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Thanks so much for your words of praise, support and encouragement. Please do advise me also if you want any improvements, you have been a pillar of support.Superb sexiest updates
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एकदम सही कहा आपने, होली का मजा तो विवाहिता, खास तौर से नव विवाहिता के साथ ही है। इसलिए नयी नयी भौजी के साथ पहली होली पे फगुआ खेलने के लिए देवर ननदोई सब बौराये रहते हैं।अमेज़िंग.. दुबे भाभी का तों जवाब नहीं. रंग कैसे लगाना है इसका तरीका भी बता दिया की गलो पर लगा है उसे ही रगड़ दो मेरी नांदिया के जोबन पर. और घर का भेदी बनकर रंग कहा है ये भी बता दिया. वाओ.
गुड्डी और रीत ने तों मानो पहले ही छूट दे दी. की ससुराल है. पूछना नहीं. जब मन करें दबोच ही लेना. मतलब तों आनंद बाबू भी पूरी तरह से समझ गए है. पर डायलॉग तों दुबे भाभी के जबरदस्त है. अरे ये गडूआ सिर्फ अपना पिछवादा घुटवाना जानता है. अपनी बहन का भडुआ.. माझा ही आ गया.
चंदा भाभी का भी जवाब नहीं. उनका सपोर्ट तों सबसे जबरदस्त है. ताकत तों रात मे ही देख चुकी मगर जो मछलीया देखते हुए आनंद बाबू और संध्या भाभी के बिच जो पूठा दबाव मे जो मदद की वो तों माझा आ गया. हे ये कोनसी होली खेल रहे हो. अरे ये तों भाभी को पिचकारी दिखा रहा था.
खेली खाई नांदिया है चंदा भाभी की डीप नेक ब्लाउज. जाली वाली ब्रा मे 38 और साड़ी तों तुम पहले ही उतरवा दिये.
मुजे तों माल पुआ पसंद है. गुड्डी reeta तों अभी बची है. अरे पूरा घोटेगी. वाह हार लाइन हार फीलिंग की कुछ अलग ही बात है. संध्या भोजी ने तों reeta से मदद मांगी. पर थामशाप के निशान ने पासा ही पलट दिया.
मै कमैंट्स लिखते बोखला गई. किसे पहले लिखू. माझा आ गया. भाभी ने जो रंग बाल्टी भर जो डाला उसके बाद तों माझा ही आ गया.
"Changey chahe marey haalat vich rakhiThanks so much for your words of praise, support and encouragement. Please do advise me also if you want any improvements, you have been a pillar of support.
पोस्ट लिखते ही आपके कमेंट्स पढ़ने की आकांक्षा रहती है और आपके कमेंट्स आते है कई कई बार पढ़ती हूँ, हाँ कई बार जवाब देने में विलम्ब जरूर हो जाता है, कृपया इसे अन्यथा न लें। कुछ तो जीवन की आपधापी और कुछ एक साथ तीन कहानियों के अपडेट्स और कुछ आलस,चांडाल चौकड़ी - संध्या भाभी , रीत , गुड्डी और आनंद - की यह रंगीन होली रीडर्स चाह कर भी भूल नही सकते ।
इस पुरे प्रकरण को आप ने ऐसे लिखा है जैसे एक चलचित्र चल रहा हो ।
इस प्रसंग मे होली की फुहार थी , रंगों की बरसात थी , होली पर लोकगीत था और इरोटिका की इन्तहा पार थी ।
खासकर संध्या भाभी और आनंद साहब का इरोटिक एनकाउंटर जो इन सब के मौजूदगी के दौरान ' चुपके - चुपके और चोरी - चोरी ' वाला सीन्स आपने दर्शाया ।
यह कहने की जरूरत नही कि आप की लेखनी मे अलंकार का प्रयोग कितनी खुबी के साथ होता है ! अनुप्रास , रूपक , यमक , श्लेष अलंकार पर महारत हासिल है आपको ।
और यही बात आपके लोकगीत , कविता , शेरो - शायरी , गीत - संगीत के नाॅलेज के बारे मे भी कहा जा सकता है ।
" जवान लड़की और कुछ पहचाने या न पहचाने , मर्द की निगाह जरूर पहचान लेती है " - हंड्रेड पर्सेंट सच बात है ।
औरतें साज श्रृंगार करती ही इसलिए हैं कि उनकी खुबसूरती को अधिक से अधिक तवज्जो मिले । लेकिन कोई भी औरत यह हरगिज पसंद नही करती कि उसके उभारों को सरेआम बेशर्मी के साथ ताड़ा जाए । उन पर भद्दे और अश्लील कमेन्ट किया जाए ।
अगर कोई मर्द उनके इज्ज़त का ख्याल कर चुपके से , चोरी से , तिरछे नजरों से उनके खुबसूरती को निहारता है तब औरत का नजरिया उस मर्द के प्रति कुछ कुछ ठीक ही होता है । बशर्ते मर्द की यह नजरें उसके उभारों पर न हो ।
लेकिन इस दरम्यान मर्द के लिए यह आवश्यक है कि जब उसकी नजरें औरत की नजरों से टकराए तब मर्द अपनी नजर नीची कर ले । यह मर्द के शराफत की पहचान होती है । और ऐसे मर्द को औरतें सभ्य और भला इंसान मानती है ।
औरतें अक्सर चाहती हैं कि उनके रूप लावण्य की वाह-वही मिले पर सभ्य अंदाज से ।
चांडाल चौकड़ी का मकसद है दूबे भाभी को चक्रव्यूह मे कैद करना । देखते हैं दूबे भाभी स्वेच्छापूर्वक इस चक्रव्यूह मे कैद होती है या बलपूर्वक !
