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भाग ३१ ---चू दे कन्या विद्यालय- प्रवेश और गुड्डी के आनंद बाबू पृष्ठ ३५४
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बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है गुड्डी का रीत पुराण चालू हो गया साथ ही आनंद की बहनिया का भी बीच बीच में जिक्र हो रहा है गुड्डी भी मजे ले रही हैरीत महिमा और गलियों में गलियां
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और फिर रीत महिमा गान शुरू हो गया।
" जानते हो रीत दी को एकदम डर नहीं लगता, रात के अँधेरे में भी, एक तो उनके हाथ में जोर इतना है, दो चार को तो अकेले ही,...
फिर गली गली, उनको सिर्फ रास्ता भी नहीं मालूम आधे से ज्यादा बनारस में, उस गली के मोड़ पे कौन रहता है, उनसे पूछ लो तो बता देंगी तो हर गली में आस आपस कौन है, कैसा है... इसलिए मैं कहती हूँ जब तेरी बहनिया आएगी न यहाँ तो देखना रीत दी कितने लौंडे चढ़ायेंगी,... एक तो तुम पोस्टर लगाए घूम रहे हो, फिर रीत दी और माल भी तो मस्त है वो, और स्साले मुंह मत बना। गलती तेरी अब तक छोड़ क्यों रखा था स्साली को। चल यार झिल्ली तो तुझी से फड़वाउंगी, वो भी अपने सामने, दूबे भाभी का हुकुम, और तूने भी हाँ बोला था, मेरे और रीत दी दोनों के मोबाइल में रिकार्ड है। अरे आठ दस बार डुबकी लगा लेना, उसके बाद तो नदी बह रही है चाहे जो डुबकी लगाए, ...और फिर पैसा भी मिलेगा,
तेरी तो यार चांदी हो जाएगी, चार आने हम लोग तुझे भी देंगे न "
तबतक वो बंद दरवाजा आ गया, एकदम फर्जी दरवाजा था, गुड्डी ने हाथ लगाया और खुल गया और वो बोली,
" खुला ही रहता है, किसी ने मारे बदमाशी के बंद कर दिया होगा, पुराने ज़माने का है अभी तक चला आ रहा है "
और अब एक चौड़ी गली आ गयी थी, जिसके दोनों ओर दोमंजिले घर थे और उस से कई जगहों पर और गलियां निकल रही थीं। पास में ही एक मस्जिद की मीनार भी दिख रही थी।
कुछ नए, कुछ पुराने और कुछ बहुत पुराने जिनका रंग रोगन उजड़ सा गया था, इसी बीच एक बड़ा सा टूटता हुआ घर दिखा, करीब करीब टूट ही चुका था, जगह जगह पुरानी ईंटे, गिरती हुयी बिल्डिंग के सामान पड़े हुए थे, और एक बोर्ड लगा था, ' बिल्डिंग टूट रही है, किसी को मोरंग, पुरानी ईंटे या और कोई सामान चाहिए, तो सम्पर्क करें। ईंटे गली में इधर उधर भी बिखरे पड़े थे और गुड्डी अचानक थोड़ी उदास हो गयी, उस घर को देख के और मेरे बिन पूछे बोलने लगी,
" सैय्यद चच्चू का घर है, था। बहुते बड़ा, बचपन में कितनी बार आयी थी दूबे भाभी के साथ, अरे बहुत छोटी थी, वो उनका चच्चू बोलती थीं तो हम बच्चे भी। बड़ा सा आंगन था, बरामदा, एकट दूकट खेलते थे अगल बगल की लड़कियां, उनके यहाँ तो कोई बचा नहीं था। "
फिर रुक के बोली
" अरे उनके दो भाई थे वो पाकिस्तान चले गए एक लड़का भी, दो बेटियां थी, एक अमेरिका गयी पढ़ने, एक कनाडा वहीँ रह गयी, शादी नौकरी। ये अकेले। दो चार साल में कभी आतीं तो बस यही जिद्द की मकान बेच के हम लोगों के साथ चलिए, लेकिन चच्चू किसी की नहीं सुनते, बोलते यहाँ जो पुरखों की कब्र है, वहां दिया बाती करते हैं वो कौन करेगा। रोज नियम से जाड़ा गरमी बरसात सुबह सुबह गंगा नहाते थे, पहले तो तैर कर रामनगर तक, लेकिन अब वो बंद हो गया था। कनाडा वाली बेटी ने बहुत जिद की तो बोले, गंगा जी को भी साथ ले चलो तो चलेंग। तीन चार महीने पहले, बेटे बेटी कोई नयी आये। बेटे को वीसा नहीं मिला, बेटियों का अपना अलग, सब मोहल्ले वालों ने, मैं भी आयी थी दूबे भाभी के साथ, और वो कनाडा वाली महीने भर बाद आयीं तो घर बेच दिया अब का कहते हैं कोई बिल्डर लिया है, मल्टी स्टोरी बनाएगा। "
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है मान गए बनारस वालियों को गुड्डी की सहेली ने रास्ते में ही इशारों में पूछ लिया कि गपागप करने वाला यही है ना??गुड्डी और गली की सहेली
मै भी चुप हो गया, लेकिन बस १०० कदम चलने के बाद गुड्डी जोर से मुस्करायी और मैंने देखा, एक लड़की गुड्डी की ही उम्र की, शलवार कुर्ते में और उस के साथ एक कोई औरत, संध्या भाभी की उम्र की रही होंगीं, वो दुप्पटे को हिजाब की तरह सर पर लपेटे,
वो लड़की पहले गुड्डी को देखकर मुस्करायी, फिर साथ वाली औरत को इशारा किया, वो तो हम दोनों को देख कर लहालोट और गुड्डी से बिन बोले मेरी ओर देख के इशारा किया,
अब गुड्डी की कस के मुस्कराने की बारी थी और उन दोनों को दिखा के मुझसे एकदम चिपक गयी और गुड्डी का हाथ मेरे कंधे पे, मुझे भी अपनी ओर पकड़ के खींच लिया, एकदम चिपका लिया उन दोनों को दिखाते,
मान गया मैं बनारस को, वो जो दुपट्टे वाली थीं,
पहले तो गुड्डी की ओर तर्जनी और मंझली ऊँगली को जोड़ के चूत का सिंबल बना के इशारा किया,
और फिर मेरी ओर देख के अंगूठे और तर्जनी को मिला के गोल छेद और उसमे ऊँगली डाल के आगे पीछे, चुदाई का इंटरनेशनल सिंबल,
