोन मैंने थानेदार को पकड़ा दिया।
सारे पोलिस वाले हमें ऐसे देख रहे थे जैसे मैं किसी से सोर्स सिफारिश लगवा रहा हूँ, और जिसका थानेदार साहब पे कोई असर नहीं होगा। उल्टे उनकी एक घुड़क से उसकी पैंट ढीली हो जायेगी।
थानेदार जी ने फोन ले लिया। फिल्म अब स्लो मोशन में हो गई-
“कौन है बे। ये जो पोलिस के मामले में टांग,....नहीं नहीं सर इन्होंने बताया नहीं, मैं तो इसीलिए खुद आ गया था। पहले दो जवान भेजे थे लेकिन मैं खुद तहकीकात करने आ गया। मैडम ने फोन किया था। नहीं कोई छोटा मोटा लुच्चा लफंगा है होली का चंदा मांगने वाला। वैसे साहब ने खुद उसके हाथ पांव ढीले कर दिए हैं…”
इतना तेज हृदय परिवर्तन, भाषा परिवर्तन और पोज परिवर्तन, मैंने एक साथ कभी नहीं देखा था। फिल्मों में भी नहीं। फोन लेने के चार सेकंड के अन्दर उनके ब्राउन जूते कड़के। वो तन के खड़े हो गए, हाथ सैल्यूट की मुद्रा में और दूसरे हाथ से फोन पकड़े।
वार्ता जारी थी-
“नहीं नहीं सिद्दीकी को भेजने की कोई जरूरत नहीं। नहीं,... मेरा मतलब। अरे मैडम ने जैसे ही फोन किया जी॰डी॰ में दर्ज कर दिया है, एफ॰आई॰आर॰ भी लिख ली है। जी सेठजी का बयान लेने ही मैं आया था। दफा। जी नहीं एकाध कड़ी दफा भी। जी उसने अपने वकील को फोन कर दिया था मेरे आने के पहले। नहीं साहब अरे एकदम छोटा मोटा कोई। नहीं कोई गलतफहमी हुई है। ठीक है आप कहते हैं तो पन्ना फाड़ दूंगा…”
फोन दो सेकंड के लिए दबाकर उन्होंने सर्व साधारण को सूचित किया- “साले तेरा बाप है। डी॰बी॰ साहेब का फोन है। ये उनके दोस्त हैं…”
थानेदार- “जी हाँ एकदम दुरुस्त…” और फोन बंद करके मुझे पकड़ा दिया।
माहौल एकदम बदल गया। जो दो पोलिस वाले मेरे हाथ पकड़े थे और हवाई जहाज, टायर इत्यादि की एडवेंचर्स योजनायें बना रहे थे, उन्होंने मौके का फायदा उठाया और मेरे चरणों में धराशायी हो गए-
“जी माफ कर दीजिये। ये तो इन दोनों ने। साले अब जिन्दगी भर ट्रैफिक की ड्यूटी करेंगे। थाने के लिए तरस जायेंगे। जूते मार लीजिये साहब। लेकिन…”
वो दोनों पोलिस वाले भी जो पहले आये थे , मेरे पास खड़े थे, लेकिन चरण कम पड़ रहे थे। इसलिए वो जाकर गुड्डी के चरणों में-
“माताजी, माताजी हम पापी हैं, हमें नरक में भी जगह नहीं मिलेगी। लेकिन आप तो दयालु हैं, माफ कर दीजिये, हम कान पकड़ते हैं। बरबाद हो जायेंगे। साहेब हमें जिन्दा नहीं छोड़ेंगे। बाल बच्चे वाले हैं हम आपके पैरों के दास बनकर रहेंगे…”
फर्क चारों ओर पड़ गया था।
दोनों मोहरे जो काउंटर का सहारा लेकर आराम से अधलेटे बैठे थे जमीन पे फिर से सरक गए थे। ‘छोटा चेतन’ जो ओवर कांफिडेंट था, के चेहरे पे हवाइयां उड़ रही थी और वो बार-बार मोबाइल लगाता और उम्मीद की निगाह से थानेदार की ओर देख रहा था।
यहाँ तक की सेठजी भी एक नई नजर से हम लोगों की तरफ देख रहे थे।
छोटा चेतन ,उन तिलंगों का बास दरवाजे की ओर देख रहा था और मैं भी। मैं सोच रहा था की अगर वो डाक्टर आ गया तो उसे मैं कैसे रोकूंगा?
