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Incest पापी परिवार

Lodon Ka Raja

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" शुवर मॅम !!! वेलकम है आप का स्टोर में " ...... काउंटर गर्ल ने एक नज़र मुस्कुराती निम्मी पर डाली और उसके बाद दीप का चेहरा देखने लगी .... पहले तो वह उनके आगे डिफरेन्स को लेकर थोड़ा हैरान हुई फिर ऑटोमॅटिक उसका चेहरा भी स्माइल करने लगा .... आख़िर रोज़ ना जाने कितने ऐसे कपल स्टोर में शॉपिंग करने आते थे और बात जब मुंबई शहेर की हो तो इग्नोर कर देना ही उचित होगा.

" जानू बताओ ना !!! किस हॉट ड्रेस में आप मुझे देखना चाहते हो .. वैसे घर पर तो कुछ पहेन'ने देते नही " ...... निम्मी का स्पष्ट संवाद सुन कर दीप के साथ काउंटर गर्ल के भी कानो से धुआँ निकल गया ..... " ओह्ह्ह !!! डोंट माइंड थोड़ी पर्सनल बात कह गयी " ..... इतना कह कर उसने दीप की कमर में अपना हाथ लपेट लिया .... मानो सारी दुनिया को बताना चाहती हो कि वा वहाँ अपने पिता के साथ नही बल्कि अपने प्रेमी के साथ खड़ी है.

" माफी की ज़रूरत नही मॅम .. आप हैं ही इतनी हॉट " ..... काउंटर गर्ल ने मस्का लगाते हुए कहा ... वह समझ गयी पार्टी पैसे वाली है और यहाँ से वह अच्छा ख़ासा साले कमिशन गेन कर लेगी ..... " वाकाई सर आप बहुत लकी हैं .. काफ़ी कम लॅडीस का फिगर मॅम की तरह फुल्ली शेप्ड होता है .. क्या मैं अपनी तरफ से कुछ हॉट &; लग्षुरी ड्रेसस सजेस्ट कर सकती हूँ .. आप को ज़रूर पसंद आएँगी " ..... इतना कह कर उसने निम्मी का पूरा फिगर अपनी अनुभवी आँखों में क़ैद कर लिया और वाजिब ड्रेसस निकालने लगी.

" यहाँ स्टोर में अलोड है ना .. एक्चूली !!! मैं इन्हे ड्रेसस पहेन कर दिखाना चाहती हूँ, यू नो ... बाद के लफदे " ...... निम्मी को अपने कमीनेपन पर वापस आने में ज़्यादा वक़्त नही लगा और दीप ना चाहते हुए भी उसकी हार बात पर मानो कठ - पुतली की तरह मोहर लगाता रहा.

" बिल्कुल अलाउड है मॅम !!! बट ट्राइयल रूम्स के बाहर कॅमरास लगे हैं जो हर 10 मिनिट्स बाद बीप करते हैं ताकि अंदर कोई दुर्घटना ना हो जाए .... आख़िर लोग कंट्रोल करें भी तो कैसे आंड आप की हॉटनेस्स देख कर तो लगता है .... सर वाकाई कंट्रोल नही कर पाते होंगे " ...... काउंटर गर्ल ने निम्मी की ओपननेस में अपनी नॉटीनेस्स मिक्स करते हुए कहा ...... " मॅम !!! ये सारी ड्रेसस ऊपरवाले ने ख़ास आप के लिए ही बनाई हैं आंड सर बी करेफ़ूल्ल " ....... इतना कहते हुए उसने बाप - बेटी दोनो को ट्राइयल रूम की सिचुयेशन बता दी और अपने अन्य कामो में व्यस्त हो गयी.

दीप ने देखा काउंटर पर इतने छोटे - छोटे कपड़े रखे हुए थे जितने तो शायद निम्मी ने पहले कभी नही पहने होंगे .... नाम मात्र के कपड़े जिन्हे पहेनना - ना पहेनना सब बराबर होता.

वहीं निम्मी कुछ ज़्यादा ही एग्ज़ाइटेड हो गयी और सारे कपड़े समेट'ते हुए उसने दीप से कहा ....... " चलें डॅड !!! " ...... हलाकी यह वाक्य उसके मूँह से हड़बड़ी या अपार आनंद में निकल गया होगा परंतु जब तक वह कुछ समझ पाती .... तब तक वहाँ भूचाल आ गया.

काउंटर गर्ल .... जो उस वक़्त एक्सट्रा ड्रेसस शिफ्ट करने में लग चुकी थी एक दम से उसके हाथ से सारे कपड़े नीचे फ्लोर पर गिर गये और फॉरन पलट'ते हुए उसने बाप - बेटी के चेहरे को देखा .... अपने आप उसका हाथ अपने खुले मूँह पर चला गया और वह हैरान रह गयी.

पल भर में ही अत्यंत बेज़्ज़ती का अनुभव कर दीप का चेहरा शर्मसार हो गया और उसने निम्मी के हाथ में पकड़े हुए सारे ड्रेसस फुर्ती में काउंटर पर रखवा दिए .... वे दोनो स्टोर से बाहर निकलने लगे, दीप ने अपनी बेटी का हाथ थाम रखा था और निम्मी ने जब पलट कर पीछे देखा तो काउंटर गर्ल के चेहरे पर कुटिल मुस्कान तैर रही थी .... यह देखते ही निम्मी भी उसी अंदाज़ में मुस्कुराइ और उसे आँख मार दी .... शायद वह उसे एक नयी पापी सीख देना चाहती होगी.

जल्द ही दोनो तेज़ कदमो से चलते हुए पार्किंग में पहुच गये ...... " चल बैठ अंदर और अब एक लफ्ज़ नही सुनना मुझे " ..... इतना कह कर दीप ड्राइविंग सीट पर बैठ गया और निम्मी ने भी अपनी मुकम्मल जगह पर तशरीफ़ रख दी.

" यू नो डॅड आप की प्राब्लम क्या है .... आप बहुत बड़े फत्तु हो " ..... निम्मी ने उसके गियर डालने से पहले ही हमला बोल दिया .... वह रास्ते में ही तय कर चुकी थी, आज फाइनल बात करने के बाद ही घर जाएगी.

" क्या बोली तू !!! मैं फत्तु हूँ, शरम कर निम्मी ... देखा नही वह लड़की कैसे घूर कर हमे देख रही थी " ........ दीप की टोन निम्मी से ज़्यादा ऊँची हो गयी थी और वह लगभग चिल्लाते हुए बोला.

" तो देखने दो ना डॅड !!! क्या बंद कमरे की हरक़त कोई नही देखता .. हम तो देखते हैं, तब इस शरम को कहाँ ले कर जाएँगे ? " ...... निम्मी ने अपनी साइड का गेट ओपन करते हुए कहा ....... " मैं अब घर पर नही रहूंगी " ....... इतना कहती हुई वह कार से नीचे उतरने लगी.

" चुप चाप बैठ अंदर .. मैं बात कर रहा हूँ ना " ....... दीप ने उसे नीचे नही उतरने दिया और उसका हाथ पकड़ कर वापस उसे अंदर खीच लिया ....... " सुन निम्मी !!! जो हो गया सो हो गया, अब हम नॉर्मल लाइफ जियेंगे और तू भी भूल जा सब कुछ " ....... वह गियर डालते हुए बोला.

" आइ सेड स्टॉप दा कार डॅड !!! मैं कोई बाज़ारू रांड़ नही हूँ जिनसे आज तक आप घर के बाहर अपना जी बहलाते आए हो .. दो बार आप मेरा जिस्म चूस चुके हो, एक बार मैं आप का बदन चूस चुकी हूँ .. क्या इसके बाद भी भूलने की कोई गुंजाइश बचती है ? " ...... निम्मी ने अपनी बात पूरी की और दीप के बलिश्त हाथ की पाँचो उंगलियाँ उसके नर्म व गोरे गाल पर छप गयी .... थप्पड़ की उस करारी गूँज से पूरी कार हिल गयी थी.

" बस अब आपकी यही मर्दानगी बची है डॅड !!! वाकाई आप फत्तु हो .. यह मत समझना क़ी मैं रोने लग जाउन्गि .. निम्मी ने आज तक लोगो को रुलाया है और उसके आँसू जब वह खुद चाहती है तभी बाहर आते हैं .. कहीं ऐसा ना हो जाए किन आप भी अपनी बेटी के आँसुओ की जलन में तप जाओ " ...... निम्मी ने एक पल को भी अपने दर्द पर ध्यान नही दिया और अब वह ख़ूँख़ार शेरनी की तरह दीप पर चढ़ने लगी.
 

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" डॅड !!! अगर आप यही चाहते हो कि हम सब भूल कर अपनी लाइफ री - स्टार्ट करें तो यह अब पासिबल नही .. आप नही जानते मेरे जिस्म की आग को, अरे आप को तो इस बात का भी अंदाज़ा नही होगा कि कल रात मैं बेहोश क्यों हुई .. मैने 1स्ट टाइम सकिंग की थी और अपना प्यार जताने के लिए जो किया, जितना किया .. आप कभी नही समझ पाओगे " ..... निम्मी अपनी बात कहना तो सॉफ लॅफ्ज़ो में चाहती थी लेकिन वह यह नही भूली कि उसकी बात सुनने वाला शक्स उसका पिता है .... बीती रात उसने दीप को प्लेषर रिटर्न किया था, वह खुद आनंद से सराबोर थी और चाहती थी उसके डॅड को भी उतना ही आनंद मिले .... तभी उसने पूरी ताक़त लगा दी थी दीप के विकराल लंड को चूसने में, परंतु उसका छोटा मूँह चाह कर भी इसमें सफल नही हो पाया.