और अब मैं भी मुस्करा पड़ा,
और गिरते गिरते बचा, जो बिल्डिंग पीछे हम छोड़ आये थे, जो गिर रही थी, उसके ईंटे सड़क पे यहाँ तक बिखरे पड़े थे, उसी से ठोकर लगी, वो तो गुड्डी ने कस के मेरा हाथ पकड़ रखा था,
वो दोनों, लड़की और साथ में औरत तब तक एक घर में घुस गए थे और गुड्डी ने मेरे बिना पूछे सब मामला साफ़ कर दिया।
गुड्डी की एक सहेली है सी गली में, एकदम शुरू में जहाँ मकान टूट रहा था उससे भी बहुत पहले, एकदम शुरू में।
तो बस उस की जो सहेलियां वो गुड्डी की भी, वो जो लड़की थी उसका नाम अस्मा है, गुड्डी से एक साल सीनियर, इंटर में पढ़ती है।
तो सहेलियों के साथ इस मोहल्ले में १५ -२० भाभियाँ, और उनमे से आठ दस तो गुड्डी के शलवार का नाडा खोलने के चक्कर में पड़ी रहती थीं, सब बोलती,
"कैसी लड़की हो इंटर में पहुँच गयी और अभी तक इंटरकोर्स नहीं किया, "
कोई कहती की "तुझसे कोई नहीं पट रहा हो तो मैं अपने भाई से तेरी सील खुलवा दूँ, "
तो कोई कहती ,अरे इस गली में मेरे कितने देवर भी हैं, लटकाये टहलते रहते हैं, जब कहो तब।"
अस्मा की भाभी नूर जो साथ में थीं वो तो सबसे ज्यादा, अंत में गुड्डी की सहेली ने साफ़ साफ़ बता दिया, इसका कोई है, इसलिए किसी और से तो
नूर भाभी ने हड़काया और बोलीं
"फिर तो मेरी ननद एकदम, अरे बियाह तक इन्तजार करोगी क्या, शुरू कर दो गपगप, गपगप, और वो भी स्साला एकदम बुरबक है, अइसन माल अभी तक छोड़ के रखा है"
आगे की बात मैं बिन बोले समझ गया, अस्मा ने जब अपनी भाभी को इशारा किया गुड्डी की ओर तो नूर ने मेरी ओर इशारा करके बिन बोले यही पूछा
" यही है क्या "
और गुड्डी ने मुझसे चिपक के, मेरे कंधे पे हाथ रख के, मुझे अपनी ओर खींच के, एकदम से इशारे में हामी भर दी
और वो ऊँगली जोड़ के चूत और चुदाई का इशारा, और हलके साथ में गुड्डी को दिखा के गपगप बोलना, मेरे लिए ही थी, मैं मुस्कराने लगा, और फिर गिरते गिरते बचा, एक और मकान टूट रहा था उसकी ईंटे,
गिरने का सवाल ही नहीं था गुड्डी ने इत्ती कस के हाथ पकड़ रखा था।
DB ki pareshani unhe school ke andar ke bare me kuchh pata nahi. School ka naksha pata nahi hai. Rat hone vali hai. STF ke commando operation ke lie redy hai. Nakshe ke lie principal ka intjar ho raha hai, Nagar Nigam adhikari dvara jo naksha mila vo to kisi kam ka hi nahi hai. Upar se 28 rooms me ladkiya kaha hogi. Agar unhe pata chal gaya to plan chopat ho sakta hai. Amezing.गुड्डी का प्लान
जब वो फिर आकर बैठे तो उन्होंने पूछा- “हाँ तो मैं क्या बोल रहा था?”
“तीन…” मैं असल में तीन लड़कियों के नाम के बारे में जानना चाहता था।
लेकिन डी॰बी॰ तो। वो चालू हो गए-
“हाँ तीन बड़ी परेशानिया हैं। कमांडो हमारे तैयार हैं, शाम जहाँ हुई,... लेकिन अब जल्दी करनी पड़ेगी। वैसे शाम तो होने ही वाली है। उस स्पेशल टास्क फोर्स के पहुँचने के पहले।
तो पहली बात। हमें स्कूल के अन्दर का नक्शा एकदम पता नहीं है। हमने स्कूल के मैनेजर, प्रिंसिपल और नगर निगम से प्लान की कापी मंगवाई है। लेकिन बहुत से अनअथराइज्ड काम हो गए हैं और वो नक्शा एकदम बेकार है।
फिर पता नहीं किस कमरे में लड़कियां होंगी? कई फ्लोर हैं कुल 28 कमरे हैं, और अगर जरा भी पता चला उन्हें तो। एलिमेंट आफ सरप्राइज गायब हो जाएगा…”
गुड्डी के लिए इन टेक्नीकल बातों का कोई मतलब नहीं था, वो फिर से बोली- “जी वो तीन लड़कियां…”
डी॰बी॰ ने विनम्रता पूर्वक बात आगे बढ़ाई-
“जी हाँ। मैं भी वही कह रहा था। उन तीन लड़कियों से बात और उलझ गई है।
एक तो वो लोग कहीं बाम्ब न छोड़ दें, फिर अगर कमांडो कायर्वाही में, कई बार स्मोक बाम्ब से ही घबड़ाकर, कुछ अनहोनी हो जाय, कैसा भी कमांडो आपरेशन हो, कुछ तो गड़बड़ होने का चांस रहता है। फिर मिडिया हम लोगों की,ऐसी की तैसी कर देगी, और अब तो नेशनल चैनल वाले भी मैदान में आ गए हैं। और टीवी देख देख के पब्लिक परसेप्शन, और होली सर पे है ।
सी॰एम॰ ने खुद बोला है की टाइम चाहे जितना लगे, लड़कियों को सेफ निकालना है…”
जब तक वो तीसरी बात बताते गुड्डी मैदान में कूद गई-
“मैं प्लान बना सकती हूँ। और रास्ता भी। एक कागज मंगाइए…”
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है आनंद को गुड्डी बनारस की गलियों में घुमा रही हैगली गली होली
लेकिन मेरी निगाह बगल की साइड में चल रही बातचीत पे चल रही थी, सिर्फ इस गली में नहीं हर जगह रास्ते में जगह, जगह बच्चे प्लास्टिक वाली पिचकारी लेकर रस्ते में आने जाने वालों पर पिच पिच कर रहे थे।
और ये हाल हर जगह होता है, घर में माँ होली का सामान, गुझिया, समोसे, दहीबड़े, बनाने में लगी रहती हैं तो बच्चे तंग न करें इसलिये उन्हें बाहर कर दिया जाता है।
