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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग २८ - आतंकी हमले की आशंका पृष्ठ ३३५

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Sanju@

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रेस्टहाउस- मसाज गुड्डी पेसल
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“अल्ले अल्ले मुन्ना मेरा। अभी। बस अभी तुम्हारी सब थकान दूर करती हूँ। एक मिनट। लेकिन ये पहले कपड़े तो उतार दो…”

और मेरे लेटे-लेटे ही उसने मेरी शर्ट उतारकर बिस्तर के नीचे फेंक दी।

पहले तो उसने मेरे चेहरे पे हाथ फिराया और धीरे से बोली-

“तुम हिलना मत बस लेटे रहो। अच्छे बच्चे की तरह मुन्ना मेरा। गुड गुड…”

फिर उसकी उंगलियों ने बड़े से बड़े स्पा वाले मात खा जायें।

पहले कंधे पे फिर गले के पीछे। पहले उंगलियों के पोरों से फिर हल्के-हल्के दोनों हाथों से फिर जोर से और वहां से सरक के मेरे हाथों की मांसपेशियों पे,… मुट्ठी से दबाते। छोटी-छोटी मुक्की से मारते। उसकी उंगलियां मेरी सारी थकान पी गईं।

लेकिन वो रुकी नहीं।

उसने मुझे साईड में किया और फिर कन्धे के नीचे कि मसल्स दोनों हाथों से जोर-जोर से मसाज करते हुये बैक बोन के साथ-साथ।

मेरी आँखें बंद हो गईं लगा सो जाऊँगा। करीब सारी रात चन्दा भाभी के साथ और सुबह से होली।

उसने मुझे फिर पीठ के बल लिटा दिया और पैंट के बटन खोलकर चूतड़ उठाकर पैंट अपने हाथों से नीचे सरका दी और एक झटके में नीचे उतारकर फेंक दी।



मुझे लगा अब गुड्डी कुछ शरारत करेगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।



उसने मेरे एक पैर को ऊपर उठाया, पैर के पंजे को हल्के-हल्के अपने हाथ से दबाने लगी। दर्द अपने आप घुलने लगा।



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लेकिन फिर उसने वो किया जो मैं सोच भी नहीं सकता था। वो पलथी मारकर मेरे पैरों के पास बैठी थी।

उसने दोनों पैरों के तलवे अपने उभारों के ऊपर रख लिये और हल्के-हल्के उरोजों से ही दबाने लगी। फिर उसके होंठों ने एक किस मेरे पैर के अंगूठे पे लिया फिर बाकी उंगलियों पे, साथ-साथ उसकी उंगलियां मेरे टखनों को फिर घुटने और पंजों के बीच दबा रही थी।
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होंठ अब मेरे पैर के अंगूठे को कस-कसकर चूस रहे थे, किस कर रही थी।

फिर जुबान मेरे पूरे तलवे पे। और उंगलियां अब तक जांघों पे आ चुकी थीं। झुक के उसने ढेर सारी किस मेरे पंजों से लेकर जांघों तक ली और फिर मुझे पेट के बल लिटा दिया।



मेरे जंगबहादुर कुछ कुनमुनाने लगे थे।

गुड्डी ने उसे जांघ के नीचे दबा दिया।

अब गुड्डी के हाथ सीधे मेरे नितम्बों पे, वो उन्हें दबा रही थी, मीस रही थी, जैसे कोई आटा गूंधे, मुट्ठी बांधकर उससे दबा रही थी। मेरी सारी थकान काफूर हो चुकी थी।



उसने दोनों हाथों से मेरे नितम्बों को फैलाया और देर तक पूरी ताकत से फैलाये रही।

फिर अपनी मंझली उंगली को मेरे गुदा द्वार के छेद पे ले जाकर कसकर दो-तीन मिनट तक रगड़ा, और बोली-

“एक बार बच गये बार-बार नहीं बचोगे…”



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और फिर मुझे सीधा करते हुये बोली-

“आराम मिल गया ना,… जाकर नहाओ तैयार हो। शाम के पहले हम लोगों को निकल जाना है…”



“हे मेरे कपड़े…” बाथरूम में घुसते-घुसते मुझे याद आया।



“अरे निकालती हूँ यार। नंगे नहीं ले चलूँगी, तेरे मायके…” वो बोली।
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है पहले गधे की तरह काम करवाया फिर घर आकर ऐसी मालिश की की पूरी थकान ही मिट गई ऐसी जान पे तो मारी जाव
 
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Sanju@

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मस्ती शावर में
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मैंने शावर खोला। लेकिन बहुत जोर से आ रही, थी इसलिये पहले मैं नम्बर एक के लिये खड़ा हो गया। शुरू भी नहीं हुआ था की गुड्डी धड़धड़ाते हुये घुसी।

मैं- “हे मैं सूसू कर रहा था। तुम नाक तो कर देती…”

“भूल जाओ कि मैं तुम्हारे पास नाक करके आऊँगी। मेरी मर्जी। जब आऊं, जैसे आऊं?”

और उसने मुझे पीछे से पकड़ लिया।

उसके तने उभरे हुये उरोज मेरी पीठ में रगड़ रहे थे। दोनों हाथों से उसने मेरे सीने को पकड़ लिया और हल्के से मेरे टिटस को सहलाने लगी। फिर एक टिट को कसकर पिंच कर दिया और अपनी जीभ की नोक मेरे कान में डालकर सुरसुरी करने लगी। उसका एक हाथ मेरे लण्ड के बेस पे चला गया।

उसे दबाते हुये बोली-

“अरे राज्जा करो ना सूसू। जी भरकर करो। इसके खिलाफ कोई कानून तो है नहीं और ना अभी तक कोई टैक्स लगा है। मुझसे शर्माता है मुन्ना। अरे एक दिन तो तुझे अपने हाथ से। …”

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ये कहते हुये उसने मेरे बाल्स को हल्के से दबाया, गाल पे काट लिया।

“हे नहला भी दो ना…” मैंने आवाज लगायी।

बाहर से उसने आवाज लगायी-

“घबड़ाओ मत एक दिन नहलाऊँगी भी, धुलाऊँगी भी, और सूसू भी करा दूंगी। लेकिन आज अभी जल्दी भी है और मेरी। तुम्हें बताया तो था…”
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मुझे याद आ गया की उसकी सहेली की तो विदायी हो गई है लेकिन 5-6 घंटे तक वहां “अनटचेबल…” है।

नहाने के पहले मैंने नल खोलकर सिर नीचे कर दिया। मेरा गेस सही निकला। जब रीत ने चलते चलाते, एक रास्ते के लिये कहकर गुलाबी रंग से स्नान करा दिया था, उसी समय मेरे सिर में ढेर सारा सूखा रंग भी डाल दिया था और अब वो धुलकर बह रहा था।



गूड्डी बाथरूम में शैम्पू और साबुन रखने के लिये आई थी। जमकर नहाने के बाद रंग तो कुछ कम हुआ ही थकान भी उतर गई। तौलिया तो था नहीं। अन्दर से मैं चिल्लाया-

“तौलिया प्लीज…”

“अरे जानू। बाहर आ जाओ, रगड़ भी दूंगी। पोंछ भी दूंगी…” गुड्डी ने जवाब दिया।

कोई चारा था क्या? मैं वैसे ही बाहर आया, क्या करता।

कमरा पहचाना नहीं जा रहा था। सारा सामान अंदर। मेरा और गुड्डी का सामान करीने से लगा, मेरी शर्ट पैंट बेड पे रखी और गुड्डी के हाथ में तौलिया-

“क्या टुकुर टुकूर देख रहे हो…”

वो आँख नचाकर बोली और अपने हाथ से मुझे पोंछने लगी।


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मैं डर रहा था की वो कोई शरारत न करे? लेकिन उसने धीरे-धीरे पहले आराम से मेरे बाल, फिर बाकी देह पोंछी। लेकिन शरारत शुरू हुई जब तौलिया पीछे पहुँची। कस-कसकर उसने मेरे नितम्ब रगड़-रगड़कर साफ किये, सबसे ज्यादा रंग वहीं लगा था और सबसे कम वहीं छूटा। उंगली में तौलिये का एक कोना लपेटकर उसने पहले तो मेरे चूतड़ फैलाये फिर सीधे गाण्ड में-

“देखूं यहां साफ वाफ किया है कि नहीं?”


वहां वो थोड़ी सी उंगली अंदर डालती, फिर गोल-गोल घुमाती, फिर थोड़ा और अन्दर, दो मिनट तक। एक पोर से ज्यादा ही अन्दर तक और उसका दो असर हुआ। मैं सिसकी के साथ उसे मना कर रहा था लेकिन वो मानती तो गुड्डी कहां से होती?

और दूसरा।

मेरा जंगबहादुर सीधे 90° डिग्री पे।

और गुड्डी ने तौलिये में लिपटी उंगली मुझे निकालकर दिखाया, सफेद तौलिया। लाल काही हो गया था। मैंने सोचा भी नहीं था की वहां भी सूखा रंग।

गुड्डी को मालूम था,… इसलिये की वो सूखा रंग डाला भी उसी ने तो था, जब भाभियों ने मुझे निहुरा रखा था उसी समय। चंदा भाभी ने मेरी गाण्ड फैलायी थी और गुड्डी ने पूरा मुट्ठी भर रंग अंदर तक।


पैर सुखाने के लिये वो अपने घुटनों के बल बैठ गई थी।



पहले तौलिया से उसने पैर सुखाये और फिर एक छोटी सी तौलिया से मेरे कनकनाये, तन्नाये जंगबहादुर पे हाथ लगाया।

गुड्डी उसे हल्के-हल्के रगड़ भी रही थी और कुछ बोल भी रही थी, और अब सीधे उसकी किशोर उंगलियां, मेरे लण्ड को सहला रही थी, दबा रही थी। मोटा बड़ा सा, गुस्साया, लीची ऐसा सुपाड़ा पूरी तरह खुला।
बहुत ही कामुक गरमागरम अपडेट है आनंद बाबू को फिर से बीच मझधार में छोड़ दिया
 
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Sanju@

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गुड्डी की लिप सर्विस
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मैंने ध्यान दिया तो वो बोल रही थी-

“बहुत इंतजार कराया तुमको ना। अब मैं देखती हूँ…”

मैं- “हे क्या बोल रही हो मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है…”

वो बड़ी-बड़ी आँखें उठाकर बोली-

“हे तुमसे नहीं इससे बात कर रही हूँ। तुम चुप रहो…”

और अपने होंठों पे उंगली से शान्त रहने का इशारा किया और फिर सिर झुका के चालू हो गई। पहले तो उसने खुले सुपाड़े पे एक-दो किस लिये। और फिर बोलने लगी-

“बहुत तड़पाया है ना तुमको इसने? लेकिन अब देखो तुम्हें क्या-क्या मजे कराती हूँ, ....किस-किस जगह की सैर कराती हूँ? संकरी सुरंग की, गोलकुंडा के गोल दरवाजे की, भरतपुर के स्टेशन की, ऊपर-नीचे, आगे-पीछे के सब दरवाजे खुलवा दूंगी तेरे लिये। चाहे डुबकी लगाना चाहे गोते खाना। तुम्हारी मर्जी…”


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और गुड्डी की लम्बी रसीली गुलाबी जीभ, सीधे लण्ड के बेस से आगे तक लपर-लपर चाटने लगी।

चाटते-चाटते वो मेरे कभी एक तो कभी दूसरे बाल्स को अपने होंठों के बीच दबाकर चूसने भी लगती।
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मेरी हालत खराब होने लगी थी। आँखें बंद हो गई थी, कमर अपने आप धीमे-धीमे आगे-पीछे होने लगी थी।

गुड्डी के एक हाथ ने मेरे लण्ड के बेस को दबा रखा था और दूसरा मेरी बाल्स को सहला रहा था, दबा रहा था।

कभी-कभी वो बाल्स और पिछवाड़े वाली जगह के बीच सुरसुरी भी कर रही थी। अपने लम्बे नाखून से वहां वो खरोंच देती। लण्ड पत्थर की तरह कड़ा हो गया था। बस मन कर रहा था की वो कुछ करके उसे रिलीज करा दे।

गुड्डी ने फिर अपनी जीभ पूरी बाहर निकाली और जुबान की टिप से मेरे सुपाड़े के छेद को, पी-होल को, जस्ट एक हल्के से छेड़ दिया। लगा जैसे 440 वोल्ट का झटका लगा हो। उसने एक पल के लिये जीभ हटा ली और फिर दुबारा अबकी वो सुपाड़े के होल में टिप डालकर घुमा रही थी।
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मेरी मजे से जान निकल रही थी।

उसने जैसे कोई लालची लड़की लालीपाप चाटे, बस उसी तरह लण्ड के अगले हिस्से पे चपड़ चपड़ फ्लिक करना शुरू कर दिया। कभी वो सुपाड़े के चारों ओर जुबान घुमाती तो कभी सिर्फ नीचे चाटती और अचानक एक बार में ही गप्प से उसने पूरा सुपाड़ा गपक लिया और चूसने चुभलाने लगी। मेरी पूरी कोशिश के बावजुद वो और अन्दर नहीं घुसेड़ने दे रही थी। सुपाड़ा खुशी से और फूल के कुप्पा हो गया। कुछ देर बाद उसने मुँह से उसे बाहर निकाल लिया।

और फिर एक बार उसके पी-होल पे किस करके बोलने लगी-

“देखा अरे मेरा बस चले तो तुझे इतना मजा दूं ना की तुम सोच नहीं सकते। ये तो ट्रेलर भी नहीं था। अरे तुम्हारे एक आँख क्यों है, जिससे तुम कोई भेदभाव ना कर पाओ। तुम्हारे लिये सब चूत एक बराबर हों। बल्की सब छेद एक बराबर हों। लेकिन ये ना इन्हें क्या चिन्ता तुम्हारी। इससे ये रिश्ता ये नाता, ...ये कजिन है तो ये,...। अरे खुद उस साली की चूत में चींटे काट रहे हैं, बैगन मोमबत्ती घुसेड़ रही है, ....पूरे मोहल्ले वालों के आगे चूत फैलाकर खड़ी है, लेकिन ये।


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बस अब देखना तुम मेरे हाथ में आ गये हो ना बस अब हमारा तुम्हारा राज चलेगा। देखना ये चाहें ना चाहें तुम दनदना के घुस जाना, चोद देना साली को,... जिसका भी मन चाहे बाकी मैं देख लूँगी…”


और ये कहकर गुड्डी ने घोंटा तो आधे से ज्यादा लण्ड उसके मखमली मुँह में और वह पूरी रफ्तार से चूस रही थी। जैसे कोई वैक्युम क्लीनर सक कर रहा हो। उसकी आँखें बाहर निकल रही थी, गाल एकदम अंदर की ओर वो चिपका लेती थी, रसीले गुलाबी होंठ लण्ड को रगड़ रहे थे और नीचे से जुबान लण्ड के निचले हिस्से को चाट रही थी।


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मैं बस चुपचाप उस मजे को महसूस कर रहा था।

गुड्डी ने अपने दोनों हाथों से मेरे चूतड़ों को कसकर भींच रखा था अपनी ओर खींच रखा था, और अब मुझसे नहीं रहा गया और मैंने भी गुड्डी के सिर को दोनों हाथों से पकड़कर कस-कसकर लण्ड अंदर ठेलना शुरू किया। एक नई नवेली किशोरी के लिये। ये बहुत मुश्किल था लेकिन मैं उस समय सब कुछ भूल गया था।

और आगे-पीछे करके जैसे उसके मुँह को चोद रहा होऊं बस उस तरह ढकेल रहा था।

वो बिचारी गों गों कर रही थी। लेकिन ना मैं रुकना ना चाहता था ना वो। मेरा सुपाड़ा गले के अंत तक लग रहा था टकरा रहा था। उसकी आँखें उबल रही थी। फिर भी वो अपने मुँह को मेरे लण्ड पे ठेले जा रही थी। जैसे कोई खुद शुली पे चढ़ने की कोशिश कर रहा हो। और इसके साथ उसका चूसना, चाटना जारी था। लेकिन कुछ देर बाद गुड्डी ने मुँह से लण्ड को बाहर कर दिया। उसके गाल दुखने लगे। लेकिन ना जीभ कि हरकत रुकी ना ही उंगलियों की बदमाशी थमी।


वो साइड से अब लण्ड को चाट रही थी, चूम रही थी।
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उसकी उंगलियां मेरे बाल्स को कभी दबा देती, कभी सहला देती, तो कभी वो बाल्स और पिछवाड़े के बीच में उंगली से रगड़ देती, तो कभी लम्बे नाखून मेरी गाण्ड के छेद पे। सुरसुरी कर देते, घिसड़ देते।