" मुझे सब पता है निम्मी .. चल गुस्सा थूक दे, सब ठीक हो जाएगा " ....... दीप सारा सच जानता था लेकिन अब भी उसका दिल और आगे जाने को तैयार नही हो पा रहा था .... उसे निम्मी से उतना ही प्यार था परंतु वह उस प्यार में एक प्रेमिका की झलक नही ढूंड पा रहा था.

" गुस्सा तो मुझे आ रहा है डॅड और अब यह गुस्सा बढ़ना ही है .. जब आप विवश हो तो मैं भी हूँ, आप नही तो कोई और सही .. अब आप की कोई दखल अंदाज़ी मैं बर्दाश्त नही करूँगी, मुझे भी ऐश करनी हैं और आप तो हमेशा करते आए हो " ....... यह कहते हुए निम्मी ने घूर कर दीप की आँखों में देखा, उसकी रक्त - रंजित लाल आँखों से दीप ज़्यादा देर तक अपनी आँखों का मिलान नही कर पाया और घबरा कर उसने गियर डाल दिया .. अब उनकी कार पार्किंग से निकल कर मेन रोड पर आ गयी.

" उस मेडिकल स्टोर पर रोकना डॅड .. मुझे कुछ ज़रूरी सामान खरीदना है " ...... निम्मी के कहने पर दीप ने कार रोक दी और उसकी शर्ट की जेब में जितना भी माल रखा था सब एक झपटते में निम्मी के हाथ में आ गया .... वह कार से उतर कर बाहर निकल गयी.

" हे भगवान !!! मैं पागल हो जाउन्गा " ....... दीप ने अपना सर पकड़ लिया ...... " आज तक मैं इसके चेहरे को नही पढ़ पाया .. जहाँ सिर्फ़ देखने मात्र से ही मैं लड़की की पूरी कुंडली जान जाता हूँ, आज मेरी अपनी बेटी ने मुझे हरा दिया है " ...... दीप ने पहली बार जाना असमंजस की स्थिति किसे कहते हैं .... उसका पूरा घमंड निम्मी चूर - चूर कर चुकी थी और जाते - जाते भी 10 हज़ार से ज़्यादा पर हाथ सॉफ कर गयी.

कुछ देर बाद कार का गेट फिर से ओपन हुआ और निम्मी अंदर आ गयी ...... " अब हमे चलना चाहिए " ...... उसने हाथ में पकड़ा पॉलीबेग डॅश - बोर्ड के ऊपर रखते हुए कहा.

वे फिर से आगे बढ़ गये .... जितनी देर के लिए निम्मी बाहर गयी थी उतने में ही वह पसीना - पसीना हो चुकी थी, उसने फॉरन अपना दुपट्टा उतारा और अपना चेहरा पोंछने लगी .... उसके बदन से उठती मादक महक ने मानो दीप को मजबूर कर दिया और वह अपनी बेटी की हरक़तें चोर नज़र से देखने लगा.

शातिर निम्मी को भी पता था दीप उसे ही देख रहा है और उसने जान कर दुपट्टे को अपने उभरे क्लीवेज पर घुमाना शुरू कर दिया ...... " उफफफ्फ़ !!! काश मैं थोड़ी देर बिना कपड़ो के रह पाती .. बहुत गर्मी है " ....... और इतना कहते हुए वह सच में अपनी कमीज़ उतारने लगी.

" निम्मी !!! मैं तेरे हाथ जोड़ता हूँ .. हम मार्केट में हैं " ....... दीप की साँसे उसके हलक से अटकने लगी .... जो डर उसे पहले अपनी बेटी से था इस वक़्त उसकी आँखों में सॉफ देखा जा सकता था.

" तो क्या मैं गर्मी से मर जाउ ? " ....... फॉरन निम्मी का मिजाज़ रुआसी में बदला और इसके बाद उसने अपना दुपट्टा भी डॅश - बोर्ड पर रख दिया ... उसके ऐसा करने से दीप की नज़र उस पॉलीबेग पर गयी जिसे उसकी बेटी मेडिकल स्टोर से साथ लेकर आई थी और वह चीखते हुए अपनी सीट पर उच्छल पड़ा.

" यह क्या है निम्मी ? " ...... दीप चिल्लाया .... उसकी आँखें इस बात पर विश्वास नही कर रही थी कि पूरा पॉलीबेग सिर्फ़ कॉनडम्स और पिल्स से भरा हुआ है .... उनसे तेज़ी से ब्रेक लगाए और कार रोड की लेफ्ट साइड रोक ली.

" सेफ सेक्स .. मैं नही चाहती आप जल्दी दादा बन जाओ " ...... निम्मी ने अपने दाँत बाहर निकाल दिए ...... " बन भी जाओगे तो कोई फिकर नही मेरे डॅड अपने पोते को बहुत प्यार से रखेंगे .. मैं जानती हूँ " ...... उसके कमीनेपन के वार दीप को रुलाए जा रहे थे और उसने गुस्से में आ कर पॉलीबेग कार से बाहर फेंक दिया.

" वैसे सिंगल कॉंडम मैने अपनी ब्रा में छुपा लिया था .. आप फिकर ना करो डॅड, मैं आपकी नाक नही काटने दूँगी .. आप अपने ऐश करो मैं अपने करूँगी " ...... निम्मी ने बड़े सेडक्टिव अंदाज़ में अपना हाथ अपने स्ट्रॉंग क्लीवेज पर घुमाते हुए उसे कमीज़ के अंदर डाला और ब्रा में छुपे एक स्पेशल कॉंडम की हल्की सी झलक दीप को दिखाई .... फिर वापस उसे अंदर करते हुए अपने दाँत बाहर निकाल दिए.

" कितना परेशान करेगी निम्मी .. मैं तेरा बाप हूँ " ...... दीप की घुटि आवाज़ इस वक़्त उसका ज़रा भी साथ नही दे रही थी ...... " अब नही रहे .. इतना सब होने के बाद तो बिल्कुल नही .. बट आइ स्टिल लव यू " ...... निम्मी ने उसकी जाँघ पर अपना हाथ रखते हुए कहा और दीप एक बार फिर से विचलित हो उठा.

निम्मी लगातार उसकी जाँघ सहलाती रही और क्लीवेज से बाहर को झाँकते उसके 60 फीसदी बूब्स .... उसके पिता का मोह भंग करने को काफ़ी थे, धीरे - धीरे वह अपना हाथ उसके लंड के उभार तक ले गयी और जब उसे पता चला दीप का तंन और मन दोनो पूरी तरह से उसके काबू में आ गये हैं .... उसने फॉरन उस विध्वंसक लौडे को अपने दोनो हाथो की मुट्ठी में बुरी तरह से जाकड़ लिया.

" डॅड !!! क्या अब भी कहोगे .. आप मुझे बेटी की नज़र से देखते हो ? " ....... निम्मी की आवाज़ से दीप होश में लौटा और जब उसने अपने खड़े लंड पर बेटी के दोनो हाथो का क़ब्ज़ा पाया .... अपनी हार पर वह कुछ नही कह सका, बस एक आख़िरी बार निम्मी के बालो पर हाथ फेरते हुए उसने कार स्टार्ट कर ली और दोनो घर जाने को अग्रसर हो गये.

रास्ते भर दीप निम्मी के चेहरे पर आई खुशी और कामुक उत्तेजना को देखता रहा .... वहीं निम्मी की कुँवारी चूत सारे रास्ते बस अपने पिता के विकराल लौडे से चुदने के बारे में सोच - सोच कर पानी छोड़ती रही .... जल्द ही वे दोनो घर पहुच गये और अपनी बिगड़ी हालत में सुधार करने के पश्चात हॉल में आ गये.

निक्की घर पर मौजूद थी और उसने बताया ...... कम्मो - निकुंज - रघु आधे घंटे से घर आने वाले हैं .... बोलते वक़्त उसका चेहरा भी खुशनुमा हो गया था या शायद यह अपने भाई / प्रेमी से पुनः मिलन की अग्रिम मुस्कान थी.
 

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उनके इंतज़ार की घड़ियाँ जल्द ही समाप्त हो गयी और सफ़ारी का हॉर्न सुनाई देते ही तीनो बाप बेटी हॉल से निकल कर बाहर आ गये.

वाकाई एक पल में वहाँ सब कुछ बदल गया .... रघु को देखते ही दीप - निक्की - निम्मी तीनो की आँखें बहने लगी, अपने पिता की मदद से निकुंज ने अपने भाई को हॉल तक पहुचाया और उसे सोफे पर बिठा कर सफ़ारी से लगेज निकालने बाहर चला गया.

निक्की भी फॉरन बाहर आ गयी और अपनी मोम का हॅंड बाग उठाते हुए उसने निकुंज के चेहरे को देखा .... दोनो ही इस वक़्त घोर दुविधा में थे, किस तरह अपने बहते आँसू को संभाले.

" भाई !!! " ....... निक्की ज़्यादा देर तक खुद को नही रोक पाई और निकुंज की छाती से चिपक कर रोने लगी ...... " आपको बहुत मिस किया मैने " ....... वह सिसकती हुई निकुंज की मजबूत बाहों में दम तोड़ने लगी.

" निक्की सम्हाल अपने आप को " ...... निकुंज की नज़र हॉल की खुली खिड़की पर गयी और वह फॉरन निक्की को अपने काँपते बदन से दूर करने लगा .... कम्मो यह नज़ारा बड़े गौर से देख रही थी और निकुंज उसकी आँखों से ज़्यादा देर तक अपनी नज़रें नही मिला सका .... उसने उस वक़्त अपनी मा की आँखों में एक अजीब सी तड़प / नाराज़गी देखी और जिसे देखने के बाद वह सकते में आ गया.