साइड में दो लोग, सफ़ेद कुर्ते पाजामे में, शायद मस्जिद से नमाज पढ़ के आ रहे थे, और सफ़ेद कपडे देख कर तो रंग छोड़ने वालों को और जोश आ जाता है तो बच्चों ने उन पे भी,
एक जो थोड़े बड़े थे उस बच्चे को चिढ़ाया,
" अरे मियां, क्या पानी लेकर पिच्च पिच्च, अपनी अम्मी से कह दो थोड़ा रंग वंग भी दिलवा दें, खाली पानी में क्या मजा "
इशारा बच्चे के बहाने अंदर की ओर था और जवाब अंदर से सूद के साथ आया, गुझिया छनने की छनन मनन और चूड़ियों की तेज खनक के साथ
" राजू अपने चच्चू से कह दो दिलवा दें न रंग। का करेंगे सब पैसा बचा के, अब तो कोई बहिनियों नहीं बची है जिसके लिए जहेज का इंतजाम कर रहे हों "
अब बाहर से चच्चू की आवाज अंदर गयी,
" आदाब भाभी "
" तसलीम " के साथ अंदर की खिलखिलाती आवाज ने चिढ़ाया भी बुलाया भी
" सब काम बाहर बाहर से कर लोगे, या अंदर भी आओगे, गरम गरम गुजिया निकाल रही हूँ। "
" नहीं नहीं भाभी, आप रंग डाल देंगी " बाहर से घबड़ाया जवाब गया।
" देखो भाभी हूँ, मेरा हक़ है, वो अंदर आओगे तो पता चलेगा, देखो, डलवाने से डरने से कोई बचता थोड़े ही है। "
हंसी के साथ दावतनामा आया,
और मैं रंग से भीगते भीगे बचा, लेकिन थोड़ा फिर भी,
असल में निशाना गुड्डी ही थीं मैं नहीं। गुड्डी ने जो बोला था था उस मोहल्ले में पन्दरह बीस भाभियाँ, तो उन्ही में से एक, छत पर खड़ी, दूर से उन्होंने गुड्डी को आते देखा होगा और होली का मौसम, ननद सूखी सूखी चली जाये, मोहल्ले से,
लेकिन गुड्डी भी एक तेज, उसने भी देख लिया था तो वो छटक के दूसरी पटरी पे और मैं, बाल्टी के रंग के आलमोस्ट नीचे,
और होली का ये असर सिर्फ इस गली में नहीं,
अब तक हम लोगो ने दस पन्दरह गलियां पार कर ली थी और होली अभी चार पांच दिन दूर थी, लेकिन अभी से होली का असर पसरा पड़ा था।
प्लास्टिक की पिचकारियां लिए बच्चे, कहीं बाहर खड़े, कहीं छत पर से, कोई दिखा नहीं जिसके कपडे रंग से सराबोर न हों और कोई अगर मेरी तरह का ससुराली पकड़ में आ गया, ससुराल खुद की न हो, किसी की हो,
मोहल्ले और गाँव के रिश्ते की भी तो बस, अंदर जो खातिर होती है वो तो ही, बाहर निकलने पर भी सलहजें तैयार रहती हैं बाल्टीलेकर
और आठ दस ऐसी सीन पिछले बीस मिनट में देख चुका था मैं, मुझे नजीर की होली याद आ रही थी,
जब फ़ागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की
लेकिन फिर गुड्डी की कमेंट्री चालु हो गयी बनारस की गलियों पे
सच में इतनी गलियां जगह जगह से निकल रही थीं, वो बोली ये दाएं वाली आगे जा के मुड़ जाती है, थोड़ा आगे जा के बंगाली टोला वाली गली भी इसमने और वहां से एक और मोड़ फिर सीधे घाट पे,
मुझे भी मालूम था जमाने से ढेर सारे बंगाली लोग और उनमे भी बंगाली विडोज यहाँ आके रहती हैं,
फिर एक संकरी सी गली थी, दो लोग साथ साथ नहीं निकल सकते थे , उसकी ओर दिखाते बोली,
मैं तुझसे बोल रही थी नहीं लक्सा वाला मॉल, बस इसी गली से मुश्किल से दस मिनट, लेकिन वहां नहीं चलेंगे अभी, बहुत महंगा है, हाँ तेरा माल आएगा न होली के बाद तो उसे तेरे साथ जरूर ले चलूंगी उस मॉल में, बढ़िया दाम लगेगा उस स्साली का वहां, बाकी तेरे भंडुआगिरी पे है, अपनी बहिनिया से कितना कमाते हो,
तब तक मुझे एक गली दिखी दूसरी ओर जो नयी सड़क के पास खुलती थी,
सामने नयी सड़क, प्राची सिनेमा जो कब का बंद हो चुका था बस उसी के बगल में, सड़क साफ़ दिख रही थी और गुड्डी ने मेरे बिन बोले कहाँ,
" नहीं अब हम लोग गोदौलिया ही चलेंगे, नहीं तो तुम कहोगे, वहां भी गलियों में सस्ते में अच्छा माल मिल जाता है और फिर तुम जो पीछे पोस्टर लगा के घूम रहे हो, और तेरे उस माल की पिक्स भी हैं मेरे पास,... तो तगड़ा डिस्काउंट पक्का
आनंद की बहनिया की बुकिंग के msg आने शुरू हो गए हैं बनारस के londe भी काम नहीं है गुड्डी की नंनद के पास भी ख्वाइशों के msg पहुंच गए पक्का आनंद की बहनिया बनारस वालो से चुदने वाली है गुड्डी भी आनंद के मजे ले रही हैं वह हर msg का रिप्लाई साथ ही उसी msg को रीत को फॉरवर्ड कर रही हैमार्केट और
पहली बुकिंग गुड्डी की होने वाली ननदिया की
और हम लोग गलियों के मकड़ जाल से निकल के में मार्केट में पहुँच गए।
पहुँच तो सच में हम लोग आधे टाइम में गए थे, एक तो सड़क के मुकाबले रस्ता छोटा था, फिर बनारस की ट्रैफिक, लेकिन पैदल और वो भी कोई बात नहीं,
गुड्डी के सामान का का बीस किलो का बोझ लादे लादे और चंदा भाभी ने भी ढेर सारे झोले, पैकेट पकड़ा दिए थे, थकान भी लग रही थी थोड़ा गुस्सा भी,
गुड्डी मेरा हाथ कस के दबा के मुझे चिढ़ाते बोली,
" देख यार मेरा मरद है, मैं उसे चाहे जिस पे चाहे उस को चढ़वाऊं, तुझ से क्या,.... चाहे उस की बहन हो महतारी हो, ...और जो मेरी ननदिया है, मेरी मरजी, मैं चाहे जिस के आगे उस की टांग फैलवाऊं, उसके शलवार का नाड़ा खुलवाऊं "
और वो जोर से मुस्करायी
मेरी सारी थकान और गुस्सा एक मिनट में पिघल गया।मैं एकदम खुश, बीस किलो वजन ढोने का पैसा वसूल, अगर मेरी बहन उसकी ननद और मैं मरद तो वो,