बहुत खुबसूरत अपडेट कोमल जी ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट ।
आपके हर कमेंट इतने डिटेल्ड होते हैं की लगता है आपने कहानी के एक एक शब्द का रस लिया ही नहीं उसे अंदर तक महसूस किया और एक प्रबुद्ध कलम की स्वामिनी होने के नाते उसे एक बार फिर शब्दों का जामा पहना के कमेंट के रूप में बाकी सब पाठको के लिए पेश किया। आभारअरे जिओ कोमलजी. नजर ना लगे आप को. एक ही अपडेट मे देवर भाभी, ननंद भौजाई और प्रेमी प्रेमिका. अमेज़िंग. इतना ही नहीं आनंद बाबू के लिए जो तने चले वो अलग. माझा आ गया.
सा संध्या भाभी तों खेली खाई है. वो आनंद बाबू को कैसे छोड़ती. हकीकत तों संध्या रानी खुद को छुड़ा नहीं रही थी. जबानी का जोश था. वो तों पूरा मौका दे रही थी. जब आनंद बाबू का हाथ पीछे वाली दरार आगे गुलाबों तक गया. तों रिस्याई गुलाबों सफचट निकली. वो भी आनंद बाबू को ललकार ही दी. देखती हु तुम गुड्डी के लायक हो या नहीं. निकल कुए से पानी. मतलब तों संध्या रानी भी सब जानती है.
पर मौका पाते ही रीत को दोनों भौजइयो ने धर लिया. रीत को टॉप लेस ब्रा मे और फिर तों....
अरे मान गए. नांदिया कही हो भौजाईया छोड़ती कहा है. भौजाई धरम ही यही है. नांदिया के द्वार को खोलना और खुलवाना.
साइज गुड्डी का. अमेज़िंग किस्सा. जो नजरें मिलने पर जो आंखे बाते की क्या रोमांटिक लिखा है. अमेज़िंग.. बात तों टोंट मे आनंद बाबू के बहानियाँ पर गई मगर वो क्या हेना दिल तों आनंद बाबू का गुड्डी के पास ही है. गुड्डी ने ही कबूल लिया की उन्हें पता है.
आनंद बाबू तों बीवी और सालियों के पाले मे है. साले जोरू और साली के गुलाम. Love it. गली बोलने मे भी मुजे रोमांस फील हो रहा है.
सन्धि नहीं हुई होती तों संध्या भाभी का काम ही हो गया होता. अमेज़िंग अपडेट. मे बहोत कुछ जो फील हुआ अब भी बता नहीं पाई.
हक़ जमाना भी रोमांस का एक तरीका है सबके सामने दुनिया को बताने का की अब ये लड़का मेरी मुट्ठी में है।मान गए कोमलजी. टाइम आउट के बाद तों लग रहा है की रोमांस का मोसम आ गया है.
रीत से नजरें मिली और उसके जोबन पर नजरें टिकी. हाई री रीत. उफ्फ्फ इन मारदो की नजर पूरा कपड़ा पहनू तब भी मुजे नजरों से ही.
तों क्या करें रीत बेबी. तुम्हारे जोबन और तुम्हारे रूप का ही तों जादू है.
बियर पार्टी मे गुड्डी ने क्या आनंद बाबू को डांटा है. गुड्डी का हक़ जाताना बीवी की तरह डांटना बड़ा अच्छा लगा. प्यार झलकता है. माझा आ गया.