तभी दरवाजा खुला लेकिन धड़ाके से।
क्या जंजीर में अमिताभ बच्चन की या दबंग में सलमान की एंट्री हुई होगी? सिर्फ बैक ग्राउंड म्यूजिक नहीं था बस।
सिद्दीकी ने उसी तरह से जूते से मारकर दरवाजा खोला। उसी तरह से 10 नंबर का जूता और 6’4…” इंच का आदमी, और उसी तरह से सबको सांप सूंघ गया। खास तौर से छोटा चेतन को, अपने एक ठीक पैर से उसने उठने की कोशिश की और यहीं गलती हो गई।
एक झापड़। जिसकी गूँज फिल्म होती तो 10-12 सेकंड तक रहती और वो फर्श पे लेट गया।
सिद्दीकी ने उसका मुआयना किया और जब उसने देखा की एक कुहनी और एक घुटना अच्छी तरह टूट चुका है, तो उसने आदर से मेरी तरफ देखा और फिर बाकी दोनों मोहरों को। टूटे घुटने और हाथ को और फिर अब उसकी आवाज गूंजी-
“साले मादरचोद। बहुत चक्कर कटवाया था। अब चल…”
और फिर उसकी आवाज थानेदार के आदमियों की तरफ मुड़ी।
सिद्दीकी- “साले भंड़ुवे, क्या बता रहे थे इसे? छोटा मोटा। सारे थानों में इसका थोबड़ा है और। चलो अब होली लाइन में मनाना। पुलिस लाइन में मसाला पीसना। किसी साहब के मेमसाहब का पेटीकोट साफ करना…”
तब तक फिर फोन की घंटी बजी।
डी॰बी॰- “सिद्दीकी पहुँचा?”
मैंने बोला- “हाँ…”
डी॰बी॰- “उसको फोन दो ना…”
मैंने फोन पकड़ा दिया। सिद्दीकी बोल रहा था लेकिन कमरे में हर आदमी कान फाड़े सुन रहा था। मैं समझ गया था की पब्लिक जितना डी॰बी॰ के नाम से डरी उससे ज्यादा सिद्दीकी को देखकर। वो बनारस का ‘अब तक छप्पन’ होगा।
सिद्दीकी- “जी इन दोनों को आपके पास लाने की जरूरत नहीं है खाली शुक्ला को। जी मैं कचड़ा ठिकाने लगा दूंगा। हाँ एक रिवाल्वर और दो चाकू मिले हैं। जी। मैं साथ में एक वज्र लाया हूँ यहीं लगा दिया, रामनगर से दो पी॰ए॰सी॰ की ट्रक आई थी होली ड्यूटी के लिए। उन्हें गली के बाहर। डाक्टर को पहले ही उठवा लिया है और मेरे करने के लिए कुछ बचा नहीं था, साहब ने पहले ही। मुझे बहुत घमंड था अपने ऊपर लेकिन जिस तरह से साहब ने चाप लगाया है सालों के ऊपर…”
और उसने फोन मुझे पास कर दिया।
डी॰बी॰ अभी भी लाइन पर थे, कहा- “अभी एक मोबाइल भेज रहा हूँ। तुम लोग…”
मैं- “मोबाइल। मतलब?” मेरी कुछ समझ में नहीं आया।
डी॰बी॰- “अरे पोलिस की गाड़ी। भेज रहा हूँ जाना कहां था…” वो बोले।
( ये चुने हुए अंश " फागुन के दिन चार " के हैं लम्बी कहानी कहिये, उपन्यास कहिये। कुछ मित्रों का अनुरोध था इसे रिपोस्ट करने का।
कैसा लगेगा इसलिए एक छोटा सा दृश्य है अपनी राय जरूर बताइये, रिपोस्ट करूँ, न करूँ। अगर ८-१० नियमिंत पढ़ने वाले कमेंट देने वाले मिल गए तो,... अपनी राय जरूर बताइये। )
Please Komalji. Aap ek thriller story platform par use lonch karo. Aap ke pas puri kahani taiyar he. Aap anuchit samay ke hishab se update de sakti he..sayad sirf sex padhne vale logo ke alava story padhne valo ki tadad bhi bahot he. Aap ki skill ka loha har koi manta bhi he. Aap propar is story ko lonch kare. Baki kahene ko mere pas sabad nahi. Par kahena bahot kuchh he. Request he ki aap der na kare.सिद्दीकी