कुछ देर बाद उसने फिर तरीका बदला और अपने टाइट कुर्ते से छलकते उभारों के बीच उसे दबा दिया, और लण्ड को बीच में करके दोनों चूचीयों के बीच भींच रही थी। थोड़ी देर के बाद उसने फिर लण्ड को मुँह में ले लिया। अब तक उसके होंठ, गाल अच्छी तरह सुस्ता चुके थे। इसलिये अब जो उसने लण्ड को अंदर लिया तो पहली ही बार में तीन चौथाई से ज्यादा घोंट लिया और पहले ही उसके थूक से चिकने हो जाने से अब लण्ड सटासट उसके मुँह में। जीभ के सहारे। अंदर एकदम जोर से जोश से।


उसके होंठ दांतों पे चढ़े, एक हल्की सी भी खरोंच मेरे लण्ड पे नहीं लगी और धीरे-धीरे करके पूरा का पूरा लण्ड।

मुझे विश्वास नहीं हो रहा था। और जैसे ही मेरे बाल्स उसके होंठों से टकराये उसने सिर उठाकर अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से मुझे देखा। जैसे कह रही हो देखा। ये काम जैसे मैं कर सकती हूँ कोई नहीं कर सकता। सुपाड़े ने उसके गले को ब्लाक कर रखा था, तब भी वो कम से कम एकाध मिनट तक उसी हालत में रहकर नाक से पूरी तरह सांस लेती हुई। फिर उसे धीमे-धीमे निकालती। मैंने डीप थ्रोट की बहुत ब्ल्यु फिल्में देख रखी थी लेकिन जिस तरह से गुड्डी चूस रही थी। वो सब पानी भरती।


गुड्डी पूरे जोर से चूसती और जब लण्ड पूरा अंदर चला जाता। वो खुद अपने मुँह को सिर को लण्ड के ऊपर पुश करके बाल्स से सटाकर रखती। मैं देख रहा था की उसकी गाल की एक-एक नस। उसकी आँखें सब बाहर की और हो जाती लेकिन वो मजे ले लेकर और फिर जब उसे निकालती तो अगले ही पल पहले से दूने जोश से लण्ड फिर जड़ तक अंदर।

साथ-साथ उसकी शैतान उंगलियां मेरे गुदा द्वार को छेड़ती। एक बार तो उसने एक पूरी उंगली की पोर अंदर कर दिया और साथ में कस-कसकर चूस रही थी। मुझे लग रहा था कि अब मैं गिरा, अब झड़ा। लेकिन अब मैं ये सोचने की हालत में नहीं था। और जिस तरह से गुड्डी के होंठ मेरे लण्ड से चिपके थे, ये तय था कि वो सारी मलाई गटक जायेगी। मैं जोर-जोर से लण्ड गुड्डी के मुँह के अंदर बाहर कर रहा था और वो कस-कसकर चूस रही थी।


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तभी मेरे मोबाइल की घंटी बजी।



मेसेज की घंटी वो रिंग टोन जो मैंने रीत के लिये सेट किया-


“बहुत हुई अब आँख मिचौली। खेलूंगी अब रस की होली…” और गुड्डी ने अपना मुँह हटा लिया। मैंने कोशिश की कि उसके सिर को पकड़कर।


लेकिन वो खड़ी हो गई और दूर जाकर मोबाइल को खोलकर मेसेज देख रही थी।

जैसे कोई किसी बच्चे के हाथ से मिठाई छीन ले वही हालत मेरी हो रही थी।

गुड्डी ने मुझसे मेसेज पढ़ते हुये मुझसे कपड़े पहनने का इशारा किया। मेरे पास चारा ही क्या था? मैं बस शर्ट पैंट पहनते हुये उसे देख रहा था।


मारो तो तुम्हीं। जिलाओ तो तुम्हीं।



मेसेज पढ़ के पहले तो वो खिलखिलायी, फिर बोली-


“अरे इत्ता मुँह मत बनाओ। यार मुझे एक काम याद आ गया था। असली चीज खरीदना तो मैं भूल ही गई थी और उसकी दुकान शाम को ही बंद हो जाती है और दूसरी बात ये तुम्हारी मलाई, अब ये सीधे मेरी भूखी बुल-बुल के अंदर जायेगी और कहीं नहीं। भले ही तुम्हें छ: सात घन्टे इंतजार करना पड़ जाये…”



मैंने मोबाइल के लिये हाथ बढ़ाया तो उसने मना कर दिया, बोली-


“रास्ते में अभी टाइम नहीं है…” '

और हांक के उसने मुझे रेस्टहाउस के कमरे से बाहर कर दिया-

“अरे यार सामान सब मैंने पैक कर दिया है। बस वो जो सामान थोड़ा सा रह गया है। बस एक दुकान है। जल्दी से लेकर। कहीं कुछ खाना हुआ तो खाकर सामान लेकर चल देंगे और एक बार तुम्हारे मायके पहुँच गये तो फिर तो…”

उसने रिक्शे पे बैठते हुये मुझे समझाया।


सामान जो छूट गया था वो रंग गुलाल था। लेकिन कोई खास तरह का। वो बोली-

“यार तुम्हारी भाभी ने स्पेशली बोला था इन रंगों के लिये। रीत के यहां ब्लाक प्रिन्टिंग का काम होता था तो ये लोग यहां से रंग लेते थे एकदम पक्का रंग। दूबे भाभी ने जो कालिख लगायी थी वो भी यहीं से…तो मेरे यार को जो रंग उसके मायके में लगे वो बनारस पहुँचने तक न उतरे"

मेरे ऊपर तो गुड्डी का रंग चढ़ा हुआ था।




रिक्शा गली-गली होते हुये एक बड़ी सी दुकान के सामने जा पहुँचा, तब उसने रीत का मेसेज दिखाया-

“जीजू। लोग एक पति के लिये तरसते हैं लेकिन आपकी बहना। इतनी कम उमर में बस अगर थोड़ी सी मेहनत कर दे ना तो लखपती बन सकती है। मेरा मतलब मर्दो की संख्या से नहीं था। अब तक उसकी जो बुकिंग आ चुकी है और मैंने कंफर्म की है। ...आग लगा रही है आग स्साली तेरी बहिनिया शहर में .बस एक हफ्ते वो बनारस रह जाय और रोज 8-10 घंटे। अब पैसा कमाना है तो मेहनत तो करनी पड़ेगी…”
और

हम लोग दुकान में घुस गये। एक ग्रासरी की दुकान की तरह बस थोड़ी बड़ी। ये थोक की दुकान थी और पूरे ईस्टर्न यूपी में होली का सामान सप्लाई करती थी। बनारस की गलियां। पतली संकरी और फिर अन्दर एक से एक बड़े मकान, दुकानें बस वैसे ही ये भी। बस थोड़ी ज्यादा चौड़ी।



चौराहे पे दो पोलिस वाले सुस्ता रहे थे। पास में एक मैदान कम कचरा फेंकने की जगह पे कुछ बच्चे क्रिकेट का भविष्य उज्वल करने की कोशिश कर रहे थे, दीवालों पर पोस्टर, वाल राईटिंग पटी पड़ी थी। मर्दानगी वापस लाने वाली दवाओं से लेकर कारपोरेशन के इलेक्शन, भोजपुरी फिल्मों के पोस्टर से बिरहा के मुकाबले तक।



दुकान के दरवाजे के पास ही दीवाल पर मोटा-मोटा लिखा था- “देखो गधा मूत रहा है…” वहां गधा तो कोई था नहीं हाँ एक सज्जन जरूर साईकिल दीवार के सहारे खड़ी करके लघुशंका का निवारण कर रहे थे। एक गाय वीतरागी ढंग से चौराहे के बीचोबीच बैठी थी। दो-तीन सामान ढोने वाले टेम्पो और एक छोटा ट्रक दुकान से सटकर खड़ा था। उसमें उसी दुकान से सामान लादा जा रहा था। टेम्पो शायद आस पास के बाजारों के लिए और ट्रक आजमगढ़ बलिया के लिए।



दुकान के अन्दर भी बहुत भीड़-भाड़ नहीं थी। थोक की दुकान थी और नार्मली शायद वो फुटकर सामान नहीं बेचते थे। हाँ दो-तीन लोग जिनके ट्रक और टेम्पो बाहर खड़े थे, वो थे और दुकान के मालिक तनछुई सिल्क का कुरता पाजामा पहने उन लोगों से मौसम का हाल से लेकर राष्ट्रीय राजनीति पर चर्चा कर रहे थे।
बहुत ही कामुक गरमागरम और जबरदस्त अपडेट है
चलो कुछ तो मिला ज्यादा ही ना सही लेकिन लिप सर्विस तो मिली हीरो को मजा आ रहा था लेकिन रीत के msg ने पूरा काम खराब कर दिया गुड्डी ने बहुत ही शानदार तरीके से लिप सर्विस दी हमारे हीरो तो बीच मझधार में ही रह गया किनारे पर भी नहीं जा सकता आदेश था कि अब मलाई सीधे भूखी बुलबुल के अंदर ही जाएगी करे भी तो क्या करे गुड्डी के लिए सब कुछ सहना पड़ेगा
 
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भाग ९७ page 1010

आज की रात

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फागुन के दिन चार भाग २५

रंग

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जैसे कोई किसी बच्चे के हाथ से मिठाई छीन ले वही हालत मेरी हो रही थी।



गुड्डी ने मुझसे मेसेज पढ़ते हुये मुझसे कपड़े पहनने का इशारा किया। मेरे पास चारा ही क्या था? मैं बस शर्ट पैंट पहनते हुये उसे देख रहा था। मारो तो तुम्हीं। जिलाओ तो तुम्हीं।

मेसेज पढ़ के पहले तो वो खिलखिलायी, फिर बोली-

“अरे इत्ता मुँह मत बनाओ। यार मुझे एक काम याद आ गया था। असली चीज खरीदना तो मैं भूल ही गई थी और उसकी दुकान शाम को ही बंद हो जाती है और दूसरी बात ये तुम्हारी मलाई, ...अब ये सीधे मेरी भूखी बुल-बुल के अंदर जायेगी और कहीं नहीं। भले ही तुम्हें छ: सात घन्टे इंतजार करना पड़ जाये…”
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मैंने मोबाइल के लिये हाथ बढ़ाया तो उसने मना कर दिया, बोली-

“रास्ते में अभी टाइम नहीं है…”

और हांक के उसने मुझे रेस्टहाउस के कमरे से बाहर कर दिया-

“अरे यार सामान सब मैंने पैक कर दिया है। बस वो जो सामान थोड़ा सा रह गया है। बस एक दुकान है। जल्दी से लेकर। कहीं कुछ खाना हुआ तो खाकर सामान लेकर चल देंगे और एक बार तुम्हारे मायके पहुँच गये तो फिर तो…”

उसने रिक्शे पे बैठते हुये मुझे समझाया।

सामान जो छूट गया था वो रंग गुलाल था। लेकिन कोई खास तरह का। वो बोली-

“यार तुम्हारी भाभी ने स्पेशली बोला था इन रंगों के लिये। रीत के यहां ब्लाक प्रिन्टिंग का काम होता था तो ये लोग यहां से रंग लेते थे एकदम पक्का रंग। दूबे भाभी ने जो कालिख लगायी थी वो भी यहीं से…”

रिक्शा गली-गली होते हुये एक बड़ी सी दुकान के सामने जा पहुँचा, तब उसने रीत का मेसेज दिखाया-

“जीजू। लोग एक पति के लिये तरसते हैं लेकिन आपकी बहना। इतनी कम उमर में बस अगर थोड़ी सी मेहनत कर दे ना तो लखपती बन सकती है। मेरा मतलब मर्दो की संख्या से नहीं था। अब तक उसकी जो बुकिंग आ चुकी है और मैंने कंफर्म की है। बस एक हफ्ते वो बनारस रह जाय और रोज 8-10 घंटे। अब पैसा कमाना है तो मेहनत तो करनी पड़ेगी…”
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हम लोग दुकान में घुस गये। एक ग्रासरी की दुकान की तरह बस थोड़ी बड़ी। ये थोक की दुकान थी और पूरे ईस्टर्न यूपी में होली का सामान सप्लाई करती थी। बनारस की गलियां। पतली संकरी और फिर अन्दर एक से एक बड़े मकान, दुकानें बस वैसे ही ये भी। बस थोड़ी ज्यादा चौड़ी।

चौराहे पे दो पोलिस वाले सुस्ता रहे थे।

पास में एक मैदान कम कचरा फेंकने की जगह पे कुछ बच्चे क्रिकेट का भविष्य उज्वल करने की कोशिश कर रहे थे, दीवालों पर पोस्टर, वाल राईटिंग पटी पड़ी थी। मर्दानगी वापस लाने वाली दवाओं से लेकर कारपोरेशन के इलेक्शन, भोजपुरी फिल्मों के पोस्टर से बिरहा के मुकाबले तक।


दुकान के दरवाजे के पास ही दीवाल पर मोटा-मोटा लिखा था- “देखो गधा मूत रहा है…” वहां गधा तो कोई था नहीं हाँ एक सज्जन जरूर साईकिल दीवार के सहारे खड़ी करके लघुशंका का निवारण कर रहे थे। एक गाय वीतरागी ढंग से चौराहे के बीचोबीच बैठी थी।


दो-तीन सामान ढोने वाले टेम्पो और एक छोटा ट्रक दुकान से सटकर खड़ा था। उसमें उसी दुकान से सामान लादा जा रहा था। टेम्पो शायद आस पास के बाजारों के लिए और ट्रक आजमगढ़ बलिया के लिए।

दुकान के अन्दर भी बहुत भीड़-भाड़ नहीं थी। थोक की दुकान थी और नार्मली शायद वो फुटकर सामान नहीं बेचते थे। हाँ दो-तीन लोग जिनके ट्रक और टेम्पो बाहर खड़े थे, वो थे और दुकान के मालिक तनछुई सिल्क का कुरता पाजामा पहने उन लोगों से मौसम का हाल से लेकर राष्ट्रीय राजनीति पर चर्चा कर रहे थे।

-----------------------------------

गुड्डी ने दूर से उन्हें नमस्ते किया और उन्होंने तुरंत पहचान लिया।

वो सिर्फ दूबे भाभी के ब्लाक प्रिंट के लिए सामान ही नहीं सप्प्लाई करते थे, बल्की पारिवारिक मित्र भी थे। और उनकी छोटी लड़की रीत के साथ पढ़ती थी। वो हम लोगों के पास आकर खड़े हो गए।

गुड्डी ने मेरा परिचय कराया और बताया की वो मेरे साथ जा रही है इसलिए रंग और होली के कुछ सामान।

उसकी बात काटकर उन्होंने एक गुमास्ते को बुलाया और कहा की इसको बता दो। मुझे लगा की गुड्डी पता नहीं क्या-क्या बोले और देर भी हो रही थी तो लिस्ट मैंने उसे पकड़ा दी। उन्होंने मेरा परिचय उन सज्जन से भी कराया जिनकी ट्रक बाहर लद रही थी, ये कहकर की तुम्हारे शहर के ही हैं और जब उन्होंने बताया की जायसवाल जनरल स्टोर तो मैं तुरंत समझ गया।

चौक पे डिलाईट टाकिज के बगल में ही तो है, और उन्होंने भी बताया की हमारे घर के लोगों से वो भी परिचित हैं।


तब तक मैंने दुकान के एक कोने में चाइनीज पिचकारियां देखीं तो मैंने उनसे कहा की अरे पिचकारियां भी चीनी,... तो वो हँसकर बोलो चलो तुम्हें दिखलाता हूँ।

तरह-तरह की पिचकारियां, रंग और साथ में ही नीचे खुले डब्बों में हल्दी, धनिया, मिर्च पिसी तरह-तरहकर मसाले तभी मेरी निगाह पीतल की दो पिचकारियों पे पड़ी खूब लम्बी मोटी।

मैंने उनसे पूछा।

हँसकर वो बोले-

“अरे भैया पहले हमको भी शौक था। एक-एक पिचकारी में आधी बाल्टी तक रंग आ जाता है और धार इतनी तीखी की मोटे से मोटा कपड़ा भी फाड़कर रंग अंदर। लेकिन अब किसकी कलाई में इतना जोर है की इसको चलाये? इसलिए तो अब बस प्लास्टिक और वो भी बच्चे। बड़े तो होली खेलने निकलते नहीं और खेलते भी हैं तो सूखे रंग या पोतने वाले रंग। पिचकारी कहाँ…”

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मुझे लगा की इनकी कहानी कहीं लम्बी ना हो जाय इसलिए मैंने सीधे पूछा- “कितने की है?”