संध्या भाभी को अब तों नशा करवा दिया. अब माझा आएगा. खेली खाई जवानी. उफ्फ्फ और मर्दो की नजर भी अच्छे से पहचानती है. आनंद बाबू की नजर संध्या रानी के पिछवाड़े पर है. ये वो भी जानती है. माझा आ गया.
फिर बाल्टी सीधा संध्या भाभी पर. दिमाग़ से तों बड़े तेज़ हो आनंद बाबू.
अब रीत का क्या चक्कर है. कही बिच से तों नहीं चली जाएगी.
अगला अपडेट दूबे भाभी के ही नामवाह री चांडाल चौकड़ी के खेल. मतलब पाला बन गया. वाह. आनंद बाबू को गुड्डी ने अपना हक़ जताते जताते अपने मे शामिल कर ही लिया. हार साल भौजी सारी नांदिया को नंगा कर देती है. पर अब आनंद बाबू के सहारे बाज़ी जितना चाहती है.
माझा तों संध्या भाभी भी खूब दे रही है. पहले तों गुड्डी के नाम से डरा रही है. देख लो. वो अपने पाऊ भी चाटवाएगी. अरे चाट लेंगे आनंद बाबू.
लेकिन और ललकार के भी गई है. अगर तुमने नहीं पेला तों भाभी खुद पेल देगी. और दिल नहीं भरा तों दूसरा राउंड भी. वहां. संध्या भाभी आनंद बाबू के बलात्कार के चक्कर मे है. माझा आ गया.
लेकिन दुबे भाभी तों खेली खाई से भी ऊपर है. कई काला मे निपूर्ण. पर अपडेट जल्दी ख़तम हो गया. इंतजार रहेगा
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बहुत ही मजेदार और लाज़वाब अपडेट है यहां तो खुद खरबूजा कटने के लिए तैयार है अगर चाकू नही काटता है तो वह खुद चाकू पर गिरकर कटने के लिए तैयार है संध्या भाभी खुद चुदने के लिए तैयार है संध्या के दरवाजे पर आनंद के हथियार की एंट्री हो गई है रीत और गुड्डी दोनो चंदा भाभी और दुबे भाभी के बीच फंस गई है अब तो उनकी रगड़ाई होके रहेगी तीनो ननदों की होली में रगड़ाई होके रहेगी रीत और गुड्डी तो बचने की पूरी कोशिश कर रही है लेकिन अब नहीं बचेगीहोरी देह की
“अरे भाभी पिछवाड़े का अलग मजा है…”
ये कहते हुए मेरा एक हाथ सीधा संध्या भाभी के नितम्बों पे। उसे खींचकर मैंने उन्हें अपने साथ और सटा लिया और अब मेरा खड़ा खूंटा सीधे उनकी पीछे की दरार में, रंग से साया चिपकने से दरार भी साफ झलक रही थी।
“और क्या तेरे जैसे लौंडे, चिकने गान्डूओं से ज्याद किसको पिछवाड़े का मजा मालूम होगा…” दुबे भाभी अब खड़ी हो गई थी।
रीत बिचारी को क्या मालूम था की अगला निशाना वो ही है।
पीछे से दूबे भाभी ने उस बिचारी का हाथ पकड़ा और चंदा भाभी ने उसके उभार दबाते हुए कहा-
“अरे रानी आज होली में भी इसको छिपा रखा है। दिखाओ ना क्या है इसमें, जिसके बारे में सोच-सोचकर मेरी ननद का नाम ले लेकर, सारे बनारस के लौंडे मुट्ठ मारते हैं…”
बिचारी रीत कातर हिरनी की तरह मेरी ओर देख रही थी, लेकिन चन्दा भाभी और दूबे भाभी की पकड़ से बचना, मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था।
इधर संध्या भाभी ने भी उस उहापोह का फायदा उठाते हुए ब्रा में घुसे हुए मेरे लालची हाथों को कसकर दबोच लिया।
मैं बुद्धू तो था लेकिन इतना नहीं।
मैं समझ गया की ये अपने उरोज बचाने के लिए नहीं बल्की मेरे हाथों से उस यौवन कलश का रस लूटने के लिए उसे उसके ऊपर दबा रही हैं।
मैं कौन होता था मना करने वाला। मैं भी कसकर गदराये रसीले 34सी का मजा लूटने लगा। नुकसान सिर्फ एक हुआ की मैं रीत की मदद को नहीं जा पाया। लेकिन वो भी शायद फायदा ही हुआ।