मतलब हाँ
गली-गली हम लोग थोड़ी ही देर में गोदौलिया चौराहे पे पहुँच गये। भीड़, धक्कम धुक्का, जबकी अभी शाम भी नहीं हुई थी। समय तो कम लगा, लेकिन मैं जो नहीं चाहता था वही हुआ।
मेरी शर्ट पे आगे और पीछे, जो “अच्छी अच्छी बातें…” मेरी और मेरी ममेरी बहन के बारे में रीत और गुड्डी ने लिखी थी। एकदम खुले आम दावत देते हुये। सब उसे पढ़ रहे थे और मुझे घूर रहे थे। और कुछ देर बाद मेरे मोबाइल का मेसेज बजा।
था तो वो गुड्डी के बैग मे। लेकिन उसने तुरत फुरत निकाला और मेरी ओर बढ़ाया और बोली- “बधाई हो तेरी ममेरी बहन की पहली बुकिन्ग आ गई…”
उन दुष्टों ने मेरी शर्ट पे मेरे मोबाइल के 9 डिजिट लिख रखे थे और आखिरी नम्बर की जगह ऐस्टेरिक लगा रखा था। पहले तो मैं सोच रह था कि ये सेफ है, कौन दसवां नम्बर ढूँढ़ पायेगा? लेकिन लगता है ये उतना मुश्किल नहीं था। गुड्डी ने जो मेसेज दिखाया, उसमें लिखा था-
“क्या दो के साथ एक फ्री होगा, या कम से कम कुछ डिस्काउंट…”
गुड्डी ने मुझे दिखाते हुये वो मेसेज पहले तो रीत को पास किया और फिर मुझे दिखाते हुये जवाब भेज दिया-
“आपकी पहली बुकिन्ग थी इसलिये स्पेशल डिस्काउंट। तीसरा 50% डिस्काउंट पे। लेकिन पहले दो के साथ। साथ…”
उसने मेरे रोकते-रोकते मेसेज भेज दिया और जब तक मोबाइल मैं उससे लेता वापस उसके पर्स में।
बाद में मैंने नोटिस किया कि वो हर मेसेज के जवाब के साथ-साथ रीत का नम्बर दे रही थी आगे की सेटिन्ग के लिये और मेसेज डिलिट भी कर दे रही थी। यानि कि मैं चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता था। तभी मुझे जोर का झटका जोर से लगा। मेरी ममेरी बहन का तो पूरा नम्बर सालियों ने मेरी शर्ट के पीछे टांक रखा है, तो उस बिचारी के पास तो सीधे ही और वो कितनी लज्जित फील कर रही होगी।
लेकिन ऐसा हुआ कुछ नहीं, मेसेज उसको मिले और एक से एक। लेकिन जैसा उसने गुड्डी से बोला, की उसे खूब मजा आया और उसने भी उसी अन्दाज में उन लोगों को जवाब दिया। कईयों को तो उसने अपनी मेल आई॰डी॰ और फेस बुक पेज के बारे में भी बता दिया। वो समझ गई थी की ये होली का प्रैंक है और उसी स्प्रिट में मजा ले रही थी।
गुड्डी को उसने दिखाया की कईयों ने तो उसे अपने “अंग विशेष…” के फोटो भी भेज दिये थे, कड़े कड़े, खड़े एकदम तन्नाए
एक बार इश्तेमाल करने की गुजारिश के साथ।
असल में वो फोटुयें तो मेरे मोबाइल पे भी आई इस रिक्वेस्ट के साथ कि-
“राजा, अरे तुन्हूं मजा ला,,... तोहरि बहिनियों के मजा देब। एक बार में पूरा सटासट-सटासट। सरसों का तेल लगाकर। तनिको ना दुखायी। मजा जबरदस्त आई…"
और साईज भी एक से एक, लम्बे भी मोटे भी। मैं अपने आपको शेर समझता था लेकिन वो भी मेरे से 20 नहीं तो 19 भी नहीं थे।
खैर, मैं ये कहां कि बात ले बैठा। ये बात तो मेरे घर पहुँचने के बाद के प्रसंग में आनी है।
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है गुड्डी अपनी ननद को पक्का चुदवाकर मानेगी बनारस वालो के मजे होने वाले हैं गुड्डी ने अपनी ननद को हॉट बनाने के लिए हॉट और इंपॉर्टेंट कपड़े खरीद लिए हैं दुकानदार भी पक्का चोदू निकला वही के वही msg भी कर दिया साथ ही फ्री का ऑफर भी दे दियाशॉपिंग और गुड्डी की मस्ती
खैर, हम जब दुकान में घुसे तो गुड्डी जी ने बहुत अहसान करके मेरा मोबाइल मुझे वापस कर दिया।
लेकिन पर्स क्रेडिट कार्ड उसी कि मुट्ठी में, और जब उसने शापिन्ग कि लिस्ट निकाली। उसके हाथ से पर्स तक निकली। मेरी तो रूह कांप गई।
लेकिन मुझे वो कार्ड निकालकर दिखाते हुये बोली- “चिन्ता मत करो बच्चे। मैंने और रीत ने चेक कर लिया था की ये प्लेटीनम कार्ड है, दो लाख तक तो ओवरड्राफ्ट मिलेगा और इसमें भी बैलेन्स काफी है…” वो दुकान ड्रेसेज की थी।
“क्या साइज है?” दूकानदार ने पूछा।
जोबन उभार के गुड्डी बोली- “बस मेरी साइज समझ लीजिये। क्यों?” मुश्कुराकर वो बोली।
लेकिन पुष्टि के लिये उसने मेरी ओर देखा।
दुकानदार कभी गुड्डी की ओर देखता तो कभी मेरी शर्ट पे पेंट, इश्तहार पे।
तब तक गुड्डी ने आर्डर पेश कर दिया, स्लीवलेश टाप, वो भी हो सके तो शियर। एकदम आइटम गर्ल टाईप और एक लो-कट जीन्स। आप समझ गये ना?”
दुकानदार समझ गया शायद और अन्दर चला गया।
लेकिन मेरे समझ में नहीं आया-
“ये किसके लिये ले रही हो, कौन पहनेगा इतना बोल्ड वो भी…”
“तुम्हारे खिचड़ी वाले शहर में है ना…” खिलखिलाती हुई वो बोली-
“और कौन तुम्हारा माल, तुम्हारी ममेरी बहन गुड्डी (रंजीता), अरे यार उसे पटाना चाहते हो, उससे सटाना चाहते हो, तो बाहर से जा रहे हो। होली का मौका है कुछ हाट-हाट गिफ़्ट तो ले जानी चाहिये ना। तभी तो चिड़िया दाना चुगेगी…”
दुकानदार बाहर आया और साथ में कई टाप, सबके सब स्लीवलेश, लो-कट। लाल, गुलाबी, पीला और आलमोस्ट शियर। मेरे तो पैरों के तले जमीन सरक गई। ये कोई भी कैसे?