वो हँसकर बोले- “अरे ले जाओ तुम जो कहोगे लगा देंगे वैसे ही पड़ी है…”

गुड्डी सामान चेक करके देख रही थी।
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है
गुड्डी पक्का वाला रंग लेकर जाने वाली लगता है आनंद का एक बार फिर से रंगने वाले हैं रीत ने msg करके बता दिया है कि जीजू की बहन की डिमांड बहुत ही ज्यादा है
 
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रंग में भंग
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हमारे कुछ समझ में नहीं आया। जो दुकान के मालिक थे उनका चेहरा एकदम अचानक से उतर गया। सामने दो लड़के खड़े थे, वो दोनों टी-शर्ट और जीन्स में थे 22-24 साल के, कपड़े थोड़े तुड़े मुड़े। दाढ़ी थोड़ी सी बढ़ी। एक के हाथ में साइकिल की चेन लिपटी थी।


उन्होंने घबड़ाकर गुड्डी से कहा-

“बेटा तुम लोग चलो, हम तुम्हारा सामान भेजवा देंगे बाद में। जरा जल्दी निकलो…”

हमने चारों ओर देखा दुकान में कोई नहीं, ना काम करने वाले ना बाकी ग्राहक सभी गायब, और तभी घडरर की आवाज हुई और हमने जब दरवाजे की ओर देखा तो शटर एक आदमी बंद कर रहा था और जब मुड़कर उसने दुकान के मालिक को देखा तो लगता है उन्होंने मौत देख ली।

बस बेहोश नहीं हुए।

उसकी उम्र थोड़ी ज्यादा लग रही थी 28-30 साल की, पैंट के साथ एक काली शर्ट अन्दर टक की हुई। लेकिन मसल्स बहुत डेवलप, पैंट की जेबें थोड़ी फूली कमर के पास भी उसी तरह शर्ट फूली एक हाथ में चांदी का कड़ा। वो कुछ बोला नहीं सिर्फ दुकान के मालिक को देखता रहा।


“आप। आपने बेकार में तकलीफ की, खबर कर देते मैं हाजिर हो जाता। आप मेरी। मुझे तो इन लोगों ने बताया। नहीं की…”

दुकान के मालिक की घिघ्घी बंधी हुई थी। दोनों हाथ जुड़े हुए आँखों में डर नाच रहा था।


वो आदमी कुछ नहीं बोला। बस उन्हें देखता रहा अपनी फूली हुई जेब पे हाथ रखकर। लेकिन जो दोनों हम तीनों के पास खड़े थे उनमें से एक बोला-

“अब तो साहब आ ही गए हैं। तेरे ससुर क नाती। महीना शुरू हुए 10 दिन होई गवा है। होली अब गिन के 4 दिन बची है। त इ छूटकवा आय रहा की नाय। बोल? और ओके टरकाय दिया की… अरे एकरे तो सिर पे खून नाच रहा था। उ तो हम रोके एकरा के, ....की पुरान रिश्ता है। बड़मनई हैं और आप…”

“उ,… उ,..तो बाबू साहब की इहां हम शुरूये में,… और होली के अलगे से…”

जो दुकान के मालिक थे, थोड़ी उनकी हिम्मत बंधी की कोई जैसे गलत फहमी हुई हो और अब वो सुलझ जायेगी। उनके हाथ अभी जुड़े हुए थे।

“बाबू साहब तो ठीक है। लेकिन इहो तो हमरो साहब,… इनके लिए? दो बार फोन करवाये। त का साहेब कुछ बोलते ना तो का कपारे पे चढ़ा के ससुर का नाती नचबा…”

वो आदमी चालू हो गया।

“नहीं नहीं गलती होई गई मालिक माफ कय दिहल जाय। अब आगे से। अबहिंये…”

वो झुके जा रहे थे गिड़गिड़ा रहे थे, बस रो नहीं रहे थे।



“भूल गए। पिछली बार तुम्हरी लौंडिया ले गए थे तीन दिन के लिए, तबे किश्त बंधी थी। तब।....तब बाबू साहेब नहीं इहे साहब बचाए थे, नहीं तो हमार तो पूरा मन था की ससुरी को गाभिन करके भेजते। इ तो साहब तुम्हारि पुरानी,… बस खियाल आ गया। वरना मड़ुआडीह में बैठाय देते। रोज 10-10 मर्द ऊपर से उतरते ना, ता जतना तुम बक रहे हो उतना त उ ससुरी महीना में अपनी चूत से उगल देती। नाहीं तो बम्बई लेजाकर बेच आते। कच्ची माल थी उस बकत। त अब तू आपन दुकान सम्हाला,… अब तोहरी बिटिया एक नई दुकान खोलिहें। और जेतना लेवे के होई हम लोग ले लेब…”

हमलोगों के पास खड़ा आदमी फिर चालू हो गया।

अब तो वो बिचारे अलमोस्ट दंडवत होकर माफी मांगने लगे।


लेकिन गुड्डी बोली, जो दहसी हुई खड़ी थी-


“चाचा जी नहीं…”


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बस गुड्डी का ये बोलना जहर हो गया।

हमारे पास जो दो लोग थे उनमें से जो साइलेंट टाईप का था उसने गुड्डी की बांह कसकर पकड़ ली और अपनी ओर खींच लिया।



दरवाजे के पास खड़ा तीसरा आदमी अब बोला-

“तो ये तुम्हारी भतीजी है?”



“नहीं नहीं जी। ऐसा कुछ नहीं। अरे ऐसे ही बोल रही है सौदा लेने आई थी, बस। ये लोग तो बस जा रहे थे बस। इसका मुझसे कोई लेना देना नहीं, बस छोड़ दीजिये इसे। हे जाओ तुम लोग कहाँ रुके हो? हम सब वो कुछ नहीं रखते। जाओ…”

दरवाजे के पास खड़ा आदमी मुश्कुरा रहा था, और एक हाथ से उसने जेब से गुटका निकाला और खाने लगा।

जिसने गुड्डी को पकड़ रखा था उसने दूसरा हाथ उसकी कमर पे रख दिया और अपनी ओर खींचा कसकर।



दूसरे ने सेठजी का कंधा पकड़ा और कहने लगा-

“अच्छा इनसे कुछ लेना देना नहीं तो ये तुम्हें चाचा जी क्यों बोल रही थी? दूसरे फिर तुम इसे बचाने के लिए काहे झूठ पे झूठ बोले जा रहे हो?”



और जो आदमी गुड्डी को पकड़े हुए था…, उससे बोला-

“हे जरा साली की चूची दाब के तो बता। ये स्साली तो सेठजी की बेटी से भी ज्यादा करारा माल लग रही है…”
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हमारे कुछ समझ में नहीं आया। जो दुकान के मालिक थे उनका चेहरा एकदम अचानक से उतर गया। सामने दो लड़के खड़े थे, वो दोनों टी-शर्ट और जीन्स में थे 22-24 साल के, कपड़े थोड़े तुड़े मुड़े। दाढ़ी थोड़ी सी बढ़ी। एक के हाथ में साइकिल की चेन लिपटी थी।


उन्होंने घबड़ाकर गुड्डी से कहा-

“बेटा तुम लोग चलो, हम तुम्हारा सामान भेजवा देंगे बाद में। जरा जल्दी निकलो…”

हमने चारों ओर देखा दुकान में कोई नहीं, ना काम करने वाले ना बाकी ग्राहक सभी गायब, और तभी घडरर की आवाज हुई और हमने जब दरवाजे की ओर देखा तो शटर एक आदमी बंद कर रहा था और जब मुड़कर उसने दुकान के मालिक को देखा तो लगता है उन्होंने मौत देख ली।

बस बेहोश नहीं हुए।

उसकी उम्र थोड़ी ज्यादा लग रही थी 28-30 साल की, पैंट के साथ एक काली शर्ट अन्दर टक की हुई। लेकिन मसल्स बहुत डेवलप, पैंट की जेबें थोड़ी फूली कमर के पास भी उसी तरह शर्ट फूली एक हाथ में चांदी का कड़ा। वो कुछ बोला नहीं सिर्फ दुकान के मालिक को देखता रहा।


“आप। आपने बेकार में तकलीफ की, खबर कर देते मैं हाजिर हो जाता। आप मेरी। मुझे तो इन लोगों ने बताया। नहीं की…”

दुकान के मालिक की घिघ्घी बंधी हुई थी। दोनों हाथ जुड़े हुए आँखों में डर नाच रहा था।


वो आदमी कुछ नहीं बोला। बस उन्हें देखता रहा अपनी फूली हुई जेब पे हाथ रखकर। लेकिन जो दोनों हम तीनों के पास खड़े थे उनमें से एक बोला-

“अब तो साहब आ ही गए हैं। तेरे ससुर क नाती। महीना शुरू हुए 10 दिन होई गवा है। होली अब गिन के 4 दिन बची है। त इ छूटकवा आय रहा की नाय। बोल? और ओके टरकाय दिया की… अरे एकरे तो सिर पे खून नाच रहा था। उ तो हम रोके एकरा के, ....की पुरान रिश्ता है। बड़मनई हैं और आप…”

“उ,… उ,..तो बाबू साहब की इहां हम शुरूये में,… और होली के अलगे से…”

जो दुकान के मालिक थे, थोड़ी उनकी हिम्मत बंधी की कोई जैसे गलत फहमी हुई हो और अब वो सुलझ जायेगी। उनके हाथ अभी जुड़े हुए थे।

“बाबू साहब तो ठीक है। लेकिन इहो तो हमरो साहब,… इनके लिए? दो बार फोन करवाये। त का साहेब कुछ बोलते ना तो का कपारे पे चढ़ा के ससुर का नाती नचबा…”

वो आदमी चालू हो गया।

“नहीं नहीं गलती होई गई मालिक माफ कय दिहल जाय। अब आगे से। अबहिंये…”

वो झुके जा रहे थे गिड़गिड़ा रहे थे, बस रो नहीं रहे थे।



“भूल गए। पिछली बार तुम्हरी लौंडिया ले गए थे तीन दिन के लिए, तबे किश्त बंधी थी। तब।....तब बाबू साहेब नहीं इहे साहब बचाए थे, नहीं तो हमार तो पूरा मन था की ससुरी को गाभिन करके भेजते। इ तो साहब तुम्हारि पुरानी,… बस खियाल आ गया। वरना मड़ुआडीह में बैठाय देते। रोज 10-10 मर्द ऊपर से उतरते ना, ता जतना तुम बक रहे हो उतना त उ ससुरी महीना में अपनी चूत से उगल देती। नाहीं तो बम्बई लेजाकर बेच आते। कच्ची माल थी उस बकत। त अब तू आपन दुकान सम्हाला,… अब तोहरी बिटिया एक नई दुकान खोलिहें। और जेतना लेवे के होई हम लोग ले लेब…”

हमलोगों के पास खड़ा आदमी फिर चालू हो गया।

अब तो वो बिचारे अलमोस्ट दंडवत होकर माफी मांगने लगे।


लेकिन गुड्डी बोली, जो दहसी हुई खड़ी थी-


“चाचा जी नहीं…”


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बस गुड्डी का ये बोलना जहर हो गया।

हमारे पास जो दो लोग थे उनमें से जो साइलेंट टाईप का था उसने गुड्डी की बांह कसकर पकड़ ली और अपनी ओर खींच लिया।



दरवाजे के पास खड़ा तीसरा आदमी अब बोला-

“तो ये तुम्हारी भतीजी है?”



“नहीं नहीं जी। ऐसा कुछ नहीं। अरे ऐसे ही बोल रही है सौदा लेने आई थी, बस। ये लोग तो बस जा रहे थे बस। इसका मुझसे कोई लेना देना नहीं, बस छोड़ दीजिये इसे। हे जाओ तुम लोग कहाँ रुके हो? हम सब वो कुछ नहीं रखते। जाओ…”

दरवाजे के पास खड़ा आदमी मुश्कुरा रहा था, और एक हाथ से उसने जेब से गुटका निकाला और खाने लगा।

जिसने गुड्डी को पकड़ रखा था उसने दूसरा हाथ उसकी कमर पे रख दिया और अपनी ओर खींचा कसकर।



दूसरे ने सेठजी का कंधा पकड़ा और कहने लगा-

“अच्छा इनसे कुछ लेना देना नहीं तो ये तुम्हें चाचा जी क्यों बोल रही थी? दूसरे फिर तुम इसे बचाने के लिए काहे झूठ पे झूठ बोले जा रहे हो?”



और जो आदमी गुड्डी को पकड़े हुए था…, उससे बोला-

“हे जरा साली की चूची दाब के तो बता। ये स्साली तो सेठजी की बेटी से भी ज्यादा करारा माल लग रही है…”
शहर के गुंडे के दो लड़के ग्रॉसरी वाली दुकान पर आए हैं लगता है दुकानवाले से हफ्ता या उधारी लेने आए होंगे उन्होंने गुड्डी को पकड़ लिया है देखते हैं हीरो क्या करता है
 
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पलटा पासा

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दूसरे ने सेठजी का कंधा पकड़ा और कहने लगा-

“अच्छा इनसे कुछ लेना देना नहीं तो ये तुम्हें चाचा जी क्यों बोल रही थी? दूसरे फिर तुम इसे बचाने के लिए काहे झूठ पे झूठ बोले जा रहे हो?”

और जो आदमी गुड्डी को पकड़े हुए था…, उससे बोला-

“हे जरा साली की चूची दाब के तो बता। ये स्साली तो सेठजी की बेटी से भी ज्यादा करारा माल लग रही है…”

मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था की क्या करें-

“भैया हम लोगों को जाने दो। हम लोगों से कोई मतलब नहीं है बस। चले जा रहे हैं…”

बोलते गिड़गिड़ाते मैं नीचे झुका, जैसे मैं उनके पाँव पड़ने की की कोशिश कर रहा हूँ। और नीचे झुकते ही रंगों के डिब्बो के साथ-साथ एक खुले बरतन में लाल पिसी मिर्च का पाउडर और बगल में हल्दी का पाउडर।

झुके-झुके लाल पाउडर मैंने उठाया और तेजी से ऊपर उठाते हुए उसकी आँखों में पूरा का पूरा झोंक दिया।

जैसे ही वो सम्हलता, दूसरी मुट्ठी फिर।

अबकी आँख के साथ नाक और मुँह में। छींक से उसकी बुरी हालत हो गई।



तभी गुड्डी ने साथ-साथ, दूसरे आदमी के पैर में अपनी लम्बी तीखी हील भी पहले तो कसकर घुसा दी और फिर गोल-गोल घुमाने लगी। उसकी पकड़ ढीली हो गई और गुड्डी के दोनों हाथ छूट गए। गुड्डी ने उस आदमी के पेट में पूरी ताकत लगाकर अपनी कुहनी दे मारी।



बस वो मौका मिल गया जो मैं चाहता था।

दोनों से एक साथ निपटना असंभव था और दोनों के पास ही हथियार थे। चाकू, कट्टा या ऐसे कुछ भी।

गुड्डी को मैंने हल्का सा धक्का दिया और वो उस आदमी को लिए दिए सामान के ढेर के बीच जा गिरी।

जिसकी आँख में मैंने मिर्च झोंकी थी वो अब कुछ संभल रहा था।

आँखें खोलने की कोशिश करते हुए वो अपने साथी से बोला-

“पकड़ ले साली को। इस सेठ की लौंडिया को तो तीन दिन में छोड़ दिया था सिर्फ एक ओर से मजा लेकर। इसकी तो चूत का भोंसड़ा बना देंगे। और तुझे तो गाण्ड पसंद है न…”

मैं समझ रहा था ये सिर्फ बोल नहीं रहा है।

और हमारे पास सिर्फ एक रास्ता था, हमला।

मैंने जूते पूरी ताकत से उसके घुटने पे दे मारे और एक के बाद एक, चार बार वहीं। एक पैर उसका खतम हो गया।

लेकिन उसके गिरने से पहले ही मैंने एक हाथ से उसे पकड़ा और दूसरे हाथ से एक चाप सीधे उसके कान के नीचे और अब वो जो गिरा तो मैं समझ गया की कुछ देर की छुट्टी।



लेकिन मैं कनखियों से देख रहा था की दूसरा जिसे मैं गुड्डी के साथ धक्का देकर गिरा दिया था अब अपने पैरों पे खड़ा था और उसके हाथ की चेन हवा में लहरा रही थी और अगले ही पल ठीक मेरे ऊपर। अगर मैं झटके से बैठता नहीं। और बैठे-बैठे ही मैंने मेज जिस पर सामान रखा था उसकी ओर दे मारा।