रीत को दूबे भाभी और चंदा भाभी ने मिलकर टापलेश कर दिया था। पूरी तरह नहीं लेकिन सिर्फ अब वो ब्रा में थी और अपनी प्यारी पाजामी में। उसकी लेसी ब्रा से मैंने जो उसके जोबन पे अपनी उंगलियों के निशान छोड़े थे साफ नजर आ रहे थे। दूबे भाभी ने पहले उन निशानों की ओर देखा फिर मेरी ओर, मुश्कुराने लगी मानो कह रही हों की लाला तुम इतने सीधे नहीं जितने बनते हो।
मेरा भी एक हाथ संध्या भाभी के उभार पे था और दूसरा साए के भीतर सीधे उनके नितम्ब पे, क्या मस्त कसे-कसे चूतड़ थे। हाथ की एक उंगली अब सीधे दरार पे पहुँच गई थी। बाहर से मेरा खूंटा तो पीछे से गड़ा ही हुआ था। मैं मौके का फायदा उठाकर हल्के-हल्के जोबन और नितम्ब दोनों का रस लूट रहा था।
क्या मस्त चूतड़ थे, संध्या भाभी के, गोल गोल, एकदम कड़े पर खूब मांसल, रंग लगाने के साथ साथ मेरी उँगलियाँ कभी उन्हें सहलाती तो कभी कस के दबोच लेतीं। एक हाथ चोली के अंदर जोबन का न सिर्फ स्पर्श सुख महसूस कर रहा था बल्कि रंग भी रहा था, रगड़ भी रहा था और मसल भी रहा था।
लेकिन संध्या भाभी, रीत या गूंजा नहीं थीं, वो ब्याहता, देह सुख ले चुकी, और मुझसे बहुत आगे, भले ही मैंने उन्हें दबोच रखा था, लेकिन हाथ तो भौजी के खाली थे। एक हाथ पीछे कर के, नहीं उन्होंने बारमूडा के ऊपर से खूंटे को नहीं पकड़ा, सीधे बारमूडा के अंदर और कस के मेरे मूसलचंद को मुठियाने लगीं ( वो तो बाद में पता चला की वो एक पंथ दो काज कर रही थीं, मेरे बांस को मुठिया भी रही थीं और अपने हाथ में पहले से लगी कालिख से उसका मुंह भी काला कर रही थीं ।) क्या मस्त पकड़ थी एकदम जबरदस्त, पहले से बौराया, अब एकदम पागल हो गया , संध्या भाभी के हाथ की छुअन पाके ख़ुशी से फूल गया।
लेकिन संध्या भाभी इतने पर नहीं रुकीं, बोलीं,
" लाला, जब तक चमड़े से चमड़े की रगड़ाई न हो का देवर भाभी की होली। "
और जब तक मैं समझूं मेरे बारमूडा सरक के घुंटनों तक, मूसल चंद आजाद।
मैं क्यों पीछे रहता, मैंने भी पीछे से भाभी का साया उठा दिया, और पैंटी का कवच भी नहीं तो जंगबहादुर सीधे भौजी के नितम्बो के बीच, बस एक दो बार उन्होंने दरवाजा खटकाया होगा और संध्या भाभी ने अपनी दोनों टांगों को फैला के रास्ता खोल दिया। मेरा मस्त हथियार, बित्ते भर का एकदम तना दोनों नितम्बो के बीच। और अब भाभी ने दोनों टाँगे कस के पूरी ताकत से भींच ली।
मैं अपना भाला वापस खींचना भी चाहता तो नहीं खींच सकता था और वो कसर मसर कसर मसर कर रहे दोनों चूतड़ों के बीच, भौजी खुद ही उसे रगड़ रही थी और मेरे दोनों हाथ अब चोली के अंदर, जोबन रंग रहे थे।
" औजार तो देवर मस्त है, चलाना भी जानते हो " संध्या भाभी ने फुसफुसा के पूछा।
पीछे से कस के धक्का मारते हुए मैं बोला, " भौजी , मौका दे के तो देखिये "
"लग तो रहा है खड़े खड़े चोद दोगे, " खिलखिला के वो बोलीं, फिर जोड़ा " तू मुझे छोड़ भी दोगे न तो भी मैंने इसे नहीं छोड़ने वाली बिना पूरा अंदर लिए।"
सुपाड़ा मेरा अब भौजी की फांको पे सांकल खटका रहा था, और उसकी सहायता के लिए मेरे दोनों हाथों में से एक जोबन का लालच छोड़ साया के अंदर आगे से,