" निक्की अब तो मैं आ गया हूँ .. चल अंदर चलें " ....... उसने पुरज़ोर ताक़त लगा कर अपनी बहेन का जिस्म खुद से दूर किया .... अचानक से उसके इस रवैये ने निक्की के टूटे दिल पर मानो नुकीला खंजर घोंप दिया और वह हथ्प्रत निकुंज को हॉल के अंदर जाते हुए देखने लगी .... उसका सारा उत्साह जैसे पल भर में चकना - चूर हो कर रह गया था, आँखों से बहते अश्रु उसने अपने दुपट्टे से पोन्छे और फिर लड़खड़ाते कदमो से हॉल में आ कर खड़ी हो गयी.

रघु को किस कमरे में शिफ्ट करवाया जाय इस बात पर बहुत देर तक चर्चा होती रही .... आख़िर में फ़ैसला हुआ वह अपने माता - पिता के कमरे में रहेगा, ख़ास कम्मो ने ज़ोर देकर यह बात कही .... वासना एक तरफ और प्यार एक तरफ और उसके इस फ़ैसले ने घर के बाकी सदस्यों को काफ़ी राहत पहुचाई क्यों कि अब लगभग सभी के दिल में चोर बस गया था.

रात का खाना होने के पश्चात सभी अपने कमरो में तशरीफ़ ले जाने लगे .... दीप और निकुंज ने एक सिंगल बेड रघु के लिए सेट कर लिया जो अब जुड़ कर ट्रिपल बेड में कॉनवर्ट हो गया.

रात भी अपने शबाब पर पहुच गयी परंतु पूरा परिवार सिर्फ़ करवटें बदलने में लगा रहा.
 

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पापी परिवार--47

दीप और कम्मो आजू - बाजू लेटे हुए हैं और रघु कम्मो की साइड सो रहा है.

कम्मो सफ़र की थकान से चूर लेट'ते ही सो चुकी है परंतु दीप की नींद तो आज रात भी गायब है.

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रात के 1 बजे दीप का मोबाइल बजने लगा, नंबर देखा तो किसी पार्टी वाले का था.

" हां बस 20 मिनिट में पहुच रहा हूँ " ....... इतना कह कर उसने कॉल कट किया और तेज़ी से नाइट ड्रेस चेंज करते हुए कमरे से बाहर निकल गया.

( कॉल गॉडबोले का था जिन्होने दीप की इवेंट कंपनी को अपने ऑफीस की एक एक्सप्लोसिव मीट हॅंडल करने का ऑफर दिया था .... गॉडबोले बिज़्नेस टाइकून हैं और विदेशो में भी इनके काफ़ी काम - काज सुचारू रूप से चलते रहते हैं .... अभी उन्होने दीप को एरपोर्ट बुलाया है ताकि जापान जाने से पहले उसे पार्टी की तैयारियों के बारे में बता सकें.)

दीप के रूम से बाहर जाते ही कम्मो की नींद खुल गयी .... जल्दबाज़ी में दीप ने काफ़ी खतर - पतर की थी और जाते - जाते रूम की ट्यूब लाइट भी खुली छोड़ गया था.

नींद खुलने के बाद कम्मो ने टाइम देखा और बेड से नीचे उतर कर बॉटल से पानी पीने लगी .... घर लौटने के बाद भी वो अपने कपड़े चेंज नही कर पाई थी और जैसे ही उसने बॉटल का ढक्कन लगाया उसकी नज़र बेड सोते अपने बड़े बेटे रघु पर टिक गयी.

" यह क्या किया इसने ? " ...... कम्मो वापस बेड पर चढ़ती हुई उसके करीब आ गयी ...... " इसने तो पाजामे में पेशाब कर दी " ...... पुणे हॉस्पिटल से निकलते वक़्त रघु ने वहीं का स्काइ ब्लू कुर्ता - पाजामा पहेन रखा था, जिसे चेंज करने पर घर के किसी मेंबर का ध्यान नही जा पाया था.

" पाजामे के साथ बेड भी गीला हो गया है, अब क्या करूँ ? " ....... कम्मो असमंजस की स्थिति में फस गयी ....... " लेकिन बदलना तो पड़ेगा " ....... वह कुछ देर तक सोचती रही और फिर बेड से नीचे उतर कर कमरे से बाहर जाने को कदम आगे बढ़ाने लगी.

" नही !!! थक गया होगा बेचारा और फिर कब तक उसकी मदद लेती रहूंगी " ...... उसने सोचा था निकुंज को बुला कर रघु का पाजामा बदलवा देगी और गद्दा भी चेंज हो जाएगा परंतु जल्द ही उसने अपना विचार त्याग दिया और कमरे का गेट लॉक कर वापस रघु के पास पहुच गयी.

इसके बाद उसने कुर्ता पकड़ कर रघु के पेट पर पलट दिया .... घने बालो की एक व्रहद लकीर उसकी चौड़ी छाती से नीचे आ कर उसके पाजामे के अंदर जाती हुई दिखाई पड़ी, कम्मो के दिल की धड़कने स्वतः ही बढ़ने लगी और उसका हलक सूखने लगा.

" हे भगवान !!! तूने सारे करम मेरे ही पल्ले क्यों लिख दिए हैं ? " ....... यह कहते हुए उसका खुद का चेहरा शर्मसार हो गया .... भले ही वह रघु की मा थी परंतु इस वक़्त वा जो करने जा रही थी, इसमें अच्छे - अछो का सैयम डोल जाता .... जवान बेटे का निच्छला धड़ नंगा करना और वह भी ऐसे समय में जब कम्मो अपने दूसरे बेटे की तरफ बुरी तरह से आकर्षित थी .... उसने जाना सोचने मात्र से ही उसकी योनि में स्पंदन होने लगा है, उत्तेजना की एक बड़ी लहर ने उसे घेरना शुरू कर दिया था.

काफ़ी देर तक वह अपने पापी दिमाग़ को फटकार लगाती रही परंतु जब - जब वह पाजामे के नाडे की तरफ देखती .... उसके अंदर की मा फॉरन एक कामुक स्त्री का रूप लेने लगती और उसकी आँखों के ठीक सामने उसे एक विशाल काल्पनिक लिंग दिखाई पड़ने लगता.

वह अपने होंठ चबाने लगी, उसके हाथो में कंपन आना शुरू हो गया .... वह अपने दिल को समझाने में लगी थी और तभी उसके हाथो ने उसके पापी दिमाग़ का साथ देते हुए बेटे के पाजामे का नाडा खोल दिया.

" ह्म्‍म्म !!! " ...... वह मदहोशी की खुमारी में ज़ोर - ज़ोर से साँसे लेने लगी .... उसके मूँह में अत्यधिक लार उत्पन्न होने लगी थी, वह चाहती थी इसी वक़्त अपने बेटे की पहुच से दूर भाग जाए लेकिन उसका पापी दिमाग़ बार - बार कह रहा था ....... " रुक मत !!! पाजामे के अंदर तेरी मनपसंद वस्तु छुपि है "

कम्मो से सबर नही हुआ और वा मचल उठी .... एक हाथ से अपनी बाईं चूची मसलती हुई वा अपने होंठो पर गीली जिहवा घुमाने लगी .... जल्द ही उसकी धधकति प्यासी योनि ने उसे अपनी जायज़ माँग बता दी और इसके बाद वा सारा मातरप्रेम भूलकर बेटे के पाजामे को उतार फेकने पर मजबूर हो गयी.

इसे कम्मो की दयनीय उत्तेजक अवस्था का प्रमाण कह सकते हैं .... जो उसने पाजामे को साइड से नीचे ना खीचते हुए, सीधा सामने से उतारना शुरू कर दिया .... वह लिंग लोभ में पूरी तरह से पागल हो चुकी थी और जल्द से जल्द उसे देखना चाहती थी .... एक बहुगामी रंडी की भाँति उसने यह अंतर तक नही कर पाया था कि सामने लेटा वह जवान युवक निकुंज नही लाचार रघु है.

जल्द ही वह पापिन अपने निकृष्ट मक़सद में कामयाब हो गयी और रघु की घनी काली झांतो के बीच उसका मुरझाया लिंग देख कर तेज़ी से आँहे भरने लगी.

लिंग की अनुमानित लंबाई और मोटाई देख वह हैरान तो हुई परंतु साथ ही एक कुटिल वैश्या की तरह मुस्कुराने भी लगी .... ज़ाहिर था उसके बड़े बेटे का लिंग उसके पति व छोटे बेटे निकुंज से भी कहीं ज़्यादा विकराल था.

" इससे बड़ा तो किसी का नही हो सकता " ...... अपना ही बेशर्म संवाद सुनते हुए उसे बड़ा मज़ा आया और इसके बाद उसने अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए बेटे के स्थूल लिंग को अपनी मुट्ठी में जाकड़ लिया .... अल्प में ही वह सिरहन से भरने लगी और कौतूहलवश लिंग की खाल को नीचे खीचते हुए उसने .... छोटे सेब समान गुलाबी सुपाड़ा खाल से बाहर निकाल दिया.

पेशाब से तर - बतर काली झांतो का घनत्व कम्मो को अपनी तरफ आकर्षित किए जा रहा था और उनमें से उठती मादक मर्दाना गंध उसके नाथुए फुलाने लगी थी ..... वह जितनी गहराई तक उस अधभूत सुगंध को अपने अंदर समा सकती थी, समाने लगी.

" जाने इनमें कब वीर्य भरेगा ? " ...... लिंग से हाथ हटा कर उसने रघु के दोनो अंडकोषों को थाम लिया और उनकी मृत खाल पर अपनी उंगलियों की गरम सहलाहट देने लगी .... उसके चेहरे के भाव सॉफ बयान कर रहे थे कि वह अत्यंत लालायित है अपने बेटे के गाढ़े वीर्य से अपना सूखा गाला तर करने को.