लेकिन वो सम्हल गया और पीछे खिसक गया। चेन अभी भी उसके हाथ में लहरा रही थी। मैं चेन की रेंज से तो बाहर हो गया था, क्योंकि अब बीच में मेज और गिरा हुआ सामान था लेकिन मैं भी उसे पकड़ नहीं सकता था।



तब तक नीचे गिरे आदमी ने उठने की कोशिश की और मैंने बायां हाथ बढ़ाकर उसका दायां हाथ पकड़कर अपनी ओर खींचा। जैसे ही वो थोड़ा उठा, मेरे खाली हाथ ने एक चाप उसके दायें हाथ की कुहनी पे दे मारा और साथ ही में पैर उसके घुटने पे। मैं अपने निशाने के बारे में कांफिडेंट था की अब सारे कार्टिलेज घुटने और कुहनी के गए। और वो अब उठने के काबिल नहीं है।


दूसरा चेन वाला ज्यादा फुर्तीला और स्मार्ट था। मेज से बस वो आधे मिनट ही रुक पाया और घूमकर पीछे से उसने फिर चेन से मेरे ऊपर वार किया। मैं अब फँस गया। मेरे उन आर्म्ड कम्बैट के लेशन तब काम आते जब वो पास में आता और चेन से एक-दो बार से ज्यादा बचना मुश्किल था। वो एक बार अगर हिट कर देती तो। और फिर गुड्डी।



बचते हुए मैं दुकान के दूसरे हिस्से पे आ गया था, जहाँ इन्सेक्ट रिपेलेंट, मास्किटो रिपेलेंट ये सब रखे थे। और अब मैंने चेन वाले को पास आने दिया। वो भी समझदार था अब वो दूर से चेन नहीं घुमा रहा था। अपनी ताकत उसने बचा रखी थी और जब वो मेरे नजदीक आया तो चेन उसने फिर लहराई।

लेकिन मैंने हाथ में पीछे पकड़े काकरोच रिपेलेंट को खोल लिया था और पूरा स्प्रे सीधे उसकी आँख में।

एक पल के लिए उसकी हालत खराब हो गई और इतना वक्त मेरे लिए काफी था और मैंने पहले तो उसकी वो कलाई पकड़कर मोड़ दी जिसमें चेन थी। एक बार क्लाकवाइज और दुबारा एंटीक्लाक वाइज और वो लटक के झूल गई।



उसने बाएं हाथ से चाकू निकालने की कोशिश की, लेकिन तब तक मेरी उंगलियां सारी एक साथ उसके रिब केज पे। वो दर्द से झुककर दुहरा हो गया और मेरी कुहनी उसके गले के निचले हिस्से पे। साथ में घुटना उसकी ठुड्डी पे। जब तक वो सम्हलता मैंने उसकी दूसरी कलाई भी तोड़ दी।



“बचो…” गुड्डी जोर से चीखी।
चाक़ू और तीसरा आदमी


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और जब वो मेरे नजदीक आया तो चेन उसने फिर लहराई।

लेकिन मैंने हाथ में पीछे पकड़े काकरोच रिपेलेंट को खोल लिया था और पूरा स्प्रे सीधे उसकी आँख में।

एक पल के लिए उसकी हालत खराब हो गई और इतना वक्त मेरे लिए काफी था और मैंने पहले तो उसकी वो कलाई पकड़कर मोड़ दी जिसमें चेन थी। एक बार क्लाकवाइज और दुबारा एंटीक्लाक वाइज और वो लटक के झूल गई।



उसने बाएं हाथ से चाकू निकालने की कोशिश की, लेकिन तब तक मेरी उंगलियां सारी एक साथ उसके रिब केज पे। वो दर्द से झुककर दुहरा हो गया और मेरी कुहनी उसके गले के निचले हिस्से पे। साथ में घुटना उसकी ठुड्डी पे। जब तक वो सम्हलता मैंने उसकी दूसरी कलाई भी तोड़ दी।



“बचो…” गुड्डी जोर से चीखी।
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मैं उस तीसरे आदमी को भूल ही गया था।

अब तक वो चूहे बिल्ली की लड़ाई की तरह हम लोगों को देख रहा था। उसे पूरा कांफिडेंस था की उसके दोनों मोहरे मुझसे निपटने के लिए काफी थे, और वो अपना हाथ गन्दा नहीं करना चाहता था। दूसरा, आर्गेजेशन में वो अब मैंनेजमेंट पोजीशन में पहुँच चुका था लेकिन अब दूसरे बन्दे के गिरने के बाद उसके हाथ में चाकू था और तेजी से उसने मेरी ओर फेंका।
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निशाना उसका भयानक था।
मेरे बगल में हटने के बावजूद वो मेरी शर्ट फाड़ते हुए हल्के से बांह में लगा।



अगर गुड्डी ना बोली होती,.. तो सीधे गले में।



डेड लाक की हालत थी। उसने पलक झपकते जेब से रिवाल्वर निकाल लिया था और ये कोई कट्टा (देसी पिस्तोल) नहीं था की मैं रिस्क लूं की शायद ये फेल कर जाय।

उसने नहीं चलाया।


मैं पल भर सोचता रहा फिर मेरी चमकी।

दो बातें थी। एक तो उसके मोहरे को मैंने पकड़ लिया था और उस गुत्थमगुत्था में गोली किसे लगेगी ये तय नहीं हो सकता था। दूसरे दिन का समय था, चारों ओर बस्ती थी और गोली चलने की आवाज सुनकर कोई भी आ सकता था।

मैंने एक रिस्क लिया। उस चेन वाले मोहरे को आगे करके मैं बढ़ा। ये बोलते हुए-

“प्लीज गोली मत चलाना, मैं निहत्था हूँ। हम लोगों से कोई मतलब नहीं बस हम दोनों को निकल जाने दीजिये प्लीज। बाकी आपके और सेठजी के बीच है बस हम दोनों को…”

वो थोड़ा डिसट्रैक्ट हुआ लेकिन रिवालवर ताने रहा, और कहा-

“हे इसको छोड़ो पहले। फिर हाथ ऊपर…”

“बस-बस जी करता हूँ जी गोली नहीं जी…”

मैं गिड़गिड़ा रहा था।


उस चेन वाले के हाथ से मैंने चेन ले ली और मुट्ठी में लेकर चेन वाले मोहरे को उसकी ओर थोड़ा धक्का देकर छोड़ दिया। उसके घुटने और कुहनी तो जवाब दे ही चुके थे, वो धड़ाम से उसके सामने जा गिरा। मैंने हाथ ऊपर कर लिया था ये बोलते हुए की

"जी देखिये,.... मेरे हाथ ऊपर है,... प्लीज।"

जैसे ही वो चेन वाला उसके पैरों के पास गिरा, उसका ध्यान बंट गया और मेरे लिए इतना वक्त काफी था।

मैंने पूरी ताकत से चेन उसके रिवाल्वर वाले हाथ पे दे मारी।

रिवाल्वर छटक के दूर गिरी। मैंने पैरों से मारकर उसे गुड्डी की ओर फेंक दिया।



वो अपने जमाने का जबर्दस्त बाक्सर रहा होगा।

इतना होने के बाद भी वो तुरंत बाक्सिंग के पोज में और एक मुक्का जबर्दस्त मेरे चेहरे की ओर। मैं बाक्सर न हूँ, न था इसलिए जवाब मेरे पैर ने बल्की पैर की एंड़ी ने दिया। सीधे दोनों पैरों के बीच किसी भी पुरुष के सबसे संवेदनशील स्थल पर, और उसका बैलेंस बिगड़ गया। वो सीधे मेरे पैरों के सामने धड़ाम गिरा।



मैं जानता था,.... वो उन दोनों मोहरों की तरह नहीं हैं।
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है हमारे हीरो ने तो अपनी सूझबूझ से गुंडों की जमकर धुलाई की है
 
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स्मिथ एंड वेसन


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जैसे ही वो चेन वाला उसके पैरों के पास गिरा, उसका ध्यान बंट गया और मेरे लिए इतना वक्त काफी था। मैंने पूरी ताकत से चेन उसके रिवाल्वर वाले हाथ पे दे मारी।

रिवाल्वर छटक के दूर गिरी।

मैंने पैरों से मारकर उसे गुड्डी की ओर फेंक दिया।

वो अपने जमाने का जबर्दस्त बाक्सर रहा होगा। इतना होने के बाद भी वो तुरंत बाक्सिंग के पोज में और एक मुक्का जबर्दस्त मेरे चेहरे की ओर। मैं बाक्सर न हूँ, न था इसलिए जवाब मेरे पैर ने बल्की पैर की एंड़ी ने दिया। सीधे दोनों पैरों के बीच किसी भी पुरुष के सबसे संवेदनशील स्थल पर, और उसका बैलेंस बिगड़ गया। वो सीधे मेरे पैरों के सामने धड़ाम गिरा।

मैं जानता था वो उन दोनों मोहरों की तरह नहीं हैं।

सामने से निपटना उससे मुश्किल है।

फिर भले ही उसका चाकू और रिवाल्वर अब उससे दूर है, लेकिन क्या पता उसके पास कोई और हथियार हो?

मौके का फायदा उठाकर मैं ठीक उसके पीछे पहुँच गया।



पलक झपकते मैंने चेन भी उठा ली। ये आर्डिनरी चेन नहीं थी, चेन का एक फेस बहुत पतला, शार्प लेकिन मजबूत था। गिटार के तार की तरह,.... ये चेन गैरोटिंग के लिए भी डिजाइन थी। दूर से चेन की तरह और नजदीक आ जाए तो गर्दन पे लगाकर। गैरोटिंग का तरीका माफिया ने बहुत चर्चित किया लेकिन पिंडारी ठग वही काम रुमाल से करते थे।

प्रैक्टिस, सही जगह तार का लगना और बहुत फास्ट रिएक्शन तीनों जरूरी थे।


पनद्रह बीस सेकंड के अन्दर ही वो अपने पैरों पे था

और बिजली की तेजी से अपने वेस्ट बैंड होल्स्टर से उसने स्मिथ एंड वेसन निकाली, माडल 640।
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मैं जानता था की इसका निशाना इस दूरी पे बहुत एक्युरेट।

इसमें 5 शाट्स थे। लेकिन एक ही काफी था। उसने पहले मुझे सामने खोजा, फिर गुड्डी की ओर।

तब तक तार उसके गले पे।

पहले ही लूप बनाकर मैंने एक मुट्ठी में पकड़ लिया था और तार का दूसरा सिरा दूसरे हाथ में, तार सीधे उसके ट्रैकिया के नीचे।

छुड़ाने के लिए जितना उसने जोर लगाया तार हल्का सा उसके गले में धंस गया। वो इस पेशे में इतना पुराना था की समझ गया था की जरा सा जोर और,...


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लेकिन मैं उसे गैरोट नहीं करना चाहता था।

मेरे पैर के पंजे का अगला हिस्सा सीधे उसके घुटने के पिछले हिस्से पे पूरी तेजी से, और घुटना मुड़ गया। और दूसरी किक दूसरे घुटने पे। वो घुटनों के बल हो गया। लेकिन रिवालवर पर अब भी उसकी ग्रिप थी, और तार गले में फँसा हुआ था।



मैंने उसके कान में बोला- “मैं पांच तक गिनूंगा गिनती और अगर तब तक रिवाल्वर ना फेंकी…”

गले पे दबाव, आक्सीजन की सप्प्लाई काट रहा था और उसके सोचने की शक्ति, रिफ्लेक्सेज कम हो रहे थे।

मैंने चेन अब बाएं हाथ में ही फँसा ली थी और गिनती गिन रहा था- 1,… 2,… 3 और मेरे दायें हाथ का चाप पूरी ताकत से उसके कान के नीचे। चूँकि वो घुटने के बल झुका था, ये दुगनी ताकत से पड़ा। रिवाल्वर अपने आप उसके हाथ से छूट गई। मैंने तार थोड़ा और कसा। अब उसकी आँख के आगे अँधेरा छा रहा था। एक बार उसने फिर उठने की कोशिश की। मैंने उसे उठने दिया और वो पूरा खड़ा भी नहीं हुआ था की फिर पूरे पैरों के जोर से, घुटने के पीछे वाले हिस्से में, दोनों पैरों में।

अब तो वो पूरी तरह लेट गया था।



मैंने टाइम पे चेन छोड़ दी थी वरना उसका गला। मैंने उसका दायां हाथ पकड़ा और कलाई के पास से एक बार क्लाकवाईज और दूसरी बार एंटीक्लाकवाईज पूरी ताकत से। कलाई अच्छी तरह टूट गई। दूसरे हाथ की दो उंगलियां भी।

अब वो बहुत दिन तक रिवाल्वर क्या कोई भी हथियार,... और उसके बाद पैर,

फिर तो जो भी मेरा गुस्सा था। कोहनी से,... घुटनों से आग बनकर निकला. उसके चमचों की हिम्मत कैसे हुए गुड्डी को हाथ लगाए और फिर रीत की सहेली के साथ। ये हरकत? कुछ ही देर में दायीं कुहनी, पंजा और बायां पैर नाकाम हो चुका था।

सेठजी अभी भी परेशान थे। उन्हें अपने से ज्यादा हम लोगों की चिंता थी-

“भैया तुम लोग चले जाओ जल्दी। वरना तुम जानते नहीं ये कौन हैं? चूहे के चक्कर में सांप के बिल में हाथ दे दियो हो। भाग जाओ जल्दी…”

और वो हम लोगों से हाथ जोड़े खड़े थे।


तभी मुझे खयाल आया सबसे खतरनाक हथियार तो मैंने छीना ही नहीं- इसका मोबाइल।

जेब से मैंने उसके मोबाइल निकाले और चेक किया। गनीमत थी की आखिरी डायल नम्बर आधे घंटे से ज्यादा पहले का था।


मैंने सिम निकालकर अपने फोन में डाला और सारी फोन बुक, डायल और रिसीव नम्बर अपने मोबाइल में ट्रांसफर कर लिए।



मैंने उन्हें हिम्मत दिलाई-

“अरे नहीं ऐसा कुछ नहीं है। पुलिस कानून कुछ है की नहीं आप लगाइए ना फोन पोलिस को…”



जमीन पर पड़ा हुआ वो बास नुमा छोटा चेतन हँसने लगा।


सेठजी ने मेरे कान में फुसफुसा के कहा- “अरे है सब कुछ है। लेकिन एनही की है…” और फिर बोले- “आप लोग जाओ…”


गुड्डी ने हुकुम दागा- “आप भी ना। इन्हीं को बोल रहे हैं। बाहर थे ना दो ठो पोलिस वाले बुलाइये ना…”

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पुलिस कानून
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सेठजी और मैंने मिलकर शटर खोला। दुकान के बाहर सन्नाटा पसरा पड़ा था। दूर दराज तक गली में सन्नाटा था। पोलिस वाला तो दूर, वो क्रिकेट खेलते बच्चे, सामान वाली ट्रक और टेम्पो, कुछ नहीं थे। यहाँ तक की सारी खिड़कियां तक बंद थी। सिर्फ गाय अभी भी चौराहे पे मौजूद थी, जुगाली करती।

दुकान के अन्दर घुस के मैंने अबकी गुड्डी से बोला- “हे तुम फोन लगाओ ना पोलिस वालों को…”

और उसने 100 नंबर लगाया। बड़ी देर तक घंटी जाने के बाद फोन उठा।

सब सुनने के बाद कोई बोला- “अरे काहे जान ले रही हो बबुनी भेजते हैं। थे तो दू ठे ससुरे वहीं चौराहावे पे। कौनो कतल वतल त न हुआ है ना?”

