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जोरू का गुलाम भाग २३८ पृष्ठ १४५०
वार -१ शेयर मार्केट में मारकाट
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वार -१ शेयर मार्केट में मारकाट
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Ye to bahot badhiya bat he. Komaliya mai chahti hu ki aap ki kahani bulandiya chhue. Aap pahele kahani likh le. Konsi kahani vayask ke lie he. Aur konsi jawan logo ke lie. Sahi wakt ka chunav. Konsa wakt kahani padhne ke lie pariyapt rahega. Us wakt ka chunav kare.फागुन के दिन चार में जितना थ्रिलर का हिस्सा है उससे ज्यादा इरोटिका, बल्कि रोमांस भी है। रोमांस में मिलन भी है कर बिछोह भी। ऐसे करूण दृश्य भी जिन्होंने न सिर्फ पढ़ने वालों की आँखे नम की बल्कि मुझे भी कलम रोक लेनी पड़ी।
थ्रिलर से जुड़े कुछ हिस्से मैंने इस लिए प्रस्तुत किये की मेरी कहानी का रोमांस और इरोटिका से तो पढ़ने वाले ( इस फोरम के ) परिचित हैं ही लेकिन बहुत से लोगों ने थ्रिलर वाले भाग को कम महसूस किया होगा।
इस लिए मैं सोच रही हं की इसे इरोटिका वाले भाग में पोस्ट करूँ लेकिन थ्रिलर का टैग डाल दूँ।
लेकिन उहापोह का असली कारण यह है की क्या नियमित रूप से इसे पाठक मिल पाएंगे और क्या ८-१० मित्र नियमित रूप से कमेंट करेंगे।
शुरू के भागों में होली की छेड़छाड़, बनारस की मस्ती जो थ्रिलर से एकदम अलग है, थ्रिलर का एलिमेंट पहले १२ -१४ भागों के बाद ही आता है। और उसके बाद इरोटिका, रोमांस भी बीच में
एक बार फिर से आपका आभार,
Ufff... superb. अब चाहे कालिदास की विरह वेदना हो, या फिर आपकी लेखनी का जादू, कुछ अंश पढ कर आनन्द आया।Guilty as charged.
yes many times or mostly, language is raw, rusting and may i say coarse too. and yes may not be comfortable sometimes and even to some people. You must have noticed in my comments I meticulously avoid such lingo. Language is more in the realm of rustic fantasy but sometimes ( not many times i admit ) I do love to use, some sensuous language. just sharing an example from my latest post from my other story. This is in the last part of the story
हिना का बदन, उसके जोबन पलाश की तरह दहक रहे थे।
हिना का मन चावल चुगती कभी इस मुंडेर पर कभी उस मुंडेर पर फुदकती गौरेया की तरह, कभी चंदा की ख़ुशी में डूबी देह को देखता तो कभी सोचता साल दो साल पहले ही तो इस गाँव के लड़के लड़कियों के साथ बिना हिचक वो खेलती, झगड़ा करती, लड़ती, बारिश आने पे पहली बूँद के साथ ही अपनी इन्ही सहेलियों के साथ कभी अपने आंगन में कभी कम्मो के घर, अरई परई गोल गोल चक्कर काटती, सब सहेलिया देखतीं किसके ऊपर कितनी बूंदे पड़ी , सबकी मायें डांटती, लड़की सब पागल हो गयी हैं का,
सावन आता तो झूला झूलने इसी बगिया में आती, भाभियों की चिकोटियां, किसका झूला कितना ऊपर जाता है बस मन करता सावन को लपेट ले, ओढ़ ले और साल के बारहो महीने सावन के हो जाए, हरे भरे,
सावन में पूरे गाँव में उसके अपने टोले में भी नयी नयी सुहागने गौने के बाद पहली बार मायके आतीं और भौजाइयां घेर के उनसे गौने की रात का हाल बार बार पूछतीं, ... चिकोटियां काटतीं और जब हिना ऐसे कुंवारियां भी चिपक के हाल सुनती तो कोई भौजाई उन कुंवारियों को छेड़ती भी
" सुन ले, सुन ले तेरे भी काम आएगा " .
और जब वो लड़कियां बिदा होती, किसी भी पुरवा की, पठानटोली वाई हो या पंडिताने की, जाने के पहले सब से, काकी ताई से भौजी से सब से, मिल के भेंट के, दिन कैसे बीत जाते थे पता ही नहीं चलता,
पिछले सावन ही अजरा उदास की चादर हटाने के चक्कर में बात बदलने के लिए पंडिताइन चाची से भेंटते हुए छत पर चढ़े कद्दू की बेल को देखते हुए बोली,
" चाची, पिछली बार तो एकदम बतिया थी ये "
" अरे पगली खाली बेटियां थोड़ी बड़ी होती हैं, " पंडिताइन चाची हंसने की कोशिश करते बोलीं और आँचल की कोर से आंसू का एक कतरा पोंछ लिया.
Thanks for your suggestion to repost Phagun ke din chaar.
Thanks again.
Ufff... superb. अब चाहे कालिदास की विरह वेदना हो, या फिर आपकी लेखनी का जादू, कुछ अंश पढ कर आनन्द आया।
When i try to look at the link given at the bottom of your post, it appears " You do not have permission to view this page or perform this action."
Definitely yesI have shared some parts of Phagun ke din chaar, on page 1178 , my old novel. Please do read and advise me,
1. Should i repost it?
2. Will it attract some comments and views?
Madam, aapki friend ne "definitely yes" kaha hain...mera bhi wahi answer hain..I have shared some parts of Phagun ke din chaar, on page 1178 , my old novel. Please do read and advise me,
1. Should i repost it?
2. Will it attract some comments and views?