इसके बाद तो जैसे कम्मो पागलो की तरह हरक़तें करने लगी .... कभी वह उसके सुपाडे को अपने पंजो पर रगड़ने लगती तो कभी कलाईयों के ज़ोर से संपूर्ण लिंग हिलाने लगती .... इस वक़्त यदि कोई वयस्क व समझदार जन्तु उसके क्रिया - कलापो को देख रहा होता, अवश्य ही उसे मनोरॉगी साबित कर देता .... जिस तेज़ी से वह अपने बेटे के निष्प्राण लिंग में जान फूकने का व्यर्थ प्रयत्न कर रही थी वह देखने लायक द्रश्य बन गया था.
 

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काफ़ी देर तक लिंग से अठखेलियाँ करने के पश्चात, प्रबल कामुकता से अभिभूत कम्मो ने यह निश्चय कर लिया कि अब वह उस विकराल वास्तु को चूसे बगैर नही रह सकती और अपने पापी मन की इक्षपूर्ति के लिए वह वाकाई रघु के पेट पर अपना सर रख कर लेट गयी.

अब उस काम - लूलोप मा को रोक पाना किसी के बस में नही रहा और वह अपनी लंबी जिहवा से बेटे की गहरी नाभि का रस पान करने लगी .... सैकड़ो बार उसने अपना थूक उसकी नाभि में ऊडेला और फिर होंठो द्वारा सुड़कते हुए पुनः उसे अपने मूँह में खीचती रही .... जाने वह स्वाद के किस बदलाव में खो सी गयी थी .... उन्माद का नशीला ज्वर उस पर इस कदर हावी हो चुका था, जिसके चलते उसके संवेदनशील गुदा - द्वार में हज़ारो चींतियों के ज़हरीले डॅंक उसे बेहद कष्टकारी महसूस होने लगे थे और स्वतः ही वह अपने गुदाज़ चूतड़ आपस में रगड़ने लगी.

इसके बाद उसकी निकृष्ट हरक़तो की बढ़ती गति ने रघु के सुषुप्त लिंग को अपनी उंगलियों से थामा और उसका गुलाबी मोटा सुपाड़ा अपने रसीले होंठो के बिल्कुल नज़दीक कर लिया .... एक सुगंधित झोंके ने उसकी आँखों को और भी ज़्यादा कामांध बना दिया और वह सुपाडे के अति नाज़ुक छिद्द्रो पर अपनी जिह्वा की नोक से छेड़ - खानी करने को मचलि ही थी .... तभी उसके कमरे के दरवाज़े पर ज़ोरदार दस्तक हुई और वह क्षणमात्र में अंतरिक्ष की अधभूत सैर से सीधी धरालत पर आ गिरी.

" कम्मो !!! " ...... यह उसके पति की आवाज़ थी जो वापस घर लौट आया था ... फॉरन कम्मो ने दरवाज़े की ओर देखा, उसके चेहरे की सारी कामुकता क्षणमात्र में ही किसी गहन उदासी में विलीन होकर रह गयी .... वह अपनी किन्क्तर्तव्यविमूध अवस्था झेलने में पूर्णरूप से नाकाम थी और लाख प्रयत्न के बावजूद उसकी पापी आँखों ने अपने पुत्र के अकल्पनीय लिंग को घूर्ना नही छोड़ा.

" कम्मो गेट खोल " ....... दीप ने पुनः दरवाज़े पर दस्तक दी जिसे सुनकर कम्मो का मष्टिसक ज़ोरों से बवाल मचाने लगा और उस दुखिया मा ने ना चाहते हुए भी अपना सर बेटे के पेट से ऊपर उठा लिया .... वह सरक कर बेड से नीचे उतरी और अपनी बद - किस्मती को कोसते हुए उसने .... गीले पाजामे से अपनी पसंदीदा वास्तु ढक कर, अपनी नम्म आँखों से उसे ओझल कर दिया.

" इतनी रात को आप कहाँ चले गये थे ? " ....... दरवाज़ा खोलने के उपरांत उसने दीप से पूछा.

" ज़रूरी काम से गया था .... तुमने ड्रेस चेंज नही की, ज़्यादा थकान हो गयी क्या ? " ...... दीप ने कम्मो की लाल रक्त -रंजित आँखों में झाँकते हुए कहा .... जो उसके अनुमान से कहीं ज़्यादा सुर्ख और सूजी हुई थी और अपने पति की अजीब सी हैरानी से घबरा कर कम्मो बाथ - रूम की तरफ जाने लगी.

" रूको मैं भी आ रहा हूँ " ...... जाने दीप को क्या सूझा और वह भी कामो के पिछे बाथ - रूम में एंटर हो गया ...... " लाओ मैं मदद कर देता हूँ " ..... यह कहते हुए उसने उसकी साड़ी का पल्लू थाम लिया.

सब कुछ इतनी जल्दी हुआ कि कम्मो सम्हल नही पाई और जब तक उसे होश आ पाता दीप ने साड़ी उसके बदन से अलग कर दी और इसके बाद वह तेज़ी से ब्लाउस के हुक खोलने लगा.

" ये !!! ये क्या कर रहे हैं ... छोड़िए ना " ...... सकपका कर कम्मो ने मजबूती से दीप की दोनो कलाइयाँ पकड़ ली ..... " क्या हुआ .. आज मैं अपनी जान के साथ नहाना चाहता हूँ " ...... एक फरमान सुनाते हुए दीप ने ज़बरदस्ती उसके ब्लाउस के सारे हुक खोल दिए और इसके बाद अपने कपड़े उतारने लगा.

" जल्दी कर कम्मो .. मैं दो - तीन दिन बहुत तड़पा हूँ, आज जी भर के तुझे चोदना चाहता हूँ " ...... यह थी दीप की अधीरता जो वह कम्मो के साथ सहवास कर .... बीते 2 दिनो की आग ठंडी करना चाहता था, ना तो वा इन दो दीनो में एक बार भी झाड़ा था और - तो - और निम्मी की हरक़तों ने उसके लंड में अत्यंत दर्द पैदा कर दिया था.

वहीं कम्मो को भी इस वक़्त एक ज़ोरदार चुदाई की आवश्यकता थी .... उसकी योनि त्राहि - त्राहि मचा रही थी, ज्यों ही दीप ने उसे अपनी मंशा बताई, कम्मो के जिस्म में प्रचंडता के साथ सिरहन पैदा होने लगी .... उसने बिना कुछ सोचे तीव्र गति से नग्न होना शुरू कर दिया और जब तक वह अपने ऊपरी धड़ से नंगी हो पाती .... दीप के शरीर से सारे कपड़े उतर चुके थे.

" कम्मो देख मेरा क्या हाल है " ...... दीप ने अपने पूर्ण विकसित लिंग को हाथ में पकड़ा ही था कि कम्मो ने अपनी ब्रा का हुक वापस लगा कर उसे चौंका दिया ..... " अभी नही रघु कमरे में है " ....... यह कहते हुए वह अपना ब्लाउस पहनने लगी .... दीप फटी आँखों से उसके चेहरे को देखने लगा और स्वतः ही उसके लिंग का सारा तनाव भी जाता रहा.

कम्मो साड़ी पहन कर कमरे में चली गयी .... उसके बाथ - रूम से बाहर जाते ही दीप की आँखों से आग बरसने लगी और वह शवर के नीचे खड़ा हो कर अपने तंन - बदन की ज्वाला को शांत करने लगा .... साथ ही मजबूरी में उसने अपने जीवन का पहला हस्त - मैथुन किया.

इसके बाद टवल लपेट कर वह भी कमरे में लौट आया .... कम्मो बेड पर आँख बंद किए लेटी थी, दीप ने अपने गीले बदन पर रात्रि के वस्त्र धारण किए और उसके बगल में लेट गया .... इस वक़्त उसे अपनी पत्नी पर बेहद क्रोध आ रहा था और इसके चलते उसके मष्टिशक ने जल्द ही उसे अतीत की यादों में पहुचा दिया.

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26 साल पहले .... जिस वक़्त उसके ऊपर चौबीसों घंटे सिर्फ़ और सिर्फ़ लड़कियों का नशा छाया रहता था .... अपनी कद - काठी से तो वह बचपन से ही काफ़ी मजबूत था और जल्द ही उसने स्त्री जात की सबसे बड़ी कमज़ोरी भी प्राप्त कर ली.

जब उसे प्रथम चुदाई का अवसर मिला उसने 40 साल की रंडी को रुला कर रख दिया और इसके आशीर्वादसवरूप उस छिनाल ने दीप का भावी जीवन हमेशा रंगीन रहने की अचूक भविष्यवाणी की थी.

इसके बाद तो जैसे वह किसी भयानक दानव में तब्दील होता गया .... बिस्तर पर लड़कियों की मिन्नतें, उनकी असहाय चीखें उसके अट्टहास का मुख्य विषय बन'ने लगी .... उसके हैवानी मश्तिश्क में कोई भी लड़की घर नही कर पाई सिवाए कम्मो के.

शुरूवाती दौर में उसने कम्मो को भी चोदने मात्र का साधन समझा था परंतु जैसे - जैसे उनकी दोस्ती गहरी होती गयी .... उसके लिए दीप के मन से बुरे ख़यालात भी मिट'ते गये.

