" शठे शाठ्यम समाचरेत " - मतलब दुष्ट को उसी के भाषा मे समझाना चाहिए । जिस तरह पहले आनंद ने शहर के गुंडे शुक्ला और उसके दो पंटरों की धुलाई करी और उसके बाद बजाय मेहरबानी डी बी सर , पुलिस आफिसर सिद्दीकी साहब ने भ्रष पुलिसिए की इज्ज़त उतारी वह दुष्ट को उसी के जुबान मे जबाव देना था । वह शठे शाठ्यम समाचरेत निहितार्थ करता था ।
अपडेट के प्रारंभ मे आप ने जिस तरह ग्रासरी के दुकान और उसके आस-पास के परिवेश का वर्णन किया तब एक बार के लिए मुझे फिल्म ' शोले ' के होली वाला वह दृश्य याद आ गया जब गब्बर सिंह रामगढ़ गांव पर हमला करने वाला था । डाकुओं के आने से पहले कुछ कुछ ऐसी ही चहल-पहल उस वक्त गांव मे भी थी ।
यही नही जिस तरह अमिताभ बच्चन साहब ने रंग और अबीर- गुलाल डाकुओं के आंख मे झोंक कर पासा ही पलट दिया था ठीक वैसे ही आनंद ने इन गुंडों के आंखों मे लाल मिर्ची डालकर किया ।
आप ने पुलिस आफिसर सिद्दीकी साहब की तुलना अमिताभ बच्चन और सलमान खान से की जब की मेरा मानना है असल अमिताभ बच्चन तो आनंद साहब थे । अकेले ही तीन तीन हथियारबंद गुंडों को जमीन पर सुला दिया । फाइटिंग स्किल की बानगी पेश कर दी । यही नही एक हीरो की तरह अपनी हीरोइन की रक्षा भी करी । अपने पुलिस आफिसर दोस्त की मदद से इस शहर से गुंडों का आतंक समाप्त कर दिया ।
लेकिन दुख हुआ उस ग्रासरी के मालिक को देखकर । उनकी बेटी के साथ बहुत ही गलत हुआ था , इसका हमे बेहद ही अफसोस है लेकिन इसके बावजूद भी इन गुंडों का सामना करना तो दूर भीगी बिल्ली की तरह उनके कदमों पर बिछे बिछे पड़े हुए थे ।
अपने मान सम्मान , अपनी इज्ज़त से बढ़कर कुछ नही होता । गलत के खिलाफ मौन साध लेना बुजदिली की पहचान है , कायरतापूर्ण है ।
मर्द की पहचान बिस्तर पर नही होती । औरत के सामने डींग हांकने से नही होती । मर्द की पहचान आनंद साहब की तरह दिलेर और आत्मसम्मान के रक्षा करने से होती है । जरूरतमंद की निस्वार्थ भाव से सेवा करने से होती है ।
यह अध्याय बहुत बहुत खुबसूरत था । इरोटिका लेखन की आप क्विन हो यह सर्वविदित है पर एक्शन सीन्स लिखने मे भी आप को महारत हासिल है , यह इस अपडेट ने सिद्ध कर दिया ।
बहुत बहुत खुबसूरत अपडेट कोमल जी ।
आउटस्टैंडिंग एंड जगमग जगमग अपडेट ।