गुड्डी ने फोन रख दिया।



थोड़ी देर में टहलते हुए वही दोनों पोलिस वाले आये-


“का हउ सेठजी के हो। अरे कान्हे छोट-छोट बात पे पोलिस थाना करते हैं। सलटा लिया करिए ना…”

फिर गुड्डी की ओर देखकर गन्दी सी मुश्कान देते बोले-

“कहो कतो रेप वेप की फरियाद तो नहीं थी। चलो थाने में,... पहले थानेदार साहब बयान लेंगे तोहार सरसों का तेल लगाकर,... फिर हमरो नंबर आएगा। तब तक तो बिना तेलवे का काम चल जाएगा। थानेदार साहेब का डंडा बहुत लम्बा हउ और मजबूत भी। होली में थानेदारिन मायके भी गई हैं…”

मैंने तब तक उस बास उर्फ छोटा चेतन और दोनों मोहरों की फोटो मोबाइल पे ले ली थी।

मैं कुछ बोलता उसके पहले सेठजी बोले-

“अरे इंस्पेक्टर साहब, (थे दोनों कास्टेबल,) बच्चे हैं, कानून कायदा नहीं मालूम फोन घुमाय दिए। हम समझा देंगे। कौनों खास बात नहीं है…”

फिर हम लोगों से मुखातिब होकर बोले- “अब जाओ तुम लोग ना…”

उनके काम करने वाले भी अब वापस आ गए थे और एक ने हम लोगों का सामान भी पकड़ा दिया था।

मैं अब बीच में आ गया- “देखिये बात ये है की। तीन लोगों ने यहाँ सेठजी पे, …”

मेरी बात रोक के पोलिस वाला बोला-

“अरे आप हो कौन ?नाम पता, इ लौंडिया के साथ हो का। का रिश्ता है। राशन कार्ड है। वोटर आईडी। भगा के ले जा रहे हो?”

दूसरा पोलिस वाला भी अब बीच में आ गया-

“मालूम है। ....नाबालिग लग रही है अभी तो इसकी डागदरी होगी। साले, किडनैपिंग लगेगी, दफा 359, दफा 360 दफा 364 साले चक्की पीसोगे और अगर कहीं रेप का केस लग गया तो दफा, 376 375। डागदरी में साबित हो गया तो जमानतो नहीं होगी साल भर। अरे जब एक बार हमारे थानेदार साहब का डंडा चल गया ना रात भर,...तो डागदरी में तो रेप के कुल निशान मिलने ही वाला है। और कौनो कसर रही तो,... डाक्टरों साहेब के थाने पे दावत पे बुलाये लेंगे। छमिया तो मस्त है…”

अब मैं आग बबूला हो रहा था, बहुत हो गया-

“हे कौन है तुम्हारा इन्स्पेक्टर? क्या नाम है, कौन थाना है? अभी मैं बात करता हूँ…” मैं गुस्से में बोला।

तब तक एक पोलिस वाले की निगाह जमीन पे पड़े छोटा चेतन, उन मोहरों के बास पे पड़ी। वो झुक के बोला-

“अरे बाबू साहब! कौन ससुरा?.... का हो सेठजी, इ का हो। जानते नहीं है आप…”

पड़े पड़े उसने मेरी ओर इशारा किया।

मेरा एक पैर उसके मुँह पे भी पड़ गया था। बोलना मुश्किल हो रहा था।

मैंने फिर बोलने की कोशिश की-

“जी यही थे। एक्सटार्शन, हमला के लिए आप इन्हें पकड़िये। ये सेठजी को धमकी दे रहे थे और हम लोगों पे भी इनके साथियों ने। बताइए थाने का नाम, मैं ही इन्स्पेक्टर को फोन करता हूँ…”

वो बोला- “अब फोन मैं करूँगा और इन्स्पेक्टर साहेब यहीं आयेंगे…” और मोबाइल निकालकर लगाया।

मैं उसकी बात सुन रहा था-

“जी हाँ अरे अपने उनके खास। हाँ हाँ वही। पता नहीं कैसे। अरे कौनो ससुरा लौड़ा लफाड़ी है स्टुडेंट छाप और साथ में एक ठो छमिया भी है। फोनवा वही किये थी। हाँ आइये। नहीं कहीं नहीं जाने देंगे। और एम्बुलेंस बाबू साहेब मना कर दिए। उनके कौनो खास डाक्टर हैं बस उन्हीं को फोन किये हैं प्राइवेट नर्सिंग होम है सिगरा पे। अउते होंगे वो भी। हाँ आपको याद कर रहे थे। बस आप आ जाइए तुरंत। अरे हम रोके हैं ले चलेंगे थाने उन दोनों को…”

अब मेरी हालत पतली हो रही थी। इन सिपाहियों से तो मैं निपट लेता लेकिन वो पता नहीं कौन थे?

गुड्डी भी मेरा हाथ पकड़कर खींच रही थी- “हे कुछ करो ना। अगर वो आ गया ना…”

मैं भी डर रहा था। अगर एक बार इन सबों ने मेरा मोबाइल ले लिया, तो फिर?

बिचारे सेठजी अपनी ओर से कोशिश कर रहे थे-

“हे कुछ ले देकर मान जाइए। बच्चे हैं नहीं मालूम था किससे उलझ रहे हैं?”



अचानक बल्ब जला वो भी 250 वाट का। डी॰बी॰ दो साल मुझसे सीनियर थे हास्टल में। मेरी रैगिंग उन्होंने ही ली थी। अभी फेस बुक में किसी ने बताया था की उनकी पोस्टिंग यहीं हो गई है नंबर भी लिया था। बस मैंने लगा दिया नंबर, 2-3-4-5 बार रिंग गई लेकिन कोई जवाब नहीं।


मैं समझ गया अब गई भैंस पानी में। हो सकता है, मेरा नंबर तो है नहीं उनके पास। इसलिए इस पोस्ट पे ना जाने कितने फोन आते होंगे? लेकिन कहीं वो सो रहे हों तो? खैर, मैंने एक मेसेज छोड़ दिया अपने नाम के साथ कोड नेम भी लिख दिया 44। हम दोनों का रूम नंबर हास्टल में एक ही था विंग अलग-अलग थे।

तुरंत रिस्पोंस आया- “बोलो कहाँ हो?”

मेरी जान में जान आई। सब मुझे ही देख रहे थे। छोटा चेतन। पोलिस वाले, सेठजी और गुड्डी। मोहरे अभी भी देखने की हालत में नहीं थे।

मैं दुकान के दूसरे कोने में चला गया। और फोन लगाया। उनकी पोस्टिंग यहीं हो गई थी। एक महीने पहले एस॰पी॰ सिटी में। एस॰एस॰पी॰ कहीं बाहर गए थे तो पूरा चार्ज उन्हीं के पास था।

पूरी दास्तान सुनकर वो बोला- “चल यार तूने रायता फैला दिया है तो समेटना तो मुझे ही पड़ेगा न। वो हैं कैसे बता जरा?”

मैंने बोला-

“अरे मैं अभी फोटो एम॰एम॰एस॰ करता हूँ। लेकिन वो तुम्हारा इंस्पेक्टर आ गया तो?”

मैंने जानबूझ के उसे पोलिस वालों ने क्या बोला था मुझे और गुड्डी को नहीं बताया। उसका गुस्सा, खासतौर से अगर कोई किसी लड़की से बदतमीजी करे तो जग जाहिर था।

थोड़ी देर में फिर फोन बजा, डी॰बी॰ का ही था।


“ये तूने क्या किया? तू ना। चल लेकिन,... चाय बनती है।...हाँ दो बात। पहली किसी को उन तीनों को ले मत जाने देना, खास तौर से उस इन्स्पेक्टर को या किसी डाक्टर को। और दूसरा सुन। अपने बारे में भी किसी को बताया तो नहीं। मत बताना। समझे?”

“लेकिन मैं कैसे रोक पाऊंगा…” मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

“ये तेरा सिरदर्द है। हाँ असली बात तो मैंने बतायी नहीं। मैं एक सिद्दीकी नाम के इन्स्पेक्टर को भेज रहा हूँ। बस उसी को इन तीनों को, और मुझसे बात कराकर…” ये कहकर फोन काट दिया।

सांस भी आई और घबड़ाहट भी। इसका मतलब ये तिलंगे कोई इम्पोर्टेंट है।

छोटा चेतन, उन दोनों के बास को दोनों पुलिस वालों ने मिलकर कुर्सी पे बिठा दिया था और एक कोल्ड-ड्रिंक लाकर दे दिया था। वो बैठकर सुड़ुक सुड़ुक के पी रहा था।

बाकी दोनों मोहरे भी फर्श पे काउंटर के सहारे बैठ गए थे।



हम लोग भी अगले पल का इंतजार कर रहे थे। मेरी समझ में नहीं आ रहा था की थानेदार से मैं कैसे निबटूंगा? और पता नहीं वो सिद्दीकी का बच्चा। फिर ये जो डाक्टर आने वाला है तीन तिलंगों को लेने, उससे कैसे निबटेंगे? तब तक शैतान का नाम लो और शैतान हाजिर।
बहुत ही शानदार अपडेट है गुंडों के पास रिवॉल्वर भी था और वह उसको चला भी सकता था लेकिन हीरो ने चेन से उसका ध्यान भटककर उस गुंडे की ऐसी धुलाई कर दी कि बेचारा कई महीनों तक अपने। हाथों से कुछ भी नहीं उठा सकता था गुंडे का दबदबा था इसलिए पुलिस वालो ने कोई एक्शन नहीं लिया है हीरो ने अपने रूम मेट को कॉल किया है देखते हैं वह क्या करता है
 
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थानेदार साहेब

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सांस भी आई और घबड़ाहट भी। इसका मतलब ये तिलंगे कोई इम्पोर्टेंट है।

छोटा चेतन, उन दोनों के बास को दोनों पुलिस वालों ने मिलकर कुर्सी पे बिठा दिया था और एक कोल्ड-ड्रिंक लाकर दे दिया था। वो बैठकर सुड़ुक सुड़ुक के पी रहा था।


बाकी दोनों मोहरे भी फर्श पे काउंटर के सहारे बैठ गए थे।


हम लोग भी अगले पल का इंतजार कर रहे थे।

मेरी समझ में नहीं आ रहा था की थानेदार से मैं कैसे निबटूंगा? और पता नहीं वो सिद्दीकी का बच्चा। फिर ये जो डाक्टर आने वाला है तीन तिलंगों को लेने, उससे कैसे निबटेंगे?

तब तक शैतान का नाम लो और शैतान हाजिर।


धड़धड़ाती हुई जीप की आवाज सुनाई पड़ी। सबके चेहरे अन्दर खिल पड़े सिवाय मेरे और गुड्डी के। दनदनाते हुए चार सिपाही पहले घुसे। ब्राउन जूते और जोरदार गालियों के साथ-

“कौन साल्ला है। गाण्ड में डंडा डालकर मुँह से निकाल लेंगे, झोंटा पकड़कर खींच साली को डाल दे गाड़ी में पीछे…”

गुड्डी की ओर देखकर वो बोला।

और पीछे से थानेदार साहब।

पहले थोड़ी सी उनकी तोंद फिर वो बाकी खुद। सबसे पहले उन्होंने ‘छोटा चेतन’ साहब की मिजाज पुरसी की, फिर एक बार खुद उस डाक्टर को फोन घुमाया जिनके पास उसे जाना था और फिर मेरी और गुड्डी की ओर।

“साल्ला मच्छर…”

बोलकर उसने वहीं दुकान के एक कोने में पिच्च से पान की पीक मार दी और अब उसने फिर एक पूरी निगाह गुड्डी के ऊपर डाली, बल्की सही बोलूं तो दृष्टिपात किया। धीरे-धीरे, ऊपर से नीचे तक रीति कालीन जमाने के कवि जैसे नख शिख वर्णन लिखने के पहले नायिका को देखते होंगे एकदम वैसे। और कहा-

“माल तो अच्छा है। ले चलो दोनों को,... लेकिन पहले साहब चले जाएं। डायरी में इस लड़की के फोन का तो नहीं कुछ…” उन्होंने पहले आये पुलिस वाले से पूछा।



“नहीं साहब। बिना आपकी इजाजत के। अब इस साले को ले चलेंगे तो किडनैपिंग और लड़की को नाबालिग करके। ये उससे धंधा करवाता था। तो वो…”

थानेदार जी बोले- “सही आइडिया है तुम्हारा। ससुरी वो जो पिछले वाली सरकार में मंत्री की रखैल। चलाती है क्या तो नाम है। जहाँ इ सब दालमंडी वालियों को…”

“वनिता सुधार गृह…” कोई पढ़ा लिखा पोलिस वाला पीछे से बोला।

“हाँ बस वहीं। अरे सरकार गई धन्धवा तो सब वही है। बस वहीं रख देंगे बस पूछताछ के लिए जब चाहेंगे बुलवा लेंगे…” थानेदार जी ने चर्चा जारी रखी।

अब उन्होंने अगले अजेंडे की ओर रुख किया यानी मेरी ओर- “ले आओ जरा साले को…” दो पोलिस वालों को उन्होंने आदेश दिया।

“अरे साहब अभी ले चलेंगे न साले को थाने में वहां आराम से। जरा आधा घंटा हवाई जहाज बनायेंगे, टायर पहनाएंगे। फिर आप आराम से दो-चार हाथ। अरे जो कहियेगा हुजुर वो कबूलेगा,.... साल्ला, रेप, किडनैपिंग, ब्लू-फिल्म ड्रग्स, ....अपने हाथ से लौंडिया का नाड़ा खोलेगा…”

एक पोलिस वाले ने समझाया।

वो बोले- “अरे जरा बात कर लें नाम पता पूछ लें बाकी तो थाने में ही होगा…”

दो पोलिस वाले मेरी ओर बढ़े।


तभी मेरे फोन की घंटी बजी।

डी॰बी॰।

“सिद्दीकी पहुँचा?” वो बोले।

“नहीं, लेकिन वो थानेदार आ गया है और मुझे पकड़ने के चक्कर में है…”

“वो तो ठीक है, तुम्हारी ट्रेनिंग का पार्ट हो जाएगा। लेकिन सिद्दीकी पहुँचाने ही वाला है बस दो-वार मिनट, उन तीनों को उसी के हवाले करना।

मैंने फोन इस तरह किया था की दुकान में हो रही आवाजें भी उन्हें सुनाई पड़े।

“हे चल दरोगा साहेब बुला रहे हैं…” उन दोनों ने मेरा हाथ पकड़ने की कोशिश की।

“चल रहा हूँ साहब…” मैंने बोला और हाथ पकड़ने से रोक दिया।

“क्यों बे किससे बात कर रहा है तुझे टाइम नहीं है। और ये क्या यहाँ शरीफ आदमियों के साथ लफड़ा किया और,... ये साली लौंडिया कहाँ भगाकर ले जा रहा है? किससे बात कर रहा है? मोबाइल छीन इसका…”

वो गरजे।

डी॰बी॰ अभी फोन पर ही थे-

“वो,... वो। आपसे ही बात करना चाहते हैं जी। लीजिये…” और फोन मैंने थानेदार को पकड़ा दिया।
सारे पोलिस वाले हमें ऐसे देख रहे थे जैसे मैं किसी से सोर्स सिफारिश लगवा रहा हूँ, और जिसका थानेदार साहब पे कोई असर नहीं होगा। उल्टे उनकी एक घुड़क से उसकी पैंट ढीली हो जायेगी।

थानेदार जी ने फोन ले लिया। फिल्म अब स्लो मोशन में हो गई- “कौन है बे। ये जो पोलिस के मामले में टांग,.... नहीं नहीं सर इन्होंने बताया नहीं, मैं तो इसीलिए खुद आ गया था। पहले दो जवान भेजे थे लेकिन मैं खुद तहकीकात करने आ गया। मैडम ने फोन किया था। नहीं कोई छोटा मोटा लुच्चा लफंगा है होली का चंदा मांगने वाला। वैसे साहब ने खुद उसके हाथ पांव ढीले कर दिए हैं…”



इतना तेज हृदय परिवर्तन, भाषा परिवर्तन और पोज परिवर्तन, मैंने एक साथ कभी नहीं देखा था। फिल्मों में भी नहीं। फोन लेने के चार सेकंड के अन्दर उनके ब्राउन जूते कड़के। वो तन के खड़े हो गए, हाथ सैल्यूट की मुद्रा में और दूसरे हाथ से फोन पकड़े।
सिद्दीकी
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थानेदार जी ने फोन ले लिया। फिल्म अब स्लो मोशन में हो गई-

“कौन है बे। ये जो पोलिस के मामले में टांग,....नहीं नहीं सर इन्होंने बताया नहीं, मैं तो इसीलिए खुद आ गया था। पहले दो जवान भेजे थे लेकिन मैं खुद तहकीकात करने आ गया। मैडम ने फोन किया था। नहीं,... कोई छोटा मोटा लुच्चा लफंगा है होली का चंदा मांगने वाला। वैसे साहब ने खुद उसके हाथ पांव ढीले कर दिए हैं…”

इतना तेज हृदय परिवर्तन, भाषा परिवर्तन और पोज परिवर्तन, मैंने एक साथ कभी नहीं देखा था। फिल्मों में भी नहीं।

फोन लेने के चार सेकंड के अन्दर उनके ब्राउन जूते कड़के। वो तन के खड़े हो गए, हाथ सैल्यूट की मुद्रा में और दूसरे हाथ से फोन पकड़े।