लेकिन कम्मो का प्यार पाने के बाद उसे पता चला कि उसकी प्रेयसी सेक्स में कोई ख़ास दिलचस्पी नही रखती .... लाख कोशिशो के बाद भी वह उसके बदन की ज़ालिम आग के आगे फॉरन दम तोड़ देती लेकिन प्रेमवश वह कम्मो को ज़्यादा विवश नही कर पाता .... बस अंदर ही अंदर जलने लगा था और यही मुख्य कारण भी बना उसके परगामी होने का.
 

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कुछ दिनो बाद उनका प्रेम घरवालो पर ज़ाहिर हुआ और काफ़ी समझहिशो के बाद भी दोनो प्रेमी अलग ना हुए .... दीप कम्मो को घर से भगा कर मुंबई ले आया और अपने अभिन्न मित्र जीत की मदद से सामान्य रोज़गार भी प्राप्त कर लिया परंतु जल्द ही भीषण ग़रीबी उन पर पुनः हावी होने लगी और इस बार दीप की डूबती नैया पार हुई .... एक मश - हूर नगर - सेठ की जवान विधवा बहू का साथ पाकर.

भरी जवानी में बेचारी दुखिया हो गयी थी .... फॅक्टरी के बाद पार्ट टाइम की कमाई में दीप उसके ससुर की कार ड्राइव करता था .... कुछ दिनो बाद ससुर साहेब भी हवा हो गये और अब उनकी जवान बहू ने सारा राज - पाट सम्हाल लिया.

कुछ कुद्रती हादसे और कुछ दीप की मर्दानगी .... मालकिन और नौकर का मिलन ऐसा हुआ जिसने मुंबई जैसे बड़े शहेर में दीप को हर तरह से स्थापित कर दिया.

मालकिन आज विदेशी कारोबार समहाल्ती हैं .... वे अपने साथ दीप को भी ले जाना चाहती थी परंतु वह अपनी पत्नी व नन्हे बच्चो से विमुख ना हो सका और अपने परिवार की खातिर उसने मालकिन की गान्ड पर भी लात मार दी.

वर्तमान में वह बहुत पैसे वाला है, उसकी काफ़ी जान पहचान है लेकिन उसके जीवन में प्रेम नही .... आज तक सिर्फ़ वासना उसके गले से लिपटी रही, कभी उसने भी अपनी अर्धांगनी कम्मो के साथ ऐसे हज़ार मन - भावन सपने देखे थे .... अपनी जवानी में वह ग़रीबी के चलते मजबूर था और आज जब उसके पास अथाह पैसा है तब अपनी पत्नी का साथ नही .... बाहरी जिस्म तो केवल उत्तेजित तंन की तपन मिटा सकते हैं परंतु आंतरिक प्रसन्नता का अनुभव एक बीवी या पेमिका ही प्रदान करवा सकती है.

यह पहली मर्तबा हुआ जब किसी स्त्री ने दीप की अवहेलना की, उसका तिरस्कार किया था और वह स्त्री कोई बाज़ारू नही उसकी अपनी कम्मो है .... यक़ीनन दीप उसके साथ ज़बरदस्ती कर सकता था, एक हक़ से लेकिन जो कार्य वह बीती अपनी पूरी जवानी में नही कर पाया .... तो अब कैसे मुमकिन होता.

आज से पहले जब भी उसने कम्मो के साथ सहवास की इक्षा जताई, उसकी पत्नी ने उसे कभी मना नही किया था .... भले ही वह बिस्तर पर निष्प्राण पड़ी रहती लेकिन अपने पति की आग्या का पालन करती आई थी .... स्वतः ही दीप का ध्यान कम्मो से हट कर अपनी छोटी बेटी निम्मी पर पहुच गया, जिसने अल्प समय में ही अपने पिता पर अपना सर्वस्व न्योछावर करना स्वीकार किया और भविश्य में भी करती रहेगी .... बिना किसी हिचकिचाहट व शंका के दीप का दिल इस बात की गवाही देने लगा और उसके होंठो पर मुस्कान फैलती चली गयी.

इन 2 - 3 दिनो में बाप - बेटी के दरमियाँ जो कुछ पाप घटित हुआ .... अब दीप ने उसमें अपना स्वार्थ क़ुबूल कर लिया और वह तंन के साथ मन से भी अपनी सग़ी बेटी का भोग लगाने को लालायित हो चला .... शायद यही वह चोट थी या इंतज़ार जिसमें उसे कम्मो की भी मज़ूरी मिल गयी थी.

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वहीं कम्मो मरणासन्न बिस्तर पर लेटी अपने आँसू बहा रही थी .... वह जानती थी आज उसने अपने पति का घोर अपमान किया है परंतु ऐसा करने को वह विवश थी .... अपने तंन से भी और मन से भी.

जिस वक़्त दीप ने उससे सहवास का आग्रह किया, वह प्रसन्नता से भर उठी थी .... उसने पल में निश्चय कर लिया था कि आज वह अपने पति को काम - क्रीड़ा का ऐसा जोहर दिखाएगी .... जिसकी दीप ने हमेशा से कल्पना की थी.

वह खुद भी अपनी उत्तेजना का हरसंभव मर्दन चाहती थी, उसे ललक थी एक घनघोर चुदाई की .... आज वह मर्ज़ी से अपने पति का विशाल लिंग भी चूस्ति और उसे अपनी स्पंदानशील योनि का रस्पान भी करवाती, उसके जिस्म में इतना ज्वर समा चुका था कि वह उसकी आग में अपने पति को स्वाहा कर देना चाहती थी परंतु ज्यों ही उसका ऊपरी धड़ नंगा हुआ वह बुरी तरह से काँप उठी .... कारण, उसके निच्छले धड़ का उसके अनुमान से कहीं ज़्यादा पतित हो जाना था.

उस वक़्त कम्मो की धधकति योनि से गाढ़े रस की धारा - प्रवाह नदी बह रही थी जबकि दीप ने उसे हर संसर्ग पर बेहद ठंडा पाया था .... यक़ीनन वह इस अप्रत्याशित बदलाव को झेल नही पाता और कम्मो का संपूर्ण भविष्य बेवजह ख़तरे में पड़ जाता .... कहीं दीप उसके चरित्र पर उंगली ना उठा दे, सोचने मात्र से उसके मश्तिश्क में अंजाने भय की स्थापना हो गयी और खुद - ब - खुद उसकी कामग्नी,
 

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वह बेड पर लेटी खुद को कोस रही थी .... उसके दैनिक जीवन में जिस तेज़ी से उथल - पुथल मची, उससे उसका निरंतर पतन ही होता जा रहा था .... कल तक वह अपने पति की पवित्रा थी और आज पूर्णरूप से एक कुलटा नारी में बदल चुकी थी .... कल तक जिस शारीरिक ज़रूरत का उसे भान भी नही था आज वह अपने ही पुत्रो के साथ अपना मूँह काला करने को लालायित थी.

शर्मसार होने के बावजूद कम्मो का पापी मन उसे प्रायश्चित करने का कोई मौका नही दे रहा था .... उसने जाना अब भी वह निकुंज को तीव्रता से पाना चाहती है, अपने विचलित मन को समझाना उसके वश से से कहीं ज़्यादा बाहर हो चला था.

ज्यों ही उस पापिन के मश्तिश्क में पुत्र लोभ पैदा हुआ स्वतः ही उसका हाथ अंधेरे का फ़ायदा उठा कर रघु के निष्प्राण शरीर पर रैंगने लगा .... अपने पति की उपस्थिति में वह इस कार्य को करने से अत्यधिक रोमांच महसूस करने लगी और कुछ देर के अथक प्रयासो के उपरांत मनवांच्छित सफलता मिलने पर उसके बंदन में सिरहन का पुनः संचार होने लगा.

वह अपने बेटे के सुस्त लिंग से खेलने लगी और अगली खुशनुमा सुबह के इंतज़ार में उसकी योनि भरकस लावा उदेलने लगी.

उस रात घर के अन्य सदस्य :-

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डिन्नर करने के फॉरन बाद निक्की अपने कमरे में दाखिल हो गयी थी, उसने ना तो ठीक से खाना खाया और ना ही परिवार के किसी मेंबर से कोई बात - चीत की .... डाइनिंग - टेबल पर बार - बार उसकी नम्म आँखें निकुंज का चेहरा देखने लगती लेकिन उसके भाई ने इक - पल को भी उसे कोई तवज्जो नही दी.

बेहद दुखी मन से वह अपने कमरे में लौटी और फूट - फूट कर रोने लगी .... निकुंज का उसे यूँ इग्नोर करना खाए जा रहा था, काई बार उसने अपने आँसुओं को रोकने की नाकाम कोशिश की परंतु वे 1000 प्रयत्नो के बाद भी नही रुके और थक - हार कर वह बिस्तर पर ढेर हो गयी.

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निकुंज अपने बड़े भाई का बेड रेडी करने के बाद अपने कमरे में वापस लौट आया था .... इस वक़्त उसके चेहरे पर बेहद गंभीरता छायि हुई थी, वह निक्की से कहीं ज़्यादा दुखी अपनी मा से था.

जब कभी वह खाने की टेबल पर अपनी बहेन की तरफ देखता स्वतः ही उसकी आँखें कम्मो की आँखों से टकरा जाती और भयवश वह दोबारा ऐसा प्रयत्न नही कर पाता .... वह जानता था निक्की की उदासी की असल वजह क्या है लेकिन वह खुद को बेहद लाचार महसूस कर रहा था .... बेड पर लेटे हुए उसे 2 घंटे ज़्यादा बीत चुके थे परंतु अत्यंत थकान होने के बावजूब उसे ज़रा भी नींद नही आ रही थी, उसकी तड़प बढ़ने लगी और वह बिस्तर से उतर कर बाहर हॉल में जाने लगा.

