बहुत अच्छा रतजगे की भरपाई अभी हीं हो रही है....वाह,क्या सीन है
दोनों हथेलियों की मेहन्दी पूरे कोहनी तक।
यहीं नहीं उन्होंने गुड्डी की दोनों हथेलियों में मेंहदी लगे होने का फायदा उठा के ,उसके स्कूल यूनिफार्म का टॉप उठा के ,
गुड्डी के छोटे छोटे कबूतरों के पंख भी रंग दिए।
लेकिन तब तक हम तीनो की निगाहें घडी की ओर गयी , सवा ग्यारह।
और बारह बजे से तो गुड्डी की पार्टी शुरू होनी थी।
हालांकि वो गवर्नमेंट गर्ल्स इंटर कालेज ,एकदम हम लोगों के घर के पास ही था ,
funny poem lines
फिर भी अभी नाश्ता बनना था ,गुड्डी को खाना था ,फिर मेहँदी छुड़ाना।
जेठानी किचेन की ओर आलमोस्ट भागते हुए , थोड़ी देर में कड़ाही चढ़ने की बैंगनी छनने की आवाजें आने लगीं।
और जब ताज़ी गरमागरम बैगनी लेकर मेरी जेठानी आयीं तो मैं वो और गुड्डी टीवी पर हाइलाइट्स देख रहे थे।
अपने हाथों से बैगनी उन्होंने देवर को भी खिलाई ,ननद को भी और देवरानी को भी।
पर गुड्डी ने जेठानी जी को खींच के बैठा लिया ,
जेठानी ने लाख बहाना बनाया ,कड़ाही जल रही है ,तवा ठंडा हो रहा है , दूध उबल रहा है ,बर्फ पिघल रही है पर
गुड्डी ,
भाभी बस एक मिनट ,बडा इम्पॉर्टेंट सीन आने वाला है।
और सीन आ गया ,मेरी जेठानी के सीधे साधे आज्ञाकारी देवर ,हचक हचक कर अपनी भौजी की कुँवारी गांड मारने के बाद ,गांड से निकाल कर लंड
लिथड़ा ,चुपड़ा
मलाई मक्खन से लिपटा ,
सीधे अपनी भाभी के प्यारे प्यारे मुंह के अंदर , शुरू शुरू में उन्होंने मुंह बनाया ,सर हिलाया पर हचक हचक के ,...
वो सीधे गांड से निकला लंड उनके मुंह में एकदम जड़ तक
बस पांच मिनट बचे ,गुड्डी ने एक पकौड़ी उठायी ,मुंह में ठुंसी और सीधे कालेज की और ,
हाँ जाने से पहले वो एक लम्बी फेहरिस्त अपनी भौजी की लिखा गयी दिन के लंच के लिए , ढाई बजे वो तो तीन तितलियाँ कालेज से सीधे हमारे यहाँ
बड़ी भाभी के हाथ का बना खाना खाने।
…………
ननदों की बड़ी भाभी किचेन में धंस गयी ,खाना बनाने और मैं अपने साजन के साथ ऊपर
नहीं नहीं कुछ और करने वरने ,
सिर्फ सोने ,मैंने तो ये इनके मायके में आने के पहले ही तय कर लिया था की अबकी इनकी मलाई सिर्फ इनके मायके वालियों के अंदर ही जायेगी , बहन हो भाभी हो ,
हाँ जब ये मेरे मायके जाएंगे तो फिर मेरी मायकेवालियाँ ,इनकी सालियाँ ,सलहजें ( सगी नहीं तो रिश्ते की ही सही ) इनकी मलाई की हकदार होंगी।
मैं इनके मायकेवालियों के और अपने मायकेवालों के बीच कोई भेदभाव नहीं करती।
कुछ देर इन्होने पैकिंग की और मैंने गुड्डी की पैकिंग में उसका सूटकेस खोल के कुछ कतरब्योंत और फिर हम दोनों सो गए।
कल रात के रत जगे के बाद ,और आज फिर रतजगा होना था
कल की रात मेरी जेठानी के नाम थी तो आज की रात मेरी 'सीधी साधी ' ननद के साथ गुजरने वाली थी।
इसलिए थोड़ी सी नींद कहीं भी ,कभी भी।
लेकिन अब ये सब तो जेठानी के सामने हो नहीं सकता...
कितना मजा आता जब जेठानी हीं देवर का लंड पकड़ कर गुड्डी की कुंवारी कली पर रखती...
लेकिन सब अरमान पूरे तो नहीं होते...
लेकिन गुड्डी पहले तो चीखेगी-चिल्लाएगी... फिर भैया का सटासट गपागप लीलेगी...