वार्ता जारी थी-

“नहीं नहीं सिद्दीकी को भेजने की कोई जरूरत नहीं। नहीं मेरा मतलब,.... अरे मैडम ने जैसे ही फोन किया जी॰डी॰ में दर्ज कर दिया है, एफ॰आई॰आर॰ भी लिख ली है। जी,... सेठजी का बयान लेने ही मैं आया था। दफा,... जी नहीं एकाध कड़ी दफा भी। जी,... उसने अपने वकील को फोन कर दिया था मेरे आने के पहले। नहीं साहब,.... अरे एकदम छोटा मोटा कोई। नहीं,... कोई गलतफहमी हुई है। ठीक है आप कहते हैं तो पन्ना फाड़ दूंगा…”

फोन दो सेकंड के लिए दबाकर उन्होंने सर्व साधारण को सूचित किया-

“साले तेरा बाप है। डी॰बी॰ साहेब का फोन है। ये उनके दोस्त हैं…”

थानेदार- “जी हाँ एकदम दुरुस्त…” और फोन बंद करके मुझे पकड़ा दिया।



माहौल एकदम बदल गया।

जो दो पोलिस वाले मेरे हाथ पकड़े थे और हवाई जहाज, टायर इत्यादि की एडवेंचर्स योजनायें बना रहे थे, उन्होंने मौके का फायदा उठाया और मेरे चरणों में धराशायी हो गए-

“जी माफ कर दीजिये। ये तो इन दोनों ने। साले अब जिन्दगी भर ट्रैफिक की ड्यूटी करेंगे। थाने के लिए तरस जायेंगे। जूते मार लीजिये साहब। लेकिन…”


वो दोनों पोलिस वाले भी मेरे पास खड़े थे, लेकिन चरण कम पड़ रहे थे। इसलिए वो जाकर गुड्डी के चरणों में-

“माताजी। माताजी हम। पापी हैं हमें नरक में भी जगह नहीं मिलेगी। लेकिन आप तो दयालु हैं, माफ कर दीजिये, हम कान पकड़ते हैं। बरबाद हो जायेंगे। साहेब हमें जिन्दा नहीं छोड़ेंगे। बाल बच्चे वाले हैं हम आपके पैरों के दास बनकर रहेंगे…”

फर्क चारों ओर पड़ गया था।

दोनों मोहरे जो काउंटर का सहारा लेकर आराम से अधलेटे बैठे थे जमीन पे फिर से सरक गए थे।

‘छोटा चेतन’ जो ओवर कांफिडेंट था, के चेहरे पे हवाइयां उड़ रही थी और वो बार-बार मोबाइल लगाता और उम्मीद की निगाह से थानेदार की ओर देख रहा था।

यहाँ तक की सेठजी भी एक नई नजर से हम लोगों की तरफ देख रहे थे।

छोटा चेतन उन तिलंगों का बास दरवाजे की ओर देख रहा था और मैं भी। मैं सोच रहा था की अगर वो डाक्टर आ गया तो उसे मैं कैसे रोकूंगा?


--------------

तभी दरवाजा खुला लेकिन धड़ाके से।



क्या जंजीर में अमिताभ बच्चन की या दबंग में सलमान की एंट्री हुई होगी? सिर्फ बैक ग्राउंड म्यूजिक नहीं था बस।

सिद्दीकी ने उसी तरह से जूते से मारकर दरवाजा खोला। उसी तरह से 10 नंबर का जूता और 6’4…” इंच का आदमी, और उसी तरह से सबको सांप सूंघ गया।


खास तौर से छोटा चेतन को, अपने एक ठीक पैर से उसने उठने की कोशिश की और यहीं गलती हो गई।



एक झापड़। जिसकी गूँज फिल्म होती,... तो 10-12 सेकंड तक रहती और वो फर्श पे लेट गया।


सिद्दीकी ने उसका मुआयना किया और जब उसने देखा की एक कुहनी और एक घुटना अच्छी तरह टूट चुका है, तो उसने आदर से मेरी तरफ देखा और फिर बाकी दोनों मोहरों को। टूटे घुटने और हाथ को और फिर अब उसकी आवाज गूंजी-


“साले मादरचोद। बहुत चक्कर कटवाया था। अब चल…” और फिर उसकी आवाज थानेदार के आदमियों की तरफ मुड़ी।



सिद्दीकी-

“साले भंड़ुवे, क्या बता रहे थे इसे? छोटा मोटा। सारे थानों में इसका थोबड़ा है और। चलो अब होली लाइन में मनाना। पुलिस लाइन में मसाला पीसना। किसी साहब के मेमसाहब का पेटीकोट साफ करना…”

तब तक फिर फोन की घंटी बजी।

डी॰बी॰- “सिद्दीकी पहुँचा?”

मैंने बोला- “हाँ…”

डी॰बी॰- “उसको फोन दो ना…”


मैंने फोन पकड़ा दिया।

सिद्दीकी बोल रहा था लेकिन कमरे में हर आदमी कान फाड़े सुन रहा था। मैं समझ गया था की पब्लिक जितना डी॰बी॰ के नाम से डरी उससे ज्यादा। सिद्दीकी को देखकर। वो बनारस का ‘अब तक छप्पन’ होगा।



सिद्दीकी- “जी इन दोनों को आपके पास लाने की जरूरत नहीं है खाली शुक्ला को। जी मैं कचड़ा ठिकाने लगा दूंगा। हाँ एक रिवाल्वर और दो चाकू मिले हैं। जी। मैं साथ में एक वज्र लाया हूँ यहीं लगा दिया, ....रामनगर से दो पी॰ए॰सी॰ की ट्रक आई थी होली ड्यूटी के लिए,... उन्हें गली के बाहर। डाक्टर को पहले ही उठवा लिया है और मेरे करने के लिए कुछ बचा नहीं था, साहब ने पहले ही,... मुझे बहुत घमंड था अपने ऊपर लेकिन जिस तरह से साहब ने चाप लगाया है सालों के ऊपर…”

और उसने फोन मुझे पास कर दिया।



डी॰बी॰ अभी भी लाइन पर थे, कहा- “अभी एक मोबाइल भेज रहा हूँ। तुम लोग…”


मैं- “मोबाइल। मतलब?” मेरी कुछ समझ में नहीं आया।

डी॰बी॰- “अरे पोलिस की गाड़ी। भेज रहा हूँ जाना कहां था…” वो बोले।

मैंने बताया की घर जा रहा हूँ बस पकड़ के तो वो फिर बोले

- “अरे खाना वाना खाकर घर जाते बस पकड़कर। लेकिन ये सब… “तो ठीक है सिद्दीकी जैसे निकले उसके बाद। हाँ ये बताने की जरूरत नहीं की किसी को बताना मत कुछ भी और तुम्हारे साथ वही है ना। जिसकी चिट्ठी आती थी?”



मैं- “हाँ वही। गुड्डी…”



डी॰बी॰- “अरे यार तुम लोग शाम को घर आते। खैर, लौटकर मिलवाना जरूर…”



मैंने फोन बंद किया।


सिद्दीकी अभी भी मुझे देख रहा था-

“साहेब बहुत दिन हो गए मुझे भी गुंडे बदमाश देखे साहब। लेकिन जो हाथ आपने लगाये हैं न। बस सुनते थे या। वो जो चीनी टाइप है हाँ जैकी चान उसकी पिक्चर में देखते थे। सब एकदम सही जगह पड़ा है। अभी से ये हालात है तो जब आप यहाँ आयेंगे तो क्या हाल होगा इन ससुरों का? कैडर तो आप का भी यूपी है ना?”

“मतलब?” पतली सी अवाज थानेदार के गले से निकली।



सिद्दीकी बोला-

“अरे साले तेरे बाप हैं। साल भर में आ जायेंगे यहीं…”

और अपने साथ आये दो आदमियों से मोहरों की तरफ इशारा करते हुये कहा-

“ये दोनों कचड़ा उठाकर पीएसी की ट्रक में डाल दो और शुकुल जी को (छोटा चेतन की ओर इशारा करते हुये) बजर में बैठा दो। उठ नहीं पायेंगे। गंगा डोली करके ले जाना। हाँ एक पीएसी की ट्रक यहीं रहेगी गली पे और अपने दो-चार सफारी वालों को गली के मुहाने पे बैठा दो की कोई ज्यादा सवाल जवाब न हो। और न कोई ससुरा मिडिया सीडिया वाला। बोले तो साले की बहन चोद देना…”



जब वो सब हटा दिए गए तो थानेदार से वो बोला-

“मुझे मालूम है ना तो अपने जी॰डी॰ में कुछ लिखा है न एफ॰आई॰आर॰, फोन का लागबुक भी ब्लैंक हैं चार दिन से। तो जो कहानी साहब को सुना रहे थे, दुबारा न सुनाइएगा तो अच्छा होगा, और थानेदारिन जी को भी हम फोन कर दिए हैं। भाभीजी शाम तक आ जायेंगी तो जो हर रोज शाम को थाने में शिकार होता है ना उ बंद कर दीजिये। चलिए आप लोग। अगर एको मिडिया वाला, ह्यूमन राईट वाला, झोला वाला, साल्ला मक्खी की तरह भनभनाया ना। तो समझ लो। तुम्हरो नंबर लग जाएगा…”



थाने के पोलिस वाले चले गए। तब तक एक गाड़ी की आवाज आई, वो हमारे लिए जो पोलिस की गाड़ी थी वो आ गई थी। हम लोग निकले तो दुकान के एक आदमी ने होली का जो हमने सामान खरीदा था वो दे दिया। सिद्दीकी हमें छोड़ने आया हमारे पीछे-पीछे अपनी गाड़ी में। गली के बाहर वो दूसरी तरफ मुड़ गया।



गुड्डी के चेहरे से अब जाकर डर थोड़ा-थोड़ा मिटा।



“किधर चलें। तुम्हारा शहर है बोलो?” मैंने गुड्डी से पूछा।



“साहेब ने आलरेडी बोल दिया है मलदहिया पे एक होटल है। वहां से आप का रेस्टहाउस भी नजदीक है…” आगे से ड्राइवर बोला।
बहुत ही शानदार और जबरदस्त अपडेट है पुलिस वाले और थानेदार बड़े रौब में आए थे लेकिन डीबी से बात करते ही सबकी सिट्टी गुम हो गई सिद्दीकी ने पुलिस वालो को ऐसा हड़काया की बेचारे आनंद और गुड्डी के पैरों में पड़कर अपनी नौकरी बचाने की कोशिश करने लगे डीबी और सिद्दीकी दोनों ही दबंग ऑफिसर थे डीबी को भी गुड्डी के बारे में पता है
 
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भाग २६ ------------पूर्वांचल और,
गुड्डी

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“मतलब?” पतली सी अवाज थानेदार के गले से निकली।



सिद्दीकी बोला- “अरे साले तेरे बाप हैं। साल भर में आ जायेंगे यहीं…”

और अपने साथ आये दो आदमियों से मोहरों की तरफ इशारा करते हुये कहा-

“ये दोनों कचड़ा उठाकर पीएसी की ट्रक में डाल दो और शुकुल जी को (छोटा चेतन की ओर इशारा करते हुये) वज्र में बैठा दो। उठ नहीं पायेंगे। गंगा डोली करके ले जाना। हाँ एक पीएसी की ट्रक यहीं रहेगी गली पे और अपने दो-चार सफारी वालों को गली के मुहाने पे बैठा दो की कोई ज्यादा सवाल जवाब न हो। और न कोई ससुरा मिडिया सीडिया वाला। बोले तो साले की बहन चोद देना…”



जब वो सब हटा दिए गए तो थानेदार से वो बोला-


“मुझे मालूम है ना तो अपने जी॰डी॰ में कुछ लिखा है न एफ॰आई॰आर॰, फोन का लागबुक भी ब्लैंक हैं चार दिन से। तो जो कहानी साहब को सुना रहे थे, दुबारा न सुनाइएगा तो अच्छा होगा, और थानेदारिन जी को भी हम फोन कर दिए हैं। भाभीजी शाम तक आ जायेंगी तो जो हर रोज शाम को थाने में शिकार होता है ना उ बंद कर दीजिये। चलिए आप लोग। अगर एको मिडिया वाला, ह्यूमन राईट वाला, झोला वाला, साल्ला मक्खी की तरह भनभनाया ना। तो समझ लो। तुम्हरो नंबर लग जाएगा…”

थाने के पोलिस वाले चले गए।


तब तक एक गाड़ी की आवाज आई, वो हमारे लिए जो पोलिस की गाड़ी थी वो आ गई थी। हम लोग निकले तो दुकान के एक आदमी ने होली का जो हमने सामान खरीदा था वो दे दिया। सिद्दीकी हमें छोड़ने आया हमारे पीछे-पीछे अपनी गाड़ी में। गली के बाहर वो दूसरी तरफ मुड़ गया।

गुड्डी के चेहरे से अब जाकर डर थोड़ा-थोड़ा मिटा।
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“किधर चलें। तुम्हारा शहर है बोलो?” मैंने गुड्डी से पूछा।



“साहेब ने आलरेडी बोल दिया है मलदहिया पे एक होटल है। वहां से आप का रेस्टहाउस भी नजदीक है…”

आगे से ड्राइवर बोला।

पीछे से मैं बैठा सोच रहा था। थोड़ी ही देर में कहाँ कहाँ से गुजर गए। इतना टेंसन। लेकिन अब माहौल नार्मल कैसे होगा। गुड्डी क्या सोच रही होगी। मेरे कुछ दिमाग में नहीं घुस रहा था।

“ये ये तुम्हारी शर्ट पे चाकू लगा है क्या?”

गुड्डी ने परेशान होकर पूछा और टी-शर्ट की बांह ऊपर कर दी। वहां एक ताजा सा घाव था ज्यादा बड़ा नहीं लेकिन जैसे छिल गया हो। दो बूँद खून अभी भी रिस रहा था।

मुझे लगा वो घबड़ा जायेगी। लेकिन उसने लाइटली लिया और और चिढ़ाती सी बोली-


“अरे मैं सोच रही थी की फिल्मों के हीरों ऐसा कोई बड़ा घाव होगा और मैं अपने दुपट्टे को फाड़कर पट्टी बांधूंगी लेकिन ये तो एकदम छोटी सी पट्टी…”

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लेकिन उसकी आँखों में चिंता साफ झलक रही थी।
“ड्राइवर साहब कोई मेडिकल की दुकान पास में हो तो मैं एक बैंड-एड। …” मैं बोला।

लेकिन गुड्डी बीच में काटती बोली- “अरे नहीं कुछ जरूरत नहीं है। आप सीधे होटल ले चलिए बहुत भूख लगी है…” और उसने अपने बड़े से झोला नुमा पर्स से बैंड-एड निकला और एकदम मुझसे सटकर जितना जरूरी था उससे भी ज्यादा। मेरे हाथ में बैंड-एड लगा दिया लेकिन वैसे ही सटी रही अपने दोनों हाथों से मेरा हाथ पकड़े जैसे खून बहने से रोके हो।



मैं बस सोच रहा था की कैसे उस दुस्वप्न से बाहर निकलूं।

पहले तो वो गुंडे और फिर पुलिस वाले। वो थानेदार। मैं अकेला होता तो ये यूजुअल बात होती लेकिन गुड्डी भी साथ। होली में उसके घर कितना मजा आया और घर पहुँचकर। कितना डर गई होगी, हदस गई होगी वो और मजे वजे लेने की बात तो दूर नार्मल बात भी शायद मुश्किल होगी।



लेकिन गुड्डी गुड्डी थी।


एक हाथ से मेरा हाथ पकड़े-पकड़े दूसरा हाथ सीधे मेरे पैरों पे और वहां से सीधे हल्के-हल्के ऊपर। मेरे कान में बोली-

“तुम डर गए हो तो कोई बात नहीं लेकिन कहीं ये तो नहीं डर के दुबक गया हो। वरना मेरा पांच दिन का इंतजार सब बेकार चला जाएगा…”
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मैं समझ गया की नार्मल होने की कोशिश वो मुझसे भी ज्यादा कर रही है।

मैं बस मुश्कुरा दिया। तब तक मेरा फोन बजा।
डी॰बी॰
सेठजी की लड़की

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डी बी का फोन था , थोड़े रिलैक्सड थे, बोले

“हाँ अब बता। गाड़ी में हो न। वो सब कचड़ा साफ हो गया ना?” वो पूछ रहे थे।

मैंने पूछा- “हाँ बास लेकिन ये लफड़ा था क्या?”