उफ़ एकदम मक्खन मलाई, दोनों फांके खूब चिपकी, और झांट का निशान तक नहीं। लेकिन मेरे हाथ में रंग लगा था और पहला काम गुलाबो को लाल करने का था और फिर दोनों फांको को हलके से फैला के, बस जरा सा स्वाद, मेरे सुपाड़े को, क्या कोई मर्द धक्का मारेगा जिस तरह संध्या भाभी ने धक्का मारा, हम दोनों की देह एकदम चिपकी
लेकिन हम दोनों को कोई देख भी नहीं रहा था, सब लोग अपने अपने काम में बिजी, रीत की रगड़ाई दूबे भाभी कर रही थी और गुड्डी का रस चंदा भाभी लूट रही थीं।
दूबे भाभी भी पीछे से रीत को पकड़े उसकी ब्रा से झांकते दोनों किशोर उभार, ब्रा उसकी भी लेसी थी। मेरी फेवरिटm पिंक लेसी, पकड़कर मुझे ऐसे दिखा रही थी मानों मुझे आफर कर रही हों।
और फिर ब्रा के ऊपर से उन्होंने रीत के निपल ऐसे अंगूठे और तर्जनी के बीच रोल करने शुरू कर दिए की कोई मर्द भी क्या करता। असर दो पल में सामने आ गया।
रीत सिसकियां भर रही थी। इंच भर के निपल एकदम खड़े हो गए थे। ब्रा के अन्दर से साफ दिख रहे थे। रीत की आँखों में भी मानो फागुन उतर आया था, गुलाबी नशा उन कजरारे नैनों में झलक रहा था।
मैं भी संध्या भाभी के साथ वहीं कस-कसकर जोबन मर्दन, और निपल की पिंचिंग। जो हाथ पीछे थे वो अब आगे गया था और पहले तो मैंने उनके गोरे-गोरे खुले पेट पे खूब रंग लगाया. मस्ती के साथ साथ मेरी और संध्या भौजी की होली भी चल रही थी। मेरे हाथ अब उनके चिकने गोरे पेट पर रंग लगा रहे थे , और खूंटा तो नितम्बो के साथ गुलाबो का भी हल्का हल्का रस ले रहा था , ऊपर से संध्या भौजी की गारियाँ और बातें,
" अरे अपनी बहिनीया के भतार, देखती हूँ आज केतना जोर है तोहरे धक्को में, अगर आज हमरे कूंवा में से पानी निकाल पाए तो मान लूंगी हो तुम गुड्डी के लायक"
यानी मेरा और गुड्डी का चक्कर इनको भी मालूम था और गुड्डी को पाने के लिए मैंने इनके कुंए से क्या पाताल में से पानी निकाल लेता। मेरी रगड़ाई और धक्को का जोर और बढ़ गया।
दुबे भाभी का एक हाथ अब रीत की ब्रा के अन्दर घुस गया था और वो कसकर उसकी किशोर चूचियां मसल रही थी और मुझे दिखाते चिढ़ाते गा रही थी-
अरे मेरी ननदी का, अरे तुम्हारी रीत का, छोट-छोट जोबन दाबे में मजा देय।
अरे मेरी ननदी का, अरे तुम्हारी रीत का, छोट-छोट जोबन दाबे में मजा देय।
अरे ननदी छिनाल चोदे में मजा देय, होली बनारस की रस लूटो राजा होली बनारस की।
पीछे से रीत को वो ऐसे धक्के लगा रही थी की मानो वो कोई मर्द हों और रीत की जमकर हचक-हचक के।
वही हरकत अब मैं सन्धा भाभी के साथ कर रहा था, ड्राई हम्पिंग।
और रीत भी कम नहीं थी। बात टालने के लिए उसने अटैक डाइवर्ट किया। मेरी ओर इशारा करके वो बोली-
“अरे भाभी। इनका जो माल है जिसको ये ले आने वाले हैं अपने साथ उसकी साईज पूछिए ना…”
मैं कुछ बोलता उसके पहले गुड्डी ही बोल पड़ी। लगता है उसने पाला बदल लिया था और भाभियों की ओर चली गई थी। कहा-
“अरे मैं बताती हूँ रीत से थोड़ा सा। बस थोड़ा सा छोटा है…”
चंदा भाभी क्यों चुप रहती। उन्होंने गुड्डी के उभार दबा दिए और बोली-
“अरे रीत को क्यों बीच में लाती है? ननद तो तेरी वो लगेगी और उसकी नथ उतरवाने और यहाँ लाने का काम भी तो तेरे जिम्मे है। बोल तुझसे बड़ा है या छोटा?”