लेकिन गुड्डी ने तब तक मेरे हाथ में से मोबाइल छीन लिया और एक पिक्चर निकालती हुई दुकानदार को दिखाया। वो बड़ी प्राइवेट सी फोटो थी।
उसने दोनों हाथ एक दूसरे में बाँधकर, सिर के पीछे उभारों को उभार के, मस्ती की अदा में हाट माडल्स की नकल में। मैंने बस मोबाइल से खींच ली। मेरी ममेरी बहन ने मुझसे कहा था की मैं डिलीट कर दूँ लेकिन मैंने बोला की यार मेरे मोबाइल में है कर दूंगा।
बस वो गुड्डी के हाथ और वही पिक्चर।
फिर बोली- “ठीक है लेकिन एक नम्बर छोटा…”
“हे हे। अरे थोड़ा कम हाट, पहनने लायक तो हो…” मैंने दुकानदार से रिक्वेस्ट की।
वो बिचारा फिर अन्दर गया।
गुड्डी ने ठसके से बिना मुड़े मुझे सुनाते हुए बोला-
“पहनेगी वो और उसकी सात पुस्त। और पहनाओगे तुम अपने हाथ से। देखना…”
तब तक मेरे फोन पे एक मेसेज आया। नम्बर फोन बुक में नहीं था। मैंने खोला तो लिखा था-
“अरे पांच के बदले पच्चास लग जाय। बिन चोदे ना छोड़ब चाहे जेहल होय जा। अरे बनारस में आकर जरूर मिलना। हो गुड्डी…”
जब तक मैं ये मेसेज देख ही रहा था वो फिर निकला। अबकी उसने जो टाप दिखाए वो थोड़े कम हाट लेकिन तब भी स्लीवलेश तो थे ही।
“दोनों टाइप के एक-एक दे दीजिये…” गुड्डी बोली। मैं इरादा बदलता उसके पहले गुड्डी ने आर्डर दे दिया।
“हे तू भी तो कोई ले ले…” मैंने गुड्डी को बोला।
वो ना-ना कराती रही पर मैंने उसके लिए भी टाप, कैपरी और एक बहुत ही टाईट लो-कट जीन्स ले ली।
दुकानदार के सामने ही मुझसे बोली- “ये सब तो ठीक है, तेरी वो इसके अन्दर कुछ नहीं पहनेगी क्या? बनारस वालों का तो फायदा हो जाएगा। लेकिन…”
दुकानदार मुश्कुराने लगा और बोला-
“मैं अभी दिखाता हूँ। मेरे पास एक से एक हाट ब्रा पैंटी हैं…” और सचमुच जब उसने निकाली तो हम देखते रह गये। एक से एक। कलर, कट, डिजाइन। विक्टोरिया’स सिक्रेट भी मात खा जाय। जो गुड्डी ने छांटी, कयामत थी।
वो एक तो स्किन कलर को ध्यान से ना देखो तो लगेगा ही नहीं कि अन्दर कुछ पहने हैं की नहीं, और पतली इतनी की निपल का आकार प्रकार सब सामने आ जाय।
लेकिन दुकानदार नहीं माना, और कहा- “मेरी सलाह मानिये तो ये वाली ले जाइये…” और उसने अन्दर से चुनकर एक निकाली।
थी तो वो भी स्किन कलर की लेकिन सिर्फ हाफ कप, अन्डर वायर्ड। और साथ में हल्की सी पैडेड- उभार उभरकर सामने आयेंगे, 30 साल की होगी तो 32 साल की दिखेगी, कप साइज भी एक बडा दिखेगा। क्लीवेज भी पूरा खुलकर…”
अब गुड्डी के लिये सोचने की बात ही नहीं थी। उसने एक पसंद कर लिया और साथ में एक सफेद भी।
मैंने दुकानदार से कहा- “इनके दो सेट दे देना…”
फिर वो पैन्टी ले आया। गुड्डी जब तक चुन रही थी। वो धीरे से आकर बोला-
“साहब। वो जो आखिरी एम॰एम॰एस॰ मिला होगा ना, वो मैंने ही भेजा है…”
मेरा माथा ठनका। तो इसका मतलब- “पान्च के बदले पचास लग जाय, बिन चोदे ना छोड़ब। चाहे जेहल होइ जाय…” वाला मेसेज इन्हीं जनाब का था।
तब तक गुड्डी ने दो थान्गनुमा पैन्टी पसन्द कर ली थी। मैंने फिर उसे दो सेट का इशारा किया।
पैक करते हुये वो बोला- “सही चुना आपने इम्पोर्टेड है…”
“तब तो दाम बहुत होगा?” गुड्डी ने चौंक के पूछा।
“अरे रहने दीजिये आपसे पैसे कौन मांगता है? वो मेरा मतलब है आप लोग तो आयेंगी ना बस ऐड्जस्ट हो जायेगा…”
“मतलब। ऐसा कुछ नहीं है…” मैं उसे रोकते हुये बोला।
लेकिन बीच में गुड्डी बोली-
“अरे भैया आप इनसे पैसा ले लिजिये। होली के बाद जब वो आयेगी ना तो आपके पास लेकर आयेंगे और फिर हम दोनों मिलकर आपकी दुकान लूट लेंगें…”
गुड्डी की कातिल अदा और मुश्कान कत्ल करने के लिये काफी थी।
जब हम बाहर निकले तो हमारे दोनों हाथ में शापिन्ग बैग और गुड्डी पर्स निकालकर पैसे गिन-गिन के रख रही थी। गुड्डी ने जोड़कर बताया। 40% ड्रेसेज पे और 48% बिकनी टाप पे छूट, कुल मिलाकर 42% छूट।
फिर नाराज होकर मेरी ओर देखकर बोली-
“तुम भी ना बेकार में इमोशनल हो जाते हो। अगर वो फ्री में दे रहा था तो ले लेते। बाद की बात किसने देखी है? कौन वो तुम्हारे ऊपर मुकदमा करता? और फिर मान लो, तुम्हारी वो ममेरी बहन दे ही देती तो कौन सा घिस जायेगा उसका? फिर इसी बहाने जान पहचान बढ़ती है। अब आगे किसी और दुकान पे टेसुये बहाये ना तो समझ लेना। तड़पा दूंगी। बस अपने से 61-62 करते रहना। बल्की वो भी नहीं कर सकते हो। मैंने तुमसे कसम ले ली है की अपना हाथ इश्तेमाल मत करना…”
और उसके बाद जिस अदा से उसने मुश्कुराकर तिरछी नजर से मुझे देखा, मैं बस बेहोश नहीं हुआ।
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उसके बाद एक बाद दूसरी दुकान।
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट हैफागुन के दिन चार भाग २४
मस्ती गुड्डी की -मजे शॉपिंग के
3,33,214==
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फिर वो पैन्टी ले आया। गुड्डी जब तक चुन रही थी। वो धीरे से आकर बोला- “साहब। वो जो आखिरी एम॰एम॰एस॰ मिला होगा ना, वो मैंने ही भेजा है…”
मेरा माथा ठनका। तो इसका मतलब- “पान्च के बदले पचास लग जाय, बिन चोदे ना छोड़ब। चाहे जेहल होइ जाय…” वाला मेसेज इन्हीं जनाब का था।
तब तक गुड्डी ने दो थान्गनुमा पैन्टी पसन्द कर ली थी।
मैंने फिर उसे दो सेट का इशारा किया।
पैक करते हुये वो बोला- “सही चुना आपने इम्पोर्टेड है…”
“तब तो दाम बहुत होगा?” गुड्डी ने चौंक के पूछा।
“अरे रहने दीजिये आपसे पैसे कौन मांगता है? वो मेरा मतलब है आप लोग तो आयेंगी ना बस ऐड्जस्ट हो जायेगा…”
“मतलब। ऐसा कुछ नहीं है…” मैं उसे रोकते हुये बोला।
लेकिन बीच में गुड्डी बोली-
“अरे भैया आप इनसे पैसा ले लिजिये। होली के बाद जब वो आयेगी ना,.... तो आपके पास लेकर आयेंगे और फिर हम दोनों मिलकर आपकी दुकान लूट लेंगें…”
गुड्डी की कातिल अदा और मुश्कान कत्ल करने के लिये काफी थी।
जब हम बाहर निकले तो हमारे दोनों हाथ में शापिन्ग बैग और गुड्डी पर्स निकालकर पैसे गिन-गिन के रख रही थी।
गुड्डी ने जोड़कर बताया। 40% ड्रेसेज पे और 48% बिकनी टाप पे छूट, कुल मिलाकर 42% छूट। फिर नाराज होकर मेरी ओर देखकर बोली-
“तुम भी ना बेकार में इमोशनल हो जाते हो। अगर वो फ्री में दे रहा था तो ले लेते। बाद की बात किसने देखी है? कौन वो तुम्हारे ऊपर मुकदमा करता?