“अबे तेरी किश्मत अच्छी थी जो ये आज हुआ। तीन महीने पहले होता न,… तो बास मैं भी कुछ नहीं कर सकता था, सिवाय इसके की तुम्हें किसी तरह यूपी के बाहर पहुँचा दूँ। लेकिन अभी तो एकदम सही टाइम पे…” उन्होंने कुछ रहस्यमयी ढंग से समझाया।

मैंने फिर गुजारिश की- “अरे बास कुछ हाल खुलासा बयान करो ना मेरे कुछ पल्ले नहीं पड़ रहा…”

डी॰बी॰- “अरे यार हाल खुलासा बताऊंगा न तो गैंग आफ वासेपुर टाइप दो पिक्चरें बन जायेंगी। राजेश सिंह का नाम सुना है?” सवाल के जवाब में सवाल, पुरानी आदत थी।

“किसने नहीं सुना है। वही ना जिसने दिन दहाड़े बम्बई में ए॰जे॰हास्पिटल में शूट आउट किया था डी कंपनी के साथ…” मैंने अपने सामन्य ज्ञान का परिचय दिया।

डी॰बी॰- “वो उसी के आदमी थे जिसके साथ तुम और खास लोग…”

वो जवाब मेरी नींद हराम करने के लिए काफी था।

डी॰बी॰- “वही। और पिछली सरकार में तो किसी की हिम्मत नहीं थी की। लेकिन तीन महीने पहले जो सरकार बदली है वो ला एंड आर्डर के नाम पे आई है, इसलिए थोड़ा ज्यादा जोर है…”

मेरे दिमाग में गूँजा।

फेस बुक पे जो हम लोग बात कर रहे थे, नई सरकार खास तौर से डी॰बी॰ को ले आई है अपनी छवि सुधारने के नाम पे। पुरानी वाली इलेक्शन इसी बात पे हारी की माफिया, किडनैपिंग ये सब बहुत बढ़ गया था, खास तौर पे इस्टर्न यूपी में था तो हमेशा से, लेकिन अभी बहुत खुले आम हो गया था।

डी॰बी॰ का फोन चालू था-

“तो वो सिंह। पिछले सरकार में तो सब कुछ वो चलाता था, लेकिन जब सरकार बदली तो वो समझ गया की मुश्किल होगी। उसके बहुत छुटभैये पकड़े गए, कुछ मारे गए। उसने उड़ीसा में माइनिंग में इन्वेस्ट कर रखा था तो अब वो उधर शिफ्ट कर गया है। जो दूसरे गैंग है उनको उभरने में थोड़ा टाइम लगेगा। इसके गैंग के जो दो-तीन नंबर वाले थे वो अब हिसाब इधर-उधर सेट कर रहे हैं या क्या पता सिंह ही दल बदल कर 6-7 महीने में इधर आ जाय…”

“और वो शुक्ला?” मेरे सवाल जारी थे।

डी॰बी॰- “वो तो खास आदमी था सिंह का। तुमने सुना होगा बाटा मर्डर…”

“हाँ। वो भी तो सिंह ने दिन दहाड़े पुलिस की कस्टडी में…” मैंने बताया।

डी॰बी॰- “वो साला भी कम नहीं था। लेकिन अभी जो होम मिनिस्टर हैं उनका खास आदमी था। जेल से उसको ट्रांसफर कर रहे थे यहीं बनारस ला रहे थे, आगे-पीछे पुलिस की एस्कोर्ट वैन थी, एक ट्रक पीएसी भी थी, लेकिन तब भी,… 4 एके-47 चली थी आधे घंटे तक, 540 राउंड गोली। सिंह ने जो 4 शूटर लगाए थे उसमें से एक तो उसी समय थाईलैंड भाग गया, शकील का गैंग जवाइन कर लिया। एक नेपाल में है। एक को हम लोगों ने पिछले हफ्ते मार दिया,शुक्ला का हाथ लोग कहते हैं पूरी प्लानिंग में था। और उसके पहले सिंह के टॉप शूटर्स में था, चाक़ू में भी नंबरी।
डी बी रुक गए और मैं सोचने लगा, उसका चाक़ू का हाथ, अगर गुड्डी ने टाइम पर बचो न बोला होता तो निशाना उसका एकदम सही था। और जिस तरह से बजाय कट्टा के दो विदेशी रिवाल्वर लिए था उसी से लग रहा था, लेकिन डी बी ने शुक्ला और सिंह का आगे का रिश्ता बताया

"ये सिंह का रेलवे, हास्पिटल और रोड का ठीका भी सम्हालता था। लेकिन अब सरकार बदलने के बाद उसे कुछ मिल नहीं रहा था। इसलिए अपना सीधा,… सिंह का बचा खुचा नेटवर्क तो है ही लेकिन शुक्ला अलग से। इसलिए अब सिंह के लोग भी उसको बहुत सपोर्ट नहीं करते थे। हाँ 6-7 महीने बचा रहता तो जड़ जमा लेता। बाटा वाले शूट आउट में सिद्दीकी का बहनोंई भी मारा गया था, 38 साल का बहुत ईमानदार इन्स्पेक्टर। उसके अलावा साले सभी मिले थे, वरना पुलिस की कस्टडी से। इसलिए मैंने सिद्दीकी को खास तौर से चुना…”



मेरा एक सवाल अभी भी बाकी था, सवाल भी और डर भी- “वो सेठ जो। उनको तो कहीं कुछ नहीं होगा?”


डी॰बी॰ हँसे और बोले- “अरे यार तुम मौज करो। ये सब ना, उसको कौन बोलेगा? सिंह को तो वो अभी भी हफ्ता देता ही है, और वैसे भी अब वो सिंह यहाँ का धंधा समेट रहा है। माइनिंग में बहुत माल है। खास तौर से उसने वहां एक-दो मल्टी नेशनल से हिसाब सेट कर लिया है। यूपी से लड़के ले जाता है। वहां जमीन पे कब्ज़ा करने में ट्राइबल्स को हड़काने में, तो अब बनारस की परचून की दुकान में,…. शुक्ला था तो उसको तुमने अन्दर करवा दिया। अब साल भर का तो उसको आराम हो गया और उनका रिश्ता सिंह से पुराना था।

उसकी दुकान से इस्टर्न यूपी, बिहार सब जगह माल जाता था तो उसी के अन्दर डालकर हथियार खास तौर से कारतूस, बदले में सेल्स टैक्स चुंगी वाले किसी की हिम्मत नहीं थी।

और बाद में शुक्ल ड्रग्स में भी। तो सेठजी की हिम्मत नहीं हो रही थी, तो उसकी लड़की उठाकर ले गए थे। फिर जो सौदा सेट हो गया तो। वैसे भी शुक्ला को एक-दो बार इसने घर पे भी बुलाया था। वहीं पे उसकी लड़की इसने देखी।

और ज्यादातर माफिया वाले मेच्योर होते हैं। उनका लड़की वड़की का नहीं होता, ज्यादा शौक हुआ तो बैंगकाक चले गए। लेकिन ये नया और थोड़ा ज्यादा। तो अब वैसे भी उन्हें डरने की बात नहीं है और एक-दो हफ्ते के लिए तुम्हें इत्ता डर है तो सिक्योरिटी लगा दूंगा। उसका फोन तो हम टैप करते हैं…”
तो वो सेठ जी की लड़की वाला मामला, मेरे अभी भी समझ में नहीं आया था, मैंने पूछ लिया।

डी बी हंस के बोले अभी पांच छह महीने बाद पोस्टिंग हो जायेगी न तो समझ में आ जायेगी। मुझे भी समझ में नहीं आ रहा था। जब मैं यहाँ आया साल भर पहले तो पता चला था लेकिन सेठ जी ने ऍफ़ आई आर तक तो करवाई नहीं। मुझे आये साल भर से ऊपर होगया और मुझे पता चला तो बहुत गुस्सा आया। सेठ जी से कहलवाया की रिपोर्ट तो करवा दीजिये, पुलिस प्रोटेक्शन भी दूंगा लेकिन आ के हाथ जोड़ के खड़े होगये। नहीं साहब, अब तो बिटिया भी आ गयी है सब लोग भूल गए हैं। फिर से अखबार, कोर्ट कचहरी, गवाही, लड़की की जाति शादी में झंझट होगा। लेकिन जानते हो असली बात क्या थी,

" नहीं " मैंने फोन पर भी जोर से सर हिलाया।

" अरे डील में सेठ जी को भी बहुत फायदा हुआ। कई जगह की सप्लाई का ठेका मिल गया, जितना महीना बाँधा था उससे बहुत ज्यादा और फिर जब से नयी सरकार आयी, उससे भी उनकी रब्त जब्त। "
पूर्वांचल और माफिया

डी बी का कोई दूसरा फोन आ गया था


शायद हेडक्वार्टर से या किसी नेता वेता का, क्योंकि उनकी खाली यस जी सर की आवाज आ रही थी और मेरा फोन उन्होंने होल्ड पर रखा था।


और फोन काटने की मेरी हिम्मत भी नहीं थी, हॉस्टल के मेरे सीनियर थे और यहाँ भी,

लेकिन मैं शुक्ला के बारे में सोच रहा था, और ड्रग्स और सेठ जी की लड़की के बारे में।

ये कोई फ्रिंज आपरेशन रहा होगा, शुक्ला की पहल पर, क्योंकि ज्यादातर माफिया रंगदारी से शुरू हुए फिर ठेकेदारी की ओर मुड़ गए। और शुक्ला ने सिंह के प्रभुत्व का इस्तेमाल किया होगा।


लेकिन डी बी की ये बात एकदम सही थी की दूकान से भेजे जाने वाले सामने के साथ हथियारों की आवाजाही आसान रही होगी। इनकी दूकान का सामान नेपाल तक जाता हैं और उधर से भी ड्राई फ्रूट्स और बाकी सब, फिर नेपाल का बार्डर खुला हैं और पक्की सड़कों के अलावा तराई के जंगल के बीच भी कच्ची सड़कों का जाल हैं, और वहां से पिट्ठू पे भी सामान आता हैं, और पहली बार बाटा मर्डर में जो एके ४७ इस्तेमाल हुयी, कुछ तो कहते हैं की सिंह ने हॉस्पिटल शूटआउट के इनाम के तौर पर डी गैंग से पायी और कुछ कहते हैं की नेपाल से आयी।



लेकिन असली खेल तो होता हैं गोली का।

और नेपाल से हर जगह तो जा नहीं सकती तो इसका मतलब एक सेन्ट्रल प्रोक्योरमेंट डिपो टाइप होगा और वहां से जहाँ जरूरत हो, तो एक बार कहीं पहुँच भी गयीं तो वहां से आजमगढ़, गाजीपुर, बलिया, छपरा, आरा, सिवान सब जगह मिर्च मसलों के साथ। और ४० किलो सूखी लाल मिर्च के बोरे में एक दो किलो कारतूस तो कहाँ पता चलता हैं।


डी बी की ये बात भी सही थी की माफिया वालों को खास तौर से पूर्वांचल में लड़कियों का ज्यादा शौक नहीं था, कई तो एकदम परिवार वाले, हाँ तीसरे चौथे पायदान वालों की, शूटर्स की बात अलग थी और ये शुक्ल जी उन्होंने उसी पायदान से शुरू किया होगा और दूसरी बात ये हैं की चाहे अखबार हो ट्रक और बस में बजने वाले कैसेट के गाने हों या चाय की दूकान की बातचीत इन छुटभैयों का महिमा मंडन भी अच्छी तरीके से किया जाता था ( बड़े माफिया की नाम लेने की हिम्मत किसी में नहीं थी) तो कैशोर्य की पायदान पर पैर रखती लड़कियों के मन में भी,


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तो कभी शुक्ला ने तांक झाँक के बाद सोचा होगा चांस ले सकते हैं। और फिर सेठजी पर प्रेशर भी बनाना आसान होगा, इसलिए उनकी लड़की उठायी गयी होगी, वो आपरेशन सिंह के लेवल का नहीं लगता लेकिन उसने आब्जेक्ट भी नहीं किया होगा।

और फिर कुछ ले देकर जो छोटा चेतन का मोहरा बोल रहा था, यानी महीने वार रकम, और सेठ जी का भी फायदा,


तबतक डी बी की आवाज सुनायी दी,

" अरे यार ये फोन, यस सर यस सर, करते,,,,, अच्छा मुद्दे पे आओ " और उनकी आवाज धीमी होगयी

" ये वही हैं न चिट्ठी वाली, किस्मत वाले हो "



उसी तरह धीमी आवाज में मैंने कबूल किया, हाँ वही है।


चिट्ठी वाला किस्सा तो पूरा हॉस्टल जनता था, करीब तीन साल से, अंतर्देशीय पत्रों का चक्कर, और डर ये लगता था कोई खोल के झाँक न ले। मैंने लाख गुड्डी से कहा था लिफ़ाफ़े में भेजो लेकिन वो मेरी सुनती तो गुड्डी क्यों होती।

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चिट्ठियां सारी हॉस्टल के आफिस की टेबल पे रखी रहती, जिसका होता उठा लेता या कोई उस विंग वाला होता तो वो भी ला के दे देता। लेकिन गुड्डी की चिट्ठी के चक्कर में, मैं भी बेवकूफों की तरह जिस दिन गुड्डी की चिट्ठी आती, उसी दिन जवाब लिखा जाता, भेजा जाता और अगले दिन से हॉस्टल के आफिस का चक्कर चालू दिन में तीन बार और कुछ दिन में उड़ती चिड़िया के पर भांपने वालों ने भांप लिया कोई खास चिट्ठी है। बस एकाध बार चिट्ठी जब्त भी हो गयी और सबको चाय पिलाने के बाद ही मिली, और फिर गुड्डी की मोती ऐसी राइटिंग, पता देख के ही लोग समझ जाते थे की, कोई खास है।

हाँ समझदार तो वो है तो बस ये गनीमत थी की नाम नहीं लिखती थी बस बनारस, और इतना तो सब को पता चल गया की आनंद बाबू का चक्कर किसी बनारस की चिट्ठी वाली से है।

डी बी ऐसे दो चार क्लोज लोग ही थे जिन्हे नाम मालूम था लेकिन उसके आगे कुछ नहीं।



डी बी ने एक हॉस्टल के सीनियर फिर जॉब में सीनियर होने के नाते एक काम की बात बोली, " तुम घर जा रहे हों न "

" हाँ मैं हलके से बोला। गुड्डी मेरे कंधे पे सर रखे शायद ऊंघा रही थी, रतजगे की तैयारी में, थोड़ी सी नींद कही भी कभी भी।

" स्साले, अभी घर पे शादी की बात पक्की कर ले, किस्मत है तेरी इतनी अच्छी लड़की मिल रही है। और तेरी ट्रेनिंग तो अभी पांच छह महीने बची है न "



" हाँ, बस मई से फिल्ड ट्रेनिंग तो यहीं यूपी में ही और फिर सितंबर तक पोस्टिंग " मैंने बताया।


" बेस्ट है, सबसे अच्छा फील्ड ट्रेनिंग के टाइम में शादी कर ले , अगर एक बार पोस्टिंग हो गयी न तो गिन के तीन दिन की शादी की छुट्टी मिलेगी और सुहागरात के दिन फोन आ जायेगा, कही बंदोबस्त में ड्यूटी लगी है, फिर पता नहीं कहाँ कोने अंतरे पोस्टिंग हो, और हाँ वो तेरा पेपर पढ़ा था मैंने मेरे पास भी असेसमनेट के लिए आया था, जबरदस्त था, डाटा भी काफी था और अनैलेसिस भी।"



ट्रेनिंग में दो साल में दो पेपर लिखने होते हैं तो मैंने पूर्वांचल का माफिया लिखा था नाम तो पेपर टाइप ही था, सोशियो -इकोनॉमिक पर्स्पेक्टिव और ईस्टर्न यू पी माफिया। लेकिन असली खेल था फील्ड विजिट के नाम पे एक हफ्ते का टाइम मिलता था, ईस्टर्न यूपी मतलब हफ्ते भर के लिए में घर आ गया और गुड्डी भी उस समय आयी थी।

डीबी ने मेरा पेपर ध्यान से पढ़ा था, और इन्होने एक टेढ़ा सवाल पूछ लिया,

" ये तो ठीक है की पूर्वांचल में माफिया का चक्कर जो ७० और ८० के दशक में शुरू हुआ और ९० के दशक में अमरबेल की तरह फ़ैल गया, उसका आधार जाति था लेकिन उसका फायदा क्या मिला और उससे लिमिट्स क्या सेट हुईं ?