“बस मेरे बराबर समझिये…थोड़ा उन्नीस बीस"
और गुड्डी मेरी ओर देख रही थी और मैं गुड्डी के जुबना की ओर ललचाते, सोचते यार ये हरदम के लिए मिल जाते, गुड्डी का पक्का २० था बल्कि २२।
लेकिन दिल तो मेरा गुड्डी के पास था इलसिए मेरे दिल की बात उसने तुरंत सुन ली और उलटे चंदा भाभी को मेरे पीछे लुहका दिया
" अपने देवर से पूछिए न, जब से इनके माल की कच्ची अमिया आ ही रही थी तब से देख देख के ललचा रहे हैं, और वो एक बार भी कुतरने को भी नहीं दी। एकदम सही साइज मालूम होगी इन्हे "
और गुड्डी ने जिस तरह मुझे देखा हजार रंगो की पिचकारियां छूट पड़ीं। ” वो चंदा भाभी के हाथों से अपने को छुड़ाने की असफल कोशिश करती हुई बोली।
दूबे भाभी के दोनों हाथ अब कसकर रीत की ब्रा में थे, लाल गुलाबी रंग। वो कसकर दबाते मसलते बोली मेरी और देखकर-
“अरे साइज की चिंता मत करो लाला, हफ्ते दस दिन रहेगी ना यहाँ। दबा-दबाकर हम सब। इत्ती बड़ी कर देंगे की फिर उसके इत्ते यार हो जायेंगे यहाँ दबाने मसलने वाले की वो गिनना भूल जायेगी…”
मैं समझ गया था की अब चंदा भाभी भी मैदान में आ गई हैं तो। और उधर रीत की हालत भी खराब हो रही थी। कब उसकी ब्रा अलग हो जायेगी ये पता नहीं था। चन्दा भाभी भी उसकी पीठ पे रंग लगा रही थी, बस खाली हुक खोलने की देरी थी या कहीं दुबे भाभी ही फाड़ ही न दें।
रीत और गुड्डी दोनों किशोरियां भाभियों के चंगुल में फंसी थी, होली में सालियाँ भले ही बहाना बना कर, बुद्धू बना कर अपने जीजू के चंगुल से बच जाएँ, ननदें भौजाई के चंगुल से बिना रगड़ाई के नहीं छूट सकती, और अभी तीनो ननदें फंसी थी। रीत दूबे भाभी के कब्जे में, गुड्डी चंदा भाभी के और संध्या भाभी मेरे चंगुल में, लेकिन मैं तो हरदम गुड्डी के साथ और गुड्डी रीत की छोटी मुंहबोली बहन, तो रीत का हुकुम भी नहीं टाल सकता था,
रीत ने मेरी ओर देखा, स्ट्रेटेजिक हेल्प के लिए
रीत ने मेरी आँखों में देखा और मैंने भी उसकी आँखों में। बस एक ही रास्ता था- स्ट्रेटजिक टाइम आउट।
संध्या भाभी ने भी इशारा समझ लिया। थी तो वो भी रीत और गुड्डी की टीम में यानी ननद, और उन्होंने भी मेरी ओर धक्के लगाना बंद कर दिया, पल भर में मेरा बारमूडा ऊपर, उनका पेटीकोट नीचे।
संधि प्रस्ताव मैंने ही रखा- “कुछ खा पी लें, 10-15 मिनट का ब्रेक…” मैंने दूबे भाभी से रिक्वेस्ट की।
“ठीक है लेकिन बस 5-7 मिनट…” दूबे भाभी मान गई।
स्ट्रेटिक टाइम आउटस्ट्रेटेजिक टाइम आउट
रीत ने मेरी ओर देखा, स्ट्रेटेजिक हेल्प के लिए
रीत ने मेरी आँखों में देखा और मैंने भी उसकी आँखों में। बस एक ही रास्ता था- स्ट्रेटजिक टाइम आउट।
संध्या भाभी ने भी इशारा समझ लिया। थी तो वो भी रीत और गुड्डी की टीम में यानी ननद, और उन्होंने भी मेरी ओर धक्के लगाना बंद कर दिया, पल भर में मेरा बारमूडा ऊपर, उनका पेटीकोट नीचे।
संधि प्रस्ताव मैंने ही रखा- “कुछ खा पी लें, 10-15 मिनट का ब्रेक…” मैंने दूबे भाभी से रिक्वेस्ट की।
“ठीक है लेकिन बस 5-7 मिनट…” दूबे भाभी मान गई।
रीत सीधे टेबल के पास जहां गुझिया गुलाब जामुन, दही बड़े, ठंडाई और कोल्ड ड्रिंक्स सारे स्पायिकड। वोदका, रम और जिन मिले हुए, पहुँची और पीछे-पीछे मैं।
रीत की एक लट गोरे गाल पे आ गई थी। कहीं लाल, कहीं गुलाबी रंग और थोड़ी लज्जा की ललाई उसके गाल को और लाल कर रहे थे। होंठ फड़क रहे थे कुछ कहने के लिए और बिना कहे बहुत कुछ कह रहे थे।
मैंने उसके कंधे पे हाथ रख दिया। हाफ कप ब्रा से उसके अधखुले उरोज झाँक रहे थे, जिसपे मेरे और दूबे भाभी के लगाये रंग साफ झलक रहे थे। गहरा क्लीवेज, ब्रा से निकालने को बेताब किशोर उरोज।
कुछ चिढ़ाते कुछ सीरियसली मैंने पूछा- “हे शर्मा तो नहीं रही हो?”