और फिर मान लो, तुम्हारी वो ममेरी बहन दे ही देती तो कौन सा घिस जायेगा उसका? फिर इसी बहाने जान पहचान बढ़ती है। अब आगे किसी और दुकान पे टेसुये बहाये ना तो समझ लेना। तड़पा दूंगी। बस अपने से 61-62 करते रहना। बल्की वो भी नहीं कर सकते हो। मैंने तुमसे कसम ले ली है की अपना हाथ इश्तेमाल मत करना…”
और उसके बाद जिस अदा से उसने मुश्कुराकर तिरछी नजर से मुझे देखा, मैं बस बेहोश नहीं हुआ।
उसके बाद एक बाद दूसरी दुकान। अल्लम गल्लम।
हाँ दो बातें थी। एक तो ये की पहली गलती मेरी थी।
मैंने ही तो कल शाम उसे बोला था कि उसको यहां से निकलकर शापिंग पे जाना है।
और दूसरी।
वो अपने लिये कुछ भी नहीं खरीद रही थी। मेरे बहुत जोर करने पर ही कभी कभी। एक जगह कहीं डेकोरेटिव कैन्डल्स मिल रही थी। सबसे बड़ी एक फुट की रही होगी। बस उसने वो तो खरीद ली आधी दर्जन,
9…” इन्च वाली भी,… जो ज्यादा ही मोटी थी।
साडियां,
अपनी भाभी के लिये तो मैं पहले से ही ले आया था। लेकिन मैंने उसे बता दिया कि मेरे यहां एक पहले काम करता था, उसकी बीबी आज कल रहती थी और उमर में मुझसे एक-दो साल ही बड़ी होगी। इसलिये रिश्ता वो भौजाई वाला ही जोड़ती थी, दीर्घ नितंबा, उन्नत उरोज, उम्र में भाभी से दो चार साल बड़ी होंगी और मजाक में सिर्फ खुलकर बोलना, कोई लिमिट नहीं, पति बाहर था और घर का सब काम काज उन्ही के जिम्मे, रिश्ता एकदम देवर भाभी वाला ही, जो मजाक करने में भाभी झिझकती थीं, उन्हें आगे कर देती थीं तो उनके लिए
साड़ी उसके साथ ब्लाउज़।
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है आनंद को चंदा भाभी और संध्या भाभी को चोदने में शर्म नहीं आई लेकिन दुकान पर कंडोम मांगने में शर्म आ रही थी बनारस में स्कूल वाली लड़कियां दुकान पे कंडोम मांग रही हैं और हमारे हीरो नई नवेली दुल्हन की तरह शर्मा रहे हैं अभी तक पूरे बनारस वाले नहीं हुए हैंकन्डोम
एक दुकान पे तो हद हो गई।
पहले उसने अपनी लिस्ट से वैसलीन की दो शीशी खरीदी, फिर मुझसे कहने लगी कि दो पैकेट कन्डोम के ले लो, दरजन वाले पैकेट लेना।
लेकिन मैं हिचक रहा था। एक तो दुकान पे सारी लड़कियां शापिंग कर रही थी और दूसरे एक को छोड़कर बाकी सारी सेल्सगर्ल्स थीं।
“क्यों कल तुमने आई-पिल खरीदी तो थी, इश्तेमाल के बाद वाली। वो क्या करोगी? और फिर तुमने तो प्रापर पिल भी ली है…”
फुसफुसाते हुये मैंने गुड्डी से कहा।
वहीं दुकान पे मेरे कान पकड़ती हुई वो बोली-
“तुमको मैं ऐसे ही बुद्धू नहीं कहती। अरे मैं तुम चाहोगे तो भी नहीं लगाने दूंगी। जब तक चमड़े से चमड़ा ना रगड़े। क्या मजा? मेरा तो छोड़ो, तुम्हारे उस माल से भी। लेकिन इश्तेमाल के बारे में बाद में सोचना। पहले जो कह रही हूँ वो करो…”
मरता क्या ना करता, मैं काउंटर पे गया।
एक सेल्सगर्ल थी, थोड़ी डस्की, लेकिन बहुत ही तीखे नाक नक्श, गाढ़ी लिपस्टिक, हल्का सा काजल, उभार टाइट टाप में छलक रहे थे, कम से कम 34सी रहे होंगे, टाप और लांग स्कर्ट।
“व्हाट कैन आई डू फार यू…” टाईट टाप में बोली।
मैं पहले तो थोड़ा हकलाया, फिर अपने सारे अंग्रेजी नालेज का इश्तेमाल करके हिम्मत करके बोला- “आई वांट सम सम,… सम,… कन्ट्रासेप्टिव…”
“ओके। देयर आर मेनी टाईप्स आफ कन्ट्रसेप्टिव्स। पिल्स, जेली, एन्ड सो मेनी टाइप्स वी हैव। आपको क्या चाहिये?” डार्क लिपस्टिक बोली।
“जी,… जी। वो। उधर जो रखा है…” मैंने उंगली से रैक में रखे कन्डोम्स के पैकेट की ओर इशारा किया।
मैंने हकलाते हुए बोला, मेरी हालत खराब हो रही थी कभी उस लड़की को देखता तो कभी गुड्डी को, जिसे एकदम कुछ फरक नहीं पड़ रहा था। वो दूकान पर रखे बाकी सामान को ऐसे देख रही थी, जैसे मुझे जानती तक न हो। मैं बस यही मना रहा था की और कोई न आ जाये दूकान पे।
वो वहां गई और उस काउंटर के पास खड़ी होकर, एक बार मुझे देखा और कन्डोम के पैकेट के ठीक ऊपर एक स्प्रे रखा था उसे उठा लायी और मुझसे बोली-
“यू वांट दिस। ये बहुत अच्छा है। नाईस च्वाय्स। इट विल डिले बाई ऐट-लीस्ट सेवेन-एट मिनटस मोर। दो सौ अड्सठ रूपये…”
और मेरे हाथ में पकड़ा दिया।
पीछे से गुड्डी मुझे कोन्च रही थी- “अरे साफ-साफ बोलो ना। कन्डोम…”
टाईट टाप अभी भी मेरे सामने खड़ी थी।
मेरे अगल-बगल खड़ी लड़कियां मुँह दबाकर मुश्कुरा रही थी। मैं झेंप रहा था। लेकिन अब उसे मना कैसे करता, उस स्प्रे को मैंने पकड़ लिया, नाम पढ़ा और ध्यान से देखा जैसे किसी एक्सपर्ट की तरह एक्सपाइरी डेट और कम्पोजिशन देख रहा हूँ, बस मन कर रहा था गुड्डी उसे पे करे और हम लोग निकल लें।
काउंटर वाली बड़े ध्यान से मुझे देख रही थी.