बस मुझे मौका मिल गया ज्ञान बघारने का और मैं नॉन स्टॉप बोलता रहा। गुड्डी और रीत के सामने तो बोलने का सवाल ही नहीं था,


" दोनों गुट दो डॉमिनेंट कास्ट के थे और सबसे बड़ी बात मुझे ये लगी की एक फ्यूडल कल्चर के बचे हुए अंश साफ़ साफ़ दिख रहे थे, प्रभुत्व स्थापित करने की लड़ाई और उस प्रभुत्व का एक्सटर्नल मैनिफेस्टेशन। और सबसे बड़ा अडवांटेज था उन्हें बिना बोले अपनी जाति के लोगों का अलीजियेंस मिला, फिजिकल, फायनेंसियल और इमोशनल सपोर्ट। और क्योंकि सैकड़ों सालों से ये ढांचा वहां था, इनबिल्ट था तो इस तरह की ग्रुप लॉयल्टी का, "



लेकिन डी बी ने मुझे काट दिया, लेकिन तुमने उनके ढांचे के बारे में भी अच्छा लिखा था।



" हां," मैं बोला और स्वीकार किया की मैं भी चकित था। ऊपर की पहली दो तीन पक्तियों में तो जाति का असर था जिसमे उनके फंक्शनल हेड , एरिया हेड इत्यादि थे लेकिन जो फुट सोल्जर्स थे उनमे भी बहुत वैरायटी थी। शूटर्स तो टोटेम पोल में सबसे ऊपर थे लेकिन ज्यादातर का लाइफ स्पान शार्ट था, पर उसके अलावा वाचर्स, फ़ॉलोअर्स, स्पलायर्स , रुकने और रहने का ठिकाना देने वाले इन सबकी पूरी फ़ौज थी और कई तो बस ' बॉस खुश होगा ' के अंदाज में इन्फर्मेशन मुहैया कराते थे । "


" एकदम सही कह रहे हो, जब छह महीने बाद तेरी पोस्टिंग होगी तो पहली पोस्टिंग में ही पता चल जाएगा की असली ताकत किस के पास है "

थोड़ा दुखी , थोड़ा गंभीर हो के वो बोले, फिर जोड़ा,

मेरे अपने आफिस में मुझे पता नहीं है की में जो बोलता हूँ वो कहाँ कहाँ तक पहुंचता है। लेकिन ये चेंज भी तुमने एकदम सही मैप किया था और पूरे डिटेल्स के साथ, ये फंक्शनल कमाडंर वाली बात मेरी समझ में नहीं आयी लेकिन



और मुझे फिर बोलने का मौका मिला गया,

" जब एक बार जातिगत माफिया का सिक्का बैठ गया तो बस असली चीज थी कमाई और ठेकदारी वो समझ गए की रंगदारी से भी बढ़िया है, तो उन्होंने डिपार्टमेंट वाइज बाँट दिया, किसी को पी डब्लू डी , किसी को सिंचाई, किसी को रेलवे, किसी को बिजली, तो बस जितने ठेके वाले काम थे सब। रेलवे में तो मैं चौंक गया, एक पांडेय जी फंक्शनल हेड थे, स्टेशन पर बिकने वाली रेवड़ी के ठेके से लेकर कंस्ट्रक्शन के बड़े से बड़े ठेके तक, और छोटे ठेके में पैसा कमाने से ज्यादा प्रभुत्व और उनकी छत्रछाया, और वो सब बिन पैसे के इन्फॉर्मर के तौर पर काम करते थे। असली पैसा बड़े ठेके में था। और मैंने तो यहाँ तक सुना कि अक्सर रेलवे मिनिस्टर बिहार के होते थे, वहां कि रेलवे लाइन के काम भी होते थे लेकिन ठेका चूँकि रेलवे का मुख्यालय गोरखपुर में था इसलिए उत्तर बिहार के माफिया को दिक्क्त होती थी। इसलिए भी रेलवे का विभाजन हुआ और हाजीपुर बिहार के जितने रेलवे मंडल थे,

गुड्डी कि तरह डी बी को भी बात काटने कि आदत थी, वो बोले
"लेकिन ये काम करने की तो इन सब माफिया की ताकत तो थी नहीं

" काम तो काम करने वाली ही कम्पनिया ही करती थी हाँ उनके रेट में २० से २५ परसेंट बढ़ा के ये कोट करती थी, और ये एक्स्ट्रा पैसा सीधे फंक्शनल हेड के जरिये और दुसरे छोटे मोटे कम टेक्निकल लेबर इंटेसिव काम, सप्लाई के काम भी माफिया के आदमियों को तो वो अलग से पैसा बनाते थे। "



हम लोगो की पुलिस वाली गाडी रुक गयी थी , सामने कोई वृषभ विश्राम कर रहे थे। तो ड्राइवर बगल की दूकान से चाय लेने चला गया।

मैं और गुड्डी चाय सुड़क रहा थे और मैं डी बी से पॉलिटिक्ल, आफीसीएल, माफिया और बिजनेस नेक्सस के बारे में बात कर रहा था लेकिन डी बी ने कहा



" तुम्हारे पेपर में एक पार्ट नहीं है लेकिन वो सब्जेक्ट का पार्ट था भी नहीं और वो एकदम हाल का मुद्दा और अब मुझे सबसे ज्यादा डर उसी से लगता है, "



क्या, मेरी समझ में नहीं आया। और अब डी बी ने बोलना शुरू किया तो रुके नहीं। गाडी चल पड़ी थी।
माफिया, दंगा और पॉलिटिक्स



लो इंटेसिटी रायट्स, उससे माफिया का कनेक्शन, और लांग टर्म इम्पैक्ट टेरर के ब्रीडिंग ग्राउंड के तौर पर, माफिया तो अब समझो नयी सरकार के बाद ठंडा हो गया है लेकिन ये बड़ा सरदर्द है। " डी बी ने ठंडी साँस लेकर कहा।



" ये लो इंटेसिटी रायट्स, ये क्या बला है " मेरी समझ में नहीं आया

" कास्ट बनाम रिलिजन " वो बोल के रुक गए फिर समझ गए की मेरी समझ में नहीं आया। और बात आगे बढ़ाई,


" और उसी से नैरेटिव सेट करना, वेस्टर्न यूपी में तो शुरू हो गया था लेकिन अब यहाँ भी लगता है वही, किसी एकदम छोटे से मुद्दे को लेकर कस्बे में आग भड़केगी और फिर दो तीन दिन में जबतक पुलिस ऐक्शन होकर मामला ठंडा हो, ऐसा नैरेटिव सेट होगा, इलेक्ट्रानिक मिडिया वाले सब मिले हुए और आग भड़काएंगे। उन्हें टी आर पी का फायदा, और माफिया फायदा उठाती है हथियार सप्लाई करने का, और उसके बाद एक किसी कम्युनिटी वालों के मकान जल जाते हैं तो सस्ते मद्दे कोई माफिया का आदमी, या उनके इशारे पर और फिर वहां नया आपर्टमेंट, शहर के साथ गाँव, कसबे में भी, जो सैकड़ों साल से साथ रहते थे अलग,अलग

और एक तरह के लोग अगर एक साथ रहेंगे तो फिर आग सुलगाने में आसानी होती है उन्हें असली नकली वीडियो दिखा के, टेरर वालों के लिए भी अपना धंधा बढ़ाना आसान हो जाता है। फिर अगर ग्राउंड लेवल पे ये बात हो गयी तो, कहाँ तक पुलिस लगेगी, इसलिए ये दंगे, लैंड माफिया, पोलिटिसियन सबके लिए फायदे में हैं सिवाय हम लोगो के "

डी॰बी॰- “ठीक है तो। लेकिन लौटते समय घर जरूर आना और अकेडमी का क्या हाल है? वो खड़ूस चला गया…”

मैंने बोला- “हाँ। नए डायरेक्टर तो यूपी में ही ए॰डी॰जी॰ थे ना। हाँ लौटूंगा तो मिलूँगा…”

डी॰बी॰- “पक्का। वो भी खाली भाषण है। चलो टच में रहना…” कहकर उन्होंने फोन काट दिया।

बात उनकी सही थी, लेकिन तबतक उनकी कोई मीटिंग शुरू होने वाली थी और वो चल दिए और मैं सोच रहा था।



कुछ दिन पहले की बात है मैं ट्रेन से आ रहा था, और एक कोई बुजुर्ग सहयात्री थे, उन्होंने पूछा की कहाँ के रहने वाले हो और जैसे मैंने नाम बताया, बड़ी अजीब नज़रों से उन्होंने देखा और बोले

" अच्छा जहाँ का अबू सलेम है "

मैंने उन्हें लाख, शिब्ली नोमानी, हरिऔध, राहुल सांस्कृत्याययन से लेकर ब्रिगेडियर सुलेमान और कैफ़ी आजमी का जिक्र किया लेकिन अकेले अबू सलेम ने सबको धो दिया था।

आज मुझे समझ में आ रहा था नैरेटिव की ताकत।

मेरी चिड़िया चहक के बोली, " पता नहीं तेरे सीनयर क्या चकचक कर रहे थे लेकिन एक बात मुझे लगता है उन्होंने तुमसे समझदारी की, की "
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और बिना मेरे पूछे कान खींच के कान में बोली, " कुछ कहा न उन्होंने ट्रेनिंग में ही कर लेने को, तुम्हारे सीनियर हैं कुछ तो तुझे उनकी बात माननी चाहिए "



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मतलब मेरी चिड़िया सो नहीं रही थी, सुन रही थी

जो डी बी ने कहा था, " तेरी किस्मत अच्छी है जो ऐसी लड़की मिली है। अबकी घर पे बात पक्की कर लेना और पांच छह महीने ट्रेनिंग के बचे हैं, ट्रेनिंग में ही शादी कर लेना वरना बाद में ऐन सुहागरात के समय फोन आ जाएगा, और शादी की छुट्टी भी मुश्किल से तीन दिन की



तब तक होटल आ गया।

होटल
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तब तक होटल आ गया था। रेडीसन होटल। शायद नया बना था। थ्री स्टार रहा होगा।





मैं- “अरे हम लोगों को तो खाली खाना खाना था यहाँ कहाँ?” होटल की बिल्डिंग देखते हए मैंने ड्राइवर से कहा।


“नया खुला है साहब अच्छा है और साहब ने यहाँ बोल भी दिया है…” ड्राइवर ने कहा और जब हम उतरे तो होटल का मैनेजर खुद हमारा इंतजार कर रहा था।

मैनेजर- “सर का फोन आया था, ये होटल हमारा नया है लेकिन सारी सुविधा हैं…” कहकर उसने हाथ मिलाया और लेकर अन्दर चला।

सामने ही रेस्टोरेंट था।

मैंने कहा- “असल में हम लोग सिर्फ लंच के लिए आये हैं…” और रेस्टोरेंट की ओर मुड़ने लगा।

“एक्सक्यूज मी…” पीछे से एक मीठी सी आवाज आई। मैंने मुड़कर देखा।

डार्क कलर की साड़ी में। हल्के मेकअप में। रिसेप्शनिस्ट थी, - “अक्चुअली। वी हैव मेड अरेंजमेंटस एट आवर स्यूट। फोल्लो मी…”

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मैनेजर बोला- “असल में मैं भी यही कह रहा था। आज रेस्टोरेंट में थोड़ा रिनोवेशन चल रहा है एंड रूम इस कम्फर्टेबल। आप थोड़ा रिलेक्स भी कर सकते हैं…”



रूम क्या था पूरा घर था। दो कमरों का स्यूट।

मीठी आवाज वाली दरवाजे के बाहर तक छोड़कर गई और बोली-


“आप लोग चाहें तो थोड़ा फ्रेश हो लें। मैं 10 मिनट में वेट्रेस को भेजती हूँ, या 108 पे आप रूम सर्विस को भी आर्डर दे सकते हैं…”

कहकर दरवाजा उसने खुद बंद कर दिया था, और मैग्नेटिक चाभी टेबल पे छोड़ दी थी।

मैं जानता था अब ये कमरा सिर्फ अन्दर से खुल सकता है।

गुड्डी तो पागल हो गई।

बाहर वाले कमरे में सोफा, एक छोटी सी डाइनिंग टेबल 4 लोगों के लिए, मिनी फ्रिज, और एक बड़ा सा टीवी 32…” इंच का एल॰सीडी, और बेडरूम और भी बढ़िया। लेकिन सबसे अच्छा था बाथरूम।


बाथटब, शावर सारी चीजें जो कोई सोच सकता है।

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गुड्डी ने बाथरूम में ही मुझे किस कर लिया। एक-दो पांच 10 बार।

झूठ बोल रहा हूँ। किस करते समय भी कोई गिनता है।

गुड्डी फिर दूर खड़ी हो गई और वहीं से हुक्म दिया- “शर्ट उतारो…”

मैं एक मिनट सोचता रहा फिर बोला- “अरे यार मूड हो रहा है तो बेडरूम में चलते हैं ना। यहाँ कहाँ?”

गुड्डी मुश्कुरायी और बिना रुके पहले तो आराम से शर्ट के सारे बटन खोले और फिर उतारकर सीधे हुक पे, अगला नम्बर बनियान का था।

अब मैं पूरी तरह टापलेश था। गुड्डी ने पहले मुझे सामने से ध्यान से देखा, एकाध जगह हल्की खरोंच सी थी। वहां हल्के से उसने उंगली के टिप से सहलाया और फिर पीछे जाकर, एक जगह शायद हल्का सा लाल था, वहां उसने दबाया, तो मेरी धीमी सी चीख निकल गई।

गुड्डी- “खड़े रहना…”


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वो बोली और बाहर जाकर फ्रिज से बर्फ एक टिशू पेपर में रैप करके ले आई और उस जगह लगा दिया।

एक-दो जगह और शायद कुछ घूंसे लगे थे या गिरते पड़ते टेबल का कोना, वहां भी उसने बर्फ लगाकर हल्का-हल्का दबाया।

गुड्डी- “पैंट उतारो…” मैडम जी ने हुकुम सुनाया। पीछे से फिर बोली-

“मैं ही बेवकूफ हूँ। तुम आलसी से अपने हाथ से कुछ करने की उम्मीद करना बेकार है…”

और मुझे पीछे से पकड़े-पकड़े मेरी बेल्ट खोल दी, और पैंट भी हुक पे शर्ट के ऊपर, और अब वो अपने घुटनों के बल बैठ गई थी।


एक क्लोज इंस्पेक्शन मेरी टांगों का। फिर पीछे से घुटनों के पास एक बड़ी खरोंच थी।

वाश बेसिन पे होटल वालों ने जो आफ्टर शेव दिया था उसे हाथ में लेकर उसने ढेर सारा घुटने पे लगा दिया।

“उईईई…” मैं बड़ी जोर से चीखा।

गुड्डी- “ज्यादा चीखोगे। तो इसे खोलकर लगा दूंगी…”

मुश्कुराते हुए उसने अपनी लम्बी उंगलियों से चड्ढी के ऊपर से ‘उसे’ दबा दिया।


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दर्द, डर और मजे में बदल गया।


गुड्डी- “चड्ढी उतारोगे या मैं उतार दूँ? वैसे अन्दर वाला कई बार देख चुकी हूँ। आज इसलिए ज्यादा शर्माने की जरूरत नहीं है…”


“नहीं मैं वो उतार दूंगा…” और मैंने झट से नीचे सरका दिया।

गुड्डी- “देखा। चड्ढी उतारने में कोई देरी नहीं…” मुश्कुराते हुए वो बोली। फिर पीछे से उसने देखा, एक हाथ में उसके बर्फ के क्यूब थे। मैं जो डर रहा था वही हुआ। वो बोली- “झुको…”


मैं झुक गया।

गुड्डी- टांगें फैलाओ।

मैंने फैला दी।

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और बर्फ का क्यूब अपने होंठों में पकड़ के सीधे मेरे बाल्स पे और वहां से हटाने के बाद मेरे पिछवाड़े के छेद पे।


और असर वही जो होना था, वही हुआ। 90° डिग्री।



…”
बहुत ही शानदार और जबरदस्त अपडेट है इस अध्याय में माफिया ,दबंगगिरी और राजनेता के सानिध्य में हो रहे अपराधों का चित्रण किया है ये सब राजनेता अपने फायदे के लिए करते थे भूमाफिया द्वारा किसी की जमीन पर कब्जा करना ,लूटपाट हत्या , बलात्कार ये सब आम बात हो गई थी पुलिस भी कुछ नहीं करती थी राजनीति में जो पार्टी जितना गलत काम करती है वह उतनी ही मजबूत होगी
 
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