“शर्माऊं और तुमसे?” वो खिलखिला के हँस दी। कहीं हजार चांदी की घंटियां एक साथ बज उठी।
मेरी बेचैन बेशर्म उंगलियां, ब्रा से झांकती गोरी गुदाज गोलाइयों को सहम-सहम के छूने लगी।
मेरी निगाह गुड्डी पर पड़ गयी और हम दोनों निगाहें टकरा गयी, और उसकी मुस्कराती निगाह मुझे और उकसा रही थी, चढ़ा रही थी, चिढ़ा रही थी,
' बुद्धू लोग बुद्धू ही रहते हैं, अरे आगे बढ़ो, सिर्फ देखते ही रहोगे, ललचाते ही रहोगे तो मेरी भी नाक कटवाओगे और तुम्हारी तो खैर कितनी बार कटेगी पता नहीं, थोड़ा और आगे बढ़ो न, "
मुझे गुड्डी की एक बात याद आ गयी, जब पहली बार बहुत हिम्मत कर के उसकी देह को छुआ था एक पुरुष की तरह,
“तुम ना। कुछ लोगों की निगाहें ऐसी गन्दी घिनौनी होती हैं की चाहे मैं लाख कपड़े पहने रहूँ वो चाकू की तरह उन्हें छील देती हैं, और ऐसा खराब लगता है की बस। जवान लड़की और कुछ पहचाने ना पहचाने मर्द की निगाह जरूर पहचान लेती है। और तुम ना जिस दिन हम, मैं कोई भी कपड़े ना पहनी रहूंगी ना। तुम्हारी निगाह,... इत्ती शर्म उसमें है इत्ती चाहत है। वो खुद मुझे मालूम है, सहलाती हुई, मस्ती के खुशी के अहस्सास से ढक देगी…”
कुछ मौसम का असर कुछ गुड्डी के उकसाने का, कुछ भांग और बियर का, पर रीत अंदर चली गयी, बियर ख़तम हो गयी थी टेबल पर वाली। बाकी कमरे के अंदर चंदा भाभी के फ्रिज में रखी थी तो उसे निकालने,
और मैं गुड्डी अकेले, अब मुझसे नहीं रहा गया मैंने गुड्डी को अपनी ओर खींच लिया और हाथ सीधे गुड्डी के अधखुले जोबन पे, चंदा भाभी की रगड़ाई का असर
लेकिन असली असर था गदराये जोबन का मैंने उसे पास में खींच लिया और मेरे दो तड़पते प्यासे हाथ सीधे अब उसके उरोजों पे, और मैंने उसके कानों में बोला-
फागुन आया झूम के ऋतू बसंत के साथ,
तन मन हर्षित होंगे, मोदक दोनों हाथ।
तब तक संध्या भाभी आ गई और हम लोगों को देखकर बोलने लगी-
“अरे तोता मैना की जोड़ी, कुछ सुध-बुध है। ब्रेक किया था प्लान करने के लिए और। कैसे दूबे भाभी को…”
तबतक रीत आ गयी बियर की आधी दर्जन बोतलें एकदम चिल्ड ला के और उसने इशारे से संध्या भौजी को बुला लिया और उन तीनो के बीच गुपचुप गुपचुप,
मैंने ज्वाइन करने की कोशिश की लेकिन गुड्डी ने डांट लगा दी, " तुझे बुलाया किसी ने क्या "
और फिर हंसती मुस्कराती, रीत की ओर तारीफ़ से देखती संध्या भाभी मेरे पास आ गयीं, मैं समझ गया असली दिमाग रीत का ही है इन सबमे।रीत ने मुझे इशारा किया और मैं संध्या भाभी से बोला,
“पहले ये ड्रिंक उनको दे आइये और आप भी उनके साथ…” और एक ग्लास में मैंने रमोला स्पेशल, जिसमें रम ज्यादा कोला कम था, और वोदका मिली लिम्का के दो ग्लास और भांग वाली गुझिया उन्हें दी और बोला-
“कोई भी प्लान तभी सफल होगा अगर आप ये। …”
“एकदम…” वो बोली और प्लेट लेकर चल दी।