“क्यों बे किससे बात कर रहा है तुझे टाइम नहीं है। और ये क्या यहाँ शरीफ आदमियों के साथ लफड़ा किया और ये साली लौंडिया कहाँ भगाकर ले जा रहा है? किससे बात कर रहा है? मोबाइल छीन इसका…” वो गरजे।
डी॰बी॰ अभी फोन पर ही थे- “वो वो। आपसे ही बात करना चाहते हैं जी। लीजिये…” और फोन मैंने थानेदार को पकड़ा दिया।
सारे पोलिस वाले हमें ऐसे देख रहे थे जैसे मैं किसी से सोर्स सिफारिश लगवा रहा हूँ, और जिसका थानेदार साहब पे कोई असर नहीं होगा। उल्टे उनकी एक घुड़क से उसकी पैंट ढीली हो जायेगी।
थानेदार जी ने फोन ले लिया। फिल्म अब स्लो मोशन में हो गई-
“कौन है बे। ये जो पोलिस के मामले में टांग,....नहीं नहीं सर इन्होंने बताया नहीं, मैं तो इसीलिए खुद आ गया था। पहले दो जवान भेजे थे लेकिन मैं खुद तहकीकात करने आ गया। मैडम ने फोन किया था। नहीं कोई छोटा मोटा लुच्चा लफंगा है होली का चंदा मांगने वाला। वैसे साहब ने खुद उसके हाथ पांव ढीले कर दिए हैं…”
इतना तेज हृदय परिवर्तन, भाषा परिवर्तन और पोज परिवर्तन, मैंने एक साथ कभी नहीं देखा था। फिल्मों में भी नहीं। फोन लेने के चार सेकंड के अन्दर उनके ब्राउन जूते कड़के। वो तन के खड़े हो गए, हाथ सैल्यूट की मुद्रा में और दूसरे हाथ से फोन पकड़े।
वार्ता जारी थी-
“नहीं नहीं सिद्दीकी को भेजने की कोई जरूरत नहीं। नहीं,... मेरा मतलब। अरे मैडम ने जैसे ही फोन किया जी॰डी॰ में दर्ज कर दिया है, एफ॰आई॰आर॰ भी लिख ली है। जी सेठजी का बयान लेने ही मैं आया था। दफा। जी नहीं एकाध कड़ी दफा भी। जी उसने अपने वकील को फोन कर दिया था मेरे आने के पहले। नहीं साहब अरे एकदम छोटा मोटा कोई। नहीं कोई गलतफहमी हुई है। ठीक है आप कहते हैं तो पन्ना फाड़ दूंगा…”
फोन दो सेकंड के लिए दबाकर उन्होंने सर्व साधारण को सूचित किया- “साले तेरा बाप है। डी॰बी॰ साहेब का फोन है। ये उनके दोस्त हैं…”
थानेदार- “जी हाँ एकदम दुरुस्त…” और फोन बंद करके मुझे पकड़ा दिया।
माहौल एकदम बदल गया। जो दो पोलिस वाले मेरे हाथ पकड़े थे और हवाई जहाज, टायर इत्यादि की एडवेंचर्स योजनायें बना रहे थे, उन्होंने मौके का फायदा उठाया और मेरे चरणों में धराशायी हो गए-
“जी माफ कर दीजिये। ये तो इन दोनों ने। साले अब जिन्दगी भर ट्रैफिक की ड्यूटी करेंगे। थाने के लिए तरस जायेंगे। जूते मार लीजिये साहब। लेकिन…”
वो दोनों पोलिस वाले भी जो पहले आये थे , मेरे पास खड़े थे, लेकिन चरण कम पड़ रहे थे। इसलिए वो जाकर गुड्डी के चरणों में-
“माताजी, माताजी हम पापी हैं, हमें नरक में भी जगह नहीं मिलेगी। लेकिन आप तो दयालु हैं, माफ कर दीजिये, हम कान पकड़ते हैं। बरबाद हो जायेंगे। साहेब हमें जिन्दा नहीं छोड़ेंगे। बाल बच्चे वाले हैं हम आपके पैरों के दास बनकर रहेंगे…”
फर्क चारों ओर पड़ गया था।
दोनों मोहरे जो काउंटर का सहारा लेकर आराम से अधलेटे बैठे थे जमीन पे फिर से सरक गए थे। ‘छोटा चेतन’ जो ओवर कांफिडेंट था, के चेहरे पे हवाइयां उड़ रही थी और वो बार-बार मोबाइल लगाता और उम्मीद की निगाह से थानेदार की ओर देख रहा था।
यहाँ तक की सेठजी भी एक नई नजर से हम लोगों की तरफ देख रहे थे।
छोटा चेतन ,उन तिलंगों का बास दरवाजे की ओर देख रहा था और मैं भी। मैं सोच रहा था की अगर वो डाक्टर आ गया तो उसे मैं कैसे रोकूंगा?