टाईट टाप ने फिर पूछा- “कुछ और। ऐनीथिंग मोर?”
“यस। यस सेम रेक, जस्ट बिलो…”
वो फिर वहीं जाकर खड़ी हो गई- “हाँ बोलिये। क्या?”
बड़ी हिम्मत जुटाकर मैं बहुत धीमे से बोला- “कन्डोम। कन्डोम…”
“कांट लिसेन। थोड़ा जोर से…” वो बोली।
पीछे से गुड्डी ने घुड़का- “अरे जोर से बोल ना यार…” तब तक दो-चार स्कूल की लड़कियां और आकर दुकान में खड़ी हो गई थी।
अब मेरी हालत और खराब हो गयी, कैसे उन लड़कियों के सामने बोलूं। क्या सोचेंगी सब, ये गुड्डी भी न, जबरदस्ती , मेरा तो बस चलता मैं दूकान से निकल जाता लेकिन गुड्डी जिस तरह देख रही थी, वो भी हिम्मत नहीं पड़ रही थी।
उधर वो टाइट टॉप मेरी हालत समझ के जहाँ कंडोम रखे थे, वहीँ खड़ी थी, उसकी निगाहें मुझे चिढ़ा रही थी, कभी मुझे देखती कभी गुड्डी को।
वो स्कूल की लड़कियां भी हम सब को देख रही थीं।
“कन्डोम। आई मीन कन्डोम। कन्डोम…” हिम्मत जुटाकर थोड़ा जोर से मैं बोला।
“यस आई नो व्हाट यू मीन…” वो मुश्कुराकर बोली।
एक-दो और सेल्सगर्ल उसके बगल में आकर खड़ी हो गई थी-
“लेकिन कैसा। डाटेड, या एक्स्ट्रा लुब्रिकेटेड, या अल्ट्रा थिन। फ्लेवर्ड भी हैं स्ट्राबेरी, बनाना…”
अब वह टाइट टॉप मेरी मज़बूरी समझ के और खिंचाई कर रही थी।
मैंने कभी नहीं सोचा था की कंडोम ऐसी चीजे में भी इतनी कॉम्प्लिकेशन, तबतक मजे ले के जैसे उस टाइट टॉप के बगल की दूसरी काउंटर गर्ल ने पूछा और साइज
अब मेरी हालत और खराब हो गयी, मतलब किस चीज की साइज,... लेकिन टाइट टॉप वाली ने मामला साफ़ किया
मतलब पैकेट में कितने ३ या ५ या एक दर्जन
मुसीबत में मुझे बचाने और कौन आता, गुड्डी। तो बस वो आगे आ गयी।
लेकिन बिना मुझे बोलने का मौका दिये अब गुड्डी सामने आ गई और बोली- “दो लार्ज पैकेट, डाटेड, अल्ट्रा थिन…”
उसने निकालकर दे दिये लेकिन फिर मुझसे बोली- “मेरी ऐड़वाइस है। वी हैव सम विद ईडिबिल फ्लेवर्स। इम्पोर्टेड हैं, अभी-अभी आये हैं…”
मैं उसको मना नहीं कर सकता था या शायद मेरा मन कर रहाथा या बस मैं किसी तरह दुकान से निकलना चाहता था- “हाँ…” झटके से मैंने बोल दिया।
“एक और चीज है हमारे पास। सुडौल। फोर यंग ग्रोइंग गर्ल्स। बहुत बढ़िया और शेपली डेवलपमेंट होता है। इसमें एक होली आफर भी है। ब्रेस्ट मसाजर है 80% डिस्काउंट पे, साथ में। हफ्ते भर में वन कैन फील द डिफरेन्स…”
स्कूल की लड़कियां जो आई थी उनमें से एक वही खरीद रही थी।
“ठीक है। ओके…” मैं बोला।
गुड्डी ने उसे कार्ड पकड़ा दिया।
सब सामान लेकर जब हम बाहर आये तो गुड्डी हँसते हुये दुहरी हो रही थी। वो रुकती, फिर खिलखिलाने लगती- “कन्डोम बोल तो पा नहीं रहे थे। करोगे क्या? तुम भी ना यार। और वो। तुमको पूरी दुकान बेच देती लेकिन तुम कन्डोम नहीं बोल पाते…”
और कस के उसने मेरी पीठ पे एक मुक्का मारा।
बिना उसके बोले मैं अगली मेडिकल की एक दूकान में घुस गया और मूव की एक बड़ी ट्यूब,
लेकिन मेरी किश्मत,… एक और दुकान दिख गई और वो उसमें घुस गई।
जब वो निकली तो फिर एक बैग मेरे हाथ में, मेरी पूछने की हिम्मत नहीं थी कि इसमें क्या है? 11 बैग मैं उठाये हुये था।
“अगर तुम कहो तो। अब हम लोग रिक्शा कर लें। और कुछ तो नहीं…” मैंने थककर पूछा।
“नहीं,,,,, अभी याद नहीं आ रहा है…” लिस्ट चेक करते हुये वो बोली- “और फिर याद आ जायेगा तो तुम्हारे मायके जाने के पहले एक राउंड और कर लेंगे…”
खैर, हम रिक्शे पे बैठ गये और रेस्टहाउस के लिये चल दिये।
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है पहली बार आनंद ने नहले पर दहला मारा है अब तक गुड्डी ही मजे ले रही थी और आनंद की बोलती बंद थी लेकिन पहली बार आनंद ने गुड्डी की बोलती बंद कर दी हमारे हीरो भी नई नई किताब लेकर गुड्डी को दे रहे थेहोली में ममेरी बहन को,...- सस्ता साहित्य
स्टेशन के कुछ दूर पहले मुझे एक ठेले पे किताब की दुकान दिखायी पड़ी, और मुझे बहुत कुछ याद आ गया- “रोको रोको…” मैंने रिक्शे वाले को बोला और उतर पड़ा।
गुड्डी भी मेरे साथ उतर पड़ी।
मैंने उसे समझाने की कोशिश की…” रुको ना मैं जरा एक-दो किताब लेकर आता हूँ…”
“क्यों मैं भी चलती हूँ ना साथ…” गुड्डी तो गुड्डी थी।
लेकिन दुकान पर पहुँचकर अब झेंपने की बारी उसकी थी।