मैं संध्या भाभी का पिछवाड़ा देख रहा था, क्या मस्त माल लग रही थी। चंदा भाभी ने बाल्टी भर रंग मेरे ऊपर फेंकने की कोशिश की थी और मैं संध्या भाभी को आगे कर के बच गया था, सब कस सब रंग उनके कपड़ों पर, साडी तो उतर ही चुकी, रंग से भीगा साया एकदम देह से चिपका, दोनों कटे आधे तरबूज की तरह के नितंब, कसर मसर करते, और उससे ज्यादा जान मारु थे उनके पिछवाड़े की दरार, एकदम कसी, टाइट चिपकी, ललचाती बुलाती,
होली का एक मजा लड़कियों, औरतों की रंग से भीगे, देह से चिपके कपड़ों में छन छन कर छलकते जोबन और नितम्बों का रस है लेकिन संध्या भाभी के साथ तो मेरे बौराये पहलवान ने इन मस्त नितम्बों के बीच खूब रगड़ घिस, रगड़ घिस, की थी यहाँ तक की भौजी प्यासी मुनिया का चुम्मा भी ले लिए था अपने खुले सुपाड़े से, और पहले टच से ही भौजी एकदम छनछना गयीं थीं। मौका होता तो खुद पकड़ के घोंट लेती।
औरतों में पता नहीं कितनी आँखे होती हैं। संध्या भौजी को पता चल गया था की मैं उनका मस्त पिछवाड़ा निहार रहा हूँ, बस मुस्कराते हुए पलट के उन्होंने मुझे देखा, क्या जबरदस्त आँख मारी और मेरा एक बित्ते का पत्थर का हो गया। कुछ हो जाय बिना इनकी लिए मैं रहने वाला नहीं था, भले सबके सामने यहीं छत पे पटक के पेलना पड़े।
तबतक पीठ पे एक जोर का हाथ पड़ा, और कौन गुड्डी। भांग उसको भी चढ़ गयी थी। और जो उसकी आदत थी, बोलती कम थी, हड़काती ज्यादा थी,
" अबे बुद्धूराम, तेरे बस का कुछ नहीं, बस ऐसे ही ललचाते रहना। यहाँ कोई तेरी बहन महतारी तो हैं नहीं जो इसका इलाज करेंगी ( जोश में आने पर लगता था गुड्डी सच में मम्मी की सबसे बड़ी बेटी है, उसी तरह एकदम खुल के ) और गुड्डी का हाथ मेरे बारमूडा के अंदर फिर उसे सहलाते बोली,
" माना, रात में इसकी दावत मैं कराउंगी, लेकिन स्साले इसको रात तक भूखा प्यासा रखोगे क्या, न एक दो बार में घिस जाएगा, न एक बारनल खोलने से सारा पानी बाहर आ जाएगा, जितनी बार खोलोगे उतनी बार हरहरा कर, माल मस्त हैं न संध्या दी, एकदम आग लगी है बेचारी को दस दिन से भतार नहीं मिला है, करा दो भूखे को भोजन, लेकिन तू भी न, "
तबतक रीत आ गयी, थोड़ी हैरान परेशान। किसी काम में उलझी थी जब गुड्डी मुझे हड़का रही थी।
वैसे गुड्डी अगर दो चार घंटे में एकाध बार मुझे डांटे नहीं, हड़काये नहीं तो मैं परेशान हो जाता था, ये सारंग नयनी किसी बात से गुस्सा तो नहीं है, कहीं मेरा लाइफ टाइम प्लान खतरे में तो नहीं है।
रीत किसी जुगाड़ में थी। उसने मुझे बताया था वो चेस में भी अपने कालेज में नंबर वन थी और मैं समझ भी गया था की वो उन खिलाडियों में है जो बारहवीं चाल सोचती हैं। और बिना देखे उन्हें पूरा बोर्ड याद रहता है।
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