तभी दरवाजा खुला लेकिन धड़ाके से।
क्या जंजीर में अमिताभ बच्चन की या दबंग में सलमान की एंट्री हुई होगी? सिर्फ बैक ग्राउंड म्यूजिक नहीं था बस।
सिद्दीकी ने उसी तरह से जूते से मारकर दरवाजा खोला। उसी तरह से 10 नंबर का जूता और 6’4…” इंच का आदमी, और उसी तरह से सबको सांप सूंघ गया। खास तौर से छोटा चेतन को, अपने एक ठीक पैर से उसने उठने की कोशिश की और यहीं गलती हो गई।
एक झापड़। जिसकी गूँज फिल्म होती तो 10-12 सेकंड तक रहती और वो फर्श पे लेट गया।
सिद्दीकी ने उसका मुआयना किया और जब उसने देखा की एक कुहनी और एक घुटना अच्छी तरह टूट चुका है, तो उसने आदर से मेरी तरफ देखा और फिर बाकी दोनों मोहरों को। टूटे घुटने और हाथ को और फिर अब उसकी आवाज गूंजी-
“साले मादरचोद। बहुत चक्कर कटवाया था। अब चल…”
और फिर उसकी आवाज थानेदार के आदमियों की तरफ मुड़ी।
सिद्दीकी- “साले भंड़ुवे, क्या बता रहे थे इसे? छोटा मोटा। सारे थानों में इसका थोबड़ा है और। चलो अब होली लाइन में मनाना। पुलिस लाइन में मसाला पीसना। किसी साहब के मेमसाहब का पेटीकोट साफ करना…”
तब तक फिर फोन की घंटी बजी।
डी॰बी॰- “सिद्दीकी पहुँचा?”
मैंने बोला- “हाँ…”
डी॰बी॰- “उसको फोन दो ना…”
मैंने फोन पकड़ा दिया। सिद्दीकी बोल रहा था लेकिन कमरे में हर आदमी कान फाड़े सुन रहा था। मैं समझ गया था की पब्लिक जितना डी॰बी॰ के नाम से डरी उससे ज्यादा सिद्दीकी को देखकर। वो बनारस का ‘अब तक छप्पन’ होगा।
सिद्दीकी- “जी इन दोनों को आपके पास लाने की जरूरत नहीं है खाली शुक्ला को। जी मैं कचड़ा ठिकाने लगा दूंगा। हाँ एक रिवाल्वर और दो चाकू मिले हैं। जी। मैं साथ में एक वज्र लाया हूँ यहीं लगा दिया, रामनगर से दो पी॰ए॰सी॰ की ट्रक आई थी होली ड्यूटी के लिए। उन्हें गली के बाहर। डाक्टर को पहले ही उठवा लिया है और मेरे करने के लिए कुछ बचा नहीं था, साहब ने पहले ही। मुझे बहुत घमंड था अपने ऊपर लेकिन जिस तरह से साहब ने चाप लगाया है सालों के ऊपर…”
और उसने फोन मुझे पास कर दिया।
डी॰बी॰ अभी भी लाइन पर थे, कहा- “अभी एक मोबाइल भेज रहा हूँ। तुम लोग…”
मैं- “मोबाइल। मतलब?” मेरी कुछ समझ में नहीं आया।
डी॰बी॰- “अरे पोलिस की गाड़ी। भेज रहा हूँ जाना कहां था…” वो बोले।
( ये चुने हुए अंश " फागुन के दिन चार " के हैं लम्बी कहानी कहिये, उपन्यास कहिये। कुछ मित्रों का अनुरोध था इसे रिपोस्ट करने का।
कैसा लगेगा इसलिए एक छोटा सा दृश्य है अपनी राय जरूर बताइये, रिपोस्ट करूँ, न करूँ। अगर ८-१० नियमिंत पढ़ने वाले कमेंट देने वाले मिल गए तो,... अपनी राय जरूर बताइये। )
Guilty as charged.Komal ji, let me admit that your command on language, both English and Hindi, is superb. I occasionally keep on visiting your thread. Somehow, the story content is too raw for my taste. This is an individual choice, and not an adverse comment on your style. Your knowledge of eastern UP/ Bihar rural culture and also complex corporate culture, specially club life and ladies jealousies and there desperate attempt to be closer to the Madam (President/ CEO's wife) are worth mentioning. The snippets you have posted above promise an interesting story, and I would recommend you to go ahead with it. One thing more, sometime back you had posted another snippet of a story where bhabhi leads hero and guddi to some place where some sadhus are meditating. That also looked interesting.
बोलेगी बोलेगी मुनियाKomal ji in cheekho ko kuch shabd bhi dijiye, guddi ki jabani
Abhi to Kamal Jiju aaye hain unke Kamaal ka maja lijiye naa.Komal ji, please ab samdhan ko bulaiye jaldi se
Please Komalji. Aap ek thriller story platform par use lonch karo. Aap ke pas puri kahani taiyar he. Aap anuchit samay ke hishab se update de sakti he..sayad sirf sex padhne vale logo ke alava story padhne valo ki tadad bhi bahot he. Aap ki skill ka loha har koi manta bhi he. Aap propar is story ko lonch kare. Baki kahene ko mere pas sabad nahi. Par kahena bahot kuchh he. Request he ki aap der na kare.
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