कमरे के गेट पर पहुचते ही उसकी नज़र हॅंगर पर टाँगे अपने गंदे कपड़ो पर गयी .... ज्यों ही उसने अपना शॉर्ट्स देखा, बीते कुछ दिनो पहले की याद उसके जहेन में ताज़ा हो गयी .... यह वही शॉर्ट्स था, जिस पर उसकी बहेन का ब्लड लगा हुआ था और जो अब उस पर पूरी तरह से अपना दाग छोड़ चुका था .... निकुंज ने वह शॉर्ट्स हॅंगर से उतार लिया ...... " मैने तो बेचारी से उसकी चोट तक के बारे में नही पूछा " ....... यह कहते वक़्त उसके चेहरे पर छायि उदासी और ज़्यादा बढ़ गयी थी.

वह सोच में डूबा था और तभी उसे कुछ ऐसा यादा आया जिसके फॉरन बाद उसके पूरे जिस्म में कप - कपि दौड़ गयी ....... " अब तक रखी है " ....... शॉर्ट्स की जेब में हाथ डाल कर उसने उसमें रखी अपनी बहेन निक्की की रेड पैंटी बाहर निकाल ली और स्वतः ही उसके ढीले लंड में हलचल होने लगी, वह एक - टक कभी उस पैंटी को देखता तो कभी उस द्रश्य को याद करता .... जब उसकी सग़ी बहेन अपने भाई की आँखों में झाँकति हुई हस्त - मैथुन कर रही थी.

" नही ये सरासर ग़लत है " ...... उसके इस कथन को झूठा साबित करते हुए उसके लंड ने विकराल रूप धारण कर लिया था ....... " मुझे अभी इसे निक्की के बाथ - रूम में रख आना चाहिए " ....... यह सोच कर उसने अपने खड़े लंड को पॅंट में अड्जस्ट किया और अपने कमरे से बाहर निकल आया.

इस वक़्त पूरे घर में सन्नाटा खिचा हुआ था और जल्द ही उसके कदम निक्की के कमरे की खुली चौखट पार कर गये .... अंदर ट्यूब - लाइट जल रही थी और किसी शातिर चोर की भाँति निकुंज ने कमरे को बोल्ट कर लिया और धीरे - धीरे चलता हुआ वह अपनी बहें के बिस्तर के ठीक सामने पहुच गया.

नींद में निक्की का चेहरा बेहद मासूम दिखाई दे रहा था और अब निकुंज खुद को रोक पाने में बिल्कुल असमर्थ महसूस करने लगा .... वह बिस्तर पर उसके नज़दीक बैठ गया और ज्यों ही उसने निक्की के बालो पर प्यार से अपना हाथ फेरा, सीढ़ियों पर से किसी के उतरने की तेज़ आवाज़ उसके कानो में सुनाई पड़ी और घबराहट में निकुंज बेड से उठ खड़ा हुआ.

" भाई !!! उउउम्म्म्मम " ....... हलचल महसूस कर निक्की की भी आँखें खुल गयी और जैसे ही उसने अपने भाई को अपने कमरे में पाया .... वह खुशी लगभग चिल्लाने को हुई और तभी निकुंज ने फुर्ती से अपना हाथ उसके खुले मूँह पर रखते हुए उसे चुप करवा दिया.

" श्ह्ह्ह्ह्ह !!! " ........ हड़बड़ाहट की इस जद्दो - जहद में निकुंज को भान तक नही रहा था कि जिस हाथ से उसने निक्की का मूँह बंद किया है .... उसी हाथ में उसने उसकी रेड पैंटी पकड़ रखी थी और जब तक वह सम्हल पाता .... निक्की ने उसके हाथ से वह पैंटी अपने हाथ में ले ली.

" अन्बिलीवबल भाई !!! यह अब तक आप के पास थी " ....... शाम के घटना - क्रम से दुखी होने के बाद निक्की यह तय कर के बैठी थी कि अब से वह निकुंज से खुल कर बात करेगी .... शायद उसकी चुप्पी ही उसकी सबसे बड़ी दुश्मन है और इसी को ध्यान में रखते हुए उसने निकुंज से यह लफ्ज़ कहे.

" न .. न नही निक्की !!! वो मैं पूना चला गया था तो कमरे में रखी रह गयी थी " ....... निकुंज का चेहरा उतर गया, बात सच थी ... वह पैंटी और शॉर्ट्स वाली बात पूरी तरह से भूल चुका था और तभी वह उसे लौटाने अपनी बहेन के कमरे में आया था लेकिन किस्मत ने उल्टा उसे फसा दिया.

" बड़े नॉटी हो .. जैसे मैं कुछ समझती ही नही हूँ " ....... निक्की ने उसके सामने अपनी पैंटी को अपने बूब्स पर फैला कर रख लिया .... वह इस वक़्त बेड पर लेटी हुई थी और निकुंज बैठ हुआ था ..... " वैसे तब से ही मेरे पास पॅंटीस की शॉर्टेज हो गयी थी लेकिन आप को चाहिए हो तो रख लो " ....... यह कहते हुए उसने अपने भाई का हाथ अपने बूब्स पर रख दिया जैसे उसके हाथ में पैंटी वापस पकड़वाना चाहती हो.

एका - एक से निक्की का यह हमला निकुंज सह नही पाया और उसकी बहेन ने उसके हाथ को अपने राइट बूब पर ताक़त से दबा दिया ...... " इष्ह !!! " ....... दोनो के जिस्म एक साथ सुलग उठे और जिसमें निकुंज काफ़ी हद्द तक पिघल गया.

" निक्की यह सही नही है .. बेटा हम कल सुबह बात करेंगे " ....... उत्तेजित होने के बावजूद निकुंज ने फॉरन अपना हाथ उसके बूब से हटाना चाहा लेकिन मस्ती से सराबोर निक्की उसके हाथ से अपनी दाई चूची पंप करने लगी ...... " आअहह !!! भाई आप को बहुत मिस किया मैने " ...... उसकी बढ़ती आहों ने निकुंज के लंड में बेहद तनाव ला दिया और कुछ देर बाद उसके हाथो ने स्वतः ही अपनी बहेन की मांसल चूची को दबोचना शुरू कर दिया.

" उफफफफफ्फ़ भाई ज़ोर से !!! यहीं मेरा दिल है .. जिसे आप ने तोड़ दिया " ...... निक्की फुसफुसाई .... वह अपना हाथ बूब से हटा चुकी थी, जिसे अब निकुंज अपनी मर्ज़ी से दबाए जा रहा था ....... " ह्म्‍म्म्मम !!! लव मी भाई " ....... निक्की का फ्री हाथ तेज़ी से उसकी सलवार के अंदर पहुच गया और वह अपनी कुँवारी चूत से छेड़ - खानी करने लगी.

काफ़ी देर से निकुंज अपनी बहेन के वश में था .... वह बिना कुछ बोले उसके इशारे पर नाच रहा था, वहीं निक्की की चूत में अत्यधिक स्पंदन होने से रति - रस का रिसाव होने लगा और इसके साथ ही उसकी मानसिक स्थिति पूर्ण रूप से डाँवाडोल हो गयी.

" उंघह भाई !!! मेरी पुसी को प्यार करो ना .. जैसा आप ने उस दिन पार्क में किया था " ...... निक्की तड़प कर बड़बड़ाई, वह कयि दिनो से भरी बैठी थी और ऊपर से अपने भाई का तिरस्कार .... अब तो वह अपनी सारी इक्षाओ को आज रात ही पूरा करने को मचल उठी थी.
 

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निकुंज अपनी बहेन के मूँह से निकले शब्द सुन कर स्तब्ध रह गया .... पुसी वर्ड का इतना सॉफ उच्चारण वह भी निक्की जैसी भोली, मासूम व संस्कारी लड़की के मूँह से .... सोचते ही निकुंज के होश उड़ गये और जब उसने जाना उसकी बहेन की चूची वह अपनी मर्ज़ी से मसले जा रहा है .... उसकी हैरानी का पार नही रहा ...... " नही निक्की !!! " ..... यह कहते हुए उसने अपना हाथ बहेन के बूब से हटा लिया और बेड से नीचे उतर कर खड़ा हो गया .... हलाकी अब भी उसका वह हाथ अपने आप पंप हुए जा रहा था, लेकिन इस बात से उसे कोई मतलब नही रहा.

निकुंज की इस हरक़त ने निक्की का जिस्म अधर में लटका दिया .... वह आनंद के जिस अकल्पनीय सागर में ढेरो गोते लगा रही थी .... फॉरन बह कर किनारे आ लगी और अपनी चूत पर उसके हाथ की सहलाहट का भी उसी क्षण अति - निर्दयी अंत हो गया.

" भाई ये कैसा मज़ाक है .. पहले मेरे दिल से खेलते हो और जब मैं खुद पर काबू नही रख पाती .. दिल तोड़ देते हो " ...... तैश में आ कर निक्की के मूँह से यह कथन निकल गया और जिसे सुनने के पश्चात निकुंज उसके कमरे के दरवाजे की तरफ अपने बेजान कदम बढ़ाने लगा.

" सच कहा तूने निक्की .. मैं तेरा दिल तोड़ रहा हूँ पर जो दिल से खेलने वाली बात तूने कही .. यह सरासर झूठा इल्ज़ाम है मुझ पर, क्या मैं उत्तेजित नही होता लेकिन मैं इस पाप का भागीदार नही बनना चाहता और ना तुझे बनने दूँगा " ...... इतना कहते हुए वह उसके कमरे से बाहर चला गया और निक्की नाराज़गी में तकिये से अपना चेहरा ढक कर लेट गयी.