ये दुकान पहलवान की थी जहां से मैंने मस्तराम साहित्य का अध्ययन प्रारम्भ किया था। सचित्र कोक शास्त्र, देवर भाभी की कहानियां, बसन्त प्रकाशन की मैगजीन से लेकर मस्तराम की भांग की पकौड़ी और बाकी सब कुछ।
“का हो पहलवान कैसे हऊवा?” पुरानी यादों को ताजा करते हुये मैंने पूछा।
पहलवान तुरंत पहचान गया- “अरे भईया। बहुत दिन बाद। सुनले रहली कि कतों बड़की सरकारी नौकरी…”
मैं- “अरे ठीक हौ। हाँ ई बतावा की। कुछ हो…”
पहलवान- “अरे हौ काहें नाहीं आपके खातिर हम कबौ। लेकिन…” कहकर उसने गुड्डी की ओर देखा।
गुड्डी कुछ समझ रही थी, कुछ झेंप रही थी। मेरा हाथ गुड्डी के कंधे पे पहुँच गया और मैंने उसे अपनी ओर खींच लिया।
मेरी उंगलियां अब उसके उभारों तक पहुँच रही थी। ये पोज ही हम लोगों के रिश्तों को बताने के लिये काफी था। बची खुची बात। मेरी बात ने कह दी-
“देखावा ना इहौ देखिहें। अरे हम लोगन का ऐसे हौ। कौनो। छिपावे की…”
पहलवान ने अन्दर से अपना झोला निकाल लिया। इसी में उसका खजाना रहता था। उसने निकालकर एक किताब दिखायी। भांग की पकौड़ी-भाग दो, स्पेशल एडीशन।
मैंने किताब लेकर गुड्डी के हाथ में पकड़ा दी और बीच का एक पन्ना खोल दिया।
गुड्डी ने पढ़ने की शुरूआत की-
“हाँ और जोर से चोदो जीजू। ओह्ह… आह्ह…” और झेंप गई।
उसने पर्स मुझे पकड़ा दिया, और कहा- “मैं चलती हूँ रिक्शे पे सामान रखा है। तुम ले आओ किताब…”
पर्स तो मैंने पकड़ लिया लेकिन साथ में उसका हाथ भी- “रुको ना बस दो मिनट। बोलो ना कैसी है किताब पसंद आई तो ले लें?”
“मैं क्या बोलूं जैसा तुम्हें लगे?” गुड्डी जबरदस्त झेंप रही थी।
“अरे भैईया, फोटुवे वाली हौ। देयीं…” पहलवान ने झोले से एक रंगीन किताब निकालते हुये कहा।
“हाँ हाँ दा ना…”
और मैंने किताब लेकर फिर गुड्डी के सामने ही पन्ना खोल दिया। बहुत अच्छी प्रिंटिंग थी। जो पन्ना खुला उसमें थ्री-सम था दो लड़के एक लड़की।
एक आगे से एक पीछे से।
गुड्डी ने अपनी निगाह दूसरी ओर कर ली थी। लेकिन मैं देख रहा था की तिरछी निगाह से उसकी आँखें वहीं गड़ी थी।
“होली का कौनो ना हौ। खास बनारसी…” मैंने फिर पूछा।
गुड्डी कहीं और देखने का नाटक कर रही थी। लेकिन कान उसके हम लोगों की बात से चिपके थे।
“हौ ना। अरे अन्धरा पुल वाले दूठे मैगजीन हौ, होली के स्पेशल आजै आइल हो…”
और उसने निकालकर आजाद लोक और अंगड़ाई की दो कापी पकड़ा दी।
एक-दो और पुरानी मस्तराम एक अन्ग्रेजी की ह्यूमन डाईजेस्ट और मैंने ले ली। रिक्शे तक पहुँचने तक गुड्डी ने वो किताबें छुई भी नहीं।
लेकिन रिक्शे में बैठते ही उसने सारी मेरे हाथ से झपट ली। अब मुझे भी मौका मिल गया, उसे कसकर पकड़कर अपनी ओर खींचने का। साथ-साथ किताब देखने के बहाने।
उसने आजाद लोक होली अंक खोल रखा था। होली के जोगीड़े थे, गाने थे और टाईटिलें थी और साथ में होली के पाठक पाठिकाओं के संस्मरण, जीजा साली की होली। होली में देवर के संग किसी सोनी भाभी ने लिखा था।
पन्ने पलटते गुड्डी एक पन्ने पे रुक गई और जोर से मुझसे बोली-
“हे ये तुम्हारी कहानी किसने लिख दी। कहीं तुम्हीं ने तो नहीं?”
मैंने देखा। संस्मरण था होली का। हेडिन्ग थी- “होली में ममेरी बहन को चोदा…”
सच में, नाम भी वही था, संगीता, और क्लास भी वही ११ वी में पढ़ने वाली,
और अब गुड्डी को मौका मिल गया, वो बिना तेल लगाए चढ़ गयी,
" देखो, पढ़ो और सीखो, पढ़ने लिखने से फायदा क्या, एक ये है, अरे अबकी होली में बचनी नहीं चाहिए, वो तो खुदे गर्मायी है, हाथ में ले के टहल रही है, और अब तो दूबे भाभी से तूने वायदा भी कर दिया है और जिम्मेदारी मेरे ऊपर की अपने सामने, "
मुझे लग रहा था, रिक्शे वाला सुन रहा होगा और जितना मैं झेप रहा था उतना वो और, ....वैसे बात गुड्डी की गलत नहीं थी। थी तो मेरी बहन गुड्डी की ही उम्र की, उसी की क्लास की, और आज रात मैं गुड्डी के साथ तो फिर उसके साथ में क्या, और गूंजा तो नौंवे में। और जिस तरह से बनारस में
गनीमत थी रिक्शे वाले ने रास्ता पूछा और मुझे बात बदलने का मौका मिल गया
हम लोग रेस्टहाउस पहुँच गये थे। कमरे में घुसते ही मैं बेड पे गिर पड़ा। बगल में 11 बैग शापिन्ग के और गुड्डी का सामान। गुड्डी ने पहले तो रेस्टहाउस के कमरे का दरवाजा, खिडकियां सब बंद की, फिर सारे बैग, अपना सामान पलंग से हटाया। फिर मेरे बगल में बैठकर बोली- “थक गये क्या?”
मैं कुछ नहीं बोला।