अपने कमरे में आने के बाद तो जैसे निकुंज सारी सुध बुध खो बैठा .... उसने अपने उसी काँपते हाथ को गंभीरतापूर्वक देखा जिससे उसने अपनी बहेन की गुदाज़ चूची मसली थी, वह खुद पर कितना भी कंट्रोल करता लेकिन पॅंट के अंदर खड़ा उसका लंड इस बात की सच्ची गवाही दे रहा था की वह निक्की के जिस्म की तपन से तप रहा है .... फॉरन निकुंज ने अपना पॅंट उतार कर डोर उच्छाल दिया और अंडरवेर की जकड़न से अपने विकराल लंड को मुक्ति दिला दी.

इसके बाद उसने अपना वही कांपता हाथ अपने पूर्ण विकसित लंड के इर्द - गिर्द लपेट लिया और काफ़ी कठोरता से हस्त - मैथुन करने लगा .... आनंद से सराबोर वह बार - बार निक्की की झांतो भरी चूत को याद करते हुए अपने लंड में निर्दयता से झटके देता और साथ ही उसके मूँह से काई ऐसे शब्द फूट जाते .... जिनसे यह साबित हो चला कि उसके मन में भी अब चोर बस चुका है.

कुछ ही देर के घमासान के पश्चात उसकी टांगे ऐंठन से भरने लगी और वह अपनी बहेन के नाम की रॅट लगाते हुए झड़ने लगा .... आश्चर्य से परिपूर्ण वीर्य स्खलन ने उसके पूरे जिस्म में अजीब सी सनसनी फैला दी थी और साथ ही कुछ पॅलो के लिए उसके जहेन में अपनी मा का वही चेहरा घूमने लगा .... जब उसके गुलाबी होंठो के बीच निकुंज का लंड प्रचंडता से झटके खाए जा रहा था और कम्मो उतनी ही तेज़ी से अपने जवान बेटे के गाढ़े वीर्य की फुहारों से .... अपना गला तर करती रही थी.

सब कुछ सामान्य हो गया, बिस्तर पर जहाँ - तहाँ उसकी पापी करतूत के अंश बिखरे पड़े थे लेकिन निकुंज के चेहरे पर किसी प्रकार की कोई संतुष्टि नही आ सकी थी .... वह किसी जायज़ वास्तु की बेहद कमी महसूस कर रहा था, फिर चाहे वह वास्तु उसकी मा का प्रभावित मूँह हो .... जिससे कम्मो ने निकुंज को अपनी बलपूर्वक लंड चुसाई का आनंद दिलाया था या वह वास्तु उसकी सग़ी छोटी बहेन निक्की की कुँवारी चूत हो .... जिसे वह खुद अपने भाई के लंड से कुटवाने की, अपनी बेशरम इक्षा ज़ाहिर कर चुकी थी.

यूँ ही सोचते - सोचते निकुंज भी नींद के आगोश में समाने लगा इस प्रण के साथ, कि अब वह कभी अपने पापी मन को अपने ऊपर हावी नही होने देगा परंतु आँखें बंद करते ही उनमें .... कभी निक्की तो कभी कम्मो के अक्स बारी - बारी से उतरते रहे .... अत्यधिक बेचैनी की इस अवस्था ने निकुंज को और भी ज़्यादा ध्यांमग्न कर दिया और जल्द ही उसने ऐसा फ़ैसला ले लिया, जिसमें एक मा की उदारता .... एक बहेन की निकृष्ट'ता से हार गयी और इसके बाद निकुंज की सारी सोच सिर्फ़ अपनी जवान बहेन के ऊपर केंद्रित हो गयी .... अब उसकी आँखों ने झपकना छोड़ दिया था और वह नींद की गोद में चला गया.
 

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वहीं घर की सबसे छ्होटी बेटी निम्मी डिन्नर के वक़्त खूब हस्ती - खेलती रही थी .... कम्मो के साथ निकुंज ने भी उसके सलवार - कमीज़ में होने से हैरानी जताई, परंतु वे दोनो ही किस्मत के अजीबो - ग़रीब खेल के आगे दम तोड़ते नज़र आ रहे थे तो उनका ध्यान ज़्यादा देर तक निम्मी के इस बदलाव पर टिक नही पाया था.

डिन्नर के पश्चात भी निम्मी ने खूब चाहा कि वह दीप के साथ अठखेलियाँ करे लेकिन घर के अन्य सदस्यों की उपस्थिति में वह हर तरह से इसमें नाकाम रही और फिर एक प्यार भरा गुड नाइट किस अपने पिता के गालो पर देती हुई .... वह भी अपने कमरे में चली गयी.

हमेशा की तरह पूरी नंगी बिस्तर पर लेटने के बाद उसके चंचल मष्टिशक में काई तरह के उत्तेजक प्रश्न उठने लगे और उनके सही समाधान हेतु वह अपने लॅपटॉप पर सेक्स का ग्यान बढ़ाने के लिए .... पॉर्न देखने लगी.

उसने चुदाई के काई वीडियोस देखे परंतु उसकी चूत में ज़रा भी उबाल नही आ पाया और इसके बाद उसने गूगले पर ...... " फादर - डॉटर सेक्स " ....... नामक कयि वेबसाइट्स चेक की .... आख़िर - कार उसके हाथ एक ऐसी वीडियो लग गयी जिसे देखते ही उसकी कुँवारी चूत में घनघोर रति - रस प्रज्वलित होना शुरू गया और वह फॉरन अपने अति - संवेदनशील भग्नासे से खेलने लगी .... उंगलियों और अंगूठे की मदद से उसे मरोड़ने लगी .... हेड - फोन के ज़रिए वह वीडियो की उत्तेजक आवाज़ें बड़े आराम से सुन सकती थी और साथ उसने वॉल्यूम बेहद ऊँचा कर रखा था.

वीडियो का टाइटल था ..... " किकी सेक्स बिट्वीन डॅडी आंड हर ब्यूटिफुल डॉटर " ..... किकी का सही अर्थ उस वक़्त निम्मी को पता नही था लेकिन जैसे ही बाप - बेटी के दरमियाँ घमासान चुदाई का आगाज़ हुआ .... वह खुद - ब - खुद इस शब्द को लेकर आहें भरने लगी, उसने सॉफ जाना .... ना तो बेटी के चेहरे पर कोई लाज - शरम के भाव थे और ना ही उसके बाप के दिल में किसी प्रकार का कोई रेहेम.

निर्दयी बाप अपना विकराल लंड बेटी के छोटे से मूँह में थेल्ता ही जा रहा था और साथ ही उसकी अविकसित चूचियों के निप्प्लो को ताक़त से उमेथ देता .... उसकी बेटी के बंद गले से ...... " गून गून " ..... की असहाय ध्वनियाँ निकलती रही लेकिन उसके बाप ने अपनी कमर को प्रचंडता से आगे - पीछे करते हुए .... उसका मूँह चोदना नही छोड़ा बल्कि उसके हर विध्वंसक धक्के पर उसकी बेटी की आँखें बाहर को निकल आती और वह बुरी तरह से चोक हो जाती.

जल्द लड़की के मूँह से ढेर सारी लार और लंड - रस का मिक्स्चर बहकर नीचे फ्लोर पर गिरने लगा और उसके बाप ने चीखते हुए बलपूर्वक अपनी बेटी का चेहरा अपनी टाँगो की जड़ से चिपका लिया ...... " उमल्लप्प्प !!! ....... यह नज़ारा देखते ही निम्मी को बुरी तरह से अक - बकाई आ गयी और वह फॉरन बिस्तर पर उठ कर बैठ गयी.

हेड फोन अब भी उसके कानो से बुरी तरह चिपका हुआ था जिसे उसने तीव्रता से झटक दिया और वह अपने गले पर अपना हाथ फेरने लगी ...... " ओह गॉड !!! कहीं मर तो नही गयी ? " ...... निम्मी को उस पल अपना बेहोश होना याद आ गया .... जबकि उसके पिता का मूसल लॉडा भरकस कोशिसो के बाद वह आधा ही निगल पाई थी और कुछ देर तक इसी जिग्यासा में उसके प्राण अटके रहे कि वीडियो वाली लड़की सच में ज़िंदा बची या मर गयी.

जल्द ही उसने देखा बाप की कमर अब हिलना बंद हो चुकी है और धीरे - धीरे उसकी बेटी के मूँह से उसका विकराल लंड बाहर निकलता जा रहा है .... हलाकी अब भी लंड में हल्की सी अकड़न बची थी और वह पूर्णरूप से ढीला नही पड़ा था .... निम्मी बड़े गौर से इस सीन को देखने लगी और इसके बाद तो उसके कौतूहल की कोई सीमा नही रही जब उसने लड़की को मुस्कुराते पाया ...... " साली !!! यह तो ज़िंदा बच गयी " ...... वह ताली बजाती हुई उसका उत्साहवर्धन करने लगी जैसे सच में लड़की ने कोई बहुत बड़ा तीर मारा हो.

लड़की ने लंड से निकाला सारा वीर्य निकाल लिया था और अब वह अपने चेहरे व ठोडी पर लगा वीर्य उंगलियों की मदद से चाटने लगी .... वह नाशपीटी तब भी नही रुकी और निम्मी को लगभग चौंकाते हुए उसे दोबारा से अपने बाप का ढीला लंड चूसना शुरू कर दिया ...... " अब क्या काट कर खा जाएगी ? " ...... कहते हुए निम्मी की हसी छूट गयी और इसके बाद उसने वीडियो फास्ट मोड़ पर प्ले कर दिया.
 

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इस मोड़ में भी उसने सारे सीन बड़ी बारीकी से देखे .... कैसे चूस - चूस कर लड़की ने जल्द ही लंड को फिर से विकराल बना दिया और इसके बाद उसके बाप ने दो बार उसकी चूत को चाटा .... इसी दौरान दोनो में दर्जनो किस भी हुए आंड अट लास्ट बाप ने अपने विशाल लंड से बेटी की अति - नाज़ुक चूत की धज्जियाँ उड़ा कर रख दी .... इस वक़्त निम्मी बेहद गंभीर हो चुकी थी वरना अन्य कोई कुँवारी लड़की इस निर्मम चुदाई को देख रही होती .... अवश्य ही डर के मारे आजीवन कुँवारी रहने का संकल्प कर लेती.

वीडियो समाप्त होने के पश्चात निम्मी ने भी अपना चरमुत्कर्ष पा लिया .... उसकी उंगलियों ने भी उसकी कमसिन चूत पर कोई रहमत नही बक्शी थी बल्कि उसे तो मज़ा आ रहा था इस बुरी तरह से अपनी कुँवारी चूत पर ज़ुल्म करने में.

वह अब जान गयी थी चुदाई का सही अर्थ क्या है, कोई शरम कोई हया इसमें काम नही आती ..... " मैं भी ऐसा ही करूँगी और डॅड को अपना दीवाना बना कर छोड़ूँगी " ...... कुछ इसी प्रकार का प्रण करने के बाद वह भी बिस्तर पर ढेर हो गयी या शायद अत्यधिक खुशी से सराबोर हो उसकी आँखें स्वतः ही बंद हो गयी होंगी.

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नेक्स्ट मॉर्निंग :-

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5 बजे के अलार्म से निकुंज की नींद खुल गयी .... हलाकी उसका उठने का ज़रा भी मन नही हुआ लेकिन वह रात में ही तय कर के सोया था कि सुबह टाइम से निक्की के साथ पार्क जाएगा और उससे अपने किए की माफी भी माँगेगा.

" अपनी तरफ से सेक्स के लिए कोई ज़ोर नही दूँगा और कोशिश करूँगा निक्की भी मेरी बात को समझे .. बाकी सारा कुछ किस्मत के ऊपर छोड़ा " ....... इतना सोचने के बाद वह फ्रेश होने के लिए बाथ - रूम में एंटर हो गया, मीडियम शवर ले कर वह रूम में वापस लौटा और फिर शॉर्ट्स &; टी-शर्ट पहेन कर पूरी तरह से रेडी हो गया.

" अरे हां !!! सर्प्राइज़ गिफ्ट तो निकाल लूँ .. आख़िर मेरी प्यारी शहज़ादी को मनाना जो है " ...... कमरे से बाहर निकलने से पहले उसके दिमाग़ की बत्ती जली और उसने वॉर्डरोब खोल कर अंदर रखी कर्ध्नी अपनी शॉर्ट्स की ज़िप्ड पॉकेट में छुपा ली ..... " अब देखता हूँ कैसे नही मानेगी .. मोम के लिए दूसरी ले लूँगा " ..... मुस्कुराता हुआ वह फॉरन हॉल में आया और बिना कोई एक्सट्रा खतर - पतर किए निक्की के कमरे में चला गया.

वह सीधा उसके बेड पर जा कर बैठ गया, निक्की बेहद गहरी नींद में सो रही थी .... एक पल को तो निकुंज को लगा जैसे वह उसे यूँ ही सोते हुआ देखता रहे लेकिन आज कैसे भी कर उसे अपनी रूठी बहेन को मनाना था और इसके लिए वह चाहता था .... जल्द से जल्द वे दोनो घर की इस चार - दीवारी से बाहर निकल जाएँ, एक ऐसी जगह जहाँ उन दोनो के अलावा कोई तीसरा मौजूद ना हो.

बीती रात की सारी बातें उसके जहेन में उतनी ही ताज़ा थी जितनी रात को करते वक़्त थी .... उसकी आँखों के ठीक सामने निक्की की वह चूची थी जिसे उसने काफ़ी देर तक अपने हाथ से मसला था ..... " निक्की चल उठ जा फटाफट .. पार्क चलना है " ...... वह उसके कान में फुसफुसाया.

" अरे उठ जा मेरी मा " ..... काई आवाज़ें देने के बाद भी जब निक्की नही उठी, शरारतवाश निकुंज ने उसकी दाहिनी चूची पर जान बूझ कर अपना हाथ रखते हुए उसके बदन को हल्का सा हिलाया .... इसके साथ ही उसके खुद के बदन में कामुकता की एक लघु लहर दौड़ गयी और वह बिना कुछ बोले अगले चन्द सेकेंड्स तक अपनी बहेन के गुदाज़ बूब को अपने हाथ में फील करने लगा.

अब उसकी नज़र निक्की के सोते चेहरे पर टिक गयी थी, जैसे - जैसे वह उसकी चूची पर अपने हाथ को पंप करता वैसे - वैसे उसकी बहेन के चेहरे पर दर्ज़नो तरह के भाव आ कर चले जाते .... निकुंज को भी इसमें अत्यधिक आनंद का अनुभव होने लगा था और वह अपनी मर्ज़ी से अपने हाथ में और ज़्यादा कठोरता लाने लगा लेकिन जल्द ही उसे अपने लंड के अप्रत्याशित कदकपन्‍न का एहसास हुआ और फाइनली उसने अपना हाथ पीछे खीच लिया.

" निक्की !!! " ...... चूची पर से हाथ हटाने के पश्चात उसने अपनी बहेन के दोनो कंधे ताक़त से झंझोड़ दिए और निक्की एक झटके से अपनी आँखें मसल्ति हुई बिस्तर पर उठ कर बैठ गयी ..... " चल तैयार हो जा पार्क चलते हैं " ..... निकुंज ने उसे स्माइल देते हुए कहा जिसके एवज़ में निक्की उसे घूर कर देखने लगी .... माना उसकी आँखें खुल चुकी थी मगर अब भी वह पूर्णरूप से जाग नही पाई थी.

" ओये कुम्भ्कर्न !!! " ....... निकुंज अपनी बहेन की इस सुंदर निश्छल अवस्था पर मोहित हो गया और प्रेमवश उसने अपने हाथो की मजबूत पकड़ से उसे बिस्तर से अपनी गोद में उठा लिया ...... " चलिए शहज़ादी जी !!! आप को रेडी होना है पार्क जाने के लिए " ...... वह हँसता हुआ बाथ - रूम के गेट पर पहुचा और निक्की के गोरे गाल पर एक किस देने के बाद उसे अपनी गोद से नीचे उतार कर फ्लोर पर खड़ा कर दिया.

" जा और जल्दी आना .. मैं वेट कर रहा हूँ " ..... इतना कह कर निकुंज वापस बिस्तर पर बैठ गया और निक्की कुछ देर तक अपने भाई के चेंज्ड बिहेवियर को हैरानीपूर्वक देखने के बाद बाथ - रूम में एंटर हो गयी .... उसे कल रात से ही निकुंज पर बेहद गुस्सा आ रहा था ...... " हुहह !!! अब मैं किसी झाँसे में नही आउन्गि " ..... वह जल्द ही फ्रेश हो गयी लेकिन इस जल्दबाज़ी में उसे याद नही रहा कि उसने अपने सारे कपड़े उतार कर पानी से भारी बकेट में डाल दिए हैं और अब अपना गीला बदन पोंच्छने के लिए बाथ - रूम में टवल तक मौजूद नही था.

अगले पाँच मिनिट वह असमंजस की स्थिति में खड़ी रही ...... " बेटा तू अपने साथ नये कपड़े ले कर तो गयी नही !!! रुक मैं हॉल में जा रहा हूँ .. जल्दी आना " ....... निकुंज की यह बात सुनते ही निक्की के तंन - बदन में बिजली कौंध गयी ....... " क्या भाई को पता है मैं नंगी हूँ ? " ....... उसके इस कथन में क्रोध, निराशा, अनियंत्रित कामुकता के तीनो रूप शामिल थे और जिसका सीधा असर उसकी धड़कनो से कहीं ज़्यादा उसकी कुँवारी चूत पर हुआ .... उसने जाना एक दम से उसके निपल कड़क हो गये हैं और इसके बाद वह अपनी टाँगो में बेहद कंपन महसूस करने लगी.

" ईश्ह्ह्ह्ह !!! यह क्या हो रहा है मुझे ? " ...... वह ज़्यादा देर तक खड़ी ना रह सकी और नीचे गिरने से अपना बचाव करने हेतु उसने आगे बढ़ते हुए बाथ - रूम के दरवाज़े की कुण्डी पकड़ ली .... कुछ देर तक गहरी साँसे लेने के पश्चात वह अपने कमरे में दाखिल हुई और फॉरन अपने बिस्तर पर जा कर लेट गयी.

वहीं भाई - बेहन के अलावा घर का एक और सदस्य अपनी आँखें खोल चुका था और वह थी कम्मो .... वह तो लगभग पूरी रात ही नही सो पाई थी और उसने अपने पति की मौजूदगी में जी भर के अपने बड़े बेटे के ढीले लिंग से खेला था, उसमें जान फूकने की नाकाम कोशिश करती रही थी .... हॉल के सोफे से निकुंज ने ज्यों ही अपनी बहेन को आवाज़ दी, कम्मो के कान भी खड़े हो गये .... वह फॉरन समझ गयी दोनो भाई - बहेन पार्क में दौड़ने जा रहे हैं.

" मैं भी साथ जाउन्गि " ...... विद्युत की गति से कम्मो अपने बिस्तर से नीचे उतरी और तब तक निक्की भी अपनी बिगड़ी हालत में काफ़ी सुधार ला चुकी थी .... इसके बाद तो जैसे दोनो मा - बेटी में होड़ सी लग गयी ...... " कौन पहले तैयार हो पाता है ? "
 
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